42. परमेश्वर के वचनों से परखने में कभी चूक नहीं होती

क्षिदन, अमेरिका

अप्रैल 2021 में, मैं, बहन चेन यू और कुछ दूसरी बहनें साथ रह रही थीं। शुरू में, मैंने देखा कि वह अक्सर अपनी दशा के बारे में लोगों से बात करती रहती थी, कभी-कभी खाने के दौरान भी यही चर्चा छेड़ देती थी। मैं सोचती थी कि वो खाने के समय का भी अच्छा उपयोग कर लेती है, तो लगा कि वह जीवन प्रवेश और सत्य की खोज पर ध्यान देती है। फिर, एक बार जब हम बात कर रहे थे, चेन यू ने मुझे बताया कि उसे दूसरों के हावभाव और विचारों की बहुत परवाह थी, अगर कोई उससे बुरे लहजे में बात करता, तो वह सोचती कि वह उसे छोटा समझती है और धूर्त है। उसने यह भी कहा कि वह नाम और लाभ के लिए दूसरों से होड़ और रुतबे की चिंता करती थी। मैं सोचने लगी, हम एक-दूसरे को ज्यादा समय से नहीं जानते थे, फिर भी वह मुझे अपने गंभीर दोषों और कमियों के बारे में बता रही है, यानी वह बहुत सीधी और खुली हुई है। बाद में उसके साथ बातचीत में मैंने देखा कि उसकी मानसिक दशा सचमुच ही उलझी हुई थी। उसे दूसरों के हावभाव और विचारों की बड़ी परवाह थी, और दूसरों पर शक करती थी। कई बार जब भाई-बहन उसकी कोई समस्या बताते, तो वह सोचती कि कहीं वे उसे छोटा तो नहीं समझते, फिर वह उजागर हुई अपनी कमियों पर खुलकर बोलती कि दूसरों पर शक करना धूर्तता थी, वगैरह-वगैरह। पहले मुझे लगा कि वह बस थोड़ी भावुक और नाजुक थी। मुझे लगता था कि हरेक में कुछ दोष और समस्याएँ होती हैं, और भाई-बहनों के रूप में हमें एक-दूसरे के प्रति ज्यादा सहनशील और क्षमाशील होना चाहिए। साथ ही, भ्रष्टता उजागर करने के बाद वह खुलकर बात करने और खुद को समझने में सक्षम थी, वो जरूर सत्य को स्वीकार करती होगी। तो मैंने इसे खास महत्व नहीं दिया। आमतौर पर, वह मुझे अपनी दशा बताती तो मैं बड़े धीरज से उसके दिल की बात सुनती थी, साथ ही मैं बातचीत में उसकी मनोदशा का भी ध्यान रखती थी, ताकि लापरवाही से कुछ ऐसा न कह बैठूँ जिससे उसका दिल दुखे। इसी कारण उसे मुझसे बात करना अच्छा लगता था। उसके शब्दों के आशय से झलकता था कि वह मुझे अच्छे स्वभाव की और नरम दिल समझती है, और उसे मेरे जैसे लोग पसंद हैं। अक्सर हमारी बातें उसके शक करने और इज्जत की चिंता को लेकर उसकी दशा पर होती थी। कभी-कभी थोड़ी-सी बात घंटे भर खिंच जाती और मेरे कुछ काम रुक जाते। उसे मुझ पर भरोसा था, इसलिए मैं डरती थी कि उसकी बात नहीं सुनी तो उसका दिल दुखेगा। उसे टोकना मुझे ठीक नहीं लगता था। पर बाद में कुछ ऐसा घटा कि उसके प्रति मेरा रवैया बदल गया।

एक बार, चेन यू ने उसकी आलोचना की तो बहन ली ने इसे ज्यादा गंभीरता से नहीं लिया, यह बिस्तर को ठीक-से न समेटने के बारे में थी। चेन यू को गुस्सा आ गया और वह अड़ गई कि बहन ली को उसकी बात माननी पड़ेगी। साथ ही, वह हमेशा यह चाहती थी कि लोग उसकी मनुहार करें और उसे खुश रखें। इसलिए बहन ली ने कहा कि वह रुतबे पर बहुत ध्यान देती है, यही चाहती है कि लोग उसके आसपास घूमें, जो कि उन्हें अपने वश में रखना था। बाद में, चेन यू ने बहन ली से खुले दिल से बात की रोते हुए कहा कि वह वैसी नहीं थी जैसा बहन ली समझती थी, उसने उसे गलत समझा था। बहन ली ने उससे माफी मांगी, पर चेन यू अब भी संतुष्ट नहीं थी और उससे उखड़ी रही। इसके बाद वह अक्सर खुद में सिमटी रहती, हमसे ज्यादा बात न करती।

