41. गिरफ्तारी के बाद अगुआओं का यहूदा बनना

4 जुलाई 2018 को, मेरी साथी अगुआ डिंग जी का पीछा कर उसे गिरफ्तार कर लिया गया। यह खबर सुनकर मैं बहुत बेचैन हो गई। लोगों को सताने के पुलिस के तरीके बहुत क्रूर थे; क्या वह यह सहन कर पाएगी? और, अक्सर उसके साथ मेरी बातचीत होती रहती थी, तो क्या मुझपर भी उनकी नजर है? यह सोचकर, मैं थोड़ी डर गई। कुछ दिनों बाद, मुझे अपने गृहनगर से एक पत्र मिला। उसमें लिखा था कि पुलिस मुझे गिरफ्तार करने के लिए मेरे घर आई थी और गाँववालों को भी मेरी तलाश करने को कहा गया है। मेरे ही गाँव की बहन ली किंग को गिरफ्तार कर लिया गया, और पुलिस अभी भी उसकी दो बेटियों की तलाश में थी। इस खबर से मैं बुरी तरह चौंक गई। पुलिस हर जगह भाई-बहनों को गिरफ्तार कर रही थी और मैं बेघर होकर रह गई थी। पुलिस जिस ढंग से विश्वासियों को गिरफ्तार करने में जुटी थी, यह देखकर मुझे बहुत गुस्सा आ रहा था। साथ ही, मुझे चिंता थी कि अगर मैं पहले से ही पुलिस की नजर में हूँ, तो यहाँ रहना मेरे लिए अब सुरक्षित नहीं होगा। अगर पुलिस ने मुझे गिरफ़्तार कर लिया, तो क्या मुझे यातना नहीं दी जाएगी? क्या मैं वह सब सहन कर पाऊँगी? सोच-सोचकर मुझे डर लगने लगा। अगले कुछ दिन मैंने डर और खौफ में बिताए।

जल्द ही, मैंने सुना कि डिंग जी यातना सहन न कर सकी और उसने कई भाई-बहनों के राज़ खोल दिए, और उन दो परिवारों के भी जो परमेश्वर के वचनों की पुस्तकों को सुरक्षित रखे हुए थे। खैर, पुस्तकें तो पहले ही कहीं और भेज दी गई थीं, लेकिन उस परिवार की बहन को गिरफ्तार कर लिया गया, और पुलिस ने एक और बहन के घर से तीन लाख युआन जब्त कर लिए। डिंग जी ने भाई-बहनों को गिरफ्तार करने में पुलिस की मदद भी की। एक के बाद एक दस से अधिक अगुआओं और उपयाजकों को गिरफ्तार कर लिया गया। कुछ भाई-बहनों के घरों पर छापे मारे गए, और कई भाई-बहन घर छोड़कर छिप गए। कुछ ही समय बाद एक और अगुआ, शिया यु को गिरफ्तार कर लिया गया। वह पुलिस की धमकियाँ, डाँट-डपट और यातनाएँ सह न सकी और जेल जाने से डर गई, और आखिरकार, उसने भाई-बहनों और कलीसिया के पैसों का सारा राज़ खोल दिया। यह खबर सुनकर मैं हैरान रह गई, मुझे विश्वास ही नहीं हुआ कि यह सच है। ये अगुआ इससे पहले सत्य का अनुसरण कर रहे थे; वे धोखा कैसे दे सकते हैं? डिंग जी और शिया यु बरसों से परमेश्वर में विश्वास करते आ रहे थे। उन्होंने अपना परिवार त्याग दिया था, करियर छोड़ दिया था और अपना सारा समय अपने कर्तव्यों को पूरा करने में लगा दिया था। हालाँकि उनके परिवारों ने उन्हें काफी सताया था, रोड़े अटकाए थे, लेकिन उन्होंने परमेश्वर में विश्वास रखना नहीं छोड़ा था, और अपने कर्तव्यों को पूरा करते हुए कष्ट सहकर कीमत अदा कर रहे थे। वे अचानक यहूदा कैसे बन गए? यह बात मेरे गले नहीं उतर रही थी। वे अगुआ थे और भाई-बहनों के साथ उनकी संगति आमतौर पर काफी अच्छी थी। उन्हें सत्य की समझ ज्यादा होनी चाहिए थी और उनका आध्यात्मिक कद भाई-बहनों से ज्यादा ऊँचा था, जबकि कुछ साधारण भाई-बहन तक भी अपनी गवाही में दृढ़ रह पाते थे। अगुआओं के तौर पर, उनका आध्यात्मिक कद साधारण भाई-बहनों से भी कमतर कैसे हो सकता था? वे परमेश्वर को धोखा कैसे दे सकते थे? मैंने अपने विचारों को अपनी ओर मोड़ा। जहाँ तक त्याग करने और खुद को खपाने की बात थी, तो मैंने उनसे ज्यादा कुछ नहीं किया था। उन्होंने अपना काम, अपने माता-पिता और बच्चों को छोड़ दिया था और अपना कर्तव्य निभाने का विकल्प चुना था, लेकिन अपना कर्तव्य निभाते समय, मुझे अक्सर अपने घरवालों की याद आ जाती थी। वे अडिग तक नहीं रह सके। अगर पुलिस मुझे गिरफ्तार कर जेल में डाल दे, तो क्या मैं अपनी गवाही में दृढ़ रह पाऊँगी? अगर यातना न सह पाने और जेल जाने के डर से मैंने परमेश्वर को धोखा दे दिया तो ऐसे में क्या मेरी मंजिल और मेरा परिणाम बुरा नहीं होगा? परमेश्वर में मैंने जो इतने बरस विश्वास रखा है, क्या वह व्यर्थ नहीं हो जाएगा? मैं खुद को लेकर चिंता में डूब गई। मुझे समझ नहीं आया कि कलीसिया को इतना भयंकर उत्पीड़न क्यों सहना पड़ा, और इतने सारे भाई-बहन गिरफ्तार क्यों किए गए। मैं जिन्हें बड़ा योद्धा मानती थी, वे धराशायी हो गए थे। उस दौरान, मैं बहुत हताश थी। हर दिन, मेरे चेहरे पर चिंता की लकीरें उभरतीं और मुझे उदासी घेर लेती। मैं परमेश्वर के वचन तो पढ़ती, मगर वे मेरे दिल तक न पहुँच पाते, अपना कर्तव्य निभाते समय, मुझमें कोई जोश न होता।

एक बहन ने मुझे इतना निराश देखकर याद दिलाया, “तुम इस तरह से नकारात्मक नहीं बनी रह सकती। उन भाई-बहनों से सीखो जो अपनी गवाही में दृढ़ रहते हैं, परमेश्वर के अधिक वचन पढ़कर सबक सीखो।” उस बहन के चेताने के बाद मुझे एहसास हुआ कि मैं कितनी कमजोर हूँ। भाई-बहनों ने पुलिस का उत्पीड़न झेलते हुए बहुत यातना सही थी और फिर भी वे जानते थे कि परमेश्वर पर भरोसा करना चाहिए और सबक सीखना चाहिए। मैं परमेश्वर के इरादे को क्यों नहीं समझी? खोज के दौरान, मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा : “अतः मार्ग के अंतिम चरण में कैसे चला जा सकता है? क्लेश का अनुभव करने के तुम्हारे दिनों में तुम्हें सभी कठिनाइयों को सहना आवश्यक है, और तुममें दुःख सहने की इच्छा भी होनी चाहिए; केवल इसी रीति से तुम मार्ग के इस चरण में अच्छी तरह से चल पाओगे। क्या तुम सोचते हो कि मार्ग के इस चरण में चलना उतना सरल है? तुम्हें जानना चाहिए कि तुम्हें कौनसा कार्य पूरा करना है, तुम सबको अपनी—अपनी क्षमता बढ़ानी होगी और अपने को पर्याप्त सत्य के साथ लैस करना होगा। यह एक या दो दिनों का कार्य नहीं है—यह उतना सरल भी नहीं जितना तुम सोचते हो! मार्ग के अंतिम चरण में चलना इस बात पर निर्भर करता है कि वास्तव में तुममें किस प्रकार का विश्वास और किस प्रकार की इच्छा है। शायद तुम अपने भीतर पवित्र आत्मा को कार्य करता हुआ नहीं देख सकते, या शायद तुम कलीसिया में पवित्र आत्मा के कार्य को खोज नहीं सकते, इसलिए तुम आगे के मार्ग के विषय में निराशावादी और हताश हो, और मायूसी से भरे हुए हो। विशेष रूप से, जो पहले बड़े—बड़े योद्धा थे वे सब गिर गए हैं—क्या यह सब तुम्हारे लिए आघात नहीं है? तुम्हें इन सब बातों को कैसे देखना चाहिए? क्या तुममें विश्वास है या नहीं? क्या तुम आज के कार्य को पूरी तरह से समझते हो या नहीं? ये बातें निर्धारित कर सकती हैं कि तुम मार्ग के अंतिम चरण में अच्छी तरह से चलने में समर्थ हो या नहीं(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, अपने मार्ग के अंतिम दौर में तुम्हें कैसे चलना चाहिए)। परमेश्वर के वचन पढ़कर, मुझे समझ आया कि आज हमने जो उत्पीड़न और प्रतिकूलता झेली है, वह परमेश्वर की ओर से हम सबके लिए एक सबक है। इस पथ के अंतिम चरण का अनुसरण करना आसान नहीं है, इसलिए हमें अटूट आस्था रखते हुए और अधिक सत्य से युक्त होना होगा। बहुत से भा‌‌‌ई-बहन गिरफ्तार हो चुके थे, मेरे अगल-बगल के बड़े-बड़े योद्धा धराशायी हो चुके थे, और बहुत से भाई-बहन दूर-दराज के इलाकों में पलायन कर चुके थे, इस वजह से मैं निराशा के अंधकार में डूबकर अपनी आस्था गँवा चुकी थी। क्या मैं शैतान की कपटी चाल में नहीं फंस गई थी? परमेश्वर जो कुछ भी करता है, बहुत सोच-विचार के बाद ही करता है, लेकिन परमेश्वर के इरादे को समझने के बजाय, मैं अपनी ही धारणाओं और कल्पनाओं में जीती रही और जो कुछ हुआ उसे नकारात्मक दृष्टिकोण से देखती रही। यह परमेश्वर के इरादे के अनुसार नहीं था! मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, “हे परमेश्वर, मुझे समझ में नहीं आता कि कलीसिया को ऐसी गंभीर परिस्थितियों का सामना क्यों करना पड़ रहा है, और तूने हमें कम्युनिस्ट पार्टी की बेतहाशा गिरफ्तारी और उत्पीड़न सहने करने के लिए क्यों छोड़ दिया है। हे परमेश्वर, मुझे राह दिखा ताकि मैं तेरे इरादे समझ सकूँ तथा भ्रामकता और निराशा की इस स्थिति से बाहर निकल सकूँ।”

खोज के दौरान, मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा जिसने मुझे बहुत गहराई तक प्रभावित किया। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं : “वह सब जो परमेश्वर करता है आवश्यक है और असाधारण महत्व रखता है, क्योंकि वह मनुष्य में जो कुछ करता है उसका सरोकार उसके प्रबंधन और मनुष्यजाति के उद्धार से है। स्वाभाविक रूप से, परमेश्वर ने अय्यूब में जो कार्य किया वह भी कोई भिन्न नहीं है, फिर भले ही परमेश्वर की नजरों में अय्यूब पूर्ण और खरा था। दूसरे शब्दों में, परमेश्वर चाहे जो करता हो या वह जो करता है उसे चाहे जिन उपायों से करता हो, क़ीमत चाहे जो हो, उसका ध्येय चाहे जो हो, किंतु उसके कार्यकलापों का उद्देश्य नहीं बदलता है। उसका उद्देश्य है मनुष्य में परमेश्वर के वचनों, और साथ ही मनुष्य से परमेश्वर की अपेक्षाओं और उसके प्रति परमेश्वर के इरादों को आकार देना; दूसरे शब्दों