22. "शेर की माँद" से भाग निकलना

जायोयू, चीन

मेरा नाम जायोयू है और मैं 26 साल की हूँ। मैं एक कैथोलिक हुआ करती थी। जब मैं छोटी थी, तो अपनी माँ के साथ ख्रीस्तयाग में भाग लेने के लिए कलीसिया जाती थी, बाइबल पढ़ती थी, कन्फेशन में जाती और कम्युनियन पाती थी। मेरी माँ बहुत उत्साही विश्वासी थी। वह अक्सर हमारे घर से कलीसिया में भोजन और अन्य कई चीज़ें दान किया करती थी, और वह धन का भी दान करती थी। कलीसिया के नेताओं और ननों को मेरी माँ विशेष रूप से पसंद थी। जब वे उसे देखते, तो मुस्कुराते हुए उसका अभिवादन करते और उसकी बड़ी परवाह करते थे, और वे अक्सर मेरी माँ को फोन कर उसे कलीसिया की सभी प्रकार की गतिविधियों में भाग लेने और विभिन्न कार्यों में मदद करने के लिए कहा करते थे। मैंने उन कक्षाओं में भी सक्रिय रूप से भाग लिया, जिनमें ननें पढ़ाती थीं, और कलीसिया के मेरे मित्र और मैं एक-साथ बाइबल पढ़ा करते थे। उस समय मैं प्रभु के अपने पास होने के आनंद और शांति को महसूस कर सकती थी, और मैं हर दिन खुश रहती थी। हालाँकि, जैसे-जैसे समय बीतता गया, कलीसिया के मेरे दोस्तों का विश्वास निरंतर ठंडा होता गया। मेरा उत्साह भी कमज़ोर पड़ गया और मैं प्रभु की शिक्षाओं का पालन करने में असमर्थ हो गई। मैं अक्सर पाप किया करती और फिर उन्हें कबूल कर लेती। शादी के बाद मैं अपने पति के साथ नौकरी करने देश के दूसरे भाग में चली गई।

पलक झपकते ही 2013 का बड़ा दिन आ गया, और मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया की एक बहन से मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। उसने मुझे बताया कि प्रभु यीशु पहले ही लौट चुका है और वह अपने कार्य के एक नए चरण को पूरा कर रहा है। जब मैंने यह सुना, तो मुझे आश्चर्य हुआ और मैंने उत्साहपूर्वक कहा, "सच में? प्रभु लौट आया है! प्रभु कब लौटा? इस समय प्रभु कहाँ है? बहन, मुझे अभी बताओ।" बहन ने मुझे सहभागिता प्रदान करते हुए कहा, "सर्वशक्तिमान परमेश्वर लौटा हुआ प्रभु यीशु है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने लाखों वचन व्यक्त किए हैं और वह अंत के दिनों का अपना न्याय का कार्य कर रहा है। उसने वे सभी सत्य उजागर किए हैं, जो मानवजाति को शुद्ध कर सकते और बचा सकते हैं, जिनमें मानवजाति को बचाने के लिए परमेश्वर द्वारा किये गए कार्य के तीन चरण, देहधारण का रहस्य, बाइबल का रहस्य, परमेश्वर के नामों का महत्व और मानवजाति का अंत और गंतव्य आदि सच्चाइयाँ शामिल हैं। यह प्रभु यीशु के कहे हुए इन वचनों को पूरा करता है: 'मुझे तुम से और भी बहुत सी बातें कहनी हैं, परन्तु अभी तुम उन्हें सह नहीं सकते। परन्तु जब वह अर्थात् सत्य का आत्मा आएगा, तो तुम्हें सब सत्य का मार्ग बताएगा, क्योंकि वह अपनी ओर से न कहेगा परन्तु जो कुछ सुनेगा वही कहेगा, और आनेवाली बातें तुम्हें बताएगा'" (यूहन्ना 16:12-13)। मैंने बहन की सहभागिता को ध्यान से सुना और सोचा: "मुझे कभी भी प्रभु की वापसी का स्वागत कर पाने की उम्मीद नहीं थी। यह तो विलक्षण है।" बाद में बहन ने मुझे परमेश्वर के कार्य के तीन चरणों की गवाही दी और परमेश्वर के नामों के महत्व के बारे में बताया। यह सोचकर कि मुझे समझ में नहीं आएगा, बहन ने मुझे उपमाएँ और उदाहरण देकर समझाया। उसने सतर्कतापूर्वक विवरण देते हुए स्पष्ट और पारदर्शी तरीके से सहभागिता की। उसकी सहभागिता के माध्यम से मुझे कई सत्य समझ में आए, जिन्हें मैं पहले नहीं समझ पाई थी। मैंने यह भी जाना कि प्रभु मनुष्य का न्याय करने, उसकी ताड़ना करने, उसे निर्मल और परिपूर्ण बनाने का कार्य करने के लिए लौटा था। मुझे लगा कि यह बहुत संभव है कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर वास्तव में लौटा हुआ प्रभु यीशु हो, और मैंने बहन से कहा कि मैं अंत के दिनों में परमेश्वर के कार्य की जांच करना चाहती हूँ। बाद में मैंने भाइयों और बहनों के साथ सभाओं में भाग लिया, और हमने एक-साथ परमेश्वर के वचन को पढ़ा, भजन गाए और परमेश्वर की स्तुति में नृत्य किया। परमेश्वर के वचनों को पढ़ते हुए जब भी कोई बात मेरी समझ में न आती, भाई-बहन हमेशा उसके बारे में मेरे साथ सहभागिता करने का कष्ट उठाते। उनकी सहभागिता में पवित्र आत्मा का प्रबोधन और प्रकाश था, और उनके साथ सभाओं में भाग लेने से मुझे पवित्र आत्मा के कार्य का आनंद पुन: मिल जाता था। मुझे बेहद खुशी महसूस हुई। सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के इस बड़े परिवार में ऊँच-नीच या अमीर-गरीब का कोई भेद न था। सभी भाई-बहन एक-दूसरे के साथ खुले हुए थे और हमेशा अपने मन की बात कह देते थे। जब एक खुशहाल जीवन जीने की बात आई, तो मुझे लगा कि यही असली जीवन है! एक महीने से अधिक की जांच के बाद मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कई वचनों को पढ़ा और मुझे यह निश्चित हो गया कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर लौटा हुआ प्रभु यीशु है। मैंने बहुत धन्य महसूस किया, और साथ ही मैं अपनी माँ और कलीसिया के अपने दोस्तों को भी यह खुशखबरी सुनाना चाहती थी।

