38. कुकर्मियों की रिपोर्ट करना

मा जी, चीन

मुझे फरवरी 2021 में एक समूह अगुआ के रूप में चुना गया था, और उसके कुछ ही समय बाद, बहन शिन यी ने मुझसे अपनी टीम की अगुआ लियू हुआ के व्यवहार के बारे में बताया। शिन यी ने देखा कि लियू हुआ कोई वास्तविक काम नहीं कर रही है और वह उन लोगों को दबाती और निकाल देती है जिनके विचार उसके विचारों से मेल नहीं खाते। जब एक भाई ने लियू हुआ की कुछ समस्याओं को उजागर किया, तो उसने उसके कर्तव्य में जरा-सी कमी पकड़कर उसका बतंगड़ बना दिया, जब भी मौका मिलता, वह उसे निशाना बनाती और अलग-थलग कर देती, जिसके कारण वह नकारात्मकता में डूब गया। एक दूसरी बहन किसी बात पर लियू हुआ से असहमत हो गई और उसने काम पर चर्चा के दौरान उसकी बात सुनने से इनकार कर दिया। लियू हुआ उससे द्वेष रखने लगी और अक्सर उस पर हमला करती। जब भी वह बहन लियू हुआ से असहमत होती और उसके विचारों के अनुरूप न चलती, तो लियू हुआ उसे डाँटती और बुरा-भला कहती। एक बार तो उसने क्रूरता से कहा, “तुममें काबिलियत की कमी है फिर भी तुम इतनी दखलंदाजी करती हो!” वह उस बहन को लगातार इस हद तक डांटती रही कि वह विवश महसूस करने लगी और लियू हुआ के साथ काम करने से भी डरने लगी। लियू हुआ को अगर कोई भाई-बहन सुझाव देने की कोशिश करता तो वह उस पर हमला करती और बदला लेती या उसके आदेशों का पालन करने से मना कर देती। उनमें से कुछ पर तो वह मसीह-विरोधी के रास्ते पर चलने का आरोप लगाती और दूसरों को जानबूझकर कोई काम न सौंपकर दंडित करती। इन वजहों से भाई-बहन परेशान होते और दबा हुआ महसूस करते। उसके द्वारा भाई-बहनों के बेतहाशा दमन और दंड के कारण कलीसिया के कार्य की प्रभावशीलता पर गंभीर असर पड़ रहा था। जब मैंने लियू हुआ के व्यवहार के बारे में सुना तो मुझे गुस्सा आया। उसके बाद, हमने उन लोगों से बात की जो इसमें शामिल थे या स्थिति के बारे में जानते थे और यह साबित हो गया कि वो सारी बातें सच हैं। लियू हुआ में एक भयावह, दुर्भावनापूर्ण प्रकृति और रुतबे की गहरी चाह थी। वह उन लोगों से द्वेष रखती और बदला लेती जो उसकी इच्छा के आगे न झुकने या उससे सहमत न होने के कारण उसके रुतबे और प्रतिष्ठा को खतरे में डाल रहे थे, उन पर हमला करती, उन्हें अलग कर देती और दंडित करती। मैंने परमेश्वर के कुछ वचन पढ़े जो कहते हैं : “केवल बुरे लोग और मसीह-विरोधी ही ऐसे शातिर स्वभाव के होते हैं। जब एक शातिर व्यक्ति को किसी भी प्रकार के सुविचारित उपदेश, आरोप, सीख या सहायता का सामना करना पड़ता है, तो उसका रवैया आभार जताने या विनम्रतापूर्वक इसे स्वीकारने का नहीं होता है, बल्कि वह शर्म से लाल हो जाता है, और अत्यंत शत्रुता, नफरत, और यहाँ तक कि प्रतिशोध का भाव महसूस करता है। ... बेशक, जब वे घृणा के कारण किसी के खिलाफ जवाबी कार्रवाई करते हैं, तो ऐसा इसलिए नहीं होता है कि उन्हें उस व्यक्ति से नफरत है या उसके खिलाफ कोई पुरानी दुश्मनी है, बल्कि ऐसा इसलिए होता है क्योंकि उस व्यक्ति ने उनकी गलतियों को उजागर किया है। इससे पता चलता है कि किसी मसीह-विरोधी को उजागर करने का कार्य मात्र, चाहे यह कोई भी करे, और चाहे मसीह-विरोधी के साथ उसका संबंध जो भी हो, उसकी नफरत और बदले की आग को भड़का सकती है। चाहे वह कोई भी हो, चाहे वह सत्य को समझता हो या नहीं, चाहे वह अगुआ हो या कार्यकर्ता या परमेश्वर के चुने हुए लोगों में से कोई मामूली व्यक्ति, अगर कोई मसीह-विरोधियों को उजागर कर उनकी काट-छाँट करता है तो वे उस व्यक्ति को अपना शत्रु मानेंगे। वे खुलेआम यह भी कहेंगे, ‘जो कोई भी मेरी काट-छाँट करेगा, मैं उसके साथ सख्ती से पेश आऊँगा। जो कोई भी मेरी काट-छाँट करेगा, मेरे रहस्य उजागर करेगा, मुझे परमेश्वर के घर से निष्कासित करवाएगा या मेरे हिस्से के आशीष मुझसे छीन लेगा, मैं उसे कभी नहीं छोड़ूँगा’(वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ (भाग आठ))। “चाहे उन्होंने कोई भी गलती की हो या कोई भी बुरा काम किया हो, क्रूर स्वभाव वाले ये लोग किसी को भी उन्हें उजागर करने या उनकी काट-छाँट नहीं करने देंगे। अगर कोई उन्हें उजागर करे और अपमानित करे, तो वे क्रोधित हो जाते हैं, जवाबी कार्रवाई करते हैं और मुद्दे को कभी नहीं छोड़ते। उनमें धैर्य और दूसरों के प्रति सहनशीलता नहीं होती, और वे उनके प्रति आत्म-नियंत्रण नहीं दिखाते। उनका स्व-आचरण किस सिद्धांत पर आधारित होता है? ‘मैं विश्वासघात का शिकार होने के बजाय विश्वासघात करना पसंद करूँगा।’ दूसरे शब्दों में, वे किसी के द्वारा अपमानित होना बरदाश्त नहीं करते। क्या यह बुरे लोगों का तर्क नहीं है? यह ठीक बुरे लोगों का ही तर्क होता है। कोई भी उन्हें अपमानित नहीं कर सकता। उन्हें किसी के भी द्वारा थोड़ा सा भी छेड़ा जाना अस्वीकार्य होता है, और वे ऐसा करने वाले किसी भी व्यक्ति से घृणा करते हैं। वे उस व्यक्ति के पीछे लग जाते हैं, कभी भी मामले को खत्म नहीं करने देते—बुरे लोग ऐसे ही होते हैं(वचन, खंड 5, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (14))। परमेश्वर के वचनों से, मैंने जाना कि कुकर्मियों की प्रकृति विशेष रूप से दुर्भावनापूर्ण होती है और वे सत्य और उसका अनुसरण करने वालों से घृणा करते हैं। अगर कोई उन्हें ठेस पहुँचाता है, तो वे उसके प्रति द्वेष रखते हैं, उस पर हमला करते और बदला लेते हैं, उस व्यक्ति को अलग करने और दंडित करने का मौका ढूंढ़ते हैं, वे ऐसा तब तक करते हैं जब तक वह नकारात्मक होकर हार न मान ले। लियू हुआ के लगातार ऐसे व्यवहार से, यह साफ जाहिर था कि वह हर उस व्यक्ति पर हमला करेगी और उसे निकाल देगी जो उससे असहमत होगा या उसके हितों के लिए खतरा होगा। वह लगातार लोगों का मूल्यांकन और उनकी निंदा करने के लिए तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर भी पेश करती जब तक कि वे नकारात्मक न हो जाते। मैंने देखा कि लियू हुआ की मानवता दुर्भावनापूर्ण थी, संक्षेप में, वह कुकर्मी थी जो सत्य से नफरत करती थी और उसे स्वीकारती नहीं थी। उसे कलीसिया से निष्कासित करने की आवश्यकता थी। मैं जानता था कि जब लियू हुआ जैसी कुकर्मी कलीसिया में तबाही मचा रही हो तो मैं चुपचाप बैठकर नहीं देख सकता था और मुझे तुरंत इसकी रिपोर्ट करनी थी, फिर हमने लियू हुआ की समस्याओं के बारे में अपने सुपरवाइजर को बताया।

लेकिन मुझे हैरानी हुई, कुछ ही दिनों बाद, मुझे हमारे सुपरवाइजर, मेंग रान का एक पत्र मिला, लिखा था, “लियू हुआ सक्षम है और कुछ वास्तविक मुद्दों को हल कर कर सकती है। हालाँकि वह कभी-कभी अपने भ्रष्ट स्वभाव के आधार पर कार्य करती है, जिससे लोग विवशता महसूस करते हैं, लेकिन अगर वह बदलने को तैयार है, तो उसे पश्चात्ताप का मौका दिया जाना चाहिए।” मैं तो यह समझ ही नहीं सका। लियू हुआ जाहिर तौर पर कुकर्म कर रही थी। यह कोई एक बार का अपराध नहीं था, वह लगातार इसी तरह का व्यवहार कर रही थी। भाई-बहनों ने हर तरह से उसके साथ संगति की और उसे सलाह दी, लेकिन उसने जरा भी पश्चात्ताप नहीं किया, बल्कि उसने उनका दमन किया और दंड भी दिया। परमेश्वर के वचनों के अनुसार, लियू हुआ मूलतः कुकर्मी थी, तो मेंग रान ने उस बारे में कुछ किया क्यों नहीं? ऐसा लग रहा था जैसे मेंग रान खुल्लमखुल्ला एक कुकर्मी को बचा रही है। उस समय, कुछ भाई-बहनों ने मेंग रान के कुछ कुकर्मों के बारे में रिपोर्ट की। कुछ साल पहले, मेंग रान ने कलीसिया में असंतोष को हवा दी थी और एक गुट बना लिया था, अगुआओं और कार्यकर्ताओं के खिलाफ इस्तेमाल करने के लिए उसके हाथ कुछ चीजें लगीं और उन पर हमला किया ताकि वह अगुआई हथिया सके। उसकी करतूतों ने कलीसियाई जीवन को बाधित किया था और उसी वजह से उसे आत्मचिंतन के लिए अलग-थलग कर दिया गया था। जब ऐसा हुआ, तो शिन यी को मेंग रान के व्यवहार के बारे में पता चला, और फिर भाई-बहनों के साथ संगति की और इसे पहचाना। इसी वजह से, मेंग रान उसके प्रति द्वेष रखने लगी थी। बाद में, मेंग रान ने भाई-बहनों का विश्वास फिर से हासिल करने के लिए पश्चात्ताप करने का नाटक किया और सुपरवाइजर बन बैठी। उसके बाद, वह शिन यी से बदला लेने के लिए काम पर लग गई। एक बार, जब शिन यी ने लियू हुआ के काम में कुछ विचलन और मुद्दों की बात की, तो लियू हुआ ने यह बात नहीं स्वीकारी और उससे बहस करने लगी। मेंग रान को पता था कि लियू हुआ को अपने काम में दिक्कतें आ रही हैं, लेकिन उसने उसका साथ देने, शिन यी को अलग-थलग करने और दबाने का फैसला किया। इससे शिन यी बहुत दबाव में आ गई और गंभीर रूप से बीमार पड़ गई। इसके बाद, मेंग रान ने आत्म-चिंतन नहीं किया, बल्कि उसने शिन यी का मजाक उड़ाया, और परमेश्वर के वचनों का दुरुपयोग करके गलत तरीके से उसे मसीह-विरोधी करार दिया। उसने शिन यी को मसीह-विरोधी के रास्ते पर चलने के लिए कड़ी फटकार लगाई और अन्य भाई-बहनों को भी शिन यी की आलोचना करने के लिए गुमराह किया। इन करतूतों के आधार पर, यह जाहिर था कि मेंग रान का स्वभाव दुष्ट है।

कई दिनों के बाद, मेंग रान एक सभा में हमारे साथ शामिल हुई और लियू हुआ का बचाव करते हुए बोली, “आप यह नहीं कह सकते कि यह सिर्फ लियू हुआ की समस्या है, दूसरे लोग भी दोषी हैं। हमें उसे पश्चात्ताप करने का मौका देना चाहिए! इन दिनों उसका बर्ताव एकदम सही है और अपने कर्तव्य में काफी सक्रिय है...।” जब मैंने कुकर्मियों को पहचानने के सिद्धांतों के बारे में मेंग रान के साथ संगति करने की कोशिश की, तो ऐसा लगा जैसे वह मेरी बात सुन ही नहीं रही। इससे हमें और भी अधिक विश्वास हो गया कि मेंग रान जानबूझकर लियू हुआ को बचा रही है। मेंग रान सुपरवाइजर थी और वह साफ देख सकती थी कि लियू हुआ कुकर्मी है, फिर भी उसने इस बारे में कुछ नहीं किया, बल्कि उसकी ढाल के रूप में काम किया। इसके अलावा, मेंग रान स्वयं बेहद दुर्भावनापूर्ण प्रकृति की थी—वह सत्य नहीं स्वीकारती थी, लगातार कलीसिया के काम में बाधा डालती और गड़बड़ी करती थी, वह भाई-बहनों को दबाती और दंडित करती थी। सिद्धांतों के अनुसार, पूरी संभावना है कि वह कुकर्मी भी थी। वर्तमान स्थिति को देखते हुए, मुझे पता था कि मुझे इसकी रिपोर्ट अपने अगुआ को करनी चाहिए, और कलीसिया के हितों की रक्षा के लिए मेंग रान और लियू हुआ की करतूतों को उजागर करना चाहिए। लेकिन फिर मुझे ख्याल आया कि मेंग रान सुपरवाइजर है—अगर उसकी समस्याओं के बारे में बताने से वह नाराज हो गई, तो वह दूसरों की तरह मुझे भी दबा सकती है। इन मुद्दों के सुलझने से पहले ही मुझे बर्खास्त किया जा सकता है। अगर मेंग रान को मुझे अपने कर्तव्य-निर्वहन से रोकने का कोई बहाना मिल गया, तो मैं सत्य का अनुसरण कैसे जारी रखूंगा और उद्धार कैसे पाऊँगा? इसका एहसास होने पर, मैंने आह भरी और सोचा, “ठीक है, जैसी कि कहावत है, ‘जो पक्षी अपनी गर्दन उठाता है गोली उसे ही लगती है।’ मुझे इसे अनदेखा कर देना चाहिए। परेशानी जितनी कम हो उतना अच्छा है। अपनी सुरक्षा करना ही मायने रखता है।” मुझे पीछे हटने और समझौता करने का मन होने लगा, मुझमें सत्य पर अमल करने का साहस नहीं था। लेकिन जब मैंने लियू हुआ और मेंग रान द्वारा दबाए जा रहे भाई-बहनों के बारे में सोचा कि वे कैसे निरंतर पीड़ा में जी रहे हैं, तो मुझे ग्लानि होने लगी। मैं दुविधा में था और कोई निर्णय नहीं ले पा रहा था—अगर मैंने इस मामले की रिपोर्ट नहीं की, तो मैं कलीसिया के हितों की रक्षा नहीं कर पाऊंगा, लेकिन अगर मैंने इसकी रिपोर्ट की, तो मुझसे मेरा कर्तव्य छीना जा सकता है, और तब मेरे पास अच्छी संभावनाएँ या अच्छी मंजिल नहीं होगी। उस समय, मुझे एहसास हुआ कि मेरी अवस्था में कुछ तो गड़बड़ है—क्या मैं कायरों की तरह व्यवहार नहीं कर रहा था? मुझमें न्याय की भावना का अभाव था और मैं परमेश्वर के इरादों पर विचार नहीं कर रहा था। मैं इतना रीढ़विहीन और अंतरात्मा से रहित नहीं हो सकता, मुझे कलीसिया के हितों की रक्षा के लिए खड़ा होना होगा। लेकिन जब वास्तव में लियू हुआ और मेंग रान की रिपोर्ट करने का समय आया, तो मैं कायरों की तरह डर गया, मैं परमेश्वर के आगे प्रार्थना की, कि वह मेरा मार्गदर्शन कर मुझे विश्वास और साहस दे। उसके बाद, मुझे परमेश्वर के वचनों का एक अंश याद आया : “तुम सभी कहते हो कि तुम परमेश्वर के बोझ के प्रति विचारशील हो और कलीसिया की गवाही की रक्षा करोगे, लेकिन वास्तव में तुम में से कौन परमेश्वर के बोझ के प्रति विचारशील रहा है? अपने आप से पूछो : क्या तुम उसके बोझ के प्रति विचारशील रहे हो? क्या तुम उसके लिए धार्मिकता का अभ्यास कर सकते हो? क्या तुम मेरे लिए खड़े होकर बोल सकते हो? क्या तुम दृढ़ता से सत्य का अभ्यास कर सकते हो? क्या तुममें शैतान के सभी दुष्कर्मों के विरूद्ध लड़ने का साहस है? क्या तुम अपनी भावनाओं को किनारे रखकर मेरे सत्य की खातिर शैतान का पर्दाफ़ाश कर सकोगे? क्या तुम मेरे इरादों को स्वयं में संतुष्ट होने दोगे? सबसे महत्वपूर्ण क्षणों में क्या तुमने अपने दिल को समर्पित किया है? क्या तुम ऐसे व्यक्ति हो जो मेरी इच्छा पर चलता है? स्वयं से ये सवाल पूछो और अक्सर इनके बारे में सोचो(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 13)। जब मैंने परमेश्वर के प्रश्नों के बारे में सोचा, तो लगा जैसे मुझे धिक्कारा गया हो। मैं अक्सर दूसरों से कहता था कि हमें परमेश्वर द्वारा दिए बोझ के प्रति विचारशील होना चाहिए और न्याय की भावना रखनी चाहिए, हमें सत्य का अभ्यास करना चाहिए, मसीह-विरोधियों और कुकर्मियों को बेनकाब कर उनकी रिपोर्ट करनी चाहिए ताकि कलीसिया के हितों की रक्षा हो सके। लेकिन जब कुछ ऐसा हुआ जिससे मेरे अपने हितों को ही खतरा हुआ, तो डर के मारे मैं पीछे हट गया। मैंने जान लिया था कि लियू हुआ कुकर्मी है, लेकिन जब मैंने देखा कि मेंग रान उसे बचा रही है, मैं मेंग रान के रुतबे और अधिकार से डर गया और सिद्धांतों पर कायम रहने का साहस नहीं कर पाया। मुझे चिंता हुई कि मुझे दबाया जाएगा, अपने कर्तव्य से वंचित कर दिया जाएगा, और मैं उद्धार पाने का अवसर गँवा बैठूँगा, इसलिए मैंने उसके रुतबे और अधिकार के आगे हथियार डाल दिए। क्या मैं शैतान के साथ समझौता करके उसके आगे घुटने नहीं टेक रहा था? मैं अपने कर्तव्य में कलीसिया के हितों की रक्षा नहीं कर रहा था, मैं केवल अपनी संभावनाओं और नियति पर विचार कर रहा था। इस महत्वपूर्ण समय में, मैंने कलीसिया के हितों को प्राथमिकता नहीं दी थी, और मैं चुपचाप कुकर्मियों को कलीसिया के काम में बाधा डालते और भाई-बहनों का दमन करते देखता रहा था। क्या मैं जिस थाली में खा रहा था उसी में छेद नहीं कर रहा था? मैं बहुत स्वार्थी और घृणित था—मेरा जमीर और विवेक कहाँ था? यह सब सोचकर मुझे बहुत ग्लानि होने लगी। मैं जानता था कि मुझे अडिग रहकर कलीसिया के हितों की रक्षा करनी होगी। मुझे लियू हुआ और मेंग रान के कुकर्मों की रिपोर्ट करनी होगी; मैं उन्हें कलीसिया में बुराई करते रहने नहीं दे सकता था। उसके बाद, हमने अपने अगुआ को लियू हुआ और मेंग रान की रिपोर्ट कर दी।