में, यह मनुष्य के भीतर उस सबको आकार देना है जिसे परमेश्वर अपने सोपानों के अनुसार सकारात्मक मानता है, जो मनुष्य को परमेश्वर का हृदय समझने और परमेश्वर का सार बूझने में समर्थ बनाता है, और मनुष्य को परमेश्वर की संप्रभुता और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण करने देता है, इस प्रकार मनुष्य को परमेश्वर का भय मानना और बुराई से दूर रहना प्राप्त करने देता है—यह सब परमेश्वर जो करता है उसमें निहित उसके उद्देश्य का एक पहलू है। दूसरा पहलू यह है कि चूँकि शैतान परमेश्वर के कार्य में विषमता और सेवा की वस्तु है, इसलिए मनुष्य प्रायः शैतान को दिया जाता है; यह वह साधन है जिसका उपयोग परमेश्वर लोगों को शैतान के प्रलोभनों और हमलों में शैतान की दुष्टता, कुरूपता और घृणास्पदता को देखने देने के लिए करता है, इस प्रकार लोगों में शैतान के प्रति घृणा उपजाता है और उन्हें वह जानने और पहचानने में समर्थ बनाता जो नकारात्मक है। यह प्रक्रिया उन्हें शैतान के नियंत्रण से और आरोपों, विघ्नों और हमलों से धीरे-धीरे स्वयं को स्वतंत्र करने देती है—जब तक कि परमेश्वर के वचनों, परमेश्वर के प्रति अपने ज्ञान और समर्पण, और परमेश्वर के प्रति अपनी आस्था और परमेश्वर का भय मानने की बदौलत वे शैतान के हमलों और आरोपों पर विजय नहीं पा लेते हैं; केवल तभी वे शैतान की सत्ता से पूर्णतः मुक्त कर दिए गए होंगे। लोगों की मुक्ति का अर्थ है कि शैतान को हरा दिया गया है; इसका अर्थ है कि वे अब और शैतान के मुँह का भोजन नहीं हैं—उन्हें निगलने के बजाय, शैतान ने उन्हें छोड़ दिया है। ऐसा इसलिए है क्योंकि ऐसे लोग खरे हैं, क्योंकि उनमें परमेश्वर के प्रति आस्था, समर्पण और भय है, और क्योंकि उन्होंने शैतान के साथ पूरी तरह नाता तोड़ लिया है। वे शैतान को लज्जित करते हैं, वे शैतान को कायर बना देते हैं, और वे शैतान को पूरी तरह हरा देते हैं। परमेश्वर का अनुसरण करने में उनका दृढ़विश्वास, और परमेश्वर के प्रति समर्पण और उसका भय शैतान को हरा देता है, और उन्हें पूरी तरह छोड़ देने के लिए शैतान को विवश कर देता है। केवल इस जैसे लोग ही परमेश्वर द्वारा सच में प्राप्त किए गए हैं, और यही मनुष्य को बचाने में परमेश्वर का चरम उद्देश्य है। यदि वे बचाए जाना चाहते हैं, और परमेश्वर द्वारा पूरी तरह प्राप्त किए जाना चाहते हैं, तो उन सभी को जो परमेश्वर का अनुसरण करते हैं शैतान के बड़े और छोटे दोनों प्रलोभनों और हमलों का सामना करना ही चाहिए। जो लोग इन प्रलोभनों और हमलों से उभरकर निकलते हैं और शैतान को पूरी तरह परास्त कर पाते हैं ये वे लोग हैं जिन्हें परमेश्वर द्वारा बचा लिया गया है(वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर II)। परमेश्वर के वचन बहुत स्पष्ट हैं। कलीसिया का उत्पीड़न और अनेक भाई-बहनों की गिरफ्तारी परमेश्वर की इच्छा से ही हुई है। एक तरफ तो, वह हर तरह के लोगों को उजागर करता है और दूसरी ओर, वह उन लोगों को पूर्ण करता है जो उसमें विश्वास रखते हैं। वह इस परिस्थिति का उपयोग लोगों के मन तक अपनी बात पहुँचाने के लिए करता है ताकि वे सत्य प्राप्त कर वास्तविकता में प्रवेश करें। परमेश्वर का कार्य लोगों को पाप और शैतान के प्रभाव से बचाकर, अंततः उन्हें अपने राज्य में लाना है। शैतान और राक्षसी शासक इतने से ही संतुष्ट नहीं होते, वे परमेश्वर के चुने हुए लोगों को बेतहाशा गिरफ्तार कर उन्हें सताते हैं, हर तरह से परमेश्वर से होड़ करते हैं और परमेश्वर के कार्य में बाधा डालने की कोई जुगत नहीं छोड़ते। वे परमेश्वर का अनुसरण करने वाले हर व्यक्ति पर आरोप लगाते हैं और हमला करते हैं, ताकि लोग परमेश्वर को नकारें, उसे धोखा दें और उनके साथ ही नरक में दंडित किए जाएँ। शैतान के तरह-तरह के प्रलोभनों और हमलों के चलते, परमेश्वर के चुने हुए लोग जो उस पर निर्भर रहते हैं और अपनी गवाही में दृढ़ रहकर शैतान को अपमानित करते हैं, केवल वही बचाए जा सकते हैं। मगर जो लोग परमेश्वर को धोखा देकर शैतान से मिल जाते हैं और उसके आगे घुटने टेक देते हैं, वे लोग परमेश्वर द्वारा उद्धार से वंचित रह जाते हैं और उन्हें उजागर कर हटा दिया जाता है। सत्य के इस पहलू को समझने पर, मेरा मन एकदम रोशन और स्पष्ट हो गया। शैतान की राजनीतिक सत्ता के हाथों गिरफ्तारी और उत्पीड़न उद्धार पाने का एक आवश्यक अंग था। मेरा कायर बनकर भयभीत होना और ऐसी परिस्थिति से बच निकलने की सोचना व्यर्थ था; मुझे और अधिक सत्य से युक्त होकर परमेश्वर के लिए अपनी गवाही में अडिग रहना चाहिए था।

