42. परमेश्वर के वचनों से भेद पहचानने में कभी चूक नहीं होती

क्रिस्टिना, यूएसए

अप्रैल 2021 में मैं बहन हार्लो और कुछ दूसरी बहनों के साथ रह रही थी। शुरू में मैं अक्सर देखती थी कि वह अपनी दशा के बारे में लोगों से बात कर रही है, कभी-कभी खाने के दौरान भी यही चर्चा छेड़ देती थी। मैं सोचती थी कि वो भोजन के समय का भी उपयोग कर पाती है—वह वास्तव में जीवन प्रवेश पर केंद्रित थी और ऐसी इंसान थी जो सत्य की खोज करती थी। फिर एक बार जब हम बात कर रहे थे, हार्लो ने मुझे बताया कि उसे दूसरों के हाव-भाव और राय की बहुत परवाह रहती थी और अगर कोई उससे बुरे लहजे में बात करता तो वह आम तौर पर मान लेती थी कि वे उसे छोटा समझ रहे हैं और मुझसे कहती थी कि वह धोखेबाज है। उसने यह भी कहा कि वह हमेशा नाम और लाभ के लिए दूसरों से होड़ करती थी और उसे अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे की काफी चिंता थी। मैं सोच रही थी, हम एक-दूसरे को ज्यादा समय से नहीं जानते थे तो भी उसका मुझे अपने गंभीर दोषों और कमियों के बारे में बता पाना दर्शाता है कि वह बहुत सीधी-सादी और खुली हुई है। बाद में उसके साथ बातचीत में मैंने देखा कि उसकी मानसिकता सचमुच ही जटिल थी। उसे दूसरों के हाव-भाव और राय की बड़ी परवाह रहती थी और वह दूसरों पर शक करती थी। कई बार जब भाई-बहन उसकी समस्याओं के बारे में बताते तो वह सोचती कि कहीं वे उसे नीची नजर से तो नहीं देखते, फिर वह खुलकर बताती, कहती कि वह हमेशा दूसरों पर शक करती है, वह धोखेबाज है, वगैरह-वगैरह। पहले तो मुझे लगा कि वह बस थोड़ी संवेदनशील और नाजुक थी। मुझे लगता था कि हरेक में कुछ दोष और समस्याएँ होती हैं और भाई-बहनों के रूप में हमें एक-दूसरे के प्रति ज्यादा सहनशील और क्षमाशील होना चाहिए। साथ ही वह भ्रष्टता का खुलासा करने के बाद खुलकर बात करने और समझने में सक्षम थी तो उसे जरूर सत्य को स्वीकार करने वाला इंसान होना चाहिए। तो मैंने इसे खास महत्व नहीं दिया। आम तौर पर जब वह मुझे अपनी दशा बताती तो मैं बड़े धीरज से उसके दिल की बात सुनती थी। मैं बातचीत में उसकी मनोदशा का भी ध्यान रखती थी, डरती कि लापरवाही से कुछ ऐसा न कह बैठूँ जिससे उसका दिल दुखे। इसी कारण उसे मुझसे बात करना अच्छा लगता था। उसके शब्दों के आशय से झलकता था कि वह मुझे खुशमिजाज व्यक्तित्व और उदार समझती है और उसे मेरे जैसे लोग पसंद हैं। हालाँकि हमारी बातें उसके शक करने और हाव-भाव के बारे में चिंता को लेकर उसकी दशा पर होती थीं। कभी-कभी थोड़ी-सी बात घंटे भर खिंच जाती और इससे मेरे कर्तव्य रुक जाते थे। मगर यह देखकर कि उसे मुझ पर कितना भरोसा था, मैं डरती थी कि उसकी बात नहीं सुनी तो उसका दिल दुखेगा तो उसे टोकना मुझे ठीक नहीं लगता था। पर बाद में कुछ ऐसा घटा कि जिससे धीरे-धीरे उसे देखने का मेरा नजरिया बदल गया।

