55. जब जेल जाकर आई जागृति
मैं कम्युनिस्ट पार्टी का एक वरिष्ठ सदस्य हुआ करता था। हमारा परिवार गरीब किसानों का परिवार हुआ करता था लेकिन सरकार ने हमें जमीन दी, एक नया घर दिया, इसलिए मुझे लगता था कि कम्युनिस्ट पार्टी का शुक्रगुजार रहना चाहिए। कम्युनिस्ट पार्टी के प्रचार से गहराई से प्रभावित होने के कारण मैं पार्टी को पूजने लगा और मैंने तीस साल से ऊपर ग्राम कैडर के रूप में सेवा की। उस दौरान मैंने जरा भी गिला-शिकवा किए बिना बड़ी-बड़ी जिम्मेदारियाँ उठाईं और कैडर के रूप में अपने कर्तव्यों के कारण मुझे अक्सर अपने घर की खेती-बाड़ी के कामकाज की अनदेखी करनी पड़ती थी। पार्टी के लिए योगदान देने के कारण मुझे खूब मान-सम्मान मिलता था और अंततः मुझे “उन्नत कैडर” और “उन्नत पार्टी सदस्य” की उपाधियों से सम्मानित किया गया। ये सम्मान मिलने के बाद मैं पार्टी के प्रति और ज्यादा वफादार बन गया। आस्था में प्रवेश करने के बाद मुझे लगा कि मुझे न सिर्फ अपने विश्वास का पक्का होना चाहिए, बल्कि पार्टी के अंदर अपने सारे कार्य भी अच्छे ढंग से करते रहने की जरूरत है। जब मुझे सीसीपी ने दो बार गिरफ्तार कर यातनाएँ दीं और नतीजतन मैं आखिरकार हमेशा के लिए लंगड़ा हो गया, तब जाकर मुझ भूतपूर्व वरिष्ठ पार्टी सदस्य को होश आया।
मुझे आस्था में आए एक साल ही हुआ था कि जब अप्रैल 2004 में भाई-बहनों की सभा की मेजबानी करने के लिए पुलिस ने मुझे गिरफ्तार कर लिया। दो अफसर मुझे एक स्थानीय प्रांतीय सरकारी दफ्तर ले गए और मुझसे तहकीकात करने लगे। उनमें से एक ने कहा, “हमें सब कुछ ईमानदारी से बता दोगे तो तुम्हारे लिए बेहतर रहेगा। जब तक तुम सर्वशक्तिमान परमेश्वर में अपनी आस्था के बारे में साफ-साफ बताते रहोगे एक कैडर के तौर पर तुम काम करते रह सकते हो। अगर नहीं बताओगे और हमें सख्ती करनी पड़ी तो हमें दोष मत देना!” मैंने मन में सोचा, “मैंने सिर्फ एक सभा की और परमेश्वर के वचन पढ़े, मैंने कानून के खिलाफ कुछ भी नहीं किया है। यही नहीं, मैं बरसों से एक कैडर के रूप में सेवा दे रहा हूँ, मैंने पार्टी के लिए भरसक काम किया और कड़ी मेहनत की, भले ही मुझे हमेशा इसका सिला नहीं मिला। यह सब देखते हुए मुझे विश्वास है कि ये मेरा कुछ नहीं बिगाड़ेंगे।” इसलिए मैंने जवाब दिया, “परमेश्वर में विश्वास करना कोई कानून के खिलाफ तो है नहीं। मुझे परवाह नहीं है कि मैं कैडर के रूप में सेवा करता हूँ या नहीं।” यह देखकर एक अफसर क्रूरतापूर्ण ढंग से फुफकारने लगा, “तुम अपनी जिद पकड़े रहो, फिर देखना हम तुमसे कैसे निपटते हैं!” इसके बाद उन्होंने मेरे घर पर तो छापा मारा ही, मेरी गंभीर रूप से बीमार पत्नी को भी ले गए। उन्होंने मेरे “उन्नत पार्टी सदस्य” के प्रमाणपत्रों को जमीन पर बिछा दिया और कहा, “कम्युनिस्ट पार्टी का एक प्रतिष्ठित सदस्य होकर तुम कैसे परमेश्वर में विश्वास कर सकते हो? यह कम्युनिस्ट पार्टी के सीधे खिलाफ है!” उस दोपहर पुलिस ने मुझसे और मेरी पत्नी से अलग-अलग पूछताछ की। राष्ट्रीय सुरक्षा ब्रिगेड के पूछताछ कक्ष में सुरक्षा कोर का टीम अगुआ गुस्से में चीखा, “तुम्हारी कलीसिया का अगुआ कौन है? तुम किसके संपर्क में हो?” मैं कुछ बोलता, इससे पहले ही उसने मेरे बाल पकड़े और सिर कुर्सी पर दे पटका। मैं फर्श पर जा गिरा, मेरा सिर चकराने लगा और आँखों में अँधेरा छा गया। मैं यह जानता था कि सीसीपी ने लोगों को पीटने के लिए पुलिस को अधिकार दिया है और पुलिस को पूरा अभयदान मिला है, इसलिए मैं थोड़ा-सा डर गया और चिंतित हो गया कि ये लोग मेरे साथ न जाने क्या करेंगे। मैंने परमेश्वर को पुकारा, मुझे बचाने की विनती की ताकि मैं अपनी गवाही में अडिग रहूँ। प्रार्थना के बाद मुझे परमेश्वर के वचनों का एक अंश याद आया : “मैं तेरा सहारा और तेरी ढाल हूँ, और सब कुछ मेरे हाथों में है। तो फिर तुझे किस बात का डर है?” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 9)। वास्तव में, पुलिस चाहे जितनी बर्बर क्यों न हो, वे सभी परमेश्वर के हाथों में थे। परमेश्वर मेरा सुरक्षा कवच था, इसलिए मुझे किसी चीज का डर नहीं था। जब तक मैं ईमानदारी से परमेश्वर के आसरे रहता, तब तक ऐसी कोई अग्नि-परीक्षा नहीं थी जिससे मैं बच नहीं पाता। परमेश्वर के वचनों ने मुझे आस्था और ताकत दी और मेरा दर्द कम हो गया। मेरा फोन खँगालते हुए दूसरे प्रांतों के भाई-बहनों के फोन नंबर और एरिया कोड हाथ लगने पर अफसर ने कहा, “सिर्फ इसी आधार पर तुम्हें आठ-दस साल की सजा हो सकती है।” मैंने मन ही मन सोचा, “परमेश्वर में विश्वास रखकर मैं कुछ भी गलत नहीं कर रहा हूँ और मैंने कोई कानून नहीं तोड़ा है। आखिर किस कानून के आधार पर मुझे आठ-दस साल की सजा हो सकती है? तुम मुझे चाहे जो भी सजा दे दो, मैं अपने भाई-बहनों से कभी विश्वासघात नहीं करूँगा।” यह देखकर कि मैं मुँह नहीं खोलने वाला, अफसर मुझे हिरासत केंद्र में ले गए।
हिरासत केंद्र में ले जाकर अफसरों द्वारा मुझसे लगातार पूछताछ की गई और दबाव डाला गया कि मैं अपने भाई-बहनों को धोखा दे दूँ, लेकिन मैं उनके सामने टूटा नहीं। मई 2004 में एक अफसर ने मुझे एक कागज पर दस्तखत करने को कहा, जो श्रम के जरिए शैक्षिक सुधार की अधिसूचना थी। उन्होंने मुझ पर यह झूठा आरोप लगाया कि मैं “सामाजिक शांति भंग” कर रहा हूँ और मुझे श्रम के जरिए शैक्षिक सुधार की ढाई साल की सजा सुनाई। यह सुनकर मैं अफसर पर भड़क गया, “परमेश्वर में विश्वास कर मैंने कौन-सा कानून तोड़ा है? मुझे गिरफ्तार क्यों किया गया? और इतनी बड़ी सजा क्यों दी गई है?” लेकिन ऐसा लगा कि वह मेरी पीड़ा का मजा ले रहा है और बोला, “तुम अब भी अपना अपराध नहीं कबूलोगे? तो मुझे लगता है कि तुम सस्ते में छूट गए हो। सभा की मेजबानी करना अपराधियों को शरण देने जैसा है और सीसीपी का सीधा विरोध है। इससे तुम एक राजनीतिक अपराधी बन गए हो।” उस रात मैं यही सोचता रहा कि सिर्फ परमेश्वर पर विश्वास रखने के लिए मुझे इतनी भारी सजा क्यों सुनाई गई है। सरकार भले ही कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्यों को धर्म का पालन करने से रोकती है, क्या यह देखते हुए मुझे छूट नहीं मिल सकती कि मैं बरसों से एक कैडर हूँ और एक उन्नत सदस्य का सम्मान प्राप्त कर चुका हूँ? इस अहसास के बाद मैं सीसीपी से बहुत निराश हो गया और मुझे अफसोस हुआ कि मैंने इतने कर्तव्यनिष्ठ होकर अतीत में उसकी सेवा की है। मेरे साथ पकड़े गए दो अन्य भाइयों को तो और भी भारी सजा सुनाई गई। मैं आपा खो बैठा और समझ ही नहीं पाया कि परमेश्वर में विश्वास रखने वालों से सीसीपी इतनी नफरत क्यों करती है। चीन में अपनी आस्था का पालन करना इतना कठिन था—इसलिए परमेश्वर के इस कथन में कोई आश्चर्य नहीं : “बड़ा लाल अजगर परमेश्वर को सताता है और परमेश्वर का शत्रु है, और इसीलिए, इस देश में, परमेश्वर में विश्वास रखने के कारण लोगों को अपमान और अत्याचार का सामना करना पड़ता है” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, क्या परमेश्वर का कार्य उतना सरल है जितना मनुष्य कल्पना करता है?)। जब तथ्य मेरे सामने रखे गए, केवल तब जाकर मुझे कुछ जागरूकता आनी शुरू हुई। मैंने देखा कि सीसीपी परमेश्वर से भारी नफरत करती है और उसका तीखा प्रतिरोध करती है। तुम पार्टी के लिए चाहे जैसे सेवा या त्याग कर लो, अगर तुम परमेश्वर में विश्वास रखते हो तो वह तुम्हें आसानी से छोड़ेगी नहीं। ये लोग वास्तव में परमेश्वर-प्रतिरोधी राक्षस हैं! उस समय जब अफसर आसपास नहीं था तो एक भाई ने चुपचाप मेरे साथ संगति करते हुए कहा, “परमेश्वर की अनुमति से ही हम गिरफ्तार हुए हैं। यह विकट अग्नि-परीक्षा हमारे विश्वास को पूर्ण बनाने में ज्यादा सक्षम है। हमें अपनी गवाही में अडिग रहने के लिए परमेश्वर पर भरोसा करना चाहिए।” तब मुझे एहसास हुआ कि परमेश्वर की अनुमति से ही मुझे श्रम के जरिए शैक्षिक सुधार की सजा सुनाई गई थी। परमेश्वर इस अग्नि-परीक्षा का इस्तेमाल मेरी आस्था को पूर्ण बनाने के लिए कर रहा था। जब मैं परमेश्वर का इरादा समझ गया तो मुझे लगा कि मुझमें नए संकल्प का संचार हुआ और अपनी सजा को लेकर मेरी चिंता मिट गई। अगर मुझे ढाई साल की सजा भुगतनी ही थी तो फिर यही सही! मैंने परमेश्वर पर भरोसा किया और विश्वास रखा कि वह मुझे अडिग रहने की शक्ति देगा।
