40. बंधन में जकड़ी हुई

ली मो, चीन

2004 में, मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों का कार्य स्वीकारा, जल्द ही सुसमाचार फैलाने के लिए मेरी रिपोर्ट कर दी गई। उस दिन, मैं अस्पताल में काम कर रही थी, मेरे सहकर्मी ने मुझे बताया कि अस्पताल के निदेशक मुझे ढूंढ़ रहे हैं। निदेशक के कार्यालय पहुंची तो, वहाँ दो लंबे वर्दीधारी पुलिस अफसरों को खड़े देखा। उन्होंने मुझसे कहा, “किसी ने रिपोर्ट की है कि तुम चमकती पूर्वी बिजली में विश्वास रखती हो, सुसमाचार का प्रचार करती फिर रही हो। चमकती पूर्वी बिजली राष्ट्रीय कार्रवाई का अहम निशाना है, इसके तमाम विश्वासी राजनीतिक अपराधी हैं, जिन्हें जेल की सजा दी जाएगी!” उन्होंने मुझे यह कहकर धमकी भी दी, अगर मैंने परमेश्वर में विश्वास कायम रखा, तो वे जब भी चाहें मुझे मेरी नौकरी से निकाल सकते हैं, अगर मैं काम पर गई भी तो शायद मुझे वेतन न मिले। मेरे पति की नौकरी, और मेरे बेटे के यूनिवर्सिटी में दाखिल होने, फौज में भर्ती होने या विदेश जाने की पात्रता पर भी बुरा असर पड़ेगा। उन्होंने कहा कि अगर उन्होंने मुझे सुसमाचार का प्रचार करते पकड़ लिया, तो मुझे जेल भेज दिया जाएगा। इससे मुझे चिंता हुई, और मैंने सोचा, “अगर मैंने अपनी आस्था नहीं छोड़ी, तो पुलिस इस बात को खत्म नहीं करेगी। अगर मेरी नौकरी छूट गई, मेरे पति के व्यापार को भी नुकसान हुआ, तो हमारा गुजारा कैसे होगा? अगर मुझे गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया तो मेरे जवान बेटे की देखभाल कौन करेगा? अगर मेरी आस्था के कारण अगर मेरे बेटे का भविष्य बिगड़ा, तो मैं कितनी बुरी माँ बन जाऊँगी।” मैंने इस बारे में जितना सोचती, उतनी ही परेशान हो गई। मैंने अपने दिल की रक्षा करने के लिए फौरन परमेश्वर से गुहार लगाई। उस वक्त, मुझे परमेश्वर के वचनों का एक अंश याद आया : “जिस क्षण तुम रोते हुए इस दुनिया में आते हो, उसी पल से तुम अपना कर्तव्य पूरा करना शुरू कर देते हो। परमेश्वर की योजना और उसके विधान के लिए तुम अपनी भूमिका निभाते हो और तुम अपनी जीवन-यात्रा शुरू करते हो। तुम्हारी पृष्ठभूमि जो भी हो और तुम्हारी आगे की यात्रा जैसी भी हो, कोई भी स्वर्ग के आयोजनों और व्यवस्थाओं से बच नहीं सकता, और किसी का भी अपनी नियति पर नियंत्रण नहीं है, क्योंकि केवल वही, जो सभी चीज़ों पर शासन करता है, ऐसा करने में सक्षम है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर मनुष्य के जीवन का स्रोत है)। मैंने वचनों पर सोच-विचार किया, फिर समझी : सभी की किस्मत परमेश्वर के शासन के अधीन है। हमारे परिवार का क्या होगा ये परमेश्वर के हाथ में था, कोई भी इंसान ये तय नहीं कर सकता था। परमेश्वर ही सृजनकर्ता है, लोगों का उसमें विश्वास रखना और उसकी आराधना करना स्वाभाविक और सही है। लेकिन अभी पुलिस मुझे धमकी देने और मुझसे सच्चे मार्ग को त्यागकर परमेश्वर को धोखा दिलवाने के लिए, मेरे और मेरे पति की नौकरियों और मेरे बेटे के भविष्य का इस्तेमाल कर रही थी। कितना घिनौना था यह! उसी वक्त, मैंने अपना मन बना लिया कि मेरे जीवन का जो भी हो, मैं कभी भी शैतान के साथ समझौता नहीं करूँगी। पुलिस मुझसे भाई-बहनों की रिपोर्ट करने को कहती रही, मगर मैंने अनसुना कर दिया, आखिरकार वे चले गए।

इसके बाद वे अक्सर यह पूछने अस्पताल आते कि क्या मैं अब भी परमेश्वर में विश्वास रखती हूँ और सुसमाचार फैला रही हूँ। कभी-कभी, किसी मरीज के निहायत जरूरी ऑपरेशन को बीच में ही रोकना पड़ता था। इससे मुझे गुस्सा आने लगा था। मैंने सोचा, “मैंने कोई बुरा काम नहीं किया, मैं बस परमेश्वर में विश्वास रख रही हूँ, और सही मार्ग का अनुसरण कर रही हूँ, तो पुलिस हमेशा मुझे परेशान क्यों करती है, मुझे शांति से अपना काम करने से क्यों रोक रही है?” मेरी लगातार हो रही जांच-पड़ताल से पूरे अस्पताल में हँगामा हो गया था। सहकर्मी मुझे खतरा समझते थे। कुछ लोग मेरी पीठ पीछे बातें बनाने लगे, कुछ लोगों ने तो सीधे