इसके बाद, मैंने परमेश्वर के और भी वचन पढ़े : “बड़े लाल अजगर के देश में मैंने कार्य का एक ऐसा चरण पूरा कर लिया है जिसकी थाह मनुष्य नहीं पा सकते, जिसके कारण वे हवा में डोलने लगते हैं, जिसके बाद कई लोग हवा के वेग में चुपचाप बह जाते हैं। सचमुच, यह एक ऐसा ‘खलिहान’ है जिसे मैं साफ करने वाला हूँ, यही मेरी लालसा है और यही मेरी योजना है। हालाँकि मेरे कार्य करते समय कई कुकर्मी लोग आ घुसे हैं, लेकिन मुझे उन्हें खदेड़ने की कोई जल्दी नहीं है। इसके बजाय, सही समय आने पर मैं उन्हें तितर-बितर कर दूँगा। केवल इसके बाद ही मैं जीवन का सोता बनूँगा, और जो लोग मुझसे सच में प्रेम करते हैं, उन्हें अपने से अंजीर के पेड़ का फल और कुमुदिनी की सुगंध प्राप्त करने दूँगा। जिस देश में शैतान का डेरा है, जो गर्दो-गुबार का देश है, वहाँ शुद्ध सोना नहीं रहा, सिर्फ रेत ही रेत है, और इसलिए, इन हालात को देखते हुए, मैं कार्य का ऐसा चरण पूरा करता हूँ। तुम्हें पता होना चाहिए कि मैं जो प्राप्त करता हूँ, वह रेत नहीं, शुद्ध, परिष्कृत सोना है। कुकर्मी मेरे घर में कैसे रह सकते हैं? मैं लोमड़ियों को अपने स्वर्ग में परजीवी कैसे बनने दे सकता हूँ। मैं इन चीजों को खदेड़ने के लिए हर संभव तरीका अपनाता हूँ। मेरे इरादे प्रकट होने से पहले कोई यह नहीं जानता कि मैं क्या करने वाला हूँ। इस अवसर का लाभ उठाते हुए मैं उन कुकर्मियों को दूर खदेड़ देता हूँ, और वे मेरी उपस्थिति छोड़कर जाने के लिए मजबूर हो जाते हैं। मैं कुकर्मियों के साथ यही करता हूँ, लेकिन फिर भी उनके लिए एक ऐसा दिन होगा, जब वे मेरे लिए सेवा कर पाएँगे(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, सात गर्जनाएँ गरजती हैं—भविष्यवाणी करती हैं कि राज्य का सुसमाचार पूरे ब्रह्मांड में फैल जाएगा)। परमेश्वर के वचनों से मैंने यह समझा : बड़ा लाल अजगर परमेश्वर के कार्य में एक सेवा-निमित्त है। परमेश्वर अपने चुने हुए लोगों को पूर्ण बनाने के लिए बड़े लाल अजगर द्वारा गिरफ्तारियों और उत्पीड़न का उपयोग सेवा के रूप में करता है, और साथ ही बुरे लोगों और छद्म-विश्वासियों को उजागर करता है, लोगों को उनकी किस्म के अनुसार छाँटता है। परमेश्वर का कार्य इतना सर्वशक्तिमत्ता और बुद्धिमत्तापूर्ण है! वह बड़े लाल अजगर द्वारा बेतहाशा उत्पीड़न और गिरफ्तारियों का उपयोग लोगों को पूर्ण बनाने, उन्हें उजागर करने और हटाने के लिए करता है। गेहूँ, खरपतवार, सच्चे विश्वासी और झूठे विश्वासी—वह इस प्रतिकूल परिस्थिति के बीच एक-एक कर उन सभी को उजागर करता है। जो लोग परमेश्वर में सच्चा विश्वास रखकर सत्य से प्रेम करते हैं, वे भले ही कष्ट सहकर मर जाएँ, वे अंत तक परमेश्वर का अनुसरण करते हुए अपनी गवाही में अडिग रहते हैं। जो लोग परमेश्वर में सच्चा विश्वास नहीं रखते और जिनमें कोई मानवता नहीं होती, वे हर तरह की परिस्थिति में शैतान से मिलकर उसके सामने घुटने टेक देते हैं। ऐसे लोग ही खरपतवार होते हैं जिन्हें परमेश्वर अपने अंत के दिनों के कार्य में उजागर करता है; वही लोग हटा दिए जाते हैं। गिरफ्तार किए गए लोगों में से मुझे एक युवा भाई का ख्याल आया। पुलिस ने जलती सिगरेट से उसका शरीर दाग दिया था और उस पर कप भर-भरकर खौलता हुआ पानी डाल दिया था। इसकी कल्पना-मात्र से मेरी रूह काँप जाती है, उस युवा ने सारी यातनाएँ सहीं, मगर परमेश्वर को धोखा नहीं दिया। पुलिसवालों ने उसका मन बदलने की लाख कोशिश की, मगर उसने सत्य के जरिए उनकी तमाम बातों का खंडन कर दिया। उसे जेल जाना मंजूर था, लेकिन उसने न तो परमेश्वर को नकारा और न ही उसे धोखा दिया। एक और बहन थी जिसे निर्वस्त्र कर दिया गया था, पुलिस ने उसे एक अंधेरे कमरे में बिजली के डंडों से झटके दिए; उसके लिए मर जाना कम दर्दनाक होता। लेकिन परमेश्वर को धोखा देने के बजाय उसे मरना मंजूर था। गिरफ्तार होने के बाद, कई भाई-बहन परमेश्वर को धोखा देने के बजाय मर जाना पसंद करते। उन्होंने परमेश्वर के लिए एक शानदार गवाही देकर शैतान को अपमानित किया। भले ही उन्हें गिरफ्तार कर उनका उत्पीड़न किया गया और उन्हें यातना झेलनी पड़ी, लेकिन परमेश्वर के कर्मों को देखकर उनकी आस्था पूर्ण हो गई। मैंने देखा कि परमेश्वर अपनी बुद्धि का प्रयोग शैतान के कपटपूर्ण षड्यंंत्रों के आधार पर करता है। बड़े लाल अजगर ने परमेश्वर