श्रम शिविर में हमसे मशीनों की तरह काम कराया गया। यहाँ आए अभी ज्यादा समय नहीं हुआ था कि एक अफसर ने हमें झिड़का : “नियमों के अनुसार तुम्हारे पास मानव अधिकार हैं, लेकिन हकीकत में तुम्हारा कोई मानव अधिकार नहीं है। हमारा हुक्म मानते रहो और जैसा कहा जा रहा है वैसा करो! यहाँ बहस या समझौता करने की कोई गुंजाइश नहीं है और तुम कोई भी माँग या आग्रह नहीं कर सकते! तुम्हें यह कहने की अनुमति नहीं है कि तुम असहमत हो, कि तुम्हें भारी सजा मिली है या कि तुम्हें यहाँ नहीं होना चाहिए। और यह कहने की जुर्रत मत करना, ‘यहाँ कोई स्वतंत्रता नहीं है,’ ‘यहाँ जिंदगी कठिन है’ या ‘शारीरिक श्रम थकाऊ है,’ आदि। ऐसी कोई बात नहीं कह सकते हो। हुक्म का पालन करो!” श्रम शिविर में कोई आजादी नहीं थी। शिविर में पहले महीने के बाद मुझे ईंट कारखाने में तैनात कर दिया गया। ईंट भट्ठे में तापमान करीब 50° सेल्सियस (122° फारेनहाइट) रहता था। भट्ठे से निकालते समय ईंटें आग में जल रही होती थीं और झुलसे बिना उनके पास जाने का कोई तरीका नहीं था। शिविर के अफसर हमसे जबरन काम कराते थे और हमें खराब सुरक्षा के रूप में गीले फटे हुए सूती कपड़े पहनने को मजबूर करते थे। ईंट कारखाने में ईंटें बनाने के लिए कोयला जलाना पड़ता था और पूरा कारखाना धुएँ से भरा रहता था। लिहाजा, हम हमेशा गंदे रहते थे, हमसे बदबू आती थी और हम सिर से पैर तक कालिख में पुते रहते थे। परमेश्वर के विश्वासियों के साथ वे खासकर सख्ती बरतते थे। हर रोज हमें लगातार दस घंटे से ज्यादा कड़ी मेहनत और गंदे काम करने को बाध्य किया जाता था। अगर हमारी रफ्तार मंद पड़ती थी तो अफसर हम पर चीखते, “तेजी से काम करो, जल्दी-जल्दी हाथ चलाओ!” दिन बीतते-बीतते मैं इतना थक जाता था और मेरी पीठ में इतना दर्द होता था कि मैं जमीन पर लेट ही पाता था, मेरी हिलने-डुलने की इच्छा तक नहीं होती थी। यही नहीं, हमें कभी भी भरपेट खाना नहीं दिया जाता था, इसलिए मैं कमजोर होता गया, मुझमें ताकत नहीं बची थी और अक्सर मेरा सिर घूमता रहता था। रात को अपने बिस्तर पर लेटकर मैं सोचता रहता था, “बड़ा लाल अजगर हमसे इंसानों की तरह पेश नहीं आता है, हमसे इस तरह का भारी श्रम करवाता है। मैं पचास साल से ऊपर का हो चुका हूँ और अगर यह जारी रहा तो मुझे यकीन नहीं कि मैं ढाई साल नजरबंदी को काट पाऊँगा!” ये विचार आने पर मैं थोड़ा-सा मायूस हो जाता था, इसलिए मैं मौन होकर परमेश्वर को पुकारकर कहता था, “हे परमेश्वर! यहाँ की जिंदगी बहुत कठिन है। मुझे चिंता है कि यहाँ की जिंदगी मैं नहीं झेल पाऊँगा। हे परमेश्वर! मुझे ताकत और आस्था दे ताकि मैं यहाँ जेल में अपने लंबे समय को जी सकूँ।” प्रार्थना के बाद मुझे समझ में आया कि परमेश्वर के वचन ही मेरी जीवनशक्ति हैं और मुझे मजबूत बनने के लिए परमेश्वर के वचनों पर भरोसा करना होगा। मेरे पास पढ़ने के लिए परमेश्वर के वचन उपलब्ध नहीं थे और मुझे केवल कुछ भजन ही याद थे, इसलिए मुझे यह सुनिश्चित करना था कि मैं उन्हें भूलूँ नहीं। रात में मैं कंबल से अपना सिर ढककर मन-ही-मन चुपचाप परमेश्वर के भजन बुदबुदाता था और जो भजन मुझे याद आते उन्हें अपनी उंगलियों पर गिना करता था। हर बार जब भी मैं भजन गाता था, मुझे बहुत प्रोत्साहन मिलता था। एक भजन इस प्रकार है : “आस्था एक ही लट्ठे से बने पुल की तरह है : जो लोग हर हाल में जीवन जीने की लालसा से चिपके