82. निरंतर यातना से गुजरना

वू मिंग, चीन

दिसंबर 2000 में एक दिन, शाम 5 बजे के करीब मैं और मेरी पत्नी घर पर एक भाई-बहन के साथ बैठे थे कि अचानक दरवाजे पर जोरदार “धम धम धम” की आवाज सुनाई दी। मैं अपनी किताबों को छिपाने के लिए भागा। तभी, छह या सात पुलिस अधिकारी जबरदस्ती कमरे में घुस आए। उनमें से एक चिल्लाया : “तुम लोग क्या कर रहे हो? क्या तुम सभा कर रहे हो?” उसने मुझे तलाशी के वारंट पर दस्तखत करने को मजबूर किया और उसके बाद घर में लूटपाट की, सारी चीज़ें यहां-वहां बिखरी पड़ी थीं। उन्हें परमेश्वर के वचन की किताबें और दो टेप रिकॉर्डर मिल गए। राजनीतिक सुरक्षा सेक्शन का डिप्टी चीफ, जिसका सरनेम ल्यू था, परमेश्वर के वचन की कुछ किताबें लेकर मेरे पास आया और बोला : “यह तुम्हारी गिरफ्तारी के लिए सबूत है।” फिर उन लोगों ने हमें कार में बिठा दिया। मैंने मन-ही-मन परमेश्वर से प्रार्थना की, “हे परमेश्वर, तुमने हमें आज गिरफ्तार हो जाने दिया। पुलिस मुझे कितनी भी यातना क्यों न दे, मैं यहूदा बनने और तुम्हें धोखा देने से इनकार करता हूँ!”

जब हम पुलिस थाने पहुंचे, तो उन्होंने हमसे अलग-अलग पूछताछ की। एक अधिकारी, जिसका सरनेम जिन था, उसने मुझसे पूछा : “तुम्हारे घर में वो किताबें तुम्हें किसने दीं? तुम्हारा मत-परिवर्तन किसने किया? तुम्हारा अगुआ कौन है?” जब मैंने कुछ नहीं कहा, तो वो क्रूरता से बोला : “बोलोगे या नहीं? अगर तुम नहीं बोले, तो समझो तुम गए!” यह देखकर कि मैं कुछ नहीं बोलने वाला, पुलिस अधिकारी ने मेरे सिर पर कई बार बेरहमी से घूँसे मारे और फिर कई जोरदार तमाचे रसीद कर दिए। मुझे तारे दिखने लगे और मेरा चेहरा बुरी तरह बिगड़ गया। फिर उसने अपने बूट से मेरी जांघ को कई बार बेरहमी से कुचला। अधिकारी जिन ने एक पत्रिका को मोड़कर मेरे चेहरे पर प्रहार किया और क्रूरता से बोला : “उससे बात करना वक्त की बर्बादी है। उसे रस्सी से बांधो और फिर दिखाओ उसे कि हम क्या कर सकते हैं!” फिर, एक पुलिस अधिकारी करीब एक चौथाई इंच मोटी रस्सी लेकर आया, शरीर पर केवल एक पतली-सी पतलून छोड़कर मेरे सभी बाहरी कपड़े उतार दिए। उन्होंने मेरे हाथों को पकड़ा और जमीन पर धकेल दिया, मेरी गर्दन पर रस्सी लपेट दी, उससे मेरी छाती पर क्रॉस बनाया, फिर मेरे हाथों को बाँध दिया। मेरे हाथों को पीठ के पीछे करके रस्सी से बाँधा, इसके बाद मेरी गर्दन पर बंधी रस्सी के हिस्से से जोड़ दिया और फिर उसे जोर से खींचा। मेरे कंधे दर्दनाक ढंग से एक-दूसरे के करीब खिंच गए, और पतली रस्सी मेरी देह में धँस गई। लगा जैसे मेरे हाथ टूट गए हों, और दर्द के मारे मेरा बुरा हाल था। उन्होंने मेरे पैरों को 90 डिग्री पर अलग किया और मेरे सिर को भी 90 डिग्री पर मोड़कर मेरी कमर के नीचे कर दिया। जल्दी ही, मुझे चक्कर आने लगे, लगा जैसे मेरी आँखें खोपड़ी से बाहर निकल आएंगी। मेरे चेहरे से लगातार पसीना टपकने लगा, फर्श पसीने से भीग गया। मैं थकान और पीड़ा से बेहाल था, मेरा शरीर काँप रहा था, मैं अपने पैरों पर खड़ा भी नहीं हो पा रहा था। अपने पैरों को एक-दूसरे के करीब लाकर थोड़ी देर आराम पाना चाहता था, पर जैसे ही मैं ज़रा-सा भी हिलता, तो जिन मेरे पीछे लात मारकर न हिलने की हिदायत देता। दर्द सहने लायक नहीं था। मेरा मन गुस्से और नफरत से भर गया था, मैंने सोचा : “बहुत से अपराधी खुले घूम रहे हैं, तुम उनके पीछे तो नहीं भागते। मैं परमेश्वर में विश्वास करता हूँ और सही मार्ग पर चलता हूँ, मैंने कोई कानून नहीं तोड़ा, फिर भी तुम मुझे यातना दे रहे हो। ये बहुत बड़ी दुष्टता है!” मैंने परमेश्वर के इन वचनों को याद किया : “प्राचीन पूर्वज? प्रिय अगुवा? वे सभी परमेश्वर का विरोध करते हैं! उनके हस्तक्षेप ने स्वर्ग के नीचे की हर चीज को अंधेरे और अराजकता की स्थिति में छोड़ दिया है! धार्मिक स्वतंत्रता? नागरिकों के वैध अधिकार और हित? ये सब पाप को छिपाने की चालें हैं!(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, कार्य और प्रवेश (8))। आखिरकार, मैंने सीसीपी के असली, कुरूप चेहरे को देख लिया था। वे “धर्म की आजादी” और “जनता की पुलिस जनता के लिए है” जैसी बातें कहते हैं, पर यह सब झूठ है! कम्युनिस्ट पार्टी आस्था की आजादी का सम्मान करने का बहाना करती है, पर असल में, ये लोग विश्वासियों के साथ क्रूरता से पेश आते हैं, और हम सभी को मिटा देना चाहते हैं। कम्युनिस्ट पार्टी दुष्ट शैतान है जो परमेश्वर का विरोध और उससे नफरत करती है। मैंने मन-ही-मन सोचा, “जितना अधिक वे मुझे यातना देंगे, अंत तक मेरी आस्था उतनी ही मजबूत होती जाएगी!”

