30. रुतबे की चाह छोड़कर मैं आज़ाद हो गई

हाओ ली, चीन

अगस्त 2019 में, मैंने कलीसिया में अगुआ का पद संभाला। एक बार, एक सभा में जैसे ही मैंने अपनी सहभागिता पूरी की, एक बहन ने मुझसे कहा, “बहन हाओ ली, आपकी आज की सहभागिता वाकई प्रबुद्ध करने वाली थी। इसे सुनकर मेरी समस्या हल हो गई है।” दूसरी बहन भी उनकी हाँ में हाँ मिलाने लगी। उनकी आदर और सम्मान से भरी नजरें देखकर, मैं रोमांचित हो गई, फूला न समाते हुए मैंने सोचा : “मैं जरूर अन्य भाई-बहनों से बेहतर हूँ। वरना, वो मुझे क्यों चुनते?” चूँकि मैंने सभाओं में कुछ समस्याओं को काफी अच्छे से हल किया था, इसलिए अन्य लोग मेरे साथ रहना पसंद करने लगे, जब उन्हें समस्या या परेशानी होती, तो सहभागिता के लिए वे मेरे पास ही आते थे। मुझे लगा कि मैं अगुआ बनने के काफी योग्य हूँ। मैं ना चाहते हुए भी खुद को बड़ा और महान समझने लगी, मुझे दूसरों की नजर में सम्मान और प्रशंसा पाना अच्छा लगता था।

एक दिन जब मैं हमेशा की तरह उपयाजकों की सभा में गई, तो बहन वू झीकिंग ने मुझे बताया कि वो इन दिनों अहंकारी स्वभाव की बन गई थीं और अपने साथ काम करने वालों के बीच हमेशा सभी फैसले खुद लेना चाहती थीं। उन्हें पता था कि उनका यह बर्ताव सही नहीं है, मगर वो खुद को त्याग नहीं पा रही थीं। उन्होंने हमसे कुछ सहभागिता साझा करने के लिए कहा, ताकि उन्हें थोड़ी मदद मिल सके। मैं सहभागिता शुरू करने ही वाली थी, तभी सुसमाचार की उपयाजक बहन हान जिंग्यी अपनी बात कहने लगीं, और कुछ संबंधित परमेश्वर के वचन और अपने कुछ अनुभव साझा करने लगीं। मैंने देखा कि झीकिंग ध्यान से उनकी बात सुन रही थीं, उनकी बातों पर सिर हिलाकर अपनी सहमति भी दिखा रही थी, उसके चेहरे पर मुस्कान थी। ये देखकर मैं काफी परेशान हो गई, मैंने सोचा, “अगुआ तो मैं हूँ, इस समस्या को मुझे हल करना चाहिए। आप मुझसे ये क्यों छीन रही हैं? आपकी वजह से ऐसा लग रहा है कि मैं ये सब खुद नहीं संभाल सकती? नहीं, मैं आपको किसी हाल में अपनी जगह नहीं लेने दूँगी, नहीं तो सबको लगेगा कि अगुआ होकर, मैं एक मामूली उपयाजक से हार गई। मुझे कुछ भी करके फ़ौरन विषय बदलना होगा।” इसलिए जिंग्यी की बात खत्म होते ही, बिना ये सोचे कि झीकिंग की समस्या अच्छी तरह हल हुई या नहीं, मैंने फौरन कहा : “फ़िलहाल परमेश्वर का मुख्य इरादा राज्य का सुसमाचार फैलाना और इसकी गवाही देना है, ताकि अधिक लोग उसकी वाणी सुन सकें और जल्द से जल्द उसके सामने आ सकें।” संगति करते हुए, मेरी नजर झीकिंग पर टिकी थी, और जब तक मैंने उन्हें मेरी बातों पर ध्यान देते नहीं देखा, तब तक मेरा मन शांत नहीं हुआ। मेरी बात पूरी होते ही, जिंग्यी सुसमाचार साझा करने को लेकर अपने कुछ अपेक्षाकृत अच्छे विचार रखने लगीं। उनकी बातें बिलकुल स्पष्ट थीं और मैंने देखा झीकिंग ध्यान से उनकी बात सुन रही थी और सुनते हुए अपना सिर हिला रही थी। मुझे काफी गुस्सा आने लगा, जैसे कि ये मेरे लिए कोई शर्म की बात हो। मैंने सोचा, “मैं एक अगुआ हूँ और आप मामूली उपयाजक। अगर आप इसी तरह सबकी सहमति पाने लगीं, तो मैं अपना काम कैसे करूँगी? अगर सब आपकी ही बात सुनने लगे, तो मुझे कौन पूछेगा?” यह विचार मन में आते ही, मैं जिंग्यी की बात बीच में ही काटते हुए, अपनी सहभागिता साझा करने लगी। माहौल बहुत अजीब हो गया था। उस दिन दोपहर को झीकिंग ने बताया कि सिंचन के कार्य पर बहुत कम लोग काम कर रहे हैं, और उसे पता नहीं था कि समस्या को कैसे हल करना है। इस पर जिंग्यी ने कुछ व्यावहारिक तरीकों पर संगति करना शुरू कर दिया और अपने अनुभव भी इसमें जोड़ दिए। तभी मैंने झीकिंग को बार-बार उनकी हाँ में हाँ मिलाते देखा, इससे मुझे बहुत ईर्ष्या हुई। मैंने सोचा, “अगुआ मैं हूँ। आपको क्या लगता है, मैं उनके साथ सहभागिता नहीं कर