32. दूसरों की नाकामियों से सीखा सबक

डेज़ी, यूएसए

अक्तूबर 2022 में, वीडियो कार्य के दो सुपरवाइजर बर्खास्त कर दिए गए। क्योंकि अगुआ के बार-बार बताने के बावजूद उन्होंने इस काम में तत्परता नहीं दिखाई। उन्होंने बस आम काम देखे और समस्याएँ हल नहीं कीं न ही वीडियो निर्माण में हिस्सा लिया जिससे काम रुक गया। अगुआ बहुत नाराज़ हुआ और उसने कहा कि ऐसे लोग धूर्त और गैरजिम्मेदार होते हैं, काम से जी चुराते हैं और सुपरवाइजर होने लायक नहीं हैं, लिहाजा उसने उन्हें तुरंत ही बर्खास्त कर दिया। यह सुनकर मुझे धक्का लगा। मुझे लगता था कि वे सामान्य रूप से काम करते थे। भले ही वे थोड़े से अकुशल, निष्क्रिय थे और बोझ नहीं उठाते थे, लेकिन यह इतनी बड़ी बात तो नहीं थी। सभी कुछ हद तक ऐसे थे। क्या इसके लिए उन्हें वाकई बर्खास्त करना चाहिए था? बाद में, अगुआ ने पूछा कि हम आम तौर पर अपना काम कैसे करते हैं : क्या हम खुद को झोंक रहे हैं और वाकई मेहनत कर रहे हैं? हम जितने कुशल और कारगर हो सकते हैं, क्या भरसक उतने जतन कर रहे हैं? ये सवाल सुनकर मैं इतनी घबरा गई कि अपनी गरदन तक नहीं उठा सकी। मैं जानती थी कि इन मानकों पर मैं खरी नहीं उतरती हूँ और जब अगुआ को उन सुपरवाइजरों को “निठल्ले,” “कर्तव्य में गैर-जिम्मेदार,” और “काम में तत्परता न दिखाने वाले” के रूप में उजागर करते और उनका गहन-विश्लेषण करते सुना तो मेरी घबराहट और भी बढ़ गई। मुझे लगा कि मैं भी इसी तरह काम कर रहती आ रही हूँ। कुछ समय पहले ही, अगुआ ने मुझे वीडियो कार्य की खोज-खबर लेने को कहा था, शुरुआत में मैंने सिद्धांतों को खोजा, उससे संबंधित कौशल का अध्ययन किया और सोचा कि काम कैसे तेजी से पूरा कराया जाए। लेकिन कुछ दिन बाद ही मैं सोचने लगी : “वीडियो निर्माण का काम खासा जटिल है। मैंने अभी-अभी शुरुआत की है और काफी चीजों से वाकिफ नहीं हूँ; समस्याएँ तो रहेंगी ही। मैं जितना कर सकती हूँ, बस उतना करूँगी। बाद में अगुआ इसकी जाँच तो करेगा ही। अगर समस्याएँ हुईं भी तो वह समझ जाएगा।” लिहाजा मैं रोज तय ढर्रे पर काम करने लगी। वैसे तो मैं कहती थी कि काम जल्दी करना है लेकिन जब अगुआ ने दबाव नहीं डाला तो अनजाने ही हमारी कार्यक्षमता कम हो जाती थी। जो काम एक हफ्ते में हो सकता था, उसमें दुगना वक्त लगा जिस सिंचन कार्य का जिम्मा मुझ पर था, मैंने उसकी खोज-खबर लेनी भी बंद कर दी। कभी-कभी मुझे अपराध बोध होता, लेकिन मुझे लगता काम में ज्यादा देरी नहीं हो रही थी, इसलिए मैंने फिक्र नहीं की। बाद में अगुआ ने मुझे एक और काम का प्रभारी बना दिया, लेकिन मेरा रवैया वैसा ही रहा। बाहर से तो मैं व्यस्त नजर आती थी, लेकिन मैं न तो तत्परता दिखाती थी, न मैंने ज्यादा असल समस्याएँ हल कीं। कभी-कभी मैं सोचती : “मेरे जिम्मे काम ज्यादा है, इसलिए मेरी व्यस्तता ज्यादा होनी चाहिए, मुझे ज्यादा चीजों की चिंता होनी चाहिए, और मुझे ज्यादा दबाव भी महसूस करना चाहिए। तो मुझे ऐसा महसूस क्यों नहीं होता? दिन भर के काम के बाद भी निश्चिंत रहती हूँ।” मैंने और होशियारी से समय का उपयोग करने और दिनचर्या चुस्त करने की सोची, ताकि मेरी कार्य कुशलता बढ़ जाए और मैं ज्यादा काम करा सकूँ। लेकिन फिर सोचा, “मैं पहले ही काफी व्यस्त हूँ। खुद से इतनी उम्मीदें क्यों पालूँ?” इसलिए मैंने यह विचार त्याग दिया। उन दो सुपरवाइजरों की बर्खास्तगी तक मैंने अपने काम की नजाकत नहीं समझी। अगुआ ने काम के दो पैमाने तय कर रखे थे : हमें मन लगाकर अपना सब कुछ झोंकना था, और भरसक कार्यकुशल बनकर नतीजे देने थे। मैं दोनों ही मानकों में फिसड्डी साबित हो रही थी। अपने काम में मैं आम तौर पर धूर्त और बेपरवाह रहती थी। मेरे पास परमेश्वर का भय मानने वाला हृदय नहीं था, परमेश्वर के लिए निष्ठा होना तो दूर की बात है। मुझे इतना डर लगा कि बता नहीं सकती। अगर अगुआ को मेरे रवैये का पता लग गया, तो क्या बर्खास्तगी की बारी मेरी होगी? अगर मैंने अपने तौर-तरीके नहीं बदले तो किसी भी पल प्रकट हो सकती थी। मैं प्रार्थना करने परमेश्वर के सामने आई : “हे परमेश्वर, मैं कुछ दिनों से काम में ज्यादा ही धूर्तता कर रही हूँ। डर है कि एक दिन मुझे परकट कर हटा दिया जाएगा। लेकिन मुझे दिल में जो ज्यादा महसूस होता है वह है, भय, व्याकुलता और मुझे अपने भ्रष्ट स्वभाव का न तो सच्चा ज्ञान है, न ही इससे कोई नफरत करती हूँ। मुझे रास्ता दिखाओ ताकि खुद को समझ सकूँ और अपनी गलत दशा बदल पाऊँ।”