करीब आधे घंटे बाद, मेरे पूरे शरीर में कमजोरी महसूस होने लगी और मेरा सिर और आँखें सूज गईं। मेरे पैर पूरी तरह सुन्न पड़ गए, और हाथों और बाजुओं में कुछ भी महसूस होना बंद हो गया। मेरे कपड़े पसीने से तर थे। तभी मैंने जिन को यह कहते सुना : “तुम इस रस्सी को आधे घंटे से ज्यादा बर्दाश्त नहीं कर सकते, वरना तुम्हारे बाजू बेकार हो जाएंगे।” यह कहकर, उन्होंने रस्सी खोल दी। जैसे ही उन्होंने रस्सी खोली, मैं धड़ाम से जमीन पर गिर गया, मेरा पूरा शरीर दुख रहा था। फिर दो पुलिसवालों ने दोनों तरफ से मेरे हाथों को पकड़ा और मेरे हाथों को इस तरह घुमाने लगे मानो वे कोई बड़ी सी रस्सी हों। कई बार घुमाने से मेरे हाथों में भयानक दर्द होने लगा। जिन ने फिर पूछा : “वो किताबें तुम्हें कहाँ से मिलीं? तुम्हारा अगुआ कौन है? तुम्हारा मत परिवर्तन किसने किया? जवाब दो!” फिर, ल्यू ने झूठी दया दिखाते हुए कहा : “बस हमें बता दो, ये कोई बड़ी बात नहीं है। अगर तुम बता दोगे तो और पीड़ा नहीं झेलनी होगी।” मैंने सोचा : “तुम्हें लगता है कि मैं कभी अपने भाई-बहनों से विश्वासघात करूंगा!” मेरे कुछ न बोलने से भड़ककर, जिन ने कहा : “उसे फिर से बाँध दो, देखते हैं कब तक बर्दाश्त कर सकता है!” उन्होंने मुझे दोबारा रस्सी से बाँध दिया। इस बार उन्होंने मुझे पहले से कहीं ज्यादा कसकर बाँधा। रस्सी से उन्हीं जगहों पर फिर जख्म हो गए और पहले से कहीं ज्यादा तेज दर्द होने लगा। मैं दिल ही दिल में परमेश्वर से प्रार्थना करता रहा, उससे आस्था देने और देह की पीड़ा बर्दाश्त करने में मदद करने की विनती की। आधे घंटे बाद, जब उन्होंने देखा कि मैं उन्हें कोई जवाब नहीं देने वाला, तो उन्होंने रस्सी खोल दी।

रात को करीब 12:30 बजे, पुलिस मुझे एक नजरबंदी गृह में ले गई। नजरबंदी गृह में, मुझे दिन में सिर्फ दो बार खाना मिलता; हर बार खाने में बस भाप से पकी ब्रेड और थोड़ी-सी सब्जी होती। ब्रेड में पिलपिला-सा कॉर्न भरा होता था, आधी सब्जियां सड़ी हुई होती थीं, कटोरे का निचला हिस्सा मिट्टी का बना होता था। हर दिन सुबह छह बजे से लेकर रात के आठ बजे तक, सिर्फ खाने और सुबह आधा घंटा बाहर निकलने का समय छोड़कर मुझे पालथी मारकर बैठना होता था। बैठे-बैठे ज़रा भी हरकत करता, तो कोई न कोई मारने लगता। पुलिस थाने में रस्सी बांधकर यातना मिलने के कारण मेरे कंधों पर गहरा घाव हो गया था। इससे पीले रंग का मवाद निकलकर मेरे कपड़ों को गीला करता रहता था; मेरी कलाइयों से भी खून रिसने लगा था और वो फूलकर बैंगनी लाल रंग की हो गई थीं। शरीर के सभी जोड़ों में असहनीय पीड़ा होती थी, बाथरूम जाना भी बेहद मुश्किल हो गया था। मुझे लगा जैसे यह इंसानों के रहने लायक जगह ही नहीं है और मुझे नहीं पता था कि जेल की अंधेरी कोठरी में रहने के दिन आखिर कब खत्म होंगे। इन विचारों से मुझे काफी तकलीफ होती थी। अपनी पीड़ा के बीच, मैंने बार-बार परमेश्वर से प्रार्थना की, उससे मुझे राह दिखाने की विनती की, ताकि मैं उसकी इच्छा को समझ सकूं, मजबूत बनूँ और डटकर गवाही दूं। मैंने परमेश्वर के इन वचनों को याद किया : “इन अंत के दिनों में तुम लोगों को परमेश्वर की गवाही देनी चाहिए। चाहे तुम्हारे कष्ट कितने भी बड़े क्यों न हों, तुम्हें बिलकुल अंत तक चलना चाहिए, यहाँ तक कि अपनी अंतिम साँस पर भी तुम्हें परमेश्वर के प्रति निष्ठावान और उसके आयोजनों के प्रति समर्पित होना चाहिए; केवल यही वास्तव में परमेश्वर से प्रेम करना है, और केवल यही सशक्त और जोरदार गवाही है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पीड़ादायक परीक्षणों के अनुभव से ही तुम परमेश्वर की मनोहरता को जान सकते हो)। परमेश्वर के वचनों पर विचार करने से मेरा हौसला बढ़ गया। मैं परमेश्वर की अनुमति से ही ऐसी हालत में था। परमेश्वर ने मेरी आस्था और प्रेम को पूर्ण करने के लिए ही इस मुश्किल वातावरण का इस्तेमाल किया था। उसे उम्मीद थी कि मैं डटकर गवाही दूंगा और शैतान को शर्मिंदा करूंगा। लेकिन अगर मैं ज़रा-सी पीड़ा के बाद ही भाग जाता, तो यह कैसी गवाही होती? भले ही मैंने पुलिस की यातना से कष्ट झेला, पर इससे मुझे कम्युनिस्ट पार्टी के परमेश्वर विरोधी शैतानी सार को साफ तौर पर समझने में मदद मिली, ताकि मैं इससे दिल की गहराइयों से नफरत कर सकूं, इसे त्याग सकूं और उससे फिर कभी धोखा न खाऊं। यह मेरे लिए परमेश्वर का उद्धार था। परमेश्वर की इच्छा को समझने के बाद, मेरा दुःख पहले से काफी कम हो गया। मैंने मन-ही-मन कसम खाई : “चाहे मुझे कितनी भी पीड़ा झेलनी पड़े, मैं निरंतर परमेश्वर पर भरोसा करता रहूँगा और उसके लिए अपनी गवाही में मजबूत रहूँगा।”