सकती? आपको लगता है कि आप बहुत काबिल हैं, लेकिन आप बस बिना कुछ सोचे-समझे दिखावा कर रही हैं।” मैं जिंग्यी से बहुत नाराज हो गई और सोचने लगी कि मुझे उनके काम की गहराई से जाँच करके उन्हें उनकी जगह दिखा देनी चाहिए, ताकि वो इस तरह दिखावा न करें। इस पर सोचने के बाद, मैंने उनसे पूछा, “जिंग्यी, आप जिन समूहों के सुसमाचार के काम का प्रबंधन कर रही हैं वे ज़्यादा सफल नहीं रहे हैं। क्या ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि उसमें आपका मन नहीं लगता?” इस सवाल पर, जिंग्यी थोड़ी परेशान दिखने लगीं, फिर उन्होंने कहा, “बहन, मैं आपकी बात से सहमत हूँ। वापस जाकर मैं इस पर विचार करूँगी कि ये काम सफल क्यों नहीं हो सका, और खुद पर भी विचार करूँगी।” मैंने अपनी बात जारी रखते हुए कहा, “तब वापस जाकर आपको फौरन इस भटकाव का सार समझ कर इसे बदलने की जरूरत है। एक अच्छी सुसमाचार उपयाजिका के नाते, आपको अगुआई की भूमिका लेनी है। वरना, भाई-बहनों को सुसमाचार फैलाने की प्रेरणा कैसे मिलेगी?” जवाब में, जिंग्यी ने थोड़ी बेरुखी से अपना सिर हिलाया। उन्हें चुपचाप अपना सिर नीचा किए देखकर मुझे थोड़ा पछतावा हुआ, लेकिन मैं दिल से खुश भी थी : “अभी तो आप बहुत घमंड दिखा रही थीं जैसे मेरा आपसे कोई मुकाबला ही नहीं, अब क्या हो गया? जैसे ही मैंने आपके काम के बारे में पूछा, तो आपका चेहरा उतर गया। खुद से अब उतनी खुश नहीं हैं ना?” इस तरह मैंने अपनी मौजूदगी वापस पा ली, एक बार फिर अधिकार के साथ बात करने लगी और दूसरे काम के लिए व्यवस्थाएं करने लगी। अब तक काफी अँधेरा हो चुका था, और उस दिन झीकिंग और मेरे पास चर्चा के लिए दूसरे काम पड़े थे। वैसे तो मैं चाहती थी कि जिंग्यी रुककर हमारे साथ बातों पर चर्चा करे, मगर मुझे डर था कि कहीं वो दोबारा सबका ध्यान अपनी ओर ना खींच लें। इससे तो मैं अनाड़ी ही लगूँगी, है ना? इसलिए मैंने सोचा कि उनका घर जाना ही बेहतर रहेगा। उन्हें उदासी के भाव लिए जाते देख, मैंने खुद को दोषी महसूस किया और सोचने लगी कि कहीं वो मेरे आगे बेबस तो महसूस नहीं कर रहीं। लेकिन उस वक्त मैंने इस बात को ऐसे ही जाने दिया और ज़्यादा सोच-विचार नहीं किया। मैंने यह ख़याल अपने दिमाग से हटा दिया।

कुछ दिन और बीतने के बाद, मैंने अपने साथ काम करने वाली बहन ली सिक्सिंग को जिंग्यी के प्रति अपने बर्ताव के बारे में बताया, उन्होंने यह कहते हुए मेरी काट-छाँट की, “यह एक मसीह विरोधी स्वभाव है। जब आप, एक अगुआ होने के नाते, अपने से बेहतर इंसान को अलग-थलग करके उसे तंग करती हैं, तो यह बड़ी गंभीर समस्या है। क्या कलीसिया के अन्य प्रतिभाशाली सदस्य आपकी अगुआई में बर्बाद नहीं हो जाएँगे?” ये सुनकर मुझे काफी निराशा और बेचैनी हुई। तब जाकर मुझे अपनी समस्या की गंभीरता का एहसास हुआ। मैंने जिंग्यी के साथ अपनी बातचीत पर विचार किया। मैंने उनकी कमियों का सहारा लेकर उन्हें दरकिनार किया ताकि वो मुझसे आगे न निकल पाए। क्या मैं उन्हें दबा नहीं रही थी? मैंने दुष्टता की थी! अपने बर्ताव के बारे में जितना ज़्यादा सोचती, मुझे उतना ही डर लगने लगता, इसलिए मैं परमेश्वर के सामने जाकर प्रार्थना करने लगी : “हे परमेश्वर! आज सिक्सिंग ने मेरी काट-छाँट की, तब जाकर मुझे एहसास हुआ कि जिंग्यी पर दबाव बनाकर और उन्हें अलग करके मैं मसीह विरोधी स्वभाव का प्रदर्शन कर रही थी। इतना महत्वपूर्ण काम लेकर, अगर मैंने इस स्वभाव का समाधान नहीं किया, तो न जाने मैं और कितने बुरे काम करूँगी! हे परमेश्वर! मैं बदलना चाहती हूँ—कृपा करके मेरा मार्गदर्शन कीजिये।”