एक बार जब हार्लो ने बहन के की इसलिए आलोचना की कि वह रजाई की तह ठीक से नहीं बना रही थी, तो बहन के ने इसे ज्यादा गंभीरता से नहीं लिया। हार्लो को गुस्सा आ गया और वह अड़ गई कि के को उसकी बात माननी पड़ेगी। के ने देखा कि हार्लो आम तौर पर लोगों से अपनी चापलूसी कराती है ताकि वे उसके साथ चलें और उसे खुश रखें। के ने उसे बताया कि वह रुतबे पर बहुत ध्यान देती है और चाहती है कि लोग उसके आसपास घूमें, सार रूप में इसका मतलब है कि वह उन्हें अपने वश में रखना चाहती थी। बाद में हार्लो ने के से खुले दिल से बात की, रोते हुए यह बताया कि वह वैसी नहीं थी जैसा के समझती थी और के ने उसे गलत समझा था। के ने माफी माँगी पर हार्लो अब भी अड़ी रही और उससे उखड़ी रही। इसके बाद वह अक्सर खुद में सिमटी रहती, हमसे ज्यादा बात न करती। एक बार अपनी दशा के बारे में मुझसे बात करते हुए उसने कहा कि उसने देखा कि दूसरी बहनें के से खूब बात कर रही हैं, इसलिए उसे संदेह है कि हर कोई के को पसंद करता है और वे उसे नीचा समझकर अलग-थलग कर देते हैं। फिर वह जान-बूझकर सबसे कतराने लगी और उसे लगा कि के उससे बात करते समय संजीदा नहीं थी। बाद में उसने कहा कि उसकी मानवता खराब थी और के के बारे में ऐसे अनुमान लगाना धूर्तता थी। पर इसके बाद वह बदली नहीं। इस वजह से वह एक पखवाड़े तक हमसे रूठी रही और हर कोई बहुत बेबस महसूस करता रहा। मैं बहुत हैरान थी और इसका सिर-पैर नहीं समझ पा रही थी। समस्याओं से सामना होने पर वह सत्य की खोज करके कोई सबक क्यों नहीं सीखती? इसके बाद मैंने सोचा कि उसे तो केवल बात-बात पर मुँह फुलाने, रूठने की आदत है और हम सब भाई-बहन हैं और हमें प्यार से उसकी और मदद करनी चाहिए। एक बार एक वीडियो बनाते समय उसे कुछ दिक्कतों का सामना करना पड़ा। सभा में टीम अगुआ ने कहा कि वीडियो से जुड़े किसी मसले में अहम जिम्मेदारी निर्माता को लेनी होगी। हार्लो को लगा कि उसकी ही बात हो रही है—टीम अगुआ को लगता है उसकी काबिलियत खराब है और वह उसे नीची नजर से देखता है। इसके बाद वह कई दिनों तक दुखी और उदास रही। इसके बाद एक अगुआ ने उसके साथ संगति की, कहा कि वह सत्य नहीं स्वीकारती और अति संवेदनशील है और उसके लिए इस तरह रहना खतरनाक होगा। हार्लो ने यह सुनकर रोना शुरू कर दिया। कहने लगी कि वह बहुत भ्रष्ट है और परमेश्वर उसे नहीं बचाएगा। उसे इतना परेशान होता देख अगुआ ने परमेश्वर के इरादे पर उसके साथ संगति की ताकि वह परमेश्वर को गलत न समझे और अपनी समस्या पर आत्म-चिंतन कर सके और प्रवेश पा सके। उस समय वह कुछ नहीं बोली, अगुआ को लगा वह बदलाव लाने में सक्षम होगी। पर आश्चर्य की बात यह कि एक सभा में उसने कहा कि वह अपने बारे में अगुआ की राय को नहीं स्वीकार कर सकी और कई दिनों तक निराश रही थी। बाद में उसने कुछ भाई-बहनों से कहा कि टीम अगुआ ने उसकी कम काबिलियत के कारण उसे नापसंद किया, जिससे उसने बेबस महसूस किया। उसे नहीं पता कि वह इससे कैसे उबरे और वह बोलते-बोलते रोने लगी। भाई-बहनों ने हमदर्दी दिखाई। इस तरह की बातें अक्सर घटती रहती थीं। किसी के साथ संगति के बाद वह हमेशा खुद को “जान” जाती और अपनी समस्या को स्वीकार कर लेती। पर कुछ दिन बाद कुछ और अप्रिय हो जाता तो उसे फिर दौरा पड़ जाता था।