के विश्वासियों को सताने के लिए हर तरह के हथकंडे अपनाए ताकि लोग परमेश्वर को धोखा देंं और उसे नकारें लेकिन उसके सारे प्रयास व्यर्थ गए। एक ओर तो परमेश्वर ने इस परिस्थिति का इस्तेमाल लोगों के एक समूह को विजेता के रूप में पूर्ण बनाने, और राज्य के नेक सैनिक बनाने के लिए किया, दूसरी ओर, उन छद्म-विश्वासियों और दुष्ट लोगों को उजागर कर हटाने के लिए किया जो पेट की आग बुझाने के लिए रोटी तलाशते हैं। मैंने सोचा कि डिंग जी और शिया यु अपनी गिरफ्तारी से पहले, खुद को त्यागने और खपाने को तैयार थे और बार-बार यह बात कहते थे कि एक विश्वासी को परमेश्वर के लिए अपनी गवाही में अडिग रहना चाहिए। देखने में ऐसा लगता था कि वे ईमानदारी से परमेश्वर में विश्वास रखते हैं, लेकिन जैसे ही उन्हें गिरफ्तार कर प्रताड़ित किया गया, उन्होंने खुद को बचाने के लिए परमेश्वर को धोखा दे दिया और भाई-बहनों से दगा कर कम्युनिस्ट पार्टी के प्यादे बन बैठे। ऐसे ही दुष्ट लोगों को परमेश्वर ने उजागर किया था। अगर पहले कोई कहता कि वे दुष्ट लोग हैं और परमेश्वर को धोखा देंगे, तो मैं इस पर कतई यकीन न करती। लेकिन जब तथ्य उजागर हुए, तो मैंने उनका प्रकृति सार साफ तौर पर देखा। वे आम तौर पर जो बोलते थे, वह सारे शब्द और धर्म-सिद्धांत थे, सभी खोखले सिद्धांत थे। फिर मैंने अपने बारे में सोचा। अतीत में, मैं परमेश्वर के आगे यह संकल्प ले चुकी थी कि चाहे परिस्थितियाँ कितनी भी प्रतिकूल क्यों न हों, मैं हमेशा अपना कर्तव्य पूरा करने और उसे संतुष्ट करने में लगी रहूँगी, और मुझे लगता था कि मेरा आध्यात्मिक कद बहुत बड़ा है। लेकिन जब खतरा और मुसीबतें सामने दिखीं, तो मैं खौफ और डर की स्थिति में जीते हुए अपनी आस्था गँवा बैठी थी। आखिरकार मुझे एहसास हुआ कि मेरा कद बहुत छोटा है।

बाद में, मुझे समझ आया कि डिंग जी और शिया यु कैसे नाकाम हुए। मुझे उनकी नाकामी से सबक लेना था। मुझे क्यों लगा कि उनका यहूदा बनकर परमेश्वर को धोखा देना आश्चर्यजनक है और जिसे स्वीकारना कठिन है? इस पर बारीकी से विचार करने पर, मैंने पाया कि मेरा दृष्टिकोण ही गलत है। मुझे लगता था कि चूँकि वे अगुआ हैं, उन्होंने अपने कर्तव्य निर्वहन के लिए अपने परिवारों और करियर को त्यागा है, और उनकी संगति भी आम तौर पर बहुत अच्छी रही है, उनमें सत्य की समझ और वास्तविकता होगी, उनका आध्यात्मिक कद भी भाई-बहनों से बड़ा है, तो वे लोग इतनी आसानी से परमेश्वर को धोखा नहीं देंगे। लेकिन उन्हें आँकने का मेरा मापदंड ही गलत था। मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा : “जब कोई व्यक्ति भाई-बहनों द्वारा अगुआ के रूप में चुना जाता है या परमेश्वर के घर द्वारा कोई निश्चित कार्य करने या कोई निश्चित कर्तव्य निभाने के लिए उन्नत किया जाता है, तो इसका यह मतलब नहीं कि उसकी कोई विशेष हैसियत या पहचान है या वह जिन सत्यों को समझता है, वे अन्य लोगों की तुलना में अधिक गहरे और संख्या में अधिक हैं—तो ऐसा बिल्कुल भी नहीं है कि यह व्यक्ति परमेश्वर के प्रति समर्पण करने में सक्षम है और उसे धोखा नहीं देगा। स्वाभाविक तौर पर, इसका यह मतलब भी नहीं है कि ऐसे लोग परमेश्वर को जानते हैं और परमेश्वर का भय मानते हैं। वास्तव में उन्होंने इसमें से कुछ भी हासिल नहीं किया है; उन्नति और विकास का सीधे-सीधे अर्थ केवल उन्नति और विकास ही है, यह परमेश्वर के विधान या उसके द्वारा सही ठहराए जाने के समतुल्य नहीं है। उनकी उन्नति और विकास का सीधा-सा अर्थ है कि उन्हें उन्नत किया गया है, और वे विकसित किए जाने की प्रतीक्षा कर रहे हैं। और इस विकसित किए जाने का अंतिम परिणाम इस बात पर निर्भर करता है कि क्या यह व्यक्ति सत्य का अनुसरण करता है और क्या वह सत्य के अनुसरण का रास्ता चुनने में सक्षम है। इस प्रकार, जब कलीसिया में किसी को अगुआ बनने के लिए उन्नत और विकसित किया जाता है, तो उसे सीधे अर्थ में उन्नत और विकसित किया जाता है; इसका यह मतलब नहीं कि वह पहले से ही योग्य अगुआ है, या सक्षम अगुआ है, कि वह पहले से ही अगुआ का काम करने में सक्षम है, और वास्तविक कार्य कर सकता है—ऐसा नहीं है(वचन, खंड 5, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (5))। परमेश्वर के वचनों से मुझे यह एहसास हुआ : जब किसी को अगुआ बनने के लिए चुना जाता है, तो वह केवल प्रशिक्षण का एक अवसर होता है। इसका यह मतलब बिल्कुल नहीं है कि उनमें सत्य की समझ और वास्तविकता