17. झूठे अगुआ की रिपोर्ट करने से सीखे सबक

झोउ ज़ुआन, चीन

मैंने सितंबर 2019 में एक अगुआ के रूप में सेवा शुरू की और अपनी साझेदार वांग रैन के साथ कुछ स्थानीय कलीसियाओं में कार्य प्रभार संभाला। मेरे लिए यह बिल्कुल नया कर्तव्य था, इसलिए मैं काम के कुछ पहलुओं से अभी अपरिचित थी और अक्सर चर्चा के लिए वांग रैन से संपर्क करती थी। हालांकि बाद में मुझे पता चला कि वांग रैन अपने कर्तव्य का बोझ नहीं उठा पाई। जब मैंने उसके साथ एक कलीसिया में जाकर वहां के दो अगुआओं के साथ संगति करने का प्रस्ताव रखा, जो प्रसिद्धि और लाभ के लिए होड़ कर रहे थे और सामंजस्यपूर्ण साझेदारी करने में असफल हो रहे थे तो उसने मामले को गंभीरता से नहीं लिया और इसे टालती रही। चूँकि हम इस मसले को हल करने में बहुत ही सुस्ती बरत रहे थे, लिहाजा कलीसिया के काम पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा। और तो और, जब मैंने चर्चा करनी चाही कि सुसमाचार फैलाने के दौरान हमारे भाई-बहनों को जिन मुद्दों और मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है, हम उन्हें सुलझाने में कैसे मदद कर सकते हैं तो भी उसने आनाकानी की। नतीजा यह हुआ कि वे मुद्दे समय पर हल नहीं हुए और सुसमाचार के काम पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा। मैंने देखा कि वांग रैन को अपने कर्तव्य में जिम्मेदारी का अहसास नहीं था और मैंने उसे इसके बारे में बताने पर विचार किया लेकिन मैं अगुआई के इस कर्तव्य में नई थी और अभी भी काम के कुछ पहलुओं से अपरिचित थी, इसलिए मुझे चिंता थी कि अगर मैंने उसे नाराज कर दिया और हमारे कामकाजी रिश्ते प्रभावित हुए तो जब मैं अपने कर्तव्य में समस्याओं का सामना करूँगी तो वह मेरी मदद नहीं करेगी। यही कारण था कि अंततः मैंने उसे अपनी राय नहीं बताई। इसके तुरंत बाद मैंने देखा कि वांग रैन अक्सर कर्मियों को समायोजित करते समय अपने अहंकारी स्वभाव के आधार पर लोगों पर फैसले सुनाती थी। वह कहती थी “यह व्यक्ति नहीं चलेगा” और “वह किसी काम का नहीं है” और उन्हें पोषित न करने के लिए तरह-तरह के बहाने बनाती थी। परिणामस्वरूप, कलीसिया की कुछ परियोजनाओं की गति धीमी रही क्योंकि उनके प्रबंधन के लिए उपयुक्त लोगों को नियुक्त नहीं किया गया था। जब हमारे अगुआ को इसका पता चला तो उसने हमें जल्द से जल्द उपयुक्त उम्मीदवार खोजने के लिए कहा लेकिन जब वांग रैन ने मेरे द्वारा सुझाए गए उम्मीदवारों को देखा तो उसने तुरंत कहा कि वे किसी काम के नहीं हैं। मैंने मन में सोचा, “कलीसिया के काम के लिए और अधिक भाई-बहनों की आवश्यकता है, लेकिन वह न केवल लोगों को पोषित करने में नाकाम रही है, बल्कि उसने पोषण में बाधा डाली है। वह कलीसिया के काम में व्यवधान और गड़बड़ी पैदा कर रही है।” मैं उसके साथ इस मुद्दे की गंभीरता पर चर्चा करना चाहती थी लेकिन मुझे डर था कि अगर मैंने बहुत खुलकर बात की तो वह मेरे खिलाफ हो जाएगी, इसलिए मैंने बस सहजता से कहा कि, “हमें लोगों पर फैसला नहीं सुनाना चाहिए।” हालांकि वांग रैन ने मेरा सुझाव नहीं स्वीकारा। एक और बार जब मैं उसके साथ एक कलीसिया में एक अगुआ के चुनाव की मेजबानी करने गई तो एक भाई चुनाव के कुछ सिद्धांतों के बारे में स्पष्ट नहीं