40. बर्खास्तगी का अनुभव

बिंगकी, चीन

2022 में कलीसिया अगुआ ने मुझे कुछ नए विश्वासियों के सिंचन में लगाया जिनकी काबिलियत काफी अच्छी थी। अंदर से मैं इस बात से खुश थी, लग रहा था कि अगुआ मुझे बहुत मानते होंगे कि उन्होंने अन्य सभी सिंचन कर्ताओं की अपेक्षा मुझे इस कर्तव्य के लिए चुना है, इसका मतलब यह होना चाहिए कि मैं बहुत अच्छा काम कर रही थी। दो महीने बाद चेन डैन नाम की एक नई बहन हमारी टीम में शामिल हुई। उसकी काबिलियत बहुत अच्छी थी, उसके पास समझने की क्षमता थी, और उसने तेजी से प्रगति की। नए विश्वासियों का सिंचन करते समय वह सत्य पर काफी स्पष्ट और गहन ढंग से संगति करती थी, उसमें खुद को भाषा के माध्यम से अच्छी तरह से व्यक्त करने की क्षमता भी थी और वह सुस्पष्ट और सुगठित तरीके से संगति करती थी। मुझे तुरंत खतरे का एहसास हुआ और सोचने लगी, “चेन डैन के पास अच्छी काबिलियत है और वह इतनी तेजी से प्रगति कर रही है। अगर ऐसा ही चलता रहा तो क्या वह मुझसे आगे नहीं निकल जाएगी? अगर ऐसा होता है तो इसका मतलब यह होगा कि मैं उसके जितनी अच्छी नहीं हूँ और फिर मेरा क्या सम्मान रह जाएगा?” इस बात को ध्यान में रखते हुए मैंने मन ही मन संकल्प लिया कि मैं खुद को सत्य से सुसज्जित करने और अपनी अभिव्यक्ति क्षमता सुधारने के लिए कड़ी मेहनत करूँगी, चाहे कुछ भी हो जाए, मैं उसे मुझसे आगे निकलने नहीं दूँगी। लेकिन मैंने चाहे जितनी भी कोशिश की, मेरी प्रगति बहुत कम ही रही। समस्याएँ सुलझाते समय मैं खुद को जितनी अच्छी तरह से व्यक्त करना चाहती थी, मैं उतनी ही असंगत हो जाती थी, यहाँ तक कि पहले से मौजूद अपनी अभिव्यक्ति क्षमता का उपयोग करने में भी असमर्थ हो गई थी। चेन डैन को समस्याएँ सुलझाने के लिए सत्य पर संगति करने में सक्षम देखकर मुझे बहुत निराशा होती थी। कुछ समय बाद चेन डैन को टीम अगुआ चुना गया। मैं ईर्ष्या से भर गई और मुझे लगा कि मेरा आत्मसम्मान चकनाचूर हो गया है। मैं उसे अपने दिल की गहराई से नापसंद करती थी, मुझे लगता था कि उसकी उपस्थिति ने ही मुझे इतना असहज बना दिया है। उसके बाद मैं हर दिन उदास रहती थी, मुझमें कर्तव्य को लेकर उत्साह नहीं बचा था और यहाँ तक कि मैं परमेश्वर से शिकायत करती थी कि उसने मुझे चेन डैन जैसी अच्छी काबिलियत नहीं दी है। कभी-कभी जब वह मेरे लिए कुछ कार्यों की व्यवस्था करती थी तो मैं सहयोग नहीं करती थी और उसके सामने मुँह बना लेती थी। जब वह मेरे सिंचन कार्य में समस्याएँ बताती थी तो मैं प्रतिरोध करती थी और चुभने वाली बातें कह देती थी। बाद में दो और बहनें हमारी टीम में शामिल हो गईं। जब मैंने देखा कि वे मेरे बजाय चेन डैन से मदद मांग रही हैं तो मुझे यह अपने मुँह पर तमाचे जैसा लगा। मैं इस बात से बहुत परेशान थी और इसके लिए उसे यह दोष देती थी कि वह मुझ पर हावी हो गई है, इसलिए उसके प्रति मेरी ईर्ष्या और भी प्रबल हो गई। टीम अगुआ के रूप में चेन डैन सभी विभिन्न कार्यों की देखभाल करने के लिए जिम्मेदार थी। जब काम बहुत बढ़ गया तो उसने मुझसे नए विश्वासियों को विकसित करने में हाथ बँटाने को कहा। मैंने सोचा, “अगर मैं नए विश्वासियों को अच्छी तरह से विकसित करती हूँ तो क्या सारा श्रेय तुम्हें नहीं मिल जाएगा?” इसलिए मैंने मना कर दिया और उससे कहा, “तुम टीम अगुआ हो, नए विश्वासियों को विकसित करना तुम्हारा काम है।” एक सभा के दौरान चेन डैन ने संगति की कि टीम अगुआ होना चुनौतीपूर्ण है और वह इस कर्तव्य से हटने पर विचार कर रही है। यह सुनकर मैंने आत्म-चिंतन करने के बजाय उसकी कठिनाइयों का मजा लिया और मन ही मन उसका मजाक उड़ाया, मैं सोचने लगी, “क्या तुमसे यह उम्मीद नहीं की जाती है कि तुम हर तरह से मुझसे बेहतर हो? तो तुम्हें सब कुछ सँभालना चाहिए।” मैंने भी कई बार अपना इस्तीफा देने की पेशकश की थी। आखिरकार मुझे अपने पद से हटा दिया गया था क्योंकि उसकी क्षमताओं के प्रति मेरी ईर्ष्या टीम पर बुरा प्रभाव डाल रही थी।

अपनी भक्ति के दौरान मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा : “मसीह-विरोधियों द्वारा लोगों का सार्वजनिक दमन, लोगों को निकालना, लोगों के विरुद्ध हमले, और लोगों की समस्याएँ उजागर करना, सब निशाना बनाने के लिए होते हैं। निस्संदेह, वे ऐसे साधनों का उपयोग उन लोगों को निशाना बनाने के लिए करते हैं, जो सत्य का अनुसरण करते हैं और उन को पहचान सकते हैं। इन लोगों को तोड़कर वे अपनी स्थिति मजबूत करने का लक्ष्य हासिल करते हैं। इस तरह से लोगों पर आक्रमण कर उन्हें निकाल देना एक दुर्भावनापूर्ण प्रकृति का कार्य है। उनकी भाषा और बोलने के तरीके में आक्रामकता होती है : उजागर करना, निंदा करना, बदनामी करना और दुष्टतापूर्वक चरित्रहनन करना। यहाँ तक कि वे तथ्यों को तोड़-मरोड़कर पेश करते हैं, सकारात्मक चीजों के बारे में ऐसे बोलते हैं, मानो वे नकारात्मक हों और नकारात्मक चीजों के बारे में ऐसे, मानो वे सकारात्मक हों। इस तरह