97. खतरे की घड़ी में चुनाव करना

कई साल पहले, जाड़े के मौसम में, एक उच्च अगुआ ने मुझे बताया कि एक पड़ोसी कलीसिया के अगुआओं और कार्यकर्ताओं को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था। कलीसिया में देखरेख का कुछ काम निपटाना था, और वहाँ भाई-बहनों की मदद के लिए कोई नहीं था। कुछ लोग डरपोक, निराश और कमजोर महसूस कर रहे थे, कलीसिया जीवन में भाग नहीं ले पा रहे थे। उन्होंने पूछा कि क्या मैं उस कलीसिया के कार्य की जिम्मेदारी लेने को तैयार हूँ। उनके यह पूछने पर मुझे थोड़ी दुविधा हुई : उस कलीसिया में कुछ भाई-बहनों को हाल ही में गिरफ्तार किया गया था। अगर मैंने उस कलीसिया का काम संभाला और गिरफ्तार हो गया, तो मेरा क्या होगा? इस उम्र में क्या मेरा शरीर सच में बड़े लाल अजगर की यातना और पिटाई बर्दाश्त कर सकेगा? अगर यातना न झेल सका, और मैंने यहूदा बनकर परमेश्वर को धोखा दिया, तो क्या इतने वर्षों की मेरी आस्था बेकार नहीं हो जाएगी? मगर फिर मैंने सोचा कि मौजूदा हालात के संकट को देखते हुए, इस अहम घड़ी में कलीसिया के कार्य को आगे बढ़ाने के लिए किसी की जरूरत थी, इसलिए मैं बेमन से राजी हो गया।

कलीसिया पहुँचने पर, बहन वैंग शिन्जिंग ने मुझे बताया कि कुछ अगुआओं, कार्यकर्ताओं और भाई-बहनों को गिरफ्तार कर लिया गया था, पूरी कलीसिया में वह सिर्फ कुछ ही भाई-बहनों से संपर्क कर पाई थी। कलीसिया के ज्यादातर सदस्यों से उसका संपर्क नहीं हो पाया था और इसलिए वे इकट्ठा नहीं हो पाए थे। यह सुनकर मैंने मन-ही-मन सोचा : "बड़ा लाल अजगर हम पर निगरानी के लिए हमारे पड़ोसियों का इस्तेमाल कर रहा है। अगर मैं वहां जाकर इन भाई-बहनों का साथ दूँ, और यह देख पड़ोसी मेरी रिपोर्ट कर दें, तो क्या होगा? बहुत-से भाई-बहन गिरफ्तार हो चुके थे—अगर इनमें से कोई भी यातना न सह पाया और दूसरे भाई-बहनों का ठिकाना बता दिया, तो पुलिस उनकी निगरानी करेगी। फिर क्या इन भाई-बहनों से मिलने जाकर मैं सीधे उनके फंदे में नहीं फँस जाऊंगा? अगर मैं गिरफ्तार हो गया, यातना बर्दाश्त न कर यहूदा बन गया, तो कहीं विश्वासी के रूप में मेरे दिन गिने-चुने न रह जाएँ? तब निश्चित रूप से मुझे उद्धार नहीं मिलेगा।" मैंने जितना सोचा, उतना ही ज्यादा डर गया, लगा कि वहाँ अपना कर्तव्य निभाना ज्यादा ही खतरनाक था। यह बारूद की खान में चलने जैसा लगा—एक गलत कदम और सब-कुछ खत्म। तब इस कलीसिया में काम की देखरेख करने आने पर मुझे पछतावा होने लगा, मैं अपना कर्तव्य निभाने को प्रेरित नहीं हो सका। फिर मैंने सोचा, "शिन्जिंग इस कलीसिया की सदस्य है, यहाँ के पूरे हालात से ज्यादा परिचित है, तो भाई-बहनों से मिलने जाना उसके लिए ज्यादा सुविधाजनक होगा। मैं तो अभी-अभी आया हूँ, काम में तेज नहीं हो पाया हूँ। भाई-बहनों से मिलने के लिए मैं शिन्जिंग को भेज सकता हूँ, इस तरह मुझे खुद जोखिम मोल लेने की जरूरत नहीं होगी।" मगर फिर मैंने सोचा, "शिन्जिंग को अनेक सिद्धांतों की अच्छी समझ नहीं है, वह अनुभवी नहीं है। ये सब देखते हुए क्या वह सच में देखरेख का काम कर सकेगी? क्या वह भाई-बहनों के मसले सुलझा सकेगी? लेकिन अगर मैं खुद गया, तो क्या खुद को विपत्ति में नहीं झोंक दूँगा?" सोच-विचार के बाद, मैंने शिन्जिंग से वह काम करवाने का फैसला लिया। मगर कुछ दिन बाद भी, उसने कोई तरक्की नहीं की थी। यह देखकर मैं जान गया कि भाई-बहनों का साथ देने मुझे ही जाना होगा। वरना, उनकी समस्याएँ दूर नहीं होंगी और उनका जीवन-प्रवेश तबाह हो जाएगा। लेकिन मौजूदा हालात के खतरे देखते हुए भाई-बहनों से संपर्क करते ही मुझ पर गिरफ्तारी का खतरा मंडराने लगेगा। इसलिए मैंने यह काम खुद करने की हिम्मत ही नहीं की। नतीजतन, एक पूरा महीना गुजर जाने पर भी हमने कलीसिया कार्य में ज्यादा प्रगति नहीं की। शिन्जिंग निराशा की स्थिति में जी रही थी। मैं यह जानता था, लेकिन उन दिनों मैं बुजदिली और डर में जी रहा था, इसलिए मैंने काम में उसके साथ साझेदारी की हिम्मत नहीं की।

