43. दोराहे
मेरा एक सुखी परिवार था, और मेरे पति मुझसे अच्छी तरह पेश आते थे। हमने एक पारिवारिक रेस्तराँ खोला, जो बढ़िया चल रहा था। हमारे दोस्त और रिश्तेदार, सभी हमसे ईर्ष्या करते थे। मगर उलझन यह थी कि मैं अंदर से हमेशा बहुत खाली महसूस करती थी। हर एक दिन ठीक पिछले दिन जैसा ही लगता, जैसे जीवन का कोई अर्थ ही न हो, मगर मुझे नहीं पता था कि जीने का सही मार्ग क्या है। फिर 2010 के अंत में बच्चा जनते समय मेरी प्रसूति में मुझे बहुत मुश्किल हुई और रक्तस्राव हो गया। अस्पताल ने नाजुक हालत का नोटिस दे दिया। मेरी माँ बहुत बेचैन हो गई और मेरे कानों में फुसफुसाई, “बेटी, सर्वशक्तिमान परमेश्वर से प्रार्थना कर!” मैं अपनी रक्षा के लिए दिल से सर्वशक्तिमान परमेश्वर को पुकारने लगी, मानो मैं जीवनरेखा को थामे थी। जल्दी ही रक्तस्राव रुक गया, मैं और मैंने परमेश्वर को तहेदिल से धन्यवाद दिया। उसके बाद से मैंने हर दिन सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन पढ़ने शुरू कर दिए, और हर समय भाई-बहनों के साथ सभाएँ और संगति करने लगी। समय के साथ, मैंने जाना कि परमेश्वर ने इंसान का सृजन किया है और इंसान के पास की हर चीज़ परमेश्वर से आती है। जीवन में अर्थ पाने के लिए हमें परमेश्वर में आस्था रखकर उसकी आराधना करनी होगी, और एक सृजित प्राणी के तौर पर अपना कर्तव्य निभाना होगा; तभी इस जीवन के कोई मायने होंगे। तो मैंने सुसमाचार का प्रचार करने का कर्तव्य सँभाला, और मुझे हर दिन वाकई संतोष का अनुभव हुआ। मेरे परिवार ने सुसमाचार स्वीकार नहीं किया था, लेकिन वे मेरी आस्था के विरोधी भी नहीं थे।
2012 के अंत में, चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के खिलाफ फिर से दमन की उन्मादी लहर की शुरुआत कर दी और कलीसिया को फंसाने और उसका नाम खराब करने के लिए हर प्रकार की अफ़वाहें फैलाईं। बहुत सारे रेडियो और टेलीविज़न स्टेशन यह झूठ प्रसारित कर रहे थे। उस समय से जब भी मैं किसी सभा से लौटती, मेरे पति का चेहरा लटक जाता और वे नाराज हो जाते। एक दिन दोपहर के खाने के समय मैं एक सभा से रेस्तराँ वापस लौटी, और वे मुझे खींचकर टीवी के पास ले आए, और बोले, “जिस परमेश्वर में तुम आस्था रखती हो, देखो उसे!” मैंने देखा कि टीवी पर सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के बारे में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के खिलाफ ईशनिंदात्मक बातें और लांछनों का प्रसारण हो रहा था जो बिल्कुल निराधार थे और सत्य को तोड़-मरोड़ रहे थे। मैं सच में नाराज़ हो गई, और मुड़कर उनसे बोली, “यह खबर बिलकुल झूठी है। ये सब कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा गढ़ी गई अफ़वाहें हैं। वे लोग परमेश्वर से घृणा करते हैं, और उसका प्रतिरोध करते हैं, सत्ता में आने के बाद से ही उन्होंने धार्मिक आस्थाओं का क्रूर दमन किया है। कलीसिया की निंदा में वे जो कुछ बोलते हैं, आप उस पर यकीन कैसे कर सकते हैं? इतने साल व्यापार करते हुए हमने ऐसा बहुत-कुछ देखा है, इसलिए ऐसा नहीं है कि आप नहीं जानते कि यह सरकार और पार्टी किस तरह की है। उन्होंने हर तरह के अनुचित झूठे, गलत कानूनी मामले तैयार किए हैं, और झूठी रपटें गढ़ी हैं। मैं सांस्कृतिक क्रांति के बारे में बात भी नहीं करूंगी, मगर हाल के वर्षों में, तियानमेन स्क्वेयर घटना, तिब्बती आंदोलनों का क्रूर दमन जैसी और अन्य भी कई घटनाएँ हुई हैं। वह हमेशा झूठ बुनने से शुरू करती है, किसी समूह को बुरा दिखाने के लिए सत्य को तोड़ती-मरोड़ती है और उसके खिलाफ उपद्रव फैलाती है, और तब होती है हिंसात्मक कार्रवाई। सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के साथ भी वे ऐसे ही पेश आ रहे हैं। विरोध मिटाने के लिए पार्टी आम तौर पर यह चाल चलती है। इसके अलावा, भाई-बहनों ने हमारे घर में आपके रहते हुए भी सभाएँ की हैं। आप जानते हैं कि हम बस इकट्ठे होकर परमेश्वर के वचन पढ़ते हैं, सत्य के बारे में संगति करते हैं और भजन गाते हैं। क्या हममें कुछ भी ऐसा है, जो पार्टी कह रही है?” लेकिन मेरे पति पूरी तरह से कम्युनिस्ट पार्टी के झूठ से गुमराह हो गए थे, इसलिए वे मेरी बातों को सुन नहीं रहे थे। वे मुझे बुरा-भला कहते रहे, बोले, मुझे परमेश्वर पर विश्वास रखने पर ज़ोर देने के बजाय एक अच्छी ज़िंदगी जीनी चाहिए, और अगर सरकार कहती है कि हम आस्था नहीं रख सकते, तो बस छोड़ दो। मेरे पति ने