72. झूठे अगुआ को रिपोर्ट करने से मिली सीख
जून 2021 में हमारी कलीसिया के दो अगुआ असली कार्य न करने के कारण बरखास्त कर दिए गए थे। जब मैंने उनके व्यवहार के गहन विश्लेषण पर संगति की तो एक बहन ने सवाल किया, “इन दो अगुआओं को बरखास्त किए जाने से पहले ही हमें उनकी समस्याओं की थोड़ा-बहुत जानकारी थी। साथ ही इन दिनों कलीसिया झूठे अगुआओं का भेद पहचानने के सत्य के बारे में संगति कर रही है, ताकि हर कोई उनके व्यवहार के बारे में थोड़ा-बहुत समझ ले। तो फिर इन दो अगुआओं को बरखास्त किए जाने से पहले किसी ने उनकी समस्याओं को रिपोर्ट क्यों नहीं किया?” उसकी बात सुनकर मैं बहुत विचलित हो गई। मैंने आत्म-चिंतन किया। झूठे अगुआओं का भेद पहचानने के बारे में इतने अधिक सत्य सिद्धांत सुनने के बावजूद मैंने अभी तक वास्तविक जीवन में सचेत होकर अपने आसपास के झूठे अगुआओं का भेद नहीं पहचाना था। कभी-कभी तो अगुआओं में कुछ समस्याएँ देखकर भी मैंने उदासीन रवैया अपनाए रखा। मुझे यह एहसास हुआ कि यह रवैया परमेश्वर के इरादों के अनुरूप नहीं है, इसलिए मैंने बदलना चाहा। मुझे इतना जागरूक होने की जरूरत थी कि अपने आसपास के लोगों, घटनाओं और वस्तुओं का भेद पहचान लूँ, अगुआओं के कार्य की निगरानी परमेश्वर की अपेक्षाओं के अनुसार करूँ और अगुआओं को सिद्धांतों के विरुद्ध कार्य करते देखने पर उनका मार्गदर्शन और मदद करूँ। अगर मैंने किसी झूठे अगुआ या किसी मसीह-विरोधी को पहचान लिया तो मुझे उसकी रिपोर्ट उच्च अगुआओं को कर कलीसिया के हितों की रक्षा करने की जरूरत थी।
बाद में मैं एक अन्य कलीसिया की अगुआ बहन वेंडी के साथ रही। शुरुआत में मुझे लगा कि उसका स्वभाव मधुर है, उसमें किसी अगुआ जैसी अकड़ नहीं है और वह मिलनसार है। लेकिन कुछ समय बाद मैंने देखा कि वह खराब मानवता को जीती है। वह काफी भुक्कड़ और आलसी लगती थी। जब उसे चीजें गंदी नजर आती थीं तो वह साफ करने की पहल नहीं करती थी, बल्कि सिर्फ जुबानी कह दिया करती थी। कभी-कभी तो जो काम वह खुद आसानी से कर सकती थी, उन्हें दूसरों से करने को कहती थी। उसके आसपास की सभी बहनें उसके व्यवहार से थोड़ा-बहुत नाखुश थीं। शुरुआत में मुझे लगा कि वेंडी अपनी मानवता को सिद्धांतों के अनुरूप नहीं जीती है और उसकी समस्याएँ इसी से जुड़ी हैं, इसलिए मैंने इसे गंभीरता से नहीं लिया। बाद में मैंने देखा कि वह अपने कमरे में अक्सर ऑनलाइन संगतियों में भाग लेती है, कभी-कभी तो वह डाइनिंग टेबल पर ही अपना लैपटॉप ले आती और संगति करते-करते ही खाना खाती और कभी-कभी देर रात तक संगति करती, लेकिन भाई-बहन कहते थे कि उसने शायद ही कभी उनके कर्तव्यों में आने वाली समस्याओं और कठिनाइयों का समाधान किया हो। शुरुआत में मुझे लगा कि एक कलीसिया अगुआ होने के नाते उसे कार्य के विभिन्न पहलुओं को देखना पड़ता है जो आसान नहीं है। मुझे यह नहीं लगा कि उसके कार्य में कुछ कमियाँ होना कोई बड़ी बात है। इसलिए मैंने उन चीजों पर ध्यान नहीं दिया। लेकिन बाद में मुझे लगा कि कुछ गलत है। एक कलीसिया अगुआ के रूप में उसका मूल कर्तव्य सत्य पर संगति करना और भाई-बहनों की समस्याएँ और कठिनाइयाँ हल करना था। वह अक्सर भाई-बहनों के साथ ऑनलाइन सभाएँ करती थी और बहुत व्यस्त दिखाई देती थी, लेकिन वह असली समस्याएँ हल नहीं करती थी। क्या वह असली कार्य किए बिना महज खोखले धर्म-सिद्धांतों का उपदेश नहीं दे रही थी? मुझे परमेश्वर की संगति याद आई जिसने यह उजागर किया कि कुछ झूठे अगुआ ऑनलाइन सभाओं में सारा दिन बिताते हुए व्यस्त नजर आते हैं, लेकिन वे केवल शब्द और धर्म-सिद्धांत बघारते हैं और सतही कार्य करते हैं। लेकिन जहाँ तक सत्य सिद्धांतों से जुड़े कार्य में वास्तविक समस्याओं की बात है, वे इन्हें खोज नहीं पाते या इन पर स्पष्ट रूप से संगति नहीं कर पाते और काफी सारा कार्य लटका देते हैं। मैंने सोचा कि कहीं वेंडी भी परमेश्वर द्वारा उजागर की गईं झूठी अगुआओं में से एक तो नहीं है। बाद में मैंने एक बहन को कहते सुना कि वेंडी सभाओं में सत्य वास्तविकताओं पर संगति या असली समस्याओं का समाधान नहीं कर पाती है। एक बार उस बहन की दशा काफी नकारात्मक थी और इससे उसके कर्तव्यों पर असर पड़ रहा था। यह जानकर वेंडी ने उसे सिर्फ परमेश्वर के वचनों के कुछ अंश भेजे और संगति नहीं की। साथ ही कुछ बहनें सामंजस्यपूर्ण सहयोग नहीं कर रही थीं और यह बात वेंडी को बताई गई थी, लेकिन उसने ये समस्याएँ हल करने के लिए उनके साथ संगति नहीं की। बाद में मैंने देखा कि चीजों को व्यवस्थित करते हुए वेंडी में विचारशीलता और सिद्धांतों की कमी है। एक बहन के पास वीडियो निर्माण का कर्तव्य था। वेंडी को लगा कि यह बहन नए विश्वासियों के सिंचन के लिए भी उपयुक्त है। वेंडी ने बहन की कर्तव्य की स्थिति को पहले से जाँचे बिना या सुपरवाइजर के साथ यह चर्चा किए बिना कि क्या यह ठीक रहेगा, वेंडी ने उसे सीधे नए विश्वासियों के सिंचन का अंशकालिक कार्य सौंप दिया। हर किसी को लगा कि वेंडी स्थिति के बारे में बहुत साधारण ढंग से सोच रही है, क्योंकि सिंचन के कर्तव्य के लिए नए विश्वासियों की दशाओं और कठिनाइयों को समय पर समझने और हल करने की जरूरत पड़ती है। इस कर्तव्य को अच्छे से निभाने के लिए काफी समय और ऊर्जा की जरूरत पड़ती है। वह बहन वीडियो निर्माण में कुशल थी और अगर ठीक से तालमेल न बैठाया गया तो नए विश्वासियों का सिंचन सौंपने से उसका मुख्य कर्तव्य लटक जाता। फिर भी वेंडी ने उसे नए विश्वासियों को सींचने में लगा दिया। वेंडी की कार्य व्यवस्था को देखकर मैं थोड़ी-सी भौचक्क हो गई और मैंने सोचा, “चीजों को व्यवस्थित करने में वह इतनी लापरवाह है, उसे बातचीत करना और खोजना नहीं आता। तो फिर वह कलीसिया के कार्य के महत्वपूर्ण मामलों को कैसे संभालेगी? क्या उसमें अगुआ होने की काबिलियत और कार्य क्षमता