3. विपरीत परिस्थितियों में अपने कर्तव्य पर अडिग रहना

वांग जू, चीन

2016 में मैं कलीसिया में एक सिंचन उपयाजक का कर्तव्य कर रही थी। उस समय कलीसिया की अगुआ एक मसीह-विरोधी द्वारा दबाई और सताई जा रही थी और वह नकारात्मकता में जी रही थी। उसने पवित्र आत्मा का कार्य खो दिया और वह बर्खास्त कर दी गई। मेरी उच्चस्तरीय अगुआ ने मुझे निर्देश दिए कि कलीसिया में मसीह-विरोधी पूरी तरह से बेनकाब नहीं हुआ है और भाई-बहन अभी भी उसका भेद नहीं पहचान पाए, इसलिए वह उम्मीद कर रही थी कि मैं बहन यांग यू के साथ मिलकर कलीसिया के काम सँभालूँ। लेकिन आगे चलकर, मेरा स्वास्थ्य ज्यादा साथ नहीं दे रहा था और न ही मुझमें उतनी ताकत या ऊर्जा बची थी, तो कलीसिया मेरा काम बदलने जा रहा था। लेकिन तबादले से पहले ही कलीसिया में एक घटना घट गई। उस समय वरिष्ठ अगुआ ने कुछ बहनों के साथ मेरी बैठक तय कर दी। हमेशा की तरह मैं सही समय पर मेजबान के घर पहुँच गई, लेकिन लंबे इंतजार के बाद भी कोई नहीं पहुँचा तो मुझे हैरानी हुई। तो मैं यांग यू का पता करने उसके घर गई। मेरे लगातार दस्तक देने पर भी दरवाजा नहीं खुला। मुझे थोड़ी बेचैनी हुई कि कहीं वह गिरफ्तार तो नहीं हो गई। दो दिन बाद, अचानक ही चेन हुई ने मुझे बताया कि यांग यू और दो वरिष्ठ अगुआओं को उस दिन पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था और पुलिस ने उसके पूरे घर को उलट-पुलट कर दिया था। इस भयानक समाचार को सुनकर, मुझे पता था कि परमेश्वर हमारा परीक्षण ले रहा है और शोधन कर रहा है लेकिन मैं एकदम से घबरा गई। मुझे याद आया कि उस दिन मैं यांग यू के घर गई थी और उसका दरवाजा खटखटा रही थी, पर हालाँकि किस्मत से मैं परमेश्वर की सुरक्षा में थी और पुलिस से नहीं टकरायी, वरना तो मैं उनके चंगुल से बच न पाती। मैं बाल-बाल बची थी!

बाद में, मैंने लोगों को शहर भर में गिरफ्तारी के बारे में बात करते सुना, जिससे पता चला कि यह एक राष्ट्रव्यापी अभियान था। हमारे शहर में बहुत सारे सशस्त्र पुलिस अधिकारी इकट्ठा होकर पूरे शहर में छापेमारी कर रहे थे और परमेश्वर के चुने हुए लोगों को बेतहाशा गिरफ्तार कर रहे थे। हर गली चौराहे पर बैनर लगे हुए थे और दीवारों पर तरह-तरह का नकारात्मक प्रचार किया हुआ था। पूरे शहर में दहशत का माहौल था। मैंने विचार किया कि कैसे बहुत से भाई-बहन गिरफ्तार कर लिए गए हैं, सभी संदिग्ध घरों पर छापा मारा जा सकता है और कलीसिया की चीजों को कभी भी बड़े लाल अजगर द्वारा जब्त किया जा सकता है, इसलिए मुझे कलीसिया की सामग्री को कहीं सुरक्षित जगह पर स्थानांतरित किया जाना चाहिए, लेकिन पुलिस अभी भी तलाशी और निगरानी कर रही थी। क्या किया जा सकता था? मैं बेचैनी महसूस कर रही थी। मैं घर पहुँची तो मेरी बेटी ने अपना फोन दिखाते हुए कहा, “माँ, संभलकर रहना और कुछ दिनों तक बाहर मत जाना। मेरे एक सार्वजनिक सुरक्षा ग्राहक ने यह बताते हुए मुझे एक वीडियो भेजा है कि 70 से अधिक विश्वासी गिरफ्तार किए जा चुके हैं और वे अभी भी तलाश ले रहे हैं।” यह सुनकर तो मैं और ज्यादा डर गई और बहुत परेशान हो गई। मैं सोच रही थी कि यांग यू और मैंने तो हमेशा साथ काम किया है। मैं उसके घर भी बहुत जाया करती थी और चूँकि इस समय वह गिरफ्तार हो गई है, क्या पुलिस निगरानी के जरिए मेरा पता लगा लेगी? अगर उन्हें मेरे बारे में पहले ही पता चल चुका है, ऐसे में अपनी ड्यूटी के लिए वापस जाना कहीं खतरे से खाली तो नहीं? मैं पेशे के कारण हुई एक बीमारी की वजह से पहले ही काफी कमजोर हो चुकी थी। अगर मुझे सच में गिरफ्तार कर लिया गया, तो मैं कितनी मारपीट झेल पाऊँगी? अगर पुलिस ने मारपीट करके मुझसे कुछ कबूल करवाने की कोशिश की तो क्या मैं अपने उद्धार का मौका नहीं गँवा दूँगी? मेरे मन में वीडियो में बार-बार भाई-बहनों के उत्पीड़न के दृश्य घूम रहे थे जिन्हें मैंने पहले देखा था, इन वीडियो के बारे में सोच-सोचकर मैं और बेचैन हो गई थी। मेरे पसीने छूट गए, लगा जैसे लकवा मार गया हो, शरीर में जान ही न हो, मन अशांत था। मुझे लगा कि इस खतरे से बचना चाहिए, फौरन कहीं भागकर छिप जाना चाहिए। लेकिन फिर मुझे ख्याल आया कि गिरफ्तारियों के बाद कलीसिया में कितना काम करना था और चूंकि यांग यू को गिरफ्तार कर लिया गया था, इसलिए मुझे कलीसिया का काम सँभालना पड़ा। मुझे खतरे में पड़े भाई-बहनों को छिपने के लिए कहना था और तुरंत परमेश्वर के वचनों की किताबें हटानी थीं। यह एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी थी। अगर मैंने यह काम अच्छे से नहीं किया, तो इससे परमेश्वर के घर के काम को और भी ज्यादा नुकसान पहुँचेगा। अगर मेरी अपनी संपत्ति को नुकसान होता तो कोई बात नहीं, लेकिन अगर परमेश्वर के वचनों की किताबें छीन ली जातीं, तो इससे परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन को इतना नुकसान पहुँचता कि एक तरह से पैसे से उसकी भरपाई नहीं की जा सकती थी। अगर मैं ऐसे नाजुक समय में छिप जाऊँ, तो क्या मैं तब भी विश्वासी कहलाऊँगी? मुझमें वाकई मानवता की कमी होती। मेरी जिम्मेदारी का एहसास कहाँ जाता? लेकिन मैं ये काम अकेले अपने स्तर पर ठीक से नहीं कर सकती थी। संभव है कि पुलिस ने पहले से ही मुझ पर नजर रखी हुई हो। अगर मैं गिरफ्तार हो गई तो क्या कलीसिया