चीनी वसंत महोत्सव के दौरान मेरे पति और मैं अपने शहर लौट आए। हमारे आने के बाद मैंने तुरंत अपनी माँ को अंत के दिनों के सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य की गवाही दी, लेकिन मैंने जो कुछ भी कहा, उसने उसे स्वीकार करने से इनकार कर दिया। मैं कुछ निराश हुई और मैंने बहुत हतप्रभ महसूस किया। "नि:संदेह सर्वशक्तिमान परमेश्वर लौटा हुआ प्रभु यीशु है," मैंने सोचा। "वह कैसे इसे स्वीकार नहीं कर सकती?" यह देखकर कि मेरी माँ इसे स्वीकार नहीं करेगी, मेरे पास इस विषय को छोड़ देने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। जब हमारी अपने शहर की यात्रा समाप्त हो गई, तो मैं वापस वहाँ लौट आई जहाँ मैं काम करती थी। मैंने अपने भाइयों और बहनों के साथ सभाओं में भाग लिया और कलीसिया के प्रति अपने कर्तव्य निभाने का कार्य किया। उस दौरान मेरी आत्मा ख़ुशी से छलक रही थी और मेरा जीवन अतुलनीय प्रसन्नता और आनंद से भर गया था। मैंने परमेश्वर के वचनों में पढ़ा कि कैसे अय्यूब ने अपनी सारी संपत्ति और बेटे-बेटियों को परीक्षणों में खो दिया था, और कैसे उसका शरीर घावों से भर गया था और फिर भी वह परमेश्वर के नाम की प्रशंसा करने और परमेश्वर में सच्चा विश्वास करने में सक्षम था। और फिर अब्राहम था, जो अपने इकलौते बेटे इसहाक को पेश करने और उसे परमेश्वर को वापस करने में सक्षम था। जब मैंने इन चीज़ों के बारे में विशेष रूप से पढ़ा, तो परमेश्वर के प्रति उनके विश्वास और उनकी आज्ञाकारिता से मैं बहुत द्रवित हुई, और मैंने भी इसी तरह का इंसान बनना चाहा।

मैं परमेश्वर के प्रेम में डूबी हुई महसूस कर ही रही थी, कि मेरा जीवन अचानक एक दुःस्वप्न में बदल गया। अगस्त 2014 में एक दिन बिल्कुल अचानक मेरी माँ ने मुझे यह कहने के लिए फ़ोन किया कि मेरी बेटी गंभीर रूप से बीमार है। यह सुनकर मेरे दिल की धड़कन रूक-सी गई। "मेरी बेटी इतनी छोटी है," मैंने सोचा, "वह गंभीर रूप से बीमार कैसे हो सकती है?" मैं अपनी बेटी को लेकर बहुत चिंतित थी और मुझे बहुत दुःख हुआ। इसलिए मैंने परमेश्वर के सामने जाकर प्रार्थना की: "हे परमेश्वर, आपकी अनुमति से यह परिस्थिति मुझ पर आ पड़ी है। मेरी बेटी की बीमारी आपके हाथों में है। मैं अपनी बेटी आपको सौंप देना चाहती हूँ। कृपया मुझे सच्चा विश्वास दें।" मैंने उसके बाद कुछ अधिक सहज महसूस किया। मेरे पति और मैं जल्दी से अपने शहर में स्थित अपने घर लौट आए। जब हम वहाँ पहुँचे, तो मैं अपनी बेटी को उसके बिस्तर पर शांति से सोते हुए देखकर हैरान रह गई। मैंने उसे जगाना चाहा, लेकिन मेरी माँ ने अपना हाथ उठाकर मुझे रोका और सख्ती से कहा, "उसे मत जगाओ। वह ठीक है!" तभी मुझे पता चला कि मेरे घर पर कई रिश्तेदार इकट्ठे हुए हैं, और मुझे महसूस हुआ कि माँ ने मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर पर विश्वास करने से रोकने की कोशिश में मुझे घर बुलाने के लिए यह छल किया था। मैंने सोचा: "परमेश्वर ने आज मेरे लिए इस परिस्थिति की व्यवस्था की है। यह ज़रूर कुछ ऐसा है, जिसका मुझे अनुभव करना होगा।" मैंने तब अपनी माँ से पूछा, "माँ, मेरी बेटी तो ठीक है। तुमने हमें घर वापस बुलाने के लिए यह छल क्यों किया?" इससे पहले कि मैं अपनी बात पूरी कर पाती, मेरी माँ गुस्से से चिल्लाई, "मैंने कलीसिया में जाकर पादरियों और कलीसिया के नेताओं से पूछा। उन्होंने कहा कि चमकती पूर्वी बिजली ख़तरनाक है, और एक बार अगर तुम इसमें शामिल हो गई, तो फिर कभी नहीं छोड़ सकोगी। अब से इस पर विश्वास मत करना। मैं तुम्हारी भलाई के लिए ऐसा कर रही हूँ। मुझे डर है कि तुमने गलत राह पकड़ ली है।" मेरी माँ ने सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के खिलाफ़ धार्मिक दुनिया द्वारा गढ़े गए कुछ झूठ और आक्षेप भी दोहराए। अपनी माँ को ये बातें कहते सुनकर मैंने सोचा: "मेरा विश्वास बिलकुल भी गलत नहीं है। इसके विपरीत, मैं परमेश्वर के नए काम के साथ तालमेल बैठा रही हूँ। जिस सर्वशक्तिमान परमेश्वर पर मेरा विश्वास है, वह लौटा हुआ प्रभु यीशु है, जो अब मनुष्य का न्याय, उसकी ताड़ना और उसके शुद्धिकरण का कार्य करता है। मुझे पूरा यकीन है कि यह सही मार्ग है, तो फिर मैं इसे क्यों छोड़ दूँ? पादरियों और कलीसिया के नेताओं का यह कहना कि, 'यदि तुम चमकती पूर्वी बिजली में विश्वास करोगी और उनकी कलीसिया में शामिल होगी, तो फिर कभी उसे छोड़ नहीं सकोगी', विशुद्ध झूठ एवं भुलावे हैं, जो लोगों को धोखा देने के लिए गढ़े गए हैं। मैं छह महीने से अधिक समय से सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया की सभाओं में भाग ले रही हूँ और उसके बारे में तुम लोगों से अधिक जानती हूँ। सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया का दरवाज़ा हमेशा खुला है और लोग जब चाहें, उसे छोड़कर जा सकते हैं। यह बिल्कुल वैसा नहीं है, जैसा कि कलीसिया के पादरी और नेता कहते हैं। परमेश्वर के वचनों को पढ़कर भाई-बहन सभी सही मार्ग के बारे में निश्चित हो जाते हैं, वे जीवन का पोषण प्राप्त करते हैं और उन्होंने जीवित जल के झरने को पा लिया है, इसीलिए वे कलीसिया को छोड़ना नहीं चाहते। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन को पढ़ने से हमारी आत्माएँ संतोष प्राप्त करती हैं। कौन अपनी पुरानी वीरान और बंजर कलीसिया में वापस जाना चाहेगा? कलीसिया के पादरियों और नेताओं ने अंत के दिनों के सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य की बिल्कुल भी जांच नहीं की है। उन्होंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को नहीं पढ़ा है और, इसके अलावा, उन्होंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया की सभाओं में भाग नहीं लिया है। उनके दावों का आधार क्या है? क्या वे केवल बेबुनियाद अफ़वाहें नहीं गढ़ रहे हैं?" जब मेरी माँ ने देखा कि मैं जवाब नहीं दे रही, तो वो भड़क उठी और दनदनाते हुए आकर उसने मुझे कुछ थप्पड़ मारे, और मुझे परमेश्वर को धोखा देने वाली बातें कहने के लिए मजबूर करने की कोशिश की। उसे इस तरह देखकर मुझे बहुत तकलीफ़ हुई। मैंने सोचा कि यदि यह कलीसिया के पादरियों और नेताओं द्वारा गढ़े गए झूठ के कारण न होता, तो मेरी माँ ने सर्वशक्तिमान परमेश्वर में मेरा विश्वास छोड़ने के लिए मुझे किसी भी तरह मजबूर न किया होता। तब मैंने माँ से कहा, "सर्वशक्तिमान परमेश्वर लौटा हुआ प्रभु यीशु है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास करना पृथ्वी और स्वर्ग का एक अटल नियम है, और मैं अंत तक उस पर विश्वास करूँगी!" जब मेरी माँ ने मुझे यह कहते सुना, तो उसका चेहरा क्रोध से तमतमाने लगा और आँखें गुस्से से लाल हो गईं। वह मुझ पर जोर से चिल्लाई, "मैं तुम्हारी माँ हूँ। तुम्हें मेरी बात सुननी ही पड़ेगी!" यह देखकर कि मेरी माँ कितनी विवेकहीन हो रही है, मैंने कुछ नहीं बोलने का फैसला किया। एकाएक तभी मेरे सभी रिश्तेदारों ने भी मेरी आलोचना करनी शुरू कर दी और उन्होंने इस बात की कोशिश करते हुए कई बातें कहीं कि मैं परमेश्वर को धोखा दे दूँ। मैंने सोचा: "मैं पहले ही प्रभु यीशु का स्वागत कर चुकी हूँ। मैं जिस परमेश्वर को मानती हूँ, वह वास्तविक है और जिस मार्ग पर मैं चलती हूँ, वह सही मार्ग है। मैं परमेश्वर के साथ विश्वासघात बिल्कुल भी नहीं करूँगी!" मैं वाकई उन लोगों को अंत के दिनों के परमेश्वर के कार्य की जांच करने और कलीसिया के पादरियों और नेताओं की अफ़वाहों से धोखा खाकर सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अंधाधुंध विरोध और निंदा न करने की सलाह देना चाहती थी। किंतु सत्य और परमेश्वर के प्रति घृणा का उनका रवैया देखकर मुझे लगा कि वे सत्य को स्वीकार नहीं करेंगे और चाहे मैं जो भी कहूँ, उससे कोई लाभ न होगा, इसलिए मैंने उनसे और कुछ भी नहीं कहा। थोड़ी देर बाद मेरी माँ और मेरे रिश्तेदार एक साथ चले गए। हालाँकि मेरी माँ ने मुझे अभी छोड़ा नहीं था, क्योंकि फिर उन्होंने मेरे छोटे भाई को मेरे घर पर रहने के लिए कह दिया। मेरा भाई रोज़ाना मुझ पर नज़र रखता, मानो मैं कोई अपराधी होऊँ, और मैं जहाँ भी जाती, वह मेरा पीछा किया करता। इस तरह मेरी व्यक्तिगत स्वतंत्रता नष्ट हो गई।

दो दिन बाद जब मेरा परिवार और मैं रात का खाना खा रहे थे, तो मेरी माँ अचानक अंदर आ गई। वह बड़ी मुस्कुरा रही थी और बनावटी स्वर में मुझसे बोली, "जायोयू, देखो तो कौन आया है!" अपनी माँ के हावभाव और स्वर से मुझे आश्चर्य हुआ कि ऐसा कौन-सा व्यक्ति आया है, जो उससे इतनी बड़ी प्रतिक्रिया प्राप्त कर सकता है, और मुझे पता था कि यह कोई अच्छी बात नहीं हो सकती। तभी कलीसिया की नेता लियू और वांग नाम का एक ग्रामवासी भीतर आए। मैंने उनका शांति से अभिवादन किया और उनसे बैठने के लिए कहा। जब हमने खाना खत्म कर लिया, तो कलीसिया की नेता लियू ने मेरी तरफ देखा और मुस्कुराते हुए कहा, "जायोयू! हम गोल-मोल बातें नहीं करेंगे। तुम्हारी माँ के अनुसार अब तुम चमकती पूर्वी बिजली में विश्वास करती हो। मुझे तुमसे कहना है कि तुम इस पर विश्वास करना बंद कर दो। तुम्हारा पूरा परिवार पीढ़ियों से कैथोलिक रहा है। तुम प्रभु को त्याग नहीं सकती, अन्यथा वह तुम्हें त्याग देगा। आज हम तुम्हें कुछ सलाह देने के लिए आए हैं, लेकिन अगर तुम हमारी बात नहीं सुनोगी, तो जब समय आएगा और तुम नरक में जा पड़ोगी, तब तुम अपने सिवाय किसी और को दोष न दे सकोगी। जायोयू, हम तुम्हारी भलाई के लिए यह कर रहे हैं। अपने पति की बीमारी के बारे में सोचो। अगर तुम्हारी माँ ने और मैंने हर दिन प्रभु से प्रार्थना नहीं की होती, तो वह ठीक न हुआ होता। यदि तुमने चमकती पूर्वी बिजली में विश्वास करना जारी रखा और तुम्हारे पति की बीमारी लौट आई, तो कोई कुछ मदद नहीं करेगा।" उसकी इन बातों को सुनकर मेरा दिल दहल गया और मैं कुछ डर महसूस किये बिना न रह सकी। मैंने सोचा: "मेरे पति वाकई बहुत बीमार हो गए थे और बहुत खर करने पर भी ठीक नहीं हुए थे। अंत में वे केवल हमारी रोज की प्रार्थनाओं के कारण ठीक हुए थे। अगर इनका कहना सही है और मेरे पति की बीमारी लौट आई, तो मैं क्या करूँगी?" ज्यों ही मैं उनके धोखे में आने लगी, परमेश्वर के वचनों की एक पंक्ति मेरे मन में उभर आई: "सर्वशक्तिमान परमेश्वर एक सर्वशक्तिशाली चिकित्सक है!" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 6)। जब मैंने इसके बारे में सोचा, तो मैं अचानक जाग गई और मेरा मन साफ़ हो गया। "यह सही है," मैंने सोचा। "मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास करती हूँ, जो कि लौटा हुआ प्रभु है। मेरा पति फिर से बीमार होगा या नहीं, यह परमेश्वर के हाथों में है; यह इन पर निर्भर नहीं करता। हर चीज़ पर परमेश्वर की संप्रभुता है, तो फिर मेरे लिए डरने की क्या बात है? कुछ भी हो, परमेश्वर ने ही मेरे पति की बीमारी को ठीक किया, इन्होंने नहीं। मैंने कभी नहीं सोचा था कि मेरे पति की बीमारी की बात का इस्तेमाल ये मुझसे परमेश्वर को धोखा दिलाने की धमकी देने के लिए करेंगे, या मेरा परिवार कहीं परेशानी में न पड़ जाए, इस डर से मुझसे परमेश्वर के प्रति इन्कार और विश्वासघात कराने की कोशिश करेंगे। कितने कपटी हैं ये!" उनके कुत्सित इरादे देखकर मुझे उनके लिए घृणा के सिवा और कुछ भी महसूस नहीं हुआ और मैं अब उनसे और बात नहीं करना चाहती थी।