बाद में मैंने सोचा, “इन सुपरवाइजरों की बर्खास्तगी ने मुझे परमेश्वर से इतना क्यों डरा दिया, मैं उससे इतनी सावधान क्यों हूँ?” मुझे लगा, इसका एक कारण तो यह है कि मैंने उनकी समस्याओं के सार की असलियत नहीं जान पा रही थी। मैं सोचती थी कि उनके मसले इतने गंभीर नहीं हैं, इसलिए उनके साथ जो हुआ, मैं उसे वाकई स्वीकार नहीं सकी। मैंने इससे जुड़े परमेश्वर के वचन पढ़े। परमेश्वर के वचन कहते हैं : “परमेश्वर के सभी चुने हुए लोग अब अपने कर्तव्यों का पालन करने का अभ्यास कर रहे हैं, परमेश्वर लोगों के एक समूह को पूर्ण करने और दूसरे को हटाने के लिए उनके कर्तव्यों के प्रदर्शन का उपयोग करता है। तो यह कर्तव्य-प्रदर्शन ही है, जो हर तरह के व्यक्ति को प्रकट कर देता है, और हर तरह का कपटी, छद्म-विश्वासी और दुष्ट व्यक्ति अपने कर्तव्य-प्रदर्शन में प्रकट हो जाता और उसे हटा दिया जाता है। पूरी वफादारी से अपने कर्तव्य निभाने वाले लोग ईमानदार होते हैं; निरंतर अपने कार्य में अनमने रहने वाले लोग धोखेबाज और शातिर होते हैं और वे छद्म-विश्वासी होते हैं; और अपने कर्तव्य-प्रदर्शन में विघ्न-बाधाएँ पैदा करने वाले लोग दुष्ट और मसीह-विरोधी होते हैं। इस समय, कर्तव्य निभाने वाले बहुत-से लोगों में समस्याओं की एक विस्तृत शृंखला अभी भी मौजूद है। कुछ लोग अपने कर्तव्यों में हमेशा निष्क्रिय रहते हैं, हमेशा बैठे रहकर प्रतीक्षा करते हैं और दूसरों पर निर्भर रहते हैं। यह कैसा रवैया है? यह गैरजिम्मेदारी है। परमेश्वर के घर ने तुम्हारे लिए एक कर्तव्य निभाने की व्यवस्था की है, फिर भी तुम बिना कोई ठोस काम किए कई दिनों तक इस पर विचार करते हो। तुम कार्यस्थल पर कहीं दिखाई नहीं देते, और जब लोगों को समस्याएँ होती हैं जिन्हें हल करना आवश्यकता होता है, तो वे तुम्हें नहीं ढूँढ़ पाते। तुम इस कार्य का दायित्व नहीं उठाते। अगर कोई अगुआ काम के बारे में पूछता है, तो तुम उन्हें क्या बताओगे? तुम अभी किसी भी तरह का काम नहीं कर रहे। तुम अच्छी तरह से जानते हो कि यह काम तुम्हारी जिम्मेदारी है, लेकिन तुम इसे नहीं करते। आखिर तुम सोच क्या रहे हो? क्या तुम कोई काम इसलिए नहीं करते, क्योंकि तुम उसमें सक्षम नहीं हो? या तुम सिर्फ आरामतलब हो? अपने कर्तव्य के प्रति तुम्हारा क्या रवैया है? तुम केवल शब्दों और सिद्धांतों के बारे में बात करते हो और केवल कर्ण-प्रिय बातें कहते हो, लेकिन तुम कोई असल कार्य नहीं करते। यदि तुम अपना कर्तव्य नहीं निभाना चाहते, तो तुम्हें इस्तीफा दे देना चाहिए। निष्क्रिय रहकर पद पर मत बने रहो। क्या ऐसा करना परमेश्वर के चुने हुए लोगों को नुकसान पहुँचाना और कलीसिया के काम को खतरे में डालना नहीं है? तुम जिस तरह से बातें करते हो, ऐसा लगता है जैसे तुम सभी तरह के सिद्धांत समझते हो, लेकिन जब काम करने के लिए कहा जाता है, तो तुम अनमने हो जाते हो, और जरा भी कर्तव्यनिष्ठ नहीं रहते। क्या यही परमेश्वर के लिए ईमानदारी से खुद को खपाना है? जब परमेश्वर की बात आती है तो तुम ईमानदार नहीं होते, फिर भी तुम ईमानदारी का दिखावा करते हो। क्या तुम उसे धोखा दे सकते हो? जिस तरह से तुम आमतौर पर बातचीत करते हो, ऐसा लगता है कि तुममें बहुत आस्था है; तुम कलीसिया के स्तंभ और उसकी चट्टान बनना चाहते हो। लेकिन जब तुम कोई कर्तव्य निभाते हो, तो माचिस की तीली से भी कम उपयोगी होते हो। क्या यह परमेश्वर को जान-बूझकर धोखा देना नहीं है? क्या तुम जानते हो कि तुम्हारे परमेश्वर को धोखा देने की कोशिश करने का क्या परिणाम होगा? वह तुम्हें ठुकरा देगा और तुम्हें हटा देगा! अपने कर्तव्य निभाने के जरिये सभी लोगों की कलई खुल जाती है—किसी व्यक्ति को बस कोई कर्तव्य सौंप दो, और तुम्हें यह जानने में अधिक समय नहीं लगेगा कि वह व्यक्ति ईमानदार है या कपटी, और वह सत्य से प्रेम करता है या नहीं(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, केवल एक ईमानदार व्यक्ति ही सच्चे मनुष्य की तरह जी सकता है)। परमेश्वर के वचनों ने स्पष्ट किया : जो हमेशा अपने कर्तव्य में बेपरवाह और धूर्त होते हैं और थोड़े-बहुत काम से कलीसिया में मुफ्तखोरी करके संतुष्ट रहते हैं, उनमें मानवता नहीं होती, वे आदतन धूर्त और धोखेबाज होते हैं और परमेश्वर के लिए खुद को सचमुच नहीं खपाते। अंत में परमेश्वर उन सबको हटा देता है। मैंने बर्खास्त सुपरवाइजरों के बारे में दुबारा सोचा। वे इतने अहम काम के प्रभारी थे लेकिन उन्होंने सिर्फ “सुपरवाइजर” का तमगा लिया। उनके दिल में कोई बोझ नहीं था, वे रोज अपना काम तय ढर्रे पर करते रहे, कभी नहीं जाँचा कि उनका काम इतना बेअसर क्यों है, दूसरों को अपने काम में क्या समस्याएँ आ रही हैं या उन्हें काम में कैसे मार्गदर्शन देना या खोज-खबर लेनी चाहिए। दूसरे लोग याद दिलाते रहे कि वे और सक्रिय हों, समझदारी से कार्य-योजना बनाएँ, कार्यकुशलता बढ़ाएँ। ऐसा करने का उन्होंने वादा तो किया लेकिन बिल्कुल भी नहीं बदले। वे निष्क्रिय थे, काम कराने के लिए उन्हें ठेलना पड़ता था। खास तौर पर उनमें से एक अच्छा बोलती थी, प्रतिभाशाली और काबिल थी, लेकिन सुपरवाइजर बनने के एक माह बाद भी वह न तो काम की मूल बातें सीख पाई, न ही कि कैसे टीम के सदस्यों की व्यवस्था की जाती है। वह बहुत ही आनमनी और गैर-जिम्मेदार थी। मैंने सोचा कि परमेश्वर के वचन कितनी सफाई से अगुआ के दायित्व समझाते हैं, प्रकार हमारे अगुआओं ने भी अक्सर कर्तव्य करने का अर्थ और महत्व बताया था। ये सब जानकर भी वे बेपरवाह बने रहे। ये लोग न सत्य से प्यार करते थे, न उसका अनुसरण करते थे, उनके पास परमेश्वर का भय मानने वाला दिल था ही नहीं। मुझे परमेश्वर के वचन याद आए : “यदि तुम परमेश्वर के आदेशों को गंभीरता से नहीं लेते, तो तुम उसके साथ सबसे कष्टदायक तरीक़े से विश्वासघात कर रहे हो। इसमें, तुम यहूदा से भी अधिक शोचनीय हो और तुम्हें शाप दिया जाना चाहिए(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, मनुष्य का स्वभाव कैसे जानें)। पहले मैं सोचती थी, जो लोग कर्तव्य करने से इनकार कर देते या हाथ खींच लेते थे वे परमेश्वर को धोखा दे रहे थे, लेकिन परमेश्वर के वचनों से मैंने जाना कि जब कलीसिया किसी को कोई अहम काम सौंपती है, तब अगर वे आलसी, लापरवाह होकर हमेशा बेपरवाह रवैया अपनाते हुए काम का नुकसान करते हैं तो यह लापरवाही और धोखा है। उन सुपरवाइजरों को बर्खास्त करके अगुआ ने कठोरता नहीं दिखाई थी। यह तो परमेश्वर के वचनों और सिद्धांतों के अनुरूप था। मैं इसे स्वीकार नहीं पाई क्योंकि मैं लोगों और चीजों को परमेश्वर के वचनों के अनुरूप नहीं देख रही थी जिससे मैं परमेश्वर से सावधान रहने लगी। मैं बड़ी अज्ञानी थी! मुझे एहसास हुआ कि मेरा बर्ताव भी काफी कुछ उन्हीं जैसा था, इसलिए मुझे अपने काम में आ रही समस्याओं पर फौरन चिंतन करने की जरूरत थी।