काले और सफेद को उलटना और सही और गलत को मिश्रित करना मसीह-विरोधियों का लोगों को हराने और उनका नाम खराब करने का लक्ष्य पूरा करता है। कौन सी मानसिकता विरोधियों पर इस आक्रमण और उन्हें निकाल देने को जन्म दे रही है? ज्यादातर समय यह ईर्ष्यालु मानसिकता से आता है। शातिर स्वभाव में ईर्ष्या के साथ तीव्र घृणा रहती है; और अपनी ईर्ष्या के परिणामस्वरूप मसीह-विरोधी लोगों पर आक्रमण करते हैं और उन्हें निकाल देते हैं। इस तरह की स्थिति में, अगर मसीह-विरोधियों को उजागर किया जाता है, उनकी रिपोर्ट की जाती है और वे अपनी हैसियत खो देते हैं और उनके दिमाग पर एक वार होता है; तो वे न तो समर्पण करते हैं और न ही इससे खुश होते हैं, और उनके लिए प्रतिशोध की एक मजबूत मानसिकता बनाना और भी आसान हो जाता है। बदला एक तरह की मानसिकता है, और वह एक तरह का भ्रष्ट स्वभाव भी है। जब मसीह-विरोधी देखते हैं कि किसी ने जो किया है, वह उनके लिए नुकसानदेह है, कि दूसरे उनसे ज्यादा सक्षम हैं, या किसी के कथन और सुझाव उनसे बेहतर या समझदारीपूर्ण हैं, और हर कोई उस व्यक्ति के कथनों और सुझावों से सहमत है, तो मसीह-विरोधी महसूस करते हैं कि उनका पद खतरे में है, उनके दिलों में ईर्ष्या और घृणा पैदा हो जाती है, और वे आक्रमण कर बदला लेते हैं। बदला लेते समय मसीह-विरोधी आम तौर पर अपने लक्ष्य पर पूर्वनिर्धारित वार करते हैं। वे तब तक लोगों पर आक्रमण करने और उन्हें तोड़ने में सक्रिय रहते हैं, जब तक दूसरा पक्ष समर्पण नहीं कर देता। तब जाकर उन्हें लगता है कि उनकी भड़ास निकल गई। लोगों पर आक्रमण और उन्हें निकालने की और क्या अभिव्यक्तियाँ होती हैं? (दूसरों को नीचा दिखाना।) दूसरों को नीचा दिखाना इसे अभिव्यक्त करने के तरीकों में से एक है; चाहे तुम कितना भी अच्छा काम करो, मसीह-विरोधी फिर भी तुम्हें नीचा दिखाएँगे या तुम्हारी निंदा करेंगे, जब तक कि तुम नकारात्मक, कमजोर और खड़े होने में अक्षम नहीं हो जाते। तब वे प्रसन्न होंगे, और उन्होंने अपना लक्ष्य पूरा कर लिया होगा(वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद दो : वे विरोधियों पर आक्रमण करते हैं और उन्हें निकाल देते हैं)। परमेश्वर ने उजागर किया कि मसीह-विरोधियों में क्रूर स्वभाव, ईर्ष्यालु हृदय और रुतबे की तीव्र इच्छा होती है। जब उन्हें अपने आस-पास कोई उनसे बेहतर दिखाई देता है और उनका रुतबा खतरे में पड़ जाता है तो मसीह-विरोधी ईर्ष्यालु हो जाते हैं और बदला लेने की मानसिकता विकसित कर लेते हैं। अपना रुतबा बचाने के लिए वे असहमति रखने वालों को दबाने और बहिष्कृत करने के लिए विभिन्न हथकंडे अपना सकते हैं। मुझे याद आया कि जब चेन डैन नई-नई आई थी तो यह देखकर कि उसकी काबिलियत अच्छी है और वह सभी पहलुओं में मुझसे बेहतर है और टीम के नए सदस्य भी उसकी ओर आकर्षित हो रहे हैं और उसे बहुत सम्मान दे रहे हैं तो मुझे बहुत बुरा लगा था, मैंने मान लिया था कि चेन डैन की वजह से मैं इतनी असहज हो गई हूँ, इसलिए उसके प्रति मेरे मन में जो ईर्ष्या और आक्रोश था, वह बेकाबू होकर फूट पड़ा था। बाद में जब चेन डैन ने मेरे लिए कुछ कार्यों की व्यवस्था की थी तो मैंने सहयोग नहीं किया, उसे रूखी नजरों से देखा और उससे उखड़े लहजे में बात की, जिससे उसकी अवस्था भी प्रभावित हुई थी। कभी-कभी जब हम समस्याओं पर चर्चा कर रहे होते थे तो मैं जानती थी कि चेन डैन की कही बात सिद्धांतों के अनुरूप है, लेकिन मैं जानबूझकर अपने विचारों पर अड़ी रहती थी और उन्हें नहीं छोड़ती थी और दूसरों को भी उसके खिलाफ मेरा साथ देने के लिए उकसाती थी, जिससे काम में देरी हुई। मुझे पता था कि बहुत काम था और चेन डैन टीम अगुआ की भूमिका में नई होने के कारण निश्चित रूप से कई चुनौतियों का सामना कर रही थी, लेकिन ईर्ष्या के कारण मैं जानबूझकर अपना कर्तव्य नहीं निभाना चाहती थी और उसके लिए चीजें मुश्किल बनाने की खातिर उसे नीचे गिराने की कोशिश कर रही थी। इन व्यवहारों पर आत्म-चिंतन करते हुए मैंने पहचाना कि मैं बिल्कुल एक मसीह-विरोधी जैसी ही थी, जिसमें रुतबे की बहुत तीव्र इच्छा थी और मैंने पहचाना कि जब कोई मेरे रुतबे को खतरे में डालता था तो मैं ईर्ष्यालु और प्रतिशोधी हो जाती थी और कलीसिया के काम की पूरी तरह से अवहेलना करती थी और मैंने पहचाना कि मेरा स्वभाव क्रूर था और मुझमें मानवता की कमी थी। मुझे याद आया कि जब मैंने पहली बार इस कर्तव्य में प्रशिक्षण लेना शुरू किया था तो अगुआओं ने हमारा मार्गदर्शन और मदद करने के लिए किसी की विशेष रूप से व्यवस्था की थी, ताकि हम सिद्धांतों को जल्दी से समझ सकें और अपने कर्तव्य अच्छी तरह से पूरा कर सकें। कलीसिया ने मुझे इस तरह से पदोन्नत और विकसित किया था, लेकिन मैंने सही मार्ग का अनुसरण नहीं किया और रुतबा और लाभ खोजती थी, मैं हर तरह से अपने विरोधियों को बाहर करने और कलीसिया के काम को बाधित करने की कोशिश करती थी। मैं वाकई बहुत बुरी थी!