मुझे चुप देख कलीसिया की नेता लियू ने व्यंग्यात्मक तरीके से कहा, "लगता है, तुम अपनी ज़िद पर अड़ी हो! आज अब तक सारी बातें हमने ही की हैं, इसलिए हमें बताओ कि तुम्हारा इरादा क्या है!" चूँकि उन्होंने मेरे पति की बीमारी के बारे में बात की थी, इसलिए मुझे थोड़ी बेचैनी महसूस हुई थी। लेकिन जब मैंने हर चीज़ पर परमेश्वर की संप्रभुता के बारे में सोचा, तो मैंने अचानक अपना आत्मविश्वास पा लिया। चाहे कुछ भी हो जाए, मैं परमेश्वर के साथ विश्वासघात नहीं करूँगी। मैंने अपना साहस बटोरा और कहा, "तो मैं आपको बता दूँ कि मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर में दृढ़ विश्वास रखती हूँ और मैं परमेश्वर में अपने विश्वास का त्याग नहीं करूँगी!" मेरी माँ दहाड़ी, "चलिए! हम प्रार्थना करने के लिए कलीसिया जाते हैं।" उसके ऐसा कहने के बाद वे सभी गुस्से से दनदनाते हुए चले गए। यह देखकर कि वे कितने क्रूर लग रहे थे, मैं कुछ डरे बिना न रह सकी। "वे प्रार्थना करने जा रहे हैं," मैंने सोचा। "क्या वे मुझे शाप देने वाले हैं? मैं क्या कर सकती हूँ?" असहाय महसूस कर मैंने परमेश्वर के सामने आकर प्रार्थना की: "हे सर्वशक्तिमान परमेश्वर! उन सभी ने मेरे खिलाफ़ एक जंग छेड़ दी है, वे मुझे घेर रहे हैं, और मैं खुद को अकेली महसूस कर रही हूँ। हे परमेश्वर! मुझे नहीं पता, मुझे क्या करना है। मैं बहुत भयभीत हूँ। कृपया मेरा मार्गदर्शन करें!" प्रार्थना पूरी करने के बाद मैंने परमेश्वर के कुछ वचनों को याद किया: "तुम जानते हो कि तुम्हारे आसपास के परिवेश में सभी चीजें मेरी अनुमति से हैं, सब मेरे द्वारा आयोजित हैं। स्पष्ट रूप से देखो और अपने को मेरे द्वारा दिए गए परिवेश में मेरे दिल को संतुष्ट करो। डरो मत, समुदायों का सर्वशक्तिमान परमेश्वर निश्चित रूप से तुम्हारे साथ होगा; वह तुम लोगों के पीछे खड़ा है और तुम्हारी ढाल है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 26)। परमेश्वर के वचनों के प्रबोधन और मार्गदर्शन से मेरा दिल अचानक प्रकाश से भर गया: "हाँ! परमेश्वर मेरा अडिग सहारा है", मैंने सोचा। "परमेश्वर जब मेरे साथ है, तो डरने की कोई बात नहीं है। कलीसिया के नेता और वांग नाम के उस व्यक्ति ने वे बातें केवल इसलिए कही थीं कि मैं नरक में जाने से, अपने परिवार में परेशानी खड़ी हो जाने से और अपने पति के बीमार हो जाने से डर जाऊं और परमेश्वर को त्याग दूँ। अगर मैं डरपोक या भयभीत हो जाती हूँ, तो क्या इसका मतलब यह नहीं है कि मैं शैतान की चाल में फँस गई हूँ? मेरी और मेरे पति की किस्मत, हमारे अंतिम गंतव्य और हमारे भाग्य-दुर्भाग्य किसी और पर निर्भर नहीं हैं, कलीसिया के पादरी और नेताओं का दखल तो इसमें और भी कम है। यह सब परमेश्वर के हाथों में है। उनका मेरी निंदा करना और मुझे शाप देना बेकार है।" यह सोचकर मुझे फिर से शांति महसूस हुई और मैं बिल्कुल भी नहीं डरी। तहेदिल से मैंने परमेश्वर की प्रशंसा की और अपने वचनों से मेरा मार्गदर्शन करने और मुझे शैतान की योजनाओं को पहचान लेने का विश्वास और बल प्रदान करने के लिए परमेश्वर को धन्यवाद दिया, ताकि मैं अपनी माँ या अन्य लोगों द्वारा परेशान न की जाऊं या धोखा न खा लूँ।

एक दिन दोपहर को जब मैं अपने बच्चे के साथ दोपहर की झपकी लेने वाली थी, मेरी पुरानी कलीसिया से बहन झाओ और बहन झांग मुझे परेशान करने आ पहुँचीं। बहन झाओ ने मुझे डराने के लिए कुछ बातें कही, और फिर बहन झांग ने बहुत गंभीर होने का नाटक करते हुए कहा, "यह सच है। अतीत में सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के लोगों के साथ हमारा संपर्क रहा है, और हम उनके द्वारा लगभग धोखा खा गए थे।" उसे यह कहते सुनकर मैं उग्र हो गई। मुझे पता था कि मेरे भाई-बहन किसी को भी धोखा देने में बिल्कुल असमर्थ थे। इनकी सारी बातें केवल झूठ और लांछन थीं। इसलिए मैंने उनसे पूछा, "उन्होंने तुम्हें किस तरह धोखा दिया?" बहन झांग ने गंभीर स्वर में कहा, "यह तुम नहीं समझ पाओगी। उन्होंने मुझे एक पुस्तक दी!" मैंने आगे पूछा, "मुझे बताओ, उन्होंने कौन-सी पुस्तक तुम्हें दी थी? पुस्तक का नाम क्या था? वह पुस्तक किस बारे में थी?" बहन झांग सकपका गई और कुछ लीपापोती करने के बाद उसने अंततः सवाल को टालने की कोशिश करते हुए कहा, "मैं भूल गई हूँ।" उसे यह कहते सुनकर मैंने सोचा, "तुम नन हो! झूठी गवाही देने और जानबूझकर दूसरों के खिलाफ़ झूठे आरोप लगाने की तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई? परमेश्वर के प्रति तुम्हारी श्रद्धा इतनी कम कैसे हो सकती है? क्या तुम वाकई परमेश्वर की विश्वासी हो? क्या तुम परमेश्वर के द्वारा दंडित होने से नहीं डरतीं?" इसके बाद बहन झाओ ने मुझसे फिर पूछा, "क्या तुम नौकरी पर जाती हो?" मैंने दृढ़ता से उत्तर दिया, "हाँ!" मित्रता का ढोंग करत हुए उसने मुझे सलाह दी, "नौकरी पर मत जाया करो। घर पर रहना और अपने बच्चे की देखभाल करना ज्यादा अच्छा है!" मुझे उसके पाखंड से घृणा महसूस हुई, इसलिए कमरे से बाहर निकलते हुए मैंने कहा, "अपने काम से काम रखो।" यह देखकर कि मुझे परेशान करने की उनकी कोशिश विफल हो गई है, वे खिन्न होकर चली गईं। उनके जाने के बाद मैंने खुद को बहुत परेशान और उदास महसूस किया। मैंने सोचा किस तरह कलीसिया की नेता और ये ननें हाल में मुझे परेशान करने के लिए आती रही हैं, और वे या तो सर्वशक्तिमान परमेश्वर और मेरे भाई-बहनों की निंदा कर उन पर हमला करते थे और अफ़वाहें फैलाते थे, या फिर भ्रांतियाँ फैलाते थे ताकि मैं धोखा खा जाऊं और डरकर समर्पण कर दूँ। भले ही मैंने उनसे धोखा नहीं खाया और उनके दावों का तर्क से खंडन किया, पर हर बार मैं बहुत उत्तेजित हो जाती थी और परमेश्वर के सामने खुद को शांत नहीं कर पाती थी, न ही परमेश्वर के वचनों को पढ़ पाती थी। मेरा छोटा भाई अभी भी हर समय मुझ पर निगाह रखे हुए था। जब भी मैं प्रार्थना करती, भजन गाती और परमेश्वर के वचन पढ़ती, तो खुद को लाचार और बेहद प्रताड़ित महसूस करती। अपने दुख के बीच मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की: "सर्वशक्तिमान परमेश्वर! कलीसिया की नेता और ये ननें बार-बार मुझे परेशान करने के लिए आते हैं। मैं बहुत तंग और परेशान महसूस करती हूँ। फिलहाल, मुझे नहीं पता कि मुझे उनसे कैसे निपटना चाहिए। प्रिय परमेश्वर, कृपया मेरा प्रबोधन और मार्गदर्शन करो!"

