89. मैंने अपने कर्तव्य में हमेशा सबसे अलग दिखने की कोशिश क्यों की
जून 2021 के अंत में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ईसाइयों की अँधाधुँध धरपकड़ कर रही थी, इसलिए मेरे मेजबान घर की भी निगरानी हो रही थी। मैं वहाँ से तुरंत निकल गई, लेकिन इस बात की काफी संभावना थी कि पुलिस मुझ पर भी नजर रख रही है, इसलिए मुझे घर पर ही छिपकर कार्य करना पड़ा। उस समय मेरे पास कुछ समूहों के कार्य की जिम्मेदारी थी। मेरे कार्य का बोझ बढ़ रहा था और कुछ काम केवल पत्र लिखकर नहीं किए जा सकते थे और यह आमने-सामने की बातचीत जितना प्रभावी नहीं था। इसलिए कार्य की जरूरतों के अनुसार, अगुआ ने बहन वांग झेन को मेरी साथी के रूप में नियुक्त किया।
वांग झेन शुरुआत में भाई-बहनों को बहुत अच्छी तरह से नहीं जानती थी, इसलिए हर सभा से पहले मैं उन मुद्दों पर उसके साथ चर्चा कर लेती थी जिन पर ध्यान देने की आवश्यकता थी ताकि वह भाई-बहनों के साथ अधिक प्रभावी ढंग से संगति कर सके। उस समय मुझे पता चला कि बहन ली फैन अपने कर्तव्य में हमेशा लापरवाह रहती है। संगति के कई सत्रों के बाद भी वह नहीं बदली और इस कारण कार्य पहले ही रुक गया था। सिद्धांतों के आधार पर उसे तुरंत बर्खास्त करना जरूरी था। इसीलिए मैंने ली फैन की स्थिति और लोगों को बर्खास्त करने के सिद्धांतों को समझाने वाला एक दस्तावेज तैयार किया ताकि वांग झेन उसे देख सके और मैंने उसे इस बारे में अपनी यह राय भी बताई कि ली फैन को बर्खास्त करना क्यों जरूरी है ताकि वह ली फैन के साथ पूरी गहराई से संगति कर सके और ली फैन को आत्मचिंतन करने और खुद के बारे में सीखने में लाभ मिल सके। वांग झेन ने अगले ही दिन उसे बर्खास्त कर दिया। बाद में उस दिन घर लौटकर वांग झेन ने मुझे बताया कि सब कुछ कैसा रहा, लेकिन उसने इस पूरी प्रक्रिया के दौरान भाई-बहनों के बीच एक बार भी मेरा उल्लेख नहीं किया या यह नहीं कहा कि समझ-बूझ हासिल करने या समस्या को संभालने में मैंने उसकी मदद की थी। मैं थोड़ी-सी निराश थी। मुझे लगा कि परदे के पीछे रहकर मैं जो काम कर रही हूँ, उसके बारे में और कोई नहीं जान पाया। मैंने सोचा कि क्या लोगों को यह नहीं लगेगा कि वांग झेन ने कर्तव्य संभालते ही ली फैन की समस्याएँ समझ ली थीं, कि उसके पास सत्य की समझ मुझसे अधिक है और मुझसे अधिक विवेकशीलता है। मुझे यह सोचकर तकलीफ-सी हो रही थी कि मैंने कितना कुछ किया था जिसके बारे में कोई नहीं जानता और जिसके कारण वांग झेन की छवि निखर गई थी।
कुछ दिन बाद वांग झेन के साथ कार्य चर्चा के दौरान यह बात सामने आई कि एक समूह की स्थिति बदतर होती जा रही है। मुझे इस समस्या की जड़ नहीं मिल रही थी, तब वांग झेन ने मुझसे कहा कि समूह की अगुआ में कोई समस्या हो सकती है। यह बात ध्यान में रखते हुए और उस समूह की अगुआ के नियमित व्यवहार के बारे में सोचते हुए मैंने देखा कि वह केवल अपने रुतबे की रक्षा करती थी और केवल वही कार्य करती थी जिससे उसका सम्मान बढ़ता हो, लेकिन वह कभी भी असली कार्य नहीं करती थी, और यही चीज वास्तव में कार्य को बाधित कर रही थी। सिद्धांतों के आधार पर उसे बर्खास्त करना जरूरी था। मुझे पता था कि मैं इस समस्या को व्यक्तिगत रूप से हल नहीं कर सकती हूँ और मुझे अपनी सोच वांग झेन के साथ साझा करनी चाहिए ताकि वह दूसरों के साथ बेहतर ढंग से संगति कर सके, विवेकशीलता हासिल करने में उनकी मदद कर सके और इस अगुआ को तुरंत बर्खास्त कर सके। लेकिन फिर जब मैंने ली फैन की बर्खास्तगी के बारे में सोचा, कि कैसे मैंने सिद्धांतों की खोज की थी और एक दस्तावेज तैयार किया था, और कैसे वांग झेन के साथ इतनी सारी संगति की थी लेकिन किसी को पता तक नहीं चला, तो मुझे लगा कि अगर इस बार मैंने अपनी सारी बातें उसके साथ साझा कर लीं और उसने उस समूह की अगुआ को बर्खास्त कर दिया, तो बाकी लोग निश्चित रूप से सारा श्रेय उसी को देंगे। वे सोचेंगे कि उसे कार्य करते हुए अभी थोड़ा समय ही हुआ है और उसने ऐसे दो ऐसे अनुपयुक्त लोगों का भेद पहचान लिया