45. मसीह-विरोधियों को उजागर करना मेरी जिम्मेदारी है
अगस्त 2020 के आखिर में मुझे कलीसिया अगुआ चुना गया और शिन रैन के साथ साझेदार बनाया गया। सितंबर की शुरुआत में हमारे वरिष्ठ ने शिन रैन को शहर से बाहर एक सभा में बुलाया, जबकि मैं कई उपयाजकों के साथ कलीसिया में ही रही और कलीसिया की विभिन्न मदों के कामों को सँभाला। उस समय हमने देखा कि सिंचन कार्य अप्रभावी है, खासकर इसलिए क्योंकि सिंचन पर्यवेक्षक लापरवाह था और समय पर काम की जाँच नहीं कर पाता था। हमने समस्या सुलझाने के लिए उसके साथ संगति करने की तैयारी की, लेकिन जब हमने इस बारे में शिन रैन को पत्र भेजा तो उसने हमारा सुझाव सिरे से नकार दिया और हमें इस पर चर्चा करने के लिए अपने लौटने तक इंतजार करने को कहा। मैंने मन ही मन सोचा, “हम सिर्फ उस पर्यवेक्षक के साथ संगति कर रहे हैं। हम इसके लिए उसके लौटने का इंतजार क्यों करें? लेकिन शायद शिन रैन को पर्यवेक्षक की कुछ अन्य समस्याओं के बारे में पता है और वह उन सभी को एक साथ सुलझाना चाहती है।” दिमाग में यह बात आई तो मैं चुप हो गई। लेकिन कुछ दिनों बाद शिन रैन सभा से लौटी और उसने बिल्कुल भी कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया। इससे मुझे लगा कि उसे कुछ समस्याएँ थीं : निश्चित रूप से उसे नहीं लगता था कि हमें उसके बिना कोई काम नहीं करना चाहिए? बाद में जब हमने कलीसिया के काम पर चर्चा की तो मैंने देखा कि शिन रैन हमेशा हमें नीचा दिखाते हुए बात करती थी और हमें सिर्फ आदेश देती थी, मानो वह हमारे साथ चीजों पर चर्चा करने की जरूरत नहीं समझती हो। मैंने कुछ सुझाव दिए, जिन्हें उसने बिना सोचे-समझे खारिज कर दिया। मेरे कुछ सुझाव वैध थे, लेकिन उसने जान-बूझकर उनमें खामियाँ निकालीं और हमें अपनी बात सुनने के लिए मजबूर किया। उदाहरण के लिए मुझे कुछ टीमों के काम की जाँच करने के बाद कुछ समस्याएँ मिली थीं और मैंने सुझाव दिया कि मैं उन्हें सुलझाने के लिए पर्यवेक्षकों के साथ संगति कर सकती हूँ, लेकिन शिन रैन ने जोर देकर कहा कि इसकी कोई जरूरत नहीं है। उसने कहा कि जब वह अपना बाकी काम पूरा कर लेगी तो वह उनके साथ एक सभा आयोजित करेगी। मुझे लगा कि इससे काम में देरी होगी और मैं उन टीमों में काम की अवस्था से उससे ज्यादा परिचित थी, इसलिए मैंने अपने विचार फिर से उसके सामने दोहराए, लेकिन उसने फिर भी जोर दिया कि मैं वही करूँ जैसा उसने कहा है। इससे मैं बहुत असहज हो गई और मैंने सोचा, “हम साझेदार हैं, लेकिन वह हमेशा अपनी ही चलाना चाहती है और चर्चा की कोई गुंजाइश नहीं छोड़ती। वह मेरे सभी सुझावों को नकार देती है और मुझे ही हमेशा उसके विचार सुनने पड़ते हैं। क्या मेरा कोई भी सुझाव उचित नहीं है? या वह बहुत घमंडी है?” लेकिन मैंने देखा कि वह कितनी आक्रामक है और मैंने सोचा कि वह लंबे समय से अगुआ रही है, जिसका मतलब है कि वह शायद भाई-बहनों की समस्याएँ और मुश्किलें मुझसे बेहतर समझती है। इसलिए मैंने इसे उसके तरीके से करने का फैसला किया और कुछ और नहीं कहा।
बाद में हम दोनों प्रत्येक टीम के साथ सभा करने के लिए अलग हो गईं। जब मैंने सिंचन करने वालों के साथ सभा की तो पर्यवेक्षक ने कहा कि हाल ही में अधिक से अधिक नवागंतुक सुसमाचार स्वीकार कर रहे हैं और उनसे इतना कार्यभार सँभल नहीं पा रहा है। उसने पूछा कि क्या कलीसिया के अगुआ और कार्यकर्ता कुछ समय के लिए सिंचन कार्य कर सकते हैं ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि सभी नवागंतुकों को समय पर सिंचन मिल जाए। मुझे लगा कि यह एक अच्छा सुझाव है, इसलिए मैंने इसे अपना लिया। मुझे हैरानी हुई कि इसके बारे में पता चलने पर शिन रैन ने एक बहुत कठोर पत्र लिखा और उसी दिन इसे सभी सिंचन करने वालों को भेज दिया। पत्र में उसने मुझ पर इस मामले में गलत समझ रखने का आरोप लगाया और कहा कि इस तरह से काम व्यवस्थित करने से चीजें बिगड़ जाएँगी। पत्र की पंक्तियों के बीच उसने पर्यवेक्षक को डाँटते हुए कहा, “यह मनमानी और बिना सोचे-समझे की गई व्यवस्था है। तुम किसी और की परवाह किए बिना सिर्फ अपने हिसाब से काम कर रही हो। इससे कलीसिया के काम में बाधा और गड़बड़ी पैदा हो रही है, जो बहुत गंभीर प्रकृति की है।” पत्र पढ़कर ऐसा लगा जैसे मेरे चेहरे पर तमाचा जड़ दिया गया हो। मेरा दिल फटा जा रहा था। मैंने सोचा, “मैं मनमानी कर रही थी? मैंने कलीसिया के काम में बाधा डाली?” मैं तुरंत स्तब्ध हो गई और डर गई कि मैं वाकई भटक गई हूँ और बाधा और व्यवधान पैदा कर रही हूँ। जब मुझे एहसास हुआ कि सभी भाई-बहन इस पत्र को पढ़ सकते हैं, तो मुझे चिंता हुई कि वे मेरे बारे में क्या सोचेंगे। मैं उनका फिर से सामना कैसे करूँगी? मैं दुखी थी और महसूस कर रही थी कि मेरी निंदा की गई है। मैंने मन ही मन सोचा, “भले ही हमने वास्तव में कोई गलती की हो, वह बस हमारे साथ सिद्धांतों पर संगति कर सकती थी और हमें बता सकती थी कि हमने कहाँ गलती की ताकि हम समस्या ठीक कर सकें। उसने बिना किसी संगति के सीधे सभी को पत्र क्यों लिखा?” मैं खुद पर काबू नहीं रख पाई और फूट-फूट कर रोने लगी और कुछ दिनों तक मुझे इसके बारे में बहुत नकारात्मक महसूस हुआ। परमेश्वर के वचन खाने और पीने से ही मेरी अवस्था में सुधार हो पाया। उस समय मुझमें एक अस्पष्ट भावना थी कि शिन रैन बहुत उग्र है और मुझे उसके साथ भविष्य में अपनी बातचीत में सावधान रहना चाहिए और उसे गुस्सा दिलाने से बचना चाहिए। वरना कौन जाने वह कब मुझे फिर से दंडित और अपमानित कर दे। उस घटना की टीस मेरे मन में बनी रही। मुझे हमेशा लगता था कि अगर मैंने शिन रैन की बात नहीं मानी या उसकी बात काटी तो वह मुझे नुकसान पहुँचाएगी और मेरे मन में उसका धुंधला सा डर बस गया।
