सत्य वास्तविकताएं जिनमें परमेश्वर के विश्वासियों को जरूर प्रवेश करना चाहिए
कलीसियाई जीवन में उपयोग हेतुसर्वशक्तिमान परमेश्वर, अंतिम दिनों के मसीह, ने उन सभी सत्यों को व्यक्त किया है जो मानवजाति को बचा सकते हैं। लोगों के उद्धार के मामले में ये सत्य अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। परंतु, बहुत से लोगों को लगता है कि परमेश्वर ने बहुत अधिक वचन बोले हैं—वे नहीं जानते कि उन्हें कहाँ से पढ़ना शुरू करें या कौन से सत्यों में प्रवेश अपरिहार्य है। परमेश्वर के चुने हुए लोगों को यथाशीघ्र आधारशिला रखने योग्य बनाने तथा परमेश्वर में विश्वास और उद्धार के सही रास्ते पर प्रवेश कराने के लिए परमेश्वर के घर ने कलीसियाई जीवन में उपयोग एवं परमेश्वर के चुने हुए लोगों को उसके वचनों को आत्मसात कर सकने के लिए इस पुस्तक का संकलन किया है। यह पुस्तक पांच खंडों में विभाजित है। पहला भाग दृष्टि से संबंधित सत्यों के बारे में है, जिसमें देहधारण का रहस्य, उसके काम के तीन चरणों की आंतरिक कथा, अंतिम दिनों में परमेश्वर के न्याय कार्य का रहस्य इत्यादि शामिल हैं। दूसरा भाग विभिन्न धार्मिक धारणाओं के समाधान से संबंधित सत्यों के बारे में है, और इसमें 22 बिंदु हैं। तीसरा खंड विभिन्न भ्रष्ट स्वभावों के समाधान से संबंधित सत्यों के बारे में है, और इसमें 32 चीजें शामिल हैं। चौथा भाग समझदार अविश्वासियों, दुष्ट लोगों, झूठे नेतृत्वकर्ताओं और ईसा विरोधियों से संबंधित सत्यों पर है जिसमें 12 विषय शामिल हैं। पाँचवाँ भाग उद्धार की तलाश और पूर्ण बनाए जाने से संबंधित सत्यों के बारे में है और इसमें 46 विषय शामिल हैं। कहा जा सकता है कि इन पाँच भागों में जिन सत्यों को समाहित किया गया है, वे मूलभूत सत्य हैं जिन्हें परमेश्वर में विश्वास करने वालों को अवश्य समझना चाहिए। यदि परमेश्वर के चुने हुए लोग प्रायः इन सत्यों का खान-पान करेंगे, संगति करेंगे और उन पर विचार करेंगे, तो वे धीरे-धीरे सत्य को समझने, वास्तविकता में प्रवेश करने और परमेश्वर का उद्धार प्राप्त करने में सक्षम होंगे। यदि वे इसके बाद इस आधार पर उन सभी सत्यों में प्रवेश करने का प्रयास करते हैं जिनकी परमेश्वर मांग करता है, तो वे सत्य और शाश्वत जीवन प्राप्त करने में सक्षम होंगे।
सुसमाचार पुस्तकें
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क. परमेश्वर में विश्वास की आधारशिला रखने वाले दर्शनों के बारे में 10 सत्य
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1. देहधारण से संबंधित सत्य
ii. यह क्यों कहा जाता है कि भ्रष्ट मानवजाति को देहधारी परमेश्वर के उद्धार की अधिक आवश्यकता है
iv. देहधारी परमेश्वर और परमेश्वर द्वारा उपयोग में लाए जाने वाले लोगों के बीच मूलभूत अंतर
v. यह क्यों कहा जाता है कि परमेश्वर के दो देहधारण, देहधारण का अर्थ पूरा करते हैं
vi. यह कैसे जानें कि मसीह सत्य, मार्ग और जीवन है
vii. अंत के दिनों में सामने आने और कार्य करने के लिए परमेश्वर के चीन में देहधारण का उद्देश्य और अर्थ
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2. कार्य के तीन चरणों से जुड़े सत्य
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3. अंतिम दिनों में न्याय के कार्य से संबंधित सत्य
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4. परमेश्वर के तीन चरणों के कार्य और उसके नामों के बीच संबंध पर वचन