जिन्हें मैंने जिम्मेदारी के इस पद पर इतने लंबे समय तक रहने के बावजूद बर्खास्त नहीं किया था। लोगों को लगेगा कि उसमें मुझसे बेहतर विवेकशीलता और सत्य की समझ है। मैं अपने कुछ विचार अपने तक सीमित रखना चाहती थी ताकि वांग झेन की संगति स्पष्ट न हो और बाकी लोग उसकी प्रशंसा न करें। लेकिन इस विचार के कारण मुझे आत्मग्लानि-सी हो रही थी। अगर उसकी संगति स्पष्ट न रही और समूह की अगुआ को अपनी ही समस्या समझ में न आई और अगर वह गलत समझकर नकारात्मक पड़ गई तो न केवल इसका असर उसके आत्मचिंतन पर पड़ेगा, बल्कि इससे बाद में उसके कर्तव्य पर भी असर पड़ेगा। यही नहीं, इस तरह से खेल खेलना और अपने कुछ विचार अपने तक सीमित रखना निश्चित रूप से परमेश्वर को खिन्न करेगा। इस विचार के साथ ही मैंने इस समूह की अगुआ से जुड़ी सभी स्थितियों को वांग झेन के साथ साझा कर दिया, लेकिन जैसे ही वांग झेन इस मामले को हल करने निकली, मुझे कड़वाहट महसूस होने लगी। मैं खुद जाकर इस कार्य को क्यों नहीं संभाल सकती हूँ? सबको दिखेगा कि वांग झेन लोगों को बर्खास्त कर रही है और उनका भेद पहचान रही है, लेकिन इस सबके पीछे मेरी कोशिशें किसे दिखेंगी? यह सोचकर मुझे खास खुशी नहीं हुई कि मैं जो कुछ भी कर रही हूँ, उस सबसे कैसे दूसरों के बीच सिर्फ वांग झेन की छवि निखर रही है और उसका रुतबा बढ़ रहा है। मुझे तो परमेश्वर से भी यह शिकायत हो गई कि उसने मुझे इतनी बुरी स्थिति में डाल दिया है। वह अचानक मुझे निगरानी के दायरे में क्यों रखने दे रहा था? फिर, कुछ भाई-बहनों ने एक के बाद एक अपने कार्य से जुड़ी समस्याओं के बारे में हमें लिखा, और कुछ ने खास तौर पर अनुरोध किया कि इन्हें वांग झेन से हल कराया जाए। यह देखकर मैं और भी ज्यादा अप्रसन्न हो गई। मुझे ऐसा लगा कि सबके मन में सिर्फ वांग झेन के लिए सम्मान है, लेकिन मेरे परदे के पीछे का कार्य कोई नहीं देख रहा है। अगर यही चलता रहा तो क्या हर कोई यह नहीं कहेगा कि मैं बस बेकार की चीज हूँ? भले ही वांग झेन बाहर दौड़ भाग कर रही थी, लेकिन मेरे लिए घर पर रहना भी आसान नहीं था। मेरी सारी कठिन मेहनत कोई नहीं देख पा रहा था। मुझे यह अच्छा नहीं लग रहा था, इसलिए मैंने इस स्थिति को बदलने का कोई तरीका सोचने की कोशिश की। भले ही मैं बाहर जाकर भाई-बहनों से व्यक्तिगत रूप से नहीं मिल सकती थी, लेकिन कामों की व्यवस्था करने के लिए पत्र तो लिख ही सकती थी जिससे यह साबित हो कि मैं बहुत सारा कार्य कर रही हूँ और सबसे प्रमुख भूमिका निभा रही हूँ। तभी हमें कुछ समूहों से पत्र मिले कि कुछ मामलों को दुरुस्त करने की आवश्यकता है। मैंने इन्हें दुरुस्त करने के संबंध में विस्तृत जानकारी देकर जवाब लिखा और यह भी स्पष्ट रूप से बता दिया कि वांग झेन कब उनसे मिलने जाएगी ताकि हर कोई जान ले कि यह सब व्यवस्था मैं ही कर रही हूँ, कि पर्दे के पीछे सारे फैसले मैं ही ले रही हूँ।
एक दिन मैंने एक बहन को पत्र लिखकर पूछा कि उसकी स्थिति कैसी है। पत्र लिखने के बाद मुझे ख्याल आया कि क्या वह जान भी पाएगी कि पत्र मैंने ही उसे लिखा है। अगर मैंने इसमें कोई संकेत नहीं छोड़ा तो शायद वह सोच ले कि उसकी चिंता वांग झेन कर रही है। यह नहीं चलेगा। मुझे यह सुनिश्चित करना था कि उस बहन को पता चल जाए कि पत्र मैंने लिखा है। लेकिन अपनी सुरक्षा की खातिर मैं पत्र पर अपने हस्ताक्षर नहीं कर सकती थी। फिर मुझे अचानक याद आया कि हाल ही में मैंने उस बहन को एक भजन सुझाया था, इसलिए मैं पूछ सकती हूँ कि क्या वह इसे सीख रही है और इस तरह शायद वह जान जाए कि पत्र मैंने लिखा है। इस विचार के साथ ही मैंने जल्दी से पत्र पूरा किया और उसे भेज दिया। उसके जवाब से मुझे पता चला कि वह बहन जान गई कि पत्र मैंने ही लिखा है और मैं फूली नहीं समाई। मुझे ऐसा लगा कि पर्दे के पीछे रहकर भी मैं अपनी अच्छी छवि बनाए रख सकती हूँ और दूसरों को यह दिखा सकती हूँ कि मेरे पास वास्तविकताएं है और मैं समस्याओं का समाधान कर सकती हूँ। तो इस तरह मैंने वास्तव में कभी नहीं समझा कि मैं सही