61. दुख-दर्द के बीस दिन
दिसंबर 2002 में एक शाम करीब 4 बजे, मैं सड़क किनारे खड़ा फोन कर रहा था, तभी अचानक किसी ने पीछे से मेरे बालों और हाथों को खींचकर जकड़ लिया, और कुछ कर सकूँ इससे पहले, मेरे पैर हवा में थे। मेरा संतुलन बिगड़ गया और मैं बड़ी जोर से जमीन पर गिर पड़ा। बहुत-से लोगों ने मुझे जकड़ रखा था, मेरा चेहरा जमीन पर जोर से दबाया हुआ था, और हाथों को पीछे कर हथकड़ियाँ लगा दीं। फिर उन्होंने मुझे जमीन से उठाया, और घसीटते हुए एक बड़ी कार में ले गए। मैं समझ गया कि पुलिस ने मुझे गिरफ्तार कर लिया था। उनकी क्रूरता साफ दिख रही थी, मुझे गिरफ्तारी के बाद भाई-बहनों की क्रूर यातना की आपबीती याद आई। मैं बहुत घबराया और डरा हुआ था, फिक्र होने लगी कि यातना सह नहीं पाऊँगा, यहूदा बन जाऊँगा। पूरे सफर के दौरान मैं परमेश्वर से प्रार्थना करता रहा, उससे आस्था और शक्ति देने की विनती करता रहा, ताकि गवाही में मजबूत रह सकूँ, शैतान के आगे न झुकूँ।
पुलिस मुझे सीधे एक छोटे-से होटल में ले गई, जहां उन्होंने मेरी कमीज और जूते खींचकर निकाल दिए, बेल्ट खींच ली और मुझे नंगे पाँव बर्फीले फर्श पर खड़ा कर दिया। कमरे में बहुत सारे अफसर थे, एक अफसर मेरा फोटो ले रहा था। फिर, उनमें से किसी एक ने मुझे कुछ वीडियो फुटेज दिखाए, जिसमें मैं एक भाई के साथ बैंक में पैसे जमा कर रहा था, उसने पूछा कि पैसा कहाँ से आया था, किसे भेजा जा रहा था, और वह कहाँ रहता है। मैं हक्का-बक्का रह गया। समझ गया कि ये अफसर सिर्फ एक-दो दिन से मेरी निगरानी और पीछा नहीं कर रहे थे, और जितने अफसर वहाँ मौजूद थे, उन्हे देखकर लग नहीं रहा था कि वे मुझे आसानी से छोड़ेंगे। इस ख्याल से मैं बहुत डर गया, मैं मन-ही-मन परमेश्वर से लगातार प्रार्थना करता रहा। मैंने उसके कुछ वचन याद किए : “डरो मत; मेरी सहायता के होते हुए, कौन इस मार्ग में बाधा डाल सकता है? यह स्मरण रखो! इस बात को भूलो मत! जो कुछ घटित होता है वह मेरी नेक इच्छा से होता है और सबकुछ मेरी निगाह में है। क्या तुम्हारा हर शब्द व कार्य मेरे वचन के अनुसार हो सकता है? जब तुम्हारी अग्नि परीक्षा होती है, तब क्या तुम घुटने टेक कर पुकारोगे? या दुबक कर आगे बढ़ने में असमर्थ होगे?” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 10)। यह जानकर कि परमेश्वर सहारे के रूप में मेरे साथ है, मुझे उतनी घबराहट या उतना डर नहीं लगा। मैं जानता था कि मेरी गिरफ्तारी परमेश्वर की इजाजत से हुई थी, वह इस हालत का इस्तेमाल इस परीक्षा के लिए कर रहा था कि क्या मुझमें उसमें आस्था और उसके प्रति भक्ति है। मैं परमेश्वर का भरोसा नहीं तोड़ सकता था, मुझे तो अपनी गवाही में मजबूत रहने और शैतान को शर्मिंदा करने के लिए उसका सहारा लेना था। मैंने मन-ही-मन ठान ली कि पुलिस जैसी भी यातना दे, मैं कलीसिया के पैसों का ठिकाना नहीं बताऊंगा, न ही यहूदा बनूँगा भले ही मर ही क्यों न जाऊँ! मेरे कुछ भी न कहने पर, एक अफसर ने मुझे दनादन कई करारे थप्पड़ मारे, फिर पूछा कि हमारी कलीसिया का अगुआ कौन था, कलीसिया का पैसा कहाँ रखा था, और मेरे साथ पैसा जमा करा रहा आदमी कौन था। अब भी मेरे जवाब न देने पर उसने मुझे और थप्पड़ जड़े, फिर जब उसके हाथों में दर्द होने लगा तो उसने मेरे जूते उठाकर उसकी एड़ियों से मेरे मुँह पर वार किया। जल्द ही मेरा मुँह सूजने लगा, कुछ दांत ढीले हो गए, और मुँह के कोनों से खून रिसने लगा। मुझे घंटे भर से ज्यादा यातना देने के बाद आखिर उन्होंने थोड़ी साँस ली। वे जोड़ियों में बारी-बारी मुझ पर नजर रखने लगे, मुझे खड़ा ही रखा, जरा-भी सोने नहीं दिया। पूरे तीन दिन, तीन रात ऐसे ही खड़ा रखा। मुझे बहुत बाद में पता चला कि यातना के इस तरीके को “बाज को थकाना” कहते हैं, पुलिस वाले अक्सर पूछताछ में इसका इस्तेमाल करते हैं। इसमें वे किसी को तब तक जगाए रखते हैं जब तक वह अंदर से टूट न जाए, फिर जब वह साफ सोचने लायक नहीं रह जाता, तो वे उससे पूछताछ करते हैं। वे यह चाल लोगों से परमेश्वर को धोखा दिलवाने के लिए इस्तेमाल करते हैं। मेरा पूरा शरीर खस्ता हाल था, शारीरिक और मानसिक रूप से थक चुका था। मैं खड़े-खड़े ही सोने लगा, मगर झपकी लेते ही कोई अफसर मुझे क्रूरता से थप्पड़ जड़ देता, लात मार देता, या अचानक मेरे कान में जोर से चिल्लाता ताकि मैं डर के मारे जाग जाऊँ। तब लगता जैसे मेरा दिल धड़कते हुए सीने से बाहर उछल पड़ेगा। कभी तो मुझे सब समझ आता, कभी लगता कि मैं धुंध में हूँ, क्या सच है और क्या सपना समझ नहीं आ रहा था। बहुत दर्द हो रहा था, लगा अब और नहीं सह सकता, मुझे डर था कि ऐसा ही चलता रहा तो मैं जड़बुद्धि या पागल हो जाऊँगा। मैंने मन-ही-मन परमेश्वर से प्रार्थना की, उसकी गवाही में मजबूत रहने के लिए आस्था और शक्ति देने की विनती की।
