70. परमेश्वर के चीन में प्रकट होकर कार्य करने का बहुत महत्व है

अलीशा, दक्षिण कोरिया

एक दिन, मैंने एक भजन का वीडियो देखा जिसका शीर्षक था, “पूरब की ओर लाया है परमेश्वर अपनी महिमा,” जिसने मुझे प्रेरणा से भर दिया। भजन के बोल थे : “मैंने अपनी महिमा इस्राएल को दी और फिर उसे हटा लिया, और इस प्रकार इस्राएलियों और सभी मनुष्यों को पूरब में ले आया। मैं उन सभी को प्रकाश में ले आया हूँ, ताकि वे इसके साथ फिर से जुड़ सकें और इससे जुड़े रह सकें, और उन्हें इसकी खोज न करनी पड़े। जो लोग प्रकाश की खोज कर रहे हैं, उन्हें मैं फिर से प्रकाश देखने दूँगा और उस महिमा को देखने दूँगा जो मेरे पास इस्राएल में थी; मैं उन्हें यह देखने दूँगा कि मैं बहुत पहले एक सफेद बादल पर सवार होकर मनुष्यों के बीच आ चुका हूँ, मैं उन्हें असंख्य सफेद बादल और प्रचुर मात्रा में फलों के गुच्छे देखने दूँगा, और यही नहीं, मैं उन्हें इस्राएल के यहोवा परमेश्वर को भी देखने दूँगा। मैं उन्हें यहूदियों के गुरु, इच्छित मसीहा को देखने दूँगा, और अपना पूर्ण प्रकटन देखने दूँगा, जिन्हें युगों-युगों से राजाओं द्वारा सताया गया है। मैं संपूर्ण ब्रह्मांड पर कार्य करूँगा और मैं महान कार्य करूँगा, और अंत के दिनों में मनुष्य के सामने अपनी पूरी महिमा और अपने सभी कर्म प्रकट कर दूँगा। मैं अपना महिमामय मुखमंडल उसकी पूर्णता में उन लोगों को, जिन्होंने कई वर्षों से मेरी प्रतीक्षा की है और जो मुझे सफेद बादल पर सवार होकर आते हुए देखने के लिए लालायित रहे हैं, और उस इस्राएल को, जिसने मेरे एक बार फिर प्रकट होने की लालसा की है, और उस पूरी मनष्यजाति को दिखाऊँगा, जो मुझे कष्ट पहुँचाती हैं, ताकि सभी यह जान सकें कि मैंने बहुत पहले ही अपनी महिमा हटा ली है और उसे पूरब में ले आया हूँ, और वह अब यहूदिया में नहीं है। कारण, अंत के दिन पहले ही आ चुके हैं!(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, सात गर्जनाएँ होती हैं—भविष्यवाणी करती हैं कि राज्य का सुसमाचार पूरे ब्रह्मांड में फैल जाएगा)। इस वीडियो ने सच में मुझे बहुत प्रभावित किया। अंत के दिनों में परमेश्वर अपनी महिमा इस्राएल से पूर्व में लेकर आता है। परमेश्वर का सबसे अधिक विरोध करने वाले राष्ट्रों में सबसे आगे चीन में वह प्रकट हुआ है, पूरी दुनिया में तमाम लोगों पर विजय पाकर उन्हें बचाने के लिए अपने कार्य का निर्वहन कर सत्य व्यक्त कर रहा है। यह परमेश्वर की सर्वशक्तिमत्ता और बुद्धि है। अतीत में, मैं परमेश्वर के कार्य को नहीं जानती थी। अपनी धारणाओं के आधार पर, मैं सोचती थी कि अपनी वापसी पर प्रभु इस्राएल में प्रकट होगा। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को पढ़ने के बाद ही मैं परमेश्वर के चीन में प्रकट होकर कार्य करने के अविश्वसनीय महत्व को समझ पाई।

मैंने 1997 में प्रभु में आस्था रखी, और मुझमें खोज करने का जोश था। जब भी समय मिलता, मैं कलीसिया में स्वयंसेवा करती, मैं निष्ठा से हर महीने चंदा दिया करती। अप्रैल 2011 में, एक नौकरी के लिए मैं दक्षिण कोरिया आ गई, और मैं काम में चाहे जितनी भी व्यस्त होती, रविवार की सेवा में ज़रूर भाग लेती। मगर पादरी के धर्मोपदेश हमेशा पुराने ही होते। सहभागी या तो ऊंघते या फिर आपस में बातें करने लगते। इसमें जरा भी आनंद या पोषण नहीं मिलता था। धीरे-धीरे मेरे मन में सेवाओं में जाने की इच्छा बुझ गई। लेकिन एक ईसाई होने के कारण, इनमें भाग न लेना मुझे ठीक नहीं लगता था। इसलिए मैं जबरदस्ती जाया करती।

