88. यातना और पीड़ा के बीच मैंने देखा ...
सितंबर 2017 में एक दिन मैं एक सभा के लिए बहन फैंग मिंग के घर गई। जैसे ही मैंने दरवाजा खटखटाया, दरवाजा खुल गया और अचानक एक हाथ ने मुझे घर के अंदर खींच लिया। मैं बेहद डर गई, और जब मेरे होश ठिकाने आए, तो पता चला कि वे सादे कपड़ों में पुलिसकर्मी थे, और फैंग मिंग पहले ही गिरफ्तार कर ली गई थी। बाद में वे मुझे “कानूनी प्रशिक्षण केंद्र” ले गए, जो ईसाइयों के लिए एक ब्रेनवॉशिंग केंद्र था। वहाँ मैंने कई भाई-बहन देखे, जिन्हें गिरफ्तार किया गया था। एक बहन ने मुझे बताया कि पुलिस ने कलीसिया की 30,000 युआन से अधिक धनराशि, 4 लैपटॉप और दो अन्य बहनों के पास से 210,000 युआन जब्त किए हैं। जब मैंने यह सुना तो मुझे बहुत गुस्सा आया, क्योंकि बड़ा लाल अजगर पागलपन के साथ ईसाइयों को गिरफ्तार कर रहा था और कलीसिया का पैसा जब्त कर रहा था। वह वास्तव में बुरा था! मैंने अपने मन में चुपचाप शपथ ली कि मैं अपनी गवाही में दृढ़ रहने के लिए परमेश्वर पर भरोसा करूँगी और शैतान के साथ कभी समझौता नहीं करूँगी!
ब्रेनवॉशिंग केंद्र में पुलिस ने हमें अलग-अलग कमरों में रखा। हम में से प्रत्येक पर चौबीसों घंटे नजर रखने के लिए एक गार्ड नियुक्त किया गया था। हम क्या खाते हैं, कब सोते हैं, यहाँ तक कि कब शौचालय जाते हैं, सब-कुछ उनके नियंत्रण में था। उन्होंने कुछ लोगों को कमरों के बाहर पहरा देने के लिए भी रखा। रोजाना सुबह सात बजे से रात के ग्यारह-बारह बजे तक वे रेडियो पर बहुत तेज आवाज में नाटक बजाते थे, और फिर सुबह तीन-चार बजे तक ऑडियो नाटक और इसी तरह की चीजें बजाने के लिए रेडियो चालू कर देते थे। इस दौरान पुलिस समय-समय पर मुझसे परमेश्वर में मेरे विश्वास के बारे में पूछताछ करने आती रहती। जब वे देखते कि मैं कुछ नहीं बोल रही, तो वे मुझे धमकाते और डराते। वे हमें एकत्र करके नास्तिक विचारों का प्रचार भी करते। इसका उद्देश्य हमसे परमेश्वर को अस्वीकार करवाना और धोखा दिलवाना था। उन वचनों को सुनकर मेरा मन खराब हो जाता था।
उन्होंने 20 से ज्यादा दिनों तक हमारा जबरन ब्रेनवॉश किया। मैं रोजाना ठीक से खा या सो नहीं पाती थी और हमेशा बेचैन रहती थी। बाद में पुलिस ने मेरी पहचान संबंधी जानकारी प्राप्त कर ली, मेरे मोबाइल फोन से कॉल-रिकॉर्ड हासिल कर लिए और मुझसे पूछताछ शुरू कर दी। एक सुबह पुलिस ने कुछ बहनों की तसवीरें निकालीं और मुझसे पूछा, “क्या तुम इन्हें जानती हो?” मैंने देखा कि वे सभी बहनें कलीसिया के पैसे की देखभाल की प्रभारी थीं। मैं उन्हें कभी धोखा नहीं दूँगी, यह सोचकर मैंने कहा, “मैं इन्हें नहीं पहचानती।” एक पुलिस अधिकारी दौड़कर आया और उसने मुझे दो बार जोरदार थप्पड़ मारा, और फिर मेरी दाईं बाँह पर एक ही जगह एक दर्जन से ज्यादा बार मुक्का मारा। मेरी बाँह में इतना दर्द हुआ कि लगा, जैसे वह टूट गई हो। मुझे मारते हुए उसने दाँत पीसकर पूछा : “क्या तुम इन्हें नहीं जानती? तुम छह महीने पहले इनके संपर्क में थी। क्या तुम्हें लगता है कि हमें नहीं पता था? अगर तुम हमें वह नहीं बताओगी जो तुम जानती हो, तो मैं तुम्हारा हाथ तोड़ दूँगा।” फिर उसने मुझे उकड़ूँ बैठाया और हाथों को सीधा फैलाने को कहा। मेरे दाएँ हाथ में इतना दर्द था कि मैं उसे बिलकुल भी नहीं उठा सकी। उसने मेरे हाथ और पैर पर बैडमिंटन-रैकेट से मारा, और साथ ही मेरे मुँह और ठोड़ी पर भी तब तक मारा, जब तक कि मेरे होंठ और ठोड़ी सुन्न नहीं हो गए। दस मिनट से ज्यादा समय तक उकड़ूँ बैठाए रखने के बाद उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या मैं एक भाई को जानती हूँ। मुझे झटका लगा। उन्होंने मेरे कॉल-रिकॉर्ड में उसका नाम पाया होगा। अगर मैंने उन्हें नहीं बताया, तो मैं कल्पना भी नहीं कर सकती थी कि आगे कितनी यातना दी जाएगी, लेकिन जो भी हो, मैं यहूदा बनकर अपने भाई को धोखा नहीं दे सकती थी। मैंने शांति से कहा, “मैं उसे नहीं जानती।” तब तीन पुलिस अधिकारियों ने मुझे घेरकर मेरा कॉलर पकड़ लिया, और मुझे अपने बीच तब तक आगे-पीछे धकेला, जब तक कि मैं चक्कर खाकर लड़खड़ाने नहीं लगी। मैं थोड़ा डर गई और सोचने लगी, “मेरे छोटे-से शरीर के साथ अगर यह यातना जारी रही, तो क्या मैं इसे सहन कर पाऊँगी?” मैंने दिल में बार-बार प्रार्थना करके परमेश्वर से रक्षा करने के लिए कहा। मैंने दानिय्येल के बारे में सोचा। जब उसे सिंहों की माँद में फेंका गया था, तो उसने परमेश्वर से प्रार्थना की, और परमेश्वर ने सिंहों के मुँह बंद कर दिए थे, जिससे उन्होंने उसे काटा नहीं। मैंने देखा कि सब-कुछ परमेश्वर के हाथों में है, इसलिए परमेश्वर की अनुमति के बिना पुलिस मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकती। इन विचारों से मेरी घबराहट और डर कम हुआ। उन्होंने मुझे 20 मिनट से अधिक समय तक धक्का दिया और घसीटा, जिसके बाद अचानक पुलिस कप्तान ने कहा, “मेरे पास अभी करने के लिए कुछ काम हैं। मैं तुम्हें कल देखूँगा!” इसके बाद वह तेजी से निकल गया। मैंने सोचा कि अगर मैंने उन्हें नहीं बताया, तो कल पुलिस मुझे किस तरह प्रताड़ित करेगी। क्या मैं उसे सहन कर पाऊँगी? यह सोचकर मैं बहुत बेचैन और भयभीत हो गई, इसलिए मैं परमेश्वर से प्रार्थना करती रही। मैं भोर तक इन विचारों से पीड़ित रही। मुझे चक्कर आ रहा था, मेरी छाती में जकड़न थी, और मेरे लिए साँस लेना मुश्किल हो रहा था। मेरी रखवाली करने वाला इतना डर गया कि उसने प्रधान प्रशिक्षक और डॉक्टर को ब्रेनवॉशिंग केंद्र पर बुला लिया। जब उन्होंने मेरे रक्तचाप की जाँच की, तो मेरा निम्नतम रक्तचाप 110mmHg और उच्चतम रक्तचाप 180mmHg था। प्रधान प्रशिक्षक को डर था कि कहीं मैं केंद्र पर मर ही न जाऊँ और जिम्मेदारी उसके सिर न आ जाए, इसलिए उसने मुझे अस्पताल पहुँचा दिया। डॉक्टर ने कहा कि मुझे कोरोनरी हृदय-रोग है और मेरा स्वस्थ होना जरूरी है, और फिर मुझे एक IV ड्रिप दी और मुझे ऑक्सीजन पर रखा। डॉक्टर ने जो कहा, उसे सुनने के बाद पुलिस ने देखा कि मैं तुरंत नहीं मरूँगी, इसलिए उन्होंने फौरन नर्स से मेरी ऑक्सीजन हटाने और IV निकालने के लिए कहा, और फिर वे मुझे वापस ब्रेनवॉशिंग केंद्र ले गए।