एक सुबह, कुछ अफसर मुझसे पूछताछ करने आए। वे बोले, “मत सोच कि कुछ भी न बोलकर तू आसानी से बच निकलेगा। यहाँ आ गया है तो हमारे सवालों का साफ-साफ जवाब देना ही होगा! हम कई महीनों से तेरा पीछा कर रहे हैं। तुझे पकड़ने के लिए हमने सैटेलाइट पोजीशनिंग सिस्टम का इस्तेमाल किया, हमें तेरी हरकतों की पूरी जानकारी है। खुद कबूलने देकर हम तुझे एक मौका दे रहे हैं। तेरे पास ढेर सारे अलग-अलग सिम कार्ड हैं, अलग-अलग जगहों पर तेरी जान-पहचान के लोग हैं। तू अगुआ है, सही कहा न?” फिर उन्होंने मेरा कॉल-रिकॉर्ड निकाला जो एक मीटर से भी लंबा था, और मुझसे हरेक कॉल के बारे में बताने को कहा। मैं चौंक गया—अगर पुलिस मेरे बारे में इतना सब जानती है, और उसके ख्याल से मैं एक अगुआ हूँ, तो कौन जाने आज के बाद वे मुझे कैसी यातना देंगे! मैं चार-पांच दिन से सोया नहीं था, पहले ही लग रहा था कि अब और सहन नहीं होगा। मैंने कहीं सुना था कि सात-आठ दिन तक सोने पर अपने-आप मौत हो सकती है। मैं सोच में पड़ गया, इन्होंने मुझे सोने न दिया, तो क्या मैं मर जाऊँगा। कायरता महसूस करने पर मैंने जल्द प्रार्थना की : “हे परमेश्वर, मेरा शरीर कमजोर है, डरता हूँ कि यह सह नहीं पाऊंगा, मगर न तुम्हें धोखा देना चाहता हूँ, न ही अपने भाई-बहनों को। मुझे आस्था और शक्ति दो।” प्रार्थना के बाद परमेश्वर के कुछ वचन मन में कौंध गए : “विश्वास एक ही लट्ठे से बने पुल की तरह है : जो लोग घृणास्पद ढंग से जीवन से चिपके रहते हैं उन्हें इसे पार करने में परेशानी होगी, परन्तु जो आत्म बलिदान करने को तैयार रहते हैं, वे बिना किसी फ़िक्र के, मज़बूती से कदम रखते हुए उसे पार कर सकते हैं। अगर मनुष्य कायरता और भय के विचार रखते हैं तो ऐसा इसलिए है कि शैतान ने उन्हें मूर्ख बनाया है क्योंकि उसे इस बात का डर है कि हम विश्वास का पुल पार कर परमेश्वर में प्रवेश कर जायेंगे” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 6)। उसके वचनों ने मुझे जगा दिया—क्या मेरी जिंदगी और मौत परमेश्वर के हाथ में नहीं है? अगर परमेश्वर मुझे मरने नहीं देगा, तो शैतान क्या बिगाड़ लेगा। मुझमें परमेश्वर में कम आस्था थी; मैं डरपोक और कमजोर था, क्योंकि मैं दीन-हीन-सा जिंदगी से चिपका हुआ था। ये सब सोचकर थोड़ी शांति मिली, डर कम हुआ। मुझे अब भी चुप देखकर, एक अफसर ने मेरे सिर में मुक्का दे मारा। मुझे तारे नजर आने लगे, पूरा शरीर सुन्न पड़ गया, मानो मुझे बिजली का झटका लगा हो। मैं धराशायी होने वाला था। एक दूसरे अफसर ने लकड़ी का कोट-हैंगर उठाकर मेरी ठुड्डी में गड़ा दिया। जबरदस्त दर्द के बीच, मैंने उनसे पूछा, “परमेश्वर में मेरी आस्था कौन-सा कानून तोड़ती है? राष्ट्रीय संविधान में लोगों की आस्था की आजादी की बात साफ लिखी हुई है। आप किस आधार पर पीट-पीट कर मार डालना चाहते हैं? क्या इस देश में कोई कानून है भी?” उनमें से एक ने कहा, “इस देश में कानून? कानून क्या है? कम्युनिस्ट पार्टी कानून है! अब तुम हमारे हाथ में हो, जो पूछ रहे हैं वो नहीं बताया, तो यहाँ से जिंदा निकलने की सोचना भी मत।” इन लोगों की क्रूरता और बेशर्मी देखकर मुझे मतली-सी होने लगी, मैं आगबबूला हो गया, फिर मैंने और कुछ नहीं कहा।
एक दिन कुछ अफसरों ने दुष्टता से कहा, “हमारे पास तेरा मुँह खुलवाने के अपने तरीके हैं, बाद थोड़ा ही वक्त लगेगा। बताने से मना करेगा, तो और ज्यादा मुसीबत झेलनी पड़ेगी। तो तू एक अड़ियल बाज है? क्या तू जानता है, बाज कैसे थकते हैं? सब्र होना चाहिए, वक्त आने पर वह बाज अच्छा बनकर कहा मानने लगेगा...।” उस वक्त तक, मुझे इतनी ज्यादा यातना दी गई थी कि मैं ठीक से सोच नहीं पा रहा था, पता नहीं और कितने दिन टिक सकूँगा। बस जबरन चौकस रहने की कोशिश कर सकता था, स्पष्ट सोचने में सक्षम रहने की भरसक कोशिश कर सकता था। मैं प्रार्थना कर परमेश्वर को लगातार पुकारता रहा। फिर, मुझे परमेश्वर के ये वचन याद आए : “अंत के दिनों के लोगों के समूह के बीच मेरा कार्य एक अभूतपूर्व उद्यम है, और इस प्रकार, मेरी खातिर सभी लोगों को आखिरी कठिनाई का सामना करना है, ताकि मेरी महिमा सारे ब्रह्मांड को भर सके। क्या तुम लोग मेरी इच्छा को समझते हो? यह आखिरी अपेक्षा है जो मैं मनुष्य से करता