99. मेरी आस्था में बाधा
मैं 1988 में एक कैथोलिक बना था। कुछ वर्षों बाद, मुझे एक उपयाजक के रूप में नियुक्त किया गया। चाहे मैं कितना भी व्यस्त क्यों न होता, मैं सक्रिय रूप से सेवाओं में भाग लेता था, और मैं प्रभु का दिन और दूसरे पवित्र दिन मनाता था। लेकिन बाद में, कलीसिया धीरे-धीरे सुस्त होती गई। विश्वासियों की आस्था ठंडी पड़ गई और उन्होंने प्रभु का दिन मानना बंद कर दिया। यहाँ तक कि जब हम सेवाओं में रोज़री का पाठ कर रहे होते, तब लोग खर्राटे ले रहे होते, बहुत से विश्वासी काम करने और पैसे कमाने के लिए बाहर निकल जाते थे। मुझे भी पवित्र आत्मा की उपस्थिति महसूस नहीं होती थी, लेकिन मैं खुद को सेवाओं में जाने के लिए मजबूर करता था।
फिर, 2002 की शरद ऋतु में, एक पड़ोसी ने मेरे सामने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य के बारे में गवाही दी। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को खाने और पीने से, मैंने परमेश्वर के कार्य के तीन चरणों, उसके देहधारणों के बारे में सत्य के रहस्यों को जाना, और यह भी जाना कि कलीसिया इसलिए उजड़ गई थी क्योंकि पवित्र आत्मा का कार्य आगे बढ़ गया था और परमेश्वर अब नया कार्य कर रहा था। पाप के बंधनों से मुक्त होने और स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने का मौका पाने के लिए हमें परमेश्वर के पदचिह्नों के साथ चलना था और अंत के दिनों के उसके न्याय और ताड़ना के कार्य को स्वीकारना था। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को पढ़कर, मेरी पत्नी और मुझे यकीन हो गया कि वही लौटकर आया प्रभु है और हमने अंत के दिनों के उसके कार्य को खुशी-खुशी स्वीकार लिया। हालाँकि मुझे इस बात की उम्मीद नहीं थी कि एक महीने बाद ही, उपयाजक और याजक हमें परेशान करना और बाधा डालना शुरू कर देंगे।
एक दिन, कुछ उपयाजक मेरे पिता के साथ हमारे घर आए। उनके आक्रामक रवैये को देखकर मैं थोड़ा घबरा सा गया। मुझे यकीन था कि उन्हें मेरे परमेश्वर के नए कार्य को स्वीकारने के बारे में पता चल गया है और वे मुझे रोकने आए हैं। उनमें से कुछ ने दिव्यता विद्यालय से शिक्षा प्राप्त की थी और कुछ शिक्षक थे। मैं बाइबल के ज्ञान में उतना माहिर नहीं था जितना वे थे। मैंने अभी-अभी परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य को स्वीकारा था और मैं सत्य को ज्यादा समझ नहीं पाया था, इसलिए मुझे नहीं पता था कि अगर उन्होंने मुझ पर सच में दबाव डाला तो मैं इसका सामना कैसे करूँगा। मैंने परमेश्वर से एक मौन प्रार्थना की, “हे परमेश्वर, मैं नहीं जानता कि उनका सामना कैसे करना है। कृपया मेरा मार्गदर्शन कर, मुझे आस्था दे और मेरी रक्षा कर ताकि मैं मजबूती से खड़ा रह सकूं।” प्रार्थना करने के बाद मुझे काफी शांति महसूस हुई। फिर, एक बुजुर्ग उपयाजक ने मुझसे कहा, “तुम पिछले 10 वर्षों से कैथोलिक हो और एक उपयाजक भी हो। मैंने कभी नहीं सोचा था कि तुम चमकती पूर्वी बिजली को स्वीकार लोगे। मैं बहुत निराश हूँ! ये चमकती पूर्वी बिजली वाले कहते हैं कि प्रभु लौट आया है—क्या तुमने उसे देखा है? अगर वह सच में लौट आया होता, तो याजकों को कैसे पता न होता? वे बाइबल को बहुत अच्छी तरह से जानते हैं—उन्होंने अपना पूरा जीवन प्रभु के लिए प्रचार और कार्य करने में बिताया है और उन्होंने बहुत कष्ट सहा है। अगर प्रभु लौट आया होता, तो वह जरूर खुद को उनके सामने प्रकट करता!” उस समय, मुझे याद आया कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया की एक बहन ने इस मुद्दे पर मेरे साथ एक बार संगति की थी। उसने कहा था, “बहुत से लोग सोचते हैं कि जब प्रभु यीशु लौटेगा, तो वह सबसे पहले याजकों के सामने प्रकट होगा, लेकिन क्या यह दृष्टिकोण सही है? क्या परमेश्वर के वचनों में इसके लिए कोई आधार है? क्या प्रभु यीशु ने कभी ऐसा कहा था? वास्तव में, प्रभु यीशु ने कभी नहीं कहा कि जब वह लौटेगा, तो सबसे पहले याजकों के सामने प्रकट होगा, और न ही हमें किसी प्रकाशन की प्रतीक्षा करने के लिए कहा। उसने हमें बताया कि : ‘मेरी भेड़ें मेरा शब्द सुनती हैं; मैं उन्हें जानता हूँ, और वे मेरे पीछे पीछे चलती हैं’ (यूहन्ना 10:27)। ‘देख, मैं द्वार पर खड़ा हुआ खटखटाता हूँ; यदि कोई मेरा शब्द सुनकर द्वार खोलेगा, तो मैं उसके पास भीतर आकर उसके साथ भोजन करूँगा और वह मेरे साथ’ (प्रकाशितवाक्य 3:20)। प्रभु के वचन बहुत स्पष्ट हैं। अगर हम प्रभु का स्वागत करना चाहते हैं, तो इसकी कुंजी यह है कि हम परमेश्वर की वाणी को ध्यान से सुनें और सत्य की अभिव्यक्तियों की तलाश करें। जैसे अनुग्रह के युग में, शिष्यों ने प्रभु यीशु का अनुसरण