था और उसने कुछ सवाल पूछे लेकिन वांग रैन ने न केवल सत्य की संगति नहीं की और प्रश्न सुलझाने में भी उसकी मदद नहीं की, बल्कि उसने उसकी परेशानी को देखकर नाराजगी भी जताई और उसकी आलोचना की। इससे सभा के दौरान बहुत ही अजीब माहौल बन गया और चुनाव प्रभावित हुआ। मैंने देखा कि एक अगुआ के रूप में वांग रैन भाई-बहनों के साथ प्यार से पेश नहीं आई, उन्हें अपने पद के रुतबे से बेबस किया और चुनाव में बाधा डाली। मैं उससे कुछ कहना चाहती थी लेकिन जैसे ही मैं कहने लगी, मैंने सोचा कि जब मैंने पहले उसकी कमियों को बताया था तो उसने न केवल मेरी राय को नकारा था, बल्कि वह प्रतिरोधी और नाराज भी हुई थी। अगर उसने फिर से मेरा सुझाव नहीं स्वीकारा और इतने सारे भाई-बहनों के सामने मुझ पर चीखती तो मैं निश्चित रूप से शर्मिंदा हो जाती। “इसे भूल जाओ,” मैंने सोचा, “परेशानी जितनी कम हो उतना अच्छा है; मुझे अपने लिए परेशानी नहीं खड़ी करनी चाहिए।” कुछ दिनों बाद सुसमाचार उपयाजक ने मुझे बताया कि वांग रैन सभाओं के दौरान भाई-बहनों की वास्तविक समस्याओं और कठिनाइयों का समाधान नहीं कर रही थी, उनका काम खराब था और जब उन्होंने समाधान के लिए उससे संपर्क किया तो उसने उनकी अनदेखा कर दी, उनके अनुरोधों को गंभीरता से नहीं लिया और यहाँ तक कि गुस्सा होकर उन्हें भाषण भी पिलाया। कई मौकों पर इन मुद्दों की ओर ध्यान दिलाने के बावजूद उसने सुझावों को नहीं स्वीकारा और इसलिए उपयाजक ने प्रस्ताव दिया कि हम वांग रैन के मुद्दों के बारे में एक साथ एक रिपोर्ट लिखें। मैंने सोचा कि सुसमाचार उपयाजक ने जो कुछ कहा वह सच है और सिद्धांत के अनुसार हमें वाकई वांग रैन की रिपोर्ट करनी चाहिए, लेकिन फिर मैंने सोचा, “अगर हम रिपोर्ट लिखते हैं और हमारा अगुआ जांच करने आता है, तो क्या वांग रैन अपनी गलतियाँ न मानकर यह नहीं सोचेगी कि मैं पक्षपातपूर्ण राय से प्रभावित होकर उसे बाहर करने की कोशिश कर रही हूँ? अगर मैं हमारे रिश्ते को खराब कर दूँ तो हम आगे चलकर एक साथ अपने कर्तव्य कैसे निभाएँगी? बेहतर होगा कि मैं कुछ न कहूँ।” अपना मन बना लेने के बाद मैंने उपयाजक से कहा कि कोई फैसला करने से पहले मैं जाँच के माध्यम से सब कुछ स्पष्ट हो जाने का इंतजार करूँगी। उसके बाद मैंने नोटिस करना शुरू किया कि वांग रैन में अधिक से अधिक समस्याएँ आ रही हैं। एक बार जब मैं हमारा खाता देख रही थी तो मैंने पाया कि वह कलीसिया के पैसे का उपयोग सिद्धांत के अनुसार नहीं कर रही थी। उसने किसी से चर्चा किए बिना ही कलीसिया के लिए चीजें खरीद लीं और यह भी नहीं सोचा कि इन्हें खरीदना कितना व्यावहारिक होगा। जो चीजें उसने खरीदीं, वे कलीसिया के उद्देश्यों के लिए अनुपयुक्त थीं और उनका इस्तेमाल नहीं किया जा सका, जिसका मतलब है कि उसने कलीसिया के पैसे बर्बाद कर दिए थे। उस स्थिति को देखने के बाद मुझे काफी ग्लानि हुई और मैंने मन-ही-मन में सोचा, “मुझे इस बार कलीसिया के हितों की रक्षा करनी है। मुझे उसकी समस्याओं को बताना है और उसके साथ एक अच्छी, लंबी चर्चा करनी है।” लेकिन जब मैंने उसे उसकी समस्याओं के बारे में बताया तो उसने न सिर्फ मेरे सुझावों को नहीं स्वीकारा, बल्कि मुझसे बहस करने और अपना बचाव करने की भी कोशिश की। मैं उसके