एक दिन, अपने बाएँ घुटने में मुझे थोड़ा दर्द महसूस हुआ, कुछ ही दिनों में यह एक गुब्बारे की तरह सूज गया और काला-नीला पड़ गया। दर्द इतना तेज था कि मैं चल भी नहीं पा रहा था। तब एहसास हुआ कि शायद परमेश्वर मुझे अनुशासित कर रहा है, मैंने उससे प्रार्थना की, मुझे प्रबुद्ध करने की विनती की ताकि मैं उसके इरादे जान सकूँ। प्रार्थना के बाद, मैंने परमेश्वर के वचनों का यह अंश देखा। "उसका दुःख मानवजाति के कारण है, जिसके लिए उसकी आशाएँ हैं, किंतु जो अंधकार में गिर गई है, क्योंकि जो कार्य वह मनुष्यों पर करता है, वह उसकी अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतरता और जिस मानवजाति से वह प्रेम करता है, वह समस्त मानवजाति प्रकाश में नहीं जी सकती। वह मासूम मानवजाति के लिए, ईमानदार किंतु अज्ञानी मनुष्य के लिए, उस मनुष्य के लिए जो अच्छा तो है लेकिन जिसमें अपने विचारों की कमी है, दुःख अनुभव करता है। उसका दुःख उसकी अच्छाई और करुणा का प्रतीक है, सुंदरता और दया का प्रतीक है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के स्वभाव को समझना बहुत महत्वपूर्ण है)। परमेश्वर के वचनों का मुझ पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। खासतौर से जब मैंने परमेश्वर के ये वचन पढ़े : "उसका दुःख मानवजाति के कारण है, जिसके लिए उसकी आशाएँ हैं, किंतु जो अंधकार में गिर गई है," मैंने बहुत दोषी महसूस किया। बड़े लाल अजगर की गिरफ्तारियों के कारण भाई-बहन सामान्य कलीसिया-जीवन नहीं जी पा रहे थे, वे अवसाद और अँधेरे में डूब गए और उनका जीवन तबाह हो गया। यह देख परमेश्वर चिंतित और व्यथित हो गया, उसे उम्मीद थी कि कोई जल्द ही उसकी इच्छा का पालन करेगा और तुरंत भाई-बहनों की मदद को आएगा ताकि वे सामान्य कलीसिया जीवन जी सकें। लेकिन अपनी बात कहूँ, तो मैंने अपनी सुरक्षा के लिए अपना काम शिन्जिंग को सौंप दिया, और एक नीच जिंदगी जीना चुनकर अपने कवच में दुबक गया। मैं साफतौर पर जानता था कि भाई-बहन अपना सामान्य कलीसिया जीवन नहीं जी पा रहे थे, और उनका जीवन तबाह हो चुका था, लेकिन मैंने वह मसला सुलझाने के लिए कदम नहीं बढ़ाए। मेरी मानवता कहाँ थी? मैं बेहद स्वार्थी और घिनौना हो गया था! मैंने सोचा कि आमतौर पर खतरनाक हालात में न होने पर मैं खुद को एक ऐसा इंसान मानता था जो परमेश्वर से प्रेम करता है और त्याग कर खुद को खपाने में समर्थ है। मैं अक्सर दूसरों से परमेश्वर से प्रेम कर उसे संतुष्ट करने की जरूरत पर संगति भी करता था। लेकिन इस हालात का सामना करते हुए मैं बस अपनी सुरक्षा के बारे में ही सोच पा रहा था। मैंने परमेश्वर की इच्छा या इस बात पर बिल्कुल विचार नहीं किया कि भाई-बहनों का जीवन तबाह हो जाएगा। मैंने देखा कि मैं अभी-अभी सैद्धांतिक ज्ञान की बातें कर रहा था—परमेश्वर और लोगों से छल कर रहा था। यह परमेश्वर का दिल दुखाने वाला और घिनौना था। इसका एहसास होने पर, मुझे गहरा पछतावा हुआ और मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की : "प्रिय परमेश्वर, मैं हमेशा अपने ही हितों को बचाता हूँ, तुम्हारी इच्छा का ख्याल रखने में नाकाम हूँ। मुझमें सचमुच जमीर और समझ नहीं है। हे परमेश्वर, मैं तुम्हारी इच्छा मानने और भाई-बहनों का साथ देने की लगन से कोशिश करने को तैयार हूँ।"

इसके बाद, मैंने भाई-बहनों की मदद करना, साथ देना और उनके मसले सुलझाना शुरू कर दिया। एक दिन मैंने एक बहन को कहते हुए सुना : "दो साल पहले, इस कलीसिया के दस से ज्यादा भाई-बहन गिरफ्तार हो गए थे। अभी भी, उनमें से कुछ को रिहा नहीं किया गया है। पुलिस ने धमकी भी दी है कि वे हमारी कलीसिया को मिट्टी में मिला देंगे।" यह सुनकर मैं बहुत नाराज हुआ—ये दानव इतने घमंडी और अत्याचारी थे! लेकिन मैं भीतर से भयभीत भी हो गया : दो साल बाद ही, उन्होंने आकर और भी बहुत-से सदस्यों को गिरफ्तार किया था। उन्होंने कलीसिया को मिट्टी में मिलाने की धमकी दी थी। अगर पुलिस को पता चल गया कि मैं कलीसिया अगुआ हूँ, तो क्या मैं उनका पहला निशाना नहीं बन जाऊंगा? गिरफ्तारी के बाद भाई-बहनों को कैसी यातना दी गई इस विचार से ही मैं डर से सिहर उठा। अगर मुझे सच में गिरफ्तार कर लिया गया, तो क्या मैं उनकी यातना सह सकूँगा? अगर मुझे पीट-पीटकर मार डाला गया या मैं यहूदा बन गया, तो क्या यह मेरा अंत नहीं होगा? जब मैंने सुना कि और भी ज्यादा भाई-बहन गिरफ्तार हो चुके थे, तो लगा कि ऐसे माहौल में अपना कर्तव्य निभाना कुछ ज्यादा ही खतरनाक है। लगा जैसे किसी भी पल पुलिस मुझे गिरफ्तार कर सकती है, मैंने बेहद डरपोक और भयभीत महसूस