एक बार अपनी दशा के बारे में मुझसे बात करते हुए, उसने कहा कि दूसरी बहनें बहन ली से खूब बात करती हैं, इसलिए उसे लगता है कि हर कोई उसे पसंद करता है, जबकि उसे छोटा समझकर अलग किया जा रहा है। फिर वह सबसे कतराने लगी, उसे लगा कि बहन ली उससे बात करते समय संजीदा नहीं थी। बाद में उसने कहा कि उसमें इंसानियत की कमी थी और बहन ली के बारे में ऐसे अनुमान लगाना धूर्तता थी। पर इसके बाद वह बदली नहीं। वह दो हफ्ते तक हमसे रूठी रही, और सभी बहुत बेबस हो गए। मैं बहुत चकित थी और इसका सिर-पैर नहीं समझ पा रही थी। कोई मसला होने पर वह सत्य की खोज करके कोई सबक क्यों नहीं सीखती? इसके बाद मैंने सोचा कि उसे तो बात-बात पर मुंह फुलाने, रूठने की आदत है, हमें प्यार से उसकी मदद करने की जरूरत है। एक बार, वीडियो बनाते समय, कुछ दिक्कतों के कारण इस पर फिर से काम करना पड़ा। सभा में, टीम अगुआ ने कहा कि वीडियो से जुड़े किसी मसले में अहम जिम्मेदारी निर्माता की होती है। चेन यू को लगा कि उसकी बात हो रही है, टीम अगुआ को लगता है वह नाकाबिल है और वह उसे पसंद नहीं करता। इसके बाद वह कई दिनों तक उदास रही। इसके बाद एक अगुआ ने उसके साथ संगति की, कहा कि वह सत्य नहीं स्वीकारती और अति संवेदनशील है, और खुद में बदलाव न लाना खतरनाक है। चेन यू यह सुनकर रोने लगी। कहने लगी कि वह बहुत धूर्त थी और परमेश्वर उसे नहीं बचाएगा। उसे परेशान होता देख अगुआ ने परमेश्वर की इच्छा पर उसके साथ संगति की, ताकि वह परमेश्वर को गलत न समझे, अपनी समस्या पर आत्मचिंतन कर सके। उस समय वह कुछ नहीं बोली, अगुआ को लगा उसमें कुछ बदलाव आएगा, पर मुझे हैरानी हुई जब एक सभा में उसने कहा कि वह अपने बारे में अगुआ की राय को नहीं स्वीकारती, वह कई दिनों तक अवसाद में रही। बाद में, उसने कुछ भाई-बहनों से कहा कि टीम अगुआ ने उसकी कम योग्यता के कारण उसे छोटा समझा, अब वह इससे उबर नहीं पा रही। वह बोलते-बोलते रोने लगी, तो सब लोग हमदर्दी दिखाने लगे। इस तरह की बातें अक्सर घटती रहतीं, और किसी के साथ संगति के बाद, वह हमेशा खुद को "जान" जाती, अपनी समस्या मान लेती। पर कुछ दिन बाद कुछ और होते ही उसे फिर दौरे पड़ जाते।

मैं उसका यह बर्ताव देखकर उलझन में थी। लगता था कि वह खुद को समझ जाती है, तो बदलती क्यों नहीं? अगर कोई ऐसी बात कहता जिससे उसके गर्व को चोट लगती, तो वह सोचती कि वे उसे नीची नजर से देखते हैं, फिर सब कुछ गलत समझ लेती। क्या उसकी इंसानियत और समझ को लेकर कोई समस्या नहीं थी? मैं इसे समझ नहीं पा रही थी, इसलिए मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, और सत्य को समझने वाले लोगों के साथ संगति की। एक बहन ने मुझसे कहा कि बरसों की आस्था के बाद चेन यू समझती तो सब कुछ थी, पर सत्य का अभ्यास नहीं करती थी, और नकारात्मक थी। जिसका मतलब था कि वह खुद को नहीं जानती थी। उस बहन ने मुझे परमेश्वर के वचनों का एक अंश भेजा। "जब कुछ लोग आत्मज्ञान के बारे में संगति करते हैं, तो उनके मुँह से पहली बात यह निकलती है, 'मैं एक राक्षस, एक जीवित शैतान हूँ, जो परमेश्वर का विरोध करता है। मैं उसकी अवज्ञा करता हूँ और उसके साथ विश्वासघात करता हूँ; मैं एक साँप हूँ, एक दुष्ट व्यक्ति, जिसे शापित होना चाहिए।' क्या यही सच्चा आत्मज्ञान है? वे केवल सामान्य बातें बोलते हैं। वे उदाहरण क्यों नहीं देते? वे विश्लेषण के लिए तथ्य सबके सामने क्यों नहीं ला सकते? कुछ अविवेकी लोग उनकी बात सुनकर सोचते हैं, 'हाँ, यह सच्चा आत्मज्ञान है! खुद को राक्षस, शैतान के रूप में जानना, यहाँ तक कि खुद को कोसना—ये कितनी ऊँचाई तक पहुँच गए हैं!' बहुत-से लोग, खासकर नए विश्वासी, इस बात से बहकावे में आ जाते हैं। वे सोचते हैं कि वक्ता एक अच्छा इंसान है, शुद्ध और आध्यात्मिक