मैं उसका यह बर्ताव देखकर बहुत उलझन में रहती थी। चूँकि वह आम तौर पर खुद को समझती हुई लगती थी तो वह कभी बदली क्यों नहीं? अगर दूसरे ऐसी बात कहते जिससे उसके गर्व को चोट लगती तो वह मान लेती थी कि वे उसे नीची नजर से देख रहे हैं, फिर सब कुछ गलत समझ लेती। क्या उसकी मानवता और समझ को लेकर कोई समस्या थी? मैं इसे पूरी तरह समझ नहीं पाई, इसलिए मैंने खोजने के लिए परमेश्वर से प्रार्थना की और उन लोगों का पता लगाया और उनके साथ संगति की जो सत्य को समझते थे। एक बहन ने मुझसे कहा कि बरसों की आस्था के बाद हार्लो समझती तो सब कुछ थी पर वह सत्य का अभ्यास नहीं करती थी और अक्सर नकारात्मक रहती थी। जिसका मतलब था कि वह सच में खुद को नहीं जानती थी। उस बहन ने मुझे परमेश्वर के वचनों का एक अंश भेजा : “जब कुछ लोग आत्म-ज्ञान के बारे में संगति करते हैं, तो उनके मुँह से पहली बात यह निकलती है, ‘मैं एक राक्षस, एक जीवित शैतान हूँ, जो परमेश्वर का विरोध करता है। मैं उसके विरुद्ध विद्रोह करता हूँ और उसके साथ विश्वासघात करता हूँ; मैं एक साँप हूँ, एक दुष्ट व्यक्ति, जिसे शापित होना चाहिए।’ क्या यही सच्चा आत्म-ज्ञान है? वे केवल सामान्य बातें बोलते हैं। वे उदाहरण क्यों नहीं देते? वे गहन-विश्लेषण के लिए उनके द्वारा की गई शर्मनाक चीजों को सबके सामने क्यों नहीं लाते? कुछ अविवेकी लोग उनकी बात सुनकर सोचते हैं, ‘हाँ, यह सच्चा आत्म-ज्ञान है! खुद को एक दानव के रूप में जानना, यहाँ तक कि खुद को कोसना—ये कितनी ऊँचाई तक पहुँच गए हैं!’ बहुत-से लोग, खासकर नए विश्वासी, इस बात से गुमराह हो जाते हैं। वे सोचते हैं कि वक्ता शुद्ध है और उसके पास आध्यात्मिक समझ है, सत्य से प्रेम करता है, और अगुआई करने योग्य है। लेकिन जब वे उससे थोड़ी देर बातचीत करते हैं तो पाते हैं कि ऐसा नहीं है, यह वैसा इंसान नहीं है जैसी उन्होंने कल्पना की थी, बल्कि असाधारण रूप से झूठा और धोखेबाज है, स्वाँग रचने और ढोंग करने में कुशल है, जिससे उन्हें बड़ी निराशा होती है। किस आधार पर यह माना जा सकता है कि लोग वास्तव में खुद को जानते हैं? तुम केवल इस बात पर विचार नहीं कर सकते कि वे क्या कहते हैं—मुख्य है यह निर्धारित करना कि वे सत्य का अभ्यास करने और उसे स्वीकारने में सक्षम हैं या नहीं। जो लोग वास्तव में सत्य समझते हैं, उन्हें न केवल अपना सच्चा ज्ञान होता है, बल्कि सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि वे सत्य का अभ्यास करने में सक्षम होते हैं। वे न केवल अपनी सच्ची समझ के बारे में बोलते हैं, बल्कि वे जो कहते हैं उसे सच में करने में भी सक्षम होते हैं। यानी उनकी कथनी और करनी में पूरी तरह तालमेल होता है। अगर वे जो कहते हैं वह सुसंगत और स्वीकार्य लगता है, लेकिन वे वैसा करते नहीं, उसे जीते नहीं, तो इसमें वे फरीसी बन जाते हैं, वे पाखंडी होते हैं और खुद को सच में जानने वाले लोग बिल्कुल नहीं होते। सत्य के बारे में संगति करते हुए कई लोग बहुत तर्कसंगत लगते हैं, लेकिन यह नहीं जानते कि कब उनका भ्रष्ट स्वभाव प्रकट हो जाता है। क्या ये वे लोग हैं, जो खुद को जानते हैं? अगर लोग खुद को नहीं जानते, तो क्या वे सत्य को समझने वाले लोग होते हैं? वे सभी, जो स्वयं को नहीं जानते, वे सत्य को न समझने वाले लोग हैं, और जो आत्म-ज्ञान के खोखले शब्द बोलते हैं उनमें झूठी आध्यात्मिकता होती है, वे झूठे होते हैं। कुछ लोग वचन और सिद्धांत बोलते समय बहुत सुसंगत लगते हैं, लेकिन उनकी आत्माओं की स्थिति सुन्न और जड़ होती है, वे चीजों को महसूस नहीं कर पाते हैं, और किसी भी मसले पर कोई प्रतिक्रिया नहीं देते। कहा जा सकता है कि वे सुन्न होते हैं, लेकिन कभी-कभी, उन्हें बोलते हुए सुनने पर, लगता है कि उनकी आत्मा काफी प्रखर है। उदाहरण के लिए, किसी घटना के ठीक बाद, वे खुद को तुरंत जानने में सक्षम होते हैं : ‘अभी-अभी मुझे एक विचार आया। मैंने उसके बारे में सोचा और महसूस किया कि वह कपटी विचार था, कि मैं परमेश्वर को धोखा दे रहा था।’ यह सुनकर कुछ अविवेकी लोग ईर्ष्यालु हो जाते हैं और कहते हैं : ‘इस इंसान को तुरंत पता चल जाता है कि कब उसकी भ्रष्टता प्रकट हो रही है, और यह उसके बारे में खुलकर बात करने और संगति करने में भी सक्षम है। वह प्रतिक्रिया व्यक्त करने में बहुत तेज है, उसकी आत्मा प्रखर है, वह हमसे बहुत बेहतर है। वह वास्तव में ऐसा इंसान है, जो सत्य का अनुसरण करता है।’ क्या यह लोगों को मापने का सटीक तरीका है? (नहीं।) तो यह आँकने का आधार क्या होना चाहिए कि लोग वास्तव में खुद को जानते हैं या नहीं? इसका आधार केवल उनके मुँह से निकलने वाली बातें नहीं होनी चाहिए। तुम्हें यह भी देखना चाहिए कि उनमें वास्तव में क्या प्रकट होता है। सबसे सरल तरीका यह देखना है कि क्या वे सत्य का अभ्यास करने में सक्षम हैं—यही सबसे महत्वपूर्ण है। सत्य का अभ्यास करने की उनकी क्षमता साबित करती है कि वे वास्तव में खुद को जानते हैं, क्योंकि जो लोग वास्तव में खुद को जानते हैं, वे पश्चात्ताप अभिव्यक्त करते हैं, और जब लोग पश्चात्ताप अभिव्यक्त करते हैं, तभी वे वास्तव में खुद को जानते हैं(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, सत्य के अनुसरण में केवल आत्म-ज्ञान ही सहायक है)। परमेश्वर के वचनों से मैंने सीखा जब यह मापा जाता है कि क्या कोई सत्य से प्रेम करता है और स्वीकार करता है, क्या वह खुद को सचमुच जानता है, तो इसका मतलब यह नहीं होता कि वह मौखिक रूप से खुद को कितना जानता है या वह शब्द और धर्म-सिद्धांतों को कितने अच्छे ढंग से बोलता है। बल्कि यह होता है कि घटनाओं से सामना होने पर वह असल में क्या जीता है, क्या वह सत्य का अभ्यास कर सकता है, क्या वह सचमुच प्रायश्चित्त करके बदलता है और अपनी समझ के बारे में वह जो कहता है, क्या वह उसके वास्तविक प्रवेश से मेल खाता है। कुछ लोग एकदम सही शब्द और धर्म-सिद्धांत बघारते हैं, पर चीजें होने पर वे कतई सत्य का अभ्यास नहीं करते और अपने शैतानी स्वभाव के अनुसार चलते हैं। ऐसे लोग सत्य को स्वीकार करने वाले नहीं होते। कुछ लोग खुद को खोलकर रख पाते हैं, भले ही वे कुछ भी प्रकट करें और वे अपनी भ्रष्टता को जानते हैं, लोग समझते हैं कि वे सीधे-सादे हैं। हालाँकि वे इसके पीछे के इरादों पर कुछ नहीं कहते और वे अपने भ्रष्ट स्वभाव के सार का बिल्कुल भी गहन विश्लेषण नहीं करते। वे सरल और खुले प्रतीत होते हैं पर असल में वे दूसरों को गुमराह करते हैं, धोखा देते हैं और सचमुच धोखेबाज होते हैं। कुछ लोगों का आत्म-ज्ञान सिर्फ एक छलावा होता है—वे मौखिक रूप से अपनी गलतियों को स्वीकार करेंगे, कहेंगे कि वे दानव और शैतान हैं, खुद को कोसेंगे और धिक्कारेंगे और वे खुद को पूरी तरह गड़बड़ बताएँगे; हालाँकि उन्होंने जो खास बुरे काम किए हैं उनके पीछे लुके-छिपे उद्देश्य और लक्ष्य या उन्हें मिले परिणामों के बारे में वे एक शब्द नहीं कहते। हार्लो की बात करें तो उसे अपनी दशा के बारे में लोगों से बात करना पसंद था और लगता था कि वह सचमुच सत्य का अनुसरण और उसकी खोज करती थी। हमेशा ऐसी बातें कहती रहती थी कि “मेरी मानवता खराब है, मैं धोखेबाज हूँ, मुझमें द्वेष भावना है।” बाहर से ऐसा लगता था जैसे वह वास्तव में खुद को जान सकती है पर उसने सत्य का अभ्यास नहीं किया और घटनाओं का सामना होने पर उसके पास कोई प्रवेश नहीं था। उसने अपने भ्रष्ट स्वभाव को बिल्कुल भी हल नहीं किया था। दो साल पहले दूसरों ने उसका लोगों पर शक करने वाली और प्रतिष्ठा और रुतबे पर ध्यान केंद्रित करने वाली की तरह मूल्यांकन किया था, पर वह अब भी जरा भी नहीं बदली थी। साफ तौर पर वह सिर्फ सिद्धांत के बारे में बात करती थी। यह लोगों को झूठी छवि दिखाना और झांसा देना था। वह जिस ज्ञान की बात करती थी और जो वह दरअसल जीती थी, वह मेल नहीं खाता था।