एक दिन, राजनीतिक सुरक्षा प्रभाग से कोई मुझसे पूछताछ करने आया, तो मुझे थोड़ी घबराहट हुई। मुझे नहीं पता था वे मुझे किस तरह की यातना देने वाले हैं। मैंने मन-ही-मन परमेश्वर से प्रार्थना करके उससे मेरे दिल की रक्षा करने को कहा। पूछताछ वाले कमरे में, डिप्टी चीफ ल्यू ने झूठे मन से कहा : “सब सच-सच बता दो, फिर तुम अपने घर जा सकते हो। हम तुम्हारे घर गए थे। तुम्हारे बच्चे बहुत छोटे हैं-मुझे बड़ा दुःख हुआ कि उनकी देखरेख करने वाला कोई नहीं है। बस हमें सब बता दो।” उसके मुंह से अपने बच्चों का जिक्र मेरे लिए बर्दाश्त से बाहर था। मैंने सोचा : “मेरी पत्नी और मुझे, दोनों को कम्युनिस्ट पार्टी ने गिरफ्तार कर लिया है, और अब हमारे बच्चों को भी फँसाया जा रहा है। इतनी छोटी उम्र में अगर उनकी देखरेख करने वाला कोई नहीं होगा, तो वे कैसे खुद को संभाल पाएंगे।” तभी मुझे परमेश्वर के इन वचनों की याद आई : “मेरे लोगों को, मेरे लिए मेरे घर के द्वार की रखवाली करते हुए, शैतान के कुटिल कुचर्क्रों से हर समय सावधान रहना चाहिए ... ताकि शैतान के जाल में फँसने से बच सकें, और तब पछतावे के लिए बहुत देर हो जाएगी(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 3)। मुझे समझ आ गया कि यह शैतान की चाल है। पुलिस मेरी भावनाओं का इस्तेमाल कर मुझे ललचाने की कोशिश कर रही थी, ताकि मैं परमेश्वर से विश्वासघात करूं। मैं इस जाल में नहीं फँसने वाला। फिर मैंने परमेश्वर के इन वचनों पर विचार किया : “संसार में घटित होने वाली समस्त चीजों में से ऐसी कोई चीज नहीं है, जिसमें मेरी बात आखिरी न हो। क्या कोई ऐसी चीज है, जो मेरे हाथ में न हो?(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 1)। सभी चीजों में परमेश्वर की सत्ता है, मेरे बच्चे भी उसके हाथों में थे। मैं अपने बच्चों को परमेश्वर के हाथ में सौंपने को तैयार था; पुलिस मेरे खिलाफ चाहे जैसी भी चालें आजमाए, मैं डटकर खड़ा रहूँगा और कभी यहूदा नहीं बनूंगा! ल्यू लगातार मुझसे कलीसिया के बारे में पूछता रहा; जब मैंने कोई जवाब नहीं दिया, तो जिन मुझ पर लात-घूंसे बरसाने लगा, मारते हुए वह चीख रहा था : “मत बोल, मार-मार कर मैं तेरी जान ले लूंगा!” मार खाने से मेरा सिर बुरी तरह घूम रहा था। जिन कुछ देर तक मुझे मारता रहा, जब उसकी साँसें फूल गईं, तो उसने खौफनाक ढंग से कहा : “तुम्हें लगता है, बताओगे नहीं तो तुम बच जाओगे? तुम्हें जेल की हवा तो खानी ही पड़ेगी! हमारे पास तुमसे निबटने के और भी तरीके हैं।” बात करते हुए उसने जबरन मेरी कोट, कॉटन के जूते और मोजे उतार दिए। उसने मेरी पैंट को मोड़ दिया जिससे पिंडलियां दिखने लगीं, फिर वो मुझे खींचकर पूछताछ वाले कमरे के बाहर खड़े एक बड़े ट्रक के पास ले गया, मेरे हाथों में हथकड़ियां डालकर उसे ट्रक के दरवाजे के हैंडल से बाँध दिया। दरवाजा बहुत ऊंचा था, हैंडल से हथकड़ी बंधी होने के कारण मेरे हाथ सिर के ऊपर थे। जमीन पर करीब एक फुट बर्फ जमी थी। जहां मैं खड़ा था उसके आसपास जिन ने करीब 10 वर्गफुट की बर्फ साफ करवाई, जिसके बाद बालुई जमीन पर बर्फ की पतली परत दिखने लगी। उसने मुझे नंगे पैर उस बर्फ पर खड़ा कर दिया और डरावने अंदाज में बोला : “अब अगर नहीं बोले, तो ठंड में जमाकर अधमरा कर दूंगा। बाकी की जिंदगी अपंग होकर गुजारनी पड़ेगी!” फिर वो अंदर चला गया।

सर्दी हद से ज्यादा थी। बाहर का तापमान −20 डिग्री सेल्सियस था। हथकड़ी लगते ही मेरी हड्डियों में सिहरन दौड़ गई थी, जहां मैं खड़ा था, उस जगह हवा बहुत तेज चल रही थी। धीरे-धीरे मेरा शरीर सुन्न पड़ने लगा। मैं मन-ही-मन परमेश्वर से प्रार्थना करता रहा : “परमेश्वर, मैं खुद को पूरी तरह तुम्हारे हाथों में सौंप रहा हूँ। मुझे आस्था और शक्ति दो, इस पीड़ा को सहने का हौसला दो।” प्रार्थना के बाद, मैंने मन-ही-मन में परमेश्वर के वचनों का एक भजन गाया “सत्य के लिए तुम्हें सब कुछ त्याग देना चाहिए” :

1  तुम्हें सत्य के लिए कष्ट उठाने होंगे, तुम्हें सत्य के लिए समर्पित होना होगा, तुम्हें सत्य के लिए अपमान सहना होगा, और अधिक सत्य प्राप्त करने के लिए तुम्हें अधिक कष्ट उठाने होंगे। यही तुम्हें करना चाहिए। ...