का काम सँभालने वाले लोगों की संख्या और भी कम नहीं हो जाएगी? फिर अचानक मेरे दिमाग में यह बात आई कि दो बहनें, चेन हुई और झांग मिन, सत्य के अनुसरण को लेकर बहुत मेहनती थीं और जिम्मेदारी उठा सकती थीं, मुझे इन बिगड़े हालात को संभालने के लिए उनसे मदद लेनी चाहिए और मैं पर्दे के पीछे रहकर काम कर सकती थी। उन्हें पता ही था कि मेरी तबियत ठीक नहीं रहती, वे मेरी हालत समझेंगी। इस तरह कलीसिया का काम रुकेगा नहीं और मैं खतरे से बाहर रहूँगी। फिर वरिष्ठ अगुआ की कही बात भी निरंतर मेरे दिमाग में घूम रही थी। उसने मुझे यांग यू के साथ मिलकर कलीसिया का काम संभालने के लिए कहा था। मुझे पता था कि यांग यू को गिरफ्तार कर लिया गया है, इसलिए मुझे यह जिम्मेदारी लेनी चाहिए, लेकिन मुझे गिरफ्तारी का डर था। मैं इस संकट के समय भागकर कहीं छिप जाना चाहती थी ताकि खुद को बचा सकूँ। मैं उस खतरे और कठिनाई को भी दूसरी बहनों पर थोपना चाहती थी। मैं बहुत स्वार्थी हो रही थी। मैं अपने कर्तव्य से मुँह चुरा रही थी जो कि दुष्टता है! मुझे अचानक परमेश्वर के वचनों का एक अंश याद आया : “तुम परमेश्वर के आदेशों को कैसे लेते हो, यह अत्यंत महत्वपूर्ण है, और यह एक बहुत ही गंभीर मामला है। परमेश्वर ने जो लोगों को सौंपा है, यदि तुम उसे पूरा नहीं कर सकते, तो तुम उसकी उपस्थिति में जीने के योग्य नहीं हो और तुम्हें दंडित किया जाना चाहिए(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, मनुष्य का स्वभाव कैसे जानें)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे तत्काल झकझोर दिया। ऐसी सोच ने मेरे अंदर ग्लानि और पछतावा भर दिया। मैं कलीसिया के अपने काम को दूसरों पर कैसे डाल सकती थी? मैंने परमेश्वर के सत्यों से बहुत पोषण स्वीकार किया था, मुझे सोचना चाहिए था कि परमेश्वर का ऋण चुकाने के लिए मैं अपना कर्तव्य कैसे अच्छे से निभा सकती हूँ। जब कलीसिया खतरे में हो, तो मुझे भाई-बहनों को बचाना चाहिए और परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा करनी चाहिए। सुपरवाइजर मैं थी, लेकिन मैं इस संकट की घड़ी में डरकर छिप जाना चाहती थी और जोखिम दूसरों पर डाल देना चाहती थी। अगर मेरे स्वार्थ और खुद के बचाव के कारण परमेश्वर के वचनों की पुस्तकें और परमेश्वर के घर की संपत्ति बड़े लाल अजगर के हाथों लुट गई, तो यह ऐसा अपराध होगा जिसकी भरपाई नहीं होगी! भले ही मैं कुछ समय के लिए सुरक्षित रहूँ, लेकिन परमेश्वर की नजर में, मैं एक शर्मनाक जीवन जीने वाली कायर और युद्ध से भाग जाने वाली गद्दार बन जाऊँगी। फिर क्या मैं परमेश्वर के सामने जीने के योग्य रह पाऊँगी? अगर मैंने अपना कर्तव्य त्याग दिया, तो क्या यह परमेश्वर के साथ विश्वासघात नहीं होगा? तो फिर मेरे जीने का क्या ही अर्थ होगा? इस विचार मात्र से मैं परेशान और ग्लानि महसूस कर रही थी। मैं परमेश्वर के प्रति बहुत ऋणी महसूस कर रही थी, इतनी नीच और बेशर्म होने पर मुझे खुद से घृणा होने लगी। मैं हमेशा अपने लिए जीती रही, लेकिन जरूरी था कि मैं एक बार सत्य का अभ्यास कर परमेश्वर के लिए जिऊँ। मैं जानती थी कि मेरे हालात चाहे जो भी हों, परमेश्वर से प्रार्थना करना और उस पर भरोसा करना ही सबसे बड़ी बुद्धिमत्ता है। तो मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की : “हे परमेश्वर! पता नहीं कि पुलिस की नजर मुझ पर है या नहीं। मैं कमजोर और डरी हुई महसूस कर रही हूँ, लेकिन मेरी गिरफ्तारी होना, न होना तेरे हाथों में है। मैं एक अधम जीवन नहीं जीना चाहती या अपनी अंतरात्मा को धोखा देकर तेरे खिलाफ विद्रोह नहीं करना चाहती। कलीसिया का बहुत सारा बाद का कार्य समय रहते सँभालना है। मुझे अपनी जिम्मेदारियाँ निभानी चाहिए। हे परमेश्वर, मेरे हृदय की रक्षा करो और मुझे कष्ट सहने का संकल्प दो। अगर मुझे गिरफ्तार कर मौत के घाट उतार दिया जाता है, तो यही तेरी इच्छा रही होगी। मैं तुम्हारे आयोजन और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पित होने को तैयार हूँ, मैं कभी भी परमेश्वर के घर के हितों से दगा नहीं करूँगी।” प्रार्थना करने के बाद, मैंने परमेश्वर के कुछ वचन पढ़े। परमेश्वर कहता है : “तुम्हें किसी भी चीज़ से भयभीत नहीं होना चाहिए; चाहे तुम्हें कितनी भी मुसीबतों या खतरों का सामना करना पड़े, तुम किसी भी चीज़ से बाधित हुए बिना, मेरे सम्मुख स्थिर रहने के काबिल हो, ताकि मेरी इच्छा बेरोक-टोक पूरी हो सके। यह तुम्हारा कर्तव्य है...। तुम्हें सबकुछ सहना होगा; मेरे लिए, तुम्हें अपनी हर चीज़ का त्याग करने को तैयार रहना होगा, और मेरा अनुसरण करने के लिए सबकुछ करना होगा, अपना सर्वस्व व्यय करने के लिए तैयार रहना होगा। अब वह समय है जब मैं तुम्हें परखूंगा : क्या तुम अपनी निष्ठा मुझे अर्पित करोगे? क्या तुम ईमानदारी से मार्ग के अंत तक मेरे पीछे चलोगे? डरो मत; मेरी सहायता के होते हुए, कौन इस मार्ग में बाधा डाल सकता है? यह स्मरण रखो! इस बात को भूलो मत! जो कुछ घटित होता है वह मेरी सदिच्छा से होता है और सबकुछ मेरी निगाह में है। क्या तुम्हारा हर शब्द व कार्य मेरे वचन के अनुसार हो सकता है? जब तुम्हारी अग्नि परीक्षा होती है, तब क्या तुम घुटने टेक कर पुकारोगे? या दुबक कर आगे बढ़ने में असमर्थ होगे?