60. झूठे अगुआ की शिकायत करना : एक निजी संघर्ष

गन शायो, चीन

अगस्त 2020 में, बर्खास्त कर दिए जाने के बाद अगुआ ने मुझे दूसरी कलीसिया में भेज दिया। मैंने देखा कि वहाँ मेरी पहली ही सभा में भाई लियांग हुई एक घंटे देर से पहुंचा। वहाँ कलीसिया अगुआ बहन तैन मिन भी थी। मैंने सोचा, “मैंने भाई-बहनों को कहते सुना है कि लियांग हुई लापरवाह है और अपना कर्तव्य मनमाने ढंग से निभाता है, और बेवजह सभा में हमेशा देर से आता है। आज की सभा में भी वह देर से आया है, इसलिए तैन मिन को इस समस्या पर उसके साथ संगति करनी चाहिए।” लेकिन वह इसे हल्के में ले रही थी और कुछ नहीं बोल रही थी। सभा में एक दूसरे भाई ने बताया कि कैसे वह पैसे की तंगी की वजह से बेबस हो गया था, अपने कर्तव्य में मन नहीं लगा पा रहा था और काफी उदास लग रहा था। हम में से कुछ ने संगति कर उसकी मदद करने के लिए परमेश्वर के कुछ वचन ढूँढे, पर कलीसिया अगुआ के तौर पर तैन मिन ने संगति में बिल्कुल भी हिस्सा नहीं लिया। मैंने देखा कि सभाओं में वह कोई जिम्मेदारी नहीं ले रही थी और किसी की समस्याओं में कोई मदद किए बिना सिर्फ काम करने का दिखावा कर रही थी। मैं उससे इस समस्या के बारे में बात करना चाहती थी। फिर मुझे लगा कि वहाँ यह मेरी पहली सभा ही थी, इसलिए शायद मुझे पूरी बात न पता हो, तो कुछ भी बोलने से पहले मुझे थोड़ा सब्र करना चाहिए। अगली कुछ सभाओं में भी उसकी यही हरकत देखकर मेरी हैरानी का ठिकाना न रहा। कभी-कभी हमने परमेश्वर के कुछ वचन ही पढ़े होते कि वह उन वचनों पर कोई खास संगति किए बिना ही जल्दी से सभा खत्म कर देती, वह परमेश्वर के वचनों पर संगति करने में बिल्कुल भी ध्यान नहीं देती। मैंने मन-ही-मन सोचा : “एक अगुआ के कर्तव्य का प्रमुख हिस्सा परमेश्वर के वचनों को पढ़ने और सत्य पर संगति करने में भाई-बहनों की अगुआई करना है, ताकि वे सत्य को समझकर परमेश्वर के वचनों की वास्तविकता में प्रवेश कर सकें। लेकिन तैन मिन परमेश्वर के वचनों पर संगति में अगुआई नहीं कर रही है, और लोगों की समस्याओं को हल नहीं कर रही है। क्या यह कर्तव्य से पल्ला झाड़ना नहीं है? क्या यह लापरवाही से काम करना नहीं है? इस तरह कोई काम कैसे किया जा सकता है? अगर यही होता रहा तो हर किसी के जीवन-प्रवेश में देरी हो जाएगी। मैं कुछ कहना चाहती हूँ, पर मुझे डर है कि वह इसे मानेगी नहीं, कहेगी कि मैं अहंकारी हूँ, बर्खास्त किए जाने के बाद दूसरों के मामले में टांग अड़ाने के बजाय मुझे आत्म-चिंतन करना चाहिए।” यह सोचकर मैंने बिना कुछ कहे इसे भूल जाने और खुद पर ध्यान देने का फैसला किया।

एक महीने बाद मुझे दूसरा कर्तव्य सौंप कर दो अन्य समूहों की सभाओं से जोड़ दिया गया। उन सभाओं के भाई-बहन परमेश्वर के वचनों पर संगति करने या अपने अनुभवों और ज्ञान की बात करने पर ध्यान नहीं देते थे। कभी-कभी वे सिर्फ बेकार की बातें करते रहते। मुझे लगा कि कलीसिया जीवन की सफलता सीधे-सीधे इसके अगुआ से जुड़ी होती है, और अगर यही होता रहा तो भाई-बहनों के जीवन-प्रवेश पर बुरा असर पड़ेगा, इसलिए मैंने तैन मिन से बात की। मुझे हैरानी हुई कि वह कुछ मानने को तैयार ही नहीं थी, बल्कि वह इस बात पर अड़ी रही कि कलीसिया जीवन की असफलता भाई-बहनों की समस्या है। मैंने मन-ही-मन सोचा : “वह आत्म-चिंतन नहीं करती है और सारी जिम्मेदारी भाई-बहनों पर डाल देती है। कलीसिया अगुआ के तौर