जब अगुआ को हमारा पत्र मिला तो उसने कहा कि वह यथाशीघ्र आकर समस्या का समाधान करेगी। लेकिन वह कुछ दूसरे मामलों में फंसकर रह गई। दिन बीतते गए और मैं अधीर होता गया। मुझे बेचैनी होने लगी और मैं सोचने लगा। “अगुआ को आकर इन मुद्दों को ठीक करने में इतना समय क्यों लग रहा है? अगर वह हालात जानने के लिए पहले दूसरे लोगों के पास गई और मेंग रान को पता चला कि हमने उसकी रिपोर्ट की है, तो क्या मेंग रान हमें दंडित करेगी?” जब मैं बहुत ज्यादा व्याकुल महसूस कर रहा था, तो मुझे अचानक परमेश्वर के वचनों का एक अंश याद आ गया : “जीवन की वास्तविक समस्याओं का सामना करते समय, तुम्हें किस प्रकार परमेश्वर के अधिकार और उसकी संप्रभुता को जानना और समझना चाहिए? जब तुम्हारे सामने ये समस्याएँ आती हैं और तुम्हें पता नहीं होता कि किस प्रकार इन समस्याओं को समझें, सँभालें और अनुभव करें, तो तुम्हें समर्पण करने की नीयत, समर्पण करने की तुम्हारी इच्छा, और परमेश्वर की संप्रभुता और उसकी व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण करने की तुम्हारी सच्चाई को दर्शाने के लिए तुम्हें किस प्रकार का दृष्टिकोण अपनाना चाहिए? पहले तुम्हें प्रतीक्षा करना सीखना होगा; फिर तुम्हें खोजना सीखना होगा; फिर तुम्हें समर्पण करना सीखना होगा(वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है III)। जैसे ही मैंने परमेश्वर के वचनों पर विचार किया, मुझे शर्म आने लगी। मैंने सोचा मेरे समस्या की रिपोर्ट करते ही शीघ्रता से उसका समाधान किया जाएगा, इसलिए जब अगुआ के आने में देरी होती गई तो मुझे चिंता होने लगी। मैं तनाव में रहने लगा, परमेश्वर में बिना सच्ची आस्था रखे मैं केवल खुद को बचाने की सोच रहा था। परमेश्वर के वचन पढ़कर, मैं समझ गया कि सभी चीजें परमेश्वर की संप्रभुता और व्यवस्था के कारण घटती हैं। जब हम चीजों का अनुभव करते हैं, तो हमें परमेश्वर की संप्रभुता में विश्वास रखना चाहिए, इंतजार करना और समर्पण करना सीखना चाहिए। इस बात का एहसास होने पर, मैंने परमेश्वर से प्रार्थना करते हुए उसे यह मामला सौंप दिया और उसी से आस लगाई। मुझे हैरानी हुई, जब इसके तुरंत बाद, लियू हुआ को कई कारणों से, जिसमें वास्तविक कार्य न कर पाने की उसकी अयोग्यता भी शामिल थी, इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना पड़ा। उसके बाद, भाई-बहन उसके दमन से मुक्त हो गए और सामान्य रूप से अपना कर्तव्य निभाने लगे। मैंने जाना कि सब-कुछ परमेश्वर के हाथों में है, सब उसकी संप्रभुता और व्यवस्थाओं का ही परिणाम है, मेरा विश्वास और दृढ़ हो गया। हालाँकि लियू हुआ ने इस्तीफा दे दिया था, लेकिन उसके कुकर्मों को अभी भी वर्गीकृत और नियंत्रित नहीं किया गया था, और मेंग रान के मुद्दे अभी भी हल नहीं हुए थे। मैं जानता था कि हमें इसकी रिपोर्ट तब तक करते रहनी चाहिए जब तक ये समस्याएं हमेशा के लिए हल नहीं हो जातीं।

कई दिनों के बाद, हमारी अगुआ शिया यू स्थिति को देखने आई, हमने उसे लियू हुआ और मेंग रान के कुकर्मों ब्यौरा दिया। और फिर भी, जब हमने मेंग रान के व्यवहार पर चर्चा की, तो हमें यह जानकर आश्चर्य हुआ कि शिया यू उसे बर्खास्त करने के पक्ष में नहीं थी। उसने दावा किया कि मेंग रान काफी सक्षम है और यहां तक कहा, “क्या तुम्हें लगता है कि एक सुपरवाइजर को तैयार करना आसान है? हमें मेंग रान को तैयार करने में करीब दो साल लगे। अगर हम उसे सिर्फ इसलिए बर्खास्त कर देते हैं क्योंकि तुम ऐसा चाहते हो, तो हमें उसकी जगह लेने वाला कहां मिलेगा? तुम्हें लगता है कि हमारा काम करना आसान है?” यह सुनकर, मैंने सोचा, “तुम केवल मेंग रान की सतही योग्यता देख रही हो, उसकी मानवता और उसके प्रकृति सार पर ध्यान नहीं दे रही हो। अगर तुम लोगों को उनके सार के आधार पर न पहचानो और न संभालो, तो उसमें सिद्धांत कहां हैं?” इसके बाद शिया यू ने कहा कि वह इस मामले पर और गौर करेगी और सभा तुरंत समाप्त कर दी गई। बाद में, हमने मेंग रान के साथ दो बार और संगति की, लेकिन उसने कोई बात नहीं स्वीकारी, बल्कि हमारी काट-छाँट और की। मैंने देखा कि मेंग रान लगातार काट-छाँट किए जाने को नकार रही है, सत्य से विमुख है और उससे घृणा करती है—वह खुद को एक कुकर्मी के रूप में दिखा रही थी। फिर भी, जब हमने अपनी अगुआ को स्थिति बताई, हम एक बार फिर उसके जवाब से पूरी तरह चौंक गए। शिया यू ने यह कहते हुए हमें पत्र लिखा कि लियू हुआ ने वास्तव में कुछ कुकर्म किए हैं, लेकिन वह पश्चात्ताप करना चाह रही है। शिया यू ने कहा कि उसे नहीं लगता कि लियू हुआ सार रूप में कुकर्मी है, पर उसका स्वभाव बहुत ही भ्रष्ट है। उसने हमसे कहा कि लियू हुआ को पश्चात्ताप करने का एक और मौका दिया जाना चाहिए। पत्र में यह भी कहा गया कि हालांकि मेंग रान ने एक कुकर्मी के कुछ व्यवहार दिखाए हैं, लेकिन ये उसके भ्रष्ट स्वभाव के प्रकाशन मात्र हैं। पत्र के अंत में, शिया यू ने हमसे आत्मचिंतन करने और अपने बारे में ज्ञान प्राप्त करने का आग्रह किया, और कहा कि हमें लोगों के साथ उचित व्यवहार कर उनकी ज्यादा मदद करनी चाहिए। पत्र पढ़कर मैं दंग रह गया, मैंने दबाव महसूस किया और निराशा हुई। अगर शिया यू लियू हुआ और मेंग रान के बारे में कुछ करने के लिए सहमत नहीं है, फिर तो वे कलीसिया पर अत्याचार करते रहने के लिए आजाद होंगी, भाई-बहनों को दंडित और उनका दमन करेंगी, और कलीसिया के काम को बाधित करेंगी। क्या शिया यू कुकर्मियों के बुरे कार्यों को नजरअंदाज नहीं कर रही थी? मुझे लगा चूँकि शिया यू अगुआ है, वह इन कुकर्मियों को संभालने और भाई-बहनों की रक्षा करने में में हमारी मदद करेगी। मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि वह इस मुद्दे का यह हश्र करेगी। यह बहुत परेशान करने वाली बात थी कि लियू हुआ और मेंग रान के बारे में कुछ भी नहीं किया जा रहा था, और मुझे समझ नहीं आ रहा कि आगे क्या करना