बाद में मैंने परमेश्वर की संगति पढ़ी कि कौन लोग सच्चे भाई-बहन हैं और कौन लोग नहीं हैं और इससे मुझे हार्लो का भेद पहचानने की थोड़ी समझ मिली। परमेश्वर के वचन कहते हैं : “जो लोग सत्य से प्रेम करते हैं बस वे ही परमेश्वर के घर के हैं; वे ही सच्चे भाई-बहन हैं। क्या तुम सोचते हो कि अक्सर सभाओं में हिस्सा लेने वाले सभी लोग भाई-बहन होते हैं? जरूरी नहीं कि ऐसा हो। कौन-से लोग भाई-बहन नहीं होते? (वे जो सत्य से विमुख रहते हैं, जो सत्य स्वीकार नहीं करते।) जो लोग सत्य को नहीं स्वीकारते और उससे विमुख रहते हैं, वे सभी बुरे लोग हैं। उन सबमें जमीर या विवेक नहीं होता। उनमें से कोई ऐसा नहीं है, जिसे परमेश्वर बचाता है। वे लोग इंसानियत से रहित हैं, वे अपने उचित कार्य नहीं करते और आपे से बाहर रहकर बुरे कार्य करते हैं। वे शैतानी फलसफों से जीते हैं, कुटिल तिकड़में लगाते हैं और लोगों का इस्तेमाल करते हैं, उन्हें फुसलाते हैं और उन्हें धोखा देते हैं। वे जरा-सा भी सत्य नहीं स्वीकारते और केवल आशीष प्राप्त करने के लिए परमेश्वर के घर में घुस आए हैं। हम उन्हें छद्म-विश्वासी क्यों कहते हैं? क्‍योंकि वे सत्‍य से विमुख हैं और इसे स्‍वीकारते नहीं। जैसे ही सत्य के बारे में संगति की जाती है, उनकी रुचि खत्म हो जाती है, वे इससे विमुख हो जाते हैं, वे इसे सुनना बर्दाश्त नहीं कर सकते, उन्हें यह उबाऊ लगता है और वे बैठे नहीं रह पाते। ये स्पष्ट रूप से छद्म-विश्वासी और अविश्वासी हैं। तुम्हें इन्हें भाई-बहन नहीं समझना चाहिए। ... तो वे किसके सहारे जीते हैं? कोई शक नहीं कि वे शैतान के फलसफों के अनुसार जीते हैं, वे हमेशा धूर्त और कपटी होते हैं, उनके जीवन में सामान्य मानवता नहीं होती। वे कभी परमेश्वर से प्रार्थना या सत्य की खोज नहीं करते, बल्कि वे इंसानी जुगाड़ों, चालाकियों और सांसारिक आचरण के फलसफों का इस्तेमाल कर हर चीज संभालते हैं—इससे उनका जीवन थकाऊ और पीड़ादायी बन जाता है। वे भाई-बहनों से उसी तरह बातचीत करते हैं जिस तरह अविश्वासियों से करते हैं, वे शैतानी फलसफों का अनुसरण कर झूठ बोलते हैं और धोखा देते हैं। उन्हें बहस छेड़कर बाल की खाल निकालना पसंद है। वे चाहे किसी भी समूह में रह रहे हों, हमेशा यही ताड़ते रहते हैं कि कौन किस से मिला हुआ है और कौन किसके खेमे में है। वे बोलते हुए दूसरे लोगों की प्रतिक्रिया गौर से भाँपते हैं, हमेशा चौकस रहते हैं ताकि किसी को भी नाराज न कर बैठें। वे अपने आसपास की सभी चीजों और दूसरों के साथ अपने संबंधों से निपटने के लिए हमेशा सांसारिक आचरण के इन्हीं फलसफों का पालन करते हैं। यही उनके जीवन को इतना थकाऊ बना देता है। भले ही वे दूसरे लोगों के बीच सक्रिय दिखते हों, हकीकत में अपने संघर्ष को केवल वे ही जानते हैं, और अगर तुम उनका जीवन करीब से देख सको तो महसूस कर लोगे कि यह कितना थकाऊ है। प्रसिद्धि, लाभ या मान-सम्मान से जुड़े किसी मामले में, वे इस बात को स्पष्ट करने पर जोर देते हैं कि कौन सही है कौन गलत है, कौन श्रेष्ठ है कौन निम्न है, और वे कोई बात साबित करने के लिए बहस जरूर करते हैं। दूसरे लोग इसे सुनना नहीं चाहते। लोग कहते हैं, ‘तुम जो कह रहे हो क्या उसे आसान बना सकते हो? क्या तुम स्पष्ट बोल सकते हो? तुम्हें इतना तुच्छ बनने की क्या जरूरत है?’ उनके विचार इतने ज्यादा जटिल और उलझे हुए हैं, और वे बुनियादी समस्याओं का एहसास किए बिना ही इतना थकाऊ जीवन जीते हैँ। वे सत्य खोजकर ईमानदार क्यों नहीं बन सकते? क्योंकि वे सत्य से विमुख हो चुके हैं और ईमानदार नहीं बनना चाहते। तो वे जीवन में किस पर निर्भर रहते हैं? (सांसारिक आचरण के फलसफों और इंसानी तौर-तरीकों पर।) इंसानी तौर-तरीकों पर निर्भर रहना ऐसे परिणामों की ओर ले जाता है जिससे वे या तो हँसी के पात्र बन जाते हैं या अपना भद्दा पहलू उजागर करते हैं। और इसलिए, करीब से देखने पर, उनके क्रियाकलाप, और जो करते हुए वे पूरा दिन बिताते हैं—वे सब उनकी इज्जत, प्रतिष्ठा, लाभ और घमंड से संबंधित होती हैं। ऐसा लगता है, मानो वे किसी जाल में जी रहे हों, उन्हें हर चीज सही ठहरानी पड़ती है या हर बात के लिए बहाने बनाने पड़ते हैं, और वे हमेशा अपनी खातिर बोलते हैं। उनकी सोच जटिल होती है, वे बहुत बकवास करते हैं, उनके शब्द बहुत पेचीदा होते हैं। वे हमेशा इस बात पर बहस करते हैं कि क्या सही है और क्या गलत, इसका कोई अंत नहीं होता। अगर वे इज्जत हासिल करने की कोशिश नहीं कर रहे होते, तो वे प्रतिष्ठा और हैसियत के लिए प्रतिस्पर्धा कर रहे होते हैं, और ऐसा कोई समय नहीं होता जब वे इन चीजों के लिए नहीं जीते। और अंतिम परिणाम क्या होता है? हो सकता है कि वे इज्जत पा लें, लेकिन हर कोई उनसे तंग आ जाता है। लोगों ने उनकी असलियत देख ली है, और एहसास कर लिया है कि उनमें सत्य वास्तविकता नहीं है, वे ईमानदारी से परमेश्वर पर विश्वास करने वाले इंसान नहीं हैं। जब अगुआ और कार्यकर्ता या अन्य भाई-बहन उनकी काट-छाँट करने के लिए कुछ शब्दों का प्रयोग करते हैं, तो वे इन्हें स्वीकारने से हठपूर्वक इनकार कर देते हैं, वे खुद को सही ठहराने या बहाने बनाने की कोशिश करने पर जोर देते हैं, और वे अपना दोष दूसरे के सिर मढ़ने की कोशिश करते हैं। सभाओं के दौरान वे अपना बचाव करते हैं, और परमेश्वर के चुने हुओं के बीच समस्या पैदा कर देते हैं। अपने दिल में वे सोच रहे होते हैं, ‘क्या अब मेरे लिए अपना मामले पर बहस करने के लिए कोई जगह नहीं है?’ ये किस तरह के इंसान हैं? क्या ये ऐसे इंसान हैं, जो सत्य से प्रेम करते हैं? क्या ये ऐसे इंसान हैं, जो परमेश्वर पर विश्वास करते हैं? जब वे किसी को कुछ ऐसा कहते सुनते हैं जो उनकी इच्छाओं के अनुरूप नहीं होती, तो वे हमेशा बहस करना चाहते हैं और स्पष्टीकरण माँगते हैं, वे इस बात में उलझ जाते हैं कि कौन सही है और कौन गलत, वे सत्य की खोज नहीं करते और उसे सत्य सिद्धांतों के अनुसार उससे पेश नहीं आते। मामला कितना भी सरल क्यों न हो, उन्हें उसे बहुत जटिल बनाना होता है—वे केवल परेशानी को न्योता दे रहे हैं, वे इतना थकने लायक हैं!(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, भाग तीन)। परमेश्वर के वचनों से प्रकट होता है कि कुछ लोग सही-गलत को लेकर झगड़ते हैं। वे सत्य नहीं स्वीकारते; बल्कि इससे विमुख होते हैं। वे चीजों के होने पर सत्य की खोज नहीं करते, न ही वे आत्म-चिंतन करके खुद को जानते हैं। वे हमेशा अपनी इज्जत और रुतबे के लिए खुद को बचाते और सही ठहराते रहते हैं। ऐसे इंसान की मानसिकता जटिल होती है और प्रकृति धोखेबाज होती है। यह खुद उसके लिए तो थकाऊ होता ही है, दूसरों को भी दर्द और चिढ़ होती है। इस तरह का इंसान सच्चा भाई या बहन नहीं होता। मैंने फिर हार्लो के बारे में सोचा। अनजाने में जब किसी की बात से उसके अभिमान पर असर पड़ता और उसे बुरा लगता तो वह अनुमान लगाने लगती थी कि वे उसे नापसंद करते हैं और उनके प्रति पूर्वाग्रही हो जाती थी। फिर वह खुद को सही ठहराने और बचाव करने के लिए झूठ-मूठ में अपना दिल खोलकर सफाई देती थी या दूसरों की समस्याएँ उठाने के बहाने खुद को जानने की बात करती थी। वह हमेशा सही और गलत को लेकर फिजूल की बहस करती रहती थी। मिसाल के तौर पर जब टीम अगुआ ने उसे कार्य के बारे में कुछ सुझाव दिए तो उसे संदेह हुआ कि टीम अगुआ उसे नापसंद करता है और वह आपा खो बैठी। बाद में एक सभा में उसने “खुलकर” बात फैलाई कि टीम अगुआ उसे हीन समझता है ताकि हर कोई उससे हमदर्दी जताकर टीम अगुआ के बारे में राय बना ले। लोगों को अक्सर उससे बातचीत करते हुए बहुत सँभलकर बोलना पड़ता था, उसके हाव-भाव देखते हुए, उसके गर्व का खयाल रखते हुए और डरते हुए कि उनकी कोई ऐसी-वैसी बात से उसकी दशा पर असर न पड़े। उससे बात करना बहुत दमघोंटू था और मुक्तिदायक नहीं था। इसके अतिरिक्त यह तथ्य कि वह हमेशा आसानी से नकारात्मक हो जाती थी और चीजों के बारे में बहुत ज्यादा सोचती थी जिससे काम की प्रगति पर गंभीर असर पड़ता था। मैं सोचा करती थी कि वह बस थोड़ी भावुक और नाजुक है और जब चीजें उसके हिसाब से नहीं होतीं तो वह गुस्से में आकर उदास हो जाती है। मुझे लगता था कि यह सामान्य मानवता में एक दोष है और इससे भाई-बहनों या कलीसिया के काम के लिए कोई वास्तविक विघ्न-बाधाएँ नहीं आतीं। पर तथ्यों के साथ जोड़ने पर मैंने देखा कि उसने वास्तव में अनजाने में भाई-बहनों की दशाओं के साथ ही कलीसियाई जीवन पर भी असर डाला था। उसने कलीसिया के कार्य की सामान्य प्रगति को भी प्रभावित किया था। उसके निरंतर व्यवहार को देखें तो उसने सत्य को जरा भी स्वीकार नहीं किया था और वास्तव में धोखेबाज थी। वह भाई-बहनों के लिए बाधा बनी रही थी और उसने कोई भी सकारात्माक भूमिका नहीं निभाई थी—वह छद्म-विश्वासी थी। अंत में अगुआ उसके व्यवहार को समझ गया, उसने उसे काम से हटाकर अलग रहकर आत्म-चिंतन के लिए कहा।

