58. एक सरकारी अधिकारी का चुनाव

शिन शेंग, चीन

मेरे पैदा होने से पहले ही मेरे डैड को कानून तोड़ने के कारण गिरफ्तार कर लिया गया था। 1970 के दशक में चीन के ग्रामीण इलाके में इस तरह की घटना को बहुत शर्मनाक माना जाता था, जिसके कारण हर कोई मेरे परिवार को नीची नज़र से देखता था। मैं अपने आसपास के हर इंसान के उपहासों का सामना करते हुए बड़ा हुआ। मेरी माँ हमेशा कहती, “तरक्की करने के लिए तुम्हें कड़ी मेहनत करनी होगी। दूसरे लोग इस तरह हमारे परिवार को नीचा नहीं दिखा सकते।” ये शब्द मेरे अंदर गहराई तक बस गये थे। मैंने कसम खाई कि भविष्य में, मैं भीड़ से अलग अपनी एक पहचान बनाऊंगा और हमारे प्रति सबकी सोच बदल दूंगा। मैंने खुद को पढ़ाई में झोंक दिया और कॉलेज से ग्रेजुएट होने के बाद एक टीचर बन गया। यह एक गारंटी वाली आजीविका थी, मगर फिर भी सचमुच ऊपर उठने के मेरे लक्ष्य से काफी दूर थी। इसलिए, मैंने अपने संपर्कों पर भरोसा किया और इस उम्मीद में काउंटी स्तर के नेताओं को उपहार भेजे कि मुझे किसी सरकारी पद पर ट्रांसफर कर दिया जाये।

मेरी उम्मीद के मुताबिक, तीन साल बाद मुझे शहर के सरकारी कार्यालय में सेक्रेटरी का पद मिल गया, जिसमें मुझे विभिन्न अवसरों पर लीडरों के साथ रहने का मौका मिला। यह देखने में काफी प्रतिष्ठित लगता था। खासकर जब मैं अपने गृह-नगर में वापस लौटा, तो ग्राम प्रधान और वहां मौजूद सभी लोगों ने मेरा गर्मजोशी से स्वागत किया, बहुत से लोग मेरी खुशामद करने लगे—मेरे परिवार को भी इससे फायदा होने लगा; उस पूरे इलाके के लोग मेरे परिवार से ईर्ष्या करने लगे। मेरी माँ ने खुश होकर कहा, “जब से तुम्हें सरकारी नौकरी मिली है, तुम्हारा भाई जहां भी जाता है, हर किसी से कहता है कि उसका भाई कौन है, वह कहां काम करता है। इतने बरसों के बाद, आखिरकार हम सिर उठाकर चल सकते हैं और गर्व महसूस कर सकते हैं!” माँ से ऐसी बातें सुनकर मेरा दिल भर आया। कई सालों से हमारे परिवार के लिए कुछ भी ठीक नहीं चल रहा था। क्या हम इसी दिन का इंतज़ार नहीं कर रहे थे? फिर मैं और कड़ी मेहनत करने लगा; देर रात तक काम में लगा रहता; हफ्ते के आखिर में भी आराम नहीं करता। मेरे पास पत्नी और बच्चे के साथ वक्त बिताने का भी समय नहीं होता। फिर 2008 में, मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य को स्वीकार कर लिया, मगर अभी भी अपना ज़्यादातर समय अपने काम को देता था। मैं कभी-कभार ही सभाओं में हिस्सा लेता; परमेश्वर के वचन भी ज़्यादा नहीं पढ़ता। मेरा करियर बहुत अच्छा चल रहा था—मुझे लीडरों की सराहना और सहकर्मियों का सम्मान भी मिलता था; हर कोई यही कहता था कि जैसे ही प्रमोशन के लिए कोई पद उपलब्ध होगा, वह पक्के तौर से मुझे मिलेगा। मुझे लगा अपनी जिंदगी से मैं जो चाहता था वो पाने का और अपनी अलग पहचान बनाने का यही मौका होगा; इसलिए मैं और भी ज़्यादा मेहनत करने लगा; लीडरों से सांठ-गांठ करने लगा। इतना करने पर भी, मैं एक लीडर के बेटे से मात खा गया; फिर एक ऐसे विभाग में मेरा ट्रांसफर कर दिया गया जिसका कोई विशेष महत्व नहीं था।

यह तबादला मेरे लिए बहुत परेशान करने वाली बात थी; मुझे लगा मेरी सहकर्मी ज़रूर मेरे बारे में बात करेंगे और मुझे नीची नज़र से देखेंगे। मैं अपना हौसला भी नहीं जुटा पा रहा था; किसी से मिलना नहीं चाहता था। उस बुरे वक्त में, कलीसिया के एक भाई ने मुझसे कहा, “तुम्हें प्रमोशन मिलने के बजाय एक बेकार विभाग में ट्रांसफर कर दिया गया। देखने में तो यह बात बुरी लगती है, मगर असल में अच्छी है! अगर उम्मीद के मुताबिक तुम्हारा प्रमोशन हो जाता और तुम्हें ऊंचा पद मिल जाता, तो तुम्हारी चाहत और बढ़ जाती। तुम्हें और भी प्रलोभन का सामना करना पड़ता; तुम दिन-रात नाम और रुतबे के संघर्ष में लगे रहते। तुम्हारे पास सत्य का अनुसरण करने के लिए समय और रुचि कहां होती? यह मानवजाति को बचाने और पूर्ण करने के परमेश्वर के कार्य का एक महत्वपूर्ण समय है। अगर तुम इन बेशकीमती दिनों को गंवा दोगे, तो कैसे बचाये जा सकोगे? परमेश्वर का नेक इरादा यह प्रमोशन नहीं देने में है—परमेश्वर हमें शैतान के हाथों का खिलौना बनते और उसके द्वारा नुकसान पहुंचाये जाते नहीं देख सकता; वह हमें नाम और रुतबे के संघर्ष में जीवन जीते, एक दूसरे से लड़ते और चालें चलते और परमेश्वर के उद्धार का मौका गंवाते नहीं देख सकता।” उनकी बातों ने मुझे नींद से जगा दिया; उनकी बात मुझे सही लगी। पहले, मेरा ध्यान पूरी तरह इस बात पर था कि मैं अपनी अलग पहचान कैसे बनाऊँ, इसलिए मैं कभी अपने दिल को शांत नहीं कर पाया; दिल से परमेश्वर के वचन पढ़ या सत्य का अनुसरण नहीं कर पाया। शायद वो झटका मेरी आस्था के मार्ग का एक नया मोड़ था।

