88. यह परमेश्वर की वाणी है
मैं एक ईसाई परिवार में पैदा हुआ; बचपन में, मैं अपने मॉम-डैड के साथ कलीसिया में जाया करता था। न जाने क्यों, पर समय बीतने के साथ, मैं लगातार अपने दिल में खोखलापन महसूस करने लगा; प्रार्थना करते समय मैं नहीं जानता था कि प्रभु से क्या कहूँ और बाइबल पढ़कर प्रबुद्धता महसूस नहीं करता था। मैंने खुद को प्रभु से बहुत दूर पाया और मुझे बेहद पीड़ा हुई। बाद में, मैं अक्सर ही सुनने के लिए पादरियों के धर्मोपदेश खोजता था और आस्था की नींव डालने के बारे में बहुत-सी फिल्में भी देखता था। मैंने उन चीजों को न करने की पूरी कोशिश भी की जो प्रभु की अपेक्षाओं के अनुरूप नहीं थीं, पर मेरा दिल अभी भी खालीपन महसूस करता।
एक दिन, मेरी पत्नी और मैंने यूट्यूब पर “तड़प” नाम की एक ईसाई फिल्म देखी जिससे हम बहुत प्रभावित हुए। फिल्म की शुरुआत में, मुख्य किरदार अपने खुद के अनुभव और एहसास लिख रहा था, उसने कहा, “दो हजार साल पहले, प्रभु यीशु ने अपने अनुनायियों से वादा किया था, ‘देख, मैं शीघ्र आनेवाला हूँ!’ (प्रकाशितवाक्य 22:7)।” बाइबल की इस पंक्ति ने तुरंत हमारा ध्यान खींचा। प्रकाशितवाक्य की सभी भविष्यवाणियाँ रहस्यपूर्ण थीं, यहाँ मुख्य किरदार किताब की भविष्यवाणियों के इस खंड के बारे में बात कर रहा था। वह आगे क्या कहेगा? हम बढ़ती जिज्ञासा के साथ देखते रहे। फिर परमेश्वर में विश्वास रखने के कारण सीसीपी मुख्य किरदार को गिरफ्तार कर लेती है। जेल में, वह भाई झाओ झिमिंग से मिलता है, जो सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास रखता है। झिमिंग मौका देखकर उसे एक कागज का टुकड़ा थमा देता है। उसमें लिखा होता है : “निराश न हो, कमज़ोर न बनो, मैं तुम्हारे लिए चीज़ें स्पष्ट कर दूँगा। राज्य की राह इतनी आसान नहीं है; कुछ भी इतना सरल नहीं है! तुम चाहते हो कि आशीष आसानी से मिल जाएँ, है न? आज हर किसी को कठोर परीक्षणों का सामना करना होगा। बिना इन परीक्षणों के मुझे प्यार करने वाला तुम लोगों का दिल और मजबूत नहीं होगा और तुम्हें मुझसे सच्चा प्यार नहीं होगा। यदि ये परीक्षण केवल मामूली परिस्थितियों से युक्त भी हों, तो भी सभी को इनसे गुज़रना होगा; अंतर केवल इतना है कि परीक्षणों की कठिनाई हर एक व्यक्ति के लिए अलग-अलग होगी। ... जो लोग मेरी कड़वाहट में हिस्सा बँटाते हैं, वे निश्चित रूप से मेरी मिठास में भी हिस्सा बँटाएँगे। यह मेरा वादा है और तुम लोगों को मेरा आशीष है” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 41)। “इन अंत के दिनों में तुम लोगों को परमेश्वर की गवाही देनी चाहिए। चाहे तुम्हारे कष्ट कितने भी बड़े क्यों न हों, तुम्हें बिल्कुल अंत तक चलना चाहिए, यहाँ तक कि अपनी अंतिम साँस पर भी तुम्हें परमेश्वर के प्रति निष्ठावान और उसके आयोजनों के प्रति समर्पित होना चाहिए; केवल यही वास्तव में परमेश्वर से प्रेम करना है, और केवल यही सशक्त और जोरदार गवाही है” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पीड़ादायक परीक्षणों के अनुभव से ही तुम परमेश्वर की मनोहरता को जान सकते हो)। इन दो अंशों को पढ़कर मुख्य किरदार बहुत प्रभावित होता है। उसे बहुत सुकून मिलता है, साथ ही आस्था और शक्ति भी मिलती है। मेरी पत्नी और मैं इन दो अंशों को देखकर हैरान रह गए। ये वचन कैसे इतने अधिकारपूर्ण, शक्तिशाली, और दिल को छू जाने वाले थे? यह ऐसा था मानो परमेश्वर खुद हमसे बात कर रहा हो, हमें बता रहा हो कि क्या करना चाहिए। हालाँकि मैंने इन वचनों से देखा था कि परमेश्वर में विश्वास रखने के मार्ग पर चलने से कितनी कठिनाइयाँ झेलनी पड़ेंगी, मगर मुझे अपने भीतर गहराई से एक मधुरता का एहसास हुआ, इन वचनों को सुनकर मुझे आस्था और शक्ति मिली। मैंने सोचा, “ये वचन आखिर आए कहाँ से? क्या ये परमेश्वर के वचन हो सकते हैं? क्या प्रभु सच में लौट आया है? मगर जब प्रभु वापस आएगा, उसे बादलों पर आना चाहिए और हमने अभी तक उसके बादलों पर आने का कोई संकेत नहीं