कहा कि अगर मैं सभाओं में जाती रही, तो वे मेरा इलेक्ट्रिक बाइक तोड़ देंगे, ताकि मेरे पास वहाँ जाने का कोई साधन न रहे। उन्होंने यह भी कहा कि वे मुझे घर में बंद रखेंगे। पहले तो मैं ज़्यादा परेशान नहीं हुई। मैंने सोचा मेरा परिवार बस अस्थाई रूप से पार्टी के झूठ से गुमराह हुआ है, और वे मेरी फ़िक्र करते हैं इसलिए नाराज हैं, और कुछ दिनों में सब शांत हो जाएगा। लेकिन बात इतनी आसान नहीं थी। सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया को बदनाम कर उस पर हमला करने के लिए टीवी और इंटरनेट पर और ज़्यादा झूठ प्रसारित होने लगे थे, और बहुत सारे विश्वासियों की गिरफ़्तारी की रपटें आ रही थीं। यह देखकर मेरे परिवार ने मुझ पर और ज़्यादा शिकंजा कस दिया। मुझसे मेरी आस्था छुड़वाने की कोशिश में मेरे पति ने परमेश्वर के वचनों की क़िताब फाड़ डाली, और वह एमपी3 प्लेयर तोड़ दिया जिस पर मैं भजन सुनती थी। उन्होंने कम्युनिस्ट पार्टी के सारे झूठ हमारे पड़ोसियों के सामने भी दोहरा दिए, ताकि मैं उनके साथ सुसमाचार का प्रचार न कर पाऊँ। वे भी झूठ से गुमराह हो गए थे, और मुझसे ऐसे बच रहे थे जैसे मैं एक कोढ़ी हूँ। मेरे पति के बरताव ने मुझे सच में हैरान कर दिया था। वे हमेशा से बहुत सरल और निष्कपट थे—वे इतने ज्यादा, इतने नाटकीय तरीके से कैसे बदल सकते हैं? वर्षों की शादीशुदा ज़िंदगी के बाद उनकी समझ और आदर की भावना कहाँ गायब हो गई? समय बीतता गया, लेकिन उनका ध्यान लगातार मेरे मामले पर ही रहा, यहाँ तक कि घर की हर चीज का दोष भी वे मुझ पर और मेरी आस्था पर मढ़ देते। व्यापार में मंदी आई, तो उन्होंने मेरी आस्था को दोष दिया, और यह कहकर मुझे रेस्तराँ में भी नहीं घुसने दिया कि मैं बदकिस्मती ले आऊँगी। उनके माता-पिता भी हमेशा रूखा चेहरा लिए मुझे बुरा-भला कहते रहते, और अक्सर गुस्से से चीज़ें यहाँ-वहाँ पटक देते। वे मुझे बाहर न जाने देते, और जैसे ही मैं घर से बाहर कदम रखती, वे यह जानने के लिए मुझे फोन करना शुरू कर देते, कि मैं कहाँ हूँ और किसके साथ हूँ। उस दौरान मुझे उनकी निगरानी में रखा गया था। मैं परमेश्वर के वचन नहीं पढ़ पाई, न ही भाई-बहनों से संपर्क कर पाई। मुझे ज़रा भी निजी आज़ादी नहीं थी। यह मेरे लिए वाकई मुश्किल वक्त था, मैं सोचती थी कि आस्था रखना इतना कठिन क्यों है, यह इतना संघर्षपूर्ण क्यों है, और कब वह समय आएगा जब मुझे इस तरह से नहीं जीना पड़ेगा। कभी-कभी मैं सोचती कि इस दौरान मैं सभाओं में जाना बंद कर दूँ, अपना कर्तव्य निभाना छोड़ दूँ, लेकिन फिर मुझे लगा कि यह परमेश्वर के इरादे के अनुरूप नहीं होगा। दुखी मन से, मैंने परेशान होकर परमेश्वर से प्रार्थना की और उससे रास्ता दिखाने की विनती की। मुझे परमेश्वर के वचनों का एक अंश याद आया : “आज अधिकतर लोगों के पास यह ज्ञान नहीं है। वे मानते हैं कि कष्टों का कोई मूल्य नहीं है, कष्ट उठाने वाले संसार द्वारा त्याग दिए जाते हैं, उनका पारिवारिक जीवन अशांत रहता है, वे परमेश्वर के प्रिय नहीं होते, और उनकी संभावनाएँ धूमिल होती हैं। कुछ लोगों के कष्ट चरम तक पहुँच जाते हैं, और उनके विचार मृत्यु की ओर मुड़ जाते हैं। यह परमेश्वर के लिए सच्चा प्रेम नहीं है; ऐसे लोग कायर होते हैं, उनमें धीरज नहीं होता, वे कमजोर और शक्तिहीन होते हैं! ... इस प्रकार, इन अंत के दिनों में तुम लोगों को परमेश्वर की गवाही देनी चाहिए। चाहे तुम्हारे कष्ट कितने भी बड़े क्यों न हों, तुम्हें बिल्कुल अंत तक चलना चाहिए, यहाँ तक कि अपनी अंतिम साँस पर भी तुम्हें परमेश्वर के प्रति निष्ठावान और उसके आयोजनों के प्रति समर्पित होना चाहिए; केवल यही वास्तव में परमेश्वर से प्रेम करना है, और केवल यही सशक्त और जोरदार गवाही है” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पीड़ादायक परीक्षणों के अनुभव से ही तुम परमेश्वर की मनोहरता को जान सकते हो)। परमेश्वर के वचनों पर विचार करके मैं बहुत द्रवित हो गई। मुझे एहसास हुआ कि परमेश्वर का इरादा हमें कष्ट पहुँचाना नहीं, बल्कि इस उत्पीड़न और तकलीफ से हमारी आस्था को पूर्ण करना है, ताकि हमें परमेश्वर की गवाही देने का मौक़ा मिल सके। मैं कष्ट से डरती थी इसलिए मैं शैतान के आगे सिर नहीं झुका सकती थी; मुझे परमेश्वर में आस्था रखनी होगी, और इस मार्ग पर अंत तक बने रहना होगा चाहे यह कितना भी मुश्किल हो।