उसके बाद मैंने परमेश्वर के वचनों का यह अंश पढ़ा : “एक ऐसे व्यक्ति के रूप में जो सामान्य है और जो परमेश्वर के प्रति प्रेम का अनुसरण करता है, परमेश्वर के जन बनने के लिए राज्य में प्रवेश करना ही तुम सबका असली भविष्य है और यह ऐसा जीवन है, जो अत्यंत मूल्यवान और सार्थक है; कोई भी तुम लोगों से अधिक धन्य नहीं है। मैं यह क्यों कहता हूँ? क्योंकि जो लोग परमेश्वर में विश्वास नहीं करते, वो देह के लिए जीते हैं और वो शैतान के लिए जीते हैं, लेकिन आज तुम लोग परमेश्वर के लिए जीते हो और परमेश्वर की इच्छा पर चलने के लिए जीवित हो। यही कारण है कि मैं कहता हूँ कि तुम्हारे जीवन अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं। केवल इसी समूह के लोग, जिन्हें परमेश्वर द्वारा चुना गया है, अत्यंत महत्वपूर्ण जीवन जीने में सक्षम हैं : पृथ्वी पर और कोई इतना मूल्यवान और सार्थकजीवन नहीं जी सकता(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के सबसे नए कार्य को जानो और उसके पदचिह्नों का अनुसरण करो)। सार्थक जीवन क्या है, इस बारे में परमेश्वर के वचन बहुत स्पष्ट हैं। मैंने नाम और लाभ के पीछे भागने के उन वर्षों के बारे में सोचा—यहाँ तक कि थोड़ा-सा रुतबा और इज्ज़त हासिल कर लेने के बाद भी, मुझे खालीपन ही महसूस होता है। मैं अधिकारी वर्ग के बीच हमेशा एक झूठा मुखौटा लगाये रहता था। रुतबे की खातिर, मुझे लीडरों की खुशामद ही नहीं करनी पड़ती थी, बल्कि अपने सहकर्मियों को भी संभालना होता था; प्रतिस्पर्धा और दूसरों से मुकाबला करते हुए खुद को निचोड़ना पड़ता था; हमेशा यह डर लगा रहता था कि दूसरे मेरे खिलाफ साजिश रच रहे हैं। मुझे उस दुनिया की पीड़ा और तनाव की समझ आ गई : रुतबे और इज्ज़त के लिए अपनी पूरी जिंदगी कड़ी मेहनत करते रहने की क्या अहमियत है, इसके क्या मायने हैं? क्या मेरी जिंदगी का बस यही मतलब है कि मैं बड़ी हस्ती जैसा दिखूँ और अपने परिवार का गौरव बढ़ाऊँ? हज़ारों सालों से, शानदार रुतबा रखने वाले इतने सारे महान लोग क्या खाली हाथ नहीं मर गये? परमेश्वर ने इंसान को इसलिए नहीं बनाया कि हमारा नाम युगों-युगों तक जीवित रहे या हम नाम और रुतबे के लिये लड़ते रहें; उसने हमें सत्य को समझने और परमेश्वर को जानने के लिए बनाया, ताकि हम एक सृजित प्राणी का कर्तव्य निभाएँ और एक सच्चे इंसान की तरह जिंदगी जिएँ। यही एक सार्थक और बहुमूल्य जीवन है; इससे ही परमेश्वर की स्वीकृति मिलेगी। यह एहसास होने पर मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की; मैं नाम और रुतबे के पीछे भागना बंद करने और जीवन के सही मार्ग पर चलने को तैयार हो गया।

जिस विभाग में मुझे ट्रांसफर किया गया था, वहां पूरे साल में कोई खास काम नहीं था। मैंने इस अवसर का लाभ उठाकर परमेश्वर के ज़्यादा से ज़्यादा वचन पढ़े और सत्य से खुद को लैस किया; हफ्ते के आखिर में सभाओं में हिस्सा लेता और भाई-बहनों के साथ सुसमाचार का प्रचार करता। मुझे काफी सुकून महसूस हुआ; अब मैं सहकर्मियों के साथ मेलजोल बढ़ाने में नहीं लगा रहता था। रिश्ते बनाने और गैर-आधिकारिक चैनलों जैसी बेकार की बातों में अब मेरी कोई दिलचस्पी नहीं थी। मुझे पहले से अधिक आज़ादी और सुकून महसूस हुआ। हालांकि, एक बार फिर मेरा ट्रांसफर हो गया और मुझे उस विभाग में डाल दिया गया जहां सरकारी आदेश पर इमारतों को ढहाने का काम होता था। वहां मैंने कम्युनिस्ट पार्टी के धौंस जमाने और आम लोगों को नुकसान पहुंचाने वाले दुष्ट तरीकों को अपनी आँखों से देखा। इससे करियर के मार्ग को लेकर मेरा उत्साह और भी ठंडा पड़ गया जिस पर मैं चल रहा था। सरकार हमेशा लोगों को उनके घरों से निकालने के लिए दबाव डालती रहती थी; यह कहकर कि उसे शहरी निर्माण के लिए जगह की ज़रूरत है। इसके बदले में दिया जाने वाला मुआवजा बहुत कम होता था। लोग इससे नाखुश थे और विरोध करते थे। यह स्पष्ट था कि सरकार चुपके से डेवलपरों से सांठ-गांठ करती थी; इन सौदों से भारी मुनाफा कमाती थी और आम लोगों को निचोड़ डालती थी। हालांकि, वे हमेशा सच को तोड़-मरोड़कर दिखाते थे; कहते कि लोग अपने घरों को छोड़ना नहीं चाहते और यह शहरी निर्माण के रास्ते में आ रहा था। दिन में वे हमें लोगों को मनाने के लिए भेजते और फिर रात को उन्हें सताने के लिए दूसरे लोग भेज देते, जो उन्हें दूसरी जगह चले जाने के समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर करते। कोई भी निवासी चैन से नहीं रह सकता था। अगर कोई दृढ़ता से दूसरी जगह जाने से इनकार करता, तो उसे मजबूरन गिरफ्तार करके मारा-पीटा जाता; शहरी