उसके बाद, मैंने परमेश्वर के वचनों का यह अंश पढ़ा : “मसीह-विरोधी परमेश्वर के घर और कलीसिया की संपत्ति से सब-कुछ हर लेते हैं और उससे अपनी निजी संपत्ति के समान पेश आते हैं, जिसका प्रबंधन बिना किसी और के हस्तक्षेप के उन्हें ही करना होता है। कलीसिया का कार्य करते समय वे केवल अपने हितों, अपनी हैसियत और अपने गौरव के बारे में ही सोचते हैं। वे किसी को भी अपने हितों को नुकसान नहीं पहुँचाने देते, किसी योग्य व्यक्ति को या किसी ऐसे व्यक्ति को, जो अनुभवात्मक गवाही देने में सक्षम है, अपनी हैसियत और प्रतिष्ठा खतरे में डालने तो बिल्कुल भी नहीं देते। और इसलिए, वे उन लोगों को कमजोर करने और प्रतिस्पर्धियों के रूप में बाहर करने की कोशिश करते हैं, जो अनुभवात्मक गवाही पेश करने में सक्षम होते हैं, और जो सत्य की संगति कर सकते हैं और परमेश्वर के चुने हुए लोगों को पोषण प्रदान कर सकते हैं, और वे हताशा से उन लोगों को बाकी सबसे पूरी तरह से अलग करने, उनके नाम पूरी तरह से कीचड़ में घसीटने और उन्हें नीचे गिराने की कोशिश करते हैं। सिर्फ तभी मसीह-विरोधी शांति का अनुभव करते हैं। अगर ये लोग कभी नकारात्मक नहीं होते और अपना कर्तव्य निभाते रहने में सक्षम होते हैं, अपनी गवाही के बारे में बात करते हैं और दूसरों की मदद करते हैं, तो मसीह-विरोधी अपने अंतिम उपाय की ओर रुख करते हैं, जो कि उनमें दोष ढूँढ़ना और उनकी निंदा करना है, या उन्हें फँसाना और उन्हें परेशान और दंडित करने के लिए कारण गढ़ना है, और ऐसा तब तक करते रहते हैं, जब तक कि वे उन्हें कलीसिया से बाहर नहीं निकलवा देते। सिर्फ तभी मसीह-विरोधी पूरी तरह से आराम कर पाते हैं। मसीह-विरोधियों की सबसे घातक और खराब चीज यही है। उन्हें सबसे अधिक भय और चिंता उन्हीं लोगों से होती है, जो सत्य का अनुसरण करते हैं और जिनके पास सच्ची अनुभवात्मक गवाही होती है, क्योंकि जिन लोगों के पास ऐसी गवाही होती है, उन्हीं का परमेश्वर के चुने हुए लोग सबसे अधिक अनुमोदन और समर्थन करते हैं, न कि उन लोगों का, जो शब्दों और सिद्धांतों के बारे में खोखली बकवास करते हैं। मसीह-विरोधियों के पास सच्ची अनुभवात्मक गवाही नहीं होती, न ही वे सत्य का अभ्यास करने में सक्षम होते हैं; ज्यादा से ज्यादा वे लोगों की चापलूसी करने के लिए कुछ अच्छे काम करने में सक्षम होते हैं। लेकिन चाहे वे कितने भी अच्छे काम करें या कितनी भी कर्णप्रिय बातें कहें, वे फिर भी उन लाभों और फायदों का मुकाबला नहीं कर सकते, जो एक अच्छी अनुभवात्मक गवाही से लोगों को मिल सकते हैं। अपनी अनुभवात्मक गवाही के बारे में बात करने में सक्षम लोगों द्वारा परमेश्वर के चुने हुए लोगों को प्रदान किए जाने वाले पोषण और सिंचन के परिणामों का कोई विकल्प नहीं है। इसलिए, जब मसीह-विरोधी किसी को अपनी अनुभवात्मक गवाही के बारे में बात करते देखते हैं, तो उनकी निगाह खंजर बन जाती है। उनके दिलों में क्रोध प्रज्वलित हो उठता है, घृणा उभर आती है, और वे वक्ता को चुप कराने और आगे कुछ भी कहने से रोकने के लिए अधीर हो जाते हैं। अगर वे बोलते रहे, तो मसीह-विरोधियों की प्रतिष्ठा पूरी तरह से नष्ट हो जाएगी, उनके बदसूरत चेहरे पूरी तरह से सबके सामने आ जाएँगे, इसलिए मसीह-विरोधी गवाही के बारे में बोलने वाले व्यक्ति को बाधित करने और दबाने का बहाना ढूँढ़ते हैं। मसीह-विरोधी सिर्फ खुद को शब्दों और सिद्धांतों से लोगों को धोखा देने देते हैं, वे परमेश्वर के चुने हुए लोगों को अपनी अनुभवात्मक गवाही देकर परमेश्वर को महिमामंडित नहीं करने देते, जो यह इंगित करता है कि किस प्रकार के लोगों से मसीह-विरोधी सबसे अधिक घृणा करते और डरते हैं। जब कोई थोड़ा कार्य करके अलग दिखने लगता है, या जब कोई परमेश्वर के चुने हुए लोगों को लाभ पहुँचाने, उन्हें शिक्षित करने और सहारा देने के लिए सच्ची अनुभवात्मक गवाही पेश करने में सक्षम होता है, और सभी से बड़ी प्रशंसा प्राप्त करता है, तो मसीह-विरोधियों के मन में ईर्ष्या और नफरत पैदा हो