है। इसके अलावा, वे अंत में अडिग रह पाते हैं या नहीं, यह उनका प्रकृति सार और जिस मार्ग पर वे चल रहे हैं, उससे निर्धारित होता है। इसका उनके अगुआ होने या न होने से कोई लेना-देना नहीं है। चाहे किसी का रुतबा कितना भी ऊँचा हो, वह कितना भी त्याग करता और खुद को खपाता हुआ दिखे, चाहे वह कितना भी उत्साही और कष्ट सहने में सक्षम हो, अगर विपरीत परिस्थितियाँ आने पर, वह केवल निजी हित साधता है, उसके दिल में परमेश्वर के लिए कोई जगह न हो, और वह कभी भी, कहीं भी परमेश्वर को धोखा दे सकता हो, तो उसमें सत्य वास्तविकता नहीं है। पहले मुझे लगता था कि जिन अगुआओं और कार्यकर्ताओं को संगति करना आता है वे परमेश्वर के इरादों और उसकी अपेक्षाओं को समझते हैं, उनका आध्यात्मिक कद भाई-बहनों से बड़ा होता है, और वे परीक्षणों के समय अडिग रह सकते हैं। ये सभी बातें मेरी धारणाएँ और कल्पनाएँ मात्र थीं। अब मैं समझ गई कि किसी में सत्य वास्तविकता है या नहीं, यह मुख्यतः इस बात पर निर्भर करता है कि वह जिस ज्ञान की संगति करता है, क्या वह उसे स्वयं भी जीता है या नहीं। चाहे उनके मुँह से कितने भी अच्छे शब्द क्यों न निकलें, अगर वे उन्हें जी नहीं सकते, तो वे जो संगति कर रहे हैं वह सिर्फ धर्म-सिद्धांत है; यह अव्यावहारिक है, और उनमें वास्तव में सत्य की समझ नहीं है। रुतबा होने का मतलब सत्य वास्तविकता का होना नहीं है, तथा अगुआ होने और रुतबा होने का अर्थ यह नहीं है कि कोई व्यक्ति परमेश्वर को जानकर उसके प्रति समर्पित हो सकता है, उनके परमेश्वर से प्रेम करने और उनमें मानवता होने की बात तो बहुत दूर की है। किसी व्यक्ति का मूल्यांकन करते समय यह नहीं देखना चाहिए कि उसका रुतबा कितना ऊँचा या नीचा है, बल्कि यह देखना चाहिए कि वह वास्तव में क्या जी रहा है। संकट आने पर अगर वह व्यक्ति परमेश्वर के प्रति समर्पण कर सकता है, उसके प्रति वफादार हो सकता है, सच में परमेश्वर को जान सकता है और अहम लम्हों में अपनी जान देकर परमेश्वर को संतुष्ट कर सकता है, तो इसका मतलब है कि उसमें सत्य वास्तविकता है। डिंग जी और शिया यु देखने में तो त्याग करने वाले और खुद को खपाने वाले नजर आते थे, लेकिन जब खतरे का सामना करना पड़ा, तो उन्होंने केवल अपने हितों और अपनी सुरक्षा का सोचा, परमेश्वर के प्रति वफादार रहकर वे उसके घर के हितों की रक्षा नहीं कर सके। वे वास्तव में सत्य का अनुसरण करने वाले लोग बिल्कुल नहीं थे। उन्होंने इस इरादे से त्याग किया, खुद को खपाया, कष्ट सह सके और कीमत चुकाई ताकि उन्हें आशीष मिल सके; वे परमेश्वर से लाभ पाना चाहते थे। जब उन्हें ऐसी परिस्थितियों का सामना करना पड़ा जहाँ उनके निजी हित खतरे में पड़ गए, तो वे बिना किसी हिचकिचाहट के परमेश्वर को त्यागने को तैयार हो गए। वे परमेश्वर में सच्चा विश्वास रखने वाले लोग नहीं थे। उनके त्याग और खुद को खपाने में ईमानदारी नहीं थी; बल्कि वे तो परमेश्वर से सौदेबाजी कर रहे थे। इसके अलावा, उनके परमेश्वर को धोखा देने का एक और भी कारण था, और वह यह कि वे अपने शरीर से बहुत मोह करते थे, कारावास की पीड़ा को सहन नहीं करना चाहते थे और मौत से डरते थे। इसलिए वे यहूदा बन गए। उनकी असफलता के कारणों पर विचार करते हुए, मैंने सोचा कि मैं भी कितनी कायर हूँ, मुझे भी यह डर था कि अगर किसी दिन मुझे गिरफ्तार कर लिया गया और मैं यातना सहन न कर पाई और परमेश्वर को धोखा दे दिया, तो मैं क्या करूँगी? मैंने मन ही मन परमेश्वर से प्रार्थना की, “हे परमेश्वर, उन सत्यों की ओर मेरा मार्गदर्शन कर जिनसे मुझे युक्त होना चाहिए ताकि मैं तुझे धोखा न दूँ।”

खोज के दौरान, मैंने परमेश्वर के वचनों का यह अंश पढ़ा : “जब ऐसा कुछ होता है, जिसमें तुम्हें कठिनाई झेलने की आवश्यकता होती है, तो उस समय तुम्हें समझना चाहिए कि परमेश्वर के इरादे क्या हैं, और कैसे तुम्हें उसके इरादों के प्रति विचारशील रहना चाहिए। तुम्हें स्वयं को संतुष्ट नहीं करना चाहिए : पहले अपने आप को एक तरफ रख दो। देह से अधिक अधम कोई और चीज नहीं है। तुम्हें परमेश्वर को संतुष्ट करने की कोशिश करनी चाहिए, और अपना कर्तव्य पूरा करना चाहिए। ऐसे विचारों के साथ, परमेश्वर इस मामले में तुम पर अपनी विशेष प्रबुद्धता लाएगा, और तुम्हारे हृदय को भी आराम मिलेगा। जब तुम्हारे साथ कुछ घटित होता है, चाहे वह बड़ा हो या छोटा, तो सबसे पहले तुम्हें अपने आपको एक तरफ रखना और देह को सभी चीजों में सबसे