है। मैं एक मुश्किल स्थिति में था—मैं अब इस मामले में शामिल नहीं होना चाहता था, लेकिन मुझे बेचैनी हो रही थी और यह कि ऊपरी स्तरों पर इसकी रिपोर्ट करना जारी रहना चाहिए। लेकिन चीजें और ज्यादा जटिल होती जा रही थीं; मैं किसी सुपरवाइजर को नाराज करने का जोखिम नहीं उठा सकता था, किसी अगुआ को तो बिल्कुल नहीं। अगर मैं इन मुद्दों की रिपोर्ट करता रहा, तो क्या मुझे इसके परिणाम भुगतने पड़ेंगे? उनका मेरे लिए जीना मुश्किल करना मेरी सबसे छोटी परेशानी थी—वे मुझसे मेरा कर्तव्य भी छीन सकते हैं, मुझे दबा सकते हैं और मुझे निष्कासित कर सकते हैं। फिर मुझे उद्धार कैसे मिलेगा? सोच-सोचकर मैं और ज्यादा चिंतित और भयभीत हो गया, मैं दमित और पीड़ित महसूस करने लगा। मुझे एहसास हुआ कि मेरी अवस्था ठीक नहीं है, मैंने फौरन परमेश्वर से प्रार्थना की, कि मेरा मार्गदर्शन करे ताकि मैं सत्य पर अमल कर पाऊँ।

एक दिन, मुझे परमेश्वर के वचनों का एक अंश मिला जिसमें कहा गया था : “किसी अगुआ या कार्यकर्ता के साथ पेश आने के तरीके के संबंध में लोगों का क्या रवैया होना चाहिए? कोई अगुआ या कार्यकर्ता जो करता है, अगर वह सही और सत्य के अनुरूप हो, तो तुम उसका आज्ञापालन कर सकते हो; अगर वह जो करता है वह गलत है और सत्य के अनुरूप नहीं है, तो तुम्हें उसका आज्ञापालन नहीं करना चाहिए और तुम उसे उजागर कर सकते हो, उसका विरोध कर एक अलग राय रख सकते हो। अगर वह वास्तविक कार्य करने में असमर्थ हो या कलीसिया के काम में बाधा डालने वाले बुरे कार्य करता हो, और पता चल जाता है कि वह एक नकली अगुआ, नकली कार्यकर्ता या मसीह-विरोधी है, तो तुम उसे पहचानकर उजागर कर सकते हो और उसकी रिपोर्ट कर सकते हो। लेकिन, परमेश्वर के कुछ चुने हुए लोग सत्य नहीं समझते और विशेष रूप से कायर होते हैं। वे नकली अगुआओं और मसीह-विरोधियों द्वारा दबाए और सताए जाने से डरते हैं, इसलिए वे सिद्धांत पर बने रहने की हिम्मत नहीं करते। वे कहते हैं, ‘अगर अगुआ मुझे बाहर निकाल दे, तो मैं खत्म हो जाऊँगा; अगर वह सभी लोगों से मुझे उजागर करवा दे या मेरा त्याग करवा दे, तो फिर मैं परमेश्वर में विश्वास नहीं कर पाऊँगा। अगर मुझे कलीसिया से निकाल दिया गया, तो फिर परमेश्वर मुझे नहीं चाहेगा और मुझे नहीं बचाएगा। और क्या मेरी आस्था व्यर्थ नहीं चली जाएगी?’ क्या ऐसी सोच हास्यास्पद नहीं है? क्या ऐसे लोगों की परमेश्वर में सच्ची आस्था होती है? कोई नकली अगुआ या मसीह-विरोधी जब तुम्हें निकाल देता है, तो क्या वह परमेश्वर का प्रतिनिधित्व कर रहा होता है? जब कोई नकली अगुआ या मसीह-विरोधी तुम्हें दंडित कर निकाल देता है, तो यह शैतान का काम होता है, और इसका परमेश्वर से कोई लेना-देना नहीं होता; जब लोगों को कलीसिया से निकाला या निष्कासित किया जाता है, तो यह परमेश्वर के इरादों के अनुरूप सिर्फ तभी होता है, जब यह कलीसिया और परमेश्वर के चुने हुए लोगों के बीच एक संयुक्त निर्णय होता है, और जब निकालना या निष्कासन पूरी तरह से परमेश्वर के घर की कार्य-व्यवस्थाओं और परमेश्वर के वचनों के सत्य सिद्धांतों के अनुरूप होता है। किसी नकली अगुआ या मसीह-विरोधी द्वारा निष्कासित किए जाने का यह अर्थ कैसे हो सकता है कि तुम्हें बचाया नहीं जा सकता? यह शैतान और मसीह-विरोधी द्वारा किया जाने वाला उत्पीड़न है, और इसका यह मतलब नहीं कि परमेश्वर द्वारा तुम्हें बचाया नहीं जाएगा। तुम्हें बचाया जा सकता है या नहीं, यह परमेश्वर पर निर्भर करता है। कोई इंसान यह निर्णय लेने के योग्य नहीं कि तुम्हें परमेश्वर द्वारा बचाया जा सकता है या नहीं। तुम्हें इस बारे में स्पष्ट होना चाहिए। और नकली अगुआ और मसीह-विरोधी द्वारा तुम्हारे निष्कासन को परमेश्वर द्वारा किया गया निष्कासन मानना—क्या यह परमेश्वर की गलत व्याख्या करना नहीं है? बेशक है। और यह परमेश्वर की गलत व्याख्या करना ही नहीं है, बल्कि परमेश्वर के विरुद्ध विद्रोह करना भी है। यह एक तरह से परमेश्वर की निंदा भी है। और क्या परमेश्वर की इस तरह गलत व्याख्या करना अज्ञानतापूर्ण और मूर्खता नहीं है? जब कोई नकली अगुआ या मसीह-विरोधी तुम्हें निष्कासित करता है, तो तुम सत्य क्यों नहीं खोजते? कुछ विवेक प्राप्त करने के लिए तुम किसी ऐसे व्यक्ति को क्यों नहीं खोजते, जो सत्य समझता हो? और तुमने उच्च अधिकारियों को इसकी रिपोर्ट क्यों नहीं करते? यह साबित करता है कि तुम्हें इस बात पर विश्वास नहीं है कि परमेश्वर के घर में सत्य सर्वोच्च है, यह दर्शाता है कि तुम्हें परमेश्वर में सच्ची आस्था नहीं है, कि तुम ऐसे व्यक्ति नहीं हो जो वास्तव में परमेश्वर में विश्वास करता है। अगर तुम परमेश्वर की सर्वशक्तिमत्ता पर भरोसा करते हो, तो तुम नकली अगुआ या मसीह-विरोधी के प्रतिशोध से क्यों डरते हो? क्या वे तुम्हारे भाग्य का निर्धारण कर सकते हैं? अगर तुम भलीभाँति समझने, और यह पता लगाने में सक्षम हो कि उनके कार्य सत्य के विपरीत हैं, तो परमेश्वर के उन चुने हुए लोगों के साथ संगति क्यों नहीं करते जो सत्य समझते हैं? तुम्हारे पास मुँह है, तो तुम बोलने की हिम्मत क्यों नहीं करते? तुम नकली अगुआ या मसीह-विरोधी से इतना क्यों डरते हो? यह साबित करता है कि तुम कायर, बेकार, शैतान के अनुचर