10. समझने का ढोंग करके मैंने आफत मोल ले ली
मैं कलीसिया के लिए डिजाइन का काम कर रही थी। समय के साथ, सभी तरह के डिजाइन और चित्र बनाने से मेरी कार्यकुशलता खूब बढ़ गई तो मुझे टीम अगुआ बना दिया गया। मैंने सोचा : “मुझे टीम अगुआ बनाने का मतलब ही यह है कि मुझमें कुछ हुनर और प्रतिभा है, मैं दूसरे भाई-बहनों से बेहतर हूँ और इस काम को संभाल सकती हूँ। मुझे इस काम को सँजोना होगा, कड़ी मेहनत करनी है, सत्य सिद्धांत खोजने हैं और अपना भरसक देना है। मैं ऐसी गलतियाँ नहीं कर सकती जो कलीसिया के कार्य में रुकावट डालें। मुझे सबको दिखाना है कि मैं टीम अगुआ के लिए ही बनी हूँ।”
एक दिन कलीसिया के अगुआ ने मुझसे कहा, “कलीसिया को भजनों की एक वीडियो के लिए बैकग्राउंड तस्वीर चाहिए। इसे बनाना हमारे पहले वाले चित्रों से कठिन है। चूँकि बाकी लोग अभी दूसरे डिजाइन बनाने में व्यस्त हैं, इसलिए यह काम हम तुम्हें सौंपना चाहते हैं। क्या तुम कर पाओगी?” अगुआ की बात सुनकर मैंने सोचा, “मैंने ऐसी जटिल बैकग्राउंड पर पहले कभी काम नहीं किया, इसलिए मुझे अच्छे नतीजों की गारंटी देने का यकीन नहीं है।” लेकिन फिर सोचा, “इस प्रोजेक्ट पर अगुआ और भाई-बहनों की भी निगाह रहेगी—मैं दो साल से यह काम कर रही हूँ, मैंने मुश्किल मसले और काम बखूबी संभाले हैं और मुझमें अच्छा खासा हुनर आ चुका है। ठीक है कि इतनी कठिन बैकग्राउंड बनाने का काम पहली बार कर रही हूँ, इसमें कुछ अनजानी समस्याएँ सामने आना भी तय है, लेकिन अगर ऐसे काम को भी नहीं कर पाई तो मेरे बारे में बाकी लोग क्या सोचेंगे? अगर इसे नहीं संभाल पाई तो क्या वे यह नहीं सोचेंगे कि मुझमें प्रतिभा नहीं है और मैंने अपने कर्तव्य में कोई तरक्की नहीं की है? बाकी भाई-बहन अपने कामों में जुटे हुए हैं, और अगर इस मौके पर किसी और को मेरे साथ लगाया जाता है, तो हर कोई यही सोचेगा कि मैं बड़ी जिम्मेदारी नहीं संभाल सकती, मैं महत्वपूर्ण पलों में भारी बोझ नहीं उठा सकती हूँ और मैं किसी बड़े काम के लिए नहीं बनी हूँ। मैं ऐसा नहीं होने दूँगी! चाहे जो हो, मुझे यह प्रोजेक्ट करना है। मुझे जो कुछ नहीं आता, उसे सीखूँगी, ताकि सब कुछ ठीक से कर सकूँ और सबको दिखा दूँगी कि मैं भी चुनौती वाले काम संभाल सकती हूँ।” अपना मन मजबूत करके मैंने पूरे यकीन से कहा, “मैं इसे कर लूँगी, कोई दिक्कत नहीं होगी। यह दूसरी बैकग्राउंड से बस थोड़ी-सी ही कठिन और चुनौतीपूर्ण है। थोड़ी-सी ज्यादा कोशिश करके मैं अच्छा काम कर लूँगी।” मेरा आत्मविश्वास देखकर अगुआ ने सिर हिलाकर हामी भरी और कहा, “इस काम के लिए समय बहुत कम बचा है और भजन का अर्थ और भाव भी डिजाइन में झलकना चाहिए। अगर डिजाइन बनाते समय कोई भी दिक्कत हो तो तुरंत हमसे बात कर लेना।” मेरे निरीक्षक ने भी कहा, “अगर तुम्हें लगे कि बात नहीं बन रही है तो हमें बताना, हम तुम्हारी मदद के लिए किसी को भेज देंगे।” मैंने उत्साह और घबराहट में हामी भर दी, मेरे उत्साह का कारण यह था कि मुझे इतना अहम डिजाइन बनाना था, जिसे ठीक से बना लिया तो मुझे बहुत प्रशंसा मिलेगी, लेकिन मुझे यह चिंता भी थी कि इतना कठिन काम कर भी पाऊँगी या नहीं, और क्या मैं उनके मन मुताबिक अच्छा बना सकूँगी। लेकिन कुछ भी हो, मैं किसी का सिर झुकने नहीं दे सकती थी। मुझे फौरन खोजबीन शुरू करनी थी, नई चीजें आजमानी थीं ताकि कभी-कभी मिलने वाले ऐसे अवसर का फायदा उठा सकूँ। मुझे इस काम को अंजाम देना था, चाहे जितना कठिन हो।
डिजाइन बनाते समय लगा कि वक्त दौड़ता जा रहा है और कई समस्याएँ भी सामने आईं। मुझ पर दबाव बढ़ता जा रहा था। अगुआ और निरीक्षक अक्सर मेरे काम की प्रगति के बारे में पूछते और जानना चाहते कि कोई दिक्कत तो नहीं आ रही है। मैं इतनी ज्यादा घबराई रहती थी कि उन्हें बस यही कह देती कि सब-कुछ “ठीक चल रहा है,” जबकि हकीकत में मैं काँप रही होती थी : डिजाइन में अब भी बहुत-सी जगहें थीं जिनमें सुधार की जरूरत थी। इसमें कुछ महत्वपूर्ण तकनीकी खोज करना बाकी था। यह अंतिम नतीजा क्या होगा इस बात का मुझे जरा भी अंदाजा नहीं था। अगर यह ठीक नहीं बना तो क्या सभी देख लेंगे कि मुझमें कौशल कि कितनी कमी थी और कहेंगे कि मुझमें क्षमता नहीं है और मैं दिखावा करती हूँ? चूँकि मैंने वादा किया कि मैं इसे कर लूँगी, पर अब अगर मैं कहूँ कि मैं इसे न कर पाऊँ तो क्या मैं खुद को शर्मिंदा नहीं करूंगी? लिहाजा मेरे बस में सिर्फ मजबूरी में काम