किया। एक दिन, मैंने परमेश्वर के वचनों का यह अंश देखा। "शैतान चाहे जितना भी 'सामर्थ्यवान' हो, चाहे वह जितना भी दुस्साहसी और महत्वाकांक्षी हो, चाहे नुकसान पहुँचाने की उसकी क्षमता जितनी भी बड़ी हो, चाहे मनुष्य को भ्रष्ट करने और लुभाने की उसकी तकनीकें जितनी भी व्यापक हों, चाहे मनुष्य को डराने की उसकी तरकीबें और योजनाएँ जितनी भी चतुराई से भरी हों, चाहे उसके अस्तित्व के रूप जितने भी परिवर्तनशील हों, वह कभी एक भी जीवित चीज सृजित करने में सक्षम नहीं हुआ, कभी सभी चीजों के अस्तित्व के लिए व्यवस्थाएँ या नियम निर्धारित करने में सक्षम नहीं हुआ, और कभी किसी सजीव या निर्जीव चीज पर शासन और नियंत्रण करने में सक्षम नहीं हुआ। ब्रह्मांड और आकाश के भीतर, एक भी व्यक्ति या चीज नहीं है जो उससे पैदा हुई हो, या उसके कारण अस्तित्व में हो; एक भी व्यक्ति या चीज नहीं है जो उसके द्वारा शासित हो, या उसके द्वारा नियंत्रित हो। इसके विपरीत, उसे न केवल परमेश्वर के प्रभुत्व के अधीन रहना है, बल्कि, परमेश्वर के सभी आदेशों और आज्ञाओं का पालन करना है। परमेश्वर की अनुमति के बिना शैतान के लिए जमीन पर पानी की एक बूँद या रेत का एक कण छूना भी मुश्किल है; परमेश्वर की अनुमति के बिना शैतान धरती पर चींटियों का स्थान बदलने के लिए भी स्वतंत्र नहीं है, परमेश्वर द्वारा सृजित मानव-जाति की तो बात ही छोड़ दो। परमेश्वर की दृष्टि में, शैतान पहाड़ पर उगने वाली कुमुदनियों से, हवा में उड़ने वाले पक्षियों से, समुद्र में रहने वाली मछलियों से, और पृथ्वी पर रहने वाले कीड़ों से भी तुच्छ है। सभी चीजों के बीच उसकी भूमिका सभी चीजों की सेवा करना, मानव-जाति के लिए कार्य करना, और परमेश्वर के कार्य और उसकी प्रबंधन-योजना के काम आना है" (वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है I)। परमेश्वर के वचनों से एहसास हुआ कि सारी चीजें परमेश्वर के नियंत्रण में हैं। शैतान चाहे जितना भी क्रूर क्यों न हो, वह अब भी परमेश्वर के प्रभुत्व में है। परमेश्वर की हामी के बिना शैतान कोई गलत कदम नहीं उठा सकता। मुझे याद आया कि जब परमेश्वर की हामी के बिना अय्यूब की परीक्षा हुई थी, तो शैतान उसके शरीर को ही जख्मी कर पाया था, मगर अय्यूब का जीवन नहीं छीन सका था। मैंने जिस हालात में खुद को पाया, उसमें मेरी गिरफ्तारी क्या पूरी तरह परमेश्वर के हाथ में नहीं थी? शैतान चाहे जितना भी क्रूर और खूंख्वार क्यों न हो, परमेश्वर की हामी के बिना, भले ही बड़ा लाल अजगर मुझे पकड़ने की कोशिश करे, वह अपनी मनमानी नहीं कर सकता। अगर परमेश्वर ने हामी भर दी, तो कोशिश करने के बाद भी मैं भाग नहीं सकूँगा। मेरा जीवन परमेश्वर के हाथ में था और उस पर शैतान का कोई काबू नहीं था। परमेश्वर के वचनों पर मनन कर मुझे उसके अधिकार और संप्रभुता का थोड़ा ज्ञान हासिल हुआ, और मैंने कम डरपोक और काफी ज्यादा आजाद महसूस किया। मैं ऐसी व्यवस्था करना चाहता था कि भाई-बहन फौरन अपना कलीसिया जीवन फिर से जी सकें। उस दौरान, शिन्जिंग और मैंने प्रार्थना की और परमेश्वर पर भरोसा किया। हमने भाई-बहनों से संपर्क किया और उन्हें सहारा दिया। नतीजतन, वे धीरे-धीरे सभाओं में आने लगे, अपना कलीसिया जीवन जीने लगे और पूरी लगन से अपना कर्तव्य निभाने लगे।

बाद में, गिरफ्तार होने के बाद रिहा की गई एक बहन ने मुझे पत्र लिखकर सूचित किया कि मेरा ठिकाना बता दिया गया है। पुलिस पहले से जानती थी कि मैं एक अगुआ हूँ और किस गाँव में रहता हूँ, उन्होंने यह भी कहा कि वे सुरक्षा ब्यूरो से मेरे खिलाफ वारंट जारी करवा देंगे। मुझे ढूँढकर पहचानने के लिए पुलिस बहन को मेरे गाँव भी ले गई थी, लेकिन निगरानी फुटेज के गुम हो जाने से उनकी योजना नाकाम हो गई थी। यह जानकर मेरा कलेजा मुँह को आ गया, मैं बुरी तरह बेचैन और भयभीत हो गया। पुलिस के पास पहले से मेरी इतनी सारी जानकारी थी कि मैं कभी भी गिरफ्तार हो सकता था। अगर मैं गिरफ्तार हो जाता तो मुझे जरूर यातना दी जाती और सताया जाता। मैंने जितना ज्यादा सोचा, उतना ही भयभीत हो गया, अस्थाई रूप से कमजोरी में डूब गया। लगा जैसे बड़े लाल अजगर की जमीन पर परमेश्वर में विश्वास रखना टेढ़ी खीर था, हर कदम पर मौत का खतरा मेरी प्रतीक्षा कर रहा था। तब मैंने सोचा : "शायद मैं अपने रिश्तेदारों