पूछ लिया, “आप परमेश्वर में विश्वास क्यों रखती हैं? पुलिस बार-बार आपकी जांच-पड़ताल क्यों करती है? आपकी आस्था ने पुलिस को हमारे चौखट पर ला खड़ा किया है। ये बहुत गंभीर बात है।” मेरे प्रति निदेशक का रवैया भी बदल गया। पहले वे मेरा बड़ा सम्मान करते थे, लेकिन उस घटना के बाद से, वे मुझे देखते ही पूछते, “आप प्रचार तो नहीं कर रहीं ना?” उन्होंने मुझे 24/7 फोन चालू रखने को कहा ताकि मुझसे हमेशा संपर्क किया जा सके। एक बार, निदेशक ने मुझसे कहा, “आपके परमेश्वर में विश्वास के कारण पुलिस यहाँ कई बार आ चुकी है। आपको अपना विश्वास छोड़ना होगा। आपने अपना काम हमेशा अच्छे ढंग से किया है, सभी आपके बारे में काफी अच्छा सोचते हैं। आस्था को आपका भविष्य बरबाद मत करने दीजिए। यह उसके लायक नहीं। आप गिरफ्तार हो गयीं या और भी कुछ बुरा हो गया, तो आपके बॉस के नाते मेरे लिए भी बड़ी समस्या हो जाएगी।” उस दौरान, मैं हमेशा दुखी और निराश रहती थी, निदेशक हर वक्त मुझ पर की नजर रखते, सहकर्मी मुझे चौकन्ने होकर देखते। मैंने आस्था और शक्ति के लिए परमेश्वर से प्रार्थना की, उस कठिन माहौल में मजबूती से डटे रहने के लिए मदद मांगी। फिर मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा : “बड़ा लाल अजगर परमेश्वर को सताता है और परमेश्वर का शत्रु है, और इसीलिए, इस देश में, परमेश्वर में विश्वास करने वाले लोगों को इस प्रकार अपमान और अत्याचार का शिकार बनाया जाता है...। चूँकि परमेश्वर का कार्य उस देश में आरंभ किया जाता है जो परमेश्वर का विरोध करता है, इसलिए परमेश्वर के संपूर्ण कार्य को भयंकर बाधाओं का सामना करना पड़ता है, और उसके बहुत-से वचनों को संपन्न करने में समय लगता है; इस प्रकार, परमेश्वर के वचनों के परिणामस्वरूप लोग शोधित किए जाते हैं, जो कष्ट झेलने का भाग भी है। परमेश्वर के लिए बड़े लाल अजगर के देश में अपना कार्य करना अत्यंत कठिन है—परंतु इसी कठिनाई के माध्यम से परमेश्वर अपने कार्य का एक चरण पूरा करता है, अपनी बुद्धि और अपने अद्भुत कर्म प्रत्यक्ष करता है, और लोगों के इस समूह को पूर्ण बनाने के लिए इस अवसर का उपयोग करता है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, क्या परमेश्वर का कार्य उतना सरल है जितना मनुष्य कल्पना करता है?)। परमेश्वर के वचन से मैं उसका इरादा समझ पाई। चीन में कम्युनिस्ट पार्टी का शासन है, यह ऐसी जगह है जहाँ परमेश्वर का सबसे अधिक प्रतिरोध किया जाता है। चीन में आस्था रखने वालों का सताया और नीचा दिखाया जाना तय है, लेकिन परमेश्वर, कम्युनिस्ट पार्टी की यातना का प्रयोग हमारी आस्था को पूर्ण करने के लिए करता है, इस तरह विजेताओं के एक समूह की रचना करता है। ऐसी है परमेश्वर की बुद्धिमत्ता। परमेश्वर में अपने विश्वास और सही मार्ग पर चलने के कारण, मुझे प्रताड़ित किया जा रहा था, मेरी निगरानी की जा रही थी, साथ ही मेरे सहकर्मी और मित्र अपमान और आलोचना कर रहे थे। इन सबके पीछे एक उद्देश्य था। यह समझ लेने के बाद, मुझे उतना बुरा नहीं लगा। मैंने खुद से वादा किया कि कम्युनिस्ट पार्टी चाहे जैसे मुझे कितना भी सताए और बाधा डाले, मैं अंत तक परमेश्वर का अनुसरण करती रहूँगी।

उस समय मेरे पति काम के सिलसिले में बाहर गए हुए थे, तो मैंने उन्हें पुलिस की तहकीकात के बारे में नहीं बताया क्योंकि मैं नहीं चाहती थी कि वे चिंता करें। जनवरी 2005 में, मेरे पति अपने दौरे से लौटे, और जो कुछ हुआ उसका उन्हें पता चला, तो वे बहुत डर गए। बड़ी सख्ती से उन्होंने मुझसे कहा कि उन्हें पता चला है कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर के विश्वासी राजनीतिक अपराधी हैं, जिन्हें किसी भी वक्त गिरफ्तार करके जेल में डाला जा सकता है, और कैद में उन्हें पीट-पीटकर अधमरा किया जा सकता है। वे बोले कि हमारे बेटे के भविष्य और रिश्तेदारों की नौकरियों पर बुरा असर पड़ेगा, उन्होंने मुझसे सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास त्यागने