है? क्या वह सचमुच वास्तविक कार्य कर सकती है?” मैं मन-ही-मन सवाल करती रही और धुँधले तौर पर लगा कि वेंडी में कुछ समस्याएँ हैं। मैंने सोचा कि उच्च अगुआओं को रिपोर्ट भेज देनी चाहिए ताकि वे वेंडी के असली प्रदर्शन की जाँच करवाकर इसे समझ लें। लेकिन फिर मैंने सोचा, “अगर मेरी रिपोर्ट सही रही और वेंडी वाकई झूठी अगुआ निकली तो यह कलीसिया के कार्य की रक्षा करने वाला न्याय का कार्य होगा। लेकिन अगर मेरा नजरिया अस्पष्ट निकला और वेंडी में गंभीर समस्याएँ न मिलीं और वह कुछ वास्तविक कार्य कर सकती है तो क्या भाई-बहन यह नहीं कहेंगे कि मुझमें सत्य की समझ नहीं है, मैं आँख मूँदकर रिपोर्ट करती हूँ और बिना सोचे-समझे पंगा लेती हूँ? अगर इससे बाधा और गड़बड़ी पैदा होती है तो क्या वे यह नहीं कहेंगे कि मुझमें बुरी मानवता है और मैं एक अगुआ से ढंग से पेश नहीं आ सकती और उसकी लापरवाही से आलोचना करती हूँ? तब क्या उच्च अगुआ मुझे बरखास्त नहीं कर देंगे? अगर वेंडी को यह पता चल गया कि मैं उसकी समस्याएँ रिपोर्ट करती हूँ तो क्या उसके मन में मेरे लिए गाँठ नहीं पड़ जाएगी और वह मेरी समस्याओं का फायदा नहीं उठाएगी? मैं और वेंडी एक साथ रहती हैं और रोज एक-दूसरे को देखती हैं। वह कितना अजीब-सा रहेगा!” इन चीजों के बारे में सोचकर मैं झिझक गई और मैंने खुद को दिलासा दी, “मैंने जो देखा है वे बड़ी समस्याएँ नहीं हैं, बल्कि मानवता को जीने और कार्यक्षमता की छोटी-मोटी चूक हैं। उसे रोज ऑनलाइन संगतियाँ करते देखकर उसमें कुछ दायित्व-बोध लगता है। छोड़ो भी; मैं उसकी रिपोर्ट नहीं करूँगी। अगर वह वास्तव में असली कार्य नहीं करती है तो उसकी कलीसिया के भाई-बहन इस बारे में रिपोर्ट कर देंगे। अगुआ और कार्यकर्ता उसके कार्य की जाँच और निगरानी करते हैं, इसलिए उन्हें उसकी समस्याएँ समझनी चाहिए। मुझे इतनी चिंता और हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।” सारा आगा-पीछा सोचने के बाद मैंने उसकी समस्याओं की रिपोर्ट न करने का फैसला किया। लेकिन इस बात को भूल जाने का फैसला करने पर मेरा दिल असहज हो गया और मेरी अंतरात्मा उद्वेलित हो गई। मैंने असली कार्य न करने की उसकी कुछ अभिव्यक्तियाँ स्पष्ट रूप से देख ली थीं और इसे एक समस्या के रूप में पहचान लिया था, लेकिन मैंने इसकी अनदेखी कर इससे साफ बचे रहना चाहा। यह तो गैर-जिम्मेदार होना है! अगर वह वाकई एक झूठी अगुआ थी जो असली कार्य नहीं करती थी तो इससे भाई-बहनों के जीवन प्रवेश पर सीधा असर पड़ेगा और कलीसिया के कार्य में देर होगी। मैंने आत्म-चिंतन किया : मैं वेंडी की समस्याओं के बारे में रिपोर्ट करने की अनिच्छुक क्यों हूँ? मुझे किस बात की चिंता है? मुझे कौन-सा भ्रष्ट स्वभाव बेबस कर रहा है?
बाद में मैंने परमेश्वर के ये वचन पढ़े : “चालाकी इंसान के सांसारिक आचरण के फलसफों का सबसे प्रमुख पहलू है। लोग सोचते हैं कि अगर वे चालाक न हों, तो वे दूसरों को नाराज कर बैठेंगे और खुद की रक्षा करने में असमर्थ होंगे; उन्हें लगता है कि कोई उनके कारण आहत या नाराज न हो जाए, इसलिए उन्हें पर्याप्त रूप से चालाक होना चाहिए, जिससे वे खुद को सुरक्षित रख सकें, अपनी आजीविका की रक्षा कर सकें, और दूसरे लोगों के बीच सुदृढ़ता से पाँव जमा सकें। सभी अविश्वासी शैतान के फलसफों के अनुसार जीते हैं। वे सभी चापलूस होते हैं और किसी को ठेस नहीं पहुँचाते। तुम परमेश्वर के घर आए हो, तुमने परमेश्वर के वचन पढ़े हैं और परमेश्वर के घर के उपदेश सुने हैं, तो तुम सत्य का अभ्यास करने, दिल से बोलने और एक ईमानदार इंसान बनने में असमर्थ क्यों हो? तुम हमेशा चापलूसी क्यों करते हो? चापलूस केवल अपने हितों की रक्षा करते हैं, कलीसिया के हितों की नहीं। जब वे किसी को बुराई करते और कलीसिया के हितों को नुकसान पहुँचाते देखते हैं, तो इसे अनदेखा कर देते हैं। उन्हें चापलूस होना पसंद है, और वे किसी को ठेस नहीं पहुँचाते। यह गैर-जिम्मेदाराना है, और ऐसा व्यक्ति बहुत चालाक होता है, भरोसे लायक नहीं होता। अपने घमंड और अभिमान की रक्षा करने के लिए, और अपनी प्रतिष्ठा और हैसियत बनाए रखने के लिए कुछ लोग खुशी से दूसरों की मदद करने और हर कीमत पर अपने दोस्तों के लिए त्याग करने को तैयार होते हैं। लेकिन जब उन्हें परमेश्वर के घर के हितों, सत्य और न्याय की रक्षा करनी होती है, तो उनके अच्छे इरादे छू-मंतर हो जाते हैं, वे पूरी तरह से गायब हो जाते हैं। जब उन्हें सत्य का अभ्यास करना चाहिए, तो वे बिल्कुल भी अभ्यास नहीं करते। यह क्या हो रहा है? अपनी गरिमा और अभिमान की रक्षा के लिए वे कोई भी कीमत चुकाएँगे और कोई भी कष्ट सहेंगे। लेकिन जब उन्हें वास्तविक कार्य करने और व्यावहारिक मामले संभालने होते हैं, कलीसिया के कार्य और सकारात्मक चीजों की रक्षा करनी होती है, और परमेश्वर के चुने हुए लोगों की रक्षा करने और उन्हें पोषण प्रदान करने की आवश्यकता होती है, तो उनमें कोई भी कीमत चुकाने और कोई भी कष्ट सहने की ताकत क्यों नहीं रहती? यह अकल्पनीय है। असल में, उनका स्वभाव सत्य से विमुख रहने वाला होता है। मैं क्यों कहता हूँ कि उनका स्वभाव सत्य से विमुख रहने वाला होता है? क्योंकि जब भी किसी चीज में परमेश्वर के लिए गवाही देना, सत्य का अभ्यास करना, परमेश्वर के चुने हुए लोगों की रक्षा करना, शैतान की चालों से लड़ना, या कलीसिया के कार्य की रक्षा करना शामिल होता है, तो वे भागकर छिप जाते हैं, और किसी भी उचित मामले पर ध्यान नहीं देते। कष्ट उठाने की उनकी वीरता और जज्बा कहाँ चला जाता है? उन चीजों का वे इस्तेमाल कहाँ करते हैं? यह देखना आसान है। भले ही कोई उन्हें फटकारे और कहे कि उन्हें इतना स्वार्थी और नीच नहीं होना चाहिए, और खुद को बचाते नहीं रहना चाहिए और उन्हें कलीसिया के कार्य की रक्षा करनी चाहिए, फिर भी वे वास्तव में इसकी परवाह नहीं करते। वे अपने मन में कहते हैं, ‘मैं ये चीजें नहीं करता, और इनका मुझसे कोई लेना-देना नहीं है। इस तरह कार्य करने से मेरी प्रसिद्धि, लाभ और रुतबे के अनुसरण को क्या फायदा होगा?’ वे सत्य का अनुसरण करने वाले व्यक्ति नहीं होते। वे केवल प्रसिद्धि, लाभ और रुतबे के पीछे भागना पसंद करते हैं, और वह काम तो बिल्कुल नहीं करते जो परमेश्वर ने उन्हें सौंपा होता है। इसलिए जब कलीसिया का कार्य करने के लिए उनकी जरूरत पड़ती है तो वे बस भाग जाना चुनते हैं। इसका तात्पर्य यह है कि अपने दिल में वे सकारात्मक चीजों को पसंद नहीं करते और सत्य में रुचि नहीं रखते। यह सत्य से विमुख होने की स्पष्ट निशानी है” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, भाग तीन)। “ज़्यादातर लोग सत्य का अनुसरण और अभ्यास करना चाहते हैं, लेकिन अधिकतर समय उनके पास ऐसा करने का केवल संकल्प और इच्छा ही होती है; सत्य उनका जीवन नहीं बना है। इसके परिणाम स्वरूप, जब लोगों का बुरी शक्तियों से वास्ता पड़ता है या ऐसे राक्षसी लोगों या बुरे लोगों से उनका सामना होता है जो बुरे कामों को अंजाम देते हैं, या जब ऐसे झूठे अगुआओं और मसीह विरोधियों से उनका सामना होता है जो अपना काम इस तरह से करते हैं जिससे सिद्धांतों का उल्लंघन होता है—इस तरह कलीसिया के कार्य में बाधा पड़ती है, और परमेश्वर के चुने गए लोगों को हानि पहुँचती है—वे डटे रहने और खुलकर बोलने का साहस खो देते हैं। जब तुम्हारे अंदर कोई साहस नहीं होता, इसका क्या अर्थ है? क्या इसका अर्थ यह है कि तुम डरपोक हो या कुछ भी बोल पाने में अक्षम हो? या फ़िर यह कि तुम अच्छी तरह नहीं समझते और इसलिए तुम में अपनी बात रखने का आत्मविश्वास नहीं है? दोनों में से कुछ नहीं; यह मुख्य रूप से भ्रष्ट स्वभावों द्वारा बेबस होने का परिणाम है। तुम्हारे द्वारा प्रदर्शित किए जाने वाले भ्रष्ट स्वभावों में से एक है कपटी स्वभाव; जब तुम्हारे साथ कुछ होता है, तो पहली चीज जो तुम सोचते हो वह है तुम्हारे हित, पहली चीज जिस पर तुम विचार करते हो वह है नतीजे, कि यह तुम्हारे लिए फायदेमंद होगा या नहीं। यह एक कपटी स्वभाव है, है न? दूसरा है स्वार्थी और नीच स्वभाव। तुम सोचते हो, ‘परमेश्वर के घर के हितों के नुकसान से मेरा क्या लेना-देना? मैं कोई अगुआ नहीं हूँ, तो मुझे इसकी परवाह क्यों करनी चाहिए? इसका मुझसे कोई लेना-देना नहीं है। यह मेरी जिम्मेदारी नहीं है।’ ऐसे विचार और शब्द तुम सचेतन रूप से नहीं सोचते, बल्कि ये तुम्हारे अवचेतन द्वारा उत्पन्न किए जाते हैं—जो वह भ्रष्ट स्वभाव है जो तब दिखता है जब लोग किसी समस्या का सामना करते हैं” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, भाग तीन)। परमेश्वर के वचनों ने मेरा भ्रष्ट स्वभाव उजागर कर दिया। मैं सचमुच स्वार्थी और कपटी थी। मैंने देखा कि वेंडी असली समस्याएँ हल नहीं करती या कई मामलों में असली कार्य नहीं करती और उसके कर्म पहले से ही कलीसिया के हितों को नुकसान पहुँचा रहे हैं। फिर भी मुझे यह चिंता थी कि अगर मैंने उसे गलत ढंग से रिपोर्ट कर दिया तो भाई-बहन मेरे बारे में खराब राय बना लेंगे, कि मुझे बरखास्त किया जा सकता है और मुझे इससे भी अधिक डर यह था कि वेंडी को नाराज करने से हमारा संबंध बिगड़ जाएगा और भविष्य में हममें निभेगी नहीं। इसलिए मैं उसकी रिपोर्ट करने की अनिच्छुक थी। खुद को और अपने हितों को बचाने के लिए मैंने उन समस्याओं के बारे में चुप्पी साध ली जो मुझे दिख रही थीं। मैंने बिल्कुल भी सत्य का अभ्यास नहीं किया या कलीसिया के कार्य की रक्षा नहीं की जो परमेश्वर के लिए वास्तव में तिरस्कारपूर्ण और घृणास्पद है। यह सोचकर कि कैसे वेंडी के कार्यकलापों में सिद्धांत नहीं होते थे, वह अपने कार्य में प्राथमिकताएँ तय नहीं कर पाती थी और असली कार्य नहीं करती थी, हालाँकि मैं 100 फीसदी आश्वस्त नहीं थी कि वह झूठी अगुआ है, मैं यह देख सकती थी कि उसकी समस्याओं के कारण पहले ही भाई-बहनों के जीवन प्रवेश और कलीसिया के कार्य पर असर पड़ रहा था। मुझे ये समस्याएँ जल्द से जल्द उच्च-स्तर के अगुआओं को रिपोर्ट करनी चाहिए और उन्हें स्थिति को समझकर जाँच और सत्यापन करने देना चाहिए। अगर उसके झूठी अगुआ होने की पुष्टि हो जाती है तो उसे सिद्धांतों के अनुसार बरखास्त कर दिया जाना चाहिए। अगर उसके कार्यों में सिर्फ कुछ विचलन हैं तो अगुआ इन समस्याओं पर संगति कर उसकी मदद कर सकते थे। वरना, अगर वह इसी तरह कार्य करती रही तो इससे कलीसिया के कार्य में देरी होगी और भाई-बहनों के जीवन प्रवेश को नुकसान होगा। लेकिन मैं पहले सोचती थी कि वेंडी की समस्याओं का मुझसे सीधे तौर पर कोई संबंध नहीं है और इनके बारे में गलत रिपोर्ट करने से मेरे अभिमान और भविष्य को नुकसान पहुँच सकता है। चूँकि मैं उसकी समस्याओं को भली-भाँति नहीं जानती थी, इसलिए मैंने उच्च अगुआओं को उसकी रिपोर्ट न करने के लिए “मैं उसकी समस्याओं को भली-भाँति नहीं जानती हूँ और मैं गलत ढंग से रिपोर्ट करने से डरती हूँ” को एक बहाने के रूप में इस्तेमाल किया। मैंने यह बहाना भी बनाया कि अगर वह वाकई असली कार्य न करने वाली एक झूठी अगुआ है तो दूसरे भाई-बहन उसकी रिपोर्ट कर लेंगे। मैंने “नाराज करने वाला मामला” दूसरों के सिर पर डालकर एक कायर की तरह छिपना चाहा। वेंडी के साथ अपना संबंध बनाए रखने और अपने अभिमान, संभावनाओं और नियति की रक्षा करने के लिए मैंने कलीसिया के हितों की चिंता या कलीसिया के कार्य की रक्षा बिल्कुल भी नहीं की। मैं बहुत ही स्वार्थी और कपटी थी और शैतान के फलसफों का अनुसरण कर रही थी, जैसे “हर व्यक्ति अपनी सोचे बाकियों को शैतान ले जाए,” “समझदार लोग आत्म-रक्षा में अच्छे होते हैं, वे बस गलतियाँ करने से बचते हैं,” और “चीजों को वैसे ही चलने दो अगर वे किसी को व्यक्तिगत