93. मैंने एक सुरक्षित नौकरी कैसे ठुकरा दी

टेरी, जापान

मेरा जन्म एक गरीब, पिछड़े, ग्रामीण परिवार में हुआ था। बचपन से ही मेरे पिता मुझे पढ़ाई पर जोर देने के लिए कहते रहे, ताकि भविष्य में एक अच्छे विश्वविद्यालय में दाखिला मिल सके, अच्छा भविष्य हो और मैं एक खुशहाल जिंदगी जी सकूँ। पर सब कुछ मेरी योजना के मुताबिक नहीं हुआ। मैं हाई स्कूल की प्रवेश परीक्षा में लगातार तीन साल फेल होता रहा। इससे मैं जीवन में अपने भविष्य को लेकर उलझन में पड़ गया और मेरा आत्मविश्वास जाता रहा। उस समय मैं बहुत मनसिक तनाव और पीड़ा से गुजर रहा था। चौथे साल आखिर मुझे एक रेलवे इंजीनियरिंग स्कूल में दाखिला मिल गया; स्नातक की डिग्री मिलने के बाद मुझे रेलवे ब्यूरो के दफ्तर में एक सुरक्षित नौकरी मिल गई।

मार्च 1999 में मैंने और मेरी पत्नी ने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों का कार्य स्वीकार कर लिया। मैं बड़ी कर्मठता से अपना कर्तव्य निभाने लगा और कलीसिया जीवन में भाग लेने लगा, छह महीने बाद, मुझे कलीसिया का अगुआ चुन लिया गया। पर अगुआ बनने के बाद, सभाओं और अपने कर्तव्य में ज्यादा समय बिताने के कारण नौकरी के साथ टकराव होने लगा। सभाओं के छूट जाने से बचने के लिए मुझे महीने में कई बार छुट्टी लेनी पड़ती थी। इससे वेतन कटने के साथ-साथ, महीने के आखिर में मिलने वाला बोनस भी मारा जाता। मेरे बॉस ने नाराजगी जाहिर करते हुए कहा, “तुमने अभी-अभी नौकरी शुरू की है, इसलिए तुम्हें अच्छा काम करना चाहिए। अगर तुम हमेशा छुट्टी लेते रहोगे, तो वेतन के एक बड़े हिस्से के साथ-साथ अपना बोनस भी गंवा दोगे; क्या यह बेवकूफी नहीं है? मैंने हमेशा तुम्हारा ध्यान रखा है, पर अगर तुम हमेशा छुट्टियाँ माँगते रहोगे, तो तुम्हें तरक्की देना मुश्किल होगा।” बाद में, जब मुझे फिर से छुट्टी मांगनी पड़ी, तो मुझे बड़ा अजीब सा लगा। मैं सोच रहा था, “मेरा बॉस मेरे साथ अच्छा बर्ताव करता है। अगर मैं हमेशा छुट्टी लेकर उस पर बुरा प्रभाव छोड़ता रहा, तो मुझे तरक्की मिलना मुश्किल हो जाएगा। अब मैं और छुट्टियाँ नहीं माँग सकता, नहीं तो मेरा बॉस मुझसे खुश नहीं रहेगा।” पर फिर मैंने सोचा कि अगर एक कलीसिया अगुआ होकर भी मैं सभाओं में नहीं गया, तो मुझे कलीसिया के काम या भाई-बहनों की हालत का ज्यादा पता नहीं चलेगा, तो मैं कलीसिया का काम अच्छे से कैसे कर पाऊँगा? मैं बड़ी उलझन में था। इससे पार पाने का कोई रास्ता न था, तो बहुत बार ऐसा हुआ कि मैंने दफ्तर में रहने का फैसला किया। इससे कलीसिया के काम में देरी होने लगी, और मुझे अपराध-बोध होने लगा।

एक बार, ऊपरी स्तर के अगुआ ने मुझे सहकर्मियों की बैठक की सूचना भेजी, तो मैं फिर से दुविधा में पद्‌ गया। मैंने परमेश्वर से प्रार्थना करके उसका इरादा जानना चाहा। फिर मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा : “परमेश्वर द्वारा मनुष्य पर किए जाने वाले कार्य के प्रत्येक चरण में, बाहर से यह लोगों के मध्य अंतःक्रिया प्रतीत होता है, मानो यह मानव-व्यवस्थाओं द्वारा या मानवीय विघ्न से उत्पन्न हुआ हो। किंतु पर्दे के पीछे, कार्य का प्रत्येक चरण, और घटित होने वाली हर चीज, शैतान द्वारा परमेश्वर के सामने चली गई बाजी है और लोगों से अपेक्षित है कि वे परमेश्वर के लिए अपनी गवाही में अडिग बने रहें। उदाहरण के लिए, जब अय्यूब का परीक्षण हुआ : पर्दे के पीछे शैतान परमेश्वर के साथ होड़ लगा रहा था और अय्यूब के साथ जो हुआ वह मनुष्यों के कर्म थे और मनुष्यों का विघ्न डालना था। परमेश्वर द्वारा तुम लोगों में किए गए कार्य के हर कदम के पीछे शैतान की परमेश्वर के साथ बाजी होती है—इस सब के पीछे एक संघर्ष होता है। ... हर चीज जो लोग करते हैं, उसमें उन्हें अपने प्रयासों के लिए एक निश्चित क़ीमत चुकाने की आवश्यकता होती है। बिना वास्तविक कठिनाई के वे परमेश्वर को संतुष्ट नहीं कर सकते; वे परमेश्वर को संतुष्ट करने के करीब तक भी नहीं पहुँचते और केवल खोखले नारे लगा रहे होते हैं! क्या ये खोखले नारे परमेश्वर को संतुष्ट कर सकते हैं? जब परमेश्वर और शैतान आध्यात्मिक क्षेत्र में संघर्ष करते हैं, तो तुम्हें परमेश्वर को कैसे संतुष्ट करना चाहिए और किस प्रकार उसकी गवाही में अडिग रहना चाहिए? तुम्हें यह पता होना चाहिए कि जो कुछ भी तुम्हारे साथ होता है, वह एक महान परीक्षण है और ऐसा समय है, जब परमेश्वर चाहता है कि तुम उसके लिए गवाही दो। हालाँकि ये बाहर से महत्त्वहीन लग सकती हैं, किंतु जब ये चीजें होती हैं तो ये दर्शाती हैं कि तुम परमेश्वर से प्रेम करते हो या नहीं। यदि तुम करते हो, तो तुम उसके लिए गवाही देने में अडिग रह पाओगे, और यदि तुम उसके प्रति प्रेम को अभ्यास में नहीं लाए हो, तो यह दर्शाता है कि तुम वह व्यक्ति नहीं हो जो सत्य को अभ्यास में लाता है, यह कि तुम सत्य से रहित हो, और जीवन से रहित हो, यह कि तुम भूसा हो!