मामलों की समझ रखने वाला है, सत्य से प्रेम करता है, और अगुआई करने योग्य है। लेकिन जब वे उससे बातचीत करते हैं तो पाते हैं कि ऐसा नहीं है, यह वैसा इंसान नहीं है जैसी उन्होंने कल्पना की थी, बल्कि असाधारण रूप से झूठा और कपटी है, स्वाँग रचने और छद्म रूप धारण करने में कुशल है, जिससे उन्हें बड़ी निराशा होती है। तो किसी को सत्य से प्रेम है या नहीं, इसे कैसे मापा जाना चाहिए? यह इस बात पर निर्भर करता है कि क्या वे आम तौर पर सत्य की वास्तविकता को जीते हैं, क्या वे जो कहते हैं वही करते हैं, क्या उनकी कथनी और करनी में समानता है। अगर वे जो कहते हैं वह सुसंगत और सुखद लगता है, लेकिन वे वैसा करते नहीं, उसे जीते नहीं, तो इसमें वे एक फरीसी बन जाते हैं, वे पाखंडी होते हैं। सत्य के बारे में संगति करते हुए कई लोग बहुत सुसंगत लगते हैं, लेकिन यह नहीं जानते कि कब उनका भ्रष्ट स्वभाव उफन पड़ता है। क्या ये वे लोग हैं, जो खुद को जानते हैं? अगर लोग खुद को नहीं जानते, तो क्या वे सत्य को समझने वाले लोग होते हैं? वे सभी, जो स्वयं को नहीं जानते, वे सत्य को न समझने वाले लोग हैं, जिनमें झूठी आध्यात्मिकता होती है। कुछ लोग सिद्धांत के शब्द बोलते समय बहुत सुसंगत लगते हैं, लेकिन उनकी आत्मा की स्थिति सुन्न और जड़ होती है, वे चीजों को महसूस नहीं कर पाते हैं। कहा जा सकता है कि वे सुन्न होते हैं, लेकिन कभी-कभी, उन्हें बोलते हुए सुनने पर, लगता है कि उनकी आत्मा काफी प्रखर है। उदाहरण के लिए, किसी घटना के ठीक बाद, वे खुद को तुरंत जानने में सक्षम होते हैं : 'अभी-अभी मुझे एक विचार आया। मैंने उसके बारे में सोचा और महसूस किया कि वह कुटिल विचार था, कि मैं परमेश्वर को धोखा दे रहा था।' यह सुनकर कुछ लोग ईर्ष्यालु हो जाते हैं और कहते हैं : 'इस इंसान को तुरंत पता चल जाता है कि कब उसकी भ्रष्टता बाहर आ रही है, और यह उसके बारे में खुलकर बात करने और संगति करने में भी सक्षम है। यह प्रतिक्रिया व्यक्त करने में बहुत तेज है, इसकी आत्मा वास्तव में प्रखर है, यह हमसे बहुत बेहतर है। यह वास्तव में ऐसा इंसान है, जो सत्य का अनुसरण करता है।' क्या यह लोगों को मापने का सटीक तरीका है? (नहीं।) तो यह आँकने का आधार क्या होना चाहिए कि लोग वास्तव में खुद को जानते हैं या नहीं? इसका आधार केवल उनके मुँह से निकलने वाली बातें नहीं होनी चाहिए। तुम्हें यह भी देखना चाहिए कि उनमें वास्तव में क्या प्रकट होता है, जिसका सबसे सरल तरीका यह देखना है कि क्या वे सत्य का अभ्यास करने में सक्षम हैं—यही सबसे महत्वपूर्ण है। सत्य का अभ्यास करने की उनकी क्षमता साबित करती है कि वे वास्तव में खुद को जानते हैं, क्योंकि जो लोग वास्तव में खुद को जानते हैं, वे पश्चात्ताप अभिव्यक्त करते हैं, और जब लोग पश्चात्ताप अभिव्यक्त करते हैं, तभी वे वास्तव में खुद को जानते हैं" ("अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन" में 'स्वयं को जानकर ही तुम सत्‍य की खोज कर सकते हो')। परमेश्वर के वचनों से मैंने सीखा, यह जानने के लिए कि क्या कोई सत्य से प्रेम करता है और उसे स्वीकारता है, क्या वह खुद को सचमुच जानता है, उसकी मौखिक स्वीकृति या सिद्धांतों की व्याख्या को देखना काफी नहीं है, बल्कि यह देखने की जरूरत है कि समस्याओं का सामना होने पर वह असल में किसे जीता है, क्या वह सत्य का अभ्यास कर सकता है, क्या वह सचमुच प्रायश्चित करके बदल सकता है, और अपनी समझ के बारे में वह जो कहता है, क्या वह उसके वास्तविक प्रवेश से मेल खाता है। कुछ लोग धर्म-सिद्धांत