फिर मैंने परमेश्वर के वचनों का एक और अंश पढ़ा : “यदि कोई कहता है कि उसे सत्य से प्रेम है और वह सत्य का अनुसरण करता है, लेकिन सार में, जो लक्ष्य वह हासिल करना चाहता है, वह है अपनी अलग पहचान बनाना, दिखावा करना, लोगों का सम्मान प्राप्त करना और अपने हित साधना, और उसके लिए अपने कर्तव्य का पालन करने का अर्थ परमेश्वर के प्रति समर्पण करना या उसे संतुष्ट करना नहीं है बल्कि शोहरत, लाभ और रुतबा प्राप्त करना है, तो फिर उसका अनुसरण अवैध है। ऐसा होने पर, जब कलीसिया के कार्य की बात आती है, तो उनके कार्य एक बाधा होते हैं या आगे बढ़ने में मददगार होते हैं? वे स्पष्ट रूप से बाधा होते हैं; वे आगे नहीं बढ़ाते। कुछ लोग कलीसिया का कार्य करने का झंडा लहराते फिरते हैं, लेकिन अपनी व्यक्तिगत शोहरत, लाभ और रुतबे के पीछे भागते हैं, अपनी दुकान चलाते हैं, अपना एक छोटा-सा समूह, अपना एक छोटा-सा साम्राज्य बना लेते हैं—क्या इस प्रकार का व्यक्ति अपना कर्तव्य कर रहा है? वे जो भी कार्य करते हैं, वह अनिवार्य रूप से कलीसिया के कार्य को अस्त-व्यस्त और खराब करता है। उनके शोहरत, लाभ और रुतबे के पीछे भागने का क्या परिणाम होता है? पहला, यह इस बात को प्रभावित करता है कि परमेश्वर के चुने हुए लोग सामान्य रूप से परमेश्वर के वचनों को कैसे खाते-पीते हैं और सत्य को कैसे समझते हैं, यह उनके जीवन-प्रवेश में बाधा डालता है, उन्हें परमेश्वर में विश्वास के सही मार्ग में प्रवेश करने से रोकता है और उन्हें गलत मार्ग पर ले जाता है—जो चुने हुए लोगों को नुकसान पहुँचाता है, और उन्हें बरबाद कर देता है। और यह अंततः कलीसिया के साथ क्या करता है? यह गड़बड़ी, खराबी और विघटन है। यह लोगों के शोहरत, लाभ और रुतबे के पीछे भागने का परिणाम है। जब वे इस तरह से अपना कर्तव्य करते हैं, तो क्या इसे मसीह-विरोधी के मार्ग पर चलना नहीं कहा जा सकता? जब परमेश्वर कहता है कि लोग अपनी शोहरत, लाभ और रुतबे को अलग रखें, तो ऐसा नहीं है कि वह लोगों को चुनने के अधिकार से वंचित कर रहा है; बल्कि यह इस कारण से है कि शोहरत, लाभ और रुतबे के पीछे भागते हुए लोग कलीसिया के कार्य और परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन-प्रवेश को अस्त-व्यस्त कर देते हैं, यहाँ तक कि उनका ज्यादा लोगों के द्वारा परमेश्वर के वचनों को खाने-पीने, सत्य को समझने और इस प्रकार परमेश्वर का उद्धार प्राप्त करने पर भी प्रभाव पड़ सकता है। यह एक निर्विवाद तथ्य है। जब लोग अपनी शोहरत, लाभ और रुतबे के पीछे भागते हैं, तो यह निश्चित है कि वे सत्य का अनुसरण नहीं करेंगे और ईमानदारी से अपना कर्तव्य नहीं पूरा करेंगे। वे सिर्फ शोहरत, लाभ और रुतबे की खातिर ही बोलेंगे और कार्य करेंगे, और वे जो भी काम करते हैं, वह बिना किसी अपवाद के इन्हीं चीजों के लिए होता है। इस तरह से व्यवहार और कार्य करना, बिना किसी संदेह के, मसीह-विरोधियों के मार्ग पर चलना है; यह परमेश्वर के कार्य में विघ्न-बाधा डालना है, और इसके सभी विभिन्न परिणाम राज्य के सुसमाचार के प्रसार और कलीसिया के भीतर परमेश्वर की इच्छा पूरी करने में बाधा डालना है। इसलिए, यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि शोहरत, लाभ और रुतबे के पीछे भागने वालों द्वारा अपनाया जाने वाला मार्ग परमेश्वर के प्रतिरोध का मार्ग है। यह उसका जानबूझकर किया जाने वाला प्रतिरोध है, उसे नकारना है—यह परमेश्वर का प्रतिरोध करने और उसके विरोध में खड़े होने में शैतान के साथ सहयोग करना है। यह लोगों की शोहरत, लाभ और रुतबे के पीछे भागने की प्रकृति है। अपने हितों के पीछे भागने वाले लोगों के साथ समस्या यह है कि वे जिन लक्ष्यों का अनुसरण करते हैं, वे शैतान के लक्ष्य हैं—वे ऐसे लक्ष्य हैं, जो दुष्टतापूर्ण और अन्यायपूर्ण हैं। जब लोग शोहरत, लाभ और रुतबे जैसे व्यक्तिगत हितों के पीछे भागते हैं, तो वे अनजाने ही शैतान का औजार बन जाते हैं, वे शैतान के लिए एक साधन बन जाते हैं, और तो और, वे शैतान का मूर्त रूप बन जाते हैं। वे कलीसिया में एक नकारात्मक भूमिका निभाते हैं; कलीसिया के कार्य के प्रति, और सामान्य कलीसियाई जीवन और परमेश्वर के चुने हुए लोगों के सामान्य लक्ष्य पर उनका प्रभाव बाधा डालने और काम बिगाड़ने वाला होता है; उनका प्रतिकूल और नकारात्मक प्रभाव पड़ता है(वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ (भाग एक))। मैं सोचा करती थी कि प्रतिष्ठा और रुतबे की चाहत सत्य का अनुसरण करने में व्यक्ति की मात्र व्यक्तिगत नाकामी है और इससे सिर्फ उसके अपने जीवन को नुकसान होगा, दूसरों पर कोई असर नहीं