पर भी वह सच को स्वीकार करने या भाई-बहनों के सुझाव सुनने को तैयार न है, और कलीसिया जीवन के लिए वह कोई जिम्मेदारी नहीं उठाती है। वह सत्य को समझने या परमेश्वर के वचन की वास्तविकता में प्रवेश करने में दूसरों की अगुवाई कैसे कर सकती है? इससे तो भाई-बहनों को नुकसान ही होगा। मुझे इस बारे में उससे एक बार फिर बात करनी होगी।” लेकिन जैसे ही मैं कुछ कहने वाली थी, मुझे यह सोचकर चिंता होने लगी, “उसने अभी-अभी तो मेरा सुझाव मानने से इनकार कर दिया था और अपने तेवर भी दिखाए थे। इसे दोहराने से क्या होगा? वह कलीसिया अगुआ है, अगर मैंने फिर से बात छेड़ी तो वह कहेगी कि मैं अपनी हद लांघ रही हूँ और वह मुझसे चिढ़ जाएगी। मुझे अपना मुंह बंद ही रखना चाहिए।” मुझे यह ठीक नहीं लगा, पर आखिर में मैंने कुछ न कहने का फैसला किया। कुछ दिन बाद, तैन मिन ने मुझसे कहा कि वह एक सभा में भाई-बहनों की काट-छाँट करेगी, और फिर साफ तौर पर बताया कि वह उनकी कैसे काट-छाँट करेगी। मैं यह सुनकर दंग रह गई, सोचने लगी : “तुममें आत्म-बोध की इतनी कमी कैसे हो सकती है? कलीसिया जीवन अनुशासनहीन है क्योंकि एक कलीसिया अगुआ के तौर पर तुम गैर-जिम्मेदार और लापरवाह हो। तुम इसके लिए दूसरों को कैसे फटकार सकती हो? सत्य पर संगति किए बिना सिर्फ लोगों को फटकारने से कुछ भी हल नहीं होगा।” मैं फिर से उसकी समस्याएं सामने लाना चाहती थी, पर अपनी बात को सही ठहराने की उसकी दृढ़ता देखकर देखकर मुझे लगा कि वह इसे अच्छे से नहीं लेगी। मैंने सोचा, “मुझे अभी-अभी मेरे कर्तव्य से बर्खास्त किया गया है, तो मुझे उसकी समस्याओं के बारे में बोलने का क्या हक है? साथ ही, हम अक्सर एक-दूसरे से टकराते रहते हैं, ऐसे में अगर वह नाराज हो गई तो मेरे लिए कलीसिया में रहना मुश्किल हो जाएगा। अगर वह मुझे कोई काम सौंपने से मना कर देती है, तो मैं उद्धार का अवसर खो बैठूंगी। फिर ठीक है, मैं कुछ नहीं कहूंगी, संयम बरतूंगी और कलीसिया जीवन जीते हुए अपना कर्तव्य निभाऊंगी।”

मैंने कुछ भाई-बहनों को यह कहते हुए सुना कि तैन मिन सुसमाचार के काम की प्रभारी थी, पर उसने बहुत दिनों तक उनके साथ कोई सभा ही नहीं की। उन्होंने यह भी कहा कि वे नए विश्वासियों की समस्याएँ नहीं सुलझा पा रहे थे, कुछ नए विश्वासियों को धार्मिक पादरियों और एल्डरों ने भटका दिया था, जिस वजह से उन लोगों ने सभाओं में आना ही छोड़ दिया था। मैं सोचने लगी, “सुसमाचार का काम कितना महत्वपूर्ण है, पर तैन मिन वास्तविक समस्याओं को हल करने के लिए कुछ भी नहीं कर रही है। यह कितनी गैर-जिम्मेदारी की बात है! तैन मिन कोई व्यावहारिक काम नहीं करती और नए विश्वासियों के मुंह फेरने में उसका सीधा हाथ है, क्योंकि उन्हें कोई सिंचन या पोषण नहीं मिल रहा है!” मुझे लगा कि यह बड़ी गंभीर समस्या थी और मुझे उससे आमने-सामने बात करनी ही होगी। फिर मैंने दो दिन बाद तैन मिन से मिलकर उन मुद्दों को उठाया जिनका जिक्र भाई-बहनों ने किया था, पर उसने इसका सारा दोष पूरी तरह भाई-बहनों के सिर मढ़ दिया। वह किसी भी तरह की जिम्मेदारी नहीं लेना चाहती थी। मैंने यह भी ध्यान दिलाया कि व्यावहारिक समस्याओं को हल करने के लिए कुछ न करके वह कलीसिया अगुआ के तौर पर अपने कर्तव्य में गैर-जिम्मेदार और लापरवाह बन रही थी, इससे कलीसिया के काम में देरी हो जाएगी और भाई-बहनों को नुकसान पहुंचेगा। मगर उसने बुरा-सा मुंह