22. एक पादरी को उपदेश देने की कहानी
इसी साल अप्रैल की एक शाम, अचानक, एक अगुआ ने मुझसे कहा कि एक वृद्ध पादरी, जिसे आस्था में पचास वर्ष से ज्यादा हो गये हैं, परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य की जाँच करना चाहता है—वह काओजिया गाँव के पादरी काओ ही थे। मुझे उनके पास जाकर गवाही देनी थी। अगुआ ने बताया कि पादरी काओ कई देशों में धर्म प्रचार कर चुके हैं, यहाँ तक कि जब सीसीपी ने उन्हें धार्मिक विश्वास के कारण कैद किया, तब भी उन्होंने परमेश्वर का परित्याग नहीं किया और वह प्रभु के सच्चे विश्वासी हैं। यह सुनकर, मुझे कई पादरियों और एल्डरों का ध्यान आया जिनसे मैं सुसमाचार का प्रचार करते हुए मिली थी। अधिकांश लोग बाइबल के शब्दों और भ्रांत धार्मिक धारणाओं से चिपके मिले। उनके लिये परमेश्वर की वाणी को पहचानना या सत्य को स्वीकारना मुश्किल था। उनके लिये अपना पद और अपनी आमदनी सर्वोपरि थे। कुछ ने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन सुनकर माना कि वे ही सत्य हैं, पर सर्वशक्तिमान परमेश्वर को स्वीकार नहीं किया। क्या यह बूढ़ा पादरी सच में सत्य को स्वीकार कर पायेगा? या दूसरों की तरह अपनी भ्रांत धार्मिक धारणाओं से हठपूर्वक चिपका रहेगा? मैं भी काफी घबरायी हुई थी—कुछ वर्षों से दूसरे काम देखने के कारण मैंने हाल फिलहाल सुसमाचार का प्रसार नहीं किया था। अब मुझे अचानक इस वृद्ध पादरी का सामना करना पड़ा, जो बाइबल संबंधी ज्ञान और धार्मिक धारणाओं में गले तक डूबा हुआ था। अगर मैंने सत्य के बारे में स्पष्ट रूप से संगति नहीं की और उसकी भ्रांत धार्मिक धारणाओं का समाधान नहीं किया, तो कहीं अपने काम में नाकाम तो नहीं हो जाऊँगी? तब मैंने परमेश्वर के वचनों पर विचार किया : “लोगों का विश्वास तब आवश्यक होता है, जब कोई चीज खुली आँखों से न देखी जा सकती हो, और तुम्हारा विश्वास तब आवश्यक होता है, जब तुम अपनी धारणाएँ नहीं छोड़ पाते। जब तुम परमेश्वर के कार्य के बारे में स्पष्ट नहीं होते, तो आवश्यक होता है कि तुम विश्वास बनाए रखो, रवैया दृढ़ रखो और गवाह बनो” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जिन्हें पूर्ण बनाया जाना है उन्हें शोधन से गुजरना होगा)। “पवित्र आत्मा इस सिद्धांत के द्वारा काम करता है : लोगों के सहयोग से, उनके द्वारा सक्रियतापूर्वक परमेश्वर की प्रार्थना करने, उसे खोजने और उसके अधिक निकट आने से परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं, और पवित्र आत्मा द्वारा उन्हें प्रबुद्ध और रोशन किया जा सकता है। ऐसा नहीं है कि पवित्र आत्मा एकतरफ़ा कार्य करता है, या मनुष्य एकतरफ़ा कार्य करता है। दोनों ही अपरिहार्य हैं, और लोग जितना अधिक सहयोग करते हैं, और वे जितना अधिक परमेश्वर की अपेक्षाओं के मानकों को प्राप्त करने की कोशिश करते हैं, पवित्र आत्मा का कार्य उतना ही अधिक बड़ा होता है” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, वास्तविकता को कैसे जानें)। यह सच है। इस संभावित सुसमाचार प्राप्तकर्ता से मिलना परमेश्वर की ही व्यवस्था थी। भले ही मैं पहले पादरियों और एल्डरों को सुसमाचार सुना नहीं पायी थी, पर मैं उन सभी पर परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य को स्वीकार न कर पाने की तोहमत नहीं लगा सकती थी। मुझे परमेश्वर पर विश्वास रखकर सहयोग के रूप में इसकी कीमत चुकानी थी। परमेश्वर की भेड़ें उसकी वाणी सुनती हैं—जब तक वह सत्य के लिये बेताब है और सत्य का मार्ग जाँचने को तैयार है, तब तक उसे परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य की गवाही देना मेरा कर्तव्य है। अगर थोड़ी-सी भी उम्मीद हो, तो मैं हार नहीं मानूँगी। परमेश्वर पर भरोसा रखना और प्रेम और धैर्य के साथ संगति करना मेरी जिम्मेदारी थी—तब मेरे मन पर कोई बोझ या पछतावा नहीं रहेगा। इन विचारों ने आखिरकार मुझे विश्वास दिलाया।
पादरी काओ से भेंट होने पर मैंने प्रभु की वापसी पर उनके विचार पूछे। उन्होंने दृढ़ता से कहा, “बीस साल पहले, कुछ लोगों ने मुझे कई बार सुसमाचार सुनाया। उन्होंने गवाही दी कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही लौटकर आया प्रभु यीशु है, जो अंत के दिनों में सत्य की अभिव्यक्ति और न्याय का कार्य कर रहा है। उन्होंने कहा कि बाइबल में परमेश्वर के पिछले वचन और कार्य दर्ज हैं—अब प्रभु यीशु ने लौटकर नये वचन व्यक्त किए हैं, और सर्वशक्तिमान परमेश्वर के नये वचन पढ़कर और उन्हें सच्चे मन से स्वीकार कर ही मैं सत्य को समझ सका और परमेश्वर द्वारा बचा लिया गया। यह सुनकर, मैं इसे स्वीकार नहीं कर सकी—पौलुस ने बहुत स्पष्ट रूप से कहा था, ‘सम्पूर्ण पवित्रशास्त्र परमेश्वर की प्रेरणा से रचा गया है’ (2 तीमुथियुस 3:16)। अर्थात, बाइबल परमेश्वर का वचन है, ईसाई धर्मग्रंथ है, जिसे नकारा नहीं जा सकता। स्वर्ग और धरती मिट जायेंगे; परमेश्वर के वचन कायम रहेंगे। इसलिए, विश्वासियों को हमेशा बाइबल अवश्य पढ़नी चाहिए और उसका पालन करना चाहिए। जानती थी कि वह गलत हैं और अब उनकी संगति नहीं चाहती थी।” मैंने कहा : “पादरी काओ, आपके ऐसा सोचने का कारण मैं समझ सकती हूँ। पौलुस ने जो कहा उसके आधार पर धार्मिक जगत के अधिकांश लोग मान बैठते हैं कि बाइबल के सभी वचन परमेश्वर के वचन हैं। लेकिन क्या यह कथन सच में तथ्यों के अनुरूप है?” पादरी काओ ने कहा, “बेशक तथ्यों के अनुरूप है।” मैंने कहा, “बाइबल पूरी तरह से परमेश्वर का वचन है या नहीं, इसका सटीक जवाब बहुत पहले ही सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों में दिया जा चुका है। क्यों न अब हम वे वचन पढ़ लें?” वह दृढ़ दिख रहे थे लेकिन हामी भरने से पहले झिझककर बोले : “अब जब हम यहाँ हैं ही, तो पढ़ लेते हैं।” तो, हमने उन्हें सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन सुनाये।
सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, “आज लोग यह विश्वास करते हैं कि बाइबल परमेश्वर है और परमेश्वर बाइबल है। इसलिए वे यह भी विश्वास करते हैं कि बाइबल के सारे वचन ही वे वचन हैं, जिन्हें परमेश्वर ने बोला था, और कि वे सब परमेश्वर द्वारा बोले गए वचन थे। जो लोग परमेश्वर में विश्वास करते हैं, वे यह भी मानते हैं कि यद्यपि पुराने और नए नियम की सभी छियासठ पुस्तकें लोगों द्वारा लिखी गई थीं, फिर भी वे सभी परमेश्वर की अभिप्रेरणा द्वारा दी गई थीं, और वे पवित्र आत्मा के कथनों के अभिलेख हैं। यह मनुष्य की गलत समझ है, और यह तथ्यों से पूरी तरह मेल नहीं खाती। वास्तव में, भविष्यवाणियों की पुस्तकों को छोड़कर, पुराने नियम का अधिकांश भाग ऐतिहासिक अभिलेख है। नए नियम के कुछ धर्मपत्र लोगों के व्यक्तिगत अनुभवों से आए हैं, और कुछ पवित्र आत्मा की प्रबुद्धता से आए हैं; उदाहरण के लिए, पौलुस के धर्मपत्र एक मनुष्य के कार्य से उत्पन्न हुए थे, वे सभी पवित्र आत्मा की प्रबुद्धता के परिणाम थे, और वे कलीसियाओं के लिए लिखे गए थे, और वे कलीसियाओं के भाइयों एवं बहनों के लिए प्रेरणा और प्रोत्साहन के वचन थे। वे पवित्र आत्मा द्वारा बोले गए वचन नहीं थे—पौलुस पवित्र आत्मा की ओर से नहीं बोल सकता था, और न ही वह कोई नबी था, और उसने उन दर्शनों को तो बिलकुल नहीं देखा था जिन्हें यूहन्ना ने देखा था। उसके धर्मपत्र इफिसुस, कुरिंथुस और गलातिया की कलीसियाओं, और अन्य कलीसियाओं के लिए लिखे गए थे। और इस प्रकार, नए नियम में पौलुस के धर्मपत्र वे धर्मपत्र हैं, जिन्हें पौलुस ने कलीसियाओं के लिए लिखा था, और वे पवित्र आत्मा की अभिप्रेरणाएँ नहीं हैं, न ही वे पवित्र आत्मा के प्रत्यक्ष कथन हैं। वे महज प्रेरणा, सुविधा और प्रोत्साहन के वचन हैं, जिन्हें उसने अपने कार्य के दौरान कलीसियाओं के लिए लिखा था। इस प्रकार वे पौलुस के उस समय के अधिकांश कार्य के अभिलेख भी हैं। वे प्रभु में विश्वास करने वाले सभी भाई-बहनों के लिए लिखे गए थे, ताकि उस समय कलीसियाओं के भाई-बहन उसकी सलाह मानें और प्रभु यीशु द्वारा बताए गए पश्चात्ताप के मार्ग पर बने रहें” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, बाइबल के विषय में (3))। “बाइबल में हर चीज़ परमेश्वर के द्वारा व्यक्तिगत रूप से बोले गए वचनों का अभिलेख नहीं है। बाइबल बस परमेश्वर के कार्य के पिछले दो चरण दर्ज करती है, जिनमें से एक भाग नबियों की भविष्यवाणियों का अभिलेख है, और दूसरा भाग युगों-युगों में परमेश्वर द्वारा इस्तेमाल किए गए लोगों द्वारा लिखे गए अनुभवों और ज्ञान का अभिलेख है। मनुष्य के अनुभव उसके मतों और ज्ञान से दूषित होते हैं, और यह एक अपरिहार्य चीज़ है। बाइबल की कई पुस्तकों में मनुष्य की धारणाएँ, पूर्वाग्रह और बेतुकी समझ शामिल हैं। बेशक, अधिकतर वचन पवित्र आत्मा की प्रबुद्धता और रोशनी का परिणाम हैं और वे सही समझ हैं—फिर भी अभी यह नहीं कहा जा सकता कि वे पूरी तरह से सत्य की सटीक अभिव्यक्ति हैं। कुछ चीज़ों पर उनके विचार व्यक्तिगत अनुभव से प्राप्त ज्ञान या पवित्र आत्मा की प्रबुद्धता से बढ़कर कुछ नहीं हैं। नबियों के पूर्वकथन परमेश्वर द्वारा व्यक्तिगत रूप से निर्देशित किए गए थे : यशायाह, दानिय्येल, एज्रा, यिर्मयाह और यहेजकेल जैसों की भविष्यवाणियाँ पवित्र आत्मा के सीधे निर्देशन से आई थीं; ये लोग द्रष्टा थे, उन्होंने भविष्यवाणी के आत्मा को प्राप्त किया था, और वे सभी पुराने नियम के नबी थे। व्यवस्था के युग के दौरान यहोवा की अभिप्रेरणाओं को प्राप्त करने वाले लोगों ने अनेक भविष्यवाणियाँ की थीं, जिन्हें सीधे यहोवा के द्वारा निर्देशित किया गया था” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, बाइबल के विषय में (3))।
