मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ
भजन की यह किताब दो मुख्य भागों में विभाजित है : पहले खंड में परमेश्वर के वचनों के भजन शामिल हैं, जो सर्वशक्तिमान परमेश्वर से मिले अत्यावश्यक कथनों से बने हैं, और दूसरे में परमेश्वर के चुने हुओं की वास्तविक गवाहियाँ है जो परमेश्वर के न्याय से गुज़रने और उसका अनुसरण करने में आई कठिनाइयों और यंत्रणाओं को झेलने के बाद दी गयी हैं। ये भजन, परमेश्वर के चुने हुए लोगों की आध्यात्मिक भक्ति के लिए बहुत ही लाभकारी हैं, इससे उन्हें परमेश्वर के करीब आने, परमेश्वर के वचनों के चिंतन और सत्य समझने में बहुत मदद मिलेगी; इसके अलावा, ये भजन परमेश्वर के वचनों का अनुभव करने वाले और उनके वचनों की वास्तविकता में प्रवेश करने वाले लोगों के लिए बहुत हितकर हैं।
जीवन-प्रवेश पर पुस्तकें
1राज्य गान
(I) दुनिया में राज्य का अवतरण हुआ है
2राज्य गान
(II) आगमन हुआ है परमेश्वर का, राजा है परमेश्वर
3राज्य गान
(III) सभी जन आनंद के लिये जयकार करते हैं
5मनुष्य का पुत्र महिमा के साथ प्रकट हुआ है
6सर्वशक्तिमान परमेश्वर धार्मिकता के सूर्य के समान प्रकट होता है
7सर्वशक्तिमान परमेश्वर का पवित्र आध्यात्मिक देह प्रकट हो चुका है
8सम्राट की तरह शासन करता है सर्वशक्तिमान परमेश्वर
9गौरवशाली सिंहासन पर विराजमान है सर्वशक्तिमान परमेश्वर
10परमेश्वर का राज्य प्रकट हुआ है धरती पर
11हम सिंहासन के सामने उठाए गए हैं
12पूरब की ओर लाया है परमेश्वर अपनी महिमा
13परमेश्वर की महिमा पूर्व से चमकती है
14प्रकट हुआ परमेश्वर जग के पूरब में महिमा लेकर
16परमेश्वर का डेरा विश्व में प्रकट हुआ है
17परमेश्वर के प्रकटन की महत्ता
20तुलना से परे है राज्य के राजा की महिमामय मुखाकृति
21परमेश्वर का राज्य मनुष्यों के बीच स्थापित है
23परमेश्वर राज्य में शासन करता है
24वह जो सात गर्जनाओं को खोलता है
25सिंहासन से आती हैं सात गर्जनाएँ
26ईश्वर की सात तुरहियाँ फिर बजती हैं
28परमेश्वर की भेड़ें सुन सकती हैं उसकी वाणी
29सर्वशक्तिमान परमेश्वर किताब खोलता है
30बेपर्दा हो चुके हैं रहस्य सारे
31सभी राष्ट्रों और लोगों पर परमेश्वर का न्याय
33परमेश्वर का न्याय पूरी तरह से प्रकट होता है
34पूरी कायनात में पहुँचे परमेश्वर का धार्मिक न्याय
35परमेश्वर का खुला प्रशासन अखिल ब्रह्माण्ड में
36पूरी कायनात में गढ़ा है परमेश्वर ने नया कार्य
37ब्रह्माण्ड में परमेश्वर के कार्य की लय
38जब परमेश्वर स्वयं इस संसार में आता है
39परमेश्वर लाया है इंसान को नए युग में
40विश्व का पतन हो रहा है! बेबीलोन गतिहीन है!
41विश्व का पतन हो रहा है, राज्य आकार ले रहा है
42समय जो गँवा दिया कभी वापस न आएगा
43सब-कुछ परमेश्वर के हाथ में है
44परमेश्वर के कर्म व्याप्त हैं ब्रह्मांड के विशाल विस्तार में
45परमेश्वर स्वर्ग में है और धरती पर भी
46केवल सर्वशक्तिमान परमेश्वर इंसान को बचा सकता है
47केवल सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही शाश्वत पुनर्जीवित जीवन है
49पूरी धरती ख़ुश होकर परमेश्वर की स्तुति करती है
50सर्वशक्तिमान परमेश्वर के नाम की गवाही दुनिया के सभी राष्ट्रों में दी गई है
51इंसान और परमेश्वर सहभागी हैं मिलन के आनंद में
52स्तुति करो परमेश्वर की वह विजेता बनकर लौटा है
53सभी देशों के लोगों को जीत लेगा परमेश्वर
54अंत के दिनों का मसीह लाया है राज्य का युग
55अंत के दिनों में परमेश्वर इंसान का न्याय और शुद्धिकरण वचनों से करता है
56न्याय-कार्य इंसान की भ्रष्टता साफ करने के लिए है
57शुद्ध होने के लिए अंत के दिनों के मसीह के न्याय को स्वीकार करो
58इंसान की पापी प्रकृति को बदलने के लिए क्या किया जा सकता है?
59न्याय और ताड़ना का कार्य छुटकारे के काम से गहरा है
60अंत के समय का परमेश्वर का धार्मिक न्याय मनुष्य को वर्गीकृत करता है
61अंत के दिनों में परमेश्वर के न्याय के कार्य के मायने
62परमेश्वर उन सभी का न्याय करेगा, उन्हें शुद्ध करेगा जो उसके सिंहासन के सामने आएँगे
63इंसान को पूर्ण बनाने के लिए न्याय परमेश्वर का मुख्य तरीका है
64विजय के कार्य का आतंरिक अर्थ
65परमेश्वर के न्याय-कार्य का उद्देश्य
66अंत के दिनों में विजय-कार्य का सत्य
67जीत का अंतिम चरण है इंसान को बचाने के लिए
68परमेश्वर के विजय-कार्य का प्रधान लक्ष्य
70लोगों का वर्गीकरण विजय के कार्य से किया जाता है
71विजय का कार्य क्या हासिल करेगा
72विजय कार्य का अर्थ बहुत गहरा है
73न्याय और ताड़ना परमेश्वर का उद्धार प्रकट करते हैं
74परमेश्वर का न्याय और ताड़ना इंसान को बचाने के लिये है
75परमेश्वर के वचन का न्याय इंसान को बचाने के लिये है
76पूरी मानवता का न्याय करने के लिए परमेश्वर अंत के दिनों में देह बने
77परमेश्वर का न्याय उसकी धार्मिकता और पवित्रता को प्रकट करता है
78मनुष्य के पुत्र की छवि को उसके न्याय और उसकी ताड़ना में देखना
79न्याय का कार्य स्वयं परमेश्वर द्वारा ही किया जाना चाहिए
81अंत के दिनों में न्याय का कार्य है युग को समाप्त करना
82विश्राम में प्रवेश करने की मानवता के लिए एकमात्र राह
83अंत के दिनों में परमेश्वर के कार्य की अंदरूनी कहानी
84अंत के दिनों में परमेश्वर अपने वचनों से इंसान का न्याय करता है, उसे पूर्ण करता है
85वचन द्वारा न्याय बेहतर दर्शाये परमेश्वर का अधिकार
86अंत के दिनों में हासिल करता है सब परमेश्वर मुख्यत: वचनों से
87अंत के दिनों का देहधारी परमेश्वर वचनों से मनुष्यों को पूर्ण करता है
88अंत के दिनों में देहधारी परमेश्वर मुख्यत: वचन का कार्य करता है
89वचनों से हासिल होता है परमेश्वर का कार्य
90परमेश्वर का वचन है अधिकार और न्याय
91अंत के दिनों का कार्य ख़ासकर इंसान को जीवन देने के लिए है
92अंत के दिनों में परमेश्वर पूरा करे सब कुछ अपने वचनों से
93राज्य के युग में, वचन सब पूर्ण करते हैं
94राज्य के युग में परमेश्वर मनुष्य को वचनों के द्वारा पूर्ण करता है
95"वचन देह में प्रकट होता है" के असल मायने
96परमेश्वर को बेहतर जान सकते हैं लोग वचनों के कार्य के ज़रिये
97परमेश्वर अंत के दिनों में अपने वचनों से पूरी कायनात को जीतता है
98परमेश्वर के वचनों से दूर नहीं जा सकता कोई
99परमेश्वर के वचन से सब-कुछ पूरा होता है
100परमेश्वर बहाल कर देगा सृजन की पूर्व स्थिति
101परमेश्वर के प्रबंधन कार्य का उद्देश्य
102परमेश्वर के तीन चरणों के कार्य ने इंसान को पूरी तरह से बचा लिया है
103इंसान को संभालने का काम है शैतान को हराने का काम
104जिनको परमेश्वर पा लेगा, वो अनंत आशीष का आनंद लेंगे
105कार्य के तीन चरण परमेश्वर के मानव-प्रबंधन को बयाँ करते हैं
106परमेश्वर की जगह इंसान उसका काम नहीं कर सकता
107कार्य के तीनों चरणों को करता है एक ही परमेश्वर
108परमेश्वर के कार्य के तीन चरण उसके उद्धार को पूरी तरह व्यक्त करते हैं
110ईश्वर के कार्य के तीन चरणों की अंदरूनी कहानी
111परमेश्वर छ: हज़ार साल की प्रबंधन योजना का शासक है
112परमेश्वर आरम्भ है और अंत भी
113इंसान के लिए परमेश्वर के प्रबंध के मायने
114परमेश्वर मानव के सृजन के अर्थ को पुनर्स्थापित करेगा
115परमेश्वर का प्रबंधन हमेशा आगे बढ़ता रहता है
116परमेश्वर सदा से काम करता रहा है इंसान को राह दिखाने के लिए
117अंत के दिनों का ईश-कार्य अधिक गहन है
118कार्य के तीनों चरणों को जानकर ही तुम परमेश्वर के पूरे स्वभाव को समझ सकते हो
119चीन में परमेश्वर के विजय-कार्य का अर्थ
120बड़े लाल अजगर के देश में परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य का अर्थ
121अंत के दिनों में परमेश्वर के कार्य का उद्देश्य
122परमेश्वर के लोगों के बढ़ने के साथ बड़ा लाल अजगर होता है धराशायी
123परमेश्वर ने चीन में पूरा कर लिया है विजेताओं का एक समूह
124बड़े लाल अजगर के देश में परमेश्वर के कार्य का अर्थ
125परमेश्वर पूरी तरह महिमान्वित किया गया है
126अंत के दिनों का मसीह प्रकट करता है परमेश्वर की प्रबंधन योजना के रहस्य को
127परमेश्वर ने अंतिम दिनों में अपना पूरा स्वभाव प्रकट किया है
128काम परमेश्वर का, आगे बढ़ता रहता है
130एक दूसरा युग, दूसरा दिव्य कार्य
131परमेश्वर नए युग में नया काम लाता है
132परमेश्वर का कार्य और वचन इंसान को जीवन देते हैं
133हर युग में नया कार्य करता है परमेश्वर
134परमेश्वर का सार अपरिवर्तनीय है
135परमेश्वर का कार्य सदा नया होता है कभी पुराना नहीं होता
136परमेश्वर का कार्य अपरिवर्तित नहीं रहता
137परमेश्वर का समस्त कार्य परम व्यावहारिक है
138मनुष्य को कार्य के हर चरण में परमेश्वर की गवाही देनी चाहिए
139परमेश्वर के कार्य और मनुष्य के कार्य के बीच अंतर
140परमेश्वर भिन्न-भिन्न युगों का प्रतिनिधित्व करने के लिए अलग-अलग नाम धरता है
141परमेश्वर के कार्य के हर चरण में उसका स्वभाव दिखता है
142क्या तुम यह दावा करने की हिम्मत कर सकते हो कि परमेश्वर का नाम कभी नहीं बदल सकता?
