8. घिनौनेपन की समस्या का समाधान कैसे करें

अंतिम दिनों के सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन

चीजों को इतनी लापरवाही और गैर-जिम्मेदारी से सँभालना एक भ्रष्ट स्वभाव के भीतर की चीज है : इसे लोग नीचता कहते हैं। वे अपने सारे काम “लगभग ठीक” और “काफी ठीक” की हद तक ही करते हैं; यह “शायद,” “संभवतः,” और “पाँच में से चार” का रवैया है; वे चीजों को अनमनेपन से करते हैं, यथासंभव कम से कम और झाँसा देकर काम चलाने से संतुष्ट रहते हैं; उन्हें चीजों को गंभीरता से लेने या सजग होने में कोई मतलब नहीं दिखता, और सत्य-सिद्धांतों की तलाश करने का तो उनके लिए कोई मतलब ही नहीं। क्या यह एक भ्रष्ट स्वभाव के भीतर की चीज नहीं है? क्या यह सामान्य मानवता की अभिव्यक्ति है? नहीं। इसे अहंकार कहना सही है, और इसे जिद्दी कहना भी पूरी तरह से उपयुक्त है—लेकिन इसका अर्थ पूरी तरह से ग्रहण करना हो तो, एक ही शब्द उपयुक्त होगा और वह है “नीच।” अधिकांश लोगों के भीतर नीचता होती है, बस उसकी मात्रा ही भिन्न होती है। सभी मामलों में, वे बेमन और लापरवाह ढंग से चीजें करना चाहते हैं, और वे जो कुछ भी करते हैं, उसमें छल झलकता है। वे जब भी संभव हो दूसरों को धोखा देते हैं, जब भी संभव हो जैसे-तैसे काम निपटाते हैं, जब भी संभव हो समय बचाते हैं। वे मन ही मन सोचते हैं, “अगर मैं उजागर होने से बच सकता हूँ, और कोई समस्या पैदा नहीं करता, और मुझसे जवाब तलब नहीं किया जाता, तो मैं इसे जैसे-तैसे निपटा सकता हूँ। मुझे बहुत बढ़िया काम करने की जरूरत नहीं है, इसमें बड़ी तकलीफ है!” ऐसे लोग महारत हासिल करने के लिए कुछ नहीं सीखते, और वे अपनी पढ़ाई में कड़ी मेहनत नहीं करते या कष्ट नहीं उठाते और कीमत नहीं चुकाते। वे किसी विषय की सिर्फ सतह को खुरचना चाहते हैं और फिर यह मानते हुए कि उन्होंने जानने योग्य सब-कुछ सीख लिया है, खुद को उसमें प्रवीण कह देते हैं, और फिर जैसे-तैसे काम निपटाने के लिए वे उस पर भरोसा करते हैं। क्या दूसरे लोगों, घटनाओं और चीजों के प्रति लोगों का यही रवैया नहीं होता? क्या यह ठीक रवैया है? नहीं। सीधे शब्दों में कहें तो, यह “काम चलाना” है। ऐसी नीचता तमाम भ्रष्ट मनुष्यों में मौजूद है। जिन लोगों की मानवता में नीचता होती है, वे अपने हर चीज में “काम चलाने” का दृष्टिकोण और रवैया अपनाते हैं। क्या ऐसे लोग अपना कर्तव्य ठीक से निभाने में सक्षम होते हैं? नहीं। तो क्या वे चीजों को सिद्धांत के साथ कर पाने में सक्षम होते हैं? इसकी संभावना और भी कम है।

—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद आठ : वे दूसरों से केवल अपने प्रति समर्पण करवाएँगे, सत्य या परमेश्वर के प्रति नहीं (भाग दो)