करते जाना और समाधान ढूंढना था। मुझे तो अभी कोई खाका भी ठीक से नहीं सूझा था, इसलिए कुछ समय माथापच्ची में लगा। एक बार अगुआ स्टूडियो में आया और थोड़ी देर मुझे काम करते देखा, तो मैं जानबूझकर एक आसान हिस्से में जाकर तेजी से चित्र बनाने लगी, ताकि उसे लगे कि सब-कुछ मेरे काबू में है। हालाँकि, हकीकत में मेरी हथेलियों में पसीना आ रहा था। जब अगुआ चला गया, तो मैं दुबारा कठिन हिस्से में जुटकर दिमाग दौड़ाने लगी। मैंने इस पर काफी समय तक सोचा, लेकिन मैं अभी भी इससे निपटने का कोई तरीका नहीं सोच पाई। तब भी मैं समस्या कबूलना नहीं चाहती थी, डरती थी कि अगुआ मेरी क्षमता पर सवाल खड़ा करेगा। मुझे लगा कि चूँकि मैं पहले ही अपनी शेखी बघार चुकी हूँ, इसलिए पीछे हटना बहुत शर्मनाक होगा। मैं इस मुश्किल हालत में भी अकेले डटकर तस्वीर बनाने पर आमादा थी, लेकिन मैं बहुत अप्रभावी थी और मानसिक रूप से बुरी तरह थक चुकी थी। मुझे आखिरी रात में देर तक जागकर डिजाइन पूरा करना पड़ा। मेरे अगुआ और निरीक्षक ने कहा कि यह अच्छा लग रहा है पर सिर्फ थोड़ा-सा सुधारना पड़ेगा। फिर भी, मैं खुद को खुश नहीं कर पाई—मैं उदास महसूस कर रही थी।
बाद में, भक्ति के दौरान मैंने परमेश्वर के वचनों का अंश पढ़ा : “अगर अपने जीवन में तुम अक्सर दोषारोपण करने की भावना रखते हो, अगर तुम्हारे हृदय को सुकून नहीं मिलता, अगर तुम शांति या आनंद से रहित हो, और अक्सर सभी प्रकार की चीजों के बारे में चिंता और घबराहट से घिरे रहते हो, तो यह क्या प्रदर्शित करता है? केवल यह कि तुम सत्य का अभ्यास नहीं करते, परमेश्वर के प्रति अपनी गवाही में दृढ़ नहीं रहते। जब तुम शैतान के स्वभाव के बीच जीते हो, तो तुम्हारे अक्सर सत्य का अभ्यास करने में विफल होने, सत्य से विश्वासघात करने, स्वार्थी और नीच होने की संभावना है; तुम केवल अपनी छवि, अपना नाम और हैसियत, और अपने हित कायम रखते हो। हमेशा अपने लिए जीना तुम्हें बहुत दर्द देता है। तुम इतनी स्वार्थपूर्ण इच्छाओं, उलझावों, बेड़ियों, गलतफहमियों और झंझटों में जकड़े हुए हो कि तुम्हें लेशमात्र भी शांति या आनंद नहीं मिलता। भ्रष्ट देह के लिए जीने का मतलब है अत्यधिक कष्ट उठाना” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, जीवन में प्रवेश कर्तव्य निभाने से प्रारंभ होता है)। परमेश्वर के वचनों के बारे में सोचकर मैंने जाना कि डिजाइन बनाने के बाद भी मैं खुश नहीं पाई, बल्कि थकावट और उदासी महसूस की, इसका कारण यह था कि मुझे अपने रुतबे की बहुत ज्यादा इच्छा थी। अपनी कमियाँ उजागर करने से बचने के लिए मैंने छद्मवेश धारण कर मुखौटा पहन लिया था। क्या यह थकाऊ नहीं था? बाद में मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अन्य अंश पढ़कर अपने भ्रष्ट स्वभाव को बेहतर ढंग से समझा। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है : “लोग स्वयं भी सृजित प्राणी हैं। क्या सृजित प्राणी सर्वशक्तिमान हो सकते हैं? क्या वे पूर्णता और निष्कलंकता हासिल कर सकते हैं? क्या वे हर चीज में दक्षता हासिल कर सकते हैं, हर चीज समझ सकते हैं, हर चीज की असलियत देख सकते हैं, और हर चीज में सक्षम हो सकते हैं? वे ऐसा नहीं कर सकते। हालाँकि, मनुष्यों में भ्रष्ट स्वभाव और एक घातक कमजोरी है : जैसे ही लोग किसी कौशल या पेशे को सीख लेते हैं, वे यह महसूस करने लगते हैं कि वे सक्षम हो गये हैं, वे रुतबे और हैसियत वाले लोग हैं, और वे पेशेवर हैं। चाहे वे कितने भी साधारण हों, वे सभी अपने-आपको किसी प्रसिद्ध या असाधारण व्यक्ति के रूप में पेश करना चाहते हैं, अपने-आपको किसी छोटी-मोटी मशहूर हस्ती में बदलना चाहते हैं, ताकि लोग उन्हें पूर्ण और निष्कलंक समझें, जिसमें एक भी दोष नहीं है; दूसरों की नजरों में वे प्रसिद्ध, शक्तिशाली, या कोई महान हस्ती बनना चाहते हैं, पराक्रमी, कुछ भी करने में सक्षम और ऐसे व्यक्ति बनना चाहते हैं, जिनके लिए कोई चीज ऐसी नहीं, जिसे वे न कर सकते हों। उन्हें लगता है कि अगर वे दूसरों की मदद माँगते हैं, तो वे असमर्थ, कमजोर और हीन दिखाई देंगे और लोग उन्हें नीची नजरों से देखेंगे। इस कारण से, वे हमेशा एक झूठा चेहरा बनाए रखना चाहते हैं। जब कुछ लोगों से कुछ करने के लिए कहा जाता है, तो वे कहते हैं कि उन्हें पता है कि इसे कैसे करना है, जबकि वे वास्तव में कुछ नहीं जानते होते। बाद में, वे चुपके-चुपके इसके बारे में जानने और यह सीखने की कोशिश करते हैं कि इसे कैसे किया जाए, लेकिन कई दिनों तक इसका अध्ययन करने के बाद भी वे नहीं समझ पाते कि इसे कैसे करें। यह पूछे जाने पर कि उनका काम कैसा चल रहा है, वे कहते हैं, ‘जल्दी ही, जल्दी ही!’ लेकिन अपने दिलों में वे सोच रहे होते हैं, ‘मैं अभी उस स्तर तक नहीं पहुँचा हूँ, मैं कुछ नहीं जानता, मुझे नहीं पता कि क्या करना है! मुझे अपना भंडा नहीं फूटने देना चाहिए, मुझे दिखावा करते रहना चाहिए, मैं लोगों को अपनी कमियाँ और अज्ञानता देखने नहीं दे सकता, मैं उन्हें अपना अनादर नहीं करने दे सकता!’ यह क्या समस्या है? यह हर कीमत पर इज्जत बचाने की कोशिश करने का एक जीवित नरक है। यह किस तरह का स्वभाव है? ऐसे लोगों के अहंकार की कोई सीमा नहीं होती, वे अपनी सारी समझ खो चुके हैं। वे हर किसी की तरह नहीं बनना चाहते, वे आम आदमी या सामान्य लोग नहीं बनना चाहते, बल्कि अतिमानव, असाधारण व्यक्ति या कोई दिग्गज बनना चाहते हैं। यह बहुत बड़ी समस्या है! जहाँ तक सामान्य मानवता के भीतर की कमजोरियों, कमियों, अज्ञानता, मूर्खता और समझ की कमी की बात है, वे इन सबको छिपा लेते हैं और दूसरे लोगों को देखने नहीं देते, और फिर खुद को छद्म वेश में छिपाए रहते हैं। ... तुम लोग क्या कहते हो, क्या ऐसे लोग कल्पना-लोक में नहीं रहते हैं? क्या वे सपने नहीं देख रहे हैं? वे नहीं जानते कि वे स्वयं क्या हैं, न ही वे सामान्य मानवता को जीने का तरीका जानते हैं। उन्होंने एक बार भी व्यावहारिक मनुष्यों की तरह काम नहीं किया है। यदि तुम कल्पना-लोक में रहकर दिन गुजारते हो, जैसे-तैसे काम करते रहते हो, यथार्थ में रहकर काम नहीं करते, हमेशा अपनी कल्पना के अनुसार जीते हो, तो यह परेशानी वाली बात है। तुम जीवन में जो मार्ग चुनते हो वह सही नहीं है” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, पाँच शर्तें, जिन्हें परमेश्वर पर विश्वास के सही मार्ग पर चलने के लिए पूरा करना आवश्यक है)। परमेश्वर के वचनों ने मेरी हालत को उजागर कर दिया। चूँकि मैं काफी समय से डिजाइन बना रही थी, मैंने कुछ हुनर भी हासिल कर लिया था और मुझे टीम अगुआ भी बना दिया गया था, तो मुझे लगता था कि मैं काबिल और विरल प्रतिभा हूँ। अपने बारे में इस तरह सोचने के बाद, इसलिए मेरे बारे में दूसरे क्या सोचते हैं, इसका खास ध्यान रखती थी, डरती थी कि मेरी कमियाँ देखकर वे कहेंगे कि मैं इस काम के लायक नहीं हूँ। खासकर बैकग्राउंड तस्वीर को लेकर, मैंने इसके जितना कठिन काम पहले कभी नहीं किया था और मुझे कामयाब होने का यकीन भी नहीं था, फिर भी अपनी प्रतिष्ठा और रुतबा बचाने, अपने अगुआ और निरीक्षक का भरोसा पाने के लिए मैंने सब-कुछ नियंत्रण में होने का ढोंग किया। जब समस्याएँ सामने आईं और काम रुक गया तो मदद माँगने के बजाय मैं अकेले जूझती रही। जब मेरे अगुआ ने तरक्की या समस्याओं के बारे में पूछा तो कुछ भी समझ में न आने के बावजूद मैंने अपनी असली समस्याएँ नहीं बताईं। इसके बजाय मैंने अगुआ और निरीक्षक से झूठ बोला और उन्हें धोखा दिया, यही नहीं, यह ढोंग भी किया कि मैं बहुत हुनरमंद हूँ ताकि अगुआ सोचे कि मैं काम कर सकती हूँ। अपनी कमियाँ छिपाने के लिए मैंने कोई मुखौटा नहीं छोड़ा। मैंने हमेशा ढोंग किया कि मैं प्रतिभाशाली कार्यकर्ता हूँ ताकि दूसरों को लगे कि मैं कुछ भी कर सकती हूँ और हर चीज जानती हूँ। मुझे एहसास हुआ कि मैं बहुत ही घमंडी और अहंकारी हूँ। परमेश्वर के वचन कहते हैं : “लोग स्वयं भी सृजित प्राणी हैं। क्या सृजित प्राणी सर्वशक्तिमान हो सकते हैं? क्या वे पूर्णता और निष्कलंकता हासिल कर सकते हैं? क्या वे हर चीज में दक्षता हासिल कर सकते हैं, हर चीज समझ सकते हैं, हर चीज की असलियत देख सकते हैं, और हर चीज में सक्षम हो सकते हैं? वे ऐसा नहीं कर सकते।” दरअसल, कोई भी भ्रष्ट व्यक्ति मुकम्मल और हर फन में माहिर कैसे हो सकता है? अपने काम के दौरान कोई बात समझ में न आना या कुछ चीजें न कर सकना सामान्य है, लेकिन अपनी कमियों को लेकर मेरा ऐसा नजरिया नहीं था। बल्कि, मैं खुद को प्रतिभाशाली कार्यकर्ता के रूप में दिखाने में लगी रही। मैं एक औसत, दोषपूर्ण सृजित प्राणी के रूप में नहीं दिखना चाहती थी। मैं मुकम्मल और दोषरहित होना चाहती थी। इतने अहंकार से मेरी मति मारी जा चुकी थी। चूँकि मैं अपने काम में हमेशा मुखौटा ओढ़े रहती थी, डरती थी कि दूसरे मेरी असलियत देख लेंगे और कुछ समझ में न आने पर मदद नहीं माँगती थी, तो डिजाइन बनाने में देरी हुई जबकि यह काम तेजी से होना चाहिए था और मैं भावनात्मक रूप से टूट गई। मुझे एहसास हुआ कि दोषरहित बनने का प्रयास मूर्खता था। मैं हमेशा अपनी कमियों को छिपाती थी, मुझमें उन्हें स्वीकारने और उनका सामना करने का साहस नहीं था। नतीजतन, मैं अपने काम में न सिर्फ निढाल और लापरवाह थी, बल्कि मैंने कलीसिया के कार्य में भी देरी कर दी थी। इसका एहसास होने पर मैंने प्रार्थना की, “प्यारे परमेश्वर! मेरा प्रबोधन और मार्गदर्शन करने के लिए शुक्रिया, जिससे मैंने जाना कि हमेशा झूठा मुखौटा पहनकर मैं कितनी दयनीय बन गई थी। मैं भविष्य में अनुसरण पर अपने गलत विचारों को सुधारने, अपनी कमियों को लेकर सही नजरिया अपनाने, कुछ समझ में न आने पर पूछने, दुराव-छिपाव और दिखावे से दूर रहने को राजी हूँ और जमीन से जुड़े रहते हुए अपना कर्तव्य निभाना चाहती हूँ।”
बाद में, मैंने परमेश्वर के और अधिक वचन पढ़े : “कोई भी समस्या पैदा होने पर, चाहे वह कैसी भी हो, तुम्हें सत्य की खोज करनी चाहिए, और तुम्हें किसी भी तरीके से छद्म व्यवहार नहीं करना चाहिए या दूसरों के सामने नकली चेहरा नहीं लगाना चाहिए। तुम्हारी कमियाँ हों, खामियाँ हों, गलतियाँ हों, तुम्हारे भ्रष्ट स्वभाव हों—तुम्हें उनके बारे में कुछ छिपाना नहीं चाहिए और उन सभी के बारे में संगति करनी चाहिए। उन्हें अपने अंदर न रखो। अपनी बात खुलकर कैसे रखें, यह सीखना जीवन-प्रवेश करने की दिशा में सबसे पहला कदम है और यही वह पहली बाधा है जिसे पार करना सबसे मुश्किल है। एक बार तुमने इसे पार कर लिया तो सत्य में प्रवेश करना आसान हो जाता है। यह कदम उठाने का क्या मतलब है? इसका मतलब है कि तुम अपना हृदय खोल रहे हो और वह सब कुछ दिखा रहे हो जो तुम्हारे पास है, अच्छा या बुरा, सकारात्मक या नकारात्मक; दूसरों और परमेश्वर के देखने के लिए खुद को खोलना; परमेश्वर से कुछ न छिपाना, कुछ गुप्त न रखना, कोई स्वांग न करना, धोखे और चालबाजी से मुक्त रहना, और इसी तरह दूसरे लोगों के साथ खुला और ईमानदार रहना। इस तरह, तुम प्रकाश में रहते हो, और न सिर्फ परमेश्वर तुम्हारी जांच करेगा बल्कि अन्य लोग यह देख पाएंगे कि तुम सिद्धांत से और एक हद तक पारदर्शिता से काम करते हो। तुम्हें अपनी प्रतिष्ठा, छवि और हैसियत की रक्षा करने के लिए किसी भी तरीके का उपयोग करने की आवश्यकता नहीं है, न ही तुम्हें अपनी गलतियाँ ढकने या छिपाने की आवश्यकता है। तुम्हें इन बेकार के प्रयासों में लगने की आवश्यकता नहीं है। यदि तुम इन चीजों को छोड़ पाओ, तो तुम बहुत आराम से रहोगे, तुम बिना बाधाओं या पीड़ा के जियोगे, और पूरी तरह से प्रकाश में जियोगे” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, भाग तीन)। मैंने जाना कि अगर मैं अपना काम ठीक से करना और परमेश्वर से प्रशंसा पाना चाहती हूँ तो सत्य खोजना सबसे महत्वपूर्ण है। अपने काम में मैंने चाहे जो भ्रष्ट स्वभाव प्रकट किया हो या मेरी जो भी समस्याएँ रही हों, मुझे परमेश्वर के सामने प्रार्थना में खुलकर मार्गदर्शन माँगना होगा, प्रतिष्ठा और रुतबे के लिए अपनी लालसा छोड़नी होगी, भाई-बहनों के साथ संगति का प्रयास करना होगी, दुराव-छिपाव से बचना होगा, खुलकर बात करनी होगी, और सबके सामने असली रूप में रहना होगा, सिर्फ वही करना होगा जिसके काबिल हूँ, जो कर नहीं सकती उसे स्वीकार करके दूसरों के साथ सत्य खोजना होगा। इस तरह अपना कर्तव्य निभाना कम थकावट और कम रुकावट भरा होगा—बल्कि यह आनंददायक भी होगा। यह एहसास होने के बाद, मैं भाई-बहनों के साथ संगति में पूरी डिजाइन प्रक्रिया में मैंने जो भ्रष्टता दिखाई थी उस पर खुलकर बात की और मुझे जो समस्याएँ आतीं उन्हें चर्चा के लिए सामने रखने लगी। भाई-बहनों ने मुझे कुछ नई सॉफ्टवेयर ऑपरेशन तकनीकें और चित्रकारी के तरीके सिखाए। उसके बाद, मैंने बैकग्राउंड तस्वीर को पूरा करना जारी रखा, और पूरी प्रक्रिया बेहद सहजता से हो गई। बाद में कुछ भाई-बहनों ने मुझसे कहा, “तुमने पहले से बहुत बेहतर बैकग्राउंड तस्वीर बनाई है। क्या तुम किसी समय हमें अपना अनुभव और हमसे क्या सीखा, यह बताना चाहोगी?” यह सुनकर मैं गदगद हो गई और लगा कि मैं वाकई किसी काम आई। बैकग्राउंड डिजाइन के अनुभव के बारे में विचार करने पर मुझे एहसास हुआ कि किसी में कमियाँ होना बुरा नहीं है और वे दूसरों को पता चल जाएं, इसमें भी नुकसान नहीं है। इनके बारे में खुलकर बात करना, सत्य खोजना, अपने अनुचित इरादों और इच्छाओं को परे रखना सबसे महत्वपूर्ण है। इस तरह कर्तव्य करके आप शांत और सहज रह सकते हैं।