बनाया और एक शब्द भी नहीं कहा। मैंने सोचा : “वह व्यावहारिक काम नहीं कर रही है, अपने कर्तव्य का बोझ नहीं उठा रही है, और उसने कभी सत्य को नहीं स्वीकारा। इसका मतलब वह एक झूठी अगुआ है जिसे उजागर किया गया है, और मुझे एक बड़े अगुआ से उसकी समस्याओं की शिकायत करके उसे जल्द-से-जल्द हटवाना चाहिए।” लेकिन मैं यह सोचकर हिचकिचा रही थी : “अगर मैंने उसकी शिकायत की और उसे पता चल गया, तो क्या वह कहेगी मैं जानबूझकर उसके पीछे पड़ी हूँ? अगर उसे बर्खास्त कर दिया गया तब तो ठीक है, पर अगर ऐसा नहीं किया गया तो वह भड़क नहीं जाएगी? फिर मेरे लिए इस कलीसिया में रहना बहुत मुश्किल हो जाएगा। अगर उसने मुझे बर्खास्त कर दिया और मैंने अपना कर्तव्य गँवा दिया, तो मैं उद्धार का अवसर खो बैठूँगी। फिर ठीक है, मैं उसकी समस्याओं की शिकायत नहीं करूंगी, बस अपना कर्तव्य निभाती रहूँगी।” लेकिन इस तरह सोचने के बाद मुझे अपराध-बोध होने लगा। मैं देख सकती थी कि कलीसिया में एक झूठी अगुआ थी, पर मैं इस बारे में चुप ही रही। क्या यह कलीसिया के कार्य को कायम रखना था? मैं अजीब उलझन में थी, इसलिए मैंने परमेश्वर के सामने आकर प्रार्थना की, “हे परमेश्वर, मैंने तैन मिन की समस्याएं देखी हैं और मैं उसकी शिकायत करना चाहती हूँ, पर मैं थोड़ी चिंतित हूँ। कृपा करके मुझे रास्ता दिखाओ, ताकि मैं इन अंधेरी ताकतों से लड़कर कलीसिया के कार्य की रक्षा कर सकूं।”

इसके बाद, मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा : “किसी अगुआ या कार्यकर्ता के साथ पेश आने के तरीके के संबंध में लोगों का क्या रवैया होना चाहिए? कोई अगुआ या कार्यकर्ता जो करता है, अगर वह सही और सत्य के अनुरूप हो, तो तुम उसका आज्ञापालन कर सकते हो; अगर वह जो करता है वह गलत है और सत्य के अनुरूप नहीं है, तो तुम्हें उसका आज्ञापालन नहीं करना चाहिए और तुम उसे उजागर कर सकते हो, और उसका विरोध कर एक अलग राय रख सकते हो। अगर वह व्यावहारिक कार्य करने में असमर्थ हो या कलीसिया के काम में बाधा डालने वाले कुकर्म करता हो, और पता चल जाता है कि वह एक नकली अगुआ, नकली कार्यकर्ता या मसीह-विरोधी है, तो तुम उसे पहचानकर उजागर कर सकते हो और उसकी रिपोर्ट कर सकते हो। लेकिन, परमेश्वर के कुछ चुने हुए लोग सत्य नहीं समझते और विशेष रूप से कायर होते हैं। वे नकली अगुआओं और मसीह-विरोधियों द्वारा दबाए और दंडित किए जाने से डरते हैं, इसलिए वे सिद्धांत पर बने रहने की हिम्मत नहीं करते। वे कहते हैं, ‘अगर अगुआ मुझे बाहर निकाल दे, तो मैं खत्म हो जाऊँगा; अगर वह सभी लोगों से मुझे उजागर करवा दे या मेरा त्याग करवा दे, तो फिर मैं परमेश्वर में विश्वास नहीं कर पाऊँगा। अगर मुझे कलीसिया से निकाल दिया गया, तो फिर परमेश्वर मुझे नहीं चाहेगा और मुझे नहीं बचाएगा। और क्या मेरी आस्था व्यर्थ नहीं चली जाएगी?’ क्या ऐसी सोच हास्यास्पद नहीं है? क्या ऐसे लोगों की परमेश्वर में सच्ची आस्था होती है? कोई नकली अगुआ या मसीह-विरोधी जब तुम्हें निष्कासित करता है, तो क्या वह परमेश्वर का प्रतिनिधित्व कर रहा होता है? जब कोई नकली अगुआ या मसीह-विरोधी तुम्हें दंडित कर निष्कासित करता है, तो यह शैतान का काम होता है, और इसका परमेश्वर से कोई लेना-देना नहीं होता; जब लोगों को कलीसिया से हटाया या निष्कासित किया जाता है, तो यह परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप सिर्फ तभी होता है, जब यह कलीसिया और परमेश्वर के सभी चुने हुए लोगों के बीच एक संयुक्त निर्णय होता है, और जब बर्खास्तगी या निष्कासन पूरी तरह से परमेश्वर के घर की कार्य-व्यवस्थाओं और परमेश्वर के वचनों के सत्य सिद्धांतों के अनुरूप होता है। किसी नकली अगुआ या मसीह-विरोधी द्वारा निष्कासित किए जाने का यह अर्थ कैसे हो सकता है कि तुम्हें बचाया नहीं जा सकता? यह शैतान और मसीह-विरोधियों द्वारा किया जाने वाला उत्पीड़न है, और इसका यह मतलब नहीं कि परमेश्वर द्वारा तुम्हें बचाया नहीं जाएगा। तुम्हें बचाया जा सकता है या नहीं, यह परमेश्वर पर निर्भर करता है। कोई इंसान यह निर्णय लेने के योग्य नहीं कि तुम्हें परमेश्वर द्वारा बचाया जा सकता है या नहीं। तुम्हें इस बारे में स्पष्ट होना चाहिए। और नकली अगुआओं और मसीह-विरोधियों द्वारा तुम्हारे निष्कासन को परमेश्वर द्वारा किया गया निष्कासन मानना—क्या यह परमेश्वर की गलत व्याख्या करना नहीं है? बेशक है। और यह परमेश्वर की गलत व्याख्या करना ही नहीं है, बल्कि परमेश्वर की अवज्ञा करना भी है। यह एक तरह से परमेश्वर की निंदा भी है। और क्या परमेश्वर की इस तरह गलत व्याख्या करना अज्ञानतापूर्ण और मूर्खतापूर्ण नहीं है? जब कोई नकली अगुआ या मसीह-विरोधी तुम्हें निष्कासित करता है, तो तुम सत्य क्यों नहीं खोजते? कुछ विवेक प्राप्त करने के लिए तुम किसी ऐसे व्यक्ति को क्यों नहीं खोजते, जो सत्य समझता हो? और तुमने उच्च अधिकारियों को इसकी रिपोर्ट क्यों नहीं की? यह साबित करता है कि तुम्हें इस बात पर विश्वास नहीं है कि परमेश्वर के घर में सत्य सर्वोच्च है, यह दर्शाता है कि तुम्हें परमेश्वर में सच्ची आस्था नहीं है, कि तुम ऐसे व्यक्ति नहीं हो जो वास्तव में परमेश्वर में विश्वास करता है। अगर तुम परमेश्वर की सर्वशक्तिमत्ता पर भरोसा करते हो, तो तुम नकली अगुआ या मसीह-विरोधी के प्रतिशोध से क्यों डरते हो? क्या वे तुम्हारे भाग्य का निर्धारण कर सकते हैं? यदि तुम भलीभाँति समझने, और यह पता लगाने में सक्षम हो कि उनके कार्य सत्य के विपरीत हैं, तो परमेश्वर के उन चुने हुए लोगों के साथ संगति क्यों नहीं करते जो सत्य समझते हैं? तुम्हारे पास मुँह है, तो तुम बोलने की हिम्मत क्यों नहीं करते? तुम नकली अगुआ या मसीह-विरोधी से इतना क्यों डरते हो? यह साबित करता है कि तुम कायर, बेकार, शैतान के अनुचर हो(वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद तीन : सत्य का अनुसरण करने वालों को वे निकाल देते हैं और उन पर आक्रमण करते हैं)। इसे पढ़कर मेरा दिल रोशन हो गया। जब हम कलीसिया में कोई झूठा अगुआ देखते हैं तो हमें आँख मूंदकर उनकी हर बात नहीं माननी चाहिए उनके आगे बेबस नहीं होना चाहिए। हमें हिम्मत से उन्हें उजागर करना होगा और बड़े अगुआओं से उनकी शिकायत करनी होगी। परमेश्वर की यही इच्छा है। मुझे पता था तैन मिन व्यावहारिक काम नहीं करती और वह झूठी अगुआ है, पर मुझमें उसकी समस्याओं के बारे में कुछ भी बोलने की हिम्मत नहीं थी क्योंकि मैं इसे गलत नजरिए से देख रही थी। मुझे लगता था कि अगुआ के पास अधिकार है, मैं कोई काम कर सकती हूँ या नहीं यह तय करना उसके हाथ में था, अगर मैंने उसे नाराज कर दिया तो मैं अपना कर्तव्य गँवा सकती हूँ और फिर मुझे बचाया नहीं जा सकेगा। मैंने देखा कि अपनी आस्था के इतने बरसों में, मुझे अभी भी परमेश्वर की कोई समझ नहीं