जाती है, और वे उन्हें अलग-थलग करने और दबाने की कोशिश करते हैं। वे किसी भी परिस्थिति में ऐसे लोगों को कोई काम नहीं करने देते, ताकि उन्हें अपने रुतबे को खतरे में डालने से रोक सकें। सत्य-वास्तविकताओं से युक्त लोग जब मसीह-विरोधियों के पास होते हैं, तो उनकी दरिद्रता, दयनीयता, कुरूपता और दुष्टता उजागर करने का काम करते हैं, इसलिए जब मसीह-विरोधी कोई साथी या सहकर्मी चुनता है, तो वह कभी सत्य-वास्तविकता से युक्त व्यक्ति का चयन नहीं करता, वह कभी ऐसे लोगों का चयन नहीं करता जो अपनी अनुभवात्मक गवाही के बारे में बात कर सकते हों, और वह कभी ईमानदार लोगों या ऐसे लोगों का चयन नहीं करता, जो सत्य का अभ्यास करने में सक्षम हों। ये वे लोग हैं, जिनसे मसीह-विरोधी सबसे अधिक ईर्ष्या और घृणा करते हैं, और जो मसीह-विरोधियों के जी का जंजाल हैं(वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद आठ : वे दूसरों से केवल अपने प्रति समर्पण करवाएँगे, सत्य या परमेश्वर के प्रति नहीं (भाग एक))। परमेश्वर के वचनों से मुझे पता चला कि मसीह विरोधी स्वभाव की खास बात यह है कि वे सत्ता को ही अपना जीवन समझ बैठते हैं, अपने कर्तव्य में हमेशा अधिकार जमाना और दूसरों को आदेश देना चाहते हैं। जैसे ही कोई उनसे आगे बढ़ जाता है, उनके रुतबे या सत्ता के लिए खतरा बनता है, तो वे उसे अलग करने और दबाने लगते हैं, यहाँ तक कि अनैतिक ढंग से कलीसिया के कार्य को नुकसान तक पहुँचा देते हैं। आत्मचिंतन करके मुझे एहसास हुआ कि जब से मैंने अगुआ का पद संभाला है, मैंने अपने कर्तव्य में अपनी जिम्मेदारियों और व्यावहारिक कार्य करने के तरीकों पर ध्यान देने के बजाय, अपने रुतबे से मिलने वाली इज्ज़त पर ध्यान देती रही। अपने रुतबे को बचाने के लिए मैंने किसी को खुद से आगे नहीं निकलने दिया। सत्य पर की गई जिंग्यी की सहभागिता से झीकिंग की समस्या हल हो गई थी। इससे पता चलता है कि उन्होंने अपनी जिम्मेदारी निभाई, यह वाकई एक अच्छी बात है, मगर मुझे झीकिंग की हालत ठीक होते देखकर कोई खुशी नहीं हुई। बल्कि मुझे डर था कि कहीं जिंग्यी मुझसे बेहतर ना दिखने लगें, और बेचैनी थी कि अगर ऐसा हुआ तो वह दूसरों के दिलों में मेरी जगह ले लेंगी और फिर कोई मेरा आदर नहीं करेगा। मैंने जानबूझकर विषय बदल दिया ताकि जिंग्यी को बोलने का मौका न मिले। उनकी संगति में जब मैंने उन्हें दूसरों की प्रशंसा पाते देखा, तो मैंने उनके काम के बारे में पूछकर जानबूझकर उनके लिए परेशानियाँ खड़ी कर दीं। उन्हें तब तक बुरा दिखाने की कोशिश करती थी, जब तक लोगों का ध्यान उन पर से हट नहीं जाता था। अपने पद को बनाए रखने के लिए, मैंने सत्य पर संगति करने में सक्षम एक इंसान पर दबाव बनाने और उसे अलग करने की ऐसी दुष्ट और नीच तरकीब का इस्तेमाल तक किया। मेरी प्रकृति वास्तव में पूरी तरह दुष्टतापूर्ण थी! क्या मैंने एक मसीह विरोधी स्वभाव उजागर नहीं किया? मैंने उस मसीह विरोधी के बारे में सोचा जिसे कलीसिया ने कुछ दिन पहले ही निकाल बाहर किया था। वो अलग विचार रखने वालों या उससे बेहतर काम करने वालों पर लगातार दबाव बनाता और उन्हें अलग-थलग कर देता था, उसने कलीसिया के कार्य के बारे में बिल्कुल नहीं सोचा। अंत में उसे इतने सारे बुरे कर्मों के कारण निष्काषित कर दिया गया। मैंने जिंग्यी के साथ जो कुछ भी किया, उसे देखते हुए मैं मसीह विरोधी से अलग कैसे थी? मैं तो मसीह विरोधी की राह पर चल रही थी।