रहते हैं उन्हें इसे पार करने में परेशानी होगी, परन्तु जो आत्म बलिदान करने को तैयार रहते हैं, वे बिना किसी फ़िक्र के, मज़बूती से कदम रखते हुए उसे पार कर सकते हैं” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 6)। मुझे एहसास हुआ कि परमेश्वर इस अग्नि-परीक्षा का इस्तेमाल हमारी आस्था को पूर्ण बनाने के लिए कर रहा है। मुझे विश्वास था कि परमेश्वर मेरे साथ खड़ा है, इसलिए ऐसी कोई कठिनाई नहीं है जिस पर मैं विजय न पा सकूँ। मैंने यह भजन भी गाया : “इंसान के दुखों का अनुभव करता है परमेश्वर और उनकी ताड़ना में उनके साथ खड़ा रहता है। इंसान के जीवन के बारे में हर घड़ी सोचता है परमेश्वर। मानवता को सर्वाधिक प्रेम सिर्फ परमेश्वर करता है। अस्वीकृति का दर्द खामोशी से सह लेता है वह और कष्टों में देता है इंसान का साथ” (मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ, सर्वशक्तिमान परमेश्वर का आना कितना अद्भुत है)। यह भजन बहुत ही प्रेरणादायी और भावुक करने वाला था। मेरे जेल में होने के बावजूद परमेश्वर मेरे साथ था इसलिए मेरे पास यह आस्था और ताकत थी कि इन ढाई सालों का सीधा सामना कर सकूँ। जीवन चाहे कितना ही कठिन या थकाऊ हो, मुझे आगे बढ़ने के लिए परमेश्वर पर भरोसा करना था। एक बार मैंने अपनी सजा पूरी कर ली तो मुझे पता था कि मुझे घर जाकर परमेश्वर के और अधिक वचन पढ़ने चाहिए और अपनी आस्था का अच्छी तरह अभ्यास करना चाहिए।
जून 2004 में मौसम बहुत ही गर्म हो गया। एक दिन मुझे लगा कि मेरा सिर थोड़ा-सा घूम रहा है, हाथ-पैर ढीले पड़ रहे हैं और जब मैं ईंटों के साढ़े तीन फुट से भी ऊँचे चट्टे से उतर रहा था तो मैं अचानक डगमगा गया और धम से जमीन पर गिर पड़ा, मैं ईंटों के बिखरे हुए ढेर पर पीठ के बल गिरा था। गिरते ही मैंने अपने कूल्हे और बाईं जाँघ में तीखा दर्द महसूस किया। दर्द इतना तेज था कि मैं बहुत घबरा गया, मेरा दिल तेजी से धड़कने लगा और मैं एक गेंद की तरह सिकुड़ गया, खड़ा होने में असमर्थ। जब एक अफसर ने मुझे वहाँ गिरा पाया तो उसने यह देखने की जहमत नहीं उठाई कि मेरे साथ कुछ गड़बड़ तो नहीं हुई है, वह सिर्फ चीखता रहा, “उठो और काम करते रहो!” मुझे इतना दर्द था कि मैं हिल नहीं पाया और साँस आने तक दो मिनट और उसी तरह जमीन पर पड़ा रहा। मुझे पिटाई का डर था, इसलिए मैं असहनीय से दर्द से जूझते हुए धीरे-धीरे जमीन से उठा ताकि काम कर सकूँ। उस रात मैं दोहरा होकर दर्द से कराहते हुए बिस्तर पर लेटा रहा और अपने बाईं टाँग को जरा-सा भी हिलाने की हिम्मत नहीं जुटा पाया, उसमें भयंकर दर्द था मानो हड्डी टूट गई हो। दर्द के मारे मैं सारी रात सो नहीं सका। उस समय किसी ने भी मेरी परवाह नहीं की और मैं निराशा की भावना से घिरा रहा। मुझे यह चिंता भी थी, “यह एक गंभीर चोट है—अगर मैं वाकई अपाहिज हो गया तो भविष्य में अपने परिवार का भरण-पोषण कैसे करूँगा? ...” इस बारे में मैंने जितना ज्यादा सोचा, उतना ही परेशान होता गया, इसलिए आँखों में आँसू भरकर मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, “हे परमेश्वर! मैं नहीं जानता कि फिर कभी उठ पाऊँगा या नहीं। मेरे पास एक तुम्हारा ही सहारा है, मुझे आस्था और शक्ति दो।” प्रार्थना के बाद मैंने परमेश्वर के इन वचनों को याद किया : “मनुष्य का भाग्य परमेश्वर के हाथों से नियंत्रित होता है। तुम स्वयं को नियंत्रित करने में असमर्थ हो : हमेशा अपनी ओर से भाग-दौड़ करते रहने और व्यस्त रहने के बावजूद मनुष्य स्वयं को नियंत्रित करने में अक्षम रहता है। यदि तुम अपने भविष्य की संभावनाओं को जान सकते, यदि तुम अपने भाग्य को नियंत्रित कर सकते, तो क्या तुम तब भी एक सृजित प्राणी होते?” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, मनुष्य के सामान्य जीवन को बहाल करना और उसे एक अद्भुत मंज़िल पर ले जाना)। वाकई, हमारी किस्मत पूरी तरह परमेश्वर के हाथ में होती है। यह परमेश्वर को तय करना था कि मैं अपाहिज हो जाऊँगा या नहीं, इसलिए इस चिंता में घुलने की कोई तुक नहीं थी क्योंकि इससे मैं और ज्यादा परेशान ही होता। मैं खुद को परमेश्वर के हाथों में सौंपने के लिए तैयार था—चाहे जो भी हो और चाहे मैं वास्तव में अपाहिज क्यों न हो जाऊँ, मैं अंत तक परमेश्वर का अनुसरण करूँगा! बाद में मैंने अफसरों के सामने बीमारी की छुट्टी के लिए अर्जी दी लेकिन उन्होंने मेरा आवेदन खारिज कर दिया, इसलिए भयंकर दर्द सहने के सिवाय मेरे पास कोई चारा नहीं था, मैं अपनी बाईं जाँघ को बाएँ हाथ से दबाकर लचकते हुए कारखाने जाया करता था। कारखाने में एक अफसर ने मेरी हालत देखकर क्रूरतापूर्ण ढंग से कहा, “तुम बस काम से छुट्टी पाने के लिए चोट लगने का नाटक कर रहे हो! परमेश्वर में विश्वास रखना सीसीपी का विरोध है और इससे तुम एक राजनीतिक अपराधी साबित होते हो। यह चोरी से भी बुरा अपराध है। तुम सताए जाने के ही लायक हो!” मुझे गुस्सा आ गया—वे सिर्फ इसी वजह से मुझे यातना और गाली दे रहे थे कि मैं परमेश्वर में विश्वास करता हूँ। वे वाकई दुष्ट थे। मुझे परमेश्वर के वचनों का यह अंश याद आया : “धार्मिक स्वतंत्रता? नागरिकों के वैध अधिकार और हित? ये सब पाप को छिपाने की चालें हैं! ... परमेश्वर के कार्य में ऐसी अभेद्य बाधा क्यों खड़ी की जाए? परमेश्वर के लोगों को धोखा देने के लिए विभिन्न चालें क्यों चली जाएँ? वास्तविक स्वतंत्रता और वैध अधिकार एवं हित कहाँ हैं? निष्पक्षता कहाँ है? आराम कहाँ है? गर्मजोशी कहाँ है? परमेश्वर के लोगों को छलने के लिए धोखे भरी योजनाओं का उपयोग क्यों किया जाए? परमेश्वर के आगमन को दबाने के लिए बल का उपयोग क्यों किया जाए?” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, कार्य और प्रवेश (8))। “यही समय है : मनुष्य अपनी सभी शक्तियाँ लंबे समय से इकट्ठा करता आ रहा है, उसने इसके लिए सभी प्रयास किए हैं, हर कीमत चुकाई है, ताकि वह इस दुष्ट के घृणित चेहरे से नकाब उतार सके और जो लोग अंधे हो गए हैं, जिन्होंने हर प्रकार की पीड़ा और कठिनाई सही है, उन्हें अपने दर्द से उबरने और इस दुष्ट बूढ़े शैतान से विद्रोह करने दे” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, कार्य और प्रवेश (8))। परमेश्वर के वचनों के जरिए मैंने परमेश्वर के प्रति सीसीपी के वैमनस्य के शैतानी सार को पहचान लिया। सीसीपी महान, गौरवशाली और अचूक होने का दावा करती है, वह धार्मिक स्वतंत्रता और वैध अधिकार और हितों का समर्थन करने का दावा करती है, लेकिन ये सारे भ्रामक और शैतानी शब्द हैं। सीसीपी के हाथों गिरफ्तारी और उत्पीड़न का व्यक्तिगत अनुभव कर चुकने के बाद मैंने देख लिया कि वह लोगों को धोखा देती है और उनके साथ बर्बरता करती है। सीसीपी कलुषित और बुरी है—ये लोग सही मायने में राक्षस हैं। परमेश्वर के वचनों ने यह सारा का सारा इतनी सटीकता और व्यावहारिकता से उजागर कर दिया! सीसीपी द्वारा परमेश्वर में विश्वास रखने वालों को अंधाधुंध गिरफ्तार कर यातनाएँ देने का कारण यह है कि कि वह उन्हें परमेश्वर को नकारने और धोखा देने के लिए बाध्य करना चाहती है, लेकिन मैं उनके सामने कभी हार नहीं मानने वाला हूँ। मुझे खुद से इस बात पर नफरत होने लगी कि मैं इतना बड़ा धोखा खा गया सीसीपी को कोई महान शुभचिंतक मानकर आँख मूँदकर उसकी आराधना करने लगा और उसका सिर्फ इसलिए आभार मानता रहा कि उसने मुझे थोड़ी-सी जमीन दे दी थी। सारी चीजें परमेश्वर ने बनाई हैं और मुझे जो जमीन मिली वह भी परमेश्वर की ही है। मैंने कैसे परमेश्वर के अनुग्रह को गलती से दानवी शैतान का उपकार मान लिया? तब जाकर मुझे यह एहसास हुआ कि मैं अब तक हमेशा जिसकी आराधना करता रहा और आभार मानता रहा, वह एक राक्षस है जिसने परमेश्वर का प्रतिरोध किया है और सक्रियता से मुझे नरक में खींचने की कोशिश कर रहा है!