स्थिति में नहीं हूँ। यह स्थिति तब तक बनी रही जब तक एक दिन एक बहन ने परेशान होकर बताया कि उसने कड़ी मेहनत से जो अध्ययन कागजात तैयार किए, उन्हें उसकी साथी ने भाई-बहनों को भेज दिया, इसलिए उसे लगा कि जैसे उसकी साथी ने उसके कार्य का श्रेय लूट लिया है और अपने कर्तव्य के प्रति उसका उत्साह कम हो गया है। यह सुनकर मुझे सच में काफी झटका लगा। क्या मैं भी हाल-फिलहाल ठीक ऐसी ही स्थिति में नहीं जी रही थी? मैं भी इसका समाधान करने के लिए सत्य नहीं खोज रही थी। इसलिए अपनी स्थिति का समाधान करने के लिए मैंने परमेश्वर के वचनों की तलाश की। मैंने परमेश्वर के ये वचन पढ़े : “मसीह-विरोधी कार्य करते समय हमेशा कुछ इरादे लेकर चलते हैं। उनके शब्द, क्रियाकलाप और आचरण, यहाँ तक कि बोलते समय वे जो खास शब्द चुनते हैं, वे आशय सहित होते हैं; वे भ्रष्टता के क्षण भर के प्रकाशन, छोटे आध्यात्मिक कद, बेवकूफी या अज्ञानता के कारण कार्य नहीं कर रहे हैं, और जहाँ भी जाते हैं वहाँ बकवास नहीं कर रहे हैं—यह ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। उनके तरीकों, चीजों को करने के उनके ढंग और शब्दों के उनके चयन की जाँच करने पर, मसीह-विरोधी काफी मक्कार और दुष्ट लगते हैं। अपने खुद के रुतबे की खातिर और लोगों को नियंत्रित करने का अपना लक्ष्य हासिल करने के लिए, वे दिखावा करने का, हर छोटी चीज का उपयोग करने के हर अवसर का फायदा उठाते हैं, और वे एक भी मौका नहीं चूकेंगे। मुझे बताओ, क्या ऐसे लोग मेरे सामने इन लक्षणों को प्रकट करेंगे? (हाँ।) तुम क्यों कहते हो कि वे ऐसा करेंगे? (क्योंकि उनका प्रकृति सार दिखावा करना है।) क्या दिखावा करना ही मसीह-विरोधी का अंतिम लक्ष्य है? दिखावा करने में उनका क्या लक्ष्य है? वे रुतबा जीतना चाहते हैं, और उनका मतलब यह है : ‘क्या तुम नहीं जानते कि मैं कौन हूँ? मैंने जो चीजें की हैं, उन्हें देखो, ये अच्छी चीजें मैंने ही की हैं; मैंने परमेश्वर के घर में काफी योगदान दिया है। अब जब तुम्हें पता है, तो क्या तुम्हें मुझे ज्यादा महत्वपूर्ण कार्य नहीं देना चाहिए? क्या तुम्हें मेरा बहुत सम्मान नहीं करना चाहिए? क्या तुम्हें अपने हर कार्य में मुझ पर भरोसा नहीं करना चाहिए?’ क्या यह सोच-समझकर नहीं किया जाता है? मसीह-विरोधी हर किसी को नियंत्रित करना चाहते हैं, चाहे वह कोई भी हो। नियंत्रण के लिए दूसरा शब्द क्या है? बहकाया जाना, खिलवाड़ करना—वे बस तुम पर राज करना चाहते हैं। मिसाल के तौर पर, जब भाई-बहन किसी चीज की सराहना करते हुए कहते हैं कि बहुत बढ़िया किया, तो मसीह-विरोधी फौरन कहता है कि यह उसने किया है, ताकि हर कोई उसका धन्यवाद करे। क्या कोई सही मायने में समझदार व्यक्ति इस तरह से व्यवहार करेगा? बिल्कुल नहीं। जब मसीह-विरोधी थोड़ा-सा अच्छा काम करते हैं, तो वे चाहते हैं कि हर कोई इसके बारे में जाने, उनका बहुत सम्मान करे और उनकी सराहना करे—इससे उन्हें संतुष्टि मिलती है” (वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद पाँच : वे लोगों को गुमराह करने, फुसलाने, धमकाने और नियंत्रित करने का काम करते हैं)। परमेश्वर के वचनों से मैंने जाना कि मसीह-विरोधी लगातार दिखावा करते रहते हैं। वे जो कुछ भी कहते और करते हैं, वह बस दूसरों की प्रशंसा पाने और रुतबा पाने की गुपचुप कोशिश होती है। परमेश्वर के वचनों और अपने द्वारा प्रकट किए गए स्वभाव के बारे में विचार करूँ तो क्या मैं बिल्कुल एक मसीह-विरोधी जैसी नहीं थी? जब वांग झेन ने मेरा नाम लिए बिना उन दो बहनों को बर्खास्त किया था तो मुझे लगा कि मेरे साथ अन्याय हुआ है। मुझे लगा था कि मुख्य रूप से मैंने ही उनके भेद को पहचाना था, लेकिन अंत में सारा श्रेय वांग झेन को मिल गया था। अकेले उसी को अपना चेहरा दिखाने का मौका मिला लेकिन मैं चाहे कितना ही कर लूँ, किसी को नहीं दिखने वाला है। अगर मैं चुपचाप कार्य करती रही, तो किसी को भी इसका पता भी नहीं चलेगा। यह बहुत परेशान करने वाली बात थी! मैं अपना दिखावा करने के लिए अपना दिमाग दौड़ा