बाद में, मैंने परमेश्वर के वचनों में यह पढ़ा : “तुम चाहे जो काम करो, वह महत्वपूर्ण हो या न हो, तुम्हारी मदद करने के लिए हमेशा कोई-न-कोई होना चाहिए, तुम्हें सुझाव और सलाह देने वाला, या तुम्हारे साथ सहयोग करते हुए काम करने वाला। काम को ज़्यादा सही ढंग से करने, कम गलतियाँ करने और कम भटकने का यही एकमात्र तरीका है—जो बहुत अच्छी बात है। विशेष रूप से परमेश्वर की सेवा करना बड़ी बात है और अपने भ्रष्ट स्वभाव का समाधान न करना तुम्हें खतरे में डाल सकता है! जिन लोगों का स्वभाव शैतानी होता है, वे कभी भी और कहीं भी परमेश्वर के प्रति विद्रोह और उसका विरोध कर सकते हैं। शैतानी स्वभाव के सहारे जीने वाले लोग कभी भी परमेश्वर को नकार सकते हैं, उसका विरोध कर उसे धोखा दे सकते हैं। मसीह-विरोधी बहुत मूर्ख हैं, उन्हें इस बात का एहसास नहीं है, वे सोचते हैं, ‘मुझे सत्ता पर कब्जा करने में काफी परेशानी हुई, तो मैं इसे किसी और के साथ क्यों साझा करूँ? इसे दूसरों को देने का मतलब है कि मेरे पास अपने लिए कुछ नहीं होगा, है न? बिना सामर्थ्य के मैं अपनी प्रतिभा और क्षमताओं का प्रदर्शन कैसे कर पाऊँगा?’ वे नहीं जानते कि परमेश्वर ने लोगों को जो सौंपा है वह सत्ता या रुतबा नहीं बल्कि कर्तव्य है। मसीह-विरोधी केवल सत्ता और हैसियत स्वीकारते हैं, वे अपने कर्तव्यों को एक तरफ रख देते हैं, व्यावहारिक कार्य नहीं करते। बल्कि सिर्फ प्रसिद्धि, लाभ और रुतबे के पीछे भागते हैं, और सिर्फ सत्ता पर कब्जा करना, परमेश्वर के चुने हुए लोगों को नियंत्रित करना और रुतबे के लाभों का आनंद लेना चाहते हैं। इस तरह से काम करना बहुत खतरनाक होता है—यह परमेश्वर का विरोध करना है! जो लोग अपना कर्तव्य ठीक से निभाने के बजाय प्रसिद्धि, लाभ और रुतबे के पीछे भागते हैं, वे आग से खेल रहे हैं, अपने जीवन से खेल रहे हैं। आग और जीवन से खेलने वाले लोग कभी भी बर्बाद हो सकते हैं। आज अगुआ या कर्मी के तौर पर तुम परमेश्वर की सेवा कर रहे हो, जो कोई सामान्य बात नहीं है। तुम किसी व्यक्ति के लिए काम नहीं कर रहे हो, और बिलों का भुगतान करने और रोजी-रोटी कमाने के लिए काम तो बिल्कुल नहीं कर रहे; इसके बजाय, तुम कलीसिया में अपना कर्तव्य निभा रहे हो। खासकर यह देखते हुए कि यह कर्तव्य तुम्हें परमेश्वर द्वारा सौंपे जाने से मिला था, इसे निभाने का क्या अर्थ है? यही कि तुम अपने कर्तव्य के लिए परमेश्वर के प्रति जवाबदेह हो, चाहे तुम इसे अच्छी तरह से करो या न करो; अंत में, परमेश्वर को हिसाब देना ही होगा, एक परिणाम होना ही चाहिए। तुमने जिसे स्वीकारा है वह परमेश्वर का आदेश है, एक पवित्र जिम्मेदारी है, इसलिए वह कितनी भी अहम या छोटी जिम्मेदारी क्यों न हो, यह एक गंभीर मामला है। यह कितना गंभीर है? छोटे पैमाने पर इसमें यह शामिल है कि तुम इस जीवन-काल में सत्य प्राप्त कर सकते हो या नहीं और यह भी शामिल है कि परमेश्वर तुम्हें किस तरह देखता है। बड़े पैमाने पर, यह सीधे तुम्हारे भविष्य और किस्मत से, तुम्हारे अंत से जुड़ा है; यदि तुम बुराई करते हो और परमेश्वर का विरोध करते हो, तो तुम्हें निंदित और दंडित किया जाएगा। जब तुम अपना कर्तव्य निभाते हो तो तुम जो कुछ भी करते हो, उसे परमेश्वर दर्ज करता है, और इसकी गणना और मूल्यांकन के परमेश्वर के अपने सिद्धांत और मानक हैं; जब तुम अपना कर्तव्य निभाते हो तो तुम जो भी प्रकट करते हो, उसके आधार पर परमेश्वर तुम्हारे अंत का निर्धारण करता है(वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद आठ : वे दूसरों से केवल अपने प्रति समर्पण करवाएँगे, सत्य या परमेश्वर के प्रति नहीं (भाग एक))। परमेश्वर के वचनों से मैंने जाना कि अगुआ या कार्यकर्ता होना एक महत्वपूर्ण कार्य है जिसे हल्के में नहीं लिया जा सकता। आप अहंकारी या मनमाने नहीं हो सकते। इसके लिए परमेश्वर का भय मानने वाला दिल होना और अन्य भाई-बहनों के साथ सामंजस्यपूर्ण सहयोग होना जरूरी है। इसके लिए अधिक सत्य की खोज करना और दूसरों के सुझाव सुनना जरूरी है ताकि गलत रास्ते पर चलने की संभावना न रहे। परमेश्वर हर किसी को एक अलग हुनर देता है और