कार्यकलापों की प्रकृति और दुष्परिणामों को उसके सामने उजागर करना चाहती थी लेकिन फिर मैंने सोचा, “अगर उसे उजागर करते हुए मैंने बहुत कठोरता बरती तो न सिर्फ वह मेरे खिलाफ हो जाएगी बल्कि वह हर दिन मुझे भाव भी दिखाएगी। इससे मेरा जीवन बहुत कठिन हो जाएगा।” इसलिए मैंने उसे चतुराई से याद दिलाया कि जब एक अगुआ के रूप में समस्याओं का सामना करना पड़ता है तो हमें और अधिक खोजना चाहिए और परमेश्वर का भय मानने वाला हृदय रखना चाहिए। उसके बाद वांग रैन ने मेरे प्रति पक्षपातपूर्ण रवैया अपना लिया, कार्य पर चर्चा करते समय मेरी अनदेखा करने लगी और मुझसे कहने लगी कि मैं इसे अपने आप सुलटा लिया करूँ। मुझे लगा कि वह लगातार अपने कर्तव्य में जिम्मेदारी से काम करने में नाकाम रही, लापरवाह और मनमाने ढंग से काम किया, उसने काट-छाँट को नहीं स्वीकारा और सत्य नहीं स्वीकारा और वह अपने कर्तव्य निभाने के लिए उपयुक्त नहीं थी। मैं उसकी स्थिति के बारे में अगुआ को एक पत्र लिखना चाहती थी, लेकिन मुझे चिंता थी कि अगर उसे निकाल दिया गया तो वह सोचेगी है कि मैंने उसकी पीठ पीछे उसकी पोल खोली है और वह मेरे खिलाफ द्वेष रखेगी। फिर अगर हम बाद में कभी एक-दूसरे से मिले तो यह मेरे लिए अजीब होगा। मैंने कुछ समय तक अपने दिमाग में इस पर विचार किया, लेकिन अंततः अगुआ को पत्र लिखने का विचार त्याग दिया। मुझे यह सोचकर भारी अपराध-बोध हुआ कि सत्य को समझने के बावजूद मैं अपने भ्रष्ट स्वभाव से बेबस होने के कारण अभी भी सत्य का अभ्यास नहीं कर पा रही थी। अगले कुछ दिनों तक मेरा मन उचाट रहा, मैंने जो कुछ करने की कोशिश भी की उसमें असफल रही और मेरे अंदर घुप अँधेरा भर गया। मैंने अक्सर प्रार्थना की, परमेश्वर को अपनी स्थिति के बारे में बताया और उससे खुद को समझने के लिए मार्गदर्शन करने के लिए कहा।

एक दिन भक्ति के दौरान मैंने परमेश्वर के वचनों का यह अंश देखा : “जब तुम लोग कोई समस्या देखकर भी उसे रोकने के लिए कुछ नहीं करते, उसके बारे में संगति नहीं करते, उसे सीमित करने की कोशिश नहीं करते और इसके अलावा, तुम उसकी रिपोर्ट अपने वरिष्ठों को नहीं करते, बल्कि खुशामदी इंसान बनने की कोशिश करते हो, तो क्या यह विश्वासघात की निशानी है? क्या खुशामदी लोग परमेश्वर के प्रति वफादार होते हैं? बिल्कुल नहीं होते। ऐसा व्यक्ति न केवल परमेश्वर के प्रति विश्वासघाती होता है, बल्कि वह शैतान का सहयोगी, उसका अनुचर और अनुयायी होता है। वे अपने कर्तव्य और जिम्मेदारी में विश्वासघाती होते हैं, बल्कि शैतान के प्रति वफादार होते हैं। समस्या का सार इसी में निहित है। जहाँ तक व्यावसायिक अयोग्यता की बात है, अपना कर्तव्य निभाते हुए निरंतर सीखना और अपने अनुभवों को एक-साथ लाना संभव है। ऐसी समस्याओं को आसानी से हल किया जा सकता है। परंतु जिस चीज़ का हल निकालना सबसे कठिन है, वह है मनुष्य का भ्रष्ट स्वभाव। अगर तुम लोग सत्य का अनुसरण या अपने भ्रष्ट स्वभाव का समाधान नहीं करते, बल्कि हमेशा खुशामदी व्यक्ति बने रहते हो, और उन लोगों की काट-छाँट या उनकी मदद नहीं करते जिन्हें तुमने सिद्धांतों का उल्लंघन करते देखा है, न ही उन्हें उजागर या प्रकट करते हो, बल्कि हमेशा पीछे हट जाते हो, जिम्मेदारी नहीं लेते, तो तुम जैसे