प्रार्थना करने के बाद मैंने अपना एमपी5 प्लेयर निकाला, तो संयोग से परमेश्वर के वचनों का यह अंश दिखाई दिया: "ऐसे भी लोग हैं जो बड़ी-बड़ी कलीसियाओं में दिन-भर बाइबल पढ़ते रहते हैं, फिर भी उनमें से एक भी ऐसा नहीं होता जो परमेश्वर के कार्य के उद्देश्य को समझता हो। उनमें से एक भी ऐसा नहीं होता जो परमेश्वर को जान पाता हो; उनमें से परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप तो एक भी नहीं होता। वे सबके सब निकम्मे और अधम लोग हैं, जिनमें से प्रत्येक परमेश्वर को सिखाने के लिए ऊँचे पायदान पर खड़ा रहता है। वे लोग परमेश्वर के नाम का झंडा उठाकर, जानबूझकर उसका विरोध करते हैं। वे परमेश्वर में विश्वास रखने का दावा करते हैं, फिर भी मनुष्यों का माँस खाते और रक्त पीते हैं। ऐसे सभी मनुष्य शैतान हैं जो मनुष्यों की आत्माओं को निगल जाते हैं, ऐसे मुख्य राक्षस हैं जो जानबूझकर उन्हें विचलित करते हैं जो सही मार्ग पर कदम बढ़ाने का प्रयास करते हैं और ऐसी बाधाएँ हैं जो परमेश्वर को खोजने वालों के मार्ग में रुकावट पैदा करते हैं। वे 'मज़बूत देह' वाले दिख सकते हैं, किंतु उसके अनुयायियों को कैसे पता चलेगा कि वे मसीह-विरोधी हैं जो लोगों से परमेश्वर का विरोध करवाते हैं? अनुयायी कैसे जानेंगे कि वे जीवित शैतान हैं जो इंसानी आत्माओं को निगलने को तैयार बैठे हैं?" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर को न जानने वाले सभी लोग परमेश्वर का विरोध करते हैं)। परमेश्वर के वचनों को पढ़कर मैं तुरंत समझ गई। मुझे पता चल गया कि ये पादरी और कलीसिया के नेता ही वे धार्मिक मसीह-विरोधी हैं, जिनका परमेश्वर अपने वचनों में पर्दाफ़ाश कर रहा है। हालाँकि वे प्रभु में विश्वास करते हैं, पर वे सच्चाई की तलाश बिल्कुल नहीं करते और उनके पास परमेश्वर-भीरु हृदय जैसी कोई चीज़ नहीं है। न केवल उन्होंने खुद अंतिम दिनों के परमेश्वर के कार्य की जांच नहीं की, बल्कि उन्होंने परमेश्वर की निंदा भी की, परमेश्वर के नए कार्य को ख़ारिज किया और मेरी माँ को धोखा देने के लिए अफ़वाहें उड़ाईं, ताकि वह मुझे मारे, डाँटे और लगभग घर में नज़रबंद कर दे। फिर वे बार-बार मुझे परेशान करने, छलने, धोखा देने और धमकाने के लिए मेरे घर पर आए। शुक्र है कि परमेश्वर के वचनों के मार्गदर्शन और उनकी अगुवाई के कारण मैं उन लोगों की चालों में नहीं फंसी, और न ही मैंने परमेश्वर से विश्वासघात किया। फरीसियों ने भी आम यहूदी लोगों को प्रभु यीशु के सुसमाचार को स्वीकार करने से रोकने के लिए सभी प्रकार के घृणित तरीकों का इस्तेमाल किया था। उन्होंने लोगों को धोखा देने के लिए झूठ का भी इस्तेमाल किया, यह कहकर कि प्रभु यीशु का कार्य पुराने नियम का उल्लंघन कर रहा है और यीशु वापस लौटा हुआ मसीहा नहीं है। इसकी वजह से आम यहूदी लोगों ने निष्पाप प्रभु यीशु को सलीब पर चढ़ाने में फरीसियों का साथ दे दिया। प्रभु यीशु ने उन्हें यह कहते हुए फटकार लगाई कि, "हे कपटी शास्त्रियो और फरीसियो, तुम पर हाय! तुम मनुष्यों के लिए स्वर्ग के राज्य का द्वार बन्द करते हो, न तो स्वयं ही उसमें प्रवेश करते हो और न उस में प्रवेश करनेवालों को प्रवेश करने देते हो" (मत्ती 23:13)। मैंने फरीसियों के कर्मों की तुलना पादरियों, कलीसिया के नेताओं और ननों के कर्मों से की, और उस सहभागिता के बारे में सोचा जो मेरे भाइयों और बहनों ने फरीसियों के सार को पहचानने के लिए मुझे पहले दी थी। मैंने तब स्पष्ट रूप से देखा कि ये पादरी और कलीसिया के नेता मूल रूप से अतीत के फरीसियों से ज़रा भी अलग नहीं थे। खुद के ओहदे और अपनी आजीविका की रक्षा के लिए वे मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर पर विश्वास करने से रोकने के लिए हर संभव तरीके का इस्तेमाल कर रहे थे। उन्हें डर था कि मैं अपनी माँ और अपने पूरे परिवार के सामने अंत के दिनों के सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य का प्रचार करूँगी, और तब मेरा पूरा परिवार सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास करना शुरू कर देगा। इस वजह से उनके गुट का आकार छोटा हो जाएगा और उन्हें हर महीने मिलने वाले दान की राशि में भी कमी आ जाएगी। वे लोग वास्तव में वो दुष्ट सेवक और मसीह-विरोधी हैं, जो परमेश्वर का चढ़ावा चुराते हैं और लोगों को स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने से रोकते हैं! एक बार जब मैंने स्पष्ट रूप से उनके मसीह-विरोधी सार को देख लिया, तो मैं जान गई कि इन लोगों से कैसे निपटना है। वे परमेश्वर में विश्वास करते थे और फिर भी परमेश्वर का विरोध करते थे और परमेश्वर के शत्रु थे, और इस तरह मैं जान गई थी कि मुझे उनका त्याग कर देना चाहिए। हाल के दिनों में, भले ही मैंने उनके उत्पीड़न का सामना किया था, फिर भी मेरे पास परमेश्वर के वचनों का मार्गदर्शन और प्रबोधन था। परमेश्वर के प्रति नकारात्मक चरित्रों के रूप में काम करके उन्होंने मुझे विवेक विकसित करने का मौका दिया और, इतना ही नहीं, उन्होंने मुझे परमेश्वर के वचनों के बारे में कुछ व्यावहारिक अनुभव प्राप्त करने का अवसर भी दिया। मैंने अपने लिए अनुभव किया कि परमेश्वर के वचन सत्य, मार्ग और जीवन हैं, और मैं और भी निश्चित हो गई कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही सच्चा परमेश्वर है। मैंने अपने हृदय में बेहद ख़ुशी और सहजता महसूस की और मैंने चुपचाप एक संकल्प किया: शैतान चाहे मुझे किसी भी तरह से परेशान करने की कोशिश करे, मैं कभी भी परमेश्वर के साथ विश्वासघात नहीं करूँगी, और मैं परमेश्वर के लिए गवाही देने और दुष्ट शैतान को अपमानित करने के लिए दृढ़-संकल्प हूँ!

