77. अब मैं अच्छे से सहयोग करने के लिए संघर्ष नहीं करती

पिछले कुछ सालों से मैं कलीसिया में विदेश से आए नवागंतुकों का सिंचन कर रही हूँ। चूँकि मुझे सिंचन कार्य का अनुभव था और मैं उनकी भाषा भी थोड़ी-बहुत बोल सकती थी, इसलिए भाई-बहनों को जब नवागंतुकों के सिंचन से जुड़ी समस्याएँ होती थीं तो वे अक्सर मुझसे मदद माँगते थे और वे आमतौर पर मेरे सुझाव स्वीकारते थे। कभी-कभी भाई-बहनों को पता नहीं होता था कि नवागंतुकों की कुछ समस्याओं को कैसे सुलझाया जाए, लेकिन मैं उन्हें आसानी से सुलझा देती थी। इसलिए मुझे विश्वास था कि मेरी काबिलियत अच्छी है और मेरी कार्यक्षमता औसत से ऊपर है। जल्द ही मुझे पर्यवेक्षक चुन लिया गया और सिंचन कार्य में छोटे-बड़े मामले व्यवस्थित करने और अंतिम निर्णय लेने की जिम्मेदारी दी गई। मैंने इस एहसास का भरपूर आनन्द लिया।

बाद में जब सिंचन की जरूरत वाले नवागंतुकों की संख्या बढ़ी, कलीसिया ने एमिली नाम की एक बहन को मेरे साथ सहयोग करने और काम की जिम्मेदारी साझा करने के लिए व्यवस्थित किया। हमारी पहली सभा के दौरान एमिली ने सिंचन कार्य में मौजूदा समस्याओं पर अपने विचारों और राय पर चर्चा की। सभी भाई-बहन उससे सहमत थे लेकिन मुझे असहज महसूस हुआ। मुझे उम्मीद नहीं थी कि यह कर्तव्य निभाते हुए थोड़ा ही समय होने के बावजूद एमिली पेशेवर मामलों के संबंध में काफी व्यावहारिक होगी। उसके आने से पहले हर कोई चर्चा के दौरान सिर्फ मेरी बात सुनता था, लेकिन अब वह आ गई थी और उसने मुझसे सुर्खियाँ चुरा ली थीं। भविष्य में जब वह भाई-बहनों के साथ लंबा समय बिताएगी तो अपनी और खूबियाँ और ताकत दिखाएगी तो निश्चित रूप से सभी उसका बहुत सम्मान करेंगे, जिससे समूह में मेरा रुतबा खतरे में पड़ जाएगा। जितना ज्यादा मैं इस बारे मे सोचती, उतनी ही अधिक चिंता होती। एक दिन अगुआ ने हमारे साथ मिलकर काम की समीक्षा की। उसने देखा कि एमिली द्वारा सिंचित नवागंतुक काफी सहजता से सभा कर रहे थे और कई लोग अपने कर्तव्य निभा रहे थे, जबकि मेरे द्वारा सिंचित कई नवागंतुक सहजता से सभा नहीं कर पा रहे थे और कुछ ही अपने कर्तव्य निभा रहे थे। यह स्थिति देखकर अगुआ ने मुझसे कहा कि मैं अपनी जिम्मेदारी वाले कुछ काम एमिली को सौंप दूँ। यह सुनकर मेरे दिल को बहुत धक्का लगा और मैंने सोचा, “हालाँकि मेरे प्रभार वाले काम के नतीजे बहुत अच्छे नहीं हैं, लेकिन अगर मैं थोड़ा और प्रयास करूँ तो ये सभी मुद्दे सुधर जाएँगे और देर-सवेर सुलझ भी जाएँगे। मुझे अपना काम एमिली को क्यों सौंपना चाहिए? अगर भाई-बहनों को इस बारे में पता चलेगा तो वे मेरे बारे में क्या सोचेंगे? वे निश्चित रूप से सोचेंगे कि मेरी कार्य क्षमताएँ ठीक नहीं हैं। फिर मैं समूह में कैसे रह पाऊँगी? इसके अलावा, अगर मेरी जिम्मेदारी वाले कार्य में एमिली शामिल हो जाती है और हर कोई उसकी बात सुनने लगता है तो मेरी कौन सुनेगा? क्या इससे मैं पर्यवेक्षक से नाममात्र की मुखिया बनकर नहीं रह जाऊँगी?” लेकिन अगुआ ने पहले ही यह व्यवस्था कर ली थी और मैं उसे सीधे अस्वीकार नहीं सकती थी, इसलिए मैंने अनिच्छा से एमिली को कुछ कम महत्वपूर्ण कार्य सौंप दिए। मैं आमतौर पर काम पर चर्चा करने के लिए उससे सक्रियता से नहीं मिलती थी और जब कभी वह मुझे संदेश भेजती थी तो मैं उन्हें पढ़ने के बाद जवाब नहीं देना चाहती थी।

एक दिन मुझे पता चला कि हंटर नाम का एक भाई बुरी अवस्था में है, इसलिए मैंने उसका साथ देने और उसकी मदद करने के लिए तैयारी की, लेकिन अप्रत्याशित रूप से एमिली ने मुझे बताया कि वह पहले ही हंटर के साथ संगति कर चुकी है। मैं थोड़ी परेशान हो गई और सोचा “मैं हमेशा से ही हंटर के साथ संगति करती रही हूँ और अब तुम मुझे बताए बिना उसके पास जाकर संगति करने लगी; क्या यह स्पष्ट नहीं है कि तुम मुझसे प्रतिस्पर्धा करने की कोशिश कर रही हो?” खास तौर पर जब हंटर ने एक सभा के दौरान कहा कि एमिली की संगति उसके लिए बहुत फायदेमंद थी और इससे उसे अपने भ्रष्ट स्वभाव को समझने में मदद मिली तो मैं असहज हो गई। मैंने सोचा, “हंटर ने एक बार कहा था कि मेरी संगति में बहुत सारे धर्म-सिद्धांत शामिल होते हैं, जबकि अब वह एमिली की इसलिए