“घटिया” के कई अर्थ होते हैं—अनैतिक होना, भ्रष्ट होना, घिनौना होना, स्वार्थी होना, चरित्रहीन होना, अच्छा व्यवहार न करना, खुलकर या ईमानदारी से अपने कार्य न करना बल्कि इसके बजाय छिपकर कार्य करना और केवल अनुचित काम करना। इस प्रकार के व्यवहार और अभिव्यक्तियाँ घटिया लोगों में होती हैं। उदाहरण के लिए, यदि किसी सामान्य व्यक्ति को कोई काम करना हो तो वह इसे खुले आम बिना किसी से छुपाए करता है, बशर्ते यह कोई उचित काम हो, और यदि यह काम कानून के विरुद्ध हो तो वह इसे छोड़ देता है और नहीं करता। लेकिन घटिया लोग ऐसे नहीं होते हैं; वे किसी भी कीमत पर अपने लक्ष्यों को प्राप्त करना चाहते हैं और उनके पास कानून की सीमाओं को लांघने के लिए रणनीतियां होती हैं। वे कानून को नजरअंदाज करते हैं और अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के तरीके तलाशते हैं, भले ही ऐसा करना नैतिकता, सदाचार या मानवता के खिलाफ ही क्यों न हो और इसका परिणाम चाहे कुछ भी हो। वे इनमें से किसी भी चीज की परवाह नहीं करते और केवल किसी भी तरह से अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने की कोशिश करते हैं। इसी को “घटिया” होना कहते हैं। क्या घटिया लोगों में कोई ईमानदारी या मर्यादा होती है? (नहीं।) क्या वे कुलीन लोग होते हैं या नीच होते हैं? (नीच।) वे किस तरह से नीच होते हैं? (उनके आचरण के लिए कोई नैतिक आधार रेखा नहीं है।) यह सही बात है, इस प्रकार के व्यक्ति के आचरण में कोई आधार रेखा या सिद्धांत नहीं होते हैं; वे परिणामों के बारे में नहीं सोचते और जो उनकी मर्जी हो वही करते हैं। वे कानून की, नैतिकता की और इस बात की परवाह नहीं करते कि क्या उनकी अंतरात्मा उनके कार्यों को स्वीकार सकती है या नहीं, और न ही उन्हें किसी के आरोप, आलोचना या निंदा की परवाह होती है। वे इन सब चीजों से बेपरवाह होते हैं और जब तक उन्हें लाभ और आनंद मिल रहा होता है तब तक उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। उनके काम करने का तरीका भ्रष्ट होता है, उनकी सोच घृणित और शर्मनाक होती है। घटिया होने का यही तो मतलब है। ... तो फिर वास्तव में घटिया होने का क्या मतलब है? इसके प्राथमिक लक्षण और अभिव्यक्तियाँ क्या हैं? देखो क्या मेरा सारांश सटीक है या नहीं। घटिया लोग किसके बराबर होते हैं? वे ऐसे जंगली जानवरों के बराबर हैं जिन्हें पालतू नहीं बनाया गया है और जिन्हें गलत तरीके से पाला गया है और इसकी प्राथमिक अभिव्यक्तियाँ घमंड, क्रूरता, संयम की कमी, लापरवाही से कार्य करना, सत्य को जरा भी स्वीकार न करना, साथ ही जो चाहे वह करना, किसी की बात न सुनना, या किसी को भी उन्हें प्रबंधित करने की अनुमति नहीं देना, किसी के भी विरुद्ध जाने का साहस करना और किसी अन्य के प्रति कोई सम्मान न रखना है। मुझे बताओ कि क्या घटिया होने की विभिन्न अभिव्यक्तियाँ गंभीर होती हैं? (हाँ होती हैं।) कम से कम, घमंड, सूझ-बूझ की कमी और लापरवाही से कार्य करने का यह स्वभाव बहुत गंभीर है। भले ही इस तरह के किसी व्यक्ति के बारे में ऐसा प्रतीत हो कि वह ऐसे काम नहीं करता जो परमेश्वर को आंकते हों या उसका विरोध करते हों, लेकिन उनके घमंडी स्वभाव के कारण, इसकी अत्यधिक संभावना है कि वे बुरे कार्य करेंगे और उसका विरोध करेंगे। उनके सभी कार्य उनके भ्रष्ट स्वभावों को दिखाते हैं। जब कोई व्यक्ति एक हद तक घटिया बन जाता है, तो वह एक डाकू और शैतान बन जाता है, और डाकू और शैतान कभी भी सत्य को स्वीकार नहीं करते—उन्हें केवल नष्ट किया जा सकता है।

—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद चार : वे अपनी बड़ाई करते हैं और अपने बारे में गवाही देते हैं