(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल परमेश्वर से प्रेम करना ही वास्तव में परमेश्वर पर विश्वास करना है)। परमेश्वर के वचनों से मैंने देखा कि हम हर रोज जिन लोगों, घटनाओं और चीजों का सामना करते हैं, वे इंसानी मेल-जोल दिखाई देती हैं। पर इनके पीछे परमेश्वर के साथ शैतान की शर्त होती है, और हमें परमेश्वर के लिए अपनी गवाही में मजबूती से डटे रहने की जरूरत होती है। जब अय्यूब के परीक्षणों की घड़ी आई, तो रातोंरात उसकी सारी दौलत चली गई। ऊपर से देखने पर यह लुटेरों का काम लगता था, पर दरअसल इसके पीछे शैतान का प्रलोभन और आक्रमण था। जब अय्यूब परमेश्वर के लिए अपनी गवाही में मजबूती से डटा रहा तो शैतान शर्मिंदा होकर पीछे हट गया। मुझे इस विकल्प का सामना करना था कि मैं काम पर जाऊँ और सभा में शामिल होऊँ और मेरे बॉस ने जो कहा था उससे मैं बेबस था। ऊपर से देखने पर, मेरा बॉस मेरे लिए चिंतित था, मेरी परवाह करता था और मुझे तरक्की देना चाहता था। पर असल में, इसके पीछे शैतान की बाधा थी। शैतान नाम और पैसे का इस्तेमाल करके मुझे सिर्फ अपनी नौकरी पर ध्यान देने और पैसा कमाने का प्रलोभन दे रहा था। वह परमेश्वर के साथ मेरे सामान्य रिश्ते को तबाह करना चाहता था, और मुझे परमेश्वर से दूर रखना चाहता था, ताकि मेरे पास बैठक करने या अपना कर्तव्य निभाने का समय ही न हो। इसमें शैतान का दुष्ट इरादा था। यह सोचते हुए मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, “मैं शैतान की चालों को कभी कामयाब नहीं होने दूँगा।” बाद में, मैंने हिम्मत करके अपने बॉस से छुट्टी मांगी और सहकर्मियों की बैठक में शामिल हुआ।

जैसे-जैसे कलीसिया के काम की व्यस्तता बढ़ने लगी, बहुत-सी चीजों की जल्दी व्यवस्था करके उन्हें लागू करना पड़ता था। अगर मुझे अपना कर्तव्य सही तरीके से निभाना था तो मुझे ज्यादा छुट्टी लेनी पड़ती थी। इस दौरान मैं बहुत त्रस्त रहा और इन हालात से उबर नहीं पाया, जिससे कलीसिया के काम पर असर पड़ा। कभी-कभी मेरे मन में आता था कि नौकरी छोड़ दूँ, ताकि कलीसिया के काम में देर न हो। पर मुझे यह चिंता थी कि फिर मेरा अच्छा-खासा समृद्ध जीवन चौपट हो जाएगा। यह इतनी अच्छी नौकरी थी कि मैं इसे छोड़ने से हिचकिचा रहा था, मेरे मन में निरंतर एक रस्साकशी जारी थी। घर पहुंचा तो मैंने पत्नी से कहा कि मैं नौकरी छोड़ना चाहता हूँ, और मैंने उसे अपने विचार बताए। मैंने कहा, “यह नौकरी छोड़ना आसान नहीं है। इस सुरक्षित नौकरी के लिए मैंने वर्षों कड़ी मेहनत से पढ़ाई की, और वेतन भी अच्छा-खासा है। अगर मैं इसे छोड़ता हूँ, तो मेरे सब रिश्तेदार, दोस्त और सहपाठी क्या सोचेंगे? मेरे माता-पिता को पता चलेगा तो वे यकीनन भड़क उठेंगे। और फिर, मैंने नौकरी छोड़ दी तो हम जिंदगी भर गरीबी में जीते रहेंगे। पर अब, मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर के बहुत-से वचन पढ़ चुका हूँ, और परमेश्वर का इरादा समझता हूँ। भाई-बहनों ने मुझे कलीसिया का अगुआ चुना है। अगर अपनी नौकरी की वजह से मैं कलीसिया के काम में देर करता हूँ, तो क्या मैं अपना कर्तव्य नहीं छोड़ रहा हूँ?” मेरी बात सुनकर मेरी पत्नी ने कहा कि मैं परमेश्वर से प्रार्थना करूँ और अपना फैसला खुद लूँ। उस रात मैं बिस्तर में करवटें बदलता रहा और सो नहीं पाया, मैंने परमेश्वर से प्रार्थना करके मुझे राह दिखाने के लिए कहा। एक दिन, मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों में पढ़ा : “कौन वास्तव में पूरी तरह से मेरे लिए खप सकता है और मेरी खातिर अपना सब-कुछ अर्पित कर सकता है? तुम सभी अनमने हो; तुम्हारे विचार इधर-उधर घूमते हैं, तुम घर के बारे में, बाहरी दुनिया के बारे में, भोजन और कपड़ों के बारे में सोचते रहते हो। इस तथ्य के बावजूद कि तुम यहाँ मेरे सामने हो, मेरे लिए काम कर रहे हो, अपने दिल में तुम अभी भी घर पर मौजूद अपनी पत्नी, बच्चों और माता-पिता के बारे में सोच रहे हो। क्या ये सभी चीजें तुम्हारी संपत्ति हैं? तुम उन्हें मेरे हाथों में क्यों नहीं सौंप देते? क्या तुम्हें मुझ पर पर्याप्त विश्वास नहीं है? या ऐसा है कि तुम डरते हो कि मैं तुम्हारे लिए अनुचित व्यवस्थाएँ करूँगा? तुम हमेशा अपने दैहिक परिवार के बारे में चिंतित क्यों रहते हो और तुम हमेशा अपने प्रियजनों के लिए विलाप क्यों करते रहते हो? क्या तुम्हारे दिल में मेरा कोई निश्चित स्थान है? तुम फिर भी मुझे अपने भीतर