तारीफ कर रहा है क्योंकि वह अपनी संगति में उसकी समस्याएँ बताती है। अगर चीजें ऐसी ही चलती रहीं तो क्या यह स्पष्ट नहीं हो जाएगा कि हममें से कौन बेहतर है? हर कोई पक्का सोचेगा कि एमिली सत्य समझती है और उसके पास वास्तविकता है और वे भविष्य में उसके बारे में और ऊँचा सोचेंगे। क्या इससे समूह में मेरे रुतबे को खतरा नहीं होगा?” तब से मैंने एमिली को अपने लिए सबसे बड़ा खतरा मान लिया। मैं उस काम के प्रति बहुत सुरक्षात्मक हो गई जिसके लिए मैं सीधे जिम्मेदार थी और उसे हिस्सा लेने का कोई मौका न देती। अगुआ आमतौर पर हमें साथ मिलकर काम पर चर्चा करने के लिए कहता था, लेकिन मैं उसे शामिल करने के लिए तैयार नहीं थी, मुझे लगता था कि यह अपमानजनक होगा और मैं अक्षम नजर आऊँगी। क्या मैं उसके बिना यह काम ठीक से नहीं संभाल रही थी? इसलिए मैंने बहाने बनाए और उसकी भागीदारी से इनकार कर दिया, अगुआ को बताया कि मैंने पहले ही चीजों को संभाल लिया है, या कि मुद्दे इतने जटिल नहीं हैं और मैं उन्हें अकेले ही सुलझा सकती हूँ, एमिली के साथ आगे की चर्चा करने से चीजें और अटक जाएँगी और इसी तरह के बहाने। मैंने उसे अपने काम से बाहर रखने के लिए हर तरह के बहाने बनाए। एक बार मैंने जोआन नाम की एक बहन से उसकी कार्य स्थिति के बारे में बात की ही थी जब एमिली उससे उसी चीज के बारे में पूछने गई। जोआन को थोड़ा गुस्सा आया, उसने कहा कि काम के बारे में बार-बार संवाद करना समय की बर्बादी जैसा लगता है। मुझे अच्छी तरह पता था कि ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि मैंने एमिली के साथ पहले से ठीक से संवाद नहीं किया था, लेकिन अपनी समस्या पर विचार करने के बजाय मैं मन ही मन खुश हो रही थी, मैंने सोचा “बिल्कुल! एमिली को शामिल करना वास्तव में बेमानी है। अगर हर कोई उसे नापसंद करे तो मेरे रुतबे को उससे कोई खतरा नहीं होगा।” इसलिए मैंने जोआन की हाँ में हाँ मिलाते हुए कहा, “यह वाकई चीजों को थोड़ा अटका देता है।” काम पर चर्चा के दौरान जब कुछ भाई-बहनों ने एमिली को शामिल करने का सुझाव दिया तो मेरे पास अपनी प्रतिष्ठा बचाने के लिए सहमत होने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। लेकिन अंदर से मैं ऐसा बिल्कुल भी नहीं चाहती थी। मैंने सोचा, “एमिली, एमिली! अब तुम्हें बस उसी की परवाह है। क्या उसके बिना काम आगे बढ़ाना असंभव है? उसके हमारे साथ जुड़ने से पहले मैं ही फैसले लेती थी और काम में जरा भी देरी नहीं होती थी!” जब भी मैं भाई-बहनों को एमिली का नाम लेते सुनती तो मैं बहुत संवेदनशील हो जाती और सोचती कि क्या वे सभी उसकी बड़ाई करते हैं। जैसे ही वह आसपास आती तो मैं तुरंत सतर्क हो जाती, उस काँटेदार जंगली चूहे की तरह, जो हर क्षण अपना बचाव करने के लिए तैयार रहता है। उसे बाधित करने के मेरे प्रयासों के कारण एमिली काम में जरा भी शामिल नहीं हो पाई और उसे पता नहीं था कि मेरे साथ कैसे सहयोग करना है, जिससे वह बहुत परेशान हो गई। मुझे एहसास हुआ कि उसकी खराब अवस्था का मेरे साथ बहुत कुछ लेना-देना था और मुझे अपराध बोध की आहट महसूस हुई। हालाँकि फिर मैंने सोचा, “अगर तुम साथ जुड़ नहीं सकती तो मेरे काम से दूर रहो। अच्छा होगा अगर हम दोनों अपना-अपना काम करें और एक-दूसरे के काम में दखल न दें।” मैं तो यहाँ तक चाहती थी कि परमेश्वर एमिली को कहीं और नियुक्त करने के लिए परिस्थितियाँ तैयार करे ताकि मुझे मानसिक शांति मिल सके। उस दौरान मैं एमिली के प्रति प्रतिरोध और बहिष्कार की अवस्था में रहती थी, अक्सर बेवजह चिड़चिड़ी और थकान महसूस करती थी। मैं लगातार नकारात्मक होती गई और मेरे दिल में और भी अँधेरा छाने लगा। मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, “हे परमेश्वर, जब से मैंने एमिली के साथ सहयोग करना शुरू किया है, मैं हमेशा उसके साथ प्रतिस्पर्धा करना चाहती हूँ और चिंतित रहती हूँ कि वह मुझसे आगे निकल जाएगी। मुझे पता है कि यह अवस्था सही नहीं है, लेकिन मैं अपनी समस्या का सार नहीं देख पा रही हूँ। मुझे प्रबुद्ध करो ताकि मैं खुद को समझ सकूँ।”