हर शख्स की अपनी एक अलग समझ होती है। एक अकेले इंसान के पास सीमित अनुभव होता है और वह चीजों को एक ही नजरिये से देख सकता है। अपने कर्तव्य में अच्छे नतीजे पाने के लिए हमें हर किसी के सहयोग की जरूरत होगी और इस तरह हम एक दूसरे की कमियों की भरपाई कर सकेंगे। जिंग्यी ने अभ्यास की कुछ ऐसी अच्छी तरकीबें सुझाई थीं जिनसे मेरी सहभागिता की कमियाँ अच्छी तरह दूर होती थीं। ये अच्छी बात थी! मगर मेरे लिए मेरा रुतबा सबसे महत्वपूर्ण था, इसलिए मैं बस दिखावा करना चाहती थी, ताकि लोग मेरा आदर करें, मेरी आराधना करें। जिंग्यी को अच्छी संगति करते और मुझसे सबका ध्यान खींचते देख, मैंने उसे अलग-थलग कर दिया और उसका दमन किया। क्या मैं इन शैतानी विषों के अनुसार जीवन नहीं जी रही थी, जैसे कि “सारे ब्रह्मांड का सर्वोच्च शासक बस मैं ही हूँ” और “केवल एक ही अल्फा पुरुष हो सकता है”? मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता था कि हमारी सभाएँ सफल रहती हैं या नहीं, भाई-बहनों को अपनी अवस्थाओं का समाधान मिला या नहीं। मैंने यह भी नहीं सोचा कि कहीं जिंग्यी मेरे कारण बेबस या दुखी तो नहीं हैं। मैंने एकचित्त होकर बस अपनी महत्वाकक्षाओं और इच्छाओं को पूरा करने का प्रयास किया। मैं कितनी नीच थी! मैं कलीसिया की अगुआ थी, मगर भाई-बहनों को परमेश्वर के सामने लाने में विफल रही। मैं दूसरों को परमेश्वर को परमेश्वर के बारे में जानने में मदद नहीं कर रही थी, बल्कि मैं उन्हें काबू में करके रखना चाहती थी, ताकि वे मुझे ऊँची नजर से देखें और मेरे आगे-पीछे घूमते रहें। यह परमेश्वर के खिलाफ जाना था, एक मसीह विरोधी के मार्ग पर चलना था! अगर मैंने पश्चात्ताप नहीं किया, तो मैं यकीनन परमेश्वर के स्वभाव का अपमान कर बैठूँगी और मुझे निकाल दिया जाएगा।

जिंग्यी के साथ अपने बर्ताव के बारे में सोचने पर, मुझे पता चला कि मेरा स्वभाव कितना अधिक दुर्भावनापूर्ण है, मुझमें जरा सी भी इंसानियत नहीं है। मुझे खुद से घृणा और नफ़रत महसूस होने लगी। मैं अपने शैतानी स्वभाव का जल्द-से-जल्द समाधान करने के लिए अभ्यास का मार्ग खोजना चाहती थी। फिर मैंने परमेश्वर के वचनों के पाठ का एक वीडियो देखा। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं : “परमेश्वर के कार्यों के सिद्धांत हैं। मानवजाति के प्रति उसका नजरिया स्नेह, विचारशीलता और प्रेम का है। परमेश्वर वह चाहता है, जो लोगों के लिए सबसे अच्छा है—यही परमेश्वर के सभी क्रियाकलापों के पीछे का स्रोत और मूल इरादा है। दूसरी ओर, शैतान अपनाप्रदर्शन करता है, लोगों पर चीजें थोपता है, उनसे अपनी आराधना करवाता है और उन्हें धोखा देता है, और उन्हें पतित बनने की ओर ले जाता है, ताकि वे धीरे-धीरे जीवित शैतान बन जाएँ और विनाश की ओर बढ़ जाएँ। लेकिन जब तुम परमेश्वर में विश्वास करते हो, तो अगर तुम सत्य समझकर उसे प्राप्त कर लेते हो, तो तुम शैतान के प्रभाव से बचकर उद्धार प्राप्त कर सकते हो—तुम्हें नष्ट होने के परिणाम का सामना नहीं करना पड़ेगा। शैतान लोगों को अच्छा करते हुए नहीं देख सकता, और उसे इस बात की परवाह नहीं कि लोग जीवित रहते हैं या मरते हैं; उसे सिर्फ अपनी, अपने लाभ और अपनी खुशी की परवाह है, और उसमें प्रेम, दया, सहनशीलता और क्षमा का अभाव है। शैतान में ये गुण नहीं हैं; ये सकारात्मक चीजें सिर्फ परमेश्वर में हैं। परमेश्वर ने मनुष्यों पर काफी मात्रा में कार्य किया है, लेकिन क्या उसने कभी इसके बारे में बात की है? क्या उसने कभी इसका वर्णन किया है? क्या उसने कभी इसकी घोषणा की है? नहीं, उसने ऐसा नहीं किया है। लोग परमेश्वर को चाहे कितना भी गलत समझें, वह वर्णन नहीं करता। ... परमेश्वर विनम्र और छिपा हुआ है, जबकि शैतान अपनी शान दिखाता है। क्या इनमें कोई अंतर है? दिखावा