(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 10)। जब मैंने देखा कि परमेश्वर ने कहा, “यह स्मरण रखो! इस बात को भूलो मत!” तो मैं भावुक हो गई। यह वैसा ही था जैसे माता-पिता अपने बच्चे से कहते हैं, “डर मत, मैं तेरे साथ हूँ।” मेरे अंदर अचानक आस्था और शक्ति जागी और लगा कि मुझे सहारा मिल रहा है। मुझे महसूस हो रहा था कि परमेश्वर नहीं चाहता कि मैं हर वक्त चिंता और भय में रहूँ। मुझे अपने कर्तव्य को ठीक से न निभाने का डर नहीं होना चाहिए या बड़े लाल अजगर द्वारा गिरफ्तार किए जाने का डर नहीं होना चाहिए और मुझे विशेष रूप से यह नहीं भूलना चाहिए कि परमेश्वर हमेशा हमारे साथ है। बड़ा लाल अजगर चाहे कितना भी चालाक और दुष्ट क्यों न हो, परमेश्वर जो हासिल करना चाहता है, वह उसे रोक नहीं सकता। भले ही पुलिस की नजर हर वक्त विश्वासियों पर रहे, वह कलीसिया के काम को बर्बाद नहीं कर सकती, क्योंकि हर चीज परमेश्वर की संप्रभुता और उसके आयोजन में है। मुझमें आस्था होनी चाहिए, खुद को परमेश्वर के हवाले कर देना चाहिए और जितनी जल्दी हो सके बाद का काम अच्छी तरह खत्म करना चाहिए। इस भयानक स्थिति के जरिए परमेश्वर मेरी आस्था की परीक्षा ले रहा था और मेरे सच्चे आध्यात्मिक कद का निरीक्षण कर रहा था यह देखने के लिए कि अपने कर्तव्य को निष्ठा से पूरा करने, भाई-बहनों को बचाने और कलीसिया के काम की रक्षा करने के लिए क्या मैं अपने जीवन को जोखिम में डाल सकती हूँ। इस विचार के चलते, मेरे दिमाग में बस एक ही बात थी : चाहे कुछ भी हो जाए, मुझे अपने सामने आने वाली कठिनाइयों को दूर करने, हमारे नुकसान को कम करने और अपना कर्तव्य अच्छे से निभाने का कोई तरीका सोचना होगा, वरना मुझे शांति नहीं मिलेगी। जब मैं समर्पित होने और उस स्थिति से गुजरने के लिए तैयार थी, तो एक आश्चर्यजनक बात हुई, चेन हुई और झांग मिन एक साथ मेरे मेजबान के घर पर अचानक आ पहुँचीं और बाद के हालात से निपटने पर चर्चा करने लगीं। उन्हें देखकर, मुझे बेहद खुशी हुई और अपने आप पर शर्म आई। यह सोचकर कि मैं उन्हें किस तरह खतरे में डालना चाहती थी, मैंने महसूस किया कि मैं कितनी नीच और स्वार्थी हूँ। मेरी सोच घिनौनी और शर्मनाक थी। हालाँकि मैंने उन्हें सूचित नहीं किया था, लेकिन उस संकट की घड़ी में, वे बिना किसी हिचकिचाहट के परमेश्वर के घर के हितों को किसी भी तरह का नुकसान होने से बचाने के लिए दौड़ी चली आई थीं। मैं बेहद भावुक हो गई थी और लगातार परमेश्वर को धन्यवाद दे रही थी। मुझे दिख रहा था कि परमेश्वर ही सब-कुछ नियंत्रित और आयोजित कर रहा है। उसने मुझ पर इतना बोझ नहीं डाला था कि संभाल न सकूँ। हमने फौरन चर्चा करके अपनी-अपनी जिम्मेदारियाँ बाँट लीं और तुरंत निकल पड़ीं। सबसे पहले तो अकेले ही मैं पास के एक घर में गई जहाँ यांग यू ने सभाओं में भाग लिया था, ताकि मेजबान को बता सकूँ कि सतर्क रहे। मैं रास्ते भर प्रार्थना करती रही, छाते को थोड़ा नीचे कर रखा था ताकि मेरा चेहरा न दिखे। मैंने फौरन वहाँ पहुँचकर मेजबान बहन को सूचित किया। दूसरे घर से, चेन हुई और मुझे मिलकर परमेश्वर के वचनों की कुछ किताबें हटानी थीं। वह घर काफी दूर था, और पूरे रास्ते पर निगरानी रखी जा रही थी। थोड़ी दूरी पर ही पुलिस की गाड़ियों की आवाजाही चल रही थी। मुझे फिर से थोड़ा डर लगा और मैंने सोचा, “पुलिस अपना शिकंजा कस रही है। अगर मैं निगरानी से गुजरी और पहचान ली गई, तो मुश्किल में पड़ जाऊँगी। ऐसे में परमेश्वर के वचनों की किताबें जब्त कर ली जाएँगी और चेन हुई फँस जाएगी।” मैं चेन हुई के स्कूटर के पीछे बैठी थी, मैंने उसके कपड़े कसकर पकड़ रखे थे और मेरी हथेलियाँ पसीने से तर थीं। घर पहुँचने से पहले ही मेरा दिल जोर-जोर से धड़क रहा था, मुझे चिंता थी कि पुलिस पास में घात लगाए बैठी होगी। मैं मन ही मन परमेश्वर को पुकार रही थी, फिर मुझे परमेश्वर की कही गई एक बात याद आई : “आस्था एक ही लट्ठे से बने पुल की तरह है : जो लोग हर हाल में जीवन जीने की लालसा से चिपके रहते हैं उन्हें इसे पार करने में परेशानी होगी, परन्तु जो आत्म बलिदान करने को तैयार रहते हैं, वे बिना किसी फ़िक्र के, मज़बूती से कदम रखते हुए उसे पार कर सकते हैं(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 6)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे इन प्रतिकूल हालात का सामना करने का साहस दिया। मैंने मन ही मन सोचा, “भले ही मुझे अपनी जान जोखिम में डालनी पड़े, मुझे परमेश्वर के वचनों की पुस्तकों की रक्षा करनी चाहिए। मुझमें यह आस्था और विश्वास होना चाहिए कि परमेश्वर ही सब-कुछ पर शासन करता है। बड़ा लाल अजगर चाहे कितना भी पगला जाए, परमेश्वर की अनुमति के बिना, वह हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता।” इस तरह सोचकर मुझे अब उतना डर और भय नहीं लगा। एक दिल और एक मन से चेन हुई और मैंने मिलकर परमेश्वर से प्रार्थना की और अंत में, हमने पुस्तकों को बिना किसी समस्या के सुरक्षित स्थान पर पहुँचा दिया। आखिरकार मेरे दिल से एक भारी बोझ उतर गया।