किसी प्रकाशन को पाने के कारण नहीं किया था, बल्कि इसलिए किया था क्योंकि उन्होंने प्रभु यीशु द्वारा व्यक्त किए गए सत्यों को सुना था, और यह पहचान लिया था कि वही वह मसीह था जो आने वाला था और उन्होंने परमेश्वर का उद्धार प्राप्त किया। लेकिन यहूदी अगुआओं ने प्रभु यीशु द्वारा व्यक्त सत्यों को स्वीकारने से इनकार कर दिया। उन्होंने उसके कार्य की निंदा की, अपमान किया और इसकी आलोचना की, और अंत में उसे क्रूस पर चढ़ा दिया। इसने परमेश्वर के स्वभाव को नाराज किया और प्रभु यीशु ने उन्हें शाप दिया। अब प्रभु यीशु सर्वशक्तिमान परमेश्वर, अंत के दिनों के मसीह के रूप में लौट आया है, और बहुत सारे सत्य व्यक्त कर रहा है, जो कि पवित्र आत्मा के वचन हैं। इससे यह भविष्यवाणी पूरी होती है ‘जिसके कान हों वह सुन ले कि आत्मा कलीसियाओं से क्या कहता है’ (प्रकाशितवाक्य 3:6)। सच्चे विश्वासियों में से बहुत से भाई-बहनों ने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को पढ़ा है और इन वचनों को सत्य, परमेश्वर की वाणी के रूप में पहचाना है, और प्रभु का स्वागत किया है। लेकिन कितने याजक परमेश्वर के कार्य और वचनों की जांच करने के लिए सक्रिय रूप से आगे आए? न केवल उन्होंने खोज और जांच नहीं की, बल्कि अंत के दिनों के परमेश्वर के कार्य की निंदा और आलोचना की और विश्वासियों को सच्चे मार्ग को स्वीकारने से भी रोका। उन्हें सत्य की खोज करने की कोई इच्छा नहीं थी। उन्होंने परमेश्वर की वाणी नहीं सुनी और उसके वचनों के आधार पर प्रभु का स्वागत नहीं किया, बल्कि कहा कि वह सबसे पहले उनके सामने अपनी वापसी का खुलासा करेगा। ऐसा कैसे हो सकता है?” फिर मैंने यह सोच उपयाजकों के साथ साझा की, लेकिन अभी मेरे मुँह से शब्द निकले ही थे कि उनमें से एक उछल पड़ा और उसने मेरी ओर इशारा करते हुए कहा, “हो सकता है कि अब तुम्हें काफी कुछ पता चल गया हो! लेकिन यह मत भूलो कि मत्ती के सुसमाचार, अध्याय 24, पद 23-24 में क्या लिखा है : ‘उस समय यदि कोई तुम से कहे, “देखो, मसीह यहाँ है!” या “वहाँ है!” तो विश्वास न करना। क्योंकि झूठे मसीह और झूठे भविष्यद्वक्ता उत्पन्न हो जाएंगे, और बड़े संकेत और आश्चर्यजनक कार्य दिखाएंगे; ताकि अगर संभव हो, तो वे चुने हुए लोगों को ही गुमराह कर दें।’ याजक ने कहा कि प्रभु के आने के सभी दावे झूठे हैं, और यह दावा भी झूठा है कि वह देहधारी हुआ है। तुम बुरी तरह से गुमराह हो चुके हो—बेहतर होगा कि तुम बिना देर किए अपना अपराध स्वीकारो और पश्चात्ताप करो! अगर तुम वापस नहीं लौटे, तो तुम्हें निष्कासित किए जाने का खतरा रहेगा, और तब पछतावे के लिए बहुत देर हो चुकी होगी!”
उसकी बातें सुनकर मुझे घृणा महसूस हुई। मैंने सोचा, “ये उपयाजक अपना सारा दिन दूसरों के लिए धर्मशास्त्र की व्याख्या करने में बिता देते हैं, लेकिन वे प्रभु के आगमन जैसी बड़ी बात पर गौर नहीं करते या इसकी जांच नहीं करते, बल्कि अंधाधुंध निंदा, आलोचना करते हैं और मुझे सच्चे मार्ग की जांच करने से रोकने की कोशिश करते हैं। क्या यह ठीक फरीसियों जैसा नहीं है?” तो मैंने उससे कहा, “यह सच है कि बाइबल कहती है कि अंत के दिनों में झूठे मसीह प्रकट होंगे, लेकिन प्रभु ने बहुत पहले ही यह भविष्यवाणी की थी कि वह निश्चित रूप से लौटेगा—यह एक तथ्य है। जो तुम कह रहे हो उसके अनुसार, प्रभु के आगमन के सभी दावे झूठे हैं, तो क्या यह सीधे-सीधे प्रभु की वापसी की निंदा करना नहीं है? तो फिर हम उसका स्वागत कैसे करेंगे? वास्तव में, प्रभु यीशु हमें झूठे मसीहों के भेद पहचानने के सिद्धांत बता रहा था। झूठे मसीह छुपी हुई बुरी आत्माएं हैं और उनमें परमेश्वर का सार नहीं होता है, इसलिए वे सत्य को व्यक्त नहीं कर सकते और वे मानवता को बचाने का कार्य नहीं कर सकते। वे केवल प्रभु यीशु के पिछले कार्य की नकल कर सकते हैं, कुछ संकेत और चमत्कार दिखाकर लोगों को गुमराह कर सकते हैं।” मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कुछ वचन याद आए जो भाई-बहनों ने मुझे पढ़कर सुनाए थे : “यदि वर्तमान समय में ऐसा कोई व्यक्ति उभरे, जो चिह्न और चमत्कार प्रदर्शित करने, दुष्टात्माओं को निकालने, बीमारों को चंगा करने और कई चमत्कार दिखाने में समर्थ हो, और यदि वह व्यक्ति दावा करे कि वह यीशु है जो आ गया है, तो यह बुरी आत्माओं द्वारा उत्पन्न नकली व्यक्ति होगा, जो यीशु की नकल उतार रहा होगा। यह याद रखो! परमेश्वर वही कार्य नहीं दोहराता। कार्य का यीशु का चरण पहले ही पूरा हो चुका है, और परमेश्वर कार्य के उस चरण को पुनः कभी हाथ में नहीं लेगा” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आज परमेश्वर के कार्य को