17. युवावस्था का एक विशेष अनुभव

झेंगशिन, चीन

मैंने 2002 में, 18 वर्ष की आयु में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों का कार्य स्वीकारा था। जुलाई 2004 में, पुलिस ने भाई वांग चेंग और मुझे एक प्रांत में सुसमाचार का प्रचार करते समय गिरफ्तार कर लिया। उस समय, मैंने सोचा, “हम तो केवल सुसमाचार का प्रचार कर रहे हैं और हमने कोई नियम भी नहीं तोड़ा है। और फिर मैं युवा हूँ, इसलिए पुलिस शायद मुझे कुछ नहीं कहेगी। हो सकता है पूछताछ करके छोड़ दे।” लेकिन जो हुआ उसकी मुझे उम्मीद नहीं थी, हमें पुलिस थाने में ले जाकर, एक अधिकारी ने मेज पर हाथ पटकते हुए कर सख्ती से पूछताछ की : “नाम क्या है? कहाँ रहते हो? तुम्हें आने को किसने कहा? किन लोगों में सुसमाचार का प्रचार किया?” जब मैंने कोई जवाब नहीं दिया, तो उसने मेरे गालों पर दो जोरदार थप्पड़ जड़ दिए, तमाचा इतनी जोर का था कि मेरे कान बजने लगे, वह बोला कि सुसमाचार का प्रचार करके हम सामाजिक व्यवस्था को भंग कर रहे हैं और कानून तोड़ रहे हैं। इस बात से मुझे गुस्सा आ गया और मैं सोचने लगा, “क्या मज़ाक है! हम सुसमाचार का प्रचार इसलिए करते हैं क्योंकि हम चाहते हैं कि सभी लोग अच्छे बनें और सही मार्ग पर चलें। उसे सामाजिक व्यवस्था को भंग करना कैसे कहा जा सकता है?” लेकिन पुलिस की क्रूरता को देखते हुए लगा कि उनसे तर्क करना बेकार था, तो मैं चुप ही रहा। उन्होंने वांग चेंग को और मुझे हथकड़ी लगाई और पुलिस की गाड़ी में बिठा दिया। जैसे ही गाड़ी चलने लगी, मेरी बेचैनी बढ़ने लगी। मुझे डर था कि हम जहाँ जा रहे हैं, वहाँ पहुंचते ही वे लोग मेरे साथ मार-पीट करके मुझे यातना देंगे। अगर मैं मुश्किल हालात सहन नहीं पाया और यहूदा बन गया, तो इससे न केवल परमेश्वर के स्वभाव को ठेस पहुँचेगी, बल्कि मेरे कारण और भी भाई-बहन गिरफ्तार हो जाएंगे और उन्हें भी मेरी जैसी यातना झेलनी पड़ेगी। मैं मन ही मन लगातार परमेश्वर से प्रार्थना करता रहा : “परमेश्वर, मैं बहुत डरा हुआ हूँ। मेरी रक्षा कर, मुझे आत्मविश्वास और शक्ति दे।” प्रार्थना के बाद मन थोड़ा शांत हुआ।

वे लोग हमें नगर आपराधिक जांच कार्यालय ले गए। हमारी तलाशी के दौरान पुलिसवालों को मेरे पास एक पेजर मिला, उन्होंने कहा कि मैं जरूर अगुआ हूँ। यह सुनकर मैंने सोचा, “अगर उन्हें लगा कि मैं अगुआ हूँ, फिर तो ये मुझे इतनी आसानी से नहीं छोड़ेंगे।” यह देखकर कि मैं मुँह नहीं खोल रहा, झाओ नाम का एक पुलिसवाला पत्थर-सी मुस्कान के साथ बोला, “जो जानता है बता दे, वरना हम भी देखते हैं कि तू कब तक मुँह नहीं खोलेगा!” कहकर उसने लात-घूँसों की बारिश कर दी और भद्दी-भद्दी गालियाँ दीं, और फिर कसकर मेरे सीने में घूंसा मारा, मैं बुरी तरह जख्मी हो गया और मुझे साँस लेने में परेशानी होने लगी। उसने लगातार मारपीट जारी रखी, उसकी लात खाकर मैं दो मीटर दूर जा गिरा और पलटकर गिरने ही वाला था। मैंने चुपचाप दर्द सहता रहा और एक शब्द नहीं कहा। जब वह थककर चूर हो गया, तो भयानक अंदाज में बोला, “अगर तूने अब भी जबान नहीं खोली, तो हम तुझे टाइगर कुर्सी पर बिठाकर बिजली के डंडे का स्वाद चखाएँगे!” मैं वाकई डर गया। लात-घूंसे खाकर मैं पहले ही दर्द में था। पता नहीं टाइगर कुर्सी से बंधकर बिजली के झटके झेल भी पाऊँगा या नहीं, तो मैं लगातार मन ही मन परमेश्वर से प्रार्थना करता रहा, “हे परमेश्वर, कृपया मेरे दिल की रक्षा करो, मुझे आत्मविश्वास और साहस दो। मैं दृढ़ रहने और कभी यहूदा न बनने के लिए तुम पर भरोसा करना चाहता हूँ।” फिर, मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कुछ वचन याद आए : “तुम्हें किसी भी चीज़ से भयभीत नहीं होना चाहिए; चाहे तुम्हें कितनी भी मुसीबतों या खतरों का सामना करना पड़े, तुम किसी भी चीज़ से बाधित हुए बिना, मेरे सम्मुख स्थिर रहने के काबिल हो, ताकि मेरी इच्छा बेरोक-टोक पूरी हो सके। यह तुम्हारा कर्तव्य है...। अब वह समय है जब मैं तुम्हें परखूंगा : क्या तुम अपनी निष्ठा मुझे अर्पित करोगे? क्या तुम ईमानदारी से मार्ग के अंत तक मेरे पीछे चलोगे? डरो मत; मेरी सहायता के होते हुए, कौन इस मार्ग में बाधा डाल सकता है?