86. जीवन में किसका अनुसरण करें?
बचपन में मेरी सेहत इतनी अच्छी नहीं थी, परिवार का ज्यादातर पैसा मेरे इलाज में चला जाता था, मेरे डैड मुझे पसंद नहीं करते थे, मुझे पीटते और चिल्लाते थे। इस वजह से मेरा खूब मजाक बनाया जाता। मैं दुखी और पीड़ित महसूस करती, अक्सर छुपकर रोया करती थी। मैं सोचती थी, “तुम लोग मुझे नीची नजर से देखते हो। बड़ी होकर एक शानदार करियर बनाकर दिखाऊँगी।” शादी के बाद मेरे पति और मेरी नहीं बनी, तो हमने तलाक ले लिया। मैंने अपने 4 साल के बेटे की जिम्मेदारी अपनी माँ को सौंप दी और एक सहपाठी के ब्यूटी सैलून में काम करने चली गई। वह एक बिजनस स्कूल की टीचर थी, उसके पास नौकरी थी, तो मैं सैलून में चीजों को संभालने में उसकी मदद करने लगी। जल्दी ही, वह एकदम बदल गई, मुझसे किनारा करने और नीचा दिखाने लगी, मालकिन की तरह मुझे आदेश देने लगी। मैं बहुत असहज हो गई, हमारे बीच दूरियाँ आ गईं। एक दिन किसी बात पर बहस होने के बाद मैं नौकरी छोड़ देना चाहती थी। उसने मेरा मजाक उड़ाया, कहा, “सोंग जिहान, मैं तुम्हें कम नहीं आँक रही। तुम मेरे बिना कुछ बन गई तो मेरा नाम बदल देना!” मैं बहुत बेचैन हो गई। मेरे आत्म-सम्मान को गहरी चोट पहुँची। मैंने सोचा, “तुम कितनी बुरी हो। तुम्हें रंग-रूप देखकर किसी की क्षमता नहीं आँकनी चाहिए। तुमने जो कहा उसके बाद, अब मैं अपना करियर बनाकर दिखाऊँगी, चाहे मौत ही क्यों न आ जाए। तुम्हें अपने अपमानजनक शब्द वापस लेने होंगे। एक दिन, तुम्हें गलत साबित करके दिखाऊँगी।” उसी दिन मैंने अपना सामान बाँधा और वहाँ से निकल गई।
मैंने काम करके पैसे बचाना शुरू किया, और बीमार पड़ने पर भी कभी छुट्टी नहीं ली। थकावट के मारे कमर दुखने लगती, तब भी दांत भींचकर काम करती रहती। चार महीने बाद ही, मैंने अपना सैलून संभालना शुरू कर दिया। पैसे बचाने के लिए खुद ही काम करती, दिन में बस एक बार खाना खाती, रात को पेट में चूहे कूदते, तो भूख मिटाने के लिए पानी पी लेती। कभी-कभी काम अच्छा चलता, तो रात 2-3 बजे तक काम करती रहती। सुबह 6 बजे किसी तरह उठती, तो आँखों में नींद भरी होती। पर्मिंग केमिकल की वजह से मेरे हाथ कट-फट गए थे। मुट्ठी बाँधते ही हाथों से खून निकल आता—बहुत दर्द होता था। चादर में मुँह छिपाकर रोती रहती थी, पर पिता की नफरत और सहपाठी के ताने याद आते ही, मैं खुद को प्रेरित करती, सोचती, “शीर्ष पर पहुँचने के लिए तुम्हें बड़ी पीड़ा सहनी होगी,” और “अपनी प्रतिष्ठा के लिए लड़ने की खातिर लोगों में दृढ़ता होनी चाहिए।” मुझे लगा एक दिन जरूर कामयाब होऊँगी, मुझे नीची नजर से देखकर मेरी गरिमा को चोट पहुँचाने वाले मुझे नई नजरों से देखेंगे। मैं कड़ी मेहनत करने के लिए प्रेरित थी। 1996 में मैंने अपना सैलून खोल लिया। ये मेरी सहपाठी की दुकान से बड़ा और आकर्षक था। जिस दिन ये सैलून खुला, मेरी आँखें भर आईं। मैंने सोचा, “आखिर मैंने अपनी दुकान खोल ही ली और अब मैं बॉस हूँ—अब मैं सिर ऊँचा करके चल सकती हूँ। मैं दुकान को बड़ा करके और ज्यादा आकर्षक बनाना चाहती थी ताकि अपनी सहपाठी को नीचा दिखा सकूँ। मेरे दोस्तों और परिवार को पता चला कि मैंने अपनी दुकान खोल ली है, तो वे मुझसे प्रभावित होंगे।” तीन साल की कड़ी मेहनत के बाद, मैंने कुछ पैसे बचा लिए। लोगों का सम्मान पाने के लिए, मैंने बड़ा ब्यूटी सैलून और कॉस्मेटिक कंपनी खोलने में और पैसे लगाए, अलग-अलग इलाकों में नौ चेन स्टोर खोले। कई राष्ट्रीय सौंदर्य प्रतियोगिताओं में भाग लेकर कुछ गोल्ड मैडल भी जीते। सालों की कड़ी मेहनत के बाद, मैंने इंडस्ट्री में नाम कमाया, और मैं कितनी खुश थी इसे शब्दों में बयाँ नहीं कर सकती। मैं पहाड़ की चोटी पर खड़ी होकर चिल्लाना चाहती थी : “मेरा सपना पूरा हो गया! मैं अब वो इंसान नहीं जिसका सब मजाक बनाते थे!” गाड़ी में घर जाते समय, सभी मुझे ईर्ष्या से देखते। मैं बेहद संतुष्ट और गर्वित थी। लगा मैं सही मार्ग पर थी, आगे और कड़ी मेहनत करनी चाहिए ताकि मैं अपना कारोबार फैला सकूँ।