एक दिन मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा जिसमें मसीह-विरोधियों को उजागर किया गया था और मुझे खुद के बारे में कुछ समझ मिली। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं : “मसीह-विरोधी के सार की सबसे स्पष्ट विशेषताओं में से एक यह होती है कि वे अपनी सत्ता का एकाधिकार और अपनी तानाशाही चलाते हैं : वे किसी की नहीं सुनते हैं, किसी का आदर नहीं करते हैं, और लोगों की क्षमताओं की परवाह किए बिना, या इस बात की परवाह किए बिना कि वे क्या सही विचार या बुद्धिमत्तापूर्ण मत व्यक्त करते हैं और कौन-से उपयुक्त तरीके सामने रखते हैं, वे उन पर कोई ध्यान नहीं देते; यह ऐसा है मानो कोई भी उनके साथ सहयोग करने या उनके किसी भी काम में भाग लेने के योग्य न हो। मसीह-विरोधियों का स्वभाव ऐसा ही होता है। कुछ लोग कहते हैं कि यह बुरी मानवता वाला होना है—लेकिन यह सामान्य बुरी मानवता कैसे हो सकती है? यह पूरी तरह से एक शैतानी स्वभाव है; और ऐसा स्वभाव अत्यंत क्रूरतापूर्ण है। मैं क्यों कहता हूँ कि उनका स्वभाव अत्यंत क्रूरतापूर्ण है? मसीह-विरोधी परमेश्वर के घर और कलीसिया की संपत्ति से सब-कुछ हर लेते हैं और उससे अपनी निजी संपत्ति के समान पेश आते हैं जिसका प्रबंधन उन्हें ही करना हो, और वे इसमें किसी भी दूसरे को दखल देने की अनुमति नहीं देते हैं। कलीसिया का कार्य करते समय वे केवल अपने हितों, अपनी हैसियत और अपने गौरव के बारे में ही सोचते हैं। वे किसी को भी अपने हितों को नुकसान नहीं पहुँचाने देते, किसी योग्य व्यक्ति को या किसी ऐसे व्यक्ति को, जो अनुभवजन्य गवाही देने में सक्षम है, अपनी प्रतिष्ठा और हैसियत को खतरे में डालने तो बिल्कुल भी नहीं देते। और इसलिए, वे उन लोगों को दमित करने और प्रतिस्पर्धियों के रूप में बाहर करने की कोशिश करते हैं, जो अनुभवजन्य गवाही के बारे में बोलने में सक्षम होते हैं, जो सत्य पर संगति कर सकते हैं और परमेश्वर के चुने हुए लोगों को पोषण प्रदान कर सकते हैं, और वे हताशा से उन लोगों को बाकी सबसे पूरी तरह से अलग करने, उनके नाम पूरी तरह से कीचड़ में घसीटने और उन्हें नीचे गिराने की कोशिश करते हैं। सिर्फ तभी मसीह-विरोधी शांति का अनुभव करते हैं। ... वास्तव में, उन लोगों के पास कुछ अनुभवजन्य गवाही होती है और उनमें थोड़ी सत्य वास्तविकता होती है। वे अपेक्षाकृत अच्छी मानवता वाले, जमीर और विवेक युक्त होते हैं, और सत्य को स्वीकारने में सक्षम होते हैं। और भले ही उनमें कुछ कमियाँ, खामियाँ, और कभी-कभी भ्रष्ट स्वभाव के खुलासे हों, फिर भी वे आत्मचिंतन कर प्रायश्चित्त करने में सक्षम होते हैं। यही वे लोग हैं जिन्हें परमेश्वर बचाएगा, और जिन्हें परमेश्वर द्वारा पूर्ण बनाए जाने की उम्मीद है। कुल मिलाकर ये लोग कर्तव्य निभाने के लिए उपयुक्त हैं, ये कर्तव्य करने की अपेक्षाओं और सिद्धांतों को पूरा करते हैं। लेकिन मसीह-विरोधी मन-ही-मन सोचते हैं, ‘मैं इसे कतई बरदाश्त नहीं करूँगा। तुम मेरे साथ प्रतिस्पर्धा करने के लिए मेरे क्षेत्र में एक भूमिका पाना चाहते हो। यह असंभव है; इसके बारे में सोचना भी मत। तुम मुझसे अधिक शिक्षित हो, मुझसे अधिक मुखर हो, और मुझसे अधिक लोकप्रिय हो, और तुम मुझसे अधिक परिश्रम से सत्य का अनुसरण करते हो। अगर मुझे तुम्हारे साथ सहयोग करना पड़े और तुम मेरी सफलता चुरा लो, तो मैं क्या करूँगा?’ क्या वे परमेश्वर के घर के हितों पर विचार करते हैं? नहीं(वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद आठ : वे दूसरों से केवल अपने प्रति समर्पण करवाएँगे, सत्य या परमेश्वर के प्रति नहीं (भाग एक))। परमेश्वर ने उजागर किया है कि मसीह-विरोधी रुतबे और शक्ति को विशेष महत्व देते हैं, किसी को भी अपने हितों को नुकसान पहुंचाने नहीं देते। अगर वे देखते हैं कि उनसे बेहतर कोई व्यक्ति उनके रुतबे को खतरे में डाल रहा है तो वे उस व्यक्ति को दबाते और बहिष्कृत करते हैं। अपने व्यवहार से इसकी तुलना करते हुए मुझे एहसास हुआ कि मैं बिल्कुल मसीह-विरोधी की तरह काम कर रही थी। यह देखते हुए कि एमिली न केवल सत्य पर संगति करती थी और समस्याओं को मुझसे बेहतर तरीके से सुलझाती थी, बल्कि हमारे पेशे के मामले में भी काफी पैनी दृष्टि रखती थी, मुझे चिंता थी कि उसके