
मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ
खंड 5सर्वशक्तिमान परमेश्वर, अंत के दिनों का मसीह, सत्य व्यक्त करता है, परमेश्वर के घर से शुरूआत करते हुए न्याय का कार्य करता है और लोगों को शुद्ध करने और बचाने के लिए आवश्यक सभी सत्यों की आपूर्ति करता है। परमेश्वर के चुने हुए लोगों ने परमेश्वर की वाणी सुनी है, वे परमेश्वर के सिंहासन के सामने लाए गए हैं, उन्होंने मेमने की दावत में भाग लिया है और राज्य के युग में परमेश्वर के लोगों के रूप में परमेश्वर के आमने-सामने अपना जीवन शुरू किया है। उन्होंने परमेश्वर के वचनों की सिंचाई, चरवाही, प्रकाशन और न्याय प्राप्त किया है, परमेश्वर के कार्य की एक नई समझ हासिल की है, शैतान द्वारा उन्हें भ्रष्ट किए जाने का असली तथ्य देखा है, सच्चे पश्चात्ताप का अनुभव किया है और सत्य का अभ्यास करने पर और स्वभाव में बदलाव से गुजरने पर ध्यान केंद्रित करना शुरू किया है; उन्होंने परमेश्वर के न्याय और ताड़ना का अनुभव करते हुए भ्रष्टता के शुद्धिकरण के बारे में विभिन्न गवाहियाँ तैयार की हैं। अंत के दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के न्याय कार्य ने विजेताओं का एक समूह बनाया है जो अपने व्यक्तिगत अनुभवों के जरिए यह गवाही देते हैं कि अंत के दिनों में महान श्वेत सिंहासन का न्याय पहले ही शुरू हो चुका है!
अनुभवजन्य गवाहियाँ
1जब कुछ होता है तो मैं अब अलग खड़ा नहीं रहता
2एक सैनिक के सुसमाचार-प्रचार मार्ग के उतार-चढ़ाव
3आशीष पाने के पीछे भागने से आई जागृति
4मैं वाक्पटु न होने के कारण हीन महसूस नहीं करती
5क्या “अपने प्रति सख्त और दूसरों के प्रति सहिष्णु होना” सच में एक सद्गुण है?
6दोहरी मुसीबत के दौरान इम्तहान
8मुझे इस चुनाव पर कभी पछतावा नहीं होगा
9अब मैं अपनी बढ़ती उम्र को लेकर परेशान या चिंतित नहीं होऊँगी
10“लोगों की कमियों की आलोचना न करने” के पीछे की गुप्त प्रेरणा
11मेरी बेटी की गिरफ्तारी ने मुझे बेनकाब किया
12अपना कर्तव्य खोने के बाद चिंतन
13पादरियों के साथ मेरा वाद-विवाद
14अपने कर्तव्य में धूर्त होने का अंजाम
15बीमारी के बीच परमेश्वर का प्रेम
16जीवन की छोटी-छोटी चीजें भी सीखने के अवसर हैं
17मुझे बस अभी एहसास हुआ कि मुझमें सत्य वास्तविकता की कमी है
18खतरनाक परिस्थिति में भी अपने कर्तव्य पर अडिग रहना
20अब मैं प्रसिद्धि और रुतबे से बँधी नहीं हूँ
21क्या दूसरों की गलतियों पर चुप रहना बुद्धिमानी है?
22मैं जान गया हूँ कि अपने माता-पिता की दयालुता से कैसे पेश आऊँ
24अब मैं अपराध के बंधन में नहीं हूँ
25परमेश्वर के वचनों ने मुझे जीवन में दिशा दिखाई
26आराम की लालसा से मिला एक दर्दनाक सबक
27अति ईर्ष्यालु होने के दुष्परिणाम
28परमेश्वर के वचनों के आधार पर लोगों की पहचान
29बुजुर्गों को भी सत्य का अनुसरण करने का प्रयास करना चाहिए
31मैं अपनी काबिलियत को सही ढंग से ले सकती हूँ
32मुझमें मसीह-विरोधियों की बुरी शक्तियों से लड़ने का साहस है
33अब मैं अगुआ बनने की होड़ में नहीं रहती हूँ
34माँ के गुजरने के सदमे से उबरना
36मैंने दमन की भावना का समाधान कैसे किया
37क्या यह नजरिया सत्य के अनुरूप है कि “इंसान को गुण का न सही, उसकी मेहनत का श्रेय मिलना ही चाहिए”?