प्रभुत्व रखने और अपने पूरे अस्तित्व पर कब्जा करने देने की बात करते हो—ये सभी कपटपूर्ण झूठ हैं! तुम में से कितने लोग कलीसिया के लिए पूरे दिल से समर्पित हो? और तुम में से कौन अपने बारे में नहीं सोचता, बल्कि आज के राज्य की खातिर कार्य कर रहा है? इस बारे में बहुत ध्यानपूर्वक सोचो(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 59)। परमेश्वर के वचनों से उजागर होता है कि लोगों की परमेश्वर में सच्ची आस्था नहीं होती, और वे अपना भविष्य और भाग्य परमेश्वर के हाथ में नहीं सौंप पाते। वे हमेशा अपने दैहिक हितों की चिंता करने और योजना बनाने में लगे रहते हैं, इस डर से कि परमेश्वर इनकी ठीक से व्यवस्था नहीं करेगा। ऐसे लोगों के दिलों में परमेश्वर के लिए कोई जगह नहीं होती। क्या मेरी भी परमेश्वर में कोई आस्था नहीं थी? मैं हमेशा इस चिंता में रहता था कि अगर मैंने नौकरी छोड़ दी, तो मेरे पास गुजर-बसर का कोई साधन नहीं बचेगा। परमेश्वर में मेरी कितनी कम आस्था थी। मुझे हर चीज पर परमेश्वर की संप्रभुता की कोई समझ ही नहीं थी। मुझे प्रभु यीशु के वचन याद आए : “आकाश के पक्षियों को देखो! वे न बोते हैं, न काटते हैं, और न खत्तों में बटोरते हैं; फिर भी तुम्हारा स्वर्गीय पिता उनको खिलाता है। क्या तुम उनसे अधिक मूल्य नहीं रखते?(मत्ती 6:26)। “पहले तुम परमेश्वर के राज्य और उसके धर्म की खोज करो तो ये सब वस्तुएँ भी तुम्हें मिल जाएँगी(मत्ती 6:33)। मैं ये पद गाता और दूसरों को सुनाता रहता था, पर जब मेरे साथ कुछ हुआ तो मैंने परमेश्वर में कोई सच्ची आस्था नहीं दिखाई। परमेश्वर के वचनों पर चिंतन करते हुए मुझे एहसास हुआ कि हर इंसान का भविष्य और भाग्य परमेश्वर के हाथ में है, और परमेश्वर हमेशा उचित व्यवस्थाएं करता रहेगा। परमेश्वर ने वादा किया है कि वह उसके लिए ईमानदारी से खपने वालों से बुरा बर्ताव नहीं करेगा। तो मुझे परमेश्वर पर यह भरोसा क्यों नहीं था? मैं उसी घड़ी अपनी नौकरी छोड़कर अपने कर्तव्य में जुट जाना चाहता था। पर जब मैं दफ्तर में पहुंचा तो मेरे सहकर्मी अपने वेतन में बढ़ोतरी और बोनस की बातें कर रहे थे, और मैं नौकरी छोड़ने से हिचकिचाने लगा। मैं जानता था कि सत्य के अभ्यास के लिए एक कीमत चुकानी पड़ती है, इसलिए मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, और दैहिक हितों से ऊपर उठने के लिए राह दिखाने को कहा, ताकि मैं नौकरी छोड़कर अपना कर्तव्य सही से निभा सकूँ।

कुछ समय बाद ही मुझे एक भयानक अनुभव हुआ जिससे मैं अपने भविष्य के रास्ते के बारे में सोचने लगा। एक शाम, मैं ट्रेन ड्राइवर, यार्ड-मास्टर और दूसरों के साथ ट्रेन की बोगियाँ जोड़ने का काम कर रहा था। मैं एक चलती हुई ट्रेन की सीढ़ी पर खड़ा था, और वॉकी-टॉकी पर कंडक्टर को बोगी जोड़ने के निर्देश दे रहा था। ट्रेन काफी तेज चल रही थी। हमारे काम के तरीके के हिसाब से, जब हम जोड़ी जाने वाली ट्रेन की बोगी से दस बोगियों के फासले पर रह गए तो मैंने रफ्तार कम करने का निर्देश दिया। पर ट्रेन ड्राइवर ने रफ्तार कम नहीं की, और मैं लाचारी से ट्रेन को ट्रैक पर खड़ी बोगी से टकराने जाते देखता रहा। रफ्तार इतनी तेज थी कि मैं कूद भी नहीं सकता था। मैं बस सीढ़ी से हटकर कर अपनी बोगी में घुस पाया। मैंने अपनी आँखें बंद कर लीं, और झटके से खुद को बचाने के लिए बोगी की एक तरफ चिपक गया, और दिल में बार-बार सर्वशक्तिमान परमेश्वर को पुकारने लगा। एक जोरदार धमाके के साथ ट्रेन और बोगी आपस में टकरा गए। सहायक ड्राइवर की बांह की हड्डी टूट गई और उसे उसी रात अस्पताल में भर्ती करवाना पड़ा। मैं आहत होने से ज्यादा सहमा हुआ था—मुझे खरोंच भी नहीं आई थी। उसके बाद, जो कुछ हुआ था, उस बारे में मैं जितना सोचता, उतना ही डर जाता! रेलवे शंटिंग के काम में दुर्घटनाएँ होती रहती हैं, किसी की बांह तो किसी की टांग टूट जाती या कट जाती...। इस खतरे के सामने, एक सुरक्षित नौकरी लोगों की जिंदगी को सुरक्षित नहीं कर सकती। पैसे के पीछे भागने से सिर्फ अस्थाई दैहिक सुख भोगे जा सकते हैं। को, अगर पैसे कमाने के चक्कर में मैं अपनी जिंदगी ही दाँव पर लगा दूँ और परमेश्वर की देखभाल और सुरक्षा खो बैठूँ तो इस सुरक्षित नौकरी का क्या फायदा? अब मैं अपनी सुरक्षित नौकरी को अपने कर्तव्य के रास्ते में आने नहीं दे सकता था। मैंने परमेश्वर के वचनों के अनुसार जीने, और सब कुछ परमेश्वर को सौंपने, उसकी ओर देखने, उसकी संप्रभुता और व्यवस्थाओं के आगे समर्पण करने का फैसला किया। मैंने परमेश्वर के इन वचनों पर विचार किया : “एक ऐसे व्यक्ति के रूप में जो सामान्य है और जो परमेश्वर के लिए प्रेम का अनुसरण करता है, परमेश्वर के जन