बाद में, मुझे कर्तव्य के प्रति अपनी दशा और अपने रवैये के संबंध में अभ्यास और प्रवेश के लिए परमेश्वर के वचन मिले। परमेश्वर का वचन कहता है : “यदि तुम परमेश्वर के वचनों को पढ़ने में मेहनत नहीं करते, सत्य नहीं समझते, तो तुम आत्मचिंतन नहीं कर सकते; तुम केवल सांकेतिक प्रयास करने और कोई बुरा कर्म या अपराध न करने मात्र से संतुष्ट रहोगे और इसे पूंजी के रूप में उपयोग करोगे। तुम हर दिन जैसे-तैसे गुजार दोगे, भ्रम की स्थिति में रहोगे, केवल नियत समय पर काम करोगे, अपनी जाँच करने में कभी दिल नहीं लगाओगे या खुद को जानने का प्रयास नहीं करोगे; तुम हमेशा लापरवाह रहोगे। इस तरह, तुम कभी भी स्वीकार्य स्तर पर अपना कर्तव्य नहीं निभा पाओगे। किसी चीज में अपना सारा प्रयास लगाने के लिए, पहले तुम्हें पूरी तरह उसमें अपना मन लगाना होगा; अगर तुम पहले किसी चीज में पूरी तरह अपना मन लगाते हो, तभी तुम अपना सारा प्रयास उसमें लगा सकते हो और अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर सकते हो। आज, ऐसे लोग हैं जो अपने कर्तव्य के निर्वहन में मेहनत करना शुरू कर चुके हैं, वे सोचने लगे हैं कि परमेश्वर के हृदय को संतुष्ट करने के लिए एक सृजित प्राणी का कर्तव्य निर्वहन ठीक से कैसे किया जाए। वे नकारात्मक और आलसी नहीं हैं, वे निष्क्रिय होकर ऊपर से आदेश आने की प्रतीक्षा नहीं करते, बल्कि थोड़ी पहल करते हैं। तुम लोगों के कर्तव्य प्रदर्शन को देखते हुए, तुम पहले की तुलना में थोड़े अधिक प्रभावी हो। हालाँकि यह अभी भी मानक से नीचे है, फिर भी इसमें थोड़ी-बहुत वृद्धि तो हुई है—जो कि अच्छा है। लेकिन तुम्हें यथास्थिति से संतुष्ट नहीं हो जाना चाहिए, तुम्हें खोजते और बढ़ते रहना चाहिए—तभी तुम अपना कर्तव्य बेहतर ढंग से निभाकर एक स्वीकार्य-स्तर तक पहुँच पाओगे। हालाँकि, जब कुछ लोग अपना कर्तव्य निभाते हैं, तो वे कभी भी अपना सौ प्रतिशत नहीं देते, इसे अपना सर्वस्व नहीं देते, वे केवल अपने प्रयास का 50 से 60 प्रतिशत ही देते हैं और अपना कार्य पूरा होने तक कामचलाऊ ढंग से कार्य करते रहते हैं। वे कभी भी सामान्य स्थिति को बनाए नहीं रख पाते : जब उन पर नजर रखने या उनका समर्थन करने वाला कोई नहीं होता, तो वे सुस्त होकर हिम्मत हार जाते हैं; जब सत्य पर संगति करने वाला कोई होता है, तो वे उत्साहित रहते हैं, लेकिन यदि कुछ समय के लिए उनके साथ सत्य पर संगति न की जाए, तो वे उदासीन हो जाते हैं। जब वे इस तरह अनिश्चितता की स्थिति में रहते हैं, तो यहाँ समस्या क्या है? जब लोगों ने सत्य प्राप्त नहीं किया होता, तो उनकी स्थिति ऐसी ही होती है, वे सभी जुनून में जीते हैं—जिसे बनाए रखना बेहद कठिन होता है : कोई न कोई ऐसा होना चाहिए जो हर दिन उन्हें उपदेश दे और उनके साथ संगति करे; जब कोई उनका सिंचन और देखभाल करने वाला तथा उनका समर्थन करने वाला नहीं होता, तो वे फिर से ठंडे पड़ जाते हैं और सुस्त हो जाते हैं। और जब उनका हृदय शिथिल हो जाता है, तो वे अपने कर्तव्य पालन में कम प्रभावी हो जाते हैं; यदि वे अधिक मेहनत करते हैं, तो उनकी प्रभावशीलता बढ़ जाती है, कर्तव्य निर्वहन में उनके नतीजे बेहतर हो जाते हैं, और उन्हें अधिक लाभ होता है(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, परमेश्वर पर विश्वास करने में सबसे महत्वपूर्ण उसके वचनों का अभ्यास और अनुभव करना है)। परमेश्वर के वचनों से मैंने सीखा कि अपने कर्तव्य बखूबी निभाने के लिए पहल करना जरूरी है। हमें कड़ी मेहनत करने, कष्ट सहने और कीमत चुकाने के लिए तैयार रहना चाहिए। साथ ही, हम जो कुछ कर सकते हैं उसमें सर्वोत्तम करें, अपना दिल झोंक दें, जिम्मेदारियाँ पूरी करें, नतीजे लाएँ और बस दूसरों को बेवकूफ न बनाएँ या आधे-अधूरे मन से न चलें। यही है कर्तव्य ठीक से निभाना। जब अगुआ ने मुझे वीडियो कार्य का प्रभार सौंपा, तो पहले मैं काम की खोज-खबर लेने में बेहतर बनना चाहती थी, मैंने हुनर और सिद्धांतों का अध्ययन किया, लेकिन कुछ समय के बाद, मुझे वीडियो कार्य बहुत कठिन लगा। मैंने शुरुआत की ही थी, सीखने के लिए बहुत कुछ था, मुझे कष्ट सहने थे और कीमत चुकानी थी, इसलिए मैं ढिलाई करने लगी और मेरा कार्यक्रम भी ढीला था। भले ही मैं रोज व्यस्त नजर आती थी, लेकिन मैं न तो कुशलता से काम कर रही थी, न ज्यादा वास्तविक कार्य कर रही थी। यहाँ तक कि मुझे खाने-पीने के बारे में सोचने की फुर्सत थी, जब भी मौका मिलता, मैं आराम करने, टहलने या कुछ मजे लेने निकल जाती। मेरे पास सुपरवाइजर का पद था, लेकिन काम के मामले में दूसरों से ज्यादा निठल्ली थी। जब काम में दिक्कतें आने लगीं, मैंने न सिद्धांत खोजे, न ही उन्हें समझने वाले व्यक्ति को मदद के लिए खोजा, मेरा लक्ष्य सिर्फ “ठीकठाक” और “थोड़ा बहुत” काम करना था, और बाकी जाँच का जिम्मा अगुआ पर डाल देती थी। अपने काम में बेपरवाह होने और वास्तविक नतीजे लाने के प्रयास न करने के कारण अगुआ को हमेशा दिक्कतें दिख जातीं और इसे सुधार के लिए वापस भेजना पड़ता, जिससे हमारी प्रगति धीमी हो रही थी। पूरे दिल से काम करना तो दूर रहा, मैं पूरे प्रयास तक नहीं कर रही थी। मैं अनमने और खोटे ढंग से काम करके, वास्तव में कोई कीमत नहीं चुका रही थी। अगर मैंने कुछ प्रयास किए भी तो मुझे सही नतीजे नहीं मिले। यह कर्तव्य निभाना कैसे हुआ? मैं परमेश्वर को साफ-साफ बेवकूफ बना रही थी और उसे धोखा दे रही थी। इसका एहसास होने पर मुझे बहुत अपराध बोध हुआ। कलीसिया मुझे सुपरवाइजर का प्रशिक्षण दे रही थी, इस उम्मीद से कि मैं जिम्मेदार बनकर उसका काम ठीक से कराऊँगी, लेकिन मैं तो बस आलसी बनी रही। मैं बहुत निर्लज्ज थी। मैं अपने कर्तव्य में ऐसे पेश आ रही थी, जैसे एक अविश्वासी अपने बॉस के लिए काम करता है और मेरा प्रदर्शन श्रम के मानक पर भी खरा नहीं उतरता है। मुझे परमेश्वर के वचनों का एक अंश याद आया : “तुम्हारे कर्तव्य निर्वहन के लिए परमेश्वर का यह मानक है कि यह ‘समुचित’ हो। ‘समुचित’ होने का क्या मतलब है? इसका मतलब है परमेश्वर की अपेक्षाएँ पूरी कर उसे संतुष्ट करना। यह परमेश्वर को कहना चाहिए कि तुम्हारा कर्तव्य निर्वहन समुचित है और इसके लिए उसकी स्वीकृति मिलनी चाहिए। तभी तुम्हारा कर्तव्य निर्वहन समुचित होगा। यदि परमेश्वर कहता है कि यह समुचित नहीं है, तो तुम चाहे जितने समय से अपना कर्तव्य निभा रहे हो या चाहे तुमने जितनी भी कीमत चुकाई हो, यह समुचित नहीं है। तो फिर नतीजा क्या निकलेगा? यह सब श्रम की श्रेणी में रखा जाएगा। निष्ठावान हृदय वाले श्रमिकों के एक छोटे-से वर्ग को ही बख्शा जाएगा। यदि वे अपने श्रम में निष्ठावान नहीं हैं तो उन्हें बख्शे जाने की कोई आशा नहीं है। स्पष्ट रूप से कहूँ तो वे किसी विपत्ति में नष्ट हो जाएँगे(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, कर्तव्‍य का समुचित निर्वहन क्‍या है?)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे एहसास कराया अपने काम में मेरा जमीर बुनियादी स्तर का भी नहीं था। इस रवैये से परमेश्वर घृणा करता है और इसने मुझे उद्धार के लायक नहीं छोड़ा। दोनों सुपरवाइजरों की बर्खास्तगी मेरे लिए एक चेतावनी थी। मैंने देखा कि जो लोग अपने कर्तव्य में अनमने और लापरवाह होते हैं वे कलीसिया में अडिग नहीं रह पाते हैं। अंत में उन्हें प्रकट किया और हटाया जाता है। भले ही मैं कलीसिया में काम कर रही थी, इसका यह अर्थ नहीं था कि मैं इसे ठीक से कर रही थी। अगर मैंने जल्द से जल्द अपनी दशा नहीं सुधारी, तो भले ही मुझे कलीसिया न हटाए, परमेश्वर मुझे हटा देगा। इसे परमेश्वर का धार्मिक स्वभाव तय करता है। यह एहसास होने पर मैंने प्रार्थना की : “हे परमेश्वर, अपने कर्तव्य में मैं सच्ची कीमत अदा नहीं कर रही हूँ, मैं इतनी बेपरवाह हूँ, मुझे बहुत पछतावा है। अब जाकर मुझे एहसास हुआ कि मेरी दशा कितनी खतरनाक है, मैं अपने कर्तव्य में अब ऐसा रवैया रखे नहीं रह सकती हूँ। मैं पश्चात्ताप करके भरसक अच्छे ढंग से अपना कर्तव्य निभाना चाहती हूँ।”