पुनर्निर्माण के काम को रोकने के आरोप लगाए जाते। लीडर तब तक नहीं रुकते, जब तक व्यक्ति उस समझौते पर हस्ताक्षर नहीं कर देता। कुछ लोगों ने उच्च अधिकारियों के पास अपील की, मगर उन्हें गिरफ्तार करके मारा-पीटा गया। एक व्यक्ति को तो इतना अधिक मारा-पीटा गया कि वह अपंग हो गया और आखिर में मर गया। एक लीडर ने तो विभागीय बैठक में मुस्कुराते हुए सबके सामने यहाँ तक कह दिया, “ये आदमी तो मर गया, अब एक अपील कम हो गई। हमारे खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई का एक मामला कम हो गया!” वहां मौजूद हर इंसान मुस्कुरा रहा था। सरकारी अधिकारियों को इंसानी ज़िंदगी की परवाह न करके इस तरह आम लोगों को धमकाते और उनका शोषण करते देखकर मैं जान गया कि कम्युनिस्ट पार्टी की व्यवस्था में रहकर ऐसे लोगों के साथ जुड़े रहने से कभी कोई भला नहीं होने वाला। मैं उन सबसे दूरी बनाने की पूरी कोशिश करने लगा; उनके बीच घुलना-मिलना बंद कर दिया। अगर मुझे किसी ऐसे व्यक्ति से जाकर बातचीत करनी होती जिसे उसके घर से हटाना था, या उसे मारना-पीटना होता, तो मैं इसे टालने की हर मुमकिन कोशिश करता या व्यवस्था बनाये रखने में मदद के लिए चला जाता। जब मैं किसी को करीब से पीटे जाते वक्त चीखते-चिल्लाते देखता, तो उसकी आँखों में दिख रही बेबसी मेरी अंतरात्मा को कचोटती थी। कभी-कभी आधी रात को बुरे सपने देखकर मेरी नींद खुल जाती। हर दिन ऐसे माहौल में जीना एक तरह का संताप था। मुझे लगा जैसे अगर मैं इस तरह के काम करता रहा, तो देर-सवेर मुझे दंड ज़रूर दिया जाएगा; मैं जल्द से जल्द उस जगह को छोड़ देना चाहता था। भले ही लीडरों ने मुझे अपने करियर को आगे बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करते हुए परोक्ष टिप्पणियां कीं, मगर मुझ पर इनका कोई असर नहीं हुआ। अब मैंने प्रमोशन पाने के लिए उनके साथ सांठ-गांठ की कोशिश करनी बंद कर दी। मगर मुझे हैरानी हुई कि उसी दौरान मेरा प्रमोशन कर दिया गया; मुझे टाउन डिसिप्लिनरी ऑफिस में डायरेक्टर का पद संभालना था।

जिम्मेदारी बदले जाने के बाद, मैं अक्सर शहर के अहम सरकारी अधिकारियों के साथ सभी तरह की बैठकों में हिस्सा लेने लगा। मेरे सहकर्मी और गाँव के साथी मेरे साथ काफी दोस्ताना बर्ताव करते थे और मेरी नज़र में अच्छा बनने की कोशिश में लगे रहे थे। मुझे पता भी नहीं चला और मैं बेचैन रहने लगा, मैं चाहता था कि लीडर मुझे अहमियत दें, मुझे पहचानें। पर, जब मुझे कारोबारी यात्राओं पर जाना पड़ता या किसी लीडर के बदले में बैठक में हिस्सा लेना होता, तो मैं सभाओं में हिस्सा नहीं ले पाता कर्तव्य नहीं निभा पाता। मैं बड़ी उलझन में था, क्योंकि मैं जानता था कि कर्तव्य एक ऐसी जिम्मेदारी होती है जिससे मुंह नहीं मोड़ा जा सकता। मैं अपने निजी मामलों के कारण अपना कर्तव्य निभाना नहीं छोड़ सकता था, मगर जब कोई लीडर मेरे लिये किसी काम की व्यवस्था करता, तो उसका मतलब था कि वह मेरे बारे में ऊंचा सोचता है। अगर मैंने अपना कर्तव्य निभाने के लिए उस काम को नहीं करने के लिए कोई बहाना बनाया, तो क्या वे कहेंगे कि मैं एक अहम मौके पर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ रहा हूँ; फिर क्या वे मुझे कोई अहम जिम्मेदारी देना बंद कर देंगे? उस वक्त कोई फैसला लेना मेरे लिए बेहद मुश्किल था, इसलिए मैंने परमेश्वर के सामने प्रार्थना करते हुए अपनी समस्या बताई और उसकी इच्छा को समझने में मेरा मार्गदर्शन करने और अभ्यास का मार्ग ढूँढने में मेरी मदद करने की विनती की। उसके बाद, मैंने परमेश्वर के वचनों में यह अंश पढ़ा : “जो कुछ होता है, उस सब के पीछे एक संघर्ष होता है : हर बार जब लोग सत्य को अभ्यास में लाते हैं या परमेश्वर के लिए प्रेम को अभ्यास में लाते हैं, तो एक बड़ा संघर्ष होता है, और यद्यपि अपने देह से सभी अच्छे दिखाई दे सकते हैं, किंतु वास्तव में, उनके हृदय की गहराई में जीवन और मृत्यु का संघर्ष चल रहा होता है—और केवल इस घमासान संघर्ष के बाद ही, अत्यधिक चिंतन के बाद ही, जीत या हार तय की जा सकती है। कोई यह नहीं जानता कि रोया जाए या हँसा जाए। क्योंकि मनुष्यों के भीतर के अनेक इरादे ग़लत हैं, या फिर चूँकि परमेश्वर का अधिकांश कार्य उनकी धारणाओं के विपरीत होता है, इसलिए जब लोग सत्य को अभ्यास में लाते हैं, तो पर्दे के पीछे एक बड़ा संघर्ष छिड़ जाता है। इस सत्य को अभ्यास में लाकर, पर्दे के पीछे लोग अंततः परमेश्वर को संतुष्ट करने का मन बनाने से पहले उदासी के असंख्य आँसू बहा चुके होंगे। यह इसी संघर्ष के कारण है कि लोग दुःख और शोधन सहते हैं; यही असली कष्ट सहना है। जब संघर्ष तुम्हारे ऊपर पड़ता