39. हिरासत में 75 दिन
सितंबर 2009 में एक दिन मैं और दो बहनें एक धार्मिक अगुआ के पास सुसमाचार का प्रचार करने गए। हालाँकि अगुआ ने इसे नकार दिया और अपनी कलीसिया के दस से ज्यादा सदस्यों को बुलवा कर हमें पिटवाया और हमें स्थानीय पुलिस स्टेशन ले गए। मैं उस समय काफी डरा हुआ था और चिंतित था कि पुलिस हमें प्रताड़ित करेगी। मुझे पता था कि सीसीपी सबसे ज्यादा परमेश्वर से नफरत करती है और उसका प्रतिरोध करती है और पकड़े गए विश्वासियों को बेखौफ मार सकती है। कई भाई-बहनों को गिरफ्तार करके प्रताड़ित किया गया था और कुछ को तो पीट-पीटकर मार डाला गया था या अपंग बना दिया गया था। मुझे चिंता थी कि अपने छोटे आध्यात्मिक कद के कारण मैं पुलिस वालों की यातना सहन नहीं कर पाऊँगा, इसलिए मैंने गूँगा होने का नाटक किया। जब उन्होंने मुझसे पूछा कि मैं कहाँ से हूँ, मेरा कलीसिया अगुआ कौन है और मुझे सुसमाचार प्रचार करने के लिए किसने भेजा है तो मैंने एक शब्द भी नहीं कहा। फिर उन्होंने मुझे उकड़ू बैठने के लिए कहा लेकिन कुछ ही देर तक उकड़ू बैठने के बाद मेरे पैर इसे सहन नहीं कर पाए और मैं जमीन पर गिर गया। दो पुलिसकर्मियों ने मुझे अंधाधुंध लातें और ठोकरें मारीं और मुझे उठकर फिर उकड़ू बैठने का आदेश दिया। थोड़ी देर और बैठने के बाद मेरी टांगे दुखने लगीं और मेरा पूरा शरीर पसीने से तर हो गया। एक पुलिसकर्मी ने मजाक उड़ाते हुए कहा, “कैसा लग रहा है? बहुत अच्छा न? अगर तुम मुँह नहीं खोलोगे तो हम तुम्हें उकड़ू बैठे रहने पर मजबूर कर देंगे।” दूसरे पुलिसकर्मी ने बेरुखी से कहा, “तुम बहुत जिद्दी हो, है न? लगता है हमें सख्ती करनी पड़ेगी। मुझे पता है, तुम्हारा मुँह जबरन खुलवा सकता हूँ!” यह कहकर उसने मेरे घुटनों के पीछे बीयर की बोतलें अटका दीं और कहा, “अगर ये बोतलें गिरीं तो तुम्हें पीटा जाएगा।” थोड़ी देर बाद मुझसे उकड़ू नहीं बैठा गया और बीयर की बोतलें खनखनाकर जमीन पर गिर गईं। उन्होंने लात मारकर मुझे जमीन पर गिरा दिया और बुरी तरह लात-ठोकरें मारनी शुरू कर दीं। मेरी टांगों, पीठ, कंधों और कमर में असहनीय दर्द हो रहा था और मैं एक गेंद की तरह सिकुड़ गया, मेरा दिल पीड़ा से छटपटा रहा था। चूँकि चीन का संविधान धार्मिक स्वतंत्रता की स्पष्ट गारंटी देता है, हमें परमेश्वर में विश्वास करने और सुसमाचार का प्रचार करने का कानूनी अधिकार है, लेकिन सीसीपी फिर भी हमें लगातार सताती और तड़पाती है। वे वाकई दुष्ट हैं! तभी मुझे याद आया कि कैसे प्रभु यीशु के शिष्यों को सताया गया था : स्टीफन को प्रभु के मार्ग पर चलने के लिए पत्थर मार-मारकर मार डाला गया था और पतरस को सुसमाचार का प्रचार करने और परमेश्वर की गवाही देने के लिए कैद किया गया था और अंततः उसे सूली पर उल्टा लटका दिया गया था। मैंने सोचा कि कैसे परमेश्वर ने कहा : “धन्य हैं वे, जो धार्मिकता के कारण सताए जाते हैं, क्योंकि स्वर्ग का राज्य उन्हीं का है” (मत्ती 5:10)। ये कहानियाँ मेरे लिए बहुत उत्साहवर्धक थीं—हर युग के संतों ने प्रभु के सुसमाचार प्रचार के लिए बहुत अधिक उत्पीड़न सहा था और यहाँ तक कि परमेश्वर के लिए शहादत भी दी थी। उन्होंने महान और शानदार गवाही दी थी, लेकिन मैं थोड़ा सा उत्पीड़न और कष्ट सहने