कर्तव्य निभाते हो, उससे केवल कलीसिया के काम का नुकसान और उसमें देरी ही होगी। रत्ती भर भी जिम्मेदारी लिए बिना अपने कर्तव्य के निर्वहन को तुच्छ मानने से न केवल कार्य की प्रभावशीलता पर प्रभाव पड़ता है, बल्कि कलीसिया के कार्य में बार-बार देरी भी होती है। इस तरह से अपना कर्तव्य निभाकर क्या तुम लापरवाह नहीं हो रहे हो और परमेश्वर को धोखा नहीं दे रहे हो? क्या इससे परमेश्वर के प्रति थोड़ा सी भी निष्ठा दिखती है? अगर तुम अपना कर्तव्य निभाते हुए लगातार लापरवाह रहते हो, और कभी पश्चात्ताप नहीं करना चाहते, तो तुम्हें अवश्य हटा दिया जाएगा(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, उचित कर्तव्यपालन के लिए आवश्यक है सामंजस्यपूर्ण सहयोग)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे यह समझने में मदद की कि कैसे चापलूस लोग दूसरों को नाराज करने से डरते हैं, हमेशा अपने रिश्ते बनाए रखने की चिंता में परमेश्वर के घर के हितों की परवाह करने में असफल रहते हैं और अपने खुद के हितों की रक्षा के लिए परमेश्वर के घर के हित त्यागने में संकोच नहीं करते हैं। सार यह है कि वे परमेश्वर के घर के काम में बाधा और गड़बड़ी पैदा करने में शैतान के अनुचर के रूप में कार्य करते हैं। उनके पास अपने कर्तव्य के प्रति थोड़ी सी भी निष्ठा नहीं है और वे अत्यंत स्वार्थी और नीच हैं। वांग रैन के साथ अपनी साझेदारी के दिनों पर चिंतन करते हुए मैंने साफ तौर पर यह ताड़ लिया था कि वह एक झूठी अगुआ के रूप में बेनकाब हो चुकी है और उसे सत्य सिद्धांतों के अनुसार उजागर किया जाना चाहिए और रिपोर्ट किया जाना चाहिए, लेकिन मुझे चिंता थी कि वह मेरे खिलाफ हो जाएगी और आगे चलकर उससे साथ बातचीत करना मुश्किल हो जाएगा। परिणामस्वरूप, हमारे रिश्ते को बनाए रखने के लिए मैंने खुशामद करने वालों की तरह बर्ताव किया, जब वह कलीसिया में व्यवधान और गड़बड़ी पैदा कर रही थी और कलीसिया के कार्य को नुकसान पहुंचा रही थी तो मैंने नजरें फेर लीं। जहाँ तक मेरी बात है, मुझे परमेश्वर ने ठुकरा दिया और मैं अंधकार में गिर गई और बहुत कष्ट सहा। परमेश्वर के वचनों ने मेरे व्यवहार का अच्छी तरह से वर्णन किया : “वह शैतान का सहयोगी, उसका अनुचर और अनुयायी होता है। वे अपने कर्तव्य और जिम्मेदारी में विश्वासघाती होते हैं, बल्कि शैतान के प्रति वफादार होते हैं।” परमेश्वर ने मुझ पर अनुग्रह कर एक अगुआ का कर्तव्य निभाने का अवसर दिया था, उसे उम्मीद थी कि मैं उसके इरादों की परवाह कर कलीसिया के कार्य की रक्षा करूँगी, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण क्षण में मैं इस उम्मीद पर खरी नहीं उतरी। वास्तव में मैंने कलीसिया के सहारे जीवनयापन करते हुए दुश्मन की मदद भी की, एक झूठे अगुआ की रक्षा की और शैतान के सहयोगी के रूप में काम किया। परमेश्वर को मेरे कार्यकलापों से कितनी घृणा और बेइंतहा नफरत हुई होगी! मैंने मन ही मन सोचा, “मुझे पता था कि मुझे कलीसिया के काम में व्यवधान और गड़बड़ी पैदा करने के लिए झूठे अगुआ की रिपोर्ट करनी चाहिए और ऐसा न करने के लिए मुझे अपराध-बोध हुआ। मैं सत्य का अभ्यास करना चाहती थी तो मैं ऐसा क्यों नहीं कर पाई? मुझे किसके द्वारा नियंत्रित किया जा रहा था?”

