94. लेने से देना अधिक धन्य है
कुछ साल पहले कलीसिया अगुआओं ने मुझे वीडियो बनाने के काम में लगाया था। उन्होंने यह भी कहा कि अभी वीडियो बनाने वाले लोगों की कमी है, इसलिए वे मुझे इस काम की प्राथमिक जिम्मेदारी देंगे। यह सुनकर मुझे बहुत खुशी हुई और मैंने सोचा, “लगता है अगुआओं की मेरे बारे में बहुत अच्छी राय है। अगर मैं वीडियो का काम अच्छे से करूँगा तो भाई-बहन भी मेरे बारे में भला सोचेंगे।” इसलिए मैं तुरंत मान गया। कुछ समय बाद सभी भाई-बहन मेरी प्रशंसा करने लगे क्योंकि मैंने काफी वीडियो बना लिए थे। मैं अक्सर यह सोचकर बहुत खुश होता कि मैं यह काम कर पा रहा हूँ और मुझे लगता था कि मैं कलीसिया में एक दुर्लभ प्रतिभा हूँ। हालाँकि मैं बहुत व्यस्त रहता था, मुझे हर दिन बहुत देर तक जागना पड़ता था और यह काम अपने आप में बहुत उबाऊ था, लेकिन मैं खुश था और मुझे जरा भी थकान नहीं होती थी।
कुछ समय बाद अगुआओं ने भाई जकारी को वीडियो प्रोडक्शन तकनीक सीखने के लिए मेरे साथ लगाया। मैंने देखा कि उसका दिमाग बहुत तेज था और वह बहुत जल्दी सीखता था और हमारी सभा में मैंने भाई जोनाथन को भी कहते हुए सुना था कि जकारी में अच्छी काबिलियत है, जिससे मैं थोड़ा असहज हो गया और मैंने सोचा, “जकारी बहुत जल्दी सीखता है। अगर वह मुझसे आगे निकल गया तो क्या वह मुझसे बेहतर नहीं हो जाएगा? अगर वह मुझसे ज्यादा कुशल बन जाए और हर कोई उसकी प्रशंसा करे तो मैं कहाँ खड़ा रहूँगा? मुझे अपनी कुछ तरकीबें छिपाकर रखनी होंगी, मैं उसे वह सब नहीं सिखा सकता जो मैं जानता हूँ, वरना ‘गुरु’ गुड़ ही रह जाएगा और ‘चेला’ चीनी बन जाएगा।” जकारी को बहुत जल्दी सीखने से रोकने के लिए मैंने उसे सिर्फ यह दिखाना शुरू किया कि मैं वीडियो कैसे बनाता हूँ, लेकिन मैंने उसे प्रक्रिया का विवरण देना और जरूरी बातें बताना बंद कर दिया। कुछ दिनों बाद मैंने उसे कुछ प्रासंगिक ट्यूटोरियल दिखाए और फिर उसे खुद अभ्यास करने के लिए कहा। मैंने उससे कहा कि मैंने भी इसी तरह सीखा है और वह अच्छी तरह अभ्यास करने के बाद ही वीडियो बना पाएगा। उसने मेरे निर्देशों का पालन किया और अपना समय अकेले ही अभ्यास करने में बिताया। दरअसल उसे वीडियो बनाना सिखाने का मेरा कभी इरादा ही नहीं था। मैंने मन ही मन सोचा, “मैं तुम्हें कोई तकनीक नहीं सिखाने वाला हूँ, तुम बस खुद कुछ ट्यूटोरियल देख सकते हो। अगर तुम कुछ भी नहीं सीख पाते हो और कुछ भी नहीं कर पाते हो तो अगुआ तुम्हें जरूर वापस भेज देंगे।”
कुछ समय बीत गया और जकारी अभी भी खुद वीडियो नहीं बना पा रहा था क्योंकि उसके सीखने की गति धीमी थी और वह बहुत नकारात्मक महसूस करने लगा। यह देखकर मुझे मन ही मन खुशी हुई और मैंने सोचा, “अच्छा ही है कि तुम कुछ नहीं सीख पा रहे हो। एक बार जब अगुआ यह देखेंगे तो वे तुम्हें किसी और काम में लगा देंगे, इस तरह मुझे किसी से पिछड़ने की चिंता नहीं होगी।” लेकिन फिर मैंने सोचा, “जकारी पिछले कुछ दिनों से नकारात्मक है। अगर मैंने उसकी मदद नहीं की तो क्या वह कहेगा कि मुझमें मानवता नहीं है और करुणा की कमी है?” उसे ऐसा न लगे कि मैं जानबूझकर उसे रोक रहा हूँ और उसे कोई तकनीक नहीं सिखा रहा हूँ, मैंने उसके पास जाकर उसे सांत्वना देने का नाटक करते हुए कहा, “भाई चिंता मत करो, पूरा समय लो। इन तकनीकों को सीखने में थोड़ा समय लगता है। जब मैंने शुरुआत की थी तो मुझे भी बहुत सारे ट्यूटोरियल वीडियो देखने पड़ते थे। अभी भी बहुत सारे वीडियो बनाने हैं। अधिक अभ्यास करने पर तुम जरूर खुद से वीडियो बनाने लगोगे।” बाहरी तौर