मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ
खंड 4सर्वशक्तिमान परमेश्वर, अंत के दिनों का मसीह, सत्य व्यक्त करता है, परमेश्वर के घर से शुरूआत करते हुए न्याय का कार्य करता है और लोगों को शुद्ध करने और बचाने के लिए आवश्यक सभी सत्यों की आपूर्ति करता है। परमेश्वर के चुने हुए लोगों ने परमेश्वर की वाणी सुनी है, वे परमेश्वर के सिंहासन के सामने लाए गए हैं, उन्होंने मेमने की दावत में भाग लिया है और राज्य के युग में परमेश्वर के लोगों के रूप में परमेश्वर के आमने-सामने अपना जीवन शुरू किया है। उन्होंने परमेश्वर के वचनों की सिंचाई, चरवाही, प्रकाशन और न्याय प्राप्त किया है, परमेश्वर के कार्य की एक नई समझ हासिल की है, शैतान द्वारा उन्हें भ्रष्ट किए जाने का असली तथ्य देखा है, सच्चे पश्चात्ताप का अनुभव किया है और सत्य का अभ्यास करने पर और स्वभाव में बदलाव से गुजरने पर ध्यान केंद्रित करना शुरू किया है; उन्होंने परमेश्वर के न्याय और ताड़ना का अनुभव करते हुए भ्रष्टता के शुद्धिकरण के बारे में विभिन्न गवाहियाँ तैयार की हैं। अंत के दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के न्याय कार्य ने विजेताओं का एक समूह बनाया है जो अपने व्यक्तिगत अनुभवों के जरिए यह गवाही देते हैं कि अंत के दिनों में महान श्वेत सिंहासन का न्याय पहले ही शुरू हो चुका है!
अनुभवजन्य गवाहियाँ
4जिन्हें काम सौंपें, उन पर शक न करें : क्या यह सही है?
5ईमानदारी के बिना कर्तव्य निभाना नामुमकिन है
7परमेश्वर के वचनों से ही हमें दूसरों को देखना चाहिए
10समझने का ढोंग करके मैंने आफत मोल ले ली
11कर्तव्य में मेहनत न करने से मुझे हुआ नुकसान
12सौहार्दपूर्ण सहयोग के लिए मेरा कठिन मार्ग
13बेमन से काम करने के कारण हुआ नुकसान
15स्नेह सिद्धांत पर आधारित होना चाहिए
20मैंने परमेश्वर की वाणी सुनी है
22एक पादरी को उपदेश देने की कहानी
23मैं अपने कर्तव्य में कीमत क्यों नहीं चुकाना चाहती थी
25दूसरों के साथ वैसा न करने पर चिंतन जो आप अपने साथ नहीं होने देना चाहेंगे
26महामारी के दौरान बीमार पड़ने पर चिंतन
27मुझे देखरेख क्यों स्वीकार नहीं
28बूढ़े अब भी परमेश्वर की गवाही दे सकते हैं
29परमेश्वर तक पहुँचने के रास्ते में घुमाव और मोड़
31"विशेषज्ञ" न रहकर मिली बड़ी आज़ादी
32दूसरों की नाकामियों से सीखा सबक
33जब दायित्व में बदलावों ने मुझे उजागर कर दिया
35दूसरों के प्रति उदार होने की असलियत
36निगरानी का विरोध करने के बाद चिंतन
37किस चीज ने मुझे सत्य का अभ्यास करने से रोका
42परमेश्वर के वचनों से परखने में कभी चूक नहीं होती
43दोराहे
44अपनी मर्जी से कर्तव्य निभाने के नतीजे
45मसीह-विरोधियों को उजागर करना मेरी जिम्मेदारी है
46बुद्धिमान कुँवारियों ने प्रभु का स्वागत कैसे किया
48नेकी का कर्ज चुकाने पर गहरा सोच-विचार
49अपनी गलतियाँ स्वीकारना इतना मुश्किल क्यों है?
51मेरे रिश्तेदारों ने मुझ पर हमले क्यों किए
56परमेश्वर का वचन सभी झूठों पर भारी पड़ता है
59जब मैंने अपनी पढ़ाई पीछे छोड़ी
60क्या एक अच्छा मित्र समस्याओं की अनदेखी करता है?
61जज़्बात के कारण सही-गलत न समझ पाया
62आँखें बंद कर लोगों की आराधना करने के बाद आत्मचिंतन
63मैंने आखिरकार परमेश्वर की वाणी सुनी
66अब मैं अपने साथी से घृणा नहीं करता
69जब पता चला कि माँ को कैंसर है
70मैं दूसरों की समस्याएँ उजागर करने से क्यों डरती हूँ?
73जब मैंने स्कूल और कर्तव्य में से एक को चुना
78सच बोलने से मुझे किस बात ने रोका?
83मैं दूसरों को सब कुछ क्यों नहीं सिखाती?
84क्या कड़ी मेहनत स्वर्ग के राज्य में प्रवेश दिला सकती है?
85अपनी गवाही लिखने से मुझे क्या मिला
87निपटाए जाने से मैंने क्या पाया
91मैं अब काम से दूर रहने का रवैया नहीं अपनाऊँगी
92नकली अगुआ को बचाने का परिणाम
93मैंने एक सुरक्षित नौकरी कैसे ठुकरा दी