143क्या सर्जित प्राणी परमेश्वर के नाम का निर्धारण कर सकते हैं?
145परमेश्वर की बुद्धि, शैतान की साज़िशों का सामना करने में प्रकट होती है
146अन्यजाति के देशों में परमेश्वर का नाम फैलेगा
147सभी प्राणी सर्जक के प्रभुत्व में लौटेंगे
148देहधारी ईश्वर मानवीय और दिव्य दोनों है
150मसीह का सारतत्व है परमेश्वर
151देह और आत्मा का कार्य एक ही सार का है
152सार में मसीह स्वर्गिक पिता की इच्छा का पालन करता है
153मसीह की पहचान स्वयं परमेश्वर है
154मसीह का सार तय होता है उसके काम और अभिव्यक्तियों से
155परमेश्वर का देह और आत्मा सार में एक-समान हैं
156मसीह बताता है कि आत्मा क्या है
157देहधारी मानव पुत्र स्वयं परमेश्वर है
158मानवता में परमेश्वर के कार्य का तरीक़ा और सिद्धांत
159मसीह की मानवता उसकी दिव्यता से संचालित होती है
160व्यावहारिक परमेश्वर को कैसे जानें
161मसीह के प्रति मनुष्य के विरोध और अवज्ञा का मूल
162ख़ामोशी से आता है हमारे मध्य परमेश्वर
163मसीह पृथ्वी पर कार्य करने क्यों आया है
164अंत के दिनों में परमेश्वर के देहधारण के पीछे का उद्देश्य
165कोई भी परमेश्वर के आगमन से अवगत नहीं है
168अंत के दिनों का मसीह राज्य का प्रवेश द्वार है
169भ्रष्ट मानवता को आवश्यकता है देहधारी परमेश्वर के उद्धार की
170परमेश्वर के दोनों देहधारणों की ज़रूरत है मानवजाति को
171उद्धार-कार्य के अधिक उपयुक्त है देहधारी परमेश्वर
172अपना काम करने के लिए परमेश्वर को देहधारण करना होगा
173देहधारी परमेश्वर के कार्य की सबसे अच्छी बात
174देहधारी परमेश्वर ही बचा सकता है इंसान को पूरी तरह
175केवल देहधारी परमेश्वर ही मानवजाति को बचा सकता है
176ईश्वर इंसान की ज़रूरत के कारण काम करने के लिए देह बना
177देहधारी परमेश्वर की आवश्यकता
178इन्सान को बचाने का सबसे अहम काम करता है देहधारी परमेश्वर
179परमेश्वर के देहधारण से ही इंसान उसका विश्वासपात्र बन सकता है
180व्यावहारिक परमेश्वर इंसानों के बीच प्रकट होता है
181परमेश्वर के देहधारण का अधिकार और मायने
182परमेश्वर के देहधारण का अधिकार
183देह में प्रकट हुआ परमेश्वर का अधिकार और सामर्थ्य
184परमेश्वर ने शैतान को हराने और इंसान को बचाने के लिए देहधारण किया
185परमेश्वर मनुष्य को किस तरह देखता है
186देहधारी परमेश्वर के माध्यम से मनुष्य परमेश्वर को बेहतर समझ सकता है
187मानवता के लिये बहुत महत्वपूर्ण देहधारी परमेश्वर
188परमेश्वर की एकमात्र ख़्वाहिश धरती पर
189देह में काम करके ही परमेश्वर इंसान को हासिल कर सकता है
190क्या तुम परमेश्वर के कार्य को जानते हो?
191परमेश्वर के दोनों देहधारणों का मूल एक ही है
192परमेश्वर के दोनों देहधारण उसका प्रतिनिधित्व कर सकते हैं
193परमेश्वर सभी को अपना धार्मिक स्वभाव दिखाता है
194क्या ईश्वर का देहधारण कोई साधारण बात है?
195क्या परमेश्वर उतना ही सरल है जितना तुम कहते हो?
196दो देहधारण देह में ईश्वर के कार्य को पूरा करते हैं
197इंसान के उद्धार के लिये हैं परमेश्वर के दो देहधारण
198परमेश्वर के दो देहधारणों के मायने
199अंत के दिनों के देहधारण से देहधारण का अर्थ पूरा हुआ
200अंत के दिनों में देहधारी परमेश्वर करता है परमेश्वर के प्रबन्धन का अंत
201ज़िंदगी का जीवित झरना है देहधारी परमेश्वर
202तुम लोगों के लिए देहधारी परमेश्वर की महत्ता सबसे अधिक है
203देहधारी परमेश्वर को नकारने वाले सभी नष्ट होंगे
204हर राष्ट्र सर्वशक्तिमान परमेश्वर की आराधना करता है
205परमेश्वर स्वयं ही सत्य और जीवन है
206केवल परमेश्वर के पास है जीवन का मार्ग
207क्या तुम्हें पता है स्रोत अंनत जीवन का?
208अंत के दिनों का मसीह अनंत जीवन का मार्ग लाता है
209सच्चे मार्ग की तलाश के सिद्धांत
210कैसे खोजें परमेश्वर के पदचिह्न
211अंत के दिनों के मसीह के प्रकटन और कार्य को कैसे जानें
212सत्य को स्वीकारने वाले ही परमेश्वर की वाणी सुन सकते हैं
213क्या तुम लोगों ने पवित्र आत्मा को बोलते सुना है?
214ईश्वर ईश्वर है, इंसान इंसान है
216धन्य हैं वो जो परमेश्वर के नये काम को स्वीकारते हैं
217पवित्र आत्मा के नए काम का अनुसरण करो और परमेश्वर की स्वीकृति प्राप्त करो
218अंत तक अनुसरण करने के लिये आत्मा के कार्य का पालन करो
219तुम जो सयाने हो, जल्दी से जाग उठो
220विश्वासियों को ध्यान से ईश्वर के पदचिह्नों का अनुसरण करना ही चाहिए
221क्या तुम परमेश्वर के वर्तमान कार्य का अनुसरण करते हो
222तुम लोगों को सत्य स्वीकार करने वाला बनना चाहिए
223सत्य के प्रति तुम्हारा रवैया अति महत्वपूर्ण है
224जो सत्य नहीं स्वीकारते वे उद्धार के लायक नहीं हैं
225यीशु के प्रति फ़रीसियों के विरोध का मूल कारण
226क्या त्रित्व का अस्तित्व है?
227क्या पूरी बाइबल ईश्वर की प्रेरणा से लिखी गयी है?
228वे सभी जो बाइबल का उपयोग परमेश्वर की निंदा के लिए करते हैं, फरीसी हैं
229नए ईश-कार्य की स्वीकृति में बाइबल बाधा बन गई है
230बाइबल लोगों को नए युग में कैसे ला सकती है?
232परमेश्वर ने अंत के दिनों में अन्य राष्ट्रों में ज़्यादा बड़ा और ज़्यादा नया काम किया है
233अगर ये पवित्रात्मा का काम है, तो तुम्हें इसे स्वीकारना चाहिए
234ईश्वर के विश्वासियों को उसकी वर्तमान इच्छा खोजनी चाहिए
235मनुष्य की सोच बहुत रूढ़िवादी है
236क्या पवित्रात्मा के नए कार्य को स्वीकार न करने वाले परमेश्वर के प्रकटन को देख सकते हैं?
237परमेश्वर के पदचिह्नों का अनुसरण करने के लिए धार्मिक अवधारणाओं को त्याग दो
238इंसान "उद्धारकर्ता यीशु" को स्वर्ग से उतरते कैसे देख सकता है?
239परमेश्वर विजेताओं के एक समूह के बीच उतरा है
240अंत के दिनों के मसीह को त्यागने वाले सदा के लिए सज़ा पाएँगे
241अंत के दिनों के मसीह को त्यागना पवित्र आत्मा की ईश-निंदा है
242अंतिम दिनों के मसीह को अस्वीकार करना पवित्र आत्मा की निंदा करना है
243अंत के दिनों के मसीह को अस्वीकारने के परिणाम
244परमेश्वर की अवहेलना करने से सिर्फ़ दंड मिल सकता है
245परमेश्वर आशा करता है कि लोग फरीसी न बनें
246परमेश्वर चाहे ज़्यादा लोग उससे उद्धार पाएँ
247मसीह के साथ अनुकूलता का तरीका खोजो
248परमेश्वर द्वारा लोगों की निंदा का आधार
249थोमा की कहानी इंसान के लिए एक चेतावनी है
250परमेश्वर के कार्य की थाह कोई नहीं पा सकता
251ईश्वर के प्रकटन को परिसीमित करने के लिए कल्पना पर भरोसा न करो
252परमेश्वर के प्रकटन की खोज के लिए तुम्हें राष्ट्रीयता और जातीयता की धारणाओं को तोड़ना होगा
253परमेश्वर संपूर्ण सृष्टि का प्रभु है
254मसीह की वापसी का स्वागत तुम कैसे करोगे?