बाद में, मुझे एक वरिष्ठ अगुआ से एक पत्र मिला, जिसमें कहा गया था कि हालात खराब हैं और कलीसिया के कार्य की विभिन्न मदें ठप पड़ी हैं। वह चाहती थी कि मैं, चेन हुई और झांग मिन चीजों की जिम्मेदारी संभालें। मुझे लगा कि मसीह-विरोधी और बुरे लोगों को बाहर नहीं किया गया है और वे अभी भी काम को बाधित कर रहे हैं, मुझे यह जिम्मेदारी उठाकर उन्हें बाहर कर देना चाहिए ताकि भाई-बहन जल्द ही फिर से सामान्य कलीसियाई जीवन जी सकें। लेकिन स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ। हर कुछ दिनों में भाई-बहनों की गिरफ्तारी और उनके घरों पर छापे मारे जाने की दिल दहला देने वाली खबरें आती थीं। बाद में मुझे पता चला कि बड़ा लाल अजगर गिरफ्तार लोगों को लालच देने और गुमराह करने के लिए हर तरह की घिनौनी चालें चल रहा था और उन्हें फँसा रहा था ताकि वे एक-दूसरे को धोखा दें, उन्हें तोड़ने के लिए भयंकर यातनाएँ दे रहा था। बाद में एक खबर आई कि एक झूठी अगुआ झू फेंग, जिसे हमारी कलीसिया से निकाल दिया गया था, उसे बड़े लाल अजगर ने गुमराह किया और वह उसकी नरम और कठोर दोनों पूछताछ बर्दाश्त नहीं कर सकी और कुछ ही दिनों में उसने यहूदा बनकर परमेश्वर को धोखा दे दिया। यह सारी खबर सुनकर मैं एक बार फिर बेचैन हो गई। मैं रात भर उसी के बारे में सोचती रही और सो न सकी। मुझे जैसे यातना कुर्सियों पर बंधे भाई-बहनों के पीड़ित चेहरे दिखाई दे रहे थे। मुझे ख्याल आया कि झू फेंग के पास कलीसिया के काम और मेरे ठिकाने की हर जानकारी थी। अगर वह परमेश्वर को धोखा दे सकती है, तो क्या पता वह मुझे कब धोखा दे दे। अगर मुझे गिरफ्तार कर लिया गया, तो क्या मैं क्रूर यातना सह पाऊँगी? मेरा जेल में मर जाना क्या भयानक नहीं होगा? यह सोचते-सोचते मैं अंधेरे में डूब गई। मुझे उस कर्तव्य का भार महसूस नहीं हुआ जिसका मुझे निर्वाह करना चाहिए था और मैं पूरी तरह से थक चुकी थी। सभाओं में जाते समय जब पुलिस की गाड़ी मेरे पास से गुजरती तो मैं एकदम घबरा जाती। जब मैं उस इलाके से गुजरती जहाँ कुछ भाई-बहनों को गिरफ्तार किया गया था, तो मैं गिरफ्तारी के डर से काँप जाती। मैं सोचती कि मुझे कुछ समय के लिए छिपकर रहना चाहिए, हालात ठीक होने तक इंतजार करना चाहिए और उसके बाद ही लोगों के साथ सभाएँ करनी चाहिए। लेकिन यह सोचकर मुझे बेचैनी-सी होती। मैं सोचती कि यदि कलीसिया में मसीह-विरोधियों और बुरे लोगों से नहीं निपटा गया, तो वे सारा काम बिगाड़ते रहेंगे, अगर मैं कायर बनकर जीती रही, मौत से डरती रही और अपना कर्तव्य ठीक से नहीं निभाया, मेरे पास अच्छे कर्म या गवाही नहीं होगी, तो मैं शैतान की हँसी की पात्र बन जाऊँगी। मैंने विचार किया, “हर कोई जन्म, बुढ़ापा और मौत का अनुभव करता है, तो मैं मौत का सामना करने से इतना क्यों डर गई?” मुख्य रूप से, मैं बहुत ज्यादा आत्म-रक्षक थी। मुझे डर था कि अपनी आस्था के बावजूद मेरा अंत अच्छा नहीं होगा, बल्कि, बड़ा लाल अजगर मुझे भयानक यातना देगा और पीट-पीटकर मार डालेगा। मुझे विश्वास रखते हुए अभी कुछ ही साल तो हुए हैं और मुझे अभी तक सत्य की समझ भी नहीं है। अगर मैं ऐसे ही मर गई, तो मैं परमेश्वर के वचनों को खाने और पीने, उसके कार्य का अनुभव करने और बचाए जाने का अपना मौका गँवा बैठूँगी। तब क्या मेरी आस्था व्यर्थ नहीं चली जाएगी? मैं इस पर जितना सोचती, इसे स्वीकारना उतना ही मुश्किल होता जाता, इसलिए मैंने तुरंत परमेश्वर से प्रार्थना की कि वह मुझे प्रबुद्ध कर मेरा मार्गदर्शन करे ताकि मैं सत्य समझ सकूँ और इन चीजों की समुचित समझ हासिल कर सकूँ। बाद में मुझे परमेश्वर के वचनों का यह अंश मिला : “परमेश्वर के पास उसके प्रत्येक अनुयायी के लिए एक योजना है। उनमें से प्रत्येक व्यक्ति के लिए परमेश्वर द्वारा बनाया गया एक परिवेश है, जिसमें वह अपना कर्तव्य निभा सकता है, और उसके पास परमेश्वर का अनुग्रह और कृपा है जो मनुष्य के आनंद लेने के लिए है। उसके पास विशेष परिस्थितियाँ भी होती हैं, जिन्हें परमेश्वर मनुष्य के लिए निर्धारित करता है, और बहुत सारी पीड़ा है जो उसे सहनी होगी—सहज जीवन जैसा कुछ नहीं होता, जैसी कि मनुष्य कल्पना करता है। ... प्रभु यीशु के उन अनुयायियों की मौत कैसे हुई? उनमें ऐसे अनुयायी थे जिन्हें पत्थरों से मार डाला गया, घोड़े से बाँध कर घसीटा गया, सूली पर उलटा लटका दिया गया, पाँच घोड़ों से खिंचवाकर उनके टुकड़े-टुकड़े कर दिए गए—हर प्रकार की मौत उन पर टूटी। उनकी मृत्यु का कारण क्या था? क्या उन्हें उनके अपराधों के लिए कानूनी तौर पर फाँसी दी गई थी? नहीं। उनकी भर्त्सना की गई, पीटा गया, डाँटा-फटकारा गया और मार डाला गया, क्योंकि उन्होंने प्रभु का सुसमाचार फैलाया था और उन्हें इस संसार के लोगों ने ठुकरा दिया था—इस तरह वे शहीद हुए। हम उन शहीदों के अंतिम परिणाम की, या उनके व्यवहार की परमेश्वर की परिभाषा की बात न करें, बल्कि यह पूछें : जब उनका अंत आया, तब जिन तरीकों से उनके जीवन का अंत हुआ, क्या वह मानव धारणाओं के अनुरूप था? (नहीं, यह ऐसा नहीं था।) मानव धारणाओं के परिप्रेक्ष्य से, उन्होंने परमेश्वर के कार्य का प्रसार करने की इतनी बड़ी कीमत चुकाई, लेकिन अंत में इन लोगों को शैतान द्वारा मौत के घाट उतार दिया गया। यह मानव धारणाओं से मेल नहीं खाता, लेकिन उनके साथ ठीक यही हुआ। परमेश्वर ने ऐसा होने दिया। इसमें कौन-सा सत्य खोजा जा सकता है? क्या परमेश्वर द्वारा उन्हें इस प्रकार मरने देना उसका श्राप और भर्त्सना थी, या यह उसकी योजना और आशीष था? यह दोनों ही नहीं था। यह क्या था? अब लोग अत्यधिक मानसिक व्यथा के साथ उनकी मृत्यु पर विचार करते हैं, किन्तु चीजें इसी प्रकार थीं। परमेश्वर में विश्वास करने वाले लोग इसी तरीके से मारे गए, इसे कैसे समझाया जाए? जब हम इस विषय का जिक्र करें, तो तुम लोग स्वयं को उनकी स्थिति में रखो, क्या तब तुम लोगों के हृदय उदास होते हैं, और क्या तुम भीतर ही भीतर पीड़ा का अनुभव करते हो? तुम सोचते हो, ‘इन लोगों ने परमेश्वर का सुसमाचार फैलाने का अपना कर्तव्य निभाया, इन्हें अच्छा इंसान माना जाना चाहिए, तो फिर उनका अंत, और उनका परिणाम ऐसा कैसे हो सकता है?’ वास्तव में, उनके शरीर इसी तरह मृत्यु को प्राप्त हुए और चल बसे; यह मानव संसार से प्रस्थान का उनका अपना माध्यम था, तो भी इसका यह अर्थ नहीं था कि उनका परिणाम भी वैसा ही था। उनकी मृत्यु और प्रस्थान का साधन चाहे जो रहा हो, या यह चाहे जैसे भी हुआ हो, यह वैसा नहीं था जैसे परमेश्वर ने उन जीवनों के, उन सृजित प्राणियों के अंतिम परिणाम को परिभाषित किया था। तुम्हें यह बात स्पष्ट रूप से समझ लेनी चाहिए। इसके विपरीत, उन्होंने इस संसार की भर्त्सना करने और परमेश्वर के कर्मों की गवाही देने के लिए ठीक उन्हीं साधनों का उपयोग किया। इन सृजित प्राणियों ने अपने सर्वाधिक बहुमूल्य जीवन का उपयोग किया—उन्होंने परमेश्वर के कर्मों की गवाही देने के लिए अपने जीवन के अंतिम क्षण का उपयोग किया, परमेश्वर के महान सामर्थ्य की गवाही देने के लिए उपयोग किया, और शैतान तथा इस संसार के समक्ष यह घोषित करने के लिए किया कि परमेश्वर के कर्म सही हैं, प्रभु यीशु परमेश्वर है, वह प्रभु है, और परमेश्वर का देहधारी शरीर है। यहां तक कि अपने जीवन के बिल्कुल अंतिम क्षण तक उन्होंने प्रभु यीशु का नाम कभी नहीं छोड़ा। क्या यह इस संसार के ऊपर न्याय का एक रूप नहीं था? उन्होंने अपने जीवन का उपयोग किया, संसार के समक्ष यह घोषित करने के लिए, मानव प्राणियों के समक्ष यह पुष्टि करने के लिए कि प्रभु यीशु प्रभु है, प्रभु यीशु मसीह है, वह परमेश्वर का देहधारी शरीर है, कि समस्त मानवजाति के लिए उसने जो छुटकारे का कार्य किया, उसी के कारण मानवता जीवित है—यह सच्चाई कभी बदलने वाली नहीं है। जो लोग प्रभु यीशु के सुसमाचार को फैलाने के लिए शहीद हुए, उन्होंने किस सीमा तक अपने कर्तव्य का पालन किया? क्या यह अंतिम सीमा तक किया गया था? यह अंतिम सीमा कैसे परिलक्षित होती थी? (उन्होंने अपना जीवन अर्पित किया।) यह सही है, उन्होंने अपने जीवन से कीमत चुकाई। परिवार, सम्पदा, और इस जीवन की भौतिक वस्तुएँ, सभी बाहरी उपादान हैं; स्वयं से संबंधित एकमात्र चीज जीवन है। प्रत्येक जीवित व्यक्ति के लिए, जीवन सर्वाधिक सहेजने योग्य है, सर्वाधिक बहुमूल्य है, और असल में कहा जाए तो ये लोग मानव-जाति के प्रति परमेश्वर के प्रेम की पुष्टि और गवाही के रूप में, अपनी सर्वाधिक बहुमूल्य चीज अर्पित कर पाए, और वह चीज है—जीवन। अपनी मृत्यु के दिन तक उन्होंने परमेश्वर का नाम नहीं छोड़ा, न ही परमेश्वर के कार्य को नकारा, और उन्होंने जीवन के अपने अंतिम क्षणों का उपयोग इस तथ्य के अस्तित्व की गवाही देने के लिए किया—क्या यह गवाही का सर्वोच्च रूप नहीं है? यह अपना कर्तव्य निभाने का सर्वश्रेष्ठ तरीक़ा है; अपना उत्तरदायित्व इसी तरह पूरा किया जाता है। जब शैतान ने उन्हें धमकाया और आतंकित किया, और अंत में, यहां तक कि जब उसने उनसे अपने जीवन की कीमत अदा करवाई, तब भी उन्होंने अपनी जिम्मेदारी नहीं छोड़ी। यह उनके कर्तव्य-निर्वहन की पराकाष्ठा है। इससे मेरा क्या आशय है? क्या मेरा आशय यह है कि तुम लोग भी परमेश्वर की गवाही देने और उसका सुसमाचार फैलाने के लिए इसी तरीके का उपयोग करो? तुम्हें हूबहू ऐसा करने की आवश्यकता नहीं है, किन्तु तुम्हें समझना होगा कि यह तुम्हारा दायित्व है, यदि परमेश्वर ऐसा चाहे, तो तुम्हें इसे अपने बाध्यकारी कर्तव्य के रूप में स्वीकार करना चाहिए(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, सुसमाचार का प्रसार करना सभी विश्वासियों का गौरवपूर्ण कर्तव्य है)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे मृत्यु के मुद्दे को और अधिक स्पष्ट रूप से देखने में मदद की। मैंने सीखा कि जीवन या मृत्यु की स्थितियों में क्या मानसिकता रखनी चाहिए और यह कि मैं हमेशा मृत्यु के भय से बेबस और बँधी रही थी मुख्यतः इसलिए क्योंकि मैं इस सत्य को पूरी तरह से नहीं समझ पाई थी कि परमेश्वर हमारी नियति का नियंता है। भले ही मैंने एक विश्वासी के रूप में परमेश्वर के बहुत सारे वचन पढ़े थे और सैद्धांतिक रूप से यह भी समझती थी कि परमेश्वर ही हमारे जीवन और मृत्यु का नियंता है और वही उसे व्यवस्थित भी करता है, लेकिन मुझे उसका कोई वास्तविक निजी अनुभव या समझ नहीं थी। मैंने अपनी घातक खामी भी देखी। मैं विशेषकर मृत्यु से इसलिए भय खाती थी क्योंकि मुझे मरने से पहले यातना और शारीरिक पीड़ा से डर लगता था, मुझे यह भी डर था कि अगर मैं मर गई तो मेरा अंत और गंतव्य अच्छा नहीं होगा। मुझे लगा कि अगर बड़ा लाल अजगर मुझे यातना देकर मार डालता है तो वह एक दुखद मौत होगी। खासकर जब मैंने सोचा कि किस तरह इतने सारे भाई-बहन गिरफ्तार करके प्रताड़ित किए गए कि कैसे झू फेंग ने परमेश्वर को धोखा दे दिया, तो