बनाम विनम्रता और प्रच्छन्नता : इनमें से कौन-सी चीजें सकारात्मक हैं? (विनम्रता और प्रच्छन्नता।) क्या शैतान को विनम्र कहा जा सकता है? (नहीं।) क्यों? उसके दुष्ट प्रकृति-सार को देखते हुए, वह रद्दी का एक बेकार टुकड़ा है; शैतान के लिए अपनी शान न बघारना एक असामान्य बात होगी। शैतान को ‘विनम्र’ कैसे कहा जा सकता है? ‘विनम्रता’ परमेश्वर का अंग है। परमेश्वर की पहचान, सार और स्वभाव उदात्त और आदरणीय हैं, लेकिन वह कभी दिखावा नहीं करता। परमेश्वर विनम्र और छिपा हुआ है, इसलिए लोगों को नहीं दिखता कि उसने क्या किया है, लेकिन जब वह ऐसी गुमनामी में कार्य करता है, तो लोगों को निरंतर समर्थन, पोषण और मार्गदर्शन मिलता है—और इन सब चीजों की व्यवस्था परमेश्वर करता है। क्या यह प्रच्छन्नता और विनम्रता नहीं है कि परमेश्वर इन बातों को कभी घोषित नहीं करता, कभी इनका उल्लेख नहीं करता? परमेश्वर विनम्र ठीक इसलिए है, क्योंकि वह ये चीजें करने में सक्षम है लेकिन कभी इनका उल्लेख या घोषणा नहीं करता, और लोगों के साथ इनके बारे में बहस नहीं करता। तुम्हें विनम्रता के बारे में बोलने का क्या अधिकार है, जब तुम ऐसी चीजें करने में असमर्थ हो? तुमने इनमें से कोई चीज नहीं की है, फिर भी इनका श्रेय लेने पर जोर देते हो—इसे बेशर्म होना कहा जाता है(वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद सात : वे दुष्ट, धूर्त और कपटी हैं (भाग दो))। परमेश्वर के वचनों के इस अंश ने मुझे दिखाया कि परमेश्वर कितना विनम्र और गूढ़ है। परमेश्वर सृष्टिकर्ता है, वह लगातार अपना कार्य करता है, मानवजाति का मार्गदर्शन करता है और हमें वो सब कुछ देता है जो हमारे जीवन के लिए जरूरी है, मगर वह कभी कोई दिखावा नहीं करता है। वह बस चुपचाप सत्य व्यक्त करता है और मानवजाति को बचाने का काम करता है। परमेश्वर का सार कितना प्यारा और कितना अच्छा है! लेकिन मैं तो जहाँ भी जाती वहाँ दिखावा करना चाहती थी। अगुआ का पद संभालने के बाद, मैंने खुद को ऐसे आसन पर बिठा दिया था जहाँ से नीचे बिल्कुल नहीं उतरना चाहती थी। जब मेरी बहन ने अभ्यास के अच्छे तरीकों पर संगति की, तो मैंने खुले मन से सत्य नहीं खोजा। मैं किसी को खुद से आगे बढ़ने नहीं देती थी। मैं बेहद अहंकारी थी! एक अगुआ होने के बावजूद मैं सत्य का अनुसरण करने वालों को विकसित या उनकी सिफारिश नहीं कर रही थी बल्कि मैंने उन्हें अलग-थलग करके दबाती थी। मैं बस अपने रुतबे को बचाने, दूसरों से अपना आदर और सम्मान करवाने के बारे में सोचती थी। मैं बिल्कुल बेशर्म थी, और मेरा चरित्र वाकई घिनौना था! मैं प्रार्थना के लिए फौरन परमेश्वर के सामने आई : “हे परमेश्वर! मेरा मसीह विरोधी स्वभाव बेहद गंभीर है। मैं तुम्हारे सामने पश्चात्ताप करना चाहती हूँ, मैं जमीन पर रहते हुए अपनी सही जगह से अपना कर्तव्य निभाना चाहती हूँ।” फिर मैं जिंग्यी के सुसमाचार फैलाने के तरीकों पर सबके साथ संगति करने के लिए हर एक समूह से जाकर मिली। उसके बाद, मैंने जिंग्यी के साथ रुतबे की होड़ में अपने द्वारा प्रदर्शित की गई भ्रष्टता और साथ ही अपने मसीह विरोधी स्वभाव को उजागर करके उसका विश्लेषण किया। इसे अभ्यास में लाकर मुझे बहुत शांति और सुकून महसूस हुआ।