जानना)। “देहधारी हुए परमेश्वर को मसीह कहा जाता है, और इसलिए वह मसीह जो लोगों को सत्य दे सकता है, परमेश्वर कहलाता है। इसमें कुछ भी अतिशयोक्ति नहीं है, क्योंकि उसमें परमेश्वर का सार होता है, और उसमें परमेश्वर का स्वभाव और उसके कार्य में बुद्धि होती है, जो मनुष्य के लिए अप्राप्य हैं। जो अपने आप को मसीह कहते हैं, परंतु परमेश्वर का कार्य नहीं कर सकते, वे धोखेबाज हैं। मसीह पृथ्वी पर परमेश्वर की अभिव्यक्ति मात्र नहीं है, बल्कि वह विशेष देह भी है, जिसे धारण करके परमेश्वर मनुष्यों के बीच रहकर अपना कार्य पूरा करता है। कोई मनुष्य इस देह की जगह नहीं ले सकता, बल्कि यह वह देह है जो पृथ्वी पर परमेश्वर के कार्य का पर्याप्त रूप से बीड़ा उठा सकती है और परमेश्वर का स्वभाव व्यक्त कर सकती है, और परमेश्वर का अच्छी तरह प्रतिनिधित्व कर सकती है, और मनुष्य को जीवन प्रदान कर सकती है। मसीह का भेस धारण करने वाले लोगों का देर-सबेर पतन हो जाएगा, क्योंकि हालाँकि वे मसीह होने का दावा करते हैं, किंतु उनमें मसीह के सार का लेशमात्र भी नहीं है। और इसलिए मैं कहता हूँ कि मसीह की प्रामाणिकता मनुष्य द्वारा परिभाषित नहीं की जा सकती, बल्कि इसका उत्तर और निर्णय स्वयं परमेश्वर द्वारा ही दिया-लिया जाता है” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल अंत के दिनों का मसीह ही मनुष्य को अनंत जीवन का मार्ग दे सकता है)। परमेश्वर के वचन यह स्पष्ट करते हैं कि झूठे मसीहों और सच्चे मसीहों के बीच अंतर कैसे करना है। तो, मैंने उनसे कहा, “मसीह देह के वस्त्र में परमेश्वर का आत्मा है। बाहर से मसीह एक साधारण व्यक्ति जैसा ही दिखता है, लेकिन उसके अंदर परमेश्वर का आत्मा निवास करता है—वह परमेश्वर के आत्मा का मूर्त रूप है, इसलिए उसका सार दिव्य है और वह कहीं भी, कभी भी सत्य व्यक्त कर सकता है, परमेश्वर का स्वभाव और जो उसके पास है और जो वह स्वयं है उसे दिखा सकता है। वह मानवता को छुटकारा दिलाने और बचाने का कार्य कर सकता है। मानवजाति को बचाने की बात तो बहुत दूर है, मसीह के अलावा कोई भी सत्य व्यक्त नहीं कर सकता। इसमें कोई संदेह नहीं है। इसलिए, झूठे मसीहों और सच्चे मसीहों के बीच अंतर करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण बात यह देखना है कि क्या वे सत्य व्यक्त कर सकते हैं और क्या वे उद्धार का कार्य कर सकते हैं। यह सबसे महत्वपूर्ण और बुनियादी सिद्धांत है। यह ठीक वैसा ही है जैसे जब प्रभु यीशु अनुग्रह युग में कार्य करने आया था। उसने सत्य व्यक्त किए और लोगों को पश्चात्ताप का मार्ग दिखाया, कई संकेत और चमत्कार दिखाए और पूरी मानवजाति को छुटकारा दिलाने का कार्य किया। प्रभु यीशु के कार्य को स्वीकारने और उसके सामने अपने पापों को कबूल कर पश्चात्ताप करने से, हमारे पाप क्षमा किए गए और हमारे दिलों में शांति और आनंद का एहसास पैदा हुआ। प्रभु यीशु का कार्य और वचन सामर्थ्य और अधिकार से भरे हुए हैं। उसने परमेश्वर के स्वभाव और जो उसके पास है और जो वह स्वयं है उसे प्रकट किया। हम सभी अपने दिल से जानते हैं कि वह देहधारी मसीह था, वह परमेश्वर का प्रकटन था। अब सर्वशक्तिमान परमेश्वर, अंत के दिनों का मसीह आ गया है, वह न्याय का कार्य कर रहा है, और उन सभी सत्यों को व्यक्त कर रहा है जो मानवजाति को स्वच्छ करते और बचाते हैं। उसने न केवल परमेश्वर के तीन चरणों के कार्य और उसके देहधारण जैसे सत्य के कई रहस्यों को उजागर किया है, बल्कि उसने शैतान द्वारा मानवजाति को भ्रष्ट किए जाने की जड़ को भी उजागर किया है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों के न्याय और प्रकाशन के माध्यम से, हम अपने पापों की जड़ को समझ सकते हैं और अपनी शैतानी प्रकृति को स्पष्ट रूप से देख सकते हैं, दिल से खुद से घृणा करके परमेश्वर के सामने पश्चात्ताप कर सकते हैं, और आखिरकार पाप से मुक्त होकर पूरी तरह से बचाए जा सकते हैं और परमेश्वर के राज्य में प्रवेश कर सकते हैं। परमेश्वर के अलावा और कौन अंत के दिनों में न्याय का कार्य कर सकता है? कौन उन सभी सत्यों को व्यक्त कर सकता है जो मानवजाति को स्वच्छ करते और बचाते हैं? कोई भी इंसान ऐसा नहीं कर सकता। ये तथ्य साबित करते हैं कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही लौटकर आया प्रभु यीशु और अंत के दिनों के मसीह का प्रकटन है। तुम सभी को लगता है कि मैं गुमराह हो गया हूँ, लेकिन तुम यह क्यों नहीं देखते कि क्या सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन सत्य हैं? तुम मानवजाति को बचाने वाले सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य की खोजबीन क्यों नहीं करते?”
