91. मैं अब काम से दूर रहने का रवैया नहीं अपनाऊँगी
जून 2021 में मैंने कलीसिया में वीडियो कार्य की देखरेख की और चूँकि काम बढ़ गया था तो कलीसिया ने मुझे एक और समूह के काम का जायजा लेने में लगा दिया। मैंने सोचा, “मैं अभी अपनी जिम्मेदारी वाले काम में ही बहुत व्यस्त हूँ। अगर मैं और ज्यादा काम की निगरानी करती हूँ तो क्या इतनी ज्यादा व्यस्तता से मुझे थकान नहीं हो जाएगी?” लेकिन मैंने यह भी सोचा, “इस समूह के भाई-बहन काम से परिचित हैं। वे सभी अनुभवी हैं और अपना कर्तव्य प्रभावी ढंग से करते हैं, इसलिए मुझे काम का जायजा लेने के बारे में बहुत ज्यादा चिंता नहीं करनी पड़ेगी और इसमें ज्यादा समय और मेहनत भी नहीं लगेगी।” इसलिए मैं दूसरे समूह के काम का जायजा लेने के लिए सहमत हो गई। पहले मैं समय-समय पर पूछती रहती थी कि क्या समूह के काम में सामान्य प्रगति हो रही है और क्या किसी भाई-बहन को अपना कर्तव्य निभाने में मुश्किलें आ रही हैं। हालाँकि बाद में मुझे लगा कि मेरे पास और भी काम हैं और हर समूह के काम की बारीकियाँ समझने की कोशिश करना मानसिक रूप से बहुत थकाऊ और समय लेने वाला होगा। उस समूह का काम सामान्य रूप से चल रहा था, इसलिए सब कुछ ठीक था और मुझे चीजों को समझने में समय नहीं लगाना पड़ेगा। समूह अगुआ भी वहीं था और भाई-बहन भरोसेमंद थे और अपना कर्तव्य अच्छी तरह से निभाते थे। पिछले कुछ सालों से कोई बड़ी समस्या नहीं हुई थी, इसलिए मूल रूप से चिंता करने की कोई जरूरत नहीं थी। थोड़ा कम जाजया लेने से कोई समस्या तो नहीं होगी, है न? ऐसा मानकर मैं उस समूह के काम में शायद ही कभी शामिल हुई।
लगभग दो महीने बाद एक दिन एक भाई ने मुझे प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि दो बार उस समूह द्वारा बनाए गए हालिया वीडियो में समस्याएँ आई थीं और अगर दूसरी बहनों ने समय रहते समस्याओं का पता नहीं लगाया होता तो काम की प्रगति में देरी हो जाती। मुझे थोड़ी हैरानी हुई कि समूह द्वारा अपने कर्तव्य निभाते समय कई गंभीर समस्याएँ सामने आई थीं। मुझे कैसे पता नहीं चला? पीछे मुड़कर सोचने पर समझ आया कि मैं कई महीनों से उस कार्य के लिए जिम्मेदार थी, लेकिन मैंने उस समूह के काम पर बहुत कम ध्यान दिया और मुझे पता ही नहीं था कि समूह के सदस्य अपना कर्तव्य कैसे निभा रहे थे। मुझे एहसास हुआ कि मैं वास्तविक काम नहीं कर रही थी और यही इन समस्याओं का कारण है। बाद में जब मैंने स्थिति समझी तो पाया कि कुछ समय तक किसी ने समूह के काम की निगरानी नहीं की थी या उसका जायजा नहीं लिया था, इसलिए समूह के सदस्य अपने कर्तव्य निर्वहन में जिम्मेदारी समझे बिना ही अपने अनुभव और मौजूदा दिनचर्या के आधार पर काम करते रहे। इसलिए जैसे ही काम का बोझ बढ़ा, उन्होंने अनमने ढंग से काम करना शुरू कर दिया। भले ही दो लोगों ने मिलकर वीडियो का निरीक्षण किया, लेकिन उनके लिए यह सिर्फ औपचारिकता थी। वे सिर्फ औपचारिकता निभा रहे थे और समस्याओं का पता नहीं लगा पा रहे थे। इन सबका सामना करना दर्दनाक था। इन समस्याओं का पता लगाना मुश्किल नहीं था और अगर मैंने उस समूह के काम का सामान्य जायजा भी लिया होता तो मैं इतनी अनजान नहीं रहती। मैं कितनी गैर-जिम्मेदार थी! मुझे आत्म-चिंतन करना चाहिए था कि मैंने तीन महीने से ज्यादा समय तक उनके काम को क्यों नजरअंदाज किया। मैंने परमेश्वर के वचन पढ़े जिनमें कहा गया है : “नकली अगुआ कभी भी विभिन्न टीम सुपरवाइजरों की कार्य स्थितियों के बारे में नहीं पूछते या उनकी निगरानी नहीं करते। वे विभिन्न टीमों के सुपरवाइजरों और विभिन्न महत्वपूर्ण कार्यों के लिए जिम्मेदार कार्मिकों के जीवन प्रवेश के साथ ही कलीसिया के कार्य और उनके कर्तव्यों के साथ-साथ परमेश्वर में आस्था, सत्य और स्वयं परमेश्वर के प्रति उनके रवैयों के बारे में भी न तो पूछते हैं, न ही इसकी निगरानी करते हैं या इस बारे में समझ रखते हैं। वे नहीं जानते कि इन व्यक्तियों में कोई परिवर्तन या विकास हुआ है या नहीं, न ही वे उनके कार्य से जुड़ी विभिन्न संभावित समस्याओं के बारे में जानते हैं; खासकर वे कार्य के विभिन्न चरणों में होने वाली त्रुटियों और विचलनों के कारण कलीसिया के कार्य और परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन प्रवेश पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में नहीं जानते, साथ ही वे यह भी नहीं जानते कि इन त्रुटियों और विचलनों को कभी सुधारा गया है या नहीं। वे इन सभी चीजों से पूरी तरह से अनभिज्ञ होते हैं। अगर उन्हें इन विस्तृत स्थितियों के बारे में कुछ भी पता नहीं होता तो समस्याएँ आने पर वे निष्क्रिय हो जाते हैं। परंतु, नकली अगुए अपना काम करते समय इन विस्तृत मुद्दों की बिल्कुल परवाह नहीं करते। वे मानते हैं कि विभिन्न टीम सुपरवाइजरों की व्यवस्था करने और उन्हें काम सौंप देने पर उनका कार्य पूरा हो जाता है—इसे काम को अच्छी तरह से करना समझा जाता है और यदि अन्य समस्याएँ आती हैं तो वे उनकी चिंता का विषय नहीं हैं। चूँकि नकली अगुआ विभिन्न टीम सुपरवाइजरों की देख-रेख करने, उनका निर्देशन करने और उन पर निगरानी रखने में विफल रहते हैं और इन क्षेत्रों में अपनी जिम्मेदारियों को अच्छे से नहीं निभाते, नतीजतन कलीसिया के कार्य में गड़बड़ी हो जाती है। इसे ही अगुआओं और कार्यकर्ताओं का अपनी जिम्मेदारियों में लापरवाही बरतना कहते हैं। परमेश्वर मानव हृदय की गहराइयों की पड़ताल कर सकता है; यह क्षमता मनुष्य में नहीं है। इसलिए काम करते समय लोगों को ज्यादा मेहनती होने और चौकस रहने की जरूरत है, कलीसिया के कार्य की सामान्य प्रगति सुनिश्चित करने के लिए नियमित रूप से कार्यस्थल पर जाकर निगरानी, देख-रेख और निर्देशन करने की जरूरत है। साफ है कि नकली अगुए अपने कार्य में पूरी तरह गैर-जिम्मेदार होते हैं और वे कभी भी विभिन्न कामों की देख-रेख, निगरानी या निर्देशन नहीं करते हैं। परिणामस्वरूप कुछ सुपरवाइजर यह नहीं जानते कि कार्य में आने वाली विभिन्न समस्याओं को कैसे हल किया जाए और कार्य करने में लगभग पर्याप्त रूप से सक्षम न होने के बावजूद वे सुपरवाइजर की भूमिका में बने रहते हैं। अंततः कार्य में बार-बार देरी होती है और वे इसे पूरी तरह से बिगाड़ देते हैं। नकली अगुआओं द्वारा सुपरवाइजरों की स्थितियों के बारे में पूछताछ न करने, उनकी देख-रेख न करने या उसके बारे में निगरानी न करने का यही दुष्परिणाम होता है, जो पूरी तरह से नकली अगुआओं की अपनी जिम्मेदारी के प्रति लापरवाही के कारण होता है” (वचन, खंड 5, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (3))। परमेश्वर के वचनों से मैंने देखा कि झूठे अगुआ अपने कर्तव्यों की उपेक्षा करते हैं और वास्तविक कार्य नहीं करते हैं। उन्हें लगता है कि हर समूह का एक सुपरवाइजर होता है, इसलिए झूठे अगुआ पल्ला झाड़ने का रवैया अपना सकते हैं, जिससे कलीसिया के कार्य में समस्याएँ आती हैं। देखने में ऐसा लग सकता है कि झूठे अगुआ ऐसा कुछ नहीं कर रहे हैं जो स्पष्ट रूप से बुरा हो। लेकिन उन्हें कलीसिया के कार्य के बारे में जिम्मेदारी का एहसास नहीं होता, जिससे विभिन्न कार्यों की प्रगति और प्रभावशीलता पर गंभीर असर पड़ता है और इससे कलीसिया के कार्य में बाधा और गड़बड़ी पैदा होती है। परमेश्वर चाहता है कि अगुआ और कार्यकर्ता समय पर कार्य का जायजा लें और निगरानी करें ताकि सुनिश्चित हो सके कि कलीसिया के कार्य में नियमित, व्यवस्थित प्रगति हो रही है। यह उनकी जिम्मेदारी और कर्तव्य है। लेकिन जब मैंने उस समूह का कार्य संभाला तो मुझे लगा कि समूह में अगुआ है और सारा कार्य व्यवस्थित तरीके से आगे बढ़ रहा है, इसलिए पल्ला झाड़ने का रवैया अपनाना उचित है। मैंने कभी उनके कार्य का निरीक्षण नहीं किया या उसका जायजा नहीं लिया और न ही मैंने सभी के कार्य में मौजूदा गलतियों और समस्याओं की बारीकियों को समझा। मुझे यह भी पता नहीं चला कि वे अपने कर्तव्य निभाने में कब ढीले और अनमने हुए। अपनी खुद की धारणाओं और कल्पनाओं के आधार पर मुझे लगा कि वे अपने कर्तव्य निभाने में विश्वसनीय और कर्तव्यनिष्ठ हैं और पूरी तरह से भरोसेमंद हैं। इसलिए मैंने उसी के अनुसार काम किया, जिसके परिणामस्वरूप काम को नुकसान हुआ। परमेश्वर के वचनों की रोशनी में मुझे पता चला कि मैं अपने कर्तव्य निभाने में लापरवाह थी और दरअसल झूठी अगुआ थी। हालाँकि मैंने जानबूझकर कोई बुराई नहीं की, लेकिन समस्याएँ बनी रहीं और उनका समाधान नहीं हुआ क्योंकि मैंने वास्तविक काम नहीं किया। उनके द्वारा बनाए गए वीडियो में समस्याएँ सामने आईं, इसलिए उन्हें फिर से बनाना पड़ा, जिसका सीधा संबंध मेरे अपने कर्तव्य निर्वहन में लापरवाह और गैर-जिम्मेदार होने से था। लापरवाह नजरिया अपनाते हुए और इसे हल्के में लेते हुए मैंने काम का जायजा नहीं लिया या निगरानी नहीं की। भले ही इससे मेरा बहुत समय और ऊर्जा बच गई, लेकिन इससे सीधे तौर पर काम की प्रगति में देरी हुई और कलीसिया के काम में बाधा और गड़बड़ी आई। मैं परमेश्वर का प्रतिरोध कर रही थी! उस विचार ने मेरे दिल में डर पैदा कर दिया और मैंने लगातार आत्म-चिंतन करते हुए सोचा, “मैं इतने लंबे समय तक कैसे पल्ला झाड़ने का रवैया अपनाती रही और मुझे एहसास भी नहीं हुआ?”