इसके बाद मैंने सोचा, “मैं जानती हूँ कि मेरी जिम्मेदारियाँ कितनी महत्वपूर्ण हैं, लेकिन मैं अक्सर आलसी होने से बच नहीं पाती, अपने कर्तव्य में कीमत नहीं चुकाना चाहती। इसका कारण क्या है?” मैंने परमेश्वर के वचन पढ़े : “जो लोग अत्यधिक आलसी होते हैं, वे किस प्रकार की अभिव्यक्तियाँ और विशेषताएँ प्रदर्शित करते हैं? पहले, वे जो कुछ भी करते हैं, बेमन से करते हैं, उसे जैसे-तैसे निपटाते हैं, धीमी गति से चलते हैं, आराम फरमाते हैं और जब भी संभव होता है उसे टाल देते हैं। दूसरे, वे कलीसिया के कार्य पर ध्यान नहीं देते। उनके विचार से, जो कोई इस काम के बारे में चिंता करना पसंद करता है, कर सकता है। वे नहीं करेंगे। अगर वे खुद किसी काम के बारे में चिंता करते भी हैं, तो यह उनकी अपनी शोहरत, लाभ और रुतबे के लिए होता है—उनके लिए जो कुछ भी मायने रखता है, वह यह है कि वे रुतबे के लाभ उठा पाएँ। तीसरे, वे अपने काम में कठिनाई से दूर भागते हैं; यह स्वीकार नहीं कर सकते कि उनका कार्य थोड़ा भी थकाने वाला हो; ऐसा होने पर वे बहुत नाराज हो जाते हैं और कठिनाई सहने या कीमत चुकाने को तैयार नहीं होते। चौथे, वे जो भी कार्य करते हैं उसमें जुटे रहने में असमर्थ होते हैं, उसे हमेशा आधे में ही छोड़ देते हैं और पूरा नहीं कर पाते। अगर वे क्षणिक रूप से अच्छी मनःस्थिति में हैं, तो मौज-मजे के लिए कुछ काम कर सकते हैं, लेकिन अगर किसी चीज के लिए दीर्घकालिक प्रतिबद्धता की आवश्यकता हो और वह उन्हें व्यस्त रखती हो, उसमें बहुत ज्यादा सोचने-विचारने की जरूरत हो और वह उनकी देह थका देती हो, तो समय बीतने के साथ वे बड़बड़ाना शुरू कर देते हैं। उदाहरण के लिए, कुछ अगुआ कलीसियाई कार्य के प्रभारी होते हैं, और उन्हें पहले-पहल यह नया और ताजा लगता है। वे सत्य की अपनी संगति में बहुत अभिप्रेरित होते हैं और जब वे देखते हैं कि भाई-बहनों को समस्याएँ हैं, तो वे उनकी मदद कर उनका समाधान करने में सक्षम रहते हैं। लेकिन कुछ समय तक लगे रहने के बाद उन्हें अगुआई का काम बहुत थकाऊ लगता है और वे निराश हो जाते हैं—वे इसके बदले कोई आसान काम पकड़ लेना चाहते हैं और कठिनाई सहने को तैयार नहीं होते। ऐसे लोगों में लगन की कमी होती है। पाँचवें, एक और विशेषता जो आलसी लोगों को अलग करती है, वह है वास्तविक कार्य करने की उनकी अनिच्छा। जैसे ही उनकी देह को कष्ट होता है, वे अपने काम से बचने और भागने के बहाने बनाते हैं और वह काम किसी और को सौंप देते हैं। लेकिन जब वह व्यक्ति काम पूरा कर देता है, तो वे बेशर्मी से पुरस्कार खुद बटोर लेते हैं। आलसी लोगों की ये पाँच प्रमुख विशेषताएँ हैं। तुम लोगों को यह जाँच करनी चाहिए कि क्या कलीसियाओं में अगुआओं और कार्यकर्ताओं के बीच ऐसे आलसी लोग हैं। अगर तुम्हें कोई मिले, तो उसे तुरंत बरखास्त कर दिया जाना चाहिए। क्या आलसी लोग अगुआओं के रूप में अच्छा काम कर सकते हैं? चाहे उनमें किसी भी प्रकार की काबिलियत हो या उनकी मानवता की गुणवत्ता कैसी भी हो, अगर वे आलसी हैं, तो वे अपना काम ठीक से नहीं कर पाएँगे, और वे काम और महत्वपूर्ण मामलों में देरी करेंगे। कलीसिया का कार्य बहुआयामी होता है; इसके हर पहलू में कई विस्तृत काम शामिल होते हैं और समस्याएँ हल करने के लिए सत्य के बारे में संगति करने की आवश्यकता होती है, ताकि उसे अच्छी तरह से किया जा सके। इसलिए अगुआओं और कार्यकर्ताओं को कर्मठ होना चाहिए—काम की प्रभावशीलता सुनिश्चित करने के लिए उन्हें हर दिन ढेर सारी बातें करनी पड़ती हैं और ढेर सारा काम करना पड़ता है। अगर वे बहुत कम बोलें या बहुत कम काम करें, तो कोई परिणाम नहीं निकलेगा। इसलिए अगर कोई अगुआ या कार्यकर्ता आलसी व्यक्ति है, तो वह निश्चित रूप से नकली अगुआ है और वास्तविक कार्य करने में अक्षम है। आलसी लोग वास्तविक कार्य नहीं करते, खुद कार्य-स्थलों पर जाना तो दूर की बात है और वे समस्याएँ हल करने या किसी विशिष्ट कार्य में स्वयं को संलग्न करने के इच्छुक नहीं होते। उन्हें किसी भी कार्य में आने वाली समस्याओं की जरा भी समझ या पकड़ नहीं