पर ऐसा लग रहा था कि मैं जकारी की परवाह करता हूँ, लेकिन पीठ पीछे मैंने जोनाथन के सामने उसकी सभी छोटी-छोटी खामियों के बारे में बात की, जिससे जोनाथन के मन में उसके प्रति द्वेष पैदा हो जाए और वह उसे बहिष्कृत और अलग-थलग करने में मेरा साथ दे। मैंने सोचा कि अगर हम सभी जकारी को नजरअंदाज करेंगे तो वह यहाँ और टिक नहीं पाएगा और खुद ही जाने के लिए कह देगा और इस तरह मुझे उसके साथ कोई कर्तव्य नहीं निभाना पड़ेगा। लेकिन जकारी ने कभी नहीं कहा कि वह जाना चाहता है और उसके प्रति मेरा रवैया और भी खराब होता गया। अधिकांश समय, मैं उससे कोई बात नहीं कहना चाहता था। बाद में जोनाथन ने देखा कि मेरी समस्याएँ बहुत गंभीर हैं इसलिए उसने मेरे साथ संगति की और मुझे जकारी के साथ तालमेल बनाकर सहयोग करने के लिए कहा। मुझे भी लगा कि मैं कुछ ज्यादती कर रहा हूँ और मुझे अपराधबोध सा हुआ। मुझे लगा कि मैं जकारी के साथ जैसा व्यवहार कर रहा हूँ वैसा नहीं करना चाहिए, लेकिन मुझे अभी भी डर था कि अगर उसने कुछ कौशल सीख लिए तो वह मुझसे आगे निकल जाएगा, इसलिए मैं उसे सिखाने के लिए तैयार नहीं था। बाद में क्योंकि जकारी अभी भी खुद से वीडियो नहीं बना पा रहा था, अगुआओं ने उसे भेजने और दूसरे काम में लगाने की व्यवस्था की। लेकिन जकारी के जाने के बाद मैं उतना खुश नहीं हुआ जितना मैंने सोचा था। बल्कि मैं एक तरह से असहज हो गया जिसे मैं ठीक से बयान नहीं कर सकता। मैं परमेश्वर की उपस्थिति महसूस नहीं कर पा रहा था, मेरे दिल में अंधेरा छा गया था और मुझे लगा जैसे मैं उलझन में जी रहा हूँ। वीडियो बनाते समय मुझे कोई अच्छा विचार नहीं सूझ रहा था और मैं सीधी-सादी समस्याओं से भी परेशान हो रहा था, जिसके कारण वीडियो अक्सर फिर से बनाने पड़ रहे थे। मुझे घुटन और पीड़ा हो रही थी और अपना कर्तव्य निभाने को लेकर मुझमें पहले जैसा जोश भी नहीं था। बाद में मैंने अपने भाई-बहनों से अपनी अवस्था के बारे में खुलकर बात की। उन्होंने कहा कि मैं प्रतिष्ठा और रुतबे को बहुत ज्यादा महत्व देता हूँ, मेरा स्वभाव अहंकारी है और मुझमें मानवता नहीं है। यह सुनकर मुझे बहुत तकलीफ हुई, लेकिन आखिरकार मैंने आत्म-चिंतन करना शुरू कर दिया। मैंने जकारी के साथ जैसा व्यवहार किया, उसमें मैंने वाकई हद पार कर दी थी और यह ऐसा बिल्कुल नहीं था जो परमेश्वर में विश्वास करने वाला कोई व्यक्ति करता। मेरे अंदर पूरी तरह से मानवता की कमी थी!
तब मैंने परमेश्वर के वचन पढ़ने शुरू किए जो लोगों की अवस्था के इस पहलू को उजागर करते हैं। एक दिन मैंने परमेश्वर के ये वचन पढ़े : “कुछ लोग हमेशा इस बात से डरे रहते हैं कि दूसरे लोग उनसे बेहतर और ऊपर हैं, अन्य लोगों को पहचान मिलेगी, जबकि उन्हें अनदेखा किया जाता है, और इसी वजह से वे दूसरों पर हमला करते हैं और उन्हें अलग कर देते हैं। क्या यह प्रतिभाशाली लोगों से ईर्ष्या करने का मामला नहीं है? क्या यह स्वार्थपूर्ण और निंदनीय नहीं है? यह कैसा स्वभाव है? यह दुर्भावना है! जो लोग दूसरों के बारे में सोचे बिना या परमेश्वर के घर के हितों को ध्यान में रखे बिना केवल अपने हितों के बारे में सोचते हैं, जो केवल अपनी स्वार्थपूर्ण इच्छाओं को संतुष्ट करते हैं, वे बुरे स्वभाव वाले होते हैं, और परमेश्वर में उनके लिए कोई प्रेम नहीं होता” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, अपने भ्रष्ट स्वभाव को त्यागकर ही आजादी और मुक्ति पाई जा सकती है)। “तुम लोगों में से हर एक अधिकता के शिखर तक उठ चुका है; तुम लोग बहुतायत के पितरों के रूप में