थी। परमेश्वर के घर में सिर्फ सत्य और खुद परमेश्वर का राज है। मुझे कोई कर्तव्य मिलेगा या नहीं, मुझे बचाया जा सकेगा या नहीं, सब परमेश्वर के हाथ में है, यह किसी अगुआ के हाथ में नहीं है। अगर किसी झूठे अगुआ के पास अधिकार हुआ और मुझे सचमुच दबाया गया, तो भी ऐसा ज्यादा देर नहीं चलेगा। परमेश्वर सब देखता है, पवित्र आत्मा सबको उजागर कर देगा, इसलिए झूठे अगुआ और मसीह-विरोधी देर-सवेर बेनकाब हो जाएंगे और निकाल दिए जाएंगे। मैंने परमेश्वर के धार्मिक स्वभाव को नहीं समझा था, मैं परमेश्वर के बजाय लोगों को नाराज करने से डर रही थी। मेरे दिल में परमेश्वर की कोई जगह नहीं थी। मैं कैसी विश्वासी थी? मैं यह सोच रही थी कि खुद अगुआ न होने के कारण मैं तैन मिन की आलोचना नहीं कर सकती थी, मुझे चिंता थी कि दूसरे लोग मुझे अपने काम से मतलब रखने के लिए कहेंगे। मैं जिस तरीके से चीज़ों को देख रही थी वह पूरी तरह बेतुका था। परमेश्वर के घर की सदस्य होने के नाते, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि मुझे बर्खास्त कर दिया जाएगा या मुझे कौन सा कर्तव्य दिया जाएगा—अगर मैं कलीसिया में कोई झूठा अगुआ देखती हूँ, तो उसकी शिकायत करना मेरी जिम्मेदारी और दायित्व है। यह कलीसिया के काम की रक्षा करना और एक सकारात्मक चीज़ है। यह भाई-बहनों के जीवन की जिम्मेदारी लेना भी है, ऐसा करना अपनी सीमा लांघना या दखल देना नहीं है, यह अहंकारी होना या खुद को बहुत महान समझना तो बिल्कुल भी नहीं है। यह परमेश्वर के चुने हुए लोगों में से एक का कर्तव्य निभाना है। इस एहसास से मैं यह आत्म-चिंतन करने लगी कि मैं एक झूठे अगुआ को बेनकाब करने से इतना डर क्यों रही थी। इस समस्या की असली जड़ क्या थी?

अपनी खोज में मैंने परमेश्वर के इन वचनों को पढ़ा : “अंतरात्मा और विवेक दोनों ही व्यक्ति की मानवता के घटक होने चाहिए। ये दोनों सबसे बुनियादी और सबसे महत्वपूर्ण चीजें हैं। वह किस तरह का व्यक्ति है जिसमें अंतरात्मा नहीं है और सामान्य मानवता का विवेक नहीं है? सीधे शब्दों में कहा जाये तो, वे ऐसे व्यक्ति हैं जिनमें मानवता का अभाव है, वह बहुत ही खराब मानवता वाला व्यक्ति है। अधिक विस्तार में जाएँ तो ऐसा व्यक्ति किस लुप्त मानवता का प्रदर्शन करता है? विश्लेषण करो कि ऐसे लोगों में कैसे लक्षण पाए जाते हैं और वे कौन-से विशिष्ट प्रकटन दर्शाते हैं। (वे स्वार्थी और निकृष्ट होते हैं।) स्वार्थी और निकृष्ट लोग अपने कार्यों में लापरवाह होते हैं और अपने को उन चीजों से अलग रखते हैं जो व्यक्तिगत रूप से उनसे संबंधित नहीं होती हैं। वे परमेश्वर के घर के हितों पर विचार नहीं करते हैं और परमेश्वर की इच्छा का लिहाज नहीं करते हैं। वे अपने कर्तव्य को करने या परमेश्वर की गवाही देने की कोई जिम्मेदारी नहीं लेते हैं, और उनमें उत्तरदायित्व की कोई भावना होती ही नहीं है। ... कुछ लोग ऐसे होते हैं, जो चाहे कोई भी कर्तव्य निभाएँ पर कोई जिम्मेदारी नहीं लेते। वे पता चलने वाली समस्याओं की रिपोर्ट भी तुरंत अपने वरिष्ठों को नहीं करते। लोगों को विघ्न-बाधा डालते देखकर वे आँखें मूँद लेते हैं। जब वे दुष्ट लोगों को बुराई करते देखते हैं, तो वे उन्हें रोकने की कोशिश नहीं करते। वे परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा नहीं करते, न ही इस बात पर विचार करते हैं कि उनका कर्तव्य और जिम्मेदारी क्या है। जब