बाद में मुझे पता चला कि शिन रैन ने जोर दिया कि टीम पर्यवेक्षक उसी के साथ सभा करें, लेकिन क्योंकि उसने समय ठीक से व्यवस्थित नहीं किया, इसलिए यह कई दिनों तक टलता रहा और बहुत सारे काम समय पर व्यवस्थित और कार्यान्वित नहीं हो पाए। मैंने सोचा था कि वह इस मुद्दे से मिले सबक साझा करेगी या काम की व्यवस्था करने में उसने जो विचलन और गलतियाँ की थीं, उनके बारे में बात करेगी, लेकिन आश्चर्यजनक रूप से उसने इसका जिक्र तक नहीं किया। कुछ ही दिनों बाद हमारे वरिष्ठ ने संबंधित सिद्धांतों पर संगति करते हुए एक पत्र भेजा। उसने कहा कि मेरा अगुआओं और कार्यकर्ताओं को कुछ समय के लिए नवागंतुकों के सिंचन में लगाना उचित था। उसने समझाया कि इस तरह भाई-बहन ज्यादा अच्छे कर्मों की तैयारी कर सकते हैं और नवागंतुकों का समय पर सिंचन किया जा सकता है, जो कलीसिया के काम के लिए फायदेमंद है। मैंने सोचा था कि शिन रैन यह सुनकर आत्म-चिंतन करेगी और उसे अपनी गलती का एहसास होगा, लेकिन वह इसके प्रति पूरी तरह से उदासीन लग रही थी। उसने बस मुझे तिरस्कार से देखा और मुँह फेर लिया। मैंने सोचा, “उसने अपने कर्तव्य में लगातार गलतियाँ की हैं, फिर भी वह खुद को जरा भी नहीं जानती। उसके लिए इस तरह से आगे बढ़ना खतरनाक है।” मैंने उसे आत्म-चिंतन करने की याद दिलाने के बारे में सोचा, लेकिन फिर मैंने देखा कि वह कितनी घमंडी बन रही थी और सोचा कि कैसे उसने मेरे हर सुझाव को बलपूर्वक नकार दिया था। न जाने जब मैं उसकी समस्याएँ बताऊँ तो वह कैसी प्रतिक्रिया दे? और उसने पिछली बार मुझे इतनी बुरी तरह डाँटा था कि मैं अभी भी थोड़ी भयभीत और बेबस हूँ, इसलिए मेरी उसे याद दिलाने की हिम्मत नहीं हुई।
उस दौरान हमारे सभी कामों की अध्यक्षता और व्यवस्था अकेले शिन रैन करती थी। हालाँकि हम दोनों साझेदार थे, लेकिन उसने कभी मुझसे संवाद या चर्चा नहीं की। वह हर चीज की प्रभारी थी और अंतिम निर्णय उसी का चलता था। काम पर चर्चा करते समय मैं और उपयाजक अपने विचार रखते थे और फिर वह उनमें समस्याओं को लेकर नुक्स निकालती, हमारे सुझावों को फिर से तैयार करती और अंत में अपने “बेहतर विचारों” का प्रस्ताव देती। जैसे-जैसे समय बीतता गया, हम सभी को लगने लगा कि हम अपने कर्तव्यों में अच्छे नहीं हैं और शिन रैन में हमसे ज्यादा अंतर्दृष्टि है, उसमें कार्यक्षमता है और वह मामलों को हमसे ज्यादा साफ देखती है। इसलिए ज्यादातर बार हम उसकी बात मान लेते थे और वही करते थे जो वह कहती थी। शिन रैन जब मेरी सलाह में कमियाँ निकालती या उन्हें सिरे से नकारती तो बहुत आक्रामक हो जाती थी, जिससे मुझे हमेशा उससे थोड़ा डर लगता था। मुझे लगता था कि अगर मैं उसकी बात नहीं मानूँगी तो वह मेरे साथ कुछ बुरा कर देगी, इसलिए मैं हमेशा खुद को उसके हिसाब से ढालने की कोशिश करती थी और मैं उसके खिलाफ जाने की हिम्मत नहीं कर पाती थी। चूँकि वह हमेशा मेरे सुझावों को अस्वीकार कर देती थी, मैंने धीरे-धीरे काम की चर्चाओं के दौरान अपने विचार साझा करना बंद कर दिए, तब भी जब मुझे लगता था कि वे काफी अच्छे हैं। मुझे लगा कि उन्हें सामने रखने का कोई मतलब नहीं है, क्योंकि शिन रैन वैसे भी उन्हें खारिज कर देगी। उसके बाद मैं अपने कर्तव्य में और अधिक निष्क्रिय होती चली गई और अब मैं अधिक प्रभावी होने की कोशिश नहीं करती थी। मैं बस एक कठपुतली की तरह थी। अपने काम में विभिन्न मुद्दों के बारे में मेरे पास अपना कोई विचार या नजरिया नहीं होता था। मैं कुछ भी करने से पहले शिन रैन के आदेश का इंतजार करती थी और बस वही करती थी जो वह कहती थी। उपयाजकों की भी यही स्थिति थी। उस दौरान मैं और अधिक नकारात्मक और निष्क्रिय होती गई, लेकिन मुझे नहीं पता था कि अपनी अवस्था कैसे बदलूँ और मैं बहुत परेशान महसूस करती थी।