बाद में मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा और इस तथ्य को बेहतर समझा कि मैं वास्तविक काम नहीं कर रही थी। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है : “नकली अगुआ उन पर्यवेक्षकों के बारे में कभी पूछताछ नहीं करते जो वास्तविक कार्य नहीं कर रहे होते हैं, या जो अपने उचित कार्यों पर ध्यान नहीं दे रहे होते हैं। उन्हें लगता है कि उन्हें बस एक पर्यवेक्षक चुनना है और मामला खत्म; और कि बाद में पर्यवेक्षक सभी कार्य-संबंधी मामलों को अपने आप संभाल सकता है। इसलिए नकली अगुआ जब-तब बस सभाएँ आयोजित करता है और काम का पर्यवेक्षण नहीं करता, न ही पूछता है कि काम कैसा चल रहा है, और कार्यस्थल से दूर रहने वाले उच्चाधिकारियों की तरह से व्यवहार करता है। ... वे स्वयं कोई वास्तविक कार्य करने में अक्षम होते हैं और समूह अगुआओं और पर्यवेक्षकों के कार्य के बारे में सूक्ष्मता से ध्यान भी नहीं देते—वे इसकी न तो अनुवर्ती देखभाल करते हैं, न ही इस बारे में पूछताछ करते हैं। लोगों के बारे में उनका नजरिया उनकी अपनी सोच और कल्पनाओं पर आधारित होता है। किसी को कुछ समय के लिए अच्छा काम करते देखते हैं, तो उन्हें लगता है कि वह व्यक्ति हमेशा ही अच्छा काम करेगा, उसमें कोई बदलाव नहीं आएगा; अगर कोई कहता है कि इस व्यक्ति के साथ कोई समस्या है, तो वह उस पर विश्वास नहीं करता, अगर कोई उन्हें उस व्यक्ति के बारे में चेतावनी देता है, तो वह उसे अनदेखा कर देता है। क्या तुम्हें लगता है कि नकली अगुआ बेवकूफ होता है? वे बेवकूफ और मूर्ख होते हैं। उन्हें क्या चीज बेवकूफ बनाती है? वे यह मानते हुए लोगों पर सहर्ष विश्वास कर लेते हैं कि चूँकि जब उन्होंने इस व्यक्ति को चुना था, तो इस व्यक्ति ने शपथ ली थी, संकल्प किया था और आँसू बहाते हुए प्रार्थना की थी, यानी वह भरोसे के लायक है और काम का प्रभार लेते हुए उसके साथ कभी कोई समस्या नहीं होगी। नकली अगुआओं को लोगों की प्रकृति की कोई समझ नहीं होती; वे भ्रष्ट मानव-जाति की असल स्थिति से अनजान होते हैं। वे कहते हैं, ‘पर्यवेक्षक के रूप में चुने जाने के बाद कोई कैसे बदल सकता है? इतना गंभीर और विश्वसनीय प्रतीत होने वाला व्यक्ति कामचोरी कैसे कर सकता है? वह कामचोरी नहीं करेगा, है न? उसमें बहुत ईमानदारी है।’ चूँकि नकली अगुआओं की अपनी कल्पनाओं और अनुभूतियों में बहुत ज्यादा आस्था होती है, यह अंततः उन्हें कलीसिया के काम में उत्पन्न होने वाली कई समस्याओं का समय पर समाधान करने में असमर्थ बना देती है, और संबंधित पर्यवेक्षक को तुरंत बर्खास्त करने और उसे दूसरी जगह भेजने से रोकता है। वे प्रामाणिक नकली अगुआ हैं। और यहाँ मुद्दा क्या है? क्या नकली अगुआओं के अपने काम के प्रति रवैये का अन्यमनस्कता से कोई संबंध है? एक लिहाज से वे देखते हैं कि बड़ा लाल अजगर पागलों की तरह परमेश्वर के चुने हुए लोगों की गिरफ्तारियाँ कर रहा है, इसलिए वे खुद को सुरक्षित रखने के लिए यद्दृच्छया किसी को भी प्रभारी चुन लेते हैं कि इससे उनकी समस्या सुलझ जाएगी और उन्हें इस पर और ध्यान देने की आवश्यकता नहीं होगी। वे मन ही मन क्या सोचते हैं? ‘यह बहुत ही शत्रुतापूर्ण परिवेश है, कुछ समय के लिए मुझे छिप जाना चाहिए।’ यह भौतिक सुखों का लोभ है, है न? एक अन्य संदर्भ में नकली अगुआओं में यह घातक कमी होती है कि यह भी एक बड़ी विफलता होती है : वे अपनी कल्पनाओं के आधार पर लोगों पर जल्दी भरोसा कर लेते हैं। और यह सत्य को न समझने के कारण होता है, है न? परमेश्वर के वचन भ्रष्ट लोगों का सार कैसे प्रकट करते हैं? जब परमेश्वर ही लोगों पर भरोसा नहीं करता, तो वे क्यों करें? नकली अगुआ बहुत घमंडी और आत्मतुष्ट होते हैं, है न? वे यह सोचते हैं, ‘मैं इस व्यक्ति को परखने में गलत नहीं रहा हो सकता। जिस व्यक्ति को मैंने उपयुक्त समझा है, उसके साथ कोई समस्या नहीं होनी चाहिए; वह निश्चित रूप से ऐसा नहीं है, जो खाने, पीने और मस्ती करने में रमा रहे, आराम पसंद करे और मेहनत से नफरत करे। वे पूरी तरह से भरोसेमंद और विश्वसनीय हैं। वे बदलेंगे नहीं; अगर वे बदले, तो इसका मतलब होगा कि मैं उनके बारे में गलत था, है न?’ यह कैसा तर्क है? क्या तुम कोई विशेषज्ञ हो? क्या तुम्हारे पास एक्सरे जैसी दृष्टि है? क्या तुममें विशेष कौशल है? तुम किसी व्यक्ति के साथ एक-दो साल तक रह सकते हो, लेकिन क्या तुम उसके प्रकृति सार को पूरी तरह से उजागर करने वाले किसी उपयुक्त वातावरण के बिना यह देख पाओगे कि वह वास्तव में कौन है? अगर परमेश्वर द्वारा उन्हें उजागर न किया जाए, तो तुम्हें तीन या पाँच वर्षों तक उनके साथ रहने के बाद भी यह जानने के लिए संघर्ष करना पड़ेगा कि उनका प्रकृति सार किस तरह का है। और जब तुम उनसे शायद ही कभी मिलते हो, शायद ही कभी उनके साथ होते हो, तो यह भी कितना सच होगा? किसी के साथ थोड़ी-बहुत बातचीत या किसी के द्वारा उनके सकारात्मक मूल्यांकन के आधार पर नकली अगुआ प्रसन्नतापूर्वक उन पर भरोसा कर लेते है और ऐसे व्यक्ति को कलीसिया का काम सौंप देते हो। इसमें क्या वे अत्यधिक अंधे नहीं हो जाते हो? क्या वे उतावली से काम नहीं ले रहे हैं? और जब नकली अगुआ इस तरह से काम करते हैं, तो क्या वे बेहद गैर-जिम्मेदार नहीं होते?” (वचन, खंड 5, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (3))। परमेश्वर के वचन यह उजागर करते हैं कि झूठे अगुआ आलसी, मूर्ख और नासमझ होते हैं। परमेश्वर के वचनों के आधार पर लोगों और चीजों को देखने के बजाय वे उन्हें अपनी धारणाओं और कल्पनाओं के आधार पर देखते हैं। फिर भी उन्हें लगता है कि उनके पास लोगों और चीजों के बारे में अंतर्दृष्टि है। वे किसी पर भरोसा कर सकते हैं और दूसरे लोगों को काम सौंप सकते हैं, जबकि वे खुद पल्ला झाड़ने के रवैये से काम करते हैं और रुतबे के लाभों की लालसा करते हैं। परमेश्वर के वचनों के प्रकाशन से मैंने देखा कि वह आलसी और मूर्ख झूठा अगुआ मैं ही थी! मेरी आलसी प्रकृति के कारण मुझे हमेशा लगता था कि मैं इतने सारे काम के लिए जिम्मेदार हूँ, अगर मैं हर समूह के कार्य का जायजा लेती हूँ और उसकी बारीकियाँ समझती हूँ तो इसमें बहुत ज्यादा परेशानी होगी और मेहनत करनी पड़ेगी। इसलिए मैंने मुख्य रूप से एक समूह के काम का ही जायजा लिया। चूँकि दूसरे समूह में समूह अगुआ था, जब तक काम सामान्य रूप से आगे बढ़ा, सब कुछ ठीक चलता रहा, मुझे उसका जायजा लेने में ज्यादा समय बिताने की जरूरत नहीं पड़ी। अपने कर्तव्य के प्रति मेरा नजरिया यही था कि मुझे जितनी कम चिंता करनी पड़े, उतना अच्छा है। भले ही मेरे पास सुपरवाइजर का पद था, लेकिन मैंने असल में पल्ला झाड़ने का रवैया अपनाया, जो बहुत गैर-जिम्मेदाराना था! मैं बहुत दंभी भी थी। अपनी धारणाओं और कल्पनाओं के आधार पर मुझे लगा कि उस समूह में हर कोई अपना कर्तव्य निभाने में विश्वसनीय है। इसलिए मुझे चिंता करने की जरूरत नहीं है और अगर मैं उनके काम का जायजा नहीं लूँगी तो भी वे अपना कर्तव्य ठीक से निभाते रहेंगे। मैंने कई महीनों तक उनके बारे में नहीं पूछा या उनकी निगरानी नहीं की, जिसके कारण उनके काम में ये समस्याएँ सामने आईं। मैंने सत्य नहीं समझा या मामलों को साफ नहीं देखा और मुझे खुद पर पूरा भरोसा था, मैंने सोचा कि लोगों के बारे में मेरा आकलन गलत नहीं हो सकता। मैं बहुत घमंडी और मूर्ख थी! यह सब जानकर मुझे बहुत पछतावा हुआ और मुझे लोगों के साथ और अपने कर्तव्यों में परमेश्वर के वचनों के अनुसार व्यवहार करने के महत्व का एहसास हुआ। इसलिए मैंने अपने कर्तव्य निर्वहन का मार्ग खोजने के लिए सचेत होकर परमेश्वर के वचनों में प्रासंगिक अंशों की खोज की।
एक दिन मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा जिसमें कहा गया है : “चूँकि नकली अगुआ कार्य की प्रगति के बारे में जानकारी नहीं हासिल करते, और क्योंकि वे उसमें उत्पन्न होने वाली समस्याएँ तुरंत पहचानने में असमर्थ होते हैं—उन्हें हल करना तो दूर की बात है—इससे अक्सर बार-बार देरी होती है। किसी-किसी कार्य में, चूँकि लोगों को सिद्धांतों की समझ नहीं होती और उसकी जिम्मेदारी लेने या उसका संचालन करने के लिए कोई उपयुक्त व्यक्ति नहीं होता, इसलिए कार्य करने वाले लोग अक्सर नकारात्मकता, निष्क्रियता और प्रतीक्षा की स्थिति में रहते हैं, जो कार्य की प्रगति को गंभीर रूप से प्रभावित करता है। अगर अगुआओं ने अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी की होतीं—अगर उन्होंने कार्य का संचालन किया होता, उसे आगे बढ़ाया होता, उसका निरीक्षण किया होता, और कार्य का मार्गदर्शन करने के लिए उस क्षेत्र को समझने वाले किसी व्यक्ति को ढूँढ़ा होता, तो बार-बार देरी होने के बजाय काम तेजी से आगे बढ़ता। तभी, अगुआओं के लिए कार्य की स्थिति को समझना और पकड़ हासिल करना महत्वपूर्ण है। निस्संदेह, अगुआओं के लिए यह समझना और पकड़ना भी बहुत आवश्यक है कि कार्य कैसे प्रगति कर रहा है, क्योंकि प्रगति कार्य की दक्षता और उन परिणामों से संबंधित है जो उस कार्य से मिलने चाहिए। अगर अगुआओं और कार्यकर्ताओं को यह समझ न हो कि कलीसिया का कार्य कैसा चल रहा है, और वे चीजों की खोज-खबर नहीं लेते या उनका निरीक्षण नहीं करते, तो कलीसिया के कार्य की प्रगति धीमी होनी तय है। यह इस तथ्य के कारण है कि कर्तव्य निभाने वाले ज्यादातर लोग बहुत गंदे होते हैं, उनमें दायित्व की भावना नहीं होती, वे अक्सर नकारात्मक, निष्क्रिय और अनमने होते हैं। अगर दायित्व की भावना और कार्य-क्षमताओं से युक्त ऐसा कोई व्यक्ति नहीं है जो ठोस ढंग से काम की जिम्मेदारी ले सके, समयबद्ध तरीके से कार्य की प्रगति जान सके, और कर्तव्य निभाने वाले लोगों का मार्गदर्शन, निरीक्षण कर सके, और उन्हें अनुशासित कर उनकी काट-छाँट कर सके, तो स्वाभाविक रूप से कार्य-कुशलता का स्तर बहुत नीचा होगा और कार्य के परिणाम बहुत खराब होंगे। अगर अगुआ और कार्यकर्ता इसे स्पष्ट रूप से देख तक नहीं सकते, तो वे मूर्ख और अंधे हैं। इसलिए, अगुआओं और कार्यकर्ताओं को काम पर तुरंत गौर करके उसकी खोज-खबर लेकर उसकी प्रगति को समझना होगा और इस बात पर नजर रखकर अवगत रहना चाहिए, यह देखना चाहिए कि कर्तव्य करनेवालों की ऐसी कौन-सी समस्याएँ हैं जिन्हें हल करने की आवश्यकता है, और यह समझना चाहिए कि बेहतर परिणाम प्राप्त करने के लिए किन समस्याओं का समाधान किया जाना चाहिए। ये सारी चीजें बहुत महत्वपूर्ण हैं और अगुआ के रूप में कार्य करने वाले व्यक्ति को इनके बारे में स्पष्ट होना चाहिए। अपना कर्तव्य