2002 में, मैंने दूसरे बड़े शहर में एक बड़ा ब्यूटी सैलून खोला। जैसे-जैसे मेरा कारोबार बढ़ा, ज्यादा लोग मेरे बारे में जानने लगे। लगा मैं सिर उठाकर चल सकती हूँ, मैं बहुत जोश और उत्साह में थी। मैंने सोचा, “कभी अपनी सहपाठी से टकराई, तो उसका शुक्रिया अदा करूँगी। उसके तानों के बिना, मैं आज यहाँ नहीं होती।” पर मुझे हैरानी हुई कि फेफड़े के कैंसर से उसकी मौत हो गई थी। मैं हैरान थी और बहुत निराश भी। समझ नहीं पाई कि जीवन इतना नाजुक कैसे हो सकता है। वह 39 साल में ही गुजर गई। इतनी बड़ी कीमत चुकाने के बाद आखिर मुझे सफलता मिली, मैं चाहती थी वह अपनी अपमानजनक बातें वापस ले जिससे मेरी मर्यादा को ठेस पहुँची थी। पर मैंने अपनी कामयाबी दिखाने में बहुत देर कर दी थी, और वह अचानक चल बसी थी। तुम्हारे पास कितनी भी धन-दौलत हो, मरते समय कुछ भी साथ लेकर नहीं जा सकते, तो जीवन का क्या अर्थ है? यह सोचकर मैं बहुत निराश और मायूस हो गई। अपनी सहपाठी की मौत का मुझ पर काफी असर पड़ा। कुछ समय तक यह सवाल मुझे सताता रहा, पर जवाब किसी के पास नहीं था।
जल्दी ही मैंने फिर से खुद को काम में झोंक दिया और करियर बदलने की सोची। ब्यूटी सैलून खोलना समाज में अभी भी छोटी बात थी, पर डॉक्टर होना ऊँची प्रतिष्ठा और सम्मान की बात थी। तो, महंगी पढ़ाई के बारे में बिना सोचे, मैं कई बड़े शहरों में गई, चीनी चिकित्सा सीखने के लिए मशहूर डॉक्टरों और एक्यूपंक्चर विशेषज्ञों से मिली। अपना सपना साकार करने की कोशिश में, अपने बेटे की पढ़ाई की अनदेखी की, उसकी जरूरतें तक भूल गई। मैंने न तो अपनी बूढ़ी माँ का ध्यान रखा, न ही कारोबार की परवाह की, बल्कि खुद को पूरी तरह पढ़ाई में झोंक दिया। चलते-फिरते, खाते-पीते या बिस्तर पर लेटे, मैं सिर्फ चीनी चिकित्सा पद्धति के बारे में पढ़ती रहती, दोस्तों के साथ मौज-मस्ती करने या अपने माँ-बाप या बहनों से बातें करने तक का समय नहीं था। कभी-कभी सब कुछ बहुत मुश्किल लगता, पढ़ाई छोड़ देने का मन करता, पर ये सोचकर कि इस पढ़ाई से समाज में मेरा दर्जा ऊँचा हो जाएगा और लोगों से ज्यादा सराहना मिलेगी, मैंने खुद को सचेत किया, ताकि बीच रास्ते में हार मानकर दूसरों का अपमान न सहना पड़े। चाहे कितना भी मुश्किल और थकाऊ हो, मुझे अपनी पढ़ाई पूरी करनी ही थी। दूसरों से आगे निकलने के लिए, इसी तरह मैं खुद को प्रेरित करती रही। 15 सालों के कड़ी पढ़ाई, शोध, और अभ्यास के बाद, चिकित्सा के क्षेत्र में मैंने थोड़ा नाम कमाया, एक्यूपंक्चर और हेल्थकेयर की ट्रेनिंग करते हुए देश भर में घूमने लगी। लंबे समय तक ट्रेनिंग में व्यस्त रहने, बार-बार हवाई और रेल यात्रा करने के बाद, मुझे पाचन की समस्या हो गई और मेरी नींद भी कम हो गई, हमेशा चक्कर आते और सिर घूमता रहता। फिर भी मैंने किसी डॉक्टर की मदद नहीं ली। एक बार जब मेरे पेट की जलन काफी बढ़ गई, मुझे एनल फिस्ट्यूला भी हो गया और दस्त में खून आने लगा। तभी मेरी एक ट्रेनिंग भी थी, इसे सहते हुए हवाई यात्रा कर 300 मील दूर दूसरे शहर पहुँचना था। जैसे ही प्लेन से नीचे उतरी तो फूलों और तालियों से मेरा स्वागत हुआ, और मैंने पीठ-पीछे ईर्ष्या भरी आवाजें भी सुनीं : “देखो प्रोफेसर सोंग, कितनी जवान और खूबसूरत हैं।” “हाँ, मैंने उनकी क्लास ली है—उन्होंने बहुत अच्छे से समझाया।” उस पल लगा मेरी सारी मेहनत और त्याग सफल हो गए, और मैंने मन-ही-मन खुद से कहा, “डटी रहो, तुम ये कर सकती हो। इस सफलता के पीछे बहुत कड़ी मेहनत लगी है।” पेट में तेज दर्द सहती रही, ठंडे पसीने आते रहे, पर मंच पर मुस्कुराते हुए तीन दिन तक भाषण देती रही। मंच से उतरते हुए मैंने छात्रों को अलविदा कहा, और उस पल, इन सबके खोखलेपन में अजीब सा दुख हो रहा था। कमजोरी और थकावट के साथ किसी तरह होटल पहुँची, और बिस्तर पर गिरकर बस छत को ताकती रही। बेहद अकेली और निराश महसूस कर रही थी। फूल और तालियाँ मेरी सफलता और शोहरत की निशानी हुआ करती थीं, पर ये सारी चीजें एकदम क्षणिक थीं। ये मुझे मेरी बीमारी और खोखलेपन से मुक्त नहीं कर पाईं। मैं बार-बार खुद से पूछती : “अब जब मुझे दूसरों का सम्मान और सराहना मिल गई है, तो मैं जरा भी खुश क्यों नहीं हूँ? बल्कि, खोखली, दुखी, लाचार, और अकेली महसूस कर रही हूँ। लोग किस मकसद को लेकर जीते हैं? सार्थक जीवन कैसे जी सकते हैं?”