तब एक अन्य उपयाजक ने कहा, “याजक ने बार-बार इस बात पर जोर दिया है कि हमें चमकती पूर्वी बिजली की किताब नहीं पढ़नी चाहिए क्योंकि उसकी शिक्षाएँ बहुत ऊँची हैं, और सभी संप्रदायों की बहुत-सी अच्छी भेड़ें और प्रमुख भेड़ें उस किताब को पढ़ने के बाद चमकती पूर्वी बिजली की ओर मतांतरित हो गई हैं। यही कारण है कि हम चमकती पूर्वी बिजली की किताब नहीं पढ़ सकते और न ही उनकी शिक्षा सुन सकते। ऐसा इसलिए है ताकि हम गुमराह न हो जाएँ।” तो मैंने उनसे कहा, “मैं भी पहले तुम सब की तरह ही सोचता था। गुमराह होने के डर से, मैं प्रभु के आगमन के बारे में कुछ भी न सुनता था, न पढ़ता था और न ही किसी से कोई संपर्क करता था, लेकिन फिर किसी ने मेरे साथ सुसमाचार साझा किया। मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन पढ़े और देखा कि यह गलत दृष्टिकोण था। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है : ‘यीशु की वापसी उन लोगों के लिए एक महान उद्धार है, जो सत्य को स्वीकार करने में सक्षम हैं, पर उनके लिए जो सत्य को स्वीकार करने में असमर्थ हैं, यह दंडाज्ञा का संकेत है। तुम लोगों को अपना स्वयं का रास्ता चुनना चाहिए, और पवित्र आत्मा के खिलाफ निंदा नहीं करनी चाहिए और सत्य को अस्वीकार नहीं करना चाहिए। तुम लोगों को अज्ञानी और अभिमानी व्यक्ति नहीं बनना चाहिए, बल्कि ऐसा बनना चाहिए जो पवित्र आत्मा के मार्गदर्शन के प्रति समर्पण करता हो और सत्य के लिए लालायित होकर इसकी खोज करता हो; सिर्फ इसी तरीके से तुम लोग लाभान्वित होगे। मैं तुम लोगों को परमेश्वर में विश्वास के रास्ते पर सावधानी से चलने की सलाह देता हूँ। निष्कर्ष पर पहुँचने की जल्दी में न रहो; और परमेश्वर में अपने विश्वास में लापरवाह और विचारहीन न बनो। तुम लोगों को जानना चाहिए कि कम से कम, जो परमेश्वर में विश्वास करते हैं उनके पास विनम्र और परमेश्वर का भय मानने वाला हृदय होना चाहिए। जिन्होंने सत्य सुन लिया है और फिर भी इस पर अपनी नाक-भौंह सिकोड़ते हैं, वे मूर्ख और अज्ञानी हैं। जिन्होंने सत्य सुन लिया है और फिर भी लापरवाही के साथ निष्कर्षों तक पहुँचते हैं या उसकी निंदा करते हैं, ऐसे लोग अभिमान से घिरे हैं। जो भी यीशु पर विश्वास करता है वह दूसरों को शाप देने या निंदा करने के योग्य नहीं है। तुम सब लोगों को ऐसा व्यक्ति होना चाहिए, जो समझदार है और सत्य स्वीकार करता है। ... शायद, केवल कुछ वाक्य पढ़कर, कुछ लोग इन वचनों की आँखें मूँदकर यह कहते हुए निंदा करेंगे, “यह पवित्र आत्मा की थोड़ी प्रबुद्धता से अधिक कुछ नहीं है,” या “यह एक झूठा मसीह है जो लोगों को गुमराह करने आया है।” जो लोग ऐसी बातें कहते हैं वे अज्ञानता से अंधे हो गए हैं! तुम परमेश्वर के कार्य और बुद्धि को बहुत कम समझते हो और मैं तुम्हें पुनः शुरू से आरंभ करने की सलाह देता हूँ! तुम लोगों को अंत के दिनों में झूठे मसीहों के प्रकट होने की वजह से आँख बंदकर परमेश्वर द्वारा अभिव्यक्त वचनों का तिरस्कार नहीं करना चाहिए और चूँकि तुम गुमराह होने से डरते हो, इसलिए तुम्हें पवित्र आत्मा के खिलाफ निंदा नहीं करनी चाहिए। क्या यह बड़ी दयनीय स्थिति नहीं होगी?’ (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जब तक तुम यीशु के आध्यात्मिक शरीर को देखोगे, परमेश्वर स्वर्ग और पृथ्वी को फिर से बना चुका होगा)। मैंने परमेश्वर के वचनों से सीखा कि प्रभु की वापसी जैसी महत्वपूर्ण बात के बारे में हमें बिना सोचे-विचारे अंदाजा नहीं लगाना चाहिए। इससे पहले, जब प्रभु यीशु कार्य करने आया था, तो उसने बहुत सारे सत्य व्यक्त किए थे और कई संकेत और चमत्कार दिखाए थे, लेकिन फरीसियों ने इसकी खोज या जाँच नहीं की और ना ही उसकी शिक्षाओं को सुना। उन्होंने उसका घोर विरोध किया और उसकी निंदा की। नतीजा यह हुआ कि उन्होंने परमेश्वर के स्वभाव का अपमान किया और अंततः उन्हें परमेश्वर ने शाप और दंड दिया। अंत के दिनों में, अगर हमारे पास प्रभु का स्वागत करने की कोशिश करने वाला दिल नहीं है, और हम बस अंधाधुंध आलोचना और निंदा करते रहते हैं, तो फिर यह मुमकिन है कि हम परमेश्वर के विरुद्ध फरीसियों के मार्ग पर चल पड़ेंगे। परमेश्वर हमसे कहता है कि हम सत्य की खोज के लिए तरसने वाले समझदार लोग बनें। अगर हम कोई खोज नहीं करते हैं, बल्कि बिना सोचे-समझे याजकों की बात सुनते हैं, और प्रभु के वचनों के आधार पर उसका स्वागत नहीं करते हैं, तो यह मुमकिन है कि हम परमेश्वर का विरोध करेंगे और हमें दंडित किया जाएगा।” इस पर एक उपयाजक ने गुस्से में जवाब दिया, “कैथोलिक धर्म ही एकमात्र सच्चा मार्ग है। प्रभु में हमारी आस्था के लिए हमें केवल बाइबल की जरूरत है!” मेरे पिता जी ने सख्त नजरों से देखते हुए कहा, “हर कोई