है, तब यदि तुम सचमुच परमेश्वर की ओर खड़े रहने में समर्थ होते हो, तो तुम परमेश्वर को संतुष्ट कर पाओगे(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल परमेश्वर से प्रेम करना ही वास्तव में परमेश्वर पर विश्वास करना है)। इस पर विचार करने पर मैंने देखा कि यह परमेश्वर को संतुष्ट करने या शैतान को संतुष्ट करने के बीच का संघर्ष था, यह देखने के लिए कि मैं किसे चुनता हूँ। मुझे एहसास हुआ कि जब मेरे सामने समस्याएं आती थीं, मेरा पहला विचार लीडर के रवैये और मेरे अपने करियर पर केंद्रित होता था; नाम और रुतबा अब भी मेरे लिए सबसे महत्वपूर्ण था। मैंने सोचा कि कैसे परमेश्वर ने मानवजाति को बचाने के लिए बड़े लाल अजगर के देश में देहधारी होने और सत्य व्यक्त करने के लिए इतना बड़ा जोखिम उठाया। परमेश्वर ने हमें बिना किसी शिकायत या पछतावे के सब कुछ दिया है, मगर मैं अपने कर्तव्य की खातिर ज़रा सा भी त्याग नहीं कर पाया। मेरा ज़मीर कहां था? इस एहसास ने मुझे बेहद शर्मिंदा कर दिया। मैंने अपने निजी हितों को त्यागने और अपना कर्तव्य निभाने के इरादे के साथ परमेश्वर से प्रार्थना की। उसके बाद, मुझे कई बार अपने कर्तव्य और अपनी जिम्मेदारी में से किसी एक को चुनने का मौका आया; कभी-कभी मैं कमज़ोर पड़ जाता और संघर्ष करता। मगर जब मैं परमेश्वर को संतुष्ट करने के लिए तैयार हो जाता, तो वह हमेशा मेरे लिए एक मार्ग खोल देता; मैं लीडरों की नाक के नीचे सुसमाचार साझा करते हुए अपनी जिम्मेदारी भी निभाता; किसी को कानों-कान खबर नहीं होती। अपना कर्तव्य निभाने का मेरा उत्साह बढ़ता चला गया। जल्दी ही मेरे पूरे परिवार को पता चल गया कि मैं एक विश्वासी हूँ और सुसमाचार का प्रचार कर रहा हूँ। वे सब मेरी आस्था का विरोध करने लगे।

मेरी पत्नी एक टीचर थी, तो उसका वेतन भी सरकार से ही आता था। उसने कहा, “तुम इतने बरसों से पार्टी की व्यवस्था में हो; ऐसा तो नहीं है कि तुम्हें धर्म के प्रति उनका रवैया नहीं पता। वे आये दिन विश्वासियों को गिरफ्तार करते रहते हैं। आस्था रखकर और सुसमाचार साझा करके, क्या तुम जानबूझकर मुसीबत नहीं मोल ले रहे? अगर तुम अपनी आस्था के मार्ग पर चलते रहोगे, तो हमारी जिंदगी खतरे में पड़ जाएगी, हमारा पूरा परिवार तबाह हो जाएगा!” मैंने उसके साथ परमेश्वर के प्रकटन और कार्य के बारे में गवाही साझा की और आस्था रखने का मतलब समझाया। मैंने कहा, “उद्धारकर्ता धरती पर आ गया है, वह मानवजाति को बचाने के लिए सत्य व्यक्त कर रहा है। बचाये जाने का ऐसा मौका जीवन में फिर नहीं मिलेगा। हमारी आँखों के सामने जो फायदे और रुतबा दिख रहा है, वह सब कुछ समय के लिए है। अगर हम सिर्फ कम्युनिस्ट पार्टी का अनुसरण करें, हमेशा अमीर बनने की चाह रखें, तो क्या यह हमें आपदाओं से बचा पाएगा? अगर हम आपदाओं में घिर गये, तो कितना भी पैसा खर्च करें, उससे कोई लाभ नहीं होगा! प्रभु यीशु के प्रेरित मत्ती के बारे में सोचो—वह एक चुंगी लेने वाला था, उसके पास कितना बढ़िया करियर था। लेकिन जब उसने देखा कि उद्धारक, प्रभु यीशु आया है, तो वह उसका अनुसरण करने दौड़ा। इसके अलावा, अगर हम बुरे कर्म करने में हमेशा पार्टी का साथ देते रहें, तो हमें इसका प्रतिफल और दंड जरूर मिलेगा। अंत के दिनों के मसीह का अनुसरण करना बचाये जाने का एकमात्र मार्ग है।” मेरी पत्नी को परमेश्वर के बारे में जानने की कोई दिलचस्पी नहीं थी; इसे लेकर मेरी बातों को सुनने को तैयार नहीं थी। हालांकि, उसके बाद, उसने देखा कि जब से मैंने आस्था रखी है, मेरा बाहर जाकर सहकर्मियों के साथ खाना-पीना बंद हो गया है, मैं घर में भी चीज़ों को अनदेखा नहीं कर रहा हूँ, बल्कि अपने जीवन में पहले से अधिक सोच-समझकर काम कर रहा हूँ; मेरे पास पत्नी और बच्चों के साथ वक्त बिताने का मौका रहता है। कभी-कभी सामान्य जीवन से जुड़े मामलों में उससे बात करता हूँ। धीरे-धीरे उसने मेरे मार्ग में रुकावट बनना बंद कर दिया। हालांकि, उसके घर के सभी लोग मेरी आस्था का विरोध करते थे। उनमें से एक के पास सरकारी नौकरी थी, उन्होंने मुझे सलाह देते हुए कहा, “तुम अभी युवा हो, तुम्हें कामयाबी की सीढ़ियां चढ़ने और पैसे कमाने के बारे में सोचना चाहिए। तभी तुम्हारे माता-पिता और बच्चे तुम्हारे साथ खुशहाल जिंदगी बिता पाएंगे—यही एकमात्र व्यावहारिक कदम होगा। तुम अपने धर्म के लिए जिन चीज़ों के पीछे भाग रहे हो, वे सभी अस्पष्ट और अव्यावहारिक हैं!” मैंने उनसे कहा, “आप विश्वासी नहीं हैं, इसलिए आपको आस्था रखने और सत्य का अनुसरण करने के अर्थ और अहमियत की समझ नहीं है। सत्य बेहत कीमती है; यह हमें जीवन का मार्ग दिखा सकता है, हमारी