ब्रेनवॉशिंग केंद्र में लौटने के बाद मेरा रक्तचाप बहुत उच्च बना रहा, और वह नीचे नहीं आ रहा था। मुझे बहुत चक्कर भी आ रहे थे और मैं दीवार का सहारा लिए बिना चल तक नहीं पाती थी। लेकिन पुलिस को मेरी जान की जरा भी परवाह नहीं थी। दिन में उन्होंने मुझे टीवी देखने के लिए मजबूर किया। हर समय चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की 19वीं राष्ट्रीय कांग्रेस प्रसारित होती रहती थी, और रात में वे सुबह तीन या चार बजे तक रेडियो चालू रखते थे। मुझे इतनी बुरी तरह सताया गया कि मेरा शरीर बद से बदतर होता गया। अक्सर मेरे सीने में जकड़न हो जाती और साँस लेने में कठिनाई होती। हर बार जब मेरी तबीयत दोबारा खराब होती, तो वे बस मुझे मौके पर ही मरने से रोकने के लिए हृदय-रोग की सात-आठ आपातकालीन गोलियाँ खिला देते। पुलिस भी अक्सर मुझे धमकाने के लिए आ जाती और मुझसे अपने भाई-बहनों को धोखा देने के लिए कहती, और कलीसिया के पैसे का पता-ठिकाना बताने पर मजबूर करती। इस तरह की लगातार पूछताछ और प्रताड़ना ने मुझे बहुत परेशान कर दिया और मेरी सेहत में लगातार गिरावट आती चली गई। मेरा पूरा ऊपरी शरीर सूज गया था और उसमें दर्द होता था, और ऐसा महसूस होता था कि मेरे भीतरी अंग थोड़ी-सी भी हलचल के साथ अपनी जगह से अलग हो जाएँगे। रोजाना मुझे अपनी बाँहें अपने धड़ के इर्द-गिर्द भींचकर रखनी पड़ती थीं और हर कदम सावधानी से उठाना पड़ता था। जब मैं सोती थी, तो न तो लेटना और न ही बैठना मेरे काम आता था। मैं बारी-बारी से पहले लेटने की कोशिश करती, फिर बैठने की, तब तक जब तक कि मुझमें ऊर्जा रहती और बस थोड़ी देर के लिए गश खा जाती। जैसे-जैसे समय बीतता गया, मेरा दिल बहुत कमजोर होता गया, और मुझे लगा कि शायद मैं इसे सह नहीं पाऊँगी। मैं प्रार्थना कर परमेश्वर से मुझे आस्था प्रदान करने के लिए कहती रही।
एक दिन मुझे एक भजन याद आया, “मसीह का अनुसरण करना परमेश्वर द्वारा नियत है” : “यह परमेश्वर ने नियत किया है कि हम मसीह का अनुसरण करें और परीक्षणों एवं क्लेशों से गुजरें। अगर हम परमेश्वर से सच्चा प्रेम करते हैं तो हमें उसकी संप्रभुता और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पित होना चाहिए। परीक्षणों और क्लेशों से गुजरना परमेश्वर से आशीष पाना है, और परमेश्वर कहता है कि मार्ग जितना दुरूह होगा, वह हमारे प्रेम को उतना ही ज्यादा दिखाएगा। हम आज जिस मार्ग पर चल रहे हैं उसे परमेश्वर ने ही नियत किया था। अंत के दिनों में मसीह का अनुसरण करना सबसे बड़ा आशीष है” (मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ)। जब मैंने यह गीत अपने मन में बार-बार गाया, तो मैं समझ गई कि परमेश्वर में विश्वास करने के अपने जीवन में प्रत्येक व्यक्ति जिस तरह के माहौल का सामना करता है, जिस तरह की मनःस्थिति से गुजरता है और जितने कष्ट सहता है, वह परमेश्वर द्वारा बहुत पहले ही नियत कर दिया गया होता है। मुझे इसका अनुभव करने के लिए परमेश्वर के प्रति समर्पित होना और उस पर भरोसा करना था। जैसे ही मैंने गाया, मुझे कुछ आस्था प्राप्त हुई।
बाद में प्रधान प्रशिक्षक ने मुझसे ऐसी किताबें पढ़वाईं और ऐसी वीडियो देखने के लिए मजबूर किया, जिनमें परमेश्वर की निंदा और सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया की बदनामी की गई थी, और वह मेरा ब्रेनवॉश करने वाली कक्षाएँ लेने के लिए लोगों को लेकर आया। उन दिनों, दिन में मेरा ब्रेनवॉश किया जाता था और रात में टीवी और रेडियो शोर से मेरे कान पका देते थे। इसके अलावा, मुझे चिंता होती थी कि पुलिस कभी भी मुझसे पूछताछ करने आ सकती है, इसलिए मैं बहुत बेचैन रहती थी। मेरे सीने में जकड़न और दर्द की घटनाएँ बार-बार होने लगीं। कुछ दिनों बाद प्रधान प्रशिक्षक ने मुझे यह वादा करने वाला पत्र लिखने के लिए कहा कि मैं अब परमेश्वर में विश्वास नहीं करूँगी। मैंने कुछ भी लिखने से इनकार कर दिया, तो उसने कहा, “इतनी बीमार होकर भी तुम प्रतिरोध कर रही हो। क्यों परेशान होती हो? मैं तुम्हारे लिए एक मसौदा लिख दूँगा, और तुम बस उसे कॉपी कर लेना। उसमें वे शब्द नहीं होंगे, जो तुमने कहे या जो तुम वास्तव में सोचती हो। फिर मैं तुम्हारे बारे में अच्छी बातें कहकर तुम्हें रिहा करवा दूँगा। यह सिस्टम को धोखा देना है, समझीं? मैं तुम्हारी मदद करूँगा, क्योंकि तुम एक अच्छी इंसान लगती हो। अब, बस इसे कॉपी करो, और फिर घर जाओ और डॉक्टर से मिलो।” मैंने सोचा, उसने जो कहा, वह सही बात होगी। मैं केवल बेमन से लिखूँगी, दिल में परमेश्वर से विश्वासघात नहीं करूँगी, इसलिए मैंने उससे कहा, “मुझे जाने दो और इसके बारे में सोचने दो।” वापस अपने कमरे में आकर मैं इस बारे में ध्यान से सोचती रही, “मैंने पहले सुना है कि पुलिस भाई-बहनों को स्किजोफ्रीनिया पैदा करने वाले इंजेक्शन और ड्रग्स देती है। इस तरह का घिनौना तरीका वे हमसे अपने भाई-बहनों को धोखा दिलवाने और कलीसिया का पैसा छोड़ने के लिए इस्तेमाल करते हैं। जिन लोगों से मेरा संपर्क था, उनमें से अधिकतर अगुआ और कार्यकर्ता थे, साथ ही कुछ भाई-बहन थे जिनके पास कलीसिया का पैसा रहता था। अगर किसी दिन पुलिस ने मुझे स्किजोफ्रीनिया पैदा करने वाली दवा या ड्रग्स दे