9. झूठे अगुआओं को बर्खास्त करने को लेकर मेरी चिंताएँ

जिंग वेई, चीन

सितंबर 2020 में, मैं कलीसिया में प्रचारक थी, मुझ पर चार कलीसियाओं के काम की जिम्मेदारी थी। इनमें से एक कलीसिया की अगुआ, ली यिंग, काफी काबिल और अपने कर्तव्य में उत्साही थी। मैं उससे काफी प्रभावित थी। लेकिन कुछ समय बाद, मैंने पाया कि उस कलीसिया में साफ तौर पर कुछ ऐसे छद्म-विश्वासी और कुकर्मी हैं जिन्हें अभी दूर नहीं किया गया है और वे कलीसियाई जीवन को बाधित कर रहे हैं। तो मैंने ली यिंग के साथ संगति कर उसकी अवस्था को उजागर किया, और उसे स्वच्छता कार्य न करने का सार और परिणाम बताए। ली यिंग जल्द से जल्द इन छद्म-विश्वासियों और कुकर्मियों को कलीसिया से दूर करने पर सहमत हो गई। लेकिन दो महीने बाद, जब मैंने दोबारा उनके काम पर गौर किया तो पाया कि ली यिंग ने अभी तक उन्हें दूर नहीं किया है। बल्कि वह छद्म-विश्वासियों और कुकर्मियों का पक्ष लेकर उनके मामलों पर बहस कर रही है। परिणामस्वरूप, ये लोग जिन्हें हटा दिया जाना चाहिए था, अभी भी वहीं थे और उन्हें कलीसिया में व्यवधान और गड़बड़ी पैदा करने की छूट मिली हुई थी। इसके अलावा, भाई-बहनों के कर्तव्यों में भी समस्याएँ थीं, लेकिन ली यिंग ने कभी भी उन्हें हल करने के लिए सत्य पर संगति नहीं की या उन लोगों की काट-छाँट नहीं की। बल्कि वह उनके दैहिक-सुख का ख्याल कर रही थी, और सांसारिक सुख के लिए समझौता कर रही थी, जिसके कारण वे अपने कर्तव्यों के प्रति कोई जिम्मेदार नहीं दिखा रहे थे, इससे कलीसिया का काम प्रभावित हो रहा था। ली यिंग के लगातार ऐसे व्यवहार को देखते हुए, यह साबित हो गया था कि ली यिंग एक झूठी अगुआ है जो वास्तविक काम नहीं करती, उसे सिद्धांतों के अनुसार तुरंत बर्खास्त किया जाना चाहिए। लेकिन मैंने सोचा, “वह इस कलीसिया में एकमात्र अगुआ है। अगर मैंने उसे अभी बर्खास्त कर दिया, तो मुझे इस कलीसिया के काम की विभिन्न मदों के बारे में चिंता करनी पड़ेगी। उनमें से कुछ काम मुझे खुद ही लागू करने पड़ेंगे। उन सबके के लिए इतना समय और ऊर्जा कहां से लाऊँगी? इसके अलावा, मुझे और भी कई कलीसियाओं के काम पर नजर रखनी पड़ती है। मैं और ज्यादा व्यस्त हो जाऊँगी। एक तो पहले ही साठ से ऊपर की हो गई हूँ, फिर तबियत भी कुछ खास अच्छी नहीं रहती। अगर इतना काम सिर पर लूँगी, तो शायद शरीर साथ नहीं दे पाएगा! अगर मैं ली यिंग को ही अपने साथ रखूँ, तो वह कम से कम सामान्य मामलों को तो देख लेगी और मुझे थोड़ा आराम मिल जाएगा।” यह सब सोचकर, मैंने उसे बर्खास्त नहीं किया। फिर, दिसंबर में, ली यिंग के गैर-विश्वासी पति ने उस पर नजर रखना और उसका पीछा करना शुरू कर दिया। वह अच्छी तरह जानती थी कि उसकी मानवता अच्छी नहीं है लेकिन दूसरों की सुरक्षा का ख्याल रखे बिना वह सभा स्थलों पर आती रही। परिणामस्वरूप, उसने कई सभा समूहों को खतरे में डाल दिया। आखिरकार मुझे समझ आ गया कि ली यिंग की समस्या बहुत गंभीर है और मैंने उसका काम तुरंत बंद कर दिया। इसके बाद मुझे डर लगने लगा। मुझे एहसास हुआ कि यह ली यिंग को जल्दी बाहर न करने का परिणाम था। मैं भी जिम्मेदार थी!