इसके बाद मैंने लोगों के भ्रष्ट स्वभावों का खुलासा करने वाले परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा। इसके जरिए मुझे हार्लो के शब्दों के पीछे छिपे स्वभाव के भेद की पहचान हुई। परमेश्वर के वचन कहते हैं : “आम तौर पर, धोखेबाजी बाहर ही दिखाई पड़ जाती है : कोई व्यक्ति घुमा-फिराकर बात करता है या बड़े-बड़े शब्दों वाली भाषा का उपयोग करता है और किसी को भनक तक नहीं लग पाती कि वह क्या सोच रहा है। यह धोखेबाजी है। दुष्टता की मुख्य विशेषता क्या है? यह कि सुनने में उनके शब्द खास तौर पर मीठे लगते हैं और ऊपर-ऊपर से सबकुछ सही प्रतीत होता है। ऐसा नहीं लगता कि कहीं कोई समस्या है और हर कोण से चीजें काफी अच्छी नजर आती हैं। जब वे कुछ करते हैं, तो तुम्हें वे किसी खास साधन का उपयोग करते हुए नजर नहीं आते और बाहर से कमजोरियों या गलतियों का कोई चिन्ह दिखाई नहीं देता है, लेकिन फिर भी वे अपना लक्ष्य हासिल कर लेते हैं। वे चीजों को अत्यंत गुप्त तरीके से करते हैं। मसीह-विरोधी ठीक इसी तरीके से लोगों को गुमराह करते हैं। इस तरह के लोगों और मामलों को पहचानना सबसे मुश्किल है। कुछ लोग अक्सर सही चीजें कहते हैं, सुनने में अच्छे लगने वाले बहानों का उपयोग करते हैं और कुछ लोग लोगों की आँखों में धूल झोंकने के लिए ऐसे धर्म-सिद्धांतों, कहावतों या क्रियाकलापों का उपयोग करते हैं जो मानवीय स्नेह के अनुरूप है। वे अपना गुप्त उद्देश्य हासिल करने के लिए एक काम करते हुए दूसरा काम करने का दिखावा करते हैं। यह दुष्टता है, लेकिन ज्यादातर लोग इन व्यवहारों को धोखेबाजी के व्यवहार मानते हैं। लोगों में दुष्टता की समझ और उसके गहन-विश्लेषण की क्षमता सीमित होती है। दरअसल, धोखेबाजी की तुलना में दुष्टता को पहचानना ज्यादा मुश्किल है क्योंकि यह ज्यादा गुप्त होता है और इसके तरीके और क्रियाकलाप ज्यादा जटिल होते हैं(वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद पाँच : वे लोगों को गुमराह करने, फुसलाने, धमकाने और नियंत्रित करने का काम करते हैं)। परमेश्वर के वचनों से उजागर होता है कि बुरे स्वभाव वाले कुछ ऐसी बातें कहते हैं जो सुनने में अच्छी और सही लगती हैं, जो सहमत होने लायक लगती हैं पर इन चीजों के पीछे ऐसे छिपे हुए और अंदरूनी मकसद होते हैं जिन्हें आसानी से नहीं पहचाना जा सकता। मैं हार्लो के व्यवहार के बारे में सोचे बिना न रह सकी। वह आम तौर पर लोगों से अपनी दशा पर बात करना पसंद करती थी, ताकि वे सोचें कि वह जीवन प्रवेश पर बहुत ध्यान दे रही है और वह सत्य की खोज और अनुसरण कर रही है। पर हकीकत में वह जान-बूझकर लोगों को धोखा देने के लिए यह नकली आध्यात्मिक दिखावा करती थी ताकि लोग उसके लिए दयालु रहें और उसके बारे में अच्छा सोचें। वह दिखाती कि जैसे वह अपनी दशा की बात कर रही है पर असल में वह बड़बड़ाती थी, सांत्वना पाने की कोशिश करती थी, अपना असंतोष जाहिर करती थी और सहानुभूति पाने का नाटक कर रही होती थी। वह अपना कर्तव्य कर रहे लोगों का भी समय बर्बाद करती। पर उस समय मैं उसके मकसद की असलियत नहीं भाँप सकी, न ही यह भेद पहचान पाई कि वास्तव में वह कैसी इंसान थी। मैं बस नरम दिल से उसके साथ संगति करते हुए उसकी मदद और समर्थन करती रही। जब भी मैंने उसे जिंदगी में संघर्ष करते देखा, मैंने बढ़-चढ़कर उसकी मदद की और हर मामले में पहले उसके फायदे का सोचा। अब परमेश्वर के वचनों से उजागर किए जाने से मैंने अंततः देखा कि उसकी प्रकृति दुष्ट थी, कि वह अपनी कथनी और करनी में गुमराह कर रही थी और सभी को छल रही थी और धोखा दे रही थी।