2  तुम्हें उस सबका अनुसरण करना चाहिए जो खूबसूरत और अच्छा है, और तुम्हें अपने जीवन में एक ऐसे मार्ग का अनुसरण करना चाहिए जो ज्यादा अर्थपूर्ण है। यदि तुम एक गंवारू जीवन जीते हो और किसी भी उद्देश्य को पाने की कोशिश नहीं करते हो तो क्या तुम अपने जीवन को बर्बाद नहीं कर रहे हो? ऐसे जीवन से तुम क्या हासिल कर पाओगे? तुम्हें एक सत्य के लिए देह के सभी सुखों को छोड़ देना चाहिए, और थोड़े-से सुख के लिए सारे सत्यों का त्याग नहीं कर देना चाहिए। ऐसे लोगों में कोई सत्यनिष्ठा या गरिमा नहीं होती; उनके अस्तित्व का कोई अर्थ नहीं होता!

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पतरस के अनुभव : ताड़ना और न्याय का उसका ज्ञान

इससे मेरा हौसला बढ़ा। मैं शैतान के आगे नहीं झुक सकता था। अगर उस दिन मुझे जमाकर मार भी डाला जाता, तो भी मैं परमेश्वर के लिए अपनी गवाही में डटा रहूँगा! करीब आधे घंटे बाद, नजरबंदी गृह का एक गार्ड मेरे पास से गुजरा और उसने मुझे ट्रक के दरवाजे से हथकड़ी लगे हुए देखा। फिर पूछताछ वाले कमरे में जाते हुए जोर से चिल्लाकर बोला : “तुम इस तरह लोगों से पूछताछ नहीं कर सकते। हम किसी को इस तरह जमाकर अधमरा नहीं कर सकते!” गार्ड के अंदर जाने के कुछ ही देर बाद, जिन और दूसरे लोग बाहर आए और मुझे खींचकर अंदर ले गए। तब तक, मेरे हाथ-पैर पहले ही सुन्न पड़ गए थे, ठंड से मुँह ठिठुर गया था और दिल जोरों से धड़क रहा था। शरीर में धीरे-धीरे गर्मी आने से पहले मैं करीब एक घंटा जमीन पर बैठा रहा। ल्यू ने मेरी पीड़ा देखकर घूरते हुए कहा : “तुम तो चोरों से भी बदतर हो, उनके पास कम से कम कुछ हुनर तो होता है। तुम लोग सिर्फ परमेश्वर में विश्वास करने के लिए इतनी अधिक पीड़ा झेलते हो, असल में इसके कोई मायने नहीं हैं। तुम्हारे न बोलने पर भी तुम्हें सजा मिलेगी।” यह सुनकर मेरा गुस्सा भड़क गया। ये पुलिस अधिकारी अपने हिसाब से सत्य को तोड़-मरोड़ देते हैं। उन्हें लगता है कि चोरी का अपराध कोई हुनर है, जबकि सही मार्ग पर चलने वाले हम विश्वासियों के साथ अपराधियों जैसा बर्ताव करते हैं, मानो हम उनके दुश्मन हों, जिन्हें इतनी क्रूरता से यातना दी जाती है! उनके घिनौने चेहरों को देखकर, मैंने उन्हें दिल की गहराइयों से धिक्कारा। आखिर में, जब उन्होंने देखा कि मैं कुछ नहीं बताने वाला, तो वापस कालकोठरी में भेज दिया।