साथ सहयोग करने से मैं अपना दिखावा नहीं कर पाऊँगी। इसलिए मैंने उसे बहिष्कृत कर दिया और उसे अपने काम में हिस्सा नहीं लेने दिया, मैंने यह सब अपना रुतबा बचाने और अपनी शक्ति बाँटने से बचने के लिए किया। अगुआ ने एमिली और मेरे लिए काम बाँटने और एक-दूसरे के साथ सहयोग करने की व्यवस्था की, जो सिंचन कार्य के नतीजों को ध्यान में रखते हुए किया गया था। लेकिन मैंने अपने दिल में इसका विरोध किया। भले ही मैं अनिच्छा से उसे साथ रखने के लिए मान गई, पर मैंने उसे केवल कुछ कम महत्वपूर्ण कार्य दिए, डरती रही कि अगर सभी उसकी बात सुनने लगे तो मैं समूह में अपना रुतबा गँवा दूँगी। जब हंटर की अवस्था खराब थी तो एमिली ने इसे सुलझाने के लिए तुरंत उसके साथ संगति की, लेकिन खुश होने के बजाय मैंने अपना रुतबा बचाने की खातिर उसे दबाने के लिए हर तरह के बहाने बनाए और उसे उस काम में शामिल होने से रोका जिसके लिए मैं जिम्मेदार थी। जब जोआन ने एमिली की आलोचना की तो मैं मन ही मन खुश हो रही थी, उम्मीद कर रही थी कि हर कोई उसके खिलाफ हो जाएगा ताकि वह अब मेरे रुतबे के लिए खतरा न बने। मेरे बहिष्कार के कारण एमिली उस काम में शामिल नहीं हो सकी जिसके लिए मैं जिम्मेदार थी, जिससे उसकी अवस्था प्रभावित हुई। मैंने आत्म-चिंतन नहीं किया, इसके बजाय कामना की कि वह तुरंत चली जाए। मैं बहुत निरंकुश थी, मुझमें रुतबे की तीव्र इच्छा थी। अपना रुतबा और शक्ति बनाए रखने के लिए मैंने कलीसिया के काम पर बिल्कुल भी विचार किए बिना अपने हर काम में एमिली को बहिष्कृत किया और दबाया। मैं वास्तव में बहुत स्वार्थी और नीच थी और मुझमें कोई मानवता नहीं थी। मेरा व्यवहार एक मसीह-विरोधी स्वभाव की सटीक अभिव्यक्ति थी!

बाद में मैंने परमेश्वर के वचनों का एक और अंश पढ़ा जिससे मुझे अपने क्रियाकलापों के परिणामों के बारे में कुछ समझ हासिल करने में मदद मिली। परमेश्वर के वचन कहते हैं : “जब लोगों में शैतानी स्वभाव होता है तो वे कभी भी और कहीं भी परमेश्वर के प्रति विद्रोह कर उसका विरोध कर सकते हैं। शैतानी स्वभाव को जीने वाले लोग कभी भी परमेश्वर को नकार सकते हैं, उसका विरोध कर उसे धोखा दे सकते हैं। मसीह-विरोधी बहुत मूर्ख होते हैं, उन्हें इस बात का एहसास नहीं होता और वे सोचते हैं, ‘मैंने बड़ी मुश्किल से सत्ता हथियाई है तो मैं इसे किसी और के साथ क्यों साझा करूँ? इसे दूसरों को सौंपने का मतलब है कि मेरे पास अपने लिए कुछ नहीं बचेगा, है न? बिना सत्ता के मैं अपनी प्रतिभाओं और क्षमताओं को कैसे दिखा पाऊँगा?’ वे नहीं जानते कि परमेश्वर ने लोगों को जो सौंपा है वह सत्ता या रुतबा नहीं बल्कि कर्तव्य है। मसीह-विरोधी केवल सत्ता और रुतबा स्वीकारते हैं, वे अपने कर्तव्यों को दरकिनार कर देते हैं और वास्तविक कार्य नहीं करते। बल्कि सिर्फ प्रसिद्धि, लाभ और रुतबे के पीछे भागते हैं, और सिर्फ सत्ता हथियाकर परमेश्वर के चुने हुए लोगों को नियंत्रित करना और रुतबे के फायदे उठाने में लगे रहना चाहते हैं। इस तरह से काम करना बहुत खतरनाक होता है—यह परमेश्वर का विरोध करना है! जो लोग अपना कर्तव्य ठीक से निभाने के बजाय प्रसिद्धि, लाभ और रुतबे के पीछे भागते हैं, वे आग से खेल रहे हैं और अपने जीवन से खेल रहे हैं। आग और जीवन से खेलने वाले लोग कभी भी बर्बाद हो सकते हैं। आज अगुआ या कर्मी के तौर पर तुम परमेश्वर की सेवा कर रहे हो, जो कोई सामान्य बात नहीं है। तुम किसी व्यक्ति के लिए काम नहीं कर रहे हो, अपने खर्चे उठाने और रोजी-रोटी कमाने का काम तो बिल्कुल भी नहीं कर रहे हो; बल्कि तुम कलीसिया में अपना कर्तव्य निभा रहे हो। खासकर यह देखते हुए कि तुम्हें परमेश्वर के आदेश से यह कर्तव्य मिला है, इसे निभाने का क्या अर्थ है? यही कि तुम अपने कर्तव्य के लिए परमेश्वर के प्रति जवाबदेह हो, फिर चाहे तुम इसे अच्छी तरह से निभाओ या न निभाओ; अंततः परमेश्वर को हिसाब देना ही होगा, एक परिणाम होना ही चाहिए। तुमने जिसे स्वीकारा है वह परमेश्वर का आदेश है, एक पवित्र जिम्मेदारी है, इसलिए वह कितनी भी अहम या छोटी जिम्मेदारी क्यों न हो, यह एक गंभीर मामला है। यह कितना गंभीर है? छोटे पैमाने पर देखें तो इसमें यह बात