के बाद कमजोर पड़ गया था और कष्ट में था। मैंने जो कुछ भी सहा था, वह पिछले युगों के संतों के अनुभव के सामने कुछ भी नहीं था। परमेश्वर के राज्य के सुसमाचार प्रचार के लिए मुझे सताया जाना और पीड़ा पहुँचाया जाना मूल्यवान और अर्थपूर्ण है। इसका एहसास होने पर मुझे अब दर्द महसूस नहीं हुआ और नई आस्था का संचार हो गया। मैंने चुपचाप परमेश्वर से प्रार्थना की और उससे यह इच्छाशक्ति माँगी कि मैं पीड़ा सह सकूँ, शैतान के आगे न झुकूँ और परमेश्वर की महिमा गाने के लिए अपनी गवाही में अडिग रहूँ।
जब पुलिस ने देखा कि मैं अभी भी बोलने को तैयार नहीं हूँ तो उसने मुझे सोने नहीं दिया। दो पुलिसकर्मी बारी-बारी से मेरी निगरानी कर रहे थे और जैसे ही वे मेरी आँखें बंद होते देखते तो वे मुझे लात मार देते। रात को लगभग एक बजे दो अन्य अधिकारी, जिनकी शिफ्ट अभी-अभी शुरू हुई थी, वे मुझे पुलिस स्टेशन के मुख्य हॉल में ले गए और वहाँ मुझे जमीन पर बैठा दिया। एक अधिकारी ने बुरी तरह चिल्लाते हुए कहा, “मैंने सुना है कि तुम बहुत जिद्दी हो और हमें परमेश्वर में अपने विश्वास के बारे में कुछ नहीं बता रहे हो। लगता है तुम्हारा मुँह खुलवाने के लिए थोड़ा-सा सबक सिखाना पड़ेगा!” यह कहते ही उसने मुझे बुरी तरह लात मारकर जमीन पर गिरा दिया और अपने पैर से मेरा सिर जोर से कुचला। जब उसका पैर मेरे सिर में धंसा तो मुझे बहुत दर्द हुआ और मुझे लगा कि वह मेरे सिर को पीसकर टुकड़े-टुकड़े कर देगा। दूसरे अधिकारी ने अपने पैर से मेरी छाती कुचली और तुरंत मेरी सांस फूलने लगी और असहनीय दर्द होने लगा। इसके बाद उसने मेरी जांघों और पिंडलियों को जोर से कुचला। मुझे बेहद दर्द हो रहा था और मैंने सोचा, “भले ही मैं इस दुनिया में बहुत महत्वपूर्ण या ऊँचे रुतबे वाला इंसान नहीं हूँ, लेकिन मैंने पहले कभी भी खुद को पैरों से कुचले जाने का अपमान नहीं सहा है।” मैंने परमेश्वर से प्रार्थना करता रहा और उससे यह शक्ति माँगता रहा कि मैं इस पीड़ा को झेल सकूँ और अपनी गवाही में अडिग रहूँ। प्रार्थना करने के बाद मुझे याद आया कि कैसे प्रभु यीशु को सूली पर चढ़ाया गया था : उसने काँटों का मुकुट पहना था, रोमन सैनिकों ने उसे अपमानित किया और ताने मारे, उसका शरीर छलनी होने तक कोड़े बरसाए और आखिर में उसे क्रूरतापूर्वक सूली पर चढ़ा दिया गया। मैंने परमेश्वर के वचनों के बारे में सोचा जो कहते हैं : “यरूशलम जाने के मार्ग पर यीशु बहुत संतप्त था, मानो उसके हृदय में कोई चाकू भोंक दिया गया हो, फिर भी उसमें अपने वचन से पीछे हटने की जरा-सी भी इच्छा नहीं थी; एक सामर्थ्यवान ताक़त उसे लगातार उस ओर बढ़ने के लिए बाध्य कर रही थी, जहाँ उसे सलीब पर चढ़ाया जाना था। अंततः उसे सलीब पर चढ़ा दिया गया और वह मानवजाति के छुटकारे का कार्य पूरा करते हुए पापमय देह के सदृश बन गया। वह मृत्यु एवं अधोलोक की बेड़ियों से मुक्त हो गया। उसके सामने नैतिकता, नरक एवं अधोलोक ने अपना सामर्थ्य खो दिया और उससे परास्त हो गए। वह तेंतीस वर्षों तक जीवित रहा, और इस पूरे समय उसने परमेश्वर के उस वक्त के कार्य के अनुसार परमेश्वर के इरादों को पूरा करने के लिए, कभी अपने व्यक्तिगत लाभ या नुकसान के बारे में विचार किए बिना और हमेशा परमपिता