तो सही बघारते हैं, पर कुछ हो जाए तो सत्य का अभ्यास नहीं कर सकते, और अपने शैतानी स्वभाव के अनुसार चलते हैं। ऐसे लोग सत्य को स्वीकार करने वाले नहीं होते। कुछ लोग खुद को खोलकर रख सकते हैं, भले ही वे कुछ भी उजागर करें, और वे अपनी भ्रष्टता को जानते हैं, इसलिए लोग समझते हैं वे सीधे-सादे हैं, पर वे इसके पीछे के इरादों पर बात नहीं करते, वे अपने भ्रष्ट स्वभाव के सार का विश्लेषण भी नहीं करते। वे सीधे और खुले प्रतीत होते हैं, पर असल में वे दूसरों को गुमराह करते हैं, धोखा देते हैं, जो सचमुच धूर्तता है। कुछ लोगों का आत्म-ज्ञान सिर्फ एक छलावा होता है, वे चाहे कितना भी कहें कि वे गलत हैं, वे शैतान हैं, दानव हैं, चाहे वे खुद को कोसें और धिक्कारें, यह कहें कि वे कुछ भी नहीं हैं, नकारा हैं, पर जो दुष्ट काम वे करते हैं उनके पीछे जो लुके-छिपे मकसद और लक्ष्य होते हैं, या जिस वजह से वे ऐसा करते हैं, उसके बारे में वे एक शब्द नहीं कहते। चेन यू की बात करें तो, उसे अपनी दशा के बारे में बात करना पसंद था, वह सचमुच सत्य की खोज में दिखती थी। हमेशा ऐसी बातें कहती थी कि "मुझमें इंसानियत की कमी है, मैं धूर्त हूँ, मुझमें द्वेष भावना है।" ऊपर से ऐसा लगता था जैसे वह सचमुच खुद को जानती हो, पर समस्या आने पर वह सत्य पर अमल नहीं करती। उसने अपनी भ्रष्टता को जरा भी हल नहीं किया था। दो साल पहले, लोग कहते थे कि वह लोगों पर शक करती है और रुतबे पर ध्यान देती है, पर वह अब भी जरा भी नहीं बदली थी। साफ था कि वह सिर्फ सिद्धांत की बात करती थी, जो नकली था, वह बस लोगों को झांसा दे रही थी। वह जिस ज्ञान की बात करती थी, वह उससे मेल नहीं खाता था जिसे वह जीती थी।

बाद में मैंने परमेश्वर की संगति पढ़ी, कि कौन लोग सच में भाई-बहन हैं और कौन लोग नहीं हैं। इससे मुझे चेन यू को परखने की थोड़ी समझ मिली। परमेश्वर के वचन कहते हैं : "जो लोग सत्य से प्रेम करते हैं बस वे ही परमेश्वर के परिवार के हैं; वे ही सच्चे भाई-बहन हैं। क्या तुम सोचते हो कि अक्सर सभाओं में जाने वाले सभी लोग भाई-बहन होते हैं? जरूरी नहीं कि ऐसा हो। कौन-से लोग भाई-बहन नहीं होते? (वे जो सत्य से चिढ़ते हैं, जो सत्य स्वीकार नहीं करते, जो सत्य का अनुसरण नहीं करते।) ये वे लोग हैं, जो सत्य स्वीकार नहीं करते और उससे चिढ़ते हैं, जो दुष्ट हैं, और कुछ लोग जिनकी मानवता बुरी है। कुछ लोग ऐसे भी हैं जो सतही तौर पर भली मानवता वाले प्रतीत होते हैं, लेकिन वे जीवनयापन के लिए दर्शनशास्त्रों से खेलने में महारती होते हैं; ऐसे लोग चालाक तिकड़में लगायेंगे, चापलूसी करेंगे और लोगों को धोखा देंगे। जैसे ही सत्य के बारे में संगति की जाती है, उनकी रुचि खत्म हो जाती है, वे उससे चिढ़ते हैं, वे इसे सुनना बर्दाश्त नहीं कर सकते, उन्हें यह उबाऊ लगता है और वे बैठे नहीं रह पाते। वे किस तरह के लोग होते हैं? इस तरह के लोग अविश्वासी होते हैं और चाहे तुम कुछ भी करो, तुम्हें इन्हें भाई-बहन नहीं समझना चाहिए। ... तो वे किसके अनुसार जीते हैं? निस्संदेह, वे शैतान के फलसफों के अनुसार जीते हैं, वे हमेशा धूर्त और शातिर होते हैं, उनमें सामान्य मानवता का जीवन नहीं होता। वे कभी परमेश्वर से प्रार्थना या सत्य की तलाश नहीं करते, बल्कि हर चीज से इंसानी चालों, रणनीतियों और जीने के फलसफों द्वारा निपटते हैं—जिससे उनका अस्तित्व थकाऊ बन जाता है। साधारण मामलों में भी वे भ्रमित करते हैं, और अगर वे खुद को सही नहीं ठहरा रहे होते, तो बहाने बना रहे होते हैं। इस तरह जीना थकाऊ होता है, है न? जब