बनने के लिए राज्य में प्रवेश करना ही तुम सबका असली भविष्य है और यह ऐसा जीवन है, जो अत्यंत मूल्यवान और सार्थक है; कोई भी तुम लोगों से अधिक धन्य नहीं है। मैं यह क्यों कहता हूँ? क्योंकि जो लोग परमेश्वर में विश्वास नहीं करते, वो देह के लिए जीते हैं और वो शैतान के लिए जीते हैं, लेकिन आज तुम लोग परमेश्वर के लिए जीते हो और परमेश्वर की इच्छा के अनुसार चलने के लिए जीवित हो। यही कारण है कि मैं कहता हूँ कि तुम्हारे जीवन अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं। केवल इसी समूह के लोग, जिन्हें परमेश्वर द्वारा चुना गया है, अत्यंत महत्वपूर्ण जीवन जीने में सक्षम हैं : पृथ्वी पर और कोई इतना मूल्यवान और सार्थक जीवन नहीं जी सकता(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के सबसे नए कार्य को जानो और उसके पदचिह्नों का अनुसरण करो)। परमेश्वर के वचन प्रेरक थे। यह सच है कि परमेश्वर से सच्चा प्रेम करने वाले शोहरत, दौलत और दैहिक सुखों के लिए नहीं, परमेश्वर के लिए जीते हैं। सिर्फ परमेश्वर के लिए जीना ही अच्छा और सार्थक जीवन है। मैं सौभाग्यशाली था कि सृष्टिकर्ता की वाणी सुन सका, कुछ सत्यों को समझ सका, और कर्तव्य निभाने का अवसर पा सका। यह बड़ी शानदार बात थी। मुझे एहसास हुआ कि मुझे अपनी छोटी-सी दुनिया में जीते हुए पैसे और दैहिक सुखों के पीछे भागना छोड़ देना चाहिए। मुझे परमेश्वर के आयोजनों और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पित रहते हुए एक सृजित प्राणी के रूप में अच्छे से अपना कर्तव्य निभाना चाहिए।

इसके बाद, मैंने परमेश्वर के वचनों का एक और अंश पढ़ा : “तू उन दयनीय, बेचारे और धार्मिकता के भूखे-प्यासे धर्मनिष्ठ विश्वासियों के साथ, जो तेरी देखरेख की आस लगाए बैठे हैं, अपने दर्शनों और अनुभवों को कैसे बांटेगा? किस प्रकार के लोग तेरी देखरेख की प्रतीक्षा कर रहे हैं? क्या तू सोच सकता है? क्या तू अपने कंधों के बोझ, अपने आदेश और अपने उत्तरदायित्व से अवगत है? ऐतिहासिक मिशन का तेरा बोध कहाँ है? तू अगले युग में प्रधान के रूप में सही ढंग से काम कैसे करेगा? क्या तुझमें प्रधानता का प्रबल बोध है? तू समस्त पृथ्वी के प्रधान का वर्णन कैसे करेगा? क्या वास्तव में संसार के समस्त सजीव प्राणियों और सभी भौतिक वस्तुओं का कोई प्रधान है? कार्य के अगले चरण के विकास हेतु तेरे पास क्या योजनाएं हैं? तुझे चरवाहे के रूप में पाने हेतु कितने लोग प्रतीक्षा कर रहे हैं? क्या तेरा कार्य काफी कठिन है? वे लोग दीन-दुखी, दयनीय, अंधे, भ्रमित, अंधकार में विलाप कर रहे हैं—मार्ग कहाँ है? उनमें टूटते तारे जैसी रोशनी के लिए कितनी ललक है जो अचानक नीचे आकर उन अंधकार की शक्तियों को तितर-बितर कर दे, जिन्होंने वर्षों से मनुष्यों का दमन किया है। कौन जान सकता है कि वे किस हद तक उत्सुकतापूर्वक आस लगाए बैठे हैं और कैसे दिन-रात इसके लिए लालायित रहते हैं? उस दिन भी जब रोशनी कौंधती है, भयंकर कष्ट सहते, रिहाई से नाउम्मीद ये लोग, अंधकार में कैद रहते हैं; वे कब रोना बंद करेंगे? ये दुर्बल आत्माएँ बेहद बदकिस्मत हैं, जिन्हें कभी विश्राम नहीं मिला है। सदियों से ये इसी स्थिति में क्रूर बधंनों और अवरुद्ध इतिहास में जकड़े हुए हैं। उनकी कराहने की आवाज किसने सुनी है? किसने उनकी दयनीय दशा को देखा है? क्या तूने कभी सोचा है कि परमेश्वर का हृदय कितना व्याकुल और चिंतित है? जिस मानवजाति को उसने अपने हाथों से रचा, उस निर्दोष मानवजाति को ऐसी पीड़ा में दुःख उठाते देखना वह कैसे सह सकता है? आखिरकार मानवजाति को विष देकर पीड़ित किया गया है। यद्यपि मनुष्य आज तक जीवित है, लेकिन कौन यह जान सकता था कि उसे लंबे समय से दुष्टात्मा द्वारा विष दिया गया है? क्या तू भूल चुका है कि शिकार हुए लोगों में से तू भी एक है? परमेश्वर के लिए अपने प्रेम की खातिर, क्या तू उन जीवित बचे लोगों को बचाने का इच्छुक नहीं है? क्या तू उस परमेश्वर को प्रतिफल देने के लिए अपना सारा ज़ोर लगाने को तैयार नहीं है जो मनुष्य को अपने शरीर और लहू के समान प्रेम करता है? सभी बातों को नज़र में रखते हुए, तू एक असाधारण जीवन व्यतीत करने के लिए परमेश्वर द्वारा प्रयोग में लाए जाने की व्याख्या कैसे करेगा? क्या सच में तुझमें एक धर्म-परायण, परमेश्वर-सेवी जैसा अर्थपूर्ण जीवन जीने का संकल्प और विश्वास है?(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तुझे अपने भविष्य के मिशन से कैसे पेश आना चाहिए?)