फिर एक दिन संयोग से, कलीसिया वाली अपनी एक पुरानी सहेली से मेरी मुलाकात हुई। उसने मुझे अपने घर बुलाया, उसकी सहेली ऑड्री भी वहाँ आई। हम पहली बार मिले, मगर हमारी तुरंत जम गई। हमने अपने हालात और कलीसिया के वीरान होने के बारे में चर्चा की। ऑड्री ने मुझे संगति में बताया कि किस तरह परमेश्वर के नया कार्य करने के कारण कलीसिया वीरान हो रही है, पवित्र आत्मा का कार्य कहीं और चला गया है, हमें प्रभु का स्वागत करने के लिए परमेश्वर के प्रकटन और कार्य, उसकी वाणी को पहचानने की कोशिश करने और जीवित सिंचन का पोषण प्राप्त करने वाली बुद्धिमान कुँवारियों जैसा होना चाहिए। उनकी बात मुझे बहुत प्रबुद्ध करने वाली लगी। फिर ऑड्री ने कहा : “प्रभु यीशु पहले ही वापस आ चुका है, वह सर्वशक्तिमान परमेश्वर के रूप में देहधारी हुआ है, अपना कार्य करने के लिए चीन में प्रकट हुआ है, सत्य अभिव्यक्त कर रहा है और परमेश्वर के घर से शुरू करके मानव जाति को पूरी तरह शुद्ध करने और बचाने के लिए न्याय का कार्य कर रहा है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने राज्य का युग शुरू किया है और अनुग्रह का युग पूरा किया है। वो सभी जो अंत के दिनों के उसके कार्य को स्वीकार करते हैं, बुद्धिमान कुँवारियां हैं और वे परमेश्वर के सिंहासन के सामने लाए जा रहे हैं; वे परमेश्वर के वचनों की आपूर्ति प्राप्त कर रहे हैं और मेमने के विवाह भोज में शामिल हो रहे हैं।” मैं ऑड्री की बात सुनकर वाकई चौंक गई, बड़ी मुश्किल से उस पर यकीन कर सकी : “प्रभु वापस आ गया है? वह भी चीन में? पुराने और नए नियम के समय में, परमेश्वर ने अपना कार्य इस्राएल में किया, बाइबल में कहा गया है : ‘उस दिन वह जैतून के पर्वत पर पाँव रखेगा, जो पूर्व की ओर यरूशलेम के सामने है; तब जैतून का पर्वत पूर्व से लेकर पश्‍चिम तक बीचोबीच से फटकर बहुत बड़ा खड्ड हो जाएगा; तब आधा पर्वत उत्तर की ओर और आधा दक्षिण की ओर हट जाएगा(जकर्याह 14:4)। अंत के दिनों में, प्रभु को इस्राएल में जैतून पहाड़ पर आना चाहिए। वह चीन में कैसे हो सकता है?” मैंने अपनी उलझन ऑड्री को बताई।

उन्होंने बस मुस्कराकर कहा : “प्रभु की वापसी की सभी भविष्यवाणियाँ रहस्यमय हैं। हम उनका अर्थ नहीं समझ सकते जब तक वो पूरी न हो जाएं और जब तक हम समझ न जाएं कि परमेश्वर ने अपना कार्य कैसे किया है केवल तभी कोई समझ सकता है कि भविष्यवाणियों का क्या अर्थ था। हमें अपनी धारणाओं और कल्पनाओं के आधार पर भविष्यवाणियों के शाब्दिक अर्थ को इस्तेमाल कर परमेश्वर के कार्य को सीमित नहीं करना चाहिए क्योंकि हो सकता है ऐसा करके हम परमेश्वर का प्रतिरोध करें। उदाहरण के लिए, फरीसियों को ले लें। उन्होंने मसीहा के आने की भविष्यवाणी को अच्छी तरह जान लिया था, पर वे उसके शाब्दिक अर्थ से चिपके रहे, सोचते रहे कि जब प्रभु आए तो उसे मसीहा ही कहा जाना चाहिए। नतीजा यह हुआ कि जब प्रभु यीशु आए और उन्हें मसीहा नहीं कहा गया, उन्होंने सोचा कि यह भविष्यवाणी के शब्दों से नहीं मिलता और उन्होंने प्रभु यीशु का इनकार करने और उसका प्रतिरोध करने में सारी ताकत लगा दी। इससे फर्क नहीं पड़ता था कि प्रभु यीशु ने जो प्रचार किया वह कितना आधिकारिक और शक्तिशाली था—उन्होंने इसे स्वीकार नहीं किया, और अंततः उन्हें सूली पर चढ़ा दिया गया। वे परमेश्वर द्वारा शापित और दंडित किए गए। अगर हम बाइबल में भविष्यवाणियों के शब्दों के आधार पर परमेश्वर के कार्य को सीमित कर दें, और परमेश्वर के प्रकटन और कार्य के तथ्यों की जांच-पड़ताल न