मुझे डर था कि वह मुझे भी धोखा देगी। मुझे चिंता थी कि कहीं मुझे भी उसी तरह की भयंकर यातना न झेलनी पड़े या उस यातना से मैं कहीं मर ही न जाऊँ तो मैंने वाकई दुखी महसूस किया। लेकिन असल में, शारीरिक पीड़ा सबसे बुरी पीड़ा नहीं होती। अगर हम यातना बर्दाश्त न पाए और परमेश्वर को धोखा दे बैठे, तो हमारे आत्मा, प्राण और शरीरों को दंडित किया जाएगा। यही सबसे बड़ी पीड़ा और असहनीय कष्ट है। मुझे उन लोगों का ख्याल आया जिन्होंने यहूदा बनकर परमेश्वर को धोखा दिया था और जिन्हें पवित्र आत्मा ने त्याग दिया था। उनका कहना था कि यह इतना बुरा था जैसे उनके दिलों को चीरा जा रहा हो, उन्हें नहीं पता था कि वे आगे कैसे जिएँगे, मानो वे आत्माविहीन लाशें हों, चलती-फिरती लाश से ज्यादा कुछ नहीं। इस तरह से जीना यातना देकर मारे जाने से कहीं ज्यादा दर्दनाक होगा। फिर मुझे पतरस का विचार आया। जब वह जेल से भाग गया, तो प्रभु यीशु ने उसके सामने प्रकट होकर कहा : “क्या तुम मुझे एक बार फिर अपने लिए सूली पर लटकाओगे?(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, लोग परमेश्वर से बहुत अधिक माँगें करते हैं)। पतरस समझ गया कि परमेश्वर का क्या मतलब है, और वह जानता था कि परमेश्वर ने उसकी गवाही के लिए जो दिन तैयार किया है, वह आ गया है। वह समर्पित हो गया और मृत्यु तक समर्पित रहने को तैयार था और स्वयं को पूरी तरह परमेश्वर को अर्पित करने और उसके लिए सूली पर चढ़ने को तैयार था। पतरस जानता था कि सूली पर चढ़ने का मतलब है असहनीय दर्द सहना, लेकिन फिर भी उसने परमेश्वर के प्रति समर्पण करने, परमेश्वर के लिए सुंदर, शानदार गवाही देने और शैतान को शर्मिंदा करने का फैसला किया। पतरस के परमेश्वर के प्रति समर्पण के प्रकाश में, मुझे बहुत शर्मिंदगी महसूस हुई। मृत्यु के विचार ने मुझे भयभीत कर दिया और मैंने परमेश्वर से माँग की कि मैं दर्द में न मरूँ और मुझे एक सुंदर गंतव्य मिले। यह उचित होना या आज्ञाकारी होना कैसे हुआ? लेकिन फिर मुझे एहसास हुआ कि जब शैतान द्वारा नुकसान पहुँचाया जाए और मृत्यु सामने हो, तो अपने जीवन का बलिदान देना ही वास्तव में सार्थक है और सबसे सर्वोत्तम गवाही है। अगर मैं अपनी रक्षा करूँ और बिना सम्मान के जीवन जिऊँ, तो भले ही मेरा शरीर जीवित रहे और उसे दर्द न हो, लेकिन परमेश्वर के लिए यह उसके साथ विश्वासघात करना और गवाही देने में विफल होना है। परमेश्वर की नजर में, मेरी आत्मा पहले ही मर चुकी है और अंत में वह मुझे दंडित करेगा। इसी को वास्तव में मरना कहते हैं। अगर मैं अपने जीवन का बलिदान करती हूँ, कलीसिया के काम की रक्षा करती हूँ, अपना कर्तव्य अच्छे से निभाती हूँ, परमेश्वर के लिए अपनी गवाही में दृढ़ रहती हूँ और शैतान को शर्मिंदा करती हूँ, तो फिर भले ही मुझे पीट-पीटकर मार डाला जाए, तब भी मेरी आत्मा परमेश्वर के हाथों में होगी और जीवित रहेगी। उस समय मुझे एहसास हुआ कि मैं बहुत विद्रोही हूँ और मैं परमेश्वर की संप्रभुता और आयोजनों को समर्पित होने को तैयार नहीं हूँ और मैं परमेश्वर की गवाही देने के लिए अपने जीवन का बलिदान करने को प्रतिबद्ध नहीं हूँ। परमेश्वर ने इस उम्मीद से मुझे कठिनाई और उत्पीड़न सहने की छूट दी, ताकि मैं सीखूँगी और खुद को सत्य से युक्त करूँगी और जानूँगी कि सृजित प्राणियों को परमेश्वर के प्रति समर्पित होना चाहिए और अगर किसी दिन परमेश्वर चाहे कि मैं उस तरह की गवाही दूँ, तो मुझे बिना किसी शर्त के समर्पित होना होगा, पतरस की तरह बनकर परमेश्वर को संतुष्ट करने का संकल्प लेना होगा। हालाँकि मुझे अभी भी परमेश्वर के बारे में ज्यादा समझ नहीं थी, लेकिन मेरा मानना था कि परमेश्वर जो कुछ भी करता है वह धार्मिकता है। चाहे वह किसी को जीवित रखे या मारे, इसमें उसकी नेक इच्छा और उसकी संप्रभुता और व्यवस्थाएँ निहित होती हैं। एक बार इन बातों को समझ लेने पर, मैं मृत्यु के विचार से और अधिक विवश नहीं हुई। चाहे बड़े लाल अजगर का उत्पीड़न कितना भी पागलपन से भरा क्यों न हो और चाहे मुझे गिरफ्तार ही कर लिया जाए, मैं खुद को परमेश्वर के हाथों में सौंपने और अपना कर्तव्य पूरा करने के लिए तैयार थी।

फिर मैं भाई-बहनों के साथ परमेश्वर के वचनों पर संगति करने के लिए सभा-स्थलों पर गई, तो हर कोई समझ गया कि परमेश्वर अपने लक्ष्यों की पूर्ति और हमें पूर्ण बनाने के लिए बड़े लाल अजगर का उपयोग कर रहा है, उसके द्वारा गिरफ्तारियों और उत्पीड़न का उपयोग कर रहा है ताकि हम उसके दुष्ट सार को स्पष्ट रूप से देख सकें, उसे पहचान सकें और उसे अपने दिल से नकार सकें, साथ ही इन परीक्षणों के जरिए अपनी आस्था और प्रेम को भी पूर्ण कर सकें। एक ओर जहाँ बडा लाल अजगर हमें बेतहाशा गिरफ्तार कर रहा था, वहीं दूसरी ओर मसीह-विरोधी भी कलीसिया में तबाही मचा रहा था और व्यवधान पैदा कर रहा था। लेकिन हम सभी को परमेश्वर पर भरोसा करने की जरूरत थी, उसके वचनों को खाने और पीने में लगे रहना चाहिए था और उस वातावरण में मसीह-विरोधी को पहचानना था, अपना कर्तव्य पूरा करते हुए परमेश्वर के लिए अपनी गवाही में अडिग रहना था। एक बार जब वे परमेश्वर के इरादे को समझ गए, तो वे सभी इस कठोर परिवेश में कलीसिया जीवन जारी रखने के लिए तैयार थे और शैतान को शर्मिंदा करने के लिए अपना कर्तव्य पूरा करने को तैयार थे।