को कहा। मैंने सोचा, “मेरे पति का प्रभु में विश्वास सिर्फ नाम के लिए है। वे असल में कुछ भी नहीं समझते। ऐसी चिंताएं होना तो स्वाभाविक है। कम्युनिस्ट पार्टी हम विश्वासियों को बहुत सताती है, हमारे परिवार के सदस्यों को भी नहीं छोड़ती। किसे डर नहीं लगेगा?” मैंने यह भी सोचा कि इस पूरे दौरान वे व्यापार दौरे पर बाहर गए हुए थे, इसलिए मुझे उन्हें सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य की गवाही देने का मौका नहीं मिला। हमें इस मौके की जरूरत थी ताकि हम ठीक से बात कर सकें और मैं उनके साथ काफी संगति कर सकूँ, पर उन्होंने बिल्कुल नहीं सुना। उन्होंने बस यह कह कर टाल दिया कि हमारी जिंदगी अच्छी कट रही है, और यह कि हमें बस प्रभु यीशु की कृपा का आनंद लेना चाहिए, और हमें न्याय-कार्य को स्वीकारने की जरूरत नहीं है। उन्हें डर था कि मेरे गिरफ्तार होने पर हमारा परिवार भी इसमें फँस जाएगा, इसलिए वो मुझे परमेश्वर में विश्वास रखने से रोकने लगे। वो मुझ पर नजदीक से नजर रखने लगे थे। काम खत्म होने के बाद मेरे समय से घर न आने पर, वो फोन करके पूछते कि मैं कहाँ हूँ और घर लौट आने का आग्रह करते, उन्होंने अपने दोस्तों से मिलने के लिए शाम को बाहर जाना छोड़ दिया, वे ऐसे नहीं थे। बस घर में ही बैठकर मुझ पर नजर रखते। जब सभा में जाने का समय होता, तो वो मेरे करने के लिए कोई काम ढूँढ़ लेते। उन्होंने मुझे परमेश्वर में विश्वास रखने और अपना कर्तव्य निभाने से रोकने के तमाम तरीके आजमाए। शुरू में, मैंने बहुत लाचार महसूस किया, लेकिन बाद में, मुझे परमेश्वर के इन वचनों की याद : “तुम में मेरी हिम्मत होनी चाहिए, जब उन रिश्तेदारों का सामना करने की बात आए जो विश्वास नहीं करते, तो तुम्हारे पास सिद्धांत होने चाहिए। लेकिन तुम्हें मेरी खातिर किसी भी अन्धकार की शक्ति से हार नहीं माननी चाहिए। पूर्ण मार्ग पर चलने के लिए मेरी बुद्धि पर भरोसा रखो; शैतान के किसी भी षडयंत्र को काबिज़ न होने दो(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 10)। परमेश्वर के वचन पर चिंतन करके, मैं समझ पाई कि देखने से तो लगता था कि मेरे पति मेरी आस्था बाधित करने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन पर्दे के पीछे शैतान चालाकी से हेरफेर कर रहा था और चीजें बिगाड़ रहा था, चालें चल रहा था ताकि मैं परमेश्वर को धोखा दे दूँ और उसे ठुकरा दूँ। मैं शैतान के आगे नहीं झुक सकती थी। फिर, मैं अपने पति की निगरानी से बचने के लिए बहाने बनाकर, चोरी-छिपे सभाओं में जाने और अपना कर्तव्य करने लगी। मैं अपने पति से बातचीत करने का भी मौका तलाश रही थी, इस आशा से कि वे कम्युनिस्ट पार्टी की यातनाओं से नहीं डरेंगे और सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य की जांच करने का प्रयास करेंगे। लेकिन मेरे हमेशा इससे बचते रहे, कहा कि वे तभी विश्वास रखेंगे, जब फादर और सिस्टर करेंगे। उन्होंने मुझे गिरफ्तारी और जेल जाने से बचने के लिए सभाओं में जाने और सुसमाचार फैलाने के लिए जाने से मना भी किया। मैं समझ गई कि मेरे पति को सत्य में या प्रभु के आगमन का स्वागत करने में कोई रुचि नहीं है, इसलिए मैंने उनसे इस बारे में बात करना बंद कर दिया। मैंने सोचा, “चाहे जो हो, मुझे परमेश्वर में आस्था रखनी है, अपना कर्तव्य करना है। वो मुझे बांध नहीं सकते।”

उस साल वसंतोत्सव के बाद, मेरे पति व्यापार के लिए दौरे पर जाने के बजाय मुझ पर निगरानी रखने के लिए घर पर ही रहे। एक दिन, वे घुटने टेककर आँसू लिए मुझसे विनती करने लगे, “तुम अक्सर सभाओं में और सुसमाचार का प्रचार करने के लिए बाहर जाती हो। अगर तुम गिरफ्तार कर जेल भेज दी गई, तो हम आगे कैसे जियेंगे? इस परिवार का क्या होगा, हमारे बेटे का क्या होगा? तुम्हें हमारे परिवार और बेटे के भविष्य के बारे में सोचना होगा।” सच कहूँ तो, शादी के इतने वर्षों में मैंने अपने पति को कभी रोते नहीं देखा था। उन्हें इस तरह घुटनों पर बैठकर भीख माँगते देखकर