बाद में मुझे परमेश्वर के वचनों का यह अंश मिला : “जब तक लोग परमेश्वर के कार्य का अनुभव नहीं कर लेते हैं और सत्य को समझ नहीं लेते हैं, तब तक यह शैतान की प्रकृति है जो भीतर से इन पर नियंत्रण कर लेती है और उन पर हावी हो जाती है। उस प्रकृति में विशिष्ट रूप से क्या शामिल होता है? उदाहरण के लिए, तुम स्वार्थी क्यों हो? तुम अपने पद की रक्षा क्यों करते हो? तुम्हारी भावनाएँ इतनी प्रबल क्यों हैं? तुम उन अधार्मिक चीज़ों से प्यार क्यों करते हो? ऐसी बुरी चीजें तुम्हें अच्छी क्यों लगती हैं? ऐसी चीजों को पसंद करने का आधार क्या है? ये चीजें कहाँ से आती हैं? तुम इन्हें स्वीकारकर इतने खुश क्यों हो? अब तक, तुम सब लोगों ने समझ लिया है कि इन सभी चीजों के पीछे मुख्य कारण यह है कि मनुष्य के भीतर शैतान का जहर है। तो शैतान का जहर क्या है? इसे कैसे व्यक्त किया जा सकता है? उदाहरण के लिए, यदि तुम पूछते हो, ‘लोगों को कैसे जीना चाहिए? लोगों को किसके लिए जीना चाहिए?’ तो लोग जवाब देंगे, ‘हर व्यक्ति अपनी सोचे बाकियों को शैतान ले जाए।’ यह अकेला वाक्यांश समस्या की जड़ को व्यक्त करता है। शैतान का फलसफा और तर्क लोगों का जीवन बन गए हैं। लोग चाहे जिसका भी अनुसरण करें, वे ऐसा बस अपने लिए करते हैं, और इसलिए वे केवल अपने लिए जीते हैं। ‘हर व्यक्ति अपनी सोचे बाकियों को शैतान ले जाए’—यही मनुष्य का जीवन-दर्शन है, और इंसानी प्रकृति का भी प्रतिनिधित्व करता है। ... मनुष्य की शैतानी प्रकृति बड़ी मात्रा में शैतानी फलसफों और विषों से युक्त है। कभी-कभी तुम स्वयं ही उनके बारे में अवगत नहीं होते और उन्हें नहीं समझते; फिर भी तुम्हारे जीवन का हर पल इन चीजों पर आधारित है। इसके अलावा तुम्हें लगता है कि ये चीजें बहुत सही और तर्कसम्मत हैं, और बिल्कुल भी गलत नहीं हैं। यह, यह दिखाने के लिए पर्याप्त है कि शैतान के फलसफे लोगों की प्रकृति बन गए हैं और वे पूरी तरह से उनके अनुसार जी रहे हैं, इस तरह से जीने को अच्छा मानते हैं और उनमें जरा-सा भी पश्चात्ताप का भाव नहीं होता। इसलिए, वे लगातार अपनी शैतानी प्रकृति प्रकट कर रहे हैं और वे निरंतर शैतानी फलसफे के अनुसार जीवन जी रहे हैं। शैतान की प्रकृति मनुष्य का जीवन है, और वह मनुष्य का प्रकृति सार है(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, पतरस के मार्ग पर कैसे चलें)। परमेश्वर के वचनों के माध्यम से मैंने सीखा कि लोगों को खुश करने वाले मेरे व्यवहार का मूल यह था कि मैं शैतान के जहरों के अनुसार जीती थी, जैसे कि “हर व्यक्ति अपनी सोचे बाकियों को शैतान ले जाए,” “अच्छे दोस्तों की गलतियों पर खामोश रहने से दोस्ती अच्छी और लंबी होती है,” “अगर तुम दूसरों पर वार करते हो, तो उनके चेहरे पर वार मत करो; अगर तुम दूसरों की आलोचना करते हो, तो उनकी कमियों की आलोचना मत करो,” आदि। मेरे दिल में ये जहर पहले से रचे-बसे थे और मैं उन्हीं के अनुसार जीती रही, हमेशा अपने रिश्ते बनाए रखने की कोशिश करती रही। अपनी छवि बचाने के लिए मैं लगातार स्वार्थी, धोखेबाज और मनुष्य के गुणों से दूर होती जा रही थी। ये जहर मेरी प्रकृति बन चुके थे और मेरे सारे कार्यकलाप इनसे नियंत्रित होते थे। मैं स्पष्ट रूप से जानती थी कि सत्य क्या है लेकिन मैं इसका अभ्यास कर ही नहीं पा रही थी। परमेश्वर पर विश्वास शुरू करने से पहले के दिनों में मैं चाहे जिस किसी से भी बात करती थी, उससे अपना रिश्ता कायम रखने और उस पर अच्छी छाप छोड़ने की खातिर मैं हमेशा अपने शब्दों और कार्यों में नुकसान उठाने के लिए तैयार रहती थी। परमेश्वर पर विश्वास करने के बाद भी मैंने इन शैतानी जहरों के अनुसार जीना जारी रखा। वांग रैन के साथ अपने रिश्ते को बनाए रखने के लिए मैंने उसकी समस्याओं को देखकर भी उससे जिक्र नहीं किया और उसे उजागर नहीं किया और रिपोर्ट नहीं की जबकि मैंने स्पष्टता से देखा कि वह एक झूठी अगुआ थी, जिससे कलीसिया के काम को नुकसान हुआ। मुझे एहसास हुआ कि मैं एक धोखेबाज इंसान थी, कृतघ्न और चापलूस थी। दूसरों के साथ संबंध बनाए रखने के अपने प्रयासों पर ध्यान केंद्रित करते हुए मैंने परमेश्वर के घर के कार्य या अपने भाई-बहनों के जीवन प्रवेश की थोड़ी-सी भी परवाह नहीं की। मैं अपना कर्तव्य बिल्कुल नहीं निभा रही थी; मैं बुराई कर रही थी! मैं अपने साथी मनुष्यों की तुलना में परमेश्वर को नाराज करना पसंद कर रही थी। अपने हितों की रक्षा करने की कोशिश में मैं सत्य का अभ्यास करने में नाकाम रही, सिद्धांत के अनुसार काम नहीं किया और शैतान के अनुचर के रूप में काम किया, एक झूठे अगुआ को अपनी मर्जी से कलीसिया के काम को नुकसान पहुँचाने दिया। यह कितना घिनौना है! तभी मुझे एहसास हुआ कि चापलूस लोग बुरे दिल वाले होते हैं और परमेश्वर उनसे घृणा करता है! अगर मैंने पश्चात्ताप नहीं किया तो मैं निश्चित रूप से परमेश्वर द्वारा ठुकराकर निकाल दी जाऊँगी।

बाद में मैंने परमेश्वर के वचनों का एक और अंश देखा जिसमें कहा गया था : “अगर तुम्हारे पास एक ‘खुशामदी व्यक्ति’ होने की प्रेरणाएं और दृष्टिकोण हैं, तब तुम सभी मामलों में सत्य का अभ्यास और सिद्धांतों का पालन नहीं कर पाओगे, तुम हमेशा असफल होकर नीचे गिरोगे। यदि तुम जागरूक नहीं होते और कभी सत्य नहीं खोजते, तो तुम छद्म-विश्वासी हो और कभी सत्य और जीवन प्राप्त नहीं कर पाओगे। तब तुम्हें क्या करना चाहिए? इस तरह की चीजों से सामना होने पर, तुम्हें परमेश्वर से प्रार्थना करनी चाहिए और उसे पुकारना चाहिए, उद्धार के लिए विनती करनी चाहिए और माँगना चाहिए कि वह तुम्हें अधिक आस्था और शक्ति दे, और तुम्हें सिद्धांतों का पालन करने में समर्थ बनाए, वो करो जो तुम्हें करना चाहिए, चीजों को सिद्धांतों के अनुसार संभालो, उस स्थिति में मजबूती से खड़े रहो जहाँ तुम्हें होना चाहिए, परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा करो और परमेश्वर के घर के कार्य को होने वाले किसी भी नुकसान को