जब हमने परमेश्वर के वचन पढ़े, तो पादरी काओ ध्यान से सुनते हुए सिर हिला रहा था। उसके बाद, मैंने सहभागिता की : “सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन बहुत स्पष्ट हैं—बाइबल सिर्फ परमेश्वर के कार्य के पिछले दो चरणों का दस्तावेज है। यहोवा परमेश्वर और प्रभु यीशु के वचन, और नबियों द्वारा सुनाए गये परमेश्वर के वचन के अलावा, बाकी सब ऐतिहासिक रिकॉर्ड और मानवीय अनुभव हैं। बाइबल में न केवल परमेश्वर के, बल्कि मनुष्य और शैतान के भी वचन शामिल हैं। हमें इनके बीच अंतर समझना चाहिए, न कि उन्हें मिला देना चाहिए। जैसे पुराने नियम में यशायाह, एलिय्याह या यहेजकेल जैसे नबियों की भविष्यवाणियों को दर्ज किया गया है। उनके वचनों से पहले, इसमें हमेशा कुछ ऐसा लिखा होता है ‘इस प्रकार यहोवा कहता है,’ या ‘यहोवा ने उससे कहा’—यह साबित करता है कि वह सीधे परमेश्वर के वचन व्यक्त कर रहे थे। लेकिन, धर्मपत्र मानवीय अनुभव हैं, एक मानवीय अभिलेख हैं। पौलुस जैसे कलीसियाओं को पत्र, उसका अपना अनुभव और समझ थी। जब पहले भाई-बहनों को पौलुस के पत्र मिले, तो वह कहते थे ‘पौलुस का पत्र आया है।’ उन्होंने कभी नहीं कहा कि ‘परमेश्वर के वचन आ गये हैं,’ है न? इसलिए धर्मपत्रों को परमेश्वर के वचन नहीं कहा जा सकता। बाइबल में मनुष्य और शैतान के वचन उनके परमेश्वर के वचन होने का दावा करना, क्या यह ईश-निंदा नहीं है? इसका मतलब, यह विश्वास कि ‘बाइबल पूरी तरह से परमेश्वर से प्रेरित है और इसमें सिर्फ परमेश्वर के वचन हैं’ मौलिक रूप से गलत है।”
मेरी बात सुनकर वह दंग रह गया। उसने उत्साह से मुझे बताया, “मुझे याद है, धर्मशास्त्र के शिक्षक ने कहा था कि बाइबल में सब कुछ परमेश्वर-प्रेरित है, इसमें परमेश्वर के वचन हैं। हम इतने वर्षों से यही तो कह रहे हैं। क्या पौलुस इस बारे में गलत हो सकता था?” यह सुनकर, मेरा दिल धक से रह गया। उसे सिर हिलाते हुए देखकर मुझे लगा था कि समझ गया है, लेकिन वह बिल्कुल समझ नहीं पाया था। क्या पादरी काओ भी दूसरे धार्मिक अगुआओं जैसा ही था, जिन्हें परमेश्वर के वचनों की समझ नहीं थी? लेकिन फिर मैंने सोचा, “यह बूढ़ा पादरी दशकों से धार्मिक धारणाओं से जुड़ा है—क्या वह उन्हें इतनी आसानी से छोड़ सकता है? मुझे धैर्यपूर्वक सहभागिता करनी होगी।” इसके बाद, मैंने कहा : “फिलहाल इसकी चिंता ना करो कि पौलुस सही था या गलत। तथ्यों पर ध्यान दो। पादरी काओ, तुम्हें पता ही होगा कि बाइबल की रचना कैसे हुई थी। प्रभु के कितने साल बाद पौलुस ने 2 तीमुथियुस लिखी थी?” उसने बेझिझक कहा कि साठ साल से भी ज्यादा समय के बाद। “और प्रभु के नये नियम की रचना कितने वर्षों के बाद हुई?” बोला, तीन सौ साल बाद। तो मैंने कहा, “अब सोचो—जब पौलुस ने 2 तीमुथियुस लिखी, तो क्या तब नया नियम मौजूद था?” उसने चौंककर कहा, “नहीं।” फिर मैंने बात जारी रखी : “अगर नहीं, तो क्या पौलुस के वचनों, ‘सम्पूर्ण पवित्रशास्त्र परमेश्वर की प्रेरणा से रचा गया है’ में नया नियम शामिल है?” उसने विस्फारित नेत्रों से कहा, “मैं समझ गया। पौलुस के शब्दों में नया नियम शामिल नहीं हो सकता था। प्रभु का धन्यवाद! मैंने इसके बारे में पहले कैसे नहीं सोचा? इतने वर्षों के विश्वास में, हमने हमेशा माना कि ‘सम्पूर्ण पवित्रशास्त्र परमेश्वर की प्रेरणा से रचा गया है, और यह उसके वचन है,’ और हर जगह इसका प्रचार किया गया है। हमने इस बयान की सच्चाई पर कभी सवाल नहीं उठाया। इस सहभागिता से, अब मुझे समझ आया है—बाइबल पूरी तरह से परमेश्वर का वचन नहीं है, मेरी दशकों पुरानी धारणा में सुधार की आवश्यकता है। परमेश्वर का धन्यवाद!” पादरी काओ की धारणा का समाधान होते देखकर, मुझे उसे सुसमाचार का उपदेश देते हुये ज्यादा आत्मविश्वास महसूस हुआ।
मैंने उसके साथ संगति की : “परमेश्वर ने अंत के दिनों में सत्य के लाखों वचन व्यक्त करते हुए अपना न्याय का कार्य करने के लिये देहधारण किया है—न सिर्फ बाइबल के रहस्यों का खुलासा करने के लिये, बल्कि अपनी 6,000 साल की प्रबंधन योजना के सभी रहस्यों के लिये भी, जैसे उसके काम के तीन चरण, उसके नाम और उसके देहधारण के रहस्य। सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने शैतान द्वारा मनुष्य की भ्रष्टता का सत्य भी प्रकट किया है, परमेश्वर और विभिन्न शैतानी स्वभावों के प्रति प्रतिरोध करने की मनुष्य की शैतानी प्रकृति का खुलासा किया है, और हमें पाप से बचने और उसके द्वारा बचाये जाने का मार्ग बताया है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के व्यक्त किये गये ये सत्य कलीसियाओं के लिये पवित्र आत्मा के वचन हैं, अंत के दिनों में इंसान को दिया अनंत जीवन का मार्ग है, परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करने और बचाए जाने का एकमात्र तरीका है।” वह मान गया, लेकिन फिर भी परमेश्वर के अंत के दिनों में महिला के रूप में देहधारण को लेकर उसकी कुछ धारणाएँ थीं। उसने कहा : “बहन, मैं अब सर्वशक्तिमान परमेश्वर के न्याय और शुद्धिकरण के कार्य को स्वीकार कर सकता हूँ, लेकिन तुम यह गवाही कैसे दे सकती हो कि प्रभु यीशु ने एक महिला रूप में देहधारण किया है? पिछली बार वह पुरुष के रूप में आया था—और बाइबल में उसे ‘पुत्र’ कहा गया है—तो लौटने पर वह पुरुष ही होगा। वह महिला कैसे हो सकता है? यह मेरे लिये समझना मुश्किल है। क्या इस पर कुछ सहभागिता कर सकती हो?” मैंने कहा, “हजारों वर्षों से, सभी विश्वासी यही सोचते रहे हैं कि चूँकि प्रभु यीशु एक पुरुष रूप में आया था, तो उसकी वापसी भी निश्चित रूप से एक पुरुष के रूप में ही होगी, महिला के रूप में नहीं। फिर भी, सर्वशक्तिमान परमेश्वर अंत के दिनों में एक महिला के रूप में आया है—बहुत से लोग इस बात को स्वीकार नहीं पा रहे हैं। लेकिन हमें यह समझना होगा कि लोग किसी चीज के बारे में जितनी ज्यादा धारणाएँ बनाते हैं, सच उतना ही ज्यादा खोजना होता है। बाइबल में, जब प्रभु यीशु की वापसी की भविष्यवाणी की जाती है, तो हमेशा उल्लेख किया जाता है ‘मनुष्य के पुत्र,’ ‘मनुष्य के पुत्र का भी आना,’ ‘मनुष्य का पुत्र आया,’ और ‘मनुष्य का पुत्र अपने दिन में प्रगट होगा।’ इस ‘मनुष्य के पुत्र’ का क्या मतलब है? जब इसका उल्लेख होता है, तो इसका अर्थ है मानव से पैदा हुआ व्यक्ति और जिसमें सामान्य मानवता हो—फिर चाहे वह पुरुष हो या महिला। तो प्रभु यीशु ने बार-बार इस वाक्यांश, ‘मनुष्य के पुत्र’ पर जोर क्यों दिया? वह हमें बता रहा था कि अंत के दिनों में, परमेश्वर कार्य करने के लिये, देहधारण करके मनुष्य के पुत्र के रूप में प्रकट होगा। लेकिन प्रभु ने यह कभी नहीं कहा कि अंत के दिनों में मनुष्य का पुत्र पुरुष होगा या स्त्री। तो लोग यह निर्णय कैसे ले सकते हैं? हम सब उत्पत्ति अध्याय 1, पद 27 को जानते हैं : ‘तब परमेश्वर ने मनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार उत्पन्न किया, अपने ही स्वरूप के अनुसार परमेश्वर ने उसको उत्पन्न किया; नर और नारी करके उसने मनुष्यों की सृष्टि की।’ यहाँ हम देख सकते हैं कि शुरुआत में परमेश्वर ने पुरुष और स्त्री को अपने स्वरूप में बनाया। अगर हम परमेश्वर को पुरुष मान लें, तो फिर हम इस बात की व्याख्या कैसे करेंगे कि परमेश्वर ने स्त्री को भी अपने स्वरूप में ही बनाया है? इसीलिए हम अपनी धारणाओं या कल्पनाओं के आधार पर परमेश्वर का परिसीमन नहीं कर सकते।” फिर, मैंने पादरी काओ को सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों के कुछ अंश पढ़कर सुनाये।
सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, “परमेश्वर द्वारा किए गए कार्य के प्रत्येक चरण के अपने व्यवहारिक मायने हैं। जब यीशु का आगमन हुआ, तो वह पुरुष रूप में आया, लेकिन इस बार के आगमन में परमेश्वर, स्त्री रूप में आता है। इससे तुम देख सकते हो कि परमेश्वर द्वारा पुरुष और स्त्री, दोनों का ही सृजन उसके काम के लिए उपयोगी हो सकता है, वह कोई लिंग-भेद नहीं करता। जब उसका आत्मा आता है, तो वह इच्छानुसार किसी भी देह को धारण कर सकता है और वही देह उसका प्रतिनिधित्व करता है; चाहे पुरुष हो या स्त्री, दोनों ही परमेश्वर का प्रतिनिधित्व कर सकते हैं, यदि यह उसका देहधारी शरीर है। यदि यीशु स्त्री के रूप में आ जाता, यानी अगर पवित्र आत्मा ने लड़के के बजाय लड़की के रूप में गर्भधारण किया होता, तब भी कार्य का वह चरण उसी तरह से पूरा किया गया होता। और यदि ऐसा होता, तो कार्य का वर्तमान चरण पुरुष के द्वारा पूरा किया जाता और कार्य उसी तरह से पूरा किया जाता। प्रत्येक चरण में किए गए कार्य का अपना अर्थ है; कार्य का कोई भी चरण दोहराया नहीं जाता है या एक-दूसरे का विरोध नहीं करता है” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, दो देहधारण पूरा करते हैं देहधारण के मायने)। “लिंग रूप में, एक पुरुष है और दूसरा महिला; यह परमेश्वर के देहधारण की महत्ता को पूर्णता देकर, परमेश्वर के बारे में मनुष्य की धारणाओं को दूर करता है : परमेश्वर पुरुष और महिला दोनों बन सकता है, सार रूप में देहधारी परमेश्वर स्त्रीलिंग या पुल्लिंग नहीं है। उसने पुरुष और महिला दोनों को बनाया है, और उसके लिए कोई लिंगभेद नहीं है” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर द्वारा धारण किये गए देह का सार)। “यदि परमेश्वर केवल एक पुरुष के रूप में देह में आए, तो लोग उसे पुरुष के रूप में, पुरुषों के परमेश्वर के रूप में परिभाषित करेंगे, और कभी विश्वास नहीं करेंगे कि वह महिलाओं का परमेश्वर है। तब पुरुष यह मानेंगे कि परमेश्वर पुरुषों के समान लिंग का है, कि परमेश्वर पुरुषों का प्रमुख है—लेकिन फिर महिलाओं का क्या? यह अनुचित है; क्या यह पक्षपातपूर्ण व्यवहार नहीं है? यदि यही मामला होता, तो वे सभी लोग जिन्हें परमेश्वर ने बचाया, उसके समान पुरुष होते, और एक भी महिला नहीं बचाई गई होती। जब परमेश्वर ने मानवजाति का सृजन किया, तो उसने आदम को बनाया और उसने हव्वा को बनाया। उसने न केवल आदम को बनाया, बल्कि पुरुष और महिला दोनों को अपनी छवि में बनाया। परमेश्वर केवल पुरुषों का ही परमेश्वर नहीं है—वह महिलाओं का भी परमेश्वर है” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के कार्य का दर्शन (3))।