आरोहण कर चुके हो। तुम लोग अत्यंत स्वेच्छाचारी हो, और आराम के स्थान की तलाश करते हुए और अपने से छोटे भुनगों को निगलने का प्रयास करते हुए उन सभी भुनगों के बीच पगलाकर दौड़ते हो। अपने हृदयों में तुम लोग द्वेषपूर्ण और कुटिल हो, और समुद्र-तल में डूबे हुए भूतों को भी पीछे छोड़ चुके हो। तुम गोबर की तली में रहते हो और ऊपर से नीचे तक भुनगों को तब तक परेशान करते हो, जब तक कि वे बिल्कुल अशांत न हो जाएँ, और थोड़ी देर एक-दूसरे से लड़ने-झगड़ने के बाद शांत होते हो। तुम लोगों को अपनी जगह का पता नहीं है, फिर भी तुम लोग गोबर में एक-दूसरे के साथ लड़ाई करते हो। इस तरह की लड़ाई से तुम क्या हासिल कर सकते हो? यदि तुम लोगों के हृदय वास्तव में मेरा भय मानते तो तुम लोग मेरी पीठ पीछे एक-दूसरे के साथ कैसे लड़ सकते थे? तुम्हारी हैसियत कितनी भी ऊँची क्यों न हो, क्या तुम फिर भी गोबर में एक बदबूदार छोटा-सा कीड़ा ही नहीं हो? क्या तुम पंख उगाकर आकाश में उड़ने वाला कबूतर बन पाओगे?” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जब झड़ते हुए पत्ते अपनी जड़ों की ओर लौटेंगे, तो तुम्हें अपनी की हुई सभी बुराइयों पर पछतावा होगा)। परमेश्वर के न्याय के हर वचन ने मेरा हृदय चीर दिया और खासकर जब मैंने परमेश्वर के ये वचन पढ़े—“प्रतिभाशाली लोगों से ईर्ष्या करना,” “स्वेच्छाचारी होना” और “अपने हृदयों में द्वेषपूर्ण और कुटिल होना” तो मुझे वाकई ऐसा लगा कि परमेश्वर मेरे सामने है और मुझे उजागर कर रहा है। मैंने देखा था कि जकारी का दिमाग बहुत तेज था और वह बहुत जल्दी सीखता था और मुझे चिंता थी कि वह मुझसे आगे निकल जाएगा और फिर ये सारे कौशल सीखने के बाद मेरी जगह ले लेगा। अपना रुतबा बचाने के लिए मैंने न सिर्फ उसे सिखाने से इनकार कर दिया, बल्कि मैंने जानबूझकर उसे दबाया, उसे सीखने से रोका और जोनाथन को भी अपने साथ मिलाने की कोशिश की ताकि उसे बाहर रखा जाए और अलग-थलग किया जाए ताकि उसे यह कर्तव्य बहुत कठिन लगे और वह छोड़कर चले जाना चाहे। मैंने अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे की रक्षा के लिए अपने भाई के साथ दुश्मन जैसा व्यवहार किया था। मैंने देखा कि मेरे बहिष्कारवादी रवैये के कारण मेरा भाई इतना नकारात्मक पड़ गया है कि आगे सीखना नहीं चाहता है, फिर भी न केवल मैंने आत्म-चिंतन नहीं किया, बल्कि इसके बजाय मुझे खुशी हुई। मैंने यह भी चाहा कि वह जल्द छोड़कर चला जाए। जोनाथन ने मुझे मेरी समस्या बताई, लेकिन चूँकि मैं बहुत जिद्दी था और अपने रुतबे को इतना महत्व देता था, मैंने कभी आत्म-चिंतन नहीं किया। परिणामस्वरूप जकारी खुद से वीडियो बनाने में असमर्थ रहा और उसे दूसरे काम में लगा दिया गया। मैं वाकई स्वार्थी, नीच और द्वेषपूर्ण था!
बाद में मैंने परमेश्वर के ये वचन पढ़े : “मसीह-विरोधी परमेश्वर के घर और कलीसिया की संपत्ति से सब-कुछ हर लेते हैं और उससे अपनी निजी संपत्ति के समान पेश आते हैं जिसका प्रबंधन उन्हें ही करना हो, और वे इसमें किसी भी दूसरे को दखल देने की अनुमति नहीं देते हैं। कलीसिया का कार्य करते समय वे केवल अपने हितों, अपनी हैसियत और अपने गौरव के बारे में ही सोचते हैं। वे किसी को भी अपने हितों को नुकसान नहीं पहुँचाने देते, किसी योग्य व्यक्ति को या किसी ऐसे व्यक्ति को, जो अनुभवजन्य गवाही देने में सक्षम है, अपनी प्रतिष्ठा और हैसियत को खतरे में डालने तो बिल्कुल भी नहीं देते। ... जब कोई व्यक्ति थोड़ा कार्य करके अलग दिखने लगता है, या जब कोई सच्ची अनुभवजन्य गवाही बताने में सक्षम