रही थी और हर संभव कोशिश कर रही थी ताकि भाई-बहन मेरी प्रशंसा करें और उनकी नजरों में मेरा रुतबा हो। देखने में तो ऐसा लगता था कि मैं सिर्फ कार्य की व्यवस्था करने के लिए ही पत्र लिख रही थी, लेकिन वास्तव में, मैं गुप्त रूप से सब को यह याद दिलाने की कोशिश कर रही थी कि वे मेरे अस्तित्व को न भूलें, और यह कि वांग झेन सिर्फ मेरी तरफ से कुछ कार्य कर रही थी, जबकि मुख्य रूप से जिम्मेदार मैं ही थी। एक बहन की दशा के सिलसिले में उसकी मदद करने के बहाने मैंने यह नाटक किया कि मानो मुझे उसकी परवाह है, ताकि मैं उसे अपने घिनौने मंसूबे दिखाए बिना अपने अस्तित्व की याद दिला सकूँ और उसकी प्रशंसा प्राप्त कर सकूँ। मेरा स्वभाव कितना कपटी था! अगर मैंने परमेश्वर के वचन न पढ़े होते, तो मुझे कभी पता ही नहीं चलता कि वे दो बहनें अपने कर्तव्यों के लिए उपयुक्त नहीं थीं। इसके अलावा, जब तक उन्हें बर्खास्त किया गया, तब तक कार्य में कई नुकसान हो चुके थे। यह बात विशेष रूप से उस समूह की अगुआ पर लागू होती थी। अगर वांग झेन ने इसका जिक्र नहीं किया होता, तो मैं उसका भेद कभी भी पहचान न पाती और उसे उसी की जगह पर रहने देती। मैं अपना काम अच्छी तरह से नहीं कर रही थी, और न केवल मुझमें किसी तरह की कृतज्ञता या पश्चात्ताप की भावना नहीं थी, बल्कि मैं बेशर्मी से श्रेय भी माँग रही थी और दिखावा करने और रुतबा पाने के लिए घृणित साधनों का उपयोग कर रही थी और यह कोशिश कर रही थी कि हर कोई मुझे सम्मान की नजर से देखे। मैं इतनी ज्यादा बेशर्म थी!
फिर मैंने परमेश्वर के वचनों का एक और अंश पढ़ा : “जो लोग सत्य को अभ्यास में लाने में सक्षम हैं, वे अपने कार्यों में परमेश्वर की पड़ताल को स्वीकार कर सकते हैं। परमेश्वर की पड़ताल को स्वीकार करने पर तुम्हारा हृदय निष्कपट हो जाएगा। यदि तुम हमेशा दूसरों को दिखाने के लिए ही काम करते हो, और हमेशा दूसरों की प्रशंसा और सराहना प्राप्त करना चाहता हो और परमेश्वर की पड़ताल स्वीकार नहीं करते, तब भी क्या तुम्हारे हृदय में परमेश्वर है? ऐसे लोगों में परमेश्वर का भय मानने वाला हृदय नहीं होता। हमेशा अपने लिए कार्य मत कर, हमेशा अपने हितों की मत सोच, इंसान के हितों पर ध्यान मत दे, और अपने गौरव, प्रतिष्ठा और हैसियत पर विचार मत कर। तुम्हें सबसे पहले परमेश्वर के घर के हितों पर विचार करना चाहिए और उन्हें अपनी प्राथमिकता बनाना चाहिए। तुम्हें परमेश्वर के इरादों का ध्यान रखना चाहिए और इस पर चिंतन से शुरुआत करनी चाहिए कि तुम्हारे कर्तव्य निर्वहन में अशुद्धियाँ रही हैं या नहीं, तुम वफादार रहे हो या नहीं, तुमने अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी की हैं या नहीं, और अपना सर्वस्व दिया है या नहीं, साथ ही तुम अपने कर्तव्य, और कलीसिया के कार्य के प्रति पूरे दिल से विचार करते रहे हो या नहीं। तुम्हें इन चीज़ों के बारे में अवश्य विचार करना चाहिए। अगर तुम इन पर बार-बार विचार करते हो और इन्हें समझ लेते हो, तो तुम्हारे लिए अपना कर्तव्य अच्छी तरह से निभाना आसान हो जाएगा” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, अपने भ्रष्ट स्वभाव को त्यागकर ही आजादी और मुक्ति पाई जा सकती है)। परमेश्वर के वचनों से मैंने समझा कि सत्य को अपनाने के लिए परमेश्वर की जाँच-पड़ताल को स्वीकार करना महत्वपूर्ण है और हमें इस बात की परवाह नहीं करनी चाहिए कि लोग क्या सोचते हैं, बल्कि सिर्फ परमेश्वर को संतुष्ट करने और अपना कर्तव्य ठीक से निभाने की परवाह करनी चाहिए। उसके बाद अपने पत्रों और दूसरों के साथ अपनी संगति में मैंने दूसरों की प्रशंसा पाने और उनके दिलों में अपने लिए जगह बनाने के उद्देश्य से पत्रों का उपयोग करने के बजाय सही इरादे रखने और परमेश्वर की जाँच-पड़ताल को स्वीकार करने का प्रयास किया। मैंने उन सभी पत्रों के बारे में सोचा जो पौलुस ने कलीसियाओं को लिखे थे। उसने उन पत्रों में कभी भी प्रभु यीशु की बड़ाई नहीं की या उसके लिए गवाही नहीं दी और उसने विश्वासियों से यह आग्रह