अपनी भक्ति के दौरान, मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा। परमेश्वर कहता है : “तुम परमेश्वर के आदेशों को कैसे लेते हो, यह अत्यंत महत्वपूर्ण है, और यह एक बहुत ही गंभीर मामला है। परमेश्वर ने जो लोगों को सौंपा है, यदि तुम उसे पूरा नहीं कर सकते, तो तुम उसकी उपस्थिति में जीने के योग्य नहीं हो और तुम्हें दंडित किया जाना चाहिए। यह पूरी तरह से स्वाभाविक और उचित है कि मनुष्यों को परमेश्वर द्वारा दिए जाने वाले सभी आदेश पूरे करने चाहिए। यह मनुष्य का सर्वोच्च दायित्व है, और उतना ही महत्वपूर्ण है जितना उनका जीवन है। यदि तुम परमेश्वर के आदेशों को गंभीरता से नहीं लेते, तो तुम उसके साथ सबसे कष्टदायक तरीक़े से विश्वासघात कर रहे हो। इसमें, तुम यहूदा से भी अधिक शोचनीय हो और तुम्हें शाप दिया जाना चाहिए। परमेश्वर के सौंपे हुए कार्य को कैसे लिया जाए, लोगों को इसकी पूरी समझ हासिल करनी चाहिए, और उन्हें कम से कम यह समझना चाहिए कि वह मानवजाति को जो आदेश देता है, वे परमेश्वर से मिले उत्कर्ष और विशेष कृपाएँ हैं, और वे सबसे शानदार चीजें हैं। अन्य सब-कुछ छोड़ा जा सकता है। यहाँ तक कि अगर किसी को अपना जीवन भी बलिदान करना पड़े, तो भी उसे परमेश्वर का आदेश पूरा करना चाहिए(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, मनुष्य का स्वभाव कैसे जानें)। परमेश्वर के वचनों से मैं समझ गई कि परमेश्वर ही सबको उनका कर्तव्य सौंपता है और यही सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है। इसे हल्के में लेना और गैरजिम्मेदार होना परमेश्वर को धोखा देना है। ऐसा करना यहूदा बनना है और ऐसा व्यक्ति शापित होगा। मेरा कलीसिया में प्रचारक के रूप में अभ्यास कर पाना परमेश्वर का अनुग्रह था। जब मुझे उन अगुआओं का पता चल गया जो अगुआ कलीसिया में रहकर वास्तविक कार्य नहीं कर रहे थे, तो मुझे उन्हें आवश्यक होने पर बर्खास्त या स्थानांतरित कर देना चाहिए। यही मेरा कर्तव्य, मेरी जिम्मेदारी थी। एक कलीसिया अगुआ के रूप में, ली यिंग ने समस्याओं का पता चलने पर उन्हें हल करने के लिए सत्य पर संगति नहीं की, बल्कि स्वच्छता कार्य में बाधा डाली। वह स्पष्ट छद्म-विश्वासियों और कुकर्मियों को निकालने में देरी कर रही थी, बल्कि उनके साथ खड़ी थी। इससे पुष्टि हो गई कि वह एक झूठी अगुआ है और उसे तुरंत बर्खास्त कर देना चाहिए। लेकिन जहां तक मेरी बात है, मुझे चिंता थी कि एक बार अगर मैंने उसे बर्खास्त कर दिया, तो कुछ समय तक मैं उसकी जगह किसी और को नहीं ढूंढ़ पाऊंगी और कलीसिया के काम को लेकर मेरी चिंता और बढ़ जाएगी। इसलिए मैंने उसे उस समय बर्खास्त नहीं किया, जिसके कारण सुरक्षा जोखिम पैदा हुआ और कलीसिया के काम में बाधाएँ आईं। मैं इस बात से अच्छी तरह वाकिफ थी कि झूठे अगुआ और मसीह-विरोधी भाई-बहनों के जीवन प्रवेश में रुकावट और बाधाएँ हैं और अगर कोई ऐसा पाया जाता है, तो उसे बर्खास्त कर हटा देना चाहिए—ऐसे व्यक्ति को बिल्कुल बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। लेकिन अपनी चिंताओं और कठिनाइयों से बचने के लिए, यह जानते हुए भी कि वह एक झूठी अगुआ है, मैंने ली यिंग को बर्खास्त नहीं किया। मैं सचमुच स्वार्थी और घृणित थी। अपने कर्तव्य के प्रति मेरे इस रवैये से वास्तव में परमेश्वर को घृणा हुई। इन बातों का एहसास होने पर मैं काफी डर गई, मैंने परमेश्वर से प्रार्थना कर पश्चात्ताप किया, और तुरंत ली यिंग को बर्खास्त कर दिया। मैंने उसके कार्यों के सार और परिणामों को भी उजागर किया और संगति की और दूसरों को उसके बारे में थोड़ी-बहुत समझ हासिल हुई। इसके बाद, कलीसिया ने दूसरी अगुआ को चुना और धीरे-धीरे, कलीसिया का काम आखिरकार तेजी पकड़ता गया।