उसके बाद, जब मैं खुद को रुतबे के लिए होड करने की स्थिति में पाती, तो मैं ध्यान लगाकर सत्य का अभ्यास करती थी। एक दिन मैं समूह के कुछ अगुआओं के साथ एक सभा में थी, और काफी सक्रिय रहने वाली बहन यांग ग्वांग शुरुआत से ही मुझे बहुत उत्साही नजर आयीं, वे दूसरों के सवालों का तत्परता से जवाब भी दे रही थीं। पूरे समय सबका ध्यान उन पर ही बना रहा। एक बार जब हम यह बात कर रहे थे कि नए विश्वासियों के लिए सभाओं को अलग-अलग कैसे बाँटा जाए, तो मेरे चुप होते ही यांग ग्वांग ने अपना अलग सुझाव प्रस्तुत किया। भले ही मुझे लगा कि उनकी बात सही है, लेकिन सभी भाई-बहनों को उनसे सहमत होते और सबका ध्यान उनकी ओर आकर्षित होते देख, मुझे मेरी इज्जत कम होती हुई लगी। मैंने सोचा, “यांग ग्वांग पर ही सबका ध्यान है, और मैं तो जैसे एक सहयोगी बन गई हूँ। अगुआ होने के बावजूद, क्या मैं किसी सहायिका जैसी नहीं लग रही?” जैसे ही मेरे मन में यह ख़याल आया, मुझे एहसास हुआ कि मैं फिर से रुतबे के चक्कर में पड़ रही थी, लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचना चाहती थी। मैंने चुपचाप परमेश्वर से प्रार्थना करते हुए कहा कि मैं अपने घमंड को छोड़कर, यांग ग्वांग के साथ मिलकर काम करना चाहती हूँ और मुझे अपनी इस गलत स्थिति को बदलने के लिए उसका मार्गदर्शन चाहिए। तभी, मुझे परमेश्वर के वचनों का यह अंश याद आया : “तुम्हें अगुआई की उपाधियाँ छोड़नी होंगी, हैसियत की गंदी अकड़ छोड़नी होगी, खुद को एक साधारण व्यक्ति समझना होगा, दूसरों के समान स्तर पर खड़े होना होगा, और अपने कर्तव्य के प्रति एक जिम्मेदार रवैया रखना होगा। अगर तुम हमेशा अपने कर्तव्य को एक आधिकारिक पदवी और हैसियत, या एक तरह की प्रतिष्ठा समझते हो, और कल्पना करते हो कि दूसरे लोग तुम्हारे पद की सेवा के लिए हैं, तो यह तकलीफदेह है, और परमेश्वर इसके लिए तुमसे घृणा करेगा और तुमसे नाराज होगा। अगर तुम मानते हो कि तुम दूसरों के बराबर हो, तो तुम्हारे पास परमेश्वर की ओर से थोड़ा ज्यादा आदेश और जिम्मेदारी है, अगर तुम खुद को उनके साथ समान स्तर पर रखना सीख सको, यहाँ तक कि झुककर पूछ सको कि दूसरे लोग क्या सोचते हैं, और अगर तुम ईमानदारी, बारीकी और ध्यान से उनकी बात सुन सको, तो तुम दूसरों के साथ सामंजस्यपूर्वक काम करोगे(वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद आठ : वे दूसरों से केवल अपने प्रति समर्पण करवाएँगे, सत्य या परमेश्वर के प्रति नहीं (भाग एक))। परमेश्वर के वचनों के इस अंश ने मुझे अभ्यास का मार्ग दिया। कलीसिया ने मुझे अगुआ के रूप में काम करने का मौका दिया था, यह मुझे रुतबा देने के लिए नहीं बल्कि मुझे सबके साथ मिलकर काम करने में समर्थ बनाने के लिए था ताकि मैं अपना कर्तव्य ठीक से कर सकूँ। मैं अपनी इज्जत और रुतबे के लिए या अपनी पहचान बनाने के लिए दूसरों से होड़ नहीं कर सकती। यांग ग्वांग का सुझाव सही था, इसलिए उसे मान लेना ही ठीक रहेगा। यह कलीसिया के कार्य के लिए सबसे सही रहेगा। उनकी बात पूरी होते ही, मैंने अपनी सहमति दिखाई और अन्य भाई-बहनों को उनके सुझाव के अनुसार काम करने के लिए कह दिया। मैं अब दिल ही दिल में उनसे मुकाबला नहीं कर रही थी। उस सभा में, सभी ने खुले मन से अपने विचार साझा किए और सच कहूँ तो वह एक बहुत कामयाब मीटिंग थी। मुझे यह देखकर बहुत ख़ुशी हुई, मैं परमेश्वर के मार्गदर्शन की बहुत आभारी थी। मुझे एहसास हुआ कि रुतबे की बेड़ियों में बंधे बिना सबके साथ मिल-जुलकर काम करने से वाकई मुक्ति का एहसास होता है।

इस अनुभव द्वारा मैंने जाना कि अपने रुतबे को बचाने की खातिर कैसे मैंने दूसरों को अलग करती और उनका दमन करती थी। मैंने देखा कि कैसे मैं अपने शैतानी स्वभाव के अनुसार जी रही थी, कभी भी बुरे काम और परमेश्वर का विरोध करने में समर्थ थी। सत्य की खोज न करना बेहद खतरनाक है! परमेश्वर के वचनों के खुलासों और तथ्यों के प्रकाशन से, मैं साफ तौर पर देख पाई कि मैं गलत मार्ग पर चल रही थी और फिर खुद को थोड़ा-बहुत बदलने में सफल रही। मुझे सच में यह अनुभव हुआ कि अगर हम सच्चे दिल से सत्य की खोज और अपने भ्रष्ट स्वभाव का समाधान करने के लिए काम करते रहेंगे, तो परमेश्वर हमें मार्ग दिखाता रहेगा। सर्वशक्तिमान परमेश्वर का धन्यवाद!

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