नहीं किया कि वे प्रभु यीशु के वचनों का अनुसरण करें। उसने सिर्फ खुद को ऊंचा दिखाया और अपने लिए गवाही दी, और बस इस बारे में लिखा कि उसने कितना ज्यादा काम किया था और कितने कष्ट सहे थे। उसने कहा, “मैं किसी बात में बड़े से बड़े प्रेरितों से कम नहीं हूँ,” और उसने लोगों को अपने सामने और परमेश्वर के विरुद्ध मार्ग पर ला खड़ा किया। मैं भाई-बहनों को जो पत्र लिख रही थी, उनमें भी परमेश्वर की बड़ाई नहीं कर रही थी या उसकी गवाही नहीं दे रही थी, बल्कि मैं परोक्ष रूप से अपनी ही शेखी बघार रही थी। क्या मैं वास्तव में वही नहीं कर रही थी जो पौलुस ने किया था? अगर मैंने पश्चात्ताप न किया तो मुझे भी उसी की तरह हटा दिया जाएगा और दंडित किया जाएगा। यह एहसास होने पर मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, “हे परमेश्वर, मैं अपने रुतबे की बहुत ज्यादा चिंता करती हूँ। मैं नहीं चाहती कि इससे नियंत्रित होकर कुछ ऐसा करूँ जो कलीसिया के कार्य को नुकसान पहुँचाए। मुझे दूसरों से अलग दिखने का मौका मिले या न मिले, मैं बस दृढ़ होकर अपना कर्तव्य निभाना चाहती हूँ।”
अगले कुछ दिनों में मैंने सचेत होकर अपनी मानसिकता सुधारी और मैंने बार-बार खुद को याद दिलाया कि कलीसिया के हित सबसे महत्वपूर्ण हैं और मुझे अपना कर्तव्य अच्छे से निभाना चाहिए। फिर एक दिन हमें भाई चेन झीचियांग का इस्तीफा मिला जिसमें उसने लिखा था कि अपने साथियों के साथ अच्छी तरह से न निभने के कारण वह छोड़कर जाना चाहता है। हम उसकी समस्या के बारे में थोड़ा बहुत पहले से ही जानते थे। मुख्य रूप से वह बहुत अहंकारी और हठी था, लिहाजा वह दूसरों के साथ अच्छी तरह से काम नहीं करता था। वांग झेन पहले ही उसके साथ कुछ बार संगति कर चुकी थी लेकिन वह बदला नहीं। अब उसने अचानक इस्तीफा देने का फैसला कर लिया था, ऐसा लग रहा था कि इस समस्या को हल करना हमारे लिए मुश्किल होगा। जब मैंने और वांग झेन ने उसकी समस्याओं पर चर्चा की, तो मैंने अपना दृष्टिकोण साझा किया और परमेश्वर के वचनों के कुछ प्रासंगिक अंश ढूँढे़। वांग झेन को लगा कि इस तरह से संगति करना उचित रहेगा। तब मुझे यह ख्याल आया कि चाहे मेरी संगति कितनी भी उपयोगी क्यों न हो, वास्तव में वांग झेन ही जाकर उससे संगति करेगी। कौन देखेगा कि परदे के पीछे चिंता करने वाली और मूल्य चुकाने वाली तो मैं थी? इस विचार के कारण मैंने वांग झेन के साथ चर्चा बंद करनी चाही, लेकिन फिर मैंने सोचा कि परमेश्वर मेरे हर सोच-विचार की जाँच कर रहा है, तब मुझे थोड़ी परेशानी महसूस हुई। मैं हमेशा अपने नाम और रुतबे की रक्षा क्यों करना चाहती थी? मुझे परमेश्वर के वचनों का एक अंश याद आया जिसने रुतबे के पीछे भागने के दुष्परिणाम समझने में मेरी मदद की। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है : “यदि कोई कहता है कि उसे सत्य से प्रेम है और वह सत्य का अनुसरण करता है, लेकिन सार में, जो लक्ष्य वह हासिल करना चाहता है, वह है अपनी अलग पहचान बनाना, दिखावा करना, लोगों का सम्मान प्राप्त करना और अपने हित साधना, और उसके लिए अपने कर्तव्य का पालन करने का अर्थ परमेश्वर के प्रति समर्पण करना या उसे संतुष्ट करना नहीं है बल्कि शोहरत, लाभ और रुतबा प्राप्त करना है, तो फिर उसका अनुसरण अवैध है। ऐसा होने पर, जब कलीसिया के कार्य की बात आती है, तो उनके कार्य एक बाधा होते हैं या आगे बढ़ने में मददगार होते हैं? वे स्पष्ट रूप से बाधा होते हैं; वे आगे नहीं बढ़ाते। कुछ लोग कलीसिया का कार्य करने का झंडा लहराते फिरते हैं, लेकिन अपनी व्यक्तिगत शोहरत, लाभ और रुतबे के पीछे भागते हैं, अपनी दुकान चलाते हैं, अपना एक छोटा-सा समूह, अपना एक छोटा-सा साम्राज्य बना लेते हैं—क्या इस प्रकार का व्यक्ति अपना कर्तव्य कर रहा है? वे जो भी कार्य करते हैं, वह अनिवार्य रूप से कलीसिया के कार्य को अस्त-व्यस्त और खराब करता है। उनके शोहरत, लाभ और रुतबे के पीछे भागने का क्या परिणाम होता है? पहला, यह इस बात को प्रभावित करता है कि परमेश्वर के चुने