(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 10)। सच में, परमेश्वर मेरा मजबूत सहारा है, मेरा जीवन उसी के हाथों में है। मेरी गिरफ्तारी परमेश्वर की अनुमति से ही हुई थी। यह मेरे लिए परमेश्वर की परीक्षा थी। पुलिस मुझे चाहे जितना प्रताड़ित करे, मैं निश्चय ही परमेश्वर की अपनी गवाही में डटा रहूँगा। एक पुलिसवाले ने मेरा नाम और पता पूछा। मैंने सोचा, “मेरा परिवार फिलहाल घर पर कलीसिया के अगुआओं की मेजबानी कर रहा है। अगर मैंने अपने घर का पता बताया और पुलिस तलाशी लेने चली गई, तो मेरे घरवाले और अगुआ, सारे लोग गिरफ्तार हो जाएंगे, इसलिए मैं उन्हें नहीं बता सकता।” मुझे खामोश देखकर वह गुस्से से पागल हो गया। उसने बिना कुछ कहे, परमेश्वर के वचनों की पुस्तक उठाई और जोर से मेरे चेहरे पर दे मारी, जिससे मेरे चेहरे पर बहुत चोट आई, फिर उसने मुझे कसकर लात मारी। इसी बीच, दूसरे पुलिसवाले ने मेरे सीने में जोरदार मुक्का मारा। वे तभी रुके, जब उनकी सांस फूलने लगी। मुझे चुप देखकर उनमें से एक ने कहा, “यह असली कट्टरपंथी है। इसे उठाकर जेल में डाल दो और तड़पाओ!” जेल जाने की बात सुनकर, मैं थोड़ा डर गया। मैंने सुना था कि जेलों में कैदी ही कैदियों को पीटते हैं। अगर मुझे वाकई जेल हो गई, तो पता नहीं वहाँ मुझे किस तरह की यातना सहनी पड़े? कहीं मुझे अपाहिज तो नहीं बना देंगे? और अगर मैं सह नहीं पाया तो? मेरे मन में बस यही एक बात घूमती रही, लेकिन मैं इतना जरूर जानता था कि चाहे कुछ भी हो जाए, मैं यहूदा बनकर परमेश्वर को धोखा नहीं दे सकता। मैंने परमेश्वर के आगे शपथ ली, “हे परमेश्वर! मेरा आध्यात्मिक कद बहुत छोटा है और मैं अपने बल पर मजबूत नहीं रह सकता, पर मैं तुझ पर भरोसा करने को तैयार हूँ। मेरे साथ रहकर मुझे दुख सहने का संकल्प दे। मैं यहूदा बनकर कभी अपने भाई-बहनों को धोखा नहीं दूंगा!” प्रार्थना के बाद, मुझे शक्ति और आत्मविश्वास की अनुभूति हुई।

कुछ समय बाद, एक अधेड़ उम्र के पुलिसवाले ने मुझसे दोस्ती करने का नाटक करते हुए कहा, “अपने आपको देखो। तुम युवा हो, लम्बे और सुंदर हो। कोई अच्छी-सी प्रेमिका या नौकरी क्यों नहीं ढूँढ़ते? परमेश्वर में विश्वास करने के चक्कर में क्यों फँसे हुए हो?” फिर उसने एक प्रायश्चित-पत्र निकाला और मुझे हस्ताक्षर करने को कहा। मैंने पत्र पढ़ा तो लगा उस पर हस्ताक्षर करने का मतलब है कि मैं परमेश्वर को धोखा दे रहा हूँ। मैं उस पत्र पर हस्ताक्षर नहीं कर सकता था! जब मैंने हस्ताक्षर करने से मना कर दिया, तो उसने मेरी कनपटी पर परमेश्वर के वचनों की हार्ड-कवर वाली पुस्तक दे मारी, जिससे मेरे कान बजने लगे और सिर पर एक बड़ा-सा निशान उभर आया। मार लगने से सिर एकदम सुन्न हो गया और चेहरा सूज गया। पहले ही जोरदार लात पड़ने से मेरे पैरों में भयंकर पीड़ा और सूजन आ गई थी। लगा जैसे पूरे शरीर को लकवा मार गया है, चोटों के कारण पूरा शरीर इतना ज्यादा दुख रहा था कि मैं अपने आँसू नहीं रोक पाया। मैंने सोचा, “अगर मैं प्रायश्चित-पत्र पर हस्ताक्षर करने से इनकार करता रहा, तो क्या वे मुझे और भी बुरी तरह पीटेंगे? क्या वो मुझे जान से मार देंगे? लेकिन मैं उस पर हस्ताक्षर तो नहीं कर सकता। उस पर हस्ताक्षर करना परमेश्वर को धोखा देना है।” उस समय, मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों के इस अंश को याद किया : “जब