उस रात, मेरे पैरों में खुजलाहट और दर्द होता रहा, और उन पर जगह-जगह छाले पड़ने लगे। अगली सुबह उन छालों से खून रिसने लगा, मानो मुझे गरम पानी से जला दिया गया हो। एक के बाद दूसरा छाला निकल आता; बड़े छाले अंडे के पीले हिस्से जैसे, तो छोटे छाले उँगलियों के पोर जैसे थे। मैं बिल्कुल चल-फिर नहीं पाता था; छालों को खरोंच डालने की इच्छा होती, पर हिम्मत नहीं थी। खून के छाले फूटकर, मेरे मोजों से चिपक जाते थे। मेरी पिंडलियां पूरी तरह सुन्न थीं और उनमें खुजलाहट हो रही थी। मुझे थोड़ा बुखार था और चेहरा लाल हो गया था। तीसरे दिन तक, मेरे पैरों में संक्रमण हो गया और वे इतना सूज गए कि सबसे बड़ी चप्पल भी मेरे पैरों में नहीं आ रही थी। मेरी पिंडलियां सूजकर अपने आकार की दोगुनी हो चुकी थीं, मेरे टखने काले और बैंगनी दिखने लगे थे। मेरी इस हालत का जिम्मेदार ठहराए जाने के डर से, सुरक्षाकर्मियों ने मुझे अस्पताल भेज दिया। डॉक्टर ने कहा कि मेरे दाएं टखने में संक्रमण हो गया था और उससे मवाद निकल रहा था, और इसके लिए ऑपरेशन कराने की जरूरत थी। ऑपरेशन रूम में, मैंने डॉक्टर को दूसरे स्टाफ से यह कहते सुना : “दो दिन पहले हमारे पास ऐसा ही एक और कैदी आया था। उसके पैर में भी ऐसा ही संक्रमण था, वो ओस्टियोमाइलिटिस की वजह से मर गया।” डॉक्टर को ऐसा कहते सुनकर मुझे डर लगा। मेरे पैरों में संक्रमण था और मैं चल-फिर भी नहीं पा रहा था। तो क्या मुझे भी ओस्टियोमाइलिटिस हो जाएगा? अगर ऐसा हुआ, तो मैं या तो मर जाऊंगा या अपंग हो जाऊंगा। फिर मैं क्या करूंगा? मैं अभी जवान हूँ और मेरा परिवार मुझ पर ही आश्रित है। मैंने जितना सोचा उतनी ही पीड़ा हुई; फिर मैंने परमेश्वर के वचनों का “पूर्ण कैसे किए जाएँ” नामक एक भजन याद किया : “जब तुम कष्टों का सामना करते हो, तो तुम्हें देह की चिंता छोड़ने और परमेश्वर के विरुद्ध शिकायतें न करने में समर्थ होना चाहिए। जब परमेश्वर तुमसे अपने आप को छिपाता है, तो उसका अनुसरण करने के लिए तुम्हें अपने पिछले प्रेम को डिगने या मिटने न देते हुए उसे बनाए रखने के लिए विश्वास रखने में समर्थ होना चाहिए। परमेश्वर चाहे कुछ भी करे, तुम्हें उसकी योजना के प्रति समर्पण करना चाहिए, और उसके विरुद्ध शिकायतें करने के बजाय अपनी देह को धिक्कारने के लिए तैयार रहना चाहिए। जब परीक्षणों से तुम्हारा सामना हो, तो तुम्हें परमेश्वर को संतुष्ट करना चाहिए, भले ही तुम फूट-फूटकर रोओ या अपनी किसी प्यारी चीज से अलग होने के लिए अनिच्छुक महसूस करो। केवल यही सच्चा प्यार और विश्वास है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जिन्हें पूर्ण बनाया जाना है उन्हें शोधन से गुजरना होगा)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे आस्था और शक्ति दी। परमेश्वर चाहता था कि तकलीफों का सामना करते हुए, मैं आस्था रखूँ और दृढ़ता दिखाऊं, ताकि अपनी गवाही में मजबूती से डटा रह सकूं। पिछली कई बार की यातनाओं के बारे में सोचने पर लगा कि मुझमें काफी आस्था थी। जब मैंने देखा कि ठंड के कारण मैं बुरी तरह घायल हो गया हूँ, तो मुझे अपने जीवन और भविष्य की चिंता सताने लगी। मुझे मरने और पैरों के अपंग हो जाने का डर लगा। मेरा आध्यात्मिक कद वाकई छोटा था। मैंने परमेश्वर के प्रति सच्ची आस्था या समर्पण बिल्कुल नहीं दिखाया था। इन बातों के बारे में सोचकर, मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की : “हे परमेश्वर! अब मैं अपने बारे में और नहीं सोचना चाहता। मैं तुम्हारे आयोजनों और व्यवस्थाओं के अनुसार चलूँगा और अगर मैं मर भी गया, तो डटकर खड़ा रहूँगा और तुम्हें संतुष्ट करूंगा।” अस्पताल में भी पुलिस मुझे हर समय बिस्तर पर हथकड़ी लगाए रखती थी। केवल बाथरूम जाते और खाना खाते समय हथकड़ी खोली जाती। एक दिन जब मैं बाथरूम गया, तो दो महिला रोगी पास से गुजरीं, उन्होंने पूछा कि मैंने कौन सा अपराध किया है। जिन ने जवाब दिया, “वो बलात्कारी है!” महिलाओं ने तिरस्कार भरी नजरों से मुझे देखा। मैं गुस्से से उबल पड़ा। पुलिस हमेशा तथ्य को तोड़-मरोड़कर पेश करती है और झूठ फैलाती है!

कुछ हफ़्तों के बाद मेरे पैरों की सूजन कम हो गई, पर मैं अभी भी लंगड़ाकर चलता था। सुरक्षाकर्मी मुझे वापस नजरबंदी गृह में ले आये। एक दिन, तीन नए पुलिस अधिकारी मुझसे पूछताछ करने आए। मुझे आइवी लगे देखकर उन्होंने क्रूरता से कहा : “निकालो उसे! तुम लोग उस पर इतनी दया दिखा रहे हो, उसे आइवी लेने दे रहे हो। बेहतर होता उसे उसके हाल पर छोड़ देते!” गुस्से से भरकर, मैंने मन-ही-मन सोचा : “ये राक्षस मुझे ठंड में जमाकर अधमरा कर चुके थे, फिर भी कह रहे हैं कि दया दिखा रहे हो। ये वाकई बेहद क्रूर और बेरहम हैं!”