परमेश्वर के इरादों के बारे में सोचते हुए, हमेशा अपना अधिकतम प्रयास किया” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के इरादों के अनुरूप सेवा कैसे करें)। मैंने सोचा कि कैसे प्रभु यीशु सृष्टि का प्रभु और ब्रह्मांड का राजा है, लेकिन इतना भव्य और सम्माननीय दर्जा होने के बावजूद वह मानवजाति को छुटकारा दिलाने के लिए इतनी पीड़ा और अपमान सहने को तैयार था। तो मेरे जैसे गंदे और भ्रष्ट इंसान के लिए थोड़ी सी पीड़ा और अपमान क्या चीज है, जिसका मूल्य एक चींटी से ज्यादा कुछ नहीं है? यह एक आशीष ही है कि मुझे यह पीड़ा सहने और परमेश्वर के लिए गवाही देने का अवसर मिला, इसलिए मुझे खुश होना चाहिए। यह एहसास होने पर मुझे पीड़ा सहने की एक नई प्रेरणा और इच्छाशक्ति मिली। इसके बाद उन्होंने यातना देने का दूसरा तरीका अपनाया। एक पुलिसकर्मी ने सिगरेट जलाई और मेरी नाक में फँसा दी और फिर मेरे सिर पर एक गिलास रखकर कहा, “अगर सिगरेट या गिलास जमीन पर गिरा तो फिर तुम्हारी खैर नहीं।” जब सिगरेट लगभग मेरी नाक तक जल गई तो मैंने सिगरेट को बाहर निकालने के लिए अपने नथुने से साँस छोड़ी। जैसे ही अधिकारी ने सिगरेट जमीन पर गिरते देखी तो उसने मुझे लात मारी और पैरों से कुचला और फिर चार-पाँच मुट्ठी धान उठाकर मेरी गर्दन पर रख दिए, और फिर मेरा कॉलर खींचा ताकि धान अंदर चले जाएँ। तुरंत मेरे पूरे शरीर में चुभन भरी खुजली होने लगी जिसे सहना मुश्किल था। सुबह लगभग पाँच बजे दो अधिकारी आए। जब उन्हें बताया गया कि मैंने कोई जानकारी नहीं दी है तो उनमें से एक ने अपने बैग से बेल्ट निकाली और बेल्ट के बकल वाले सिरे से मेरे उल्टे हाथों, पिंडलियों और घुटनों पर बुरी तरह से मारने लगा। बेल्ट की मार से मुझे बेहद दर्द हुआ। जब लगभग बीस बार बेल्ट मारने के बाद भी मैंने मुँह नहीं खोला तो वे हार मानकर चले गए।
दूसरे दिन दोपहर को मुझे काउंटी जेल भेज दिया गया। जेल के एक अधिकारी ने कैदियों से कहा, “यह एक विश्वासी है जो धर्म परिवर्तन कराते हुए पकड़ा गया है और हमें कुछ नहीं बता रहा है। इसका अच्छे से ख्याल रखना!” कैदियों ने मुझे घेर लिया और मुझे डराने वाली नजरों से देखने लगे। वे सभी कमर तक नंगे थे और कुछ के शरीर पर टैटू भी थे, जिससे मुझे थोड़ा डर डरने लगा। मुझे पहले ही पुलिस स्टेशन में अधिकारियों ने प्रताड़ित किया था और मेरा शरीर घावों से भरा हुआ था। अब मेरा सामना दुष्ट और क्रूर दिखने वाले कैदियों से हो रहा था—अगर वे भी मुझे प्रताड़ित करेंगे तो क्या मेरा शरीर इतना जुल्म झेल पाएगा? अगर मैं यातना न सह पाया और यहूदा की तरह परमेश्वर को धोखा दे बैठा, फिर शाप और दंड का भागी बन गया तो क्या परमेश्वर में मेरा विश्वास पूरी तरह से विफल नहीं हो जाएगा? परमेश्वर को धोखा देने के बजाय दीवार पर अपना सिर फोड़कर मर जाना ही बेहतर होगा। तभी मुझे परमेश्वर के वचनों का एक अंश याद आया : “कुछ लोगों के कष्ट चरम तक पहुँच जाते हैं, और उनके विचार मृत्यु की ओर मुड़ जाते हैं। यह परमेश्वर के लिए सच्चा प्रेम नहीं है; ऐसे लोग कायर होते हैं, उनमें धीरज नहीं होता, वे कमजोर और शक्तिहीन होते हैं! परमेश्वर उत्सुक है कि मनुष्य उससे प्रेम करे, परंतु मनुष्य जितना अधिक उससे प्रेम करता