अधम समझना चाहिए। जितना अधिक तुम देह को संतुष्ट करोगे, यह उतनी ही अधिक स्वतंत्रता लेता है; यदि तुम इस समय इसे संतुष्ट करते हो, तो अगली बार यह तुमसे और अधिक की माँग करेगा। जब यह जारी रहता है, लोग देह को और अधिक प्रेम करने लग जाते हैं। देह की हमेशा असंयमित इच्छाएँ होती हैं; यह हमेशा चाहता है कि तुम इसे संतुष्ट और भीतर से प्रसन्न करो, चाहे यह उन चीजों में हो जिन्हें तुम खाते हो, जो तुम पहनते हो, या जिनमें आपा खो देते हो, या स्वयं की कमज़ोरी और आलस को बढ़ावा देते हो...। जितना अधिक तुम देह को संतुष्ट करते हो, उसकी कामनाएँ उतनी ही बड़ी हो जाती हैं, और उतना ही अधिक वह ऐयाश बन जाता है, जब तक कि वह उस स्थिति तक नहीं पहुँच जाता, जहाँ लोगों का देह और अधिक गहरी धारणाओं को आश्रय देता है, और परमेश्वर के खिलाफ विद्रोह करता है और स्वयं को महिमामंडित करता है, और परमेश्वर के कार्य के बारे में संशयात्मक हो जाता है। जितना अधिक तुम देह को संतुष्ट करते हो, उतनी ही बड़ी देह की कमज़ोरियाँ होती हैं; तुम हमेशा महसूस करोगे कि कोई भी तुम्हारी कमज़ोरियों के साथ सहानुभूति नहीं रखता, तुम हमेशा विश्वास करोगे कि परमेश्वर बहुत दूर चला गया है, और तुम कहोगे : ‘परमेश्वर इतना निष्ठुर कैसे हो सकता है? वह लोगों का पीछा क्यों नहीं छोड़ देता?’ जब लोग देह को संतुष्ट करते हैं, और उससे बहुत अधिक प्यार करते हैं, तो वे अपने आपको बरबाद कर बैठते हैं(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल परमेश्वर से प्रेम करना ही वास्तव में परमेश्वर पर विश्वास करना है)। परमेश्वर के वचनों से मुझे समझ में आया कि शरीर शैतान का है। शैतान ने हमें बुरी तरह भ्रष्ट कर दिया है, और हम “हर व्यक्ति अपनी सोचे बाकियों को शैतान ले जाए” के शैतानी विष के अनुसार अपना जीवन जी रहे हैं। इस तरह जीने वाला इंसान केवल अपने बारे में सोचता है और जो कुछ भी करता है, उसमें पहले केवल अपना हित देखता है। उनकी काया को पीड़ा न सहनी पड़े, उसके लिए वे ऐसे काम कर सकते हैं जो उनकी अंतरात्मा और मानवता के विरुद्ध हो। जैसे, जब लोगों को कम्युनिस्ट पार्टी ने गिरफ्तार कर तरह-तरह की यातनाएँ दीं और उन्हें जेल में डाल दिया, तो ऐसे में अगर वे हमेशा यही सोचते रहे हों कि उन्हें कम पीड़ा सहन करनी पड़े या उनकी पिटाई न हो और जेल न जाना पड़े, तो वे भाई-बहनों से दगा करने और परमेश्वर को धोखा देने से भी नहीं चूकेंगे। ऐसे में, उनके देह हित तो सध जाएंगे, लेकिन उनका जीवन तबाह हो जाएगा, वे हमेशा के लिए परमेश्वर द्वारा उद्धार से वंचित रह जाते और दंड के भागी बनने के लिए शैतान के साथ नरक में जा गिरते। जब अपने बारे में सोचा, तो मुझे लगा कि मैंने भी तो अपने काया-सुख को ही अधिक प्राथमिकता दी है, हमेशा अपनी सुविधा के अनुसार ही परमेश्वर में विश्वास रखना चाहा है और नहीं चाहा कि मेरी काया किसी तरह की पीड़ा सहे। आरामदायक माहौल में तो मैं अपना कर्तव्य निभा सकती थी, लेकिन जब गिरफ्तारी और उत्पीड़न का खतरा सामने दिखा, तो मैं कायर और डरपोक बन गई, डर लगा कि मुझे गिरफ्तार कर यातना दी जाएगी और जेल में ठूँस दी जाऊँगी। हर दिन मैं डर-डर कर जी रही थी। शरीर के प्रति मेरे लगाव और पीड़ा न सहने की मेरी कमजोरी का इस्तेमाल कर, शैतान मुझे परमेश्वर के साथ विश्वासघात करने को मजबूर कर रहा था। मैंने प्रभु यीशु के बारे में सोचा जिसने प्रकट होकर अपने देहधारण के दौरान काम किया। जब उसे पता चला कि उसे सूली पर चढ़ाया जाने वाला है, तो पीड़ा और दुर्बलता के बावजूद, उसने परमेश्वर की इच्छा के आगे समर्पित होकर, हर प्रकार का अपमान, दर्द, उपहास और बदनामी सही, कोड़े खाए, काँटों का ताज पहनना, एक-एक कदम चलकर उस स्थान पर पहुँचा जहाँ उसे सूली पर चढ़ाया जाना था, और आखिरकार उसे सूली पर चढ़ा दिया गया। दूसरी बार जब परमेश्वर देहधारी हुआ, तो कम्युनिस्ट पार्टी ने बुरी तरह से उसका पीछा किया और उसका उत्पीड़न किया, और ऐसे माहौल में भी, उसने सत्य व्यक्त किया और मानवता को बचाने का कार्य किया। मानवता को बचाने के लिए, परमेश्वर ने बिना किसी शिकायत के यह सारा दुख सहन किया। मानवता के लिए परमेश्वर का प्रेम बहुत महान है! जबकि मैं परमेश्वर में विश्वास इसलिए रखती थी ताकि मैं बचाई जा सकूँ, लेकिन जैसे ही थोड़ा-सा कष्ट सहना पड़ा, तो मैं परमेश्वर पर दोष मढ़ने और उसे गलत समझने लगी। मैं बेहद स्वार्थी, नीच और मानवता से रहित थी!