होता है, और इससे परमेश्वर के चुने हुए लोगों को लाभ, शिक्षा और सहारा मिलता है और इसे सभी से बड़ी प्रशंसा प्राप्त होती है, तो मसीह-विरोधियों के मन में ईर्ष्या और नफरत पैदा हो जाती है, और वे उस व्यक्ति को अलग-थलग करने और दबाने की कोशिश करते हैं। वे किसी भी परिस्थिति में ऐसे लोगों को कोई काम नहीं करने देते, ताकि उन्हें अपने रुतबे को खतरे में डालने से रोक सकें। ... मसीह-विरोधी मन-ही-मन सोचते हैं, ‘मैं इसे कतई बरदाश्त नहीं करूँगा। तुम मेरे साथ प्रतिस्पर्धा करने के लिए मेरे क्षेत्र में एक भूमिका पाना चाहते हो। यह असंभव है; इसके बारे में सोचना भी मत। तुम मुझसे अधिक शिक्षित हो, मुझसे अधिक मुखर हो, और मुझसे अधिक लोकप्रिय हो, और तुम मुझसे अधिक परिश्रम से सत्य का अनुसरण करते हो। अगर मुझे तुम्हारे साथ सहयोग करना पड़े और तुम मेरी सफलता चुरा लो, तो मैं क्या करूँगा?’ क्या वे परमेश्वर के घर के हितों पर विचार करते हैं? नहीं” (वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद आठ : वे दूसरों से केवल अपने प्रति समर्पण करवाएँगे, सत्य या परमेश्वर के प्रति नहीं (भाग एक))। परमेश्वर के वचन उजागर करते हैं कि मसीह-विरोधी रुतबा हासिल करने और दूसरों से सम्मान पाने के लिए अपने पास उपलब्ध हर साधन का इस्तेमाल करते हैं, ताकि वे अपने रुतबे को खतरे में डाल सकने वाले किसी भी व्यक्ति को सताकर बहिष्कृत कर सकें और उन्हें कलीसिया के कार्य की भी कोई परवाह नहीं होती। मैंने देखा कि मेरे कार्यकलाप एक मसीह-विरोधी के कार्यकलाप थे और मैं सिर्फ दूसरों की प्रशंसा पाने के लिए अपना कर्तव्य निभा रहा था। मुझे डर था कि जकारी मुझसे आगे निकल जाएगा और कुछ कौशल सीखने के बाद मेरी जगह ले लेगा, इसलिए मैंने उसे नहीं सिखाया और पीठ पीछे उसकी आलोचना की और उसे अलग-थलग कर दिया। मैंने कलीसिया के इस काम को अपना खुद का उद्यम माना। मैं मनमर्जी से काम करना चाहता था, मनमाने ढंग से पेश आना चाहता था और अपने पास मौजूद हर साधन का इस्तेमाल करके किसी भी ऐसे व्यक्ति पर हमला करना और उसे बाहर करना चाहता था जो मेरे रुतबे के लिए खतरा बन सकता था। मैं कलीसिया के हितों के बारे में जरा भी नहीं सोच रहा था। रुतबे की इच्छा वाकई मेरे सिर पर सवार थी और मैं सारी सूझ-बूझ की भावना खो बैठा था! अब राज्य का सुसमाचार फैलाने का एक महत्वपूर्ण समय है। हमें परमेश्वर के प्रकटन और कार्य की गवाही देने के लिए और अधिक वीडियो बनाने की जरूरत है। अगर मैंने जकारी को वह सब कुछ सिखाया होता जो मैं जानता था तो वह अपनी प्रतिभा सामने ला पाता और अगर हम एक साथ मिलकर तालमेल से काम कर पाते तो हमारे वीडियो बनाने की गति बढ़ जाती और हम राज्य का सुसमाचार फैलाने में अपने साधारण प्रयासों से योगदान दे पाते, इस तरह अपनी जिम्मेदारियाँ और कर्तव्य निभा पाते। लेकिन मैंने बस यही सोचा कि कोई दूसरा साथी मेरे रुतबे के लिए कैसे खतरा बन सकता है। मुझे सिर्फ अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे की परवाह थी और मैंने परमेश्वर के इरादे या कलीसिया के काम पर असर पड़ने के बारे में नहीं सोचा, न ही मैंने अपने भाई की भावनाओं के बारे में सोचा। मैंने अपने रुतबे पर असर पड़ने देने के बजाय अपने कर्तव्य टालने पसंद किए। मैं वाकई स्वार्थी था और मुझमें मानवता की कमी थी! मैं अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे के लिए कुछ भी करने को तैयार था, फिर चाहे कलीसिया के हितों की बलि ही क्यों न चढ़ जाए। मैं एक मसीह-विरोधी के मार्ग पर चल रहा था!