नौ दिन गुजर गए, तब जाकर जेल का एक डॉक्टर मेरी जाँच करने आया और उसने बताया कि मेरी जाँघ की हड्डी का ऊपरी सिरा गलने लगा है। यह निदान सुनते ही मैंने सोचा, “इतनी गंभीर बीमारी है? अगर मैं वाकई अपाहिज हो गया तो क्या पूरी तरह बेकार नहीं हो जाऊँगा? फिर तो मेरी जिंदगी खत्म समझो!” डाक्टर ने बस मुझे चंद दिनों की दवाई दी, लेकिन यह न केवल पूरी तरह बेअसर साबित हुई, असल में मेरा दर्द और बढ़ गया। तब तक मेरा चलना-फिरना भी बंद हो गया—बाथरूम जाने की जरूरत पड़ने पर मुझे कमर से झुककर और दीवार पकड़कर छोटे-छोटे कदम रखकर घिसटना पड़ता था। बाथरूम तक आने-जाने में जहाँ पहले मुझे चंद मिनट लगते थे, अब आधा घंटे से ऊपर समय लगने लगा। खाना लाने के लिए मुझे दूसरे कैदियों के भरोसे रहना पड़ता था और जब वे खाना लाना भूल जाते थे तो मुझे भूखे रहना पड़ता था या थोड़ा-सा पानी पीकर पेट की मरोड़ शांत करनी पड़ती थी। मैं बस अपने बिस्तर पर लेता रहता था, मेरा वक्त काटे नहीं कटता था और मैं पीड़ा में लोटता रहता था। मैं सोचता था, “दवाई काम नहीं कर रही है और इतनी बुरी हालत होने के बावजूद वे मुझे अस्पताल नहीं जाने देंगे। कहीं मैं अंततः यहीं मर न जाऊँ...।” मैं जितना ज्यादा सोचता था उतना ही बुरा महसूस करता था और मेरी आँखों से आँसू बहने लगते थे। मैंने तो यहाँ तक सोच लिया कि अपनी जिंदगी खत्म कर समस्या की जड़ यहीं मिटा देता हूँ। तब मुझे अचानक याद आया कि हर चीज परमेश्वर के हाथ में है और मुझे परमेश्वर के भरोसे रहना है! मैंने निरंतर परमेश्वर को पुकारा और फिर परमेश्वर के वचनों के इस भजन को याद किया “बीमारी का आना परमेश्वर का प्रेम है” : “बीमारी की हालत में निराश न हो, अपनी खोज निरंतर जारी रखो और हिम्मत न हारो, और परमेश्वर तुम्हें रोशन और प्रबुद्ध करेगा। अय्यूब की आस्था कैसी थी? सर्वशक्तिमान परमेश्वर एक सर्वशक्तिशाली चिकित्सक है! बीमारी में रहने का मतलब बीमार होना है, परन्तु आत्मा में रहने का मतलब स्वस्थ होना है” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 6)। परमेश्वर के वचनों पर मनन करते हुए मेरे मन में शक्ति का संचार हो गया। हाँ, परमेश्वर सर्वशक्तिमान है और अगर मेरी उसमें आस्था हुई केवल तभी मैं उसके कर्मों की गवाही दे पाऊँगा। लेकिन अपनी पीड़ा के बीच मैंने अपना जीवन खत्म करने की इच्छा की—मुझे परमेश्वर में कोई सच्ची आस्था नहीं थी और मैं शैतान की हँसी का पात्र बन गया। मेरा आध्यात्मिक कद वास्तव में बहुत कम था। अगले कुछ दिनों तक मैंने अक्सर परमेश्वर से प्रार्थना की, भजन गुनगुनाए और इससे मेरी हिम्मत बढ़ी और मुझे प्रेरणा मिली। धीरे-धीरे मेरे शरीर को तोड़ देने वाला दर्द मिटने लगा। आखिरकार बारहवें दिन मुझे आगे की जाँच के लिए अस्पताल ले जाया गया। बीमारी गंभीर होने के कारण उन्होंने इलाज के लिए मुझे अस्थायी तौर पर जमानत पर छोड़ने का फैसला किया। मुझे ले जाने वाले अफसर ने एक झूठा बयान दर्ज कराया, दावा किया कि एक कक्षा में टीवी देखते हुए मैं एक पुरानी कुर्सी से गिर पड़ा था। जब मैंने यह स्पष्ट करने की कोशिश कि मैं दरअसल ईंट कारखाने में काम करते हुए गिरा तो अफसर ने डाँटते हुए कहा, “अगर तुम यह कहानी सुनाने पर अड़े रहे तो तुम्हें इलाज के लिए जमानत पर नहीं छोड़ा जाएगा। तुम्हें जेल में ही दर्द भोगते रहना पड़ेगा!” मुझे यह चिंता थी कि अगर मेरे इलाज में और देर हुई तो मैं अंततः अपाहिज हो जाऊँगा, इसलिए झूठे बयान पर दस्तखत करने के सिवाय मेरे पास कोई चारा नहीं था। घर लौटने पर मुझे सर्जरी के लिए ले जाया गया, लेकिन इलाज में बहुत ज्यादा देरी होने के कारण अंततः मैं स्थायी रूप से ही अपंग हो गया।
जब मैं अस्पताल से घर लौटा तो शुरुआत में बिस्तर पर ही पड़ा रहता था और चल-फिर नहीं सकता था और चम्मच से भोजन और दवाइयाँ खिलाने के लिए मैं अपनी पत्नी के भरोसे रहता था। घर लौटने के लगभग दो हफ्तों बाद प्रांत का उप पार्टी सचिव हमारे घर आया और मुझे दो कागज सौंपकर रूखे ढंग से बोला, “तुम्हारी पार्टी की सदस्यता समाप्त कर दी गई है, यहाँ हस्ताक्षर करो।” मैंने मन ही मन सोचा, “अच्छा है, मेरी सदस्यता खत्म कर दो! मैं निश्चित रूप से पार्टी के लिए अपना जीवन कुर्बान नहीं करना चाहता!” इसके साथ ही मैंने दृढ़ होकर सदस्यता खत्म करने के कागजात पर दस्तखत कर दिए। मैंने ग्राम कैडर के रूप में अपने तीस साल से ऊपर के कामकाज के बारे में सोचा। मैंने पार्टी का गुणगान किया था, वफादारी के साथ अपना सब कुछ दे दिया था और विभिन्न प्रकार के धोखे के माध्यम से लोगों की गाढ़ी कमाई को ऐंठा था। मैंने इतनी कड़ी मेहनत की कि अपने परिवार के खेतीबाड़ी