इसके बाद मैंने आत्म-चिंतन किया। मैं हार्लो की असलियत को पहचान क्यों नहीं सकी? आत्म-चिंतन करते हुए पर मैंने जाना कि मेरा दृष्टिकोण गलत था। अपने बारे में बात करने को मैंने उसका सरल और खुला होना और सत्य का अभ्यास करना मान लिया था और उसके शब्दों की असलियत पर कोई ध्यान नहीं दिया था। परमेश्वर के वचनों से ही मैंने जाना कि सरल और खुला होना क्या होता है। परमेश्वर के वचन कहते हैं : “ईमानदारी का अर्थ है अपना हृदय परमेश्वर को अर्पित करना; हर बात में उसके साथ सच्चाई से पेश आना; हर बात में उसके साथ खुलापन रखना, कभी तथ्यों को न छुपाना; अपने से ऊपर और नीचे वालों को कभी भी धोखा न देना, और मात्र परमेश्वर की चापलूसी करने के लिए चीज़ें न करना। संक्षेप में, ईमानदार होने का अर्थ है अपने कार्यों और शब्दों में शुद्धता रखना, न तो परमेश्वर को और न ही इंसान को धोखा देना। ... यदि तुम्हारी बातें बहानों और बेकार तर्कों से भरी हैं, तो मैं कहता हूँ कि तुम ऐसे व्यक्ति हो जो सत्य का अभ्यास करने से घृणा करता है। यदि तुम्हारे पास ऐसे बहुत-से गुप्त भेद हैं जिन्हें तुम साझा नहीं करना चाहते, और यदि तुम प्रकाश के मार्ग की खोज करने के लिए दूसरों के सामने अपने राज़ यानी अपनी कठिनाइयाँ उजागर करना नहीं चाहते हो, तो मैं कहता हूँ कि तुम्हें आसानी से उद्धार प्राप्त नहीं होगा और तुम सरलता से अंधकार से बाहर नहीं निकल पाओगे(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तीन चेतावनियाँ)। परमेश्वर के वचनों से मैंने जाना कि सरल और खुला होने का मुख्य रूप से मतलब है कोई समस्या या कठिनाई होने पर संगति में खुलना है या भ्रष्टता का खुलासा करना है, खुद को छिपाना या तथ्यों को छिपाना नहीं है। खुलना मुख्य रूप से समस्याओं और कठिनाइयों को जल्दी से हल करने के लिए सत्य की खोज करना है। खुलने और दूसरों को उनकी भ्रष्टता का सार दिखाने के जरिए भाई-बहन एक-दूसरे के साथ अपने दिल की बात कह सकते हैं। इस तरह से खुलना शिक्षाप्रद और फायदेमंद होता है। सरल और खुला होना मुख्य रूप से किसी व्यक्ति के इरादों और उद्देश्यों और प्राप्त परिणामों पर निर्भर करता है। अगर वे बिना किसी आत्म-चिंतन या समझ के पूर्वाग्रहों, छोटे-मोटे घरेलू मामलों और गपशप के बारे में बात करते हैं तो वे वास्तव में सरल और खुले हुए नहीं होते। वे बस अपनी नापसंदगी को लेकर भड़ास निकालते हैं और समस्याओं के लिए दूसरों की आलोचना करते हैं। इस तरह के खुलेपन से लोगों को कोई सीख या मदद नहीं मिलती। कुछ लोग तो यह दिखावा करने के लिए खुलने का नाटक करते हैं कि वे सत्य को स्वीकारने वाले ईमानदार लोग हैं, ताकि लोग उन्हें आदर से देखें। इस तरह से खुलने से खुद को ऊँचा उठा रहे होते हैं और गुप्त रूप से दिखावा कर रहे होते हैं—वे लोगों को गुमराह कर रहे हैं। जब हार्लो ने अपने आत्म-ज्ञान के बारे में खुलकर बात की तो वे ज्यादातर दूसरों के बारे में उसकी निराधार शंकाएँ थीं, साथ ही उसने अपनी सोच और विचारों को भी प्रकट किया। वह कभी भी अपने भ्रष्ट स्वभावों, अपने छिपे इरादों या मकसदों की बात नहीं करती थी। वह सत्य खोजने और अपनी भ्रष्टता के समाधान के लिए नहीं बल्कि दुखड़े सुनाने के लिए खुली ताकि लोग उसके लिए हमदर्दी जताएँ, उसे दिलासा दें और उससे सहानुभूति रखें। वह खुद को सही ठहराने और बचाव के लिए भी इसका इस्तेमाल करती थी ताकि लोग उसे गलत न समझें। इस तरह वह दूसरों की नजर में अपनी छवि बचाए रख पाती थी। उसके खुलेपन से उसका भ्रष्ट स्वभाव हल नहीं हुआ और इससे भाई-बहनों को कोई लाभ या शिक्षा भी नहीं मिली। तो वह सरल और खुली नहीं थी—वह खेल खेल रही थी और चालाकी कर रही थी। यह एहसास होने के बाद मुझे कुछ आंतरिक स्पष्टता मिली। मुझे साफ दिख रहा था कि हार्लो सत्य को खोजने वाली इंसान नहीं थी और वह सरल और खुली नहीं थी। वह वास्तव में सचमुच धोखेबाज और बुरी थी।