। परमेश्वर के वचनों में मैंने मानवजाति के लिए उसके प्रेम और चिंता के साथ-साथ लोगों को बचाने की उसकी तात्कालिक इरादे को महसूस किया। अब हम अंत के दिनों में हैं और आपदाएँ बड़ी होती जा रही हैं। परमेश्वर सत्य व्यक्त करता है, न्याय और ताड़ना का कार्य करता है, ताकि लोगों को शैतान की ताकत से बचाया जा सके। आज मैं सौभाग्यशाली हूँ कि उसकीवाणी सुन सकता हूँ और परमेश्वर का उद्धार स्वीकार कर सकता हूँ, जो परमेश्वर का अनुग्रह है। पर परमेश्वर के प्रकट होने की चाह रखने वाले बहुत-से लोगों ने प्रभु का स्वागत नहीं किया है, और वे अब भी धार्मिक दुनिया के मसीह-विरोधी पादरियों और एल्डरों द्वारा गुमराह हो रहे हैं और उनके नियंत्रण जी रहे हैं। उनके पास परमेश्वर की वाणी सुनने का कोई रास्ता नहीं है। अगर हर कोई मेरी तरह स्वार्थी होगा, सिर्फ दैहिक सुख की परवाह करेगा, और सुसमाचार के प्रचार और परमेश्वर की गवाही देने का काम नहीं करेगा, तो फिर जो परमेश्वर के प्रकट होने के लिए तरस रहे हैं और उसका इंतजार कर रहे हैं, वे प्रभु का स्वागत कब करेंगे? परमेश्वर के इरादे पर विचार करने के बाद, मेरी समझ में आया कि मुझे क्या चुनना और अनुसरण करना चाहिए। इसलिए मैंने नौकरी छोड़ने और सुसमाचार का प्रचार करने के लिए अच्छी तरह अपना कर्तव्य निभाने का फैसला कर लिया। मैं इस्तीफा देने ही वाला था कि अचानक सहायक स्टेशन डायरेक्टर मुझसे मिलने चला आया, और मुझे बताने लगा कि तोहफे कैसे देते हैं और तरक्की पाने में कौन मेरी मदद कर सकता है। उसने मेरे लिए गहरी चिंता परवाह जताई। मुझे पता था कि हर किसी को ऐसी तरक्की का अवसर नहीं मिलता, और मेरे वेतन में भी भारी बढ़ोतरी हो जाती। इस चर्चा के बाद मैं फिर से नौकरी छोड़ने में हिचकिचाने लगा।

इसके कुछ समय बाद ही, मुझे एक और भयानक अनुभव हुआ, जिसके बाद मेरी सोच ही बदल गई। एक दिन, दिन की शिफ्ट में, एक मालगाड़ी को अलग करके स्टेशन पर आने के बाद वापस जोड़ना था। यह सब हो जाने के बाद, पहियों के नीचे कॉक लगाना मेरी जिम्मेदारी थी। लंच ब्रेक के बाद, ट्रेन के चलने से पहले मैं कॉक हटाना भूल गया। ड्राइवर ने ट्रेन को चलाया तो कॉक पहियों के साथ-साथ पटरी पर घिसटते चले गए। ड्राइवर ने देखा कि कुछ गड़बड़ है और समय रहते, स्विच को पार करने से पहले ही ट्रेन को रोक दिया, जिससे गाड़ी पटरी से उतरने या पलटने से बच गई। उस दिन, परमेश्वर की सुरक्षा के बिना, अगर गाड़ी पटरी से उतर जाती या पलट जाती, तो नतीजे की कल्पना करना मुश्किल है। यह बहुत डरावनी घटना थी, और मैं आत्मचिंतन किए बिना नहीं रह सका, कि ऐसा क्यों हुआ। मुझे एहसास हुआ कि कलीसिया अगुआ होने के नाते मैं जानता था कि मेरी नौकरी मेरे कर्तव्य के आड़े आ रही थी, जिससे कलीसिया का काम गंभीर रूप से प्रभावित हो रहा था। पर पैसे और दैहिक सुखों के मोह के कारण मैं इसे छोड़ने के लिए तैयार नहीं था, और परमेश्वर से बार-बार वादा करके भी उन वादों को तोड़ रहा था। मैंने परमेश्वर के वचनों पर विचार किया : “तुम लोगों ने मुझसे अनंत अनुग्रह प्राप्त किया है और तुमने स्वर्ग के अनंत रहस्य देखे हैं; यहाँ तक कि मैंने तुम लोगों को स्वर्ग की लपटें भी दिखाई हैं, लेकिन तुम लोगों को जला देने को मेरा दिल नहीं माना। फिर भी, बदले में तुम लोगों ने मुझे कितना दिया है? तुम लोग मुझे कितना देने के लिए तैयार हो?(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तुम सभी कितने नीच चरित्र के हो!)। ऊपर से देखने पर, जो हुआ था वह अच्छी बात नहीं थी, पर मेरी समझ में आ रहा था कि यह मेरे लिए परमेश्वर का प्रेम था और चेतावनी भी। परमेश्वर ने इतना सारा सत्य व्यक्त किया है, लोगों के नतीजे और उनकी मंजिल के बारे में साफ-साफ बताया है। वह सिर्फ यही चाहता है कि हम उसके तात्कालिक इरादे को समझें, सत्य का सही तरीके से अनुसरण करते हुए एक सृजित प्राणी के कर्तव्य निभाएँ और उसका उद्धार प्राप्त करें। पर मैं अड़ियल था। मैं सोचता था कि अपनी नौकरी पर भरोसा करके मैं एक अच्छी जिंदगी जी सकता हूँ, इसलिए मैं सुरक्षित नौकरी छोड़ने, परमेश्वर का अनुसरण करने और अपना कर्तव्य निभाने से हिचकिचा रहा था। इन दो डरावने हादसों ने मेरी आँखें खोल दीं। तबाही के सामने कितना भी पैसा मेरी जिंदगी बचा नहीं सकता था। मुझे याद आया कि प्रभु यीशु ने कहा था : “तुम में से जो कोई अपना सब कुछ त्याग न दे, वह मेरा चेला नहीं हो सकता(लूका 14:33)। अब जाकर मुझे प्रभु यीशु के इन वचनों का अर्थ समझ में आया। जब हम पैसे और भौतिक सुखों को संजोते हैं, तो ये चीजें हमारे दिल में घर कर लेती हैं, फिर हमारे लिए परमेश्वर से सच्चा प्रेम करना और उसका अनुसरण करना, उसके लिए खपना और एक सृजित प्राणी के रूप में अपना कर्तव्य निभाना नामुमकिन हो जाता है। ऐसे लोग दैहिक और दुनियावी सुखों की लालसा रखते हैं, और परमेश्वर के सच्चे अनुयायी बनने लायक नहीं हैं। मैं अब परमेश्वर के विरुद्ध विद्रोह या उसे निराश नहीं करना चाहता था। मुझे चीजों के प्रति अपनी सोच बदलनी थी, पूरे दिल से उसका अनुसरण करते हुए उसके लिए खपना और उसके प्रेम का प्रतिफल चुकाना था। इसलिए मैंने अपने बॉस से कहा कि मैं इस्तीफा देना चाहता हूँ, और श्रम अनुबंध को रद्द करने की प्रक्रिया में जुट गया। उस समय मैं बहुत शांत था। एक आजाद पंछी की तरह महसूस कर रहा था। अब मुझे बार-बार छुट्टी लेने की चिंता नहीं थी, और न ही अब मुझे नौकरी की वजह से कलीसिया के काम में देर होने का दुख झेलना था। मैं यह फैसला लेकर बहुत खुश था।