हुए लोग सामान्य रूप से परमेश्वर के वचनों को कैसे खाते-पीते हैं और सत्य को कैसे समझते हैं, यह उनके जीवन-प्रवेश में बाधा डालता है, उन्हें परमेश्वर में विश्वास के सही मार्ग में प्रवेश करने से रोकता है और उन्हें गलत मार्ग पर ले जाता है—जो चुने हुए लोगों को नुकसान पहुँचाता है, और उन्हें बरबाद कर देता है। और यह अंततः कलीसिया के साथ क्या करता है? यह गड़बड़ी, खराबी और विघटन है। यह लोगों के शोहरत, लाभ और रुतबे के पीछे भागने का परिणाम है। जब वे इस तरह से अपना कर्तव्य करते हैं, तो क्या इसे मसीह-विरोधी के मार्ग पर चलना नहीं कहा जा सकता?” (वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ (भाग एक))। मैं हमेशा यह सोचती थी कि नाम और रुतबे का अनुसरण सिर्फ व्यक्ति के जीवन प्रवेश को प्रभावित करता है और जब तक हम कोई बुराई नहीं करते तब तक हम कलीसिया के कार्य में गड़बड़ी पैदा नहीं करेंगे। मैं यह नहीं समझती थी कि परमेश्वर नाम और रुतबे के अनुसरण से क्यों इतना चिढ़ता और नफरत करता है। परमेश्वर के वचन पढ़कर मैंने देखा कि अपने कर्तव्य में नाम और रुतबे के पीछे भागने और कलीसिया के हितों की रक्षा न करने से अंत में निश्चित रूप से कलीसिया के कार्य और भाई-बहनों के जीवन प्रवेश को नुकसान पहुँचेगा। इससे कलीसिया के कार्य में बाधा और गड़बड़ी पैदा होगी और इसकी परमेश्वर निंदा करता है। जब चेन झीचियांग की समस्या पर चर्चा हो रही थी, तो मैं अब और संगति नहीं करना चाहती थी क्योंकि मैं सुर्खियों में नहीं आ सकती थी। यह कोई बड़ा मुद्दा नहीं लग रहा था, लेकिन वास्तव में यह अपने सार में बहुत गंभीर था। अगर हम चेन झीचियांग की मदद के वास्ते उसकी समस्याओं पर संगति करने में देरी करते, तो यह सिर्फ उसके जीवन प्रवेश को ही नुकसान नहीं पहुँचाता, बल्कि यह कलीसिया के कार्य को भी प्रभावित करता। अपनी जिम्मेदारी मानकर मुझे ऐसे व्यक्ति की फौरन मदद करनी चाहिए थी जिसे अपना कर्तव्य निभाने में मुश्किल हो रही थी ताकि कलीसिया का कार्य सही राह पर चलता रहे। विशेष रूप से जबकि कम्युनिस्ट पार्टी इतनी गिरफ्तारियां कर रही थी, तो वांग झेन हर बार किसी सभा में जाने के लिए बाहर निकलने पर गिरफ्तारी का जोखिम उठा रही थी। अगर वह पर्याप्त रूप से तैयार न हो और सभाओं में समस्याओं का समाधान न कर पाए और खुद जोखिम उठाने के बावजूद अच्छे नतीजे हासिल न कर पाए, तो क्या यह उसके लिए पीड़ादायक नहीं होगा? मैं इन समस्याओं को जल्द से जल्द हल करने के उपाय या उस बहन की सुरक्षा के बारे में नहीं सोच रही थी। मैं एक ही बात से परेशान थी कि वह कहीं मेरे हिस्से की तालियाँ न लूट ले जाए। मैं इतनी स्वार्थी और मानवता रहित थी! एक सुपरवाइजर के तौर पर मैं वास्तविक कार्य नहीं कर रही थी। मैं तो कलीसिया के कार्य की कीमत पर अपने रुतबे की रक्षा कर रही थी। मैं एक मसीह-विरोधी के मार्ग पर चल रही थी! पहले मैं पूरी तरह से जिम्मेदार होती थी, और चाहे कोई कार्य कितना भी कठिन या थकाऊ क्यों न हो, मैं अपना सर्वश्रेष्ठ देने की कोशिश करती थी। लेकिन पार्टी की गिरफ्तारी मुहिम के कारण मैं अब बाहर नहीं जा सकती थी—मैं परदे के पीछे रहकर ही कार्य कर सकती थी। मैं अपना कर्तव्य निभाने के प्रति अनमनी रहती थी और सुर्खियों में रहने के लिए हमेशा वांग झेन के साथ होड़ में रहना चाहती थी। तब मुझे एहसास हुआ कि मेरे कर्तव्य में पहले जो उत्साह होता था, वह सब केवल नाम और रुतबे के लिए ही था। यह स्थिति मेरी गलत मंशाओं और अनुसरणों को उजागर कर रही थी ताकि मैं उन्हें समय रहते ठीक कर सकूँ। यह परमेश्वर का मेरे प्रति प्रेम था।