पूछताछ वाले कमरे में, एक अधिकारी ने कहा : “तुम्हारा मामला अब हमारी क्रिमिनल पुलिस ब्रिगेड के हाथों में है। राजनीतिक सुरक्षा प्रभाग शायद तुमसे ठीक से निबट नहीं पाया, पर हमारे पास हमारे अपने तरीके होते हैं!” उन दोनों के दुष्ट, खौफनाक चेहरे देखकर मुझे घबराहट हुई और पसीने छूटने लगे। मैंने सुना था कि क्रिमिनल पुलिस ब्रिगेड बड़े मामलों का प्रभार लेती थी। यातना देने के उनके तरीके बेहद क्रूर और बेरहम होते थे। मुझे नहीं पता वे मुझे कैसी यातना देंगे। क्या मैं उसे बर्दाश्त कर पाऊंगा? मैंने फौरन परमेश्वर से प्रार्थना कर मुझे इस पीड़ा का सामना करने की आस्था और दृढ़ता देने की विनती की। फिर अधिकारी ने कहा : “हम सख्त से सख्त लोगों को भी यहां अपना अपराध कबूलने को मजबूर कर देते हैं। क्रिमिनल पुलिस ब्रिगेड को लोगों को सजा दिलाने में महारत हासिल है। हमें सर्वशक्तिमान परमेश्वर के तुम जैसे विश्वासियों के जीने या मरने की कोई परवाह नहीं, तो जल्दी करो और सब सच-सच बता दो!” मैंने कहा : “मेरे पास कहने को कुछ नहीं है।” गुस्से में उसने मेरे चेहरे पर एक हाथ से एक तरफ, तो दूसरे हाथ से दूसरी तरफ जोर का तमाचा रसीद दिया। मुझे चक्कर आ गया। बस यही महसूस हुआ कि मेरे चेहरे पर भयंकर दर्द हो रहा था और मुँह के कोनों से खून टपक रहा था; मेरा मुँह और चेहरा सूज गया था। वे लोग कितने हट्ठे-कट्ठे थे और कितने क्रूर हो सकते थे, यह देखकर मुझे काफी चिंता होने लगी : “अगर ऐसे ही चलता रहा, तो क्या वे मुझे पीट-पीटकर अपंग बना देंगे या मार डालेंगे? अगर मैं ऐसी यातना सहन नहीं कर पाया और भाई-बहनों को धोखा दे दिया, तो मैं यहूदा बन जाऊंगा।” मैंने फौरन परमेश्वर के सामने प्रार्थना की। प्रार्थना के बाद, मैंने परमेश्वर के वचनों के इस अंश पर विचार किया : “विश्वास एक ही लट्ठे से बने पुल की तरह है : जो लोग घृणास्पद ढंग से जीवन से चिपके रहते हैं उन्हें इसे पार करने में परेशानी होगी, परन्तु जो आत्म बलिदान करने को तैयार रहते हैं, वे बिना किसी फ़िक्र के, मज़बूती से कदम रखते हुए उसे पार कर सकते हैं(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 6)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे आस्था दी और मैंने संकल्प लिया : “आज वे लोग मुझे चाहे कितनी भी बुरी तरह पीटें, मैं यहूदा नहीं बनूंगा!” उन्होंने कई बार और मेरे चेहरे पर तमाचे जड़े और लात-घूंसे बरसाए। फिर पिछली बार की तरह ही रस्सी से बांध दिया। मगर इस बार यह अनुभव और बुरा था। उन्होंने मेरे हाथों को खींचकर मेरी पीठ के पीछे कर दिया और रस्सी पर जोर का झटका दिया। मुझे लगा जैसे मेरे हाथ टूट गए, और बुरी तरह दर्द हुआ। आधे घंटे बाद, मेरे हाथों पर काले और बैंगनी रंग के जख्म बन गए थे और जब उन्हें मेरी हालत खराब होती दिखी, तब जाकर मेरे बंधन खोले। फिर आधे घंटे बाद, जब उन्होंने देखा कि मेरी कलाइयां थोड़ी ठीक हुई हैं, उन्होंने मुझे दोबारा रस्सी से बाँध दिया। इस बार वे एक डंडे वाला झाडू लाए। इसके डंडे को मेरी गर्दन के पीछे की रस्सी पर फंसा कर दो बार घुमा दिया, जिससे मेरे हाथों और कंधों पर रस्सी की पकड़ और ज्यादा सख्त हो गई। एक अधिकारी मेरे पीछे कुर्सी पर झाडू के डंडे को पकड़े बैठा था और उसे जोर से नीचे की ओर दबा रहा था। मेरे हाथों में असहनीय पीड़ा हो रही थी; लगा जैसे मेरे हाथ टूट ही जाएंगे। झाडू के डंडे को नीचे की ओर दबाते हुए वो मुझसे पूछता रहा : “तुम कितने लोग हो? तुम्हारा अगुआ कौन है?” जब उन्होंने देखा कि मैं कोई जवाब नहीं दे रहा, तो वे बीयर की तीन बोतलें लेकर आए और उन्हें मेरे हाथों के नीचे डाल दिया। मुझे लगा जैसे मेरे हाथ नीचे उतरते जा रहे हैं; दर्द इतना तेज था कि मैं लगभग बेहोश होने लगा। मैं परमेश्वर से प्रार्थना करता रहा और उससे मुझे हिम्मत देने की गुहार लगाता रहा। फिर दो अधिकारी चलकर मेरे दोनों तरफ आए, मेरी शर्ट उठाई और पानी की बोतल के मुंह से मेरी पसलियों को जोर-जोर से खुरचने लगे। मैं दर्द के मारे बुरी तरह चीख पड़ा। एक अधिकारी मुझ पर चिल्लाया : “तुम्हें पीड़ा हो रही है, तो अपने परमेश्वर से क्यों नहीं कहते कि वो आकर तुम्हें बचा ले, हुंह? इतनी ही अधिक पीड़ा हो रही है, तो हमें सच बता दो!” वे लगातार मेरी पसलियों पर जोर-जोर से रगड़ते रहे, जब तक चमड़ी छिल नहीं गई। दर्द बर्दाश्त के बाहर था। फिर उन्होंने मेरे सिर को जोर से नीचे दबाया और गुस्से में कहा : “ये तरीका काम नहीं आ रहा, तो इसे ऐसी जगह ले चलो जहां आसपास कोई न हो, वहीं इसे पीट-पीट कर मार डालेंगे। इन परमेश्वर के विश्वासियों से तो वे चोर ही अच्छे। अगर कुछ पैसे मिलें तो पीड़ा सहना भी ठीक है।” फिर, एक अधिकारी ने कहा : “चलो बताओ, इतनी पीड़ा सहने का कोई मतलब नहीं। अगर तुम सब बता दोगे, तो इससे छुटकारा मिल जाएगा।” मुझे लगा जैसे मेरा शरीर अब और बर्दाश्त नहीं कर सकता; मैंने सोचा : “क्यों न मैं उन्हें कुछ ऐसी बातें बता दूं जो ज्यादा काम की न हों? शायद मुझे थोड़ी कम तकलीफ झेलनी पड़े।” मगर तभी मुझे एहसास हुआ कि अगर मैंने कुछ कहा, तो यहूदा बन जाउंगा और परमेश्वर से विश्वासघात करूंगा। मैं कुछ भी नहीं कह सकता। मैं परमेश्वर से प्रार्थना करता रहा : “हे परमेश्वर! मैं सचमुच अब और बर्दाश्त नहीं कर सकता। मुझे शक्ति दो, मेरी रक्षा करो, ताकि मैं अपनी गवाही में डटकर खड़ा रह सकूं।” प्रार्थना के बाद, मैंने परमेश्वर के इन वचनों को याद किया : “इन अंत के दिनों में तुम लोगों को परमेश्वर की गवाही देनी चाहिए। चाहे तुम्हारे कष्ट कितने भी बड़े क्यों न हों, तुम्हें बिलकुल अंत तक चलना चाहिए, यहाँ तक कि अपनी अंतिम साँस पर भी तुम्हें परमेश्वर के प्रति निष्ठावान और उसके आयोजनों के प्रति समर्पित होना चाहिए; केवल यही वास्तव में परमेश्वर से प्रेम करना है, और केवल यही सशक्त और जोरदार गवाही है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पीड़ादायक परीक्षणों के अनुभव से ही तुम परमेश्वर की मनोहरता को जान सकते हो)। परमेश्वर के वचनों से मेरी हिम्मत वापस आ गई। मैं अपने लिए उसके निरंतर मार्गदर्शन को महसूस कर सकता था। चाहे मुझे कितनी भी पीड़ा झेलनी पड़े, मैं परमेश्वर पर भरोसा करूंगा और इस मुसीबत से निकल जाऊंगा। मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की : “परमेश्वर, तुम्हें पता है कि मैं कितना बर्दाश्त कर सकता हूँ। वे मुझे कितनी भी यातना दें, मैं तुम्हें धोखा नहीं दूंगा। अगर मैं सचमुच पीड़ा को बर्दाश्त न कर पाया, तो यहूदा बनने के बजाय मर जाना पसंद करूंगा।”