हो। ... अगर तुम परमेश्वर में विश्वास रखते हो, लेकिन परमेश्वर के प्रति समर्पित होने के बजाय तुम परमेश्वर के शत्रुओं—मसीह-विरोधियों—के आगे झुकते हो और उनकी शरण लेते हो और इसका परिणाम यह निकलता है कि इन मसीह-विरोधियों द्वारा तुम्हें बहकाया जाता है और तुम्हारे साथ दुर्व्यवहार किया जाता है, तो तुमने खुद ही मुसीबत अपने ऊपर बुलाई है। क्या तुम इसी लायक नहीं हो? अगर तुम मसीह-विरोधी को अपना स्वामी, अपना अगुआ, सहारा देने वाला कंधा समझते हो, तो फिर तुम शैतान की शरण ले रहे हो, तुम शैतान का अनुसरण कर रहे हो, जिसका मतलब यह है कि तुम भटक गए हो और तुमने गलत रास्ता अपना लिया है और ऐसे रास्ते पर कदम रख दिया है जहाँ से कोई वापसी नहीं है। मसीह-विरोधियों के प्रति तुम्हारा रवैया कैसा होना चाहिए? तुम्हें उन्हें उजागर करना चाहिए और उनसे लड़ना चाहिए। अगर तुम सिर्फ एक या दो लोग हो और इतने कमजोर हो कि अकेले मसीह-विरोधियों का सामना नहीं कर सकते, तो तुम्हें इन मसीह-विरोधियों की रिपोर्ट करने और उन्हें उजागर करने के लिए सत्य को समझने वाले और लोगों के साथ मिल कर उनका मुकाबला करना चाहिए और तब तक लड़ते रहना चाहिए जब तक कि उन्हें बाहर नहीं निकाल दिया जाता(वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद तीन : सत्य का अनुसरण करने वालों को वे निकाल देते हैं और उन पर आक्रमण करते हैं)। परमेश्वर के वचनों ने मेरे गलत दृष्टिकोण को उजागर कर दिया। जब इन कुकर्मियों की रिपोर्ट करने की बात आई, तो मैं सिद्धांतों को बनाए रखने, सत्य का अभ्यास करने और कलीसिया के हितों की रक्षा करने में बार-बार विफल रहा, क्योंकि मुझे डर था कि अगुआ और कार्यकर्ता मुझे दबाएँगे और मेरे लिए मुश्किलें खड़ी कर देंगे, या यहाँ तक कि मेरी निंदा कर मुझे निष्कासित कर देंगे, और इस प्रकार मुझे उद्धार पाने के अवसर से वंचित कर देंगे। परिणामस्वरूप, मैंने उनकी हरकतों की ओर से आंखें मूंद लीं, मैं सिद्धांतों को बनाए रखने, उनकी रिपोर्ट करने और उन्हें उजागर करने का साहस नहीं कर सका। मैं अक्सर इस बारे में बातें तो करता था कि कैसे सत्य और मसीह परमेश्वर के घर में शासन करते हैं, लेकिन जब वास्तविक स्थिति का सामना करना पड़ा, तो मेरी सच्चे ज्ञान और परमेश्वर में आस्था की कमी उजागर हो गई, मुझे यह विश्वास नहीं था कि परमेश्वर सभी चीजों पर शासन करता है और हमारी नियति को नियंत्रित करता है। मैंने कुकर्मियों के रुतबे और शक्ति को बहुत महत्वपूर्ण माना, और मैं उनसे डर गया। दरअसल, झूठे अगुआओं, मसीह-विरोधियों और कुकर्मियों के पास कितना भी रुतबा और अधिकार हो, फिर भी वे हमारे गंतव्यों को नियंत्रित नहीं कर सकते या यह तय नहीं कर सकते कि हमें उद्धार मिलेगा या नहीं। वे चाहे कितने भी क्रूर क्यों न हो जाएँ, वे परमेश्वर के अधिकार को पार नहीं कर सकते। भले ही कुकर्मियों ने मुझे दबाया हो और अस्थायी रूप से मुझे अपना कर्तव्य न निभाने दिया हो, पर इसका मतलब यह नहीं है कि मैं बचाये जाने का मौका गँवा दूँगा। परमेश्वर सभी चीजों की जांच करता है—अगर मैं सत्य का अनुसरण और अभ्यास करता हूँ, तो मैं अंततः परमेश्वर का उद्धार प्राप्त कर सकता हूँ। इसके अलावा, ये कुकर्मी लोग कलीसिया में मजबूती से अपने पैर नहीं जमा सकते और अंततः वे सभी उजागर हो जायेंगे और हटा दिये जायेंगे। लेकिन मैं गलती से यह मान बैठा था कि मेरी संभावनाओं और नियति को एक अगुआ नियंत्रित करता है, और जैसे ही मैंने उसे नाराज किया, मैं अपना कर्तव्य और उद्धार पाने का अवसर गँवा बैठूँगा। मैं कितना मूर्ख और भ्रमित था! मुझमें परमेश्वर के प्रति सच्ची आस्था किस तरह थी? उस समय, मैंने इस पर विचार किया कि मैं इस मामले में सत्य का अभ्यास क्यों नहीं कर पाया, और मेरी समस्या का मूल क्या था।

बाद में, मुझे परमेश्वर के वचनों का यह अंश मिला : “शैतान राष्ट्रीय सरकारों और प्रसिद्ध एवं महान व्यक्तियों की शिक्षा और प्रभाव के माध्यम से लोगों को दूषित करता है। उनके शैतानी शब्द मनुष्य के जीवन और प्रकृति बन गए हैं। ‘हर व्यक्ति अपनी सोचे बाकियों को शैतान ले जाए’ एक प्रसिद्ध शैतानी कहावत है जिसे हर किसी में डाल दिया गया है और यह मनुष्य का जीवन बन गया है। सांसारिक आचरण के फलसफों के लिए कुछ अन्य शब्द भी हैं जो इसी तरह के हैं। शैतान प्रत्येक देश के लोगों को शिक्षित करने, गुमराह करने और भ्रष्ट करने के लिए की पारंपरिक संस्कृति का इस्तेमाल करता है, और मानवजाति को विनाश की विशाल खाई में गिरने और उसके द्वारा निगल लिए जाने पर मजबूर कर देता है, और अंत में, परमेश्वर लोगों को नष्ट कर देता है क्योंकि वे शैतान की सेवा करते हैं और परमेश्वर का विरोध करते हैं। ... अभी भी लोगों के जीवन, आचरण और व्यवहार में कई शैतानी विष उपस्थित हैं। उदाहरण के लिए, सांसारिक आचरण के उनके फलसफे, काम करने के उनके तरीके, और उनकी सभी कहावतें बड़े लाल अजगर के विषों से भरी हैं, और ये सभी शैतान से आते हैं। इस प्रकार, लोगों की हड्डियों और रक्त से बहने वाली सभी चीजें शैतान की हैं। उन सभी अधिकारियों, सत्ताधारियों और प्रवीण लोगों के सफलता पाने के अपने ही मार्ग और रहस्य होते हैं, तो क्या ऐसे रहस्य उनकी प्रकृति का उत्तम