के यहाँ थोड़े समय के लिए छिप सकता हूँ। मामला थोड़ा ठंडा पड़ जाए, तो कर्तव्य निभाना शुरू कर सकता हूँ।" मगर फिर मुझे याद आया कि कुछ भाई-बहन डरपोक, निराश और कमजोर महसूस कर रहे थे, उन्हें सिंचन और सहारे की सख्त जरूरत थी। अगर इस अहम घड़ी में मैंने अपना पद छोड़ दिया, तो क्या मैं परमेश्वर से विद्रोह कर उसका दिल नहीं दुखाऊंगा? मैंने बहुत दुखी और संतप्त महसूस किया, नहीं जान सका कि क्या करना चाहिए, तो मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, कर्तव्य निभाते रहने की शक्ति और आस्था देने की विनती की। प्रार्थना के बाद, मैंने उसके वचनों का यह अंश देखा। "मुख्य भूमि चीन में बड़े लाल अजगर ने परमेश्वर के विश्वासियों का क्रूर दमन, गिरफ्तारियाँ और उत्पीड़न जारी रखा हुआ है, जो अक्सर कुछ खतरनाक परिस्थितियों का सामना करते हैं। उदाहरण के लिए, सरकार तरह-तरह के बहानों से आस्था रखने वालों को तलाश रही है। जब उन्हें कोई ऐसा क्षेत्र मिलता है, जिसमें कोई मसीह-विरोधी रहता है, तो वह मसीह-विरोधी सबसे पहले क्या सोचता है? वह कलीसिया का कार्य ठीक से व्यवस्थित करने की बात नहीं सोचता; बल्कि वह यह सोचता है कि इस कठिन स्थिति से कैसे बचा जाए। जब कलीसिया उत्पीड़न या गिरफ्तारियों का सामना करती है, तो मसीह-विरोधी गिरफ्तारी के बाद की परिस्थिति से निपटने का काम नहीं करता। वह कलीसिया के महत्वपूर्ण संसाधनों या कर्मियों के बचाव की कोई योजना नहीं बनाता; इसके बजाय, वह अपने लिए सुरक्षित स्थान खोजने की खातिर तमाम तरह के हीले-हवाले और बहाने सोचता है, और खुद को वहाँ स्थापित करने के बाद मामला खत्म समझ लेता है। ... मसीह-विरोधी के दिल की गहराइयों में, उसकी व्यक्तिगत सुरक्षा सबसे महत्वपूर्ण और वह केंद्रीय मुद्दा होती है, जिसकी वह खुद को लगातार याद दिलाता रहता है। वह मन ही मन सोचता है, 'मुझे अपने साथ कुछ भी नहीं होने देना चाहिए। मैं गिरफ्तार नहीं हो सकता, चाहे और कोई भी हो जाए। मेरा जीते रहना जरूरी है। मैं अभी भी परमेश्वर का कार्य पूरा होने पर उसके साथ खुद को मिलने वाली महिमा की प्रतीक्षा कर रहा हूँ। अगर मैं पकड़ा गया, तो यहूदा बन जाऊँगा—और अगर मैं यहूदा बन गया, तो मेरा काम तमाम हो जाएगा; मेरे पास कोई परिणाम नहीं होगा और मैं उचित दंड पाऊँगा।' ... मसीह-विरोधी जब खुद को सुरक्षित रूप से स्थापित कर लेता है और महसूस करता है कि उसके साथ कुछ बुरा नहीं होगा, कि उसके सामने कोई संकट नहीं है, तभी वह कुछ सतही कार्य करता है। मसीह-विरोधी चीजों को बहुत सावधानी से व्यवस्थित करता है, लेकिन यह इस बात पर निर्भर करता है कि वह किसके लिए कार्य कर रहा है। अगर कार्य उसके लिए फायदेमंद है, तो वह उस पर बहुत अच्छी तरह से विचार करेगा, लेकिन बात जब कलीसिया के कार्य की आती है या उसका मसीह-विरोधी के कर्तव्य से कुछ संबंध होता है, तो वह अपना स्वार्थ और नीचता, अपनी गैर-जिम्मेदारी दिखाता है, और उसके पास लेशमात्र भी जमीर या विवेक नहीं होता। ऐसे व्यवहार के कारण ही उसे मसीह-विरोधी के रूप में चित्रित किया जाता है" (वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ : वे अपना कर्तव्य केवल खुद को अलग दिखाने और अपने हितों और महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए निभाते हैं; वे कभी परमेश्वर के घर के हितों की नहीं सोचते, और अपने व्यक्तिगत यश के बदले उन हितों के साथ धोखा तक कर देते हैं (भाग दो))। परमेश्वर ने खुलासा किया कि मसीह-विरोधी किस तरह से खासे स्वार्थी और मानवता-विहीन होते हैं। वे सिर्फ अपने हितों और खुशहाली के बारे में सोचते हैं, कलीसिया के कार्य को लेकर कोई चिंता नहीं दिखाते। शांति के समय, वे लोगों के सामने झूठा दिखावा करते हैं कि उनमें कर्तव्य निभाने का जूनून है, लेकिन खतरे या निजी सुरक्षा पर जोखिम के हालात की जरा-सी निशानी दिखते ही, वे कर्तव्य निभाना छोड़कर अपने कवच में दुबक जाते हैं। इससे कलीसिया के कार्य या भाई-बहनों का चाहे जितना भी नुकसान हो, इन मसीह-विरोधियों को जरा भी परवाह नहीं होती। मुझे एहसास हुआ कि मेरे कर्म भी मसीह-विरोधी से कुछ अलग नहीं थे। जब कोई खतरा सामने न होता, तो बाहर से लगता कि मैं अपने कर्तव्य में कष्ट झेलकर खुद को खपा सकता हूँ, लेकिन जब चीजें खतरनाक हो