255वह सत्ता जो हर चीज़ पर अपनी संप्रभुता रखती है
256कैसे शासन करता है हर चीज़ पर परमेश्वर
257सभी प्राणियों का जीवन आता है परमेश्वर से
258ईश्वर की जीवन-शक्ति का मूर्त रूप
259मनुष्य को बचाने के लिए परमेश्वर के नेक इरादे को कोई भी नहीं समझता
260इंसान के जीवन के लिए, परमेश्वर सारे कष्ट झेलता है
261मानव के भविष्य पर परमेश्वर विलाप करता है
262क्या तुमने सर्वशक्तिमान को आहें भरते सुना है?
264सर्वशक्तिमान की उत्कृष्टता और महानता
265मानवजाति द्वारा परमेश्वर के मार्गदर्शन को खो देने के परिणाम
266इंसान को ज़रूरत है परमेश्वर द्वारा जीवन के पोषण की
267दौलत-शोहरत से शैतान लोगों के विचारों पर नियंत्रण करता है
268शैतान मनुष्य को भ्रष्ट करने के लिए कैसे सामाजिक प्रवृत्तियों का उपयोग करता है
269परमेश्वर तुम्हारे हृदय और रूह को खोज रहा
270परमेश्वर उनकी तलाश कर रहा है जो उसके प्रकटन के प्यासे हैं
271परमेश्वर बचाता है उन्हें जो उसकी आराधना करते और बुराई से दूर रहते हैं
272दुनिया में इंसान का अंत लाता ईश्वर
273मानव का अस्तित्व परमेश्वर पर निर्भर है
274इंसान को सौभाग्य के लिये करनी चाहिये परमेश्वर की आराधना
275परमेश्वर सभी राष्ट्रों और लोगों का भाग्यविधाता है
276मानव जाति के भाग्य की ओर ध्यान दो
277जो परमेश्वर के स्वभाव को भड़काता है उसे अवश्य दंडित किया जाना चाहिए
278कोई ताकत आड़े आ नहीं सकती उस लक्ष्य के जो हासिल करना चाहता है परमेश्वर
279परमेश्वर ने नीनवे के राजा के पश्चाताप की प्रशंसा की
280एकमात्र परमेश्वर का प्रभुत्व है इंसान की नियति पर
281इंसान अपनी किस्मत पर काबू नहीं कर सकता
282बहुत पहले ही तय कर दिया इंसान की नियति को परमेश्वर ने
283इन्सान का जीवन पूरी तरह है परमेश्वर की प्रभुता में
284मनुष्य की पीड़ा कैसे उत्पन्न होती है?
285दुख से भर जाते हैं दिन परमेश्वर के बिन
286सत्य से प्रेम करने वाले ही परमेश्वर की संप्रभुता को समर्पित हो सकते हैं
287क्या मनुष्य अपने भाग्य को खुद नियंत्रित करता है?
288परमेश्वर इंसानी दुनिया के अन्याय को दूर करेगा
289परमेश्वर मानवजाति की कठिनाइयों का अनुभव करता है
290परमेश्वर की योजना कभी बदली नहीं है
291परमेश्वर जब आता है तब उसे जानने में कौन समर्थ है?
292लोग परमेश्वर के उद्धार को नहीं जानते
293परमेश्वर चाहता है इंसानियत जीती रहे
294परमेश्वर की दया ने मनुष्य को आज तक जीवित रखा है
295आत्मायुक्त प्राणी थे मूल इंसान
297इंसान वो नहीं रहा जैसा परमेश्वर चाहता है
298शैतान के हाथों इंसान के दूषण के परिणाम का सत्य
299मनुष्य का स्वभाव अत्यंत दुष्ट हो गया है
300इतनी मलिन धरती पर रहते हैं लोग
301लोग परमेश्वर के असली चेहरे को नहीं जानते हैं
302लोग मसीह को एक साधारण मनुष्य मानते हैं
303क्या तुम्हें है सच्चा भरोसा मसीह में?
304मनुष्य के पुत्र का आना सभी लोगों को उजागर करता है
305ऐसी तर्कशीलता के साथ तुम परमेश्वर से संपर्क करने में अयोग्य हो
306भ्रष्ट मानवजाति मसीह को देखने के अयोग्य है
307क्या यही है आस्था तुम सबकी?
308कहाँ है तुम्हारा सच्चा विश्वास?
309क्या तुम्हें मसीह के प्रति सच्चा विश्वास और प्रेम है?
310तुममें मसीह के प्रति अविश्वास के बहुत ज्यादा तत्व हैं
311आदमी का सच्चा यक़ीन मसीह में नहीं है
312परमेश्वर उन्हीं की प्रशंसा करता है जो ईमानदारी से मसीह की सेवा करते हैं
313देहधारी परमेश्वर को कोई नहीं जानता
314वे दुष्ट कौन हैं जो परमेश्वर की अवहेलना करते हैं?
315मसीह के बारे में धारणाएँ रखना परमेश्वर का विरोध करना है
316तुम्हारे दिलों में केवल नाइंसाफ़ी है
317परमेश्वर चुपचाप मनुष्य के शब्दों और कर्मों को देखता है
318जो कुछ भी लोग कहते और करते हैं, वह बच नहीं सकता परमेश्वर की नज़र से
319मनुष्य के शब्द और कर्म परमेश्वर के दहन से नहीं बच सकते
320परमेश्वर की नज़रों में तुम्हारी बातें और तुम्हारे कर्म मैले हैं
321परमेश्वर उन्हें कैसे माफ़ कर सकता है जो उसके वचनों को त्याग देते हैं?
322परमेश्वर इंसान से क्या पाता है?
323लोग परमेश्वर से परमेश्वर जैसा बर्ताव नहीं करते
324परमेश्वर में विश्वास करने के पीछे मनुष्य के घृणित इरादे
325परमेश्वर में मनुष्य का विश्वास असहनीय रूप से बुरा है
326परमेश्वर में मनुष्य के विश्वास की सबसे दुखद बात
327अपने गंतव्य की खातिर मनुष्य द्वारा परमेश्वर को प्रसन्न करने की कुरूपता
328इंसान ने ईश्वर को अपना दिल नहीं दिया है
329परमेश्वर चाहता है सच्चा दिल मनुष्य का
330क्या अपने लिये परमेश्वर की आशाओं को महसूस किया है तुम लोगों ने?
331क्या तुम्हारा देह की ख्वाहिशों में जीना परमेश्वर की इच्छा है?
333उम्मीद करता है परमेश्वर कि इंसान उसके वचनों के प्रति निष्ठावान बन सके
335परमेश्वर के वचनों के मूल की थाह पा नहीं सकता कोई
336तुम सत्य के लिए जी ही नहीं रहे हो
337तुमने ईश्वर को क्या समर्पित किया है?
338परमेश्वर के प्रति तुम्हारी वफ़ादारी की अभिव्यक्ति कहाँ है?
340परमेश्वर तुम पर जो कार्य करता है, वह अत्यंत मूल्यवान है
342परमेश्वर को नफ़रत है इंसानों के आपसी जज़्बात से
343जो परमेश्वर को नहीं जानते, वे उसका विरोध करते हैं
344जो परमेश्वर को धारणाओं से मापता है वो उसका प्रतिरोध करता है
346तुम्हें तो अपने क़द का ही पता नहीं है
347मनुष्य की मौलिक पहचान और उसका मोल
348हैसियत सँजोने में क्या मूल्य है?
350भ्रष्ट इंसान परमेश्वर का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता
351बहुत कम लोग हैं परमेश्वर के अनुरूप
353कहाँ है ईश्वर से तुम्हारी अनुकूलता का प्रमाण?
354किसी को भी सक्रिय रूप से परमेश्वर को समझने की परवाह नहीं
355बदले में क्या दिया है तुमने परमेश्वर को
356परमेश्वर के हृदय को कौन समझ सकता है?
357कोई नहीं समझता परमेश्वर की इच्छा
359इंसान परमेश्वर के वचनों को दिल से ग्रहण नहीं करता
360क्या तुम लोग सचमुच परमेश्वर के वचनों में जीते हो?
361मनुष्य के कामों में परमेश्वर के प्रति उसकी धोखाधड़ी व्याप्त है
362परमेश्वर किसी भी सर्जित प्राणी को उसे धोखा देने नहीं देता
363लोग नहीं जानते कि वे कितने अधम हैं
365तुम्हारी प्रकृति बहुत भ्रष्ट है
366जो परमेश्वर के कार्य के साथ क़दम मिलाकर नहीं चल सकते, उन्हें हटा दिया जाएगा
367परमेश्वर लोगों को धरती के नारकीय जीवन से बचाता है
368क्या युगों की घृणा को भुला दिया गया है?
369अंधेरे में हैं जो उन्हें ऊपर उठना चाहिये
370परमेश्वर को सबसे अधिक क्या दुखी करता है
371कौन परमेश्वर की इच्छा की परवाह कर सकता है?
372किसने कभी परमेश्वर के दिल को समझा है?
373लोग परमेश्वर से ईमानदारी से प्रेम क्यों नहीं करते?
374क्या तुमने अभी तक परमेश्वर से कुछ ख़ास हासिल नहीं किया है?
375क्या तुम सच में परमेश्वर की प्रजा में शामिल होने के योग्य हो?
376जो परमेश्वर के प्रति अवज्ञाकारी हैं, वे उससे विश्वासघात करते हैं
377परमेश्वर पर विश्वास करके भी उसकी अवहेलना करने वालों का परिणाम
378विश्वासघात मनुष्य की प्रकृति है
379परमेश्वर से विश्वासघात करना मानवीय प्रकृति है
380परमेश्वर से विश्वासघात करने के खतरनाक परिणाम
381किस तरह का व्यक्ति बचाया नहीं जा सकता?
383परमेश्वर के प्रकाश के आगमन से कौन बच सकता है?