मुझे बहुत बुरा लगा, और मैंने भी रोना शुरू कर दिया। उन्हें दिलासा देने के लिए मैंने कहा, “सब कुछ परमेश्वर के हाथों में है। मैं गिरफ्तार होऊंगी या नहीं, भविष्य में हमारे बेटे का क्या होगा—ये सब परमेश्वर निर्धारित करता है। हमारा काम सिर्फ इतना है कि हम परमेश्वर पर भरोसा कर अनुभव को जिएँ। हमें इन चीजों की चिंता करने की जरूरत नहीं है।” मेरे पति ने आँखों में आँसू लिए अपना सिर हिलाकर कहा, “पुलिस पहले ही तुम्हारे पीछे है। अगर तुम इस तरह विश्वास पर कायम रही तो देर-सवेर, गिरफ्तार हो जाओगी, फिर सब-कुछ बरबाद हो जाएगा।” अपने पति को ऐसी वेदना में देखकर मैं बहुत दुखी हो गई। ये सब कम्युनिस्ट पार्टी की करतूत थी! हम परमेश्वर में विश्वास रखते हैं, सुसमाचार फैलाते हैं, ताकि लोग परमेश्वर का अंत के दिनों का उद्धार स्वीकारें, और विपत्ति से बच सकें। यह लोगों को बचाना है, इससे अधिक न्यायपूर्ण कुछ नहीं है, लेकिन कम्युनिस्ट पार्टी पागलों की तरह हमें रोकती और बाधित करती है। वो बस परमेश्वर का विरोध करने वाले शैतान और दानव हैं! परमेश्वर के वचन कहते हैं : “प्राचीन पूर्वज? प्रिय अगुआ? वे सभी परमेश्वर का विरोध करते हैं! उनके हस्तक्षेप ने स्वर्ग के नीचे की हर चीज को अंधेरे और अराजकता की स्थिति में छोड़ दिया है! धार्मिक स्वतंत्रता? नागरिकों के वैध अधिकार और हित? ये सब पाप को छिपाने की चालें हैं! ... परमेश्वर के कार्य में ऐसी अभेद्य बाधा क्यों खड़ी की जाए? परमेश्वर के लोगों को धोखा देने के लिए विभिन्न चालें क्यों चली जाएँ? वास्तविक स्वतंत्रता और वैध अधिकार एवं हित कहाँ हैं? निष्पक्षता कहाँ है? आराम कहाँ है? गर्मजोशी कहाँ है? परमेश्वर के लोगों को छलने के लिए धोखे भरी योजनाओं का उपयोग क्यों किया जाए?(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, कार्य और प्रवेश (8))। ऊपर से देखने में तो कम्युनिस्ट पार्टी धार्मिक आजादी को बढ़ावा देती दिखती है, लेकिन वास्तव में वह विश्वासियों को दबाती और गिरफ्तार करती है, वह लोगों की नौकरियों और परिवारों का इस्तेमाल कर उन्हें परमेश्वर को नकारने और धोखा देने के लिए मजबूर करती है। यह बहुत ही घिनौनी बात है! अगर कम्युनिस्ट पार्टी का उत्पीड़न न होता, तो मेरे पति और मेरे बीच, बात कभी यहाँ तक नहीं पहुँचती और मेरे पति इतना नहीं डरते। जहाँ कहीं भी पार्टी के काले हाथ पहुंचते हैं, विपत्ति लाते हैं। मेरे पति डरे हुए थे, अपने काम और परिवार की रक्षा करना चाहते थे, इस कारण वे कम्युनिस्ट पार्टी का साथ देते हुए मुझे मेरी आस्था का त्याग करने को मजबूर कर रहे थे। पर मैं उनकी बात नहीं मानने वाली थी। मुझे अपनी आस्था को मजबूत करना था और परमेश्वर का साथ देना था।

इसके बाद, मेरे पति ने ऑनलाइन सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के खिलाफ कम्युनिस्ट पार्टी के बहुत-से झूठे लांछन पढ़े, और व्यापार दौरे पर जाने के बजाय मुझ पर नजर रखने के लिए घर पर ही रहे। अपनी आस्था के कारण मैं किन लोगों के संपर्क में रहती हूँ, किन्हें फोन करती हूँ, ये जानने के लिए पूछताछ भी की। उन्होंने टेलीकॉम कंपनी में जाकर छह महीने के मेरे कॉल लॉग की प्रति भी ली, फिर मुझसे एक-एक करके सारे नंबरों के बारे में पूछा। मेरी निगरानी करने के लिए वो मुझे हर दिन काम पर मेरे साथ जाते और वापस आते। मैं जहाँ भी जाती वो मेरे पीछे आते, और मुझे अकेले घर से बाहर जाने नहीं देते थे। थोड़ी-भी आज़ादी नहीं थी—लगा जैसे मुझे जंजीरों से बाँध दिया गया हो। मैं कलीसिया का जीवन नहीं जी सकी और अपना कर्तव्य नहीं निभा सकी, जिससे मैं बहुत दुखी हो गई, इसलिए अपने पति की ढिलाई का फायदा उठाकर, मैं चोरी-छिपे बाहर जाकर सुसमाचार का प्रचार करने लगी। एक बार, उन्होंने गुस्से से कहा, “अगर मेरे हर वक्त तुम पर नजर रखने के बावजूद तुम अब भी बाहर जाकर सुसमाचार का प्रचार कर रही हो, तो मैं कुछ नहीं कर सकता। अभी कम्युनिस्ट पार्टी सत्ता में है, और वह तुम्हें आस्था रखने की