अच्छी तरह से निभाने के लिए, तुम्हें नकली अगुआ की तरह नहीं होना चाहिए, जो कुछ सतही काम करता है और फिर सोचता है कि उसने अपना कर्तव्य अच्छी तरह से निभाया है” (वचन, खंड 5, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (4))। परमेश्वर के वचन लोगों को अपने कर्तव्य स्वीकार्य मानक के अनुसार करने का मार्ग दिखाते हैं। एक अगुआ या सुपरवाइजर के रूप में लोगों को अपने कर्तव्य जिम्मेदारी की भावना के साथ निभाने चाहिए और देह के आराम की लालसा नहीं करनी चाहिए। उन्हें समय रहते अपनी जिम्मेदारी वाले कार्यों का जायजा लेना चाहिए, उन पर नजर रखनी चाहिए, निगरानी और निरीक्षण करना चाहिए। अगुआओं और पर्यवेक्षकों को भी संबंधित कर्मचारियों की अवस्था पर नजर रखनी चाहिए और उन्हें समझना चाहिए और यह भी जानना चाहिए कि वे अपना कर्तव्य कैसे निभाते हैं। इस तरीके से समस्याओं का तुरंत पता लगाया जा सकता है और गलतियाँ सुधारी जा सकती हैं। चूँकि अभी तक किसी भी मनुष्य को पूर्ण नहीं बनाया गया है, इसलिए सभी में भ्रष्ट स्वभाव है। इसलिए अगर लोगों की अवस्था अच्छी है और वे कुछ समय के लिए अपने कर्तव्य निभाने में कर्तव्यनिष्ठ, जिम्मेदार और प्रभावी होते हैं तो इसका मतलब यह नहीं है कि वे पूरी तरह से विश्वसनीय हैं। जब उनकी अवस्था असामान्य होती है या वे अपने भ्रष्ट स्वभाव के अनुसार जीते हैं तो वे जान-बूझकर लापरवाह हो जाते हैं और ऐसे काम करते हैं जिससे कलीसिया का काम बाधित होता है। इसलिए जब लोग अपने कर्तव्य निभाते हैं तो अगुआओं, कार्यकर्ताओं और सुपरवाइजर को काम का निरीक्षण करने और उसका जायजा लेने की आवश्यकता होती है और जब समस्याएँ मिलती हैं तो उन्हें गलतियाँ तुरंत सुधारनी चाहिए। यह उनकी जिम्मेदारी है। परमेश्वर की अपेक्षाएँ समझने के बाद मैंने समूह के काम का जायजा लेना और उसके बारे में ज्यादा जानना शुरू कर दिया और कार्य का सारांश लेने के लिए नियमित रूप से उनके साथ बैठकें कीं। जब मुझे गलतियाँ और समस्याएँ मिलीं तो मैंने तुरंत समूह अगुआ के साथ उनके बारे में संवाद किया। कार्य का जायजा लेने पर मैंने पाया कि सभी के काम में अनुशासन और योजना की कमी थी। इसलिए मैंने समूह की कार्य योजना और प्रगति पर समूह अगुआ के साथ चर्चा की और कुछ लंबित कार्य निर्धारित समय पर पूरे किए गए। इसके अलावा हमने कार्यभार के आधार पर कर्मचारियों की संख्या को सुव्यवस्थित किया और अपने कुछ कर्मचारियों को वहाँ लगाया जहाँ उनकी ज्यादा जरूरत थी। इस तरह से अभ्यास करने के बाद मैं बहुत ज्यादा सहज हो गई। साथ ही मैंने अपनी जिम्मेदारी के दायरे वाले काम का पहले से कहीं ज्यादा बारीकी से जायजा लिया।
कुछ समय बाद मैंने नया काम संभाला जिसमें बहुत समय लगने वाला था। मैंने सोचा, “मैंने हर समूह के काम का कुछ समय तक बारीकी से जायजा लिया है, इसलिए अब चीजें स्थिर हैं। अगर मुझे अभी भी हर समूह के काम की बारीकियों के बारे में चिंता करनी पड़ेगी और उसमें शामिल होना पड़ेगा तो इसमें बहुत ज्यादा समय और मेहनत लगेगी। इससे मैं काफी व्यस्त हो जाऊँगी और मुझ पर बहुत ज्यादा दबाव पड़ेगा।” मैंने सोचा कि मैं किस समूह का काम किसी और को सौंप सकती हूँ ताकि मुझे कम चिंता करनी पड़े। मैंने एक ऐसे समूह के बारे में सोचा जिसमें दो समूह अगुआ थे जो अपने कर्तव्य निर्वहन में ज्यादा सक्रिय थे और कीमत चुकाने में सक्षम थे। मैं समूह के काम उन्हें सौंपना चाहती थी ताकि वे बारीकी से जायजा ले सकें। फिर मुझे सिर्फ चीजों की दिशा पर नजर रखनी होगी और काम का सारांश देने के लिए नियमित रूप से सभाओं में भाग लेना होगा। मैं बाकी सब कुछ समूह अगुआओं पर छोड़ सकती थी। लेकिन ऐसा करके मैं अपने पुराने ढर्रे पर लौट रही थी, सिर्फ उस नए काम पर ध्यान केंद्रित कर रही थी जिसे मैंने संभाला था और इस समूह के काम की बारीकियों में शामिल नहीं हो रही थी। मैंने सोचा कि चूँकि समूह अगुआ हैं ही, इसलिए सब ठीक रहेगा। अगर कोई समस्या आती है तो उन्हें बस पहल करके मुझे बताने की देर होगी और फिर उससे निपट सकूँगी। एक दिन एक समूह अगुआ ने बताया कि मैं पर्याप्त रूप से काम का जायजा नहीं ले रही हूँ और मैं उनके काम की बारीकियों में शामिल नहीं हो रही हूँ। समूह के कुछ भाई-बहन अपने कर्तव्य निर्वहन में टाल-मटोल और आलस करते थे, लेकिन उनका जायजा लेने या समाधान करने वाला कोई नहीं था, जिससे काम की प्रगति प्रभावित हुई। जब मैंने यह सुना तो मैं थोड़ी रक्षात्मक हो गई और सोचने लगी, “तुम दोनों समूह अगुआ ऐसा कर सकते हो, है न? पिछले कुछ समय से मैंने और भी काम संभाले हैं। अगर मुझे हर कार्य की बारीकियों का जायजा लेना पड़ेगा तो इसमें बहुत समय लग जाएगा। मैं यह सब कैसे कर सकती हूँ? तुम्हारी अपेक्षाएँ बहुत ज्यादा हैं!” लेकिन मेरे तर्कों ने मुझे फिर से थोड़ा असहज कर दिया। उस समय को याद करते हुए मुझे लगता है कि मैंने शायद ही कभी उनके काम का जायजा लिया हो और मैं भाई-बहनों की अवस्थाएँ नहीं समझ पाई कि क्या उन्होंने अपने कर्तव्य निर्वहन में सिद्धांतों में प्रवेश किया या उन्हें अपने काम में कैसे नतीजे मिले। उस समय मैंने सोचा कि मैंने पहले भी अपने कर्तव्य में पल्ला झाड़ने का अपराध किया था तो मैं फिर से उसी अवस्था में कैसे आ सकती हूँ?
