90  पारस्परिक रिश्ते परमेश्वर के वचनों के अनुसार बनाने चाहिए

1

अगर तुम ईश्वर से सही रिश्ता रखना चाहो,

तो अपना दिल उसकी ओर झुकाओ,

तब लोगों से भी रिश्ते तुम्हारे वैसे ही होंगे जैसे होने चाहिए।

अगर ईश्वर से रिश्ता सही न हो, तो दूसरों से रिश्ता बनाने के लिए

चाहे तुम कुछ भी कर लो, ये जीने का इंसानी फ़लसफ़ा ही होगा।

सिर्फ इंसानी नज़रिये और इंसानी फलसफे का इस्तेमाल करके

तुम अपना रुतबा कायम रखते हो, ताकि तुम दूसरों से तारीफ़ पा सको।

तुम ईश-वचन के मुताबिक अपने रिश्ते नहीं बनाते हो।


इंसानी रिश्ते बनाने पर ध्यान न देकर, अगर ईश्वर से रिश्ते बनाने पर ध्यान दो

अगर उसके आज्ञापालन को तैयार हो, अगर अपना दिल ईश्वर को दो,

तो जीवन में लोगों से रिश्ते अच्छे होंगे तुम्हारे।


2

देह के आधार पर नहीं बनते ये रिश्ते,

बल्कि ईश-प्रेम की बुनियाद पर टिकते हैं ये रिश्ते।

संगति, प्रेम, सुख और पोषण है आत्मा में।

ये सब होता ईश्वर के दिल की संतुष्टि के आधार पर।

बनते नहीं ये रिश्ते जीने के फ़लसफ़े से,

बनते ईश्वर की ख़ातिर भार उठाने से, बनते ये कुदरती तौर पर।

इंसानी कोशिश की ज़रूरत नहीं इसे, बस ईश्वर के वचन पर अमल चाहिए।


इंसानी रिश्ते बनाने पर ध्यान न देकर, अगर ईश्वर से रिश्ते बनाने पर ध्यान दो

अगर उसके आज्ञापालन को तैयार हो, अगर अपना दिल ईश्वर को दो,

तो जीवन में लोगों से रिश्ते अच्छे होंगे तुम्हारे, अच्छे होंगे तुम्हारे।


—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के साथ सामान्य संबंध स्थापित करना बहुत महत्वपूर्ण है से रूपांतरित

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