इजाजत नहीं देती। अगर तुम इसी तरह के काम करती रही, तो देर-सवेर तुम्हें गिरफ्तार कर लिया जाएगा और परिवार टूट जाएगा। इसलिए हम तलाक ले लेते हैं। तलाक के बाद तुम जैसे चाहो आस्था रखो, इसका हमारे बेटे या किसी दूसरे पर असर नहीं पड़ेगा।” जब मैंने सुना कि वो मुझसे तलाक लेना चाहते हैं, तो मुझे यकीन नहीं हुआ। मैं तो बस परमेश्वर में विश्वास करती थी। बात यहाँ तक कैसे पहुँच गई? क्या इतने वर्षों के हमारे साथ का कोई मतलब नहीं था? कम्युनिस्ट पार्टी का मेरे खुशहाल परिवार को ऐसे तोड़ने के ख्याल से मुझे बहुत ज्यादा दुख हुआ। मैं यह बात स्वीकार ही नहीं पा रही थी। मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, “हे परमेश्वर, मुझे आस्था और शक्ति दो, ताकि मैं इस कठिन माहौल में मजबूत खड़ी हो सकूं।” प्रार्थना के बाद, मुझे परमेश्वर के ये वचन याद आए : “कार्य के इस चरण में हमसे परम आस्था और प्रेम की अपेक्षा की जाती है। थोड़ी-सी लापरवाही से हम लड़खड़ा सकते हैं, क्योंकि कार्य का यह चरण पिछले सभी चरणों से अलग है : परमेश्वर लोगों की आस्था को पूर्ण कर रहा है—जो कि अदृश्य और अमूर्त दोनों है। परमेश्वर वचनों को आस्था में, प्रेम में और जीवन में परिवर्तित करता है। लोगों को उस बिंदु तक पहुँचने की आवश्यकता है जहाँ वे सैकड़ों बार शुद्धिकरणों का सामना कर चुके हैं और अय्यूब से भी ज़्यादा आस्था रखते हैं। किसी भी समय परमेश्वर से दूर जाए बिना उन्हें अविश्वसनीय पीड़ा और सभी प्रकार की यातनाओं को सहना आवश्यक है। जब वे मृत्यु तक समर्पित रहते हैं, और परमेश्वर में अत्यंत विश्वास रखते हैं, तो परमेश्वर के कार्य का यह चरण पूरा हो जाता है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, मार्ग ... (8))। मैंने परमेश्वर के वचन पर सोच-विचार किया, फिर समझी कि अपने अंत के दिनों के कार्य में, परमेश्वर अपने वचनों, और तमाम परीक्षणों और शोधनों से लोगों की आस्था और प्रेम को पूर्ण करता है। मैंने शैतान द्वारा अय्यूब को दिए गए प्रलोभनों को याद किया। उसने रातोंरात अपने बच्चों और दौलत गँवा दी, फिर उसके पूरे शरीर पर फोड़े हो गए। ऐसे अत्यधिक विशाल पीड़ा के बीच अय्यूब ने कभी शिकायत नहीं की, बल्कि परमेश्वर का गुणगान करता रहा। अपने सभी परीक्षणों के दौरान वह परमेश्वर के लिए अपनी गवाही में डटा रहा। फिर मैंने अपने बारे में सोचा। कम्युनिस्ट पार्टी के उत्पीड़न के कारण मेरा परिवार टूट रहा था, पर मैं अभी से ही शिकायत करने लगी थी। मैंने समझ लिया कि मेरा आध्यात्मिक कद वास्तव में बहुत छोटा था और मेरे पास कोई गवाही थी ही नहीं। मुझे बहुत पछतावा हुआ, इसलिए मैंने परमेश्वर से यह वादा करते हुए प्रार्थना की कि मेरे पति मुझे तलाक दे भी दें, तो भी मैं देह-सुख और परिवार के लिए सत्य का त्याग नहीं करूँगी।

कुछ दिन बाद, मेरे पति ने अचानक मुझसे माफी माँगकर अपनी गलती मानी। वो बोले कि उन्हें तलाक की बात नहीं करनी चाहिए थी, उन्होंने ऐसा बस कम्युनिस्ट पार्टी के क्रूरतापूर्ण दबाव में आकर किया था। थोड़े समय बाद, उन्होंने अचानक कहा, “अगर मैं तुम्हें मना नहीं सकता, तो मैं भी तुम्हारे साथ सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास रखूंगा।” अचानक से उनके ऐसे पलट जाने पर मुझे काफी अचरज तो हुआ, लेकिन मुझे लगा कि उन्होंने सोच-समझ कर फैसला लिया है, इसलिए हम दोनों साथ मिलकर घर पर परमेश्वर के वचन पढ़ने लगे। एक हफ्ते बाद, उन्होंने मुझे एक सभा में ले चलने को कहा। उनका थोड़ा अजीब-सा बर्ताव देखकर मैं राजी नहीं हुई। मैं चौंक गई जब वे पलटकर मुझसे बोले, “अगर तुम मुझे सभा में नहीं ले जाओगी, तो मैं अब विश्वास नहीं रखूँगा।” उन्होंने यह भी कहा कि उन्होंने ऐसा मेरा मन बदलवाने के लिए किया था। तब मुझे एहसास हुआ कि मेरे पति सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास रखने का नाटक कर रहे थे, उनका मकसद हमारी सभाओं की जगह मालूम करना था, ताकि वे बेहतर ढंग से मेरी निगरानी करके