गईं, तो मैं दुबक गया, सिर्फ खुद को बचाने और जोखिम वाला कर्तव्य बहन को सौंप देने की सोचने लगा। कलीसिया के कार्य में तरक्की नहीं हुई, मैं निष्क्रियता से देखता रहा, और भाई-बहन कलीसिया जीवन का आनंद नहीं ले पाए। मैंने मौके पर खरा उतरकर कलीसिया का कार्य नहीं किया, और अनुशासित किए जाने पर उससे अलग हो गया। यह सुनकर कि मेरा ठिकाना बता दिया गया था और पुलिस मेरी तलाश कर रही थी, मैंने अपना पद छोड़ देना चाहा, कलीसिया के कार्य पर जरा भी विचार नहीं किया। मैं बहुत स्वार्थी और घिनौना था, मैंने एक विश्वासी की तरह बिल्कुल काम नहीं किया। परमेश्वर में मेरी सच्ची आस्था कहाँ थी? उस हालात की वास्तविकता ने खुलासा किया कि मैं एक मसीह-विरोधी जैसा स्वार्थी था और मुझमें जरा भी जमीर या समझ नहीं थी। जब भी मुझे खतरा महसूस होता, मैं कर्तव्य निभाना छोड़ कर अपनी सुरक्षा का रास्ता ढूँढ लेना चाहता। मुझमें परमेश्वर के प्रति जरा भी वफादारी नहीं थी और यह उसके लिए घिनौनी बात थी। अपने बारे में यह एहसास करके मुझे बहुत पछतावा और अपराध-बोध हुआ। मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश देखा। "तुम सब लोगों को शायद ये वचन स्मरण हों : 'क्योंकि हमारा पल भर का हल्का सा क्लेश हमारे लिये बहुत ही महत्वपूर्ण और अनन्त महिमा उत्पन्न करता जाता है।' तुम सब लोगों ने पहले भी ये वचन सुने हैं, किंतु तुममें से कोई भी इनका सच्चा अर्थ नहीं समझा। आज, तुम उनकी सच्ची महत्ता से गहराई से अवगत हो। ये वचन परमेश्वर द्वारा अंत के दिनों के दौरान पूरे किए जाएँगे, और वे उन लोगों में पूरे किए जाएँगे जिन्हें बड़े लाल अजगर द्वारा निर्दयतापूर्वक उत्पीड़ित किया गया है, उस देश में जहाँ वह कुण्डली मारकर बैठा है। बड़ा लाल अजगर परमेश्वर को सताता है और परमेश्वर का शत्रु है, और इसीलिए, इस देश में, परमेश्वर में विश्वास करने वाले लोगों को इस प्रकार अपमान और अत्याचार का शिकार बनाया जाता है, और परिणामस्वरूप, ये वचन तुम लोगों में, लोगों के इस समूह में, पूरे किए जाते हैं। चूँकि परमेश्वर का कार्य उस देश में आरंभ किया जाता है जो परमेश्वर का विरोध करता है, इसलिए परमेश्वर के कार्य को भयंकर बाधाओं का सामना करना पड़ता है, और उसके बहुत-से वचनों को संपन्न करने में समय लगता है; इस प्रकार, परमेश्वर के वचनों के परिणामस्वरूप लोग शुद्ध किए जाते हैं, जो कष्ट झेलने का भाग भी है। परमेश्वर के लिए बड़े लाल अजगर के देश में अपना कार्य करना अत्यंत कठिन है—परंतु इसी कठिनाई के माध्यम से परमेश्वर अपने कार्य का एक चरण पूरा करता है, अपनी बुद्धि और अपने अद्भुत कर्म प्रत्यक्ष करता है, और लोगों के इस समूह को पूर्ण बनाने के लिए इस अवसर का उपयोग करता है। लोगों की पीड़ा के माध्यम से, उनकी क्षमता के माध्यम से, और इस कुत्सित देश के लोगों के समस्त शैतानी स्वभावों के माध्यम से परमेश्वर अपना शुद्धिकरण और विजय का कार्य करता है, ताकि इससे वह महिमा प्राप्त कर सके, और ताकि उन्हें प्राप्त कर सके जो उसके कर्मों की गवाही देंगे। इस समूह के लोगों के लिए परमेश्वर द्वारा किए गए सारे त्यागों का संपूर्ण महत्व ऐसा ही है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, क्या परमेश्वर का कार्य उतना सरल है जितना मनुष्य कल्पना करता है?)। परमेश्वर के वचनों पर मनन करके मुझे उसके इरादों का भान हुआ। यह अनिवार्य और परमेश्वर द्वारा पूर्व-निर्धारित था कि सीसीपी के अधिकार-क्षेत्र में रहने वाले हम विश्वासियों को उत्पीड़न और मुश्किलों का सामना करना ही होगा। परमेश्वर बड़े लाल अजगर के उत्पीड़न का इस्तेमाल हमारी आस्था और प्रेम को पूर्ण करने के लिए करता है। लेकिन खतरनाक हालात का सामना होने पर मैंने परमेश्वर की इच्छा नहीं खोजी, सिर्फ अपनी सुरक्षा की परवाह करने वाला डरपोक और भयभीत बन गया, और अपना कर्तव्य भी नहीं निभाना चाहा। मैं समझ गया कि मेरी आस्था सच में कमजोर थी और परमेश्वर के सामने गवाही देने के बदले मैं शैतान का हास्यपात्र बन गया था। इसका एहसास होने पर मुझे बहुत पछतावा हुआ, मैंने ऋणी महसूस किया, मैं अब अपना पद छोड़कर नीच जीवन नहीं जीना चाहता था। मैं समर्पण कर खुद को परमेश्वर के हाथों सौंप देना चाहता था। मैं गिरफ्तार हो जाऊंगा, जियूँगा या मरूंगा, इसकी व्यवस्था परमेश्वर के हाथों सौंपकर मैं खुश था। अगर मुझे बड़े लाल अजगर ने गिरफ्तार कर लिया, तो यह परमेश्वर की हामी से होगा, अगर इसमें मेरी मृत्यु भी हुई, तो भी मैं उसके लिए गवाही दूँगा। अगर उन्होंने मुझे गिरफ्तार नहीं किया, तो यह परमेश्वर की दया और संरक्षण के कारण होगा, और मैं कर्तव्य निभाने को उतना ही ज्यादा प्रेरित हो जाऊँगा। इसका एहसास होने पर मुझे थोड़ा और सुकून मिला, मेरी पहले की चिंता और डर गायब हो गए।