फरवरी 2021 में, चेंग्शी में एक कलीसिया के लिए जिम्मेदार एक प्रचारक को बर्खास्त कर दिया गया क्योंकि वह वास्तविक काम नहीं कर पाई, और अगुआ ने उस कलीसिया के काम की जिम्मेदारी मुझे सौंप दी। जब मैंने वह जिम्मेदारी संभाली, तो बहन शू मिंग ने मुझे कलीसिया अगुआ और सिंचन कार्य के उपयाजक की समस्याओं के बारे में बताया, “सिंचन उपयाजक गैर-जिम्मेदार है और अपने कर्तव्य में लापरवाही बरतती है। वह जिन नवागतों के लिए जिम्मेदार है, करीब 20 दिनों से उसने उन नवागतों का कोई सिंचन नहीं किया है। उनमें से कुछ ने अफवाहें सुनकर आस्था रखना ही छोड़ दिया है। कलीसिया अगुआ हमेशा अपने दैनिक कार्य में व्यस्त रहती है और शायद ही कभी औरों के साथ सभा या काम पर संगति करती है। भाई-बहनों ने उसे चेताया है और उसके साथ संगति भी की है, पर वह नहीं सुनती। साथ ही, वह जानती है कि सिंचन उपयाजक वास्तविक काम नहीं करती और उसे बर्खास्त कर देना चाहिए, लेकिन न केवल वह उसे बर्खास्त नहीं करती, बल्कि उसका पक्ष लेकर उसका बचाव भी करती है। इसलिए वे झूठी अगुआ और झूठी कार्यकर्ता हैं जो वास्तविक काम नहीं करतीं और पहले ही कलीसिया के काम में देरी कर चुकी है।” शू मिंग की रिपोर्ट सुनने के बाद, मैंने सोचा, “उनके व्यवहार को देखते हुए, इन दोनों को बर्खास्त कर देना जाना चाहिए। लेकिन नए अगुआओं और कार्यकर्ताओं को चुनना कोई आसान काम नहीं है। अगर मैं इन दोनों को बर्खास्त कर दूँ और उनकी जगह उपयुक्त व्यक्ति नहीं मिले, तो क्या मुझे ही इस कलीसिया का काम नहीं संभालना पड़ेगा? मेरे कार्य करने की भी सीमाएँ हैं, इसलिए चाहे कितना भी दबाव क्यों न हो, एक बार में एक ही काम कर पाऊँगी।” मेरा जवाब न पाकर, शू मिंग ने बेचैन होकर कहा, “अगर कलीसिया में झूठे अगुआओं और कार्यकर्ताओं को तुरंत बर्खास्त नहीं किया गया, तो यह कलीसिया के कार्य और भाई-बहनों के जीवन प्रवेश दोनों को खतरे में डालना होगा। क्या तुम्हें कोई चिंता या तात्कालिकता महसूस नहीं होती? क्या इससे तुम्हें कोई फर्क नहीं पड़ता? अब तुम उस उपदेशक की तरह मत बनो जो वास्तविक कार्य नहीं करता था।” आलोचना की बौछार सुनकर मेरा चेहरा लाल हो गया, और मैंने सोचा, “मैं अभी तो यहां आई हूँ, अभी भी बहुत कुछ है जो मुझे समझ नहीं आता। जितना कर सकती हूँ उतना ही कर पाऊँगी, एक बार में एक ही काम कर सकती हूँ। खैर, मैंने यह नहीं कहा कि मैं यह नहीं संभालूँगी।” बाद में, मुझे एहसास हुआ कि मेरी अवस्था ठीक नहीं है, मैंने तुरंत परमेश्वर से प्रार्थना की, “हे परमेश्वर, आज मुझे जिस स्थिति का सामना करना पड़ा, उसका निर्माण तूने ही किया था, लेकिन मैं अपने लिए बहाने बनाती रहती हूँ। मुझे पता है यह तेरे इरादे के अनुरूप नहीं है। समर्पण करने में मेरा मार्गदर्शन कर, ताकि मैं इस पर चिंतन कर सीख सकूं।” प्रार्थना के बाद, मुझे परमेश्वर के वचनों का एक अंश याद आया। परमेश्वर कहता है : “वर्तमान में, कुछ ऐसे लोग हैं जो कलीसिया के लिए कोई बोझ नहीं उठाते। ये लोग सुस्त और ढीले-ढाले हैं, और वे केवल अपने शरीर की चिंता करते हैं। ऐसे लोग बहुत स्वार्थी होते हैं और अंधे भी होते हैं। यदि तुम इस मामले को स्पष्ट रूप से देखने में सक्षम नहीं होते हो, तो तुम कोई बोझ नहीं उठा पाओगे। तुम जितना अधिक परमेश्वर के इरादों के प्रति विचारशील रहोगे, तुम्हें परमेश्वर उतना ही अधिक बोझ सौंपेगा। स्वार्थी लोग ऐसी चीज़ें सहना नहीं चाहते; वे कीमत नहीं चुकाना चाहते, परिणामस्वरूप, वे परमेश्वर द्वारा पूर्ण बनाए जाने के अवसर से चूक जाते हैं। क्या वे अपना नुकसान नहीं कर रहे हैं? यदि तुम ऐसे व्यक्ति हो जो परमेश्वर के इरादों के प्रति विचारशील है, तो तुम कलीसिया के लिए वास्तविक बोझ विकसित करोगे। वास्तव में, इसे कलीसिया के लिए बोझ उठाना कहने की बजाय, यह कहना चाहिए कि तुम खुद अपने जीवन के लिए बोझ उठा रहे हो, क्योंकि कलीसिया के प्रति बोझ तुम इसलिए पैदा करते हो, ताकि तुम ऐसे अनुभवों का इस्तेमाल परमेश्वर द्वारा पूर्ण बनाए जाने के लिए कर सको। इसलिए, जो भी कलीसिया के लिए सबसे भारी बोझ उठाता है, जो भी जीवन प्रवेश के लिए बोझ उठाता है, उसे ही परमेश्वर द्वारा पूर्ण बनाया जाता है। क्या तुमने इस बात को स्पष्ट रूप से समझ लिया है? जिस कलीसिया के साथ तुम हो, यदि वह रेत की तरह बिखरी हुई है, लेकिन तुम न तो चिंतित हो और न ही व्याकुल, यहाँ तक कि जब तुम्हारे भाई-बहन परमेश्वर के वचनों को सामान्य ढंग से खाते-पीते नहीं हैं, तब भी