एक दिन अपनी आध्यात्मिक भक्ति के दौरान मैंने परमेश्वर के और वचन पढ़े : “जब लोग रुतबे के पीछे भागते हैं, तो परमेश्वर को इससे बेहद घृणा होती है, क्योंकि रुतबे के पीछे भागना शैतानी स्वभाव है, यह एक गलत मार्ग है, यह शैतान की भ्रष्टता से पैदा होता है, परमेश्वर इसका तिरस्कार करता है और परमेश्वर इसी चीज का न्याय और शुद्धिकरण करता है। लोगों के रुतबे के पीछे भागने से परमेश्वर को सबसे ज्यादा घृणा है और फिर भी तुम अड़ियल बनकर रुतबे के लिए होड़ करते हो, उसे हमेशा संजोए और संरक्षित किए रहते हो, उसे हासिल करने की कोशिश करते रहते हो। क्या इन तमाम चीजों की प्रकृति परमेश्वर-विरोधी नहीं है? लोगों के लिए रुतबे को परमेश्वर ने नियत नहीं किया है; परमेश्वर लोगों को सत्य, मार्ग और जीवन प्रदान करता है, ताकि वे अंततः मानक स्तर के सृजित प्राणी, एक छोटा और नगण्य सृजित प्राणी बन जाएँ—वह इंसान को ऐसा व्यक्ति नहीं बनाता जिसके पास रुतबा और प्रतिष्ठा हो और जिस पर हजारों लोग श्रद्धा रखें। और इसलिए, इसे चाहे किसी भी दृष्टिकोण से देखा जाए, रुतबे के पीछे भागने का मतलब एक अंधी गली में पहुँचना है। रुतबे के पीछे भागने का तुम्हारा बहाना चाहे जितना भी उचित हो, यह मार्ग फिर भी गलत है और परमेश्वर इसे स्वीकृति नहीं देता। तुम चाहे कितना भी प्रयास करो या कितनी बड़ी कीमत चुकाओ, अगर तुम रुतबा चाहते हो, तो परमेश्वर तुम्हें वह नहीं देगा; अगर परमेश्वर तुम्हें रुतबा नहीं देता, तो तुम उसे पाने की लड़ाई में नाकाम रहोगे, और अगर तुम लड़ाई करते ही रहोगे, तो उसका केवल एक ही परिणाम होगा : बेनकाब करके तुम्हें हटा दिया जाएगा, और तुम्हारे सारे रास्ते बंद हो जाएँगे” (वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ (भाग तीन))। परमेश्वर के कठोर वचन पढ़कर मुझे एहसास हुआ कि परमेश्वर का धार्मिक स्वभाव कोई भी अपमान बर्दाश्त नहीं करता और जब मैंने सोचा कि मैंने क्या किया है तो मैं बहुत डर गया। मेरे रुतबे की चाहत परमेश्वर को नापसंद थी और यह निश्चित मृत्यु की ओर ले जाने वाला मार्ग था! अगर कलीसिया मुझे वीडियो बनाने के अभ्यास का मौका न देती और परमेश्वर मेरा मार्गदर्शन न करता तो मैं ये सभी कौशल कैसे सीख पाता? कलीसिया ने मुझे जकारी को सिखाने में लगाया था और मुझे उसे वह सब कुछ सिखाना चाहिए था जो मुझे आता था और कर्तव्य अच्छी तरह से निभाने के लिए उसके साथ सहयोग करना चाहिए था। केवल यही परमेश्वर के इरादे के अनुरूप होता। परमेश्वर को उम्मीद थी कि मैं अपने कर्तव्य के दौरान सत्य का अनुसरण कर पाऊँगा, मैं अपने भ्रष्ट स्वभाव उतार फेंकने में सक्षम हो जाऊँगा और परमेश्वर को संतुष्ट करने के लिए मुझे जो कर्तव्य निभाना चाहिए उसे अच्छे से निभा पाऊँगा। केवल यही सही मार्ग था और मुझे परमेश्वर में अपनी आस्था में इसका अनुसरण करना चाहिए था। लेकिन मैं अपनी आस्था में सत्य का अनुसरण नहीं कर रहा था। इसके बजाय मैं अपना जीवन जीने के लिए इन शैतानी जहरों पर निर्भर था कि “सिर्फ एक अल्फा पुरुष हो सकता है” और “जब कोई छात्र हर वो चीज़ सीख जाएगा जो उसका गुरु जानता है, तो गुरु के हाथ से उसकी आजीविका चली जाएगी।” मैंने अपने कौशल को अपनी निजी संपत्ति के रूप में देखा और मैं इसे दूसरे भाई-बहनों को सिखाने का अनिच्छुक था, डरता रहा कि वे मुझसे आगे निकल जाएँगे और परिणामस्वरूप मैं अपना रुतबा और दूसरों से मिलने वाला सम्मान खो दूँगा। मैंने अपने रुतबे को स्थिर करने के लिए दूसरों को बहिष्कृत किया और दबाया। मैं वाकई अंतरात्मा और विवेक रहित था! मैंने उन सभी मसीह-विरोधियों के बारे में सोचा जिन्हें कलीसिया से निकाल दिया गया था। वे सभी कलीसिया के भीतर एकछत्र सत्ता चाहते थे और अपना रुतबा बचाने के लिए वे ऐसे किसी भी व्यक्ति पर हमला करने और उसे बहिष्कृत करने के लिए तैयार थे जिसे वे अपने रुतबे के लिए खतरा मानते थे। चाहे उन्होंने दूसरों को कितना भी नुकसान