384परमेश्वर पर भरोसे का सच्चा अर्थ
385इंसान के लिये परमेश्वर के प्रबंधनों का प्रयोजन
386परमेश्वर में इंसान की आस्था का क्या लक्ष्य होना चाहिए
387विश्वास के लिए मुख्य है परमेश्वर के वचनों को जीवन की वास्तविकता के रूप में स्वीकार करना
388सत्य का अभ्यास परमेश्वर में विश्वास की कुंजी है
389हर इंसान को परमेश्वर की आराधना करनी चाहिए
390विश्वासियों के लिए क्रियाओं के सिद्धांत
391परमेश्वर में आस्था की सर्वोच्च प्राथमिकता
392लोगों को परमेश्वर का भय मानने वाले हृदय के साथ उस पर विश्वास करना चाहिए
393अपने विश्वास में उस मार्ग का अनुसरण करो जिस पर पवित्र आत्मा अगुआई करता है
394परमेश्वर के लिए तुम्हारा विश्वास हो सबसे ऊँचा
395सच्चे विश्वासी की ज़िम्मेदारियाँ
396परमेश्वर इंसान के सच्चे विश्वास की आशा करता है
397परमेश्वर में विश्वास उसे जानने का प्रयास करना है
398तुम्हें अपने विश्वास में ईश्वर से प्रेम करने का प्रयास करना चाहिए
399परमेश्वर में आस्था की राह, है राह उससे प्यार करने की
400लक्ष्य जिसका अनुसरण करना चाहिये विश्वासियों को
401परमेश्वर में विश्वास का महत्व बहुत गहरा है
402जिनके पास सच्चा विश्वास होता है उन्हीं को परमेश्वर की स्वीकृति मिलती है
403विश्वास की वजह से ही तुमने पाया इतना कुछ
404सबसे महत्वपूर्ण चीज़ जो परमेश्वर के विश्वासियों को हासिल करना चाहिये
405क्या यह परमेश्वर में सच्चा विश्वास है?
406तुम्हारा विश्वास वास्तव में कैसा है?
407क्या वर्षों के विश्वास से तुमने कुछ भी हासिल किया है?
408क्या तुमने अपनी आस्था में सचमुच अपना जीवन समर्पित किया है?
409लोग परमेश्वर में सचमुच विश्वास नहीं करते हैं
410तुम्हारा विश्वास अभी भी भ्रमित है
411परमेश्वर में विश्वास करके भी सत्य को स्वीकार न करना अविश्वासी होना है
412अपने विश्वास को गंभीरता से न लेने का परिणाम
413ऐसी आस्था जिसकी ईश्वर प्रशंसा न करे
414लोग अपने विश्वास में विफल क्यों हो जाते हैं?
415सफलता या विफलता मनुष्य की कोशिश पर निर्भर है
417मनुष्य की पुकार पर परमेश्वर देता है वो जिसकी उसे ज़रूरत है
419सच्ची प्रार्थना में प्रवेश कैसे किया जाता है
421पवित्र आत्मा का कार्य पाने के लिए प्रार्थना में दिल से बात करो
422समर्पण और उचित प्रार्थनाएँ बहुत महत्व की हैं
423बिना सच्ची प्रार्थना के, सच्ची सेवा नहीं होती
424परमेश्वर की ओर देखना और उस पर भरोसा करना सबसे महान बुद्धिमत्ता है
425जो परमेश्वर के सामने शांत रहते हैं, केवल वही जीवन पर ध्यान केंद्रित करते हैं
426परमेश्वर के समक्ष अपने हृदय को शांत करने पर तुम्हें ध्यान देना चाहिए
427परमेश्वर अपने संग सहयोग करने वालों को दुगुना प्रतिफल देता है
428परमेश्वर के सामने शांत कैसे रहें
429अपने हृदय को परमेश्वर के आगे शांत करने के तरीके
430परमेश्वर के समक्ष शांत रहने का अभ्यास
431परमेश्वर के समक्ष अपने हृदय को शांत रखने के फ़ायदे
432जो लोग परमेश्वर के समक्ष अक्सर शांत रहते हैं वे धर्मपरायण होते हैं
433जब तुम देते हो अपना हृदय परमेश्वर को
434अपना हृदय परमेश्वर की ओर मोड़ कर ही तुम परमेश्वर की सुंदरता कर सकते हो महसूस
435अगर तुम ईश्वर में विश्वास करते हो तो उसे अपना हृदय सौंप दो
436क्या तुम्हारा दिल ईश्वर की ओर मुड़ा है?
437परमेश्वर से प्रेम करने में समर्थ होने के लिए अपना हृदय पूरी तरह उसकी ओर मोड़ो
438जब तुम खोलते हो अपना हृदय परमेश्वर के लिए
439परमेश्वर को अपने हृदय में आने दो
440एक सही आध्यात्मिक जीवन हमेशा बनाये रखना चाहिए
441परमेश्वर के साथ सामान्य रिश्ता कैसे स्थापित करें
442परमेश्वर के साथ सामान्य संबंध रखना महत्वपूर्ण है
443पारस्परिक रिश्ते परमेश्वर के वचनों के अनुसार बनाने चाहिए
444क्या परमेश्वर से तुम्हारा संबंध सामान्य है?
445उन लोगों के गुण जिनका परमेश्वर उपयोग करता है
446पूर्ण किये जाने के लिये परमेश्वर से सामान्य संबंध बनाओ
447एक सामान्य स्थिति क्या होती है?
448सामान्य स्थिति जीवन में तीव्र विकास की ओर ले जाती है
449पवित्रात्मा के काम की अभिव्यक्ति
450क्या तुमने ईश्वर में विश्वास के सही रास्ते में प्रवेश कर लिया है?
451पवित्र आत्मा का कार्य सामान्य और व्यावहारिक है
452पवित्र आत्मा के कार्य के सिद्धांत
453पवित्र आत्मा के कार्य के अपने सिद्धांत हैं
454पवित्र आत्मा ज़्यादा कार्य करता है उनमें, पूर्ण किये जाने की तड़प है जिनमें
455परमेश्वर उन्हें पूर्ण करता है जिनमें पवित्रात्मा का कार्य होता है
456पवित्र आत्मा के कार्य को अपने प्रवेश में लेकर चलो
457पवित्र आत्मा के कार्य से इंसान सक्रिय रूप से प्रगति करता है
458जब पवित्र आत्मा मनुष्य पर कार्य करता है
459पवित्र आत्मा के कार्य पर ध्यान दो
460पवित्र आत्मा के काम को मानो तो तुम चलोगे पूर्णता के पथ पर
461परमेश्वर अपनी उम्मीद रखता है पूरी तरह इंसान पर
462परमेश्वर उत्सुकतापूर्वक उन्हें चाहता है जो उसकी इच्छा पूरी कर सकें
463बदली नहीं हैं परमेश्वर की उम्मीदें इंसान के लिये
464परमेश्वर स्वयं के लिए इंसान की सच्ची आस्था और प्रेम पाने की करता है आशा
465परमेश्वर मूल्यवान मानता है उनको जो उसकी सुनते और उसका आदेश मानते हैं
466परमेश्वर की एकमात्र इच्छा है कि इंसान उसकी बात सुने और माने
467इंसान को परमेश्वर के वचनों के अनुसार चलना चाहिये
468ईश-वचन इंसान के जीवन की सभी जरूरतों के लिए आपूर्ति करते हैं
469परमेश्वर के वचनों की महत्ता
470परमेश्वर के वचन : इंसान के जीने के इकलौते सिद्धान्त
471परमेश्वर के वचन कभी न बदलने वाला सत्य हैं
472सत्य जीवन का सबसे ऊंचा सूत्र है
473केवल सत्य ही इंसान के दिल को सुकून दे सकता है
474सत्य के लिए तुम्हें सब कुछ त्याग देना चाहिए
477परमेश्वर के वचनों को अपने आचरण का आधार बनाओ
478परमेश्वर के वचनों के प्रति कैसा दृष्टिकोण अपनायें
479परमेश्वर के वचनों के प्रति इंसान का जो रवैया होना चाहिए
480जीवन को परमेश्वर के वचनों से भरो
481इंसान को परमेश्वर की राह पर कैसे चलना चाहिए
482परमेश्वर के वचनों को जो संजोते हैं वे धन्य हैं
483चाहे बड़ा हो या छोटा, सबकुछ मायने रखता है जब परमेश्वर की राह का पालन कर रहे हो
484परमेश्वर में सच्चा विश्वास उसके वचनों का अभ्यास और अनुभव है
485परमेश्वर के कार्य का अनुभव उसके वचनों से अविभाज्य है
486परमेश्वर के वचनों से खुद को लैस करना तुम्हारी सर्वोच्च प्राथमिकता है
487परमेश्वर के वचनों के बिना जीवन का अनुसरण नहीं किया जा सकता
488परमेश्वर के वचन की सच्चाई में कैसे करें प्रवेश
489परमेश्वर के वचनों को अपनी स्थितियों के सन्दर्भ में पढ़ो
490परमेश्वर के वचन के अपने अभ्यास में प्रयास करो
491ज्ञान वास्तविकता का विकल्प नहीं है
492इन्सान के लिए परमेश्वर की सलाह
493क्या तुम परमेश्वर को आनंद देने वाला फल बनना चाहते हो?
494केवल परमेश्वर के वचनों का अभ्यास करने से ही वास्तविकता आती है
495वास्तविक परिवर्तन के लिए सत्य का अभ्यास करो
496सत्य को जितना अधिक अमल में लाओगे उतनी तेज़ी से प्रगति करोगे
497असल कीमत चाहिये सत्य के अमल के लिये
498सत्य का अभ्यास करने वाले ही परीक्षणों में गवाही दे सकते हैं
499सत्य का अभ्यास करोगे तो बदल जाएगा स्वभाव तुम्हारा
500देह-सुख को त्यागना सत्य का अभ्यास करना है
502दैहिक इच्छाएँ त्यागने का अर्थ
503परमेश्वर की मनोरमता को देखने के लिए देहासक्ति को त्याग दो
504सत्य पर अमल के लिये सबसे सार्थक है दुख सहना
505सत्य का अभ्यास करने के लिए कष्ट उठाने पर ईश्वर की प्रशंसा प्राप्त होती है
506सत्य पर और अमल करो, परमेश्वर का और आशीष पाओ
507सच्चाई से जी कर ही तू दे सकता है गवाही
508पूर्ण किए जाने के लिए सत्य के अभ्यास पर ध्यान लगाओ
509परमेश्वर द्वारा प्राप्त लोगों ने वास्तविकता प्राप्त की है
510तुम्हें सभी चीज़ों में परमेश्वर की गवाही देनी चाहिए
511ईश्वर की संतुष्टि के लिए हर चीज़ में ईश्वर की गवाही दो
512परमेश्वर के वचनों का आधार ही अभ्यास का मार्ग प्रदान करता है
513हर चीज़ में सत्य की खोज करें
515अपनी कठिनाइयों को हल करने के लिए सत्य की तलाश करो
516गहन अनुभव के लिए परमेश्वर के वचन को स्वीकारो
517प्रगति करने के लिए हर चीज़ में सत्य की खोज करें
518सत्य को समझना आसान बात नहीं है
519सत्य को हासिल करना क्या है?