इसके बाद, मैंने आत्म-चिंतन किया : खतरे का सामना होने पर परमेश्वर की इच्छा मानने के बजाय मैंने अपने ही हितों का विचार क्यों किया? एक दिन मेरा ध्यान परमेश्वर के वचनों के एक अंश पर गया। "सभी भ्रष्ट लोग स्वयं के लिए जीते हैं। हर व्यक्ति अपनी सोचे बाकियों को शैतान ले जाये—यह मानव प्रकृति का निचोड़ है। लोग अपनी ख़ातिर परमेश्वर पर विश्वास करते हैं; जब वे चीजें त्यागते हैं और परमेश्वर के लिए स्वयं को खपाते हैं, तो यह धन्य होने के लिए होता है, और जब वे परमेश्वर के प्रति वफादार रहते हैं, तो यह पुरस्कार पाने के लिए होता है। संक्षेप में, यह सब धन्य होने, पुरस्कार पाने और स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने के उद्देश्य से किया जाता है। समाज में लोग अपने लाभ के लिए काम करते हैं, और परमेश्वर के घर में वे धन्य होने के लिए कोई कर्तव्य निभाते हैं। आशीष प्राप्त करने के लिए ही लोग सब-कुछ छोड़ते हैं दुःख का भी सामना कर सकते हैं : मनुष्य की शैतानी प्रकृति का इससे बेहतर प्रमाण नहीं है। जिन लोगों के स्वभाव बदल गए हैं, वे अलग हैं, उन्हें लगता है कि अर्थ सत्य के अनुसार जीने से आता है, कि इंसान होने का आधार ईश्वर के प्रति समर्पित होना, परमेश्वर का भय मानना और बुराई से दूर रहना है, कि परमेश्वर की आज्ञा स्वीकार करना स्वर्ग द्वारा आदेशित और पृथ्वी द्वारा स्वीकृत जिम्मेदारी है, कि परमेश्वर के प्राणी के कर्तव्य पूरे करने वाले लोग ही मनुष्य कहलाने के योग्य हैं—और अगर वे परमेश्वर से प्रेम करने और उसके प्रेम का प्रतिफल देने में सक्षम नहीं हैं, तो वे इंसान कहलाने योग्य नहीं हैं; उनकी दृष्टि में, अपने लिए जीना खोखला और अर्थहीन है। वे यह महसूस करते हैं कि लोगों को परमेश्वर को संतुष्ट करने के लिए, अपने कर्तव्य अच्छी तरह से पूरे करने के लिए जीना चाहिए, उन्हें एक सार्थक जीवन जीना चाहिए, ताकि जब उनके मरने का समय हो तब भी, वे संतुष्ट महसूस करें और उनमें जरा-सा भी पछतावा न हो, और यह कि वे व्यर्थ नहीं जिए हैं" (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, भाग तीन)। परमेश्वर के वचनों से मैं समझ सका कि खतरनाक हालात में लगातार मेरे खुद को बचाने और अपना कर्तव्य छोड़ देने की इच्छा रखने की वजह शैतान के फलसफों से दबी हुई मेरी सोच थी, जैसे कि "हर व्यक्ति अपनी सोचे, बाकियों को शैतान ले जाये।" "चीजों को प्रवाहित होने दें यदि वे किसी को व्यक्तिगत रूप से प्रभावित न करती हों," "फायदा न हो तो उंगली भी मत उठाओ," आदि-आदि। ये फलसफे मेरी प्रकृति का हिस्सा बन गए थे, और चाहे जो हो, मैं हमेशा अपना स्वार्थ देखकर ही कर्म करता था। जब कभी मेरे निजी हितों पर खतरा मंडराता, मैं परमेश्वर को धोखा देता था। मैंने सोचा कि जब से मैं उस कलीसिया में गया था, खतरनाक हालात में रखे जाने पर मैंने सिर्फ अपनी सुरक्षा की ही सोची। यह जानकर भी कि मुझे जल्द-से-जल्द उन भाई-बहनों को सहारा देना था, ताकि वे सामान्य कलीसिया जीवन जी सकें, मैं दूर छुपा रहा क्योंकि गिरफ्तार होने और यातना झेलने से डरता था, और मैंने कलीसिया के कार्य या अपनी बहन की सुरक्षा का जरा भी विचार किए बिना अपना काम बहन को सौंप दिया। यह देखकर भी कि बहन के लिए अकेले काम करना बहुत मुश्किल था, और भाई-बहन कलीसिया जीवन नहीं जी पा रहे थे, मैंने अपना कर्तव्य निभाने के लिए कदम आगे नहीं बढ़ाया। मैं शैतान के फलसफे के अनुसार जी रहा था। मैंने स्वार्थ और घिनौनेपन से काम किया, मुझमें जरा भी मानवता, जमीर और समझ नहीं थी। परमेश्वर उन्हें बचाता है जो उसके प्रति वफादार और आज्ञाकारी होते हैं, जो अहम घड़ियों में अपने निजी हितों का त्याग कर कलीसिया के कार्य की सुरक्षा पर ध्यान देते हैं; ऐसे ही लोगों को परमेश्वर पसंद कर आगे बढ़ाता है। लेकिन अहम घड़ियों