बाद में, क्योंकि मैंने सुसमाचार का प्रचार करना जारी रखा, मेरे पति और भी अधिक अत्याचारी हो गये। एक दिन जब मैं एक सभा से घर लौटी, तो उन्होंने मुझ पर वार किया और चिल्लाए, “तुम रेस्तराँ के मेहमानों के सामने प्रचार करके क्या कर रही हो? सब लोग तुम्हारे विश्वासी होने की बात कर रहे हैं। तुम मुझे इस तरह नीचा कैसे दिखा सकती हो? तुमने देखा है कि वे टीवी पर क्या कह रहे हैं। अगर तुम ऐसा ही करती रही, तो गिरफ़्तार करने का इंतजार करो!” मैंने देखा कि वे और अधिक उत्तेजित हो रहे हैं, इसलिए मैंने जवाब में कुछ नहीं कहा, बस अपने कमरे में चली गई। वहाँ मैंने जो देखा, उससे मैं स्तब्ध रह गई। उन्होंने परमेश्वर के वचनों की मेरी क़िताबें फाड़ दी थी, जिसके कागज फर्श पर बिखरे पड़े थे। उसी वक्त मेरे ससुर वहाँ आ गए, और अंदर आते ही बोले, “हम चाहते थे कि हमारा बेटा अच्छी ज़िंदगी जीने के लिए शादी कर ले। अगर अपनी आस्था के लिए तुम गिरफ़्तार हो गई, तो यह परिवार बरबाद हो जाएगा। या तो अपनी आस्था छोड़ दो, या फिर तुरंत तलाक ले लो।” फिर वे ईश-निंदा करने लगे। मैं अपने गुस्से पर काबू नहीं कर पाई, और मैंने उन्हें टोक दिया, “आपके परिवार में शादी करने के बाद से मैंने आपको सिर्फ सम्मान ही दिया है। मैंने आपके साथ कभी गुस्सा नहीं किया, न ही आपसे बहस की। अगर मैंने इस परिवार के प्रति अपना कर्तव्य न निभाया हो, तो आपको मुझे डाँटने का हक़ है, लेकिन मेरी आस्था गलत नहीं है, आपको मेरे रास्ते में नहीं आना चाहिए और ईश-निंदा तो बिल्कुल नहीं करनी चाहिए।” मेरी बात ख़त्म होने से पहले ही उनके भाव बदल गए और वे चिल्लाए, “तुम्हारे परमेश्वर के बारे में मैंने क्या गलत कह दिया? मुझे नहीं लगता कि मैं तुमसे नहीं निपट सकता!” वे मेरे कपड़े खींचने लगे, और मुझे थाने ले जाने की कोशिश करने लगे, लेकिन मैंने झटककर खुद को छुड़ा लिया। यह देखकर कि मेरा इरादा पक्का है और मैं टस से मस नहीं होने वाली, वे फनफनाते हुए चले गए। इसके ठीक बाद मैंने एक ज़ोर की आवाज़ सुनी, और जैसे ही मैं मुड़ने लगी, मैंने अपने पति को तेज़ी से अपनी ओर आते देखा, और उन्होंने मेरे चेहरे पर ज़ोर से थप्पड़ जड़ दिया, मैं धड़ाम से जमीन पर गिर पड़ी। मुझे दिन में तारे नज़र आ रहे थे, मेरे कान बज रहे थे, और चेहरा दर्द से जलने लगा था। मेरा दिमाग़ सुन्न हो गया था। उनके इस व्यवहार ने मुझे सच में आघात पहुँचाया। हम करीब दस साल से साथ रह रहे थे, और उन्होंने कभी मुझे नहीं मारा था, लेकिन उन्होंने उस दिन मेरी आस्था के कारण मुझे मारा। उन्हें देखकर मुझे लगा कि ये कोई अजनबी हैं। मानो वे अपना मानसिक संतुलन खो बैठे हों, उन्होंने मुझे जबरन फर्श से घसीटकर उठाया और दीवार पर दबा दिया, और खूँख्वार स्वर में बोले, “मेरी बात सुनो, आज हम तय करके रहेंगे। या तो तुम अपनी आस्था छोड़ दो, या फिर हम अभी-के-अभी तलाक लेंगे। बोलो, तुम अब भी विश्वास रखोगी या छोड़ दोगी? तुम्हें अपनी आस्था चाहिए या यह परिवार?” बोलते-बोलते वे मुझे पागल की तरह दीवार पर ठोक रहे थे। जिस चेहरे को मैं अच्छी तरह जानती थी, उसे इतने दानवी रूप में देखकर, मैंने शांति से जवाब दिया, “मैं अपनी आस्था को चुनती हूँ।” आगबबूला होकर वे मुझे धक्का देकर बिस्तर पर ले गए, और अपने हाथों से मेरा गला दबाने लगे। मैं साँस नहीं ले पा रही थी और खुद को छुड़ाना चाहती थी, लेकिन वे बहुत ताकतवर थे। मेरा उनसे लड़ पाना संभव नहीं था। साँस लेने के लिए संघर्ष करते हुए मुझे सच में डर लगने लगा, मैंने सोचा, “शायद आज इसी तरह मेरी मौत हो जाएगी।” ठीक उसी वक्त मेरा तीन साल का बेटा जाग गया। वह उठकर मुझे पुकारने लगा, “मॉम! मॉम!” मेरे पति को मेरा गला घोंटते देख वह उन्हें पीटने और धक्का देने लगा, फिर निराश होकर उसने मेरी बाँहों में समाने की कोशिश की। यह देखकर मेरे पति ने मुझे छोड़ दिया और क्रूरता से बोले, “अगर हमारा बेटा बीच में न आ गया होता, तो आज तुम मेरे हाथों मारी जाती।” वे चले गए, और मैं अभी-अभी घटी घटना के बारे में सोचने लगी। मेरा दिल जैसे बिल्कुल ठंडा पड़ गया था। मेरी आस्था में उत्पीड़न के कारण उनके निजी हितों का अतिक्रमण किया था, इसलिए खौफनाक तरीके से वे, मेरा गला घोंटकर मुझे मार डालने को तैयार थे। क्या यह राक्षस का खुद को प्रकट करना नहीं है? उन्होंने मुझे जितना पीटा, उतना ही ज्यादा मैंने देखा कि वे किस तरह के इंसान हैं, और उतना ही ज्यादा मेरी अंत तक परमेश्वर का अनुसरण करने की इच्छा बढ़ी।