520परमेश्वर उन्हें आशीष देता है जो सच्चे मन से सत्य का अनुसरण करते हैं
521जो सत्य का अनुसरण करता है उसे ही परमेश्वर द्वारा पूर्ण किया जा सकता है
522पवित्र आत्मा का कार्य पाने के लिए परमेश्वर के वचनों में जियो
523परमेश्वर के वचनों का पालन करो तो तुम कभी राह से नहीं भटकोगे
524क्या परमेश्वर के वचन सचमुच तुम्हारा जीवन बन गए हैं?
525परमेश्वर की सच्ची आराधना करने वाला बनने का प्रयास करो
527परमेश्वर के वचनों का सच्चा अर्थ कभी समझा नहीं गया है
528लोग परमेश्वर के वचनों का अभ्यास ही नहीं करते
529परमेश्वर की सहिष्णुता के कारण अपने आप में लिप्त मत हो जाओ
530परमेश्वर के लिए मनुष्य का हठ और बार-बार वही अपराध करना सबसे घृणित है
531मनुष्य को बचाना बहुत मुश्किल है
532हटा दिया जाएगा उन्हें जो नहीं करते परमेश्वर के वचनों का अभ्यास
533जो भी सत्य का अभ्यास नहीं करता वो हटा दिया जाएगा
534सत्य का अनुसरण न करने से रोना और दाँत पीसना पड़ता है
535जो सत्य की तलाश नहीं करते वो अफ़सोस करेंगे
536जो सत्य पाने की कोशिश नहीं करते, वे अंत तक अनुसरण नहीं कर सकते
537मृत्यु-शैय्या पर सत्य के प्रति जागना बड़ी देर से जागना है
538इंसान जब शैतान के प्रभाव को त्याग देता है, तो उसे बचा लिया जाता है
539सत्य का अनुसरण किए बिना शैतान के प्रभाव को हटाया नहीं जा सकता
540परमेश्वर द्वारा हासिल होने के लिए अन्धकार के प्रभाव को त्याग दो
541अंधकार के प्रभावों से बचने के लिए परमेश्वर के वचनों का पालन करो
542आज का सत्य उन्हें दिया जाता है जो उसके लिए लालसा और उसकी खोज करते हैं
543अगर तुम सत्य से प्रेम करते हो तभी सच का अभ्यास कर सकते हो
544जो सत्य से प्रेम करते हैं उन्हें ही सत्य प्राप्त होगा
545अपने स्वभाव को बदलने के लिए ईश्वर के वचनों के सहारे जियो
546सत्य का अनुसरण करते हैं जो, पसंद करता है उन्हें परमेश्वर
547परमेश्वर उसी को बचाता है जो सत्य से प्रेम करता है
548परमेश्वर को पसंद हैं लोग जिनमें संकल्प है
549सत्य का अनुसरण करने से सभी समस्याओं का समाधान हो सकता है
550तुम्हें उत्तरजीवी बनने की कोशिश करनी चाहिए
551सच का अनुसरण करने के लिए ज़रूरी संकल्प
552बचाये जा सकते हो, अगर सत्य को न त्यागो तुम
553परमेश्वर उनका त्याग नहीं करेगा जो निष्ठापूर्वक उसके लिए लालसा रखते हैं
554तुम्हारी बेरूख़ी तुम्हें नष्ट कर देगी
555तुम्हें सकारात्मक प्रगति की कोशिश करनी चाहिए
556केवल सत्य का अभ्यास करने वाले ही परमेश्वर द्वारा बचाए जा सकते हैं
557क्या तुम अपनी प्रकृति जानते हो?
558परमेश्वर के वचनों के अनुसार स्वयं को समझो
559स्वयं को समझने के लिए अपनी वास्तविक मनोदशा को समझें
560इंसानी प्रकृति को कैसे समझें
562अपने विचारों और दृष्टिकोण को जानना महत्वपूर्ण है
563व्यक्ति की प्रकृति सुधारने के मूलभूत सिद्धांत
564यह तरीका आत्मचिंतन की कुंजी है
565स्वयं को जान लेने के बाद ही कोई अपने आपसे घृणा कर सकता है
566परमेश्वर उन्हें आशीष देता है जो ईमानदार हैं
567मनुष्य में परमेश्वर की महिमा बहुत महत्व रखती है
568तुम्हें अपने हर काम में परमेश्वर की निगरानी को स्वीकार करना चाहिए
569अंत में किसी का भाग्य कैसे संपन्न होगा?
570एक ईमानदार व्यक्ति बनने का अभ्यास कैसे करें
572परमेश्वर के बारे में संदेह करने वाले सबसे अधिक कपटी होते हैं
573इंसान का फ़र्ज़ सृजित प्राणी का उद्यम है
574अपने कर्तव्य में सत्य का अभ्यास करना ही कुंजी है
575परमेश्वर का ध्यान मनुष्य के हृदय पर है
576अपना कर्तव्य करने का अर्थ है भरसक प्रयत्न करना
577परमेश्वर के आदेश की पूर्ति के लिये कर दो अपना तन-मन समर्पित
578परमेश्वर के आदेश को किस ढंग से लें
579तुम्हें अपना कर्तव्य कैसे निभाना चाहिए
580परमेश्वर के वचनों का अभ्यास और परमेश्वर को संतुष्ट करना सबसे पहले आता है
581सिद्धांत के अनुसार काम करने से ही लोग अपना कर्तव्य ठीक से कर सकते हैं
582केवल ईमानदार लोग अपना कर्तव्य ठीक से कर सकते हैं
583ऐसा व्यक्ति बनो जो परमेश्वर को संतुष्ट करे और उसके मन को चैन दे
584परमेश्वर के कार्य के लिए पूरी तरह समर्पित हो जाओ
585अधिक बोझ उठाओ ताकि परमेश्वर द्वारा अधिक आसानी से पूर्ण किये जा सको
586इस मौके को खो दोगे तो तुम हमेशा पछताओगे
587धन्य हैं वे जो ईश्वर के लिए स्वयं को सचमुच खपाते हैं
589परमेश्वर ने बहुत पहले तैयार कर दी हर चीज़ इंसान के लिये
590तुम्हें सभी चीज़ों में परमेश्वर की इच्छा खोजनी होगी
591परमेश्वर के भवन में अपनी निष्ठा अर्पित करो
592लापरवाही से काम करना कर्तव्यपालन नहीं है
593अच्छे और बुरे को मापने के लिए परमेश्वर का मानक
594परमेश्वर उनका तिरस्कार करेगा जो अपने कर्तव्यों में चूक जाते हैं
595केवल अपना फ़र्ज़ निभाना संतुष्ट कर सकता है परमेश्वर को
596तुम्हें दृढ़ता से अपना कर्तव्य निभाना चाहिए
597अपना कर्तव्य पूरा करोगे तो गवाही दे पाओगे
598परमेश्वर की जाँच को तुझे हर चीज़ में स्वीकर करना चाहिए
599अपना कर्तव्य निभाने के लिए जीना सार्थक है
600मनुष्य जिस मार्ग पर चलता है, उस पर उसकी सफलता या असफलता निर्भर करती है
602परमेश्वर में सफल विश्वास का मार्ग
603जब तुम सत्य का अनुसरण नहीं करते तो तुम पौलुस के रास्ते पर चलते हो
604परमेश्वर के विश्वासी को किस चीज़ की खोज करनी चाहिए
605परमेश्वर द्वारा प्राप्त किया जाना तुम्हारी अपनी कोशिश पर निर्भर है
606इंसान को मापने के लिए परमेश्वर उसकी प्रकृति का इस्तेमाल करता है
607परमेश्वर की सेवा के लिए न्यूनतम आवश्यकता
608परमेश्वर की इच्छा के अनुसार सेवा कैसे करें
609वही पात्र हैं सेवा के जो अंतरंग हैं परमेश्वर के
611परमेश्वर की सेवा करने के लिए तुम्हें उसे अपना हृदय अर्पित करना चाहिए
612ईश्वर की सेवा करने वाला बनने के लिए क्या चाहिए
613कलीसिया की अगुआई के लिए किसकी आवश्यकता है
614तुम लोगों का प्रवेश ही तुम लोगों का काम है
615परमेश्वर द्वारा इस्तेमाल के योग्य कैसे हों
616दो सिद्धांत जिन्हें अगुवाओं और कर्मियों को अवश्य ग्रहण करना चाहिए
617मनुष्यों के लिए परमेश्वर का अनुस्मारक
618उस तरह सेवा करो जैसे इस्राएलियों ने की
620परमेश्वर की इच्छा पूरी करने के लिए अपना दिल समर्पित करो
621स्वभाव बदले बिना कोई परमेश्वर की सेवा नहीं कर सकता
622परमेश्वर की जोश में की गयी सेवा के परिणाम
623ऐसा स्वभाव परमेश्वर की सेवा के योग्य कैसे हो सकता है?
624परमेश्वर उनकी सराहना नहीं करता जो पौलुस की तरह सेवा करते हैं
625परमेश्वर को न जानने से तुम आसानी से उसका अपमान करोगे
626जिन लोगों में मानवता नहीं है वे परमेश्वर की सेवा के लायक नहीं हैं
627धार्मिक धारणाओं को पकड़े रखना तुम्हें बर्बाद ही करेगा
628त्याग दो धार्मिक अवधारणाएं परमेश्वर द्वारा पूर्ण किये जाने के लिए
629क्या तुमने अपनी धार्मिक अवधारणाओं को त्यागा है?
630परमेश्वर के लोगों के प्रबंधन के कार्य के बारे में सच्चाई
631परमेश्वर की ताड़ना और न्याय है मनुष्य की मुक्ति का प्रकाश
632परमेश्वर की ताड़ना और न्याय प्रेम हैं ये जान लो
634ताड़ना मिलने और न्याय किए जाने के कारण तुम लोगों को सुरक्षा दी जाती है
635शैतान के प्रभाव को दूर करने के लिए परमेश्वर के न्याय का अनुभव करो
636क्या तुम ऐसे व्यक्ति हो जिसने ताड़ना और न्याय को हासिल किया है?
637क्या ये दुनिया तुम्हारी आरामगाह है?
638यदि तुम परमेश्वर के न्याय से भाग निकलते हो, तो क्या होगा?