में मैंने जहाज को मँझधार में छोड़ दिया, मुझमें परमेश्वर के प्रति ईमानदारी नहीं थी। अगर मैं पुलिस से बचकर नीच जीवन भी जीता रहता, तो मुझे इतना स्वार्थी और घिनौना देखकर, परमेश्वर मुझे क्यों बचाने की सोचता? मैंने सोचा कि परमेश्वर ने मानवता को बचाने के लिए किस तरह चीन में देहधारण किया, बेहद अपमान और कष्ट सहे, अपने वचन बोलने और कार्य करने के लिए भयंकर खतरे का सामना किया, बड़े लाल अजगर ने लगातार उसका पीछा किया और सताया, धार्मिक दुनिया ने उसे ठुकराया गया और बदनाम किया, लेकिन परमेश्वर ने हमें बचाना कभी नहीं छोड़ा। मानवजाति को बचाने के अपने एकचित्त प्रयास में परमेश्वर ने अपना सब-कुछ लगा दिया। परमेश्वर का सार अत्यंत नि:स्वार्थी और दयावान है। अपनी बात कहूँ, तो मुझमें परमेश्वर के प्रति जरा भी ईमानदारी नहीं थी, मैं अब भी स्वार्थ, घिनौनेपन और दगाबाजी में शैतान के फलसफे के अनुसार जी रहा था। अपना कर्तव्य निभाते समय मैंने सिर्फ अपनी सुरक्षा पर ही विचार किया, कलीसिया की कार्य की जरा भी रक्षा नहीं की। अगर मैंने प्रायश्चित्त नहीं किया तो परमेश्वर मुझसे ऊबकर मुझे त्याग देगा।

अपनी भक्ति में, मेरा ध्यान इस अंश पर गया। "जो परमेश्वर की सेवा करते हैं, वे परमेश्वर के अंतरंग होने चाहिए, वे परमेश्वर को प्रिय होने चाहिए, और उन्हें परमेश्वर के प्रति परम निष्ठा रखने में सक्षम होना चाहिए। चाहे तुम निजी कार्य करो या सार्वजनिक, तुम परमेश्वर के सामने परमेश्वर का आनंद प्राप्त करने में समर्थ हो, तुम परमेश्वर के सामने अडिग रहने में समर्थ हो, और चाहे अन्य लोग तुम्हारे साथ कैसा भी व्यवहार क्यों न करें, तुम हमेशा उसी मार्ग पर चलते हो जिस पर तुम्हें चलना चाहिए, और तुम परमेश्वर की ज़िम्मेदारी का पूरा ध्यान रखते हो। केवल इसी तरह के लोग परमेश्वर के अंतरंग होते हैं। परमेश्वर के अंतरंग सीधे उसकी सेवा करने में इसलिए समर्थ हैं, क्योंकि उन्हें परमेश्वर का महान आदेश और परमेश्वर की ज़िम्मेदारी दी गई है, वे परमेश्वर के हृदय को अपना हृदय बनाने और परमेश्वर की ज़िम्मेदारी को अपनी जिम्मेदारी की तरह लेने में समर्थ हैं, और वे अपने भविष्य की संभावना पर कोई विचार नहीं करते : यहाँ तक कि जब उनके पास कोई संभावना नहीं होती, और उन्हें कुछ भी मिलने वाला नहीं होता, तब भी वे हमेशा एक प्रेमपूर्ण हृदय से परमेश्वर में विश्वास करते हैं। और इसलिए, इस प्रकार का व्यक्ति परमेश्वर का अंतरंग होता है। परमेश्वर के अंतरंग उसके विश्वासपात्र भी हैं; केवल परमेश्वर के विश्वासपात्र ही उसकी बेचैनी और उसके विचार साझा कर सकते हैं, और यद्यपि उनकी देह पीड़ायुक्त और कमज़ोर होती, फिर भी वे परमेश्वर को संतुष्ट करने के लिए दर्द सहन कर सकते हैं और उसे छोड़ सकते हैं, जिससे वे प्रेम करते हैं। परमेश्वर ऐसे लोगों को और अधिक ज़िम्मेदारी देता है, और जो कुछ परमेश्वर करना चाहता है, वह ऐसे लोगों की गवाही से प्रकट होता है। इस प्रकार, ये लोग परमेश्वर को प्रिय हैं, ये परमेश्वर के सेवक हैं जो उसके हृदय के अनुरूप हैं, और केवल ऐसे लोग ही परमेश्वर के साथ मिलकर शासन कर सकते हैं। जब तुम वास्तव में परमेश्वर के अंतरंग बन जाते हो, तो निश्चित रूप से तुम परमेश्वर के साथ मिलकर शासन करते हो" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप सेवा कैसे करें)। परमेश्वर के वचनों से मुझे एहसास हुआ कि परमेश्वर उसकी इच्छा का पालन करने वालों और उसका बोझ उठाने वालों से प्रेम करता है। हालात कैसे भी क्यों न हों, कैसे भी कष्ट क्यों न झेलने पड़ें, आगे का रास्ता अंधकारमय क्यों न दिखे, वे परमेश्वर को संतुष्ट करने के लिए कोई भी तूफान झेल लेते हैं, और अपने हितों के बारे में नहीं सोचते। परमेश्वर आखिरकार ऐसे ही लोगों को हासिल करता है। उस अहम घड़ी में जब कलीसिया उत्पीड़न का सामना कर रही थी, मैं जानता था कि मुझे परमेश्वर की इच्छा माननी चाहिए, परमेश्वर की चिंताओं पर ध्यान देना चाहिए, कलीसिया के कार्य की रक्षा करनी चाहिए और अपनी जिम्मेदारियाँ और कर्तव्य निभाने चाहिए। इसका एहसास होने पर, मैंने एक संकल्प लिया : आगे जो भी खतरा हो, मैं परमेश्वर के दिल को सुकून पहुंचाने के लिए अपना कर्तव्य अच्छे से निभाऊंगा।