देखा है।” भले ही तब मैं थोड़ी उलझन में था, मगर इन वचनों का मैंने काफी आनंद लिया और मैंने मुड़कर अपनी पत्नी से कहा, “ये वचन अद्भुत हैं! मैंने पहले कभी ऐसे शक्तिशाली वचन नहीं सुने।” फिर मैंने फिल्म को बीच में रोककर इन वचनों को एक नोटबुक में लिख लिया। लिखते हुए, मैंने उन्हें फिर से पढ़ा : “निराश न हो, कमज़ोर न बनो, मैं तुम्हारे लिए चीज़ें स्पष्ट कर दूँगा। राज्य की राह इतनी आसान नहीं है; कुछ भी इतना सरल नहीं है!” “राज्य की राह”? मैंने सोचा, “केवल परमेश्वर को ही पता होगा कि राज्य की राह क्या है। ये वचन राज्य की राह की बात कर रहे हैं और कोई साधारण व्यक्ति इन्हें नहीं बोल सकता—इस बारे में सिर्फ परमेश्वर को पता होगा!” मैं पढ़ता रहा : “आज हर किसी को कठोर परीक्षणों का सामना करना होगा। बिना इन परीक्षणों के मुझे प्यार करने वाला तुम लोगों का दिल और मजबूत नहीं होगा और तुम्हें मुझसे सच्चा प्यार नहीं होगा। यदि ये परीक्षण केवल मामूली परिस्थितियों से युक्त भी हों, तो भी सभी को इनसे गुज़रना होगा; अंतर केवल इतना है कि परीक्षणों की कठिनाई हर एक व्यक्ति के लिए अलग-अलग होगी। ... जो लोग मेरी कड़वाहट में हिस्सा बँटाते हैं, वे निश्चित रूप से मेरी मिठास में भी हिस्सा बँटाएँगे। यह मेरा वादा है और तुम लोगों को मेरा आशीष है।” इन वचनों के लहजे से मुझे लगा कि ये किसी ऐसे व्यक्ति ने कहे हैं जो सभी चीजों का प्रबंधन करता है, जो पूरी ईमानदारी से सीधे हमें बता रहा है कि आस्था के मार्ग पर चलना इतना आसान नहीं है और हर व्यक्ति को अलग-अलग मात्रा में पीड़ा और कठिनाई का अनुभव करना होगा, पर यह हमारे प्रेम और आस्था को पूर्ण बनाने के लिए है। यह हमारे लिए परमेश्वर का प्रेम है। अचानक मुझे रोशनी दिखी। पहले मैं हमेशा यह मानता था कि परमेश्वर में आस्था रखने का मतलब है जीवन में सब कुछ अच्छा और सहजता से चलेगा और यह परमेश्वर का आशीष है। मैं मानता था कि अविश्वासियों की तरह अगर हमारा किसी आपदा या दुर्घटना से सामना होता है, तो यह बुरी बात है और इसका मतलब है कि परमेश्वर हमें दंड दे रहा है। यह वैसा ही था जैसे 2010 में, एक भूकंप में मैंने अपना सब कुछ खो दिया था। तब मुझे लगा था कि परमेश्वर ने मुझ पर ध्यान नहीं दिया या मेरी रक्षा नहीं की, जिससे मैं बहुत दुखी हुआ, और परमेश्वर को गलत समझ बैठा। अब इन वचनों को पढ़कर, ऐसी कठिन परिस्थितियों के बारे में मेरा दृष्टिकोण बदल गया है। साथ ही, मैंने यह भी समझा कि कठिनाइयों और परीक्षणों का सामना होने पर मुझे परमेश्वर की आज्ञा माननी चाहिए, उससे प्रार्थना करनी चाहिए और उसके कर्मों को समझना चाहिए; ऐसा करके ही मैं कमजोर और नकारात्मक नहीं होऊँगा। मैं इन वचनों के बारे में सोचता रहा : “जो लोग मेरी कड़वाहट में हिस्सा बँटाते हैं, वे निश्चित रूप से मेरी मिठास में भी हिस्सा बँटाएँगे। यह मेरा वादा है और तुम लोगों को मेरा आशीष है।” “निश्चित रूप से,” “वादा,” और “आशीष” जैसे शब्द बोलने वाले के अधिकार और सामर्थ्य को प्रकट करते हैं। वह हमसे अपेक्षाएँ करता है, पर साथ ही हमसे वादे भी करता है; यही नहीं, उसके पास इन वादों को पूरा करने की सामर्थ्य भी है। इन वचनों ने मेरे दिल को झकझोर दिया, मैंने सोचा कि इन वचनों का लहजा प्रभु यीशु के लहजे के इतना समान कैसे हो सकता है। जैसे कि जब प्रभु ने कहा : “मार्ग और सत्य और जीवन मैं ही हूँ; बिना मेरे द्वारा कोई पिता के पास नहीं पहुँच सकता” (यूहन्ना 14:6); और “पुनरुत्थान और जीवन मैं ही हूँ; जो कोई मुझ पर विश्वास करता है वह यदि मर भी जाए तौभी जीएगा” (यूहन्ना 11:25); “मैं तुम से सच कहता हूँ कि जब तक तुम न फिरो और बालकों के समान न बनो, तुम स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने नहीं पाओगे” (मत्ती 18:3)। इन सभी वचनों में हमारे लिए परमेश्वर की अपेक्षाएँ और वादे निहित हैं और उनमें परमेश्वर की पहचान और रुतबा दिखता है। उन्हें सुनकर हम परमेश्वर के वचनों के अधिकार और सामर्थ्य को