बाद में हमें अपने वरिष्ठ से एक पत्र मिला जिसमें कहा गया था कि कुछ भाई-बहनों को हाल ही में गिरफ्तार किया गया है। हमारी सुरक्षा के लिए हमें अपने कर्तव्य निभाने के लिए दो समूहों में विभाजित होने और एक साथ समूह में नहीं रहने के लिए कहा गया था। इस तरह अगर कुछ गड़बड़ होती है तो हम सभी एक साथ गिरफ्तार नहीं होंगे, जिससे कलीसिया के काम की विभिन्न मदों में देरी हो। उस समय शिन रैन बाहर थी, इसलिए मैंने इस मामले पर उपयाजकों से चर्चा की। मुझे लगा कि यह अच्छी योजना है, लेकिन उन्होंने सोचा कि दो समूहों में बँटने से काम पर चर्चा करना मुश्किल हो जाएगा। अंत में हम किसी निर्णय पर नहीं पहुँच सके और वे शिन रैन के वापस आने तक इंतजार करना चाहते थे। मुझे लगा कि हम बस समूहों में विभाजित होंगे और इसमें सिद्धांत के कोई बड़े मुद्दे शामिल नहीं हैं। सुरक्षा जोखिमों और इस योजना के पक्ष और विपक्ष को देखते हुए विभाजन किया जाना उचित था। लेकिन किसी ने भी यह निर्णय लेने की हिम्मत नहीं की। उन्होंने पहले शिन रैन की सहमति लेने का इंतजार करने पर जोर दिया। मैंने देखा कि हर कोई उस पर कितना भरोसा करता है और उसकी आराधना करता है, कैसे वे सभी उसके द्वारा चीजों को व्यवस्थित करने और निर्णय लेने का इंतजार करते हैं और कैसे वे उसके आदेश सुनते हैं और मुझे एहसास हुआ कि शिन रैन की समस्या काफी गंभीर है। उसके बाद मैंने एक उपयाजक बहन ली रुइजी को अपनी अवस्था और शिन रैन के साथ मिली समस्याओं के बारे में बताया। मुझे यह सुनकर आश्चर्य हुआ कि वह भी शिन रैन से बहुत बेबस महसूस करती है। उसने मुझे बताया कि वह हमेशा शिन रैन से डरती है और उसके खिलाफ जाने की हिम्मत नहीं करती है। उसने यह भी कहा कि शिन रैन जानबूझकर उसकी कमियों को बढ़ा-चढ़ाकर बताती है और उसे दूसरों के सामने उसे डाँटती है, ताकि उसे बुरा लगे। फिर रुइजी ने कहा, “अगर हम शिन रैन की समस्याएँ देखते हैं, लेकिन उनका भेद नहीं पहचानते या उजागर नहीं करते और सत्य सिद्धांतों पर चले बिना सिर्फ लोगों की खुशामद करने वालों की तरह व्यवहार करते हैं तो परमेश्वर हमसे घृणा करेगा और हम पवित्र आत्मा द्वारा त्याग दिए जाएँगे।” मुझे भी ऐसा ही लगा। मुझे परमेश्वर के वचनों का एक अंश याद आया जिसमें कहा गया था : “कलीसिया के भीतर सत्य का अभ्यास करने वाले लोगों का तिरस्कार किया जाता है और वे अपना सर्वस्व अर्पित करने में असमर्थ हो जाते हैं, जबकि कलीसिया में परेशानियाँ खड़ी करने वाले, मौत का वातावरण निर्मित करने वाले लोग यहां उपद्रव मचाते फिरते हैं, और इतना ही नहीं, अधिकतर लोग उनका अनुसरण करते हैं। साफ बात है, ऐसी कलीसियाएँ शैतान के कब्ज़े में होती है; हैवान इनका सरदार होता है। यदि ऐसी कलीसियाओं में लोग विद्रोह नहीं करेंगे और उन प्रधान राक्षसों को खारिज नहीं करेंगे, तो देर-सवेर वे भी बर्बाद हो जाएँगे। अब ऐसी कलीसियाओं के ख़िलाफ कदम उठाए जाने चाहिए। जो लोग थोड़ा भी सत्य का अभ्यास करने में सक्षम हैं यदि वे खोज नहीं करते हैं, तो उस कलीसिया को मिटा दिया जाएगा। यदि कलीसिया में ऐसा कोई भी नहीं है जो सत्य का अभ्यास करने का इच्छुक हो, और परमेश्वर की गवाही में दृढ़ रह सकता हो, तो उस कलीसिया को पूरी तरह से अलग-थलग कर दिया जाना चाहिए और अन्य कलीसियाओं के साथ उसके संबंध समाप्त कर दिये जाने चाहिए। इसे ‘मृत्यु दफ़्न करना’ कहते हैं; इसी का अर्थ है शैतान को ठुकराना” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जो सत्य का अभ्यास नहीं करते हैं उनके लिए एक चेतावनी)। जब मैंने परमेश्वर के वचनों के इस अंश पर मनन किया तो मुझे बहुत डर लगा। परमेश्वर के वचनों ने हमारी अवस्था को ठीक-ठीक उजागर कर दियाथा। शिन रैन अंतिम फैसला लेती थी और कलीसिया में उसके पास शक्ति थी, लेकिन किसी ने भी उसे उजागर करने की हिम्मत नहीं की। इसके बजाय हम सभी ने उसकी बात सुनी, उसका अनुसरण किया और उसे सभी निर्णय लेने दिए। मेरे दिल में परमेश्वर की जगह कहाँ थी? इस व्यवहार के लिए परमेश्वर को मुझसे घृणा और तिरस्कार क्यों नहीं करना चाहिए? अगर मैं इसी तरह चलती रही तो मैं वाकई परमेश्वर द्वारा ठुकरा दी जाऊँगी और पवित्र आत्मा का कार्य पूरी तरह से गँवा दूँगी। मैंने शिन रैन को सिद्धांतों का उल्लंघन करते और मनमाने ढंग से काम करते देखा था। हर चीज में वह अपनी ही चलाती थी, उसका व्यवहार अत्याचारी था और अपने सहयोगियों और सहकर्मियों की सलाह बिल्कुल नहीं सुनती थी। जब दूसरों ने उसकी समस्याओं की ओर इशारा किया तो उसने इसे नहीं स्वीकारा या आत्म-चिंतन नहीं किया। लेकिन मैं उससे अपमानित होने और उत्पीड़ित होने से इतना डरती थी कि मैंने उसके मुद्दे उठाने की हिम्मत नहीं की। मैंने बस उसकी बात मान ली, जिससे देरी हुई और कलीसिया के काम में बाधा आई। इस एहसास से मुझे बहुत अपराध-बोध और पश्चात्ताप हुआ। मैंने सोचा, “मुझे सत्य का अभ्यास करना और उसे उजागर करना होगा। मैं उसके सामने अब और हार नहीं मान सकती।”