करें, तो हम भी फरीसियों जैसी ही गलती कर सकते हैं। अंत के दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर परमेश्वर के घर से न्याय का कार्य शुरू करता है, पूर्व में एक शानदार चमकती रोशनी की तरह प्रकट होकर, इंसान को शुद्ध करने और बचाने वाला संपूर्ण सत्य व्यक्त करता है। सिर्फ करीब 20 साल में, सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अंत के दिनों का कार्य पूरे चीन में फैल गया है, और यहां तक कि अब दुनिया भर में दूसरे राष्ट्रों में भी पहुँच गया है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों का संकलन, ‘वचन देह में प्रकट होता है’ का 20 से भी अधिक भाषाओं में अनुवाद किया जा चुका है, यह दुनिया भर के लोगों द्वारा खोजबीन और जांच-पड़ताल के लिए ऑनलाइन प्रकाशित कर दिया गया है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर का कार्य बिजली की तरह फैल गया है, पूरब से पश्चिम तक चमक रहा है, पूरी दुनिया को हिला रहा है और पूरी तरह से प्रभु यीशु की भविष्यवाणी को पूरा कर रहा है : ‘जैसे बिजली पूर्व से निकलकर पश्‍चिम तक चमकती है, वैसे ही मनुष्य के पुत्र का भी आना होगा(मत्ती 24:27)। और इसने मलाकी की पुस्तक 1:11 की भविष्यवाणी को भी साकार किया है : ‘क्योंकि उदयाचल से लेकर अस्ताचल तक जाति-जाति में मेरा नाम महान् है..., सेनाओं के यहोवा का यही वचन है।’” इसे सुनकर अचानक मेरे मन में कौंधा : प्रभु चीन में वापस आया है, इस्राएल में नहीं, बाइबल में इसकी भविष्यवाणी बहुत पहले की गई थी।

फिर, ऑड्री ने मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ कर सुनाया : “वास्तव में, परमेश्वर सभी चीज़ों का स्वामी है। वह संपूर्ण सृष्टि का परमेश्वर है। वह केवल इस्राएलियों का परमेश्वर नहीं है, न यहूदियों का; बल्कि वह संपूर्ण सृष्टि का परमेश्वर है। उसके कार्य के पिछले दो चरण इस्राएल में हुए, जिसने लोगों में कुछ निश्चित धारणाएँ पैदा कर दी हैं। वे मानते हैं कि यहोवा ने अपना कार्य इस्राएल में किया, और स्वयं यीशु ने अपना कार्य यहूदिया में किया, और इतना ही नहीं, कार्य करने के लिए उसने देहधारण किया—और जो भी हो, यह कार्य इस्राएल से आगे नहीं बढ़ा। परमेश्वर ने मिस्रियों या भारतीयों में कार्य नहीं किया; उसने केवल इस्राएलियों में कार्य किया। लोग इस प्रकार विभिन्न धारणाएँ बना लेते हैं, वे परमेश्वर के कार्य को एक निश्चित दायरे में बाँध देते हैं। वे कहते हैं कि जब परमेश्वर कार्य करता है, तो अवश्य ही उसे ऐसा चुने हुए लोगों के बीच और इस्राएल में करना चाहिए; इस्राएलियों के अलावा परमेश्वर किसी अन्य पर कार्य नहीं करता, न ही उसके कार्य का कोई बड़ा दायरा है। वे देहधारी परमेश्वर को नियंत्रित करने में विशेष रूप से सख़्त हैं और उसे इस्राएल की सीमा से बाहर नहीं जाने देते। क्या ये सब मानवीय धारणाएँ मात्र नहीं हैं? परमेश्वर ने संपूर्ण स्वर्ग और पृथ्वी और सभी चीजें बनाईं, उसने संपूर्ण सृष्टि बनाई, तो वह अपने कार्य को केवल इस्राएल तक सीमित कैसे रख सकता है? अगर ऐसा होता, तो उसके संपूर्ण सृष्टि की रचना करने का क्या तुक था? उसने पूरी दुनिया को बनाया, और उसने अपनी छह हजार वर्षीय प्रबंधन योजना केवल इस्राएल में नहीं, बल्कि ब्रह्मांड में प्रत्येक व्यक्ति पर कार्यान्वित की। ... यदि परमेश्वर मनुष्य की धारणाओं के अनुसार कार्य करता, तो वह केवल इस्राएलियों का ही परमेश्वर होता, और इस प्रकार वह अन्यजाति-राष्ट्रों के बीच अपने कार्य का विस्तार करने में असमर्थ होता, क्योंकि वह केवल इस्राएलियों का ही परमेश्वर होता, संपूर्ण सृष्टि का परमेश्वर नहीं। भविष्यवाणियों में कहा गया है कि यहोवा का नाम अन्यजाति-राष्ट्रों में खूब बढ़ेगा, कि वह अन्यजाति-राष्ट्रों में फैल जाएगा। यह भविष्यवाणी क्यों की गई थी? यदि परमेश्वर केवल इस्राएलियों का परमेश्वर होता, तो वह केवल इस्राएल में ही कार्य करता। इतना ही नहीं, वह इस कार्य का विस्तार न करता, और वह ऐसी भविष्यवाणी न करता। चूँकि उसने यह भविष्यवाणी की थी, इसलिए वह निश्चित रूप से अन्यजाति-राष्ट्रों में, प्रत्येक राष्ट्र में और समस्त भूमि पर, अपने कार्य का विस्तार करेगा। चूँकि उसने ऐसा कहा है, इसलिए वह ऐसा ही करेगा; यह उसकी योजना है, क्योंकि वह स्वर्ग और पृथ्वी तथा सभी चीज़ों का सृष्टिकर्ता प्रभु और संपूर्ण सृष्टि का परमेश्वर है। चाहे वह इस्राएलियों के बीच कार्य करता हो या संपूर्ण यहूदिया में, वह जो कार्य करता है, वह संपूर्ण ब्रह्मांड और संपूर्ण मानवता का कार्य होता है। आज जो कार्य वह बड़े लाल अजगर के राष्ट्र—एक अन्यजाति-राष्ट्र में—करता है, वह भी संपूर्ण मानवता का कार्य है। इस्राएल पृथ्वी पर उसके कार्य का आधार हो सकता है; इसी प्रकार, अन्यजाति-राष्ट्रों के बीच चीन भी उसके कार्य का आधार हो सकता है। क्या उसने अब इस भविष्यवाणी को पूरा नहीं किया है कि ‘यहोवा का नाम अन्यजाति-राष्ट्रों में खूब बढ़ेगा’?(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर समस्त सृजित प्राणियों का प्रभु है)

सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को पढ़ने के बाद ऑड्री ने संगति की : “परमेश्वर समस्त सृजन का प्रभु है, वह संपूर्ण ब्रह्मांड पर शासन करता है, सभी इंसानों की नियति पर राज करता है। परमेश्वर सिर्फ इस्राएलियों का परमेश्वर नहीं, बल्कि इससे भी ज्यादा वह समस्त सृष्टि का परमेश्वर है। परमेश्वर को किसी भी राष्ट्र में किन्हीं भी लोगों के बीच कार्य करने का अधिकार है। वह चाहे जिस देश में प्रकट होकर कार्य करे, उसका कार्य पूरी मानवजाति के लिए होता है, ताकि वह उनके विकास में उनकी अगुआई कर सके। उदाहरण के लिए, व्यवस्था के युग में, यहोवा परमेश्वर ने इस्राएल में कार्य किया, अपनी व्यवस्था की घोषणा की और व्यवस्था का युग शुरू किया। फिर, इस जमीन को एक केंद्र के रूप में इस्तेमाल करके, उसने धीरे-धीरे अपना कार्य दूसरे क्षेत्रों तक फैलाया, ताकि तमाम राष्ट्र और लोग उसके नाम को महान मानें, उसका आदर करें। अनुग्रह के युग में, प्रभु यीशु ने यहूदिया में छुटकारे का कार्य किया। लेकिन प्रभु यीशु ने सिर्फ यहूदियों को नहीं, पूरी मानवजाति को छुटकारा दिलाया। अब दो हजार साल बाद, प्रभु यीशु का सुसमाचार दुनिया के कोने-कोने में फैल चुका है। अंत के दिनों में, सर्वशक्तिमान परमेश्वर आ चुका है और उसने अपने कार्य को पूरी दुनिया में फैलाने से पहले चीन में प्रकट होकर कार्य शुरू कर दिया है। अब सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन और कार्य पूर्व की एक चमकदार रोशनी की तरह हैं, जो फैलकर पश्चिम के अनेक राष्ट्रों को गवाही दे रही है। विशाल आबादियों ने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों में परमेश्वर की वाणी को सुना है, वे उसके वचनों के न्याय और शुद्धिकरण को स्वीकार करने के लिए परमेश्वर के सिंहासन के सामने आए हैं। हम देख सकते हैं कि चाहे जो युग हो, जब परमेश्वर किन्हीं लोगों या किसी देश में प्रकट होकर कार्य करने का फैसला करता है तो वह हमेशा कार्य करने के लिए