होती। उन्हें दूसरों की बातें सुनकर, जो चल रहा है उसका केवल सतही और अस्पष्ट अंदाजा होता है, और वे थोड़े-से धर्म-सिद्धांत का उपदेश देकर जैसे-तैसे काम निपटाते हैं। क्या तुम लोग इस तरह के अगुआ का भेद पहचानने में सक्षम हो? क्या तुम यह बताने में सक्षम हो कि वह नकली अगुआ है? (एक हद तक।) आलसी लोग जो भी कर्तव्य निभाते हैं, उसमें लापरवाह होते हैं। कर्तव्य चाहे कोई भी हो, उनमें लगन नहीं होती, वे रुक-रुककर काम करते हैं और जब भी उन्हें कोई कष्ट होती है तो वे अंतहीन शिकायतें करते जाते हैं। जो भी उनकी आलोचना या काट-छाँट करता है, वे उसे अपशब्द कहते हैं, जैसे कोई कर्कशा सड़कों पर लोगों का अपमान कर रही हो, हमेशा दूसरों पर अपना गुस्सा निकालना चाहते हैं और अपना कर्तव्य नहीं निभाना चाहते। उनके अपना कर्तव्य न निभाना चाहने से क्या पता चलता है? इससे पता चलता है कि वे भार नहीं उठाते, जिम्मेदारी लेने के लिए तैयार नहीं होते और वे आलसी लोग हैं। वे कष्ट सहना या कीमत चुकाना नहीं चाहते। यह बात खासकर अगुआओं और कार्यकर्ताओं पर लागू होती है : अगर अगुआ और कार्यकर्ता भार नहीं उठाते तो क्या वे अगुआओं या कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ पूरी कर सकते हैं? बिल्कुल भी नहीं(वचन, खंड 5, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (4))। परमेश्वर के वचनों पर सोच-विचार के बाद मुझे समझ आया कि मैं कर्तव्य में दृढ़ क्यों नहीं थी, और थोड़ा-सा उत्साह दिखाने के बाद मैं कीमत नहीं चुकाना चाहती थी। इसका मुख्य कारण था मेरा अत्यधिक आलस्य और देह के आराम की तलब। मैंने अपने काम में दक्षता लाने का प्रयास नहीं किया। अगुआ अगर दबाव न डाले और काट-छाँट न करे तो मैं काम तत्परता से नहीं करती। खास तौर पर, जब काम में मुझे कोई समस्याएँ होतीं, तो मैं उन पर दिमागी मेहनत करने की इच्छुक नहीं थी, हमेशा यह बहाना बनाती कि अभी तो मैंने काम शुरू ही किया है, और समस्याएँ अगुआ के पास सरका देती थी। मैं मन में सोचा करती थी, “जब तक हम जिंदा हैं, तब तक मौज-मस्ती से जिएँ। काम चाहे जितना जरूरी हो, अपने साथ बुरा बर्ताव न करो, न अपने पर बोझ लादो। मैं जब तक हटाई नहीं जाती, थोड़ा-बहुत प्रयास और काम करके ठीक हूँ।” मैंने कभी प्रगति करनी नहीं चाही, लिहाजा मुझमें धीमी गति से सुधार हुआ। मैंने भाई-बहनों के बारे में सोचा : इनमें से कुछ काम पूरा करने में काफी समय और मेहनत झोंकते हैं, हमेशा काम पर ध्यान देते हैं। अपना काम पूरा करने के बाद भी वे सोचते रहते थे कि इसमें कोई कमी तो नहीं रह गई, और इसे कैसे सुधार सकते हैं। वे बस यही सोचते थे कि अपने कर्तव्य कैसे ठीक से निभाएँ। वे अच्छे से काम करते थे, उनमें मानवता थी और अपने कर्तव्य के प्रति वफादार भी थे। उन्हें अपने काम में आसानी से पवित्र आत्मा का मार्गदर्शन मिला और समय के साथ उन्होंने सुधार किया और उपलब्धियाँ पाईं। लेकिन, मुझे कलीसिया ने वीडियो कार्य का जिम्मा सौंपा, पर मेरी अंतरात्मा मर चुकी थी, अनुसरण पर मेरे ख्याल जानवरों जैसे थे। जब मुझे फुर्सत मिलती, मैं देह की इच्छाओं के बारे में सोचती, कर्तव्य के बारे में नहीं। ओहदा तो था, पर मैं असल काम नहीं करती थी, जो हमें न सिर्फ अच्छे नतीजे पाने से रोक रहा था, बल्कि काम भी लटक गया। मैं इतनी स्वार्थी और घृणित थी! अगर मेरा यही रवैया रहता तो मैं कोई भी काम सँभालने लायक नहीं रहती, मुझे कुछ भी हासिल नहीं होता, परमेश्वर मुझे जरूर हटा देता। मैं प्रार्थना करने परमेश्वर के सामने गई : “हे परमेश्वर, मेरी यह नीच प्रकृति बहुत गंभीर है। मैं ऐसे अहम काम को लेकर भी गैरजिम्मेदार और धूर्त बनी हुई हूँ, मेरे पास परमेश्वर का भय मानने वाला दिल बिल्कुल नहीं था। पहले मैं जानती थी कि यह नीचता बहुत गंभीर है, लेकिन मैंने सच्चे मन से इसका तिरस्कार नहीं किया। अब मैं यह जानती हूँ। परमेश्वर, मैं बदलना चाहती हूँ। अपना रवैया और विचार बदलकर उचित ढंग से कर्तव्य निभाना चाहती हूँ। भ्रष्ट स्वभाव दूर करने और थोड़ा-बहुत मनुष्यों के समान जीने की मुझे राह दिखाओ।”