है, उसके कष्ट उतने अधिक बढ़ते हैं, और जितना अधिक मनुष्य उससे प्रेम करता है, उसके परीक्षण उतने अधिक बढ़ते हैं। ... इस प्रकार, इन अंत के दिनों में तुम लोगों को परमेश्वर की गवाही देनी चाहिए। चाहे तुम्हारे कष्ट कितने भी बड़े क्यों न हों, तुम्हें बिल्कुल अंत तक चलना चाहिए, यहाँ तक कि अपनी अंतिम साँस पर भी तुम्हें परमेश्वर के प्रति निष्ठावान और उसके आयोजनों के प्रति समर्पित होना चाहिए; केवल यही वास्तव में परमेश्वर से प्रेम करना है, और केवल यही सशक्त और जोरदार गवाही है” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पीड़ादायक परीक्षणों के अनुभव से ही तुम परमेश्वर की मनोहरता को जान सकते हो)। परमेश्वर के वचनों से मुझे एहसास हुआ कि जो लोग किसी बड़ी पीड़ा और कठिनाई का सामना करने पर मर जाना चाहते हैं, वे कायर होते हैं, शैतान की हंसी के पात्र होते हैं और वे परमेश्वर का इरादा पूरा नहीं कर सकते हैं। गिरफ्तार होने से पहले मैं परमेश्वर से प्रेम करने, परमेश्वर को संतुष्ट करने और उसके लिए गवाही देने के बारे में सबसे ज्यादा मुखर था। लेकिन जब मुझे यातनाएँ दी गईं और कष्ट मिले तो मैं नकारात्मक और कमजोर पड़ गया और इस सबसे बचने के लिए मैंने मौत का सहारा लेना चाहा—मेरा आध्यात्मिक कद कहाँ था? यह एहसास होने पर मुझे बेहद शर्मिंदगी और अपराधबोध हुआ। मैंने चुपचाप परमेश्वर से प्रार्थना की, “हे परमेश्वर, चाहे वे मुझे कितना भी सताएँ, मैं हमेशा तुम पर भरोसा करूँगा और अपनी गवाही में अडिग रहूँगा।”
पुलिस के आदेश के अनुसार मुख्य कैदी ने मुझे अपना नाम और पता बताने को कहा। उसने क्रूरता से गुर्राते हुए कहा, “तुम एक विश्वासी और राजनीतिक कैदी हो, इसलिए तुम्हारे अपराध किसी हत्यारे से भी ज्यादा गंभीर हैं। अगर तुम मुँह नहीं खोलते तो जरा ठहरो और देखो मैं तुम्हारे साथ क्या करता हूँ!” लेकिन मैंने फिर भी एक शब्द नहीं कहा। यह देखते हुए कि मेरा बोलने का कोई इरादा नहीं है, वह उठा और मेरी बाँहें मरोड़ दीं तभी दो अन्य कैदियों ने मेरे टखने दबाए। फिर चार या पाँच अन्य कैदियों ने बारी-बारी से मेरी पिंडलियों और जाँघों पर मुक्के मारे। हर मुक्का असहनीय रूप से दर्दनाक था और मुझे लगा कि मैं यह सब ज्यादा देर तक नहीं झेल पाऊँगा। मैंने मन ही मन सोचा, “क्या ये कैदी मुझे यातना देकर मौत के घाट उतार देंगे?” मैं अपनी रक्षा के लिए परमेश्वर को लगातार पुकारता रहा और इन राक्षसों का कहर झेलने के लिए उससे शक्ति माँगता रहा। प्रार्थना करने के बाद मैंने प्रभु यीशु के इन वचनों के बारे में सोचा : “जो शरीर को घात करते हैं, पर आत्मा को घात नहीं कर सकते, उनसे मत डरना; पर उसी से डरो, जो आत्मा और शरीर दोनों को नरक में नष्ट कर सकता है” (मत्ती 10:28)। वाकई ये राक्षस क्रूर थे, लेकिन वे सिर्फ मेरे शरीर को नष्ट कर सकते थे और कष्ट दे सकते थे, वे मेरी आत्मा को नहीं मार सकते थे। साथ ही शरीर का मरना वास्तविक मृत्यु नहीं है। परमेश्वर की गवाही देने के लिए सीसीपी द्वारा सताए जाने और मारे जाने का मतलब था कि मुझे धार्मिकता के कारण सताया जा रहा है और परमेश्वर ने ऐसे कार्यों की सराहना की है। मुझे एक भजन याद आया : “अपने हृदय में परमेश्वर के उपदेशों के साथ, मैं