लेकिन फिर कुछ और अप्रत्याशित हो गया। एक दिन एक सभा से लौटने के बाद शिन रैन ने चेहरा लटकाकर मुझे गुस्से में बताया, “दो टीम पर्यवेक्षक हैं जो एक साथ ठीक से काम नहीं कर पाते हैं और हमेशा एक-दूसरे की आलोचना करते हैं। मैं उन दोनों को बर्खास्त करने की सोच रही हूँ।” यह सुनकर मुझे झटका लगा। मैं उन पर्यवेक्षकों के बारे में थोड़ा-बहुत जानती थी। हालाँकि वे कभी-कभी घमंडी स्वभाव दिखाते थे, वे दोनों सत्य स्वीकार सकते थे और वास्तविक कार्य कर सकते थे। उन्होंने सिर्फ एक भ्रष्ट स्वभाव बेनकाब किया था और तालमेल से सहयोग नहीं कर पाए थे; उन समस्याओं को सुलझाने के लिए उनके साथ सत्य पर संगति करना काफी होता। उन्हें ऐसे ही कैसे बर्खास्त किया जा सकता है? क्या वास्तविक कार्य करने वाले लोगों को मनमाने ढंग से बर्खास्त करने से कलीसिया के काम में देरी नहीं होगी? मुझे पता था कि मैं इस बार शिन रैन का आँख मूंदकर अनुसरण नहीं कर सकती, इसलिए मैंने कहा, “ऐसे महत्वपूर्ण मामलों में हमें पता लगाने की जरूरत है कि सही तरीके से अभ्यास कैसे किया जाए। हम लोगों को मनमाने ढंग से बर्खास्त नहीं कर सकते।” इसके बाद मैं दोनों पर्यवेक्षकों की अवस्था जाँचने गई। मुझे यह जानकर हैरानी हुई कि उन्हें पहले ही बर्खास्त कर दिया गया था। मामले की तह तक जाने पर मुझे पता चला कि वे जरा भी बर्खास्तगी के लायक नहीं थे। मैं हैरान और क्रोधित थी और मैंने सोचा, “शिन रैन ने बिना किसी से चर्चा किए इतना बड़ा फैसला ले लिया। यह बहुत अपमानजनक है!” इसलिए मैंने शिन रैन को एक पत्र लिखा, जिसमें उसकी समस्याओं की ओर इशारा किया, लेकिन वह खुद को जरा भी नहीं जानती थी। बाद में मुझे पता चला कि एक उपयाजक, बहन लियांग शिनजिंग, जो मूल रूप से अपने कर्तव्य में सक्रिय और जिम्मेदार थी, हाल ही में बहुत नकारात्मक अवस्था में थी और उपयाजक होने के लिए अयोग्य महसूस कर रही थी क्योंकि शिन रैन अक्सर उस पर हमला करती थी और उसे नीचा दिखाती थी। यह सुनकर मैं बहुत परेशान हो गई। मैंने देखा कि शिन रैन का अहंकार, अत्याचारी व्यवहार और जिस तरह से वह लगातार दूसरों पर हमला करती थी और उन्हें बेबस करती थी, उससे लोग सिर्फ नकारात्मक और दुखी ही होते थे। क्या वह बुरी इंसान नहीं थी? मुझे पता था कि मुझे उसे उजागर करना और रोकना होगा—मैं उसे मनमर्जी नहीं करने दे सकती थी। हालाँकि जब वाकई उसका सामना करने का समय आया तो मुझे भी थोड़ा डर लगा।
बाद में मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा : “अगर सत्य तुम्हारा जीवन नहीं बना है और तुम अभी भी अपने शैतानी स्वभाव के भीतर रहते हो, तो जब तुम्हें उन बुरे लोगों और शैतानों का पता चलता है जो कलीसिया के कार्य में व्यवधान और गड़बड़ी पैदा करते हैं, तुम उन पर ध्यान नहीं दोगे और उन्हें अनसुना कर दोगे; अपने विवेक द्वारा धिक्कारे जाए बिना, तुम उन्हें नजरअंदाज कर दोगे। तुम यह भी सोचोगे कि कलीसिया के कार्य में कोई भी बाधाएँ डाले तो इससे तुम्हारा कोई लेना-देना नहीं है। कलीसिया के काम और परमेश्वर के घर के हितों को चाहे कितना भी नुकसान पहुँचे, तुम परवाह नहीं करते, हस्तक्षेप नहीं करते, या दोषी महसूस नहीं करते—जो तुम्हें एक ऐसा व्यक्ति बनाता है जिसमें जमीर और विवेक नहीं है, एक छद्म-विश्वासी बनाता है, मजदूर बनाता है। तुम जो खाते हो वह परमेश्वर का है, तुम जो पीते हो वह परमेश्वर का है, और तुम परमेश्वर से आने वाली हर चीज का आनंद लेते हो, फिर भी तुम महसूस करते हो कि परमेश्वर के घर के हितों का नुकसान तुमसे संबंधित नहीं है—जो तुम्हें गद्दार बनाता है, जो उसी हाथ को काटता है जो उसे भोजन देता है। अगर तुम परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा नहीं करते, तो क्या तुम इंसान भी हो? यह एक दानव है, जिसने कलीसिया में पैठ बना ली है। तुम परमेश्वर में विश्वास का दिखावा करते हो, चुने हुए होने का दिखावा करते हो, और तुम परमेश्वर के घर में मुफ्तखोरी करना चाहते हो। तुम एक इंसान का जीवन नहीं जी रहे, इंसान से ज्यादा राक्षस जैसे हो, और स्पष्ट रूप से छद्म-विश्वासियों में से एक हो। अगर तुम्हें परमेश्वर में सच्चा विश्वास है, तब यदि तुमने सत्य और जीवन नहीं भी प्राप्त किया है, तो भी तुम कम से कम परमेश्वर की ओर से बोलोगे और कार्य करोगे; कम से कम, जब परमेश्वर के घर के हितों का नुकसान किया जा रहा हो, तो तुम उस समय खड़े होकर तमाशा नहीं देखोगे। यदि तुम अनदेखी करना चाहोगे, तो तुम्हारा मन कचोटेगा, तुम असहज हो जाओगे और मन ही मन सोचोगे, ‘मैं चुपचाप बैठकर तमाशा नहीं देख सकता, मुझे दृढ़ रहकर कुछ कहना होगा, मुझे जिम्मेदारी लेनी होगी, इस बुरे बर्ताव को उजागर करना होगा, इसे रोकना होगा, ताकि परमेश्वर के घर के हितों को नुकसान न पहुँचे और कलीसियाई जीवन अस्त-व्यस्त न हो।’ यदि सत्य तुम्हारा जीवन बन चुका है, तो न केवल तुममें यह साहस और संकल्प होगा, और तुम इस मामले को पूरी तरह से समझने में सक्षम होगे, बल्कि तुम परमेश्वर के कार्य और उसके घर के हितों के लिए भी उस ज़िम्मेदारी को पूरा करोगे जो तुम्हें उठानी चाहिए, और उससे तुम्हारे कर्तव्य की पूर्ति हो जाएगी” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, भाग तीन)। परमेश्वर के वचन कहते हैं अगर लोग उदासीन हैं और कलीसिया के काम को नुकसान होते देखकर अपनी अंतरात्मा से पछतावा महसूस नहीं करते हैं तो वे एक इंसान का जीवन नहीं जी रहे हैं। यह पढ़कर मुझे बहुत दुख हुआ क्योंकि मैं बिल्कुल वैसा ही व्यवहार कर रही थी। मैं साफ देख सकती थी कि शिन रैन में समस्याएँ हैं, लेकिन मुझे कभी भी इतनी हिम्मत नहीं हुई कि मैं उसे उजागर कर सकूँ और उसे रोक सकूँ। चूँकि वह हमेशा मुझमें कमियाँ ढूँढ़ती थी, मेरे विचार खारिज करती थी, मुझे भाषण झाड़ती थी