पहले एक जगह चुनता है, फिर उस जगह को एक उदाहरण के रूप में इस्तेमाल करके धीरे-धीरे दूसरी जगहों में अपने कार्य को फैलाता है, ताकि वह इंसान को बचाने का कार्य पूरा कर सके। परमेश्वर के कार्य का यही सिद्धांत है। अगर हम यह सोचकर कि परमेश्वर ने व्यवस्था के युग और अनुग्रह के युग में इस्राएल में कार्य किया, अपनी धारणाओं और कल्पनाओं के मुताबिक चलते रहें, तो फिर परमेश्वर को सिर्फ इस्राएल का परमेश्वर होना चाहिए, सुसमाचार सिर्फ इस्राएल से ही आ सकता है, सिर्फ इस्राएल के लोग ही परमेश्वर के वास्तविक चुने हुए लोग होंगे, और केवल वही उसके आशीष के योग्य होंगे, और परमेश्वर अन्य-जाति राष्ट्रों में प्रकट होकर कार्य नहीं करेगा, तो क्या हम परमेश्वर को सीमित नहीं कर देंगे? परमेश्वर ने कहा : ‘यहोवा का नाम अन्यजाति-राष्ट्रों में खूब बढ़ेगा,’ तो फिर इसे कैसे हासिल और पूरा किया जा सकेगा? परमेश्वर अंत के दिनों में देहधारी होकर नास्तिकता के शासन वाले देश चीन में अपना कार्य करता है, ताकि वह लोगों की धारणाओं को चूर-चूर कर सके। उसने दिखाया है कि वह नियमों के अनुसार नहीं, बल्कि अपनी योजना के अनुसार कार्य करता है। उसने हमें यह भी दिखाया है कि वह केवल इस्राएल के लोगों को ही नहीं, बल्कि नास्तिक लोगों को भी बचाता है और यह कि वह केवल इस्राएलियों का परमेश्वर नहीं बल्कि पूरी मानवता का परमेश्वर है। वह सभी सृजित वस्तुओं का परमेश्वर है। परमेश्वर चाहे कहीं भी प्रकट होकर कार्य करे, हमेशा उसका महत्व होता है, और वह हमेशा ऐसी जगह चुनता है, जो इंसान को बचाने के उद्देश्य के लिए उत्तम होती है।”

ऑड्री की संगति से मैंने बहुत शर्मिंदगी महसूस की। मैं सचमुच परमेश्वर को नहीं समझ पाई थी। यह जानकर कि व्यवस्था के युग और अनुग्रह के युग में परमेश्वर ने अपना कार्य इस्राएल में किया, मैं सोचती थी कि परमेश्वर सिर्फ इस्राएल में ही प्रकट होकर कार्य करेगा। अगर परमेश्वर अंत के दिनों में फिर से इस्राएल में अपना कार्य करता, तो मैंने उसे इस्राएलियों के परमेश्वर के रूप में और भी अधिक सीमित कर दिया होता और यह परमेश्वर को पूरी मानवजाति के परमेश्वर के रूप में नकारना होता! परमेश्वर कहाँ प्रकट होकर कार्य करेगा, यह हमेशा उसकी योजना और बुद्धि का द्योतक है। उसके कार्य को सीमित करना तो दूर, हम उसके कार्य के बारे में टिप्पणी करने लायक भी नहीं हैं। फिर भी मेरे मन में कुछ संदेह थे। चीन एक ऐसा देश है, जहां एक नास्तिक सरकार का शासन है। यह परमेश्वर को सबसे अधिक नकारने और उसका प्रतिरोध करने वाला देश है। अगर परमेश्वर का इरादा इस्राएल में प्रकट होकर कार्य करने का नहीं होता, तो वह अमेरिका या यूनाइटेड किंगडम जैसे राष्ट्रों में कार्य क्यों नहीं करता, जहां ईसाई धर्म मुख्य धर्म है? उसने कार्य करने के लिए बाकी सब जगहों को छोड़कर चीन को क्यों चुना है? मैंने ऑड्री से ये सवाल पूछ लिए। ऑड्री ने कहा, “सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने इस बारे में स्पष्ट कहा है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं : ‘यहोवा का कार्य दुनिया का सृजन था, वह आरंभ था; कार्य का यह चरण कार्य का अंत है, और यह समापन है। आरंभ में, परमेश्वर का कार्य इस्राएल के चुने हुए लोगों के बीच किया गया था और यह सभी जगहों में से सबसे पवित्र जगह पर एक नए युग का उद्भव था। कार्य का अंतिम चरण दुनिया का न्याय करने और युग को समाप्त करने के लिए सभी देशों में से सबसे अशुद्ध देश में किया जा रहा है। पहले चरण में, परमेश्वर