मैंने संगति जारी रखी : “हम सभी जानते हैं कि परमेश्वर ने शुरुआत में पुरुष और स्त्री को अपने स्वरूप में बनाया था। तो, स्वाभाविक रूप से, परमेश्वर पुरुष और स्त्री दोनों के रूप में देहधारण कर सकता है। अगर परमेश्वर ने दो बार पुरुष रूप में देहधारण किया, तो शायद मनुष्य उसे सीमित कर दे, और मान बैठे कि वह केवल पुरुष देह में आ सकता है, स्त्री देह में नहीं—कि वह केवल पुरुषों का देवता है, स्त्रियों का नहीं—क्या यह उसकी बड़ी गलतफहमी नहीं है? इससे स्त्रियों के खिलाफ शाश्वत भेदभाव हो जायेगा। यह स्त्रियों के लिये बहुत ही अनुचित होगा। परमेश्वर धार्मिक है। इसीलिए उसने पहले पुरुष रूप में और अंत के दिनों में स्त्री रूप में देहधारण किया। यह बहुत मायने रखता है। यह पूरी तरह से परमेश्वर का धार्मिक स्वभाव दिखाता है, और यह कि वह पुरुषों और स्त्रियों दोनों के साथ समान व्यवहार करता है। इससे उसके पुरुष और स्त्री की रचना का अर्थ पूर्ण होता है। दरअसल, यह मायने नहीं रखता कि परमेश्वर पुरुष रूप में देहधारण करता है या स्त्री रूप में। अगर यह व्यक्ति सत्य व्यक्त और मानवजाति को बचाने का कार्य कर सकता है, तो वह परमेश्वर का प्रतिनिधित्व कर सकता है और वह स्वयं देहधारी परमेश्वर। अंत के दिनों में, सर्वशक्तिमान परमेश्वर आ चुका है। वह अंत के दिनों में अपना न्याय का कार्य करते हुए, मनुष्य को शुद्ध करने और बचाने वाले सभी सत्य व्यक्त कर रहा है, राज्य के युग का सूत्रपात और अनुग्रह के युग का अंत कर रहा है। यह निर्णायक रूप से साबित करता है कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर देहधारी परमेश्वर है और वही वापस लौटा प्रभु यीशु है।”
उस समय, पादरी काओ ने मुझे काफी गंभीरता से कहा, “बहन, तुमने जो कुछ भी कहा है वह उचित है और मैं इसे नकार नहीं सकता। लेकिन अभी भी कुछ ऐसा है जो मुझे समझ नहीं आ रहा है। उत्पत्ति 3:16 में, परमेश्वर कहते हैं, ‘और तेरी लालसा तेरे पति की ओर होगी, और वह तुझ पर प्रभुता करेगा।’ और 1 कुरिन्थी 11:3 कहती है, ‘और स्त्री का सिर पुरुष है।’ इन ग्रंथों से हम देख सकते हैं कि स्त्री भ्रष्टता का स्रोत है और पुरुष के शासन के अधीन है। तो प्रभु एक स्त्री के रूप में कैसे लौट सकता है?” पादरी काओ की बातें सुनकर, मैंने सोचा : “मैं तुम्हें परमेश्वर के इतने सारे वचन पढ़कर सुनाये हैं और तुम्हारे साथ इतनी संगति की, फिर भी तुम परमेश्वर को पुरुष के रूप में सीमित कर रहे हो और स्त्री के रूप में उसके देहधारण के तथ्य को स्वीकार नहीं कर पा रहे हो। लगता है तुम अपनी धारणाओं को इतनी आसानी से बदल नहीं सकते।” लेकिन फिर मैंने सोचा : “उसकी धारणाएँ पवित्रशास्त्र न समझ पाने की वजह से हैं। अगर उसे सत्य की समझ हो, तो यह धारणाएँ दूर हो जायेंगी।” मैंने उससे कहा, “पादरी काओ, सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने इस मामले पर बहुत स्पष्ट कहा है। चलो देखें कि वह क्या कहता है।”
सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, “अतीत में जब ऐसा कहा गया कि पुरुष स्त्री का मुखिया है, तो यह आदम और हव्वा के संबंध में कहा गया था जिन्हें सर्प के द्वारा छला गया था—न कि उस पुरुष और स्त्री के बारे में जिन्हें आरंभ में यहोवा ने रचा था। निस्संदेह, स्त्री को अपने पति का आज्ञापालन और उससे प्रेम करना चाहिए, उसी तरह पुरुष को अपने परिवार का भरण-पोषण करना आना चाहिए। ये वे नियम और आदेश हैं जिन्हें यहोवा ने बनाया, जिनका इंसान को धरती पर अपने जीवन में पालन करना चाहिए। यहोवा ने स्त्री से कहा, ‘तेरी लालसा तेरे पति की ओर होगी, और वह तुझ पर प्रभुता करेगा।’ उसने यह सिर्फ इसलिए कहा ताकि मानवजाति (अर्थात् पुरुष और स्त्री दोनों) यहोवा के प्रभुत्व में सामान्य जीवन जी सकें, ताकि मानवजाति के जीवन की एक संरचना हो और वह अपने व्यवस्थित क्रम में ही रहे। इसलिए यहोवा ने उपयुक्त नियम बनाए कि पुरुष और स्त्री को किस तरह व्यवहार करना चाहिए, हालाँकि ये सब पृथ्वी पर रहने वाले प्राणीमात्र के सन्दर्भ में थे, न कि देहधारी परमेश्वर के देह के सन्दर्भ में। परमेश्वर अपनी ही सृष्टि के समान कैसे हो सकता था? उसके वचन सिर्फ उसके द्वारा रची गई मानवजाति के लिए थे; पुरुष और स्त्री के लिए उसने ये नियम इसलिए स्थापित किए थे ताकि मानवजाति सामान्य जीवन जी सके। आरंभ में, जब यहोवा ने मानवजाति का सृजन किया, तो उसने दो प्रकार के मनुष्य बनाए, पुरुष और स्त्री; इसलिए, उसके देहधारी शरीर में पुरुष और स्त्री का भेद किया गया। उसने अपना कार्य आदम और हव्वा को बोले गए वचनों के आधार पर तय नहीं किया। दोनों बार जब उसने देहधारण किया तो यह पूरी तरह से उसकी तब की सोच के अनुसार निर्धारित किया गया जब उसने सबसे पहले मानवजाति की रचना की थी; अर्थात्, उसने अपने दो देहधारणों के कार्य को उन पुरुष और स्त्री के आधार पर पूरा किया जिन्हें तब तक भ्रष्ट नहीं किया गया था। ... जब यहोवा ने दो बार देहधारण किया, तो उसके देहधारण का लिंग उन पुरुष और स्त्री से संबंधित था जिन्हें सर्प के द्वारा छला नहीं गया था; उसने दो बार ऐसे पुरुष और स्त्री के अनुरूप देहधारण किया जिन्हें सर्प के द्वारा नहीं छला गया था। ऐसा न सोचो कि यीशु का पुरुषत्व वैसा ही था जैसा कि आदम का था, जिसे सर्प के द्वारा छला गया था। उन दोनों का कोई संबंध नहीं है, दोनों भिन्न प्रकृति के पुरुष हैं। निश्चय ही ऐसा तो नहीं हो सकता कि यीशु का पुरुषत्व यह साबित करे कि वह सिर्फ स्त्रियों का ही मुखिया है पुरुषों का नहीं? क्या वह सभी यहूदियों (पुरुषों और स्त्रियों सहित) का राजा नहीं है? वह स्वयं परमेश्वर है, वह न सिर्फ स्त्री का मुखिया है बल्कि पुरुष का भी मुखिया है। वह