तुम कष्टों का सामना करते हो, तो तुम्हें देह की चिंता छोड़ने और परमेश्वर के विरुद्ध शिकायतें न करने में समर्थ होना चाहिए। जब परमेश्वर तुमसे अपने आप को छिपाता है, तो उसका अनुसरण करने के लिए तुम्हें अपने पिछले प्रेम को डिगने या मिटने न देते हुए उसे बनाए रखने के लिए विश्वास रखने में समर्थ होना चाहिए। परमेश्वर चाहे कुछ भी करे, तुम्हें उसकी योजना के प्रति समर्पण करना चाहिए, और उसके विरुद्ध शिकायतें करने के बजाय अपनी देह को धिक्कारने के लिए तैयार रहना चाहिए। जब परीक्षणों से तुम्हारा सामना हो, तो तुम्हें परमेश्वर को संतुष्ट करना चाहिए, भले ही तुम फूट-फूटकर रोओ या अपनी किसी प्यारी चीज से अलग होने के लिए अनिच्छुक महसूस करो। केवल यही सच्चा प्यार और विश्वास है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जिन्हें पूर्ण बनाया जाना है उन्हें शोधन से गुजरना होगा)। मैं समझ गया कि यह कठिनाई और क्लेश मेरे लिए एक परीक्षा है, यह देखने के लिए कि क्या मेरी आस्था सच्ची है, क्या मैं परमेश्वर की अपनी गवाही में दृढ़ रह सकता हूँ। परमेश्वर ने कहा कि सच्ची आस्था का अर्थ है हर परिवेश में उसकी व्यवस्थाओं के प्रति समर्पित होकर उसे संतुष्ट करना, फिर भले ही उसका अर्थ पीड़ा और दर्द सहना हो। मुझे खुद को पूर्णतः परमेश्वर को सौंपना होगा और तमाम कष्ट सहकर भी, मैं शैतान के अधीन नहीं हो सकता। मुझे परमेश्वर के भरोसे रहते हुए गवाही देनी थी। इसे दिमाग में रखकर, मैंने प्रार्थना की, “परमेश्वर, वे मुझे चाहे जितना पीटें, वे मुझे पीट-पीटकर मार ही क्यों न डालें, मैं पछतावे के उस पत्र पर कभी दस्तखत नहीं करूंगा।” उस रात, पुलिसवालों ने मुझे और वांग चेंग को नजरबंदी गृह में भेज दिया, जहाँ हमें अलग-अलग कोठरी में रखा गया।

ड्यूटी पर तैनात अधिकारी मुझे कोठरी में ले गया। वहाँ करीब दर्जन भर लोग थे, सबके चेहरे और हावभाव खौफनाक थे। वह कोठरी इतनी भयानक और डरावनी थी कि मैं बहुत डर गया। अधिकारी ने कैदियों से कहा, “यह परमेश्वर का विश्वासी है। इसकी जरा ‘अच्छी खातिरदारी’ करना।” जैसे ही उसने बात खत्म की, दो कैदियों ने आकर मुझे मारना-पीटना शुरू कर दिया और नंगा होने को कहा। वे ठंडे पानी का एक पाइप ले आए और करीब आधे घंटे तक मुझ पर डालते रहे, ठंड के कारण मेरी कँपकपी छूट रही थी। वो लोग पूछते रहे कि मेरा नाम क्या है और मैंने किन लोगों को सुसमाचार सुनाया है। मैं मन ही मन अपने दिल की रक्षा के लिए परमेश्वर से प्रार्थना करता रहा। मैंने एक शब्द भी नहीं कहा। अगले दिन उन्होंने फिर मेरे साथ मारपीट की। एक कैदी ने मेरे बाल पकड़कर सिर के पिछले वाले हिस्से को दीवार से इतनी जोर से मारा कि मेरे कान बज उठे और नाक से खून बहने लगा। फिर उन्होंने मुझे “हवाईजहाज” बनाया, यानी जबर्दस्ती आगे झुकाया और दो कैदियों ने मेरी बाहें पकड़कर मुझे जोर से दीवार से दे मारा, जिससे मेरे सिर में गोला निकल आया, मुझे चक्कर आ गए और मैं बेहोश हो गया। इससे पहले कि मैं ठीक से होश में आ पाता, उन्होंने मुझे “पाई गाओ” दिया यानी मेरी दोनों बाहें पीछे से पकड़ीं, एक ने मेरे हाथ पकड़कर मुझे आगे झटका दिया और दूसरे ने मेरी पीठ पर बैठकर मेरी बाहों को आगे धकेला। ऐसा लगा जैसे मेरी बाँहें अभी उखड़ जाएँगी। मैं दर्द से चीखने लगा। वो लोग मुझे दस मिनट तक यातना देते रहे और जब मुझे छोड़ा, तो मेरी बाहों में कोई संवेदना नहीं थी। मैंने सोचा, “क्या मैं लूला हो गया? अगर मैं जवानी में ही लूला हो गया, तो आगे कि जिंदगी कैसे कटेगी? पता नहीं वो लोग मुझे आगे और क्या-क्या यातनाएँ देंगे। मुझे पीट-पीट कर मार डालेंगे क्या?” यह सब सोच-सोचकर मुझे डर लगने लगा। फिर मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों पर विचार किया : “जब लोग अपने जीवन का त्याग करने के लिए तैयार होते हैं, तो हर चीज तुच्छ हो जाती है, और कोई उन्हें हरा नहीं सकता। जीवन से अधिक महत्वपूर्ण क्या हो सकता है? इस प्रकार, शैतान लोगों में आगे कुछ करने में असमर्थ हो जाता है, वह मनुष्य के साथ कुछ भी नहीं कर सकता(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, “संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचनों” के रहस्यों की व्याख्या, अध्याय 36)। मुझे एहसास हुआ कि शैतान जानता है कि लोग जीवन से प्यार करते हैं और मौत से डरते हैं, इसलिए वह हम पर हमला करने के लिए हमारी कमजोरी का फायदा उठाता है और हमें परमेश्वर को धोखा देने के लिए मजबूर करता है। अपना जीवन बचाने के लिए मैं शैतान के जाल में फँसकर अपयश में नहीं जी सकता था। मुझे पिछले युगों के संत याद आ गए जिन्होंने सुसमाचार का प्रचार करने के लिए बहुत कुछ सहा। कुछ को गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया गया और कुछ ने तो अपनी जान भी दे दी। अंत के दिनों में, मैं परमेश्वर की वाणी सुन पाया, सुसमाचार का प्रचार कर पाया और परमेश्वर के प्रकटन और कार्य की गवाही दे पाया, यह सम्मान की बात है। भले ही ये लोग मुझे यातना दे-देकर मौत के घाट उतार दें, मेरा सताया जाना धार्मिकता के लिए था। यह गौरवमयी बात है, इसका मतलब यह होगा कि मैंने अपना जीवन व्यर्थ नहीं गँवाया। इस बात का एहसास होने पर, मेरे दिल में शक्ति का संचार हुआ। वो चाहे मुझे कैसे भी सताएँ, लेकिन मैं गवाही दूंगा। मैं परमेश्वर को धोखा नहीं दूँगा और मजबूती से डटा रहूँगा।

फिर जब पुलिस मुझसे पूछताछ करने आई, तो उन्होंने मुझे यह कहते हुए धमकाया, “तेरे पास अभी भी कबूल करने का मौका है। तू एक राजनीतिक कैदी है, अगर कबूल नहीं करेगा, तो तुझे सजा दी जाएगी। जेल में जो मिलेंगे, वे लोग खूँखार होंगे। तू बहुत पछताएगा! यह कहना मुश्किल है कि तू जिंदा बाहर आ पाएगा या नहीं।” जैसे ही मैंने सुना कि मुझे सजा सुनाई जा रही है और एक राजनीतिक कैदी करार दिया गया है, मुझे एहसास हुआ कि यह एक गंभीर अपराध है। मुझे कितने साल की सजा होगी? क्या मुझे अपनी पूरी जवानी जेल में ही बितानी पड़ेगी? मैंने कैदियों से सुना है कि जेल में बहुत-से लोगों को पीट-पीट कर मार डाला गया है। मुझे और भी चिंता हो रही थी। पता नहीं कैदी मुझे प्रताड़ित करने के लिए किन-किन तरीकों का इस्तेमाल करेंगे, मैं जिंदा भी बचूँगा या नहीं। सोच-सोचकर मेरी हालत खराब हो रही थी। मैं बिल्कुल नहीं चाहता था कि मुझे सजा हो, बस उस जगह से बाहर निकलने को तड़प रहा था। मैंने परमेश्वर से बार-बार प्रार्थना की, “हे परमेश्वर! मैं इस समय बेहद कमजोर महसूस कर रहा हूँ, मुझे तेरी इच्छा समझ में नहीं आ रही, लेकिन इतना जानता हूँ कि इस परिस्थिति का निर्माण तेरी इच्छा से ही हुआ है। मुझे प्रबुद्ध कर और कोई राह दिखा ताकि मैं दृढ़ रह सकूं।” प्रार्थना के बाद, मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के ये वचन याद आए : “तुम सब लोगों को शायद ये वचन स्मरण हों : ‘क्योंकि हमारा पल भर का हल्का सा क्लेश हमारे लिये बहुत ही महत्वपूर्ण और अनन्त महिमा उत्पन्न करता जाता है।’ तुम सब लोगों ने पहले भी ये वचन सुने हैं, किंतु तुममें से कोई भी इनका सच्चा अर्थ नहीं समझा। आज, तुम उनकी सच्ची महत्ता से गहराई से अवगत हो। ये वचन परमेश्वर द्वारा अंत के दिनों के दौरान पूरे किए जाएँगे, और वे उन लोगों में पूरे किए जाएँगे जिन्हें बड़े लाल अजगर द्वारा निर्दयतापूर्वक उत्पीड़ित किया गया है, उस देश में जहाँ वह कुण्डली मारकर बैठा है। बड़ा लाल अजगर परमेश्वर को सताता है और परमेश्वर का शत्रु है, और इसीलिए, इस देश में, परमेश्वर में विश्वास करने वाले लोगों को इस