हर बार जब थकी-मांदी घर लौटती, मेरी माँ दुखी होकर बार-बार पूछती, “बेटा, तुम सुबह से शाम तक इतनी व्यस्त रहती हो। तुम्हारी हालत खराब हो चुकी है। क्या ये सही है? तुम्हें परमेश्वर में विश्वास करना चाहिए—हमें उसी ने बनाया है। आस्था रखने से तुम्हें सत्य हासिल होगा, जो सार्थक, शांत जीवन जीने का एकमात्र तरीका है। आस्था के बिना, तुम संसार में जिसका भी अनुसरण करोगे वो खोखला लगेगा।” मैं जानती थी कि आस्था रखना अच्छी बात है, पर मेरा दिल मेरे काम में लगा था। बड़े होकर, रिटायर होने के बाद विश्वासी बनना चाहती थी। इतनी कम उम्र में अपने करियर पर ध्यान कैसे नहीं देती? मैंने अपनी माँ की बातों को गंभीरता से नहीं लिया।
क्योंकि मैं हमेशा परेशान रहती, काम में भी और मानसिक तौर पर भी, तो मुझे एंडोक्राइन डिसऑर्डर हो गया जिससे मेरी इम्यूनिटी पर असर पड़ा। मुझे त्वचा की अजीब सी बीमारी हो गई, बहुत खुजलाहट होती थी, त्वचा के भीतर से खुजली होती थी। हाथ से खुजाने या दवाई लेने से कुछ फर्क नहीं पड़ता था। मैं एक हाथ से अपने चेहरे की त्वचा पकड़ कर, और दूसरे हाथ में स्किन टेस्ट वाली सूई लेकर बार-बार चुभोती थी, पूरा चेहरा लहूलुहान हो जाता। त्वचा पर बहुत तेज खुजली होती थी, और मर जाना ही बेहतर लगता था। मेरा चेहरा बहुत सूज गया था। आईने में देखा तो न इंसान दिख रही थी और न ही भूत, घर से निकलना दूभर था। मैंने सोचा, “मैं दूसरों की सभी कठिन बीमारियाँ ठीक कर सकती हूँ, पर अपनी नहीं। लानत है!” मैं इतनी खूबसूरत थी, पर अब बर्बाद हो चुकी थी। मैं खिड़की से कूदकर मर जाना चाहती थी। मैं रोती-तड़पती रहती थी, “ओह! मैंने पिछले जन्म में बहुत कुकर्म किए होंगे जिसका ये फल मिला है!” आखिर मैं इलाज के लिए एक चीनी डॉक्टर के पास गई। उसने कहा कि उसने पहले भी ऐसी बीमारी देखी है जो 20 साल के इलाज से भी ठीक नहीं हुई। ये सुनकर मैं सहम गई। क्या मैं अपना बाकी जीवन इसी तरह बिताऊँगी? मैंने सारा जीवन नाम कमाने में लगा दिया, पर अब मेरी हालत ऐसी थी। मेरे जीवन का क्या अर्थ था? मैं बस नींद की गोलियाँ खाकर सब खत्म कर देना चाहती थी। अप्रैल 2018 में, जैसे ही मैं अपनी जान लेने वाली थी, मेरी माँ ने फिर से परमेश्वर के अंत के दिनों का कार्य साझा किया।
मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया की संगीत नाटिका “शिओचेन की कहानी” देखी। मैं बहुत प्रेरित हुई। उसमें परमेश्वर के कुछ वचन भी थे : “सर्वशक्तिमान ने बुरी तरह से पीड़ित इन लोगों पर दया की है; साथ ही, वह उन लोगों से विमुख महसूस करता है, जिनमें चेतना की कमी है, क्योंकि उसे मनुष्य से जवाब पाने के लिए बहुत लंबा इंतजार करना पड़ा है। वह तुम्हारे हृदय की, तुम्हारी आत्मा की तलाश करना चाहता है, तुम्हें पानी और भोजन देना और तुम्हें जगाना चाहता है, ताकि अब तुम भूखे और प्यासे न रहो। जब तुम थक जाओ और तुम्हें इस दुनिया के बेरंग उजड़ेपन का कुछ-कुछ अहसास होने लगे, तो तुम हारना मत, रोना मत। द्रष्टा, सर्वशक्तिमान परमेश्वर, किसी भी समय तुम्हारे आगमन को गले लगा लेगा। वह तुम्हारी बगल में पहरा दे रहा है, तुम्हारे लौट आने का इंतजार कर रहा है। वह उस दिन की प्रतीक्षा कर रहा है जिस दिन तुम अचानक अपनी याददाश्त फिर से पा लोगे : जब तुम्हें यह एहसास होगा कि तुम परमेश्वर से आए हो लेकिन किसी अज्ञात समय में तुमने अपनी दिशा खो दी थी, किसी अज्ञात समय में तुम सड़क पर होश खो बैठे थे, और किसी अज्ञात समय में तुमने एक ‘पिता’ को पा लिया था; इसके अलावा, जब तुम्हें एहसास होगा कि सर्वशक्तिमान तो हमेशा से ही तुम पर नज़र रखे हुए है, तुम्हारी वापसी के लिए बहुत लंबे समय से इंतजार कर रहा है। वह हताश लालसा लिए देखता रहा है, जवाब के बिना, एक प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा करता रहा है। उसका नज़र रखना और प्रतीक्षा करना बहुत ही अनमोल है, और यह मानवीय हृदय और मानवीय आत्मा के लिए है। शायद ऐसे नज़र रखना और प्रतीक्षा करना अनिश्चितकालीन है, या शायद इनका अंत होने वाला है। लेकिन तुम्हें पता होना चाहिए कि तुम्हारा दिल और तुम्हारी आत्मा इस वक्त कहाँ हैं” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, सर्वशक्तिमान की आह)। परमेश्वर के वचन की हर बात मेरे दिल में बस गई। शाओझेन की कहानी मेरे जीवन का सटीक चित्रण थी। लगा जैसे परमेश्वर बाँहें फैलाकर मुझे बुला रहा है, “बेटे, वापस आ जाओ!” परमेश्वर के प्रेम से मेरी आँखों में आँसू आ गए, मैं सुबकती रही। उस पल मुझे घर वापस आने की खुशी महसूस हुई। मेरे भटके हुए दिल को अपना सुरक्षित ठिकाना मिल गया। इतने सालों का अकेलापन, दुख, उदासी दूर हो गई, वो सारे राज परमेश्वर को बता सकती थी जो किसी को नहीं बताए थे। मैं दिल से रोई, “परमेश्वर ही जानता है