अगले दिन मेरी सास मुझे देखने आईं, और अंदर आते ही बोलीं, “क्या तुम परमेश्वर में विश्वास रखना बंद कर सकती हो? मैं जानती हूँ कि आस्था रखना अच्छी बात है, लेकिन इससे पार्टी तुम्हें गिरफ़्तार करके बुरी तरह से सताएगी। क्या कहती हो?” मैंने कहा, “आप जानती हैं, मेरी प्रसूति कितनी मुश्किल थी; अस्पताल ने नाजुक हालत का नोटिस दे दिया था। वह सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही था, जिसने मेरी और मेरे बेटे की रक्षा की। मुझे परमेश्वर के प्रेम का प्रतिदान देना होगा; मैं बिना जमीर के काम नहीं कर सकती। सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही एकमात्र सच्चा परमेश्वर है, जिसने स्वर्ग, पृथ्वी और सभी चीज़ों को रचा, और वही उद्धारकर्ता है, जो लोगों को बचाने के लिए वापस आया है। आपदाएँ बड़ी-से-बड़ी होती जा रही हैं, और सिर्फ परमेश्वर ही लोगों को बचा सकता है। परमेश्वर का अनुसरण करने के लिए अगर मुझे गिरफ्तार और पीड़ित भी किया गया, तो यह केवल अस्थायी होगा। यह शैतान के साथ नरक में जाने से तो बेहतर होगा।” उन्होंने जवाब दिया, “मैं तुम्हारी बात समझ रही हूँ, लेकिन एक औरत होने के नाते तुम्हें अपने बच्चे और पति का सोचना चाहिए। तुम्हारा बेटा बहुत छोटा है। क्या तुम वाकई उसे यूँ ही ठुकरा सकती हो?” उनकी बात सुनकर मेरा रोने का मन करने लगा, लेकिन आँसू नहीं निकले। मैंने सोचा, “क्या सच में यह मैं हूँ जो उसे ठुकरा रही हूँ? यह तो कम्युनिस्ट पार्टी है जो विश्वासियों को गिरफ़्तार करके सता रही है। यह आपका बेटा है, जो पार्टी के झूठ पर यकीन करता है और तलाक पर ज़ोर दे रहा है, और इस परिवार को तोड़ रहा है। इसका दोष आप मेरी आस्था पर कैसे मढ़ सकती हैं?” लेकिन उनके दर्दभरे चेहरे और सफ़ेद बालों से भरे सिर को देखकर, और इतनी छोटी-सी उम्र में अपने बेटे को उसकी माँ से दूर कर दिए जाने के बारे में सोचकर, मैं बहुत ज़्यादा दुखी हो गई। मैं थोड़ा कमज़ोर पड़ने लगी। मैंने मन-ही-मन परमेश्वर को पुकारा, और रास्ता दिखने की विनती की। उसके वचनों का एक अंश मेरे मन में कौंधा : “परमेश्वर द्वारा मनुष्य के भीतर किए जाने वाले कार्य के प्रत्येक चरण में, बाहर से यह लोगों के मध्य अंतःक्रिया प्रतीत होता है, मानो यह मानव-व्यवस्थाओं द्वारा या मानवीय विघ्न से उत्पन्न हुआ हो। किंतु पर्दे के पीछे, कार्य का प्रत्येक चरण, और घटित होने वाली हर चीज, शैतान द्वारा परमेश्वर के सामने चली गई बाजी है और लोगों से अपेक्षित है कि वे परमेश्वर के लिए अपनी गवाही में अडिग बने रहें। उदाहरण के लिए, जब अय्यूब का परीक्षण हुआ : पर्दे के पीछे शैतान परमेश्वर के साथ होड़ लगा रहा था और अय्यूब के साथ जो हुआ वह मनुष्यों के कर्म थे और मनुष्यों का विघ्न डालना था। परमेश्वर द्वारा तुम लोगों में किए गए कार्य के हर कदम के पीछे शैतान की परमेश्वर के साथ बाजी होती है—इस सब के पीछे एक संघर्ष होता है। ... जब परमेश्वर और शैतान आध्यात्मिक क्षेत्र में संघर्ष करते हैं, तो तुम्हें परमेश्वर को कैसे संतुष्ट करना चाहिए और किस प्रकार उसकी गवाही में अडिग रहना चाहिए? तुम्हें यह पता होना चाहिए कि जो कुछ भी तुम्हारे साथ होता है, वह एक महान परीक्षण है और ऐसा समय है, जब परमेश्वर चाहता है कि तुम उसके लिए गवाही दो” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल परमेश्वर से प्रेम करना ही वास्तव में परमेश्वर पर विश्वास करना है)। मैंने परमेश्वर के वचनों के बारे में सोचा, और देखा कि जो कुछ भी आज मेरे साथ घट रहा था, वह ऊपर-ऊपर से यूँ लग रहा था मानो लोग मेरे आड़े आ रहे और मेरा उत्पीड़न कर रहे हैं, लेकिन इन सबके पीछे शैतान की चालें थीं। शैतान मुझे रोकने, परेशान करने के लिए मेरे परिवार का इस्तेमाल कर रहा था, अपने बेटे और परिवार के प्रति मेरी भावनाओं का मुझे धमकाने के लिए इस्तेमाल कर रहा था, मुझसे परमेश्वर को धोखा दिलवाने और उद्धार का मेरा मौक़ा छीनने की कोशिश कर रहा था। मैं जानती थी कि मुझे शैतान की चालों में नहीं फँसना है; मुझे परमेश्वर में आस्था रखनी होगी, मुझे अपनी गवाही में दृढ़ रहना होगा और शैतान को नीचा दिखाना होगा। इसलिए, मैंने अपनी सास से कहा, “मनुष्य को परमेश्वर ने रचा, इसलिए हमें उसमें आस्था रखकर उसकी आराधना करनी चाहिए। इसके अलावा, मेरा जीवन मुझे परमेश्वर ने दिया था, इसलिए जो भी हो, मैं अंत तक उसका अनुसरण करूँगी। मुझे अलग तरह से समझाने की कोशिश करके अपनी ऊर्जा नष्ट न करें।” वे सिर हिलाकर पीछे मुड़ीं और चली गईं।