दीं, और मैं होश खो बैठी और उनके साथ विश्वासघात कर बैठी, तो मैं कलीसिया के हितों को भारी नुकसान पहुँचा सकती थी। यह एक बड़ी बुराई करना होगा, और भविष्य में मुझे निश्चित रूप से दंडित किया जाएगा। अगर मैं पत्र लिख दूँ, तो मैं जल्दी जा सकूँगी, और अपने भाई-बहनों के साथ विश्वासघात नहीं करूँगी। लेकिन मैं परमेश्वर को धोखा दे रही हूँगी और उसे नकार रही हूँगी, तो उसके बाद जीने का क्या मतलब होगा? नहीं, मैं खुद को यह पत्र नहीं लिखने दे सकती।” अगले दिन जब प्रधान प्रशिक्षक ने देखा कि मैंने पत्र नहीं लिखा है, तो बहुत गुस्सा हुआ। वह चिल्लाया, “सरकार ने आदेश दिया है कि तुम जैसे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के विश्वासियों को रिहाई से पहले पत्र लिखना और उस पर हस्ताक्षर करना होगा। तुम कितनी भी बीमार क्यों न हो, तुम्हें सरकार के नियमों का पालन करना है, इसलिए जल्दी करो और लिखो!” उसने मुझे मनाने में सहायता करने के लिए तीन गार्ड बुलाए और कहा, “जब तक तुम पत्र पर हस्ताक्षर नहीं करोगी, तब तक जा नहीं सकोगी। सरकार ने तुम लोगों को पुनःशिक्षित करने पर बहुत पैसा खर्च किया, यहाँ तक कि विशेष कक्षाएँ भी डिजाइन कीं। हमने सरकार का पैसा लिया, और हमें वह करना है जिसके लिए सरकार हमें भुगतान करती है, इसलिए अगर तुम हस्ताक्षर नहीं करोगी, तो हम तुम्हें रोजाना तब तक प्रताड़ित करेंगे, जब तक तुम हस्ताक्षर नहीं कर देती।” उनकी धमकी और दबाव ने मुझे बहुत चिंतित कर दिया और मैं अपने सीने में जकड़न का दर्द बरदाश्त नहीं कर सकी। हालाँकि मैंने अपने दिल में प्रार्थना की, लेकिन मैं केवल अनमने ढंग से ही वैसा कर रही थी, उसमें ईमानदारी नहीं थी। वास्तव में, मैं अब और कष्ट नहीं उठाना चाहती थी, और परमेश्वर में मेरी कोई आस्था नहीं थी। मुझे लगातार चिंता रहती थी कि पुलिस मेरे खाने में ड्रग्स डाल देगी। अगर मैंने अपने मन पर नियंत्रण खो दिया और अपने भाई-बहनों को धोखा दे बैठी तो क्या होगा? भविष्य में मेरी सजा और भी कड़ी होगी, इसलिए मुझे भी पत्र लिख देना और उस पर हस्ताक्षर कर देना चाहिए। यह सोचते ही मैंने समझौता कर लिया और पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए। अचानक मुझे लगा कि मेरा दिल खोखला हो गया है और मेरे दिमाग पर अँधेरा छा गया है। मैं बहुत बेचैन महसूस करने लगी और डर गई। मुझे एहसास हुआ कि “तीन पत्रों” पर हस्ताक्षर करने से मुझ पर जानवर होने का ठप्पा लग गया है। मैं एक यहूदा थी, जिसने परमेश्वर को धोखा दिया था और परमेश्वर के स्वभाव को ठेस पहुँचाई थी। मुझे पश्चात्ताप की गहरी भावना महसूस हुई और खुद से नफरत हो गई, मुझे लगा कि मैं जीने लायक नहीं हूँ। जब मेरा गार्ड सो रहा था, मैंने अपनी शेष पंद्रह-सोलह उच्च-रक्तदाब-रोधी गोलियाँ निगल लीं। कुछ घंटों बाद मुझे चक्कर आने लगा, इसलिए बिस्तर पर लेटे हुए मैंने अपनी आँखों से आँसू बहते हुए परमेश्वर से प्रार्थना की, “परमेश्वर! मैंने ‘तीन पत्रों’ पर हस्ताक्षर कर दिए। मैंने तुम्हें धोखा दिया और तुम्हारे नाम को लज्जित किया। मैं जीने लायक नहीं हूँ। परमेश्वर! अगर मेरा अगला जीवन है, तो मैं अभी भी तुम पर विश्वास करना और तुम्हारा अनुसरण करना चाहती हूँ...।” जब तक मैं कुछ समझती, मुझे नींद आ गई। अगली सुबह मैंने अचानक उठने के लिए सीटी की आवाज सुनी। मैंने अपनी आँखें खोलीं और कई बार खुद को चुटकी काटी। पता चला कि मैं मरी नहीं थी। मुझे खुद से नफरत हो गई। मैं मरी क्यों नहीं थी? तभी मुझे “परमेश्वर विश्वास को पूर्ण बनाता है” नामक परमेश्वर के वचन का एक भजन याद आया : “अंत के दिनों के कार्य में हमसे परम आस्था और प्रेम की अपेक्षा की जाती है। थोड़ी-सी लापरवाही से हम लड़खड़ा सकते हैं, क्योंकि कार्य का यह चरण पिछले सभी चरणों से अलग है : परमेश्वर मानवजाति की आस्था को पूर्ण कर रहा है—जो कि अदृश्य और अमूर्त दोनों है। इस चरण में परमेश्वर वचनों को आस्था में, प्रेम में और जीवन में परिवर्तित करता है। लोगों को उस बिंदु तक पहुँचने की आवश्यकता है जहाँ वे सैकड़ों बार शुद्धिकरणों का सामना कर चुके हैं और अय्यूब से भी ज़्यादा आस्था रखते हैं। किसी भी समय परमेश्वर से दूर जाए बिना उन्हें अविश्वसनीय पीड़ा और सभी प्रकार की यातनाओं को सहना आवश्यक है। जब वे मृत्यु तक आज्ञाकारी रहते हैं, और परमेश्वर में अत्यंत विश्वास रखते हैं, तो परमेश्वर के कार्य का यह चरण पूरा हो जाता है” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, मार्ग ... (8))। परमेश्वर के वचन से मेरे भीतर जटिल भावनाओं का एक रेला उमड़ आया, और मेरे आँसू बहने लगे। मैंने रोते हुए परमेश्वर से प्रार्थना की, “परमेश्वर! तुमने मेरी रक्षा की। मैं जानती हूँ, यह मुझ पर तुम्हारी दया है, अगर मैं अभी भी तुम्हारी सेवा कर पाऊँ, तो मैं जीने के लिए तैयार हूँ। अगर मैं सेवा के बाद मर भी जाऊँ, तो मुझे कोई शिकायत नहीं होगी।”
हालाँकि मैं अब मरना नहीं चाहती थी, फिर भी मैं बहुत उदास अवस्था में थी। उन कुछ दिनों में मैं कमजोरी की हालत में चारपाई के पीछे झुक जाती, अपनी आँखें बंद कर लेती, और एक निश्चल स्तब्धता में बैठ जाती। ऐसा लगता, जैसे पूरी दुनिया का मुझसे कोई लेना-देना न हो। एक दिन, जब मैं बाथरूम गई, तो फैंग मिंग ने, जो खुद भी गिरफ्तार थी, मेरी ओर टॉयलेट पेपर की एक गेंद फेंकी। जब मेरा गार्ड वहाँ नहीं था, तब मैंने उसे खोला। उस पर यह टिप्पणी लिखी थी, “बहन, निराश मत हो और परमेश्वर को गलत मत समझो। मैंने नीचे तुम्हारे पढ़ने के लिए परमेश्वर के वचन का एक भजन लिखा है।” मैं उसे पढ़ते हुए रोने गई :
परमेश्वर को पसंद हैं लोग जिनमें संकल्प है