मेरे पिता को पता चला तो उन्हें बहुत गुस्सा आया। वे मुझसे मिलने आए और बोले, “मैंने तुम्हारी परवरिश के लिए बहुत मेहनत की, तुम्हारी पढ़ाई के लिए कर्ज उठाया। आखिर तुम्हें एक सुरक्षित नौकरी मिली, और अब तुम इसे नहीं करना चाहते? तुम क्या सोच रहे हो? रेलवे ब्यूरो में नौकरी बहुत बड़ी बात होती है। तुम चाहो तो परमेश्वर में विश्वास करो, पर नौकरी कैसे छोड़ सकते हो? बिना नौकरी के तुम भविष्य में गुजर-बसर कैसे करोगे?” अपने पिता का गुस्सा देखकर मुझे बहुत दुख हुआ। मुझे याद आया कि कैसे मेरे माता-पिता ने एक-एक पैसा बचाकर मुझे पढ़ाया था, इस उम्मीद में कि मुझे एक अच्छी नौकरी मिलेगी और मैं गरीबी से बचकर एक बढ़िया जिंदगी जीऊँगा। मैं अपने माता-पिता को भी देहात से शहर में एक ऊंची बिल्डिंग में लाना और उन्हें सुख-सुविधा भरी जिंदगी देना चाहता था। पर मैंने परमेश्वर में विश्वास का रास्ता चुना था और अब मैं पैसे और भौतिक सुखों के पीछे नहीं भाग रहा था। मैं उन्हें उस तरह आ जीवन नहीं दे सकता था, मैं उनका ऋणी महसूस कर रहा था। मेरे पास अपने पिता की बातों का कोई जवाब नहीं था। मेरी आँखों में आँसू आ गए और मैं उनकी तरफ देखने की भी हिम्मत नहीं कर पाया। पर अपने दिल में स्पष्ट था कि मैंने सही फैसला लिया था, क्योंकि मैं जानता था कि उद्धारकर्ता प्रकट हो चुका है और वह अंत के दिनों में अपना कार्य कर रहा है। वह हमें इस अंधेरी और बुरी दुनिया से बचाने के लिए सत्य व्यक्त करता है, बचाए जाने और स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने का यही एक तरीका है। यह जीवन में सिर्फ एक बार मिलने वाला अवसर है। मैं दैहिक सुखों की ललक में इसे कैसे छोड़ देता? मैं नौकरी के बंधनों को सत्य के अनुसरण और एक सृजित प्राणी का कर्तव्य निभाने में कैसे आड़े आने देता? मैंने दुखी मन से परमेश्वर से मूक प्रार्थना की, और मेरे दिल को विचलित होने से बचाने का अनुरोध किया। मैंने परमेश्वर के वचनों के बारे में सोचा : “परमेश्वर ने इस संसार की रचना की और इसमें एक जीवित प्राणी, मनुष्य को लेकर आया, जिसे उसने जीवन प्रदान किया। इसके बाद, मनुष्य के माता-पिता और परिजन हुए, और वह अकेला नहीं रहा। जब से मनुष्य ने पहली बार इस भौतिक दुनिया पर नजरें डालीं, तब से वह परमेश्वर के विधान के भीतर विद्यमान रहने के लिए नियत था। परमेश्वर की दी हुई जीवन की साँस हर एक प्राणी को उसके वयस्कता में विकसित होने में सहयोग देती है। इस प्रक्रिया के दौरान किसी को भी महसूस नहीं होता कि मनुष्य परमेश्वर की देखरेख में बड़ा हो रहा है, बल्कि वे यह मानते हैं कि मनुष्य अपने माता-पिता की प्रेमपूर्ण देखभाल में बड़ा हो रहा है, और यह उसकी अपनी जीवन-प्रवृत्ति है, जो उसके बढ़ने की प्रक्रिया को निर्देशित करती है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि मनुष्य नहीं जानता कि उसे जीवन किसने प्रदान किया है या यह कहाँ से आया है, और यह तो वह बिल्कुल भी नहीं जानता कि जीवन की प्रवृत्ति किस तरह से चमत्कार करती है। वह केवल इतना ही जानता है कि भोजन ही वह आधार है जिस पर उसका जीवन चलता रहता है, अध्यवसाय ही उसके अस्तित्व का स्रोत है, और उसके मन का विश्वास वह पूँजी है जिस पर उसका अस्तित्व निर्भर करता है। परमेश्वर के अनुग्रह और भरण-पोषण से मनुष्य पूरी तरह से बेखबर है, और इस तरह वह परमेश्वर द्वारा प्रदान किया गया जीवन गँवा देता है...। जिस मानवजाति की परमेश्वर दिन-रात परवाह करता है, उसका एक भी व्यक्ति परमेश्वर की आराधना करने की पहल नहीं करता। परमेश्वर ही अपनी बनाई योजना के अनुसार, मनुष्य पर कार्य करता रहता है, जिससे वह कोई अपेक्षाएँ नहीं करता। वह इस आशा में ऐसा करता है कि एक दिन मनुष्य अपने सपने से जागेगा और अचानक जीवन के मूल्य और अर्थ को समझेगा, परमेश्वर ने उसे जो कुछ दिया है, उसके लिए परमेश्वर द्वारा चुकाई गई कीमत और परमेश्वर की उस उत्सुक व्यग्रता को समझेगा, जिसके साथ परमेश्वर मनुष्य के वापस अपनी ओर मुड़ने की