मेरा जीवन कितना दयनीय रहा है। सृष्टिकर्ता ही मनुष्य से सच्चा प्रेम कर सकता है!” मैं रोते हुए परमेश्वर के पास आई और कहा, “परमेश्वर! जब मैं अपने करियर में कड़ी मेहनत करके थक गई थी, तब तुमने मेरी माँ के जरिये बार-बार मेरे साथ सुसमाचार साझा किया, पर मैं अपने करियर की खातिर तुम्हारे सामने नहीं आना चाहती थी। शाओझेन को मंच पर बार-बार ‘परमेश्वर,’ ‘परमेश्वर’ पुकारते देखा मुझे चोट पर चोट जैसा महसूस हुआ। मेरे उद्धार के लिए बढ़ा तुम्हारा हाथ बार-बार झटककर, तुम्हें दुख पहुँचाने पर मुझे खुद से नफरत है। पर तुमने मेरे उद्धार से हार नहीं मानी। मेरे साथ खड़े रहकर उस पल का इंतजार किया जब मैं तुम्हारे पास वापस आऊँ, ताकि तुम मुझे पीड़ा के समुद्र से बचा सको। हे परमेश्वर, मैं तुममें विश्वास करना चाहती हूँ। मैं करीब से तुम्हारा अनुसरण और भक्ति करना चाहती हूँ!” फिर मैंने रोते हुए परमेश्वर को वो सारी बातें बताई जो बरसों से दिल में दबा रखी थी। मेरा मन बहुत हल्का और शांत हो गया। परमेश्वर के सामने आ पाने से मैं बेहद खुश हुई, मुझे अपनी जिद और बार-बार परमेश्वर के उद्धार को ठुकराने पर बहुत पछतावा हुआ।
परमेश्वर के वचनों की मेरी भूख बहुत बढ़ गई। शैतान द्वारा मानवजाति की भ्रष्टता की जो तस्वीर परमेश्वर ने दिखाई, उसका मेरे दिल पर गहरा असर पड़ा। परमेश्वर के सभी वचन सत्य हैं, वे हम मनुष्यों की सच्चाई का खुलासा करते हैं। भाई-बहनों के साथ सभा करके और परमेश्वर की स्तुति के भजन गाकर मुझे बहुत संतुष्टि मिली। मैं बहुत खुश थी। मैंने देखा कि भाई-बहन एक-दूसरे के प्रति ईमानदार और सच्चे थे। भ्रष्टता दिखने पर वे बिना किसी साजिश या धोखे के खुलकर संगति करते और एक-दूसरे की मदद करते। लगा जैसे मैं किसी और दुनिया में जी रही थी, मैं अपना पुराना दुख पूरी तरह भूल गई। मेरी सेहत भी धीरे-धीरे बेहतर हो गई। मैं परमेश्वर के उद्धार की बहुत आभारी थी। मैं सोच रही थी, जब से विश्वासी बनी हूँ, रोज परमेश्वर के वचन पढ़कर, उसकी स्तुति में भजन गाकर बहुत खुश हूँ। बाहरी संसार में जब मेरे पास करियर, नाम, रुतबा, पैसा, सब कुछ था, तो मैं जरा भी खुश नहीं थी, बल्कि मेरा जीवन बेहद दुखी था? मैंने परमेश्वर के वचनों में कुछ पढ़ा : “शैतान मनुष्य के विचारों को नियंत्रित करने के लिए प्रसिद्धि और लाभ का तब तक उपयोग करता है, जब तक सभी लोग प्रसिद्धि और लाभ के बारे में ही नहीं सोचने लगते। वे प्रसिद्धि और लाभ के लिए संघर्ष करते हैं, प्रसिद्धि और लाभ के लिए कष्ट उठाते हैं, प्रसिद्धि और लाभ के लिए अपमान सहते हैं, प्रसिद्धि और लाभ के लिए अपना सर्वस्व बलिदान कर देते हैं, और प्रसिद्धि और लाभ के लिए कोई भी फैसला या निर्णय ले लेते हैं। इस तरह शैतान लोगों को अदृश्य बेड़ियों से बाँध देता है और उनमें उन्हें उतार फेंकने का न तो सामर्थ्य होता है, न साहस। वे अनजाने ही ये बेड़ियाँ ढोते हैं और बड़ी कठिनाई से पैर घसीटते हुए आगे बढ़ते हैं। इस प्रसिद्धि और लाभ के लिए मानवजाति परमेश्वर से दूर हो जाती है, उसके साथ विश्वासघात करती है और अधिकाधिक दुष्ट होती जाती है। इसलिए, इस प्रकार एक के बाद एक पीढ़ी शैतान की प्रसिद्धि और लाभ के बीच नष्ट होती जाती है” (वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है VI)। “अगर तुम सत्य नहीं समझते, तो तुम इस मामले को स्पष्ट रूप से नहीं देख पाओगे और सोचोगे, ‘लड़ने की इच्छा रखना अच्छी बात है; यह उचित है। अगर लोगों में लड़ने की थोड़ी भी इच्छा न हो, तो वे कैसे जी सकते हैं? अगर उनमें लड़ने की थोड़ी भी इच्छा न हो, तो उनमें जीने की कोई भावना या ताकत नहीं होगी। तो फिर जीने का क्या मतलब है? वे हर प्रतिकूल परिस्थिति के सामने समर्पण कर देते हैं—यह कितना कमजोर और कायरतापूर्ण है!’ सभी लोग सोचते हैं कि उन्हें अपनी योग्यता प्रदर्शित करने के लिए लड़ना चाहिए। वे अपनी योग्यता प्रदर्शित करने के लिए कैसे लड़ते हैं? ‘लड़ाई’ शब्द पर जोर देकर। उन्हें चाहे किसी भी परिस्थिति का सामना करना पड़े, वे लड़कर अपना लक्ष्य प्राप्त करने की कोशिश करते हैं। हार न मानने की मानसिकता की उत्पत्ति ‘लड़ाई’ शब्द से हुई है। ... वे रोज लड़ते हुए जीते हैं। चाहे वे कुछ भी करें, वे हमेशा लड़कर जीत हासिल करने की कोशिश करते हैं और अपनी जीत की शान बघारते हैं। वे जो कुछ भी करते हैं, उसमें अपनी योग्यता प्रदर्शित करने के लिए लड़ने का प्रयास करते हैं—क्या वे इसे हासिल कर सकते हैं? असल में वे किस चीज के लिए प्रतिस्पर्धा और लड़ाई कर रहे हैं? उनकी सारी लड़ाई प्रसिद्धि, लाभ और हैसियत के लिए है; उनकी सारी लड़ाई उनके स्वार्थ के लिए है। वे क्यों लड़ रहे हैं? वे एक नायक की तरह दिखने और संभ्रांत कहे जाने के लिए लड़ रहे हैं। अलबत्ता, उनकी लड़ाई का अंत मृत्यु