639परमेश्वर द्वारा इन लोगों के चुने जाने का महान अर्थ
640तुमने महान आशीषों का आनंद लिया है
641परमेश्वर द्वारा मोआब के वंशजों का उत्कर्ष
642वह संकल्प जो मोआब की संतानों के पास होना चाहिए
643मोआब के वंशजों पर परमेश्वर के कार्य का अर्थ
644विषमता का कार्य करना जीवन भर का आशीष है
645असफलतायें और मुश्किलें परमेश्वर के आशीष हैं
646इंसानों के बीच सबसे सुंदर चीज
647हम बचाए गए हैं क्योंकि हमें परमेश्वर ने चुना है
648सत्य का अभ्यास करो तो तुम बदल सकते हो
649ईश्वर की इच्छा को निराश नहीं कर सकते तुम
650तुम्हें अपनी वर्तमान पीड़ा का अर्थ समझना होगा
651इस दुःख को सहने का गहरा महत्व है
652तुम सब वो हो जो परमेश्वर की विरासत पाओगे
653परमेश्वर के वचनों के न्याय और ताड़ना को कैसे स्वीकार करें
655परमेश्वर विश्वास को पूर्ण बनाता है
656परीक्षणों की पीड़ा एक आशीष है
657परीक्षण माँग करते हैं आस्था की
659यातनाओं के दौरान सिर्फ़ विजयी लोग अडिग रहते हैं
661परमेश्वर के सच्चे विश्वासी परीक्षाओं में मजबूती से खड़े रह सकते हैं
662परीक्षणों के दौरान मनुष्य को किसका पालन करना चाहिए
663जब परीक्षण आ पड़ें तो तुम्हें परमेश्वर की ओर खड़े होना चाहिए
664जब परमेश्वर इंसान की आस्था की परीक्षा लेता है
665इम्तहान में परमेश्वर को इंसान का सच्चा दिल चाहिए
666धन्य है वे जिनकी ईश-वचनों से परीक्षा होती है
667मनुष्य परमेश्वर के नेक इरादों को न समझ पाए
668इंसान का शोधन बेहद सार्थक है परमेश्वर के द्वारा
669केवल पीड़ादायक परीक्षणों के माध्यम से तुम परमेश्वर की सुंदरता को जान सकते हो
670मुश्किलों और परीक्षणों के ज़रिए ही तुम ईश्वर को सचमुच प्रेम कर सकते हो
671यदि तुम परीक्षणों में गवाही देते हो, तो परमेश्वर तुम्हारे सामने प्रकट होगा
672परमेश्वर के परीक्षण इंसान को शुद्ध करने के लिए होते हैं
673परमेश्वर द्वारा मनुष्य के परीक्षणों और शुद्धिकरण का अर्थ
674ईश्वर सबकुछ इंसान को पूर्ण बनाने और प्रेम करने के लिए करता है
675परमेश्वर के शुद्धिकरण के कार्य का उद्देश्य
676शुद्धिकरण के साथ विश्वास आता है
677शुद्धिकरण के दौरान परमेश्वर से प्रेम कैसे करें
678केवल कष्ट और शोधन के ज़रिये ही तुम ईश्वर द्वारा पूर्ण किए जा सकते हो
679परमेश्वर के लिए, इन्सान को पूर्ण करने का सर्वोत्तम उपाय शुद्धिकरण है
680शुद्धिकरण की पीड़ा के मध्य ही शुद्ध बनता है इंसान का प्रेम
681परमेश्वर के परीक्षण और शुद्धिकरण मानव की पूर्णता के लिए हैं
682परमेश्वर मनुष्य को कई तरह से पूर्ण बनाता है
683परमेश्वर को उसके अनुग्रह का आनंद लेकर नहीं जाना सकता
684परमेश्वर की सच में तलाश करने वाले सभी लोग उसके आशीष प्राप्त कर सकते हैं
685इंसान को जो करना है उस पर उसे अटल रहना चाहिये
686परमेश्वर का उद्धार पाने वाले ही जीवित हैं
687असफलता, खुद को जानने का सबसे अच्छा अवसर है
688परमेश्वर जो भी करता है, वह सब इंसान को बचाने के लिए होता है
689काट-छाँट और निपटान का अनुभव करना सबसे सार्थक है
690बीमारी का प्रहार होने पर परमेश्वर की इच्छा की खोज करनी चाहिए
691बीमारी की शुरुआत परमेश्वर का प्रेम है
692परीक्षण के प्रति इंसान का रवैया
693परमेश्वर अंततः उसी को स्वीकार करते हैं, जिसके पास सत्य होता है
694ताड़ना और न्याय के बारे में पतरस की समझ
695परीक्षाओं के प्रति पतरस का रवैया
696तुम्हें पता होना चाहिए कि परमेश्वर के कार्य का अनुभव कैसे करें
697व्यवहारिक परमेश्वर में आस्था से बहुत लाभ हैं
698जीवन प्राप्त करने के लिए न्याय स्वीकारो
699परमेश्वर को अर्पित करना सबसे मूल्यवान बलिदान
700स्वभाव में बदलाव है मुख्यत: प्रकृति में बदलाव
702स्वभाव में बदलाव पवित्र आत्मा के काम से अलग नहीं हो सकता
703तुम्हारे स्वभाव में बदलाव की शुरुआत तुम्हारी प्रकृति को समझने से होती है
704अपनी प्रकृति को जानना स्वभाव में परिवर्तन की कुंजी है
705केवल स्वभावगत बदलाव ही सच्चे बदलाव हैं
706परमेश्वर लोगों के स्वभावों में बदलाव को कैसे मापता है
707स्वभाव में बदलाव वास्तविक जीवन से अलग नहीं हो सकता
708स्वभाव में परिवर्तन की प्रक्रिया
709स्वभाव में बदलाव लाने के लिए सत्य का अनुसरण करो
710परमेश्वर के कार्य का पालन करने से ही स्वभाव बदलता है
711अच्छा व्यवहार स्वभाव-संबंधी बदलाव के समान नहीं होता
712जिन लोगों का स्वभाव बदल गया है उनकी अभिव्यक्तियाँ
714स्वभाव-संबंधी बदलाव हासिल कर चुके लोग इंसान के समान जी सकते हैं
715यही एक वास्तविक इंसान के समान होना है
716जिनके पास सत्य है सिर्फ़ वही एक वास्तविक जीवन जी सकते हैं
717परमेश्वर के गवाहों के लिए स्वभाव में बदलाव आवश्यक है
718स्वभावगत बदलाव पर भरोसा रखो
719जो परमेश्वर के कार्य का निष्ठापूर्वक पालन करते हैं, वे उसके द्वारा ग्रहण किये जा सकते हैं
720परमेश्वर मनुष्य की सच्ची आज्ञाकारिता चाहता है
721जो परमेश्वर की आज्ञा नहीं मानते, वे उसका विरोध करते हैं
722देहधारी परमेश्वर की आज्ञा का पालन करो और पूर्ण हो जाओ
723परमेश्वर के प्रति मनुष्य की आज्ञाकारिता का मानदंड
724नवीनतम प्रकाश को स्वीकारना परमेश्वर की आज्ञा मानने की कुंजी है
725पूर्ण बनाए जाने के लिए परमेश्वर के मौजूदा वचनों के प्रति समर्पित हो जाओ
726सृजित जीव को होना चाहिये परमेश्वर की दया पर
727सृजित प्राणियों को सर्जक की आज्ञा माननी चाहिए
728क्या तुम सचमुच परमेश्वर के आयोजनों के प्रति समर्पण कर सकते हो?
729परमेश्वर के प्रति उचित दृष्टिकोण
730परमेश्वर के अधिकार के अधीन कैसे हों
731मनुष्य परमेश्वर से बहुत अधिक माँग करता है
732इंसान ईश्वर से हमेशा माँगता क्यों रहता है?
733मनुष्य में विवेक का बहुत अभाव है
734जब तुम परमेश्वर से अपेक्षाएं रखते हो तो तुम उसकी अवहेलना भी कर सकते हो
735परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने का ज़रूरी रास्ता
736परमेश्वर का भय मानने से ही बुराई दूर रह सकती है
737मनुष्य के पास परमेश्वर का भय मानने वाला हृदय होना चाहिए
738परमेश्वर को संतुष्ट करने के लिए तुम्हें उसके मानक को समझना चाहिए
739परमेश्वर के प्रति श्रद्धा रखने वाले लोग सभी चीज़ों में उसका गुणगान करते हैं
740जो परमेश्वर का सम्मान करते हैं केवल वही परीक्षाओं में गवाह बन सकते हैं
741सुरक्षा पाने की ख़ातिर भय मानो परमेश्वर का
742वही मनुष्य खुश है जो परमेश्वर का सम्मान करता है
743गरिमा है उसमें जो करता है आदर परमेश्वर का
744शैतान पर अय्यूब की जीत का प्रमाण
745अय्यूब की गवाही ने शैतान को हरा दिया
746अय्यूब के धार्मिक कार्यों ने शैतान को हरा दिया
747अय्यूब ईश्वर का आदर कैसे कर पाया?
748परमेश्वर के प्रति अय्यूब का सच्चा विश्वास और उसकी आज्ञाकारिता
749परमेश्वर के आशीषों के प्रति अय्यूब का मनोभाव
750अय्यूब को परमेश्वर की प्रशंसा मिलने के कारण
751अय्यूब ने अपना पूरा जीवन परमेश्वर को जानने की कोशिश में बिताया
753परमेश्वर जो भी करता है वो मनुष्य को बचाने के लिए है
754जो शैतान को बुरी तरह हराते हैं, केवल उन्हीं को प्राप्त करेगा परमेश्वर
755केवल उन लोगों को बचाया जाता है जो शैतान को हरा देते हैं
756परमेश्वर द्वारा प्राप्त किए जाने के लिए सत्य द्वारा शैतान को हराओ
757आने वाली पीढ़ियों के लिए अय्यूब की गवाही की चेतावनी
758आशीषित हैं वो जो करते हैं परमेश्वर से प्रेम
759परमेश्वर का सच्चा प्रेम पाने की खोज करनी चाहिए तुम्हें
761क्या तुममें परमेश्वर के लिए सच्चा प्रेम है?
762तुम सच में ईश्वर से प्रेम नहीं करते
763परमेश्वर के प्रेम का असली जीवन में आनंद लेना चाहिये
764ईश्वर से प्रेम करने के लिए उसकी मनोहरता का अनुभव करो
765परमेश्वर की सुंदरता को जानना है तो उसके कार्य का अनुभव करो
766ईश्वर से प्रेम करने वालों का आदर्श-वाक्य
767परमेश्वर में विश्वास करना लेकिन उसे प्रेम नहीं करना एक व्यर्थ जीवन है
768परमेश्वर की इच्छा पूरी करने के लिए जीना सबसे सार्थक है
769जो करें परमेश्वर से प्रेम, उनके पास अवसर है पूर्ण बनाए जाने का
770परमेश्वर आशा करता है कि मनुष्य उसे पूरे दिलो-दिमाग और क्षमता से प्रेम करे
771परमेश्वर उनकी रक्षा करता है जो उससे प्रेम करते हैं
772जितना अधिक तुम परमेश्वर को संतुष्ट करोगे, तुम उतने ही अधिक धन्य होगे
773क्या तुम अपने दिल का प्रेम दोगे परमेश्वर को?