धीरे-धीरे मैं कठिन परियोजनाओं के लिए भी उम्दा डिजाइन बनाने लगी और दूसरे भाई-बहनों से ज्यादा बेहतर काम करने लगी। वे डिजाइन संबंधी विचारों और दूसरी तकनीकी समस्याओं पर हमेशा मुझसे राय लेने लगे। पहले तो मैं जो जानती थी उतना बता देती थी, लेकिन जब ज्यादा लोग पूछने लगे तो मैं अनायास सोचने लगी, “लगता है अब सब मेरी प्रतिभा पहचान गए हैं। वरना वे मेरी राय क्यों माँगते?” अनजाने में ही, मैं इस संतुष्टि भरे एहसास में मगन होकर खुद से काफी खुश रहने लगी। लेकिन तभी कुछ अप्रत्याशित हो गया। भजनों के लिए बनाई एक बैकग्राउंड तस्वीर में, एक सिद्धांतों का विरोध करने वाली गलती नजर आने पर अगुआ ने विचलनों को सारांशित करने के लिए मुझे बुलाया। उसने कहा कि तस्वीर तुरंत संपादित करनी पड़ेगी, वरना काम में देर हो जाएगी और पूछा कि क्या मैं यह काम खुद कर लूँगी या मुझे दूसरों की मदद चाहिए। मैंने सोचा : “तस्वीर मैंने डिजाइन की है, इसलिए अगर इसे दूसरों को सौंपने देती हूँ तो कहीं यह तो नहीं लगेगा कि मुझमें हुनर की कमी है? क्या लोग यह नहीं सोचेंगे कि मैं बातें तो बड़ी-बड़ी बनाती हूँ, लेकिन जब करने की बारी आती है तो कर नहीं पाती? ऐसा नहीं होने दूँगी! इस मुकाम पर हार नहीं मान सकती। अगर मैं इसे खुद सुधार लेती हूँ, तो सब जानेंगे कि मैं अपना काम कर सकती हूँ, भरोसेमंद हूँ और विकसित होने लायक भी हूँ।” यह सोचकर मैंने अगुआ से कहा कि मैं इसे सिद्धांतों के अनुरूप खुद ही सुधार लूँगी। संपादन के दौरान, तस्वीर के एक हिस्से के लिए मुझे कोई अच्छा विचार नहीं सूझा। चूँकि समय नहीं बचा था और मैं उसी विचार पर अटकी हुई थी, मैं बुरी तरह परेशान होकर बस किसी तरह इसे जल्द से जल्द पूरा करना चाहती थी, लेकिन मैंने डिजाइन में चाहे जितनी हेर-फेर की, बात नहीं बन रही थी। मैं उस विचार पर सुबह 5 बजे तक अटकी रही, और फिर भी कुछ नहीं सूझा। मेरे विचार धुंधले-से हो गए थे। तब जाकर मैं खुद से पूछने लगी मुझे यह समस्या क्यों हो रही ह। मुझे अचानक अहसास हुआ कि इसका कारण यह है कि मेरे डिजाइन सिद्धांतों का उल्लंघन करते हैं, और मैं सिद्धांतों के कुछ पहलुओं को समझती ही नहीं हूँ। संपादन के इस काम के कारण पहले ही देर हो चुकी थी। मुझे यह भी यकीन नहीं था कि मेरे संपादन से चीजें ठीक हो ही जाएंगी, और इस तस्वीर की जरूरत भी तुरंत थी, इसलिए जानती थी कि मुझे मदद माँगनी चाहिए। लेकिन अपनी प्रतिष्ठा और रुतबा बचाने और कमियाँ छिपाने के लिए मैं बस अकेले ही रास्ता निकालने के लिए जूझ रही थी। क्या मैं कलीसिया के काम में देर नहीं कर रही थी? यह सोचकर मुझे बहुत ग्लानि हुई और मैंने पश्चात्ताप के लिए तुरंत प्रार्थना की, “हे परमेश्वर! मैं अपने भ्रष्ट स्वभाव में जकड़ी हुई हूँ। जैसे ही मुझे कोई समस्या होती है, मैं सब-कुछ ठीक होने का ढोंग करती हूँ ताकि दूसरे लोग मेरी प्रशंसा करें। मैं अपनी कमियों का सामना ठीक से नहीं कर सकती। इस तरह से अपने कर्तव्य का निर्वहन करना बहुत ही थकाऊ है! प्यारे परमेश्वर, मुझे अपनी भ्रष्टता पहचानने और घमंड छोड़ने की राह दिखाओ ताकि मैं तुम्हारे वचनों के अनुरूप अभ्यास कर सकूँ।” प्रार्थना के बाद मैंने परमेश्वर के इन वचनों के बारे में सोचा : “तुम हमेशा महानता, उत्कृष्टता और हैसियत ढूँढ़ते हो; तुम हमेशा उन्नयन खोजते हो। इसे देखकर परमेश्वर को कैसा लगता है? वह इससे घृणा करता है और वह खुद को तुमसे दूर कर लेगा। जितना अधिक तुम महानता और कुलीनता जैसी चीजों के पीछे भागते हो; दूसरों से बड़ा, विशिष्ट, उत्कृष्ट और महत्त्वपूर्ण होने का प्रयास करते हो, परमेश्वर को तुम उतने ही अधिक घिनौने लगते हो। यदि तुम आत्म-चिंतन करके पश्चात्ताप नहीं करते, तो परमेश्वर तुमसे घृणा कर तुम्हें त्याग देगा। ऐसे व्यक्ति बनने से बचो जिससे परमेश्वर घृणा करता है; बल्कि ऐसे इंसान बनो जिसे परमेश्वर प्रेम करता है। तो इंसान परमेश्वर का प्रेम कैसे प्राप्त कर सकता है? आज्ञाकारिता के साथ सत्य स्वीकार करके, सृजित प्राणी के स्थान पर खड़े होकर, परमेश्वर के वचनों का पालन करते हुए व्यावहारिक रहकर, अपने कर्तव्यों का अच्छी तरह निर्वहन करके, ईमानदार इंसान बनके और मानव के सदृश जीवन जीकर। इतना काफी है, परमेश्वर