प्रकार अपमान और अत्याचार का शिकार बनाया जाता है, और परिणामस्वरूप, ये वचन तुम लोगों में, लोगों के इस समूह में, पूरे किए जाते हैं। चूँकि परमेश्वर का कार्य उस देश में आरंभ किया जाता है जो परमेश्वर का विरोध करता है, इसलिए परमेश्वर के कार्य को भयंकर बाधाओं का सामना करना पड़ता है, और उसके बहुत-से वचनों को संपन्न करने में समय लगता है; इस प्रकार, परमेश्वर के वचनों के परिणामस्वरूप लोग शुद्ध किए जाते हैं, जो कष्ट झेलने का भाग भी है। परमेश्वर के लिए बड़े लाल अजगर के देश में अपना कार्य करना अत्यंत कठिन है—परंतु इसी कठिनाई के माध्यम से परमेश्वर अपने कार्य का एक चरण पूरा करता है, अपनी बुद्धि और अपने अद्भुत कर्म प्रत्यक्ष करता है, और लोगों के इस समूह को पूर्ण बनाने के लिए इस अवसर का उपयोग करता है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, क्या परमेश्वर का कार्य उतना सरल है जितना मनुष्य कल्पना करता है?)। परमेश्वर के वचनों पर विचार कर, मुझे समझ में आया कि उत्पीड़न और क्लेश तो मुझे झेलना ही था। यह उत्पीड़न धार्मिकता की खातिर था और मसीह के साथ-साथ कष्ट उठाना था। यह सार्थक था। इस तरह गिरफ्तार होकर सताए जाने से मैंने बड़े लाल अजगर के दुष्ट सार को स्पष्ट रूप से देख लिया था। बड़ा लाल अजगर परमेश्वर का शत्रु और उसका विरोध करने वाला शैतान है। इस स्थिति ने मुझे यह भी दिखाया कि कैसे देहधारी परमेश्वर बड़े लाल अजगर के देश में कार्य करता है और लोगों को बचाता है। वाकई, यह बहुत मुश्किल काम है। इन सारी बातों पर विचार करके मुझे अत्यधिक प्रेरणा मिली। मुझे एहसास हुआ कि मुझे परमेश्वर को निराश नहीं करना चाहिए। वे मुझे पीट-पीटकर मार ही क्यों न डालें, मैं मजबूती से डटे रहने और परमेश्वर को संतुष्ट करने के लिए तैयार था।

चौदह दिन बाद, यह कहकर पुलिस मुझे और कुछ दूसरे भाई-बहनों को गाड़ी में ले गई, उन्होंने बताया कि हमारी सश्रम पुनर्शिक्षा की सजा शुरू हो गई है और वे हमें श्रमिक केंद्र ले जा रहे हैं। रास्ते में मैंने सोचा, “पता नहीं श्रमिक केंद्र में कितने साल रहना पड़ेगा। बहुत ज्यादा समय न रहना पड़े तो अच्छा है, ताकि घर जाकर जल्दी ही भाई-बहनों के साथ सभा कर सकूँ, फिर से अपना कर्तव्य निभाना शुरू कर सकूँ। पहले मैं बहुत गंभीर नहीं था और अपना कर्तव्य ठीक से नहीं करता था। यहाँ से रिहा होकर मैं सत्य का अनुसरण करने और अपना कर्तव्य अच्छी तरह से निभाने का वादा करता हूँ।” जब हम म्यूनिसिपल पब्लिक सिक्योरिटी ब्यूरो पहुंचे, तो पुलिस अंदर जाकर सश्रम पुनर्शिक्षा की सजा का पत्र लेकर आई और गाड़ी में ही हमें पढ़कर सुनाया। कई भाई-बहनों को साल-डेढ़ साल की सजा हुई, लेकिन मुझे तीन साल की सजा हुई। सुनकर जैसे मुझे लकवा ही मार गया। मैंने सोचा, “तीन साल? मेरी सजा दूसरों से ज्यादा क्यों है? इतने समय तक मैं जिंदा कैसे रहूँगा?” मुझे भयंकर पीड़ा हो रही थी, मैं इस बात को गले नहीं उतार पा रहा था और सदमे में था। फिर मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के ये वचन याद आ गए : “परीक्षणों से गुजरते समय लोगों का कमजोर होना, या उनके भीतर नकारात्मकता आना, या परमेश्वर की इच्छा या अपने अभ्यास के मार्ग के बारे में स्पष्टता का अभाव होना सामान्य है। परंतु हर हालत में, तुम्हें परमेश्वर के कार्य पर भरोसा होना चाहिए। ... परमेश्वर लोगों पर पूर्णता का कार्य करता है, और वे इसे देख नहीं सकते, महसूस नहीं कर सकते; इन परिस्थितियों में तुम्हारा विश्वास आवश्यक होता है। लोगों का विश्वास तब आवश्यक होता है, जब कोई चीज खुली आँखों से न देखी जा सकती हो, और तुम्हारा विश्वास तब आवश्यक होता है, जब तुम अपनी धारणाएँ नहीं छोड़ पाते। जब तुम परमेश्वर के कार्य के बारे में स्पष्ट नहीं