व्यक्ति कुलीन और नीच लोगों के बीच अंतर कैसे बता सकता है? बस कर्तव्यों के प्रति उनका रवैया और उनके क्रियाकलाप देखो, और देखो कि समस्याएँ आने पर वे चीजों को कैसे लेते और कैसे व्यवहार करते हैं। सत्यनिष्ठापूर्ण और गरिमापूर्ण लोग अपने क्रियाकलापों में सजग, कर्तव्यनिष्ठ और मेहनती होते हैं और वे कीमत चुकाने के लिए तैयार रहते हैं। सत्यनिष्ठाहीन और गरिमाहीन लोग अपने कार्यों में अनियमित और लापरवाह होते हैं, हमेशा कोई-न-कोई चाल चलते रहते हैं, हमेशा बस खानापूरी करना चाहते हैं। चाहे वे जिस भी तकनीक का अध्ययन करें, वे उसे कर्मठता से नहीं सीखते, वे उसे सीखने में असमर्थ रहते हैं, और चाहे वे उसका अध्ययन करने में जितना भी समय लगाएँ, वे पूरी तरह से अज्ञानी बने रहते हैं। ये निम्न चरित्र के लोग हैं। ज्यादातर लोग अपने कर्तव्य निर्वहन में अनमने होते हैं। उसमें कौन-सा स्वभाव कार्यरत होता है? (कमीनापन।) कमीने लोग अपने कर्तव्य से कैसे पेश आते हैं? निश्चित रूप से उसके प्रति उनका रवैया सही नहीं होता, और वे निश्चित रूप से उसे अनमने ढंग से करते हैं। इसका अर्थ है कि उनमें सामान्य मानवता नहीं होती। गंभीरता से कहें तो कमीने लोग जानवरों जैसे होते हैं। यह किसी कुत्ते को पालतू जानवर के रूप में रखने जैसा है : अगर तुम उस पर नजर न रखो, तो वह चीजों को चबा डालेगा, और तुम्हारे सभी फर्नीचर और उपकरणों को नष्ट कर देगा। इससे हानि होगी। कुत्ते जानवर हैं; वे चीजों से प्यार और परवाह से पेश आने के बारे में नहीं सोचते, और तुम उनसे बहस नहीं कर सकते—तुम्हें बस उन्हें सँभालना पड़ता है। यदि तुम नहीं सँभालते, बल्कि किसी जानवर को उत्पात मचाने देते हो और अपना जीवन बाधित करने देते हो, तो इससे पता चलता है कि तुम्हारी मानवता में किसी चीज की कमी है। फिर तुम किसी जानवर से ज्यादा अलग नहीं रह जाते। तुम्हारा आईक्यू बहुत कम होता है—तुम किसी काम के नहीं होते। तो फिर तुम उन्हें अच्छे-से कैसे सँभालोगे? तुम्हें किसी ऐसे तरीके के बारे में सोचना चाहिए कि उन्हें कुछ विशेष मापदंडों के भीतर सीमित रखो, या उन्हें पिंजड़े में कैद रखो और प्रतिदिन दो या तीन बार नियत समय पर बाहर आने दो, ताकि वे पर्याप्त गतिविधियाँ कर सकें। इससे उनके बेतहाशा चबाने पर रोक लगेगी और उनके स्वस्थ रहने के लिए उन्हें व्यायाम भी मिल जाएगा। इस तरह कुत्ते को अच्छी तरह सँभाला जाता है, और तुम्हारा परिवेश भी सुरक्षित रहता है। यदि कोई व्यक्ति अपने सामने वाली चीजों को न सँभाल सके और उसका रवैया सही न हो, तो उसकी मानवता में किसी चीज की कमी है। यह सामान्य मानवता के मानक पर खरा नहीं उतर सकता।

—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद आठ : वे दूसरों से केवल अपने प्रति समर्पण करवाएँगे, सत्य या परमेश्वर के प्रति नहीं (भाग दो)