कोई चीज कुछ ही शब्दों में समझाई जा सकती है, तो वे इतनी बकवास क्यों करते हैं? उनकी सोच उलझी हुई होती है, और वे सत्य नहीं स्वीकार पाते। अपनी इज्जत की खातिर या कुछ शब्दों के चक्कर में वे तब तक बहस करते हैं, जब तक कि वे थककर चूर नहीं हो जाते। ऐसा लगता है, मानो उन्हें कोई मनोरोग हो। इन लोगों का जीवन बहुत कष्टदायक होता है। ... करीब से देखने पर, उनके क्रियाकलाप, और जो करते हुए वे पूरा दिन बिताते हैं—वे सब उनकी इज्जत, प्रतिष्ठा और घमंड से संबंधित होती हैं। ऐसा लगता है, मानो वे किसी जाल में जी रहे हों, उन्हें हर चीज सही ठहरानी पड़ती है या हर बात के लिए बहाने बनाने पड़ते हैं, और वे हमेशा अपनी खातिर बोलते हैं, उनकी सोच उलझी हुई होती है, वे बहुत बकवास करते हैं, उनके शब्द बहुत पेचीदा होते हैं। वे हमेशा इस बात पर बहस करते हैं कि क्या सही है और क्या गलत, इसका कोई अंत नहीं होता, अगर वे इज्जत हासिल करने की कोशिश नहीं कर रहे होते, तो वे प्रतिष्ठा और हैसियत के लिए प्रतिस्पर्धा कर रहे होते हैं, और ऐसा कोई समय नहीं होता जब वे इन चीजों के लिए नहीं जीते। और अंतिम परिणाम क्या होता है? हो सकता है कि वे इज्जत पा लें, लेकिन हर कोई उनसे तंग आ जाता है, लोगों ने उनकी असलियत देख ली होती है, उन्हें पता चल गया होता है कि उनमें सत्य की वास्तविकता नहीं है, वे ईमानदारी से परमेश्वर पर विश्वास करने वाले इंसान नहीं हैं। जब अगुआ और कार्यकर्ता या अन्य भाई-बहन उनसे आलोचना के कुछ शब्द कहते हैं, तो वे हठपूर्वक स्वीकारने से इनकार कर देते हैं, वे खुद को सही ठहराने या बहाने बनाने की कोशिश करने पर जोर देते हैं, वे अपना दोष दूसरे के सिर मढ़ने की कोशिश करते हैं, और सभाओं के दौरान वे अपना बचाव करते हैं, और सही और गलत को तोड़-मरोड़कर परमेश्वर के चुने हुओं के बीच समस्या पैदा कर देते हैं। अपने दिल में वे सोच रहे होते हैं, 'क्या वास्तव में मेरे कहने का कोई मतलब नहीं है?' ये किस तरह के इंसान हैं? क्या ये ऐसे इंसान हैं, जो सत्य से प्रेम करते हैं? क्या ये ऐसे इंसान हैं, जो परमेश्वर पर विश्वास करते हैं? जब वे किसी को कुछ ऐसा कहते सुनते हैं जिससे उन्हें ठेस पहुँचती है, तो वे हमेशा उस पर पूरी बात करना चाहते हैं, वे इस बात में उलझ जाते हैं कि कौन सही है और कौन गलत, वे सत्य की खोज नहीं करते और उसे सत्य के सिद्धांतों के अनुसार उससे पेश नहीं आते। मामला कितना भी सरल क्यों न हो, उन्हें उसे बहुत जटिल बनाना होता है—वे केवल परेशानी को न्योता दे रहे हैं, वे इतना थकने लायक हैं!" (अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन)। परमेश्वर के वचन पढ़कर, यह पहचानना आसान हो जाता है कि कौन भाई-बहन हैं, कौन गैर-विश्वासी हैं। कुछ लोग सही-गलत पर बहस करते हैं। सत्य नहीं स्वीकारते, बल्कि इससे ऊब जाते हैं। वे किसी मसले पर सत्य की खोज या चिंतन-मनन नहीं करते, न खुद को जानते हैं। वे हमेशा खुद को बचाते और सही ठहराते रहते हैं। ऐसा इंसान बहुत सोचता है, स्वभाव से धोखेबाज होता है। यह खुद उसके लिए तो थकाऊ होता ही है, दूसरों को भी तकलीफ और चिढ़ होती है। इस तरह का इंसान सच्चा भाई या बहन नहीं हो सकता। चेन यू के बारे में सोचें तो, अनजाने में किसी की बात से उसकी साख पर असर पड़ता और उसे बुरा लगता तो वह उनके बारे में अनुमान लगाने लगती थी, शंकालु और पूर्वाग्रही हो जाती थी। फिर वह झूठमूठ अपना दिल खोलकर सफाई देती थी, या अपने बारे में बात करते हुए दूसरों की समस्याएँ उठाने लगती थी। वह सही और गलत को लेकर फिजूल की बहस करती