प्रतीक्षा करता है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर मनुष्य के जीवन का स्रोत है)। “तुम्हें सत्य के लिए कष्ट उठाने होंगे, तुम्हें सत्य के लिए समर्पित होना होगा, तुम्हें सत्य के लिए अपमान सहना होगा, और अधिक सत्य प्राप्त करने के लिए तुम्हें अधिक कष्ट उठाने होंगे। यही तुम्हें करना चाहिए। एक शांतिपूर्ण पारिवारिक जीवन के लिए तुम्हें सत्य का त्याग नहीं करना चाहिए, और क्षणिक आनन्द के लिए तुम्हें जीवन भर की गरिमा और सत्यनिष्ठा को नहीं खोना चाहिए। तुम्हें उस सबका अनुसरण करना चाहिए जो खूबसूरत और अच्छा है, और तुम्हें अपने जीवन में एक ऐसे मार्ग का अनुसरण करना चाहिए जो ज्यादा अर्थपूर्ण है। यदि तुम एक गंवारू जीवन जीते हो और किसी भी उद्देश्य को पाने की कोशिश नहीं करते हो तो क्या तुम अपने जीवन को बर्बाद नहीं कर रहे हो? ऐसे जीवन से तुम क्या हासिल कर पाओगे? तुम्हें एक सत्य के लिए देह के सभी सुखों को छोड़ देना चाहिए, और थोड़े-से सुख के लिए सारे सत्यों का त्याग नहीं कर देना चाहिए। ऐसे लोगों में कोई सत्यनिष्ठा या गरिमा नहीं होती; उनके अस्तित्व का कोई अर्थ नहीं होता!(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पतरस के अनुभव : ताड़ना और न्याय का उसका ज्ञान)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे प्रबुद्ध किया। मैं सोचता था मेरे माता-पिता ने मेरी परवरिश की और मेरी पढ़ाई के लिए अपना पेट काटकर बचत की, इसलिए अगर मैंने उनकी बात न मानकर कर्तव्य निभाने के लिए नौकरी छोड़ दी तो मैं उनके लिए अपात्र रहूँगा। पर मेरा ऐसा सोचना बेतुका था। परमेश्वर ही मानव जीवन का स्रोत है, हम सभी का जीवन उसी से आता है। हमारे पास जो कुछ भी है, वह उसी की आपूर्ति और आशीष से आया है। परमेश्वर के बिना हमारे पास कुछ भी न होता। यह परमेश्वर की संप्रभुता और व्यवस्था थी कि मेरे माता-पिता मेरी परवरिश करें। मुझे परमेश्वर का आभारी होना चाहिए और उसके प्रेम का मूल्य चुकाना चाहिए। अपने माता-पिता के प्रति मुझे सामान्य पुत्रवत सम्मान और देखभाल दिखानी चाहिए। साथ ही, मुझे उनके साथ सुसमाचार साझा करना चाहिए और उन्हें परमेश्वर में विश्वास का अर्थ बताना चाहिए। अगर वे विश्वास नहीं करते, तो मैं उनकी बाध्यताओं के तहत अपने कर्तव्य से पीछे नहीं हट सकता। मैं एक सृजित प्राणी हूँ, और अपना कर्तव्य निभाना पूरी तरह से स्वाभाविक और उचित है। अगर मैं अपना कर्तव्य नहीं निभा पाता, तो एक स्थाई नौकरी और अपने परिवार के साथ अच्छा भौतिक जीवन गुजारने के बावजूद, इसका कोई मूल्य या अर्थ न होता। ये अस्थाई सुख मुझे सत्य समझने और जीवन प्राप्त करने नहीं देते। साथ ही, परमेश्वर की नजरों में, यह विद्रोह होता, और मुझे उसकी स्वीकृति न मिलती। सत्य को पाने के लिए कष्ट भोगना और बड़ी पीड़ा से अपनी प्रिय चीजों को त्यागना था। सिर्फ इसी तरीके से मैं निष्ठा और गरिमा के साथ जी सकता था, और परमेश्वर की स्वीकृति पा सकता था। मैंने इस बारे में जितना ज्यादा सोचा उतना ही दृढ़ महसूस करता रहा। मैंने एक बार फिर अपने पिता को परमेश्वर के प्रकटन और कार्य की गवाही दी, उन्हें बताया कि परमेश्वर में विश्वास के बिना सभी अनुसरण खोखले हैं, और उनका कोई मूल्य या अर्थ नहीं है। अब उद्धारकर्ता सत्य व्यक्त करने और लोगों को बचाने के लिए आ चुका है; सिर्फ परमेश्वर में विश्वास करके, सत्य का अनुसरण करके, पाप का परित्याग करके, और परमेश्वर से सच्चा प्रायश्चित करके ही लोग आपदाओं से बच सकते हैं और उसके राज्य में प्रवेश कर सकते हैं। वे सब जो दुनियावी सुखों का अनुसरण करते हैं, उनका भौतिक जीवन कितना ही समृद्ध क्यों न हो, वे अंत में आपदाओं के शिकार हो जाएंगे और दंडित किए जाएंगे। पर मैं कुछ भी क्यों न कहता रहा, मेरे पिता मेरे इस्तीफे से सहमत नहीं थे, और चाहते थे कि मैं अपनी नौकरी में वापस चला जाऊँ। अंततः मुझे अडिग देखकर वह गुस्से में वापस लौट गए।

बाद में, मेरे पिता ने मेरे संबंधियों को मुझे समझाने के लिए कहा। उन सभी ने यही कहा कि रेलवे ब्यूरो में नौकरी एक सुरक्षित काम था, और ऐसी नौकरी बहुत से लोग तोहफों और पैसे के जरिए पिछले दरवाजे से हासिल नहीं कर सकते। उन्होंने कहा कि इस्तीफा देकर मुझे पता नहीं कि मेरे लिए क्या अच्छा है, परमेश्वर में विश्वास रखकर मैं मूर्खता कर रहा था और मेरे माता-पिता ने बेकार ही मेरी परवरिश की। जब मैंने रिश्तेदारों के ये आरोप सुने तो मुझे पता था कि शैतान मुझ पर हमला करने और मुझे परमेश्वर के लिए खपने से रोकने के लिए उनका इस्तेमाल कर रहा था। मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के ये वचन याद आए : “तुम में