तुम आँख मूंद लेते हो, तो इसका अर्थ है कि तुम कोई जिम्मेदारी वहन नहीं कर रहे। ऐसे मनुष्य से परमेश्वर प्रसन्न नहीं होता। परमेश्वर जिनसे प्रसन्न होता है वे लोग धार्मिकता के भूखे और प्यासे होते हैं और वे परमेश्वर के इरादों के प्रति विचारशील होते हैं(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पूर्णता प्राप्त करने के लिए परमेश्वर के इरादों के प्रति विचारशील रहो)। परमेश्वर के वचनों पर विचार करने के बाद मुझे बहुत शर्म आई। कलीसिया के काम को लेकर मुझे न कोई चिंता थी और न ही कोई बेचैनी। जब मैंने अगुआ और सिंचन उपयाजक की समस्याओं के बारे में शू मिंग की रिपोर्ट सुनी, तो मैंने कलीसिया के काम पर विचार कर तुरंत जांच नहीं की और झूठे अगुआ और झूठे कार्यकर्ता को बर्खास्त नहीं किया। बल्कि मैंने पहले अपने दैहिक हितों का ख्याल किया, इस बात की चिंता की कि अगर मैंने उन्हें बर्खास्त कर दिया, तो उनकी जगह किन्हें चुनूँगी। मुझे ही चिंता करनी होगी और दिमाग खपाना पड़ेगा, और मेरे काम का बोझ बढ़ जाएगा। कीमत चुकाने और शारीरिक कष्ट से बचने के लिए, यह जानते हुए भी कि वे झूठे अगुआ और कार्यकर्ता हैं, मुझे उन्हें बर्खास्त करने की कोई तात्कालिकता महसूस नहीं हुई। सार यह कि मैं चोरी-छिपे उन्हें बचा रही थी और उन्हें मनमर्जी करने दे रही थी, उन्हें कलीसिया में बुरे काम करने के लिए खुला छोड़कर कलीसिया के काम में बाधा डालने और गड़बड़ करने दे रही थी। अपना कर्तव्य तत्परता से न निभाने के लिए शू मिंग मेरी काट-छाँट कर रही थी और यह मेरे लिए एक उपयोगी चेतावनी थी। इससे मैं तुरंत अपने भ्रष्ट स्वभाव पर विचार कर पाई, उसे जान पाई और परमेश्वर के सामने पश्चात्ताप कर पाई। अगर कलीसिया में झूठे अगुआओं और कार्यकर्ताओं को रहने दिया जाता, तो अनुमान लगाना मुश्किल है कि कलीसिया के काम को कितना बड़ा नुकसान पहुँचता। मुझे यह भी एहसास हुआ कि मैं पिछली बार भी अपने दैहिक हितों पर विचार कर रही थी। एक झूठी अगुआ को तुरंत बर्खास्त न कर पाने ने कलीसिया के काम को बाधित किया था। क्या मैं वही गलती फिर से नहीं कर रही थी? खुद को शारीरिक कष्ट से बचाने की खातिर, मैंने कलीसिया के काम के बारे में कोई विचार ही नहीं किया, न ही भाई-बहनों के जीवन प्रवेश को होने वाले नुकसान की सोची। मैं भी वास्तविक काम नहीं कर रही थी और एक झूठे अगुआ की तरह व्यवहार कर रही थी। अपने कर्तव्य के प्रति मेरे रवैये से परमेश्वर को घृणा हुई। अगर मेरी काट-छाँट न की गई होती, तो मुझे आत्म-चिंतन करने के बारे में भी जानकारी न होती। इन बातों को समझते हुए, मैंने परमेश्वर से मौन प्रार्थना की, कि मैं पश्चात्ताप कर अपना कर्तव्य अच्छे से निभाना चाहती हूँ। अगले दिन, मैं शू मिंग के साथ कलीसिया गई। जांच करने के बाद, इस बात की पुष्टि हो गई कि अगुआ और सिंचन उपयाजक वास्तविक कार्य नहीं कर रही थीं। उनके विचार गैर-विश्वासियों जैसे ही थे, लोगों और चीजों का बहुत ज्यादा विश्लेषण करती थीं और सत्य नहीं स्वीकारती थीं। वे झूठी अगुआ और झूठी कार्यकर्ता थीं। इसके तुरंत बाद उन्हें बर्खास्त कर दिया गया और उनकी जगह और लोगों का चयन कर लिया गया।

इतना सब-कुछ होने के बाद, मुझे आश्चर्य हुआ, “ऐसा क्यों होता है कि जब भी मुझे कलीसिया में झूठे अगुआ और कार्यकर्ता मिलते हैं जो वास्तविक कार्य नहीं करते, मैं उन्हें तुरंत बर्खास्त नहीं करती? आखिर इसका कारण क्या है?” फिर मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा : “जब तक लोग परमेश्वर के कार्य का अनुभव नहीं कर लेते हैं और सत्य को समझ नहीं लेते हैं, तब तक यह शैतान की प्रकृति है जो भीतर से इन पर नियंत्रण कर लेती है और उन पर हावी हो जाती है। उस प्रकृति में विशिष्ट रूप से क्या शामिल होता है? उदाहरण के लिए, तुम स्वार्थी क्यों हो? तुम अपने पद की रक्षा क्यों करते हो? तुम्हारी भावनाएँ इतनी प्रबल क्यों हैं? तुम उन अधार्मिक चीज़ों से प्यार क्यों करते हो? ऐसी बुरी चीजें तुम्हें अच्छी क्यों लगती हैं? ऐसी चीजों को पसंद करने का आधार क्या है? ये चीजें कहाँ से आती हैं? तुम इन्हें स्वीकारकर इतने खुश क्यों हो? अब तक, तुम सब लोगों ने समझ लिया है कि इन सभी चीजों के पीछे मुख्य कारण यह है कि मनुष्य के भीतर शैतान का जहर है। तो शैतान का जहर क्या है? इसे कैसे व्यक्त किया जा सकता है? उदाहरण के लिए, यदि तुम पूछते हो, ‘लोगों को कैसे जीना चाहिए? लोगों को किसके लिए जीना चाहिए?’ तो लोग जवाब देंगे, ‘हर व्यक्ति अपनी सोचे बाकियों को शैतान ले जाए।’ यह अकेला वाक्यांश समस्या की जड़ को व्यक्त करता है। शैतान का फलसफा और तर्क लोगों का जीवन बन गए हैं। लोग चाहे जिसका भी अनुसरण करें, वे ऐसा बस अपने लिए करते हैं, और इसलिए वे केवल अपने लिए जीते हैं। ‘हर व्यक्ति अपनी सोचे बाकियों को शैतान ले जाए’—यही मनुष्य का जीवन-दर्शन है, और इंसानी प्रकृति का भी प्रतिनिधित्व करता है। ये शब्द पहले ही भ्रष्ट इंसान की प्रकृति बन गए हैं, और वे भ्रष्ट इंसान की शैतानी प्रकृति की सच्ची तस्वीर हैं। यह शैतानी प्रकृति पहले ही भ्रष्ट इंसान के अस्तित्व का आधार बन चुकी है। कई हजार सालों से वर्तमान दिन तक भ्रष्ट इंसान शैतान के इस जहर से जिया है(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, पतरस के मार्ग पर कैसे चलें)। परमेश्वर के वचनों पर विचार करने से मुझे यह स्पष्ट हो गया कि मैं झूठे अगुआओं और कार्यकर्ताओं को इसलिए बर्खास्त नहीं कर रही थी क्योंकि मुख्यतः मैं स्वार्थी और आलसी हूँ। मैं जो कुछ भी कर रही थी, बस उसमें आरामतलबी चाहती थी और कष्ट या कीमत नहीं चुकाना चाहती थी। मैं इन शैतानी फलसफों के मुताबिक जी रही थी, “हर व्यक्ति अपनी सोचे बाकियों को शैतान ले जाए” और “आज मौज करो, कल की फिक्र कल करना,” मैंने केवल अपने फायदे के बारे में सोचा और भौतिक सुख-सुविधाओं पर ध्यान दिया। मैं कलीसिया के काम पर बिल्कुल कोई विचार नहीं कर रही थी। झूठे अगुआओं और कार्यकर्ताओं को बर्खास्त करने के इन दो हालिया अवसरों पर, मैं अच्छी तरह जानती थी कि उन्होंने वास्तविक काम नहीं किया और उन्हें तुरंत बर्खास्त कर देना चाहिए, लेकिन मुझे चिंता थी कि हम कुछ समय तक उपयुक्त व्यक्ति नहीं चुन पाएंगे। ऐसे में मुझे ही कलीसियाओं के काम के बारे में ज्यादा चिंता करनी पड़ेगी, और शारीरिक कष्ट का तो कहना ही क्या। मैं पहले ही साठ से ऊपर की हो चुकी थी और मेरी सेहत भी ठीक नहीं रहती थी। अगर मैंने खुद पर बहुत ज्यादा दबाव डाला, तो मेरे लिए बहुत मुश्किल हो जाएगी। इसलिए अपने शरीर को आराम देने और कठिनाइयों से बचने के लिए, मैंने इच्छा न होते हुए भी ऐसे ही चलने दिया और उन्हें बदलने की कोई जल्दबाजी नहीं दिखाई। मुझे लगा कि कलीसियाओं के काम में उनके सहयोग से, मेरी चिंता और कष्ट थोड़े कम रहेंगे। मैं अपने कर्तव्य में केवल अपने दैहिक हितों पर विचार कर रही थी, और दैहिक हितों का ख्याल करके, मैं चोरी-छिपे झूठे अगुआओं और कार्यकर्ताओं को बचा रही थी, उन्हें कलीसिया के काम में गड़बड़ी करने और अशांति फैलाने दे रही थी। मैं अपना कर्तव्य नहीं निभा रही थी; मैं बुराई कर रही थी! मैं हमेशा अपनी बढ़ती उम्र को लेकर चिंता में रहती थी कि मेरा शरीर काम का भारी बोझ झेल नहीं पाएगा। लेकिन असल में, मैं परमेश्वर के इरादे के प्रति गैर-जिम्मेदार और अविवेकी होने के लिए बहाना बना रही थी। परमेश्वर कहता है : “परमेश्वर लोगों को इतना भारी बोझ नहीं देता कि वे उठा न सकें। अगर तुम पचास किलो वजन ही उठा सकते हो, तो परमेश्वर निश्चित रूप से तुम्हें पचास किलो से ज्यादा वजन नहीं देगा। वह तुम पर दबाव नहीं डालेगा। इसी तरह परमेश्वर सबके साथ है। और तुम किसी चीज से बेबस नहीं होगे—न किसी व्यक्ति से, न किसी विचार और दृष्टिकोण से। तुम स्वतंत्र हो(वचन, खंड 6, सत्य के अनुसरण के बारे में, सत्य का अनुसरण करने का क्या अर्थ है (15))। हालाँकि मेरी तबीयत खराब थी और कभी-कभी काम की व्यस्तता के चलते मैं थोड़ा थक जाती थी, फिर भी मैं इन चीजों से निपटने में सक्षम थी। मेरी जिम्मेदारियाँ मेरी क्षमताओं के अनुरूप थीं। जब तक मैं अपने समय का प्रबंधन ठीक से करती और दूसरों के साथ ज्यादा सहयोग करती, मैं शारीरिक रूप से कार्यभार