मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ
खंड 3सर्वशक्तिमान परमेश्वर, अंत के दिनों का मसीह, सत्य व्यक्त करता है, परमेश्वर के घर से शुरूआत करते हुए न्याय का कार्य करता है और लोगों को शुद्ध करने और बचाने के लिए आवश्यक सभी सत्यों की आपूर्ति करता है। परमेश्वर के चुने हुए लोगों ने परमेश्वर की वाणी सुनी है, वे परमेश्वर के सिंहासन के सामने लाए गए हैं, उन्होंने मेमने की दावत में भाग लिया है और राज्य के युग में परमेश्वर के लोगों के रूप में परमेश्वर के आमने-सामने अपना जीवन शुरू किया है। उन्होंने परमेश्वर के वचनों की सिंचाई, चरवाही, प्रकाशन और न्याय प्राप्त किया है, परमेश्वर के कार्य की एक नई समझ हासिल की है, शैतान द्वारा उन्हें भ्रष्ट किए जाने का असली तथ्य देखा है, सच्चे पश्चात्ताप का अनुभव किया है और सत्य का अभ्यास करने पर और स्वभाव में बदलाव से गुजरने पर ध्यान केंद्रित करना शुरू किया है; उन्होंने परमेश्वर के न्याय और ताड़ना का अनुभव करते हुए भ्रष्टता के शुद्धिकरण के बारे में विभिन्न गवाहियाँ तैयार की हैं। अंत के दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के न्याय कार्य ने विजेताओं का एक समूह बनाया है जो अपने व्यक्तिगत अनुभवों के जरिए यह गवाही देते हैं कि अंत के दिनों में महान श्वेत सिंहासन का न्याय पहले ही शुरू हो चुका है!
अनुभवजन्य गवाहियाँ
2परमेश्वर के राज्य का मार्ग हमेशा आसान नहीं होता (I)
4व्यावहारिक कार्य न कर पाने के नतीजे
8कलीसियाओं के बँटवारे से सीखे सबक
9धर्म में रहकर सत्य नहीं मिल सकता
10बचाए जाने के लिए ईमानदार बनना जरूरी है
11क्या हमें पारंपरिक सदगुणों के अनुसार जीना चाहिए?
14परमेश्वर में विश्वास करते हुए इंसान का अनुसरण करने पर चिंतन
15परमेश्वर के प्रति मेरे त्याग में मिलावट
18जब मेरे माता-पिता को कलीसिया से निकाल दिया गया
19मैंने खुलकर बोलने की हिम्मत क्यों नहीं की
20मन की जलन हड्डियों को भी जला देती है
22एक मूल्यांकन जिसने मुझे उजागर किया
23सिद्धांतों के बिना कर्तव्य फल नहीं देता
25मेरे परिवार द्वारा मेरा दमन : सबक देने वाला एक अनुभव
26सुसमाचार का प्रचार अच्छे से करने के लिए जिम्मेदारी लेना अहम है
27काट-छाँट और निपटान से मुझे क्या हासिल हुआ
28ईर्ष्या को खुद पर हावी न होने दें
30क्या मिलनसार होना अच्छी मानवता के लिए सही मापदंड है?
31मुझे तुम्हारी देखरेख नहीं चाहिए
32सत्य के साथ चलो, भावनाओं के साथ नहीं
34अपने काम में नकारात्मकता और सुस्ती का कारण क्या है
37चालाक और कपटी होने से सीखा एक पीड़ादायी सबक
39कीमत चुकाने के पीछे का लेनदेन
42एक कुकर्मी को पहचान कर मैंने क्या पाया
43मेरी आस्था परमेश्वर में है : इंसानों की पूजा क्यों करूँ?
45जिम्मेदारी से डरने के छिपे हुए कारण
46मनमानी से अपना और दूसरों का नुकसान होता है
47मैंने अपने पादरी का असली चेहरा देखा है
48रास्ता भूल जाने के बाद आत्मचिंतन
50अगुआ बनने से इनकार करने के पीछे क्या है?
51अंधाधुंध प्रतिस्पर्धा को अलविदा
53परमेश्वर के वचनों ने मेरी रक्षात्मकता और गलतफ़हमी को दूर कर दिया
55खुशामदी लोगों के पीछे की सच्चाई
59अपने कर्तव्य में सही दृष्टिकोण का महत्व
62मैंने एक मसीह-विरोधी की रिपोर्ट कैसे की
64क्या पूरी बाइबल परमेश्वर द्वारा प्रेरित है?
65कर्तव्य आशीषों की सौदेबाजी नहीं होता
67सुसमाचार प्रचार की समस्याओं का सामना कैसे करें
70मैं सिद्धांतों पर क्यों टिकी नहीं रह पाती?
74बिना सोचे-समझे किसी इंसान की आराधना करने के नतीजे
75असलियत छुपाने और झूठा स्वाँग भरने के नतीजे
78धूर्त बनने से मुझे कैसे नुकसान हुआ
79एक अच्छा इंसान होने का मतलब समझना
80प्रभु का स्वागत करने की मेरी कहानी
81सुसमाचार साझा करने का एक अविस्मरणीय अनुभव
83असफलताओं और अवरोधों से सीखे सबक
84अपनी जगह का पता लगाना जरूरी है
86अनुराग से अपना मन दूषित न होने दें
87भागीदार प्रतिस्पर्धी नहीं होता
88कोई मुझसे आगे बढ़ जाए, मुझे यह डर क्यों सताए?
89एक "अच्छे अगुआ" का आत्मचिंतन
92नाकामियों और बाधाओं से गुजरकर आगे बढ़ना
94परमेश्वर पर भरोसा करना सबसे बड़ी बुद्धिमानी है
96एक झूठी अगुआ को तुरंत बर्खास्त न करने के बारे में सोच-विचार