इस बात को लेकर चिंतित है कि तुम गुमराह हो रहे हो। इसके अलावा, हम पीढ़ियों से एक कैथोलिक परिवार रहे हैं। यह गलत कैसे हो सकता है? तुम इतने अवज्ञाकारी क्यों हो?” तो मैंने उनसे कहा, “प्रभु में विश्वास रखने में कुछ भी गलत नहीं है, लेकिन अब वह नया कार्य कर रहा है। अगर हम इसके साथ नहीं चलेंगे, तो हमें छोड़ दिया जाएगा। परमेश्वर के नए कार्य के साथ चलना ही स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने का हमारा एकमात्र मौका है।” लेकिन मैंने जो भी कहा, वह सब अनसुना कर दिया गया। मुझे एहसास हुआ कि भले ही उनके पास रुतबा और बाइबल का ज्ञान था, लेकिन उन्हें परमेश्वर की वाणी की कोई समझ नहीं थी और न ही उनमें खोज करने की कोई इच्छा थी। मैंने और कुछ कहने की कोशिश नहीं की। जब उन्होंने देखा कि मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर में अपनी आस्था पर कितना अडिग था, तो वे गुस्से में घर से बाहर चले गए।
मैंने सोचा कि अब वे मुझे परेशान करना बंद कर देंगे, लेकिन मेरे आश्चर्य का कोई ठिकाना नहीं रहा जब हमारे गाँव के एक वरिष्ठ उपयाजक ने यह कहते हुए मेरे माता-पिता को उकसाया कि मेरी पत्नी और मैं गलत मार्ग पर चल रहे हैं, और उनसे कहा कि वे हमें वापस लाने के बारे में कोई तरीका सोचें। मेरी माँ ने उनकी बात सुनी और फिर उन्होंने मुझे सलाह दी, “इस गाँव में सिर्फ तुम और तुम्हारी पत्नी ही सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास रखते हो। याजक बाइबल को तुम दोनों से बेहतर जानते हैं, तो फिर वे मतांतरित क्यों नहीं हुए? उस आस्था को छोड़ दो!” वह लगातार समझाती रहीं, फिर रोने लगीं। मैंने हर तरह से संगति की लेकिन मेरी माँ कोई बात सुनने के लिए तैयार ही नहीं थीं। उसके बाद, वह हर कुछ दिनों में आँसुओं के साथ हमारे घर आने लगीं। एक बार आधी रात के करीब, मैंने दरवाजे पर दस्तक सुनी और चौंककर जाग गया। दरवाजा खोलने पर, मैंने अपनी माँ को रोते और चिल्लाते हुए देखा, “जब से तुम दोनों ने सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास रखना शुरू किया है, तब से मैं सो भी नहीं पाई हूँ। मैंने तुम्हें इतने वर्षों तक पाला है—तुम मेरी बात क्यों नहीं सुनते? मेरी बात मानो और प्रभु में अपनी आस्था पर लौट आओ!” मैंने उनसे कहा, “कैथोलिक कलीसिया में, हम प्रभु यीशु में विश्वास रखते थे, और अब हम प्रभु यीशु की वापसी में विश्वास रखते हैं। यह एक ही परमेश्वर है। प्रभु यीशु का छुटकारे का कार्य केवल हमारे पापों को क्षमा करने के लिए था, यह हमारी पापी प्रकृति से छुटकारा दिलाने के लिए नहीं था। उसके कार्य ने हमें पाप से पूरी तरह नहीं बचाया। प्रभु यीशु अंत के दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के रूप में लौट आया है। वह मनुष्य को पूरी तरह से स्वच्छ करने और बचाने के लिए सत्य व्यक्त कर रहा है और प्रभु के छुटकारे के कार्य की बुनियाद पर न्याय का कार्य कर रहा है। अंत के दिनों के परमेश्वर के कार्य को स्वीकारना ही हमारे लिए शुद्ध होने, पूरी तरह से बचाए जाने और स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने का एकमात्र मौका है। मैंने मेमने के पदचिह्नों का अनुसरण किया है और स्वर्ग के राज्य का मार्ग पा लिया है। मैं अब कलीसिया में वापस नहीं लौटूंगा।” लेकिन मेरी माँ कोई बात सुनने के लिए तैयार ही नहीं थीं। जब उन्हें एहसास हुआ कि चाहे वह कुछ भी कहें, मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर में अपनी आस्था में अडिग था, तो वह जोर-जोर से रोने लगीं। उन्हें इतनी पीड़ा में देखकर मुझे बहुत बुरा महसूस हुआ। मैं हमेशा से अपने माता-पिता के बहुत करीब रहा था, लेकिन अब वे मुझे समझ नहीं पा रहे थे, और उपयाजक मुझ पर अत्याचार करते हुए मुझे परेशान कर रहे थे। आस्था का यह मार्ग इतना कठिन क्यों है? मुझे इस पर कैसे चलना चाहिए? तब मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर की एक बात याद आई : “निराश न हो, कमज़ोर न बनो, मैं तुम्हारे लिए चीज़ें स्पष्ट कर दूँगा। राज्य की राह इतनी आसान नहीं है; कुछ भी इतना सरल नहीं है! तुम चाहते हो कि आशीष आसानी से मिल जाएँ, है न? आज हर किसी को कठोर परीक्षणों का सामना करना होगा। बिना इन परीक्षणों के मुझे प्यार करने वाला तुम लोगों का दिल और मजबूत नहीं होगा और तुम्हें मुझसे सच्चा प्यार नहीं होगा। यदि ये परीक्षण केवल मामूली परिस्थितियों से युक्त भी हों, तो भी सभी को इनसे गुज़रना होगा; अंतर केवल इतना है कि परीक्षणों की कठिनाई हर एक व्यक्ति के लिए अलग-अलग होगी। ... जो लोग मेरी कड़वाहट में हिस्सा बँटाते हैं, वे निश्चित रूप से मेरी मिठास में भी हिस्सा बँटाएँगे। यह मेरा वादा है और तुम लोगों को मेरा