मुझे कभी यह उम्मीद नहीं थी कि सिर्फ दो दिनों की शांति के बाद ही मैं एक बार फिर शैतान के उत्पीड़न और ज़बरदस्ती का सामना करूँगी। एक रात मेरी माँ, मेरे कुछ मामा-मामी और साथ ही साथ मेरी दूर की नानी मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर पर विश्वास करने से रोकने की कोशिश करने आ पहुँचे। उन सबको एक-साथ देखकर मैं बहुत क्रोधित हुई। मैंने सोचा, "मैं केवल सच्चे परमेश्वर में विश्वास करती हूँ। इसमें गलत क्या है? वे इस बारे में क्यों बार-बार ऐसा कर रहे हैं?" मेरी दूर की नानी ने एक अजीब लहजे में कहा, "आओ जायोयू, तुम्हारी नानी को देखने तुम्हारे ननिहाल चलें।" उन्हें यह कहते हुए सुनकर मुझे आश्चर्य हुआ और मैंने सोचा: "ये मुझे मेरे ननिहाल ले जाने के लिए आए हैं। ये मुझे मेरी मानसिक रूप से विचलित नानी के साथ बंद करना चाहते हैं! अरे नहीं, मेरे रिश्तेदार मेरे साथ ऐसा कैसे कर सकते हैं? वे इतने निर्दयी कैसे हो सकते हैं?" जब मैं ऐसा सोच रही थी, मेरी माँ ने एक रस्सी उठाई और दौड़कर मेरे पास आई, नीचे बैठी और मेरे पैरों को आपस में बाँधने लगी। मैं बहुत चिंतित हो गई। मैंने उसके हाथ दूर धकेल दिए और चिल्लाई, "तुम ये क्या कर रही हो? तुम मुझे क्यों बाँधना चाहती हो?" यह देखकर मेरे दो मामा मेरे करीब आ गए दोनों ने मेरा एक-एक कंधा पकड़ लिया, ताकि मैं विरोध न कर सकूँ। उस समय मैं सोफे पर बैठी हुई थी और उठ नहीं पा रही थी। मैं तुरंत अपने दिल में परमेश्वर के सामने रोई: "हे परमेश्वर! वे मुझे बाँधकर ले जाने की कोशिश कर रहे हैं। यदि वे इसमें कामयाब हो गए, तो मैं तुम पर विश्वास करने में असमर्थ हो जाऊँगी और कलीसिया को नहीं पा सकूँगी। हे परमेश्वर! मुझे विश्वास और शक्ति प्रदान करो और मेरे लिए बचने की कोई राह खोल दो!" प्रार्थना पूरी करते ही मैंने अपने शरीर में ताक़त आती महसूस की। मैंने संघर्ष किया और चिल्लाई, "तुम क्या कर रहे हो? मुझे जाने दो!" मुझे उग्रतापूर्वक विरोध करते देख उन्होंने मुझे छोड़ दिया। मैंने परमेश्वर के प्रति बहुत आभार महसूस किया। मैंने वास्तव में यह अनुभव किया कि जब तक कोई व्यक्ति निष्कपटता से परमेश्वर पर निर्भर रहता है, तब तक वह परमेश्वर के कार्यों का साक्षी रहता है। मुझे भी वास्तव में यह लगा कि परमेश्वर मेरे साथ है, वह हर समय मेरी रक्षा और निगरानी कर रहा है। मैंने सोचा: "इस परिवेश में मुझे अपना सच्चा हृदय परमेश्वर को अर्पित करना चाहिए और दुष्ट शैतान को पूरी तरह से अपमानित करना चाहिए।" इसलिए मैंने दृढ़तापूर्वक उनसे कहा, "दूसरे मामलों में मैं तुम्हारी बात सुनूँगी। पर जहाँ तक परमेश्वर पर विश्वास करने की बात है, मैं केवल परमेश्वर की ही सुनूँगी! मैं पहले ही निश्चित हूँ कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर लौटा हुआ प्रभु है। चाहे तुम मुझे कैसे भी मजबूर करने की कोशिश करो, मुझे डिगा नहीं सकोगे!" जैसे ही मैंने परमेश्वर का अनुसरण करने की ठानी, वैसे ही मैंने फिर से परमेश्वर के कार्यों को देखा। मेरी एक मामी ने कहा, "उसे मत बाँधो। इससे कोई लाभ न होगा। मैं देख सकती हूँ कि वह अपने विश्वास में अडिग है।" मेरी मामी के ऐसा कहते ही वे सब पलटे और खिन्न होकर चले गए। उनके जाने के तुरंत बाद मुझे शारीरिक और मानसिक शिथिलता और थकावट महसूस हुई। मेरे पास ज़रा भी ताक़त नहीं बची थी। मैं अपने बिस्तर पर लेट गई और मुझे नींद आ गई। अगले दिन सुबह मैंने भारी दिल से पिछली रात की घटना के बारे में सोचा। मेरे रिश्तेदार जिस तरह मेरे साथ व्यवहार कर रहे थे, उस बारे में सोचने पर मैं यह विचार किए बिना न रह सकी: "ओह, मेरी माँ और मेरे रिश्तेदार पादरियों और कलीसिया के नेताओं द्वारा फैलाई गई अफ़वाहों से धोखा खा गए हैं, और वे मेरे साथ ज़बरदस्ती करने की कोशिश करते रहते हैं। यह सब कब खत्म होगा?" तब मैंने वह याद किया, जब मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के अपने भाई-बहनों के साथ होती थी। आपसी तालमेल के साथ हमने सत्य का अनुसरण किया था और अपने कर्तव्य पूरे किए थे, सभी ने एक-दूसरे की मदद की थी और एक-दूसरे का समर्थन किया था। किसी ने किसी दूसरे को धौंस दिखाने या प्रताड़ित करने की कोशिश नहीं की, और मुझे चौकन्ना रहने की कोई आवश्यकता नहीं पड़ी। मैं बहुत स्वतंत्र और मुक्त महसूस करती थी, और हर दिन परिपूर्ण और सहज अनुभव करती थी। लेकिन अब मैं अपने घर में बंद थी, मुझे कोई भी स्वतंत्रता नहीं थी, और मैं हर दिन तनाव में जी रही थी। मुझे कुछ पता नहीं कि कब मेरे रिश्तेदार या मेरी पुरानी कलीसिया के लोग आ धमकेंगे। उनकी तरफ से सबसे अच्छा व्यवहार मुझे फटकार लगाना था और सबसे बुरा व्यवहार मुझे धमकाना और डराने की कोशिश करना। मुझे बहुत पीड़ित और दुखी महसूस हुआ। मैं वास्तव में सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया में वापस जाना चाहती थी और सभाओं में भाग लेना, भजन गाना और अपने भाई-बहनों के साथ मिलकर परमेश्वर की स्तुति करना चाहती थी।