महसूस कर पाते हैं। जब हमने देखा कि इस फिल्म के वचन बिल्कुल ऐसे ही हैं, मेरी पत्नी और मुझे, दोनों को लगा कि ये परमेश्वर से आए हैं और मानो वे परमेश्वर की वाणी हों। उस समय मैं उत्साहित था, मगर उलझन में भी था : ये वचन बाइबल से तो नहीं आए, तो वे आखिर आए कहाँ से? हम फिल्म देखते रहे। फिल्म में, काम करते समय झिमिंग ने मुख्य किरदार से कहा कि प्रभु यीशु लौट आया है और वह अंत के दिनों में न्याय करने और मनुष्यों को स्वच्छ करने का कार्य करने के लिए गुप्त रूप से देह बनकर आया है। तब मेरी पत्नी और मैं थोड़ी उलझन में पड़ गए, क्योंकि हमने हमेशा से यह माना था कि प्रभु यीशु एक दिन बादलों पर लौटकर आएगा। मगर फिर फिल्म में, झिमिंग ने कहा, “हम केवल प्रभु के बादल पर उतरने की भविष्यवाणियों के आधार पर ही उसकी वापसी का इंतजार कर रहे हैं, पर हमने प्रभु की वापसी के बारे में अन्य भविष्यवाणियों को नजरंदाज कर दिया है। यह बहुत बड़ी गलती है! बाइबल के कई हिस्सों में प्रभु की वापसी की कुछ भविष्यवाणियाँ हैं। उदाहरण के लिए, प्रभु की भविष्यवाणियाँ : ‘देख, मैं चोर के समान आता हूँ’ (प्रकाशितवाक्य 16:15)। ‘आधी रात को धूम मची : “देखो, दूल्हा आ रहा है! उससे भेंट करने के लिये चलो”’ (मत्ती 25:6)। फिर प्रकाशितवाक्य 3:20 भी है, ‘देख, मैं द्वार पर खड़ा हुआ खटखटाता हूँ; यदि कोई मेरा शब्द सुनकर द्वार खोलेगा, तो मैं उसके पास भीतर आकर उसके साथ भोजन करूँगा और वह मेरे साथ।’ और लूका 17:24-25, ‘क्योंकि जैसे बिजली आकाश के एक छोर से कौंध कर आकाश के दूसरे छोर तक चमकती है, वैसे ही मनुष्य का पुत्र भी अपने दिन में प्रगट होगा। परन्तु पहले अवश्य है कि वह बहुत दुःख उठाए, और इस युग के लोग उसे तुच्छ ठहराएँ।’ ये भविष्यवाणियाँ एक चोर के रूप में प्रभु की वापसी का और मनुष्य के पुत्र के आने का उल्लेख करती हैं; उनमें लिखा है कि वह दरवाजे पर दस्तक देते हुए लोगों से बात करता है, वगैरह। इससे पता चलता है कि जब प्रभु की वापसी की बात आती है, तो सबके सामने बादल पर उतरने के अलावा, वह गुप्त रूप से भी आएगा। अगर हम यह मानें कि प्रभु केवल बादल पर ही वापस आएगा, तो उसके गुप्त रूप से आने की भविष्यवाणियाँ पूरी नहीं हो सकेंगी। बाइबल में अंत के दिनों में प्रभु की वापसी की अनेक भविष्यवाणियाँ हैं। अगर हम दूसरी भविष्यवाणियों को एक तरफ कर दें और प्रभु की वापसी के तरीके को बाइबल के एक या दो भागों के आधार पर एक सफेद बादल पर आने तक ही सीमित कर दें, तो हम उसकी वापसी का स्वागत करने का मौका गँवा सकते हैं और वह हमें त्याग सकता है।” यह सुनकर मेरी पत्नी और मैंने तुरंत अपनी-अपनी बाइबल उठाई और इन पदों का एक-एक शब्द पढ़ने लगे। ऐसा करते हुए, मैंने सोचा, “ये पद वाकई गुप्त रूप से प्रभु की वापसी की बात करते हैं, तो शायद प्रभु का बादलों पर आना उसके वापस आने का एकमात्र तरीका नहीं है। इसने सचमुच मेरी आँखें खोल दीं।”
मेरी पत्नी और मैं फिल्म देखते रहे। झिमिंग ने अपनी संगति जारी रखी, उसने कहा, “बाइबल में भविष्यवाणी की गई है कि ‘मैं चोर के समान आता हूँ’ (प्रकाशितवाक्य 16:15), और ‘आधी रात को धूम मची : “देखो, दूल्हा आ रहा है! उससे भेंट करने के लिये चलो”’ (मत्ती 25:6)। ‘परन्तु पहले अवश्य है कि वह बहुत दुःख उठाए, और इस युग के लोग उसे तुच्छ ठहराएँ’ (लूका 17:25)। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के प्रकटन और काम ने इन भविष्यवाणियों को पूरा किया है। बाहर से, वह एक सामान्य व्यक्ति जैसा दिखता है। वह सामान्य मानवता में से बोलता है। कौन कल्पना कर सकता है कि वही प्रभु का प्रकटन है? इससे यह भविष्यवाणी पूरी तरह पूरी होती है कि ‘मैं चोर के समान आता हूँ।’ जो लोग सुसमाचार का प्रचार करते हैं वे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों की गवाही देते हैं, वे सभी परमेश्वर के प्रकटन की खोज में हैं और वे धैर्यपूर्वक उसके वचनों पर संगति करते हैं। यही प्रभु का दरवाजे पर दस्तक देना है! सर्वशक्तिमान परमेश्वर के प्रकटन और कार्य की शुरुआत से ही, सीसीपी ने लगातार बर्बरता से उसका पीछा किया और उसे सताया है, उसे धार्मिक संसार का अँधाधुंध प्रतिरोध, निंदा, और अस्वीकृति झेलनी पड़ी है। कई बुरी आत्माओं और राक्षसों ने इंटरनेट पर खुलेआम सर्वशक्तिमान परमेश्वर पर हमला किया, उसकी निंदा की और उसका तिरस्कार किया है। यह प्रभु द्वारा की गई इस भविष्यवाणी को पूरी तरह से साकार करता है : ‘परन्तु पहले अवश्य है कि वह बहुत दुःख उठाए, और इस युग के लोग उसे तुच्छ ठहराएँ।’ अगर प्रभु सबके सामने पूरी भव्यता के साथ बादल पर उतरता, जैसी कि लोगों ने कल्पना की थी, तो फिर मोठ घास, भेड़ें, बुरे सेवक और मसीह-विरोधी निश्चित रूप से सर्वशक्तिमान परमेश्वर को स्वीकारने के लिए आराधना में जमीन पर लोट जाते। तब उनका खुलासा कैसे होता? सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने आकर उन सभी सत्यों को व्यक्त किया है जो मानवजाति को शुद्ध करते और बचाते हैं, वह अंत के दिनों में न्याय का कार्य कर रहा है। उसकी भेड़ें उसकी वाणी सुनती हैं, और हर संप्रदाय की बुद्धिमान कुंवारियाँ सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा व्यक्त वचनों को सुनती हैं और जानती हैं कि ये सत्य हैं और ये परमेश्वर की वाणी हैं; और वे सभी सर्वशक्तिमान परमेश्वर की ओर मुड़ गई हैं। यही स्वर्गारोहण है। इन लोगों को परमेश्वर के सिंहासन के सामने स्वर्गारोहित किया गया है और उन्होंने मसीह के आसन के सामने न्याय और ताड़ना को स्वीकारा है। वे सबसे पहले शुद्ध किए जाएँगे, परमेश्वर द्वारा विजेता बनाए जाएँगे और वे पहले फल होंगे। यह प्रकाशितवाक्य 14:4-5 की इस भविष्यवाणी को पूरा करता है, ‘ये वे हैं जो स्त्रियों के साथ अशुद्ध नहीं हुए, पर कुँवारे हैं; ये वे ही हैं कि जहाँ कहीं मेम्ना जाता है, वे उसके पीछे हो लेते हैं; ये तो परमेश्वर के निमित्त पहले फल होने के लिये मनुष्यों में से मोल लिए गए हैं। उनके मुँह से कभी झूठ न निकला था, वे निर्दोष हैं।’ गुप्त रूप से उतरने के बाद जब परमेश्वर विजेताओं का यह समूह तैयार कर लेगा, तब उसका महान कार्य पूरा हो जाएगा। उसके बाद, वह सभी देशों और लोगों के सामने सार्वजनिक रूप से बादल पर उतरेगा और प्रकट होगा। यह प्रकाशितवाक्य 1:7 की इस भविष्यवाणी को पूरा करेगा, ‘देखो, वह बादलों के साथ आनेवाला है, और हर एक आँख उसे देखेगी, वरन् जिन्होंने उसे बेधा था वे भी उसे देखेंगे, और पृथ्वी के सारे कुल उसके कारण छाती पीटेंगे।’ परमेश्वर के सार्वजनिक रूप से बादल पर उतरने का दृश्य ऐसा होगा और हर कोई उसे देख सकेगा। जिन्होंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर का प्रतिरोध और उसकी निंदा की थी, वे भी उसे बादल पर उतरते देख सकेंगे, यही कारण है कि ‘पृथ्वी के सारे कुल उसके कारण छाती पीटेंगे।’ परमेश्वर चरणों में और एक योजना के अनुसार कार्य करता है; प्रभु की वापसी की भविष्यवाणियाँ अब काफी हद तक पूरी हो गई हैं, तो अब केवल आपदाओं के बाद परमेश्वर का खुले तौर पर बादलों पर आने की भविष्यवाणी का पूरा होना बाकी है।” यह देखकर कि झिमिंग की संगति तर्कपूर्ण और तथ्यों पर आधारित है, मेरा दिल जानता था कि प्रभु वाकई लौट आया है, वह देह बनकर गुप्त रूप से मनुष्यों के बीच आया है। मेरी पत्नी और मुझे एहसास हुआ कि हम कितने नासमझ थे जो इस विचार से चिपके थे कि प्रभु बादलों पर उतरेगा, मगर इसी के साथ, हमें प्रभु के गुप्त रूप से आने की खुशखबरी सुनकर बहुत खुशी हुई। मैंने सोचा, “इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि ये वचन इतने अधिकार और सामर्थ्य से भरे मालूम पड़ते हैं और परमेश्वर की वाणी जैसे लगते हैं। दरअसल ये वाकई स्वयं परमेश्वर द्वारा बोले गए वचन हैं!” इसी उत्साह के साथ, हमने फिल्म देखना जारी रखा। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है : “बहुत से लोगों को शायद इसकी परवाह न हो कि मैं क्या कहता हूँ, किंतु मैं ऐसे हर तथाकथित संत को, जो यीशु का अनुसरण करते हैं, बताना चाहता हूँ कि जब तुम लोग यीशु को एक श्वेत बादल पर स्वर्ग से उतरते अपनी आँखों से देखोगे, तो यह धार्मिकता के सूर्य का सार्वजनिक प्रकटन होगा। शायद वह तुम्हारे लिए एक बड़ी उत्तेजना का समय होगा, मगर तुम्हें पता होना चाहिए कि जिस समय तुम यीशु को स्वर्ग से उतरते देखोगे, यही वह समय भी होगा जब तुम दंडित किए जाने के लिए नीचे नरक में जाओगे। वह परमेश्वर की प्रबंधन योजना की समाप्ति का समय होगा, और वह समय होगा, जब परमेश्वर सज्जन को पुरस्कार और कुकर्मी को दंड देगा। क्योंकि परमेश्वर का न्याय मनुष्य के चिह्न देखने से पहले ही समाप्त हो चुका होगा, जब सिर्फ़ सत्य की अभिव्यक्ति होगी। वे जो सत्य को स्वीकार करते हैं और संकेतों की खोज नहीं करते और इस प्रकार शुद्ध कर दिए गए हैं, वे परमेश्वर के सिंहासन के सामने लौट चुके होंगे और सृष्टिकर्ता के आलिंगन में प्रवेश कर चुके होंगे। सिर्फ़ वे जो इस विश्वास में बने रहते हैं कि ‘ऐसा यीशु जो श्वेत बादल पर सवारी नहीं करता, एक झूठा मसीह है’ अनंत दंड के अधीन कर दिए जाएँगे, क्योंकि वे सिर्फ़ उस यीशु में विश्वास करते हैं जो संकेत प्रदर्शित करता है, पर उस यीशु को स्वीकार नहीं करते, जो कड़े न्याय की घोषणा करता है और जीवन और सच्चा मार्ग जारी करता है। इसलिए केवल यही हो सकता है कि जब यीशु खुलेआम श्वेत बादल पर वापस लौटे, तो वह उनके साथ निपटे। वे बहुत हठधर्मी, अपने आप में बहुत आश्वस्त, बहुत अभिमानी हैं। ऐसे अधम लोग यीशु द्वारा कैसे पुरस्कृत किए जा सकते हैं? यीशु की वापसी उन लोगों के लिए एक महान उद्धार है, जो सत्य को स्वीकार करने में सक्षम हैं, पर उनके लिए जो सत्य को स्वीकार करने में असमर्थ हैं, यह दंडाज्ञा का संकेत है। तुम लोगों को अपना स्वयं का रास्ता चुनना चाहिए, और पवित्र आत्मा के खिलाफ निंदा नहीं करनी चाहिए और सत्य को अस्वीकार नहीं करना चाहिए। तुम लोगों को अज्ञानी और अभिमानी व्यक्ति नहीं बनना चाहिए, बल्कि ऐसा बनना चाहिए जो पवित्र आत्मा के मार्गदर्शन के प्रति समर्पण करता हो और सत्य के लिए लालायित होकर इसकी खोज करता हो; सिर्फ इसी तरीके से तुम लोग लाभान्वित होगे” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जब तक तुम यीशु के आध्यात्मिक शरीर को देखोगे, परमेश्वर स्वर्ग और पृथ्वी को फिर से बना चुका होगा)। इन वचनों को सुनकर, मैंने सोचा कि क्या “तथाकथित संत” शब्द उन लोगों के लिए है जो परमेश्वर के गुप्त रूप से आने पर उसके कार्य को स्वीकार नहीं करते हैं, और जो बस प्रभु यीशु के बादल पर उतरने का इंतजार करते हैं। इतने सालों से, लगभग पूरा धार्मिक संसार प्रभु के बादलों पर उतरने का इंतजार करता रहा है। मगर ये वचन साफ तौर पर बताते हैं कि अगर हम आँखें मूंदकर प्रभु यीशु के बादलों पर उतरने के विचार से चिपके रहे और इस तथ्य को स्वीकार न करें कि परमेश्वर पहले ही मनुष्य के बीच गुप्त रूप से आ चुका है, तो आखिर में परमेश्वर हमें दंड देगा, क्योंकि तब तक अंत के दिनों में परमेश्वर के न्याय, शुद्धिकरण और पूरी तरह से मनुष्य को बचाने का कार्य पूरा हो चुका होगा। इन वचनों का लहजा सख्त है, उनमें परमेश्वर का अपमान न किए जा सकने लायक स्वभाव निहित है, वे अधिकार और सामर्थ्य से भरे हैं, और वे हममें भय और खौफ पैदा करते हैं। साथ ही, ये वचन हमारे लिए एक ताकीद और उपदेश, दोनों की तरह काम करते हैं, इस उम्मीद में कि शायद हम सत्य खोजने और उसे स्वीकारने वाले लोग बन जाएँ, और आँखें मूंदकर परमेश्वर के कार्य को सीमित न करें या इस तथ्य को न ठुकराएँ कि प्रभु लौट आया है। मेरी पत्नी और मैं इस फिल्म में डूब चुके थे और हमने इसे कई बार फिर से देखा। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों ने वाकई हमें अंदर तक झकझोर दिया। हम कई दिनों तक उत्साह में रहे।