हूँ, जिसका अर्थ है, मुझे आशा है कि सभी लोग बड़े लाल अजगर के सामने मेरे लिए सशक्त और शानदार ज़बर्दस्त गवाही दे सकते हैं, कि वे मेरे लिए अंतिम बार स्वयं को समर्पित कर सकते हैं और एक आखिरी बार मेरी अपेक्षाओं को पूरा कर सकते हैं। क्या तुम लोग वाकई ऐसा कर सकते हो? तुम लोग अतीत में मेरे दिल को संतुष्ट करने में असमर्थ थे—क्या तुम लोग अंतिम बार इस प्रतिमान को तोड़ सकते हो? मैं लोगों को आत्म-चिंतन करने का मौका देता हूँ; मुझे अंतिम जवाब देने से पहले, मैं उन्हें सावधानी से विचार करने का अवसर देता हूँ—क्या ऐसा करना गलत है? मैं मनुष्य की प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा करता हूँ, मैं उसके ‘प्रत्युत्तर पत्र’ का इंतज़ार करता हूँ—क्या तुम लोगों को मेरी अपेक्षाओं को साकार कर पाने का भरोसा है?” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 34)। परमेश्वर के वचनों ने यह समझने में मेरी मदद की कि वह बड़े लाल अजगर को मुझे गिरफ्तार कर सताने की इजाजत दे रहा है, ताकि मेरी आस्था और भक्ति को पूर्ण कर सके। परमेश्वर मुझे शैतान के सामने अपनी गवाही में मजबूत रहने का मौका प्रदान कर रहा था। परमेश्वर मेरी हर कथनी-करनी को जाँच रहा था—मुझे परमेश्वर का सहारा लेकर मजबूती से खड़ा रहना था। इस विचार ने मेरी आस्था और शक्ति को फिर से जगाया और लगा मेरी सोच पहले से ज्यादा स्पष्ट हो गई थी, अब मैं पहले जैसा उनींदा नहीं था, मुझे ज्यादा जोश महसूस हुआ। किनारे खड़े दो अफसरों ने आपस में कहा, “इस बंदे में कुछ तो बात है। इतने दिन सोए बिना भी इतना जोश है, जबकि हम दर्जन भर लोग पूरी तरह थक चुके हैं।” मैं जानता था कि यह पूरी तरह से परमेश्वर की दया और रक्षा है, मैंने दिल से परमेश्वर का धन्यवाद किया।
इसके बाद, उन्होंने मुझे जबरन उकडूँ बैठाया। सात दिन-रात बिना नींद और न के बराबर खाने के बाद, यूँ रहने की ताकत कहाँ से मिलती? टांगों के जवाब देने में ज्यादा वक्त नहीं लगा, और मैं गिर पड़ा। उन्होंने मुझे फिर से उकडूँ बैठा दिया। ताकत पूरी तरह खत्म हो जाने के कारण मैं दो बार गिर पड़ा, उकडूँ नहीं बैठ सका। फिर उन्होंने मुझे अपने सामने घुटनों पर बैठने को कहा। गुस्से में मन-ही-मन सोचा : “मैं सिर्फ परमेश्वर की आराधना के लिए घुटनों पर बैठता हूँ, इन राक्षसों के सामने कभी घुटने नहीं टेकूंगा।” जब मैंने दृढ़ता से इनकार किया, तो उनमें से दो ने गुस्से से मेरी बाँहें पकड़कर मुझे जबरदस्ती घुटनों पर लाने के लिए मेरी पिंडलियों पर लात मारी। मैं अब भी घुटनों पर नहीं हुआ, तो वे मेरी टांगों की पिंडलियों पर खड़े होकर जोर-जोर से दबाने लगे। इतना ज्यादा दर्द हुआ कि मेरा पूरा शरीर पसीना-पसीना हो गया। लगा, मौत इससे बेहतर होती। उन्होंने करीब एक घंटे तक मुझे ऐसी यातना दी, मेरी पिंडलियाँ नीली-हरी होकर सूज गईं, इसके बाद बहुत दिनों तक मैं लंगड़ाकर चलता रहा।
आठ दिन हो जाने पर भी वे मुझे सोने नहीं दे रहे थे। सब-कुछ धुंधला लग रहा था, तेज बुखार था, कान बज रहे थे। साफ सुन नहीं पा रहा था, सब चीजें दो-दो नजर आ रही थीं—बिना मार खाए एक मिनट भी होता, तो मैं बेहोश हो जाता। बाहर अभी भी बर्फ गिर रही थी, मगर पुलिस मुझे बाथरूम में खड़ा करके सिर पर बर्फीला ठंडा पानी फेंकती रही। वे जैसे ही छोड़ देते, मैं फर्श पर गिर पड़ता। एक पल स्पष्ट रहता, तो दूसरे पल उलझ जाता। मेरी मानसिक और शारीरिक दोनों हदें पार होने को थीं। इन डरावने दिनों के खत्म होने का जरा भी अंदाजा न होने के कारण मनोबल टूटने लगा, खाना भी नहीं खाना चाहता था।
नौवें दिन की शाम को, एक आदमी जो किसी लीडर जैसा लग रहा था, अंदर आया। उसने एक बिस्तर दिखाकर कहा, “तुम्हें बस इतना बताना है कि पैसा कहाँ से आया, तेरे साथ पैसे जमा करने वाला वह आदमी कहाँ है और अगुआ कौन है। मैं कह दूँ, तो तू नहा सकेगा, सो सकेगा, फिर हम तुझे घर जाने देंगे।” मैं शारीरिक रूप से पूरी तरह थक चुका था, कई बार जमीन पर गिर चुका था। मुझे लगा कि सो नहीं सका, तो किसी भी पल मर जाऊँगा। मैंने मन-ही-मन सोचा, “क्या मैं ऐसी कुछ बातें बता दूँ जो बहुत अहम नहीं हैं? अगर ऐसा ही चलता रहा, तो पिटाई से न मरूं, तो भी थकान और सो न पाने से मर जाऊंगा!” फिर फौरन एहसास हुआ कि ऐसा करने से यहूदा बन जाऊँगा। मैंने जल्द मन-ही-मन प्रार्थना की : “हे परमेश्वर! अब मुझसे सहन नहीं होता। मुझे आस्था और शक्ति दो। मैं अपनी गवाही में मजबूत रहकर शैतान को शर्मिंदा करना चाहता हूँ।” प्रार्थना करते हुए मुझे