कुछ समय बाद, मुझे परमेश्वर के वचनों में अभ्यास करने का मार्ग मिल गया। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं : “जब तुम कष्टों का सामना करते हो, तो तुम्हें देह की चिंता छोड़ने और परमेश्वर के विरुद्ध शिकायतें न करने में समर्थ होना चाहिए। जब परमेश्वर तुमसे अपने आप को छिपाता है, तो उसका अनुसरण करने के लिए तुम्हें अपने पिछले प्रेम को डिगने या मिटने न देते हुए उसे बनाए रखने के लिए विश्वास रखने में समर्थ होना चाहिए। परमेश्वर चाहे कुछ भी करे, तुम्हें उसकी योजना के प्रति समर्पण करना चाहिए, और उसके विरुद्ध शिकायतें करने के बजाय अपनी देह को धिक्कारने के लिए तैयार रहना चाहिए। जब परीक्षणों से तुम्हारा सामना हो, तो तुम्हें परमेश्वर को संतुष्ट करना चाहिए, भले ही तुम फूट-फूटकर रोओ या अपनी किसी प्यारी चीज से अलग होने के लिए अनिच्छुक महसूस करो। केवल यही सच्चा प्यार और विश्वास है। तुम्हारा वास्तविक आध्यात्मिक कद चाहे जो भी हो, तुममें पहले कठिनाई झेलने की इच्छा और सच्चा विश्वास, दोनों होने चाहिए, और तुममें देह-सुख के खिलाफ विद्रोह करने की इच्छा भी होनी चाहिए। तुम्हें परमेश्वर के इरादे पूरे करने के लिए व्यक्तिगत कठिनाइयों का सामना करने और अपने व्यक्तिगत हितों का नुकसान उठाने के लिए तैयार होना चाहिए। तुम्हें अपने हृदय में अपने बारे में पछतावा महसूस करने में भी समर्थ होना चाहिए : अतीत में तुम परमेश्वर को संतुष्ट करने में असमर्थ थे, और अब, तुम पछतावा कर सकते हो। तुममें इनमें से किसी भी मामले में कमी नहीं होनी चाहिए—इन्हीं चीजों के द्वारा परमेश्वर तुम्हें पूर्ण बनाएगा। अगर तुम इन कसौटियों पर खरे नहीं उतर सकते, तो तुम्हें पूर्ण नहीं बनाया जा सकता(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जिन्हें पूर्ण बनाया जाना है उन्हें शोधन से गुजरना होगा)। परमेश्वर के वचनों पर विचार करते हुए, मैंने यह समझा : परमेश्वर अंत के दिनों में मनुष्य का न्याय करने और उसे शुद्ध करने का कार्य करता है। वह हमारे शोधन के लिए हर तरह की कठिन परिस्थितियाँ पैदा करता है, ताकि हम अपने भ्रष्ट स्वभाव और गलत इरादों को जान सकें, अपने शरीर का मोह त्याग सकें, अपने अंदर की अनावश्यक इच्छाएँ छोड़कर, परमेश्वर के प्रति समर्पित हो सकें, फिर वह चाहे जो करे, शारीरिक कष्ट सहने के लिए तैयार रहें और केवल परमेश्वर को संतुष्ट करने का भाव मन में रखें; केवल ऐसे लोग ही उसके द्वारा पूर्ण बनाए जा सकते हैं। परमेश्वर मनुष्य की पीड़ा सहने की इच्छा का शोधन करने के लिए हर तरह की कठिन परिस्थितियों का निर्माण करता है, वह मनुष्य की आस्था, प्रेम और परमेश्वर के प्रति सच्चे समर्पण को पूर्ण करने के लिए ऐसा करता है। लोग आरामदायक परिस्थितियों में ऐसी सत्य वास्तविकताएँ प्राप्त नहीं कर सकते। इसका स्पष्ट उदाहरण है कि इस बार कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा गिरफ्तारी और उत्पीड़न के हालात के अनुभव ने मुझे मेरा असली आध्यात्मिक कद साफ-साफ दिखा दिया। मैंने देखा कि मुझमें परमेश्वर के प्रति कोई आस्था नहीं थी, मुझे अपने स्वार्थी और घृणित भ्रष्ट स्वभाव के बारे में भी थोड़ा-बहुत जानने को मिला। मैं समझ गई कि परमेश्वर ने कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा बेतहाशा गिरफ्तारियों और उत्पीड़न का उपयोग लोगों के एक समूह को विजेता के रूप में पूर्ण करने के लिए किया, उसने इसका इस्तेमाल छद्म-विश्वासियों और दुष्ट लोगों को उजागर करने और उन्हें हटाने के लिए भी किया। मैंने देखा कि परमेश्वर अपनी बुद्धि का उपयोग शैतान की चालाक योजना के आधार पर करता है। ये ऐसे सत्य हैं जो मुझे आरामदायक माहौल में नहीं मिल पाते। मैंने कम्युनिस्ट पार्टी के परमेश्वर के प्रतिरोध की दुष्ट प्रकृति को और अधिक स्पष्टता से देखा। मेरे मन में कम्युनिस्ट पार्टी के प्रति घृणा पैदा हो गई, और परमेश्वर का अनुसरण करने के लिए मेरा निश्चय और भी दृढ़ हो गया। मैं शैतान को अपमानित करने के लिए अपना कर्तव्य और अच्छे से निभाने को तैयार थी। मुझे “जीवन की गवाही” गीत के बोल याद आ गए : “परमेश्वर की गवाही देने के कारण मुझे ले लिया जाएगा हिरासत में एक दिन। अपने दिल में मुझे है पता यह पीड़ा है धार्मिकता के लिए। अगर मेरी ज़िंदगी पलक झपकते ही गुज़र जाती है, मुझे फिर भी है फ़ख्र मसीह के पीछे चलने का इस जीवन में उसकी गवाही देने का। अगर मैं राज्य के सुसमाचार का विस्तार देखने के लिए जीवित नहीं रहता, मैं फिर भी ख़ूबसूरत कामनाएं अर्पित करूंगा। अगर मैं उस दिन को नहीं देख पाया जब राज्य असलियत बनता है, फिर भी आज मैं शैतान को शर्मिंदा कर सकता हूं। फिर, खुशी और शांति से भर जाएगा मेरा दिल, मेरा दिल” (मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ)। चुपचाप यह गीत गाते हुए, मैं भावुक होकर रोने लगी, और इससे अंत तक परमेश्वर का अनुसरण करने का मेरा संकल्प और मजबूत हो गया।

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