का कार्य सबसे प्रकाशमान स्थान पर किया गया था और अंतिम चरण सबसे अंधकारमय स्थान पर किया जा रहा है, और इस अंधकार को बाहर निकालकर प्रकाश को प्रकट किया जाएगा और सभी लोगों पर विजय प्राप्त की जाएगी। जब इस सबसे अशुद्ध और सबसे अंधकारमय स्थान के लोगों पर विजय प्राप्त कर ली जाएगी और समस्त आबादी स्वीकार कर लेगी कि परमेश्वर है, जो कि सच्चा परमेश्वर है और हर व्यक्ति को पूरी तरह से विश्वास हो जाएगा, तब समस्त ब्रह्मांड में विजय का कार्य करने के लिए इस तथ्य का उपयोग किया जाएगा। कार्य का यह चरण प्रतीकात्मक है : एक बार इस युग का कार्य समाप्त हो गया, तो प्रबंधन का छह हजार वर्षों का कार्य पूरी तरह से समाप्त हो जाएगा। एक बार सबसे अंधकारमय स्थान के लोगों को जीत लिया गया, तो कहने की आवश्यकता नहीं कि अन्य जगह पर भी ऐसा ही होगा। इस तरह, केवल चीन में ही विजय का कार्य सार्थक प्रतीकात्मकता रखता है। चीन अंधकार की सभी शक्तियों का मूर्त रूप है और चीन के लोग उन सभी लोगों का प्रतिनिधित्व करते हैं जो देह के हैं, शैतान के हैं, मांस और रक्त के हैं। चीनी लोग ही बड़े लाल अजगर द्वारा सबसे ज्यादा भ्रष्ट किए गए हैं, वही परमेश्वर के सबसे कट्टर विरोधी हैं, उन्हीं की मानवता सर्वाधिक अधम और अशुद्ध है, इसलिए वे समस्त भ्रष्ट मानवता के मूल आदर्श हैं। ... चीन के लोगों में भ्रष्टता, अशुद्धता, अधार्मिकता, विरोध और विद्रोहशीलता पूरी तरह से व्यक्त और विविध रूपों में प्रकट होते हैं। एक ओर, वे खराब क्षमता के हैं और दूसरी ओर, उनका जीवन और उनकी मानसिकता पिछड़ी हुई है, उनकी आदतें, सामाजिक वातावरण, जिस परिवार में वे जन्में हैं—सभी गरीब और सबसे पिछड़े हुए हैं। उनकी हैसियत भी निम्न है। इस स्थान में कार्य प्रतीकात्मक है, एक बार जब यह परीक्षा-कार्य पूरी तरह से संपन्न हो जाएगा, तो परमेश्वर का बाद का कार्य अधिक आसान हो जाएगा। यदि कार्य के इस चरण को पूरा किया जा सका, तो इसके बाद का कार्य अच्छी तरह से आगे बढ़ेगा। एक बार जब कार्य का यह चरण सम्पन्न हो जायेगा, तो बड़ी सफलता प्राप्त हो जाएगी और समस्त ब्रह्माण्ड में विजय का कार्य पूरी तरह समाप्त हो जायेगा। वास्तव में, एक बार तुम लोगों के बीच कार्य सफल होने पर, यह समस्त ब्रह्माण्ड में सफलता प्राप्त करने के बराबर होगा। यही इस बात की महत्ता है कि क्यों मैं तुम लोगों को एक आदर्श और नमूने के रूप में कार्य करने को कहता हूँ। विद्रोहशीलता, विरोध, अशुद्धता, अधार्मिकता—ये सभी इन लोगों में पाए जाते हैं और ये मानवजाति की समस्त विद्रोहशीलता का प्रतिनिधित्व करते हैं। वे वास्तव में कुछ हैं। इस प्रकार, उन्हें विजय के प्रतीक के रूप में लिया जाता है, एक बार जब वे जीत लिए गए तो वे स्वाभाविक रूप से दूसरों के लिए एक आदर्श और नमूने बन जाएँगे(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के कार्य का दर्शन (2))। परमेश्वर के वचनों से हमें पता चलता है कि परमेश्वर प्रत्येक चरण में अपने कार्य की जरूरत के आधार पर अपने कार्य की जगह और लक्ष्य को चुनता है। यह हमेशा एक निश्चित प्रयोजन से और हमेशा इंसान के उद्धार के लिए होता है। उदाहरण के लिए, परमेश्वर ने कार्य के पहले दो चरण इस्राएल में किए, क्योंकि इस्राएली परमेश्वर के चुने हुए लोग थे। उन्होंने परमेश्वर में विश्वास रखकर उसकी आराधना की, उनके पास परमेश्वर का भय मानने वाला दिल था और सभी इंसानों में वे सबसे कम भ्रष्ट थे। इस प्रकार परमेश्वर के लिए, उनके बीच कार्य कर, परमेश्वर की आराधना करने वालों का एक