कभी भी शैतान के सामने घुटने नहीं टेकूंगा। यद्यपि हमारे सिर धड़ से अलग हो सकते हैं और हमारा खून बह सकता है, लेकिन परमेश्वर के लोगों की रीढ़ की हड्डी झुक नहीं सकती। मैं परमेश्वर के लिए शानदार गवाही दूँगा, और राक्षसों और शैतान को अपमानित करूँगा। पीड़ा और कठिनाइयाँ परमेश्वर द्वारा पूर्वनिर्धारित हैं, और मैं मृत्युपर्यंत उसके प्रति वफादार और समर्पित रहूँगा। मैं फिर कभी परमेश्वर के रोने या चिंता करने का कारण नहीं बनूँगा। मैं अपना प्यार और अपनी निष्ठा परमेश्वर को अर्पित कर दूँगा और उसे महिमान्वित करने के अपने लक्ष्य को पूरा करूँगा” (मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ, परमेश्वर के महिमा दिवस को देखना मेरी अभिलाषा है)। भजन के बोलों पर मनन करते हुए मेरे अंदर हर दुख सहने और परमेश्वर के लिए अपनी गवाही में अडिग रहने की इच्छाशक्ति बढ़ती गई। उनकी पिटाई के बाद मेरी पूरी टाँगों पर नील पड़ गए थे और वे बुरी तरह सूज गई थीं। जरा सा छूने पर भी बहुत दर्द हो रहा था। मेरी टाँगों की मांसपेशियों में गंभीर चोटों के कारण मैं उकड़ू नहीं बैठ पा रहा था, इसलिए शौचालय जाते समय मुझे देसी टॉयलेट सीट के किनारों पर बैठना पड़ता था। उनका मुझे बेरहमी से पीटना रोज की बात हो गई थी। एक कैदी ने मुक्केबाजी का प्रशिक्षण लिया था और वह मुक्केबाजी और कराटे का अभ्यास करने के लिए मुझे पंचिंग बैग की तरह इस्तेमाल करता था और बार-बार अपने हाथों से मेरी गर्दन पर कराटे मारता था। हर बार जब वह मेरी गर्दन पर कराटे मारता तो मुझे चक्कर आने लगता। वहाँ एक बहुत क्रूर सा दिखने वाला कैदी भी था जिसने मुझे बिस्तर पर जकड़ दिया, अपने दोनों हाथों से मेरी गर्दन को बुरी तरह से पकड़ लिया और गला घोंटकर लगभग मुझे ही मार डाला और तभी रुका जब उसने देखा कि मैं परमेश्वर में अपने विश्वास के बारे में कुछ नहीं बताऊँगा, चाहे मुझे कितनी भी यातना दी जाए। कई बार मुख्य कैदी और उसके गुर्गे माचिस की तीली को रुई के गोलों में लपेटते और फिर उन गोलों को मेरे हाथों और पैरों की उंगलियों के बीच फँसाकर आग लगा देते। मेरे हाथों और पैरों की उंगलियाँ जल जातीं और उनमें बहुत दर्द होता। मुख्य कैदी फिर जानबूझकर मेरे जले हुए पैरों को तब तक कुचलता जब तक घावों से खून नहीं निकलने लगता। हर बार जब कैदी मुझे कष्ट देते और मुझे परेशान करते तो मैं परमेश्वर को पुकारता और उससे शक्ति माँगता। सिर्फ परमेश्वर के मार्गदर्शन से ही मैं राक्षसों द्वारा बार-बार दी गई यातना झेल पाया।
नवंबर के अंत में एक दिन अभियोजक के कार्यालय द्वारा मुझ पर चौथी बार मुकदमा चलाया गया, लेकिन मैंने फिर भी बोलने से इनकार कर दिया। एक अधिकारी ने मुख्य कैदी से कहा, “वह हमें कुछ नहीं बता रहा है और अभियोजक का कार्यालय तंग आ गया है। तुम्हें उससे कुछ न कुछ तो बुलवाना ही पड़ेगा, चाहे इसके लिए कुछ भी करना पड़े।” उसके बाद मुख्य कैदी ने चार या पाँच अन्य कैदियों को मुझे नंगा करने का आदेश दिया, फिर उसने एक प्लास्टिक के कटोरे में आग लगाई और गर्म पिघलता प्लास्टिक को मेरी त्वचा पर टपकाने लगा। हर बूंद से मैं दर्द से तड़प उठता था—यह इतना भयानक था कि मैं इसे सहन नहीं कर सका। मैंने उनसे प्रचंड संघर्ष किया, लेकिन