और ऊपर से मुझ पर हमला करती थी, मैं उससे डरती थी और उसे नाराज करने की हिम्मत नहीं कर पाती थी। खुद को बचाने के लिए मैंने उसके आगे हार मान ली और नीच जीवन जीया। मैंने यहाँ तक सोचा कि जब तक मैं उसकी वफादार प्रजा बनी रहूँगी, वह मुझे दबाएगी या दंडित नहीं करेगी। जब तक मैं खुद को बचा सकती थी, मैं उसे प्रभारी बने रहने, आदेश देते रहने और हेरफेर करने देने को तैयार थी। मैं कलीसिया के काम के बारे में विचारशील हुए बिना इसी अवस्था में रहती थी। मुझे पता था कि शिन रैन ने सिद्धांतों के खिलाफ जाकर और तानाशाह की तरह काम करके कलीसिया का काम पहले ही प्रभावित कर दिया था, लेकिन फिर भी मुझमें इतनी हिम्मत नहीं थी कि मैं खड़ी होकर उसे उजागर कर सकूँ। यहाँ तक कि जब उसने लोगों पर हमला किया और उन्हें बेबस किया, सारी शक्ति अपने पास रखी और अपनी ही चलाई तो भी मैं उसका विरोध करने और उसे बुराई करने से रोकने के लिए आगे आने की हिम्मत नहीं कर पाई। मैं सच में गुलाम थी! मैं एक निकम्मी कायर थी जो नीच जीवन जी रही थी! ऐसे जीने में ईमानदारी और गरिमा कहाँ थी? मैंने परमेश्वर के वचनों के सिंचन और आपूर्ति का और उससे मिलने वाली हर चीज का आनंद लिया, लेकिन मैंने हमेशा खुद को बचाने की कोशिश की और कलीसिया के काम की रक्षा के लिए सत्य का अभ्यास करने में नाकाम रही। जब मैंने इस बारे में सोचा तो मुझे बहुत दुख और अपराध बोध हुआ। इतनी स्वार्थी और धोखेबाज होने के लिए मुझे खुद से नफरत हुई। मैंने सोचा, “मैं अब और ऐसे नहीं चल सकती। इस बार भले ही वह मुझे सजा दे और बदला ले, मुझे खड़े होना होगा, उसके बुरे कर्मों को उजागर करना होगा और कलीसिया के काम की रक्षा करनी होगी। यह मेरी जिम्मेदारी है।”
उसके बाद मैं शिन रैन के पास गई और उसे बताया कि उसने किस तरह सिद्धांतों का उल्लंघन किया है और मनमाने ढंग से उन दो पर्यवेक्षकों को बर्खास्त करके तानाशाह की तरह काम किया है। लेकिन मैंने अभी बोलना शुरू ही किया था कि उसने मुझे बीच में टोक दिया और यह कहते हुए मुझ पर पलटवार किया कि मैं उसके साथ तालमेल से सहयोग नहीं कर रही हूँ। उस समय उपयाजकों ने भी उसे लोगों को दबाने और बेबस करने के लिए उजागर किया। जब तथ्यों का सामना हुआ तो शिन रैन हमारा खंडन नहीं कर पाई और उसने बस इतना कहा कि उसे इन समस्याओं के बारे में पता नहीं था और यह कि वह इस पर कुछ विचार करेगी। अंत में अपने चेहरे पर एक मुस्कान लाते हुए उसने कहा, “मेरी ऊँची काबिलियत की वजह से मुझे घमंड हो सकता है। इसमें कुछ नहीं किया जा सकता।” जब मैंने यह सुना तो मैं अवाक रह गई। उसमें वाकई विवेक की कमी थी! उसके बाद दो उपयाजकों ने शिन रैन के साथ संगति की और दो बार फिर से उसकी मदद की, उम्मीद जताई कि वह पश्चात्ताप करेगी, लेकिन उसने इसे बिल्कुल नहीं स्वीकारा, यहाँ तक कि उन पर हमला भी किया, यह कहा कि वे उसे निशाना बना रहे थे। जब मैंने देखा कि शिन रैन ने जरा भी सत्य नहीं स्वीकारा है और उसे अपने बुरे कर्मों की कोई समझ नहीं है तो मुझे एहसास हुआ कि उसकी समस्याएँ वाकई गंभीर हैं।
बाद में मैंने सोचा कि शिन रैन ने कैसे मुझे और उपयाजकों को इस हद तक दबाया था कि हम कमजोर और निराश हो गए थे। हममें से कुछ लोगों ने तो अपने कर्तव्य निभाने भी बंद कर दिए थे। ऐसा कैसे हुआ? बाद में आखिरकार मैंने परमेश्वर के वचन पढ़कर शिन रैन के कार्यों के पीछे के तरीकों और प्रकृति के बारे में कुछ भेद पहचाना। परमेश्वर के वचन कहते हैं : “मसीह-विरोधी सत्य का अनुसरण करने वालों के विरुद्ध जिन तमाम साधनों का इस्तेमाल करते हैं, उनके पीछे इरादे और मकसद होते हैं। परमेश्वर के घर के कार्य की रक्षा करने का प्रयास करने के बजाय, उनका मकसद अपनी ताकत और रुतबा बचाना, साथ ही परमेश्वर के चुने हुए लोगों के दिल में अपनी जगह और छवि की रक्षा करना होता है। उनके तरीके और व्यवहार परमेश्वर के घर के कार्य में व्यवधान और गड़बड़ी पैदा करते हैं और कलीसियाई जीवन पर भी इनका विनाशकारी प्रभाव पड़ता है। क्या यह एक मसीह-विरोधी के कुकर्मों की सबसे आम अभिव्यक्ति नहीं है? इन बुरे कामों के अलावा, मसीह-विरोधी कुछ और भी करते हैं जो और अधिक घृणित है, वे हमेशा यह पता लगाने की कोशिश में लगे रहते हैं कि सत्य का अनुसरण करने वालों पर हावी कैसे हुआ जाए। उदाहरण के लिए, अगर कुछ लोगों ने व्यभिचार किया है या कोई अन्य अपराध किया है, तो मसीह-विरोधी उन पर आक्रमण करने के लिए इसका इस्तेमाल करते हैं, उनका अपमान करने, उन्हें उजागर और उनकी बदनामी करने के अवसर ढूँढ़ते हैं, उन्हें अपना कर्तव्य निभाने में हतोत्साहित करने के लिए उन पर ठप्पा लगाते हैं ताकि वे नकारात्मक हो जाएँ। मसीह-विरोधी परमेश्वर के चुने हुए लोगों को भी मजबूर करते हैं कि वे उनके साथ भेदभाव करें, उनसे किनारा कर लें और उन्हें नकार दें, ताकि सत्य का अनुसरण करने वाले अलग-थलग पड़ जाएं। अंत में, जब सत्य का अनुसरण करने वाले सभी लोग नकारात्मक और कमजोर महसूस करने लगते हैं, सक्रिय रूप से अपने कर्तव्यों का पालन नहीं कर पाते, और सभाओं में भाग लेने के