मुझ पर काबू कर सकें। मैंने कभी नहीं सोचा था कि वे ऐसा कुछ करेंगे। इसके बाद से, हम दोनों के बीच शीत युद्ध छिड़ गया। एक दिन, मैं घर में परमेश्वर के वचन पढ़ रही थी, तभी वे जोर-जोर से दरवाजा ठोकने लगे और चिल्लाए, “हम ऐसे नहीं जी सकते।” जब मैंने दरवाजा खोला, तो वे एक पागल की तरह मुझ पर झपटे, मेरी गर्दन से मुझे पकड़ लिया, वे चीखने लगे, “सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास रखने की क्या जरूरत है तुम्हें? क्या वह सच में तुम्हारे लिए परिवार और बेटे से ज्यादा महत्वपूर्ण है?” उन्होंने इतना कसकर पकड़ा था कि मुझे दर्द हो रहा था और मैं सांस नहीं ले पा रही थी, इसलिए मैंने मदद के लिए परमेश्वर को पुकारा कि वह मुझे बचाए। मैंने छूटने की कोशिश की, तो उन्होंने छोड़ दिया। जो हुआ उसे लेकर मैं बहुत दुखी और दिल से उदास थी। बाद में मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा : “पति अपनी पत्नी से क्यों प्रेम करता है? पत्नी अपने पति से क्यों प्रेम करती है? बच्चे क्यों माता-पिता के प्रति कर्तव्यशील रहते हैं? और माता-पिता क्यों अपने बच्चों से अतिशय स्नेह करते हैं? लोग वास्तव में किस प्रकार की इच्छाएँ पालते हैं? क्या उनकी मंशा उनकी खुद की योजनाओं और स्वार्थी आकांक्षाओं को पूरा करने की नहीं है?(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर और मनुष्य साथ-साथ विश्राम में प्रवेश करेंगे)। परमेश्वर के वचन पर मनन करते हुए मैंने खुद से पूछा कि क्या मेरे पति मुझसे सच में प्यार करते हैं। मैंने अपने विवाहित जीवन के बारे में सोचा। मेरे पति बहुत ही स्पष्ट रूप से जानते थे कि मैंने हमारे परिवार के लिए कितना त्याग किया है, उन्हें पता था कि मैं बचपन से ही प्रभु में विश्वास रखती हूँ, प्रभु के आने का इंतजार कर रही हूँ। लेकिन जब मैंने प्रभु का स्वागत किया, तो उन्होंने मेरा साथ नहीं दिया। सच तो यह था कि वे मेरे विरुद्ध कम्युनिस्ट पार्टी के साथ खड़े थे, तलाक की धमकी दी और गला घोंटने की भी कोशिश की। यह सब उन्होंने अपने हितों को बचाने के लिए किया। पति-पत्नी को बांधने वाला सम्मान पूरी तरह खत्म हो गया था। इसे प्यार कैसे कहा जा सकता है? मैंने यह भी सोचा कि हालांकि मेरे पति प्रभु यीशु में विश्वास रखते थे, पर वो ऐसा अनुग्रह पाने के लिए करते थे। वो प्रभु के आने की बाट बिल्कुल नहीं जोह रहे थे। गिरफ्तार होने और शैतान के राज से उनका डर ऐसा था कि जब परमेश्वर सत्य व्यक्त करने और उद्धार का कार्य करने आया, तो उन्होंने उसके अंत के दिनों के कार्य को स्वीकार नहीं किया। मुझे मेरी आस्था से जबरन दूर करने के लिए कम्युनिस्ट पार्टी का साथ दिया। मैं समझ गई कि मेरे पति परमेश्वर के सच्चे विश्वासी थे ही नहीं। वे एक छद्म-विश्वासी थे। परमेश्वर के वचन कहते है : “विश्वासी और अविश्वासी आपस में मेल नहीं खाते हैं, बल्कि वे एक दूसरे के विरोधी हैं(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर और मनुष्य साथ-साथ विश्राम में प्रवेश करेंगे)। मेरे पति और मैं एक रास्ते पर नहीं थे, इसलिए मैं उन्हें मुझे बेबस करने नहीं दे सकती। इसके बाद, मेरे पति ने जब देखा कि मैं अपनी आस्था नहीं त्यागने वाली तो उन्होंने मुझे और भी कई बार तलाक की धमकी दी। सच में अपना परिवार खोने का ख्याल भी बर्दाश्त नहीं हो रहा था, इसलिए मैं हर दिन परमेश्वर से प्रार्थना कर उसे राह दिखाने को कहती।