रूप से प्रभावित न करती हों।” इन चीजों ने मेरे दिल में गहरी जड़ें जमा ली थीं, ये मेरे विचारों पर हावी हो गई थीं, इनके कारण मैं अपनी कथनी-करनी में हमेशा व्यक्तिगत फायदों की चिंता करती थी और अति-सावधान और अनिर्णय की स्थिति में रहती थी। यहाँ तक कि जब मैंने एक अगुआ की समस्याएँ देख लीं, तो भी मैं उसकी रिपोर्ट करने को अनिच्छुक थी और चीजों को अपने आप घटित होते देख बस मूकदर्शक बनी रही जबकि कलीसिया के हितों को नुकसान हो रहा था। मैंने देखा कि शैतानी स्वभावों और फलसफों को जीने के कारण मैं वास्तव में घिनौनी और नीच बन गई थी और मुझमें कतई भी सत्यनिष्ठा या मानव की समानता नहीं थी। अगर मैं इसी तरह चलती रही और पश्चात्ताप नहीं किया तो परमेश्वर मुझे तिरस्कृत कर निकाल ही देगा। इन विचारों ने मुझे डरा दिया और मुझे एहसास हुआ कि मुझे शैतानी स्वभाव के बंधनों से फौरन मुक्त होने और इससे और आगे नियंत्रित न होने की जरूरत है।
आत्म-चिंतन से मुझे यह एहसास भी हुआ कि मेरा नजरिया गलत है। मुझे चिंता थी कि मैं चीजों को सटीकता या समग्रता में नहीं देख पाऊँगी और अगर मैंने कोई चीज गलत ढंग से रिपोर्ट कर दी तो इससे बाधाएँ और गड़बड़ियाँ पैदा होंगी। इसी कारण मैंने वेंडी की समस्याओं के बारे में रिपोर्ट करने की हिम्मत नहीं की। बाद में मैंने अपने दिल को शांत कर चिंतन किया, “क्या यह दृष्टिकोण सही है? क्या यह सत्य सिद्धांतों के अनुरूप है?” मैंने परमेश्वर के इन वचनों को याद किया : “तो क्या परमेश्वर के घर द्वारा पदोन्नत और विकसित किए गए प्रतिभाशाली लोग, पदोन्नत और विकसित किए जाने की अवधि के दौरान या पदोन्नत और विकसित किए जाने से पहले अपना कार्य और अपना कर्तव्य अच्छी तरह से करने में पर्याप्त सक्षम हैं? बेशक नहीं। इस प्रकार, यह अपरिहार्य है कि विकसित किए जाने की अवधि के दौरान ये लोग काट-छाँट और न्याय किए जाने और ताड़ना दिए जाने, उजागर किए जाने, यहाँ तक कि बरखास्तगी का भी अनुभव करेंगे; यह सामान्य बात है, यही है प्रशिक्षण और विकसित किया जाना। जिन लोगों को पदोन्नत और विकसित किया जाता है, उनसे लोगों को ऊंची अपेक्षाएँ या अवास्तविक माँगें नहीं करनी चाहिए; यह अनुचित होगा, और उनके साथ अन्याय होगा। तुम लोग उनके कार्य की निगरानी कर सकते हो। अगर उनके काम के दौरान तुम्हें समस्याओं या ऐसी बातों का पता चले जिनसे सिद्धांतों का उल्लंघन होता हो, तो तुम यह मसला उठा सकते हो, और इन मामलों को सुलझाने के लिए सत्य को खोज सकते हो। तुम्हें उनकी आलोचना, और निंदा नहीं करनी चाहिए, या उन पर हमला कर उन्हें अलग-थलग नहीं करना चाहिए, क्योंकि वे बस विकसित किए जाने की अवधि में हैं, और उन्हें ऐसे लोगों के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए जिन्हें पूर्ण बना दिया गया है, उन्हें दोषरहित या ऐसे लोगों के रूप में बिल्कुल भी नहीं देखना चाहिए जिनमें सत्य वास्तविकता है। ... तो उनके साथ व्यवहार का सबसे उचित तरीका क्या है? उन्हें सामान्य लोगों की तरह ही समझना, और जब तुम्हें किसी समस्या के संदर्भ में किसी को तलाशने की आवश्यकता हो, तो उनके साथ संगति करना और एक-दूसरे के मजबूत पक्षों से सीखना और एक-दूसरे का पूरक होना। इसके अतिरिक्त, अगुआ और कार्यकर्ता का यह देखने के लिए निरीक्षण करना कि वे वास्तविक कार्य कर रहे हैं या नहीं, वे समस्याएँ सुलझाने के लिए सत्य का इस्तेमाल कर सकते हैं या नहीं, इस पर नजर रखना सभी की जिम्मेदारी है; अगुआ या कार्यकर्ता मानक स्तर का है या नहीं, इसे मापने के ये मानक और सिद्धांत हैं। अगर कोई अगुआ या कार्यकर्ता आम समस्याओं से निपटने और उन्हें सुलझाने में सक्षम है, तो वह सक्षम है। लेकिन अगर वह साधारण समस्याओं से भी नहीं निपट सकता, उन्हें हल नहीं कर सकता, तो वह अगुआ या कार्यकर्ता बनने के योग्य नहीं है, और उसे फौरन उसके पद से निकाल देना चाहिए। किसी दूसरे को चुनन चाहिए, और परमेश्वर के घर के काम में देरी नहीं की जानी चाहिए। परमेश्वर के घर के काम में देरी करना खुद को और दूसरों को आहत करना है, इसमें किसी का भला नहीं है” (वचन, खंड 5, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (5))। परमेश्वर के वचनों से मैं अगुआओं और कार्यकर्ताओं से निपटने के सिद्धांत समझ गई। अगुआ और कार्यकर्ता अभी भी प्रशिक्षण अवधि में हैं; उन्होंने अभी तक उद्धार या पूर्णता प्राप्त नहीं की है और वे भी भ्रष्ट लोग हैं। हमें उनसे सही ढंग से पेश आने की जरूरत है : अगर कम अभ्यास अवधि के कारण कोई अगुआ सिर्फ भ्रष्टता प्रकट करे या उसके कार्य में विचलन हों तो ये कोई ज्यादा बड़ी समस्याएँ नहीं हैं, हमें प्रेमपूर्वक उनकी मदद या काट-छाँट करनी चाहिए। लेकिन अगर किसी अगुआ या कार्यकर्ता की काबिलियत कम है, उसमें कार्यक्षमता नहीं है और वह असली कार्य नहीं कर सकता या अगर किसी अगुआ की मानवता में समस्याएँ हैं और वह गलत राह पर चलता है और असली कार्य नहीं करता तो फिर ऐसे अगुआ को इस्तेमाल करते रहने से भाई-बहनों के जीवन प्रवेश और कलीसिया के कार्य में देरी होगी। ऐसे झूठे अगुआओं का पता चलने पर हमें उन्हें उजागर कर उनकी रिपोर्ट करनी चाहिए। परमेश्वर ने कभी नहीं कहा कि अगर हम किसी चीज को स्पष्ट रूप से न देख पाएँ तो हम सिर्फ हाथ पर हाथ धरे बैठे रहकर इसकी अनदेखी कर सकते हैं या हमें सत्य का अभ्यास नहीं करना है। बल्कि हम जिन कठिनाइयों और समस्याओं को स्पष्ट रूप से न समझ पाएँ तो उनके संबंध में हमें संगति के लिए सत्य समझने वाले लोग खोजने चाहिए, सत्य सिद्धांत खोजने चाहिए या इन चीजों के बारे में उच्च अगुआओं को रिपोर्ट करनी चाहिए। भले ही हम किसी चीज के बारे में गलत ढंग से रिपोर्ट कर दें, यह मायने नहीं रखता; सबसे महत्वपूर्ण चीज यह है कि समस्या का समाधान हो जाए। अगर हम किसी चीज को स्पष्ट रूप से न देख पाने