संभाल लेती थी। मैं ऐसा मुख्यतः इसलिए सोचती थी क्योंकि मैं आलसी थी और अपने दैहिक हितों के बारे में बहुत ज्यादा विचार करती थी, जिसने मुझे अपने कर्तव्य में दबाव, कठिनाई और कीमत चुकाने से विमुख कर दिया। मैंने उस समय के बारे में सोचा जब परमेश्वर ने मूसा की अगुआई में इस्राएलियों को मिस्र से बाहर निकाला था। मूसा 80 वर्ष का हो चुका था, लेकिन उसने यह कहकर परमेश्वर के आदेश को अस्वीकार नहीं किया कि मैं बहुत बूढ़ा हो चुका हूँ और मेरा शरीर यह सब नहीं झेल सकता। बल्कि उसने परमेश्वर की पुकार का उत्तर दिया और अपनी सर्वोत्तम क्षमताओं के अनुसार परमेश्वर की अपेक्षा के मुताबिक उसके आदेश का पालन किया। अंततः, उसने इस्राएलियों को मिस्र से बाहर निकाला। कुछ अन्य भाई-बहन लगभग मेरी ही उम्र के थे, कुछ तो मुझसे भी बूढ़े थे, और वे ज्यादा कार्यभार संभालते थे। वे अब भी हमेशा की तरह अपना सर्वस्व अपने कर्तव्यों में लगाते हैं, और मैंने उनमें से कभी किसी को अपने कर्तव्यों के कारण थका हुआ नहीं देखा। क्या वे मुझसे ज्यादा कठिनाई और पीड़ा का अनुभव नहीं कर रहे थे? लेकिन जहां तक मेरी बात है, मैं इन झूठे अगुआओं और कार्यकर्ताओं को बर्खास्त न करने के लिए अपने बुढ़ापे और खराब स्वास्थ्य का बहाना बना रही थी, उन्हें कलीसिया में रखकर कार्य में और भाई-बहनों के जीवन प्रवेश में देरी कर रही थी। मैं सचमुच स्वार्थी और घृणित थी। दरअसल, परमेश्वर को मेरी उम्र और मेरे कर्तव्यों का पता था, और मेरा थकना न थकना परमेश्वर के हाथ में था। कलीसिया के अगुआओं और कार्यकर्ताओं में से एक के रूप में, मुझे हर समय सिद्धांतों के अनुसार अपना कर्तव्य निभाना था और कलीसिया के काम की रक्षा करनी थी। मेरा स्वास्थ्य चाहे कैसा भी हो, मुझे सदैव परमेश्वर की संप्रभुता और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पित रहना चाहिए। एक सृजित प्राणी में केवल इतना ही विवेक होना चाहिए। परमेश्वर के इरादों और अपेक्षाओं को समझकर, मैं केवल सत्य का अभ्यास करना, अपनी देह के विरुद्ध विद्रोह करना और अपना कर्तव्य अच्छे से निभाना चाहती थी।

इसके बाद मैंने आत्म-चिंतन करना जारी रखा। जब मुझे झूठे अगुआ और कार्यकर्ता मिले, तो मैं उनका इस्तेमाल क्यों करती रही और उन्हें फौरन बर्खास्त क्यों नहीं किया? इस पर विचार करने पर मुझे पता चला कि मेरा दृष्टिकोण ही गलत था। मैंने सोचा था कि झूठे अगुआओं और कार्यकर्ताओं को बर्खास्त करने पर उनके कार्य के लिए अन्य लोगों को चुनना कठिन होगा। अगर मैं उन्हें ही कुछ समय तक बने रहने दूँ, तो वे कम से कम सामान्य मामलों पर काम कर पाएँगे, जो किसी के न होने से तो बेहतर था। एक बहन ने मुझे परमेश्वर के वचनों का एक अंश भेजा जो इस समस्या से संबंधित है और इससे मेरे लिए चीजें बहुत ज्यादा स्पष्ट हो गईं। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है : “जिस प्रकार का व्यक्ति झूठा अगुआ होता है वह वास्तविक कार्य नहीं करता, और वह वास्तविक कार्य करने में अक्षम होता है। उसकी काबिलियत कमजोर होती है, उसकी आँखें और दिमाग दृष्टिहीन होते हैं, वे समस्याएँ खोजने में अक्षम होते हैं, और विभिन्न प्रकार के लोगों की असलियत नहीं समझ सकते, इसलिए वे विभिन्न प्रकार के प्रतिभाशाली लोगों को पदोन्नत और विकसित करने के महत्वपूर्ण कार्य की जिम्मेदारी उठाने में असमर्थ होते हैं। इस प्रकार उनके पास कलीसिया का कार्य अच्छे ढंग से करने का कोई तरीका नहीं होता, जिससे परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन प्रवेश में बहुत-सी कठिनाइयाँ खड़ी होती हैं। इन कारकों पर विचार करने से यह स्पष्ट है कि झूठे अगुआ कलीसिया के अगुआ बनने के लायक नहीं हैं। ऐसे दूसरे झूठे अगुआ भी हैं जो कलीसिया का कोई विशेष कार्य नहीं करते और विशिष्ट कार्य के पर्यवेक्षकों से कोई संपर्क नहीं करते, इसलिए वे यह नहीं जानते कि कौन-से प्रतिभाशाली व्यक्ति कौन-सा कार्य करने के काबिल हैं, न ही यह कि कौन किस कार्य के लिए उपयुक्त है, न ही यह कि उनका कामकाज सिद्धांतों के अनुरूप है या नहीं। इस प्रकार वे प्रतिभावान लोगों