रूप से प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं? वे दुनिया में कई बड़ी चीज़ें कर चुके हैं और उनके पीछे उनकी जो चालें और षड्यंत्र हैं उन्हें कोई समझ नहीं पाता है। यह दिखाता है कि उनकी प्रकृति आखिर कितनी कपटी और विषैली है। शैतान ने मनुष्य को गंभीर ढंग से दूषित कर दिया है। शैतान का विष हर व्यक्ति के रक्त में बहता है, और यह कहा जा सकता है कि मनुष्य की प्रकृति भ्रष्ट, दुष्ट, प्रतिरोधात्मक और परमेश्वर के विरोध में है, शैतान के दर्शन और विषों से भरी हुई और उनमें डूबी हुई है। यह पूरी तरह शैतान का प्रकृति-सार बन गया है। इसीलिए लोग परमेश्वर का विरोध करते हैं और परमेश्वर के विरूद्ध खड़े रहते हैं। अगर इस तरह मनुष्य की प्रकृति का विश्लेषण किया जा सके, तो वह आसानी से खुद को जान सकता है(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, मनुष्य का स्वभाव कैसे जानें)। परमेश्वर के वचनों के प्रकाशन से, मुझे सत्य का अभ्यास करने में अपनी असमर्थता का मूल कारण पता चला : मुझे शैतान ने बुरी तरह भ्रष्ट कर दिया था। बचपन से ही मुझे स्कूल में ऐसी शिक्षा और समाज से ऐसे संस्कार मिले थे, जिन्होंने मेरे अंदर शैतान के बहुत से विष भर दिए थे, जैसे : “हर व्यक्ति अपनी सोचे बाकियों को शैतान ले जाए,” “परेशानी जितनी कम हो उतना अच्छा है,” “चीजों को वैसे ही चलने दो अगर वे किसी को व्यक्तिगत रूप से प्रभावित न करती हों,” और “समझदार लोग आत्म-रक्षा में अच्छे होते हैं, वे बस गलतियाँ करने से बचते हैं।” चूँकि मैं इन शैतानी विष के अनुसार जी रहा था, जब भी मुझ पर कोई मुसीबत आती, तो सबसे पहले मैं अपने हितों की रक्षा करता, अपनी संभावनाओं और नियति का विचार करता, न कि कलीसिया के हितों के बारे में सोचता। मैंने पहचान लिया था कि लियू हुआ और मेंग रान कुकर्मी हैं, कलीसिया के काम में बाधा डालकर उसे नुकसान पहुँचा रहे है, उनके दमन के कारण भाई-बहनों को भयंकर कष्ट सहना पड़ रहा है, लेकिन मैंने अपने हितों की रक्षा की खातिर हालात से बचने और उसे नजरअंदाज करने का फैसला किया। मैं कलीसिया के काम की रक्षा नहीं कर रहा था। यह परमेश्वर का इरादा है कि सभी मसीह विरोधियों, कुकर्मियों और गैर-विश्वासियों को कलीसिया से बाहर निकाल दिया जाए, ताकि भाई-बहन सामान्य कलीसियाई जीवन जी सकें, सत्य का अनुसरण कर सकें और अपने कर्तव्य निभा सकें। फिर भी, मैं डरपोक और अत्यधिक सतर्क था, और दृढ़ रहकर उन कुकर्मियों को उजागर करने की हिम्मत नहीं कर सका, यहां तक कि जब मैंने उन्हें दूसरों को दबाते और कलीसिया के काम में बाधा डालते देखा, तो मैं सिर्फ इसलिए अनदेखा करता रहा ताकि अपने हितों की रक्षा कर सकूं। क्या मैं शैतान के पक्ष में खड़ा रहकर उन कुकर्मियों को अनदेखा नहीं कर रहा था जबकि वे कलीसिया पर अत्याचार कर रहे थे? क्या मैं उनके सहयोगी के रूप में काम नहीं कर रहा था? मैं नाममात्र के लिए परमेश्वर में विश्वास कर उसका अनुसरण करता था, लेकिन वास्तव में, मैं शैतान की रक्षा कर रहा था और कुकर्मियों के पक्ष में खड़ा था। उस महत्वपूर्ण समय में, मैंने कलीसिया से मुंह मोड़ लिया था और कलीसिया के हितों पर विचार करने के बजाय, केवल अपनी रक्षा कर रहा था। मुझे एहसास हुआ कि मैं कितना धोखेबाज और स्वार्थी था। परमेश्वर का राज्य उन लोगों को चाहता है जो ईमानदार हैं और न्याय की भावना रखते हैं। धोखेबाज, स्वार्थी लोग जो केवल अपने हितों की रक्षा करते हैं, शैतान के साथी हैं, परमेश्वर उन्हें नहीं बचाएगा।

उसके बाद, मुझे परमेश्वर के वचनों का निम्नलिखित अंश मिला : “मसीह-विरोधियों का स्वभाव बहुत ही शातिर होता है। अगर तुम उनकी काट-छाँट करने या उन्हें उजागर करने की कोशिश करोगे तो वे तुमसे नफरत करेंगे और जहरीले साँप की तरह तुम पर अपने दाँत गड़ा देंगे। तुम चाहे कितनी भी कोशिश करो, उन्हें बदल नहीं पाओगे या उनसे पीछा नहीं छुड़ा पाओगे। जब ऐसे मसीह-विरोधियों से तुम्हारा सामना होता है तो क्या तुम लोगों को डर लगता है? कुछ लोग डर जाते हैं और कहते हैं, ‘मुझमें उनकी काट-छाँट करने की हिम्मत नहीं है। वे जहरीले साँपों की तरह बहुत ही खौफनाक हैं और अगर वे अपनी कुंडली में मुझे लपेट लें तो मैं खत्म ही हो जाऊँगा।’ ये किस तरह के लोग हैं? उनका आध्यात्मिक कद बहुत छोटा है, वे किसी काम के नहीं हैं, वे मसीह के अच्छे सैनिक नहीं हैं और वे परमेश्वर की गवाही नहीं दे सकते। तो जब ऐसे मसीह-विरोधियों से तुम लोगों का सामना हो, तो तुम्हें क्या करना चाहिए? अगर वे तुम्हें धमकाते हैं या तुम्हारी जान लेने की कोशिश करते हैं तो क्या तुम्हें डर लगेगा? ऐसी परिस्थितियों में तुम्हें तुरंत अपने भाई-बहनों के साथ मिलकर खड़े होना चाहिए, उनकी छानबीन करनी चाहिए, सबूत इकट्ठा करके मसीह-विरोधी को तब तक उजागर करना चाहिए जब तक कि उसे कलीसिया से नहीं निकाल दिया जाता। यह समस्या को जड़ से हल करना है। ... परमेश्वर के चुने हुए लोगों को हमेशा परमेश्वर के आदेश को ध्यान में रखना चाहिए। बुरे लोगों और मसीह-विरोधियों को स्वच्छ करना शैतान के खिलाफ युद्ध में सबसे महत्वपूर्ण लड़ाई है। अगर यह लड़ाई जीत ली जाती है, तो यह एक विजेता की गवाही बन जाएगी। शैतानों और राक्षसों