मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ
खंड 2सर्वशक्तिमान परमेश्वर, अंत के दिनों का मसीह, सत्य व्यक्त करता है, परमेश्वर के घर से शुरूआत करते हुए न्याय का कार्य करता है और लोगों को शुद्ध करने और बचाने के लिए आवश्यक सभी सत्यों की आपूर्ति करता है। परमेश्वर के चुने हुए लोगों ने परमेश्वर की वाणी सुनी है, वे परमेश्वर के सिंहासन के सामने लाए गए हैं, उन्होंने मेमने की दावत में भाग लिया है और राज्य के युग में परमेश्वर के लोगों के रूप में परमेश्वर के आमने-सामने अपना जीवन शुरू किया है। उन्होंने परमेश्वर के वचनों की सिंचाई, चरवाही, प्रकाशन और न्याय प्राप्त किया है, परमेश्वर के कार्य की एक नई समझ हासिल की है, शैतान द्वारा उन्हें भ्रष्ट किए जाने का असली तथ्य देखा है, सच्चे पश्चात्ताप का अनुभव किया है और सत्य का अभ्यास करने पर और स्वभाव में बदलाव से गुजरने पर ध्यान केंद्रित करना शुरू किया है; उन्होंने परमेश्वर के न्याय और ताड़ना का अनुभव करते हुए भ्रष्टता के शुद्धिकरण के बारे में विभिन्न गवाहियाँ तैयार की हैं। अंत के दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के न्याय कार्य ने विजेताओं का एक समूह बनाया है जो अपने व्यक्तिगत अनुभवों के जरिए यह गवाही देते हैं कि अंत के दिनों में महान श्वेत सिंहासन का न्याय पहले ही शुरू हो चुका है!
अनुभवजन्य गवाहियाँ
1अपने झूठ बोलने का इलाज मैंने कैसे किया
3परमेश्वर के वचनों ने मेरी गलतफहमियाँ दूर कर दीं
4कलीसिया का अगुआ कोई अधिकारी नहीं होता
7अपनी बीमारी की चिंता से मुक्ति
8किसी का दिल दुखे तो भी सत्य पर अमल करो
9अपने कर्तव्य के जरिए समर्पण करने की सीख
10मैंने परमेश्वर का प्रकटन देखा है
11शोहरत और लाभ के पीछे भागने पर चिंतन
13भ्रष्ट स्वभाव को ठीक करने का तरीका मुझे पता है
14आखिर मुझे गलतफहमियों से मुक्ति मिली
16कैसे मैंने अपनी धूर्तता और कपट को दूर किया
20अपने भाग्य को फिर कभी नहीं कोसूँगी
21घमंड से बच निकलना आसान नहीं होता
22मैं समस्याओं की रिपोर्ट करने से क्यों डरती हूँ?
23मैंने परमेश्वर की गवाही देना कैसे सीखा
24जब मैंने मोर्चे पर धर्मप्रचार किया
28मिलजुलकर काम करने की मेरी कहानी
29न्याय और ताड़ना परमेश्वर का प्रेम है
30रुतबे की चाह छोड़कर मैं आज़ाद हो गई
33एक झूठे अगुआ की रिपोर्ट करने की कहानी
36परमेश्वर की वाणी को सुनना और प्रभु का स्वागत करना
37अपनी राय न रख पाने के पीछे क्या वजह है
38अपने बेटे की जानलेवा बीमारी का सामना करना
40अपने कर्तव्य में मेहनत नहीं करने का नतीजा
41क्या उद्धार के लिए रुतबा जरूरी है?
46परमेश्वर की गवाही देना सच में कर्तव्य निभाना है
48खून और आँसुओं से भीगे उन्नीस वर्ष
49नाम और लाभ के लिए संघर्ष के वो दिन
50परमेश्वर के बजाय मनुष्य का अनुसरण करने से मिली कड़वी सीख
51मैंने प्रभु की वापसी का स्वागत किया है!
52अपने तानाशाही तरीकों का त्याग
53सुसमाचार प्रचार की मेरी पथरीली राह
56मेरा कर्तव्य लेनदेन वाला कैसे हो गया?
57बुढ़ापे में और अधिक सत्य का अनुसरण करो
60झूठे अगुआ की शिकायत करना : एक निजी संघर्ष
63दयालुता का बदला चुकाने के बोझ से मुक्ति
64ईमानदार इंसान बनकर मुझे क्या मिला
65आराम की चाह से मैं बर्बाद होते-होते बची
68अब मुझे पता है परमेश्वर के सामने गवाही कैसे देनी है
70परमेश्वर के चीन में प्रकट होकर कार्य करने का बहुत महत्व है
72ब्रेनवॉशिंग कक्षा में प्रलोभन
74गलती सामने आने से मैं बेपर्दा हो गई
75दुष्कर्मी के निष्कासन से मिली सीख
76सबक जो मैंने बर्खास्त होने से सीखे
77आराम की लालसा करने से कुछ हासिल नहीं होता
78बर्खास्तगी से मैंने क्या सीखा
83मनमाने ढंग से काम करने के नतीजे
84कर्तव्य अच्छी तरह निभाने के लिए सिद्धांतों पर अडिग रहो
87आखिरकार मुझे शुद्धिकरण का मार्ग मिल गया
88यातना और पीड़ा के बीच मैंने देखा ...
89मॉम-डैड का असली चेहरा पहचानना
90तुम्हारा कर्तव्य तुम्हारा करियर नहीं है
93काम में मिलजुलकर सहयोग करना सबसे अहम है
96चेहरे से मुखौटा हटाने का मार्ग
97बहुत अधिक भावनात्मक लगाव के परिणाम