रहती थी। मिसाल के तौर पर, जब टीम अगुआ ने उसे कुछ सुझाव दिए, तो उसे लगा वह उसे छोटा समझता है, और वह नाखुश हो गई। बाद में एक सभा में उसने खुलकर कहा कि टीम अगुआ उसे हीन समझता है, ताकि हर कोई उससे हमदर्दी जताकर टीम अगुआ के बारे में राय बना ले। लोगों को अक्सर उससे बहुत सँभलकर बात करनी पड़ती थी, उसके हावभाव, उसका चेहरा पढ़ना पड़ता था, ताकि उनकी किसी बात से उसकी दशा पर असर न पड़े। उससे बात करना बहुत दमघोंटू था, कोई खुलकर नहीं बोल सकता था। वह हर बात पर ज्यादा सोचती, और निराशा में जीती, जिससे काम पर भी बुरा असर पड़ता था। मैं सोचती थी, वह बस थोड़ी भावुक और नाजुक है, और कुछ भी उसके हिसाब से न होने से वह इसे दिल से लगा लेती है, यह एक आम इंसानी कमजोरी है, इससे भाई-बहनों या कलीसिया के काम में कोई गंभीर अड़चन नहीं आती। पर इसे तथ्यों के अनुसार देखने पर, मैंने पाया कि इससे भाई-बहनों की दशा पर असर पड़ता है, और कलीसिया जीवन पर भी। इससे कलीसिया के काम की प्रगति पर भी असर पड़ा। उसकी आम अभिव्यक्तियों को देखा जाए तो, वह सत्य को जरा भी स्वीकार नहीं करती थी, सचमुच धूर्त थी। दूसरों को उससे कोई शिक्षा या मदद नहीं मिलती थी, वह गैर-विश्वासी थी। अगुआ उसके व्यवहार को समझ गया, उसने उसे काम से हटाकर आत्मचिंतन के लिए अलग रहने को कहा।

फिर, मैंने लोगों के भ्रष्ट स्वभावों का खुलासा करने वाले परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा, मैं देख पाई कि चेन यू के शब्दों के पीछे क्या छिपा हुआ था। परमेश्वर के वचन कहते हैं : "धोखा अक्सर बाहर से नजर आ जाता है। जब कोई कोई घुमा-फिराकर या चालाकी और धूर्तता से बात करता है, तो यह धोखा होता है। और दुष्टता का प्रमुख लक्षण क्या होता है? दुष्टता वह होती है, जब लोग ऐसी बातें करते हैं जो कानों को अच्छी लगती हैं, जब सब कुछ सही और आलोचना से परे लगता है, और किसी भी तरह से देखने पर भला लगता है, तो वे इन्हीं तरीकों से बिना कोई स्पष्ट तकनीक का इस्तेमाल किए काम करते हैं और अपना मकसद हासिल करते हैं। वे लोग छिपकर काम करते हैं, वे उन्हें बिना किसी प्रत्यक्ष निर्देश या उपहार के हासिल करते हैं; मसीह-विरोधी इसी तरीके से लोगों को ठगते हैं, ऐसे कामों और ऐसे लोगों को पहचानना बहुत मुश्किल होता है। कुछ लोग अक्सर सही शब्द बोलते हैं, सुनने में मीठे लगने वाले जुमलों का प्रयोग करते हैं, और ऐसे सिद्धांतों, तर्कों और तकनीकों का इस्तेमाल करते हैं जो लोगों की भावनाओं के अनुरूप होते हैं, ताकि उनकी आँखों पर पट्टी बांधी जा सके; वे एक तरफ जाने का दिखावा करते हैं पर दरअसल दूसरी तरफ जाते हैं, ताकि अपने गुप्त उद्देश्य हासिल कर सकें। यही दुष्टता है। लोग आम तौर पर इस बर्ताव को धोखा मानते हैं। उन्हें दुष्टता की कम जानकारी होती है, और वे उसे पहचानते भी कम हैं; दरअसल दुष्टता को पहचानना धोखे को पहचानने से ज्यादा मुश्किल है, क्योंकि यह ज्यादा लुकी-छिपी होती है, और इसमें शामिल तरीके और तकनीकें ज्यादा परिष्कृत होती हैं" ("मसीह-विरोधियों को उजागर करना" में 'वे लोगों को भ्रमित करने, फुसलाने, धमकाने और नियंत्रित करने का काम करते हैं')। परमेश्वर के वचन दुष्ट स्वभाव के लोगों का खुलासा करते हैं। ये लोग ऐसी बातें कहते हैं जो सुनने में बहुत अच्छी और सही लगती हैं, पर इनके पीछे ऐसे अंदरूनी मकसद छिपे होते हैं जिन्हें आम लोग भाँप नहीं पाते। मैं चेन यू के व्यवहार के बारे में सोचे बिना न रह सकी। उसने कहा था मैं उदार दिल की हूँ और उससे बहस नहीं करती, उसे मुझसे बात करना