बाद में मैंने परमेश्वर के वचन पढ़े : “मेरी पीठ पीछे बहुत-से लोग हैसियत के लाभों की अभिलाषा करते हैं, वे ठूँस-ठूँसकर खाना खाते हैं, सोना पसंद करते हैं तथा देह की इच्छाओं पर पूरा ध्यान देते हैं, हमेशा भयभीत रहते हैं कि देह से बाहर कोई मार्ग नहीं है। वे कलीसिया में अपना उपयुक्त कार्य नहीं करते, पर मुफ़्त में कलीसिया से खाते हैं, या फिर मेरे वचनों से अपने भाई-बहनों की भर्त्सना करते हैं, और अधिकार के पदों से दूसरों को बेबस करते हैं। ये लोग निरंतर कहते रहते हैं कि वे परमेश्वर की इच्छा के अनुसार चल रहे हैं और हमेशा कहते हैं कि वे परमेश्वर के अंतरंग हैं—क्या यह बेतुका नहीं है? यदि प्रेरणा सही सही है, पर तुम परमेश्वर के इरादों के अनुसार सेवा करने में असमर्थ हो, तो तुम मूर्ख हो; किंतु यदि तुम्हारी प्रेरणा सही नहीं हैं, और फिर भी तुम कहते हो कि तुम परमेश्वर की सेवा करते हो, तो तुम एक ऐसे व्यक्ति हो, जो परमेश्वर का विरोध करता है, और तुम्हें परमेश्वर द्वारा दंडित किया जाना चाहिए! ऐसे लोगों से मुझे कोई सहानुभूति नहीं है! परमेश्वर के घर में वे मुफ़्तखोरी करते हैं, हमेशा देह के आराम का लोभ करते हैं, और परमेश्वर की इच्छाओं का कोई विचार नहीं करते; वे हमेशा उसकी खोज करते हैं जो उनके लिए अच्छा है, और परमेश्वर के इरादों पर कोई ध्यान नहीं देते। वे जो कुछ भी करते हैं, उसमें परमेश्वर के आत्मा की जाँच-पड़ताल स्वीकार नहीं करते। वे अपने भाई-बहनों के साथ हमेशा कुटिल और धूर्त तरीके से पेश आते हैं और उन्हें धोखा देते रहते हैं, और दो-मुँहे होकर वे, अंगूर के बाग में घुसी लोमड़ी के समान, हमेशा अंगूर चुराते हैं और अंगूर के बाग को रौंदते हैं। क्या ऐसे लोग परमेश्वर के अंतरंग हो सकते हैं? क्या तुम परमेश्वर के आशीष प्राप्त करने लायक़ हो? तुम अपने जीवन एवं कलीसिया के लिए कोई उत्तरदायित्व नहीं लेते, क्या तुम परमेश्वर का आदेश लेने के लायक़ हो? तुम जैसे व्यक्ति पर कौन भरोसा करने की हिम्मत करेगा? जब तुम इस प्रकार से सेवा करते हो, तो क्या परमेश्वर तुम्हें कोई बड़ा काम सौंप सकता है? क्या इससे कार्य में विलंब नहीं होगा?” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के इरादों के अनुरूप सेवा कैसे करें)। “कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम कितने प्रतिभाशाली हो, तुम्हारे पास किस स्तर की काबिलियत और शिक्षा है, तुम कितने नारे लगा सकते हो, या कितने शब्द और धर्म-सिद्धांतों पर तुम्हारी पकड़ है; इससे भी कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम कितने व्यस्त हो, या दिन भर में कितने थके हो, या तुमने कितनी दूर की यात्रा की है, कितनी कलीसियाओं में जाते हो, या तुम कितने जोखिम उठाते हो और कितना कष्ट सहते हो—इनमें से कोई भी बात मायने नहीं रखती। जो बात मायने रखती है वह यह है कि क्या तुम अपना काम दी गई कार्य व्यवस्थाओं के आधार पर कर रहे हो, क्या तुम उन व्यवस्थाओं को सही ढंग से लागू कर रहे हो; क्या तुम अपनी अगुआई के दौरान हर उस विशिष्ट कार्य में भाग ले रहे हो जिसके लिए तुम जिम्मेदार हो, और तुमने वास्तव में कितने वास्तविक मुद्दों का समाधान किया है; तुम्हारी अगुआई और मार्गदर्शन के कारण कितने लोग सत्य सिद्धांतों को समझ पाए हैं, और कलीसिया का काम कितना आगे बढ़ा और विकसित हुआ है—जो मायने रखता है वह यह है कि तुमने ये परिणाम हासिल किए हैं या नहीं। तुम जिस भी विशिष्ट कार्य में लगे हो, उसके बावजूद जो मायने रखता है वह यह है कि क्या तुम उच्चपदस्थ और शक्तिशाली बन कर आदेश जारी करने के बजाय लगातार कार्य का अनुसरण और निर्देशन कर रहे हो या नहीं। इसके अलावा यह भी मायने रखता है कि तुम अपने कर्तव्य निभाते हुए जीवन प्रवेश करते हो या नहीं, क्या तुम सिद्धांतों के अनुसार मामलों से निपट सकते हो, क्या तुम्हारे पास सत्य को अभ्यास में लाने की गवाही है, और क्या तुम परमेश्वर के चुने हुए लोगों के सामने आने वाले वास्तविक मुद्दों को सँभाल सकते हो और उनका समाधान कर सकते हो। ये और इसी तरह की दूसरी चीजें यह आकलन करने की कसौटी होती हैं कि किसी अगुआ या कार्यकर्ता ने अपनी जिम्मेदारियों को पूरा किया है या नहीं” (वचन, खंड 5, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (9))। परमेश्वर के वचनों से मैंने देखा कि वह उन लोगों से बहुत घृणा करता है और नाराज होता है जो हमेशा रुतबे के लाभों की लालसा करते हैं, धूर्त होते हैं और चालें चलते हैं और अपने कर्तव्य निभाने में अपने दैहिक हितों की ही सोचते हैं। इस तरह के लोग कलीसिया के काम को बढ़ावा देने