आशीष है” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 41)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे शर्मिंदा कर दिया। मैंने सोचा था कि परमेश्वर में विश्वास रखना आसान होगा, मुझे बिना किसी कष्ट के बचाया जा सकेगा, लेकिन हकीकत में ऐसा नहीं है। स्वर्ग के राज्य का मार्ग आसान नहीं है; हमें हर तरह के उत्पीड़न, परीक्षण, कष्टों और पीड़ाओं का सामना करना पड़ेगा। लेकिन परमेश्वर इन कठिन परिस्थितियों का उपयोग परमेश्वर के प्रति हमारी आस्था और प्रेम को पूर्ण करने के लिए करेगा। यह हमारे लिए परमेश्वर का आशीष है। मैंने उन शिष्यों के बारे में सोचा जो बहुत पहले प्रभु यीशु का अनुसरण करते थे। उन्होंने इतने सारे सत्य नहीं सुने थे, लेकिन जब उन्हें उत्पीड़न और कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, तब भी वे प्रभु में अपनी आस्था बनाए रखने में सक्षम थे। मुझे लौटकर आए प्रभु का स्वागत करने, परमेश्वर द्वारा अंत के दिनों में व्यक्त किए गए सत्यों को पढ़ने और पूर्ण उद्धार का मार्ग पाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। मैं केवल अपनी माँ की बाधा के कारण सच्चे मार्ग को नहीं छोड़ सकता था और सत्य और जीवन प्राप्त करने का अवसर नहीं खो सकता था।
उसके बाद, मेरी माँ हर समय मेरे सामने रोती रहतीं और कहतीं कि अगर मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर में अपनी आस्था बनाए रखी, तो वह मुझसे सारे रिश्ते तोड़ देंगी और हमारे रास्ते अलग हो जाएंगे। उन्हें इस तरह देखकर मुझे बहुत तकलीफ होती थी। मुझे पाल-पोस कर बड़ा करना उनके लिए आसान नहीं रहा था। वह मुझसे बहुत प्रेम करती थीं, हमेशा मेरी देखभाल करती थीं और मेरा बहुत ज्यादा ख्याल रखती थीं। वह 66 वर्ष की हो चुकी थीं और उनकी सेहत भी अच्छी नहीं रहती थी। मैं न केवल उनके साथ संतानोचित व्यवहार नहीं करता था, बल्कि हर समय उन्हें बहुत कष्ट भी दे रहा था। अगर वह बीमार पड़ जातीं, तो मेरी अंतरात्मा इसे सहन नहीं कर पाती। यह सब सोचते हुए, मैं थोड़ा कमजोर महसूस करने लगा और लगा कि मैं सच में उनका ऋणी हूँ। मैंने अपने भाई-बहनों से अपनी स्थिति के बारे में खुलकर बात की और उन्होंने मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़कर सुनाया : “तुम्हें सत्य के लिए कष्ट उठाने होंगे, तुम्हें सत्य के लिए समर्पित होना होगा, तुम्हें सत्य के लिए अपमान सहना होगा, और अधिक सत्य प्राप्त करने के लिए तुम्हें अधिक कष्ट उठाने होंगे। यही तुम्हें करना चाहिए। एक शांतिपूर्ण पारिवारिक जीवन के लिए तुम्हें सत्य का त्याग नहीं करना चाहिए, और क्षणिक आनन्द के लिए तुम्हें जीवन भर की गरिमा और सत्यनिष्ठा को नहीं खोना चाहिए। तुम्हें उस सबका अनुसरण करना चाहिए जो खूबसूरत और अच्छा है, और तुम्हें अपने जीवन में एक ऐसे मार्ग का अनुसरण करना चाहिए जो ज्यादा अर्थपूर्ण है” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पतरस के अनुभव : ताड़ना और न्याय का उसका ज्ञान)। बिल्कुल सही। मुझे स्पष्ट रूप से पता था कि परमेश्वर के वचन सत्य हैं और मुझे अपने अनुसरण के लिए सब कुछ त्याग देना चाहिए, लेकिन अपनी माँ के आँसू और दुःख देखकर मैं रुक जाता था। मैंने सोचा कि एक बेटे के रूप में, उन्हें इतना दुखी होने देना संतानोचित व्यवहार नहीं था। लेकिन वास्तव में, बेशक मेरी माँ ने मुझे बड़ा किया था, वह मुझसे प्रेम करती थी, मेरी देखभाल करती थी और मुझे उनके प्रति संतानोचित होकर हमारे दैनिक जीवन में उनकी देखभाल करनी चाहिए, लेकिन मेरा जीवन तो मुझे परमेश्वर ने दिया था और केवल परमेश्वर ही मुझे बचा सकता था। मुझे अब परमेश्वर की वाणी सुनने, अंत के दिनों में परमेश्वर का अनुग्रह प्राप्त करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था और उद्धार का यह अवसर मिला था। मुझे परमेश्वर का अनुसरण करके उसके प्रेम का मूल्य चुकाना चाहिए। प्रभु यीशु ने कहा : “यदि कोई मेरे पास आए, और अपने पिता और माता और पत्नी और बच्चों और भाइयों और बहिनों वरन् अपने प्राण को भी अप्रिय न जाने, तो वह मेरा चेला नहीं हो सकता” (लूका 14:26)। मैं केवल शांतिपूर्ण पारिवारिक जीवन की एक क्षणिक खुशी की खातिर सच्चे मार्ग को छोड़कर परमेश्वर के साथ विश्वासघात नहीं कर सकता था। इसे समझने के बाद, मैं फिर उतना परेशान नहीं हुआ।