इस घटना के तुरंत बाद कुछ ऐसा हुआ, जो और भी अधिक अप्रत्याशित था। एक दिन मैं अपने पति के साथ शॉपिंग के लिए निकली थी। घर लौटने के बाद मैं अपने एमपी5 प्लेयर पर परमेश्वर के वचनों को पढ़ना चाहती थी, लेकिन मुझे वह नहीं मिला। मैं बहुत चिंतित हुई और घबरा गई। मैंने सोचा: "मेरा एमपी5 प्लेयर कहाँ चला गया? मैं निश्चित रूप से उसे घर पर रखकर गई थी। मुझे वह मिल क्यों नहीं रहा?" अचानक मुझे लगा कि मेरी माँ उसे ले गई होगी। मुझे याद आया कि एक दिन मेरी माँ आई थी और उसने मुझे एमपी5 प्लेयर पर परमेश्वर का वचन पढ़ते हुए देखा था। उसके बाद वह अक्सर मेरे घर आती और मेरी चीज़ों की छान-बीन किया करती। मुझे यकीन था कि मेरे एमपी5 प्लेयर के न मिलने का कारण यही था कि माँ ने उसे ले लिया था। इस विचार से मैं बहुत क्रोधित हो गई और मैं दनदनाते हुए अपनी माँ के घर पर पहुँच गई। अंदर जाकर मैंने देखा कि मेरी माँ मेरी दूसरी नानी से बात कर रही है। मैंने उनके पास जाकर कहा, "माँ, क्या तुमने मेरा एमपी5 प्लेयर लिया है? वह मेरा है। यदि तुम उसे ले आई हो, तो तुरंत मुझे वापस कर दो।" मेरी माँ ने साफ़ इन्कार कर दिया, तो मैं हैरान रह गई। उसने मुझे घृणा से देखा, तो मैंने गुस्से से कहा, "मैं अपना एमपी5 प्लेयर घर पर ही रखती हूँ। किसी और ने उसे न छुआ होगा। अकेली तुम ही हो, जो लगातार मेरी चीज़ों की छान-बीन करती रहती हो। निश्चित रूप से तुम ही उसे ले आई हो। उसे मुझे वापस दे दो!" मेरी पूछताछ का सामना करते हुए मेरी माँ ने कठोर स्वर में उत्तर दिया, "मैं उसे वापस नहीं दूँगी। बेहतर होगा कि तुम घर लौट जाओ, क्योंकि तुम उसे कभी मुझसे वापस नहीं ले पाओगी!" चाहे मैं कितना भी ज़ोर दूँ, वह मुझे वापस नहीं देगी, यह जानने के बाद मेरे पास खाली हाथ घर लौटने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। घर आते समय मुझे बहुत दुख हुआ। मैंने सोचा: "मेरे पास अब मेरा एमपी5 प्लेयर नहीं है, इसलिए मैं अब परमेश्वर के वचनों को नहीं पढ़ सकती। अतीत में भले ही मेरी माँ और अन्य लोग मुझे परेशान करने के लिए आते थे, फिर भी मैं परमेश्वर के वचनों को पढ़ सकती थी और परमेश्वर के वचनों का मार्गदर्शन और अगुवाई पा सकती थी। परिणामस्वरूप, मैं परमेश्वर की इच्छा को समझने में सक्षम थी और उनके हमलों का सामना करने के लिए मेरे पास विश्वास था और शक्ति थी। लेकिन अब मेरा एमपी5 प्लेयर चला गया है! मैं क्या करूँगी? परमेश्वर के वचनों के बिना क्या मेरे लिए सब-कुछ खत्म नहीं हो गया है?" जितना अधिक मैंने इसके बारे में सोचा था, उतनी ही अधिक निराशा मैंने महसूस की, और मेरी आत्मा नकारात्मकता में जा गिरी। मैं बेहद दुखी हुई। मेरे सबसे कमज़ोर और निराशाजनक क्षण में परमेश्वर के वचनों का एक भजन मेरे मन में उभर आया: "आज अधिकांश लोगों के पास यह ज्ञान नहीं है। वे मानते हैं कि दुःख उठाने का कोई महत्व नहीं है, वे संसार के द्वारा त्यागे जाते हैं, उनके पारिवारिक जीवन में परेशानी होती है, वे परमेश्वर के प्रिय भी नहीं होते, और उनकी संभावनाएं बहुत धूमिल होती हैं। कुछ लोगों के कष्ट चरम तक पहुँच जाते हैं, और उनके विचार मृत्यु की ओर मुड़ जाते हैं। यह परमेश्वर के लिए सच्चा प्रेम नहीं है; ऐसे लोग कायर होते हैं, उनमें धीरज नहीं होता, वे कमजोर और शक्तिहीन होते हैं। ... इस प्रकार, इन अंतिम दिनों में, तुम्हें अवश्य ही परमेश्वर के प्रति गवाही देनी है। इस बात की परवाह किए बिना कि तुम्हारे कष्ट कितने बड़े हैं, तुम्हें अपने अंत की ओर बढ़ना है, अपनी अंतिम सांस तक भी तुम्हें अवश्य ही परमेश्वर के प्रति निष्ठावान और उसकी कृपा पर बने रहना चाहिए; केवल यही वास्तव में परमेश्वर से प्रेम करना है और केवल यही सशक्त और जोरदार गवाही है" ("मेमने का अनुसरण करना और नए गीत गाना" में "तुम्हारी पीड़ा जितनी भी हो ज़्यादा, परमेश्वर को प्रेम करने का करो प्रयास")। परमेश्वर के वचनों के मार्गदर्शन से मैं समझ गई कि परमेश्वर को यह उम्मीद थी कि मैं इस परिस्थिति में उसके लिए गवाही दे सकूँगी। स्थितियाँ चाहे कितनी भी कठिन क्यों न हो जाएँ, मुझे अंत तक परमेश्‍वर के प्रति पूरी तरह वफ़ादार रहना होगा और परमेश्वर पर विश्वास न खोना होगा। मुझे वे सभी उत्पीड़न याद आए, जो मुझे झेलने पड़े थे, और मुझे एहसास हुआ कि प्रत्येक घटना आध्यात्मिक दुनिया की एक लड़ाई रही थी। शैतान मुझे धीरे-धीरे तोड़ने के लिए सभी तरह के तरीकों का इस्तेमाल कर रहा था। अभी इसने मेरी आत्मा को निगलने की इच्छा से "मेरे आध्यात्मिक जीवन का भोजन" छीन लिया था। शैतान वाकई वहशी है। मैं जानती थी कि मुझे इसकी चालों में नहीं फँसना चाहिए। हालाँकि मेरा एमपी5 प्लेयर चला गया था, फिर भी मेरे पास परमेश्वर था। परमेश्वर अब भी मेरा प्रबोधन और मार्गदर्शन करेगा, और मुझे विश्वास था कि जब तक मैं हर पल परमेश्वर पर निर्भर रहूँगी, तब तक परमेश्वर मुझे हर कठिनाई और कष्ट से सफलतापूर्वक गुज़र जाने में मेरी मदद करेगा। भविष्य में चाहे मुझे कैसी भी परिस्थितियों का सामना करना पड़े, जब तक मेरे शरीर में एक भी सांस बाकी होगी, मैं परमेश्वर के लिए गवाही दूँगी। परमेश्वर के वचनों ने एक बार फिर मेरा मार्गदर्शन किया और मुझे वह विश्वास दिया, जिसकी मुझे आगे बढ़ने के लिए ज़रूरत थी।