38मैं शांति से अपना कर्तव्य क्यों स्वीकार नहीं कर पाई
39अहंकार की समस्या का समाधान आसान नहीं है
41गिरफ्तारी के बाद अगुआओं का यहूदा बनना
42अब मैं अनुभवात्मक गवाही लेख लिखने के लाभ जानती हूँ
43परमेश्वर के वचनों के आधार पर मैंने दूसरों का भेद पहचानना सीखा
45मैं अब अपनी पसंद देखकर कर्तव्य नहीं चुनती
46मुसीबत के बीच सुसमाचार प्रचार का सतत प्रयास करना
50दिखावे ने मुझे बर्बाद कर दिया
51प्रभु की वापसी के बारे में किसकी सुनें?
52मार्गदर्शन और पर्यवेक्षण स्वीकारना सीखना
54क्या पैसे से सचमुच खुशी मिलती है?
55अब मैं बेतहाशा रुतबे के पीछे नहीं भागती
56जब मुझे अपनी माँ की मृत्यु के बारे में पता चला
57दूसरों की सिफारिश करना इतना मुश्किल क्यों है?
58मैंने लोगों के साथ सही व्यवहार करना सीख लिया है
60कर्तव्यों में कोई पद या भेद नहीं होता
61मुझे अपनी माँ के लिए पक्षपात नहीं करना चाहिए
62आखिरकार मैं कुछ आत्मजागरूकता पा चुकी हूँ
63मसले बताने के पीछे कौन-सी अशुद्धियाँ छिपी होती हैं?
65झूठ बोलने की समस्या का समाधान खोजना
66क्या मिलनसार होना आचरण का सिद्धांत है?
67मुझे कैंसर होने का पता चलने के बाद
68माता-पिता की दयालुता के साथ कैसे पेश आएँ
69मैं अब संकट में अपना कर्तव्य नहीं छोड़ती
70कैसे मैंने अपनी घृणित भावनाएँ उतार फेंकी
71क्या बुजुर्गों का सम्मान करना और युवाओं की देखभाल करना एक अच्छे व्यक्ति की पहचान है?
72क्या रुतबा होना उद्धार की गारंटी है?
73जब एक ऐसे अगुआ को बर्खास्त कर दिया गया जिसकी मैं प्रशंसक थी
74दूसरों की मदद और सलाह किस ढंग से लें
76कर्तव्यों के पुनर्निर्धारण के बाद आत्म-चिंतन
77क्या वास्तव में चीजें बदकिस्मती की वजह से खराब होती हैं?
78जब कर्तव्यों का निर्वहन संतानोचित भक्ति से टकराता है
79अब मैं पैसों के लिए नहीं जीती
80एक नए विश्वासी के साथ काम करने की मेरी कहानी
81सुख-सुविधा की लालसा करने के परिणाम
82विपत्ति में दृढ़ता से डटे रहना
83मैं आखिरकार बुरे लोगों का भेद पहचान सकती हूँ
84मैं अपनी बीमारी की चिंता से उबर पाई
85अपनी सच्चाइयों के साथ कैसे पेश आना चाहिए
88दूसरों से बातचीत करने के सिद्धांत
89सत्य नहीं स्वीकारने पर चिंतन
91उम्र की परवाह किए बिना सत्य का अनुसरण
92एक परिवार के उत्पीड़न के पीछे की कहानी
94खराब काबिलियत की बेबसी से आखिरकार मैं मुक्त हो गई
95जिन लोगों को आप नौकरी देते हैं उन पर कभी संदेह न करने के परिणाम
97मैं अपने कर्तव्य में जिम्मेदारी उठाने से क्यों डरती हूँ?
98हमेशा लोगों को खुश करने से क्या होता है
99क्या केवल अनुग्रह के लिए परमेश्वर में विश्वास रखना उचित है?