पड़ेगा। मैं हमेशा से इसे भ्रष्टता का एक छोटा सा खुलासा मानती थी, सोचती थी कि हर किसी में इस तरह की भ्रष्टता होती है और इसे रातोंरात नहीं बदला जा सकता; इसे धीरे-धीरे बदलना चाहिए। मैं समझ नहीं पाती थी कि परमेश्वर प्रतिष्ठा और रुतबे की चाहत से इतनी नफरत क्यों करता है। परमेश्वर के वचनों के इस अंश को पढ़ने के बाद मुझे एहसास हुआ कि प्रतिष्ठा और रुतबे की चाहत न सिर्फ व्यक्ति के अपने जीवन को नुकसान पहुँचाती है बल्कि कलीसिया का काम भी बाधित करती है। चेन डैन टीम अगुआ थी और मुझे उसके काम में उसका साथ देना चाहिए था और सहयोग करना चाहिए था। लेकिन ईर्ष्या के कारण मैंने जानबूझकर उसकी कार्य व्यवस्थाओं में सहयोग नहीं किया था और उसके लिए चीजें मुश्किल बना दी थीं, जिससे सिंचन कार्य पर असर पड़ा। समस्याओं पर चर्चा करते समय, भले ही मुझे पता था कि उसकी संगति सही थी, मुझे डर था कि उसकी बात सुनकर मैं हीन दिखूँगी और मेरी प्रतिष्ठा चली जाएगी। इसलिए मैं हठपूर्वक अपने विचारों पर अड़ी रहती थी, जिसके परिणामस्वरूप काम में देरी हुई। मैं जानबूझकर बाधक बन रही थी, काम रोक रही थी, और उन चीजों को करने से इनकार कर रही थी जिन्हें मैं कर सकती थी, चेन डैन पर दबाव डालने के लिए उस पर काम थोप रही थी। सतह पर ऐसा लग रहा था कि मैं प्रसिद्धि और लाभ के लिए दूसरों के साथ प्रतिस्पर्धा कर रही थी, लेकिन असल में मैं परमेश्वर का प्रतिरोध कर रही थी। मैं कलीसिया के काम में देरी की कीमत पर अपना अहंकार संतुष्ट कर रही थी। अब जाकर मुझे समझ में आया था कि बहुत से मसीह-विरोधियों को निष्कासित करने का कारण यह नहीं है कि वे प्रतिष्ठा और रुतबे के पीछे भागते हैं या उनके भ्रष्ट स्वभाव हैं, बल्कि यह है कि वे प्रसिद्धि और रुतबे की तलाश में दूसरों को दबाने और उन्हें परेशान करने के लिए किसी भी हद तक चले जाते हैं, परमेश्वर के घर के काम में बाधा डालते हैं और कई बुरे कर्म करते हैं। मेरे कार्यकलाप प्रकृति से मसीह-विरोधियों जैसे ही थे। अगर मैंने पश्चात्ताप न किया तो मेरे अनगिनत बुरे कर्मों के कारण आखिरकार मुझे कलीसिया से निष्कासित कर दिया जाएगा। इस पर आत्म-चिंतन करने से मुझे डर लगा। उस समय मैं कुछ हद तक हताश थी, सोच रही थी कि क्या इतनी बुराई करने के बाद भी मुझे बचाए जाने की कोई उम्मीद है और क्या परमेश्वर इस स्थिति का उपयोग मुझे बेनकाब करने और निकालने के लिए कर रहा है।

बाद में मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा : “आज तुम न केवल परमेश्वर को देख सकते हो, बल्कि उससे भी महत्वपूर्ण रूप से, तुम लोगों ने ताड़ना और न्याय प्राप्त किया है, तुमने यह गहनतम उद्धार प्राप्त किया है, दूसरे शब्दों में, तुमने परमेश्वर का महानतम प्रेम प्राप्त किया है। वह जो कुछ करता है, उस सबमें वह तुम्हारे प्रति वास्तव में प्रेमपूर्ण है। वह कोई बुरी मंशा नहीं रखता। यह तुम लोगों के पापों के कारण है कि वह तुम लोगों का न्याय करता है, ताकि तुम आत्म-चिंतन करो और यह जबरदस्त उद्धार प्राप्त करो। यह सब मनुष्य को पूर्ण करने के लिए किया जाता है। प्रारंभ से लेकर अंत तक, परमेश्वर मनुष्य को बचाने के लिए पूरी कोशिश कर रहा है, और वह अपने ही हाथों से बनाए हुए मनुष्य को पूर्णतया नष्ट करने का इच्छुक नहीं है। आज वह कार्य करने के लिए तुम लोगों के मध्य आया है; क्या यह और भी उद्धार नहीं है? अगर वह तुम लोगों से नफ़रत करता, तो क्या फिर भी वह व्यक्तिगत रूप से तुम लोगों का मार्गदर्शन करने के लिए इतने बड़े परिमाण का कार्य करता? वह इस प्रकार कष्ट क्यों उठाए? परमेश्वर तुम लोगों से घृणा नहीं करता, न ही तुम्हारे प्रति कोई बुरी मंशा रखता है। तुम लोगों को जानना चाहिए कि परमेश्वर का प्रेम सबसे सच्चा प्रेम है। केवल लोगों के विद्रोही होने के कारण ही उसे न्याय के माध्यम से उन्हें बचाना पड़ता है; यदि वह ऐसा न करे, तो उन्हें बचाया जाना असंभव होगा(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, विजय के कार्य की आंतरिक सच्चाई (4))। परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद मुझ पर गहरा प्रभाव पड़ा और एहसास हुआ कि मैं कितनी विवेकहीन थी। आज मुझे बर्खास्त किया गया था क्योंकि मैंने प्रसिद्धि और लाभ की चाहत की थी और क्योंकि मैंने सही मार्ग नहीं अपनाया था, बल्कि बुरे काम किए थे और कलीसिया के काम में बाधा डाली थी। इसलिए मुझे परमेश्वर के इरादे को गलत समझने के बजाय अनुशासन और ताड़ना स्वीकारनी चाहिए। मैंने इस बात पर भी आत्म-चिंतन किया कि मैं ऐसे बुरे काम क्यों कर पाई। प्रतिष्ठा और रुतबे की तीव्र इच्छा के अलावा मेरे