बाद में मैंने परमेश्वर के वचन पढ़े जिन्होंने अभ्यास के मार्ग के बारे में मेरी स्पष्टता बढ़ा दी। परमेश्वर के वचन कहते हैं : “परमेश्वर के कार्य के प्रयोजन के लिए, कलीसिया के फ़ायदे के लिये और अपने भाई-बहनों को आगे बढ़ाने के वास्ते प्रोत्साहित करने के लिये, तुम लोगों को सद्भावपूर्ण सहयोग करना होगा। परमेश्वर के इरादों के प्रति लिहाज दिखाने के लिए तुम्हें एक दूसरे के साथ सहयोग करना चाहिये, एक दूसरे में सुधार करके कार्य का बेहतर परिणाम हासिल करना चाहिये। सच्चे सहयोग का यही मतलब है और जो लोग ऐसा करेंगे सिर्फ़ वही सच्चा प्रवेश हासिल कर पाएंगे” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, इस्राएलियों की तरह सेवा करो)। “अपना कर्तव्य अच्छी तरह निभाने के लिए किसी को क्या करना चाहिए? इसे पूरे मन और पूरी ताकत से निभाना चाहिए। अपने पूरे मन और ताकत का उपयोग करने का अर्थ है कि अपने सभी विचारों को अपना कर्तव्य निभाने पर केंद्रित करना और अन्य चीजों को हावी न होने देना, और फिर अपनी सारी ताकत लगाना, अपनी संपूर्ण सामर्थ्य का प्रयोग करना, और कार्य संपादित करने के लिए अपनी क्षमता, गुण, खूबियों और उन चीजों का प्रयोग करना जो समझ आ गई हैं। अगर तुम्हारे पास समझने-बूझने की योग्यता है और तुम्हारे पास कोई अच्छा विचार है, तो तुम्हें इस बारे में दूसरों को बताना चाहिए। मिल-जुलकर सहयोग करने का यही अर्थ होता है। इस तरह तुम अपने कर्तव्य का पालन अच्छी तरह से करोगे, इसी तरह अपने कर्तव्य को संतोषजनक ढंग से कर पाओगे। यदि तुम हमेशा सब-कुछ अपने ऊपर लेना चाहते हो, यदि तुम हमेशा बड़े कार्य अकेले करना चाहते हो, यदि तुम हमेशा यह चाहते हो कि ध्यान तुम पर केंद्रित हो, दूसरों पर नहीं, तो क्या तुम अपना कर्तव्य निभा रहे हो? तुम जो कर रहे हो उसे तानाशाही कहते हैं; यह दिखावा करना है। यह शैतानी व्यवहार है, कर्तव्य का निर्वहन नहीं। किसी की क्षमता, गुण या विशेष प्रतिभा कुछ भी हो, वह सभी कार्य स्वयं नहीं कर सकता; यदि उसे कलीसिया का काम अच्छी तरह से करना है तो उसे सद्भाव में सहयोग करना सीखना होगा। इसलिए सौहार्दपूर्ण सहयोग, कर्तव्य के निर्वहन के अभ्यास का एक सिद्धांत है। अगर तुम अपना पूरा मन, सारी ऊर्जा और पूरी निष्ठा लगाते हो, और जो हो सके, वह अर्पित करते हो, तो तुम अपना कर्तव्य अच्छी तरह निभा रहे हो” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, उचित कर्तव्यपालन के लिए आवश्यक है सामंजस्यपूर्ण सहयोग)। परमेश्वर के वचनों से मैं समझ गई कि अपना कर्तव्य अच्छी तरह से निभाने के लिए हमें परमेश्वर के दिल की परवाह करनी चाहिए और अपने भाई-बहनों के साथ सहयोग करना चाहिए। हमें अपना सब कुछ इसमें झोंकना चाहिए और अपनी खूबियों का उपयोग करके एक-दूसरे की कमजोरियों की भरपाई करनी चाहिए। यही वह तरीका है जिससे हम परमेश्वर की स्वीकृति प्राप्त कर सकते हैं और अपने कार्य में अच्छे परिणाम प्राप्त कर सकते हैं। मैं यह भी समझ गई कि यह मायने नहीं रखता है कि समस्याएँ हल करने के लिए व्यक्तिगत रूप से मैं जाती हूँ या वांग झेन। अगर दूसरों की दशाओं और कठिनाइयों का समाधान हो सकता है तो मेरे प्रयास चाहे अदृश्य और परदे के पीछे ही क्यों न रहें, अपना कर्तव्य निभाकर परमेश्वर को संतुष्ट करने से मुझे आश्वस्ति और शांति मिलेगी। उसके बाद मैंने अपने दिमाग पर थोड़ा-सा जोर डाला कि चेन झीचियांग की समस्या को संबोधित करने के लिए किन सत्यों पर संगति की जानी चाहिए और वांग झेन की दृष्टि में लाने के लिए मुझे परमेश्वर के कुछ प्रासंगिक वचन मिल गए। उसे भी परमेश्वर के वचनों के कुछ ऐसे अंश मिल गए जो चेन झीचियांग की स्थिति के संबंध में बहुत सटीक थे लेकिन जो मेरी जहन में नहीं आए थे। एक साथ मिलकर ये चीजें और भी अधिक समग्र हो गई थीं। इस बात से मुझे बहुत शर्मिंदगी महसूस हुई। बेशक मैं कार्य करने के लिए बाहर नहीं जा सकती थी, लेकिन मैं वांग झेन के साथ उन सभी बातों पर स्पष्ट रूप से संगति कर सकती थी जिन्हें मैंने देखा और सोचा था। एक साथ मिलकर काम करने से हमें समस्याओं पर एक व्यापक दृष्टिकोण मिला, ताकि हम उन्हें बेहतर तरीके से हल कर सकें। क्या यह कलीसिया के कार्य के लिए अधिक लाभकारी नहीं था? हर चीज पर चर्चा करने के बाद वांग झेन ने चेन झीचियांग के साथ संगति की।