या किसी चीज के बारे में गलत ढंग से रिपोर्ट करने के डर से हाथ पर हाथ धरे बैठे रहें और घटनाओं के घटित होने जाने से स्थिति बिगड़ जाती है, कलीसिया के हितों को नुकसान और कलीसिया के कार्य में विलंब होता है तो कुछ भी कहने में बहुत विलंब हो चुका होगा और नुकसान की भरपाई नहीं होगी। पहले मैं इस बारे में स्पष्ट नहीं थी कि बाधाओं और गड़बड़ियों में क्या शामिल होता है, लेकिन बाद में खोज और संगति के जरिए मैं और ज्यादा समझ गई। किसी व्यक्ति का कोई कार्यकलाप बाधा और गड़बड़ी है या नहीं, यह मुख्य रूप से इस बात पर निर्भर करता है कि क्या उसके इरादे सही हैं और वह जो समस्याएँ रिपोर्ट कर रहा है क्या वे सच हैं और इनका कलीसिया के हितों और सिद्धांतों से संबंध है। अगर उसके इरादे सही हैं, जिस चीज की रिपोर्ट की जा रही है वह सच है और यह कलीसिया के हितों को बचाने के लिए है, तो भले ही वह उस समय साफ तौर पर न समझ पाए कि कोई अगुआ झूठा है या नहीं, तो भी दिखाई देने वाली समस्या को तथ्यों के आधार पर रिपोर्ट करना कलीसिया के हितों की रक्षा करना होता है और यह बाधा और गड़बड़ी नहीं है। लेकिन अगर उसके इरादे गलत हैं और उसकी छिपी हुई मंशाएँ हैं, जैसे कि सत्ता के लिए होड़ करना, अगुआ के कार्य-विचलनों का फायदा उठाकर तिल का ताड़ बनाना, उसे अपदस्थ कर उसकी जगह हथियाना या अगुआ से काट-छाँट होने के कारण नाराजगी पाल लेना, अपनी व्यक्तिगत शिकायतें व्यक्त करने के लिए अगुआ पर आक्रमण और उसकी आलोचना करने के लिए कमियाँ ढूँढ़ना और तथ्यों को तोड़ना-मरोड़ना या अपने अहंकारी स्वभाव के अनुसार अगुआ में मीन-मेख निकालना, अगुआ का अपने कर्तव्यों में भ्रष्टता, विचलन, समस्याएँ, कमियाँ या चूक प्रगट करने का फायदा उठाना और हर मोड़ पर आपत्तियाँ व्यक्त करना और लाभ की स्थिति खोजने की कोशिश कर जाने न देना, ये चीजें ही बाधा और गड़बड़ी के दायरे में आती हैं। यह एहसास होने पर मुझे इस बात की एक बेहतर समझ हासिल हो गई कि सामान्य खोज करने और समस्याओं की रिपोर्ट करने और बाधा और गड़बड़ी पैदा के बीच अंतर क्या है।
सिद्धांतों को समझने के बाद मैंने फिर से वेंडी की समस्याओं के बारे में सोचा और मुझे एहसास हुआ कि उसका कमजोर मानवता को जीना कोई बड़ी समस्या नहीं है और इसका समाधान सही अवसर पर उचित मार्गदर्शन और सहायता के जरिए किया जा सकता है। लेकिन उसकी उतावलीपूर्ण और असैद्धांतिक व्यवस्थाओं ने भाई-बहनों के कर्तव्यों और कलीसिया के कार्य को बाधित कर दिया था। वह अपनी मुख्य जिम्मेदारियों पर भी ध्यान नहीं देती थी, उसमें दायित्व-बोध नहीं था और वह जिस कार्य की प्रभारी थी उसमें नतीजे हासिल करने में नाकाम रही और उसने भाई-बहनों की समस्याएँ भी हल नहीं कीं। इन मसलों का संबंध इस बात से था कि क्या वह वास्तविक कार्य कर सकती थी और क्या उसने ऐसा किया था। हालाँकि मैं इन चीजों को स्पष्ट रूप से नहीं समझ पाई थी और उसे झूठी अगुआ नहीं ठहरा सकती थी, तो भी रिपोर्ट कर मार्गदर्शन माँग सकती थी। चूँकि मेरा इरादा उसका जीना दुश्वार करना या उसके मुकाबले फायदे उठाना नहीं था, इसलिए इस तरह से अभ्यास करना उचित था। मैं इस मामले में यह बहाना बनाकर लापरवाही नहीं बरत सकती थी कि “अगर मैं किसी चीज को स्पष्ट रूप से नहीं देख सकती तो इसकी गलत ढंग से रिपोर्ट करने के कारण बाधा और गड़बड़ी पैदा होगी।” यह कलीसिया के कार्य के प्रति गैर-जिम्मेदाराना बात होगी और कलीसिया के हितों की रक्षा या सत्य का अभ्यास न करने की अभिव्यक्ति होगी।
बाद में मैंने परमेश्वर के वचनों का एक और अंश पढ़ा : “एक बार जब सत्य तुम्हारा जीवन बन जाता है, तो जब तुम किसी ऐसे व्यक्ति को देखते हो जो ईशनिंदा करता है, परमेश्वर का भय नहीं मानता, कर्तव्य निभाते समय अनमना रहता है या कलीसिया के काम में गड़बड़ी कर बाधा डालता है, तो तुम सत्य-सिद्धांतों के अनुसार प्रतिक्रिया दोगे, तुम आवश्यकतानुसार उसे पहचानकर उजागर कर पाओगे। ... अगर तुम्हें परमेश्वर में सच्चा विश्वास है, तब यदि तुमने सत्य और जीवन नहीं भी प्राप्त किया है, तो भी तुम कम से कम परमेश्वर की ओर से बोलोगे और कार्य करोगे; कम से कम, जब परमेश्वर के घर के हितों का नुकसान किया जा रहा हो, तो तुम उस समय खड़े होकर तमाशा नहीं देखोगे। यदि तुम अनदेखी करना चाहोगे, तो तुम्हारा मन कचोटेगा, तुम असहज हो जाओगे और मन ही मन सोचोगे, ‘मैं चुपचाप बैठकर तमाशा नहीं देख सकता, मुझे दृढ़ रहकर कुछ कहना होगा, मुझे जिम्मेदारी लेनी होगी, इस बुरे बर्ताव को उजागर करना होगा, इसे रोकना होगा, ताकि परमेश्वर के घर के हितों को नुकसान न पहुँचे और कलीसियाई जीवन अस्त-व्यस्त न हो।’ यदि सत्य तुम्हारा जीवन बन चुका है, तो न केवल तुममें यह साहस और संकल्प होगा, और तुम इस मामले को पूरी तरह से समझने में सक्षम होगे, बल्कि तुम परमेश्वर के कार्य और उसके घर के हितों के लिए भी उस ज़िम्मेदारी को पूरा करोगे जो तुम्हें उठानी चाहिए, और उससे तुम्हारे कर्तव्य की पूर्ति हो जाएगी” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, भाग तीन)। परमेश्वर के वचनों से मैं समझ गई कि जिन लोगों में सत्य वास्तविकताएँ होती हैं उनके पास परमेश्वर का भय मानने वाला हृदय होता है। स्थितियों का सामना होने पर वे सत्य सिद्धांतों के अनुसार कार्य करते हैं। जब वे ऐसी समस्याएँ देखते हैं जिनसे कलीसिया के हितों को नुकसान होता है या कलीसिया के कार्य में बाधा और गड़बड़ी पैदा होती है तो वे निठल्ले नहीं बैठे रहते या इनकी अनदेखी नहीं करते हैं, न ही वे दूसरों के साथ अपने रिश्ते बनाए रखने या अपने हितों की रक्षा करने को तरजीह देते हैं। इसके बजाय वे कलीसिया के हितों और कार्य की रक्षा करने पर ध्यान देते हैं। उनमें नकारात्मक चीजों को उजागर करने और सिद्धांतों के अनुसार कार्य करने का साहस होता है और उनमें