उन्होंने मुझे पकड़ रखा था, इसलिए मैं हिल नहीं सका। मैंने अपने दिल में बार-बार परमेश्वर को पुकारा, “हे परमेश्वर, मैं अब और नहीं सह सकता। मेरी रक्षा करो। मुझे शक्ति दो और इस पीड़ा को सहने की इच्छाशक्ति दो, ताकि मैं शैतान के आगे न झुकूँ और मृत्यु तक तुम्हारे लिए अपनी गवाही में अडिग रह सकूँ।” एक बार फिर मैंने सोचा कि कैसे प्रभु यीशु को रोमन सैनिकों ने क्रूस पर कीलों से जिंदा ही ठोक दिया था, कैसे उसका खून धीरे-धीरे सूख गया था। अपनी महानता और सम्मान के बावजूद, ऊँचे स्थान पर विराजमान परमेश्वर ने देहधारण किया और मानव जाति को बचाने के लिए पृथ्वी पर असहनीय कष्ट सहे। परमेश्वर निर्दोष था और वह ऐसे कष्ट सहने का हकदार नहीं था, लेकिन उसने मनुष्य को बचाने के लिए चुपचाप यह सब सहन कर लिया। चूँकि मैं सिर्फ एक भ्रष्ट इंसान हूँ, इसलिए छोटी सी पीड़ा सहना कोई बड़ी बात नहीं है। चीन में, जहाँ परमेश्वर को दुश्मन की तरह देखा जाता है, अगर कोई परमेश्वर का अनुसरण करना चाहता है और सत्य और जीवन पाना चाहता है तो उसके लिए उत्पीड़न सहने से बचना मुश्किल है। लेकिन कष्ट सहना उचित और अर्थपूर्ण है, क्योंकि यह सत्य पाने और बचाए जाने के लिए होता है। इस क्रूर यातना ने मुझे सीसीपी के सत्य से घृणा करने वाले, परमेश्वर से घृणा करने वाले दुष्ट सार को साफ देखने की अनुमति दी। वे परमेश्वर का विरोध करते हैं, लोगों को क्रूरता से पीड़ित करते हैं और वे दुष्ट आत्माओं और राक्षसों से ज्यादा कुछ नहीं हैं। इसका एहसास होने पर मैं बड़े लाल अजगर से और भी ज्यादा घृणा करने लगा—जितना ज्यादा वे मुझे सताते, मैं अपनी गवाही में उतना ही ज्यादा अडिग रहने और उन्हें अपमानित करने के लिए परमेश्वर पर भरोसा करता! मैंने दर्द से संघर्ष किया और किसी तरह इस कठिन परीक्षा से गुजरा। उस रात जब कैदी सो रहे थे तो मैंने अपने घाव ध्यान से देखे : मेरी जांघों और पिंडलियों पर बहुत ज्यादा घाव हो गए थे। मेरा सीना जल गया था और उस पर त्वचा खून से लथपथ और क्षत-विक्षत थी। मेरा पूरा शरीर जलने के घावों से भर गया था। मैंने मन ही मन सोचा, “उन्होंने अभी से मेरी ऐसी हालत कर दी है। अगर वे कल फिर से मुझे ऐसे ही प्रताड़ित करेंगे तो क्या मैं इसे बर्दाश्त कर पाऊँगा?” मैं यह सोचकर काँप उठा कि मुझे कितना भयानक दर्द होने वाला है और ऐसा लगा मानो मेरा सिर फट जाएगा। मुझे लगा कि स्थिति पहले ही मेरे शरीर की सहनशक्ति की हद पार कर चुकी है और मैं टूटने के कगार पर हूँ। मैंने जल्दी से परमेश्वर से प्रार्थना की, “हे परमेश्वर, मेरे दिल में डर समा गया है और मुझे नहीं लगता कि मैं इससे ज्यादा बर्दाश्त कर पाऊँगा। मुझे अडिग रहने की शक्ति दो।” प्रार्थना करने के बाद मुझे परमेश्वर के ये वचन याद आए जो कहते हैं : “आस्था एक ही लट्ठे से बने पुल की तरह है : जो लोग हर हाल में जीवन जीने की लालसा से चिपके रहते हैं उन्हें इसे पार करने में परेशानी होगी, परन्तु जो आत्म बलिदान करने को तैयार रहते हैं, वे बिना किसी फ़िक्र के, मज़बूती से कदम रखते हुए उसे पार कर सकते हैं। अगर मनुष्य कायरता और भय के विचार रखते हैं तो ऐसा इसलिए है कि शैतान ने उन्हें मूर्ख बनाया है, उसे डर है कि हम आस्था का पुल पार कर परमेश्वर