भ्रष्टता को शुद्ध करके हमें बचा सकता है। इन चीज़ों को पैसों से नहीं तोला जा सकता। आप पार्टी को अंदर से जानते हैं, तो मुझे बताइये, इतने बरसों से आपने जो रुतबा और भौतिक खुशी हासिल की है, क्या आप वाकई खुश हैं? क्या आपके दिल में सच्ची शांति है?” उनके पास कहने को कुछ नहीं था। जब मेरी पत्नी के भाई मुझे नहीं डिगा पाए, तो उन्होंने गुस्से से कहा, “अगर तुम हमारी सलाह नहीं मानोगे, तो जब लीडरों को तुम्हारी धार्मिक गतिविधियों के बारे में पता चलेगा, तो नौकरी की चिंता तो बहुत छोटी बात है, तुम्हें गिरफ्तार भी किया जा सकता है; फिर तुम्हें अपनी जिंदगी और संपत्तियों से भी हाथ धोना पड़ सकता है; तुम्हारा पूरा परिवार मुसीबत में पड़ जाएगा!” कई और लोगों ने भी मुझे मेरी आस्था त्याग देने के लिए मजबूर करने की कोशिश की।

मैंने उन्हें साफ-साफ बता दिया कि मैं परमेश्वर का अनुसरण करते रहने का पक्का इरादा कर लिया है, लेकिन घर आने के बाद मुझे घबराहट महसूस होने लगी। अगर मेरे लीडरों को पता चला, तो मुझे दंड ही नहीं दिया जाएगा या मेरी नौकरी ही नहीं जाएगी, बल्कि मुझे गिरफ्तार करके जेल में भी डाला जा सकता है; फिर मेरे पास कुछ भी नहीं बचेगा; मेरे आसपास के सभी लोग यकीनन मुझे ठुकरा देंगे और दूरी बनाने लगेंगे। मेरे हाथ से अनुग्रह पूरी तरह निकल जाएगा। तब क्या मैं खाली हाथ नहीं रह जाऊंगा? यह सोचकर मेरे अंदर संघर्ष चलने लगा, तनाव इतना अधिक हो गया कि मैं सो भी नहीं पाया। यह सोचकर कि देर-सवेर मेरी अच्छी-खासी आरामदायक जिंदगी और ईर्ष्या करने लायक पद छिन जाएगा, मेरे अंदर बेहद खालीपन महसूस होने लगा, मैं बहुत परेशान हो गया। अपनी पीड़ा और दुःख में, मैंने परमेश्वर से प्रार्थना करते हुए, उसकी इच्छा को समझने में मेरा मार्गदर्शन करने की विनती की। उसके बाद, मैंने परमेश्वर के वचनों का ये अंश पढ़ा : “ऐसी गंदी जगह में जन्म लेकर मनुष्य समाज द्वारा बुरी तरह संक्रमित कर दिया गया है, वह सामंती नैतिकता से प्रभावित हो गया है, और उसे ‘उच्चतर शिक्षा संस्थानों’ में पढ़ाया गया है। पिछड़ी सोच, भ्रष्ट नैतिकता, जीवन के बारे में क्षुद्र दृष्टिकोण, घृणित जीवन-दर्शन, बिल्कुल बेकार अस्तित्व, भ्रष्ट जीवन-शैली और रिवाज—इन सभी चीजों ने मनुष्य के हृदय में गंभीर घुसपैठ कर ली है, उसकी अंतरात्मा को बुरी तरह खोखला कर दिया है और उस पर गंभीर प्रहार किया है। फलस्वरूप, मनुष्य परमेश्वर से और अधिक दूर हो गया है, और परमेश्वर का और अधिक विरोधी हो गया है। दिन-प्रतिदिन मनुष्य का स्वभाव और अधिक शातिर बन रहा है, और एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं जो स्वेच्छा से परमेश्वर के लिए कुछ भी त्याग करे, एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं जो स्वेच्छा से परमेश्वर की आज्ञा का पालन करे, इसके अलावा, न ही एक भी व्यक्ति ऐसा है जो स्वेच्छा से परमेश्वर के प्रकटन की खोज करे। इसके बजाय, इंसान शैतान की सत्ता में रहकर, आनंद का अनुसरण करने के सिवाय कुछ नहीं करता और कीचड़ की धरती पर खुद को देह की भ्रष्टता में डुबा देता है। सत्य सुनने के बाद भी जो लोग अंधकार में जीते हैं, उसे अभ्यास में लाने का कोई विचार नहीं करते, न ही वे परमेश्वर का प्रकटन देख लेने के बावजूद उसे खोजने की ओर उन्मुख होते हैं। इतनी भ्रष्ट मानवजाति को उद्धार का मौका कैसे मिल सकता है? इतनी पतित मानवजाति प्रकाश में कैसे जी सकती है?(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, अपरिवर्तित स्वभाव होना परमेश्वर के साथ शत्रुता रखना है)। परमेश्वर के वचनों ने मेरी पीड़ा के स्रोत का खुलासा कर दिया। जब कोई चुनाव करना होता तो मैं इतना परेशान क्यों हो जाता था? इसकी वजह यह थी कि शैतान ने मुझे गहराई तक भ्रष्ट कर दिया था; बचपन से ही मैं इन शैतानी फलसफों पर विश्वास करने लगा था; जैसे कि “भीड़ से ऊपर उठो और अपने पूर्वजों का नाम करो” मैंने इन्हें अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया था। मैं दूसरों का सम्मान और प्रशंसा पाने के पीछे भागता रहा, मुझे लगा जैसे यही मेरी महत्वाकांक्षा हो। इसे हासिल करने की कोशिश में, मैं एक कर्मठ छात्र रहा, फिर नौकरी मिलने के बाद, मैं हमेशा लोगों के मन की बात जानने, खुशामद करने और लीडरों का भरोसा जीतकर प्रमोशन पाने के लिए उनकी चापलूसी करने में लगा रहा। इस बात को अच्छी तरह जानते हुए भी कि कम्युनिस्ट पार्टी के साथ किया गया कोई भी काम घोर अत्याचार होगा, मैं खुद को मजबूत करके इसी दिशा में आगे बढ़ता रहा; मैं शैतान की सेवा करते हुए पीड़ा में जीता रहा; मुझे कोई शांति नहीं मिली। ये सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन ही थे जिन्होंने मुझे जीवन का अर्थ समझाया और उसकी अहमियत समझाई; इससे मेरे मन को अधिक से अधिक संतोष मिला। फिर भी, अपनी आस्था जारी रखने और अपनी नौकरी और भविष्य को खोने और दूसरों के द्वारा ठुकराये जाने की संभावना के बीच सही विकल्प चुनने की स्थिति आने पर मुझे समझ आया, यह शैतानी फलसफा कि “भीड़ से ऊपर उठो और अपने पूर्वजों का नाम करो” अभी भी मेरे अंदर अपने पंजे गड़ाये बैठा था। यह निर्णय लेना मेरे लिए बहुत मुश्किल और बेहद पीड़ादायक था, मानो नाम और लाभ के पीछे नहीं भागने का मतलब अपनी वास्तविक जिम्मेदारियों को अनदेखा करना या यहाँ तक कि कोई भयानक अत्याचार हो। मैं अपना नाम और रुतबा नहीं खोना चाहता था, मानो इन चीज़ों को खोना अपनी जिंदगी खोने के बराबर हो। फिर प्रकाशितवाक्य से जुड़े परमेश्वर के वचनों को पढ़कर मैंने जाना कि कैसे शैतान इन चीज़ों का इस्तेमाल लोगों को अंधा करने, हमें नुकसान पहुंचाने के लिए करता है, ताकि हम परमेश्वर से दूर हो जाएं और उससे विश्वासघात कर सकें। इससे मुझे “तुम्हें सकारात्मक प्रगति की कोशिश करनी चाहिए” नामक परमेश्वर के वचनों का एक भजन याद आया : “लोगों का पूरा जीवन परमेश्वर के हाथों में हैं और अगर परमेश्वर के सामने लिया गया उनका संकल्प नहीं होता, तो मनुष्यों की इस खोखली दुनिया में व्यर्थ रहने के लिए कौन तैयार होता? कोई क्यों परेशानी उठाता? दुनिया में अंदर और बाहर भागते हुए, अगर वो परमेश्वर के लिए कुछ न करे, तो क्या उसका पूरा जीवन व्यर्थ नहीं चला जाएगा? यहाँ तक कि अगर परमेश्वर तुम्हारे कर्मों को उल्लेखनीय नहीं मानता, तो भी क्या तुम अपनी मौत के क्षण में आभार की एक मुस्कान नहीं दोगे?(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, “संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचनों” के रहस्यों की व्याख्या, अध्याय 39)। इस भजन से मुझे काफी प्रेरणा मिली। इस जीवन में हमारे पास बस कुछ ही दशक बचे हैं, इसलिए हमें इस अवसर का लाभ परमेश्वर के कार्य का अनुभव करके बचाये जाने, एक सृजित प्राणी का कर्तव्य निभाने और सत्य और जीवन हासिल करने में उठाना होगा, वरना परमेश्वर द्वारा बचाये जाने का यह मौका चूक जाएगा। तब क्या हमारा जीवन बेकार नहीं हो जाएगा? मैं जानता था कि अगर कम्युनिस्ट पार्टी ने मेरी आस्था के कारण मुझे गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया और मुझे यातनाएं दी, तो मर जाने पर भी मुझे कोई मलाल नहीं रहेगा। परमेश्वर ने जीवन में यह मौका दिया है, तो मुझे परमेश्वर के लिए इसे समर्पित करना चाहिए। यह एहसास होने पर मैंने प्रार्थना की, “हे परमेश्वर! मैं बड़े लाल अजगर के बंधनों और बेड़ियों से आजाद होकर अपना सब कुछ तुम्हें समर्पित करना चाहता हूँ। कृपा करके मुझे राह दिखाओ, मुझे आस्था दो, आगे आने वाली मुसीबत से निकलने में मेरी मदद करो।”

उसके बाद कुछ ऐसा हुआ जिसने मुझे जल्द से जल्द कम्युनिस्ट पार्टी की व्यवस्था से बाहर निकलने के लिए प्रेरित किया। एक लीडर को पता चला कि पार्टी का कोई सदस्य धार्मिक है; तो गुस्से में अपने दांत पीसते हुए उसने कहा कि हमें उसे फौरन पुलिस थाने ले जाना होगा, ताकि उसे मज़ा चखाया जा सके। जब भी मैं धर्म के प्रति कम्युनिस्ट पार्टी के रवैये के बारे में सोचता, मुझे काफी डर लगता था। मैं सोच रहा था यह धार्मिक आस्था के इस कदर खिलाफ है और ईसाइयों से इतना नफरत करती है कि देर-सवेर मैं भी इनके निशाने पर आ ही जाऊंगा। यह बड़ी खतरनाक जगह है, मुझे जल्द से जल्द ऐसी जगह छोड़ देनी चाहिए। इतने बरसों तक मैं कम्युनिस्ट पार्टी की भक्ति के लिए गीत गाता रहा और उसके बुरे कर्मों में साथ देता रहा। अगर मैं इस व्यवस्था में बना रहा, तो इसमें और भी उलझता चला जाऊंगा, मुझे छुटकारा भी नहीं मिल पाएगा। मुझे फौरन इस शैतानी संगठन से बाहर निकलना होगा और अपना संबंध पूरी तरह तोड़ना होगा।

जब मैंने अपनी पत्नी को बताया कि मैं क्या सोच रहा हूँ, तो वह चिंता में पड़ गई। उसने कहा, वह मेरी आस्था में मेरा सहयोग कर सकती है, मगर मुझे नौकरी छोड़ने नहीं दे सकती। उसने मेरे भाई-बहनों को भी मुझे रोकने के लिए कह दिया। वे राज्य-संचालित उद्यमों में काम करते थे; उन्हें फिक्र होने लगी कि अगर मुझे गिरफ्तार कर लिया गया तो इसका असर उनके करियर पर भी पड़ेगा। मेरी सबसे बड़ी बहन ने तो मेरे आगे घुटनों के बल बैठकर रोते हुए और मेरे हाथों को खींचते हुए कहा, “तुम्हारे पास इतनी अच्छी नौकरी है, इतनी अच्छी सैलरी है जो डॉक्टर या मास्टर की डिग्री रखने वालों को भी नहीं मिलती। तुम ऐसी शानदार नौकरी छोड़कर परमेश्वर का