के कामकाज के लिए भी समय नहीं निकाला, नतीजतन मेरी पत्नी बहुत ज्यादा काम करने से बीमार पड़ गई। पहले मुझे लगता था कि पार्टी का सदस्य होने के नाते मुझे पार्टी के प्रति वफादार रहना चाहिए। अगर मैंने गिरफ्तारी, यातना, पार्टी से निष्कासन और अपने कैडर का पद छिनने का अनुभव न किया होता तो जो कुछ मेरे पास था, मैं वह सब कुछ पार्टी पर लुटाता रहता। थोड़ी-सी पीड़ा भोगने और बाएँ पैर से अपंग होने के बावजूद मैंने सीसीपी के परमेश्वर-प्रतिरोधी राक्षसी सार की असलियत जान ली थी और अब वह मुझे गुमराह नहीं कर सकती थी या मेरी आँखों में धूल नहीं झोंक सकती थी। मैंने अपने पूरे दिल से सीसीपी से नफरत कर उसे त्याग दिया और खुद को पूरी तरह परमेश्वर के लिए समर्पित कर दिया। यह सब परमेश्वर के प्रेम और उद्धार का नतीजा था! उस रात जब मैंने अपनी पत्नी को वह सारी बात बताई जो मैंने जानी और सीखी थी और जब उसने देखा कि कैसे मैं बदल गया हूँ तो वह हँसते हुए बोली, “पहले तुम परमेश्वर का अनुसरण करना और पार्टी के प्रति वफादार बने रहना चाहते थे। अब जबकि तुम सीसीपी के सदस्य नहीं रहे तो हम अपनी सारी ऊर्जा सत्य का अनुसरण करने और अपने कर्तव्य निभाने में लगा सकते हैं।”
उस दौरान मेरी पत्नी को हमारे घर का सारा बोझ उठाने को मजबूर होना पड़ा था। उसे पहले से ही पेट की गंभीर बीमारी थी, इसके ऊपर अब मेरी देखभाल और घर का सारा कामकाज करने की अतिरिक्त जिम्मेदारी भी उसके ऊपर आ गई। कभी-कभी वह इतनी पस्त हो जाती थी कि जब वह मुझे खाना परोसने आती, तो मैं उसके हाथ काँपते हुए देखता। अपनी पत्नी को इस तरह देखना बहुत ही परेशान करने वाली बात थी और मैं अक्सर असहाय होकर रो पड़ता था। चार महीनों के बाद भी मैं अपना पैर नहीं उठा पा रहा था और सोचने लगा कि कहीं मैं स्थायी रूप से अपंग न हो जाऊँ। “अगर मैं वाकई अपंग हो गया तो आगे कैसे जिऊँगा? क्या मेरा जीवन वास्तव में खत्म नहीं हो चुका होगा?” मैं अपने घर का आधार स्तंभ हुआ करता था, लेकिन मैं पूरी तरह बेकार हो गया और बाथरूम जाने तक के लिए मुझे अपनी पत्नी के सहारे रहना पड़ता था। अपनी पत्नी के लिए मुझे बहुत अफसोस होता था और उसके लिए बस मैं एक बोझ बन गया था—इन विचारों के कारण मैं अपना जीवन खत्म करने की सोचने लगा। जब मेरी पत्नी मुझे खाना खिलाने आती थी तो मैं खाना निगलना नहीं चाहता था, मैं सोचता था कि भूखा रहकर खुद को मार डालूँगा। निराशा के गर्त में मैं बारम्बार परमेश्वर को पुकारता था और भरी आँखों से कहता था, “हे परमेश्वर! मैं इस समय बहुत दुखी हूँ। मेरे लिए कोई रास्ता खोलो, मुझे बचा लो...।” प्रार्थना के बाद मैं परमेश्वर के इन वचनों को याद करता था : “इन अंत के दिनों में तुम लोगों को परमेश्वर की गवाही देनी चाहिए। चाहे तुम्हारे कष्ट कितने भी बड़े क्यों न हों, तुम्हें बिल्कुल अंत तक चलना चाहिए, यहाँ तक कि अपनी अंतिम साँस पर भी तुम्हें परमेश्वर के प्रति निष्ठावान और उसके आयोजनों के प्रति समर्पित होना चाहिए; केवल यही वास्तव में परमेश्वर से प्रेम करना है, और केवल यही सशक्त और जोरदार गवाही है” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पीड़ादायक परीक्षणों के अनुभव से ही तुम परमेश्वर की मनोहरता को जान सकते हो)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे आस्था और ताकत दी और साथ ही मुझे शर्म और ग्लानि से भर दिया। थोड़ी-सी पीड़ा भोगने के बाद मैं अपने जीवन को खत्म करना चाहता था—भला यह कैसी गवाही थी? मैंने अय्यूब के प्रचंड परीक्षण के बारे में सोचा कि किस तरह अपने सारे बच्चे और संपत्ति खोने और पूरे शरीर पर फोड़े होने पर भी उसने परमेश्वर के नाम की स्तुति की और भयंकर पीड़ा भोगने के बावजूद एक शानदार गवाही दी। जबकि मैं बीमारी के कारण थोड़ी-सी पीड़ा भोगने पर ही नकारात्मक हो गया था। मैंने परमेश्वर का इरादा नहीं खोजा; बल्कि अपना जीवन ही खत्म कर देना चाहा। अगर परमेश्वर ने बिल्कुल सही समय पर मेरा प्रबोधन न किया होता तो मैं शैतान की साजिश का शिकार बन चुका होता। यह एहसास होने पर अपना जीवन समाप्त करने की मेरी इच्छा जाती रही और मैंने अपनी अंतिम साँस तक परमेश्वर का अनुसरण करने और उसकी गवाही देने का संकल्प लिया! एक महीने बाद मैं अचानक अपना बायाँ पैर फिर से उठाने में समर्थ हो गया। मुझे इतनी खुशी और उत्तेजना हुई कि मेरी आँखों से आँसू झरने लगे और मैं लगातार परमेश्वर को धन्यवाद देता रहा। बाद में धीरे-धीरे मैं फिर से चलने में भी सक्षम हो गया। मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं फिर से सीधा खड़ा हो पाऊँगा। यह सच में पूरी तरह परमेश्वर के कारण हुआ!