में कोई सकारात्मक भूमिका नहीं निभा सकते, न ही वे अपने कर्तव्य में गलतियों और कमियों को तुरंत खोजकर सुधार कर सकते हैं। उनकी गैर-जिम्मेदारी उनके कर्तव्य को नुकसान भी पहुँचा सकती है और कलीसिया के काम में बाधा और गड़बड़ी पैदा कर सकती है। ऐसे लोगों में अपने कर्तव्य निर्वहन में पूरी तरह से ईमानदारी की कमी होती है और वे परमेश्वर का आदेश पाने के लायक नहीं होते हैं। अगर वे पश्चात्ताप नहीं करते हैं तो अंततः परमेश्वर उनसे घृणा करेगा और उन्हें हटा देगा! इसके अलावा अगुआओं और कार्यकर्ताओं को आँकने के लिए परमेश्वर का मानक यह नहीं है कि वे कितना काम करते हैं या वे कितने सफर तय करते हैं, बल्कि यह है कि क्या वे वास्तविक काम करते हैं और अपने कर्तव्य निर्वहन में वास्तविक नतीजे देते हैं। परमेश्वर के वचनों के प्रकाशन से मुझे शर्मिंदगी हुई। मुझे वीडियो बनाने का जिम्मा देकर कलीसिया ने मुझे इतना महत्वपूर्ण काम दिया था, मुझसे ज्यादा जिम्मेदारी उठाने को कहा था और मुझे पदोन्नत और प्रशिक्षित किया था। दूसरी तरफ मैंने जिम्मेदारी नहीं ली और अपने कर्तव्य निर्वहन में कष्ट सहने को तैयार नहीं हुई। जब कार्यभार थोड़ा बढ़ा तो मैंने सिर्फ यही सोचा कि मेरा कष्ट और चिंता कैसे कम हो सकती है। मुझे डर था कि ज्यादा चिंता करने से मैं थक जाऊँगी। जब भाई-बहनों ने बताया कि अपने कर्तव्य निभाते हुए मैंने कोई वास्तविक काम नहीं किया है तो मैं खुद को दोषमुक्त करने के लिए हर तरह के बहाने ढूँढ़ती रही। परमेश्वर ने मेरे जैसी इंसान का वर्णन इस तरह किया है : “परमेश्वर के घर में वे मुफ़्तखोरी करते हैं, हमेशा देह के आराम का लोभ करते हैं, और परमेश्वर की इच्छाओं का कोई विचार नहीं करते; वे हमेशा उसकी खोज करते हैं जो उनके लिए अच्छा है।” एक सुपरवाइजर के रूप में मुझे अपनी जिम्मेदारी के दायरे में आने वाले हर काम का समय पर जायजा लेना चाहिए और उसकी निगरानी करनी चाहिए और मुझे जो भी गलतियाँ और कमियाँ मिलीं, उन्हें तुरंत सुलझाना चाहिए ताकि कलीसिया के काम की सामान्य प्रगति सुनिश्चित हो सके। यह मेरा कर्तव्य था। लेकिन मैं चालबाज, धूर्त थी और जिम्मेदारी से बचती थी। मेरे पास सुपरवाइजर का पद था, लेकिन मैंने वास्तविक काम नहीं किया और काम की बारीकियों का जायजा नहीं लिया। नतीजतन मैं समूह की मौजूदा समस्याएँ तुरंत खोज या सुलझा नहीं पाई। इसलिए काम बहुत प्रभावी नहीं रहा, जिसका कलीसिया के काम की सामान्य प्रगति पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा। इसे मेरा कर्तव्य निभाना कैसे माना जा सकता है? जाहिर है कि यह वास्तविक कार्य किए बिना पद पर बने रहना था, घोर धोखेबाजी थी। मैं बहुत अविश्वसनीय थी! कलीसिया ने मुझे कुछ काम सौंपे और मुझे कुछ जिम्मेदारी लेने के लिए कहा, लेकिन मैंने पल्ला झाड़ने का रवैया अपनाया। मैं वाकई इतना महत्वपूर्ण काम करने के लायक नहीं थी। अगर मैं हमेशा अपने कर्तव्य के प्रति इतनी गैर-जिम्मेदार रही और वास्तविक काम नहीं किया तो परमेश्वर अंततः मुझसे घृणा करेगा और मुझे हटा देगा! उस विचार ने मुझे डरा दिया। इसलिए मैंने परमेश्वर से प्रार्थना करते हुए मेरा मार्गदर्शन करने को कहा ताकि मैं इस स्थिति को बदल सकूँ। मैं अपने काम में कर्तव्यनिष्ठ और चौकस रहना चाहती थी, अपनी जिम्मेदारियाँ और कर्तव्य निभाना चाहती थी।
बाद में मुझे परमेश्वर के वचनों में अभ्यास का मार्ग मिला : “जो लोग वास्तव में परमेश्वर पर विश्वास करते हैं, वे अपनी लाभ-हानि की गणना किए बिना स्वेच्छा से अपने कर्तव्य निभाते हैं। चाहे तुम सत्य का अनुसरण करने वाले व्यक्ति हो या नहीं, तुम्हें अपना कर्तव्य निभाते समय अपने अंतःकरण और विवेक पर निर्भर होना चाहिए और सच में प्रयास करना चाहिए। प्रयास करने का क्या मतलब है? यदि तुम केवल कुछ सांकेतिक प्रयास करने और थोड़ी शारीरिक कठिनाई झेलने से संतुष्ट हो, लेकिन अपने कर्तव्य को बिल्कुल भी गंभीरता से नहीं लेते या सत्य सिद्धांतों की खोज नहीं करते, तो यह बेमन से काम करना है—इसे वास्तव में प्रयास करना नहीं कहते। प्रयास करने का अर्थ है उसे पूरे मन से करना, अपने दिल में परमेश्वर का भय मानना, परमेश्वर के इरादों के प्रति विचारशील रहना, परमेश्वर के खिलाफ विद्रोह करने और उसे आहत करने से डरना, अपने कर्तव्य को अच्छी तरह से निभाने और परमेश्वर को संतुष्ट करने के लिए किसी भी कठिनाई को सहना : यदि तुम्हारे पास इस तरह से परमेश्वर से प्रेम करने वाला दिल है, तो तुम अपना कर्तव्य ठीक से निभा पाओगे। यदि तुम्हारे मन में परमेश्वर का भय नहीं है, तो अपने कर्तव्य का पालन करते समय, तुम्हारे