होते, तो आवश्यक होता है कि तुम विश्वास बनाए रखो, रवैया दृढ़ रखो और गवाह बनो। जब अय्यूब इस मुकाम पर पहुँचा, तो परमेश्वर उसे दिखाई दिया और उससे बोला। अर्थात्, केवल अपने विश्वास के भीतर से ही तुम परमेश्वर को देखने में समर्थ हो पाओगे, और जब तुम्हारे पास विश्वास होगा तो परमेश्वर तुम्हें पूर्ण बनाएगा। विश्वास के बिना वह ऐसा नहीं कर सकता(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जिन्हें पूर्ण बनाया जाना है उन्हें शोधन से गुजरना होगा)। परमेश्वर के वचनों पर मनन करने पर, मुझे समझ आया कि चाहे मैं कितनी भी दयनीय परिस्थितियों में रहूँ या वे हालात कितने भी घृणास्पद क्यों न हों, मैं उनमें तभी टिक सकता हूँ जब मुझे परमेश्वर में आस्था हो। लेकिन मेरे अंदर आस्था की कमी थी। जैसे ही मैंने सुना कि मुझे तीन साल के लिए सश्रम पुनर्शिक्षा के लिए भेजा जा रहा है, मैं उसे स्वीकार नहीं पाया, मैंने परमेश्वर से तर्क करने की कोशिश की और उससे शिकायत की। मैं उम्मीद करता था कि मुझे कम सजा मिलेगी और कम कष्ट उठाना पड़ेगा। पहले मैंने परमेश्वर के सामने शपथ ली थी कि चाहे कितनी भी मुश्किलें क्यों न आएँ, मैं उसका अनुसरण करूंगा, लेकिन अब इस माहौल में, जो मेरी धारणाओं के अनुरूप नहीं है, मैं नकारात्मक होकर शिकायत करने लगा। मैं बहुत विद्रोही था। मैं इस तरह का काम करता नहीं रह सकता। मुझे अगले परिवेश का अनुभव करने के लिए परमेश्वर पर निर्भर रहना होगा।

श्रम केंद्र में, मुझे हर दिन खाने के लिए पर्याप्त खाना नहीं मिलता था और खाली पेट रहकर ही बहुत काम करना पड़ता था। कभी-कभी तो मुझे रात के दो-तीन बजे तक भी काम करना पड़ता था और अगर काम करते समय कोई गलत बात कह दी या कोई गलती कर दी, तो वे मुझे पीटते थे। मैं जब काम से वापस आता, तो मुझे सताया जाता और लगभग एक घंटे तक जल-कक्ष में बंद कर दिया जाता। साल भर तक यही हाल रहा। जल-कक्ष बहुत नम था, आगे चलकर कई लोग बीमार हो गए। किसी को खुजली हो गई, किसी को जोड़ों में दर्द रहने लगा और मेरे पूरे शरीर पर चकत्ते हो गए। हर रात मुझे इतनी खुजली होती थी कि मैं सो नहीं पाता था और इतना खुजलाता कि उनमें से खून रिसने लगता, नए जख्म फिर से हरे हो जाते, कई जगह से तो मेरी त्वचा ही शरीर से निकल गई थी। मैंने मुख्य सुरक्षाकर्मी से कहा कि मुझे डॉक्टर को दिखाना है, लेकिन उसने उदासीनता से कहा, “खाली चकत्ते ही तो हैं। तुम ठीक हो। इनसे तुम्हारे काम में कोई रुकावट नहीं आएगी।” तब तक मेरी हालत बहुत खराब हो चुकी थी। मैंने सोचा, “इतनी कम उम्र में ही मेरी यह हालत हो गई। अगर यह रोग ठीक नहीं हुआ तो क्या होगा? एक तो दिनभर काम इतना करना पड़ता है और उस पर कैदियों की मार और अपमान भी सहना पड़ता है। यह दर्द कब खत्म होगा?” इस बारे में सोच-सोचकर मैं और दुखी हो गया। बाकी भाइयों को एक ही कोठरी में रखा गया था, वहाँ वे आपस में संगति करके एक-दूसरे को सहारा दे सकते थे, ये देखकर मेरा जी बड़ा दुखता था। जबकि मैं अविश्‍वासियों के साथ अकेला था, आसपास कोई ऐसा भी नहीं था जिससे मैं बात कर पाता। मैं अक्सर रात को अपने बिस्तर पर पड़ा चुपचाप आंसू बहाता रहता। मैं परमेश्वर से प्रार्थना करता, “परमेश्वर, मैं यहाँ मैं बहुत कमजोरी महसूस करता हूँ। मुझे प्रबुद्ध कर ताकि मैं तेरी इच्छा समझ सकूं।”