साल 2008 में “बीजिंग ओलिंपिक्स की तैयारी के मद्देनजर सामाजिक स्थिरता कायम रखने” के नाम पर सीसीपी ने फिर से कलीसिया का दमन शुरू कर दिया और वह पहले सजा पा चुके हर भाई-बहन को गिरफ्तार करने लगी। ओलिंपिक्स शुरू होने से एक दिन पहले श्रम शिविर के दो अफसर मेरे घर आए और मुझसे कहा कि मैंने श्रम शिविर से रिहाई के फॉर्म नहीं भरे थे और मुझे वांछित दस्तावेजों की प्रक्रिया पूरी करने के लिए उनके साथ जाना होगा। उन्होंने बताया कि इस पूरी प्रक्रिया में तीन दिन से ज्यादा समय नहीं लगेगा, इसलिए मैं उन पर विश्वास कर उनके साथ जाने के लिए तैयार हो गया। मैं यह देखकर ठगा रह गया कि जिसे तीन दिन का काम बताया जा रहा था वह चार महीनों की हिरासत साबित हुई। हिरासत के दौरान अधिकारियों ने मुझे मजबूर किया कि मैं एक धुँधली सी रोशनी वाले कारखाने में रोज 12 घंटे का शारीरिक श्रम करूँ। अगर मैं समय पर अपना काम पूरा नहीं करता था तो मुझे दंड दिया जाता था। अपने बाएँ पैर में पुरानी चोट के कारण मैं एक बार में करीब 20 मिनट ही बैठ पाता था, अगर मैं खड़ा न होऊँ तो मेरे पैर में खून का दौरा थम जाता था। दर्द घटाने के लिए मुझे अपनी बैठने की मुद्रा लगातार बदलनी पड़ती थी। साथ ही बेहद धुँधले माहौल में घंटों काम करने के कारण मेरी नजर बुरी तरह कमजोर पड़ने लगी। चार महीनों के बाद जब मेरी बेटी ने अपने सारे संपर्क खंगाल लिए तो आखिरकार मुझे रिहा कर अपने घर लौटने की इजाजत दी गई। जब मैं घर लौट आया तो एक अफसर आया और धमकाते हुए बोला, “हम तुम पर कड़ी नजर रखे हुए हैं। अगर हमें यह पता चल गया कि तुम फिर से अपनी आस्था का पालन कर रहे हो तो तुम्हें गिरफ्तार कर और बड़ी सजा दी जाएगी!” मैंने मन ही मन सोचा, “नासपीटे राक्षसो। मेरे शरीर पर तो तुम्हारा वश चल सकता है, लेकिन मेरे दिल पर नहीं चल सकता। भले ही मुझे दुबारा गिरफ्तार कर लिया जाए, मैं परमेश्वर में विश्वास करना जारी रखूँगा!”
मैंने पुराने दिनों को याद किया कि किस तरह पार्टी के लिए आधी जिंदगी हाड़तोड़ मेहनत करने के बावजूद इन्होंने मुझे स्थायी चोट दे डाली और इतना मजबूर किया कि कई मौकों पर मैंने अपनी जिंदगी खत्म तक कर डालने की सोची। ये तो परमेश्वर के वचन ही थे जिन्होंने मुझे आस्था और ताकत दी, जो मुझे मौत की कगार से कदम-दर-कदम वापस लाए, जिन्होंने मुझे बड़े लाल अजगर के बुरे सार को पहचानने की विवेकशीलता दी और मुझे दिखाया कि कैसे परमेश्वर ही मनुष्य के जीवन का स्रोत है, सिर्फ परमेश्वर ही मनुष्य जीवन को ले सकता है और सिर्फ परमेश्वर में विश्वास करना और उसका अनुसरण करना ही सबसे सार्थक होता है। इस बात को यह भजन “सबसे सार्थक जीवन” बखूबी बताता है : “तुम सृजित प्राणी हो—तुम्हें निस्संदेह परमेश्वर की आराधना और सार्थक जीवन का अनुसरण करना चाहिए। चूँकि तुम मानव प्राणी हो, इसलिए तुम्हें स्वयं को परमेश्वर के लिए खपाना और सारे कष्ट सहने चाहिए! आज तुम्हें जो थोड़ा-सा कष्ट दिया जाता है, वह तुम्हें प्रसन्नतापूर्वक और दृढ़तापूर्वक स्वीकार करना चाहिए और अय्यूब तथा पतरस के समान सार्थक जीवन जीना चाहिए। तुम सब वे लोग हो, जो सही मार्ग का अनुसरण करते हो, जो सुधार की खोज करते हो। तुम सब वे लोग हो, जो बड़े लाल अजगर के देश में ऊपर उठते हो, जिन्हें परमेश्वर धार्मिक कहता है। क्या यह सबसे सार्थक जीवन नहीं है?” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, अभ्यास (2))।