मन में दायित्व वहन करने का भाव नहीं होगा, उसमें तुम्हारी कोई रुचि नहीं होगी, अनिवार्यतः तुम अनमने रहोगे, तुम चलताऊ काम करोगे और उससे कोई प्रभाव पैदा नहीं होगा—जो कि कर्तव्य का निर्वहन करना नहीं है। यदि तुम सच में दायित्व वहन करने की भावना रखते हो, कर्तव्य निर्वहन को निजी दायित्व समझते हो, और तुम्हें लगता है कि यदि तुम ऐसा नहीं समझते, तो तुम जीने योग्य नहीं हो, तुम पशु हो, अपना कर्तव्य ठीक से निभाकर ही तुम मनुष्य कहलाने योग्य हो और अपनी अंतरात्मा का सामना कर सकते हो—यदि तुम अपने कर्तव्य का पालन करते समय दायित्व की ऐसी भावना रखते हो—तो तुम हर कार्य को निष्ठापूर्वक करने में सक्षम होगे, सत्य खोजकर सिद्धांतों के अनुसार कार्य कर पाओगे और इस तरह अच्छे से अपना कर्तव्य निभाते हुए परमेश्वर को संतुष्ट कर पाओगे। अगर तुम परमेश्वर द्वारा सौंपे गए मिशन, परमेश्वर ने तुम्हारे लिए जो त्याग किए हैं और उसे तुमसे जो अपेक्षाएँ हैं, उन सबके योग्य हो, तो इसी को वास्तव में प्रयास करना कहते हैं” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, अपना कर्तव्य अच्छी तरह से निभाने के लिए व्यक्ति में कम से कम जमीर और विवेक तो होना ही चाहिए)। परमेश्वर के वचन पढ़कर मुझे बहुत शर्मिंदगी हुई। मैंने कई सालों तक परमेश्वर में विश्वास रखा और उसके बहुत सारे वचन खाए और पिए। लेकिन जब मुझे अपना कर्तव्य निभाने के लिए थोड़ा और प्रयास करने और दिमाग लगाने की जरूरत पड़ी तो मुझे लगा कि यह बहुत अधिक परेशानी भरा और थकाऊ काम है, इसलिए मैंने पल्ला झाड़ने का रवैया अपनाया। मैं बहुत स्वार्थी और आलसी थी, परमेश्वर के प्रति पूरी तरह से निष्ठाहीन थी और अपना कर्तव्य निभाने में कोई वास्तविक बोझ नहीं उठाती थी। मैं सुपरवाइजर थी, लेकिन मैंने वह काम नहीं किया जो सुपरवाइजर को करना चाहिए। यह वाकई कर्तव्य की उपेक्षा थी! यहां तक कि घरेलू कुत्ता भी घर की रखवाली कर सकता है और अपने मालिक के प्रति वफादार और समर्पित हो सकता है। मैं एक सृजित प्राणी हूँ, लेकिन मैंने सृजित प्राणी का कर्तव्य नहीं निभाया। क्या मैं मनुष्य कहलाने के लायक थी? मैंने कलीसिया के कई भाई-बहनों के बारे में सोचा जिन पर मुझसे ज्यादा काम की जिम्मेदारी थी। वे अपने कर्तव्य निर्वहन में ईमानदार थे, वे कष्ट झेल सकते थे और कीमत चुका सकते थे। उन्होंने अपना कर्तव्य निभाने में ज्यादा समय बिताया, लेकिन मैंने कभी उनमें से किसी को थकावट से गिरते नहीं देखा। इसके बजाय जितना ज्यादा वे परमेश्वर के इरादे के प्रति विचारशील थे, उन्हें उतना ज्यादा पोषण मिला और जीवन में उतनी ही ज्यादा प्रगति करते रहे। पीछे मुड़कर देखें तो मेरा कार्यभार उचित था और निश्चित रूप से साध्य था। जब तक मैं देह के खिलाफ विद्रोह करने, थोड़ा और कष्ट सहने और ज्यादा कीमत चुकाने के लिए तैयार रहती, तब तक हर समूह के काम का जायजा लेना बिल्कुल संभव था। उसके बाद मैंने अपनी कार्ययोजना को फिर से व्यवस्थित किया, नए कार्ययोजना के आधार पर अपनी जिम्मेदारी वाली हर चीज का जायजा लिया और मेरी निगरानी वाले क्षेत्र में काम में कोई देरी नहीं हुई। एक दिन समूह के संदेश पढ़ते हुए मुझे एक समूह के काम में कुछ गलतियाँ मिलीं। मैंने समूह अगुआ के साथ स्थिति का तुरंत विश्लेषण किया और सारांश बनाया, साथ मिलकर हमने समस्याएँ सुलझाने के तरीके खोजे। उस समय मैंने पाया कि वास्तविक काम करने का मतलब यह नहीं है कि सारा दिन सिर्फ समूह में लोगों को घूरा जाए और कुछ भी न किया जाए। बस इसमें थोड़ा और दिल लगाना पड़ता है। इसके बाद मैंने समूह के हर सदस्य से उसके कार्य के बारे में जानने के लिए मुलाकात की और एक बार फिर कुछ गलतियों का पता चला। इसलिए मैंने और समूह अगुआ ने सिद्धांतों के बारे में उनके साथ संगति की। गलतियों को जल्दी से ठीक कर दिया गया और उसके बाद काम की प्रभावशीलता में सुधार हुआ। हालाँकि मैं उन कुछ दिनों में थोड़ी व्यस्त रही, लेकिन इस तरह के अभ्यास से मुझे शांति और सुकून मिला।
इन अनुभवों के माध्यम से मुझे अपने स्वार्थ और आलस की बेहतर समझ मिली। मैंने यह भी देखा कि गैर-जिम्मेदार होने और आराम की लालसा करने से न सिर्फ काम की प्रगति में देरी होती है, बल्कि गंभीर मामलों में कलीसिया के काम में बाधा और गड़बड़ी पैदा कर सकती है। इसलिए मैं अब पल्ला झाड़ने का तरीका नहीं अपना सकती। मुझे अक्सर काम की निगरानी करनी होगी और उसका जायजा लेना होगा और असल में समस्याएँ पहचान कर उन्हें सुलझाना होगा। इस तरह अपना कर्तव्य निभाना अच्छे नतीजे पाने और परमेश्वर के इरादे पूरे करने का एकमात्र तरीका है।