को पदोन्नत और विकसित करने में असमर्थ होते हैं। तो फिर ऐसे लोग कलीसिया के कार्य को अच्छे ढंग से कैसे कर सकते हैं? झूठे अगुआओं के वास्तविक कार्य न कर पाने का मुख्य कारण यह है कि उनकी काबिलियत कमजोर होती है; उनके पास किसी भी चीज की अंतर्दृष्टि नहीं होती है, और वे नहीं जानते कि वास्तविक कार्य क्या होता है। इससे कलीसिया के कार्य में अक्सर अकर्मण्यता की स्थितियाँ पैदा होती हैं या पूर्ण गतिहीनता आ जाती है। ये सीधे तौर पर झूठे अगुआओं के वास्तविक कार्य करने में विफलता से संबंधित होती हैं। पिछले अनेक वर्षों से परमेश्वर के घर ने बार-बार जोर दिया है कि बुरे लोगों और छद्म-विश्वासियों को बाहर निकाल देना चाहिए और झूठे अगुआओं और झूठे कार्यकर्ताओं को बरखास्त कर देना चाहिए। विभिन्न बुरे लोगों और छद्म-विश्वासियों को क्यों निकाल देना जाना चाहिए? क्योंकि कई वर्षों तक परमेश्वर में विश्वास रखने के बाद भी, ये लोग सत्य को बिल्कुल भी स्वीकार नहीं करते हैं और ये उस मुकाम पर पहुँच गए हैं जहाँ उनके लिए उद्धार की कोई उम्मीद नहीं बची है। और सभी झूठे अगुआओं और झूठे कार्यकर्ताओं को क्यों बरखास्त कर देना चाहिए? क्योंकि वे वास्तविक कार्य नहीं करते और कभी भी उन लोगों को पदोन्नत और विकसित नहीं करते जो सत्य का अनुसरण करते हैं; इसके बजाय वे बस व्यर्थ के प्रयासों में संलग्न रहते हैं। इस कारण से कलीसिया का कार्य अस्त-व्यस्त होकर पूर्ण गतिहीनता में पड़ जाता है, मौजूदा समस्याएँ कायम रहती हैं, सुलझ नहीं पातीं, और इससे परमेश्वर के चुने हुए लोगों का जीवन प्रवेश धीमा भी पड़ जाता है। अगर इन सभी झूठे अगुआओं और झूठे कार्यकर्ताओं को बरखास्त कर दिया जाए और कलीसिया को बाधित करने वाले इन सभी बुरे लोगों और छद्म-विश्वासियों को बाहर निकाल दिया जाए, तो कलीसिया का कार्य स्वाभाविक रूप से सुचारू रूप से चलने लगेगा, कलीसिया का जीवन सहज ही काफी बेहतर हो जाएगा, और परमेश्वर के चुने हुए लोग सामान्य रूप से परमेश्वर के वचनों को खाने, पीने, अपने कर्तव्य निभाने और परमेश्वर में आस्था के सही मार्ग में प्रवेश करने में सक्षम हो जाएँगे। यही चीज है जो परमेश्वर देखना चाहेगा(वचन, खंड 5, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (5))। परमेश्वर के वचनों से मैंने जाना कि झूठे अगुआ और कार्यकर्ता वास्तविक कार्य नहीं करते और न ही कर सकते हैं। भले ही इच्छा न होते हुए भी उन्हें रहने दिया जाए, उससे लाभ से ज्यादा नुकसान ही होता है। वे कलीसिया के काम की कोई रक्षा नहीं कर पाते, बल्कि उसे बाधित और अस्त-व्यस्त ही करते हैं। ली यिंग की बर्खास्तगी को लेकर, मुझे यही चिंता थी कि अगर मैंने इस झूठे अगुआ को बर्खास्त कर दिया और तुरंत उसकी जगह लेने के लिए अच्छा चुनाव करने में नाकाम रही तो इससे काम में देरी हो सकती है। मैंने सोचा अगर कुछ समय के लिए उसे काम पर रहने दिया जाए, तो कम से कम वह थोड़ा-बहुत काम तो संभाल ही सकती है, उसका होना किसी के न होने से तो बेहतर ही है। परमेश्वर के वचनों के खुलासे और सामने आए तथ्यों की बदौलत, अंततः मैंने जाना कि यह दृष्टिकोण गलत ही नहीं, बल्कि बेतुका, भ्रामक और बिल्कुल भी सत्य के अनुरूप नहीं है। पता लग जाने पर, झूठे अगुआओं और कार्यकर्ताओं को तुरंत बर्खास्त कर देना चाहिए और कार्य संभालने के लिए यथाशीघ्र किसी उपयुक्त व्यक्ति को चुन लेना चाहिए। भले ही कोई उपयुक्त व्यक्ति तुरंत न मिले, लेकिन किसी झूठे अगुआ को बनाए रखने से बेहतर है कि किसी को तैयार किया जाए। यह कलीसिया के कार्य की रक्षा करना है। मैं इस बात को ठीक से नहीं समझ पाई थी। मैंने सोचा था कि उन झूठे अगुआओं के रहने से मेरा कुछ काम उनमें बँट जाएगा और मुझे थोड़ा आराम करने का मौका मिल जाएगा। लेकिन अब समझ आया कि ऐसा करने से मेरी मुसीबत तो कम नहीं हुई, बल्कि मुझे पहले से ज्यादा थकान हुई और मैं और ज्यादा व्यस्त हो गई थी, क्योंकि उनके काम में हमेशा कई गलतियाँ और दोष रहते थे। आखिरकार, मुझे ही उन सारी समस्याओं से निपटना पड़ता था। उनको हटाने के बाद ही कलीसिया के काम में धीरे-धीरे सुधार