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5. बुद्धिमान कुआंरियों के परमेश्वर की वाणी सुनने और प्रभु का स्वागत करने से संबंधित वचन
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6. परमेश्वर और बाइबल के बीच संबंध से जुड़े सत्य
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7. विवेक से जुड़े सत्य
i. सच्चे मसीह और झूठे मसीहों के बीच भेद कैसे करें
ii. सच्चे मार्ग और झूठे मार्गों के बीच अंतर कैसे करें
iii. मसीह विरोधियों को औरों से अलग कैसे पहचानें
iv. परमेश्वर के कार्य और मनुष्य के कार्य के बीच अंतर कैसे करें
v. पवित्र आत्मा के कार्य और बुरी आत्माओं के कार्य में भेद कैसे करें
vi. दुष्ट आत्माओं का काम होने और दुष्ट आत्माओं के वशीभूत होने के बीच भेद कैसे करें
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8. धार्मिक जगत के परमेश्वर-प्रतिरोधी सार को पहचानने से जुड़े सत्य
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9. संसार में अंधकार और दुष्टता की जड़ और सार को समझने से जुड़े सत्य
i. शैतान का मानव जाति को धोखा देना और भ्रष्ट करना संसार में अंधकार और दुष्टता की जड़ है
ii. भ्रष्ट मानव जाति के हाथ में सत्ता होने की हानियां और लोगों पर पड़ने वाले परिणाम
iii. अंत के दिनों में परमेश्वर शैतान के प्रभुत्व वाले अंधकारमय युग का अंत कैसे करता है
iv. परमेश्वर उसका प्रतिरोध करने वाले दुष्ट मनुष्यों को क्यों नष्ट कर देगा
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10. परमेश्वर द्वारा हर प्रकार के व्यक्ति के निष्कर्ष निर्धारित किए जाने और मानवजाति से किए गए वादों से जुड़े सत्य
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ख. विभिन्न प्रकार की धार्मिक धारणाओं का समाधान करने से संबंधित सत्य
1. धार्मिक जगत की धारणा कि: “जब प्रभु लौटेंगे, तब वह बादलों के साथ आएंगे”
10. धार्मिक जगत की धारणा कि: “जो भी प्रभु यीशु पर विश्वास करता है उसे शाश्वत जीवन मिलेगा”
15. धार्मिक जगत की धारणा कि: “प्रभु यीशु जब लौटेगा तो वह पुरुष होगा न कि महिला”
16. धार्मिक जगत की धारणा कि: “परमेश्वर जब लौटेगा तो वह संभवतः चीन में नहीं प्रकट होगा और काम करेगा”
17. धार्मिक जगत की धारणा कि: “पादरियों और एल्डरों को प्रभु ने स्थापित किया है”
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ग. विभिन्न प्रकार के भ्रष्ट स्वभावों के समाधान से संबंधित सत्य
2. आशीष पाने के इरादे और प्रबल इच्छा का समाधान कैसे करें
3. सत्य को न स्वीकारने और अपनी ओर से बहस करने की समस्या का समाधान कैसे करें?
4. परमेश्वर से हमेशा माँग करने की समस्या का समाधान कैसे करें
5. परिवार से मिलने वाले दैहिक सुखों की समस्या का समाधान कैसे करें
7. दृढ़ इच्छाशक्ति और संयम की कमी की समस्या का समाधान कैसे करें
10. परमेश्वर से सावधान रहने और परमेश्वर को गलत समझने की समस्या का समाधान कैसे करें
12. परमेश्वर का परिसीमन और मूल्यांकन करने की समस्या का समाधान कैसे करें
14. लापरवाह और कामचोर होने की समस्या का समाधान कैसे करें?
15. स्वार्थ और तुच्छता की समस्या का समाधान कैसे करें?
16. झूठ बोलने और धोखे में शामिल होने की समस्या का समाधान कैसे करें
19. अहंकार और दंभ की समस्या का समाधान कैसे करें?