में प्रवेश कर जाएँगे” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 6)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे आगे का रास्ता दिखाया—सिर्फ आस्था पर भरोसा करके और अपना जीवन दांव पर लगाकर ही मैं बिना किसी चिंता के इस कठिन रास्ते से पार पा सकता हूँ। क्या मैं कायरता और भय में जीकर शैतान की साजिश में नहीं फँस रहा था? मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, मैं अब और डर में जीने और शैतान द्वारा मूर्ख बनाए जाने के लिए तैयार नहीं था। मैं खुद को पूरी तरह उसके हाथ में सौंपकर अपनी गवाही में अडिग रहने और शैतान को शर्मिंदा करने को तैयार था, चाहे मुझे पीट-पीट कर क्यों न मार दिया जाता। मुझे राहत महसूस हुई और आगे जो भी मेरे साथ होने वाला था उसका सामना करने की आस्था भी मिली। तभी मुझे एक भजन याद आया जिसका नाम है “अँधेरे और दमन के बीच उठ खड़े होना” : “बड़े लाल अजगर के क्रूर उत्पीड़न ने मुझे शैतान का चेहरा दिखा दिया है। अनेक परीक्षणों और क्लेशों से गुजरकर मैं परमेश्वर की बुद्धि और सर्वशक्तिमत्ता देख पाया हूँ। सत्य समझने और विश्वास पाने के बाद मैं परमेश्वर का अनुसरण न करके कैसे संतोष पा सकता हूँ? मैं शैतान से बहुत घृणा करता हूँ, और बड़े लाल अजगर से तो और भी अधिक घृणा करता हूँ। जहाँ राक्षस राजा का शासन है, वहाँ रहना जेल में रहने के समान है। शैतान मेरे पीछे पड़ा है; रहने के लिए कोई सुरक्षित स्थान नहीं है। परमेश्वर पर विश्वास और उसकी आराधना करना बिलकुल सही है। परमेश्वर से प्रेम करने के लिए चुने जाकर, मैं अंत तक वफादार रहूँगा। दानव राजा शैतान पूरी तरह से क्रूर, बेहद बेशर्म और घृणित है। मुझे शैतान का राक्षसी चेहरा स्पष्ट रूप से दिखाई देता है, और मेरा हृदय मसीह से और भी अधिक प्रेम करता है। मैं कभी भी शैतान के सामने घुटने टेककर और परमेश्वर को धोखा देकर एक अधम जीवन नहीं जिऊँगा। मैं सहूँगा सारी कठिनाई और दर्द, और सबसे अँधेरी रातें गुजार लूँगा। परमेश्वर के दिल को सुकून देने के लिए मैं विजयी गवाही दूँगा” (मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ)। इस भजन ने मुझ पर गहरा असर डाला और जितना अधिक मैंने इसे गाया, उतना ही अधिक मेरा हौसला बढ़ गया। सीसीपी द्वारा क्रूरतापूर्वक सताए जाने के बाद ही मैंने उसका परमेश्वर-विरोधी, क्रूर, राक्षसी सार साफ देखा। परमेश्वर के विश्वासियों के रूप में हम जीवन के सही मार्ग पर चलते हैं, सुसमाचार प्रचार करते हैं, परमेश्वर के लिए गवाही देते हैं और दूसरों को परमेश्वर का उद्धार पाने देते हैं। यह एक न्यायपूर्ण कार्य है, फिर भी सीसीपी उन विश्वासियों को गिरफ्तार करती है और सताती है, उन्हें तब तक प्रताड़ित करती है जब तक कि वे मरने के कगार पर न पहुँच जाएँ ताकि वे परमेश्वर के साथ विश्वासघात कर सकें और सत्ता का इस्तेमाल करने और लोगों पर हमेशा के लिए नियंत्रण रखने का सीसीपी का लक्ष्य पूरा कर सकें। सीसीपी राक्षसों के एक गिरोह से अधिक कुछ नहीं है जो परमेश्वर और सत्य से घृणा करते हैं! जब मैंने देख लिया कि सीसीपी वाकई कितनी घृणित और दुष्ट है तो मैंने पूरे दिल से उससे घृणा की, उसे छोड़ दिया और कभी भी उसके आगे न झुकने का संकल्प लिया!