शामिल है कि तुम इस जीवन-काल में सत्य प्राप्त कर सकते हो या नहीं और यह भी शामिल है कि परमेश्वर तुम्हें किस तरह देखता है। बड़े पैमाने पर देखें तो यह सीधे तुम्हारी संभावनाओं और नियति से जुड़ा है, तुम्हारे परिणाम से जुड़ा है; यदि तुम दुष्टता कर परमेश्वर का विरोध करते हो, तो तुम्हें निंदित और दंडित किया जाएगा। अपना कर्तव्य निभाते हुए तुम जो कुछ भी करते हो उसे परमेश्वर दर्ज करता है, और इसकी गणना और मूल्यांकन करने के लिए परमेश्वर के अपने सिद्धांत और मानक हैं; अपना कर्तव्य निभाते हुए तुम जो कुछ भी प्रकट करते हो, उसके आधार पर परमेश्वर तुम्हारा परिणाम तय करता है(वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद आठ : वे दूसरों से केवल अपने प्रति समर्पण करवाएँगे, सत्य या परमेश्वर के प्रति नहीं (भाग एक))। परमेश्वर के वचन स्पष्टता से बताते हैं कि मसीह-विरोधियों के रुतबे के पीछे भागने के क्या परिणाम होते हैं। मसीह-विरोधी सत्य का अनुसरण नहीं करते, केवल प्रतिष्ठा और रुतबे के पीछे पड़े रहते हैं; वे सत्ता और रुतबे को सबसे ऊपर रखते हैं, सत्ता से चिपके रहते हैं और उसे जाने नहीं देते, एकमात्र अधिकारी बनना चाहते हैं और किसी और को अपने काम में हिस्सा नहीं लेने देते। आखिरकार वे परमेश्वर का विरोध करने के कारण बेनकाब करके हटा दिए जाते हैं। जहाँ तक मेरी बात है, सिंचन कार्य की पर्यवेक्षक चुने जाने के बाद, मैंने काम के छोटे-बड़े मामलों पर सभी निर्णय लिए। हर कोई अपने मुद्दों के बारे में पूछने के लिए मेरे पास आता और मेरी बात सुनता और मुझे निर्णायक होने की यह भावना बहुत पसंद आई। एमिली के हमारे साथ जुड़ने के बाद मैंने देखा कि वह कई क्षेत्रों में मुझसे बेहतर है। मुझे चिंता हुई कि हर कोई अपनी समस्याएँ लेकर उसके पास जाने लगेगा, जिससे मैं अपनी आवाज और निर्णय लेने की शक्ति खो दूँगी, और इसलिए मैंने उसे हर संभव तरीके से बाहर रखा। चाहे अगुआ का मुझसे काम बाँटने और सहयोग करने के लिए कहना हो या भाई-बहन चाहते हों कि वह काम की चर्चाओं में शामिल हो, मैंने अपने दिल में इसका विरोध किया। मैंने उसे बाहर निकालने के बहाने भी बनाए और काम में हिस्सा नहीं लेने दिया और समूह पर हावी होना चाहा ताकि भाई-बहनों को कोई समस्या हो तो वे केवल मेरी बात सुनें। कलीसिया ने मुझे इतना महत्वपूर्ण कर्तव्य सौंपा था, फिर भी मैंने कभी नहीं सोचा कि काम को अच्छी तरह से कैसे किया जाए। इसके बजाय, मैंने अपना सारा समय इस बारे में सोचने में बिताया कि एमिली से कैसे पीछे न रहूँ और अपना रुतबा कैसे बनाए रखूँ। प्रतिष्ठा और रुतबे की मेरी इच्छा बहुत प्रबल थी। परमेश्वर कहते हैं : “जो लोग अपना कर्तव्य ठीक से निभाने के बजाय प्रसिद्धि, लाभ और रुतबे के पीछे भागते हैं, वे आग से खेल रहे हैं और अपने जीवन से खेल रहे हैं। आग और जीवन से खेलने वाले लोग कभी भी बर्बाद हो सकते हैं(वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद आठ : वे दूसरों से केवल अपने प्रति समर्पण करवाएँगे, सत्य या परमेश्वर के प्रति नहीं (भाग एक))। परमेश्वर के वचन पढ़कर मैं भयभीत हो गई, मुझे एहसास हुआ कि परमेश्वर का स्वभाव धार्मिक है और अपमानित होना बर्दाश्त नहीं करता। अगर मैंने पश्चात्ताप किए बिना प्रसिद्धि, लाभ और रुतबे के पीछे भागना जारी रखा और एमिली को बहिष्कृत कर उस पर हमला करती रही तो मैं परमेश्वर के स्वभाव को अपमानित करूँगी और बेनकाब करके हटा दी जाऊँगी। मैंने उन मसीह-विरोधियों के बारे में भी सोचा जिन्हें कलीसिया से निष्कासित कर दिया गया था। जब कोई उनसे बेहतर होता और उनकी स्थिति के लिए खतरा पैदा करता तो वे उस व्यक्ति को दुश्मन के रूप में देखते थे और उसे दबाने, बाहर करने और पीड़ा देने के लिए विभिन्न घृणित हथकंडों का इस्तेमाल करते थे ताकि सत्ता एकमात्र उनके हाथों में रहे। अंततः उन्हें उनके कई बुरे कर्मों के कारण कलीसिया से निष्कासित कर दिया गया। इसी तरह चीनी कम्युनिस्ट पार्टी अपने शासन को मजबूत करने के लिए बेतहाशा चाहती है कि हर कोई उसके सामने झुक जाए। वह उन लोगों के प्रति निर्दयी है जो उसकी स्थिति के लिए खतरा पैदा कर सकते हैं और उन्हें पूरी तरह से खत्म करना चाहती है, रुतबे और सत्ता पर हमेशा अपनी मजबूत पकड़ बनाए रखने का प्रयास करती है। जहाँ तक मेरी बात है, एमिली को बाहर करके अपना रुतबा मजबूत करने के लिए मेरे द्वारा किए गए कार्य क्या प्रकृति में मसीह-विरोधियों और बड़े लाल अजगर के कार्यों से अलग थे? इस एहसास ने मुझे डरा दिया और मैंने पश्चात्ताप में परमेश्वर से प्रार्थना की कि वह मेरी समस्याएँ सुलझाने में मेरा मार्गदर्शन करे।