परमेश्वर के कुछ वचन याद आए : “इन अंत के दिनों में तुम लोगों को परमेश्वर की गवाही देनी चाहिए। चाहे तुम्हारे कष्ट कितने भी बड़े क्यों न हों, तुम्हें बिलकुल अंत तक चलना चाहिए, यहाँ तक कि अपनी अंतिम साँस पर भी तुम्हें परमेश्वर के प्रति निष्ठावान और उसके आयोजनों के प्रति समर्पित होना चाहिए; केवल यही वास्तव में परमेश्वर से प्रेम करना है, और केवल यही सशक्त और जोरदार गवाही है” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पीड़ादायक परीक्षणों के अनुभव से ही तुम परमेश्वर की मनोहरता को जान सकते हो)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे याद दिलाया कि यही वह समय है जब मुझे उसके प्रति अपनी गवाही में मजबूत रहना है, और इसके लिए कष्ट झेलकर उसके प्रति भक्ति दिखाने समर्थ होना चाहिए। मगर मैं कष्ट नहीं झेलना चाहता था, मैं तो अपना जीवन बचाने के लिए कलीसिया के हितों के साथ धोखा करने की सोच रहा था। मैं बहुत स्वार्थी और दुष्ट था—मुझमें इंसानियत कहाँ थी? यह गवाही कैसे हुई? इस विचार से मेरी आस्था और शक्ति लौट आई। मैं जानता था कि इसका अर्थ जान देना भी हो, तो भी मुझे गवाही में मजबूत रहकर परमेश्वर को संतुष्ट करना होगा। इसलिए मैं चुप रहा। यह देखकर, लीडर जैसे तेवर वाले उस इंसान ने मुझ पर नजर रखने वाले अफसरों से कहा, “इस पर नजर रखो। जब तक मुँह न खोले, सोने मत देना।” फिर वह बाहर चला गया।
दसवें दिन दोपहर में, पुलिस ने कई बहनों को गिरफ्तार कर लिया। वे उनसे अलग-अलग पूछताछ करना चाहते थे, चूँकि उनके पास मुझ पर नजर रखने के लिए ज्यादा लोग नहीं थे, तो उस रात आखिर मैं सो सका। अगली सुबह, चाइ नाम के एक पुलिस कप्तान ने कहा, “हम तेरे घर गए थे, तेरी माँ बूढ़ी हो चली है, उसकी सेहत भी कुछ ज्यादा अच्छी नहीं है, ऊपर से उसे तेरे दो बच्चों का भी ख्याल रखना पड़ता है। वे बड़ी मुश्किल में हैं। तेरी बीवी घर पर नहीं है, तेरे बच्चे छोटे हैं, उन्हें माँ-बाप की देखभाल चाहिए, वे तेरी राह देखते हैं। तेरा परिवार वाकई मुसीबत में है। हमने तुझे एक और मौका देने का सोचा है, बेहतर होगा तू ये मौका लपक ले। कल हमने कुछ और लोगों को पकड़ा है, बस इतना बता दे उनमें से अगुआ कौन है, पैसा कौन संभालता है, वे कहाँ रहते हैं, फिर हम तुझे तुरंत जाने देंगे। तू घर जाकर अपने परिवार के साथ रह सकेगा, उस इलाके में अच्छी नौकरी पाने में हम तेरी मदद करेंगे, ताकि तू उनकी देखभाल कर सके।” उसकी ये बातें सुनकर मैं अपने आँसू नहीं रोक सका, मुझे दर्द हो रहा था, कमजोर था। मेरी माँ और मेरे बच्चे कष्ट झेल रहे थे, मैं उनकी कोई मदद नहीं कर सकता था। लगा कि मैं उन्हें बहुत निराश कर रहा था। उस पल, मुझे एहसास हुआ कि मैं एक गलत अवस्था में हूँ, तो मैंने तुरंत परमेश्वर से प्रार्थना की, मुझे रास्ता दिखाने और मेरे दिल की निगरानी करने की विनती की। मुझे परमेश्वर के ये वचन याद आए : “मेरे लोगों को, मेरे लिए मेरे घर के द्वार की रखवाली करते हुए, शैतान के कुटिल कुचर्क्रों से हर समय सावधान रहना चाहिए ... ताकि शैतान के जाल में फँसने से बच सकें, और तब पछतावे के लिए बहुत देर हो जाएगी” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 3)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे फिर से याद दिलाया कि यह शैतान का एक प्रलोभन है। शैतान मुझसे परमेश्वर और भाई-बहनों को धोखा दिलवाने के लिए मेरे प्यार का इस्तेमाल कर मुझे प्रलोभन दे रहा था, ताकि पुलिस कलीसिया के पैसों को चुराकर उसके चुने हुए लोगों को नुकसान पहुँचा सके। मैं शैतान की चाल में नहीं फंसूंगा, उन्हें धोखा देकर शर्मिंदगी भरा जीवन नहीं जियूँगा। इसके कुछ ही देर बाद, वे बहनों को एक-एक कर अंदर ले आए ताकि मैं उनकी पहचान कर सकूँ, उनसे धीमे-धीमे पूरा घूमने को कहा ताकि मैं उन्हें साफ-साफ देख सकूँ। मैंने अपनी कनखियों से देखा कि तीनों अफसर मेरे हाव-भाव देख रहे थे, तो मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की कि वो मेरी निगरानी करे ताकि मैं उन्हें धोखा न दूँ। मैंने बहुत शांत महसूस किया, मैंने उनमें से हरेक को बिना किसी हाव-भाव के देखा और नहीं में सिर हिलाया। कैप्टन चाइ ने गुस्से से मुझे थप्पड़ मारा और चीखा, “मैं नहीं मान सकता कि तू इनमें से एक को भी नहीं जानता। दस दिन और बाज वाला इलाज करते हैं, तब देखेंगे तू क्या कहता है?” फिर वे लोग मुझसे सवाल पर सवाल करते रहे, कलीसिया का पैसा कहाँ रखा है, अगुआ कौन है। मैं फिर भी नहीं बोला, इसलिए वे दिन-रात मुझे यातना देते रहे, बिल्कुल सोने नहीं दिया। उनमें से एक मुझे थप्पड़ मारता, मेरी पिंडलियों में लात मारता, जोर से मेरे बाल खींचता या जब भी मुझे झपकी आ जाती, मेरे कानों को हाथों से घेरकर जोर से चिल्लाता। हर बार झटके से नींद खुलने पर मेरे चेहरे पर डर और दर्द का भाव देखकर वे सब ठहाके लगाते। मैं बहुत दुखी था, समझ नहीं आ रहा था कि और कितने दिन यह जिंदा मौत सह पाऊँगा। खास तौर से पुलिस की यह बात याद आने पर मैं और ज्यादा कमजोर पड़ गया कि “बाज को थकाने” वाले तरीके की कोई समय-सीमा नहीं होती, और यह तभी खत्म होता है जब आदमी कबूलता है।