पसंद है। एक बार, जब उसने देखा कि बहन ली घर पर नहीं थी, तो उसने एक संदेश भेजा कि उसे घर पर अकेले डर लगता है। मानो वह कोई बच्ची हो जिसकी माँ उसके पास न हो, ऐसी बात सुनकर कोई भी सोचेगा कि वह उस पर बहुत भरोसा करती है, उसे भरोसेमंद दोस्त या घर का सदस्य मानती है। फिर वह उसकी देखभाल करना चाहेगा और हर मामले में उसका साथ देगा। उसके सही और गलत को लेकर बहस करने पर वह सोचेगा कि दूसरे उसे छोटा समझते हैं, कोई उसकी बातों को नहीं भाँप पाएगा, बस उसके प्रति हमदर्दी और दया महसूस करेगा। साफ था कि वह ऐसी बातें कहती थी जो सुनने में अच्छी लगती थीं, दूसरों को खुश करती थीं, जिन्हें सब सुनना चाहते थे। पर इनके पीछे उन्हें झांसा देने का मकसद होता था। उसे लोगों से अपनी दशा पर बात करना पसंद था, ताकि वे सोचें कि वह जीवन प्रवेश पर ध्यान दे रही है, कि वह सत्य की खोज में है। पर हकीकत में, वह खूब सोच-समझकर यह नकली आध्यात्मिक दिखावा करती थी, ताकि लोग उसके बारे में अच्छा सोचें। वह दिखाती कि वह अपनी दशा की बात कर रही है, पर असल में वह दूसरों द्वारा पुचकारे जाने के लिए मचलती हुई उनकी भावनाओं से खेल रही होती थी। वह अपना काम कर रहे लोगों का भी समय बर्बाद करती। पर मैं उसके मकसद को नहीं भाँप पाई, न ही यह समझ पाई कि वह कैसी इंसान थी। मैं बस नरम दिल से उसके साथ संगति करते हुए उसकी मदद करती रही, उसे जिंदगी से संघर्ष करते देख बढ़चढ़कर उसकी मदद की, हर मामले में पहले उसके फायदे की सोचती। अब परमेश्वर के वचनों की मदद से मैं उसकी दुष्ट प्रकृति को देख पाई थी, कि वह अपनी कथनी और करनी में झांसेबाज थी, सभी को छल रही थी, धोखा दे रही थी।

इसके बाद मैंने आत्मचिंतन किया। मैं चेन यू की असलियत को पहचान क्यों नहीं सकी? चिंतन करने पर मैंने जाना कि मेरा दृष्टिकोण गलत था। अपने बारे में बात करने की उसकी इच्छा को मैंने उसका सीधापन और सत्य का अभ्यास समझा, और उसके शब्दों पर कोई ध्यान नहीं दिया। परमेश्वर के वचनों से ही मैंने जाना कि सीधा और खुला होना क्या होता है। परमेश्वर के वचन कहते हैं : "ईमानदारी का अर्थ है अपना हृदय परमेश्वर को अर्पित करना; हर बात में उसके साथ सच्चाई से पेश आना; हर बात में उसके साथ खुलापन रखना, कभी तथ्यों को न छुपाना; अपने से ऊपर और नीचे वालों को कभी भी धोखा न देना, और मात्र परमेश्वर की चापलूसी करने के लिए चीज़ें न करना। संक्षेप में, ईमानदार होने का अर्थ है अपने कार्यों और शब्दों में शुद्धता रखना, न तो परमेश्वर को और न ही इंसान को धोखा देना। ... यदि तुम्हारी बातें बहानों और महत्वहीन तर्कों से भरी हैं, तो मैं कहता हूँ कि तुम ऐसे व्यक्ति हो जो सत्य का अभ्यास करने से घृणा करता है। यदि तुम्हारे पास ऐसे बहुत-से गुप्त भेद हैं जिन्हें तुम साझा नहीं करना चाहते, और यदि तुम प्रकाश के मार्ग की खोज करने के लिए दूसरों के सामने अपने राज़ और अपनी कठिनाइयाँ उजागर करने के विरुद्ध हो, तो मैं कहता हूँ कि तुम्हें आसानी से उद्धार प्राप्त नहीं होगा और तुम सरलता से अंधकार से बाहर नहीं निकल पाओगे" ("वचन देह में प्रकट होता है" में 'तीन चेतावनियाँ')। परमेश्वर के वचनों से मैंने जाना कि सीधा और खुला होने का मतलब है कोई समस्या होने या भ्रष्टता उजागर करने पर संगति में खुलकर बोलना, किसी बात पर पर्दा न डालना या कोई तथ्य न छिपाना। खुलकर बोलना खासकर सत्य खोजने और जल्दी से समस्याएँ सुलझाने के लिए जरूरी है। इसके जरिए तुम अपनी भ्रष्टता का सार देख सकते हो, और भाई-बहनों के साथ दिल से दिल की बात कर सकते हो। यह लोगों