मैंने भी उसके बाद आत्मचिंतन किया। उस पहले की स्थिति में मुझमें आस्था की इतनी कमी क्यों हो जाती थी और मैं स्वार्थी क्यों हो जाती थी? असली कारण क्या था? इसकी खोज करते समय, मैंने परमेश्वर के ये वचन पढ़े : “मसीह-विरोधी बेहद स्वार्थी और घिनौने होते हैं। उनमें परमेश्वर के प्रति सच्ची आस्था नहीं होती, परमेश्वर के प्रति निष्ठा तो बिल्कुल नहीं होती; जब उनके सामने कोई समस्या आती है, तो वे केवल अपना बचाव और अपनी सुरक्षा करते हैं। उनके लिए, उनकी अपनी सुरक्षा से ज्यादा जरूरी और कुछ नहीं है। अगर वे जिंदा रह सकें और गिरफ्तार न हों, तो उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता कि कलीसिया के काम को कितना नुकसान हुआ है। ये लोग बेहद स्वार्थी हैं, वे भाई-बहनों या कलीसिया के काम के बारे में बिल्कुल नहीं सोचते, सिर्फ अपनी सुरक्षा के बारे में सोचते हैं। वे मसीह-विरोधी हैं। तो जब उन लोगों के साथ ऐसी चीजें घटती हैं जो परमेश्वर के प्रति निष्ठावान हैं और परमेश्वर में सच्ची आस्था रखते हैं, तो वे उन्हें कैसे संभालते हैं? वे जो करते हैं वह मसीह-विरोधियों के काम से किस तरह अलग है? (जब ऐसी चीजें उन लोगों पर बीतती हैं जो परमेश्वर के प्रति निष्ठावान हैं, तो वे परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा करने, परमेश्वर के चढ़ावे को नुकसान से बचाने के लिए किसी भी तरीके के बारे में सोचेंगे, और वे नुकसान को कम करने के लिए अगुआओं और कार्यकर्ताओं, और भाई-बहनों के लिए जरूरी व्यवस्थाएँ भी करेंगे। जबकि, मसीह-विरोधी सबसे पहले यह सुनिश्चित करते हैं कि वे सुरक्षित रहें। वे कलीसिया के कार्य या परमेश्वर के चुने हुए लोगों की सुरक्षा के बारे में चिंता नहीं करते, और जब कलीसिया में गिरफ्तारियाँ होती हैं, तो इससे कलीसिया के कार्य को नुकसान होता है।) मसीह-विरोधी कलीसिया के कार्य और परमेश्वर के चढ़ावे को छोड़कर भाग जाते हैं, और वे गिरफ्तारी के बाद की स्थिति को सँभालने के लिए लोगों की व्यवस्था नहीं करते। यह बड़े लाल अजगर को परमेश्वर के चढ़ावे और उसके चुने हुए लोगों को जब्त करने की अनुमति देने के समान है। क्या यह परमेश्वर के चढ़ावे और उसके चुने हुए लोगों के साथ गुप्त विश्वासघात नहीं है? जब वे लोग जो परमेश्वर के प्रति निष्ठावान होते हैं, स्पष्ट रूप से जानते हैं कि परिवेश खतरनाक है, तब भी वे गिरफ्तारी के बाद का कार्य सँभालने का जोखिम उठाते हैं, और निकलने से पहले वे परमेश्वर के घर को होने वाले नुकसान को न्यूनतम करते हैं। वे अपनी सुरक्षा को प्राथमिकता नहीं देते। मुझे बताओ, बड़े लाल अजगर के इस दुष्ट राष्ट्र में, कौन यह सुनिश्चित कर सकता है कि परमेश्वर में विश्वास करने और कर्तव्य करने में कोई भी खतरा न हो? चाहे व्यक्ति कोई भी कर्तव्य निभाए, उसमें कुछ जोखिम तो होता ही है—लेकिन कर्तव्य का निर्वहन परमेश्वर द्वारा सौंपा गया आदेश है, और परमेश्वर का अनुसरण करते हुए, व्यक्ति को अपना कर्तव्य करने का जोखिम उठाना ही चाहिए। इसमें बुद्धि का इस्तेमाल करना चाहिए और अपनी सुरक्षा के इंतजाम करने की भी आवश्यकता होती है, लेकिन व्यक्ति को अपनी व्यक्तिगत सुरक्षा को पहला स्थान नहीं देना चाहिए। उसे पहले परमेश्वर के इरादों पर विचार करना चाहिए, उसके घर के कार्य और सुसमाचार के प्रचार को सबसे ऊपर रखना चाहिए। परमेश्वर ने तुम्हें जो आदेश सौंपा है, उसे पूरा करना सर्वाधिक महत्वपूर्ण है, और वह पहले आता है। मसीह-विरोधी अपनी व्यक्तिगत सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हैं; उनका मानना है कि किसी और चीज का उनसे कोई लेना-देना नहीं है। जब किसी दूसरे के साथ कुछ होता है, तो वे परवाह नहीं करते, चाहे वह कोई भी हो। जब तक खुद मसीह-विरोधी के साथ कुछ बुरा नहीं होता, तब तक वे आराम से बैठे रहते हैं। वे निष्ठारहित होते हैं, जो मसीह-विरोधी के प्रकृति सार से निर्धारित होता है(वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ (भाग दो))। परमेश्वर के वचन सीधे मेरे दिल में चुभ गए। परमेश्वर ने खुलासा किया कि मसीह-विरोधी प्रकृति से बेहद दुष्ट, स्वार्थी और घृणित होते हैं और वे परमेश्वर के प्रति वफादार नहीं होते। खतरा मंडराने पर वे भाई-बहनों की सुरक्षा की परवाह किए बिना, बस अपना बचाव करते हैं। वे केवल अपने दैहिक हितों और अपनी सुरक्षा के बारे में सोचते हैं, उन्हें परमेश्वर के चुने हुए लोगों और परमेश्वर के चढ़ावों को बड़े लाल अजगर द्वारा जब्त किए जाने देते हैं। इस तरह, वे गुप्त रूप से भाइयों और बहनों और परमेश्वर के घर के हितों के साथ धोखा करते हैं। यही करतूत होती है मसीह विरोधियों की। पहले तो मेरा मन भी स्वार्थी और घृणित सोच-विचार से भरा था जिससे मेरा मसीह-विरोधी स्वभाव प्रकट हुआ। जब यांग यू को गिरफ्तार किया गया, तो बहुत से दूसरे लोगों को सूचित करना था और मुझे परमेश्वर के वचनों की पुस्तकों को फौरन दूसरी जगह भेजने की जिम्मेदारी संभालनी थी, लेकिन मुझे बड़े लाल अजगर के हाथों गिरफ्तार होने, यातनाएँ दिए जाने, पीट-पीटकर मार डाले जाने और फिर उद्धार पाने का मेरा मौका गँवा देने का डर था, इसलिए मैं अपना कर्तव्य छोड़ना चाहती थी। एक अगुआ के तौर पर मैं कलीसिया के काम की जिम्मेदार थी। भाइयों और