स्वच्छंद और असंयमित लोग उन्हीं शब्दों का उपयोग करते हैं जो अविश्वासी दुनिया के डाकुओं और गुंडों द्वारा उपयोग किए जाते हैं; वे खास तौर से समाज के सितारों और नकारात्मक शख्सियतों की बोली और शैली की नकल करने का आनंद लेते हैं, उनकी ज्यादातर भाषा में एक घिनौना लहजा होता है जिसे सुनकर लगता है मानो कोई गुंडा या बदमाश बोल रहा हो। मिसाल के तौर पर, जब कोई अविश्वासी आता है, तो दरवाजा खटखटाने के बाद वह कुछ अजीब वाक्यांश बड़बड़ाता है, इस पर भाई-बहन कहते हैं, “कुछ तो गड़बड़ है; यह व्यक्ति भेदिया या जासूस जैसा क्यों लगता है?” वैसे तो फिलहाल उन्हें यकीन नहीं हो सकता है, लेकिन ज्यादातर लोग इससे असहज महसूस करते हैं। फिर भी, जो व्यक्ति स्वच्छंद है और असंयमित है, वह प्रभावित करने वाले ढंग से बोलता है, और एक खास अंदाज में कहता है, “भेदिया? मैं नहीं डरता! उससे क्यों डरना? अगर तुम लोग डर गए हो, तो तुम्हें बाहर जाने की जरूरत नहीं है। मैं जाकर देखता हूँ कि उसका क्या मामला है।” देखो वे कितने दिलेर और दबंग हैं। क्या तुम लोग इस तरह से बोलोगे? (नहीं, यह सामान्य लोगों के बात करने का तरीका नहीं है; इस तरीके से डाकू बोलता है।) डाकू सामान्य लोगों से अलग तरीके से बोलते हैं; वे खास तौर से घमंडी होते हैं। लोग अपने जैसे लोगों की भाषा सीखते हैं; अपना बचाव करने में सक्षम लोग खासकर समाज डाकुओं और गुंडो की लोकप्रिय भाषा अपनाते हैं, जैसे कि उनकी शब्दावली अपनाकर बोलना, और छद्म-विश्वासी बिल्कुल अविश्वासियों की तरह हैं, वही सब बोलते हैं जो अविश्वासी बोलते हैं। अविश्वासियों की बोली सुनकर अच्छे, गरिमापूर्ण, सभ्य लोग नाराजगी और नफरत महसूस करते हैं; उनमें से कोई भी उनकी बोली की नकल करने का प्रयास नहीं करता है। कुछ छद्म-विश्वासी दस या बीस वर्षों तक विश्वास करने के बाद भी अविश्वासियों की भाषा का उपयोग करते हैं, जानबूझकर ऐसी भाषा चुनते हैं, और बोलते हुए वे अविश्वासियों के चाल-ढाल, हाव-भाव, इशारों के साथ ही वे आँखों की अभिव्यंजना की भी नकल करते हैं। क्या ऐसे व्यक्ति कलीसिया में भाई-बहनों की नजरों में सुखद हो सकते हैं? (नहीं।) ज्यादातर भाई-बहनों को उन्हें देखना घिनौना और असहज लगता है। तुम लोगों के विचार से परमेश्वर उनके बारे में क्या महसूस करता है? (नफरत।) इसका उत्तर स्पष्ट है : नफरत। जिसे वे जीते हैं, उनके अनुसरणों, और वे अपने दिलों में जिन लोगों, घटनाओं और चीजों का आदर करते हैं, उससे यह स्पष्ट है कि उनकी मानवता में गरिमा या सभ्य होना शामिल नहीं है और इसमें निष्ठा का अभाव है और यह संतों की मर्यादा के उपयुक्त नहीं है। उनके मुँह से शायद ही कभी वे शब्द सुनाई देते हैं जो विश्वासियों या संतों को बोलने चाहिए, और जो शब्द दूसरों को शिक्षित करते हैं और ईमानदारी और गरिमा व्यक्त करते हैं, उनके द्वारा इन्हें कहने की संभावना नहीं है। वे अपने दिलों में जिसका आदर करते हैं, जिसकी आकांक्षा करते हैं और जिसका अनुसरण करते हैं, वह मूल रूप से उसके साथ असंगत है जिसका संतों को अनुसरण और आकांक्षा करनी चाहिए, जिससे वे बाहरी रूप से जिस चीज के लिए जीते हैं उसे, उनकी बातों को और उनके हाव-भाव को सीमित करना मुश्किल हो जाता है। उन्हें सीमित रहने, स्वच्छंद या आसक्त