के साथ होना चाहिए, और उन्हें दंड मिलना ही चाहिए। इस बारे में कोई सवाल ही नहीं है। जहाँ कहीं भी शैतान और दानव हैं, वहाँ लड़ाई है। वे अंततः नष्ट हो जाएँगे, और फिर लड़ाई भी समाप्त हो जाएगी। शैतान और दानवों का यही परिणाम होगा” (वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, प्रकरण एक : सत्य क्या है)। परमेश्वर के वचनों से मन की उलझन दूर हो गई और मैंने तुरंत प्रबोधन महसूस किया। मुझे एहसास हुआ, शोहरत, दौलत, और रुतबा शैतान की चालें हैं जिनसे वह लोगों को भ्रष्ट, गुमराह, और काबू में करता है। वे ऐसी बेड़ियाँ भी हैं जिनसे शैतान हमें बाँधता है, और हममें से कोई भी खुद उन बेड़ियों से आजाद नहीं हो सकता। मैंने उन 28 सालों में इतनी मेहनत की, मेरा जीवन दयनीय हो गया। मैं इन शैतानी विषों को सकारात्मक चीजें मान बैठी थी, जैसे “अपनी प्रतिष्ठा के लिए लड़ने की खातिर लोगों में दृढ़ता होनी चाहिए,” “लोगों को सम्मान पाने की कोशिश करनी चाहिए,” “शीर्ष पर पहुँचने के लिए तुम्हें बड़ी पीड़ा सहनी होगी,” “आदमी ऊपर की ओर जाने के लिए संघर्ष करता है; पानी नीचे की ओर बहता है,” और “एक व्यक्ति जहाँ रहता है वहाँ अपना नाम छोड़ता है, जैसे कि एक हंस जहाँ कहीं उड़ता है आवाज़ करता जाता है।” मैं इन्हें अपने जीवन के लक्ष्य मान बैठी थी। मैं दौलत-शोहरत पाने के मार्ग पर भागी जा रही थी, दयनीय जीवन जी रही थी। पहले-पहल, जब मेरी सहपाठी ने मेरा मजाक बनाया और मुझे नीचा दिखाया था, तो मैंने खुद को साबित करने की कसम खाई थी। मैंने बहुत रुतबा और नाम कमाया। दौलत-शोहरत पाने के लिए कड़ी मेहनत करने लगी। पर्मिंग केमिकल से मेरे हाथ कट-फट गए थे, पर किसी और को काम पर रखना नहीं चाहती थी। पैसे बचाने के लिए, दिन में एक बार खाना खाती और पानी पीकर भूख मिटाती। बहुत थक चुकी थी, पर आराम नहीं करना चाहती थी। मैंने “शीर्ष पर पहुँचने के लिए तुम्हें बड़ी पीड़ा सहनी होगी” को दौलत-शोहरत पाने की प्रेरणा माना। फिर स्थानीय तौर पर अपनी पहचान बनाकर कुछ समय के लिए संतुष्ट हुई, पर अभी भी नाम और रुतबे के पीछे भागना नहीं छोड़ा। मेरी महत्वाकांक्षा और चाहत आसमान छूती गई। समाज में खुद को ऊँचा उठाने, अपनी शोहरत बढ़ाने के लिए, और ज्यादा लोगों की सराहना और सम्मान पाने के लिए, मैंने 15 साल चिकित्सा की पढ़ाई के अलावा कुछ और नहीं सोचा, मेरे पास अपनी माँ और बेटे से मिलने का भी वक्त नहीं था। अपने करियर और नाम के अलावा और कुछ नहीं सोचती थी। जब मुझे सफलता मिली, तो फूलों और तालियों की गूँज में मैंने सब कुछ भुला दिया। मैंने बार-बार परमेश्वर के उद्धार का हाथ भी झटक दिया। दूसरों से तारीफ सुनने के लिए, मैंने दिखावा किया। शरीर इतना थक गया कि मैं बीमार पड़ गई थी, फिर भी भाषण देती रही। फिर ये सारी थकावट एक अजीब बीमारी में तब्दील हो गई, मैं मर जाना चाहती थी। दौलत-शोहरत की बेड़ियाँ पहनकर मैं जिस मार्ग पर चलती रही वो भयानक था। अँधेरे में मीलों चलते गधे की तरह, कितनी भी कोशिश करूँ खुद को आजाद नहीं कर पाई। मैं इन शैतानी विषों के साथ जी रही थी, मेरे दिल में सिर्फ दौलत-शोहरत और मन में दूसरों का सम्मान था। मैं बहुत स्वार्थी और नीच बन गई थी, मुझमें जरा भी अपनापन या प्यार नहीं था। मैं एक निष्ठुर प्राणी जैसी थी, न मनुष्य की तरह जी रही थी और न ही जानवर की तरह। मैंने जो नाम कमाया उसके पीछे कितना कष्ट था, यह सिर्फ मैं जानती थी। यह जीवन के लिए सही मार्ग नहीं था। मेरी सहपाठी की उस एक बात से, मैं आम इंसान नहीं बनना चाहती थी, बल्कि दूसरों से बड़ा दिखना और ऊँचा उठना चाहती थी। दो दशकों तक, मैंने इस तरह कष्ट सहा जैसे अवन में रोस्ट हो रही थी। जैसे कि परमेश्वर के वचन कहते हैं : “अगर कोई हमेशा श्रेष्ठ बनना और दूसरों से आगे रहना चाहता है, तो यह खुद को आग में भूनने और खुद को माँस पीसने की चक्की में डालने के बराबर है—वे खुद ही मुसीबत मोल रहे हैं” (वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद बारह : जब कोई रुतबा या आशीष पाने की आशा नहीं होती तो वे पीछे हटना चाहते हैं)। परमेश्वर के वचनों के प्रकाशन के बिना, कोई भी नहीं देख पाता है कि “लोगों को सम्मान पाने की कोशिश करनी चाहिए” और “शीर्ष पर पहुँचने के लिए तुम्हें बड़ी पीड़ा सहनी होगी” ऐसी भ्रांतियाँ और चालें हैं जिनसे शैतान मनुष्य को भ्रष्ट करता है।