के खिलाफ लड़ाई एक अनुभवजन्य गवाही है जो परमेश्वर के चुने हुए लोगों के पास होनी चाहिए। यह एक सत्य वास्तविकता है जो विजेताओं के पास होनी चाहिए। परमेश्वर ने लोगों को बहुत सारा सत्य प्रदान किया है, इतने लंबे समय तक तुम्हारी अगुआई की है और तुम्हें इतना कुछ दिया है, ताकि तुम गवाही दे सको और कलीसिया के कार्य की रक्षा करो। ऐसा लगता है कि जब बुरे लोग और मसीह-विरोधी बुरे कर्म करते हैं और कलीसिया के कार्य में बाधा डालते हैं, तो तुम डरपोक बनकर पीछे हट जाते हो, हाथ खड़े कर भाग जाते हो—तुम किसी काम के नहीं हो। तुम शैतानों को नहीं हरा सकते, तुम गवाह नहीं बने हो और परमेश्वर तुमसे घृणा करता है। इस महत्वपूर्ण क्षण में तुम्हें मजबूती से खड़े होकर शैतानों के खिलाफ युद्ध छेड़ना चाहिए, मसीह-विरोधियों के बुरे कर्मों को उजागर करना चाहिए, उनकी निंदा कर उन्हें कोसना चाहिए, उन्हें छिपने की कोई जगह नहीं देनी चाहिए और उन्हें कलीसिया से निकाल बाहर करना चाहिए। केवल इसे ही शैतान पर विजय पाना और उनकी नियति को खत्म करना कहा जा सकता है। तुम परमेश्वर के चुने हुए लोगों में से एक हो, परमेश्वर के अनुयायी हो। तुम चुनौतियों से नहीं डर सकते; तुम्हें सत्य सिद्धांतों के अनुसार काम करना चाहिए। विजेता होने का यही अर्थ है। अगर तुम चुनौतियों से डरकर और बुरे लोगों या मसीह-विरोधियों के प्रतिशोध से डरकर उनसे समझौता कर लेते हो, तो तुम परमेश्वर के अनुयायी नहीं हो और तुम परमेश्वर के चुने हुए लोगों में से नहीं हो। तुम किसी काम के नहीं हो, तुम तो सेवाकर्मियों से भी कमतर हो(वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ (भाग आठ))। परमेश्वर के वचनों ने मुझमें विश्वास और शक्ति भर दी। मुझे शैतान की अँधेरी ताकतों से डरना बंद करना होगा, मुझे खुद को बचाना और अपना निकम्मापन छोड़ना होगा। मुझे कलीसिया में कुकर्मियों को बेनकाब करने के लिए दृढ़ता दिखानी थी और कलीसिया के हितों की रक्षा करनी थी—यही मेरा कर्तव्य और जिम्मेदारी थी। परमेश्वर के वचनों ने मुझे अभ्यास का मार्ग भी दिखाया : एक अकेले व्यक्ति की शक्तियाँ सीमित होती हैं, लेकिन मैं उन बाकी भाई-बहनों के साथ मिलकर काम कर सकता था जिनमें न्याय की भावना थी और उन कुकर्मियों की रिपोर्ट कर उन्हें बेनकाब कर सकता था, और इस प्रकार हमारे कलीसियाई जीवन की रक्षा कर सकता था, भाई-बहनों को शैतान की ताकतों द्वारा बाधित होने से रोक सकता था, और सुनिश्चित कर सकता था कि कुकर्मियों के साथ उचित तरीके से सलूक किया जाए। भले ही मुझे दबाया जाता और दंडित किया जाता, मैं शैतान की ताकतों के आगे नहीं झुकता। उसके बाद, मैंने शैतान के अंधेरे प्रभाव से विवश होना छोड़ दिया, और अपनी संभावनाओं और नियति का ख्याल अपने मन से निकाल दिया। मैंने बाकी भाई-बहनों के साथ मिलकर मेंग रान के मुद्दों के बारे में दूसरे अगुआ को बताया। स्थिति की जाँच-पड़ताल करने के बाद, अगुआ ने मेंग रान को बर्खास्त कर दिया। जब मैंने मेंग रान को अंततः बर्खास्त होते देखा, तो मैं बहुत खुश हुआ और परमेश्वर के प्रति कृतज्ञता से भर गया। उसके बाद, हमने अगुआ को लियू हुआ और मेंग रान के सभी कुकर्मों का जायजा लेने में मदद की। उसके बाद, उन दोनों को कुकर्मियों के रूप में वर्गीकृत कर निकाल दिया गया, और शिया यू को झूठा अगुआ होने के कारण बर्खास्त कर दिया गया क्योंकि उसने कोई वास्तविक कार्य नहीं किया था और कलीसिया में बुरे काम करने वाले कुकर्मियों को बर्दाश्त किया था। उन कुकर्मियों के व्यवधान से मुक्त होकर, हमारी कलीसिया में शांति और चैन लौट आया, और भाई-बहन सामान्य रूप से अपना कर्तव्य निभाने लगे। इसके तुरंत बाद, कलीसिया में हर परियोजना के परिणाम मिलने लगे।

इस अनुभव के जरिए, मुझे पता चला कि सभी चीजें परमेश्वर की संप्रभुता और व्यवस्था के अधीन हैं, और मैंने परमेश्वर की धार्मिकता भी देखी। शैतान की बुरी ताकतें परमेश्वर के घर में मजबूती से पैर नहीं जमा सकतीं—जिन्हें उजागर किया जाना चाहिए वे सभी अंततः उजागर कर हटा दिए जाते हैं। मैंने इस बात पर गौर किया कि जब हमने रिपोर्ट कर लियू हुआ को बेनकाब किया तो मेंग रान ने हमें कैसे रोका, और कैसे शिया यू ने हमें मेंग रान की रिपोर्ट करने से रोकने का प्रयास किया—तो उस समय मुझे समझ नहीं आया था कि परमेश्वर ने ऐसा क्यों होने दिया, लेकिन अब मैं समझ गई कि लियू हुआ के जरिए, परमेश्वर ने बारी-बारी से एक कुकर्मी और एक झूठा अगुआ को उजागर किया जो काफी गहराई तक खुद को छिपाए हुए थे। इसके जरिए, मुझे समझ हासिल हुई और मूल्यवान सबक सीखे। परमेश्वर सचमुच बुद्धिमान है! हालाँकि उन्हें रिपोर्ट करने की प्रक्रिया उतार-चढ़ाव से भरी थी, लेकिन परमेश्वर के वचनों ने हर कदम पर मेरा मार्गदर्शन किया, और मुझे परमेश्वर की बुद्धि और सर्वशक्तिमत्ता का ज्ञान दिया। मैंने देखा कि सचमुच परमेश्वर के घर में सत्य और धार्मिकता का शासन है। इससे मुझे परमेश्वर में और गहरी आस्था हो गई और मुझे अपनी स्वार्थी, धोखेबाज प्रकृति को समझने में मदद मिली। मैं इनमें से कोई भी सबक आरामदायक माहौल में कभी नहीं सीख सकता था। परमेश्वर का धन्यवाद!

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