होने लगा। इसके अलावा, अगुआओं से मेरी अपेक्षाएं और मानक भी बहुत ऊंचे थे। मुझे लगता था कि अगुआओं को निर्वाचित होते ही काम शुरू कर देना चाहिए, इसलिए मुझे कभी नहीं लगा कि उपयुक्त उम्मीदवार उपलब्ध हैं, और मैंने उन झूठे अगुआओं की जगह किसी और को लेने की नहीं सोची। लेकिन असल में, अगर कोई सत्य का अनुसरण करता है, सही इरादे रखता है, सही व्यक्ति है और ठीक-ठाक काबिलियत भी है, तो उसे तैयार किया जा सकता है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह लंबे समय से परमेश्वर में विश्वास नहीं रखता या पहले अगुआ या कार्यकर्ता नहीं रहा है, चूँकि वह सत्य का अनुसरण करता है, वह आसानी से पवित्र आत्मा का कार्य प्राप्त कर सकता है, और अपने कर्तव्यों में आगे बढ़ सकता है। इन बातों को समझने पर, मेरा गलत दृष्टिकोण, “कोई अगुआ न होने से बेहतर है कोई झूठा अगुआ ही हो,” पूरी तरह से सुधर गया।

आगे चलकर, एक कलीसिया के भाई-बहनों ने रिपोर्ट की कि लियू ली नाम की एक अगुआ वास्तविक काम नहीं कर रही है और वह झूठी अगुआ है। वे चाहते थे कि मैं इसकी जाँच करूँ और उसे तुरंत बर्खास्त कर दूँ। मैंने सोचा, “इस कलीसिया में पहले ही उपयाजकों और अगुआओं की कमी है, और मुझे किसी को बर्खास्त करना है? क्या और लोगों को चुनने की चिंता मेरे सिर पर नहीं आ जाएगी? फिर, दूसरी कलीसिया को भी एक अगुआ की आवश्यकता है, जो अपने आप में ही बहुत बड़ा काम है। अगर मैं लियू ली को बर्खास्त कर दूं, तो क्या इससे मेरे काम का बोझ नहीं बढ़ जाएगा?” मैं फिर से अपने दैहिक हितों की सोच थी, लेकिन फिर मुझे तुरंत एहसास हुआ कि मेरी अवस्था ठीक नहीं है। मैंने फौरन परमेश्वर से प्रार्थना की, “हे सर्वशक्तिमान परमेश्वर! मुझे जब भी किसी अगुआ को बर्खास्त करना होता है, मैं अपने दैहिक हितों की सोचने लगती हूँ। मैं तेरे इरादे पर विचार या कलीसिया के काम की रक्षा नहीं कर पा रही हूँ। हे परमेश्वर, मुझे शक्ति दे ताकि मैं अपनी देह के विरुद्ध विद्रोह, सत्य का अभ्यास और तुझे संतुष्ट कर सकूँ।” प्रार्थना करने के बाद, मुझे परमेश्वर के वचन याद आए जो कहते हैं : “अपने कर्तव्य को निभाने वाले सभी लोगों के लिए, फिर चाहे सत्य को लेकर उनकी समझ कितनी भी उथली या गहरी क्यों न हो, सत्य वास्तविकता में प्रवेश के अभ्यास का सबसे सरल तरीका यह है कि हर काम में परमेश्वर के घर के हित के बारे में सोचा जाए, और अपनी स्‍वार्थपूर्ण इच्छाओं, व्यक्तिगत मंशाओं, अभिप्रेरणाओं, घमंड और हैसियत का त्याग किया जाए। परमेश्वर के घर के हितों को सबसे आगे रखो—कम से कम इतना तो व्यक्ति को करना ही चाहिए। अपना कर्तव्य निभाने वाला कोई व्यक्ति अगर इतना भी नहीं कर सकता, तो उस व्यक्ति को कर्तव्य निभाने वाला कैसे कहा जा सकता है? यह अपने कर्तव्य को पूरा करना नहीं है(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, अपने भ्रष्ट स्वभाव को त्यागकर ही आजादी और मुक्ति पाई जा सकती है)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे यह समझा दिया कि जब मेरे व्यक्तिगत हित कलीसिया के कार्य से टकराएँ, तो मुझे अपने व्यक्तिगत हितों को दर-किनार कर कलीसिया के काम को प्राथमिकता देनी चाहिए। मुझे पहले परमेश्वर के इरादे पर विचार करना चाहिए और झूठे अगुआओं को तुरंत बर्खास्त कर देना चाहिए। ऐसा करना ही परमेश्वर के इरादे के अनुरूप होना है। इसलिए मैंने लियू ली के साथ संगति करने से शुरुआत की, उसके वास्तविक कार्य न करने के सार और गंभीर परिणामों को उजागर और गहन विश्लेषण किया। लेकिन कुछ समय बाद, मैंने देखा कि उसमें कोई बदलाव नहीं आया है, इसलिए सिद्धांतों के अनुसार मैंने उसे बर्खास्त कर दिया। मैंने बाकी लोगों के साथ भी संगति की और हमने एक नया अगुआ चुन लिया। जब मैंने परमेश्वर की अपेक्षाओं के अनुरूप कार्य किया, तो मुझे कोई थकान महसूस नहीं हुई, बल्कि मुझे आराम और शांति का एहसास हुआ। इस तरह से सुधार होना और प्रवेश कर पाने योग्य होना परमेश्वर के वचनों के मार्गदर्शन से ही संभव हो पाया। परमेश्वर का धन्यवाद!

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