अनुकरणीय समूह बनाना आसान था। और इस तरह परमेश्वर का कार्य ज्यादा तेजी से और आसानी से फैल सकता था, ताकि सारी मानवजाति परमेश्वर के अस्तित्व और कार्य के बारे में जान सके और भी अधिक लोग परमेश्वर के सामने आकर उसका उद्धार पा सकें। इस्राएल में परमेश्वर के पहले दो चरणों का कार्य सही मायनों में सांकेतिक था। परमेश्वर ने पूरी तरह से अपने कार्य की जरूरत के मुताबिक ही इस्राएल को चुना। अंत के दिनों में, परमेश्वर न्याय और शुद्धिकरण का कार्य करता है। वह इंसान की भ्रष्टता और अधार्मिकता को उजागर कर उसका न्याय करने के लिए सत्य व्यक्त करता है, इस तरह वह सभी इंसानों के सामने अपना धार्मिक, क्रोधी और अपमान न किया जा सकने वाला स्वभाव प्रदर्शित करता है। इसलिए उदाहरण पेश करने के लिए उसे सबसे अधिक भ्रष्ट, सबसे अधिक परमेश्वर-विरोधी लोगों को चुनना होता है। ऐसा करके ही परमेश्वर उत्तम परिणाम हासिल कर सकता है। जैसा कि सब जानते हैं, पूरी मानवता में चीनी लोग ही शैतान द्वारा सबसे ज़्यादा भ्रष्ट किए गए लोग हैं। वे पूरी मानवता में सबसे ज़्यादा पिछड़े, अपवित्र, नीच, परमेश्वर को नकारने और परमेश्वर का प्रतिरोध करने वाली नस्ल हैं। वे तमाम भ्रष्ट मानवता का मूर्तरूप हैं। चीन में न्याय का कार्य कर और चीनी लोगों के भ्रष्ट स्वभाव को निशाना बनाकर, परमेश्वर बहुत गहरे और पैने ढंग से मानवजाति को प्रकट करता है, उसके द्वारा व्यक्त सत्य सबसे संपूर्ण होता है, जो उसके पवित्र और धार्मिक स्वभाव को प्रकाशित करने में सबसे समर्थ है। परमेश्वर चीन के चुने हुए लोगों पर अपने कार्य के जरिए व्यक्त सत्य का इस्तेमाल पूरी मानवजाति पर विजय पाने, उन्हें बचाने, उन्हें उसके पवित्र और धार्मिक स्वभाव को समझने देने के लिए करता है, ताकि वे सभी प्रशंसा करने के लिए परमेश्वर के सामने आ सकें। यही परमेश्वर के कार्य की बुद्धि है। अगर परमेश्वर सबसे भ्रष्ट लोगों को पूर्ण कर सकता है, तो फिर दूसरों को पूर्ण करना तो मामूली बात है, और फिर शैतान बुरी तरह से पराजित होगा। चीन में कार्य करने से, परमेश्वर को सबसे जबरदस्त गवाही और महानतम महिमा मिल जाएगी। अगर परमेश्वर का अंत के दिनों का कार्य इस्राएल में या अमेरिका और ब्रिटेन जैसे ईसाई धर्म प्रधान देशों में किया जाएगा, तो सारी मानवजाति पर विजय पाने और उन्हें बचाने का अंतिम लक्ष्य हासिल नहीं हो पाएगा। इसलिए न्याय-कार्य की जरूरतों के मुताबिक परमेश्वर चीन में प्रकट होकर कार्य कर रहा है, जो सबसे अधिक सार्थक है। परमेश्वर के कार्य के लक्ष्य, जगह और प्रत्येक चरण में उसके अंतिम प्रभाव से हम समझ सकते हैं कि परमेश्वर का कार्य सच में बुद्धिमत्तापूर्ण और अद्भुत है।” यह सुनकर मैंने जोश से कहा, “हाँ, इस्राएल परमेश्वर की आराधना करने वाला देश है और वहां के लोग सभी इंसानों में सबसे कम भ्रष्ट हैं। अगर प्रभु कार्य करने के लिए इस्राएल में वापस आए, तो परमेश्वर के विजय-कार्य का परिणाम अच्छा नहीं होगा। सभी राष्ट्रों में, चीन सबसे ज्यादा पिछड़ा हुआ और परमेश्वर-विरोधी राष्ट्र है, इसलिए चीनियों पर विजय पाने से न सिर्फ उसके विजय-कार्य का सबसे बढ़िया परिणाम मिलेगा, वह अपनी सर्वशक्तिमत्ता, अपनी बुद्धि और अद्भुत कार्यों को भी अच्छी तरह प्रकट कर पाएगा। अब मैं समझ सकती हूँ कि परमेश्वर का अंत के दिनों में चीन में कार्य करना सच में कितना अधिक महत्वपूर्ण है! मैं परमेश्वर के कार्य को नहीं जानती थी, मगर धारणाओं और कल्पनाओं से परमेश्वर के कार्य को सीमित कर रही थी—मैं कितनी अहंकारी थी!”