इस उत्पीड़न और विपत्तिका बार-बार अनुभव करके मैंने परमेश्वर के शब्दों की शक्ति और अधिकार को देखा। हर बार जब मैं नकारात्मक, कमज़ोर, भ्रमित और व्यग्र हुई, तब-तब परमेश्वर के वचनों ने मुझे वो विश्वास और शक्ति प्रदान की, जिनकी मुझे ज़रूरत थी और मुझे शैतान की योजनाओं को पहचानने और परमेश्वर के लिए गवाही देने में मेरा मार्गदर्शन किया। साथ ही, मैं यह भी देख पाई कि परमेश्वर हर पल मेरे साथ है, मेरे समर्थक के रूप में कार्य कर रहा है और मेरे लिए मार्ग खोल रहा है। परमेश्वर में मेरा विश्वास धीरे-धीरे बढ़ गया और अपने परिवार को छोड़ने की मेरी इच्छा अधिक प्रबल होती गई। मुझे पता था कि मुझे इस "शेर की मांद" से जल्द से जल्द भाग निकलना होगा, और कलीसिया जाकर अपने भाई-बहनों को तलाशना होगा। इसलिए मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की और उन्हें यह मामला सौंप दिया, और मैंने परमेश्वर से मेरा मार्गदर्शन करने के लिए कहा। कुछ दिनों बाद मैं अपने भाई की निगरानी से बचने में सफल रही और सफलतापूर्वक घर से भाग निकली। एक बार फिर मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया में लौट आई, ताकि कलीसिया का जीवन जी सकूँ और अपनी योग्यतानुसार अपने कर्तव्यों को बेहतरीन ढंग से पूरा कर सकूँ। एक महीने से अधिक समय की पीड़ा अंततः समाप्त हो गई थी, और मेरे दिल के भीतर उत्पीड़न और चिंता की भावनाएँ हवा में धुएँ की तरह गायब हो गईं। शैतान के अंधेरे प्रभाव से बच निकलने, "शेर की मांद" से छूटने और एक बार फिर से मुझे परमेश्वर के परिवार में वापस जाने में मेरा मार्गदर्शन करने के लिए परमेश्वर को धन्यवाद हो।

यह अनुभव मेरी स्मृति में ताज़ा बना हुआ है, क्योंकि उस दौरान मैंने परमेश्वर के प्रेम और उद्धार को बहुत स्पष्ट रूप से देखा था, और मैंने देखा कि परमेश्वर मेरे साथ रहकर हर पल मेरी रक्षा कर रहा था, और शैतान के द्वारा मुझे धोखा देने और निगलने से बचा रहा था। इसके साथ ही इस असाधारण अनुभव ने मुझे पादरियों, कलीसिया के नेताओं और अन्य लोगों के बारे में समझ विकसित करने में भी सक्षम बनाया। उन्होंने उन्मत्त होकर सर्वशक्तिमान परमेश्वर की निंदा की और उस पर आरोप लगाए, और मुझे धोखा देने के लिए अफ़वाहें गढ़ीं और झूठी गवाही दी। मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अनुसरण करने से रोकने के लिए उन्होंने हर तरह की चालाकियाँ कीं। हमारे द्वारा अंत के दिनों के परमेश्वर के कार्य को स्वीकार करने, परमेश्वर का उद्धार हासिल करने और परमेश्वर द्वारा प्राप्त किए जाने में वे बाधाएँ और ठोकरें हैं, और वे यहाँ लोगों की आत्माओं को निगल जाने वाले शैतानी दानव हैं! अंततः इसी समय मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा कहे गए इन वचनों का सही अर्थ समझी: "विश्वासी और अविश्वासी संगत नहीं हैं, बल्कि वे एक दूसरे के विरोधी हैं" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर और मनुष्य साथ-साथ विश्राम में प्रवेश करेंगे)। मैंने पहचान लिया कि भले ही पादरी, कलीसिया के नेता, ननें, मेरी पुरानी कलीसियाके सदस्य और मेरी माँ, ये सब सतही तौर पर परमेश्वर में विश्वास करते हुए दिखाई पड़ते थे, पर वे परमेश्वर की आवाज़ को नहीं समझते थे और न ही वे परमेश्वर को जानते थे। उन्होंने लौटे हुए प्रभु के कार्य को स्वीकार करने से इन्कार कर दिया, और इसलिए परमेश्वर उनके विश्वास को नहीं पहचानता। परमेश्वर की दृष्टि में वे अविश्वासी हैं। वे अंतिम दिनों में परमेश्वर के कार्य द्वारा उजागर किए गए टेआस हैं और सार रूप में वे राक्षस और मसीह-विरोधी हैं, जो परमेश्वर का विरोध करते हैं। इसके अतिरिक्त, मैंने यह भी देखा कि परिवार के सदस्यों द्वारा किया गया सारा उत्पीड़न और धार्मिक लोगों से मिली सारी परेशानी शैतान से उत्पन्न होने वाले हमले हैं, और वे आध्यात्मिक दुनिया में लड़ी जा रही घोर लड़ाइयाँ हैं। शैतान मुझे परेशान करने के लिए इन लोगों, घटनाओं और चीज़ों का इस्तेमाल करना चाहता था, जिससे मैं सही मार्ग को त्याग दूँ, परमेश्वर के साथ विश्वासघात करूँ, शैतान के "आलिंगन" में पहुँच जाऊं, परमेश्वर द्वारा बचाए जाने का मौका खो दूँ और शैतान के साथ ही नरक में नष्ट हो जाऊं। किंतु परमेश्वर अपनी बुद्धि का प्रयोग शैतान की साजिशों के आधार पर करता है। जब भी शैतान ने मुझ पर हमला करके मुझे परेशान किया, परमेश्वर ने मेरा मार्गदर्शन किया और हर पल मेरी अगुवाई की, ताकि मैं उसके वचनों का अनुभव कर सकूँ, और उसके वचनों के माध्यम से विवेक और अंतर्दृष्टि विकसित कर सकूँ। परमेश्‍वर ने अपने प्रति मेरे विश्वास को भी परिपूर्ण बनाया, और उसने अपने प्रति मेरे विश्वास को सच्चा, दृढ़ और आगे कभी कमज़ोर न पड़ने में सक्षम बनाया। मैं परमेश्वर को धन्यवाद देती हूँ कि उसने मेरा मार्गदर्शन किया और एक महीने से कुछ ही अधिक समय के भीतर कुछ सत्य समझने में मेरी मदद की। अब मैं अच्छे और बुरे तथा सुन्दरता और कुरूपता के बीच का अंतर जानती हूँ। परमेश्वर में मेरा विश्वास मजबूत हुआ है और मैं परमेश्वर के अधिक करीब आ गई हूँ। पीड़ा सचमुच परमेश्वर का आशीर्वाद है! अपने विश्वास के भावी जीवन में मैं परमेश्वर के कार्य का और अधिक अनुभव करना चाहती हूँ और मैं बिल्कुल अंत तक सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अनुसरण करने के लिए तैयार हूँ!

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