को सीख देने और फायदा पहुंचाने वाला होता है। यह देखने के लिए कि कोई सीधा और खुला है या नहीं, उसके मकसद और नतीजे को देखना पड़ता है। अगर वे पूर्वाग्रहों, छोटे-मोटे घरेलू मामलों और की बात करते हैं, गपशप करते हैं, वह भी बिना किसी आत्मचिंतन या समझ के, तो इस तरह खुलना सचमुच सीधा और खुला होना नहीं है। यह कुछ नापसंद होने पर भड़ास निकालना और अपनी समस्याओं के लिए दूसरों को दोषी ठहराना है। इस तरह के खुलेपन से लोगों को कोई सीख या मदद नहीं मिलती। कुछ लोग खुलने का नाटक करके यह दिखावा करते हैं कि वे सत्य को स्वीकारने वाले ईमानदार लोग हैं, ताकि लोग उन्हें आदर से देखें। इस तरह से खुलना खुद को ऊंचा उठाना और दिखावा करना है, जो गुमराह करता है। चेन यू के आत्मज्ञान की बात करें तो, वह आमतौर पर दूसरों के बारे में अपनी शंका पर और अपने विचारों और ख्यालों पर खुलकर बोलती थी, पर वह कभी भी अपने भ्रष्ट स्वभावों या अपने लुके-छिपे इरादों या मकसदों की बात नहीं करती थी। वह सत्य खोजने या अपनी भ्रष्टता के समाधान के लिए नहीं, बल्कि दुखड़े सुनाने, लोगों की हमदर्दी जुटाने और उनकी दिलासा पाने के लिए ऐसा करती थी। वह खुद को सही ठहराने के लिए भी इसका इस्तेमाल करती थी, ताकि लोग उसे गलत न समझें। इस तरह वह दूसरों की नजर में अपनी छवि बचा सकती थी। उसके खुलकर बोलने से उसका भ्रष्ट स्वभाव हल नहीं हुआ, इससे भाई-बहनों को कोई शिक्षा या लाभ भी नहीं मिला। यह सीधा और खुला होना नहीं था। यह कोई खेल खेलना या चाल चलना था। यह एहसास होने के बाद मुझे सब स्पष्ट हो गया। मुझे साफ दिख रहा था कि चेन यू सत्य का अनुसरण करने वाली इंसान नहीं थी, वह सीधी और ईमानदार भी नहीं थी, बल्कि धूर्त और दुष्ट थी।

इसके बाद मैंने आत्मचिंतन किया। मैं करीब एक साल से चेन यू से बातचीत कर रही थी मुझे उसके कुछ आम मसलों का पता था, तो मैं उसे जरा भी पहचान क्यों नहीं पाई थी? मुझे एहसास हुआ कि इसका कारण था चीजों को परमेश्वर के वचनों के चश्मे से न देखना, बल्कि मैं तो अपनी धारणाओं और कल्पनाओं के चश्मे से देख रही थी। मैंने उसके खुलने और दूसरों के साथ अपनी दशा साझा करने को सत्य खोजना और उससे प्रेम करना समझा था। मैंने उसकी मंशाओं या उसके पहले कदम या उसने असल में जो हासिल किया उसे नहीं देखा। मैंने उसकी कथनी और करनी या उसके रवैयों को नहीं देखा, मैंने चीजों को परमेश्वर के वचनों के जरिए नहीं देखा। यही कारण था कि मैं न उसका सार देख पाई, न उसे परख पाई। मैं उसे एक बहन की तरह मानती रही, हमेशा उसे माफ किया, उसकी मदद की, प्यार से उसका साथ दिया। कितनी मूर्ख थी मैं! अब मैं समझ गई हूँ कि किसी इंसान के सत्य के प्रेम और अनुसरण की पहचान उनके दूसरों के साथ खुशी-खुशी संगति करने या आत्मज्ञान की बात करने से नहीं, बल्कि इससे होती है कि क्या वे सत्य खोजते हैं और कोई समस्या आने पर परमेश्वर के वचनों का अभ्यास करते हैं, क्या वे सच्चे प्रवेश और बदलाव में सक्षम हैं। मैं यह भी समझ गई कि परमेश्वर के वचनों के आधार पर इंसान के सार को पहचानना कितना जरूरी है। अगर तुम लोगों को पहचान नहीं सकते तो तुम गुमराह हो जाओगे। आँख बंद करके लोगों से प्रेम करोगे, गलत लोगों को भाई-बहन मानकर मदद करोगे, उनका साथ दोगे। इससे आखिर में कलीसिया के काम में रुकावट आएगी। लोगों और चीजों को परमेश्वर के वचनों के जरिए देखना ही सही है, लोगों की पहचान का यही तरीका है। दूसरों से सही तरीके से बात करने का यही तरीका है। परमेश्वर का धन्यवाद!

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