अपनी यातना के बीसवें दिन तक, मैंने देखा कि पुलिस रुकने वाली नहीं थी, लेकिन मेरा शरीर हद पार करने की कगार पर था। हर बार जब फर्श पर गिरता, तो मुझमें खड़े होने या आँखें खोलने की भी ताकत नहीं रहती। मेरी चेतना धुंधलाती जा रही थी, सांस भी मुश्किल से चल रही थी। लगा कि मैं किसी भी पल मर जाऊंगा, बहुत डर लग रहा था। मैंने एक अफसर को चीखते सुना, “तेरे जैसे कट्टर लोगों को पीट-पीट कर मार डालें, तो भी कोई फर्क नहीं पड़ता! तुझे कहीं भी दफना देंगे, किसी को कभी पता नहीं चलेगा।” यह सुनकर मैं पूरी तरह से टूट गया। अगर मुझे पीट-पीटकर मारा डाला गया, तो मेरी माँ, पत्नी और बच्चे क्या करेंगे? मेरी माँ बूढ़ी है, उसे दिल की बीमारी और उच्च रक्तचाप है। मैं मर गया, तो क्या वह जिंदा रह सकेगी? मेरी पत्नी का दिल कितना दुखेगा? मेरे बच्चे अभी भी बहुत छोटे थे—वे कैसे जी पाएंगे? ये सब सोचते रहने की हिम्मत नहीं हुई। लगा, गले में कुछ अटक गया था, आँखों से आँसू बहते ही गए। जब मेरी कमजोरी और दर्द एक सीमा पर पहुँच रहे थे, तभी मैंने एक अफसर को कहते सुना, “हमें बस यह बता दे तू कहाँ रह रहा था, हम बात यहीं खत्म कर देंगे! वरना, हम ऐसा नहीं कर सकते। हम तेरे साथ हर रोज देर रात तक जागकर तकलीफ नहीं सहना चाहते।” मैंने मन-ही-मन सोचा, “आज रात इन्हें कुछ न बताऊँ, तो शायद मैं जिंदा न बचूँ। शायद मुझे कोई मामूली-सी बात बता देनी चाहिए। मेरी मेजबानी करने वाली बड़ी बहन आम विश्वासी है और उसके पास कलीसिया की बहुत थोड़ी-सी जानकारी है। उसके घर पर रहने की बात कबूलने से कलीसिया को कोई असली नुकसान नहीं होगा। इसके अलावा, मेरी गिरफ्तारी को 20 दिन हो चुके हैं, इसलिए उसके घर में रखी परमेश्वर के वचनों की सारी किताबें हटा दी गई होंगी। उन्हें उसकी आस्था का कोई सबूत नहीं मिला, तो वे एक बूढ़ी औरत को कुछ नहीं करेंगे, है न?” यह बात जब मन में आई तो मैंने परमेश्वर से प्रार्थना नहीं की, फिर जब पुलिस ने मुझे मेरी मेजबान बहन के घर के आसपास का स्केच दिखाया, तो मैंने बता दिया कि कौन-सा है। यह कहते ही, मुझे सब समझ आने लगा, मैं बिल्कुल जाग गया और अचानक लगा जैसे दिल में बिल्कुल अंधेरा-सा छा गया। मुझे समझ आ गया कि मैं यहूदा बन गया था, मैंने परमेश्वर के स्वभाव का अपमान किया था। मैं बहुत ज्यादा डर गया, कुछ बोलने लायक न रहा, अपराध-बोध और पछतावे से भर गया। मैं यहूदा कैसे हो गया, उस बहन को धोखा कैसे दे दिया? फिर एक पुलिस अफसर ने पूछा, “पैसा किस घर में रखा है? अगुआ कौन है? परमेश्वर के वचनों की किताबें कहाँ छपती हैं?” कुछ न बताने पर एक अफसर ने मुझे लात मारी। लेकिन उस पल बदन का दर्द मायने नहीं रखता था। दिल का दर्द बदन के दर्द से सैकड़ों गुना ज्यादा था। लगा जैसे छुरा दिल के आर-पार कर दिया गया हो, मैंने कितना चाहा कि घड़ी की सुई पीछे घुमा दूं, अपनी बात वापस ले लूँ, मगर बहुत देर हो चुकी थी। लगा, मेरी आत्मा खो गई है, मैंने कुछ नहीं कहा। यह देखकर कि उन्हें मुझसे कोई जानकारी नहीं मिल रही, उन्होंने मुझे एक हिरासत केंद्र भेज दिया।
हिरासत केंद्र में, सबके सामने, एक सुधार अफसर ने जांच के लिए मुझे नंगा करवा कर मेरे फोटो खींचे। 20 दिनों से मैंने न मुँह धोया था, न ही दांत साफ किए थे, मुझसे बहुत बदबू आ रही थी। तापमान शून्य से 10 डिग्री कम था, फिर भी उन्होंने मुझे नहाने को गर्म पानी नहीं दिया, हाथ-पैर धोने को ठंडा पानी ही दिया। मैं इतना थका हुआ था कि गिरने को था, बोलने की ताकत नहीं थी, हाजिरी के वक्त मेरे धीमे बोलने पर सुधार अफसर ने मेरे सीने पर बहुत ज़ोर से लात मारी। ऐसा दर्द हुआ जैसे तमाम अंदरूनी अंग हिल गए हों। फिर से सांस लेने में काफी समय लगा। उन्होंने मुझसे हिरासत केंद्र के नियम भी पढ़वाए, जब ठीक से नहीं पढ़ पाया, तो मुझे सजा के तौर पर फर्श पर पोंछा लगाना पड़ा, संडास साफ करने