774परमेश्वर के लिए पतरस के प्रेम की अभिव्यक्ति
775तुम्हारी पीड़ा जितनी भी हो ज़्यादा, परमेश्वर को प्रेम करने का करो प्रयास
776पतरस ने सच्चे विश्वास और प्रेम को बनाए रखा
777पतरस के अनुभव का अनुकरण करो
778मनुष्य को एक सार्थक जीवन जीने की कोशिश करनी चाहिए
779इंसान शायद समझ ले उसे, उम्मीद है परमेश्वर को
780परमेश्वर उन्हें पाना चाहता है जिन्हें उसका सच्चा ज्ञान है
781इंसान से परमेश्वर की अंतिम अपेक्षा है कि इंसान उसे जाने
782परमेश्वर को जानने के लिए तुम्हें उसके कार्य के तीनों चरणों को जानना होगा
783परमेश्वर को जानना सृजित प्राणियों के लिए सबसे बड़े सम्मान की बात है
784केवल परमेश्वर के कार्य को जानकर ही तुम अंत तक अनुसरण कर सकोगे
785परमेश्वर को जानने के लिए उसके वचनों को जानना ही चाहिए
786इंसान परमेश्वर को उसके वचनों के अनुभव से जानता है
787क्या तुम सचमुच परमेश्वर को समझते हो?
788इंसान को परमेश्वर की इच्छा की कोई समझ नहीं है
789तुम्हें जानना चाहिए परमेश्वर को उसके कार्य द्वारा
790परमेश्वर की इच्छा खुली रही है सबके लिए
791सभी चीज़ों पर परमेश्वर की संप्रभुता द्वारा उसे जानो
792अगर तुम सच में परमेश्वर को जानना चाहते हो
793ख़्यालों से और कल्पनाओं से परमेश्वर को कभी न जान पाओगे
794जो जानते परमेश्वर के शासन को, समर्पित होंगे उसके प्रभुत्व को
795परमेश्वर की सत्ता को जानकर छुटकारा पाया जा सकता है
796परमेश्वर के स्वभाव को समझने का प्रभाव
798परमेश्वर को जानने से ही सच्ची आस्था आती है
799अंतिम परिणाम जिसे हासिल करना परमेश्वर के कार्य का लक्ष्य है
800परमेश्वर को जानकर ही कोई उसका भय मान सकता है और बुराई से दूर रह सकता है
801केवल ईश्वर को जानकर ही इंसान ईश्वर से प्रेम कर सकता है
802परमेश्वर को जानने वाले ही परमेश्वर को पा सकते हैं
803परमेश्वर को जानकर ही आप उसकी सच्ची आराधना कर सकते हैं
804परमेश्वर को जान लेने का परिणाम
805केवल वही लोग परमेश्वर की गवाही दे सकते हैं जो उसे जानते हैं
806परमेश्वर के स्वभाव को न जानने के नतीजे
807तुम्हें पतरस का अनुकरण करना चाहिए
808पतरस जानता था परमेश्वर को सबसे अच्छी तरह
810पतरस ने हमेशा परमेश्वर को जानने का प्रयास किया
811पतरस का अनुसरण परमेश्वर की इच्छा के सर्वाधिक अनुरूप था
812पतरस ने परमेश्वर को व्यवहारिक रूप से जानने पर ध्यान दिया
813यीशु के बारे में पतरस का ज्ञान
814क्या तुम हो अपने लक्ष्य के प्रति आगाह?
815तुम्हें ईश्वर की इच्छा समझनी चाहिए
816परमेश्वर के लिए गवाही देना मानव का कर्तव्य है
818क्या तुम ऐसा इंसान बनने को तैयार हो जो देता है परमेश्वर की गवाही
819क्या तुम परमेश्वर के कार्य के अर्थ और उद्देश्य को जानते हो?
820गवाही जो इंसान को देनी चाहिए
821अपनी आस्था में परमेश्वर की गवाही कैसे दें
822व्यवहारिक परिणाम हासिल करने के लिए परमेश्वर की गवाही कैसे दें
823परमेश्वर के कर्मों को जानकर ही उसकी सच्ची गवाही दी जा सकती है
824परमेश्वर द्वारा जीते जाने के बाद मनुष्य में क्या समझ होनी चाहिए
825परमेश्वर सिर्फ़ गवाही देने के लिए मनुष्य को प्रोत्साहित करता है
826एक विश्वासी के रूप में तुम्हारा कर्तव्य परमेश्वर के लिए गवाही देना है
827विजेता हैं वे जो परमेश्वर की शानदार गवाही दें
828क्या तुम बड़े लाल अजगर के सामने परमेश्वर की गवाही दे सकते हो?
829क्या तुम सचमुच परमेश्वर की गवाही देने का आत्मविश्वास रखते हो?
830तुम्हें अय्यूब और पतरस की गवाहियाँ हासिल करनी चाहिए
831विश्वास रखो कि ईश्वर इंसान को निश्चित रूप से पूर्ण बनाएगा
832लोगों के इस समूह को पूरा करने का संकल्प लिया है परमेश्वर ने
833पूर्ण किए जाने के लिए जो अपेक्षित है
834परमेश्वर उन्हें पूर्ण बनाता है जो उसे सच में प्रेम करते हैं
835परमेश्वर उन्हीं को पूर्ण बनाता है जो प्रेम करते हैं उसे
836जो पूर्ण किए गए हैं उनके पास क्या है
838हर किसी के पास पूर्ण किये जाने का अवसर है
839परमेश्वर चाहता है कि हर कोई पूर्ण हो सके
840पूर्ण किए जाने के लिए तुम्हारे पास संकल्प और साहस होने चाहिए
841परमेश्वर द्वारा पूर्ण किये जाने का मार्ग
842सभी चीज़ों में परमेश्वर द्वारा पूर्ण किए जाने की कोशिश करनी चाहिए
843क्या तुम वो इंसान हो जो परमेश्वर द्वारा पूर्ण बनाये जाने की खोज करता है?
844परमेश्वर तुम्हें तभी पूर्ण करेगा जब तुम पतरस के मार्ग पर चलो
845केवल वे जिन्हें परमेश्वर ने पूर्ण किया हो, उससे सचमुच प्रेम कर सकते हैं
846परमेश्वर क वचनों द्वारा पूर्ण बनाए गए लोग
847सत्य की खोज ही पूर्ण बनाए जाने का एकमात्र अवसर है
848वे अभिव्यक्तियाँ जो पूर्ण बनाए जाने वाले लोगों के पास होती हैं
849परमेश्वर के वादे उनके लिए जो पूर्ण किए जा चुके हैं
850परमेश्वर की वास्तविकता और सुंदरता
851कितना अहम है प्यार परमेश्वर का इंसान के लिये
852परमेश्वर मानता है इंसान को अपना सबसे प्रिय
853परमेश्वर सबकी पूर्ण देखभाल करता है
854परमेश्वर का सार सचमुच अस्तित्व में है
855केवल सृष्टिकर्ता मानवता पर दया करता है
856मानवजाति पर परमेश्वर की दया
857मानवजाति के प्रति परमेश्वर की करुणा निरंतर बहती है
858सृष्टिकर्त्ता की सच्ची भावनाएँ मानवता के लिये
859परमेश्वर का प्रेम और सार है निस्वार्थ
860इंसान के लिए परमेश्वर का प्रेम सच्चा और असली है
861मानव के लिए परमेश्वर का प्रेम
862देहधारी परमेश्वर सबसे प्रिय है
863देहधारी परमेश्वर काफ़ी समय तक मनुष्यों के बीच रहा है
864वह बड़ी पीड़ा क्या है जो परमेश्वर सहन करता है?