इसके बाद मैंने आत्म-चिंतन किया। मैं करीब एक साल से हार्लो से बातचीत कर रही थी और आमतौर पर मुझे उसकी आम समस्याओं का पता था। तो मैं जरा भी उसका भेद क्यों नहीं पहचान पाई थी? इस पर आत्म-चिंतन करते हुए मुझे एहसास हुआ कि लोगों और घटनाओं को मैं परमेश्वर के वचनों के चश्मे से नहीं देख रही थी। बल्कि मैं अपनी धारणाओं और कल्पनाओं के जरिए लोगों के ऊपरी रूप-रंग देख रही थी। मैंने उसे सतही तौर पर खुलते हुए और दूसरों के साथ अपनी दशा साझा करने को सत्य खोजना और उससे प्रेम करना समझ लिया था। मैंने चीजों में उसकी मंशाओं को नहीं देखा था या वास्तव में क्या हासिल हुआ था। मैंने उसकी कथनी और करनी में उसके अपनाए गए सुसंगत तरीकों और दृष्टिकोणों को नहीं देखा था और चीजों को परमेश्वर के वचनों के जरिए नहीं देखा। यही कारण था कि मैं उसके सार की असलियत नहीं पहचान पाई या उसका भेद नहीं पहचान पाई और यहाँ तक कि उसे एक बहन की तरह मानती रही, हमेशा उसे छूट देती रही, प्यार से उसकी मदद करती रही और उसका साथ दिया। कितनी मूर्ख थी मैं! इस अनुभव के जरिए मैंने समझ लिया कि किसी इंसान के सत्य से प्रेम और अनुसरण की पहचान इससे नहीं होती कि वे संगति में दूसरे लोगों को कितना खोजना पसंद करते हैं या वे आत्म-ज्ञान के बारे में कितनी अच्छी बात करते हैं। बल्कि यह इससे होती है कि क्या वे सत्य खोज सकते हैं और चीजों का सामना होने पर परमेश्वर के वचनों का अभ्यास कर सकते हैं और क्या उनके पास वास्तविक प्रवेश और बदलाव है। मुझे यह भी एहसास हुआ कि परमेश्वर के वचनों के आधार पर किसी इंसान के सार का भेद पहचानना कितना जरूरी है। अगर तुम सभी प्रकार के लोगों का भेद नहीं पहचान सकते तो तुम गुमराह हो जाओगे। तुम लोगों से आँख बंद करके प्रेम करोगे और गलत लोगों को भाई-बहन मानकर उनकी मदद करोगे और साथ दोगे। इससे आखिर में कलीसिया के काम में विघ्न-बाधा पैदा होगी। लोगों और चीजों को केवल परमेश्वर के वचनों के जरिए देखना ही सटीक होता है—यही सभी प्रकार के लोगों के भेद की पहचान का एकमात्र तरीका है और यह जानने का अकेला तरीका है कि दूसरों से उचित ढंग से व्यवहार और बातचीत कैसे करें। परमेश्वर का धन्यवाद!