कुछ दिनों बाद एमिली के क्षेत्र में अचानक तूफान की चेतावनी जारी की गई। तूफान आने से पहले हमारी मुलाकात के दौरान वह बहुत भावुक हो गई और बोली, “जब आपदा आती है तो मुझे लगता है कि अपना कर्तव्य निभाने का यह अवसर बहुत कीमती है। लेकिन मैंने इस अवसर का लाभ नहीं उठाया और न ही परमेश्वर को संतुष्ट करने के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ दिया। ...” यह सुनकर मुझे बहुत आत्म-ग्लानि हुई। इस दौरान मैं प्रसिद्धि और लाभ के लिए एमिली के साथ प्रतिस्पर्धा कर रही थी, अपना रुतबा बनाए रखने के लिए हर तरह से उसे बाहर कर रही थी और उसके साथ ठीक से सहयोग नहीं कर रही थी या अपना कर्तव्य ठीक से नहीं निभा रही थी। मुझे अचानक एमिली और परमेश्वर दोनों के लिए खेद हुआ। मैंने मन ही मन परमेश्वर से प्रार्थना की, “हे परमेश्वर, अगर मुझे भविष्य में एमिली के साथ सहयोग करने का एक और अवसर नहीं मिला तो मेरे पास पछतावे के अलावा कुछ नहीं बचेगा। अगर मैं फिर से शुरुआत कर पाई तो मैं उसके साथ ठीक से सहयोग करने के अवसर का लाभ उठाऊँगी।” उस दोपहर मुझे पता चला कि तूफान बीत चुका है और एमिली का क्षेत्र अप्रभावित है। मैंने लगातार परमेश्वर को उसकी सुरक्षा के लिए धन्यवाद दिया।

इसके बाद मैंने अभ्यास और प्रवेश के मार्ग की तलाश में परमेश्वर से प्रार्थना की। मैंने परमेश्वर के ये वचन पढ़े : “तुम्हारी खोज की दिशा या लक्ष्य चाहे जो भी हो, यदि तुम रुतबे और प्रतिष्ठा के पीछे दौड़ने पर विचार नहीं करते और अगर तुम्हें इन चीजों को दरकिनार करना बहुत मुश्किल लगता है, तो इनका असर तुम्हारे जीवन प्रवेश पर पड़ेगा। जब तक तुम्हारे दिल में रुतबा बसा हुआ है, तब तक यह तुम्हारे जीवन की दिशा और उन लक्ष्यों को पूरी तरह से नियंत्रित और प्रभावित करेगा जिनके लिए तुम प्रयासरत हो और ऐसी स्थिति में अपने स्वभाव में बदलाव की बात तो तुम भूल ही जाओ, तुम्हारे लिए सत्य वास्तविकता में प्रवेश करना भी बहुत मुश्किल होगा; तुम अंततः परमेश्वर की स्वीकृति प्राप्त कर पाओगे या नहीं, यह बेशक स्पष्ट है। इसके अलावा, यदि तुमने कभी रुतबे के पीछे भागना नहीं छोड़ा, तो इससे तुम्हारे ठीक से कर्तव्य करने की क्षमता पर भी असर पड़ेगा। तब तुम्हारे लिए एक स्वीकार्य सृजित प्राणी बनना बहुत मुश्किल हो जाएगा। मैं ऐसा क्यों कह रहा हूँ? जब लोग रुतबे के पीछे भागते हैं, तो परमेश्वर को इससे बेहद घृणा होती है, क्योंकि रुतबे के पीछे भागना शैतानी स्वभाव है, यह एक गलत मार्ग है, यह शैतान की भ्रष्टता से पैदा होता है, परमेश्वर इसका तिरस्कार करता है और परमेश्वर इसी चीज का न्याय और शुद्धिकरण करता है। लोगों के रुतबे के पीछे भागने से परमेश्वर को सबसे ज्यादा घृणा है और फिर भी तुम अड़ियल बनकर रुतबे के लिए होड़ करते हो, उसे हमेशा संजोए और संरक्षित किए रहते हो, उसे हासिल करने की कोशिश करते रहते हो। क्या इन तमाम चीजों की प्रकृति परमेश्वर-विरोधी नहीं है? लोगों के लिए रुतबे को परमेश्वर ने नियत नहीं किया है; परमेश्वर लोगों को सत्य, मार्ग और जीवन प्रदान करता है, और अंततः उन्हें एक स्वीकार्य सृजित प्राणी, एक छोटा और नगण्य सृजित प्राणी बनाता है—वह इंसान को ऐसा व्यक्ति नहीं बनाता जिसके पास रुतबा और प्रतिष्ठा हो और जिस पर हजारों लोग श्रद्धा रखें(वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ (भाग तीन))। परमेश्वर के वचनों को पढ़ने के बाद मैं समझ गई कि प्रतिष्ठा और रुतबे की चाहत रखना परमेश्वर के इरादों के बिल्कुल विपरीत है। जितना अधिक कोई रुतबे की चाहत रखता है, उतना ही अधिक परमेश्वर उससे घृणा करता है और उतना ही अधिक वह उसकी अपेक्षाओं से भटक जाता है। आखिरकार वे परमेश्वर का अधिक से अधिक