1 व्यावहारिक परमेश्वर का अनुसरण करने के लिए हमें यह संकल्प करना चाहिए : हम चाहे कितने ही बड़े परिवेश का सामना कर रहे हों, किसी भी तरह की मुश्किल का सामना कर रहे हों, या चाहे हम कितने भी कमजोर या निराश क्यों न हों, हम अपने स्वभाव में बदलाव या परमेश्वर के कहे वचनों पर भरोसा नहीं छोड़ सकते। परमेश्वर ने मानव जाति से एक वादा किया है, और इसके लिए यह जरूरी है कि लोगों में संकल्प, आस्था, और इसे सहने की दृढ़ता हो। परमेश्वर कायर लोग पसंद नहीं करता है; वह दृढ़ निश्चयी लोग पसंद करता है। भले ही तुमने बहुत-सारी भ्रष्टता दिखाई है, भले ही तुमने कई बार गलत मार्ग पकड़ा है या कई अपराध किए हैं, परमेश्वर के बारे में शिकायतें की हैं या धर्म के अंदर से परमेश्वर का विरोध किया है या अपने दिल में उसके खिलाफ ईशनिंदा पाली है, वगैरा-वगैरा—परमेश्वर इन सब पर कतई गौर नहीं करता है। परमेश्वर सिर्फ यह देखता है कि क्या कोई सत्य पाने का प्रयास कर रहा है या नहीं और क्या वह किसी दिन बदल सकता है या नहीं।
2 परमेश्वर हर व्यक्ति को ऐसे जानता है, जैसे कोई माँ अपने बच्चे को जानती है। वह हर व्यक्ति की परेशानियों, कमजोरियों और जरूरतों को समझता है। उससे भी बढ़कर, परमेश्वर यह भी समझता है कि लोग अपना स्वभाव बदलने की प्रक्रिया में कदम रखते समय किन कठिनाइयों, कमजोरियों और नाकामियों का सामना करेंगे। ये ऐसी चीजें हैं जिन्हें परमेश्वर बखूबी समझता है। इसका अर्थ है कि परमेश्वर लोगों के दिलों की गहराइयों का परीक्षण करता है। तुम चाहे कितने ही कमजोर हो, जब तक तुम परमेश्वर का नाम नहीं छोड़ते, या उसे या उसका मार्ग नहीं छोड़ते, तब तक तुम्हारे पास स्वभाव बदलने का मौका हमेशा रहेगा। अगर तुम्हारे पास यह मौका है, तो फिर तुम्हारे जीवित रहने, और अतएव परमेश्वर के हाथों बचा लिए जाने की उम्मीद है।
—वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, अपना स्वभाव बदलने के लिए अभ्यास का मार्ग
परमेश्वर के वचन बहुत सुखदायक थे—उन्होंने मेरे हृदय को ऊष्मा और सांत्वना दी। मैं फूट-फूटकर रोई और अपने मन में कई बार भजन गाया। मैंने परमेश्वर को ठेस पहुँचाने वाला काम किया था, लेकिन परमेश्वर ने न केवल मुझे दंडित नहीं किया, बल्कि उसने मेरी बहन को मेरे सबसे दर्दनाक और निराशाजनक क्षणों में मेरा समर्थन करने के लिए परमेश्वर के वचन की कॉपी करने के लिए प्रेरित भी किया। मैं बालकनी के कोने में चली गई और रोते हुए फर्श पर गिरकर परमेश्वर से प्रार्थना करने लगी, “परमेश्वर! मैंने ‘तीन पत्रों’ पर हस्ताक्षर कर दिए और तुम्हें धोखा दे दिया। मैं तुम्हारी दया के योग्य नहीं हूँ। मेरे पास अपने लिए तुम्हारे प्रेम और उद्धार को व्यक्त करने के लिए शब्द नहीं हैं। परमेश्वर! मैं तुम्हारे सामने पश्चात्ताप करना चाहती हूँ। कृपा कर मेरा मार्गदर्शन करो।”
बाद में पुलिस ने मुझे रिहा कर दिया, क्योंकि उन्हें मुझसे पूछताछ करने से कुछ नहीं मिला। जब मुझे रिहा किया गया, तो उन्होंने मुझे अब परमेश्वर में विश्वास न करने की चेतावनी दी, और मेरे पति को आदेश दिया कि वे चौबीसों घंटे मेरी निगरानी करें। मेरे घर लौटने के बाद नगर सरकार ने ग्राम समिति से कहा कि वह पूरे गाँव को सूचित कर दे कि मैं परमेश्वर में विश्वास करने के कारण एक राजनीतिक कैदी रही हूँ, और पूरे गाँव से कहे कि वह मुझ पर नज़र रखे। मैं जहाँ भी जाती, लोग मुझे घूरते, और मुझे उनकी उठी हुई उँगलियाँ, अजीब निगाहें, कटाक्ष, उपहास, गाली-गलौज और हर तरह का विद्वेष सहना पड़ता। मेरे पति परमेश्वर में मेरे विश्वास का समर्थन किया करते थे, लेकिन मेरी रिहाई के बाद वे मुझे सताने लगे और अक्सर बिना किसी कारण के मुझे डाँट देते। मेरा बेटा गाँव वालों का उपहास और अपमान बरदाश्त न कर पाता, इसलिए वह मुझे दुश्मन समझकर नजरअंदाज करने लगा। यह सब मुझे बहुत परेशान करता था। विशेष रूप से जब मुझे याद आता कि मैंने बड़े लाल अजगर के उत्पीड़न के तहत “तीन पत्रों” पर हस्ताक्षर किए थे, और इस प्रकार परमेश्वर के सामने एक गंभीर पाप किया था, तो मुझे लगता कि परमेश्वर निश्चित रूप से मुझे नहीं बचाएगा, और मेरे भाई-बहन मेरा तिरस्कार करेंगे। मुझे लगता, जैसे मैं एक अथाह कुंड में गिर गई हूँ, और मैं हर दिन एक चलती-फिरती लाश की तरह गुजारती। मैं अत्यधिक दर्द और पीड़ा की स्थिति में रह रही थी, और ऐसा महसूस होता था कि मेरी आँखें रोजाना आँसुओं से भर जाती हैं। उस दौरान मैं परमेश्वर के वचन नहीं पढ़ पाती थी, और मैंने अपने भाई-बहनों से संपर्क करने की हिम्मत नहीं की, इसलिए मैं अक्सर परमेश्वर के सामने प्रार्थना करने के लिए आती, और परमेश्वर से उसकी इच्छा समझने में मेरा मार्गदर्शन करने के लिए कहती।
उसके बाद मुझे अपनी माँ के घर जाने का अवसर मिला। उसने मेरे साथ संगति की, मुझे परमेश्वर को गलत न समझने के लिए कहा, और बोली कि मुझे इस तरह की परिस्थितियों में एक सबक सीखना चाहिए। उसने मुझे अपने घर ले जाने के लिए चुपके से परमेश्वर के वचन की एक प्रति भी दे दी। एक दिन मैंने परमेश्वर के वचन में पढ़ा : “ज्यादातर लोगों ने कुछ तरीकों से अपराध कर अपनी प्रतिष्ठा घटाई है। उदाहरण के लिए, कुछ लोगों ने परमेश्वर का विरोध किया है और ईशनिंदा की बातें कही हैं; कुछ लोगों ने परमेश्वर का आदेश नकारकर अपना कर्तव्य नहीं निभाया है, और परमेश्वर द्वारा ठुकरा दिए गए हैं; कुछ लोगों ने प्रलोभन सामने आने पर परमेश्वर को धोखा दिया है; कुछ लोगों ने गिरफ्तार होने पर ‘तीन पत्रों’ पर हस्ताक्षर करके परमेश्वर को धोखा दिया है; कुछ ने भेंटें चुरा ली हैं; कुछ ने भेंटें बरबाद कर दी हैं; कुछ ने अक्सर कलीसियाई जीवन को अस्त-व्यस्त कर परमेश्वर के चुने हुए लोगों को नुकसान पहुँचाया है; कुछ ने गुट बनाकर दूसरों के साथ अशिष्ट व्यवहार किया है, जिससे कलीसिया अस्त-व्यस्त हो गई है; कुछ ने अक्सर धारणाएँ और मृत्यु फैलाकर भाई-बहनों को नुकसान पहुँचाया है; और कुछ ने व्यभिचार और भोग-विलास में लिप्त रहे हैं और उनका भयानक प्रभाव पड़ा है। जाहिर है, हर किसी के अपने अपराध और दाग हैं। लेकिन कुछ लोग सत्य स्वीकार कर पश्चात्ताप कर पाते हैं, जबकि दूसरे नहीं कर पाते और पश्चात्ताप करने से पहले ही मर जाते हैं। इसलिए लोगों के साथ उनके प्रकृति-सार और उनके निरंतर व्यवहार के अनुसार बर्ताव किया जाना चाहिए। जो पश्चात्ताप कर सकते हैं, वे वो लोग होते हैं जो वास्तव में परमेश्वर पर विश्वास करते हैं; लेकिन जो वास्तव में पश्चात्ताप न करने वाले होते हैं, जिन्हें हटाकर निकाल दिया जाना चाहिए, उन्हें हटाकर निकाल दिया जाएगा” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, भाग तीन)। “परमेश्वर के वचनों द्वारा जीते जाने के लिए प्रस्तुत प्रत्येक व्यक्ति के पास उद्धार के लिए पर्याप्त अवसर होगा; परमेश्वर द्वारा इनका उद्धार उसकी परम उदारता दिखाएगा। दूसरे शब्दों में, उनके प्रति परम सहनशीलता दिखाई जाएगी। अगर लोग गलत रास्ता छोड़ दें और पश्चात्ताप करें, तो परमेश्वर उन्हें उद्धार प्राप्त करने का अवसर देगा” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, मनुष्य के उद्धार के लिए तुम्हें सामाजिक प्रतिष्ठा के आशीष से दूर रहकर परमेश्वर की इच्छा को समझना चाहिए)। परमेश्वर का वचन पढ़ने के बाद मैं विशेष रूप से द्रवित हो गई। मैंने जमीन पर घुटने टेक दिए और आँखों में दुःख के आँसू लिए परमेश्वर से प्रार्थना की। मैंने देखा कि परमेश्वर के धार्मिक स्वभाव में न केवल प्रताप और कोप है, बल्कि लोगों के लिए दया और सहनशीलता भी है। परमेश्वर धार्मिक है, और वह लोगों के परिणाम उनके अस्थायी अपराधों के आधार पर निर्धारित नहीं करता, बल्कि उनके कार्यों के उद्देश्यों और पृष्ठभूमि, उनके कार्यों के परिणामों, वे वास्तव में पश्चात्ताप करते हैं या नहीं, और सत्य के प्रति उनके दृष्टिकोण के आधार पर निर्धारित करता है। परमेश्वर लोगों के विश्वासघात से घृणा करता है और उसका तिरस्कार करता है, लेकिन परमेश्वर लोगों को जहाँ तक हो सकता है, बचाता भी है। अगर कोई केवल कमजोरी के क्षण में ही परमेश्वर को धोखा देता है, दिल से उसे नकारता और धोखा नहीं देता, और पश्चात्ताप करने के लिए तैयार रहता है, तो परमेश्वर दयालु रहता है और उसे एक और मौका देता है। इसे जानने पर मैंने महसूस किया कि मैं परमेश्वर की और भी अधिक ऋणी हूँ, और भी अधिक पछतावे से भरी हूँ। मैंने परमेश्वर की शपथ ली थी कि वह मुझे चाहे या न चाहे, मैं उसका अनुसरण करूँगी, दृढ़ता से सत्य का अनुसरण करूँगी, और स्वभाव में बदलाव लाने का प्रयास करूँगी। अगर भविष्य में मेरे लिए कोई अच्छा अंत नहीं भी हुआ, तो भी मुझे कोई पछतावा नहीं होगा।
इसके बाद मैं सोचती रही कि जब मुझे सीसीपी द्वारा गिरफ्तार किया गया और सताया गया, तो मैंने “तीन पत्रों” पर हस्ताक्षर करके परमेश्वर को धोखा क्यों दिया। मैंने सोचा कि जब मुझे पहली बार गिरफ्तार किया गया था, तब कैसे मैं अपनी गवाही में दृढ़ रहना चाहती थी, लेकिन जब पुलिस ने मुझे ज्यादा से ज्यादा कठोरता से डराया-धमकाया, और जब मेरी बीमारी ज्यादा गंभीर हो गई, तो मैंने विश्वास खो दिया और पूरी तरह से कायरता और भय से ग्रस्त हो गई। मुझे डर था कि अगर पुलिस ने मुझे स्किजोफ्रीनिया पैदा करने वाली दवा का इंजेक्शन लगा दिया या मन को प्रभावित करने वाली दवाएँ दे दीं, और फिर मैंने अनजाने में अपने भाई-बहनों को धोखा दे दिया, तो मेरी सजा बाद में और भी गंभीर होगी, इसलिए मैंने “तीन पत्रों” पर हस्ताक्षर करना बेहतर समझा। मेरा मानना था कि अगर कलीसिया के हितों को नुकसान न हुआ, तो भविष्य में मुझे मिलने वाली सजा हलकी होगी। इसलिए अपने हितों की रक्षा के लिए मैंने पत्रों पर हस्ताक्षर किए और परमेश्वर को धोखा दिया। वास्तव में, परमेश्वर ने बड़े लाल अजगर को मेरी आस्था पूर्ण करने के लिए मुझे सताने की अनुमति दी थी, ताकि मैं परमेश्वर के वचनों के अनुसार जी सकूँ और शैतान को हरा सकूँ। लेकिन मैंने परमेश्वर की इच्छा बिलकुल भी नहीं खोजी, न ही मैंने यह सोचा कि दृढ़ रहने और परमेश्वर को संतुष्ट करने के लिए मुझे क्या करना चाहिए। मैंने सिर्फ अपने अंत और गंतव्य के बारे में सोचा। मैंने देखा कि मैं बहुत स्वार्थी और नीच थी! साथ ही, मैंने हमेशा सोचा था कि चाहे कैसी भी परिस्थितियाँ हों, अगर कोई परमेश्वर को धोखा देता है, तो उसका अंत यहूदा के समान ही होगा, कि उसे निश्चित रूप से दंडित किया जाएगा। लेकिन ये पूरी तरह से मेरी धारणाएँ और कल्पनाएँ थीं। परमेश्वर धार्मिक है, और वह लोगों के दिलों की गहराइयों की जाँच करता है। वह मेरा हर वचन और कर्म देखता है। अगर मैंने अपने हितों की रक्षा के लिए अपने भाई-बहनों को धोखा दिया होता, और इस तरह बड़े लाल अजगर की साथी और सेविका बन जाती, तो मेरा हश्र निश्चित रूप से यहूदा की तरह होता और मुझे दंडित किया जाता, लेकिन अगर मुझे पुलिस द्वारा जबरन ड्रग्स दी जातीं और मैं अपने काबू में न होने की हालत में परमेश्वर को धोखा देती, तो परमेश्वर मेरी स्थिति और संदर्भ के अनुसार मुझसे अलग तरह से पेश आता। लेकिन मैं परमेश्वर के धार्मिक स्वभाव को नहीं जानती थी, और मुझे लोगों का अंत निर्धारित करने के परमेश्वर के मानदंड का पता नहीं था। मैं अपनी ही धारणाओं और कल्पनाओं में फँसकर रह गई थी, शैतान की चाल में आ गई थी और एक गंभीर अपराध कर बैठी थी। लेकिन परमेश्वर ने फिर भी मुझे पश्चात्ताप करने का अवसर दिया। यह मुझ पर परमेश्वर की दया थी!