पड़े। मेरे हाथों की चमड़ी में दरारें हो गई थीं, जिनसे आसानी से खून रिसने लगता, हर रात मुझे दो घंटे खड़े रहकर चौकीदारी करनी पड़ती। मैं वह सारा शारीरिक दर्द बर्दाश्त कर रहा था, मगर बहन को धोखा देने के बाद से, मेरे दिन अपराध-बोध में गुज़र रहे थे, लग रहा था मुझ पर परमेश्वर और उस बहन का कर्ज है। खुद को माफ नहीं कर पा रहा था। उसने अपनी सुरक्षा को ताक पर रखकर मुझे अपने यहाँ रखा था, मगर मैंने खुद को बचाने के लिए उसे धोखा दे दिया। मुझमें जरा भी इंसानियत नहीं थी! परमेश्वर के इन वचनों ने खास तौर पर मेरे दिल को छू लिया : “मैं उन लोगों पर अब और दया नहीं करूँगा, जिन्होंने गहरी पीड़ा के समय में मेरे प्रति रत्ती भर भी निष्ठा नहीं दिखाई, क्योंकि मेरी दया का विस्तार केवल इतनी दूर तक ही है। इसके अतिरिक्त, मुझे ऐसा कोई इंसान पसंद नहीं, जिसने कभी मेरे साथ विश्वासघात किया हो, और ऐसे लोगों के साथ जुड़ना तो मुझे बिलकुल भी पसंद नहीं, जो अपने मित्रों के हितों को बेच देते हैं। चाहे जो भी व्यक्ति हो, मेरा यही स्वभाव है। मुझे तुम लोगों को बता देना चाहिए : जो कोई मेरा दिल तोड़ता है, उसे दूसरी बार मुझसे क्षमा प्राप्त नहीं होगी, और जो कोई मेरे प्रति निष्ठावान रहा है, वह सदैव मेरे हृदय में बना रहेगा” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, अपनी मंजिल के लिए पर्याप्त अच्छे कर्म तैयार करो)। परमेश्वर के वचन दिल पर छुरी की तरह थे, मेरा जमीर और ज्यादा अपराधी महसूस कर रहा था, जैसे मेरी परमेश्वर का सामना करने की औकात न हो। मुझे अच्छी तरह मालूम था कि परमेश्वर का स्वभाव पवित्र और धार्मिक है और इंसान द्वारा अपमान सहन नहीं करता, भाई-बहनों की कीमत पर खुद को बचाने वालों और अपनी चमड़ी बचाने वालों से वह घृणा करता है। मैंने उस बहन को धोखा दिया था, एक शर्मसार यहूदा बन गया था। इससे परमेश्वर को बहुत दुख पहुँचा, यह उसके लिए बहुत घिनौना था। इसके बारे में सोचना अपने दिल के टुकड़े करने जैसा था, मैं पूरी रात सो नहीं पाया। दर्द और अपराध-बोध में डूबा रहा।
कलीसिया का पैसा कहाँ रखा है और मैंने किनके साथ सुसमाचार साझा किया, इस बारे में पूछताछ करने के लिए कैप्टन चाइ हिरासत केंद्र में दो बार और आए। एक बार, उन्होंने दो बहनों की फोटो दिखाकर पहचानने को कहा, और चेतावनी दी कि अगर सच नहीं बताया, तो वे मुझे जरूर जेल में डलवा देंगे। पहले, मैंने खुद की जान बचाने के लिए उस बहन को धोखा दे दिया था, सच में परमेश्वर का दिल दुखाया था। दंडित होकर नरक में भेजा जाना कोई बड़ी बात नहीं होगी। इस बार, आजीवन जेल हो या मुझे मार डाला जाए, मैं अब कोई और जानकारी नहीं दूँगा। इसलिए मैंने बेझिझक होकर कहा, “मैं इन्हें नहीं जानता!” फिर कैप्टन चाइ ने जोर देकर कहा, “अच्छी तरह देख! सोच-समझ कर जवाब दे।” मैंने पक्का होकर कहा, “मैं इन्हें नहीं जानता!” मेरी दृढ़ता देखकर, एक दूसरे अफसर ने जोर से दो थप्पड़ लगाए, दर्द से मेरा चेहरा जलने लगा। लेकिन इस बार मुझे सुकून था।
फिर मैंने अपनी विफलता के कारणों के बारे में आत्मचिंतन किया। एक बात तो यह थी कि मैं अपने परिवार-मोह में बहुत फंसा हुआ था, इसलिए जब पुलिस ने यातना देकर जान लेने की धमकी दी, तो मैं अपनी माँ, बच्चों या पत्नी को नहीं छोड़ सका, डरता रहा कि अगर मैं मर गया, तो वे यह नहीं झेल पाएंगे, गुजारा नहीं कर पाएंगे। मैंने देह की आसक्तियों के लिए परमेश्वर को धोखा दिया था, उस बहन के साथ विश्वासघात किया, कपटी, बेशर्म यहूदा बन गया। मुझमें जरा भी इंसानियत नहीं थी! असल में, मेरे परिवार का भाग्य परमेश्वर के हाथ में था, उन्हें अपने जीवन में कितना दुख-दर्द सहना होगा, यह परमेश्वर द्वारा पहले ही तय कर दिया गया है। मैं न भी मरूं, उनके साथ रहूँ, तो भी उनके भाग्य में लिखे दुख-दर्द को नहीं बदल सकूँगा। मैं यह नहीं समझ पाया, अपनी भावनाओं में फंस गया। यह बड़ी बेवकूफी थी। एक दूसरा पहलू यह था कि मैं मौत का अर्थ पूरी तरह से नहीं समझता था। मैं जीवन का त्याग नहीं कर सकता था, यानी मैं परमेश्वर में सच्ची आस्था रखता ही नहीं था। थकान-यातना का बीसवाँ दिन आते-आते, मेरी चेतना धूमिल होती जा रही थी, सांस लेना मुश्किल हो रहा था, लग रहा था जैसे किसी भी पल मर जाऊँगा। सच में बहुत डर गया था, लगा जाने का वक्त आ गया है। मैंने तमाम युगों के सभी संतों को याद किया, जिन्होंने प्रभु का सुसमाचार फैलाने के लिए काम किया था। कुछ को पत्थरों से पीट कर मार डाला गया, और कुछ के सिर धड़ से अलग कर