फिर मुझे परमेश्वर के वचनों का एक और अंश याद आया : “अपना कर्तव्य करते समय तुम्हें कम से कम साफ जमीर वाला व्यक्ति होना चाहिए, और तुम्हें कम से कम दिन में तीन बार भोजन करने के लायक होना चाहिए और मुफ्तखोर नहीं होना चाहिए। इसे जिम्मेदारी की भावना होना कहते हैं। चाहे तुम्हारी क्षमता ज्यादा हो या कम, और चाहे तुम सत्य समझते हो या नहीं, जो भी हो, तुम्हारा यह रवैया होना चाहिए : ‘चूँकि यह कार्य मुझे करने के लिए दिया गया था, इसलिए मुझे इसे गंभीरता से लेना चाहिए; मुझे इसे अपनी जिम्मेदारी बनानी चाहिए, और मुझे इसे अच्छी तरह से करने के लिए अपना पूरा दिल और ताकत लगा देनी चाहिए। रही यह बात कि मैं इसे पूर्णतया अच्छी तरह से कर सकता हूँ या नहीं, तो मैं कोई गारंटी देने की कल्पना तो नहीं कर सकता, लेकिन मेरा रवैया यह है कि मैं इसे अच्छी तरह से करने के लिए अपने भरसक प्रयास करूँगा, और मैं यकीनन इसके बारे में लापरवाह नहीं होऊँगा। अगर काम में कोई समस्या आती है, तो मुझे जिम्मेदारी लेनी चाहिए, और सुनिश्चित करना चाहिए कि मैं इससे सबक सीखूँ और अपना कर्तव्य अच्छी तरह से करूँ।’ यह सही रवैया है। क्या तुम लोगों का रवैया ऐसा है? कुछ लोग कहते हैं, ‘जरूरी नहीं कि जो काम मुझे सौंपा गया है, उसे मैं अच्छी तरह से करूँ। मैं वही करूँगा, जो मैं कर सकता हूँ और अंतिम उत्पाद वही होगा, जो होना होगा। मुझे खुद को इतना थकाने या कोई गलती करने पर चिंतामग्न होने और इतना तनाव लेने की जरूरत नहीं है। खुद को इतना थका देने में क्या रखा है? आखिरकार, मैं निरंतर काम कर रहा हूँ और मुफ्तखोरी नहीं कर रहा।’ अपने कर्तव्य के प्रति इस तरह का रवैया गैर-जिम्मेदाराना है। ‘अगर मेरा काम करने का मन होगा, तो मैं कुछ काम कर दूँगा। मैं सिर्फ वही करूँगा, जो मैं कर सकता हूँ और अंतिम उत्पाद वही होगा, जो होना होगा। इसे इतनी गंभीरता से लेने की कोई जरूरत नहीं है।’ ऐसे लोगों का अपने कर्तव्य के प्रति जिम्मेदाराना रवैया नहीं होता और उनमें जिम्मेदारी की भावना का अभाव होता है। तुम लोग किस तरह के व्यक्ति हो? अगर तुम पहली तरह के व्यक्ति हो, तो तुम विवेक और मानवता वाले व्यक्ति हो। अगर तुम दूसरी तरह के व्यक्ति हो, तो तुम लोग उस तरह के नकली अगुआओं से अलग नहीं हो, जिनका मैंने अभी-अभी विश्लेषण किया है। तुम आराम और मौजमस्ती करके अपने दिन बिताए जा रहे हो। ‘मैं थकान और कठिनाई से बचूँगा और बस ज्यादा आनंद लूँगा। भले ही एक दिन मुझे बर्खास्त कर दिया जाए, तो भी मेरा कोई नुकसान न होगा। मैंने कम से कम कुछ दिनों के लिए हैसियत के लाभ तो उठा लिए होंगे, यह मेरे लिए घाटे का सौदा नहीं होगा। अगर मुझे अगुआ के रूप में चुना गया, तो मैं इसी तरह कार्य करूँगा।’ इस किस्म के व्यक्ति की मानसिकता के बारे में तुम क्या सोचते हो? ऐसे लोग अविश्वासी होते हैं जो सत्य का जरा सा भी अनुसरण नहीं करते हैं। अगर तुममें सही मायने में जिम्मेदारी की भावना है, तो इससे पता चलता है कि तुम्हारे पास जमीर और सूझ-बूझ है। काम चाहे कितना भी बड़ा या छोटा हो, चाहे तुम्हें वह कार्य कोई भी सौंपे, चाहे परमेश्वर का घर तुम्हें वह कार्य सौंपे या कलीसिया का अगुआ या कार्यकर्ता उसे तुम्हें सौंपे, तुम्हारा यह रवैया होना चाहिए : ‘चूंकि यह कर्तव्य मुझे सौंपा गया है, इसलिए यह परमेश्वर की महिमा और अनुग्रह है। मुझे इसे सत्य सिद्धांतों के अनुसार अच्छी तरह से करना चाहिए। औसत काबिलियत होने के बावजूद, मैं यह जिम्मेदारी लेने और इसे अच्छी तरह से निभाने के लिए अपना सब-कुछ झोंकने को तैयार हूँ। अगर मैंने खराब काम किया, तो मुझे उसके लिए जिम्मेदार होना चाहिए और अगर मैंने अच्छा काम किया, तो वह मेरे लिए श्रेय की बात नहीं होगी। मुझे यही करना चाहिए।’ मैं यह क्यों कहता हूँ कि व्यक्ति अपने कर्तव्य को कैसे लेता है, यह सिद्धांत का मामला है? अगर तुम में वास्तव में जिम्मेदारी की भावना है और तुम एक जिम्मेदार व्यक्ति हो, तो तुम कलीसिया के कार्य की जिम्मेदारी उठा सकोगे और वह कर्तव्य पूरा कर सकोगे, जो तुम्हें करना चाहिए। अगर तुमने अपना कर्तव्य हल्के में लेते हो, तो परमेश्वर में विश्वास के बारे में तुम्हारा दृष्टिकोण गलत है, और परमेश्वर और अपने कर्तव्य के प्रति तुम्हारा रवैया समस्यात्मक है(वचन, खंड 5, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (8))। परमेश्वर के वचनों से मैंने समझा कि जिम्मेदार लोग कर्मठता से काम करते हैं। काम चाहे पसंद आए या नहीं, वे इसमें पारंगत हों या नहीं, चाहे जितने भी काबिल हों, काम को लेकर उनका ईमानदार रवैया होता है और इसे ठीक से पूरा करने के लिए वे मन लगाकर अपना सर्वोत्तम देते हैं। ये लोग जुबान के पक्के और भरोसेमंद होते हैं और परमेश्वर की स्वीकृति पा सकते हैं। इसके उलट, अगर कोई व्यक्ति कोई काम करने की हामी भरता है, लेकिन केवल इज्जत बनाए रखने के लिए काम करता है, वास्तविक कार्य नहीं करता, नतीजे लाने या दक्षता पाने की कोशिश नहीं करता, तो फिर वह इस दुनिया के लफंगों और कामचोरों जैसा ही है। ऐसे लोग कुटिल और अविश्वसनीय होते हैं। मैं अपना कर्तव्य इसी तरह निभा रही थी। मैंने हमेशा देह की सोची और शायद ही कभी सत्य का अभ्यास किया। मैंने मनुष्यों की भाँति नहीं जी रही थी। मुझे काम को लेकर अपना रवैया सुधारना था। मेरी कार्यक्षमता पर गौर किए बिना, कलीसिया ने मुझे यह काम सौंपा था, इसलिए इसे ठीक से करने के लिए मुझे पूरे दमखम से हरसंभव कड़ी मेहनत करनी चाहिए। अब अपना कर्तव्य निभाने का यह महत्वपूर्ण समय है। अगर मैं अपना सर्वोत्तम काम न करूँ, ज्यादा प्रयास करने के लिए परमेश्वर का कार्य खत्म होने का इंतजार करती रहूँ तो फिर पश्चात्ताप के लिए बहुत देर हो जाएगी। यह सोचने के बाद, मैंने अपनी दिनचर्या दुबारा तय की ताकि अधिक से अधिक काम कर सकूँ। जब मुझे आलस घेरने लगता, मैं परमेश्वर से प्रार्थना करती और उसके वचनों के बारे में सोचती, जिससे मैं चौकस होकर अपने देह के सुखों का ख्याल छोड़ देती। काम से पहले मैं प्रार्थना करती कि परमेश्वर मेरे हृदय की जाँच करता रहे, ताकि मैं आधे-अधूरे प्रयास करने के बजाय अच्छा काम करूँ। इस तरह अभ्यास करने से मैं अधिक सहज महसूस करती हूँ।