एक दिन, काम पर जाते समय मैंने अपनी पत्नी को फोन लगाया, और हम इसके बारे में जितना ज्यादा बात करते गए, उतना ही महसूस हुआ कि ये जरूर परमेश्वर के वचन ही होंगे। उत्साह में उसने मुझसे कहा, “हमें बस यह किताब कहीं से हासिल करनी होगी!” हम यह जानने को बहुत उत्सुक थे कि हमें आगे क्या करना चाहिए और प्रभु का स्वागत कैसे करना चाहिए, तो उस दिन जब मैं काम से घर वापस आया, हमने इंटरनेट पर “सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया” के बारे में खोजा और हमें उनकी वेबसाइट मिली। वहाँ हमें “वचन देह में प्रकट होता है” नाम की किताब दिखी। सबसे पहले, हमने “प्रस्तावना” में पढ़ा कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है : “‘परमेश्वर में विश्वास’ का अर्थ यह मानना है कि परमेश्वर है; यह परमेश्वर में विश्वास की सरलतम अवधारणा है। इससे भी बढ़कर, यह मानना कि परमेश्वर है, परमेश्वर में सचमुच विश्वास करने जैसा नहीं है; बल्कि यह मजबूत धार्मिक संकेतार्थों के साथ एक प्रकार का सरल विश्वास है। परमेश्वर में सच्चे विश्वास का अर्थ यह है : इस विश्वास के आधार पर कि सभी वस्तुओं पर परमेश्वर की संप्रभुता है, व्यक्ति परमेश्वर के वचनों और कार्यों का अनुभव करता है, अपने भ्रष्ट स्वभाव को शुद्ध करता है, परमेश्वर के इरादे संतुष्ट करता है और परमेश्वर को जान पाता है। केवल इस प्रकार की यात्रा को ही ‘परमेश्वर में विश्वास’ कहा जा सकता है। फिर भी लोग परमेश्वर में विश्वास को अक्सर बहुत सरल और हल्के रूप में लेते हैं। परमेश्वर में इस तरह विश्वास करने वाले लोग, परमेश्वर में विश्वास करने का अर्थ गँवा चुके हैं और भले ही वे बिलकुल अंत तक विश्वास करते रहें, वे कभी परमेश्वर का अनुमोदन प्राप्त नहीं करेंगे, क्योंकि वे गलत मार्ग पर चलते हैं” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य)। मैं सोचता रहा कि ये वचन कितने महान हैं, और मैं जानता था कि ये वाकई सत्य हैं। इन वचनों ने परमेश्वर में आस्था के बारे में मेरी सभी पुरानी धारणाएँ बदल दीं। पहले, मैं बस यह जानता था कि हमें बहुत ज्यादा बाइबल पढ़नी है, प्रार्थना करनी है और बहुत से धर्मोपदेश सुनने हैं, और हम सिर्फ आशीष और अनुग्रह पाने के लिए परमेश्वर में विश्वास रखते हैं। मुझे अंदाजा नहीं था कि परमेश्वर में सच्ची आस्था का मतलब परमेश्वर के वचनों का अनुभव करना और इस विश्वास की नींव पर काम करना है कि परमेश्वर सभी चीजों पर संप्रभुता रखता है। इन वचनों ने परमेश्वर में आस्था के सच्चे अर्थ को इतनी गहराई से और सूक्ष्मता से समझाया, और आगे बढ़ने का एक स्पष्ट रास्ता दिखाया। मुझे और भी यकीन हो गया कि ये वचन परमेश्वर से आए हैं और यह परमेश्वर की वाणी है, क्योंकि केवल परमेश्वर ही सत्य और परमेश्वर में आस्था के सच्चे अर्थ के बारे में इतनी स्पष्टता से बोल सकता है।
हमने पढ़ना जारी रखा और देखा कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है : “परमेश्वर और मनुष्य की बराबरी पर बात नहीं की जा सकती। परमेश्वर का सार और कार्य मनुष्य के लिए सर्वाधिक अथाह और समझ से परे है। यदि परमेश्वर मनुष्य के संसार में व्यक्तिगत रूप से अपना कार्य न करे और अपने वचन न कहे, तो मनुष्य कभी भी परमेश्वर के इरादे नहीं समझ पाएगा। और इसलिए वे लोग भी, जिन्होंने अपना संपूर्ण जीवन परमेश्वर को समर्पित कर दिया है, उसका अनुमोदन प्राप्त करने में सक्षम नहीं होंगे। यदि परमेश्वर कार्य करने के लिए तैयार न हो, तो मनुष्य चाहे कितना भी अच्छा क्यों न करे, वह सब व्यर्थ हो जाएगा, क्योंकि परमेश्वर के विचार मनुष्य के विचारों से सदैव ऊँचे रहेंगे और परमेश्वर की बुद्धि मनुष्य की समझ से परे है। और इसीलिए मैं कहता हूँ कि जो लोग परमेश्वर और उसके कार्य को ‘पूरी तरह से समझने’ का दावा करते हैं, वे अनाड़ियों की जमात हैं; वे सभी अभिमानी और अज्ञानी हैं। मनुष्य को परमेश्वर के कार्य को परिभाषित नहीं करना चाहिए; और तो और, मनुष्य परमेश्वर के कार्य को परिभाषित नहीं कर सकता। ... चूँकि हम विश्वास करते हैं कि परमेश्वर है, और चूँकि हम उसे संतुष्ट करना और उसे देखना चाहते हैं, इसलिए हमें सत्य के मार्ग की खोज करनी चाहिए, और परमेश्वर के अनुकूल रहने का मार्ग तलाशना चाहिए। हमें परमेश्वर के अड़ियल विरोध में खड़े नहीं होना चाहिए। ऐसे कार्यों से क्या भला हो सकता है?” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, प्रस्तावना)। इस अंश को पढ़कर हमें एहसास हुआ कि हम सब केवल सृजित प्राणी हैं, हमेशा से महत्वहीन हैं। जबकि परमेश्वर हमेशा परमेश्वर ही रहेगा। उसके वचनों और कार्य में इतने सारे रहस्य छिपे हैं कि हम उनकी थाह नहीं ले सकते। हमें परमेश्वर के कार्य के प्रति विनम्र और जिज्ञासु रवैया अपनाना चाहिए, हम मनमाने ढंग से निष्कर्षों पर नहीं पहुँच सकते। फिर हमने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के और वचन पढ़े जिनमें कहा गया है : “हो सकता है, तुमने इस पुस्तक को अनुसंधान के प्रयोजन से खोला हो या फिर स्वीकार करने के अभिप्राय से; तुम्हारा दृष्टिकोण जो भी हो, मुझे आशा है कि तुम इसे अंत तक पढ़ोगे, और इसे आसानी से अलग उठाकर नहीं रख दोगे” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, प्रस्तावना)। इसे पढ़कर मुझे एहसास हुआ कि ये वचन कितने हृदयस्पर्शी हैं, मानो परमेश्वर सीधे तौर पर हमसे बात कर रहा हो, उसके वचनों और कार्य को खोजने में हमारी अगुआई कर रहा हो। मैंने इस किताब को पढ़ते रहने और सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया से संपर्क करने का फैसला किया।
हमने सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया की वेबसाइट पर चैट के जरिए उन्हें एक संदेश भेजा, और कलीसिया के भाई-बहनों ने फौरन हमसे संपर्क किया। उसके बाद, हम अक्सर भाई-बहनों के साथ ऑनलाइन सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन पढ़ने लगे, जहाँ हम सबने अपने-अपने अनुभव और समझ को साझा किया। जैसे-जैसे मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के और वचनों को पढ़ा, मुझे कई सत्य जानने को मिले, जैसे कि परमेश्वर अंत के दिनों में न्याय का कार्य कैसे करता है, बचाए जाने और पूर्ण उद्धार पाने में क्या अंतर है, स्वर्गारोहित होने का क्या अर्थ है, किस तरह का व्यक्ति स्वर्ग के राज्य में प्रवेश कर सकता है और देहधारण का रहस्य क्या है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर का वचन कहता है : “जब यीशु मनुष्य के संसार में आया, तो उसने अनुग्रह के युग में प्रवेश कराया और व्यवस्था का युग समाप्त किया। अंत के दिनों के दौरान, परमेश्वर एक बार फिर देहधारी बन गया, और इस देहधारण के साथ उसने अनुग्रह का युग समाप्त किया और राज्य के युग में प्रवेश कराया। उन सबको, जो परमेश्वर के दूसरे देहधारण को स्वीकार करने में सक्षम हैं, राज्य के युग में ले जाया जाएगा, और इससे भी बढ़कर वे व्यक्तिगत रूप से परमेश्वर का मार्गदर्शन स्वीकार करने में सक्षम होंगे। यद्यपि यीशु मनुष्यों के बीच आया और अधिकतर कार्य किया, फिर भी उसने केवल समस्त मानवजाति के छुटकारे का कार्य ही पूरा किया और मनुष्य की पाप-बलि के रूप में सेवा की; उसने मनुष्य को उसके समस्त भ्रष्ट स्वभाव से छुटकारा नहीं दिलाया। मनुष्य को शैतान के प्रभाव से पूरी तरह से बचाने के लिए यीशु को न केवल पाप-बलि बनने और मनुष्य के पाप वहन करने की आवश्यकता थी, बल्कि मनुष्य को उसके शैतान द्वारा भ्रष्ट किए गए स्वभाव से मुक्त करने के लिए परमेश्वर को और भी बड़ा कार्य करने की आवश्यकता थी। और इसलिए, मनुष्य को उसके पापों के लिए क्षमा कर दिए जाने के बाद, परमेश्वर मनुष्य को नए युग में ले जाने के लिए देह में वापस आ गया, और उसने ताड़ना एवं न्याय का कार्य आरंभ कर दिया। यह कार्य मनुष्य को एक उच्चतर क्षेत्र में ले गया है। वे सब, जो परमेश्वर के प्रभुत्व के अधीन समर्पण करेंगे, उच्चतर सत्य का आनंद लेंगे और अधिक बड़े आशीष प्राप्त करेंगे। वे वास्तव में ज्योति में निवास करेंगे और सत्य, मार्ग और जीवन प्राप्त