एक दिन, मैंने परमेश्वर के वचन का एक अंश देखा : “एक ऐसे व्यक्ति के रूप में जो सामान्य है और जो परमेश्वर के लिए प्रेम का अनुसरण करता है, परमेश्वर के जन बनने के लिए राज्य में प्रवेश करना ही तुम सबका असली भविष्य है और यह ऐसा जीवन है, जो अत्यंत मूल्यवान और सार्थक है; कोई भी तुम लोगों से अधिक धन्य नहीं है। मैं यह क्यों कहता हूँ? क्योंकि जो लोग परमेश्वर में विश्वास नहीं करते, वो देह के लिए जीते हैं और वो शैतान के लिए जीते हैं, लेकिन आज तुम लोग परमेश्वर के लिए जीते हो और परमेश्वर की इच्छा के अनुसार चलने के लिए जीवित हो। यही कारण है कि मैं कहता हूँ कि तुम्हारे जीवन अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं। केवल इसी समूह के लोग, जिन्हें परमेश्वर द्वारा चुना गया है, अत्यंत महत्वपूर्ण जीवन जीने में सक्षम हैं : पृथ्वी पर और कोई इतना मूल्यवान और सार्थकजीवन नहीं जी सकता(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के सबसे नए कार्य को जानो और उसके पदचिह्नों का अनुसरण करो)। मैं सोचा करती थी कि एक सुखी परिवार, पति के साथ प्यार का रिश्ता होना और मेरी सांसारिक जरूरतों का पूरा होना ही आनंद की परिभाषा है, इस प्रकार जीवन जीना अर्थपूर्ण होता है। लेकिन अब, मैं साफ तौर पर समझ गई थी कि तथाकथित वैवाहिक प्रेम बहुत नाजुक है। जैसा कि कहावत है : पति-पत्नी बाग के दो पंछियों जैसे होते हैं; जब विपदा आती है तो वे अपने रास्ते उड़ जाते हैं। पहले, जब मैं अपने परिवार और पति के लिए कड़ी मेहनत करती थी, तो वे मेरी बड़ी परवाह करते थे, लेकिन अब जब मैं आस्था रखती हूँ, तो उन्हें लगा कि कम्युनिस्ट पार्टी की यातना उनके हितों के लिए खतरा है, इसलिए वे मुझे सताने लगे, और मुझसे तलाक माँगने लगे। दो टूक बोलूँ, तो पति-पत्नी के तौर पर हमारा “प्यार,” बस दो लोगों का एक-दूसरे का इस्तेमाल करना था। ऐसे जीवन में सुख कहाँ है? मैंने सोचा कि पिछले महीनों में कैसे वे मेरी निगरानी करते रहे, मुझे सभाओं में जाने और अपना कर्तव्य निभाने से रोका। मैं सत्य पर संगति करने के लिए अपने भाई-बहनों से नहीं मिल पाई, जब घर में परमेश्वर के वचन पढ़ती तो मेरा मन शांत न हो पाता, जब मैं सुसमाचार का प्रचार करने जाती, तो मुझे अपने पति से निपटने के तरीके सोचने पड़ते। मुझे आस्था की जरा-भी आजादी नहीं थी, मानो मैं एक अदृश्य रस्से से बंधी थी जो मेरा जीवन ले रहा था। अगर ऐसा ही चलता रहा, तो मेरे जीवन को नुकसान होगा और मैं सत्य और उद्धार हासिल करने का मौका भी गँवा दूंगी। यह उसके लायक न था। उस वक्त मुझे बहुत स्पष्ट रूप से एहसास हुआ कि वैवाहिक प्रेम वाला पारिवारिक जीवन सच्चा सुख नहीं है। मैं सिर्फ सत्य का अनुसरण करके और एक सृजित प्राणी का कर्तव्य निभा कर ही सार्थक जीवन जी सकती हूँ। मैंने प्रभु यीशु के वचनों को भी याद किया : “जो माता या पिता को मुझ से अधिक प्रिय जानता है, वह मेरे योग्य नहीं; और जो बेटा या बेटी को मुझ से अधिक प्रिय जानता है, वह मेरे योग्य नहीं; और जो अपना क्रूस लेकर मेरे पीछे न चले वह मेरे योग्य नहीं(मत्ती 10:37-38)। मैंने युगों-युगों के संतों को याद किया, सोचा कि उन्होंने परमेश्वर का आदेश पूरा करने के लिए कैसे अपना घर, आजीविका सब त्याग दिया, सुसमाचार का प्रचार करने और परमेश्वर की गवाही देने के लिए वे समंदर पार गए, दुख झेले, और अपनी जान तक दे दी। उनकी गवाही को परमेश्वर की स्वीकृति मिली। और अब परमेश्वर ने मुझ पर किया था, मुझे अपने सामने लेकर आया, कि मैं अंत के दिनों का उद्धार पा सकूं। ऐसा मौका जीवन में फिर नहीं मिलता। अगर मैं अपने पति के बंधनों के कारण अपना कर्तव्य ठीक से नहीं निभा सकी, तो मैं एक निष्ठुर और नीच इंसान हूँ, परमेश्वर के सामने नालायक हूँ! इसका एहसास करके, मैंने शपथ ली, मैं अतीत के संतों जैसा ही करूँगी, सब-कुछ छोड़कर परमेश्वर का अनुसरण करूँगी, एक सृजित प्राणी का कर्तव्य निभाऊंगी। इस तरह मैं एक सार्थक जीवन जियूँगी।