बहनों की सुरक्षा सुनिश्चित करना और कलीसिया के हितों से समझौता न हो, यह देखना मेरी जिम्मेदारी थी। लेकिन जब खतरा मंडराया, तो मैंने दूसरों के बारे में न सोचकर केवल अपनी जिंदगी और मौत के बारे में सोचा। भाइयों और बहनों के और कलीसिया के हितों के बारे में उस समय मेरे मन में कोई ख्याल नहीं आया, मानो उनके गिरफ्तार होने, पीटे जाने या कष्ट में होने से मुझे कोई सहानुभूति नहीं थी। मुझे लगा कि परमेश्वर के घर के हितों को होने वाले नुकसान का मुझसे कोई लेना-देना नहीं है और सिर्फ खुद को सुरक्षित रखना ही काफी है। मैं इतनी मानवता-रहित, घृणित और दुर्भावनापूर्ण कैसे हो सकती थी? परमेश्वर के प्रति वफादार लोग हर मामले में पहले परमेश्वर के घर के हितों का ख्याल रखते हैं। लेकिन जब कुछ बुरा हुआ, तो मैं बस अपना कर्तव्य त्यागकर पर्दे के पीछे छिप जाना चाहती थी। मैं दुआ कर रही थी कि मुझे कोई खतरनाक काम या किसी जानलेवा चीज का सामना न करना पड़ेगा। बार-बार, मैं खतरनाक काम चेन हुई और झांग मिन पर थोप देना चाहती थी। भले ही मैंने वास्तव में वे काम नहीं किए, लेकिन ऐसी सोच और ख्याल तो मन में पूरी दृढ़ता से आ ही रहे थे। मेरा यह स्वभाव उतना ही बुरा और घृणित था जितना कि मसीह विरोधियों का था। दरअसल, मैं तो पहले से ही बुराई करने को तैयार बैठी थी। यह तो भला हो, परमेश्वर के वचनों ने समय रहते मेरा न्याय किया, मुझे उजागर कर मेरा मार्गदर्शन किया, इसलिए मैं बुराई करने से बाल-बाल बच गई। वरना, परमेश्वर ने तो मुझे तुच्छ जानकर ठुकरा दिया होता। यह एहसास होने पर, मैं अंततः पूरी तरह से समझ गई कि परमेश्वर में विश्वास के परमेश्वर के वचनों के न्याय और ताड़ना को अनुभव करना कितना महत्वपूर्ण है।

बाद के दिनों में, बड़े लाल अजगर द्वारा कलीसिया के सदस्यों की गिरफ्तारी और उनके उत्पीड़न में कोई कमी नहीं आई। एक बहन जिसे कहीं और से स्थानांतरित किया गया था, उसे अपना कर्तव्य निभाते समय गिरफ्तार कर लिया गया और एक व्यक्ति जिसे पहले ही निकाल दिया गया था, उसे भी गिरफ्तार कर लिया गया। माहौल अभी भी बहुत तनावपूर्ण था। आगे चलकर, मैंने परमेश्वर के वचनों में यह पढ़ा : “क्या तुम लोग सच में बड़े लाल अजगर से घृणा करते हो? क्या तुम सच में, ईमानदारी से उससे घृणा करते हो? मैंने तुम लोगों से इतनी बार क्यों पूछा है? मैं तुमसे यह प्रश्न बार-बार क्यों पूछता हूँ? तुम लोगों के हृदय में बड़े लाल अजगर की क्या छवि है? क्या उसे वास्तव में हटा दिया गया है? क्या तुम सचमुच उसे अपना पिता नहीं मानते। सभी लोगों को मेरे प्रश्नों में निहित मेरी मंशा समझनी चाहिए। यह लोगों का क्रोध भड़काने के लिए नहीं है, न ही मनुष्यों में विद्रोह उभारने के लिए है, न ही इसलिए है कि मनुष्य अपना मार्ग स्वयं ढूँढ़ सके, बल्कि इसलिए है कि सभी लोग अपने आपको बड़े लाल अजगर के बंधन से छुड़ा लें(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 28)। परमेश्वर के वचन सही हैं। बड़े लाल अजगर का देश धरती पर नरक की तरह है। पीछा किए जाने और उत्पीड़न का निजी तौर पर अनुभव करने से पहले, मैंने परमेश्वर के वचन पढ़े : “क्या तुम लोग सच में बड़े लाल अजगर से घृणा करते हो?” हालाँकि मैंने इसे मौखिक रूप से माना, लेकिन मेरे दिल में सच में उसके प्रति घृणा नहीं थी। जब मैंने सीसीपी द्वारा विश्वासियों पर किए जाने वाले लोगों के उत्पीड़न को अपनी आँखों से देखा और कैसे वह विश्वासियों को अकारण गिरफ्तार करती है, उन्हें क्रूरता से प्रताड़ित होते, यहाँ तक कि कुछ को पिट-पिटकर मरते हुए देखा, तो आखिरकार मुझे बड़े लाल अजगर, उस राक्षस से अपने दिल की गहराई से घृणा पैदा हो गई। बड़े लाल अजगर के उत्पीड़न और दुर्व्यवहार के जरिए ही मैंने शैतान का बेरहम और दुष्ट सार देखा। मैंने व्यक्तिगत रूप से परमेश्वर की संप्रभुता और अधिकार का भी अनुभव किया और परमेश्वर में मेरी आस्था जगी। उसके बाद तो जैसी भी परिस्थितियाँ आईं, मैं अपना कर्तव्य निभाने के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ देने को तैयार थी, अब मैं स्वार्थी और नीच, खुद के लिए जीने वाली इंसान नहीं बनना चाहती थी। बल्कि, मैं परमेश्वर पर निर्भर रहते हुए, उसके इरादों के प्रति विचारशील होऊँगी, परमेश्वर के घर के हितों को सबसे पहले रखूँगी और अपना कर्तव्य अच्छे से निभाऊँगी।

इसके बाद मैंने अपनी साथी बहनों के साथ संगति की, कि चाहे परिस्थिति कितनी भी विकट क्यों न हो, मसीह-विरोधियों और कुकर्मियों को उजागर करने में देरी नहीं की जा सकती। अपनी संगति के बाद हमने सब-कुछ सिद्धांतों के अनुसार किया। परमेश्वर के वचनों के मार्गदर्शन के जरिए, मुझे गिरफ्तार होने का अब और डर नहीं था और मैं अपना कर्तव्य सामान्य रूप से निभा सकती थी। अंत में, हमने बिना किसी समस्या के मसीह-विरोधी को कलीसिया से निकाल दिया और भाई-बहन धीरे-धीरे सामान्य कलीसियाई जीवन जीने लगे। हर कोई परमेश्वर का आभारी था और उसकी स्तुति कर रहा था। इस बार, बड़े लाल अजगर द्वारा गिरफ्तारी और उत्पीड़न का सामना करते हुए, मैंने हार नहीं मानी और न ही मैंने अपना कर्तव्य छोड़ा। यह पूरी तरह से परमेश्वर के वचनों के मार्गदर्शन का परिणाम था। परमेश्वर का धन्यवाद!

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