ऐसे लोग अपना कर्तव्य निभाते हैं, तो वे कोई वास्तविक कार्य नहीं करते; वे खुशामदी लोग हैं जो सुविधा के लालची होते हैं; वे केवल अपने घमंड, साख, हैसियत और हितों के लिए बोलते और कार्य करते हैं, और वे अपना समय और प्रयास ऐसी चीजों में लगाना चाहते हैं, जिनसे उन्हें लाभ मिलता है। ऐसे इंसान के क्रियाकलाप और इरादे हर किसी को स्पष्ट होते हैं : जब भी उन्हें अपनी हैसियत दिखाने या आशीष प्राप्त करने का कोई मौका मिलता है, ये उभर आते हैं। लेकिन जब उन्हें अपनी हैसियत दिखाने का कोई मौका नहीं मिलता या जैसे ही कष्ट उठाने का समय आता है, वैसे ही वे उसी तरह नज़रों से ओझल हो जाते हैं जैसे कछुआ अपना सिर खोल में छिपा लेता है। क्या इस तरह के इंसान में अंतरात्मा और विवेक होता है? (नहीं।) क्या ऐसा बर्ताव करने वाले, ज़मीर और विवेक से रहित इंसान, आत्म-निंदा एहसास करता है? इस प्रकार के व्यक्ति में आत्म-निंदा की कोई भावना नहीं होती; इस प्रकार के इंसान की अंतरात्मा किसी काम की नहीं होती। उन्हें कभी भी अपनी अंतरात्मा से फटकार का एहसास नहीं होता, तो क्या वे पवित्र आत्मा की झिड़की या अनुशासन को महसूस कर सकते हैं? नहीं, वे नहीं कर सकते(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, अपना हृदय परमेश्वर को देकर सत्य प्राप्त किया जा सकता है)। परमेश्वर के वचनों से मेरी समझ में आया कि किसी झूठे अगुआ को बेनकाब करने और उसकी शिकायत करने से डरना इन शैतानी फलसफों पर भरोसा करने का नतीजा है, जैसे कि “चीजों को प्रवाहित होने दें यदि वे किसी को व्यक्तिगत रूप से प्रभावित न करती हों,” “ज्ञानी लोग आत्म-रक्षा में अच्छे होते हैं वे बस गलतियाँ करने से बचते हैं,” और “हर व्यक्ति अपनी सोचे बाकियों को शैतान ले जाए।” ये शैतानी फलसफे मेरे आदर्श वाक्य का हिस्सा बन गए थे और मेरी सोच पर काबू कर लिया था, इसलिए मैं कलीसिया के काम के बजाय लगातार खुद के हितों के बारे में सोच रही थी। मैं बहुत नीच, स्वार्थी और धोखेबाज होती जा रही थी। मैं साफ देख रही थी कि तैन मिन व्यावहारिक काम नहीं करती और सच्चाई को स्वीकार नहीं करती, वह एक झूठी अगुआ थी। उसका व्यवहार पहले ही कलीसिया के काम पर बुरा असर डाल चुका था और भाई-बहनों के जीवन-प्रवेश में देरी हो चुकी थी, इसलिए मुझे इस मामले को सामने लाना होगा और उसकी शिकायत करनी होगी। लेकिन मुझे डर लगता था कि अगर वो नाराज़ हो गई तो मेरी निंदा करेगी, मुझे दबाएगी, इसलिए मुझमें उसकी शिकायत करने की हिम्मत नहीं थी। मैं अपनी प्रतिष्ठा, रुतबे और भविष्य की मंज़िल को बचाना चाहती थी। इसलिए मैं कलीसिया के काम और भाई-बहनों के जीवन-प्रवेश को नुकसान होते देखती रही, और एक झूठे अगुआ के सामने आँखें मूंदकर पूरी तरह बेपरवाह रवैया अपनाए रही। मैं शैतान के साथ खड़ी थी, एक झूठी अगुआ का साथ दे रही थी, जो कलीसिया के काम में लगातार रुकावट डाल रही थी। मैं शैतानी जहर के साथ जीते हुए उसकी गुलाम बन गई थी, सिर्फ अपनी भलाई सोच रही थी, मुझमें न परमेश्वर के लिए समर्पण था, न ही अंतरात्मा और विवेक। मैं इंसान जैसा जीवन नहीं जी रही थी। मैंने देखा कि मैं अभी भी शैतान की शक्ति के अधीन थी और उसकी बन चुकी थी। मुझे सत्य का अनुसरण करना, शैतान को त्यागना, और परमेश्वर की आज्ञा का पालन करने वाली इंसान बनना था। जब मुझे यह सब साफ पता चल गया, तो मैं परमेश्वर की ऋणी महसूस करने