20. अहंकार, आत्मतुष्टि और अपने ही विचारों पर अड़े रहने की समस्या का समाधान कैसे करें
21. अपनी मनमर्जी से काम करने की समस्या का समाधान कैसे करें
24. प्रसिद्धि, लाभ और पद की चाहत की समस्या का समाधान कैसे करें
26. दुराग्रही स्वभाव की समस्या का समाधान कैसे करें
27. सत्य से चिढ़ने के स्वभाव का समाधान कैसे करें
30. परमेश्वर की अवज्ञा करने और उसका विरोध करने की समस्या का समाधान कैसे करें
32. विश्वासघाती प्रकृति की समस्या को कैसे समझें और समाधान करें
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ङ. उद्धार की तलाश और पूर्ण बनाए जाने से संबंधित सत्य
1. परमेश्वर में विश्वास करना क्या है, परमेश्वर का अनुसरण करना क्या है
2. परमेश्वर में विश्वास करने वालों को उसके न्याय और ताड़ना को क्यों स्वीकार करना चाहिए
3. परमेश्वर के न्याय और ताड़ना का अनुभव कैसे करें
5. स्वयं को कैसे जानें और अपने भ्रष्ट स्वभाव को कैसे दूर करें
7. भ्रष्ट मनुष्यों के प्रकृति सार को कैसे पहचानें
10. परीक्षण और शोधन का अनुभव कैसे करें
11. परमेश्वर में विश्वास करने वालों को अपने कर्तव्य अच्छे से क्यों निभाने चाहिए?
12. अपना कर्तव्य सही तरह से कैसे निभाया जा सकता है
13. कर्तव्य पालन और जीवन प्रवेश के बीच संबंध
14. कर्तव्य पालन और परमेश्वर के लिए गवाही देने के बीच संबंध
15. अपना कर्तव्य अच्छी तरह निभाना ही सच्ची गवाही है
16. ऐसा क्यों कहा जाता है कि कर्तव्य पालन से लोगों का सबसे अच्छी तरह से प्रकाशन होता है
17. बीमारी और दर्द से कैसे निपटें
18. पारिवारिक, देह के रिश्तों को कैसे ग्रहण करें
20. उत्पीड़न और क्लेश का अनुभव कैसे करें
21. शैतान के प्रलोभनों से कैसे उबरें
22. जीवन और मृत्यु को कैसे देखें
23. परीक्षणों के दौरान अपनी गवाही पर दृढ़ कैसे रहें
24. अपने भ्रष्ट स्वभावों का समाधान कैसे करें और शुद्धि कैसे प्राप्त करें
25. सत्य का अभ्यास करना क्या है
27. अच्छे व्यवहार तथा स्वभावगत बदलाव में अंतर
28. उद्धार क्या संदर्भित करता है
29. ईमानदार व्यक्ति क्या होता है और परमेश्वर लोगों से ईमानदार होने की अपेक्षा क्यों करता है
30. उद्धार पाने के लिए व्यक्ति को क्यों अवश्य ईमानदार होना चाहिए?
31. ईमानदार व्यक्ति बनने का अभ्यास कैसे करें
32. परमेश्वर की जांच को कैसे स्वीकार करें?
33. सत्य प्राप्त होने पर लोगों में आने वाले परिवर्तन
34. परमेश्वर का आज्ञाकारी होना क्या है
35.परमेश्वर के आज्ञापालन और उद्धार के बीच संबंध
36. परमेश्वर का आज्ञापालन कैसे किया जा सकता है
37. परमेश्वर का भय मानना और बुराई से दूर रहना क्या है
38. परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने तथा बचाए जाने में क्या संबंध है
39. परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने की तलाश कैसे करें
40. परमेश्वर की बड़ाई करना और उसकी गवाही देना क्या है
41. परमेश्वर की मंशा के अनुरूप उसकी सेवा और गवाही कैसे दें
43. केवल परमेश्वर से सच्चा प्रेम करने वाले ही क्यों उसके द्वारा पूर्ण बनाए जा सकते हैं
44. ईश्वर को जानने का प्रयत्न क्यों करना चाहिए
45. परमेश्वर के धर्मशील स्वभाव को कैसे समझें
46. केवल परमेश्वर को जानने वाले ही उसकी सेवा कर सकते हैं और उसके लिए गवाही दे सकते हैं