पहुँचाया हो या कलीसिया के काम को कितनी भी बुरी तरह से बाधा और नुकसान पहुँचाया, उन्हें जरा भी परवाह नहीं थी। अंत में उनके द्वारा की गई सभी बुराइयों के कारण उन्हें परमेश्वर ने निकाल दिया। मैंने देखा कि मेरे कार्यकलापों से जो स्वभाव प्रकट हो रहा था, वह किसी मसीह-विरोधी के स्वभाव से अलग नहीं था; यह स्वार्थी और द्वेषपूर्ण था और परमेश्वर को इससे नफरत और घृणा है। इस विचार ने मुझे बहुत डरा दिया और मैं अपराध बोध और पश्चात्ताप की भावना से भर गया। मैं परमेश्वर के सामने गिर पड़ा और प्रार्थना की, “हे परमेश्वर, मैंने गलती की है; मैं रुतबे के लालच में अंधा हो गया, सारा विवेक गँवा बैठा और मैंने अपने भाई को नुकसान पहुँचाया। हे परमेश्वर, मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था और मैं पश्चात्ताप करने को तैयार हूँ। अगर मैं फिर से ऐसा करता हूँ तो मुझे अनुशासित करना।”
बाद में अगुआओं ने दो और भाइयों को मेरे साथ सहयोग करने के लिए बुलावा भेजा। उन्होंने कहा कि मैं उन्हें सिखाऊँ, इससे वीडियो निर्माण कार्य तेजी से आगे बढ़ेगा और मुझे अपने काम का बोझ थोड़ा-सा हल्का करने में मदद मिलेगी। यह सुनकर मैंने मन ही मन सोचा, “तो वे दो लोगों को एक साथ सीखने के लिए बुला रहे हैं; अगर मैं उन्हें वह सब कुछ सिखा दूँ जो मैं जानता हूँ तो क्या वे जल्द ही मुझसे आगे निकल जाएँगे?” मैं थोड़ा चिंतित और अनिच्छुक था, लेकिन अपनी प्रतिष्ठा बचाने के लिए मेरे पास दोनों भाइयों को सिखाने के लिए सहमत होने के अलावा कोई चारा नहीं था। लेकिन उन्हें वास्तव में सिखाते समय मैं अभी भी उन मुख्य बिंदुओं और आवश्यक बातों को बताने के लिए तैयार नहीं था, जिनमें मैंने महारत हासिल कर ली थी। मैं चीजों को छिपाना चाहता था और उन्हें केवल बुनियादी तकनीकें सिखाना चाहता था। लेकिन जब मैंने ऐसा करने के बारे में सोचा तो मुझे बहुत बेचैनी हुई और लगा कि मैं जो कर रहा हूँ वह स्वार्थी, घृणित और मानवता की कमी है। बाद में मैंने परमेश्वर के वचन पढ़े : “अविश्वासियों में एक विशेष तरह का भ्रष्ट स्वभाव होता है। जब वे अन्य लोगों को कोई पेशेवर ज्ञान या कौशल का कुछ हिस्सा सिखाते हैं, तो वे सोचते हैं, ‘जब कोई छात्र हर वो चीज़ सीख जाएगा जो उसका गुरु जानता है, तो गुरु के हाथ से उसकी आजीविका चली जाएगी। अगर मैं दूसरों को वह सब-कुछ सिखा देता हूँ जो मैं जानता हूँ, तो फिर कोई मेरा आदर या प्रशंसा नहीं करेगा और मैं एक शिक्षक के रूप में अपनी सारी प्रतिष्ठा खो बैठूँगा। यह नहीं चलेगा। मैं उन्हें वह सब-कुछ नहीं सिखा सकता जो मैं जानता हूँ, मुझे कुछ बचाकर रखना चाहिए। मैं उन्हें जो कुछ मैं जानता हूँ उसका केवल अस्सी प्रतिशत ही सिखाऊँगा और बाकी बचाकर रखूँगा; यह दिखाने का यही एकमात्र तरीका है कि मेरे कौशल दूसरों के कौशल से श्रेष्ठ हैं।’ यह किस तरह का स्वभाव है? यह कपट है। दूसरों को सिखाते समय, उनकी सहायता करते समय या उनके साथ अपनी पढ़ी हुई कोई चीज साझा करते समय तुम लोगों को कैसा रवैया अपनाना चाहिए? (मुझे कोई कसर नहीं छोड़नी चाहिए और कुछ भी बचाकर नहीं रखना चाहिए।) कोई व्यक्ति कैसे कुछ भी बचाकर नहीं रखता? अगर तुम कहते हो, ‘जब बात उन चीजों की आती है जिन्हें मैंने सीखा है, तो मैं कुछ भी बचाकर नहीं रखता और मुझे तुम सब को उन चीजों के बारे में बताने में कोई परेशानी नहीं है। वैसे भी मैं तुम सबसे ज्यादा काबिल हूँ और अभी भी मैं अधिक उन्नत चीजों को समझ सकता हूँ’—यह अभी भी चीजों को बचाकर रखने और उनका हिसाब लगाने वाली बात है। या अगर तुम कहते हो, ‘मैं तुम लोगों को वे सभी बुनियादी चीजें सिखाऊँगा जो मैंने सीखी हैं, इसमें कोई बड़ी बात नहीं है। मेरे पास अभी भी अधिक ज्ञान है, और यहाँ तक कि अगर तुम सब लोग यह सब सीख भी लेते हो, तब भी तुम मेरी बराबरी नहीं कर पाओगे’—यह अभी भी चीजों को बचाकर रखना है। अगर कोई व्यक्ति अधिक स्वार्थी है तो उसे परमेश्वर की आशीष प्राप्त नहीं होगी। लोगों को परमेश्वर के इरादों के प्रति विचारशील होना सीखना चाहिए। परमेश्वर के घर में तुम्हें उन सबसे महत्वपूर्ण और आवश्यक चीजों का योगदान करना चाहिए जिन्हें तुमने अच्छी तरह समझ लिया है, जिससे कि परमेश्वर के चुने गए लोग उन्हें सीखकर उनमें महारत हासिल कर सकें—यही परमेश्वर की आशीष पाने का एकमात्र रास्ता है और वह तुम्हें और भी बहुत कुछ देगा। जैसा कि कहा जाता है, ‘लेने से देना धन्य है।’ तुम अपनी सभी प्रतिभाओं और गुणों को परमेश्वर को सौंप दो, उन्हें अपने कर्तव्य निर्वहन में प्रदर्शित करो जिससे कि हर किसी को इसका लाभ मिल सके और उन्हें उनके कर्तव्यों के परिणाम प्राप्त हो सकें। अगर तुम अपने गुणों और प्रतिभाओं का संपूर्ण योगदान करते हो तो यह कलीसिया के कार्य के लिए और उन सभी के लिए फायदेमंद होंगे जो उस कर्तव्य को निभाते हैं। सभी को कुछ साधारण बातें बताकर यह मत सोचो कि तुमने काफी अच्छा किया है या फिर तुमने किसी किसी चीज को बचाकर नहीं रखा है—ऐसे नहीं चलेगा। तुम केवल वे कुछ सिद्धांत या चीजें ही सिखाते हो जिन्हें लोग शब्दशः समझ सकते हैं, लेकिन सार या महत्वपूर्ण बिंदु किसी नौसिखिए की समझ से परे होते हैं। तुम विस्तार में जाए बिना या विवरण दिए बिना, सिर्फ़ एक संक्षिप्त वर्णन देकर सोचते हो, ‘खैर, मैंने तुम्हें बता दिया है, और मैंने जानबूझकर कोई भी चीज़ छिपाकर नहीं रखी है। अगर तुम नहीं समझ पा रहे हो, तो ऐसा इसलिए है क्योंकि तुम्हारी क्षमता बड़ी खराब है, इसलिए मुझे दोष मत दो। हमें बस यह देखना होगा कि अब परमेश्वर तुम्हें आगे कैसे ले जाता है।’ इस तरह की विवेचना में छल होता है, है कि नहीं? क्या यह स्वार्थी और घिनौना व्यवहार नहीं है? तुम लोग क्यों दूसरों को अपने दिल की हर बात और हर वो चीज़ सिखा नहीं सकते हो जो तुम समझते हो? इसकी बजाय तुम ज्ञान को क्यों रोकते हो? यह तुम्हारे इरादों और तुम्हारे स्वभाव की समस्या है। अधिकांश लोगों को जब पहली बार व्यवसाय-संबंधी ज्ञान के कुछ विशिष्ट पहलूओं से परिचित कराया जाता है, तो वे केवल इसके शाब्दिक अर्थ को समझ सकते हैं; मुख्य बिंदु और सार समझ पाने के लिए एक अवधि तक अभ्यास अपेक्षित होता है। अगर तुम पहले ही इन बारीकियों में महारत हासिल कर चुके हो, तो तुम्हें उनके बारे में दूसरों को सीधे बता देना चाहिए; उन्हें इस तरह के घुमावदार रास्ते पर जाने और टटोलने में इतना ज्यादा समय लगाने के लिए बाध्य मत करो। यह तुम्हारी ज़िम्मेदारी है; तुम्हें यही करना चाहिए। जिन चीजों को तुम मुख्य बातें और सार मानते हो, अगर तुम उन्हें दूसरों को बता दोगे तो तुम किसी भी चीज को बचाकर नहीं रखोगे और न ही स्वार्थी बनोगे। जब तुम लोग अन्य लोगों को कौशल सिखाते हो, उन्हें अपने पेशे के बारे में बताते हो या फिर जीवन प्रवेश के बारे में उनसे संगति करते हो, यदि तुम अपने भ्रष्ट स्वभावों के स्वार्थी और घृणित पहलुओं का समाधान नहीं कर पाते हो, तो तुम अच्छी तरह से अपने कर्तव्यों का पालन नहीं कर पाओगे; इस स्थिति में, तुम लोग वो नहीं हो जिनमें इंसानियत या अंतरात्मा और विवेक है या जो सत्य का अभ्यास करता है। तुम्हें अपने भ्रष्ट स्वभाव का समाधान करने के लिए सत्य की खोज करनी चाहिए और उस बिंदु पर पहुँचना चाहिए, जहाँ पर तुम स्वार्थी मंशाओं से दूर रहो और केवल परमेश्वर के इरादों पर विचार करो। इस प्रकार तुम्हारे पास सत्य वास्तविकता होगी। लोगों का सत्य का अनुसरण न करना और अविश्वासियों की तरह शैतानी स्वभावों के अनुसार जीवन जीना बहुत ही थकाऊ है। अविश्वासियों के बीच तीव्र प्रतिस्पर्धा चल रही है। किसी कौशल या पेशे के सार में महारत हासिल करना कोई आसान बात नहीं है और जब कोई इसके बारे में जान लेगा और स्वयं इसमें महारत हासिल कर लेगा तो तुम्हारी आजीविका खतरे में पड़ जाएगी। अपनी आजीविका की सुरक्षा के लिए लोगों को इस तरह से कार्य करने के लिए प्रेरित किया जाता है—उन्हें हर