इच्छुक नहीं रह जाते, तब मसीह-विरोधी अपने मकसद में कामयाब हो जाते हैं। चूँकि सत्य का अनुसरण करने वाले उनकी हैसियत और ताकत के लिए खतरा नहीं रह जाते, जब कोई उन्हें रिपोर्ट करने या उन्हें बेनकाब करने का साहस नहीं करता, तो मसीह-विरोधी सुकून महसूस करते हैं। ... मसीह-विरोधियों की वो कौन-सी सोच है जिससे वे ऐसी बुराई कर पाते हैं? ‘अगर सत्य का अनुसरण करने वाले अक्सर उपदेश सुनेंगे, तो एक न एक दिन वे मेरे कार्यों की असलियत जान जाएँगे, और फिर वे निश्चित रूप से मुझे बेनकाब कर हटा देंगे। जब तक वे अपना कर्तव्य निभाएंगे, तब तक मेरी हैसियत, प्रतिष्ठा और सम्मान खतरे में रहेंगे। इसलिए पहले प्रहार करना बेहतर है, मौका मिलते ही उन्हें परेशान करना चाहिए, उनकी निंदा करनी चाहिए और उन्हें निष्क्रिय बना देना चाहिए, ताकि उनमें अपने कर्तव्यों का पालन करने की इच्छा ही न रहे। मसीह-विरोधी अगुआओं, कर्मियों और सत्य की खोज करने वालों में झगड़ा करवाते हैं, ताकि अगुआ और कार्यकर्ता उनसे घृणा करें, उनसे दूरी बना लें, उन्हें महत्व या तरक्की देना बंद कर दें। इस तरह, उन्हें सत्य का अनुसरण करने या अपने कर्तव्यों का पालन करने में कोई रुचि नहीं रहेगी। सत्य का अनुसरण करने वालों का नकारात्मक बने रहना ही अच्छा है।’ मसीह-विरोधी इसी मकसद को हासिल करना चाहते हैं” (वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद तीन : सत्य का अनुसरण करने वालों को वे निकाल देते हैं और उन पर आक्रमण करते हैं)। परमेश्वर के वचन पढ़कर मैंने जाना कि मसीह-विरोधियों में रुतबे की तीव्र इच्छा होती है और वे सत्ता को ही जीवन मानते हैं। उन्हें चिंता होती है कि जो लोग सत्य का अनुसरण करते हैं, वे सत्य समझने के बाद उनका भेद पहचान लेंगे और फिर भाई-बहनों का समर्थन और स्वीकृति पा लेंगे। इसलिए अपनी स्थिति और शक्ति मजबूत करने के लिए मसीह-विरोधी जानबूझकर उन लोगों पर हमला करने और उन्हें नीचा दिखाने का प्रयास करते हैं जो सत्य का अनुसरण करते हैं। वे उन्हें नकारात्मक बनाकर आस्था खोने और सामान्य रूप से अपने कर्तव्य करने में सक्षम न रहने देने का प्रयास करते हैं। इस तरह मसीह-विरोधी सत्ता में बने रह सकते हैं और हमेशा अपनी चला सकते हैं। मुझे एहसास हुआ कि शिन रैन ने ठीक यही किया था। वह हमेशा हममें कमियाँ निकालती थी, हमारी समस्याएँ पकड़ती थी और अपने व्यंग्य और कटाक्ष से हम पर हमला करती थी। उसने जानबूझकर हमारे भाई-बहनों के सामने हमें शर्मिंदा और अपमानित किया, जिससे हमें लगा कि हम वास्तविक कार्य नहीं कर सकते और हमें इतना कमजोर और नकारात्मक बना दिया कि हमें अपने कर्तव्य निभाने की कोई इच्छा नहीं रही। उसने जो सार्वजनिक पत्र लिखा था, उसमें मेरी विकृत समझ और जानबूझकर किए गए कार्य-कलापों के लिए मुझे नीचा दिखाया गया था—जो गंभीर प्रकृति के थे—मुझे बहुत कष्ट हुआ। मैं तभी से ही उससे डरती थी। मुझे डर था कि अगर मैं उससे असहमत हुई तो वह फिर से सार्वजनिक रूप से मुझे नीचा दिखाएगी और फटकार लगाएगी, इसलिए मैंने उसके साथ चलने की पूरी कोशिश की। मैं उसे फिर से नाराज करने या उसकी इच्छा का विरोध करने की हिम्मत नहीं कर पाई, मैं निश्चित रूप से उसका भेद पहचानने और उजागर करने को लेकर पर्याप्त साहसी नहीं थी। उसने उपयाजकों पर भी यही तरीके अपनाए, हर किसी पर तब तक हमला किया जब तक उन्हें यह महसूस नहीं होने लगा कि वे अपने कर्तव्यों में अच्छे नहीं हैं। ऐसा करके शिन रैन ने सुनिश्चित किया कि कोई भी उसका भेद नहीं पहचान पाएगा। इसका यह भी मतलब था कि हर कोई बेबस महसूस करता था और उसकी बात सुनता था और कोई भी उसके निर्णयों पर आपत्ति करने की हिम्मत नहीं करता था। इस तरह उसने हमारे कलीसिया में एकमात्र सत्ता रखने का अपना लक्ष्य हासिल किया। शिन रैन की कथनी और करनी बहुत ही भयावह, धूर्त और द्वेषपूर्ण थी। वह बिल्कुल मसीह-विरोधी की तरह बोलती और व्यवहार करती थी।
मैंने यह भी सोचा कि हम सभी ने शिन रैन को आदर क्यों दिया और उसकी आज्ञा का पालन क्यों किया जबकि वह स्पष्ट रूप से हमें दबा रही थी। हम उसके बिना कोई भी निर्णय लेने की हिम्मत नहीं कर पाते थे। उसने हमें इस हद तक कैसे गुमराह किया और नियंत्रित किया? बाद में मैंने परमेश्वर के वचनों का एक और अंश पढ़ा : “मसीह-विरोधी के नियंत्रण की सबसे आम घटना यह है कि उसके अधिकार के दायरे में, अंतिम फैसला सिर्फ उसी का होता है। अगर वह मौजूद नहीं है, तो कोई भी व्यक्ति फैसला लेने या मामले को निपटाने की हिम्मत नहीं करता है। उसके बिना, दूसरे लोग खोए हुए बच्चों की तरह हो जाते हैं, जो प्रार्थना करने, तलाश करने या आपस में विचार-विमर्श करने से अनजान होते हैं, और कठपुतली या मुर्दों की तरह व्यवहार करते हैं। लोगों को गुमराह और नियंत्रित करने के लिए मसीह-विरोधी अक्सर जो कहते हैं, उस बारे में हम यहाँ विस्तार से बात नहीं करेंगे। यकीनन ऐसे कई बयान और युक्तियाँ हैं जिनका वे उपयोग करते हैं, और इसके फलस्वरूप जो परिणाम होते हैं वे उन लोगों पर होते हुए देखे जा सकते हैं जिन्हें गुमराह किया गया है। ... मिसाल के तौर पर, अगर तुम कोई उचित सुझाव देते हो, तो सभी को इस सही प्रस्ताव पर चारों ओर से संगति करते रहना चाहिए, और यही सही मार्ग है और उनके कर्तव्य के प्रति निष्ठा और जिम्मेदारी को प्रदर्शित करता है, लेकिन मसीह-विरोधी अपने दिल में सोचता है, ‘मैं पहले इस प्रस्ताव के बारे में कैसे नहीं सोच पाया?’ अपने दिल की गहराई में वह इस बात को मानता है कि यह प्रस्ताव सही है, लेकिन क्या वह इसे स्वीकार कर सकता है? अपनी प्रकृति के कारण, वह तुम्हारे सही सुझाव को बिल्कुल स्वीकार नहीं करेगा। वह तुम्हारे प्रस्ताव को अस्वीकार करने के लिए हर संभव प्रयास करेगा, फिर वह एक दूसरी योजना लेकर आएगा ताकि तुम्हें यह महसूस करा सके कि तुम्हारा प्रस्ताव पूरी तरह से अव्यवहार्य है, और उसकी योजना बेहतर है। वह चाहता है कि तुम यह महसूस करो कि उसके बिना तुम्हारा काम नहीं चल सकता है और उसके कार्य करने से ही हर कोई प्रभावशाली हो सकता है। उसके बिना, कोई भी कार्य सही तरीके से करना नामुमकिन है, और हर कोई नाकाबिल हो जाता है और कोई भी कार्य पूरा नहीं करवा सकता है। मसीह-विरोधी की रणनीति हमेशा नया और अनोखा दिखना और भव्य दावे करना है। भले ही किसी और के बयान कितने भी सही क्यों ना हों, वह उन्हें अस्वीकार कर देगा। चाहे दूसरे लोगों के सुझाव उसके अपने विचारों के अनुरूप क्यों ना हों, अगर वह उसके द्वारा पहले प्रस्तावित नहीं किए गए थे, तो वह उन्हें कभी स्वीकार नहीं करेगा और ना ही अपनाएगा। इसके बजाय, वह उनके महत्व को कम करने के लिए सबकुछ करेगा, फिर उन्हें नकारेगा और उनकी निंदा करेगा, लगातार उनमें कमियाँ निकलता रहेगा जब तक कि सुझाव देने वाले व्यक्ति को यह महसूस नहीं होने लगता है कि उसके विचार गलत थे और वह अपनी गलती स्वीकार नहीं कर लेता है। सिर्फ उसके बाद ही आखिर में मसीह-विरोधी इस बात को जाने देगा। मसीह-विरोधी दूसरों के महत्व को कम करके खुद को कायम करने का आनंद लेते हैं, और उनका लक्ष्य दूसरों से अपनी आराधना करवाना और खुद को केंद्र में रखवाना है। वे सिर्फ खुद को चमकने देते हैं, जबकि दूसरे सिर्फ पृष्ठभूमि में खड़े रह सकते हैं। वे जो भी कहते या करते हैं वह सही है, और दूसरे जो भी कहते या करते हैं वह गलत है। वे अक्सर दूसरों के दृष्टिकोणों और क्रियाकलापों को नकारने के लिए, दूसरों के सुझावों में कमियाँ ढूँढने के लिए और दूसरों के प्रस्तावों में गड़बड़ करने और उन्हें अस्वीकार करने के लिए नए दृष्टिकोण पेश करते हैं। इस तरह से दूसरे लोगों को उनकी बात सुननी पड़ती है और उनकी योजनाओं के अनुसार कार्य करना पड़ता है। वे इन तरीकों और रणनीतियों का उपयोग लगातार तुम्हें नकारने, तुम पर आक्रमण करने और तुम्हें यह महसूस कराने के लिए करते हैं कि तुम अयोग्य हो, जिससे तुम उनके प्रति ज्यादा-से-ज्यादा आज्ञाकारी बनते जाते हो, उनकी और ज्यादा सराहना करते हो और उनका और ज्यादा सम्मान करते हो। इस तरह से तुम उनके द्वारा पूरी तरह से नियंत्रित हो जाते हो। यह वह प्रक्रिया है जिसके जरिये मसीह-विरोधी लोगों को दबाते हैं और नियंत्रित करते हैं” (वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद पाँच : वे लोगों को गुमराह करने, फुसलाने, धमकाने और नियंत्रित करने का काम करते हैं)। परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद मेरा दिल खुश हो गया। पहले जब शिन रैन लगातार हमारे विचार खारिज करती थी तो मुझे बस लगता था कि वह घमंडी है, लेकिन मैं उसके इरादों और लक्ष्यों या उसके कार्यकलापों की प्रकृति का भेद नहीं पहचान पाई थी। मैंने केवल परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद ही समझा कि जब भी वह हमारा नजरिया खारिज करती थी तो वह हमारे नजरिए से समस्याएँ चुनती थी ताकि वह उनका खंडन कर सके और हमें यह महसूस करा सके कि हमारे सुझाव अनुपयुक्त हो सकते हैं। फिर वह इस आधार पर किसी विचार या कुछ बड़ी बयानबाजी का सारांश देती थी। कुछ समय बाद हमें लगने लगा कि हम उससे कमतर हैं और वह चीजों को अधिक गहराई से और अंतर्दृष्टि से देखती है। न केवल हम उसका भेद पहचानने में विफल रहे, बल्कि हम उसका बहुत आदर और प्रशंसा करने लगे और आखिरकार हम खुद को नकारने से नहीं रोक पाए। हमें लगने लगा कि हमारे विचार और सुझाव मूल रूप से बेकार हैं, उनका उल्लेख करना व्यर्थ है और हमें बस उसकी बात सुननी चाहिए। ऐसा करके उसने दूसरे लोगों के विचारों को नियंत्रित करने का अपना मकसद पा लिया था। लंबे समय तक उसके द्वारा हमें बरगलाए जाने के चलते हमारे साथ कुछ होने पर हमने खोजना और चिंतन करना बंद कर दिया, अंत में हमारे पास अपने कोई विचार नहीं रहे थे। हम कठपुतलियों की तरह थे और हम अपने कर्तव्यों में पूरी तरह से बेकार थे। आखिरकार मुझे समझ में आया कि इसी तरीके का इस्तेमाल मसीह-विरोधी लोगों पर हावी होने और उन्हें नियंत्रित करने के लिए करते थे। शिन रैन ने इसका इस्तेमाल हमें नियंत्रित करने के साधन के रूप में किया ताकि हम उसकी बात सुनें और उसकी आज्ञा मानें। वह बहुत कपटी, धूर्त और बुरी थी!