लगी, मुझे अपने स्वार्थ और विवेकहीनता से नफरत होने लगी। मुझे फौरन ही बहन तैन की शिकायत करनी थी और परमेश्वर के दिल को दुखी नहीं करना था। इसलिए मैंने बड़े अगुआ को तैन मिन की समस्याओं के बारे में सब कुछ बता दिया कि वह वास्तविक काम नहीं करती है या सत्य को नहीं स्वीकारती है। लेकिन कुछ दिन बीत जाने पर भी मैंने बड़े अगुआ से कुछ नहीं सुना कि उन्होंने तैन मिन के साथ क्या किया। मुझे थोड़ी चिंता होने लगी। अगर इस झूठी अगुआ को फौरन बर्खास्त न किया गया तो इससे कलीसिया का काम ठप्प हो सकता था, इसलिए मैं हालात का पता लगाने के लिए दोबारा लिखने को सोचने लगी। लेकिन फिर मैंने सोचा, “अगर मैंने यह बात दोबारा छेड़ी तो बड़े अगुआ यह न सोचें कि मैं बहुत ज्यादा दखल दे रही हूँ। वैसे भी, मैं अपनी बात कह चुकी थी, मैंने अपनी जिम्मेदारी पूरी कर दी है, तो फिर इस बारे में चिंता नहीं करनी चाहिए।” लेकिन मेरी बेचैनी कम नहीं हुई, और मैं उस रात सो भी नहीं पाई।

एक सुबह मैंने परमेश्वर के ये वचन पढे : “यदि कलीसिया में ऐसा कोई भी नहीं है जो सत्य का अभ्यास करने का इच्छुक हो, और परमेश्वर की गवाही दे सकता हो, तो उस कलीसिया को पूरी तरह से अलग-थलग कर दिया जाना चाहिए और अन्य कलीसियाओं के साथ उसके संबंध समाप्त कर दिये जाने चाहिए। इसे ‘मृत्यु दफ़्न करना’ कहते हैं; इसी का अर्थ है शैतान को ठुकराना। यदि किसी कलीसिया में कई स्थानीय गुण्डे हैं, और कुछ ‘छोटी-मोटी मक्खियों’ द्वारा उनका अनुसरण किया जाता है जिनमें विवेक का पूर्णतः अभाव है, और यदि समागम के सदस्य, सच्चाई जान लेने के बाद भी, इन गुण्डों की जकड़न और तिकड़म को नकार नहीं पाते, तो उन सभी मूर्खों को अंत में बाहर निकाल दिया जायेगा। भले ही इन छोटी-छोटी मक्खियों ने कुछ खौफनाक न किया हो, लेकिन ये और भी धूर्त, ज़्यादा मक्कार और कपटी होती हैं, इस तरह के सभी लोगों को हटा दिया जाएगा। एक भी नहीं बचेगा! जो शैतान से जुड़े हैं, उन्हें शैतान के पास भेज दिया जाएगा, जबकि जो परमेश्वर से संबंधित हैं, वे निश्चित रूप से सत्य की खोज में चले जाएँगे; यह उनकी प्रकृति के अनुसार तय होता है। उन सभी को नष्ट हो जाने दो जो शैतान का अनुसरण करते हैं! इन लोगों के प्रति कोई दया-भाव नहीं दिखाया जायेगा। जो सत्य के खोजी हैं उनका भरण-पोषण होने दो और वे अपने हृदय के तृप्त होने तक परमेश्वर के वचनों में आनंद प्राप्त करें। परमेश्वर धार्मिक है; वह किसी से पक्षपात नहीं करता। यदि तुम शैतान हो, तो तुम सत्य का अभ्यास नहीं कर सकते; और यदि तुम सत्य की खोज करने वाले हो, तो यह निश्चित है कि तुम शैतान के बंदी नहीं बनोगे—इसमें कोई संदेह नहीं है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जो सत्य का अभ्यास नहीं करते हैं उनके लिए एक चेतावनी)। परमेश्वर के वचनों से मैंने जाना कि उसका स्वभाव पवित्र और धार्मिक है और वह किसी अपमान को सहन नहीं करता। वह इस बात से घृणा करता है कि झूठे अगुआ और मसीह-विरोधी कलीसिया का काम बिगाड़ें और भाई-बहनों के जीवन-प्रवेश में देरी करें। झूठे अगुआ और मसीह-विरोधी दिखने पर, सत्य का अभ्यास न करने या कलीसिया के हितों की रक्षा न करने वालों से परमेश्वर नफरत करता है। ऐसे लोग सत्य को समझकर भी इसका अभ्यास नहीं करते, सिर्फ अपने हितों के बारे में सोचते हैं। वे बड़े धोखेबाज और धूर्त लोग होते हैं, अगर वे प्रायश्चित नहीं करते