विरोध करेंगे, जिसके कारण परमेश्वर उन्हें दंडित करेगा और उन्हें हटा देगा। एक सच्चे सृजित प्राणी को परमेश्वर की संप्रभुता के प्रति पूरी कर्तव्यनिष्ठ से समर्पित होना चाहिए और परमेश्वर को संतुष्ट करने के लिए व्यावहारिक तरीके से अपना कर्तव्य निभाना चाहिए। लोगों को यही प्रयास करना चाहिए। परमेश्वर ने मुझ पर कृपा कर पर्यवेक्षक के रूप में कार्य का अभ्यास करने का अवसर दिया, इसका उद्देश्य मुझे अपना कर्तव्य ठीक से निभाने और काम को अच्छी तरह से करने के लिए अपनी शक्तियों का उपयोग करने में मदद करना था। यह मुझे शक्ति देने के लिए नहीं था और न ही मुझे प्रतिष्ठा और रुतबे की चाहत रखने देने के लिए था। मुझे अपनी महत्वाकांक्षाओं और इच्छाओं को त्यागने, एमिली के साथ ठीक से सहयोग करने और अपना कर्तव्य अच्छे से निभाने की आवश्यकता थी।

बाद में मैंने दूसरों के साथ सहयोग करने के तरीके के बारे में परमेश्वर के वचनों का एक और अंश पढ़ा : “तुम लोग बताओ, क्या लोगों के साथ सहयोग करना कठिन होता है? वास्तव में, यह कठिन नहीं होता। तुम यह भी कह सकते हो कि यह आसान होता है। लेकिन फिर भी लोगों को यह मुश्किल क्यों लगता है? क्योंकि उनका स्वभाव भ्रष्ट होता है। जिन लोगों में मानवता, अंतःकरण और विवेक होता है, उनके लिए दूसरों के साथ सहयोग करना अपेक्षाकृत आसान है और वे महसूस कर सकते हैं कि यह सुखदायक चीज है। इसका कारण यह है कि किसी भी व्यक्ति के लिए अपने दम पर कार्य पूरे करना इतना आसान नहीं होता और चाहे वह किसी भी क्षेत्र से जुड़ा हो या कोई भी काम कर रहा हो, अगर कोई बताने और सहायता करने वाला हो तो यह हमेशा अच्छा होता है—यह अपने बलबूते कार्य करने से कहीं ज्यादा आसान होता है। फिर, लोगों में कितनी काबिलियत है या वे स्वयं क्या अनुभव कर सकते हैं, इसकी भी सीमाएं होती हैं। कोई भी इंसान हरफनमौला नहीं हो सकता; किसी एक व्यक्ति के लिए हर चीज को जानना, हर चीज में सक्षम होना, हर चीज को पूरा करना असंभव होता है—यह असंभव है और सबमें यह विवेक होना चाहिए। इसलिए तुम चाहे जो भी काम करो, यह महत्वपूर्ण हो या न हो, तुम्हें अपनी मदद करने के लिए हमेशा किसी ऐसे व्यक्ति की जरूरत पड़ेगी जो तुम्हें सुझाव और सलाह दे सके या तुम्हारे साथ सहयोग करते हुए काम कर सके। काम को ज़्यादा सही ढंग से करने, कम गलतियाँ करने और कम भटकने का यही एकमात्र तरीका है—यह अच्छी बात है(वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद आठ : वे दूसरों से केवल अपने प्रति समर्पण करवाएँगे, सत्य या परमेश्वर के प्रति नहीं (भाग एक))। सहयोग के महत्व और महत्ता के बारे में परमेश्वर बहुत स्पष्टता से बोलता है। कोई व्यक्ति कितना भी सक्षम क्यों न हो, वह सर्वशक्तिमान नहीं हो सकता; सभी को दूसरों की मदद की आवश्यकता होती है। सहयोग करके हम एक-दूसरे की कमियों को पूरा कर भटकने से बच सकते हैं, जिससे कलीसिया के काम को भी लाभ होता है। सामान्य मानवता रखने वाले और विवेकशील व्यक्ति को लोगों के साथ सहयोग करना और उनकी राय सुननी चाहिए। हालाँकि जहाँ तक मेरी बात है, मैं सिंचन कार्य की पर्यवेक्षक थी और मुझे लगता था कि मेरे पास कुछ अनुभव और काबिलियत है, मैं थोड़ी विदेशी भाषा जानती हूँ, और कुछ काम करने में काबिल भी लगती हूँ, मैंने अक्सर अपने दिमाग और अपने अनुभव का उपयोग करके अपना कर्तव्य किया, शायद ही कभी सत्य सिद्धांतों की तलाश की। मेरे पास जो कुछ भी था, उस पर भरोसा करते हुए, मुद्दों पर मेरा दृष्टिकोण हमेशा सटीक या व्यापक नहीं होता था, अक्सर विचलन हो जाता था और मेरे काम के परिणाम हमेशा खराब होते थे। मेरी तुलना में एमिली ज्यादा काबिल थी और वह सत्य बेहतर समझती थी। समस्याओं का सामना करते समय वह सत्य सिद्धांतों की तलाश करती थी और जब उसकी भ्रष्टता उजागर होती तो वह खुद पर विचार करती और समझती थी। उसकी खूबियाँ ठीक वही थीं जिनकी मुझमें कमी थी। परमेश्वर ने मेरे साथ मुझसे बेहतर साथी को रखा था ताकि हम एक-दूसरे के पूरक बन सकें और अपने कर्तव्यों को अच्छी तरह से निभा सकें। यह न केवल कलीसिया के काम के लिए बल्कि मेरे अपने जीवन के लिए भी फायदेमंद था। यह परमेश्वर द्वारा मेरे प्रति अपना