पास परमेश्वर का भय मानने वाला हृदय बिल्कुल भी नहीं था। जब भी ऐसा कुछ होता था जिससे मेरी प्रतिष्ठा और रुतबे को खतरा होता था तो मैं मनमर्जी से काम करने, बुराई करने और परमेश्वर का प्रतिरोध करने लगती थी। मैंने परमेश्वर के वचनों का एक और अंश भी पढ़ा : “तो अगर किसी व्यक्ति के पास परमेश्वर का भय मानने वाला दिल है, तो वह कैसा व्यवहार करेगा? (वह लापरवाही से या मनमाने ढंग से कार्य नहीं करेगा।) ये दो शब्द बिल्कुल उपयुक्त हैं। तो तुम लापरवाही से या मनमाने ढंग से कार्य न करने को अभ्यास में कैसे ला सकते हो? (हमारे पास एक खोजी दिल होना चाहिए।) कोई समस्या आने पर, कुछ लोग दूसरों से उत्तर खोजते हैं, लेकिन जब वह व्यक्ति सत्य के अनुसार बोलता है, तो वे उसकी बात को स्वीकार नहीं करते, वे मानने को तैयार नहीं हो पाते और मन ही मन सोचते हैं, ‘मैं उससे बेहतर हूँ। अगर मैं इस बार उसके सुझाव सुन लेता हूँ, तो क्या ऐसा नहीं लगेगा कि वह मुझसे श्रेष्ठ है? नहीं, मैं इस मामले में उसकी बात नहीं सुन सकता। मैं यह काम सिर्फ अपने तरीके से करूंगा।’ फिर वे दूसरे व्यक्ति के दृष्टिकोण को नकारने का कोई कारण और बहाना ढूंढ लेते हैं। जब कोई व्यक्ति किसी ऐसे व्यक्ति को देखता है जो उनसे बेहतर है, तो लोगों के मन में अपनी जगह बचाए रखने के लिए वह उन्हें नीचे गिराने की कोशिश करता है, उनके बारे में अफवाहें फैलाता है, या उन्हें बदनाम करने और उनकी प्रतिष्ठा कम करने के लिए कुछ घिनौने तरीकों का इस्तेमाल करता है—यहाँ तक कि उन्हें रौंदता है—यह किस तरह का स्वभाव है? यह केवल अहंकार और दंभ नहीं है, यह शैतान का स्वभाव है, यह द्वेषपूर्ण स्वभाव है। यह व्यक्ति अपने से बेहतर और मजबूत लोगों पर हमला कर सकता है और उन्हें अलग-थलग कर सकता है, यह कपटपूर्ण और दुष्ट है। वह लोगों को नीचे गिराने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ेगा, यह दिखाता है कि उसके अंदर का दानव काफी बड़ा है! शैतान के स्वभाव के अनुसार जीते हुए, संभव है कि वह लोगों को कमतर दिखाए, उन्हें फँसाने की कोशिश करे, और उनके लिए मुश्किलें पैदा कर दे। क्या यह कुकृत्य नहीं है? इस तरह जीते हुए, वह अभी भी सोचता है कि वह ठीक है, अच्छा इंसान है—फिर भी जब वह अपने से बेहतर व्यक्ति को देखता है, तो संभव है कि वह उसे परेशान करे, उसे पूरी तरह कुचले। यहाँ मुद्दा क्या है? जो लोग ऐसे बुरे कर्म कर सकते हैं, क्या वे अनैतिक और स्वेच्छाचारी नहीं हैं? ऐसे लोग केवल अपने हितों के बारे में सोचते हैं, वे केवल अपनी भावनाओं का खयाल करते हैं, और वे केवल अपनी इच्छाओं, महत्वाकांक्षाओं और अपने लक्ष्यों को पाना चाहते हैं। वे इस बात की परवाह नहीं करते कि वे कलीसिया के कार्य को कितना नुकसान पहुँचाते हैं, और वे अपनी प्रतिष्ठा और लोगों के मन में अपने रुतबे की रक्षा के लिए परमेश्वर के घर के हितों का बलिदान करना पसंद करेंगे। क्या ऐसे लोग अभिमानी और आत्मतुष्ट, स्वार्थी और नीच नहीं होते? ऐसे लोग अभिमानी और आत्मतुष्ट ही नहीं, बल्कि बेहद स्वार्थी और नीच भी होते हैं। वे परमेश्वर के इरादों को ले कर बिल्कुल विचारशील नहीं हैं। क्या ऐसे लोगों में परमेश्वर का भय मानने वाला दिल होता है? उनके पास परमेश्वर का भय मानने वाला दिल बिल्कुल नहीं होता। यही कारण है कि वे बेतुके ढंग से आचरण करते हैं और वही करते हैं जो करना चाहते हैं, उन्हें कोई अपराध-बोध नहीं होता, कोई घबराहट नहीं होती, कोई भी भय या चिंता नहीं होती, और वे परिणामों पर भी विचार नहीं करते। यही वे अकसर करते हैं, और इसी तरह उन्‍होंने हमेशा आचरण किया है। इस तरह के आचरण की प्रकृति क्या है? हल्‍के-फुल्‍के ढंग से कहें, तो इस तरह के लोग बहुत अधिक ईर्ष्‍यालु होते हैं और उनमें अपनी निजी प्रतिष्ठा और हैसियत की बहुत प्रबल आकांक्षा होती है; वे बहुत धोखेबाज और धूर्त होते हैं। और अधिक कठोर ढंग से कहें, तो समस्‍या का सार यह है कि इस तरह के लोगों में परमेश्वर का भय मानने वाला दिल बिल्कुल नहीं होता। उन्हें परमेश्वर का भय नहीं होता, वे अपने आपको सर्वाधिक महत्वपूर्ण मानते हैं, और वे अपने हर पहलू को परमेश्वर से भी ऊंचा और सत्य से भी बड़ा मानते हैं। उनके दिलों में, परमेश्वर जिक्र करने के योग्य नहीं है और महत्वहीन है, उनके दिलों में परमेश्वर का बिलकुल भी महत्व नहीं होता। क्‍या वो लोग सत्‍य का अभ्यास कर सकते हैं जिनके हृदयों में परमेश्वर के लिए कोई जगह नहीं है, और जिनके पास परमेश्वर का भय मानने वाला दिल नहीं है? बिल्कुल नहीं। इसलिए, जब वे सामान्यतः मुदित मन से और ढेर सारी ऊर्जा खर्च करते हुए खुद को व्‍यस्‍त