दायित्व-बोध होता है और वे अपने कर्तव्यों को लेकर जिम्मेदार होते हैं। अब जबकि परमेश्वर ने यह व्यवस्था कर दी कि मैं वेंडी की समस्याएँ देख सकूँ तो मेरी यह जिम्मेदारी बनती है कि मैं इनकी निगरानी और समाधान करूँ। मैं इसे अनदेखा नहीं कर सकती। मुझे इन समस्याओं को प्रकाश में लाकर उच्च अगुआओं से मार्गदर्शन लेना था। इस बात की परवाह किए बिना कि भाई-बहन मुझे किस रूप में देखेंगे या कि मुझे शायद दमन या उत्पीड़न का सामना करना पड़े, मुझे सत्य सिद्धांतों के अनुसार कार्य करना चाहिए। मुझे परमेश्वर में आस्था और उसकी धार्मिकता में विश्वास रखना चाहिए। अपने मन में इन विचारों के साथ मैंने अपनी चिंताएँ त्याग दीं। बाद में मैंने समस्याएँ बताने के लिए उच्च अगुआ से संपर्क किया। अगुआ ने ध्यान और धीरज से सुना और मेरा हौसला बढ़ाया कि मैंने जो कुछ भी देखा है उसके बारे में खुलकर बोलूँ। उसने कहा कि परमेश्वर का घर उन लोगों का विशेष रूप से समर्थन करता है जो झूठे अगुआ और मसीह-विरोधियों को वास्तव में उजागर और रिपोर्ट कर सकते हैं और यह भी कहा कि ऐसे लोगों से परमेश्वर को सांत्वना मिलती है। इसलिए मैंने वेंडी की सारी समस्याओं का ब्योरा दे दिया। अगुआ ने भी महसूस किया कि वेंडी में समस्याएँ हैं, उसने कहा कि हर बार जब भी वह वेंडी के कार्य की जाँच करती है तो वेंडी सकारात्मक रिपोर्ट देती है लेकिन कोई असली प्रगति नहीं होती है। अगुआ ने वेंडी के प्रदर्शन की जाँच करने के बारे में भी सोचा।
अगले दिन अगुआ ने वेंडी को जानने वाले भाई-बहनों से उसके मूल्यांकन लिखने को कहा। नतीजे चौंकाने वाले थे—वेंडी की समस्याएँ उससे भी कहीं ज्यादा गंभीर थीं जितना मैंने सोचा था। भाई-बहनों के मूल्यांकनों से मैंने देखा कि भले ही ऐसा लगता था कि वेंडी व्यस्त है, रोज ऑनलाइन सभाओं में हिस्सा लेती है, आम तौर पर सभाओं के लिए समय पर आती है और सभाओं में काफी समय बिताती है, लेकिन उसकी संगति सिर्फ शब्दों और धर्म-सिद्धांतों वाली होती थी और असली समस्याएँ हल नहीं कर पाती थी। एक बार नकारात्मक दशा में रह रही एक बहन ने संगति करने के लिए सक्रिय होकर उसे खोजा, कई बार उसके लिए संदेश छोड़े, लेकिन वेंडी उसकी मदद करने कभी नहीं आई। जब उन्होंने आखिरकार एक समय तय कर लिया तो संगति शुरू होने से पहले ही वेंडी ने बहन को अकेला छोड़ दिया और खुद व्यक्तिगत मामले निपटाने चली गई और खास किस्म का रूखापन और स्वार्थ दिखाया। वह भाई-बहनों के कर्तव्यों की जाँच या निगरानी शायद ही कभी करती थी और जब कभी-कभार ऐसा करती भी थी तो सिर्फ अनमनी रहती थी। वह खुद आगे बढ़कर विभिन्न समस्याओं और कठिनाइयों की पहचान या समाधान नहीं करती थी और वह एक अगुआ की भूमिका अच्छे ढंग से बिल्कुल भी नहीं निभा रही थी। जब वह भाई-बहनों के कर्तव्यों में खराब नतीजे देखती थी तो वह उन्हें बस याद करा या टोक देती थी मानो वह किसी कारखाने में कोई फोरमैन हो। उसने ऐसी असली समस्याओं पर कभी ध्यान नहीं दिया जहाँ भाई-बहन अपने कर्तव्य में अटक जाते थे और उन्हें समाधान खोजना होता था। इसके अलावा, कर्मियों का काम बदलने के मामले में भी उसमें सिद्धांतों का अभाव था। उसने दो प्रमुख सुसमाचार कर्मियों को सामान्य मामलों वाले कर्तव्यों में लगा दिया जिससे तुरंत सुसमाचार कार्य प्रभावित हो गया, इसलिए उसने उन्हें वापस तैनात कर दिया। सिंचनकर्मियों को खोजने में भी उसने यही किया, भाई-बहनों के कर्तव्यों की स्थिति की कभी चिंता नहीं की और जो भी ठीक लगा उसे पूरी तरह सोच-विचार किए बिना चुन लिया, जिसके कारण भाई-बहनों के कर्तव्यों में बाधा आई और कलीसिया के कार्य में गड़बड़ी पैदा हुई...। भाई-बहनों द्वारा उसका हर व्यवहार उजागर होने से यह स्पष्ट था कि वेंडी कलीसिया के जिस कार्य के लिए जिम्मेदार थी उसे न केवल आगे बढ़ाने में विफल रही, बल्कि उसने वास्तव में इसमें रुकावट भी डाल दी।
बाद में मैंने परमेश्वर के वचनों के दो अंश पढ़े जिन्होंने वेंडी के व्यवहारों के सार को बेहतर ढंग से समझने में मेरी मदद की। परमेश्वर के वचन कहते हैं : “यह कैसे तय करना चाहिए कि एक अगुआ, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ निभा रहा है, या वह नकली अगुआ है? सबसे बुनियादी स्तर पर, यह देखना चाहिए कि वे वास्तविक कार्य करने में सक्षम हैं या नहीं, कि उनमें यह काबिलियत है या नहीं। फिर, यह देखना चाहिए कि क्या वे इस काम को अच्छे तरीके से करने का भार उठाते हैं या नहीं। इसकी अनदेखी करो कि वे जो बातें बोलते हैं वे कितनी अच्छी लगती हैं और वे धर्म-सिद्धांतों की कितनी समझ रखने वाले लगते हैं, इस पर भी ध्यान मत दो कि बाहरी मामलों से निपटने में वे कितने प्रतिभाशाली और गुणी हैं—ये बातें महत्वपूर्ण नहीं हैं। जो सर्वाधिक महत्व की बात है, वह यह है कि वे कलीसिया के काम की सबसे बुनियादी मदों का काम ठीक तरीके से करने की योग्यता रखते हैं या नहीं, वे सत्य का उपयोग कर समस्याओं को हल कर सकते हैं या नहीं और कि वे लोगों को सत्य वास्तविकता में ले जा सकते हैं या नहीं। यह सबसे मूलभूत और आवश्यक कार्य है। यदि वे वास्तविक कार्य की इन मदों पर काम करने में अक्षम हैं, तो फिर चाहे उनमें कितनी भी काबिलियत हो, वे कितने भी प्रतिभावान हों, या कितनी भी कठिनाइयाँ सह सकते हों और कीमत चुका सकते हों, वे नकली अगुआ ही रहेंगे। कुछ लोग कहते हैं, ‘भूल जाओ कि वे अभी कोई वास्तविक काम नहीं करते हैं। उनकी क्षमता अच्छी है और वे काबिल हैं। अगर वे थोड़े समय तक प्रशिक्षण लेंगे, तो वे अवश्य ही वास्तविक कार्य करने के काबिल बन जाएँगे। इसके अलावा उन्होंने कुछ भी बुरा नहीं किया है और उन्होंने कोई बुरा काम नहीं किया है या विघ्न-बाधा नहीं डाली है—तुम कैसे कह सकते हो कि वे नकली अगुआ हैं?’ हम इसकी व्याख्या कैसे कर सकते हैं? कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम कितने प्रतिभाशाली हो, तुम्हारे पास किस स्तर की काबिलियत और शिक्षा है, तुम कितने नारे लगा सकते हो, या कितने शब्द और धर्म-सिद्धांतों पर तुम्हारी पकड़ है; इससे भी कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम कितने व्यस्त हो, या दिन भर में कितने थके हो, या तुमने कितनी दूर की यात्रा की है, कितनी कलीसियाओं में जाते हो, या तुम कितने जोखिम उठाते हो और कितना कष्ट सहते हो—इनमें से कोई भी बात मायने नहीं रखती। जो बात मायने रखती है वह यह है कि क्या तुम अपना काम दी गई कार्य व्यवस्थाओं के आधार पर कर रहे हो, क्या तुम उन व्यवस्थाओं को सही ढंग से लागू कर रहे हो; क्या तुम अपनी अगुआई के दौरान हर उस विशिष्ट कार्य में भाग ले रहे हो जिसके लिए तुम जिम्मेदार हो, और तुमने वास्तव में कितने वास्तविक मुद्दों का समाधान किया है; तुम्हारी अगुआई और मार्गदर्शन के कारण कितने लोग सत्य सिद्धांतों को समझ पाए हैं, और कलीसिया का काम कितना आगे बढ़ा और विकसित हुआ है—जो मायने रखता है वह यह है कि तुमने ये परिणाम हासिल किए हैं या नहीं। तुम जिस भी विशिष्ट कार्य में लगे हो, उसके बावजूद जो मायने रखता है वह यह है कि क्या तुम उच्चपदस्थ और शक्तिशाली बन कर आदेश जारी करने के बजाय लगातार कार्य का अनुसरण और निर्देशन कर रहे हो या नहीं। इसके अलावा यह भी मायने रखता है कि तुम अपने कर्तव्य निभाते हुए जीवन प्रवेश करते हो या नहीं, क्या तुम सिद्धांतों के अनुसार मामलों से निपट सकते हो, क्या तुम्हारे पास सत्य को अभ्यास में लाने की गवाही है, और क्या तुम परमेश्वर के चुने हुए लोगों के सामने आने वाले वास्तविक मुद्दों को सँभाल सकते हो और उनका समाधान कर सकते हो। ये और इसी तरह की दूसरी चीजें यह आकलन करने की कसौटी होती हैं कि किसी अगुआ या कार्यकर्ता ने अपनी जिम्मेदारियों को पूरा किया है या नहीं” (वचन, खंड 5, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (9))। “नकली अगुआ मूलतः कलीसिया के आवश्यक, महत्वपूर्ण कार्य करने में असमर्थ होते हैं। वे बस कुछ सरल, सामान्य मामलों को निपटाते हैं; उनका काम कलीसिया के समग्र कार्य में महत्वपूर्ण या निर्णायक भूमिका नहीं निभाता और उसके वास्तविक नतीजे नहीं निकलते। उनकी संगति मूल रूप से केवल कुछ घिसे-पिटे और सामान्य विषयों पर होती है, इसमें निरे घिसे-पिटे शब्द और धर्म-सिद्धांत होते हैं और यह अत्यंत खोखली, सामान्य और विवरणहीन होती है। उनकी संगति में केवल वही चीजें होती हैं जिन्हें लोग शाब्दिक रूप से कुछ पढ़कर समझ सकते हैं। ये नकली अगुआ परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन प्रवेश में आने वाली वास्तविक समस्याओं को बिल्कुल हल नहीं कर सकते; खासकर वे लोगों की धारणाओं, कल्पनाओं और भ्रष्ट स्वभावों के खुलासों का समाधान करने में और भी कम सक्षम होते हैं। मुख्य बात यह है कि नकली अगुआ परमेश्वर के घर द्वारा व्यवस्थित महत्वपूर्ण कार्यो, जैसे कि सुसमाचार कार्य, फिल्म निर्माण कार्य या पाठ-आधारित कार्य को अपने कंधे नहीं ले सकते। खास तौर पर जब पेशेवर ज्ञान से जुड़े कार्य की बात आती है, तो हो सकता है कि नकली अगुआ यह अच्छी तरह जानते हों कि इन क्षेत्रों में वे खास जानकार नहीं हैं, लेकिन वे इनका अध्ययन नहीं करते, न ही वे शोध करते हैं, और दूसरों को विशिष्ट निर्देशन दे पाने या उनसे संबंधित किसी भी समस्या का समाधान करने में वे और भी कम सक्षम होते हैं। फिर भी वे बेशर्मी से सभाओं का आयोजन कर खोखले सिद्धांतों के बारे में अंतहीन बातें करते हैं और शब्द और धर्म-सिद्धांत बघारते रहते हैं। नकली अगुआ अच्छी तरह जानते हैं कि वे इस तरह का कार्य नहीं कर सकते, फिर भी वे विशेषज्ञ होने का दिखावा करते हैं, दंभपूर्ण व्यवहार करते हैं और दूसरों पर धौंस जमाने के लिए हमेशा बड़े-बड़े धर्म-सिद्धांतों का इस्तेमाल करते हैं। वे किसी के सवालों का जवाब देने में असमर्थ होते हैं, फिर भी वे दूसरों को झिड़कने के बहाने और कारण ढूँढ़ लेते हैं और पूछते हैं कि वे अपने पेशे को क्यों नहीं सीखते, वे सत्य की खोज क्यों नहीं करते और वे अपनी समस्याओं को हल करने में असमर्थ क्यों हैं। ये नकली अगुए इन क्षेत्रों में अँगूठाटेक होने और किसी भी समस्या का समाधान न कर सकने के बावजूद दूसरों को ऊँचे-ऊँचे उपदेश देते हैं। ऊपरी तौर पर वे दूसरे लोगों को बहुत व्यस्त दिखाई देते हैं, मानो वे बहुत सारा काम करने के योग्य हैं और क्षमतावान हैं, लेकिन वास्तव में वे कुछ भी नहीं हैं। नकली अगुए वास्तविक कार्य करने में बिल्कुल असमर्थ होते हैं, फिर भी वे उत्साहपूर्वक खुद को व्यस्त रखते हैं, और किसी वास्तविक समस्या को हल करने में सक्षम हुए बिना सभाओं में हमेशा एक ही साधारण सी बातें बोलते हैं और बार-बार खुद को दोहराते हैं। लोग इससे बहुत तंग आ जाते हैं और इससे कोई शिक्षा लेने में असमर्थ होते हैं। इस तरह का कार्य बहुत ही खराब है और इससे कोई नतीजा नहीं मिलता है। नकली अगुआ इसी तरह काम करते हैं और इसके कारण कलीसिया के कार्य में देरी होती है। फिर भी नकली अगुआओं को लगता है कि वे बहुत अच्छा कार्य कर रहे हैं और वे बहुत सक्षम हैं, जबकि सच्चाई यह है कि उन्होंने कलीसिया के कार्य का एक भी पहलू अच्छी तरह से नहीं किया होता है। उन्हें नहीं पता होता कि उनके उत्तरदायित्व के दायरे में आने वाले अगुआ और कार्यकर्ता मानकों के अनुरूप हैं या नहीं, न ही वे जानते हैं कि विभिन्न टीमों के अगुआ और सुपरवाइजर अपने कार्य का बीड़ा उठाने में सक्षम हैं या नहीं, और वे न तो इसका ध्यान रखते हैं और न ही यह पूछते हैं कि भाई-बहनों को अपने कर्तव्य निभाने में कोई समस्या तो नहीं आई। संक्षेप में कहें तो नकली अगुआ अपने काम में किसी भी समस्या का समाधान नहीं कर सकते, फिर भी वे पूरी