मैंने परमेश्वर के वचनों में कुछ और भी पढ़ा : “जब किसी व्यक्ति का कोई परमेश्वर नहीं होता है, जब वह उसे नहीं देख सकता है, जब वह स्पष्टता से परमेश्वर की संप्रभुता को समझ नहीं सकता है, तो उसका हर दिन निरर्थक, बेकार, और हताशा से भरा होगा। कोई व्यक्ति जहाँ कहीं भी हो, उसका कार्य जो कुछ भी हो, उसके आजीविका के साधन और उसके लक्ष्यों की खोज उसके लिए बिना किसी राहत के, अंतहीन निराशा और असहनीय पीड़ा के सिवाय और कुछ लेकर नहीं आती है, ऐसी पीड़ा कि वह पीछे अपने अतीत को मुड़कर देखना भी बर्दाश्त नहीं कर पाता है। केवल तभी जब वह सृजनकर्ता की संप्रभुता को स्वीकार करेगा, उसके आयोजनों और उसकी व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण करेगा, और एक सच्चे मानव जीवन को खोजेगा, केवल तभी वह धीरे-धीरे सभी निराशाओं और पीड़ाओं से मुक्त होगा, और जीवन की सम्पूर्ण रिक्तता से छुटकारा पाएगा” (वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है III)। परमेश्वर के वचनों से मुझे एहसास हुआ कि पिछले 20 सालों में मैंने इतना कष्ट इसलिए सहा क्योंकि मैं परमेश्वर को नहीं जानती थी। मैं जीवन में सही लक्ष्य और दिशा के बिना शैतानी फलसफों के अनुसार जी रही थी। इसलिए मैं गलत मार्ग पर थी। शैतान बेरहमी से मेरे साथ खिलवाड़ कर रहा था और मैं निरर्थक जीवन जी रही थी। मैंने परमेश्वर के सामने आकर उसके वचनों को अपने जीवन का आधार माना, उसके नियम और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पित हुई, परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने का मार्ग अपनाया, ताकि जीवन में सही मार्ग पा सकूँ। अय्यूब की ही तरह, जो पूर्व में सबसे अमीर आदमी था, उसका परिवार बहुत संपन्न था, पर वह जानता था हमारे पास जो भी है सब परमेश्वर की संप्रभुता के अधीन है। वह नाम या रुतबे के पीछे नहीं भागा, बल्कि सामान्य ढंग से काम किया। वह आजादी और खुशी से जीता था। फिर रातोंरात उसके परिवार की संपत्ति छीन ली गई, उसके सभी बच्चे मर गए, पर वह परमेश्वर की स्तुति करता रहा, कहा “यहोवा ने दिया और यहोवा ही ने लिया; यहोवा का नाम धन्य है” (अय्यूब 1:21)। उसने परमेश्वर के लिए शानदार गवाही दी। अय्यूब परमेश्वर के नियम-व्यवस्थाओं के प्रति समर्पित हुआ, उसका भय मानकर बुराई से दूर रहने का मार्ग अपनाया। वह सम्मान के साथ जिया और आखिर में परमेश्वर की स्वीकृति पाई। मैं अय्यूब जैसी बनना चाहती थी, गलत मार्ग को त्यागना चाहती थी, सच्ची आस्था रखकर परमेश्वर के वचन पढ़ना चाहती थी, सत्य का अनुसरण करके सृजित प्राणी का कर्तव्य निभाना चाहती थी। अपने दिल के खोखलेपन और पीड़ा से, और शैतान की हानि और बेड़ियों से आजाद होने का यही तरीका था। मेरे लिए यही एक मार्ग था। मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, उसके वचनों का अनुसरण करने और उसकी आज्ञा मानने वाली बनना चाहा।
मगर जब मैं अपना करियर त्याग कर खुद को आस्था और कर्तव्य में झोंकना चाहती थी, तो मेरे सामने कुछ रुकावटें आईं। एक दिन मेरे बेटे का कॉल आया। मेरी कंपनी बंद होने वाली थी, वो चाहता था मैं जाकर उसे बचा लूँ। यह सुनकर मैं दुविधा में पड़ गई। 28 साल की कड़ी मेहनत क्या यूँ ही बेकार हो जाएगी? एक पल में मेरे पास कुछ नहीं बचेगा, जैसा मेरे करियर की शुरुआत में था। लोग मुझे कैसे देखेंगे, मेरे बारे में कैसी बातें करेंगे? मैं दूसरों का सामना कैसे करूँगी? मेरे पास जीविका चलाने का कोई जरिया नहीं होगा। मैं इस तरह इसे त्यागना नहीं चाहती थी। जब मैं कंपनी बचाने के लिए जाने की सोच रही थी, तभी मेरे दोनों हाथ लाल पड़ गए, बहुत ज्यादा खुजलाने लगे, जैसे मेरा चेहरा खुजलाता था। मुझे दर्द हो रहा था, मैं बहुत परेशान थी। क्योंकि मैं अब तक ठीक नहीं हुई थी, वापस जाकर फिर से बीमार पड़ गई तो क्या होगा? मैं जानती थी कि ऐसे संकट में परमेश्वर से बात करना ही एकमात्र हल है। तो मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की : “परमेश्वर! जानती हूँ मैं गलत मार्ग पर थी, पैसे और शोहरत के पीछे भागती थी। अब मैं रोज तुम्हारे वचन पढ़ना और कर्तव्य निभाता चाहती हूँ, पर मेरी कंपनी बंद होने वाली है। मैं बड़ी दुविधा में हूँ। मैं नहीं चाहती कि 20 साल की मेहनत से खड़ा किया गया कारोबार यूँ ही ठप पड़ जाए। परमेश्वर, मुझे सच में नहीं पता क्या करूँ। मुझे रास्ता दिखाओ।” फिर एक सुबह किसी शिक्षार्थी का कॉल आया कि हमारे टीचर को दौरा पड़ा था, उन्हें अस्पताल ले जाया गया पर वे नहीं बच पाए। मुझे एहसास हुआ कि यह परमेश्वर की चेतावनी थी, मुझे दिखाने के लिए कि कितना भी नाम या पैसा हो, यह मेरा जीवन नहीं बचा सकता। कॉल रखने के बाद, मैंने परमेश्वर के सामने घुटने टेककर प्रार्थना की, “हे परमेश्वर! जानती हूँ तूने मेरी प्रार्थना सुनी है। मेरे टीचर की मौत ने आँखें खोल दीं। अब मैं समझती हूँ कि आज मैं तेरे उद्धार के कारण ही जिंदा हूँ। जब मैं अपनी बीमारी की पीड़ा से तड़पकर मर जाना चाहती थी, तब तुमने मुझे अपनी वाणी सुनने दी, मुझे बचाया। आज मैं ये अनमोल अवसर संजोना चाहती हूँ, वही गलती दोहराना नहीं चाहती।”