मेरी हिम्मत होनी चाहिए, जब उन रिश्तेदारों का सामना करने की बात आए जो विश्वास नहीं करते, तो तुम्हारे पास सिद्धांत होने चाहिए। लेकिन तुम्हें मेरी खातिर किसी भी अन्धकार की शक्ति से हार नहीं माननी चाहिए। पूर्ण मार्ग पर चलने के लिए मेरी बुद्धि पर भरोसा रखो; शैतान के किसी भी षडयंत्र को काबिज़ न होने दो। अपने हृदय को मेरे सम्मुख रखने हेतु पूरा प्रयास करो, मैं तुम्हें आराम दूँगा, तुम्हें शान्ति और आनंद प्रदान करूँगा(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 10)। परमेश्वर के वचनों पर चिंतन के बाद मेरा खुद पर भरोसा बढ़ा, और मैं अपने रिश्तेदारों से यह कहने की हिम्मत कर सका, “आज लोग खास तौर पर पैसे, नाम और रुतबे की पूजा करते हैं। इन चीजों के लिए लोग छीना-झपटी, चालबाजी और आपस में लड़ाई-झगड़ा करते हैं, पति-पत्नी भी एक-दूसरे को छलते और धोखा देते हैं, हर कोई इसी तरह जी रहा है, ऐसे में अगर उन्हें कोई अच्छा और सुरक्षित रोजगार मिल भी जाता है, और उन्हें कुछ और न भी चाहिए हो, तो भी क्या यह सचमुच मुमकिन है कि हम खुशहाल महसूस करें? सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है : ‘एक के बाद एक सभी तरह की आपदाएँ आ पड़ेंगी; सभी राष्ट्र और स्थान आपदाओं का सामना करेंगे : हर जगह महामारी, अकाल, बाढ़, सूखा और भूकंप आएँगे। ये आपदाएँ सिर्फ एक-दो जगहों पर ही नहीं आएँगी, न ही वे एक-दो दिनों में समाप्त होंगी, बल्कि इसके बजाय वे बड़े से बड़े क्षेत्र तक फैल जाएँगी, और अधिकाधिक गंभीर होती जाएँगी। इस दौरान, एक के बाद एक सभी प्रकार की कीट-जनित महामारियाँ उत्पन्न होंगी, और हर जगह नरभक्षण की घटनाएँ होंगी। सभी राष्ट्रों और लोगों पर यह मेरा न्याय है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 65)। अब आपदाएँ विकराल होती जा रही हैं। सिर्फ सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अनुसरण ही वह हमें आपदाओं से बचा सकता है। परमेश्वर में मेरा विश्वासऔर सुसमाचार का प्रचार मेरी नौकरी से ज्यादा महत्वपूर्ण है। यह विकल्प चुनना मूर्खतापूर्ण आस्था नहीं है, जैसा कि आप लोग सोच रहे हैं। जब नूह ने सुसमाचार का प्रचार किया था तो लोगों ने उसे पागल कहा था, पर जब बाढ़ आई तो पूरी इंसानी नस्ल में से सिर्फ नूह के परिवार के आठ लोग ही बचे। नूह सिरफिरा या मूर्ख नहीं था, वह समझदार और परमेश्वर से आशीषित था। अंत के दिनों में मानवजाति की दुष्टता और भ्रष्टता और परमेश्वर के प्रति उसका प्रतिरोध ऐसे मुकाम पर पहुँच चुका है कि परमेश्वर इस बेहद भ्रष्ट मानव नस्ल को नष्ट कर देगा। हम सिर्फ सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास रखकर और उसकी आराधना करके ही उसकी सुरक्षा पा सकते हैं और जीवित रह सकते हैं। मैं आज आप लोगों को यह शानदार खबर इस उम्मीद में दे रहा हूँ कि आप भी अंत के दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा उद्धार प्राप्त करेंगे। मुझे समझाने-मनाने की कोशिश न करें, क्योंकि मैं पहले ही फैसला कर चुका हूँ। मैं अब जीवन भर सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अनुसरण करूंगा।” मेरे यह कहने के बाद, प्रभु में विश्वास करने वाली मेरी आंटी ने कहा, “परमेश्वर का धन्यवाद! तुम परमेश्वर में दृढ़ आस्था रखते हो, परमेश्वर के सुसमाचार का प्रचार करने के फैसले से परमेश्वर बहुत खुश होगा।” उन्होंने दूसरों से कहा, “इसने जो रास्ता चुना है वह सही रास्ता है। धनवान होना महत्व नहीं रखता, महत्व जीवन का है। हमें इसके फैसले का सम्मान करना चाहिए।” इसके बाद बाकी लोगों ने कुछ नहीं कहा। उस वक्त मैं बहुत खुश था। जब मैं परमेश्वर को संतुष्ट करने के लिए मजबूती से डटा रहा तो मेरे रिश्तेदार कुछ नहीं कर सकते थे और वे शर्मिंदा होकर पीछे हट गए। तभी से, अब मैं अपने आस-पास के लोगों, घटनाओं और चीजों से विवश महसूस नहीं करता, और पूरा समय अपना कर्तव्य निभा सकता हूँ।

बाद में, यह देखकर कि काफी लोग सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य को स्वीकार कर रहे है, मुझे अपने दिल में ऐसी खुशी महसूस हुई कि बयां नहीं कर सकता। ऐसे लोगों को परमेश्वर के घर में वापस लाना जो सच्चे दिल से परमेश्वर के लिए तड़प रहे हैं, एक अत्यंत सार्थक काम है, और परमेश्वर को सबसे ज्यादा सुख देने वाला भी है। नौकरी छोड़कर परमेश्वर में विश्वास के रास्ते को चुनना मेरी जिंदगी का सबसे समझदारी वाला फैसला है। सुसमाचार के प्रचार और परमेश्वर की गवाही के लिए अपने जीवन को खपाना और समर्पित करना कोई भी दूसरा काम करने से ज्यादा मूल्यवान और सार्थक है!

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