उस रात मेरे पति को पता चल गया कि मैं अब भी परमेश्वर के वचन पढ़ती हूँ, और वे बेहद आगबबूला हो गए। बोले, “तुम अभी भी ऐसा करने की ज़ुर्रत कर रही हो? क्या तुम्हें नहीं पता कि इससे तुम जेल में डाल दी जाओगी? क्या तुम्हें जीने-मरने की परवाह नहीं है? तुम्हें परवाह नहीं, तो ठीक है, लेकिन मुझे और हमारे बच्चे को इससे दूर रखो। अगर मुझे पता होता कि तुम एक विश्वासी बन जाओगी, तो मैं तुमसे कभी भी शादी न करता!” फिर उन्होंने मुझे सामने के दरवाज़े से बाहर धकेल दिया, और बड़ी नफ़रत से बोले, “अगर तुम अपनी आस्था पर अड़ी रही, तो इस घर से निकल जाओ!” फिर उन्होंने ज़ोर से दरवाज़ा बंद कर उसमें ताला लगा दिया। अपने पति को इतना बेरहम देख और अपने बेटे को जोर-ज़ोर से “माँ-माँ” चिल्लाते सुन, मैं बेचैन हो गई, मेरा दिल टूटने लगा था। रात के 2 बज चुके थे, और मेरे पास बिलकुल भी पैसे नहीं थे। मैंने उस वक्त सोचा क्या मैं वाकई घर छोड़कर जा रही हूँ, क्या मैं हमेशा के लिए अपने बेटे को छोड़ रही हूँ। मुझे समझ नहीं आया क्या करूँ, इस बारे में सोचकर मैंने खुद को बहुत अकेला महसूस किया। मुझे ध्यान आया कि मेरे पास मेरा फोन है, तो मैंने अपनी माँ को फोन लगाया। जैसे ही मैंने उसकी आवाज़ सुनी, मेरे आँसू छलकने लगे, और इतने समय से जो शिकायतें और दुख मेरा दम घोंट रहे थे, वे उफन आए। अपने रोने की आवाज़ दबाकर वह बोली, “बेटी, शांत हो जा। इतनी दूर लाकर परमेश्वर तुझे छोड़ नहीं देगा। बस उसमें विश्वास रख, उसका सहारा ले।” अपनी माँ के इस तरह मुझे ढाढ़स बँधाने, मेरा उत्साह बढ़ाने, और परमेश्वर में विश्वास और भरोसा करने की उसकी बात सुनकर मेरे दिल का दर्द कम हो गया।
अगले दिन उदास और भूखी जब मैं सड़कों पर निरुद्देश्य भटक रही थी, तो अचानक मेरी मुलाक़ात एक बहन से हो गई। वह मुझे अपने घर ले गई, उसने मुझे परमेश्वर के वचनों के कुछ अंश पढ़कर सुनाए जिससे मुझे अपनी हालत समझने में मदद मिली। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है : “इस तरह के अंधकारपूर्ण समाज में, जहाँ राक्षस बेरहम और अमानवीय हैं, पलक झपकते ही लोगों को मार डालने वाला शैतानों का सरदार, ऐसे मनोहर, दयालु और पवित्र परमेश्वर के अस्तित्व को कैसे सहन कर सकता है? वह परमेश्वर के आगमन की सराहना और जयजयकार कैसे कर सकता है? ये अनुचर! ये दया के बदले घृणा देते हैं, लंबे समय पहले ही वे परमेश्वर से शत्रु की तरह पेश आने लगे थे, ये परमेश्वर को अपशब्द बोलते हैं, ये बेहद बर्बर हैं, इनमें परमेश्वर के प्रति थोड़ा-सा भी सम्मान नहीं है, ये लूटते और डाका डालते हैं, इनका विवेक मर चुका है, ये विवेक के विरुद्ध कार्य करते हैं, और ये लालच देकर निर्दोषों को अचेत कर देते हैं। प्राचीन पूर्वज? प्रिय अगुआ? वे सभी परमेश्वर का विरोध करते हैं! उनके हस्तक्षेप ने स्वर्ग के नीचे की हर चीज को अंधेरे और अराजकता की स्थिति में छोड़ दिया है! धार्मिक स्वतंत्रता? नागरिकों के वैध अधिकार और हित? ये सब पाप को छिपाने की चालें हैं! ... परमेश्वर के कार्य में ऐसी अभेद्य बाधा क्यों खड़ी की जाए? परमेश्वर के लोगों को धोखा देने के लिए विभिन्न चालें क्यों चली जाएँ? वास्तविक स्वतंत्रता और वैध अधिकार एवं हित कहाँ हैं? निष्पक्षता कहाँ है? आराम कहाँ है? गर्मजोशी कहाँ है? परमेश्वर के लोगों को छलने के लिए धोखे भरी योजनाओं का उपयोग क्यों किया जाए? परमेश्वर के आगमन को दबाने के लिए बल का उपयोग क्यों किया जाए? क्यों नहीं परमेश्वर को उस धरती पर स्वतंत्रता से घूमने दिया जाए, जिसे उसने बनाया? क्यों परमेश्वर को इस हद तक खदेड़ा जाए कि उसके पास आराम से सिर रखने के लिए जगह भी न रहे?” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, कार्य और प्रवेश (8))। “परमेश्वर पीड़ा के बोझ से अत्यधिक दबे इन लोगों को जगाने जा रहा है, जब तक कि वे पूरी तरह से जाग नहीं जाते, वह उन्हें कोहरे से बाहर निकालेगा, और उनसे उस बड़े लाल अजगर को अस्वीकार करवाएगा। वे अपने सपने से जागेंगे, बड़े लाल अजगर के सार को जानेंगे, परमेश्वर को अपना संपूर्ण हृदय देने में सक्षम होंगे, अँधेरे की ताक़तों के दमन से बाहर निकलेंगे, दुनिया के पूर्व में खड़े होंगे, और परमेश्वर की जीत का सबूत बनेंगे। केवल इसी तरीके से परमेश्वर महिमा प्राप्त करेगा” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, कार्य और प्रवेश (6))। परमेश्वर