करेंगे” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, प्रस्तावना)। “यहोवा के कार्य से लेकर यीशु के कार्य तक, और यीशु के कार्य से लेकर इस वर्तमान चरण तक, ये तीन चरण परमेश्वर के प्रबंधन के पूर्ण विस्तार को एक सतत सूत्र में पिरोते हैं, और वे सब एक ही पवित्रात्मा का कार्य हैं। दुनिया के सृजन से परमेश्वर हमेशा मानवजाति का प्रबंधन करता आ रहा है। वही आरंभ और अंत है, वही प्रथम और अंतिम है, और वही एक है जो युग का आरंभ करता है और वही एक है जो युग का अंत करता है। विभिन्न युगों और विभिन्न स्थानों में कार्य के तीन चरण अचूक रूप में एक ही पवित्रात्मा का कार्य हैं। इन तीन चरणों को पृथक करने वाले सभी लोग परमेश्वर के विरोध में खड़े हैं” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के कार्य का दर्शन (3))। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को पढ़कर मैंने समझा कि प्रभु यीशु ने केवल मानवजाति को छुटकारा दिलाने का कार्य किया है, अंत के दिनों में मनुष्य का न्याय करने, उसे स्वच्छ करने और पूरी तरह से बचाने का कार्य नहीं किया। भले ही प्रभु में हमारी आस्था का यह मतलब है कि हमारे पाप माफ हो गए हैं, पर हमारी पापी प्रकृति दूर नहीं हुई है, इसलिए हम अभी भी पाप करते हैं और इन बेड़ियों से मुक्त होने में असमर्थ हैं। प्रभु यीशु के छुटकारे के कार्य की नींव पर सर्वशक्तिमान परमेश्वर सत्य व्यक्त करता है और अंत के दिनों में हमेशा के लिए मनुष्य को स्वच्छ करने और बचाने के लिए न्याय का कार्य करता है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर और प्रभु यीशु एक ही परमेश्वर है, जो अलग-अलग युगों में अलग-अलग नाम धरता है। अंत के दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के न्याय के कार्य का अनुभव करके ही हमारे भ्रष्ट स्वभाव स्वच्छ हो सकते हैं और हम परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करने लायक बन सकते हैं। यह जानकारी हमारे लिए सचमुच बहुत अहम है! सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों ने हमारे लिए परमेश्वर के कार्य से संबंधित इन रहस्यों का खुलासा किया, जिसने हमें अंदर तक झकझोर दिया। वाकई, ये परमेश्वर के वचन और उसकी वाणी हैं! क्योंकि सिर्फ परमेश्वर ही अपने कार्य के रहस्यों का खुलासा कर सकता है, सिर्फ परमेश्वर ही पुराने युग को खत्म करके एक नया युग आरंभ कर सकता है। यह किसी व्यक्ति के बस की बात नहीं है।
हमने यह भी देखा कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने अभ्यास से संबंधित बहुत-से सत्य व्यक्त किए हैं, जैसे कि आस्था के सिद्धांत, एक ईमानदार व्यक्ति बनने के सिद्धांत, परमेश्वर के प्रति समर्पण के सिद्धांत और वास्तव में परमेश्वर से प्रेम करने के सिद्धांत। ये सचमुच परिपूर्ण करने वाले हैं और प्रभु यीशु के वचनों को पूरी तरह से साकार करते हैं : “मुझे तुम से और भी बहुत सी बातें कहनी हैं, परन्तु अभी तुम उन्हें सह नहीं सकते। परन्तु जब वह अर्थात् सत्य का आत्मा आएगा, तो तुम्हें सब सत्य का मार्ग बताएगा, क्योंकि वह अपनी ओर से न कहेगा परन्तु जो कुछ सुनेगा वही कहेगा, और आनेवाली बातें तुम्हें बताएगा” (यूहन्ना 16:12-13)। हमें पूरा यकीन हो गया कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही वास्तव में लौटकर आया प्रभु यीशु है, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन परमेश्वर की अभिव्यक्तियाँ हैं, और यही वह सूचीपत्र जिसकी भविष्यवाणी प्रकाशितवाक्य में की गई है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को पढ़कर, हमने ऐसे कई सत्यों को समझा जिन्हें हम पहले कभी नहीं समझ पाए थे; सर्वशक्तिमान परमेश्वर से प्रार्थना करके और उसके वचनों को पढ़कर, हमारे दैनिक जीवन की सभी समस्याएँ हल हो गईं। हम सचमुच परमेश्वर के आमने-सामने होकर जीवन जीने लगे, हम कितने धन्य हैं! मैंने सीखा कि जब प्रभु का स्वागत करने की बात आए तो परमेश्वर की वाणी सुनना वाकई महत्वपूर्ण है!