यातना के दूसरे दौर के बाद, मैं जमीन पर ढेर हो गया। मैं खुद को संभाल भी नहीं पाया था कि एक अधिकारी ने कॉलर पकड़कर मुझे उठाया और दीवार से लगा दिया। उसने मेरी गर्दन को कसकर दबोच लिया और क्रूरता से बोला : “आज मैं तेरा दम घोंट डालूँगा!” मैं सांस भी नहीं ले पा रहा था, फिर भी मैंने पूरी ताकत लगाकर उसे अपने से दूर किया। वो कई कदम पीछे चला गया और हैरानी से देखता रहा। मुझे भी लगा कि ये कैसे हुआ। एक महीने की यातना के बाद, मैं काफी कमजोर हो चुका था। उस दिन मैं पहले ही यातना के दौर से गुजर चुका था और मेरे शरीर में बिल्कुल ताकत नहीं बची थी। मैंने कल्पना भी नहीं की थी कि मैं उसे पीछे धकेल पाऊंगा। मैं जानता था कि परमेश्वर मेरी मदद कर रहा है और मुझे ताकत दे रहा है। वे लोग दोपहर करीब एक बजे तक मुझे यातना देते रहे। एक अधिकारी ने गुस्से में कहा : “तुम बड़े अड़ियल हो। हम कल भी यह सिलसिला जारी रखेंगे; देखते हैं तुम कब तक ठहर पाते हो। जब तक बताओगे नहीं, हम हर दिन तुम्हारे साथ यही करते रहेंगे!” रात को मैं अपनी चारपाई पर सोया था, पूरा शरीर जख्मी था। मेरी पसलियों के आसपास की चमड़ी कट गई थी और इतना दर्द हो रहा था कि साँस लेने में भी दिक्कत हो रही थी। मेरे हाथों में भी काफी दर्द था, मैं अपनी शर्ट भी नहीं उतार पाता था। मैंने अपना कॉलर ऊपर उठाया, तो देखा कि मेरे कंधों के ठीक हो चुके घाव फिर उभर आए थे। मेरी कलाइयों पर रस्सी की रगड़ की वजह से खून के निशान बन गए थे। वे राक्षस कुछ भी कर सकते थे, क्रूरता की किसी भी हद तक जा सकते थे, ताकि मैं परमेश्वर को धोखा दूं और अपने भाई-बहनों से विश्वासघात करूं। वे मुझे मार डालना चाहते थे। वे सत्य और परमेश्वर से नफरत करने वाले राक्षसों का गिरोह थे! मुझे याद आया, कैसे उस अधिकारी ने कहा था कि अगले दिन वे मेरे साथ पूछताछ जारी रखेंगे, मेरे मन में थोड़ा भय और कायरता का भाव आया : “क्या कल की यातना और भी बदतर होगी? क्या वे मुझे यातना देकर मार डालेंगे? ये दुष्ट पुलिसवाले तब तक नहीं रुकेंगे जब तक मैं कलीसिया के बारे में उन्हें कुछ बता नहीं देता। लेकिन अगर मैंने बता दिया, तो परमेश्वर से विश्वासघात करने वाला यहूदा बन जाऊंगा; और अगर नहीं बताया, तो बहुत मुमकिन है कि मुझे यातना देकर मार डाला जाएगा।” मैंने बार-बार परमेश्वर से प्रार्थना की : “हे परमेश्वर, मेरा आध्यात्मिक कद बहुत छोटा है, मैं खुद इस यातना से छुटकारा नहीं पा सकता, मगर मैं यहूदा नहीं बनना चाहता, तुम्हें धोखा नहीं देना चाहता। कृपा करके मेरी मदद करो, मुझे राह दिखाओ।” प्रार्थना के बाद, मैंने परमेश्वर के इन वचनों को याद किया : “मैं उन लोगों पर अब और दया नहीं करूँगा, जिन्होंने गहरी पीड़ा के समय में मेरे प्रति रत्ती भर भी निष्ठा नहीं दिखाई, क्योंकि मेरी दया का विस्तार केवल इतनी दूर तक ही है। इसके अतिरिक्त, मुझे ऐसा कोई इंसान पसंद नहीं, जिसने कभी मेरे साथ विश्वासघात किया हो, और ऐसे लोगों के साथ जुड़ना तो मुझे बिलकुल भी पसंद नहीं, जो अपने मित्रों के हितों को बेच देते हैं। चाहे जो भी व्यक्ति हो, मेरा यही स्वभाव है। मुझे तुम लोगों को बता देना चाहिए : जो कोई मेरा दिल तोड़ता है, उसे दूसरी बार मुझसे क्षमा प्राप्त नहीं होगी, और जो कोई मेरे प्रति निष्ठावान रहा है, वह सदैव मेरे हृदय में बना रहेगा(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, अपनी मंजिल के लिए पर्याप्त अच्छे कर्म तैयार करो)। मैंने इन वचनों को बार-बार याद किया। मैं जानता था कि परमेश्वर का स्वभाव धार्मिक है और वह कोई अपराध नहीं सहता है। अगर मैंने पीड़ा से बचने के लिए परमेश्वर को धोखा दिया और अपने भाई-बहनों से विश्वासघात किया, तो मैं परमेश्वर के स्वभाव का अपमान करूंगा और आखिर में दंड का भागी बनूंगा। मैंने इस पूरे अनुभव के बारे में सोचा। अगर मुझे परमेश्वर के वचनों का मार्गदर्शन नहीं मिलता, तो मैं पुलिस की क्रूर यातना से बच नहीं सकता था। मैं अब भी जीवित हूँ, तो यह परमेश्वर की सुरक्षा ही है। मेरी जिंदगी और मौत परमेश्वर के हाथों में है। परमेश्वर की अनुमति के बिना, शैतान मेरी जिंदगी नहीं छीन सकता। इस बात को ध्यान में रखकर, मैंने परमेश्वर की गवाही में मजबूत रहने के लिए अपना सब कुछ न्योछावर करने का संकल्प कर लिया। जैसे ही मेरे अंदर पूछताछ के अगले दौर का सामना करने का विश्वास आया, तो मुझे बड़ी हैरानी हुई, वे लोग वापस आए ही नहीं। करीब एक महीने बाद, ल्यू ने मुझे सूचना दी : “तुम्हारा केस बंद कर दिया गया है। तुम्हें एक साल की सजा दी गई है। तुम्हारे परिवार ने जमानत की व्यवस्था की है, केस की सुनवाई अभी बाकी है। घर पहुँचने के बाद, तुम्हें एक साल तक कहीं नहीं जाना है। जब भी बुलाया जाएगा, तुम्हें फ़ौरन यहाँ हाजिर होना पड़ेगा।”