बनाये रखते हैं, तब वे क्‍या कर रहे होते हैं? ऐसे लोग यह तक दावा करते हैं कि उन्‍होंने परमेश्वर के लिए खपाने की खातिर सब कुछ त्‍याग दिया है और बहुत अधिक दुख झेला है, लेकिन वास्‍तव में उनके सारे कृत्‍य, निहित प्रयोजन, सिद्धान्‍त और लक्ष्‍य, सभी खुद के रुतबे, प्रतिष्ठा के लिए हैं; वे केवल सारे निजी हितों की रक्षा करने का प्रयास कर रहे हैं। तुम लोग ऐसे व्यक्ति को बहुत ही बेकार कहोगे या नहीं कहोगे? किस तरह के लोगों में कई वर्षों तक परमेश्वर पर विश्वास करने के बाद भी, परमेश्वर का भय मानने वाला दिल नहीं होता? क्या वे अहंकारी नहीं हैं? क्या वे शैतान नहीं हैं? और किन चीजों में परमेश्वर का भय मानने वाला दिल सबसे कम होता है? जानवरों के अलावा, बुरे लोगों और मसीह-विरोधियों में, दानवों और शैतान के जैसों में(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, पाँच शर्तें, जिन्हें परमेश्वर पर विश्वास के सही मार्ग पर चलने के लिए पूरा करना आवश्यक है)। परमेश्वर के वचन पढ़कर मुझे अपने दिल में बहुत तकलीफ हुई और मैंने देखा कि मैं बिल्कुल वैसी ही इंसान थी जैसा उसने उजागर किया था, ऐसी इंसान जिसमें परमेश्वर का भय मानने वाला हृदय नहीं था। परमेश्वर ने कहा कि केवल जानवरों, बुरे लोगों, मसीह-विरोधियों, राक्षसों और शैतान के पास परमेश्वर का भय मानने वाला दिल नहीं होता और मैं ऐसे लोगों के लिए परमेश्वर की घिन और नफरत महसूस कर सकती थी। इस बारे में सोचती हूँ तो भले ही मैं परमेश्वर में विश्वास करती थी, मेरे दिल में उसके लिए कोई जगह नहीं थी; मैं हमेशा अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे को प्राथमिकता देती थी, यहाँ तक कि किसी भी तरह से दूसरों को दबाने और बहिष्कृत करने की हद तक चली जाती थी। यह देखकर कि चेन डैन की काबिलियत मुझसे बेहतर थी, मैं ईर्ष्यालु हो गई थी और हर चीज में खुद की तुलना उससे करने लगी थी। चेन डैन के टीम अगुआ बनने के बाद मुझे लगा था कि मेरे लिए कामों की व्यवस्था उससे कराने से मेरे आत्मसम्मान को ठेस पहुँची है क्योंकि मैं उससे ज्यादा समय से सिंचन कार्य कर रही थी। इसलिए मैंने जानबूझकर उसके साथ सहयोग करने से इनकार कर दिया था और उसके लिए चीजें मुश्किल बना दी थीं। चर्चाओं के दौरान भी मैं हमेशा उसके उचित सुझावों को स्वीकार करने से इनकार करके अपनी इज्जत बचाती थी, डरती थी कि उसकी बात मानने से मैं उससे कमतर लगूँगी। आखिरकार यह देखकर कि वह हर पहलू में मुझसे आगे निकल गई थी और मैं उससे बेहतर नहीं हो सकती थी, मुझे लगता था कि टीम में मेरे अलग दिखने की कोई सँभावना नहीं है, इसलिए मैं जानबूझकर बाधा बन गई थी और अपना कर्तव्य करने से इनकार कर दिया था। इससे खुलासा हुआ कि मेरे दिल में परमेश्वर का कोई डर नहीं था और मुझमें मानवता की कमी थी। अगर मेरे दिल में परमेश्वर का रत्तीभर भी डर होता तो मैं ऐसे बुरे कर्म नहीं करती और न ही मैं कलीसिया के काम पर अपनी कुंठा निकालने की हिम्मत करती। न केवल मैं अपने कर्तव्य ईमानदारी से करने में विफल रही, बल्कि मैंने दूसरों को उनका काम करने में भी बाधा डाली और कलीसिया का काम बाधित किया। इससे परमेश्‍वर को घिन कैसे न होती? यह बर्खास्तगी मुझ पर आए परमेश्वर के धार्मिक स्वभाव का नतीजा थी—मैंने ही इसकी माँग की थी। मुझे गहरा पछतावा और अपराध बोध महसूस हुआ और चुपचाप मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, स्वीकार किया और पश्चात्ताप किया।

इसके बाद मैंने यह पता लगाने की कोशिश की कि प्रतिभाशाली और सक्षम लोगों से ईर्ष्या करने की मेरी समस्या को कैसे सुलझाया जाए और प्रतिष्ठा और रुतबे के पीछे भागने की मेरी महत्वाकाँक्षा से कैसे निपटा जाए। एक दिन मैंने परमेश्वर के वचन पढ़े : “लोग जिन खूबियों और क्षमताओं के साथ पैदा होते हैं, वे परमेश्वर प्रदत्त होती हैं। उन्हें बहुत पहले ही परमेश्वर ने पूर्वनिर्धारित कर दिया था। अगर परमेश्वर ने तुम्हें मूर्ख बनाया है, तो तुम्हारी मूर्खता अर्थवान है; अगर उसने तुम्हें तेज दिमाग का बनाया है, तो तुम्हारे में तेज होना अर्थवान है। परमेश्वर तुम्हें जो भी प्रतिभा दे, तुम्हारे जो भी ताकत हो, चाहे तुम्हारी बौद्धिक क्षमता कितनी भी ऊँची हो, उन सभी का परमेश्वर के लिए एक उद्देश्य है। ये सब बातें परमेश्वर द्वारा पूर्वनियत हैं। अपने जीवन में तुम जो भूमिका और कर्तव्य निभाते हो—उन्‍हें परमेश्वर ने बहुत पहले ही नियत कर दिया था। कुछ लोग देखते हैं कि दूसरों के पास ऐसी क्षमताएँ हैं जो उनके पास नहीं हैं और असंतुष्ट रहते हैं। वे अधिक सीखकर, अधिक देखकर, और अधिक मेहनती होकर