बाद में मैंने परमेश्वर के वचनों का एक और अंश पढ़ा : “अगर कोई व्यक्ति होशियार है, अगर उसके वचन और कार्य हमेशा षड्यंत्र भरे होते हैं, अगर वह एक दुर्जेय चरित्र है, और जब तुम उसके साथ होते हो, तो वह हमेशा तुम्हें नियंत्रित और प्रबंधित करना चाहता है, तो तुम ऐसे व्यक्ति को दयालु मानते हो या दुष्ट? (दुष्ट।) तुम उससे डरते हो और सोचते हो, ‘यह व्यक्ति हमेशा मुझे नियंत्रित करना चाहता है। मुझे जितनी जल्दी हो सके इससे दूर हो जाना चाहिए। अगर मैं इसकी बात न मानूँ, तो यह मुझसे बदला लेने का कोई तरीका सोच लेगा और किसे पता कि मुझे दंडित करने के लिए किन तरीकों का इस्तेमाल करे।’ तुम उसके दुष्ट स्वभाव को समझ सकते हो, है न? (हाँ।) कैसे समझ सकते हो? (ऐसे लोग हमेशा दूसरों से अपनी माँगों और विचारों के अनुसार काम करवाते हो।) अगर वे लोगों से इस तरह से काम करवाते हो तो क्या यह माँग गलत है? ऐसे लोगों का अपनी इच्छा के अनुसार काम करवाना क्या वाकई गलत है? क्या यह तर्क सही है? क्या यह सत्य के अनुरूप है? (नहीं।) तुम उनके तरीकों से असहज हो जाते हो या स्वभाव से? (उनके स्वभाव से।) सही है, उनका स्वभाव तुम्हें असहज कर देता है और एहसास कराता है कि यह स्वभाव शैतान की ओर से आता है, सत्य के अनुरूप नहीं है, तुम्हें विमुख करने तथा नियंत्रित करने वाला और बाध्यकारी है। यह न केवल तुम्हें असहज करता है, बल्कि तुम्हें मन ही मन डराता है। तुम्हें यह सोचने पर मजबूर करता है कि अगर तुम उनका कहा नहीं मानोगे, तो संभव है कि वे तुम्हें दंडित करेंगे। ऐसे व्यक्ति का स्वभाव बहुत ही दुष्ट होता है! वे कुछ भी यूँ ही नहीं कहते—वे तुम्हें नियंत्रित करना चाहते हैं। वे तुम्हारे सामने मुश्किल माँगें रखते हैं और उन माँगों को खास ढंग से पूरा करने को कहते हैं। यह एक निश्चित प्रकार का स्वभाव दर्शाता है। वे तुमसे सिर्फ कोई काम करने को ही नहीं कहते, बल्कि वे तुम्हारे पूरे अस्तित्व को ही नियंत्रित करना चाहते हैं। अगर वे तुम्हें नियंत्रित कर लेते हैं, तो तुम उनकी कठपुतली, उनके हाथों का खिलौना बन जाओगे। जब तुम जो कहना चाहते हो, जो करते हो और तुम्हारे काम का तरीका, पूरी तरह उन पर निर्भर करता है, तो उन्हें खुशी मिलती है। जब तुम ऐसा स्वभाव देखते हो, तो तुम मन में क्या महसूस करते हो? (मुझे डर लगता है।) और जब तुम्हें डर लगता है, तो तुम उनके इस स्वभाव को कैसे परिभाषित कर सकते हो? क्या यह जिम्मेदारी वाला स्वभाव है, क्या यह सहृदयता हैया शातिराना स्वभाव है? तुम्हें यह शातिराना लगेगा। जब तुम्हें किसीका स्वभाव शातिराना लगे, तो तुम्हें आनंद आता है, या जुगुप्सा और अरुचि होती है, भय लगता है? (जुगुप्सा, अरुचि और भय।) ये बुरी भावनाएँ उत्पन्न होती है। जब तुम्हें जुगुप्सा, अरुचि और भय लगता है, तो तुम मुक्त और स्वतंत्र महसूस करते होया बाध्य महसूस करते हो? (बाध्य।) इस प्रकार की संवेदनाएँ और भावनाएँ कहाँ से आती हैं? ये शैतान से आती हैं” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, अपने स्वभाव का ज्ञान उसमें बदलाव की बुनियाद है)। परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद मुझे समझ आया मैं शिन रैन से इतना क्यों डरती थी और उसकी अवज्ञा करने की हिम्मत क्यों नहीं करती थी। ऐसा इसलिए था क्योंकि वह बहुत क्रूर थी, जब वह मुझे डाँटती और मेरे विचारों को खारिज कर देती थी तो मैं बेबस और उत्पीड़ित महसूस करती थी। मुझे लगता था कि अगर मैंने उसकी बात नहीं मानी तो वह मुझे दबाएगी और दंडित करेगी। शिन रैन ने हम पर क्रूरता से हमला किया और हमारे विचारों में खामियाँ निकालीं ताकि वह उन्हें खारिज कर सके—ऐसा करके उसका मकसद हमें समझौता करने के लिए मजबूर करना और आखिरकार हमें अपनी कठपुतली बनाना था। वह चाहती थी कि हर कोई उसकी बात सुने, सभी तरह की अवज्ञा हट जाए और इस तरह वह सत्ता को पूरी तरह हड़पने का मकसद पूरा कर सके। नियंत्रण की उसकी इच्छा बहुत प्रबल थी!
बाद में मैंने और उपयाजकों ने मिलकर परमेश्वर के इन वचनों पर संगति की। जितनी ज्यादा हमने उन पर चर्चा की, उतना ही हमें स्पष्टता का एहसास हुआ। हमने शिन रैन के गुमराह करने, नियंत्रित करने और दबाने के तरीकों का कुछ भेद पहचाना और हमने देखा कि उसकी प्रकृति घमंडी और क्रूर है। अपने रुतबे और सत्ता को मजबूत करने के लिए उसने दूसरों को दबाने और नियंत्रित करने के लिए इन तरीकों का इस्तेमाल किया। उसने सारी सत्ता पर पकड़ बनाए रखी और भाई-बहनों के बीच अपनी ही चलाई। वह पहले ही सिद्धांतों का बार-बार उल्लंघन करके और मनमाने ढंग से काम करके कलीसिया के काम में बाधा और उसे नुकसान पहुँचा चुकी थी। और भले ही उसे कई बार उजागर किया गया था और उसके साथ संगति की गई थी, उसने इसे बिल्कुल नहीं स्वीकारा और उसमें खुद के बारे में ज्ञान और पश्चात्ताप के रवैये की कमी थी। परमेश्वर के वचनों के आधार पर हम निश्चित रूप से यह भेद पहचान सके कि शिन रैन एक मसीह-विरोधी जैसी ही इंसान थी, जिसका मतलब था कि उसे बर्खास्त करके निगरानी के लिए अलग-थलग किया जाना था। इसलिए उसी दिन हमने अपने वरिष्ठ को शिन रैन के व्यवहार और हमारे निष्कर्षों के बारे में बताया। स्थिति का मुआयना और जाँच करने के बाद हमारे वरिष्ठ ने पाया कि शिन रैन ने बहुत सारे कुकर्म किए हैं और पुष्टि कर दी कि वह मसीह-विरोधी है। उसने भाई-बहनों से सलाह ली और 80% से ज्यादा लोगों की स्वीकृति के बाद शिन रैन को कलीसिया से निष्काषित कर दिया गया। उसे निकाले जाने के बाद भाई-बहनें बहुत खुश हुए और हम सभी ने देखा कि परमेश्वर कितना धार्मिक है और परमेश्वर के घर में सत्य का शासन है। हमने जाना कि भले ही मसीह-विरोधी और दुष्ट लोग अस्थायी रूप से कलीसिया में अनियंत्रित हो जाएँ, लेकिन अंत में उन्हें बेनकाब कर दूर कर दिया जाएगा। मुझे भी इस सब के बाद गहरा अफसोस और पश्चात्ताप हुआ। मुझे एहसास हुआ कि जब एक मसीह-विरोधी बुराई कर रही थी तो मैं खुद को बचाने के लिए बहुत चिंतित थी। मैंने सत्य की खोज करने, उसका भेद पहचानने और उसे उजागर करने के बजाय उससे प्रताड़ित होना पसंद किया। मैंने चुपचाप उसके कुकर्मों और कलीसिया के काम में उसके द्वारा किए गए व्यवधान को उचित ठहराया था, जिसका मतलब था कि मैं उसके कुकर्मों में भागीदार थी। अब मैं समझती हूँ कि अगुआओं और कार्यकर्ताओं के रूप में हमें सत्य सिद्धांतों को बनाए रखना चाहिए और मसीह-विरोधियों और बुरे लोगों को उजागर करने की हिम्मत रखनी चाहिए। यही एकमात्र तरीका है जिससे हम कलीसिया के काम की रक्षा कर सकते हैं और अपना कर्तव्य अच्छी तरह से निभा सकते हैं।