पिछला: 41. जब नए पद पर तैनाती से मैं बेनकाब हो गया

अगला: 43. दोराहे

परमेश्वर का आशीष आपके पास आएगा! हमसे संपर्क करने के लिए बटन पर क्लिक करके, आपको प्रभु की वापसी का शुभ समाचार मिलेगा, और 2024 में उनका स्वागत करने का अवसर मिलेगा।

संबंधित सामग्री

23. गंभीर खतरे में होना

जांगहुई, चीन2005 में, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य को स्वीकार करने के कुछ ही दिनों बाद, मैंने अपनी पुरानी कलीसिया के एक...

13. यह आवाज़ कहाँ से आती है?

लेखिका: शियीन, चीनमेरा जन्म एक ईसाई परिवार में हुआ था। मेरे बहुत से सगे-संबंधी प्रचारक हैं। मैं बचपन से ही अपने माता-पिता के साथ प्रभु में...

32. एक महत्वपूर्ण खोज

लेखिका: फांगफांग, चीनमेरे परिवार के सब लोग प्रभु यीशु में विश्वास रखते हैं। मैं कलीसिया में एक साधारण विश्वासी थी और मेरे डैड कलीसिया में...

परमेश्वर का प्रकटन और कार्य परमेश्वर को जानने के बारे में अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन मसीह-विरोधियों को उजागर करना अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ सत्य के अनुसरण के बारे में सत्य के अनुसरण के बारे में न्याय परमेश्वर के घर से शुरू होता है अंत के दिनों के मसीह, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अत्यावश्यक वचन परमेश्वर के दैनिक वचन सत्य वास्तविकताएं जिनमें परमेश्वर के विश्वासियों को जरूर प्रवेश करना चाहिए मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ राज्य का सुसमाचार फ़ैलाने के लिए दिशानिर्देश परमेश्वर की भेड़ें परमेश्वर की आवाज को सुनती हैं परमेश्वर की आवाज़ सुनो परमेश्वर के प्रकटन को देखो राज्य के सुसमाचार पर अत्यावश्यक प्रश्न और उत्तर मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 1) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 2) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 3) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 4) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 5) मैं वापस सर्वशक्तिमान परमेश्वर के पास कैसे गया

सेटिंग

  • इबारत
  • कथ्य

ठोस रंग

कथ्य

फ़ॉन्ट

फ़ॉन्ट आकार

लाइन स्पेस

लाइन स्पेस

पृष्ठ की चौड़ाई

विषय-वस्तु

खोज

  • यह पाठ चुनें
  • यह किताब चुनें

WhatsApp पर हमसे संपर्क करें