भले ही मैं अपना काम उचित ढंगसे करना चाहती थी, लेकिन कभी-कभी कमी रह जाती थी। जैसे एक दिन मैं सिंचन कार्य की जाँच कर रही थी : एक नए सदस्य की अभी भी कई धार्मिक धारणाएँ दूर नहीं हुई थीं, जिसके लिए सिंचन कार्यकर्ता ने मुझसे मदद माँगी। पहले-पहल, मैंने भरसक मदद की कोशिश करनी चाही, कामयाबी की परवाह नहीं की। लेकिन जब मैंने नए सदस्य से बात की, तो कुछ समस्याओं की आधी-अधूरी जानकारी होने से मैं स्पष्ट संगति नहीं कर सकी। मैं यह सोचने से खुद को रोक नहीं सकी : “मेरी सत्य की समझ उथली है; मैं बस इतना ही हासिल कर सकती हूँ। अगुआ इसकी खोज-खबर लेंगे ही। मैं इन समस्याओं का समाधान उसे ही करने दूँगी।” लेकिन अगुआ व्यस्त था और आ नहीं सका, इसलिए समाधान का जिम्मा हम पर आ गया। मैं जानती थी कि इस स्थिति के पीछे परमेश्वर का इरादा है। मैं आसान और सीधे-सपाट काम चुना करती थी और ज्यादा मेहनत करने से बचती थी। इस बार मैं देह के बारे में सोचने या आराम तलाशने की नहीं सोच सकती। मुझे भरसक काम करना होगा, चाहे जितनी कामयाबी मिले। फिर, मैंने और मेरी सहयोगी बहन ने संगति के लिए सिंचन कार्यकर्ता को खोजा, और हमने नवागत की धार्मिक धारणाओं के संबंध में परमेश्वर के वचन और सुसमाचारों के वीडियो खोजे। कुछ चर्चा के बाद हम सब सत्य के इस पहलू को स्पष्ट समझ गए और अंत में नए सदस्य की समस्याएँ हल हो गईं। यह अनुभव करने के बाद, मुझे समझ आ गया कि कुछ चीजें मुश्किल लग सकती हैं, लेकिन परमेश्वर पर भरोसा रखूँ, वाकई कीमत चुकाऊँ तो मैं भी अच्छे नतीजे हासिल कर सकती हूँ। अगर मैं कड़ी मेहनत करूँ और फिर भी कमी रह जाए, तो कम से कम मेरी अंतरात्मा तो साफ रहेगी।