अनुसरण करने कैसे जा सकते हो?” उसने यह भी कहा कि अगर मैं अपनी आस्था में बने रहने पर जोर देता रहा, तो वह इसी तरह घुटनों के बल बैठी रहेगी। मेरी दूसरी बहन भी मुझसे बहुत नाराज़ थी, उसने कहा कि कैसे मेरी पढ़ाई-लिखाई का खर्च उठाने में मदद के लिए उसने तकलीफ सही और 30 साल तक शादी नहीं कर पाई। इतना सब कुछ करने के बाद अब हमारे साथ सब ठीक चल रहा है और पूरे परिवार को इसका फायदा मिल रहा है। अगर मैंने इस्तीफा दे दिया, तो इतने बरसों की उसकी सारी मेहनत बेकार चली जाएगी। मेरी सबसे बड़ी बहन ने भी शिकायत की कि अगर मैंने अपनी नौकरी छोड़ दी, तो उसके स्कूल में बीमारी की छुट्टी के पैसे कटने लगेंगे; उसके बेटे को भी उम्मीद थी कि मैं नौकरी ढूँढने में उसकी मदद कर सकता हूँ। उसने कहा कि मैं अपनी आस्था में सिर्फ खुद के बारे में नहीं सोच सकता, मुझे अपने परिवार के बारे में भी सोचना होगा। उस वक्त मुझे निर्णय लेने में बेहद मुश्किल हो रही थी। जब मैं छोटा था तभी से मेरे भाई-बहन लगातार मेरा साथ दे रहे थे। मैं लगातार यही उम्मीद लिए बड़ा हुआ था कि आगे चलकर उनकी जिंदगी अच्छी होगी और वे समाज में सिर उठाकर चल सकेंगे। अगर मैं उनकी बात मान गया तो उन्हें यकीनन खुशी होगी, पर मैं अब विश्वासी था और परमेश्वर का अनुसरण कर था, इसलिए मुझे परमेश्वर के अनुग्रह और प्रेम को निराश न करने के लिए सृजित प्राणी का कर्तव्य निभाना होगा। अगर मैंने अपने परिवार से आस्था त्यागने का वादा कर दिया, तो क्या यह परमेश्वर से धोखा नहीं होगा? परमेश्वर से धोखा करना बहुत बड़ा अपराध है और मैं यह बिलकुल नहीं कर सकता। परमेश्वर ने मानवजाति को बचाने के लिए अनेक सत्य व्यक्त किए हैं, और उसने इतनी बड़ी कीमत चुकाई है। उसका बदला चुकाने का अगर मेरा कोई इरादा न हो, यहाँ तक कि मैं दुष्ट शैतान से समझौता कर लूँ, उसके आगे घुटने टेक दूँ, तो यह बहुत अनुचित होगा। मुझे थोड़ी पीड़ा और कमजोरी महसूस हुई, मगर मैं जानता था कि मुझे यह फैसला करना होगा। मैंने उनसे कहा, “किसी पास कितना भी पैसा हो या कितनी भी अच्छी नौकरी हो, क्या वह खालीपन के दर्द को भर सकता है? क्या यह जीवन खरीद सकता है? क्या इतने सारे अमीर और ताकतवर लोग अभी भी पीड़ा में नहीं जी रहे हैं? आस्था रखना और सत्य का अनुसरण करना इन समस्याओं को हल करने का एकमात्र रास्ता है। उद्धारकर्ता धरती पर आ गया है, वह इंसानियत को बचाने के लिए सत्य व्यक्त कर रहा है। यह एक ऐसा अवसर है जो फिर कभी नहीं आएगा; यह बेहद क्षणिक अवसर है। पलक झपकते ही हमारे ऊपर भयंकर आपदाएं आएंगी। अगर हम अभी परमेश्वर का अनुसरण नहीं करेंगे और उसके आगे पश्चात्ताप नहीं करेंगे, तो जब तक आपदाएं आएंगी, तब तक पछतावे के लिए बहुत देर हो जाएगी! मैंने आप सबके साथ पहले थोड़ा-थोड़ा सुसमाचार साझा किया है, लेकिन आप लोग कम्युनिस्ट पार्टी की गिरफ्तारी के डर से इसमें शामिल होने से डरते रहे हैं। आप लोग पार्टी का अनुसरण करने पर अड़े हैं, जो सीधे नर्क में जाने का मार्ग है। मुझ पर पार्टी का अनुसरण करने का दबाव डालकर क्या आप लोग मेरा नुकसान नहीं कर रहे हैं? क्या आपको पता है कि इस व्यवस्था में किस तरह के लोग शामिल हैं? वे सभी परमेश्वर विरोधी राक्षस हैं जो किसी भी तरह का भयानक काम कर सकते हैं। उनका शापित होना और दंडित किया जाना तय है। आपदाएं बढ़ती ही जा रही हैं। अगर आप लोग अभी भी परमेश्वर में विश्वास नहीं करेंगे और उसके आगे पश्चात्ताप नहीं करेंगे, तो आपका आपदाओं में घिरना और दंड मिलना पक्का है। अपनी आस्था के इन बरसों में मैंने थोड़े से सत्य जाने हैं; मैंने साफ तौर पर देखा है कि आस्था रखना जीवन का एकमात्र सही मार्ग है। आप लोग मेरा परिवार हैं—क्या आप मेरा भला नहीं चाहते? आप लोग मुझे कम्युनिस्ट पार्टी के साथ बुरे मार्ग पर धकेलने पर जोर क्यों डाल रहे हैं? मैं आपकी निजी पसंद में दखल नहीं देता, लेकिन मेरी पसंद आस्था रखना और परमेश्वर का अनुसरण करना है। अगर मुझे गिरफ्तार करके मुझ पर अत्याचार किया गया, तब भी मैं अंत तक इसी मार्ग पर चलूँगा।” मेरी पत्नी मुंह लटकाकर वहां से चली गई; बाकी लोगों ने मुझसे और कुछ नहीं कहा। बाद में, मुझे सभाओं में हिस्सा लेने और कर्तव्य निभाने से रोकने की कोशिश में, मेरी पत्नी ने मुझे घर में बंद कर दिया और मेरे साले को दिन भर मुझ पर नज़र रखने के लिए वहां बिठा दिया, ताकि मैं उसकी नज़रों से ओझल न हो सकूं। मैं लगातार तीन दिन तक कहीं भी नहीं जा सका। इससे मेरे कर्तव्य से जुड़ी चीज़ों में देरी हो गई और मुझे बहुत फ़िक्र होने लगी। क्या करूँ, क्या न करूँ, इस उधेड़बुन में मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की