बाद में मैंने परमेश्वर के वचन का एक और अंश पढ़ा : “शैतान चाहे जितना भी ‘सामर्थ्यवान’ हो, चाहे वह जितना भी दुस्साहसी और महत्वाकांक्षी हो, चाहे नुकसान पहुँचाने की उसकी क्षमता जितनी भी बड़ी हो, चाहे मनुष्य को भ्रष्ट करने और लुभाने की उसकी तकनीकें जितनी भी व्यापक हों, चाहे मनुष्य को डराने की उसकी तरकीबें और योजनाएँ जितनी भी चतुराई से भरी हों, चाहे उसके अस्तित्व के रूप जितने भी परिवर्तनशील हों, वह कभी एक भी जीवित चीज सृजित करने में सक्षम नहीं हुआ, कभी सभी चीजों के अस्तित्व के लिए व्यवस्थाएँ या नियम निर्धारित करने में सक्षम नहीं हुआ, और कभी किसी सजीव या निर्जीव चीज पर शासन और नियंत्रण करने में सक्षम नहीं हुआ। ब्रह्मांड और आकाश के भीतर, एक भी व्यक्ति या चीज नहीं है जो उससे पैदा हुई हो, या उसके कारण अस्तित्व में हो; एक भी व्यक्ति या चीज नहीं है जो उसके द्वारा शासित हो, या उसके द्वारा नियंत्रित हो। इसके विपरीत, उसे न केवल परमेश्वर के प्रभुत्व के अधीन रहना है, बल्कि, परमेश्वर के सभी आदेशों और आज्ञाओं का पालन करना है। परमेश्वर की अनुमति के बिना शैतान के लिए जमीन पर पानी की एक बूँद या रेत का एक कण छूना भी मुश्किल है; परमेश्वर की अनुमति के बिना शैतान धरती पर चींटियों का स्थान बदलने के लिए भी स्वतंत्र नहीं है, परमेश्वर द्वारा सृजित मानव-जाति की तो बात ही छोड़ दो” (वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है I)। परमेश्वर के वचनों से मैंने जाना कि ब्रह्मांड में हर चीज में अंतिम निर्णय का अधिकार परमेश्वर का होता है। सीसीपी चाहे कितनी भी कपटी या उग्र क्यों न हो, वह परमेश्वर के हाथों का मोहरा है। वह एक सेवाकर्ता है, जिसे परमेश्वर अपने चुने हुए लोगों को पूर्ण करने के लिए एक साधन के रूप में इस्तेमाल करता है। लेकिन मैं परमेश्वर के अधिकार को नहीं जानती थी और हमेशा चिंतित रहती थी कि पुलिस मुझे स्किजोफ्रीनिया पैदा करने वाले इंजेक्शन और ड्रग्स देगी, और अगर मैंने पूरी तरह से सचेत न रहने की हालत में अपने भाई-बहनों को धोखा दिया, तो कलीसिया के हित अत्यधिक प्रभावित हो सकते हैं। हालाँकि पुलिस द्वारा मुझे ऐसी ड्रग्स देना या न देना और मेरा खुद पर से सचेत नियंत्रण खोना या न खोना सब परमेश्वर के हाथों में था। परमेश्वर की अनुमति के बिना पुलिस मेरा कुछ नहीं कर सकती थी। मैंने देखा कि जब मेरे साथ कुछ हुआ, तो मुझमें वास्तव में परमेश्वर में कोई आस्था नहीं रही, मैं शैतान की चालों की सच्चाई नहीं देख पाई, और मेरा आध्यात्मिक कद दयनीय ढंग से छोटा था। जब मैंने यह जाना, तो मेरा पछतावा और गहरा हो गया। मैंने वर्षों परमेश्वर पर विश्वास किया था और परमेश्वर के वचनों के सिंचन और आपूर्ति का आनंद लिया था, लेकिन मैं वास्तव में परमेश्वर के बारे में ज्यादा नहीं जानती थी। मैंने “तीन पत्रों” पर हस्ताक्षर करके परमेश्वर को धोखा तक दे दिया था। इस विचार से मैंने परमेश्वर के प्रति और भी अधिक ऋणी महसूस किया, इसलिए मैंने प्रार्थना की, “परमेश्वर! अगर अभी भी कोई मौका हो, तो मैं एक और गिरफ्तारी के लिए तैयार हूँ, मैं अपना शारीरिक सुख त्यागना चाहती हूँ, बड़े लाल अजगर को अपमानित करना चाहती हूँ और अपने पापों का प्रायश्चित करना चाहती हूँ।”
अक्तूबर 2018 में एक दिन, सादे कपड़ों में सात पुलिस अधिकारी अचानक मेरे घर में घुस आए और मुझे गिरफ्तार कर लिया। मैं जान गई कि परमेश्वर मुझे पश्चात्ताप करने का मौका दे रहा था। चाहे पुलिस मुझे पीट-पीटकर मार डाले या जेल भेज दे, इस बार मुझे दृढ़ रहने के लिए परमेश्वर पर निर्भर रहना होगा। पुलिस मुझे पूछताछ-कक्ष में ले गई, मुझे टाइगर-चेयर पर बैठाकर हथकड़ी लगा दी, मेरे बाल पकड़ लिए और लगभग एक दर्जन बार मेरे चेहरे पर थप्पड़ मारे। उन प्रहारों से मुझे बहुत ज्यादा दर्द हुआ, और मेरा चेहरा तुरंत सूज गया। एक पुलिस अधिकारी ने मुझसे पूछा कि क्या मैं फलाँ आदमी को जानती हूँ। मैंने कहा, नहीं। वह आगबबूला हो गया, दौड़कर आया और मुझे जोर से थप्पड़ मारने लगा। इसके बाद एक अन्य पुलिस अधिकारी ने मुझसे अगुआ के नाम की पुष्टि करने के लिए कहा, लेकिन मैंने कोई जवाब नहीं दिया। उसने गुस्से से मेरा कान पकड़ा, उसके किनारे पर अपने नाखूनों से थोड़ा-थोड़ा चिकोटी काटते हुए मुझ पर जवाब देने का दबाव बनाता रहा। मैं सिर हिलाती रही और कुछ नहीं बोली। वह इतना गुस्से में था कि उसने धातु की मुट्ठी भर चिमटियाँ लीं, और फिर एक भयानक मुस्कान के साथ कहा, “अगर तुम नहीं बोलोगी, तो भुगतोगी!” उसने मेरे कानों के किनारे धातु की चिमटियाँ लगा दीं। हर बार जब चिमटियाँ चुभती थीं, तो इतना दर्द महसूस होता था, जैसे वह मेरे दिल को बेध रहा हो, मेरे चेहरे में ऐंठन होती रही, और मेरा पूरा सिर ऐसा लगा जैसे चूल्हे पर भूना जा रहा हो। मैंने अपनी आँखें बंद कर लीं और दाँत भींच लिए, और जब मेरा शरीर अनायास ही काँप रहा था, मैंने अपने हृदय में बार-बार प्रार्थना कर परमेश्वर से मुझे कष्ट सहने का संकल्प देने के लिए कहा। मुझे परमेश्वर के ये वचन याद आ गए : “विश्वास एक ही लट्ठे से बने पुल की तरह है : जो लोग घृणास्पद ढंग से जीवन से चिपके रहते हैं उन्हें इसे पार करने में परेशानी होगी, परन्तु जो आत्म बलिदान करने को तैयार रहते हैं, वे बिना किसी फ़िक्र के, मज़बूती से कदम रखते हुए उसे पार कर सकते हैं। अगर मनुष्य कायरता और भय के विचार रखते हैं तो ऐसा इसलिए है कि शैतान ने उन्हें मूर्ख बनाया है क्योंकि उसे इस बात का डर है कि हम विश्वास का पुल पार कर परमेश्वर में प्रवेश कर जायेंगे” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 6)। मैं जान गई कि पुलिस मुझे इस तरह इसलिए प्रताड़ित कर रही थी, क्योंकि वह चाहती थी कि मैं परमेश्वर को धोखा दे दूँ और अपने भाई-बहनों के साथ विश्वासघात कर दूँ। मैं परमेश्वर को नीचा नहीं दिखा सकती थी। मुझे दृढ़ रहने के लिए परमेश्वर पर निर्भर रहना था। कुछ मिनटों के बाद पुलिस ने चिमटियाँ हटा दीं और मेरे पहचानने के लिए एक और बहन की फोटो ले आई। मैंने कहा, “मैं इसे