एक बार, जब हम कसरत के लिए निकले तो दूसरी टीम के एक भाई ने चुपके से मुझे एक छोटा-सा पैकेट दिया। मैंने कार्यशाला में जाकर उसे खोला, तो उसमें एक नोट था, जिस पर परमेश्वर के वचन लिखे थे। मैंने जेल में परमेश्वर के वचनों को देखने की उम्मीद नहीं की थी, मेरा दिल भर आया और बड़ी प्रेरणा मिली। वह अंश इस प्रकार था : “राज्य के युग में मनुष्य को पूरी तरह से पूर्ण किया जाएगा। विजय के कार्य के पश्चात् मनुष्य को शुद्धिकरण और क्लेश का भागी बनाया जाएगा। जो लोग विजय प्राप्त कर सकते हैं और इस क्लेश के दौरान गवाही दे सकते हैं, वे वो लोग हैं जिन्हें अंततः पूर्ण बनाया जाएगा; वे विजेता हैं। इस क्लेश के दौरान मनुष्य से अपेक्षा की जाती है कि वह इस शुद्धिकरण को स्वीकार करे, और यह शुद्धिकरण परमेश्वर के कार्य की अंतिम घटना है। यह अंतिम बार है कि परमेश्वर के प्रबंधन के समस्त कार्य के समापन से पहले मनुष्य को शुद्ध किया जाएगा, और जो परमेश्वर का अनुसरण करते हैं, उन सभी को यह अंतिम परीक्षा स्वीकार करनी चाहिए, और उन्हें यह अंतिम शुद्धिकरण स्वीकार करना चाहिए। जो लोग क्लेश से व्याकुल हैं, वे पवित्र आत्मा के कार्य और परमेश्वर के मार्गदर्शन से रहित हैं, किंतु जिन्हें सच में जीत लिया गया है और जो सच में परमेश्वर की खोज करते हैं, वे अंततः डटे रहेंगे; ये वे लोग हैं, जिनमें मानवता है, और जो सच में परमेश्वर से प्रेम करते हैं। परमेश्वर चाहे कुछ भी क्यों न करे, इन विजयी लोगों को दर्शनों से वंचित नहीं किया जाएगा, और ये फिर भी अपनी गवाही में असफल हुए बिना सत्य को अभ्यास में लाएँगे। ये वे लोग हैं, जो अंततः बड़े क्लेश से उभरेंगे(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर का कार्य और मनुष्य का अभ्यास)। परमेश्वर के वचन पढ़कर मैं भावुक हो गया। मैंने देखा कि मुश्किलों के बीच परमेश्वर की गवाही में मजबूत खड़े रहने के लिए, मुझे परमेश्वर में आस्था रखने और भरोसा करने की आवश्यकता है। मैं खुद ही एक टीम था, मेरे आसपास कोई भाई नहीं था, बहुत संघर्ष और कठिनाइयाँ थीं। यह मेरे लिए एक परीक्षा थी। इनके जरिए मुझे अपनी कमियाँ और अपना वास्तविक आध्यात्मिक कद देखने का मौका मिला। इनसे मुझे स्वतंत्र होने, परमेश्वर पर भरोसा करके इस माहौल का अनुभव करने, कठिनाइयों और तकलीफों पर काबू पाने का अवसर मिला। जब मैं कमजोर था, तो एक भाई ने मेरी मदद की, परमेश्वर के वचन मुझ तक पहुँचाए, जिनसे मैं प्रेरित हुआ। मैं जानता था कि यह परमेश्वर का प्रेम है और परमेश्वर हमेशा मेरे साथ है, मुझ पर नजर रखकर मेरी रक्षा कर रहा है। इस बात को ध्यान में रखते हुए, मुझे आगे बढ़ने की ताकत मिली, और इस माहौल को सहने का आत्मविश्वास जागा।

2006 में, मुझे तलवे की गंभीर बीमारी हो गई। मेरे पैरों की उंगलियों में इतना दर्द था कि मैं चल नहीं पाता था। पुलिस ने मुझे इलाज कराने की अनुमति नहीं दी और बस एक मरहम दे दिया, उससे ठीक होने के बजाय, हालत और खराब हो गई। इससे मेरा मन बहुत दुखी हुआ। मुझे लगा कि यह जगह बहुत ही मनहूस है, यहाँ का अंधकार असहनीय है। काश, इसे किसी को न सहना पड़े। फिर मुझे “विजेताओं का गीत” नामक परमेश्वर के वचनों का एक भजन याद आया : “क्या तुम लोगों ने कभी मिलने वाले आशीषों को स्वीकार किया है? क्या कभी तुमने उन वादों को खोजा जो तुम्हारे लिए किए गए थे? तुम लोग निश्चय ही मेरी रोशनी के नेतृत्व में, अंधकार की शक्तियों के गढ़ को तोड़ोगे। तुम अंधकार के मध्य निश्चय ही मार्गदर्शन करने वाली ज्योति को नहीं खोओगे। तुम सब निश्चय ही सम्पूर्ण सृष्टि के स्वामी होगे। तुम लोग निश्चय ही शैतान के सामने विजेता बनोगे। तुम सब निश्चय ही बड़े लाल अजगर के राज्य के पतन के समय, मेरी विजय की गवाही देने के लिए असंख्य लोगों की भीड़ में खड़े होगे। तुम लोग निश्चय ही सिनिम के देश में दृढ़ और अटूट खड़े रहोगे। तुम लोग जो कष्ट सह रहे हो, उनसे तुम मेरे आशीष प्राप्त करोगे और निश्चय ही सकल ब्रह्माण्ड में मेरी महिमा का विस्तार करोगे(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 19)। परमेश्वर के वचनों के इस भजन पर मनन करने के बाद, मैं परमेश्वर के नेक इरादों को समझ गया। उसका इरादा लोगों के एक