वचन देह में प्रकट होता है
खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचनअंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा व्यक्त पुस्तक, वचन देह में प्रकट होता है का तीसरा खंड है। पुस्तक के पहले भाग में सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा सभा में दिए गए उपदेश और संगति को शामिल किया गया है, दूसरे भाग में है सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा अगुआओं और कार्यकर्ताओं को दिए प्रवचन, और तीसरा भाग अपने चुने हुए लोगों के एक हिस्से के साथ सर्वशक्तिमान परमेश्वर की संगति से बना है। ये उपदेश और संगति कलीसिया में मौजूद समस्याओं के साथ-साथ परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन प्रवेश की व्यावहारिक कठिनाइयों को हल करते हैं। वे न केवल लोगों के सार और वर्तमान स्थितियों के बारे में बताते हैं, बल्कि लोगों के लिए उन लक्ष्यों पर भी रोशनी डालते हैं जिनका उन्हें अनुसरण करना चाहिए। वे लोगों की सत्य की समझ और जीवन-प्रवेश की प्राप्ति के लिए बेहद फायदेमंद हैं।
अंत के दिनों के मसीह के कथन
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भाग एक सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा सभा में दिए गए उपदेश और संगति
(2007 से 25 सितंबर, 2021 तक)1सत्य के अनुसरण का महत्व और उसके अनुसरण का मार्ग
2एक ईमानदार व्यक्ति होने का सबसे बुनियादी अभ्यास
3अपने पथभ्रष्ट विचारों को पहचानकर ही खुद को सचमुच बदला जा सकता है
4केवल सच्ची आज्ञाकारिता से ही व्यक्ति असली भरोसा रख सकता है
5छह प्रकार के भ्रष्ट स्वभावों का ज्ञान ही सच्चा आत्म-ज्ञान है
6केवल सत्य समझकर ही व्यक्ति परमेश्वर के कर्मों को जान सकता है
7सुसमाचार का प्रसार करना सभी विश्वासियों का गौरवपूर्ण कर्तव्य है
8मनुष्य और परमेश्वर के बीच संबंध सुधारना अत्यंत आवश्यक है
9परमेश्वर के वचनों को सँजोना परमेश्वर में विश्वास की नींव है
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भाग दो सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा अगुआओं और कार्यकर्ताओं को दिए प्रवचन
(1995 से 12 जनवरी, 2022 तक)1मनुष्य नए युग में कैसे प्रवेश करता है
2राज्य के युग में परमेश्वर के प्रशासनिक आदेशों के बारे में
3देहधारण के अर्थ का दूसरा पहलू
4परमेश्वर द्वारा जगत की पीड़ा का अनुभव करने का अर्थ
5परमेश्वर पर विश्वास करने में सत्य प्राप्त करना सबसे महत्वपूर्ण है
6परमेश्वर के प्रति मनुष्य के प्रतिरोध की जड़ में अहंकारी स्वभाव है
7प्रार्थना के मायने और उसका अभ्यास
9स्वभाव बदलने के बारे में क्या जानना चाहिए
11केवल सत्य की खोज करके ही स्वभाव में बदलाव लाया जा सकता है
12परमेश्वर पर विश्वास करने में, सही मार्ग चुनना सबसे महत्वपूर्ण है
13क्या तुम मनुष्यजाति के प्रति परमेश्वर का प्रेम जानते हो?
14लोग परमेश्वर से बहुत अधिक माँगें करते हैं
16परमेश्वर में विश्वास की शुरुआत संसार की दुष्ट प्रवृत्तियों की असलियत को समझने से होनी चाहिए
17अपना हृदय परमेश्वर को देकर सत्य प्राप्त किया जा सकता है
18अपने भ्रष्ट स्वभाव को त्यागकर ही आजादी और मुक्ति पाई जा सकती है
19सत्य प्राप्त करने के लिए अपने आसपास के लोगों, मामलों और चीज़ों से सीखना चाहिए
20जीवन में प्रवेश कर्तव्य निभाने से प्रारंभ होता है
21सत्य का अभ्यास करके ही व्यक्ति भ्रष्ट स्वभाव की बेड़ियाँ तोड़ सकता है
22पाँच शर्तें, जिन्हें परमेश्वर पर विश्वास के सही मार्ग पर चलने के लिए पूरा करना आवश्यक है
23केवल अपना भ्रष्ट स्वभाव दूर करने से ही सच्चा बदलाव आ सकता है
24परमेश्वर पर विश्वास करने में सबसे महत्वपूर्ण उसके वचनों का अभ्यास और अनुभव करना है
25परमेश्वर की प्रबंधन योजना का सर्वाधिक लाभार्थी मनुष्य है
26भ्रष्ट स्वभाव केवल सत्य स्वीकार करके ही दूर किया जा सकता है
28परमेश्वर का भय मानकर ही इंसान उद्धार के मार्ग पर चल सकता है
29केवल परमेश्वर के वचन बार-बार पढ़ने और सत्य पर चिंतन-मनन करने में ही आगे बढ़ने का मार्ग है
30हैसियत के प्रलोभन और बंधन कैसे तोड़ें
31सत्य प्राप्त करने के लिए कीमत चुकाना बहुत महत्वपूर्ण है
32अक्सर परमेश्वर के सामने जीने से ही उसके साथ एक सामान्य संबंध बनाया जा सकता है
33सत्य का अभ्यास करना क्या है?
34सामंजस्यपूर्ण सहयोग के बारे में
36परमेश्वर के प्रति समर्पित होने के अभ्यास के सिद्धांत
37सृजित प्राणी का कर्तव्य भली-भाँति निभाने में ही जीने का मूल्य है
38ईमानदार होकर ही व्यक्ति सच्चे मनुष्य की तरह जी सकता है
39भ्रष्ट स्वभाव दूर करने का मार्ग
40धर्म में आस्था रखने या धार्मिक समारोह में शामिल होने मात्र से किसी को नहीं बचाया जा सकता
41अच्छे व्यवहार का यह मतलब नहीं कि व्यक्ति का स्वभाव बदल गया है
42अपने स्वभाव का ज्ञान उसमें बदलाव की बुनियाद है
43सत्य के अनुसरण में केवल आत्म-ज्ञान ही सहायक है
44सत्य सिद्धांत खोजकर ही कोई अपना कर्तव्य अच्छी तरह निभा सकता है
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भाग तीन अपने चुने हुए लोगों के एक हिस्से के साथ सर्वशक्तिमान परमेश्वर की संगति
1सत्य और परमेश्वर तक पहुँचने के उपायों के बारे में वचन
2सत्य की खोज और इसका अभ्यास करने के बारे में वचन
3कर्तव्य निभाने के बारे में वचन
4स्वयं को जानने के बारे में वचन
5भ्रष्ट स्वभाव हल करने के उपायों के बारे में वचन
6असफलता, पतन, परीक्षण और शोधन झेलने के तरीकों के बारे में वचन
7सिद्धांतों के वचन व उक्तियाँ सुनाने और सत्य की वास्तविकता के बीच अंतर