एक दिन मैंने सुना कि पड़ोसी कलीसिया का एक अगुआ गिरफ्तार कर लिया गया था। कलीसिया की किताबें फौरन किसी और जगह पहुंचानी थीं, वरना वे बड़े लाल अजगर के हाथ लग जातीं। तो मैंने किताबों को वहाँ से दूसरी जगह ले जाने में मदद के लिए बहन झांग यी से तुरंत संपर्क किया। जब मैं हमारे बैठक स्थल पर पहुंचा, तो वह घबराया हुआ चेहरा लेकर फौरन मेरे पास आई, और बोली कि उसका पीछा किया गया था। उनसे पीछा छुड़ाना बहुत मुश्किल था, और उसने मुझसे किताबों को जल्दी-से-जल्दी कहीं और ले जाने को कहा। यह सुनकर मेरा कलेजा मुँह को आ गया, मैं घबराकर डर गया। मैंने सोचा : "पुलिस हमारे पूरी तरह उजागर होने की ताक में कहीं छिपी हुई थी। अगर पुलिस ने टोह लेकर मुझे गिरफ्तार कर लिया, तो वे शायद वे मुझे पीट-पीट कर मार ही डालें।" मैंने जितना ज्यादा सोचा उतना ही ज्यादा भयभीत हो गया, चाहा कि किताबें हटाने का काम कोई और करे। लेकिन फिर मुझे याद आया कि झांग यी ने पुस्तक प्रबंधक के साथ हमारी मुलाकात का समय तय कर रखा था, किसी और को ढूँढ़ने का समय था ही नहीं। फिर, किताबें कहीं और पहुँचाने में जितनी देर होगी, खतरा उतना ही बढ़ेगा। इस दिमागी उथल-पुथल के बीच मुझे एहसास हुआ कि मैं डरपोक बन रहा था, आस्था और शक्ति पाने के लिए मैंने परमेश्वर को निरंतर पुकारा। तभी, मुझे परमेश्वर के वचनों का एक और अंश याद आया। "जो लोग परमेश्वर के प्रति निष्ठावान होते हैं, वे स्पष्ट रूप से जानते हैं कि परिवेश खतरनाक है, लेकिन फिर भी, वे बुआई के बाद की घास की सफाई करने का कार्य सँभालने का जोखिम उठाते हैं, और वे परमेश्वर के घर को होने वाले नुकसान को न्यूनतम रखते हैं। वे अपनी सुरक्षा को प्राथमिकता नहीं देते। तुम लोग इसे क्या कहते हो : क्या लोग अपनी सुरक्षा की जरा-भी परवाह नहीं कर सकते? अपने परिवेश के खतरों से कौन वाकिफ नहीं होता? लेकिन तुम्हें अपना कर्तव्य पूरा करने के लिए जोखिम उठाने चाहिए। यह कर्तव्य तुम्हारी जिम्मेदारी है। तुम्हें अपनी व्यक्तिगत सुरक्षा को प्राथमिकता नहीं देनी चाहिए। परमेश्वर के घर का कार्य और वह जो परमेश्वर तुम्हें सौंपता है, सबसे महत्वपूर्ण हैं, और उन्हें प्राथमिकता देना सभी चीजों से ऊपर है" (वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ : वे अपना कर्तव्य केवल खुद को अलग दिखाने और अपने हितों और महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए निभाते हैं; वे कभी परमेश्वर के घर के हितों की नहीं सोचते, और अपने व्यक्तिगत यश के बदले उन हितों के साथ धोखा तक कर देते हैं (भाग दो))। जो परमेश्वर के प्रति वफादार होते हैं, वे उसकी इच्छा मान सकते हैं। हालात जितने भी खतरनाक क्यों न हों, वे देखरेख का काम पूरा करने के लिए सारे जोखिम उठा सकते हैं, अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी कर सकते हैं। मैंने सोचा कि इतने वर्षों की आस्था में, मैंने परमेश्वर के वचनों के सिंचन और पोषण का काफी आनंद उठाया था, तो अब कर्तव्य निभाने का समय आ चुका है। अब जबकि कलीसिया के हितों से समझौता हो रहा था, तो मैं अपने जमीर को धोखा देकर अलग नहीं रह सकता था। हालात जितने भी खतरनाक क्यों न हों, मुझे किताबों को वहाँ से दूसरी जगह ले जाने का मार्ग ढूँढ़ना होगा। मैं उन्हें बड़े लाल अजगर के हाथों नहीं पड़ने दे सकता। मैंने प्रभु यीशु के उन वचनों को याद किया जो कहते हैं : "क्योंकि जो कोई अपना प्राण बचाना चाहेगा वह उसे खोएगा, परन्तु जो कोई मेरे लिये अपना प्राण खोएगा वही उसे बचाएगा" (लूका 9:24)। कर्तव्य निभाते हुए मेरा गिरफ्तार हो जाना और पीट-पीट कर मार डाला जाना भी, सार्थक होगा, और परमेश्वर इसकी सराहना करेगा। मुझे याद आया कि परमेश्वर के लिए पतरस को कैसे क्रूस पर उल्टा लटका दिया गया था, पर उसने अपने जीवन की कोई फिक्र न कर, परमेश्वर की जबरदस्त और शानदार गवाही दी थी। मैं जानता था कि मुझे पतरस के कदमों पर चलना चाहिए, कैसे भी हालात आएँ, परमेश्वर के प्रति वफादार होना चाहिए, परमेश्वर के दिल को सुकून देने के लिए अच्छे से कर्तव्य निभाना चाहिए। इसके बाद, मैंने दूसरे भाई-बहनों के साथ साझेदारी की, हमने बड़े लाल अजगर से बचने के लिए दिमाग लड़ाया, और परमेश्वर की सुरक्षा के साथ किताबों को सफलतापूर्वक दूसरी जगह पहुँचा दिया।

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