रोको। अगर तुम अपने स्वार्थों को, अपने अभिमान और एक ‘खुशामदी व्यक्ति’ होने के दृष्टिकोण के खिलाफ विद्रोह करने में सक्षम हो, और अगर तुम एक ईमानदार, अविभाजित हृदय के साथ वह करते हो जो तुम्हें करना चाहिए, तो तुम शैतान को हरा चुके होगे, और सत्य के इस पहलू को प्राप्त कर चुके होगे(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, भाग तीन)। “तुम सभी कहते हो कि तुम परमेश्वर के बोझ के प्रति विचारशील हो और कलीसिया की गवाही की रक्षा करोगे, लेकिन वास्तव में तुम में से कौन परमेश्वर के बोझ के प्रति विचारशील रहा है? अपने आप से पूछो : क्या तुम उसके बोझ के प्रति विचारशील रहे हो? क्या तुम उसके लिए धार्मिकता का अभ्यास कर सकते हो? क्या तुम मेरे लिए खड़े होकर बोल सकते हो? क्या तुम दृढ़ता से सत्य का अभ्यास कर सकते हो? क्या तुममें शैतान के सभी दुष्कर्मों के विरूद्ध लड़ने का साहस है? क्या तुम अपनी भावनाओं को किनारे रखकर मेरे सत्य की खातिर शैतान का पर्दाफ़ाश कर सकोगे? क्या तुम मेरे इरादों को स्वयं में संतुष्ट होने दोगे? सबसे महत्वपूर्ण क्षणों में क्या तुमने अपने दिल को समर्पित किया है? क्या तुम ऐसे व्यक्ति हो जो मेरी इच्छा पर चलता है? स्वयं से ये सवाल पूछो और अक्सर इनके बारे में सोचो(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 13)। परमेश्वर के वचनों के माध्यम से मुझे एहसास हुआ कि झूठे अगुआओं की रिपोर्ट करना और उन्हें उजागर करना परमेश्वर के चुने हुए लोगों में से प्रत्येक का कर्तव्य और जिम्मेदारी है और यह एक सकारात्मक बात है। ऐसा करने से कलीसिया के काम में बाधा नहीं आती, भाई-बहनों को कलीसिया में अच्छा जीवन जीने का मौका मिलता है और झूठे अगुआओं को अपने कामों को सही मायने में समझने में मदद मिलती है और समय रहते परमेश्वर के सामने पश्चात्ताप करने में मदद मिलती है। जहाँ तक मेरी बात है, मैं भ्रामकता से मानती थी कि झूठे अगुआ की रिपोर्ट करना उस व्यक्ति के लिए अपमानजनक होगा और इसलिए स्पष्टता से देखने के बावजूद कि वांग रैन ने वास्तविक काम नहीं किया, मैं उसकी रिपोर्ट करने और उसे उजागर करने में नाकाम रही, जिससे कलीसिया की हर परियोजना में बाधा आई। यह बहुत गंभीर लापरवाही थी। मुझे दूसरों के साथ अपने संबंध कायम रखने के लिए शैतानी फलसफे के अनुसार जीना बंद करना था। मुझे परमेश्वर के साथ खड़ा होना था, सिद्धांतों के अनुसार मामलों को संभालना था, कलीसिया के काम की रक्षा करनी थी और न्याय-बोध के साथ काम करना था। केवल ऐसा करने से ही मैं परमेश्वर के इरादे के अनुरूप हो पाऊँगी। फिर मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, “हे परमेश्वर! तुमने मुझे बार-बार सत्य का अभ्यास करने के अवसर दिए हैं, लेकिन मैं लगातार एक भ्रष्ट स्वभाव में जी रही हूँ, खुद को बचाती रही हूँ और तुम्हें संतुष्ट करने में नाकाम रही हूँ। अब मैं सांसारिक आचरण के खुशामदी फलसफे के अनुसार नहीं जीऊँगी और वांग रैन को उजागर करने के लिए एक पत्र लिखूँगी।” मैं अपनी रिपोर्ट लिखने की तैयारी कर ही रही थी कि मेरे अगुआ ने मुझे एक सभा के लिए आमंत्रित किया और मैंने उसे वांग रैन की सभी समस्याओं के बारे में बताया। मैंने यह भी बताया कि कैसे मैं तब चापलूस बनी रही, सत्य का अभ्यास करने में नाकाम रही और कलीसिया के हितों को नुकसान पहुँचाया।