865परमेश्वर मनुष्य की दुष्टता और भ्रष्टता से दुखी है
866पुनरुत्थान के बाद यीशु के प्रकट होने का अर्थ
867परमेश्वर है मनुष्य का अनंत सहारा
868इंसान को बचाने के लिये ख़ामोशी से कार्य करता है देहधारी परमेश्वर
869मनुष्य को बचाने को परमेश्वर बड़े कष्ट सहता है
870परमेश्वर मनुष्य के उद्धार के लिए भयंकर कष्ट सहता है
871परमेश्वर की विनम्रता बहुत प्यारी है
873परमेश्वर का कार्य कितना कठिन है
874मनुष्य के लिए परमेश्वर जो करता वो हर काम नेकनीयत है
875मनुष्य के स्थान पर कष्ट झेलने के लिए परमेश्वर के देहधारण का महत्व
876परमेश्वर द्वारा मनुष्य की पीड़ा को अनुभव किये जाने का गहरा अर्थ है
877मनुष्य को बचाने के लिए परमेश्वरघोर अपमान सहता है
878परमेश्वर के कार्य का प्रत्येक कदम मनुष्य के जीवन के लिए है
879परमेश्वर ही सबसे ज़्यादा प्यार करता है इंसान को
880घावों से मनुष्य को प्रेम करता है परमेश्वर
881बहुत कष्ट उठाता है परमेश्वर इंसान को बचाने के लिये
882परमेश्वर ने अपना सारा प्रेम दिया है मानवता को
883जब परमेश्वर देहधारण करता है तभी मनुष्य को उद्धार का अवसर मिलता है
884सबसे असल है परमेश्वर का प्रेम
885इंसान को बचाने के कार्य के पीछे परमेश्वर के सच्चे इरादे
886किसी सृजित प्राणी में नहीं होता परमेश्वर का प्रेम
887परमेश्वर ख़ामोशी से प्रबंध करता है हर एक का
888इंसान के लिए ईश्वर के प्यार की कोई सीमा नहीं
889चूँकि परमेश्वर मनुष्यों को बचाता है, वह उन्हें पूर्ण रूप से बचायेगा
891जिन्हें बचाएगा परमेश्वर उनकी वो सबसे अधिक परवाह करता है
892बचाएगा जिन्हें परमेश्वर, विशिष्ट हैं वे उसके दिल में
893परमेश्वर मुक्त रूप से मनुष्य को सत्य और जीवन देता है
894ईश्वर इंसानों के बीच उन्हें बचाने आता है
895इंसान के लिये परमेश्वर की इच्छा कभी नहीं बदलेगी
896परमेश्वर हमेशा इंसान के लौट आने का इंतज़ार करता है
897परमेश्वर इंसान को अधिकतम सीमा तक बचाना चाहता है
898लोग गलतियां करना छोड़ देते हैं तो परमेश्वर को सुख मिलता है
899मनुष्य को बचाने का परमेश्वर का इरादा बदलेगा नहीं
900परमेश्वर लोगों को अंतिम सीमा तक बचाता है
901जब तक तुम परमेश्वर को नहीं छोड़ते
902स्वयं परमेश्वर की पहचान और पदवी
904परमेश्वर का अधिकार प्रतीक है उसकी पहचान का
905परमेश्वर के अधिकार को जानने का मार्ग
906परमेश्वर के अधिकार को मापना संभव नहीं
907सृष्टिकर्ता के अधिकार का सच्चा मूर्तरूप
908सब ओर है परमेश्वर का अधिकार
909परमेश्वर का अधिकार असली और सच्चा है
910मरे हुए को जीवित करने का परमेश्वर का अधिकार
911सृष्टिकर्ता का अधिकार अपरिवर्तनीय है
912कोई भी ईश-अधिकार का स्थान नहीं ले सकता
913कोई थाह लगा नहीं सकता परमेश्वर के अधिकार और सामर्थ्य
914सभी चीज़ें हैं प्रकटीकरण सृष्टिकर्ता के अधिकार का
915सृष्टिकर्ता के अधिकार के तहत हर चीज़ अत्युत्तम है
916सृष्टिकर्ता के अधिकार और सामर्थ्य असीमित हैं
917परमेश्वर के अधिकार से हर चीज़ जीवित रहती और नष्ट होती है
918सृष्टिकर्ता के अधिकार और पहचान का अस्तित्व साथ-साथ है
919परमेश्वर की सृष्टि को उसके अधिकार का पालन करना चाहिये
920सभी चीज़ें परमेश्वर के अधिकार-क्षेत्र के अधीन होंगी
921परमेश्वर की सारी सृष्टि उसकी प्रभुता के अधीन होनी चाहिए
922कोई भी मनुष्य या वस्तु परमेश्वर के अधिकार और सामर्थ्य से बढ़कर नहीं हो सकता
923शैतान कभी भी परमेश्वर के अधिकार से आगे नहीं निकल सकता
924शैतान का सार क्रूरता और दुष्टता वाला है
925परमेश्वर शैतान को उन्हें नुकसान पहुंचाने नहीं देता जिन्हें वो बचाना चाहता है
926परमेश्वर के अधिकार के तहत शैतान कुछ नहीं बदल सकता
927परमेश्वर का अधिकार स्वर्गिक आदेश है जिसे शैतान कभी नहीं लांघ सकता
928यद्यपि मनुष्य को शैतान ने धोखा देकर भ्रष्ट कर दिया है
929ये वही इंसान है बनाया था परमेश्वर ने जिसे
930परमेश्वर द्वारा निर्धारित नियमों और व्यवस्थाओं में रहती है हर चीज़
931हर चीज़ के प्रबंधन में परमेश्वर के अद्भुत कर्म
932परमेश्वर ने स्वर्ग, धरती और सभी चीज़ें इंसान के लिये बनाई हैं
933मनुष्य को परमेश्वर की रचनाओं को संजोकर रखना चाहिए
934परमेश्वर है सभी चीज़ों का शासक
935परमेश्वर का सार सर्वशक्तिमत्ता भी है और व्यवहारिकता भी
936परमेश्वर उन व्यवस्थाओं पर शासन करता है जिनके अंतर्गत सभी चीजें अस्तित्व में हैं
937इन्सान का जीवन परमेश्वर की प्रभुता के बिना नहीं हो सकता
938परमेश्वर का स्वभाव है उत्कृष्ट और भव्य
939परमेश्वर के स्वभाव का प्रतीक
940परमेश्वर का धर्मी स्वभाव सच्चा और सुस्पष्ट है
941परमेश्वर का धार्मिक स्वभाव है अनूठा
942बेहद दयालु और अत्यंत क्रोधी है परमेश्वर
943परमेश्वर का स्वभाव दयालु, प्रेमपूर्ण, धार्मिक और प्रतापी है
944परमेश्वर अपने धार्मिक स्वभाव से इंसान का अस्तित्व बनाए रखता है
946परमेश्वर का रोष उसके धार्मिक स्वभाव की अभिव्यक्ति है
947परमेश्वर द्वारा सदोम के विनाश में मनुष्यों के लिए चेतावनी
948अंत के दिनों के लोगों ने परमेश्वर के क्रोध को कभी नहीं देखा
949परमेश्वर के क्रोध का प्रतीकात्मक अर्थ
951परमेश्वर का स्वभाव अपमान सहता नहीं
952इंसान का विद्रोह जगाता है परमेश्वर के क्रोध को
955परमेश्वर के कार्यों के उद्देश्य और सिद्धांत स्पष्ट हैं
956इंसान के प्रति परमेश्वर का रवैया
957परमेश्वर इंसान से सच्चे प्रायश्चित की आशा करता है
958कार्यों के लिए परमेश्वर के सिद्धांत नहीं बदलते
959परमेश्वर के स्वभाव को भड़काने के परिणाम
960कैसे परमेश्वर के स्वभाव का अपमान न करें
961परमेश्वर द्वारा मनुष्य के दंड का दिन करीब है
962परमेश्वर का धार्मिक स्वभाव कोई अपमान नहीं सहता
963परमेश्वर कोई अपमान बर्दाश्त नहीं करता है
964परमेश्वर जो भी करता है वह धार्मिक होता है
965क्या तुम सचमुच परमेश्वर के धार्मिक स्वभाव को जानते हो?
966परमेश्वर धर्मी है सभी के लिये
968परमेश्वर का स्वभाव पवित्र और निर्दोष है
969परमेश्वर का सार निःस्वार्थ है
970परमेश्वर के पवित्र सार को समझना बहुत ही महत्वपूर्ण है
971मनुष्य परमेश्वर के संरक्षण में विकसित होता है
972परमेश्वर निरंतर मनुष्य के जीवन का मार्गदर्शन करता है
973परमेश्वर जो भी कहता और करता है वह सत्य है
975नए युग की आज्ञाओं का अर्थ बहुत गहरा है
976दस प्रशासनिक आज्ञाओं का पालन करके परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप चलो
977तुम्हें परमेश्वर की स्वीकृति प्राप्त करनी चाहिए
978परमेश्वर की इंसान को चेतावनी
979परमेश्वर मनुष्य के कर्मों के बारे में क्या सोचता है
980परमेश्वर की अपेक्षाओं से तुम कितने कम हो?
981परमेश्वर उम्मीद करता है कि लोग प्रकाश का मार्ग प्राप्त करेंगे
982मनुष्य के उल्लंघनों के परिणाम
983हर दिन जो तुम अभी जीते हो, निर्णायक है
984कुकर्म करने वाले सभी लोग दंड के लक्ष्य हैं
985क्या इंसान इस थोड़े समय के लिए अपनी देह की इच्छाओं का त्याग नहीं कर सकता?
986यह शरीर तुम्हारी मंज़िल बर्बाद कर सकता है
987परमेश्वर की महिमा की अभिव्यक्ति बनने की कोशिश करो
988परमेश्वर में विश्वास करना पर जीवन को हासिल न करना, दंड का कारण बनता है
989मनुष्य को प्रतिफल देते समय परमेश्वर के रवैये को क्या तुम समझ सकते हो?
990पश्चाताप-रहित लोग जो पाप में फँसे हैं उद्धार से परे हैं
991अपने वचनों और कार्यों को कैसे समझना चाहिये तुम्हें
992परमेश्वर द्वारा मनुष्य की दी गयी तीन चेतावनियाँ
993परमेश्वर की महिमा के दिन को तुम्हें संजोना चाहिए
994परमेश्वर लोगों की अगुवाई जीवन के सही मार्ग की ओर कर रहा है
995आज की आशीषों को तुम्हें संजोना चाहिए
996मार्ग के आखिरी दौर में अच्छी तरह अनुसरण कैसे करें?
997जब परमेश्वर चरवाहे पर प्रहार करता है
999जो सत्य का अभ्यास नहीं करते वे नष्ट किए जाएंगे
1000रास्ते अलग-अलग करने का समय
1001परमेश्वर के कथन मनुष्य के लिए सर्वोत्तम निर्देश हैं
1002जब परमेश्वर सिय्योन लौटेगा
1003परमेश्वर के सिय्योन लौट जाने के बाद
1004अपने अनुयायियों से परमेश्वर की अपेक्षाएँ
1005परमेश्वर की इंसान से अंतिम अपेक्षा
1006परमेश्वर द्वारा मनुष्य को पूर्ण किये जाने की चार शर्तें
1007इंसान के अंत के लिए परमेश्वर की व्यवस्था
1008परमेश्वर इंसान का अंत तय करता है उसके अंदर मौजूद सत्य के आधार पर
1009परमेश्वर के मार्ग का अनुसरण न करने वाले दंडित किये जाएंगे
1010सभी लोगों के परिणाम के लिये परमेश्वर की व्यवस्था
1011इंसान का अंत तय करता है परमेश्वर, उनके सार के अनुसार
1012विश्वासी और अविश्वासी तो संगत हो ही नहीं सकते
1013परमेश्वर दुष्टों को नहीं बचाता है
1014राज्य की सुंदरता
1015सबसे बड़ी आशीष जो ईश्वर मानव को प्रदान करता है
1017इंसान से परमेश्वर का आखिरी वादा
1018परमेश्वर की विजय के प्रतीक
1019परमेश्वर मानव जाति के लिए एक ज़्यादा सुंदर कल बनाता है
1020परमेश्वर के सभी लोग अपनी भावनाओं को व्यक्त करते हैं
1021मानवजाति के लिए परमेश्वर की तैयारी कल्पना से परे है
1022इंसान फिर से पाता है वो पवित्रता जो उसमें पहले कभी थी
1023परमेश्वर और इंसान के लिये अलग-अलग आरामगाह
1024शुद्ध हो चुके हैं जो वही विश्राम में प्रवेश करेंगे
1025अंत के दिनों में मनुष्य से परमेश्वर का वादा
1026परमेश्वर हर तरह के मनुष्य के लिए उपयुक्त व्यवस्थाएं करता है
1027जब मानवजाति विश्राम में प्रवेश कर लेती है
1028विश्राम में जीवन