88  ऐसी आस्था जिसकी ईश्वर प्रशंसा न करे

1

इंसान ईश्वर का आज्ञापालन नहीं कर सकता

क्योंकि वो उसके कब्ज़े में है जो पहले आया।

पहले आई चीज़ों ने इंसान को ईश्वर के बारे में

हर तरह की धारणाएँ, विचार दिए हैं।

यही इंसान के मन में ईश्वर की छवि ईश्वर की छवि बन गए हैं।

वो अपनी धारणाओं, कल्पनाओं के मानकों पर यकीन करता है।


अगर तुम अपने मन के ईश्वर की तुलना उस ईश्वर से करो

जो आज असली काम करे, तो फिर तुम्हारी आस्था शैतान की है,

तुम्हारी पसंद से दूषित है।

नहीं चाहिए ईश्वर को ऐसी आस्था।


कुछ भी हो उसकी पात्रता, समर्पण,

ईश-कार्य के लिए चाहे पूरा जीवन लगाया हो,

भले ही उसके लिए इंसान शहीद हुआ हो,

ईश्वर ऐसी आस्था को स्वीकार नहीं करता।

वो बस उस पर थोड़ा-सा अनुग्रह करता है

और थोड़े समय के लिए आनंद उठाने देता है।


अगर तुम अपने मन के ईश्वर की तुलना उस ईश्वर से करो

जो आज असली काम करे, तो फिर तुम्हारी आस्था शैतान की है,

तुम्हारी पसंद से दूषित है।

नहीं चाहिए ईश्वर को ऐसी आस्था।


2

इस तरह के लोग सत्य को अमल में नहीं ला पाते।

पवित्र आत्मा उनमें काम नहीं करता, ईश्वर उन्हें बारी-बारी से निकाल देता है।

ईश्वर की अवज्ञा करने वाले, गलत मंशा वाले, जवान-बूढ़े, विरोध करें, बाधा डालें।

ऐसे लोगों को ईश्वर यकीनन पूरी तरह से हटा देगा।


अगर तुम अपने मन के ईश्वर की तुलना उस ईश्वर से करो

जो आज असली काम करे, तो फिर तुम्हारी आस्था शैतान की है,

तुम्हारी पसंद से दूषित है।

नहीं चाहिए ईश्वर को ऐसी आस्था।


—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर में अपने विश्वास में तुम्हें परमेश्वर का आज्ञापालन करना चाहिए से रूपांतरित

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