फिर एक दिन हमें कुछ भाई-बहनों का एक पत्र मिला। पत्र में लिखा था कि वांग झेन की संगति के जरिए वे कुछ गलतियाँ सुधारने में सक्षम रहे और अपने कर्तव्य पहले से बेहतर निभा रहे हैं। यह पढ़ने के बाद मैं थोड़ी निराश हो गई। मुझे ऐसा लगा कि उन त्रुटियों और गलतियों को मैंने ही खोजा था, लेकिन जो सबने देखा वह केवल वांग झेन का कारनामा था। किसी ने नहीं देखा कि परदे के पीछे मैं क्या कर रही थी। तब मुझे एहसास हुआ कि मैं फिर से नाम और लाभ के लिए होड़ कर रही थी, इसलिए मैंने प्रार्थना की और अपने खिलाफ विद्रोह कर दिया। मैंने एक निबंध में परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा जो मेरे लिए बहुत ही प्रेरणादायक था। परमेश्वर के वचन कहते हैं : “यदि तुम हमेशा दिखावा करने और अपनी बात ही मनवाने की कोशिश करते हो, तो तुम मिल-जुलकर सहयोग नहीं कर रहे हो। तुम क्या कर रहे हो? तुम रुकावट पैदा कर रहे हो और दूसरों को कमजोर कर रहे हो। रुकावट पैदा करना और दूसरों को कमजोर करना शैतान की भूमिका निभाना है; यह कर्तव्य का निर्वहन नहीं है। ... तुम कम सामर्थ्यवान हो सकते हो, लेकिन अगर तुम दूसरों के साथ काम करने में सक्षम हो, और उपयुक्त सुझाव स्वीकार सकते हो, और अगर तुम्हारे पास सही प्रेरणाएँ हैं, और तुम परमेश्वर के घर के कार्य की रक्षा कर सकते हो, तो तुम एक सही व्यक्ति हो। कभी-कभी तुम एक ही वाक्य से किसी समस्या का समाधान कर सकते हो और सभी को लाभान्वित कर सकते हो; कभी-कभी सत्य के एक ही कथन पर तुम्हारी संगति के बाद हर किसी के पास अभ्यास करने का एक मार्ग होता है, और वह एक-साथ मिलकर काम करने में सक्षम होता है, और सभी एक समान लक्ष्य के लिए प्रयास करते हैं, और समान विचार और राय रखते हैं, और इसलिए काम विशेष रूप से प्रभावी होता है। हालाँकि यह भी हो सकता है कि किसी को याद ही न रहे कि यह भूमिका तुमने निभाई है, और शायद तुम्हें भी ऐसा महसूस न हो मानो तुमने कोई बहुत अधिक प्रयास किए हों, लेकिन परमेश्वर देखेगा कि तुम वह इंसान हो जो सत्य का अभ्यास करता है, जो सिद्धांतों के अनुसार कार्य करता है। तुम्हारे ऐसा करने पर परमेश्वर तुम्हें याद रखेगा। इसे कहते हैं अपना कर्तव्य निष्ठापूर्वक निभाना” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, उचित कर्तव्यपालन के लिए आवश्यक है सामंजस्यपूर्ण सहयोग)। यह सच है। बेशक कोई भी परदे के पीछे मेरे कार्य को नहीं देख सकता था, लेकिन मैं परमेश्वर को संतुष्ट करने के लिए अपना कर्तव्य निभा रही थी। यह मायने नहीं रखता था कि दूसरे लोग जानते हैं या नहीं। सत्य का अभ्यास और परमेश्वर को संतुष्ट करना ही मायने रखता है। एक सुपरवाइजर के रूप में मेरा यही दायित्व और कर्तव्य था और मुझे यही करना चाहिए था कि दूसरों की त्रुटियाँ और विचलन नजर आने पर मैं उनके साथ संगति करूँ और इन्हें हल करने में उनकी मदद करूँ। यह कोई ऐसा कार्य नहीं था जिसका श्रेय मुझे लेना चाहिए था। पहले मैं हमेशा दूसरों के सामने दिखावा करने की कोशिश करती थी, लेकिन अब मैं केवल परदे के पीछे से ही कार्य कर सकती थी। यह परमेश्वर का आयोजन और व्यवस्था थी और मुझे इसकी ही आवश्यकता थी। मुझे इसके प्रति समर्पित होना था, अपने कर्तव्य में सत्य के अभ्यास पर ध्यान केंद्रित करना था और अपने कर्तव्य को अच्छी तरह निभाने का प्रयास करना था।
उसके बाद जब भी मुझे हमारे कार्य में कोई समस्या नजर आती थी तो मैं बहन वांग झेन से संपर्क करने के लिए खुद पहल करती थी। कभी-कभी जब मैं भाई-बहनों को विभिन्न मुद्दों के बारे में पत्र लिखती थी, तो मैं यह दिखाने की कोशिश करती थी कि यह मैं ही लिख रही हूँ, लेकिन जब मुझे यह एहसास होता कि मैं गुपचुप दिखावा कर रही हूँ और अपने को ऊँचा उठा रही हूँ तो मैं प्रार्थना करती और अपनी गलत मंशाओं को छोड़ देती। मैं खुद को शांत कर यह सोचती थी कि मैं ऐसा क्या लिख सकती हूँ जो दूसरों की मदद करे और मैं अपनी जिम्मेदारियाँ और कर्तव्य कैसे अच्छे ढंग से निभा सकती हूँ। इस तरीके से अभ्यास करने से मेरा दिल सच में उज्ज्वल हो गया और मुझे वाकई मुक्ति का एहसास हुआ। यह खुद को संचालित करने का एक बहुत ही शानदार तरीका है।