समय सजग रहना चाहिए। जिसमें उन्हें महारत हासिल है, वही उनकी सबसे मूल्यवान मुद्रा है, यही उनकी आजीविका है, उनकी पूंजी है, उनकी जीवनधारा है और उन्हें इसमें किसी अन्य व्यक्ति को शामिल नहीं होने देना चाहिए। परन्तु तुम परमेश्वर में विश्वास करते हो—यदि तुम परमेश्वर के घर में इस तरह सोचते हो और इस तरह काम करते हो तो तुममें और अविश्वासियों में कोई अंतर नहीं है। यदि तुम सत्य को बिल्कुल भी नहीं स्वीकारते और शैतानी फलसफों के अनुसार जीते रहते हो, तो तुम वो व्यक्ति नहीं हो जिसे वास्तव में परमेश्वर पर विश्वास है। यदि तुम अपना कर्तव्य पालन करते समय हमेशा स्वार्थी मंशा और तुच्छ मानसिकता रखते हो, तो तुम्हें परमेश्वर की आशीष नहीं मिलेगी” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, भाग तीन)। परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद मुझे एहसास हुआ कि शैतानी फलसफा “जब कोई छात्र हर वो चीज़ सीख जाएगा जो उसका गुरु जानता है, तो गुरु के हाथ से उसकी आजीविका चली जाएगी” एक ऐसा नियम है जिसका पालन गैर-विश्वासी करते हैं और यह कार्य करने का एक स्वार्थी और घृणित तरीका है। जब भाई-बहन एक साथ कोई कर्तव्य निभाते हैं तो वे अपनी कमियों की भरपाई करने के लिए एक-दूसरे की खूबियों पर भरोसा करते हैं और वे कर्तव्य अच्छी तरह से निभाने के लिए सहयोग करते हैं। परमेश्वर में विश्वासी के रूप में मुझे परमेश्वर के वचनों के अनुसार आचरण और कार्य करना चाहिए। मैं अपने भ्रष्ट स्वभाव पर भरोसा कर अपनी मनमर्जी से काम नहीं कर सकता। मुझे भाई-बहनों को ठीक से अध्ययन करने देना था, उन्हें वीडियो बनाने की मुख्य और अनिवार्य बातें सिखानी थीं और उनसे कुछ भी नहीं छिपाना था। मुझे उन्हें अपनी पढ़ाई में भटकने से रोकना था ताकि वे जल्दी से जल्दी वीडियो बनाना शुरू कर सकें। ये वो जिम्मेदारियाँ और कर्तव्य थे जिन्हें मुझे पूरा करना था। यही परमेश्वर का इरादा था। इन बातों को समझते हुए जब भाइयों को फिर से सिखाने का समय आया तो मैंने उन्हें वे सभी मुख्य और अनिवार्य बातें सिखाईं जिनमें मुझे महारत हासिल थी। कुछ समय बाद वे वीडियो बनाने में कुछ प्रगति करने लगे। चूँकि मदद करने के लिए दो और लोग थे, इसलिए हमारे कर्तव्य की दक्षता भी बढ़ गई। इसके अलावा भाइयों को सिखाने की प्रक्रिया में मेरे अपने कौशल भी ठोस और मजबूत हो गए। मैंने सीखा कि केवल अपना स्वार्थी और घृणित इरादा छोड़कर, सत्य का अभ्यास करके, अपने कर्तव्य अच्छी तरह से निभाने के बारे में सोचकर और इस बात पर विचार करके कि कैसे अभ्यास करना है जिससे कलीसिया के काम को लाभ हो और किस तरह से कार्य करना है जिससे मेरे भाई-बहनों को मदद मिले, मुझे सहजता और शांति का एहसास हुआ।
पीछे मुड़कर देखने पर मुझे एहसास हुआ कि मैं शैतानी जहर के साथ जी रहा था और मैं स्वार्थी और द्वेषपूर्ण था। मेरे कार्यकलाप और आचरण मेरे भाई-बहनों के लिए या कलीसिया के कार्य के लिए फायदेमंद नहीं थे, बल्कि वे परेशान करने वाले और विनाशकारी थे और वाकई परमेश्वर के हृदय को चोट पहुँचा रहे थे। परमेश्वर के वचनों ने मुझे यह समझने में मदद की कि मैं कितना द्वेषपूर्ण और स्वार्थी था और यह समझने में मदद की कि सामान्य मानवता क्या है, जो लोग परमेश्वर में विश्वास करते हैं उन्हें क्या करना चाहिए, उन्हें कैसे आचरण करना चाहिए और साथ ही इससे मुझे परमेश्वर के धार्मिक स्वभाव की कुछ वास्तविक समझ मिली। जब मैं अड़ियल, विद्रोही था और अपने भ्रष्ट स्वभाव में जी रहा था तो परमेश्वर ने मुझसे अपना चेहरा छिपा लिया, लेकिन जब मैंने पश्चात्ताप किया और परमेश्वर के सामने गलती मानी और उसके वचनों के अनुसार अभ्यास किया तो उसने फिर से मुझ पर कार्य करना शुरू कर दिया और मुझे प्रबुद्ध और रोशन करने के लिए उसने अपने वचनों का उपयोग किया ताकि मैं खुद को जान सकूँ। मुझे एहसास हुआ कि परमेश्वर का उद्धार वाकई कितना वास्तविक और व्यावहारिक है!