उस दौरान, मैंने परमेश्वर के कुछ वचन पढ़े जो मेरे दिल को छू गए और मैं साफ देख पाई कि हमें जीवन में किसका अनुसरण करना चाहिए। परमेश्वर कहते हैं : “यद्यपि जीवित बचे रहने के जिन विभिन्न कौशल पर महारत हासिल करने के लिए लोग अपना जीवन गुज़ार देते हैं वे भरपूर भौतिक सुख दे सकते हैं, लेकिन वे किसी मनुष्य के हृदय में कभी भी सच्ची शान्ति और तसल्ली नहीं ला सकते हैं, बल्कि इसके बदले वे लोगों को निरंतर उनकी दिशा से भटकाते हैं, लोगों के लिए स्वयं पर नियंत्रण रखना कठिन बनाते हैं, और उन्हें जीवन का अर्थ सीखने के हर अवसर से वंचित कर देते हैं; उत्तरजीविता के ये कौशल इस बारे में उत्कंठा का एक अंतर्प्रवाह पैदा करते हैं कि किस प्रकार सही ढंग से मृत्यु का सामना करें। इस तरह से, लोगों के जीवन बर्बाद हो जाते हैं” (वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है III)। “लोग अपना जीवन धन-दौलत और प्रसिद्धि का पीछा करते हुए बिता देते हैं; वे इन तिनकों को यह सोचकर कसकर पकड़े रहते हैं, कि केवल ये ही उनके जीवन का सहारा हैं, मानो कि उनके होने से वे निरंतर जीवित रह सकते हैं, और मृत्यु से बच सकते हैं। परन्तु जब मृत्यु उनके सामने खड़ी होती है, केवल तभी उन्हें समझ आता है कि ये चीज़ें उनकी पहुँच से कितनी दूर हैं, मृत्यु के सामने वे कितने कमज़ोर हैं, वे कितनी आसानी से बिखर जाते हैं, वे कितने एकाकी और असहाय हैं, और वे कहीं से सहायता नही माँग सकते हैं। उन्हें समझ आ जाता है कि जीवन को धन-दौलत और प्रसिद्धि से नहीं खरीदा जा सकता है, कि कोई व्यक्ति चाहे कितना ही धनी क्यों न हो, उसका पद कितना ही ऊँचा क्यों न हो, मृत्यु के सामने सभी समान रूप से कंगाल और महत्वहीन हैं। उन्हें समझ आ जाता है कि धन-दौलत से जीवन नहीं खरीदा जा सकता है, प्रसिद्धि मृत्यु को नहीं मिटा सकती है, न तो धन-दौलत और न ही प्रसिद्धि किसी व्यक्ति के जीवन को एक मिनट, या एक पल के लिए भी बढ़ा सकती है। लोग जितना अधिक इस प्रकार महसूस करते हैं, उतनी ही अधिक उनकी जीवित रहने की लालसा बढ़ जाती है; लोग जितना अधिक इस प्रकार महसूस करते हैं, उतना ही अधिक वे मृत्यु के पास आने से भयभीत होते हैं। केवल इसी मोड़ पर उन्हें वास्तव में समझ में आता है कि उनका जीवन उनका नहीं है, और उनके नियंत्रण में नहीं है, और किसी का इस पर वश नहीं है कि वह जीवित रहेगा या मर जाएगा—यह सब उसके नियंत्रण से बाहर है” (वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है III)। परमेश्वर के प्रबुद्ध करने वाले वचनों से मेरा दिल रौशन हो गया। मैंने अपने टीचर को याद किया जो जीवन भर दौलत-शोहरत के पीछे भागे। उनके चाहने वाले हर जगह थे, दौलत और शोहरत की कमी नहीं थी। पर वे जितने भी कामयाब हों, जब बीमार पड़े और उनका जीवन खतरे में था, तो वो शोहरत उन्हें नहीं बचा पाई। इससे मैं समझ पाई कि चाहे किसी का कितना भी नाम हो, वह उसका जीवन एक पल के लिए भी नहीं बढ़ा सकता। चाहे किसी के पास कितना भी पैसा हो, उससे सेहत नहीं खरीदी जा सकती। मैं ऐसी ही हुआ करती थी। मेरे पास कामयाबी और शोहरत थी, पर बीमारी की पीड़ा से मर जाना चाहती थी। और नाम कमाकर मुझे क्या मिला? इससे मेरे मन का खोखलापन और शारीरिक पीड़ा जरा भी दूर नहीं हुई। फिर मैंने अनुभव किया कि दौलत-शोहरत टूटते तारों जैसे हैं, उनकी चमक क्षणिक है, पल भर की खुशी और संतुष्टि देते हैं। भले ही मैंने शोहरत और दौलत हासिल की थी, पर क्या मैं अब भी सामान्य इंसान नहीं थी? मुझे भूख मिटाने के लिए तीन वक्त का खाना और लेटने की जगह चाहिए थी। मैंने अकेलेपन का सामना किया, सारी पीड़ा अकेली सही, इतनी थकावट खुद सही, और अपनी बीमारी से भी खुद निपटी। मैं दूसरों जैसी ही थी। आस्था के बिना, परमेश्वर के सामने आकर उसके वचन पढ़े बिना, हम उसकी संप्रभुता को नहीं समझ सकते, सकारात्मक और नकारात्मक चीजों में भेद नहीं कर सकते। हम बस संसार की बुरी प्रवृत्तियों के साथ चल सकते हैं, दौलत-शोहरत की बेड़ियों में बँधकर कदम-कदम पर संघर्ष करते हैं, शैतान हमारे साथ खेलता, हमें कुचलता और नुकसान पहुँचाता है। मेरी सहकर्मी और टीचर की मौत मेरे लिए चेतावनी थी। अगर मैं दौलत-शोहरत के पीछे भागती रही, तो मेरा भी वही हाल होता। जब इसका एहसास हुआ तब जाकर मुझे असल में डर लगा। मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, दौलत-शोहरत की बेड़ियों को तोड़ने, सच्ची आस्था रखने और सत्य का अनुसरण कर परमेश्वर के प्रति समर्पित होने को तैयार थी।