रिहा होने के बाद, पुलिस की निगरानी से बचने के लिए, मुझे घर छोड़ना पड़ा और मैं दूसरी जगहों में जाकर अपना कर्तव्य निभाने लगा। सीसीपी द्वारा उस गिरफ्तारी और उत्पीड़न से मुझे परमेश्वर से नफरत और उसका विरोध करने वाले उसके राक्षसी सार को साफ तौर पर समझने में मदद मिली। मुझे इससे दिल की गहराइयों से नफरत हो गई थी। मैंने अपने लिए परमेश्वर के प्रेम और उद्धार को भी महसूस किया। जब मैं यातना की पीड़ा को बर्दाश्त करने में तकरीबन असमर्थ हो गया था, परमेश्वर हमेशा मेरे साथ रहा था, मुझे देख रहा था, मेरी रक्षा कर रहा था और वह अपने वचनों से मुझे राह दिखाता रहा था, उसने मुझे आस्था और शक्ति दी, ताकि मैं उन राक्षसों की क्रूरता पर जीत हासिल कर सकूं और परमेश्वर को अपना जीवन सौंपने और उसके लिए अपनी गवाही में मजबूत रहने का संकल्प ले सकूं। परमेश्वर का धन्यवाद!

पिछला: 81. बिना पछतावे का चुनाव

अगला: 83. मनमाने ढंग से काम करने के नतीजे

परमेश्वर का आशीष आपके पास आएगा! हमसे संपर्क करने के लिए बटन पर क्लिक करके, आपको प्रभु की वापसी का शुभ समाचार मिलेगा, और 2024 में उनका स्वागत करने का अवसर मिलेगा।

संबंधित सामग्री

18. परमेश्वर का वचन जालों से निकलने में मेरी अगुवाई करता है

टिआँ'ना, हांगकांगपरमेश्वर के वचनों के लेख "क्या तुम जानते हो? परमेश्वर ने मनुष्यों के बीच एक बहुत बड़ा काम किया है" के पन्ने पलटते हुए, मुझे...

34. ईसाई आध्यात्मिक जागृति

लिंग वू, जापानमैं अस्सी के दशक का हूँ, और मैं एक साधारण से किसान परिवार में जन्मा था। मेरा बड़ा भाई बचपन से ही हमेशा अस्वस्थ और बीमार रहता...

परमेश्वर का प्रकटन और कार्य परमेश्वर को जानने के बारे में अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन मसीह-विरोधियों को उजागर करना अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ सत्य के अनुसरण के बारे में I सत्य के अनुसरण के बारे में न्याय परमेश्वर के घर से शुरू होता है अंत के दिनों के मसीह, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अत्यावश्यक वचन परमेश्वर के दैनिक वचन सत्य वास्तविकताएं जिनमें परमेश्वर के विश्वासियों को जरूर प्रवेश करना चाहिए मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ राज्य का सुसमाचार फ़ैलाने के लिए दिशानिर्देश परमेश्वर की भेड़ें परमेश्वर की आवाज को सुनती हैं परमेश्वर की आवाज़ सुनो परमेश्वर के प्रकटन को देखो राज्य के सुसमाचार पर अत्यावश्यक प्रश्न और उत्तर मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 1) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 2) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 3) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 4) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 5) मैं वापस सर्वशक्तिमान परमेश्वर के पास कैसे गया

सेटिंग

  • इबारत
  • कथ्य

ठोस रंग

कथ्य

फ़ॉन्ट

फ़ॉन्ट आकार

लाइन स्पेस

लाइन स्पेस

पृष्ठ की चौड़ाई

विषय-वस्तु

खोज

  • यह पाठ चुनें
  • यह किताब चुनें

WhatsApp पर हमसे संपर्क करें