तो निकाल दिए जाएंगे। मुझे पता था कि तैन मिन झूठी अगुआ थी, और अब जब बड़े अगुआ जल्दी से कुछ कर नहीं रहे थे, तो मुझे यह मामला उठाते रहकर इसे अंत तक पहुंचाना था। लेकिन मैं सिर्फ खुद को बचाना चाहती थी और मुझ पर असर न करने वाले मामलों को नजरअंदाज कर रही थी। मैं उसे मनमानी करने और कलीसिया का काम बिगाड़ने दे रही थी। मैं परमेश्वर की इच्छा का ध्यान नहीं रख रही थी और सत्य की तरफ खड़ी नहीं थी, बल्कि शैतान की तरफ खड़ी थी। यह एक झूठी अगुआ की दुष्टता में साथ देना था। भले ही ऐसा नहीं लगता था कि मैंने कुछ बहुत बुरा कर दिया है, लेकिन अगर समस्याओं के मद्देनज़र मैं सत्य का अभ्यास नहीं करती या कलीसिया के काम को नहीं बचाती, तो अंत में मुझे निकाल दिया जाएगा। मैं जानती थी कि इस बार मैं अपने हितों के बारे में नहीं सोच सकती, अब मैं इस झूठी अगुआ को कलीसिया के काम को नुकसान पहुंचाने नहीं दे सकती। बड़े अगुआ ने तैन मिन से निपटने में देर कर दी, भले ही मुझे इसके पीछे का कारण नहीं पता था, पर यह मेरे लिए परमेश्वर की परीक्षा थी, यह देखने के लिए कि क्या मैं अपने हितों को एक तरफ रखकर सत्य सिद्धांतों की रक्षा कर सकती हूँ। कलीसिया के हितों की रक्षा करने के लिए मुझे लगातार इस झूठी अगुआ की शिकायत करनी होगी। इसलिए मैंने बड़े अगुआ से फिर से इन हालात का जिक्र किया और एक झूठी अगुआ को बर्खास्त न करने के खतरों और परिणामों पर जोर दिया। उसने जवाब में कहा कि पिछले कुछ दिनों से वह कुछ जरूरी मामलों में उलझी रही थी, पर वह सिद्धांत के अनुसार तैन मिन को फौरन बर्खास्त कर देगी। यह जवाब सुनकर मुझे बहुत बड़ी राहत मिली और मैंने यह सीखा कि शांति पाने का इकलौता तरीका सत्य पर अमल करना है।

जल्दी ही तैन मिन को हटा दिया गया और कलीसिया के काम के लिए कोई दूसरा अगुआ चुना गया। कुछ समय बाद कलीसिया जीवन को बहुत-से अच्छे नतीजे मिले और हमारे सभी कामों में जैसे जान आ गई। हालात को ऐसा मोड़ लेते देखकर मैं सचमुच बहुत खुश थी, पर इसके साथ ही मुझे थोड़ा अपराध-बोध और पछतावा भी था। एक झूठे अगुआ का पता चलने पर मैंने फौरन उसकी शिकायत नहीं की, बल्कि मैं अपने निजी हितों के बारे में सोचती रही और मैंने अपना शैतानी स्वभाव दिखाया, जिससे कलीसिया के काम को नुकसान पहुंचा। मैंने देखा कि कैसे भ्रष्ट शैतानी स्वभाव के साथ जीना और सत्य का अभ्यास न करना असल में दुष्टता करना है, परमेश्वर इसकी निंदा और इससे घृणा करता है। मैंने यह भी देखा कि परमेश्वर का काम कितना बुद्धिमानी भरा है, कलीसिया में इस झूठी अगुआ को देखकर मैंने भले-बुरे की पहचान करना सीखा। मैंने यह भी अनुभव किया कि कलीसिया में एक झूठा अगुआ परमेश्वर के चुने हुए लोगों का कितना बड़ा नुकसान कर सकता है। मैंने परमेश्वर के धार्मिक स्वभाव को भी जाना। मैंने देखा कि परमेश्वर के घर में मसीह और सत्य का बोलबाला है, और कोई भी व्यक्ति अपनी मनमानी नहीं चला सकता। किसी का ओहदा कितना ही ऊंचा क्यों न हो, अगर वे सत्य का अभ्यास नहीं करते और परमेश्वर की इच्छा के अनुसार नहीं चलते तो वे कभी भी परमेश्वर के घर में मजबूती से कदम नहीं जमा पाएंगे। अंत में निकाल दिए जाएंगे। सिर्फ परमेश्वर के वचनों पर अमल करना और सिद्धांत के अनुसार काम करना ही परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप है।

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