बाद में, मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश देखा जिसने मेरे फैसले को दृढ़ता दी। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं : “क्या तुम लोग पृथ्वी पर मेरे आशीष का आनंद लेना चाहते हो, ऐसे आशीष का जो स्वर्ग के समान है? क्या तुम लोग मेरी समझ को, मेरे वचनों के आनंद को और मेरे बारे में ज्ञान को, अपने जीवन की सर्वाधिक बहुमूल्य और सार्थक वस्तु के रूप संजोने को तैयार हो? क्या तुम लोग, अपने भविष्य की संभावनाओं पर विचार किए बिना, वास्तव में मेरे प्रति पूरी तरह से समर्पण कर सकते हो? क्या तुम लोग सचमुच अपना जीवन-मरण मेरे अधीन करके एक भेड़ के समान मेरी अगुआई में चलने को राज़ी हो? क्या तुम लोगों में ऐसा कोई है जो यह करने में समर्थ है? क्या ऐसा हो सकता है कि ऐसे सभी लोग जो मेरे द्वारा स्वीकार किए जाते हैं और मेरी प्रतिज्ञाओं को प्राप्त करते हैं, वे ही ऐसे लोग हैं जो मेरा आशीष पाते हैं? क्या तुम लोग इन वचनों से कुछ समझे हो? यदि मैं तुम लोगों की परीक्षा लूँ, तो क्या तुम लोग सचमुच स्वयं को मेरे हवाले कर सकते हो, और इन परीक्षणों के बीच, मेरे इरादों की खोज और मेरे हृदय को महसूस कर सकते हो? मैं नहीं चाहता कि तुम अधिक मर्मस्पर्शी बातें कहने, या बहुत-सी रोमांचक कहानियाँ सुनाने लायक बनो; बल्कि, मैं चाहता हूँ कि तुम मेरी उत्तम गवाही देने लायक बनो, पूरी तरह और गहराई से वास्तविकता में प्रवेश कर सको। यदि मैं सीधे तौर पर तुम से न बोलता, तो क्या तुम अपने आसपास की सब चीजों को त्याग कर मुझे अपना उपयोग करने दे सकते थे? क्या मुझे इसी वास्तविकता की अपेक्षा नहीं है? मेरे वचनों के अर्थ को कौन ग्रहण कर सकता है? फिर भी मैं कहता हूँ कि तुम लोग अब गलतफहमी में न पड़ना, तुम लोग अपने प्रवेश में सक्रिय बनो और मेरे वचनों के सार को ग्रहण करो। ऐसा करना तुम लोगों को मेरे वचनों के मिथ्याबोध और मेरे अर्थ के विषय में अस्पष्ट होने से और इस प्रकार मेरे प्रशासनिक आदेशों के उल्लंघन से बचाएगा। मैं चाहता हूँ कि तुम लोग मेरे वचनों में तुम्हारे लिए मेरे जो इरादे हैं, उन्हें ग्रहण करो। अब केवल अपनी भविष्य की संभावनाओं पर ही विचार न करो, और तुम लोगों ने मेरे सम्मुख सभी चीज़ों में परमेश्वर को अपने लिए आयोजन करने देने का जो संकल्प लिया है, ठीक उसी के अनुरूप कार्य करो। वे सभी जो मेरे कुल के भीतर हैं उन्हें जितना अधिक संभव हो उतना करना चाहिए; पृथ्वी पर मेरे कार्य के अंतिम भाग में तुम्हें अपना सर्वोत्तम अर्पण करना चाहिए। क्या तुम वास्तव में ऐसी बातों को अभ्यास में लाने के लिए तैयार हो?” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 4)। परमेश्वर के वचन पढ़कर मेरी आँखों से आँसू छलक पड़े। मुझे लगा परमेश्वर मेरे साथ खड़ा था, जैसे मैं उसके आमने-सामने थी, वह मुझसे पूछ रहा था कि क्या मैं सब कुछ उसे सौंपकर उसकी व्यवस्थाओं को स्वीकारने और समर्पण करने को तैयार हूँ। मैंने पतरस के बारे में सोचा। उसके जीवन का लक्ष्य परमेश्वर से प्रेम कर उसे संतुष्ट करना था, और वह मरते दम तक परमेश्वर के प्रति समर्पित रहा, उससे बहुत प्रेम किया। परमेश्वर की खातिर सूली पर उल्टा लटक गया और शानदार गवाही दी, उसने एक सार्थक जीवन जिया। मैंने अपने अतीत को याद किया, जब मेरी सहकर्मी ने वो फालतू बात कही थी। मैंने अपनी जवानी और सेहत दाँव पर लगा दी, दूसरों की सराहना पाने के लिए दौलत-शोहरत और रुतबे के पीछे भागती रही, अपना जीवन बेहद दयनीय बना दिया। परमेश्वर ने बहुत से लोगों में से मुझे चुना, और मौत के मुँह से निकाल लाया। मैं कितनी खुशकिस्मत हूँ कि परमेश्वर के सामने आकर उसकी वाणी सुन पाई, उसके सिंचन और चरवाही को स्वीकार पाई। ये मेरे लिए परमेश्वर का महान उद्धार था। अंत के दिनों में, परमेश्वर ने मनुष्यों को स्वच्छ करके बचाने के लिए बहुत से सत्य व्यक्त किए हैं, ताकि हम शैतानी स्वभावों को त्याग कर, उसके प्रभाव से पूरी तरह आजाद हो सकें, और शैतान की भ्रष्टता हमें नुकसान नहीं पहुँचा पाए, और हम परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करें। मैं परमेश्वर द्वारा मनुष्य को बचाने और पूर्ण करने का एकमात्र अवसर नहीं गँवा सकती थी, खासकर परमेश्वर के अथक प्रयासों के लिए उसे निराश नहीं कर सकती थी। मुझे सच्ची आस्था रखकर सत्य का अनुसरण करना था। यह सोचकर, मैंने मन में परमेश्वर से कहा, “परमेश्वर, मैं तैयार हूँ! चाहे बुढ़ापे में मेरे पास दौलत या शोहरत, कुछ भी न बचे, तो भी तुम्हारी व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण करूँगी, तुम्हारे वचनों का अनुसरण करते हुए समर्पण करूँगी, सृजित प्राणी का कर्तव्य निभाऊँगी।”
इसके बाद, मैंने अपना कारोबार बेटे को सौंप दिया और अपनी पुरानी जिंदगी को हमेशा के लिए अलविदा कहा। मेरा स्वास्थ ठीक हो गया। जल्दी ही, मैं कलीसिया में एक कर्तव्य निभाने लगी, और उन लोगों और मामलों का अनुभव करने लगी जिन्हें परमेश्वर ने व्यवस्थित किया था। अब मेरा ध्यान सत्य का अनुसरण कर सबक सीखने पर है, अब मुझे वैसी शांति महसूस होती है जो पहले कभी नहीं हुई। परमेश्वर का धन्यवाद!