और उससे मार्गदर्शन करने और मुझे कोई राह दिखाने के लिए कहा। फिर तीसरे दिन शाम को मेरे पिता ने कॉल करके बताया कि मेरी माँ नहीं मिल रही हैं, तो आखिर में मुझे अपने साले के साथ अपनी माँ की खोज में बाहर निकलने का मौका मिल गया। रास्ते में उसने मुझे चेतावनी देते हुए कहा, “आपको अपनी आस्था छोड़नी ही होगी! कल से आपके भाई यहाँ होंगे; उन्होंने कहा है कि अगर आप अपने धर्म पर बने रहे तो वे आपके पैर तोड़ देंगे; चाहे जो भी हो जाये, वे आपसे आपकी आस्था छुड़वाने का कोई न कोई तरीका ढूंढ ही लेंगे!” यह सुनकर मुझे बेहद निराशा हुई। मैं जानता था कि अगर मैं फौरन उनसे दूर नहीं गया, तो मुझे दूसरा मौका नहीं मिलेगा। पर, जब मैं वास्तव में वहां से निकलने वाला था, तो मुझे उस मानसिक बाधा को पार करना सचमुच मुश्किल लगा। अपने प्रियजनों और अपने मुहल्ले को देखकर, मैं उस आरामदायक जीवन और ईर्ष्या करने लायक नौकरी के बारे में सोचने लगा—मेरे दिल में बहुत-सी टीसें उठने लगीं क्योंकि मैं एक पल में उन सबको खो दूंगा। फिर मुझे “तुमने ईश्वर को क्या समर्पित किया है?” नामक परमेश्वर के वचनों का एक भजन याद आया, जो हम सभाओं में अक्सर गाया करते थे : “अब्राहम ने इसहाक को बलिदान किया—तुमने किसे बलिदान किया है? अय्यूब ने सब-कुछ बलिदान किया—तुमने क्या बलिदान किया है? इतने सारे लोगों ने अपना जीवन दिया है, अपने सिर कुर्बान किए हैं, अपना खून बहाया है, सही राह तलाशने के लिए। क्या तुम लोगों ने वह कीमत चुकाई है?(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, मोआब के वंशजों को बचाने का अर्थ)। ऐसा लगा मानो परमेश्वर मेरे आमने-सामने खड़ा हो और मुझसे ये सवाल कर रहा हो। जब अब्राहम 100 साल का हुआ तो परमेश्वर ने उसे एक बेटा दिया, फिर भी वह परमेश्वर को अपना बेटा भेंट करने को तैयार था। बहुत से प्रेरितों ने अपनी जवानी भेंट कर दी और परमेश्वर के सुसमाचार कार्य के लिए अपना खून बहाया, लेकिन मैंने क्या भेंट दिया? मैं नाम और रुतबे के चक्कर में उलझा रहा, जो बेकार की चीज़ें थीं। मैं बहुत स्वार्थी और घिनौना था। परमेश्वर ने इतने वर्षों तक मेरा पालन-पोषण करने के लिए जो बलिदान किए, मैं उनके लायक कैसे था? साथ ही, मैं जो फैसला लेने जा रहा था, उसका कोई अर्थ था। यह मेरी आस्था के लिए और एक सृजित प्राणी का कर्तव्य निभाने के लिए था। अगर मैंने अपने कर्तव्य को नहीं चुना, तो मुझे जीवन भर पछताना पड़ेगा। इस बारे में इस तरह से सोचने पर मेरा विश्वास मजबूत हुआ। जब मेरा साला सीढ़ियों के रास्ते ऊपर जा रहा था, मैं मौके का फायदा उठाकर वहां से भाग निकला। तब से, मैं कलीसिया को अपना पूरा समय देकर कर्तव्य निभा रहा हूँ।

तब से मैंने यही सुना है कि मेरे विभाग में कई लीडर और सहकर्मी रुतबे और धन की अपनी चाह में रिश्वत लेने-देने में लगे रहे; जब ये बातें सामने आईं, तो उन्हें सलाखों के पीछे डाल दिया गया। मैं वाकई परमेश्वर का संरक्षण पाकर बहुत आनंदित था। पहले, जब मैं करियर में आगे बढ़ने की कोशिश में लगा था, मैं भी बाकी लोगों की तरह उपहार भेजा करता था, मैंने दूसरे लोगों से रिश्वत भी ली थी। अगर मैं उस तरह के माहौल में बना रहता, तो मुझे भी उनकी तरह सलाखों के पीछे जाना होता। अब मेरे पास भले ही वैसे उपहार नहीं आते या प्रशंसा नहीं मिलती और दूसरे मुझसे नहीं जलते, मगर मैं कलीसिया में कर्तव्य निभा सकता हूँ, सत्य का अनुसरण कर सकता हूँ, और एक ईमानदार इंसान बन सकता हूँ। इससे मुझे काफी संतोष और खुशी मिली। यह सचमुच सबसे सार्थक और बेशकीमती जीवन है। जैसा कि परमेश्वर के वचनों के “सबसे सार्थक जीवन” नामक भजन में कहा गया है : “तुम सृजित प्राणी हो—तुम्हें निस्संदेह परमेश्वर की आराधना और सार्थक जीवन का अनुसरण करना चाहिए। चूँकि तुम मानव प्राणी हो, इसलिए तुम्हें स्वयं को परमेश्वर के लिए खपाना और सारे कष्ट सहने चाहिए! आज तुम्हें जो थोड़ा-सा कष्ट दिया जाता है, वह तुम्हें प्रसन्नतापूर्वक और दृढ़तापूर्वक स्वीकार करना चाहिए और अय्यूब तथा पतरस के समान सार्थक जीवन जीना चाहिए। तुम सब वे लोग हो, जो सही मार्ग का अनुसरण करते हो, जो सुधार की खोज करते हो। तुम सब वे लोग हो, जो बड़े लाल अजगर के देश में ऊपर उठते हो, जिन्हें परमेश्वर धार्मिक कहता है। क्या यह सबसे सार्थक जीवन नहीं है?(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, अभ्यास (2))। सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने ही मुझे बचाया है, शैतान के विनाश से बचकर निकलने और परमेश्वर का उद्धार पाने में मेरी मदद की है।

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