अगले ही दिन जब मुख्य कैदी ने देखा कि मेरी छाती का मांस जलने से कितना क्षत-विक्षत हो गया है तो वह थोड़ा चिंतित हो गया और उसने अन्य कैदियों से कहा, “हम उसे और अधिक यातना नहीं दे सकते। अगर हम उसे मार डालते हैं तो दोष हम पर लगाया जाएगा और हमारी सजा बढ़ा दी जाएगी।” जब मैंने यह सुना तो मुझे लगा कि परमेश्वर ने मेरे लिए एक रास्ता खोल दिया है और मैंने चुपचाप उसका धन्यवाद किया। आखिरकार पुलिस मुझे दोषी ठहराने के लिए कोई सबूत नहीं ढूँढ़ पाई, लेकिन मुझ पर “सामाजिक व्यवस्था बिगाड़ने” का आरोप लगाने पर अड़ गई, जिसके लिए मुझे 75 दिनों की जेल की सजा सुनाई गई।
मैंने सीसीपी के हाथों भयानक पीड़ा और उत्पीड़न सहा, लेकिन परमेश्वर के वचनों ने हर कदम पर मेरा प्रबोधन और मार्गदर्शन किया, मुझमें आस्था और शक्ति का संचार किया और यह सुनिश्चित किया कि मैं इन कष्टों के दौरान अडिग रह सकूँ। परमेश्वर की सुरक्षा और उसके वचनों के मार्गदर्शन के बिना वे मुझे यातनाएँ देकर कभी भी मौत के घाट उतार सकते थे। साथ ही मैं यह भी देख पाया कि परमेश्वर किस तरह सभी चीजों पर शासन करता है और संप्रभुता रखता है। शैतान चाहे कितना भी क्रूर और निरंकुश क्यों न हो, वह परमेश्वर का पराजित प्रतिद्वंद्वी मात्र है। जैसा कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन कहते हैं : “शैतान चाहे जितना भी ‘सामर्थ्यवान’ हो, चाहे वह जितना भी दुस्साहसी और महत्वाकांक्षी हो, चाहे नुकसान पहुँचाने की उसकी क्षमता जितनी भी बड़ी हो, चाहे मनुष्य को भ्रष्ट करने और लुभाने की उसकी तकनीकें जितनी भी व्यापक हों, चाहे मनुष्य को डराने की उसकी तरकीबें और योजनाएँ जितनी भी चतुराई से भरी हों, चाहे उसके अस्तित्व के रूप जितने भी परिवर्तनशील हों, वह कभी एक भी जीवित चीज सृजित करने में सक्षम नहीं हुआ, कभी सभी चीजों के अस्तित्व के लिए व्यवस्थाएँ या नियम निर्धारित करने में सक्षम नहीं हुआ, और कभी किसी सजीव या निर्जीव चीज पर शासन और नियंत्रण करने में सक्षम नहीं हुआ। ब्रह्मांड और आकाश के भीतर, एक भी व्यक्ति या चीज नहीं है जो उससे पैदा हुई हो, या उसके कारण अस्तित्व में हो; एक भी व्यक्ति या चीज नहीं है जो उसके द्वारा शासित हो, या उसके द्वारा नियंत्रित हो। इसके विपरीत, उसे न केवल परमेश्वर के प्रभुत्व के अधीन रहना है, बल्कि, परमेश्वर के सभी आदेशों और आज्ञाओं को समर्पण करना है। परमेश्वर की अनुमति के बिना शैतान के लिए जमीन पर पानी की एक बूँद या रेत का एक कण छूना भी मुश्किल है; परमेश्वर की अनुमति के बिना शैतान धरती पर चींटियों का स्थान बदलने के लिए भी स्वतंत्र नहीं है, परमेश्वर द्वारा सृजित मानव-जाति की तो बात ही छोड़ दो। परमेश्वर की दृष्टि में, शैतान पहाड़ पर उगने वाली कुमुदनियों से, हवा में उड़ने वाले पक्षियों से, समुद्र में रहने वाली मछलियों से, और पृथ्वी पर रहने वाले कीड़ों से भी तुच्छ है। सभी चीजों के बीच उसकी भूमिका सभी चीजों की सेवा करना, मानव-जाति की सेवा करना और परमेश्वर के कार्य और उसकी प्रबंधन-योजना की सेवा करना है। उसकी प्रकृति कितनी भी दुर्भावनापूर्ण क्यों न हो, और उसका सार कितना भी बुरा क्यों न हो, केवल एक चीज जो वह कर सकता है, वह है अपने कार्य का कर्तव्यनिष्ठा से पालन करना : परमेश्वर के लिए सेवा देना, और परमेश्वर को एक विषमता प्रदान करना। ऐसा है शैतान का सार और उसकी स्थिति। उसका सार जीवन से असंबद्ध है, सामर्थ्य से असंबद्ध है, अधिकार से असंबद्ध है; वह परमेश्वर के हाथ में केवल एक खिलौना है, परमेश्वर की सेवा में रत सिर्फ एक मशीन है!” (वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है I)।