एक रात, मैं एक सभा से घर लौटी और दरवाजा खोलते ही आवक रह गई। वहाँ बहुत-से लोग जमा थे। मेरे सहकर्मी, मेरे पति के मित्र और रिश्तेदार, जैसे ही उन्होंने मुझे देखा, वे सब एक सुर से बोलने लगे, मुझे आस्था त्यागने को मनाने की कोशिश करने लगे। कुछ लोगों ने कहा कि उन्होंने न्यूज़ में देखा है कि कम्युनिस्ट पार्टी ने हाल में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के बहुत-से विश्वासियों को गिरफ्तार कर लिया है, उनमें से कुछ को कम-से-कम 10 साल की सजा हुई है। दूसरों ने कहा, यह बस गिरफ्तार होकर जेल जाने की बात नहीं है; सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कई विश्वासियों को हिरासत में या तो अपंग बना दिया गया या मार डाला गया, उनके परिवारों को भी इसमें खींचा गया। कुछ लोगों ने कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा कलीसिया को बदनाम करने के लिए फैलाई गई भ्रांतियों और अफवाहों को भी दोहराया, कहा कि परमेश्वर के विश्वासी अपने परिवार छोड़ देते हैं। यह सब सुनकर मैं बहुत नाराज हो गई। मैंने सोचा, “कम्युनिस्ट पार्टी का उत्पीड़न न होता, तो मेरा परिवार ऐसे मेरा विरोध कर मुझ पर हमला नहीं करता। कम्युनिस्ट पार्टी सच्चाई को तोड़-मरोड़ कर पेश करती है, अफवाहें फैलाती है, ताकि जो लोग सच नहीं जानते, वे उसके साथ मिलकर परमेश्वर का विरोध करें। पार्टी के साथ वे भी परमेश्वर द्वारा दंडित किए जाते हैं, और अंत में वे इसके साथ नष्ट कर दिए जाएंगे। वह पूरी तरह दुष्ट है!” मैंने उनकी बातों का खंडन किया, उनसे कहा, “अगर आप सबको नहीं पता कि आस्था रखना क्या होता है, तो बकवास मत कीजिए। इन खतरों के बावजूद मैं विश्वास रखने की जिद क्यों करती हूँ? क्योंकि उद्धारकर्ता आ गया है, और उसने मानव जाति को शैतान के प्रभाव से बचाने, और हमें विपत्ति से मुक्त करने के लिए अनेक सत्य व्यक्त किए हैं। यह जीवन में बस एक बार मिलने वाला मौका है! लेकिन कम्युनिस्ट पार्टी परमेश्वर में आस्था रखने की अनुमति नहीं देती। वह परमेश्वर में विश्वास रखने वालों का अंधाधुंध दमन और उत्पीड़न करती है, उसने उनमें से कइयों को गिरफ्तार कर जेल में बंद कर दिया है। बहुत-से लोग घर नहीं लौट सकते, बहुत से लोगों को अपंग बना दिया गया है, पीट-पीट कर मार डाला गया है, बहुत-से ईसाई परिवारों को उसने बिखेर दिया है। क्या यह सब कम्युनिस्ट पार्टी की करतूत नहीं है? साफ तौर पर यह कम्युनिस्ट पार्टी ही है, जो आस्था रखने वालों को सता रही है और ईसाई परिवारों को तोड़ रही है, लेकिन वह पलटकर कहती है कि परमेश्वर के विश्वासी अपने परिवारों को छोड़ रहे हैं। क्या यह सच को पलट देना नहीं है? आप लोग सीसीपी से नफरत नहीं करते, पर मुझे परमेश्वर में विश्वास रखने से रोकना चाहते हैं। क्या आप सही और गलत में फर्क नहीं कर पा रहे? आस्था का मार्ग मेरी अपनी पसंद है। मैं जेल भी चली जाऊं, तो भी मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अनुसरण करूँगी।” उन्होंने देखा कि वे मुझे मना नहीं पाएंगे, हारकर वे सब चले गए। मेरे पति ने मायूसी से कहा, “लगता है, कोई भी तुम्हारा मन नहीं बदल सकता, तो चलो तलाक ले लें। तुम सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास रखती हो, यानी सरकार तुम पर हमला कर तुम्हें गिरफ्तार कर लेगी। जब ऐसा होगा, तो तुम्हारी नौकरी चली जाएगी, परिवार छूट जाएगा, शायद तुम्हारी जान भी चली जाए। लेकिन हम जिंदा रहना चाहते हैं, इसलिए तलाक ही अकेला विकल्प है। कम्युनिस्ट पार्टी लोगों को ऐसा फंसाती है कि निकलना मुश्किल होता है।” यह सुनकर मेरा दिल रो उठा, लेकिन मुझे साफ तौर पर मालूम था कि चुनने का समय आ गया है। मैंने परमेश्वर में विश्वास रखने, उसका अनुसरण करने, सत्य और जीवन के पीछे जाने का विकल्प चुना, जबकि मेरे पति ने अपनी नौकरी और भविष्य को बचाने के लिए कम्युनिस्ट पार्टी का साथ देना चुना। इसलिए हमें अपने-अपने रास्तों पर जाना ही होगा। उस वक्त, मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, “हे परमेश्वर, चाहे जो हो जाए, मैं अंत तक तुम्हारा अनुसरण करूँगी।” अगली सुबह, मेरे पति और मैं, हमारे बारह साल के विवाहित जीवन का अंत करते हुए तलाक की कार्यवाही के लिए सिविल अफेयर्स ब्यूरो गए, तब से, मैं सामान्य रूप से सभाओं में जाकर अपना कर्तव्य निभा पा रही हूँ, और मैंने काफी सुकून महसूस किया है। मेरा विचार है कि एक सृजित प्राणी का कर्तव्य निभाना ही सार्थक जीवन जीने का एकमात्र तरीका है।

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