चीजों को बदलना चाहते हैं। लेकिन उनकी मेहनत जो कुछ हासिल कर सकती है, उसकी एक सीमा है, और वे प्रतिभा और विशेषज्ञता वाले लोगों से आगे नहीं निकल सकते। तुम चाहे जितना भी लड़ो, वह व्‍यर्थ है। परमेश्वर ने तय किया हुआ है कि तुम क्या होगे, और उसे बदलने के लिए कोई कुछ नहीं कर सकता। तुम जिस भी चीज में अच्छे हो, तुम्हें उसी में प्रयास करना चाहिए। तुम जिस भी कर्तव्य के उपयुक्त हो, तुम्‍हें उसी कर्तव्य को करना चाहिए। अपने कौशल से बाहर के क्षेत्रों में खुद को विवश करने का प्रयास न करो और दूसरों से ईर्ष्या मत करो। सबका अपना कार्य है। हमेशा दूसरे लोगों का स्थान लेने या आत्म-प्रदर्शन करने की इच्छा रखते हुए यह मत सोचो कि तुम सब-कुछ अच्छी तरह कर सकते हो, या तुम दूसरों से अधिक परिपूर्ण या बेहतर हो। यह भ्रष्ट स्वभाव है। ... जब तुम्हारा ऐसा स्वभाव होता है, तो तुम हमेशा दूसरों को नीचा दिखाने की कोशिश करते हो, हमेशा उनसे आगे निकलने की कोशिश करते हो, हमेशा प्रतिस्‍पर्धा करते हो, हमेशा लोगों से कुछ लेने की कोशिश करते हो। तुम अत्यधिक ईर्ष्यालु होते हो, किसी के सामने नहीं झुकते और हमेशा खुद को भीड़ से अलग दिखाने की कोशिश करते हो। इससे समस्‍या होती है; शैतान इसी तरह काम करता है। यदि तुम वाकई एक स्वीकार्य सृजित प्राणी बनना चाहते हो, तो अपने सपनों के पीछे मत भागो। अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए अपने कद से अधिक श्रेष्ठ और सक्षम होने का प्रयास करना बुरी बात है; तुम्हें परमेश्वर के आयोजनों और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण करना सीखना चाहिए और तुम्हें उस स्थान पर दृढ़ रहना चाहिए, जहाँ एक मनुष्य को होना चाहिए; इसी को समझदारी दिखाना कहते हैं(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, व्यक्ति के आचरण का मार्गदर्शन करने वाले सिद्धांत)। परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद मेरा दिल द्रवित हो गया। मुझे एहसास हुआ कि जब भी मैं अच्छी काबिलियत वाले लोगों से मिलती थी तो मैं ईर्ष्यालु हो जाती थी और खुद की तुलना उनसे करती थी, अनियंत्रित रूप से प्रतिष्ठा और रुतबे के पीछे भागती थी। यह व्यवहार मेरे अहंकारी स्वभाव के कारण था, जिसमें मैं हर चीज में दूसरों से आगे निकलने की चाहत रखती थी। दूसरी ओर, मेरे पास जो काबिलियत और खूबियाँ हैं वे परमेश्वर द्वारा पूर्वनिर्धारित हैं और इसमें परमेश्वर का अच्छा इरादा है। मेरे अहंकारी स्वभाव ने मुझे हमेशा प्रतिष्ठा और रुतबे के पीछे भागने के लिए प्रेरित किया और अगर मेरे पास वाकई इतनी ही अधिक काबिलियत होती तो मैं न जाने कितनी अहंकारी होती। इतनी सारी बुराई करने और मसीह-विरोधियों के मार्ग पर चलने के कारण मुझे कलीसिया से बर्खास्त किया जा सकता है। मेरी औसत काबिलियत के लिए परमेश्वर का पूर्वनिर्धारण मेरे लिए सुरक्षा का एक तरीका है। इसके अलावा परमेश्वर हमसे सुपरहीरो या महान व्यक्ति होने और हर चीज में दूसरों से श्रेष्ठ होने की अपेक्षा नहीं करता है। परमेश्वर इस बात को महत्व देता है कि हम अपने आध्यात्मिक कद और काबिलियत के अनुसार जो कर सकते हैं उसका पूरा उपयोग करें, सच्चे दिल से अपने कर्तव्यों को अच्छी तरह से पूरा करने पर ध्यान केंद्रित करें। चेन डैन बेहतर काबिलियत वाली थी और टीम अगुआ के रूप में समग्र कार्य आगे बढ़ाने में मदद करना उसका कर्तव्य था। मुझे उसका साथ देना और सहयोग करना चाहिए था, उसकी खूबियों से सीखना चाहिए था और उसके साथ मिलकर काम करना चाहिए था ताकि मैं अपना कर्तव्य बेहतर तरीके से निभा पाती। चाहे हमारी काबिलियत अच्छी हो या खराब, सबका साझा लक्ष्य अपने कर्तव्यों को अच्छी तरह से पूरा करना है और यही सबसे महत्वपूर्ण बात है। दूसरों के साथ मेरी निरंतर तुलना और प्रतिस्पर्धा वाकई परमेश्वर का प्रतिरोध कर रही थी और परमेश्वर की संप्रभुता और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पित नहीं थी और इसने मुझे केवल शैतान की यातनाओं से पीड़ित होने के लिए प्रेरित किया। इस बात पर आत्म-चिंतन करते हुए कि कैसे मैंने अपने कर्तव्यों को करने के अवसर को संजोया नहीं, और इसके बजाय दूसरों के साथ लड़ने और प्रतिस्पर्धा करने पर ध्यान केंद्रित किया, मुझे कुछ हद तक पछतावा हुआ।