के वचनों ने मुझे यह समझने में मदद की कि परमेश्वर अंत के दिनों में देहधारी होकर पृथ्वी पर आ गया है, और मनुष्य को निर्मल करने और बचाने के लिए कार्य कर रहा है और सत्य व्यक्त कर रहा है। कम्युनिस्ट पार्टी को डर है कि सभी लोग सत्य को स्वीकार कर लेंगे, परमेश्वर का अनुसरण करेंगे और उसके द्वारा बचा लिए जाएँगे, फिर वे पार्टी के नियंत्रण और हानि से बच जाएँगे। इसीलिए वे पागलों की तरह विश्वासियों का दमन करते हैं, उन्हें गिरफ़्तार करते हैं, और सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया की निंदा कर उसे बदनाम करने के लिए तरह-तरह के झूठ रचते हैं, लोगों को गुमराह कर उन्हें उकसाते हैं, अपने साथ उनसे भी परमेश्वर को मानने से इनकार करवाने और उसका विरोध करवाने की कोशिश करते हैं। कम्युनिस्ट पार्टी सच में घिनौनी है! मेरा परिवार मुझसे इस तरह इसलिए पेश आ रहा था, क्योंकि कम्युनिस्ट पार्टी ने उन्हें गुमराह किया था। पार्टी ये तमाम झूठ और भ्रम लोगों की आँखों में धूल झोंकने के लिए इस्तेमाल करती है, ताकि सब लोग उसके साथ मिलकर परमेश्वर का प्रतिरोध करेंगे और अंत में नरक में दंडित किए जाएँगे। यह शैतान की चाल थी। उस वक्त यह मुझे शीशे की तरह साफ़ हो गया कि कम्युनिस्ट पार्टी सिर्फ दानवों का जमावड़ा है, जो परमेश्वर का प्रतिरोध करती है, लोगों का नुकसान करती है। मैं जानती थी कि मैं इसकी चालों में नहीं फँस सकती, और मेरा परिवार मुझे कितना भी सताए, मैं परमेश्वर को कभी धोखा नहीं दे सकती; बल्कि मुझे उसका अनुसरण करते रहना होगा, अपना कर्तव्य निभाते रहना होगा।
बाद में, मुझसे मेरी आस्था का त्याग करवाने के लिए मेरे पति ने मेरे गाँव के कुछ रिश्तेदारों और दोस्तों को फोन किया कि वे मुझे समझाएँ। फिर उन लोगों ने मुझे फोन किया और सबने बारी-बारी से मेरी खबर ली। मेरे बड़े भाई ने कहा, “इस कम उम्र में तू कोई भी काम कर सकती है। क्या परमेश्वर में विश्वास रखने का ही काम ही क्यों? तू एक गृहिणी है, इसलिए बच्चे पैदा करना और अपने परिवार की देखभाल करना तेरी ज़िम्मेदारी है। परमेश्वर में आस्था रखने की जहमत क्यों उठानी है? ऐसा करेगी तो कम्युनिस्ट पार्टी तुझे गिरफ़्तार करके जेल में डाल देगी। हम आम आदमी हैं—कैसे लड़ पाएँगे?” मेरी चाची फोन लेकर चिल्लाने लगी, “तेरा दिमाग़ फिर गया है क्या? तेरी आस्था के चक्कर में अच्छा-भला घर टूटना नहीं चाहिए! क्या तुझे अपने परिवार की परवाह नहीं? तू ज़्यादा ही ज़िद्दी हो रही है!” एक दूसरी चाची मुझ पर चिल्लाई, “तेरी शादी को बहुत ज़्यादा समय नहीं हुआ, तेरा बेटा भी बहुत छोटा है। अगर तू जेल चली गई, तो उसका क्या होगा? हमारी सलाह मान—यह तेरी ही भलाई के लिए है!” फिर मेरे बड़े भाई ने फोन पकड़ा और कहा, “अगर तू ऐसा करने पर अड़ी रही, तो तेरा पति तुझे तलाक दे देगा, फिर हमारे पास लौटने के बारे में सोचना भी मत। हम तुझसे सारे रिश्ते-नाते तोड़ लेंगे!” यहाँ तक कि मेरी 80-साला दादी भी फोन पर रोते-रोते बिफर पड़ी, “तू विश्वास नहीं रख सकती। तू गिरफ़्तार हो गई तो क्या होगा? मेरी बात सुन। हम तेरा भला चाहते हैं।” फोन सुनने के बाद मैं बहुत परेशान हो गई। मैं उन सबसे ढेरों बातें कहना चाहती थी जैसे कि “आप कहते हैं, यह मेरी भलाई के लिए है, लेकिन क्या सच में ऐसा ही है? अगर सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने मुझे नहीं बचाया होता, तो मैं बहुत समय पहले ही मर चुकी होती, फिर क्या मैं आज यहाँ होती? इस अच्छे-भले घर को असल में कौन तोड़ रहा है? कौन इस परिवार के टुकड़े कर रहा है? वो कम्युनिस्ट पार्टी है, मैं नहीं। कम्युनिस्ट पार्टी विश्वासियों को गिरफ़्तार कर सताती है, लेकिन पार्टी से नफ़रत करने के बजाय, आप लोग इसके साथ खड़े होते हैं, मुझे प्रताड़ित करते हैं और मुझसे परमेश्वर को धोखा दिलवाने की कोशिश करते हैं, यहाँ तक कि मुझसे रिश्ते तोड़ देने और मुझे त्यागने की धमकी भी देते हैं। आपको सही और गलत की पहचान कैसे नहीं है? क्या आप वाकई मेरा भला चाहते हैं? आप किस प्रकार के परिवार हैं? मेरा जीवन परमेश्वर का दिया हुआ है, तो परमेश्वर के प्रेम का प्रतिदान करने के लिए मेरे द्वारा अपना कर्तव्य निभाने में गलत क्या है? आस्था रखने और जीवन में सही मार्ग अपनाने में गलत क्या है?” कुछ दिन तक मेरे परिवार ने मुझे बार-बार फोन करके खूब खरी-खोटी सुनाई। मैं सच में पीड़ा में थी, इसलिए मैंने ईमानदारी से परमेश्वर से प्रार्थना कर उससे मेरे दिल का ख्याल रखने को कहा। अंत में, मैं सभाओं में जाती रही और अपना कर्तव्य निभाती रही।