बाद में, मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों का एक और अंश पढ़ा : “परमेश्वर द्वारा मनुष्य पर किए जाने वाले कार्य के प्रत्येक चरण में, बाहर से यह लोगों के मध्य अंतःक्रिया प्रतीत होता है, मानो यह मानव-व्यवस्थाओं द्वारा या मानवीय विघ्न से उत्पन्न हुआ हो। किंतु पर्दे के पीछे, कार्य का प्रत्येक चरण, और घटित होने वाली हर चीज, शैतान द्वारा परमेश्वर के सामने चली गई बाजी है और लोगों से अपेक्षित है कि वे परमेश्वर के लिए अपनी गवाही में अडिग बने रहें। उदाहरण के लिए, जब अय्यूब का परीक्षण हुआ : पर्दे के पीछे शैतान परमेश्वर के साथ होड़ लगा रहा था और अय्यूब के साथ जो हुआ वह मनुष्यों के कर्म थे और मनुष्यों का विघ्न डालना था। परमेश्वर द्वारा तुम लोगों में किए गए कार्य के हर कदम के पीछे शैतान की परमेश्वर के साथ बाजी होती है—इस सब के पीछे एक संघर्ष होता है” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल परमेश्वर से प्रेम करना ही वास्तव में परमेश्वर पर विश्वास करना है)। इस अंश को पढ़ने के बाद, मुझे एहसास हुआ कि बाहर से देखने पर ऐसा लग रहा था कि मेरी माँ ही मुझे रोक रही थीं, लेकिन असल में इसके पीछे शैतान की बाधाएँ और चालाकियां थीं। शैतान मेरी माँ के प्रति मेरी संतानोचित भक्ति के माध्यम से मुझ पर हमला कर रहा था ताकि मैं परमेश्वर के साथ विश्वासघात करूँ और उद्धार पाने का अपना अवसर खो दूँ। मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य पर उनके साथ कई बार संगति साझा की थी, लेकिन उन्होंने कभी सत्य की खोज या जांच नहीं की। वह बस रुतबे और शक्ति की पूजा करती थीं, और याजक और उपयाजकों की बात सुनती थीं। अब वह बहुत ज्यादा दुखी हो चुकी थीं क्योंकि उनमें भेद पहचानने की क्षमता की कमी थी और वे अंधाधुंध दूसरों की बातों पर विश्वास करती थीं। यह सब मेरी आस्था की वजह से नहीं था। यह एहसास बहुत ही मुक्तिदायक था और मैंने स्पष्ट रूप से देख लिया कि शैतान कितना बुरा और नीच है। परमेश्वर का कार्य लोगों को बचाता है, लेकिन शैतान हर संभव कोशिश करता है कि लोगों को परमेश्वर से दूर ले जाए और लोग परमेश्वर को धोखा दें। मैं उसकी चालों का शिकार नहीं हो सकता था, बल्कि मुझे अपनी गवाही में दृढ़ रहना था।
बाद में, मैं एक कलीसिया के मित्र के घर सुसमाचार साझा करने के लिए गया, लेकिन अप्रत्याशित रूप से याजक वहाँ मौजूद था। मुझे देखते ही, उसने मेरे दोनों हाथ पकड़ लिए और बड़ी गंभीरता से कहा, “तुम अब भी चमकती पूर्वी बिजली का प्रचार कर रहे हो। अगर तुमने पश्चात्ताप नहीं किया, तो मैं तुम्हें पुलिस के हवाले कर दूंगा।” मैं फिर भी नरम नहीं पड़ा। तब उसने खुशामद करते हुए कहा, “मैं तुम्हें एक महत्वपूर्ण पद के लिए विकसित करने की योजना बना रहा था। मैं चाहता था कि तुम हमारे उत्तरी क्षेत्र की सभी कलीसियाओं का प्रबंधन करो। मैंने कभी भी नहीं सोचा था कि तुम चमकती पूर्वी बिजली के पास चले जाओगे। यह कितनी निराशाजनक बात है! अगर तुम वापस लौट आओ, तो मैं अभी भी तुम्हें एक प्रमुख उपयाजक बनाने पर विचार करूँगा। लेकिन अगर तुम अब भी होश में नहीं आओगे, तो मैं तुम्हें तुरंत कलीसिया से निकाल दूंगा और बाकी सदस्यों से भी कहूँगा कि वे तुमसे सारे रिश्ते तोड़ लें। तुम्हारे सभी पिछले प्रयास, जो कुछ भी तुमने किया है, सब व्यर्थ हो जाएगा।” जब उसने ऐसा कहा, तो मैंने सोचा कि उसने पहले तो कभी मुझे विकसित करने की बात नहीं की थी, तो अब जबकि मैंने परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य को स्वीकार लिया है, तो वह ऐसा क्यों करेगा? याजक मुझे रुतबा दिलाने की रिश्वत देना चाहता था ताकि मैं परमेश्वर से विश्वासघात करूँ। यह शैतान की चाल थी! अगर मैंने पद के लिए सच्चे मार्ग को छोड़कर परमेश्वर के साथ विश्वासघात किया, तो मैं बचाए जाने और स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने का अवसर खो दूंगा। ऐसे में, भले ही मुझे रुतबा मिल जाए, उसका क्या ही अर्थ रह जाएगा? आखिर में, मुझे हटा दिया जाएगा और दंड दिया जाएगा! मैंने यह सारी बातें याजक से कहीं, जिससे वह बहुत गुस्सा हो गया। मेरी बात का खंडन न कर पाने के कारण, उसने मुझे वहाँ से भगाना शुरू कर दिया, “यहाँ से निकल जाओ! यहाँ कभी दोबारा प्रचार करने मत आना, वरना मैं पुलिस को तुम्हारी रिपोर्ट कर दूँगा!” उसने यह कहते हुए मुझे दरवाजे से बाहर धकेल दिया। घर लौटते समय मैंने सोचा : एक याजक के रूप में, अगर वह प्रभु की वापसी जैसी महत्वपूर्ण बात की खोज या जांच नहीं कर रहा है, और इसकी निंदा करने, इसका विरोध करने और विश्वासियों को जांच करने से रोकने में अग्रणी भूमिका निभा रहा है, यहाँ तक कि मुझे गिरफ्तार करवाने की धमकी दे रहा है, तो वह एक सच्चा विश्वासी नहीं है। बाद में, जब मेरी माँ ने देखा कि हम अपनी आस्था में कितने दृढ़ थे, तो उन्होंने हमारे रास्ते में आने की कोशिश करना बंद कर दिया और हमें कहा कि वह अब तक हमारे रास्ते में इसलिए बाधा डाल रही थीं क्योंकि एक वरिष्ठ उपयाजक ने उन्हें ऐसा करने के लिए कहा था। मुझे बहुत गुस्सा आया। मुझे प्रभु द्वारा फरीसियों की निंदा याद आई : “हे कपटी शास्त्रियो और फरीसियो, तुम पर हाय! तुम मनुष्यों के लिए स्वर्ग के राज्य का द्वार बन्द करते हो, न तो स्वयं ही उसमें प्रवेश करते हो और न उस में प्रवेश करनेवालों को प्रवेश करने देते हो। ... हे कपटी शास्त्रियो और फरीसियो, तुम पर हाय! तुम एक जन को अपने मत में लाने के लिये सारे जल और थल में फिरते हो, और जब वह मत में आ जाता है तो उसे अपने से दूना नारकीय बना देते हो” (मत्ती 23:13, 15)। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों का यह अंश भी है जिसमें कहा गया है : “ऐसे भी लोग हैं जो बड़ी-बड़ी कलीसियाओं में दिन-भर बाइबल पढ़ते और याद करके सुनाते रहते हैं, फिर भी उनमें से एक भी ऐसा नहीं होता जो परमेश्वर के कार्य के उद्देश्य को समझता हो। उनमें से एक भी ऐसा नहीं होता जो परमेश्वर को जान पाता हो; उनमें से परमेश्वर के इरादों के अनुरूप तो एक भी नहीं होता। वे सबके सब निकम्मे और अधम लोग हैं, जिनमें से प्रत्येक परमेश्वर को सिखाने के लिए ऊँचे पायदान पर खड़ा रहता है। वे लोग परमेश्वर के नाम का झंडा उठाकर, जानबूझकर उसका विरोध करते हैं। वे परमेश्वर में विश्वास रखने का दावा करते हैं, फिर भी मनुष्यों का माँस खाते और रक्त पीते हैं। ऐसे सभी मनुष्य शैतान हैं जो मनुष्यों की आत्माओं को निगल जाते हैं, ऐसे मुख्य राक्षस हैं जो जानबूझकर उन्हें परेशान करते हैं जो सही मार्ग पर कदम बढ़ाने का प्रयास करते हैं और ऐसी बाधाएँ हैं जो परमेश्वर को खोजने वालों के मार्ग में रुकावट पैदा करते हैं। वे ‘मज़बूत देह’ वाले दिख सकते हैं, किंतु उसके अनुयायियों को कैसे पता चलेगा कि वे मसीह-विरोधी हैं जो लोगों से परमेश्वर का विरोध करवाते हैं? अनुयायी कैसे जानेंगे कि वे जीवित शैतान हैं जो इंसानी आत्माओं को निगलने को समर्पित हुए बैठे हैं?” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर को न जानने वाले सभी लोग परमेश्वर का विरोध करते हैं)। परमेश्वर के वचनों के प्रकाशन से मैंने देखा कि आज के धार्मिक जगत के अगुआ भी ठीक फरीसियों जैसे ही हैं। उनका सार मसीह-विरोधी वाला ही है जो सत्य से घृणा करते हैं और परमेश्वर को अपना शत्रु बना लेते हैं। अतीत में फरीसियों ने पागलों की तरह हर प्रकार की अफवाहें फैलाईं, प्रभु यीशु का विरोध किया, उसकी निंदा की, विश्वासियों को गुमराह किया और उन्हें प्रभु का अनुसरण करने से रोका। यह इसलिए था ताकि वे अपने रुतबे और आय के स्रोत को बनाए रख सकें। अब, धार्मिक जगत के अगुआ देखते हैं कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा व्यक्त की गई हर बात सत्य है और जैसे ही सच्चे विश्वासी इन्हें पढ़ते हैं, वे परमेश्वर की वाणी को पहचान लेते हैं। उन्हें डर लगा रहता है कि हर कोई परमेश्वर का अनुसरण करने लगेगा और उनकी भक्ति और समर्थन करना बंद कर देगा। इसलिए, वे अपने रुतबे और आजीविका की रक्षा के लिए धर्मशास्त्र की गलत व्याख्या करने से भी नहीं हिचकिचाते और यह कहते हुए भ्रांतियाँ फैलाते हैं कि प्रभु के आगमन के सभी दावे झूठे हैं और देह में परमेश्वर के आने का हर प्रचार झूठा है, ताकि विश्वासी प्रभु के आगमन का प्रचार करने वालों की बात न सुनें, उन पर विश्वास न करें या उनका उनसे कोई संपर्क न हो। जैसे ही कोई परमेश्वर के नए कार्य को स्वीकार करता है, वे उन्हें रोकने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा देते हैं, यहाँ तक कि सुसमाचार साझा करने वालों को शैतानी शासन के हवाले कर देते हैं। ये धार्मिक अगुआ न केवल खुद प्रभु का स्वागत नहीं करते, बल्कि वे विश्वासियों को मजबूती से अपने नियंत्रण में रखते हैं ताकि हर कोई उनका अनुसरण करते हुए परमेश्वर का विरोध करे और आपदा में पड़कर दंड का भागी बने। वे बेहद कपटी और दुर्भावनापूर्ण हैं! वे परमेश्वर द्वारा प्रकट किए गए अंत के दिनों के मसीह-विरोधी हैं और वे परमेश्वर के श्राप के योग्य हैं! इसके बाद, चाहे उन्होंने मुझे कैसे भी परेशान किया या मेरे रास्ते में बाधा डाली, मैं अपनी आस्था में मजबूत बना रहा और सुसमाचार साझा करता रहा।
जिस समय मेरी आस्था में बाधा डाली जा रही थी, तब मुझे परमेश्वर के प्रेम का अनुभव हुआ। परमेश्वर के वचनों ने बार-बार शैतान के प्रलोभनों और विघ्न-बाधाओं को पार करने में मेरा मार्गदर्शन किया। मैंने यह भी स्पष्ट रूप से देखा कि ये याजक और उपयाजक कैसे परमेश्वर के खिलाफ मसीह-विरोधी हैं और कैसे वे असल में ऐसी बाधाएँ हैं जो लोगों को स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने से रोक रही हैं। मैंने उन्हें अपने दिल से अस्वीकार कर दिया और सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अनुसरण करने के लिए अपनी आस्था में दृढ़ बना रहा।