दिए गए, कुछ को सूली पर चढ़ा दिया गया। उन सभी को धार्मिकता के लिए सताया गया था, उन सबकी मृत्यु शैतान पर विजय की, शैतान को नीचा दिखाने की गवाही थी, और उन्हें परमेश्वर ने स्मरण रखा। भले ही उनका शरीर नष्ट हो गया, लेकिन उनकी आत्माएं परमेश्वर के हाथ में हैं। मुझे प्रभु यीशु की यह बात याद आई : “जो कोई अपना प्राण बचाना चाहे, वह उसे खोएगा; और जो कोई मेरे लिये अपना प्राण खोएगा, वह उसे पाएगा” (मत्ती 16:25)। मुझे अपनी आस्था के कारण गिरफ्तार कर यातना दी गई थी। यह एक धार्मिक प्रयोजन के लिए कष्ट सहना था। अगर पुलिस ने मुझे सचमुच मार-मारकर लूला-लंगड़ा बना दिया होता या मेरी जान ले ली होती, तो यह गर्व की बात होती। ऐसा सोचकर मुझे बड़ी राहत मिली, फिर मैंने ठान ली कि अब मैं कितने भी कष्ट सहूँ, मुझे अपनी जान भी गँवानी पड़े, तो भी मैं परमेश्वर की अपनी गवाही में मजबूत रहूँगा, अपने पुराने अपराधों की माफी माँगूंगा और किसी भी हाल में ऐसी बदनामी में नहीं जियूँगा।
जनवरी 2003 में, मेरी गिरफ्तारी को करीब दो महीने हो गए थे, मेरा वजन करीब 30 पाउंड घट गया था। जब वे हिरासत में लिए गए लोगों को बाहर निकल कर थोड़ी हवा लेने देते, तो आँगन के कुछ चक्कर लगाते ही मेरी साँस फूलने लगती थी। मैं बहुत कमजोर हो गया था, अफसरों को डर था कि कहीं मैं हिरासत में मर न जाऊँ, तो उन्होंने मुझे सिर्फ 18 महीने की सजा दी, जो जेल के बाहर काटी जा सकती थी। रिहा होने के बाद, मुझे जन सुरक्षा ब्यूरो को, महीने में दो बार अपने बारे में सूचना देनी थी, और हर तीसरे महीने अपनी सोच और विचारधारा के बारे में रिपोर्ट देनी थी। घर पहुँचने के बाद, मेरे अविश्वासी परिवार के सब लोग और दोस्त एकजुट होकर मुझे फटकारने के लिए आ गए। मुझे बहुत बुरा लगा। जेल में, बड़े लाल अजगर ने यातना देकर मुझे मार ही दिया था, अब घर आने पर, मुझे अपने परिवार की गलतफहमियों को बर्दाश्त करना पड़ रहा था। मैं कड़वी दवा निगलने के सिवाय कर भी क्या सकता था। बाद में मुझे पता चला कि मेरी गिरफ्तारी के बाद, पुलिस ने मेरे घर की तलाशी ली थी, मेरे परिवार को धोखा दिया था और उनसे ऐसी बातें कहीं कि मैं पैसा बनाने के धोखाधड़ी के कामों में लिप्त था। मैं आगबबूला हो गया। पुलिस ने मुझे गिरफ्तार कर यातना दी थी, यहूदा बनने और एक बहन को धोखा देने तक मुझे सताया, यहाँ तक कि मुश्किलें खड़ी करने और मेरे परिवार को मुझे अस्वीकारने पर मजबूर करने के लिए, झूठी बातें भी फैलाईं। मेरे शरीर का कतरा-कतरा कम्युनिस्ट पार्टी के उन दानवों से नफरत करता है!
जल्दी ही पुलिस फिर से मेरे पीछे पड़ गई, जिससे मुझे फरार होना पड़ा। मैं सीसीपी का एक भगोड़ा बन गया जिसकी उन्हें तलाश थी। मुझे नकली नाम रखकर छोटे-मोटे काम करने पड़े, मेरा अपना घर होकर भी वहाँ नहीं जा सकता था। कलीसिया से भी मेरा संपर्क टूट गया। पुलिस मेरे पीछे थी, मेरे परिवार ने मुझे ठुकरा दिया था, कलीसिया का जीवन नहीं जी पाना मेरे लिए कुछ ज्यादा ही कष्टदायक था। खासकर, लगता था कि एक यहूदा बनकर उस बहन को धोखा देना मेरे दिल पर गोदा हुआ था। मुझे हमेशा लगता रहा कि मैंने एक ऐसा पाप किया था जिसकी माफी नहीं है, आस्था का मेरा मार्ग पहले ही अपने अंत तक पहुँच गया है, और अब मेरे बचाए जाने की कोई उम्मीद नहीं है। इन विचारों के कारण मैं दर्द से तड़पता रहा और कमजोर हो गया।
मई 2008 में मैंने कलीसिया से दोबारा संपर्क किया और कर्तव्य निभाने लगा। फिर मैंने परमेश्वर के वचनों का यह अंश पढ़ा : “परमेश्वर के वचनों द्वारा जीते जाने के लिए प्रस्तुत प्रत्येक व्यक्ति के पास उद्धार के लिए पर्याप्त अवसर होगा; परमेश्वर द्वारा इनका उद्धार उसकी परम उदारता दिखाएगा। दूसरे शब्दों में, उनके प्रति परम सहनशीलता दिखाई जाएगी। अगर लोग गलत रास्ता छोड़ दें और पश्चात्ताप करें, तो परमेश्वर उन्हें उद्धार प्राप्त करने का अवसर देगा” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, मनुष्य के उद्धार के लिए तुम्हें सामाजिक प्रतिष्ठा के आशीष से दूर रहकर परमेश्वर की इच्छा को समझना चाहिए)। “प्रत्येक व्यक्ति के साथ परमेश्वर का व्यवहार उस व्यक्ति के हालात की वास्तविक परिस्थितियों और उस समय की पृष्ठभूमि के साथ-साथ उस व्यक्ति के क्रियाकलापों और व्यवहार और उसके प्रकृति-सार पर आधारित होता है। परमेश्वर कभी किसी के साथ अन्याय नहीं करेगा। यह परमेश्वर की धार्मिकता का एक पक्ष है। उदाहरण के लिए, हव्वा को साँप ने भले और बुरे के ज्ञान के वृक्ष का फल खाने के लिए बहकाया, लेकिन यहोवा ने उसे यह कहकर धिक्कारा नहीं, ‘मैंने तुम्हें इसे खाने से मना किया था, फिर भी तुमने ऐसा क्यों किया? तुममें विवेक होना चाहिए था; तुम्हें यह पता होना चाहिए था कि साँप ने केवल तुम्हें बहकाने के लिए वैसा कहा था।’ यहोवा ने हव्वा को इस तरह फटकारा नहीं। चूँकि मनुष्य परमेश्वर की रचना हैं, इसलिए वह जानता है कि उनकी सहज प्रवृत्तियाँ क्या हैं, वे सहज प्रवृत्तियाँ क्या करने में सक्षम हैं, किस हद तक लोग स्वयं को नियंत्रित कर सकते हैं, और लोग कहाँ तक जा सकते हैं। यह सब परमेश्वर बहुत स्पष्ट रूप से जानता है। मनुष्य के साथ परमेश्वर का व्यवहार उतना सरल नहीं है, जितना लोग कल्पना करते हैं। जब किसी व्यक्ति के प्रति उसका रवैया घृणा या अरुचि का होता है, या जब यह बात आती है कि वह व्यक्ति किसी दिए गए संदर्भ में क्या कहता है, तो परमेश्वर को उसकी अवस्थाओं की अच्छी समझ होती है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि परमेश्वर मनुष्य के हृदय और सार की जाँच करता है। लोग हमेशा सोचते रहते हैं, ‘परमेश्वर में सिर्फ उसकी दिव्यता है। वह धार्मिक है और मनुष्य का कोई अपराध सहन नहीं करता। वह मनुष्य की कठिनाइयों पर विचार नहीं करता या खुद को लोगों के स्थान पर रखकर नहीं देखता। अगर कोई व्यक्ति परमेश्वर का विरोध करता है, तो वह उसे दंड देगा।’ ऐसा बिलकुल नहीं है। अगर कोई उसकी धार्मिकता, उसके कार्य और लोगों के प्रति उसके व्यवहार को ऐसा समझता है, तो वह गंभीर रूप से गलत है। परमेश्वर द्वारा प्रत्येक व्यक्ति के परिणाम का निर्धारण मनुष्य की धारणाओं और कल्पनाओं पर आधारित नहीं होता, बल्कि परमेश्वर के धार्मिक स्वभाव पर आधारित होता है। वह प्रत्येक इंसान को उसकी करनी के अनुसार प्रतिफल देगा। परमेश्वर धार्मिक है, और देर-सबेर वह यह सुनिश्चित करेगा कि सभी लोग हर तरह से आश्वस्त हों” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, भाग तीन)। परमेश्वर के इन वचनों ने मेरे दिल को ऐसा छुआ कि मैं अपने आँसू नहीं रोक सका। मैं उस बच्चे की तरह था जिसने एक भयानक गलती कर दी हो और जिसमें घर लौटने की हिम्मत न हो, और जो दुनिया में बरसों भटकने के बाद अपनी माँ की गोद में लौट आया हो। मैं सचमुच परमेश्वर के सार की दया महसूस कर पा रहा था। मैंने उस बहन और परमेश्वर को धोखा दिया था, तो मैं दंड पाने के लायक था, मगर परमेश्वर मेरे अपराध के अनुसार मुझसे पेश नहीं आया। उसने मुझे प्रायश्चित का मौका दिया। मैं समझ सका कि परमेश्वर के स्वभाव में न्याय और क्रोध ही नहीं, कृपा और सहिष्णुता भी है। लोगों से व्यवहार में परमेश्वर सिद्धांतों का पूरा पालन करता है। वह उन्हें उनके क्षणिक अपराधों के अनुसार नहीं, बल्कि उनके कर्मों की प्रकृति और संदर्भ, और उस वक्त के उनके आध्यात्मिक कद के अनुसार सीमा में बांधता है। अगर कोई इंसानी कमजोरी के कारण कपटी हो जाता है, मगर वह अपने दिल से परमेश्वर को नकारता या धोखा नहीं देता, और बाद में परमेश्वर के सामने प्रायश्चित कर सकता है, तो वह उन्हें अब भी क्षमा करके एक और मौका दे सकता है। मैं समझ गया कि परमेश्वर का स्वभाव बहुत धार्मिक है। परमेश्वर मनुष्य के भ्रष्ट स्वभाव और धोखे से घृणा करता है, फिर भी वह हमें बचाने की भरसक कोशिश करता है। इससे मैं परमेश्वर के प्रति आभार से सराबोर हो गया और पहले से ज्यादा उसका ऋणी महसूस करने लगा। मैंने परमेश्वर का दिल बहुत दुखाया था और मैं खुद को पीटना चाहता था। मैंने ठान ली कि मेरा परिणाम जो भी हो, मैं परमेश्वर द्वारा दिए इस मौके को संजोऊँगा, सत्य खोजूँगा, और परमेश्वर के प्रेम की कीमत चुकाने के लिए अपना कर्तव्य निभाऊँगा।
सीसीपी की क्रूर यातना से गुजरने के बाद, मैं उसके परमेश्वर से घृणा करने और उसका जबरदस्त विरोध करने के दुष्ट रूप और दानवी सार को समझ सका। मैं शैतान से पहले से कहीं ज्यादा घृणा करता हूँ! मैंने खुद अनुभव किया कि मनुष्य को बचाने का परमेश्वर का कार्य बहुत व्यावहारिक और बुद्धिमत्तापूर्ण है—उसने मेरी आस्था और भक्ति को पूर्ण करने के लिए बड़े लाल अजगर का इस्तेमाल किया, मुझे अपने धार्मिक स्वभाव की थोड़ी समझ पाने और अपने वचनों के अधिकार और सामर्थ्य को समझने की अनुमति दी। इस पूरे अनुभव ने मुझे दिखाया कि मुश्किलें और परीक्षण मेरे लिए परमेश्वर के आशीष हैं, उसका प्रेम और उद्धार हैं! भविष्य में मुझे कैसे भी दमन, कैसी भी कठिनाइयों का सामना करना पड़े, मैंने अंत तक परमेश्वर का अनुसरण करने की पूरी तरह ठान ली है।