मेरे पति ने खुद का बनाया एक तलाकनामा मुझे दिया और कहा, “अगर तुम अपनी आस्था रखने पर कायम हो, तो हम तलाक ले लेते हैं। हमारे अलग हो जाने के बाद तुम्हें हमारे बेटे से नहीं मिलने दिया जाएगा। लेकिन, अगर तुम सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास रखना बंद करने को तैयार हो, तो मैं ऐसे पेश आऊँगा जैसे कुछ हुआ ही नहीं।” मैंने तलाकनामा उठाकर देखा : पति-पत्नी के पास कोई साझा संपतियाँ नहीं हैं, कोई साझा व्यापार नहीं है, और कोई साझा जमीन-जायदाद नहीं है; बेटे की देखरेख पति के हवाले की जाती है, और पत्नी को खाली हाथ जाना होगा। और अगर मैं तलाक के लिए नहीं मानी, तो वे मेरी माँ को और मुझे पुलिस के हवाले कर देंगे, उसे हमारे सर्वशक्तिमान परमेश्वर का विश्वासी होने की खबर दे देंगे। मैं समझ गई कि उन्होंने इसकी योजना बहुत पहले ही बना ली थी, जो कुछ भी हम दोनों के नाम पर था, उसे चुपके से अपने नाम करवा लिया था, इसलिए तलाक होने पर हमारी कोई साझा संपत्ति नहीं रहने वाली थी। अपने हाथ में पकड़ा तलाकनामा देखकर मैं एक बार फिर परेशानी में पड़ गई। अगर मैं उस पर दस्तखत करती हूँ, तो इसका अर्थ होगा इस घर को छोड़ना और दोबारा अपने बेटे से न मिलना। वह बहुत छोटा था—मैं उससे अलग होना बरदाश्त नहीं कर सकती थी। मैं भयंकर पीड़ा में थी। मैंने परमेश्वर को पुकारा, और उससे मार्गदर्शन करने की विनती की, ताकि मैं दृढ़ता से खड़ी रह सकूँ। फिर, मैंने परमेश्वर के वचनों के इन अंशों पर विचार किया : “परीक्षणों से गुजरते समय लोगों का कमजोर होना, या उनके भीतर नकारात्मकता आना, या परमेश्वर के इरादों या अपने अभ्यास के मार्ग के बारे में स्पष्टता का अभाव होना सामान्य है। चाहे जो हो, तुम्हें परमेश्वर के कार्य पर आस्था होनी चाहिए, परमेश्वर को नकारना नहीं चाहिए, बिल्कुल अय्यूब की तरह। ... अपने अनुभव में, तुम चाहे परमेश्वर के वचनों के द्वारा जिस भी शोधन से गुजरो, परमेश्वर को मानवजाति से जिस चीज की अपेक्षा है, संक्षेप में, वह है परमेश्वर पर उनकी आस्था और उनका परमेश्वर-प्रेमी हृदय। इस तरह से कार्य करके जिस चीज को वह पूर्ण बनाता है, वह है लोगों का विश्वास, प्रेम और अभिलाषाएँ” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जिन्हें पूर्ण बनाया जाना है उन्हें शोधन से गुजरना होगा)। “तुम्हें सत्य के लिए कष्ट उठाने होंगे, तुम्हें सत्य के लिए समर्पित होना होगा, तुम्हें सत्य के लिए अपमान सहना होगा, और अधिक सत्य प्राप्त करने के लिए तुम्हें अधिक कष्ट उठाने होंगे। यही तुम्हें करना चाहिए। एक शांतिपूर्ण पारिवारिक जीवन के लिए तुम्हें सत्य का त्याग नहीं करना चाहिए, और क्षणिक आनन्द के लिए तुम्हें जीवन भर की गरिमा और सत्यनिष्ठा को नहीं खोना चाहिए। तुम्हें उस सबका अनुसरण करना चाहिए जो खूबसूरत और अच्छा है, और तुम्हें अपने जीवन में एक ऐसे मार्ग का अनुसरण करना चाहिए जो ज्यादा अर्थपूर्ण है” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पतरस के अनुभव : ताड़ना और न्याय का उसका ज्ञान)। परमेश्वर के वचनों से मुझे आराम और सुकून मिला, और मुझे अभ्यास का मार्ग दिखाया। मुझे एहसास हुआ कि मेरे पति का मुझे तलाक की धमकी देना एक ऐसी बात है, जो परमेश्वर की इजाज़त से हो रही है। मैंने वो समय याद किया, जब अय्यूब की परीक्षा ली जा रही थी। और डाकुओं द्वारा उसकी हर चीज़ उससे ले ली गई, उसके सभी बच्चे रातोंरात मर गए। उसके पूरे शरीर पर फोड़े हो गए थे और वह राख के ढेर पर बैठा था। यहाँ तक कि उसकी पत्नी ने भी उसे ठुकरा दिया और उसके दोस्तों ने उसका मज़ाक उड़ाया और आलोचना की। लेकिन इस सारे कष्ट का सामना करते हुए भी उसने परमेश्वर की प्रशंसा की, और कहा, “यहोवा ने दिया और यहोवा ही ने लिया; यहोवा का नाम धन्य है” (अय्यूब 1:21)। सिर्फ यही है सच्ची आस्था। मैंने एक सत्यनिष्ठ शपथ ली थी, और परमेश्वर से संकल्प के साथ कहा था कि मैं अंत तक उसका अनुसरण करूँगी, चाहे जो भी हो जाए। लेकिन अपने पति की तलाक की धमकियों के आगे मैं नकारात्मकता और कमज़ोरी में फँस गई थी। यह परमेश्वर में सच्चा विश्वास नहीं था। जब से पार्टी का झूठ सुनने के बाद उन्होंने न सिर्फ परमेश्वर के वचनों की मेरी क़िताबें फाड़ दी थी, बल्कि वे मेरे साथ हिंसक भी हो गए थे, मुझे करीब-करीब