प्यार दिखाना था। परमेश्वर का इरादा समझने के बाद मैंने उससे प्रार्थना की, “हे परमेश्वर, मैंने हमेशा एमिली से ईर्ष्या की है और उसके साथ प्रतिस्पर्धा करती रही हूँ, यहाँ तक कि उसे दबाती और उसका उपहास करती रही हूँ। अब मैं अंत में देखती हूँ कि तुमने मेरी कमियों की भरपाई करने के लिए एमिली को मेरे साथ काम करने के लिए व्यवस्थित किया है। मैं पूरे मन से तुम्हें धन्यवाद देती हूँ। अब से मैं एमिली के साथ ठीक से सहयोग करने और अपना कर्तव्य अच्छे से निभाने के लिए तैयार हूँ और मैं अब प्रतिष्ठा और रुतबे के पीछे नहीं भागूँगी।” उसके बाद मैंने एमिली को अपनी भ्रष्टता प्रकट होने के बारे में बताने की पहल की। संगति के बाद मुझे बहुत शांति महसूस की और हम एक-दूसरे के थोड़े करीब आ गए। उसके बाद अपना कर्तव्य निभाते समय मैं उसे एक प्रतियोगी के रूप में नहीं बल्कि एक सहायक के रूप में देखती। जब समूह के भीतर समस्याएँ होतीं तो मैं सक्रिय रूप से उन पर उससे संवाद और चर्चा करती। जब हम कुछ समझ न पाते तो मिलकर खोज करते और अपनी अंतर्दृष्टि पर संगति करते। इस तरह हम परमेश्वर के प्रबोधन और मार्गदर्शन को महसूस कर पाए और कुछ वास्तविक समस्याओं को हल करने में सक्षम हुए।

कुछ ही समय बाद एक भाई ने अपने कर्तव्य में लगातार लापरवाही बरतने के कारण काम को प्रभावित किया, हमें उसके साथ संगति कर उसे बर्खास्त करना था। मेरी परेशानी यह थी कि मैं उसके साथ स्पष्टता से संगति कर उसकी समस्याओं को इंगित नहीं कर सकती थी। मुझे लगा कि एमिली की सत्य पर संगति मेरी तुलना में अधिक ज्ञानवर्धक है, मैंने उसे संगति में शामिल होने के लिए कहने पर विचार किया। लेकिन मैंने आशंकित होकर सोचा, “अगर मैं उसे अपने काम में शामिल करने की पहल करती हूँ तो क्या मैं अक्षम नजर नहीं आऊँगी?” जब यह विचार आया, तो मुझे एहसास हुआ कि मेरी अवस्था सही नहीं है—मैं फिर से अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे की रक्षा करने की कोशिश कर रही थी। इसलिए मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की। मैंने परमेश्वर के ये वचन पढ़े : “लोग जिन भी चीजों पर ध्यान केंद्रित करते हैं, जहाँ भी प्रयास करते हैं, उसमें नतीजे प्राप्त करते हैं। अगर तुम हमेशा धर्मसिद्धांत पर ध्यान केंद्रित करते हो तो तुम केवल सिद्धांत ही प्राप्त करोगे; अगर तुम रुतबा और ताकत पाने पर ध्यान केंद्रित करते हो तो तुम्हारा रुतबा और ताकत मजबूत हो सकती है, लेकिन तुमने सत्य प्राप्त नहीं किया होगा, और तुम्हें हटा दिया जाएगा। तुम चाहे जो भी कर्तव्य करो, जीवन-प्रवेश महत्वपूर्ण चीज है। इस संबंध में तुम ढील नहीं बरत सकते, न ही लापरवाही बरत सकते हो(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, जीवन संवृद्धि के छह संकेतक)। “सामंजस्य से सहयोग करके ही लोग परमेश्वर के समक्ष धन्य हो सकते हैं, और व्यक्ति इसका जितना अधिक अनुभव करता है, उसमें उतनी ही अधिक वास्तविकता आती है, चलने पर उसका मार्ग उतना ही अधिक प्रकाशवान होता जाता है, और वह और भी अधिक सहज हो जाता है(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, सामंजस्‍यपूर्ण सहयोग के बारे में)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे अभ्यास करने का एक स्पष्ट मार्ग दिया; प्रतिष्ठा और रुतबे के पीछे भागना परमेश्वर का विरोध करने का मार्ग है जो अंततः केवल हटाए जाने की ओर ले जा सकता है। मैं इस बारे में चिंता नहीं कर सकती थी कि मेरा रुतबा सुरक्षित है या नहीं और क्या भाई-बहन मेरे बारे में उच्च विचार रखते हैं। मुझे कलीसिया के काम पर विचार करना चाहिए और जो इसके लिए फायदेमंद हो वही करना चाहिए। यह सोचकर मुझे राहत मिली और मैंने एमिली को उस भाई के साथ संगति में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया। संगति के बाद उसे अपनी समस्याओं की प्रकृति के बारे में कुछ समझ मिली। मैंने आखिरकार अच्छी तरह से सहयोग करने की खुशी और शांति का अनुभव किया जो सत्य के अनुसार अभ्यास करने से आती है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर का धन्यवाद!

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