सभी प्राणियों का प्रभु और सभी प्राणियों का मुखिया है। तुम यीशु के पुरुषत्व को स्त्री के मुखिया का प्रतीक कैसे निर्धारित कर सकते हो? क्या यह ईशनिंदा नहीं है? यीशु ऐसा पुरुष है जिसे भ्रष्ट नहीं किया गया है। वह परमेश्वर है; वह मसीह है; वह प्रभु है। वह आदम की तरह का पुरुष कैसे हो सकता है जो भ्रष्ट हो गया था? यीशु वह देह है जिसे परमेश्वर के अति पवित्र आत्मा ने धारण किया हुआ है। तुम यह कैसे कह सकते हो कि वह ऐसा परमेश्वर है जो आदम के पुरुषत्व को धारण किए हुए है? उस स्थिति में, क्या परमेश्वर का समस्त कार्य गलत नहीं हो गया होता? क्या यहोवा ने यीशु के भीतर उस आदम के पुरुषत्व को समाविष्ट किया होगा जिसे सर्प द्वारा छला गया था? क्या वर्तमान देहधारण देहधारी परमेश्वर के कार्य का दूसरा उदाहरण नहीं है जो कि यीशु के लिंग से भिन्न परन्तु प्रकृति में यीशु के ही समान है? क्या तुम अब भी यह कहने का साहस करते हो कि देहधारी परमेश्वर स्त्री नहीं हो सकता क्योंकि स्त्री ही सबसे पहले सर्प के द्वारा छली गई थी? क्या तुम अब भी यह बात कह सकते हो कि चूँकि स्त्री सबसे अधिक अशुद्ध होती है और मानवजाति की भ्रष्टता का मूल है, इसलिए परमेश्वर संभवतः एक स्त्री के रूप में देह धारण नहीं कर सकता? क्या तुम अब भी यह कह सकते हो कि ‘स्त्री हमेशा पुरुष का आज्ञापालन करेगी और कभी भी परमेश्वर को अभिव्यक्त या प्रत्यक्ष रूप से उसका प्रतिनिधित्व नहीं कर सकती?’” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, दो देहधारण पूरा करते हैं देहधारण के मायने)।
मैंने जारी रखा : “सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों से हम देख सकते हैं जब परमेश्वर ने महिला से कहा, ‘और तेरी लालसा तेरे पति की ओर होगी, और वह तुझ पर प्रभुता करेगा,’ यह भ्रष्ट मानवता के लिये उसकी अपेक्षा और संयम था, ताकि भ्रष्ट मानवजाति व्यवस्थित तरीके से यहोवा परमेश्वर के प्रभुत्व के अधीन रह सके। इस अपेक्षा का देहधारी परमेश्वर से कोई लेना-देना नहीं है। यह बिल्कुल पुराने नियम की तरह है, जब यहोवा परमेश्वर ने मनुष्य को सब्त का पालन करने की आज्ञा दी थी। परमेश्वर ने मनुष्य से यह अपेक्षा की थी—मनुष्य प्रभु यीशु से यह नहीं माँग सकता था। जैसा प्रभु यीशु ने कहा, ‘सब्त का दिन मनुष्य के लिये बनाया गया है, न कि मनुष्य सब्त के दिन के लिये। इसलिये मनुष्य का पुत्र सब्त के दिन का भी स्वामी है’ (मरकुस 2:27-28)। इसीलिए, भले ही बाइबल कहती है, ‘और तेरी लालसा तेरे पति की ओर होगी, और वह तुझ पर प्रभुता करेगा’ (उत्पत्ति 3:16), ‘और स्त्री का सिर पुरुष है’ (1 कुरिन्थियों 11:3), इन चीजों का देहधारी परमेश्वर से कोई लेना-देना नहीं है। परमेश्वर चाहे पुरुष के रूप में देहधारण करे या महिला के रूप में, उसका आत्मा ही देहधारण करता है और वह हमेशा स्वयं परमेश्वर ही होता है। अगर इंसान कहता है कि परमेश्वर पुरुष ही बन सकता है, वह स्त्री नहीं बन सकता, और अंत के दिनों में देहधारी परमेश्वर को नकारता है, तो क्या यह देहधारी परमेश्वर को भ्रष्ट मनुष्य के समान श्रेणी में रखना नहीं कहलायेगा? क्या यह परमेश्वर के खिलाफ ईश-निंदा नहीं है?” मेरी बात सुनकर पादरी दंग रह गया। उसने काफी गंभीरता से कहा, “बहन, चूँकि प्रभु ने देहधारण कर लिया है, तो उसने मानव जन्म लिया होगा, और उसका कोई लिंग भी जरुर होगा। मैं तुरंत यह स्वीकार नहीं कर सकता कि उसने इस बार स्त्री रूप में देहधारण किया है। मुझे प्रार्थना करनी होगी और प्रभु से कहना होगा कि मुझे प्रबुद्ध करे।” जब पादरी ने यह कहा, तो मैं थोड़ी चिंतित, और हैरान हो गई। मैंने इतनी संगति की है—फिर भी वह अपनी धारणाएँ क्यों नहीं बदल पा रहा? आखिर क्या चल रहा है? क्या उसे परमेश्वर के वचन समझ नहीं आ रहे? क्या वह परमेश्वर की भेड़ों में से एक नहीं है? क्या मुझे उससे बात करना जारी रखना चाहिए? मुझे इससे क्या सबक सीखना चाहिए? मन ही मन, मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की।
उसके बाद, मैंने परमेश्वर के वचन याद किए : “सुसमाचार को फैलाने में, तुम्हें अपनी जिम्मेदारी निभानी चाहिए और हर उस व्यक्ति के साथ, जिस तक तुम इसे फैलाते हो, ईमानदारी से पेश आना चाहिए। परमेश्वर यथासंभव लोगों को बचाता है, और तुम्हें परमेश्वर की इच्छा के प्रति सचेत रहना चाहिए, तुम्हें ऐसे किसी भी व्यक्ति को जो सच्चा मार्ग खोज और उस पर विचार कर रहा हो, अपनी लापरवाही से अनदेखा नहीं करना चाहिए। ... सच्चे मार्ग पर विचार करने वाले कुछ लोग समझने में सक्षम और अच्छी क्षमता वाले, किंतु अहंकारी और आत्मतुष्ट होते हैं, धार्मिक धारणाओं से कड़ाई से चिपके रहते हैं, इसलिए इसे हल करने में मदद करने के लिए उनके साथ सत्य के बारे में संगति प्रेम और धैर्य से की जानी चाहिए। तुम्हें केवल तभी हार माननी चाहिए, जब तुम्हारे हर तरह से संगति करने पर भी वह सत्य न स्वीकारें, क्योंकि तब तुमने वह सब कर लिया होगा, जो तुम कर सकते हो और जो तुम्हें करना चाहिए” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, सुसमाचार का प्रसार करना सभी विश्वासियों का