गला दबाकर मार ही डाला था। मेरी आस्था के कारण फँसा दिए जाने के डर से वे न सिर्फ मुझसे तलाक लेना चाहते थे, बल्कि मुझे कंगाल करके मुझे अपने बेटे से भी दूर रखना चाहते थे। राज़ी न होने पर वे मुझे पुलिस के हवाले कर देना चाहते थे। वे कैसे पति थे? क्या वे दानव जैसे नहीं थे? मैंने परमेश्वर के वचन याद किए : “विश्वासी और अविश्वासी आपस में मेल नहीं खाते हैं, बल्कि वे एक दूसरे के विरोधी हैं” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर और मनुष्य साथ-साथ विश्राम में प्रवेश करेंगे)। मैंने देखा कि मेरे पति मुझे तलाक की धमकी इसलिए दे रहे थे, क्योंकि वे कम्युनिस्ट पार्टी की बात सुनते थे और परमेश्वर से घृणा करते थे। इसलिए हालाँकि हम पति-पत्नी थे, लेकिन वे पार्टी का अनुसरण कर रहे थे, और ऐसे मार्ग पर चल देते हैं जो परमेश्वर के खिलाफ जाता है और सीधे नरक की ओर ले जाता है, जबकि मैं सत्य और अनंत जीवन हासिल करने के लिए परमेश्वर का अनुसरण करने के मार्ग पर चल रही थी। विश्वासी और अविश्वासी अलग-अलग मार्ग पर चलते हैं। मैं जानती थी कि अब मैं उन्हें अपना रास्ता सीमित करने नहीं दे सकती। उन्होंने मेरा जितना ज़्यादा उत्पीड़न किया, परमेश्वर का अंत तक अनुसरण करने, गवाही में मजबूत रहने और शैतान को शर्मसार करने का मेरा संकल्प उतना ही मज़बूत हुआ, इसलिए मैंने उनसे कहा कि मैं तलाक के लिए राजी हूँ।
तलाक को अंतिम रूप देने के लिए सिविल अफेयर्स ब्यूरो जाने के दिन, मैं अपने पास कुछ भी न रहने की बेचैनी महसूस किए बिना नहीं रह सकी। इसके बाद मेरा गुजारा कैसे होगा? यह सोचकर कि मैंने इतने साल हमारे घर और व्यापार के लिए इतनी कड़ी मेहनत सिर्फ कंगाल बनने के लिए की थी, मेरे लिए अपने दिल को समझाना बहुत मुश्किल था। फिर मैंने परमेश्वर के वचनों को याद किया : “क्या तुम मेरे वास्ते भविष्य में अपने जीने के मार्ग पर विचार न करने, योजना न बनाने या तैयारी न करने में सक्षम हो?” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, एक बहुत गंभीर समस्या : विश्वासघात (2))। परमेश्वर के इस सवाल ने मुझे सच में शर्मिंदा कर दिया। सब कहते हैं कि मुश्किलें ईमानदारी की परीक्षा लेती हैं, और जब मेरा सामना उत्पीड़न और विपत्ति से हुआ, तो मैंने बस अपने निजी हितों के बारे में सोचा। क्या यह परमेश्वर में सच्चा विश्वास था? मुझसे जुड़ा सब कुछ परमेश्वर के हाथों में था, इसलिए मैं उसके आयोजनों और व्यवस्थाओं को समर्पित होने, मुश्किल से उबरने के रास्ते की फ़िक्र न करने को संकल्पित थी। जब हमने सारे कागज़ात पर दस्तख़त कर दिए, तो मैंने उनसे पूछा, “आप तलाक लेने पर इतने दृढ़ क्यों थे?” उन्होंने कहा, “मेरे चचेरे भाई ने मुझे बताया था कि सरकार ने गोपनीय दस्तावेज़ जारी किए हैं, जिनमें कहा गया है कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास रखने वाले लोग ऊँचे दर्ज़े के अपराधी हैं, और अगर पार्टी के किसी सदस्य के परिवार में कोई विश्वासी पाया गया, तो उसे पार्टी से तुरंत बाहर कर दिया जाएगा, सरकारी कर्मचारियों को बरखास्त कर दिया जाएगा, और उनके बच्चों को यूनिवर्सिटी में दाखिला नहीं मिलेगा, उनके माता-पिता की पेंशन बंद कर दी जाएगी, और परिवार की संपत्तियाँ ज़ब्त कर ली जाएँगी। पहले किसी अपराधी के परिवार को नौ पीढ़ियों तक फँसाकर रखा जाता था; अब अगर कोई सर्वशक्तिमान परमेश्वर पर विश्वास करता है, तो उसके तमाम रिश्तेदार भी फसेंगे। बाकी सबको बचाने के लिए मुझे तुम्हें छोड़ना जरूरी था। वरना मेरे बड़े भाई को पार्टी से निकाल दिया जाता।” उनकी यह बात सुनकर मुझे बहुत गुस्सा आया। परमेश्वर लोगों को बचाने आया है, जो कितनी अद्भुत बात है, और तमाम इंसानों के लिए वरदान है। लेकिन कम्युनिस्ट पार्टी पागलों की तरह परमेश्वर का प्रतिरोध कर रही है और परमेश्वर से घृणा करती है। वह परमेश्वर के कार्य में गड़बड़ी कर उसे नष्ट करने के लिए हर तरह के नीच उपाय कर रही है, और वह कोई कसर नहीं छोड़ेगी। यह खूनी और खूंख्वार दानवों की पार्टी है! मैंने बड़े लाल अजगर के असली चेहरे को सच में देख लिया, और अब उससे धोखा नहीं खा रही और बेवकूफ नहीं बन रही थी। मैंने परमेश्वर के प्रेम का प्रतिदान करने के लिए अपना कर्तव्य अच्छे ढंग से निभाने और शैतान को शर्मसार करने का संकल्प किया। इसके बाद, मैंने अपना घर छोड़ दिया और सुसमाचार के प्रचार का अपना कर्तव्य निभाती रही। परमेश्वर का धन्यवाद!