संतुष्ट होगा। लोगों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे मन में किसी तरह की महत्वाकांक्षा न पालें या बेकार के सपने न देखें, प्रसिद्धि, लाभ और हैसियत के पीछे न भागें या भीड़ से अलग दिखने की कोशिश न करें। इससे भी बढ़कर, उन्हें महान या अलौकिक व्यक्ति या लोगों में श्रेष्ठ बनने की कोशिश नहीं करनी चाहिए और दूसरों से अपनी पूजा नहीं करवानी चाहिए। यही भ्रष्ट इंसान की इच्छा होती है और यह शैतान का मार्ग है; परमेश्वर ऐसे लोगों को नहीं बचाता। अगर लोग पश्चात्ताप किए बिना लगातार प्रसिद्धि, लाभ और हैसियत के पीछे भागते हैं, तो उनका कोई इलाज नहीं है, उनका केवल एक ही परिणाम होता है : हटा दिया जाना” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, उचित कर्तव्यपालन के लिए आवश्यक है सामंजस्यपूर्ण सहयोग)। परमेश्वर के वचनों ने मेरी सही नब्ज पकड़ी, मैं हमेशा प्रतिष्ठा, रुतबे और प्रशंसा के पीछे भागती रहती थी। जब मैं दूसरों से ज्यादा मुकम्मल डिजाइन बनाने लगी और चुनौती भरे प्रोजेक्ट गारंटीशुदा खूबी से पूरे करने लगी, तो मैं अनजाने में ही अहंकारी बन गई। यही नहीं, जब दूसरे लोग सवाल लेकर मेरे पास आते रहे, तो मुझे बहुत चैन मिला और मैं अपनी तारीफों का मजा लेने लगी। जब मेरी तस्वीर किसी नुक्स के कारण वापस भेज दी गई और अगुआ ने समय बचाने की खातिर किसी और भाई-बहन से इसके संपादन में मदद लेने का सुझाव दिया तो मैंने कलीसिया के काम का ख्याल नहीं रखा, बल्कि सिर्फ यह चिंता करती रही कि कहीं मदद करने देने से मेरी अयोग्यता उजागर न हो जाए। अपनी प्रतिष्ठा और रुतबा कायम रखने और नीचा देखने से बचने के लिए, मैंने संपादन अपने हाथ में ही रखा। जब मेरे सामने समस्याएँ आईं तो मदद माँगने के बजाय मैं इस मुश्किल हालत में दाँत भींचे माथापच्ची करती रही और सब कुछ रोक दिया। बाहर से दिख रहा था, मैं तस्वीर सुधारने में बहुत समय दे रही हूँ लेकिन हकीकत में मैं सिर्फ अपनी प्रतिभा साबित करने में लगी रही, ताकि लोगों को लगे कि मैं विश्वासयोग्य और भरोसेमंद हूँ। मुझे समझ आया कि मुझमें प्रतिष्ठा और रुतबे की बहुत लालसा है। परमेश्वर हमारे विचारों का परीक्षण करता है—भले ही मैं भाई-बहनों को धोखा देने में सफल रही, लेकिन परमेश्वर को धोखा नहीं दे पाई, और मैंने चाहे जितनी खूबी से अपनी कमियाँ छिपाई हों, अगर मेरा भ्रष्ट स्वभाव नहीं बदला और मैंने सत्य नहीं खोजा, तो उसके बावजूद परमेश्वर मुझसे घृणा करेगा और मुझे हटा देगा। प्रतिष्ठा और रुतबे के पीछे भागकर मैंने कलीसिया के कार्य में देर की थी और अगर मैंने आत्म-चिंतन नहीं किया और परमेश्वर के सामने पश्चात्ताप नहीं किया, तो मैं खुद को और दूसरों को धोखा देकर अपना ही नुकसान करूँगी। यह एहसास होने पर, मैंने डिजाइन में निपुण एक बहन से फौरन मदद माँगी। हमने तस्वीर के संपादन के बारे में चर्चा की और उसके बाद मेरी परिकल्पना काफी स्पष्ट हो गई। जल्द ही मैंने संपादन पूरा कर दिया।
बाद में, मैंने अपनी कमियाँ छिपाने की आदत पर लगातार आत्मचिंतन किया। मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश देखा जिसने मुझ पर गहरा असर डाला। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है : “क्या कुछ काम करना न आना कोई शर्मिंदगी की बात है? क्या कोई भी ऐसा है जो सारे काम कर सकता है? कुछ चीजें करना नहीं आना कोई शर्म की बात नहीं है। यह मत भूलो कि तुम बस एक साधारण व्यक्ति हो। कोई भी तुम्हें सम्मान नहीं देता या तुम्हारी आराधना नहीं करता। एक साधारण व्यक्ति बस एक साधारण व्यक्ति ही होता है। यदि तुम कोई काम करना नहीं जानते, तो बस कह दो कि तुम नहीं जानते कि इसे कैसे करते हैं। तुम अपना भेस बदलने की कोशिश क्यों करते हो? यदि तुम हमेशा भेस बदलोगे, तो लोग तुमसे चिढ़ जाएँगे। देर-सवेर, तुम्हारा खुलासा हो जाएगा, और उस वक्त, तुम अपना सम्मान और अपनी सत्यनिष्ठा खो दोगे। यह मसीह-विरोधी लोगों का स्वभाव है—वे खुद के बारे में हमेशा सोचते हैं कि वे हरफनमौला हैं, एक ऐसा व्यक्ति जो सारे काम कर सकता है, जो सभी चीजों में सक्षम और प्रवीण है। क्या यह उन्हें मुसीबत में नहीं डाल देगा? यदि उनका ईमानदार रवैया हो तो वे क्या करेंगे? वे कहेंगे : ‘मैं इस तकनीकी कौशल में प्रवीण नहीं हूँ; मुझे बस थोड़ा—सा अनुभव है। जो भी जानता हूँ, मैंने लगा दिया है, लेकिन ये जो नई समस्याएँ हमारे सामने आ रही हैं, मैं इन्हें नहीं समझ पा रहा हूँ। इसलिए, अगर हम अपना कर्तव्य अच्छे ढंग से करना चाहते हैं तो हमें कुछ पेशेवर ज्ञान सीखना होगा। पेशेवर ज्ञान पर महारत हासिल करने से हम अपना कर्तव्य प्रभावी ढंग से कर पाएँगे। परमेश्वर ने हमें यह कर्तव्य सौंपा है, इसलिए इसे अच्छे ढंग से करने की जिम्मेदारी हम पर है। हमें अपने कर्तव्य की जिम्मेदारी लेने के रवैए के आधार पर इस पेशेवर ज्ञान को सीखना होगा।’ यह सत्य का अभ्यास करना है। मसीह-विरोधी के स्वभाव वाला व्यक्ति यह नहीं करेगा। यदि किसी व्यक्ति में थोड़ा विवेक है तो वह कहेगा : ‘मैं सिर्फ इतना ही जानता हूँ। तुम्हें मुझे सम्मान देने की जरूरत नहीं है, और मुझे रौब दिखाने की जरूरत नहीं है—क्या इससे चीजें आसान नहीं हो जाएँगी? हमेशा अपना भेस बदलते रहना दुखदाई होता है। अगर ऐसी कोई चीज है जो हम नहीं जानते तो हम साथ मिल कर इसे सीख सकते हैं और फिर अपना कर्तव्य अच्छे ढंग से करने के लिए सामंजस्यपूर्ण तरीके से कार्य कर सकते हैं। हमें जिम्मेदार रवैया अपनाना चाहिए।’ यह देख कर लोग सोचेंगे, ‘यह व्यक्ति हम लोगों से बेहतर है; किसी समस्या से सामना होने पर वह आँखें मूँद कर जबरन अपनी हद पार नहीं करता, न ही वह इसे दूसरों को सौंप देता है, और न ही जिम्मेदारी से जी चुराता है। इसके बजाय वह इसकी जिम्मेदारी लेकर इसे एक गंभीर और जिम्मेदार रवैए के नजरिये से देखता है। वह एक नेक इंसान है जो अपने कार्य और कर्तव्य के प्रति गंभीर और जिम्मेदार है। वह भरोसेमंद है। परमेश्वर के घर ने इस व्यक्ति को यह महत्वपूर्ण काम सौंप कर सही किया। परमेश्वर सच में लोगों के दिलों की गहराई से जाँच-पड़ताल करता है!’ अपना कर्तव्य इस तरह से निभा कर वे अपने कौशल सुधारेंगे और सभी की स्वीकृति प्राप्त करेंगे। यह स्वीकृति कैसे मिलती है? पहले तो, वे अपने कर्तव्य को गंभीर और जिम्मेदार रवैए से देखते हैं; दूसरे, वे एक ईमानदार इंसान बनने में सक्षम होते हैं, और वे एक व्यावहारिक और परिश्रमी रवैया रखते हैं; तीसरे, इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि उन्हें पवित्र आत्मा का मार्गदर्शन और प्रबुद्धता प्राप्त है। ऐसे व्यक्ति को परमेश्वर का आशीष मिलता है; यह वह चीज है जो जमीर और विवेक वाला कोई व्यक्ति हासिल कर सकता है। हालाँकि उनमें भ्रष्ट स्वभाव होता है, कमियाँ और खामियाँ होती हैं, और वे बहुत-से काम करने के तरीके नहीं जानते, फिर भी वे अभ्यास के सही मार्ग पर हैं। वे अपना भेस नहीं बदलते या धोखा नहीं देते; अपने कर्तव्य के प्रति उनका एक गंभीर और जिम्मेदार रवैया होता है, और सत्य के प्रति उनमें एक लालसा होती है, एक पवित्र रवैया होता है। मसीह-विरोधी कभी भी ये काम नहीं कर सकेंगे क्योंकि उनके सोचने का ढंग उन लोगों से हमेशा भिन्न होगा जो सत्य से प्रेम करते हैं और उसका अनुसरण करते हैं। वे अलग ढंग से क्यों सोचते हैं? इस वजह से कि उनके भीतर शैतान की प्रकृति होती है; वे शैतान के स्वभाव के साथ जीते हैं ताकि वे सत्ता प्राप्त करने का अपना लक्ष्य हासिल कर सकें। वे षड्यंत्रों और चालों में संलग्न होने के लिए हमेशा विभिन्न साधनों का उपयोग करने का प्रयास करते हैं, और येन केन प्रकारेण लोगों से अपनी आराधना और अपना अनुसरण करवाने के लिए उन्हें गुमराह करते हैं। इसलिए लोगों की आँखों में धूल झोंकने हेतु वे अपना भेस बदलने, चाल चलने, झूठ बोलने और धोखा देने के तमाम तरीके ढूँढ़ते हैं, जिससे दूसरे यकीन कर लें कि सभी चीजों के बारे में वे सही हैं, वे हर चीज में सक्षम हैं, और वे कोई भी काम कर सकते हैं; वे दूसरों से अधिक चतुर हैं, दूसरों से ज्यादा अक्लमंद हैं, दूसरों से ज्यादा समझते हैं, वे सभी चीजों में दूसरों से बेहतर हैं, और हर लिहाज से दूसरों से ऊपर हैं—यहाँ तक कि वे किसी भी समूह में सर्वोत्तम से भी सर्वोत्तम हैं। उनकी जरूरत ऐसी है; यह मसीह-विरोधियों का स्वभाव है। इस तरह वे कुछ ऐसा दिखना सीख लेते हैं जो वे नहीं हैं, और इन विभिन्न अभ्यासों और अभिव्यक्तियों में से हरेक को उत्पन्न करते हैं” (वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद आठ : वे दूसरों से केवल अपने प्रति समर्पण करवाएँगे, सत्य या परमेश्वर के प्रति नहीं (भाग तीन))। मसीह-विरोधी प्रकृति से धोखेबाज और दुष्ट होते हैं। अपनी प्रतिष्ठा और रुतबा कायम रखने के लिए वे कोई कोर-कसर नहीं छोड़ते; मुखौटा पहन लेते हैं, झूठ बोलते