गौरवपूर्ण कर्तव्य है)। परमेश्वर के वचनों ने मेरे चिंतित हृदय को शांत कर दिया। परमेश्वर चाहता है कि हम संभावित सुसमाचार प्राप्तकर्ताओं के साथ प्रेमपूर्ण और धैर्यवान बनें। भले ही वे अंत में सुसमाचार स्वीकार करें या ना करें, हमने तो जो भी हो सकता था, वह सब किया है। मुझे एहसास हुआ कि मैंने अभी तक वह सब नहीं किया है जो मुझे पादरी काओ के साथ सुसमाचार बाँटते समय करना चाहिए था। मैंने परमेश्वर की अपेक्षाएँ पूरी नहीं की थीं। उसे बाइबल से चिपके रहते, अपना मन बदलते न देखकर, मैंने सोचा कि वह कभी भी सत्य प्राप्त नहीं कर सकेगा। परमेश्वर के स्त्री देहधारण को लेकर उसमें अभी भी धारणाएँ थीं और तुरंत मेरी संगति नहीं समझ सका था, मेरा धैर्य फिर चला गया था। पादरी काओ के प्रति मेरे मन में पूर्वाग्रह पैदा हो गया, और सोचने लगी कि पादरी तो आसानी से परमेश्वर की वाणी को पहचान ही नहीं पाया। जब उसकी धारणा बदल ही नहीं पा रही, तो मैंने उसे सीमांकित कर दिया था, बल्कि मैं छोड़ देना चाहती थी। मैंने सोचा कि कैसे परमेश्वर ने भ्रष्ट मानवजाति को बचाने के लिये कड़ी मेहनत की है, और कैसे उसने हमें पोषण देने के लिये इतने सारे वचन व्यक्ति किए हैं। सत्य समझने में हमारी मदद करने के लिये, वह हमारे साथ संगति करता है, और प्रत्येक सत्य को पूरे विस्तार से समझाता है। वह कहानियों और रूपकों के जरिए और सभी तरह से समझाता है, ताकि पर्याप्त विवरण और स्पष्टता आ सके। मैंने देखा कि मानवता के लिये परमेश्वर का प्रेम और उसने जो हमारे लिये किया है वह कितना महान है उसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता। लेकिन सुसमाचार का प्रसार करने के अपने कर्तव्य में, मैं कठिनाई से दूर भागती थी और पादरी काओ को छोड़ना चाहती थी। मेरा प्यार भरा दिल कहाँ चला गया? मैं इस तरह अपना कर्तव्य कैसे निभा सकती हूँ? भले ही पादरी काओ को जल्दी समझ नहीं आया, लेकिन मैं अधीर नहीं हो सकती। मुझे उसके साथ प्यार से पेश आना चाहिए, और अगर वह समझ नहीं पाया, तो मुझे संगति में ज्यादा समय बिताना चाहिए, प्रार्थना करनी चाहिए थी, परमेश्वर पर भरोसा करना चाहिए और उससे पादरी को प्रबुद्ध करने के लिये कहना चाहिए।
यह सोचकर, मैंने पादरी काओ के साथ संगति करना जारी रखा। “जब हम सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास करते हैं, तो हम उस सत्य पर विश्वास करते हैं जो उसने व्यक्ति किया है। भले ही परमेश्वर का देहधारण पुरुष रूप में हो या स्त्री रूप में, अगर वह सत्य व्यक्त करता है, मानवजाति को शुद्ध कर बचा सकता है, तो वह स्वयं परमेश्वर है, हमें उस पर विश्वास कर उसे स्वीकारना चाहिए। सर्वशक्तिमान परमेश्वर तीस से ज्यादा वर्षों से कार्यरत है और वह लाखों वचन व्यक्त कर रहा है। उसने वे सभी सत्य व्यक्त किए हैं जो मानवजाति को पाप से मुक्त करेंगे और हमें परमेश्वर के उद्धार तक ले जायेंगे। सभी धर्मों और संप्रदायों के बहुत से लोग जो परमेश्वर के प्रकट होने के लिये तरस रहे थे, उन्होंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों में परमेश्वर की वाणी को पहचाना है और उसकी ओर मुड़ गये हैं। ये सभी लोग बुद्धिमान कुंवारियाँ हैं। उन्होंने परमेश्वर के वचनों के न्याय और ताड़ना का अनुभव किया और अपनी भ्रष्टता का सत्य देखा है, पश्चात्ताप कर खुद से घृणा की है। इस बात का एहसास होने पर कि परमेश्वर का धार्मिक स्वभाव अपमान सहन नहीं करता, उन्होंने परमेश्वर का भय माना सच्चा पश्चाताप किया और उनका भ्रष्ट स्वभाव धीरे-धीरे बदल गया। सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने आपदाओं से पहले विजेताओं का एक समूह बनाया है—प्रकाशित-वाक्य की भविष्यवाणी के अनुसार वे पहले फल हैं। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन और शैतान पर विजय पाने में परमेश्वर के चुने हुये लोगों की गवाही को बहुत पहले ऑनलाइन पोस्ट कर दिया गया था, और सभी लोगों के सामने यह गवाही दी कि उद्धारकर्ता वापस आ गया है। सभी देशों के ज्यादा से ज्यादा लोग अब सत्य मार्ग की जाँच कर रहे हैं। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों का कार्य मानवजाति को बचाने की परमेश्वर की छह हजार साल की प्रबंधन योजना को समाप्त करता है, जो पूरी तरह से हमें शैतान के अधिकार-क्षेत्र से बचाता है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने जो कुछ भी कार्य किया है, उससे यह निर्णायक रूप से साबित होता है कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही देहधारी परमेश्वर है, यानी लौटकर आया प्रभु यीशु है। यानी कि केवल लिंग के आधार पर यह निर्धारित नहीं किया जा सकता कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर लौटकर आया प्रभु यीशु है या नहीं। क्या वह सत्य व्यक्त कर मानवजाति को बचाने का कार्य कर सकता है? यही कुंजी है।” अब, पादरी काओ ने दृढ़ता से कहा : “बहन, मैं तुम्हारी संगति समझ रहा हूँ। अगर कोई सत्य व्यक्त कर उद्धार कार्य कर सकता है, तो फिर चाहे वह पुरुष हो या स्त्री, वह देहधारी परमेश्वर ही है। अब मेरा दिल रोशन हो गया है!”