नहीं जानती।” पुलिस ने गुस्से से मेरा हाथ मेरे सामने झटक दिया और जबरदस्ती मेरी उँगलियाँ खींचने लगी। मैं दर्द से चिल्लाई और सहज रूप से अपना हाथ भींच लिया, लेकिन उसने मेरी हरेक उँगली खींची और उसे ऊपर की ओर झटक दिया। मुझे लगा, जैसे वह मेरी उंगलियाँ तोड़ रहा है, और दर्द इतना तेज था कि मैं टूटने के कगार पर पहुँच गई। जब उन्होंने देखा कि मैं अभी भी नहीं बोल रही, तो दो पुलिसकर्मियों ने मेरी हथकड़ी खोली, मेरे हाथ मेरी पीठ के पीछे मोड़े, उन्हें टाइगर-चेयर के पीछे के निचले हिस्से में बने छेद में डालकर मुझे फिर से हथकड़ी लगा दी, और फिर हथकड़ी जोर से दबा दी। ऐसा लगा, जैसे मेरे हाथ और बाँहें फटी जा रही हों, और मैं दर्द से कराह उठी। मैं अपने दिल में बहुत कमजोर महसूस कर रही थी, इसलिए मैंने आँखों में आँसू लिए परमेश्वर से प्रार्थना की, और उससे मुझे दुख सहने के लिए आस्था और संकल्प देने के लिए कहा। इस समय मुझे परमेश्वर के वचन का एक भजन याद आया : “सर्वशक्तिमान परमेश्वर, समस्त पदार्थों का मुखिया, अपने सिंहासन से अपनी राजसी शक्ति का निर्वहन करता है। वह समस्त ब्रह्माण्ड और सब वस्तुओं पर राज और सम्पूर्ण पृथ्वी पर हमारा मार्गदर्शन करता है। हम हर क्षण उसके समीप होंगे, और एकांत में उसके सम्मुख आयेंगे, एक पल भी नहीं खोयेंगे और हर समय कुछ न कुछ सीखेंगे” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 6)। परमेश्वर के वचन ने मुझे आवश्यक प्रबुद्धता दी, और अचानक मेरा हृदय पहले से उज्ज्वल हो गया। सर्वशक्तिमान परमेश्वर ब्रह्मांड का महान राजा है, और वह ब्रह्मांड में हर चीज में अंतिम निर्णय का अधिकार रखता है। मेरा जीवन और मृत्यु भी परमेश्वर के हाथों में थी। अगर परमेश्वर ने अनुमति न दी, तो पुलिस मेरा कुछ नहीं कर सकती थी। इन दानवों के पास मुझे इस तरह यातना देने के लिए परमेश्वर की अनुमति थी, क्योंकि परमेश्वर मेरी आस्था पूर्ण करना चाहता था। मुझे यह भी याद था कि मैंने बड़े लाल अजगर के उत्पीड़न के तहत पहले “तीन पत्रों” पर हस्ताक्षर करके परमेश्वर को धोखा दिया था, लेकिन परमेश्वर ने मेरे अपराध के कारण मुझे निकाला नहीं, और मुझे पोषण प्रदान करने और आराम देने के लिए अपने वचनों का उपयोग किया। इस बार मैं फिर से परमेश्वर को निराश नहीं कर सकती थी। मुझे दृढ़ रहना था, शैतान को नीचा दिखाना था और परमेश्वर को दिलासा देनी थी। उन्होंने हथकड़ी को लगातार चार बार दबाया, जिसके बाद मुझे चक्कर आ गया, मैं सर्वत्र काँप और ऐंठ रही थी, और मुझे ऐसा लग रहा था कि मैं मरने वाली हूँ। फिर पुलिस ने मेरे चेहरे पर मिनरल वाटर फेंका और मेरा कॉलर खींचकर मेरी कमीज में ठंडा पानी डाल दिया। मैं पसीने से लथपथ थी, और ठंडे पानी से ऐसा झटका लगा कि मेरा पूरा शरीर काँपने और सिहरने लगा। थोड़ी देर बाद पुलिस ने बत्तियाँ बुझा दीं, दो फ्लैशलाइटें चालू कर दीं, प्रकाश की शक्तिशाली किरणें मेरे चेहरे की ओर कर दीं, और मुझे आदेश दिया कि मैं अपनी आँखें खुली रखूँ और हिलूँ नहीं। मैंने अपने हृदय में परमेश्वर से प्रार्थना करके याचना की कि वह मुझे अपने भाई-बहनों से विश्वासघात न करने दे या उसे धोखा न देने दे।
इस समय मुझे एक भजन याद आया “मैं परमेश्वर से प्रेम करने को संकल्पित हूँ” :
1 हे परमेश्वर! मैंने देख लिया है कि तेरी धार्मिकता और पवित्रता बहुत ही प्यारी है। मैं सत्य का अनुसरण करने को संकल्पित हूँ, और मैं तुझसे प्रेम करने को संकल्पित हूँ। तुम मेरी आध्यात्मिक आँखें खोल दो और तुम्हारा आत्मा मेरे हृदय को प्रेरित करे। इसे ऐसा बना दो कि जब मैं तुम्हारे सामने आऊँ, तो वह सब-कुछ फेंक दूँ जो नकारात्मक है, किसी भी व्यक्ति, मामले या चीज से विवश होना छोड़ दूँ, और अपना हृदय तुम्हारे सामने पूरी तरह से खोलकर रख दूँ, और ऐसा कर दो कि मैं अपना संपूर्ण अस्तित्व तुम्हारे सामने अर्पित कर सकूँ। तुम चाहे जैसे मेरी परीक्षा लो, मैं तैयार हूँ। अब मैं अपनी भविष्य की संभावनाओं पर कोई ध्यान नहीं देता, और न ही मैं मृत्यु के जुए से बँधा हूँ। ऐसे हृदय के साथ, जो तुमसे प्रेम करता है, मैं जीवन के मार्ग की तलाश करना चाहता हूँ।
2 हर बात, हर चीज—सब तुम्हारे हाथों में है; मेरा भाग्य तुम्हारे हाथों में है और तुमने मेरा पूरा जीवन ही अपने हाथों में थामा हुआ है। अब मैं तुमसे प्रेम करना चाहता हूँ, और चाहे तुम मुझे अपने से प्रेम करने दो या न करने दो, चाहे शैतान कितना भी विघ्न डाले, मैं तुमसे प्रेम करने के लिए दृढ़-संकल्प हूँ। मैं खुद परमेश्वर के पीछे जाने और उसका अनुसरण करने के लिए तत्पर हूँ। अब भले ही परमेश्वर मुझे त्याग देना चाहे, मैं फिर भी उसका अनुसरण करूँगा। वह मुझे चाहे या न चाहे, मैं फिर भी उससे प्रेम करता रहूँगा, और अंत में मुझे उसे प्राप्त करना होगा। मैं अपना हृदय परमेश्वर को अर्पण करता हूँ, और चाहे वह कुछ भी करे, मैं अपने पूरे जीवन उसका अनुसरण करूँगा। चाहे कुछ भी हो, मुझे परमेश्वर से प्रेम करना चाहिए और उसे प्राप्त करना चाहिए; मैं तब तक आराम नहीं करूँगा, जब तक मैं उसे प्राप्त नहीं कर लेता।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, प्रार्थना के अभ्यास के बारे में
इस भजन को अपने मन में बार-बार गुनगुनाते हुए मुझे पिछले सभी युगों के संतों की शहादत याद आ गई। स्तिफनुस को पत्थरों से मार डाला गया था, याकूब का सिर कलम कर दिया गया था, पतरस को परमेश्वर के लिए सूली पर उलटा लटकाया गया था...। उन सभी ने परमेश्वर की गवाही देने के लिए अपने जीवन बलिदान कर दिए, लेकिन थोड़ी-सी पीड़ा के बाद ही मुझे लगा कि मैं इसे और नहीं सह सकती। मैंने देखा कि मुझमें बहुत कम आस्था थी, और मैंने मन ही मन एक खामोश शपथ ली : पुलिस चाहे मुझे कितना भी प्रताड़ित करे, मैं कभी परमेश्वर को धोखा नहीं दूँगी और न ही अपने भाई-बहनों के साथ विश्वासघात करूँगी। चमत्कारी ढंग से, दो फ्लैशलाइटों से प्रकाश की तेज किरणें मेरे सामने आ रही थीं, लेकिन मुझे बिलकुल भी चकाचौंध महसूस नहीं हुई। ऐसा लग रहा था कि मानो मैं दो मोमबत्तियों की रोशनी देख रही हूँ। मैं प्रफुल्लित हो गई, और मैंने अपने दिल में परमेश्वर को धन्यवाद दिया। मैं जान गई कि यह सब परमेश्वर की देखभाल और सुरक्षा है। बाद में एक पुलिस अधिकारी ने कहा, “सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास करने वाले तुम जैसे लोगों के बेटे-बेटियाँ सेना में शामिल नहीं हो सकते या सार्वजनिक सेवा में काम नहीं कर सकते।” उसने यह भी कहा कि वह मेरी तसवीर इंटरनेट पर पोस्ट कर देगा और अफवाहें फैलाएगा कि मैंने कलीसिया को धोखा दे दिया है, ताकि सभी भाई-बहन मुझे नकार दें। मुझे पता था कि यह उनकी चालों में से एक है, और मैंने समर्पण नहीं किया।