हैं और दूसरों को धोखा देते हैं। मुझे एक मसीह-विरोधी का ख्याल आया जिसे कलीसिया ने निकाल दिया था : अपने पैर जमाने और तारीफें लूटने के लिए, वह समस्या सामने आने पर भी मदद नहीं माँगता था, जितना जानता था, उससे ज्यादा जानने का ढोंग करता था, अपना रुतबा और छवि कायम रखने के लिए कलीसिया का काम लटकाना पसंद करता था। वह नाकामियाँ छिपाकर और सिर्फ अपनी कामयाबियाँ बताकर कई बार कलीसिया के काम का नुकसान कर चुका था, और उसने कभी पश्चात्ताप नहीं किया। इस हरकत के लिए, आखिरकार कलीसिया ने उसे निकाल दिया गया। मैंने अपने व्यवहार की तुलना उससे की : मैंने भी अपने काम में सत्य सिद्धांत खोजने पर ध्यान नहीं दिया, परमेश्वर के परीक्षण को स्वीकार नहीं किया या सादगी से काम नहीं किया और दूसरों की तारीफ पाने के लिए हमेशा मुखौटा ओढ़े रखा। मेरे डिजाइन में साफ दिक्कत थी, लेकिन इसे संपादित करने की स्पष्ट समझ न होने के बावजूद, मैंने भाई-बहनों से खोज या चर्चा नहीं की, बल्कि मैं अड़ी थी कि इसे खुद ही ठीक करूँगी। मैंने कलीसिया के काम की फिक्र नहीं की, और जहाँ तक हो सका, अपनी कमियाँ उजागर नहीं होने दीं, मानो कलीसिया के काम में देर करना कोई बड़ी बात नहीं है, मेरे लिए अपनी छवि बनाए रखना सबसे महत्वपूर्ण था। जिस चीज से मेरी छवि और रुतबे को आँच आती उसे मैंने भरपूर छिपाया, भले ही यह बेहद थकाऊ और दुष्कर काम था। मुझे लगता था, अपनी तथाकथित “अच्छी छवि” खोने का मतलब अपने जीवन को ही खो बैठना है। मेरी हरकतों से मसीह-विरोधी स्वभाव दिखता था। इसका एहसास होने पर मैं डर-सी गई। संभव है, मैंने किसी मसीह-विरोधी जैसे सारे बुरे काम न किए हों, लेकिन मैं हमेशा प्रतिष्ठा, रुतबा और दूसरों की तारीफ हासिल करने में लगी रही, यहाँ तक कि छल करके दूसरों को धोखा देती रही। अगर मैंने इस स्वभाव को नहीं बदला तो आखिरकार परमेश्वर द्वारा मुझे प्रकट कर हटा दिया जाएगा। इसलिए मैंने परमेश्वर से प्रार्थना कर पश्चात्ताप किया, घमंड और रुतबा त्यागने की इच्छा जताई ताकि उसके वचनों का अभ्यास कर सकूँ।
आगे चलकर, जब मेरे डिजाइन में नुक्स निकलते और मैं उन्हें खुद दूर नहीं कर पाती, तो मैं तुरंत किसी से बात कर संगति में खुलकर बोलती थी ताकि उनसे सुझाव लेकर सत्य खोज सकूँ। कभी-कभी मैं उनके साथ मिलकर डिजाइन तैयार करती। एक बार, मुझे डिजाइन में एक और समस्या आई और काफी सोच-विचार के बाद भी आगे नहीं बढ़ पाई। मेरे अगुआ ने प्रगति पूछी तो मैंने झूठा दिखावा करना चाहा, लेकिन तभी मुझे एहसास हुआ कि मैं फिर से अपना रुतबा और प्रतिष्ठा कायम करने की सोचने लगी हूँ। फिर, मुझे परमेश्वर के वचनों का एक अंश याद आया : “यदि तुम अपने मन में कुछ भी नहीं रखते, दिखावा नहीं करते, ढोंग नहीं करते, चीजें नहीं छिपाते, यदि तुम भाई-बहनों के सामने अपने आपको खोल देते हो, अपने अंतरतम विचारों और सोच को छिपाते नहीं, बल्कि दूसरों को अपना ईमानदार रवैया दिखा देते हो, तो फिर धीरे-धीरे सत्य तुम्हारे अंदर जड़ें जमाने लगेगा, यह खिल उठेगा और फलदायी होगा, धीरे-धीरे तुम्हें इसके परिणाम दिखाई देने लगेंगे। यदि तुम्हारा दिल ईमानदार होता जाएगा, परमेश्वर की ओर उन्मुख होता जाएगा और यदि तुम अपने कर्तव्य का पालन करते समय परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा करना जानते हो, और इन हितों की रक्षा न कर पाने पर जब तुम्हारी अंतरात्मा परेशान हो जाए, तो यह इस बात का प्रमाण है कि तुम पर सत्य का प्रभाव पड़ा है और वह तुम्हारा जीवन बन गया है” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, भाग तीन)। परमेश्वर के वचनों से गहरी प्रेरणा मिली। मैं जानती थी कि मुझे मुखौटे ओढ़ना बंद करना चाहिए; ईमानदारी और शांत चित्त से अपनी कमियों का सामना करना चाहिए। दूसरे लोग मेरे बारे में चाहे जो सोचें, मुझे सत्य बोलना था और दूसरों से मिलकर समाधान खोजना था। उस दिन एक सभा थी, लिहाजा मैंने संगति में अपनी कठिनाइयों और भ्रष्टताओं पर खुलकर सामने रखी। यह बताकर मैं सहज हो गई। जब मैंने दूसरों के साथ हर चीज पर चर्चा की, तो उन्होंने डिजाइन को दुरुस्त करने में मेरी मदद की और जल्द ही मैंने संपादन पूरा कर लिया। मैं बेहद खुश थी! मुझे एहसास हुआ कि झूठा दिखावा न करते हुए सचमुच खुलकर बोलना और ईमानदार होना सचमुच कितना अद्भुत है! परमेश्वर से उद्धार पाकर ही मैं यह जान सकी और खुद को बदल पाई। परमेश्वर का धन्यवाद!