उसके बाद, पादरी काओ ने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के और भी बहुत से वचन पढ़े, तब उसकी धारणाएँ दूर हो गईं, और उसने अंत के दिनों में परमेश्वर के कार्य को स्वीकार कर लिया।
सुसमाचार सुनाने के इस अनुभव से, मैंने देखा कि परमेश्वर का कार्य स्वयं परमेश्वर करता है। फिर चाहे वह पादरी हो या एल्डर, उनमें कितना भी बाइबल ज्ञान, धार्मिक शिक्षा, या धार्मिक धारणाएँ हों, वे सभी सत्य के सामने शक्तिहीन हैं। अगर वे परमेश्वर के वचन समझ पाते हैं, थोड़े ग्रहणशील हैं और सत्य की खोज करने के इच्छुक हैं, तो वे सभी परमेश्वर के वचनों में उत्तर पा सकते हैं और अंत में उसके द्वारा जीत लिए जाएँगे। जब मैंने पादरी काओ को सुसमाचार सुनाया, तो मुझे लगा कि पादरियों और एल्डरों के लिये सत्य स्वीकार करना कठिन होगा, इसीलिए मैं पादरी काओ के प्रति पक्षपाती थी। उसे सुसमाचार सुनाते हुए, यह देखकर कि वह धारणाओं से चिपका हुआ है, मैंने मान लिया था कि वह परमेश्वर की वाणी को नहीं समझ सकेगा, मैंने लगभग उसे छोड़ ही दिया था। शुक्र है, परमेश्वर के वचनों ने मेरा मार्गदर्शन किया और मैं खुद को समझकर अपना कर्तव्य पूरा कर सकी।
बाद में, मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा जिससे यह स्पष्ट हो गया कि संभावित सुसमाचार प्राप्तकर्ताओं से कैसे व्यवहार करें जिनकी अपनी धारणाएँ होती हैं। “अगर सच्चे मार्ग पर विचार करने वाला व्यक्ति बार-बार कोई प्रश्न पूछता है, तो तुम्हें कैसे उत्तर देना चाहिए? तुम्हें उसका उत्तर देने में लग रहे समय और परेशानियों का बुरा नहीं मानना चाहिए, और उसके प्रश्न के बारे में स्पष्ट रूप से संगति करने का तरीका खोजना चाहिए, जब तक कि वह समझ न जाए और आश्वस्त न हो जाए। तभी तुम्हारा दायित्व पूरा होगा, और तुम्हारा हृदय अपराध-बोध से मुक्त होगा। सबसे महत्वपूर्ण बात, तुम इस मामले में परमेश्वर के प्रति अपराध-बोध से मुक्त होगे, क्योंकि यह कर्तव्य, यह उत्तरदायित्व तुम्हें परमेश्वर ने सौंपा था। तुम जो भी करते हो, जब वह परमेश्वर के समक्ष किया जाता है, परमेश्वर के सामने रहकर किया जाता है, जब सब कुछ परमेश्वर के वचनों के बरक्स रखा जाता है, सत्य के सिद्धांतों के अनुसार किया जाता है, तब तुम्हारा अभ्यास पूरी तरह से सत्य के और परमेश्वर की अपेक्षाओं के अनुरूप होगा। इस तरह, तुम जो कुछ भी करते और कहते हो, वह लोगों के लिए लाभकारी होगा, और वे उसे अनुमोदित कर आसानी से स्वीकार करेंगे” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, सुसमाचार का प्रसार करना सभी विश्वासियों का गौरवपूर्ण कर्तव्य है)। परमेश्वर के वचनों से, मैं समझ गयी कि भले ही उनकी कोई भी समस्या या धार्मिक धारणा हो, अगर वह सत्य मार्ग की जाँच करते हैं उनमें अच्छी मानवता है, सत्य के लिये तरस रहे हैं, और परमेश्वर के वचन समझ सकते हैं, तो हमें पक्षपाती नहीं होना चाहिए या मनमाने ढंग से उनका परिसीमन नहीं करना चाहिए, ना ही उन्हें छोड़ देना चाहिए। इसके बजाय, हमें परमेश्वर के वचनों का अभ्यास करना चाहिए, “तुम्हें उसका उत्तर देने में लग रहे समय और परेशानियों का बुरा नहीं मानना चाहिए, और उसके प्रश्न के बारे में स्पष्ट रूप से संगति करने का तरीका खोजना चाहिए,” जितना हो सके अपनी समझ से सत्य की संगति करनी चाहिए जब तक कि हमारा विवेक निर्मल नहीं हो जाता। एक सृजित प्राणी के रूप में यह भी मेरी जिम्मेदारी है। भविष्य में, मेरी भेंट चाहे किसी भी संभावित सुसमाचार प्राप्तकर्ताओं से हो, अगर उसमें अच्छी मानवता है और वह परमेश्वर के वचनों को समझता है, तो मैं सत्य की संगति करने और परमेश्वर की गवाही देने की पूरी कोशिश करने को तैयार हूँ, ताकि जो लोग सच में परमेश्वर के प्रकटन के लिये तरसते हैं, वे जल्द से जल्द उसके पास लौटकर प्रभु की वापसी का स्वागत कर सकें। परमेश्वर का धन्यवाद!