कुछ महीने बाद अगुआओं ने मुझे चेन डैन और अन्य लोगों के साथ काम करने में लगाया। शुरू में मैं थोड़ी चिंतित थी, डर रही थी कि मैं फिर से भ्रष्ट स्वभाव प्रकट कर सकती हूँ। लेकिन मैं यह भी जानती थी कि इस स्थिति की व्यवस्था परमेश्वर ने की थी और यह मेरे लिए पश्चात्ताप करने का अवसर था; मैं परमेश्वर को निराश नहीं करना चाहती थी, इसलिए मुझे इसका सामना करने की जरूरत थी। मैंने सचेत होकर परमेश्वर से अधिक प्रार्थना की, उसकी सुरक्षा माँगी ताकि मैं उसकी उपस्थिति में रह सकूँ और लगातार खुद को याद दिलाया कि मैं प्रसिद्धि और लाभ की तलाश न करूँ या दूसरों के साथ अपनी तुलना न करूँ। मुझे याद आया कि एक बार मैंने देखा कि एक बहन काफी प्रगति कर रही है तो मैं तुरंत थोड़ी-सी हैरान और परेशान हो गई, मुझे डर था कि बहन मुझसे आगे निकल जाएगी और मैं टीम में सबसे बेकार बन जाऊँगी और अपना सम्मान खो दूँगी। मुझे जल्दी ही एहसास हुआ कि मैं फिर से दूसरों के साथ अपनी तुलना कर रही थी और मैंने अपने दिल में सचेत रूप से परमेश्वर से प्रार्थना की। मैंने परमेश्वर के उन वचनों के बारे में सोचा जो मैंने पहले पढ़े थे : “अगर तुम सच में अपना कर्तव्य अच्छी तरह से निभाना चाहते हो, तो तुम्हें पहले अपने लिए उपयुक्त स्थान ढूँढ़ना होगा, उसके बाद तुम्हें वह चीज करनी होगी जिसे तुम पूरे मन से, पूरे दिमाग से, अपनी पूरी शक्ति से कर सकते हो, और अपना सर्वश्रेष्ठ करो। यह मानक के अनुरूप है और कर्तव्य के ऐसे प्रदर्शन में शुद्धता का अंश मौजूद होता है। यह वही चीज है जो एक सच्चे सृजित प्राणी को करनी चाहिए। पहले, तुमको यह समझना जरूरी है कि सच्चा सृजित प्राणी किसे कहते हैं : सच्चा सृजित प्राणी कोई अलौकिक व्यक्ति नहीं होता है, बल्कि वह ऐसा व्यक्ति होता है जो पृथ्वी पर ईमानदारी और व्‍यावहारिकता से रहता है; वह बिल्कुल भी असाधारण नहीं होता है और जरा भी विशेष न होकर, किसी भी साधारण व्‍यक्ति के समान ही होता है। यदि तुम हमेशा दूसरों से आगे निकलने की इच्छा रखते हो, दूसरों से श्रेष्ठ बनना चाहते हो, तो यह तुम्हारे अभिमानी और शैतानी स्वभाव के कारण हुआ है, और यह तुम्‍हारी महत्‍वाकांक्षा से उपजा एक भ्रम है। वास्तव में, तुम इसे हासिल नहीं कर सकते, और तुम्हारे लिए ऐसा करना असंभव है। परमेश्वर ने तुमको ऐसी प्रतिभा या कौशल नहीं प्रदान किया और न ही उसने तुम्हें ऐसा सार दिया। यह मत भूलो कि तुम मनुष्य जाति के एक साधारण सदस्य हो, तुम किसी भी तरह से दूसरों से भिन्न नहीं हो, हालाँकि तुम्हारा रूप, परिवार और पालन-पोषण अलग हो सकता है, और तुम्हारी प्रतिभा और गुणों में कुछ अंतर हो सकते हैं। लेकिन यह मत भूलो : तुम कितने ही अद्वितीय क्यों न हों, यह केवल इन छोटी-छोटी बातों तक सीमित है, तुम्हारा भ्रष्ट स्वभाव दूसरों के ही समान है। तुम्‍हारा दृष्टिकोण और वे सिद्धांत जिनका अपना कर्तव्य निर्वाह करते समय तुम्‍हें पालन करना जरूरी है, दूसरों के समान ही हैं। लोग केवल अपनी शक्ति और गुणों में ही दूसरों से भिन्न होते हैं(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, व्यक्ति के आचरण का मार्गदर्शन करने वाले सिद्धांत)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे यह समझने में मदद की कि मैं एक साधारण सृजित प्राणी हूँ, एक सामान्य व्यक्ति हूँ। ऐसी चीजें होना सामान्य है जो मुझे नहीं पता या ऐसे क्षेत्र जहाँ मैं दूसरों की तरह अच्छी नहीं हूँ। सिर्फ इसलिए कि मैंने नए विश्वासियों के सिंचन का अभ्यास पहले शुरू कर दिया था, इसका मतलब यह नहीं है कि मुझे हर पहलू में दूसरों से बेहतर होना चाहिए। इस तरह से सोचना अहंकारपूर्ण और अनुचित था। परमेश्वर चाहता है कि मैं एक सामान्य व्यक्ति बनूँ, ईमानदारी से अपना सर्वश्रेष्ठ करूँ और अपने आध्यात्मिक कद और काबिलियत के अनुसार अपनी क्षमताओं का पूरा उपयोग करूँ। इसके अलावा परमेश्वर ने प्रत्येक व्यक्ति को अलग-अलग काबिलियत और खूबियाँ दी हैं। साथ मिलकर काम करते हुए हम एक-दूसरे की खूबियों और कमजोरियों की भरपाई कर सकते हैं, सामंजस्यपूर्ण ढंग से सहयोग कर सकते हैं, जो कर्तव्य के लिए फायदेमंद है। अगर बहन में ऐसी क्षमताएँ हैं जो मुझमें नहीं हैं तो मुझे उससे सीखना चाहिए और यह भी परमेश्वर का मेरी कमियों की भरपाई करने का तरीका है। परमेश्वर का इरादा समझने से मुझे राहत मिली और मैं धीरे-धीरे अपने कर्तव्यों पर अधिक केंद्रित हो गई। जब चेन डैन से मेरा फिर से सामना हुआ तो मैं उसके कार्य को सहारा देने और उसके साथ सामंजस्यपूर्ण ढंग से सहयोग करने में सक्षम थी। जब मुझे ऐसी चीजों का सामना करना पड़ा जो मुझे समझ में नहीं आईं तो मैं अपना अभिमान त्यागने और उससे सलाह लेने के लिए तैयार थी। इस तरह से अभ्यास करने से मुझे सहजता और राहत महसूस हुई और मैंने अपने कर्तव्य निभाने में भी कुछ प्रगति की। मैं इसके लिए परमेश्वर का धन्यवाद करती हूँ!

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