ऐसे समूह को बड़े लाल अजगर के देश में विजेताओं के रूप में पूर्ण करना है जो शैतान के अंधकारमय कब्जे से बचकर परमेश्वर द्वारा बचाए जाने योग्य हैं, जो परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करने, उसकी प्रतिज्ञा पाने के काबिल हैं। ध्यान से सोचने पर, मुझे एहसास हुआ कि अगर मैंने कम्युनिस्ट पार्टी की क्रूर यातना और श्रमिक केंद्र में अमानवीय व्यवहार का अनुभव नहीं किया होता, तो मैं परमेश्वर के प्रति कम्युनिस्ट पार्टी की घृणा और शत्रुता के बुरे सार को स्पष्ट रूप से नहीं देख पाता, उसे दिल की गहराइयों से नकार तो बिल्कुल नहीं पाता। अगर मैं इन भयानक हालात की यंत्रणा से गुजरा न होता और तथ्यों ने मुझे उजागर न किया होता, तो मुझे एहसास ही न होता कि मैं अभी भी परमेश्वर से माँग रहा हूँ या परमेश्वर के कर्म मेरी धारणाओं के अनुरूप न होने पर, मैं शिकायत और तर्क करता हूँ या मेरा आध्यात्मिक कद बेहद छोटा है और मुझे परमेश्वर में मेरी आस्था थोड़ी है। क्या मुझे यह सारा ज्ञान और लाभ इसी भयानक माहौल से नहीं मिला है? यह मेरे लिए परमेश्वर का अनुग्रह ही था! अपने लिए परमेश्वर के प्रेम और उद्धार के बारे में सोचकर मुझे आत्मविश्वास मिला। मैंने अय्यूब को याद किया जिसने अपने बच्चे खो दिए थे, उसके पूरे शरीर में घाव हो गए थे और अनेक शारीरिक कष्ट सहे थे, फिर भी उसने बिना शिकायत किए परमेश्वर की आराधना की। अय्यूब की तुलना में मेरी छोटी-मोटी बीमारी या मैंने जो थोड़ी-सी पीड़ा सही, वह बयाँ करने योग्य भी नहीं है। मुझे यह सब सहन करने के लिए परमेश्वर का आज्ञापालन और उस पर भरोसा करना और उसके लिए अपनी गवाही में मुझे दृढ़ रहना चाहिए। यह सोचकर, मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, “परमेश्वर, यह जगह चाहे कितनी भी खराब हो या मुझे कितनी भी शारीरिक पीड़ा सहनी पड़े, अब मैं समर्पण करने को तैयार हूँ। मैं अब नकारात्मक नहीं रहना चाहता, मुझे बड़ा होना है, ताकि तुझे मेरी चिंता न हो।”

उसके बाद मैं निरंतर प्रार्थना करने लगा, मैं इसके बिना न रह पाता था। जब भी काम से थकान होती या दर्द असहनीय हो जाता या मुझे नकारात्मकता और कमजोरी महसूस होती, तो मैं तुरंत परमेश्वर से प्रार्थना करने लगता। धीरे-धीरे मैं मजबूत होता गया, मेरे अंदर से नकारात्मकता और कमजोरी भी कम होती चली गई। परमेश्वर ने मेरे लिए जिस माहौल का निर्माण किया था, मैं उसका ठीक से सामना करने योग्य हो गया। परमेश्वर का धन्यवाद! उन तीन वर्षों में, परमेश्वर से प्रार्थना करके, उस पर पर भरोसा करके, परमेश्वर के वचनों के मार्गदर्शन पर भरोसा करके, मैं उस कठिन समय से पार पाने में सफल हुआ।

यह सब अनुभव करके, मैंने स्पष्ट रूप से देखा कि बड़ा लाल अजगर शैतान है, एक ऐसा शैतान जो परमेश्वर से घृणा करता है और लोगों को हानि पहुँचाता और उन्हें भ्रष्ट करता है। केवल परमेश्वर ही प्रेम है और वही लोगों को बचा सकता है। जब मुझे प्रताड़ित किया जा रहा था, तब परमेश्वर के वचनों ने ही मेरा मार्गदर्शन किया, मुझे आत्मविश्वास और शक्ति दी और शैतान की क्रूरता पर काबू पाने योग्य बनाया। इसी भयानक माहौल ने मेरे युवा, अज्ञानी और दुर्बल मन को मजबूत, परिपक्व और स्थिर बनाया, मुसीबत के समय परमेश्वर पर भरोसा करना और उसका सम्मान करना सिखाया। इसी वजह से मैं परमेश्वर की सर्वशक्तिमत्ता और संप्रभुता को देख पाया और समझ पाया कि परमेश्वर हमेशा मेरे साथ है, मेरे बगल में रहकर मेरी निगरानी और रक्षा कर रहा है, हर समय मुझे पोषण देने और मेरी मदद करने के लिए तैयार है। भविष्य में मुझे चाहे कितना भी भयंकर उत्पीड़न और क्लेश सहना पड़े, मैं संकल्प लेता हूँ कि परमेश्वर का अनुसरण करूंगा!

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