अपने आसपास के कुछ भाई-बहनों की नाकामियाँ देखकर मैंने कुछ सबक सीखे हैं, काम को लेकर अपने रवैये के बारे में आत्म-चिंतन किया और देखा है कि इसे ठीक ढंग से अंजाम देने से मैं कितनी दूर हूँ। मैंने देखा है कि मेरी नीच प्रकृति की पैठ कितनी गहरी है। यद्यपि मुझे पछतावा है, लेकिन अब भी मैं परमेश्वर की अपेक्षाओं से काफी दूर हूँ। अब से मुझे परमेश्वर की जांच स्वीकारनी होगी और ठीक से अपना कर्तव्य निभाने का प्रयास करना होगा!

पिछला: 31. “विशेषज्ञ” न रहकर मिली बड़ी आज़ादी

अगला: 33. कर्तव्यों में फेरबदल ने मुझे प्रकट कर दिया

परमेश्वर का आशीष आपके पास आएगा! हमसे संपर्क करने के लिए बटन पर क्लिक करके, आपको प्रभु की वापसी का शुभ समाचार मिलेगा, और 2024 में उनका स्वागत करने का अवसर मिलेगा।

संबंधित सामग्री

34. ईसाई आध्यात्मिक जागृति

लिंग वू, जापानमैं अस्सी के दशक का हूँ, और मैं एक साधारण से किसान परिवार में जन्मा था। मेरा बड़ा भाई बचपन से ही हमेशा अस्वस्थ और बीमार रहता...

17. शैतान के तंग घेरे से निकलना

झाओ गांग, चीनउत्तर-पूर्व चीन में विगत नवंबर में कड़ाके की ठंड पड़ी थी, ज़मीन पर गिरी बर्फ ज़रा भी नहीं पिघलती थी, और कई लोग जो बाहर चल रहे थे,...

10. हृदय की मुक्ति

झेंगशिन, अमेरिका2016 के अक्टूबर में, जब हम देश से बाहर थे, तब मेरे पति और मैंने अंत के दिनों के परमेश्वर के कार्य को स्वीकार किया था। कुछ...

परमेश्वर का प्रकटन और कार्य परमेश्वर को जानने के बारे में अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन मसीह-विरोधियों को उजागर करना अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ सत्य के अनुसरण के बारे में सत्य के अनुसरण के बारे में न्याय परमेश्वर के घर से शुरू होता है अंत के दिनों के मसीह, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अत्यावश्यक वचन परमेश्वर के दैनिक वचन सत्य वास्तविकताएं जिनमें परमेश्वर के विश्वासियों को जरूर प्रवेश करना चाहिए मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ राज्य का सुसमाचार फ़ैलाने के लिए दिशानिर्देश परमेश्वर की भेड़ें परमेश्वर की आवाज को सुनती हैं परमेश्वर की आवाज़ सुनो परमेश्वर के प्रकटन को देखो राज्य के सुसमाचार पर अत्यावश्यक प्रश्न और उत्तर मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 1) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 2) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 3) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 4) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 5) मैं वापस सर्वशक्तिमान परमेश्वर के पास कैसे गया

सेटिंग

  • इबारत
  • कथ्य

ठोस रंग

कथ्य

फ़ॉन्ट

फ़ॉन्ट आकार

लाइन स्पेस

लाइन स्पेस

पृष्ठ की चौड़ाई

विषय-वस्तु

खोज

  • यह पाठ चुनें
  • यह किताब चुनें

WhatsApp पर हमसे संपर्क करें