नहीं होने, और गरिमा बनाए रखने और सभ्य होने के लिए कहना एक मुश्किल कार्य है। मानवता और सूझ-बूझ वाले किसी ऐसे व्यक्ति की तरह जीने की तो बात ही छोड़ दो जो सत्य को समझता है और सत्य वास्तविकता में प्रवेश करता है, वे तो ईमानदारी और गरिमा के साथ एक सामान्य व्यक्ति बनने का लक्ष्य भी हासिल नहीं कर सकते हैं जो संतों की मर्यादा के उपयुक्त हो, नियमों का पालन करता हो और बाहर से तार्किक दिखाई देता हो। इससे पहले, एक व्यक्ति था जो सुसमाचार का प्रचार के लिए ग्रामीण इलाकों में गया और उसने देखा कि कुछ भाई-बहनों के परिवार बहुत गरीब थे और टूटे-फूटे घरों में रहते थे। उसने ताना देते हुए और मजाक उड़ाते हुए कहा, “यह घर बहुत ही टूटा-फूटा है, यह लोगों के रहने लायक नहीं है; यह सिर्फ सूअरों के रहने लायक है। तुम लोगों को जल्दी से यह घर छोड़ देना चाहिए!” भाई-बहनों ने उत्तर दिया, “यह घर छोड़ देना तो आसान है, लेकिन हमें रहने के लिए दूसरा घर कौन देगा?” उसने बिना विचारे और मनमाने तरीके से बात की, उसके मन में जो भी आया, उसने वही कह दिया और यह तक नहीं सोचा कि दूसरों पर उसका क्या प्रभाव पड़ सकता है। यह एक घिनौनी प्रकृति है। भाई-बहनों ने पूछा, “अगर हमने यह घर छोड़ दिया, तो हमें रहने के लिए घर कौन देगा? क्या तुम्हारे पास घर है?” उसके पास कोई उत्तर नहीं था। लोगों को मुश्किलों का सामना करते देख, उसे उसकी मुश्किल दूर करने में समर्थ होना था। उसके लापरवाही से बोलने और उनकी मुश्किल दूर करने में असमर्थ होने के क्या परिणाम हुए? क्या यह बहुत ज्यादा बेबाक और स्पष्टवादी होने की समस्या थी? बिल्कुल नहीं। यहाँ समस्या थी कि उसका घिनौनापन बहुत ज्यादा गंभीर था; वह स्वच्छंद और असंयमित था। ऐसे लोगों में ईमानदारी, गरिमा, विचार, सहनशीलता, देखभाल, सम्मान, समझ, सहानुभूति, करुणा, विचारशीलता, सहायता वगैरह की कोई अवधारणा नहीं होती है। सामान्य मानवता के लिए मूलभूत ये गुण हैं, जो लोगों में होने चाहिए। उनमें ना सिर्फ इन गुणों का अभाव होता है, बल्कि दूसरों के साथ अपने व्यवहार में किसी की मुश्किलों का सामना करते देखकर वे उसका उपहास कर सकते हैं, व्यंग्य से मुस्कुरा भी सकते हैं, उसका मजाक उड़ा सकते हैं और उसे ताना दे सकते हैं; वे ना सिर्फ उन्हें समझने या उनकी सहायता करने में असमर्थ होते हैं, बल्कि वे उनके लिए दुःख, लाचारी, दर्द और यहाँ तक कि परेशानी भी ले आते हैं। ज्यादातर लोग ऐसे गंभीर घिनौनेपन वाले लोगों को स्पष्ट रूप से पहचान लेते हैं और उन्हें बार-बार सहते हैं। क्या तुम लोगों को लगता है कि ऐसे लोगों को सच्चा पश्चात्ताप हो सकता है? मुझे नहीं लगता है कि यह संभव है। उनके प्रकृति सार को देखते हुए, यह स्पष्ट है कि वे सत्य के प्रेमी नहीं हैं, इसलिए वे काट-छाँट और अनुशासित किए जाने को कैसे स्वीकार सकते हैं? ऐसे लोगों का विवरण देते हुए, अविश्वासियों के पास शब्द होते हैं, जैसे कि “अपने तरीके पर अड़े रहना” या “दूसरों की बातों की परवाह किए बिना अपने मार्ग पर चलना”—यह क्या हास्यास्पद तर्क है? इन तथाकथित मशहूर कहावतों और मुहावरों को अक्सर इस समाज में सकारात्मक चीजों के रूप में देखा जाता है, जो तथ्यों को तोड़-मरोड़कर पेश करता है और सही और गलत को उलझा देता है।