तब ऑड्री ने कहा : “परमेश्वर अपना कार्य चाहे जैसे और जहाँ भी करे, खोजने के लिए सत्य और रहस्य हमेशा होते हैं। अभी हमें प्रभु की वापसी का स्वागत कैसे करना चाहिए, इस बारे में प्रभु यीशु ने हमें बताया : ‘आधी रात को धूम मची : “देखो, दूल्हा आ रहा है! उससे भेंट करने के लिये चलो”(मत्ती 25:6)। ‘मेरी भेड़ें मेरा शब्द सुनती हैं(यूहन्ना 10:27)। प्रकाशितवाक्य में भी यह भविष्यवाणी है : ‘देख, मैं द्वार पर खड़ा हुआ खटखटाता हूँ; यदि कोई मेरा शब्द सुनकर द्वार खोलेगा, तो मैं उसके पास भीतर आकर उसके साथ भोजन करूँगा और वह मेरे साथ(प्रकाशितवाक्य 3:20)। इसलिए प्रभु के आने का स्वागत करने और उसके प्रकटन की खोज करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण बात परमेश्वर की वाणी सुनना है। अगर हमें प्रभु की वापसी की गवाही मिलती है, तो हमें खोजना और जांच-पड़ताल करनी होती है, यह देखना होता है कि क्या इसमें सत्य की अभिव्यक्ति है और क्या यह परमेश्वर की वाणी है। क्योंकि जहां भी सत्य अभिव्यक्त होगा, वहां परमेश्वर की वाणी भी होगी, उसका प्रकटन और कार्य भी होगा। यह बिल्कुल सच है। जैसे कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने कहा : ‘लोग किसी चीज़ को जितना अधिक असंभव मानते हैं, उसके घटित होने की उतनी ही अधिक संभावना होती है, क्योंकि परमेश्वर की बुद्धि स्वर्ग से ऊँची उड़ान भरती है, परमेश्वर के विचार मनुष्य के विचारों से ऊँचे हैं, और परमेश्वर का कार्य मनुष्य की सोच और धारणा की सीमाओं के पार जाता है। जितना अधिक कुछ असंभव होता है, उतना ही अधिक उसमें सत्य होता है, जिसे खोजा जा सकता है; कोई चीज़ मनुष्य की धारणा और कल्पना से जितनी अधिक परे होती है, उसमें परमेश्वर की इच्छा उतनी ही अधिक होती है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि भले ही वह स्वयं को कहीं भी प्रकट करे, परमेश्वर फिर भी परमेश्वर है, और उसका सार उसके प्रकटन के स्थान या तरीके के आधार पर कभी नहीं बदलेगा। परमेश्वर के पदचिह्न चाहे कहीं भी हों, उसका स्वभाव वैसा ही बना रहता है, और चाहे परमेश्वर के पदचिह्न कहीं भी हों, वह समस्त मनुष्यजाति का परमेश्वर है, ठीक वैसे ही, जैसे कि प्रभु यीशु न केवल इस्राएलियों का परमेश्वर है, बल्कि वह एशिया, यूरोप और अमेरिका के सभी लोगों का, और इससे भी अधिक, समस्त ब्रह्मांड का एकमात्र परमेश्वर है। तो आओ, हम परमेश्वर की इच्छा खोजें और उसके कथनों में उसके प्रकटन की खोज करें, और उसके पदचिह्नों के साथ तालमेल रखें! परमेश्वर सत्य, मार्ग और जीवन है। उसके वचन और उसका प्रकटन साथ-साथ विद्यमान हैं, और उसका स्वभाव और पदचिह्न मनुष्यजाति के लिए हर समय खुले हैं(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परिशिष्ट 1: परमेश्वर के प्रकटन ने एक नए युग का सूत्रपात किया है)।” सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों ने मेरी उलझन को पूरी तरह से खत्म कर दिया। इन वचनों ने परमेश्वर के प्रकटन और कार्य के रहस्यों का खुलासा कर दिया, मेरी पुरानी धारणाओं को निर्णायक तौर पर काट दिया। मैं वर्षों से प्रभु के वापस आने का स्वागत करने को तरस रही थी, लेकिन कभी मुझे एहसास नहीं हुआ कि मैं परमेश्वर के प्रकटन और कार्य को अपनी कल्पनाओं और बाइबल के शब्दों तक ही सीमित कर रही थी। मैं कितनी अनजान और अंधी थी! सभा के समापन के बाद, मैंने आगे बढ़कर ऑड्री से सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा व्यक्त “वचन देह में प्रकट होता है” की एक प्रति मांगी।

सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को पढ़कर मैंने जाना कि कैसे वे बाइबल के बहुत-से रहस्यों का खुलासा करते हैं, जैसे कि इंसान के उद्धार के लिए परमेश्वर की छह-हजार वर्षीय प्रबंधन योजना, बाइबल की अंदरूनी कहानी और तीन चरणों में परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर के नामों का अर्थ, देहधारी होने का रहस्य, अंत के दिनों में परमेश्वर के न्याय कार्य का महत्व, परमेश्वर किस प्रकार से सभी किस्मों के लोगों के परिणामों और मंजिलों को निर्धारित करता है, किस प्रकार से मसीह का राज्य यहीं धरती पर साकार होगा, आदि-आदि। सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने सत्यों की इतनी समृद्ध श्रृंखला अभिव्यक्त की है, और ये वो सभी रहस्य और सत्य हैं जो मैंने पहले कभी नहीं सुने थे। परमेश्वर के सिवाय दूसरा कोई भी इन रहस्यों का खुलासा नहीं कर सकता। सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा अभिव्यक्त वचनों में अधिकार, सामर्थ्य और प्रताप भरा हुआ है। ये वास्तव में परमेश्वर के वचन हैं—वे परमेश्वर की वाणी हैं। मैं बिल्कुल निश्चित हो गई कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही वापस आया हुआ प्रभु यीशु है। मैंने बेझिझक होकर सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य को स्वीकार कर लिया, और अब मैं मेमने के पदचिह्नों का अनुसरण कर रही हूँ।

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