अगले दिन दोपहर के करीब दो बजे एक पुलिस अधिकारी आया। उसने यह कहकर मुझे बरगलाने की कोशिश की, “अगर तुम अभी हमें कुछ नहीं बताना चाहती, तो कोई बात नहीं। अगर तुम परमेश्वर में अपनी आस्था का त्याग करने वाला एक पत्र लिख दो, तो हम तुम्हें घर जाने देंगे और फिर कभी परेशान नहीं करेंगे। मुझे तुमसे यह वादा करने का अधिकार है।” वह मुझ पर पत्र लिखने के लिए दबाव डालता रहा, लेकिन मैंने मना कर दिया। वह भड़क गया और आगबबूला होकर उसने मुझे सात-आठ बार थप्पड़ मारे, फिर एक और पुलिस अधिकारी भी आ गया और उसने मेरी पिंडली की हड्डी पर बुरी तरह से लात मारी, जिससे मेरे शरीर में तेज दर्द होने लगा। मुझे मेरी पीठ के पीछे हथकड़ी लगा दी गई, और उसने मेरी पीठ एक हाथ से इतनी जोर से दबाई कि मेरा सिर टाइगर-चेयर के सामने लगी धातु की पट्टी को छू गया, और उसने अपने दूसरे हाथ से मेरी हथकड़ी जितनी हो सकी, उतनी ऊपर उठा दी। ऐसा लगा, जैसे मेरी कलाई का मांस मेरी हड्डियों से छीलकर निकाला जा रहा हो। मैं दर्द से चीख उठी। इस समय मुझसे पूछताछ करने वाले पुलिस अधिकारी ने भी आकर मेरी पिंडली की हड्डी पर लात मारी और चिल्लाया, “तुम घर जाना चाहती हो या अपने परमेश्वर को चाहती हो? तुम केवल एक को चुन सकती हो। अब मुझे जवाब दो!” मैंने जवाब नहीं दिया। उन्होंने मेरी पीठ जितना हो सका, आगे की ओर दबाई और मेरी हथकड़ी फिर से चार बार ऊपर उठाई, और केवल तभी रुके, जब उन्होंने देखा कि मुझे ऐंठन होने लगी है। मुझे चक्कर आ रहा था, मेरे दोनों हाथ सुन्न हो गए थे, मुझे लगा मेरी छाती में जकड़न होने लगी है, मेरे पूरे शरीर में ऐंठन हो रही थी, और मैं होश खोने लगी थी। मैं अपने दिल में प्रार्थना कर परमेश्वर से मुझे अपने भाई-बहनों और परमेश्वर को धोखा देने से बचाने के लिए कहती रही। पुलिस मुझे कितना भी प्रताड़ित करे, मैं दृढ़ता से खड़ी रहूँगी और बड़े लाल अजगर को अपमानित करूँगी। पुलिस मुझ पर लगातार सवाल करके दबाव डालती रही और पूछती रही कि मैं घर जाना चाहती हूँ या परमेश्वर को चाहती हूँ। मैंने कहा, “मैं परमेश्वर को कभी नहीं छोड़ूँगी!” एक अधिकारी इतना गुस्सा हुआ कि मेरी तरफ आँखें तरेरकर चिल्लाया, “तुम इतनी जिद्दी हो कि तुमने अपना दिमाग खो दिया है! तुम्हारा कुछ नहीं हो सकता!” अंत में, उन्हें मुझसे कुछ नहीं मिला, इसलिए मुझे बंदीगृह भेज दिया गया, और फिर 15 दिनों की हिरासत के बाद रिहा कर दिया गया। मैं जान गई कि यह परमेश्वर की सुरक्षा और मार्गदर्शन था, जिसने मुझे इस बार मजबूती से खड़ा रहने दिया था।
मेरे घर लौटने के बाद पुलिस ने मुझ पर और कड़ी निगरानी रखी। ग्राम महिला संघ की निदेशक अक्सर मेरी स्थिति के बारे में जानने के लिए मेरे घर आ जाती। मेरा परिवार और पड़ोसी भी मुझ पर नजर रखते। पुलिस यह देखने के लिए लगभग हर महीने मेरे घर आ जाती कि क्या मैं अब भी परमेश्वर में विश्वास करती हूँ। मुझे याद है, एक महीने पुलिस चार बार मुझसे मिलने आई। अक्तूबर 2020 में नगर सरकार के तीन प्रतिनिधि आए और बोले, “हम तीन साल से तुम्हारी निगरानी कर रहे हैं। आज हम यहाँ तुमसे यह वादा करने वाला पत्र कि तुम परमेश्वर में विश्वास नहीं करती, एक आलोचना और भंडाफोड़ करने वाला पत्र, और कलीसिया से अलग होने का एक पत्र लिखकर देने के लिए कहने आए हैं। ये पत्र लिख दो, और हम तुम्हारा नाम काली सूची से हटा देंगे। हम फिर तुम्हारी निगरानी नहीं करेंगे, तुम एक आम इंसान की तरह आजादी से जी सकती हो, और तुम्हारे बेटे का भविष्य भी प्रभावित नहीं होगा।” जब मैंने यह सुना, तो मुझे बहुत गुस्सा आया। मैंने सोचा, “तुम सच में नीच हो! तुम मुझसे परमेश्वर को धोखा दिलवाने के लिए हर वह तरीका आजमा रहे हो, जिसके बारे तुम सोच सकते हो, लेकिन तुम मुझे मूर्ख नहीं बना सकते!” मैंने उन्हें मौके पर ही मना कर दिया। तब जिला पार्टी कमेटी के सचिव ने कहा, “तो हम इसे तुम्हारे लिए क्यों न लिख दें? तुम इसे लिखने का दिखावा कर देना, और हम अपने वरिष्ठ अधिकारियों को काम पूरा होने की सूचना देने के लिए तुम्हारी एक तसवीर ले लेंगे। हम तुम्हें परेशान करने के लिए यहाँ नहीं आते रहना चाहते।” उनके पाखंडी वचनों ने मेरे मन में नफरत पैदा कर दी। मुझे याद आया कि मैं अपने हितों की रक्षा के लिए पहले शैतान की चाल में पड़ गई थी, और “तीन पत्रों” पर हस्ताक्षर करके परमेश्वर को धोखा दे दिया था। उस अपमान की छाप मेरे दिल में गहराई से अंकित थी। मैंने मन ही मन सोचा, “भले ही तुम मेरे शेष जीवन भर मेरी निगरानी करो, भले ही तुम मुझे गिरफ्तार कर लो और मुझे सजा दे दो, फिर भी मैं कभी परमेश्वर को धोखा नहीं दूँगी।” अंत में, उन्होंने देखा कि मैं दृढ़ हूँ, और खिन्न होकर लौट गए।
दो बार गिरफ्तार होने के बाद हालाँकि मुझे बहुत यातनाएँ दी गईं और मैंने बहुत-कुछ सहा, फिर भी मैंने बहुत-कुछ हासिल किया। मैंने देखा कि मैं बहुत स्वार्थी और नीच थी, और मेरी परमेश्वर में कोई वास्तविक आस्था नहीं थी। मैंने परमेश्वर के धार्मिक स्वभाव की समझ भी प्राप्त की। परमेश्वर का धार्मिक स्वभाव न केवल प्रतापी और क्रोधी है, बल्कि लोगों के लिए बड़ी दया और उद्धार से भी भरा है। इस पूरी यात्रा के दौरान मैंने अपने लिए परमेश्वर के सच्चे प्रेम का अनुभव किया। इसके लिए मैं तहे-दिल से परमेश्वर की आभारी हूँ। आगे का मार्ग चाहे कितना भी कठिन और दुर्गम क्यों न हो, मैं अंत तक परमेश्वर का अनुसरण करूँगी!