—वचन, खंड 5, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (25)

बहुत से लोग अपने कर्तव्य अनमने ढंग से निभाते हैं, इन्हें कभी गंभीरता से नहीं लेते, मानो वे अविश्वासियों के लिए काम कर रहे हों। वे चीजों को फूहड़, सतही, उदासीन और लापरवाह ढंग से करते हैं, मानो मजाक चल रहा हो। ऐसा क्यों है? वे श्रम करने वाले अविश्वासी हैं; कर्तव्य निभा रहे छद्म-विश्वासी हैं। ये लोग अत्यधिक दुष्ट हैं; ये लम्पट और बेलगाम हैं, और ये अविश्वासियों से अलग नहीं हैं। अपने लिए कुछ करते समय वे बिल्कुल भी अनमने नहीं होते, तो फिर जब अपने कर्तव्य निभाने की बात आती है तो वे थोड़े-से भी ईमानदार या लगनशील क्यों नहीं होते? वे जो कुछ भी करते हैं, जो भी कर्तव्य निभाते हैं, उसमें चंचलता और शरारत का गुण रहता है। ये लोग हमेशा अनमने होते हैं और इनमें धोखा देने की प्रवृत्ति होती है। क्या ऐसे लोगों में मानवता होती है? उनमें निश्चित रूप से मानवता नहीं होती; न ही उनमें थोड़ा-सा भी जमीर और विवेक होता है। जंगली गधों या जंगली घोड़ों की तरह उन्हें लगातार साधने और उन पर नजर रखने की जरूरत होती है। वे परमेश्वर के घर के साथ धोखेबाजी और चालबाजी करते हैं। क्या इसका मतलब उन्हें परमेश्वर पर कोई सच्चा विश्वास है? क्या वे खुद को उसके लिए खपा रहे हैं? वे निश्चित रूप से उम्मीदों पर खरे नहीं उतरते हैं और श्रम करने के योग्य नहीं हैं। यदि ऐसे लोगों को कोई और काम पर रखता तो उन्हें कुछ ही दिनों में निकाल देता। परमेश्वर के घर में यह कहना पूरी तरह से सही है कि वे श्रमिक और काम पर रखे गए मजदूर हैं, और उन्हें केवल हटाया ही जा सकता है। बहुत से लोग अपने कर्तव्य निभाते समय अक्सर अनमने होते हैं। काट-छाँट का सामना करने पर भी वे सत्य स्वीकारने से इनकार कर देते हैं, अपनी बात पर अड़कर बहस करते हैं, और यहाँ तक शिकायत करते हैं कि परमेश्वर का घर उनके साथ अन्याय करता है, उसमें दया और सहनशीलता की कमी है। क्या यह विवेकरहित होना नहीं है? अधिक निष्पक्ष ढंग से कहें तो यह अहंकारी स्वभाव है, और उनमें लेशमात्र भी जमीर और विवेक नहीं है। जो लोग वास्तव में परमेश्वर में विश्वास करते हैं उन्हें कम-से-कम इतना सक्षम तो होना ही चाहिए कि वे सत्य स्वीकार सकें और जमीर और विवेक की मर्यादा तोड़े बिना काम कर सकें। जो लोग काट-छाँट को स्वीकारने या समर्पण करने में असमर्थ हैं, वे अत्यधिक अहंकारी, आत्मतुष्ट और बिल्कुल विवेकरहित हैं। उन्हें जानवर कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी क्योंकि वे अपने हर काम के प्रति पूरी तरह उदासीन रहते हैं। वे चीजें बिल्कुल मन-मुताबिक करते हैं और परिणामों की परवाह नहीं करते; यदि समस्याएँ आती हैं तो उन्हें परवाह नहीं होती। ऐसे लोग श्रम करने योग्य नहीं हैं। चूँकि वे अपने कर्तव्य इस तरह निभाते हैं, इसलिए दूसरे लोग उन्हें देखना बर्दाश्त नहीं करते और उन पर विश्वास नहीं करते। तो क्या परमेश्वर उन पर भरोसा रख सकता है? इस न्यूनतम मानक को भी पूरा न करने के कारण वे श्रम करने के लिए अयोग्य होते हैं और उन्हें हटाया ही जा सकता है।

—वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, भाग तीन

वे चीजें जो मानवता को छूती हैं—वे दृष्टिकोण, विचार और मत, जो लोग अन्य लोगों, घटनाओं और चीजों के प्रति अपने व्यवहार में प्रकट करते हैं—बहुत अर्थपूर्ण हैं। वे चीजें क्या बताती हैं? वे बताती हैं कि कोई यह कैसे देख सकता है कि किसी व्यक्ति का चरित्र कैसा है, वह सभ्य और ईमानदार व्यक्ति है या नहीं। सभ्य और ईमानदार होना क्या होता है? क्या पारंपरिक होना सभ्य और ईमानदार होना है? क्या शिष्ट और तमीजदार होना सभ्य और ईमानदार होना है? (नहीं।) क्या नियमों का अक्षरशः पालन करना सभ्य और ईमानदार होना होता है? (नहीं।) इनमें से कुछ भी नहीं होता। तो सभ्य और ईमानदार होना क्या होता है? अगर कोई व्यक्ति वास्तव में सभ्य और ईमानदार है, तो चाहे वे कुछ भी करें, वे उसे एक विशेष मानसिकता के साथ करते हैं : “चाहे मुझे यह काम करना पसंद हो या नहीं, और चाहे यह मेरे हितों के दायरे में आता हो या नहीं, या चाहे यह ऐसी चीज हो जिसमें मेरी कोई दिलचस्पी न हो—यह मुझे करने के लिए दिया गया था, और मैं इसे अच्छी तरह से करूँगा। मैं एकदम आरंभ से इसका अध्ययन करना शुरू करूँगा, और अपने पैर जमीन पर रखते हुए, मैं इसे एक बार में एक कदम उठाकर करूँगा। अंत में, चाहे मैं कार्य में कितनी भी प्रगति कर पाया हूँ, मैंने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया होगा।” कम से कम तुममें ऐसा रवैया और मानसिकता है जो जमीन से जुड़ी है। अगर तुम जिस क्षण से कोई कार्य लेते हो, उसी क्षण से उसे अव्यवस्थित रूप से करते हो और उसकी जरा भी परवाह नहीं करते—अगर तुम उसे गंभीरता से नहीं लेते, और प्रासंगिक संसाधनों को नहीं देखते, विस्तृत तैयारी नहीं करते, या खोजते और दूसरों से परामर्श नहीं लेते; और इसके अतिरिक्त, अगर तुम इस चीज का अध्ययन करने में लगने वाला समय नहीं बढ़ाते, ताकि तुम उसमें लगातार सुधार करते हुए उस कौशल या पेशे में महारत हासिल कर सको, बल्कि उसके प्रति एक लापरवाही भरा और जैसे-तैसे निपटाने का रवैया अपनाए रखते हो, तो यह तुम्हारी मानवता की समस्या है। क्या यह सिर्फ अव्यवस्थित तरीके से काम करना नहीं है? कुछ लोग कहते हैं, “तुम्हारे द्वारा मुझे इस तरह का काम दिया जाना पसंद नहीं है।” अगर तुम्हें वह पसंद नहीं है, तो उसे स्वीकार मत करो—और अगर तुम उसे स्वीकार करते हो, तो तुम्हें उसे एक गंभीर, जिम्मेदारी भरे रवैये के साथ लेना चाहिए। तुम्हारा ऐसा ही रवैया होना चाहिए। क्या सामान्य मानवता वाले लोगों में यह नहीं होना चाहिए? सभ्य और ईमानदार होना यही है। सामान्य मानवता के इस पहलू में, तुममें कम-से-कम सामान्य मनुष्य की दत्तचित्तता, कर्तव्यनिष्ठा, और कीमत चुकाने की इच्छा के साथ-साथ उसका जमीन से जुड़े होने का रवैया, उसकी ईमानदारी और जिम्मेदारी की भावना होनी आवश्यक है। इन चीजों का होना काफी है।

—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद आठ : वे दूसरों से केवल अपने प्रति समर्पण करवाएँगे, सत्य या परमेश्वर के प्रति नहीं (भाग दो)

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