कर्मठता से व्यस्त रहते हैं। दूसरे लोगों के परिप्रेक्ष्य से देखने पर नकली अगुआ कठिनाई झेलने में सक्षम लगते हैं, कीमत चुकाने को तैयार रहते हैं और हर दिन भागदौड़ में बिताते हैं। भोजन के समय उन्हें खाने की मेज पर बुलाना पड़ता है और वे सोने के लिए भी बहुत देर से जाते हैं। फिर भी, उनके काम के नतीजे अच्छे नहीं होते। ... किसी नकली अगुआ के कुछ समय से काम कर रहे होने का सबसे स्पष्ट दुष्परिणाम यह होता है कि अधिकांश लोग सत्य को समझने में असमर्थ रहते हैं, उन्हें नहीं पता होता कि जब कोई भ्रष्टता प्रकट करता है या धारणाएँ विकसित करता है तो उसे कैसे पहचानते हैं, और वे उन सत्य सिद्धांतों को तो निश्चित रूप से नहीं समझते जिनका पालन उन्हें अपने कर्तव्य निभाने के दौरान करना चाहिए। अपने कर्तव्य निभाने वाले और न निभाने वाले लोग बिल्कुल सुस्त, अनियंत्रित और अनुशासनहीन होते हैं और बिखरी हुई रेत की तरह अव्यवस्थित होते हैं। उनमें से अधिकांश लोग कुछ शब्द और धर्म-सिद्धांत तो बघार सकते हैं लेकिन अपने कर्तव्य निभाते समय वे केवल विनियमों का पालन करते हैं; वे नहीं जानते कि समस्याओं को हल करने के लिए सत्य कैसे खोजें। चूँकि नकली अगुआ स्वयं यह नहीं जानते कि समस्याओं को हल करने के लिए सत्य कैसे खोजें, तो इस काम में वे दूसरों की अगुआई कैसे कर सकते हैं? दूसरे लोगों पर चाहे जो भी बीते, नकली अगुआ उन्हें केवल यह कहकर प्रोत्साहित कर सकते हैं, ‘हमें परमेश्वर के इरादों के प्रति विचारशील होना चाहिए!’ ‘हमें अपने कर्तव्यपालन में निष्ठावान होना चाहिए!’ ‘जब हमारे साथ कुछ घटित हो, तो हमें पता होना चाहिए कि प्रार्थना कैसे करनी है और हमें सत्य सिद्धांत जरूर खोजने चाहिए!’ नकली अगुआ अक्सर ये नारे और धर्म-सिद्धांत उच्च स्वर में बोलते हैं और इसका कोई नतीजा नहीं निकलता है। उनकी बातें सुनने के बाद भी लोग नहीं समझ पाते कि सत्य सिद्धांत क्या हैं और उनके पास अभ्यास का मार्ग नहीं होता है” (वचन, खंड 5, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (3))। वेंडी का व्यवहार ठीक वैसा ही था जैसा परमेश्वर के वचनों ने उजागर किया है। उसका ध्यान बस इसी बात पर रहता था कि वह अपने कर्तव्य में व्यस्त दिखे, अनमने ढंग से कार्य करती थी, औपचारिकताओं तक सिमटी रहती थी और नारे, शब्द और धर्म-सिद्धांत बघारने पर जोर देती थी। वह भाई-बहनों के बीच घुलती-मिलती नहीं थी। और वह उनकी असली दशाओं और कठिनाइयों को जाँचने में विफल रही, उनकी समस्याएँ हल करने के लिए सत्य खोजना तो दूर की बात है। वह कम्युनिस्ट पार्टी के अधिकारी जैसी थी जो लोगों की स्थितियों को वास्तव में समझे बिना ऊपर से आदेश जारी करता है। यह स्पष्ट था कि वह एक झूठी अगुआ है जो वास्तविक कार्य नहीं करती है। बाद में अगुआओं ने परमेश्वर के वचनों के अनुसार वेंडी के व्यवहारों को भली-भाँति समझने के लिए एक सभा आयोजित की। हर व्यक्ति ने झूठे अगुआओं को भली-भाँति समझने के सिद्धांतों की स्पष्ट समझ हासिल की। उन्हें यह एहसास हुआ कि कोई अगुआ वास्तविक कार्य करता है या नहीं, यह तय करने की कसौटी यह नहीं है कि वह कितना व्यस्त नजर आता है या वह कितनी जोर से नारे लगाता है, बल्कि यह है कि क्या वह वास्तविक समस्याएँ हल कर सकता है और अपने कार्य में असल नतीजे हासिल कर सकता है। अंत में हर कोई वेंडी को बरखास्त करने के लिए सर्वसम्मति से सहमत हो गया। यह नतीजा देखकर मैं बहुत उत्साहित थी, लेकिन मुझे यह पछतावा भी था कि मैंने उसकी समस्याओं को पहले रिपोर्ट नहीं किया। अगर मैंने इन्हें जल्द से जल्द रिपोर्ट किया होता तो कलीसिया के कार्य को हुए नुकसान से बचा जा सकता था।
इस अनुभव के जरिए मैंने झूठे अगुआओं में अंतर करना बेहतर ढंग से सीखा और मैंने अपने ही भ्रष्ट स्वभाव की कुछ जानकारी भी हासिल की। मैंने देखा कि मैं कितनी स्वार्थी और कपटी थी, हमेशा खुद को बचाने में लगी रहती थी और यहाँ तक कि अहम मौकों पर मैंने अपने हितों की रक्षा करने के लिए कलीसिया के हितों को तिलांजलि दे दी। अगर मेरे इन शैतानी स्वभावों का समाधान न किया गया तो परमेश्वर निश्चित रूप से मेरा तिरस्कार करेगा और मुझे बाहर कर देगा। मैंने अपना भ्रामक दृष्टिकोण भी सुधारा। अतीत में मैं जिन चीजों को स्पष्ट रूप से नहीं समझ पाती थी, उनकी रिपोर्ट करने की हिम्मत नहीं करती थी, मुझे डर लगा रहता था कि मेरा नजरिया समग्र नहीं होगा और अगर मैंने किसी की गलत ढंग से रिपोर्ट दे दी तो मुझे जिम्मेदार ठहराया जाएगा, मानो कि किसी की रिपोर्ट उच्च अगुआ को करने से पहले मुझे 100 फीसदी सुनिश्चित और अचूक होने की जरूरत थी। लेकिन इस मार्ग का अभ्यास करने से बहुत-से झूठे अगुआओं, मसीह-विरोधियों, बुरे लोगों और छद्म-विश्वासियों को समय पर पहचानकर निपटाना संभव नहीं होगा और जब तक उन्हें बरखास्त या निष्कासित करने की नौबत आएगी, तब तक तो वे कलीसिया के कार्य का अच्छा-खासा नुकसान कर चुके होंगे या तमाम तरह की बुराइयाँ कर चुके होंगे और व्यापक नाराजगी भड़का चुके होंगे और नुकसान पहले ही हो चुका होगा। मैंने देखा कि मेरी पहले वाली चिंता “अगर मैं किसी चीज को स्पष्ट रूप से नहीं देख सकती तो इसकी गलत ढंग से रिपोर्ट करने के कारण बाधा और गड़बड़ी पैदा होगी” हास्यास्पद थी। यह सांसारिक आचरण का एक कपटी शैतानी फलसफा भी है और सत्य सिद्धांतों के अनुरूप नहीं है। इस अनुभव के जरिए मैंने वाकई महसूस किया कि परमेश्वर का घर सत्य और धार्मिकता से शासित होता है, कि झूठे अगुआ और मसीह-विरोधी परमेश्वर के घर में टिक नहीं सकते और परमेश्वर का घर झूठे अगुआओं को उजागर और रिपोर्ट करने के न्यायोचित कार्यों का विशेष रूप से समर्थन और अनुमोदन करता है। सत्य का अभ्यास और कलीसिया के हितों की रक्षा करने वाला इंसान बनकर ही व्यक्ति परमेश्वर के इरादों से तालमेल रख सकता है।