मामले की जाँच करने के बाद वांग रैन को एक झूठा अगुआ पाया गया जो वास्तविक कार्य करने में नाकाम रही और उसे बर्खास्त कर दिया जाना चाहिए। वांग रैन की बर्खास्तगी के दिन अगुआ द्वारा उसके व्यवहार के प्रकाशन के बाद उसने मुझसे टिप्पणी करने के लिए कहा। मुझे थोड़ी चिंता हुई, “अगर मैं उसे उजागर कर दूँ तो वह निश्चित रूप से मेरे खिलाफ हो जाएगी और सोचेगी कि उसे सिर्फ इसलिए निकाल दिया गया क्योंकि मैंने उसकी समस्याओं की रिपोर्ट की थी। क्या इससे आगे चलकर उसके साथ बातचीत करना मुश्किल नहीं हो जाएगा?” मुझे एहसास हुआ कि मैं एक बार फिर से व्यक्तिगत संबंध बनाए रखने की कोशिश कर रही थी और एक चापलूस जैसा बर्ताव कर रही थी, इसलिए मैंने चुपचाप परमेश्वर से प्रार्थना की। फिर मुझे परमेश्वर के वचनों का एक अंश याद आया : “परमेश्वर ने लोगों को बहुत सारा सत्य प्रदान किया है, इतने लंबे समय तक तुम्हारी अगुआई की है और तुम्हें इतना कुछ दिया है, ताकि तुम गवाही दे सको और कलीसिया के कार्य की रक्षा करो। ऐसा लगता है कि जब बुरे लोग और मसीह-विरोधी बुरे कर्म करते हैं और कलीसिया के कार्य में बाधा डालते हैं, तो तुम डरपोक बनकर पीछे हट जाते हो, हाथ खड़े कर भाग जाते हो—तुम किसी काम के नहीं हो। तुम शैतानों को नहीं हरा सकते, तुम गवाह नहीं बने हो और परमेश्वर तुमसे घृणा करता है। इस महत्वपूर्ण क्षण में तुम्हें मजबूती से खड़े होकर शैतानों के खिलाफ युद्ध छेड़ना चाहिए, मसीह-विरोधियों के बुरे कर्मों को उजागर करना चाहिए, उनकी निंदा कर उन्हें कोसना चाहिए, उन्हें छिपने की कोई जगह नहीं देनी चाहिए और उन्हें कलीसिया से निकाल बाहर करना चाहिए। केवल इसे ही शैतान पर विजय पाना और उनकी नियति को खत्म करना कहा जा सकता है(वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ (भाग आठ))। परमेश्वर के वचनों ने मुझे सत्य का अभ्यास करने की शक्ति दी। मैंने सोचा कि कैसे पहले मैंने सत्य का अभ्यास करने के कई अवसर खो दिए थे क्योंकि मैं खुद को बचाना चाहती थी और लोगों की अभिव्यक्तियाँ और झुकाव भाँपकर उसी अनुसार कार्य करने का प्रयास करती थी। इस बार मुझे परमेश्वर पर निर्भर रहना था ताकि सत्य का अभ्यास कर वांग रैन की सभी समस्याएँ उजागर करूँ और उसे आत्मचिंतन करने और खुद को जानने में मदद करूँ। यह एहसास होने पर मैंने वांग रैन की सभी समस्याएँ एक-एक कर बतानी शुरू कर दीं और इस प्रक्रिया में खुद को अत्यंत सहज महसूस किया।

इस अनुभव के माध्यम से मैंने महसूस किया है कि चापलूस होना खुद अपने और दूसरों के लिए हानिकारक है और परमेश्वर ऐसे लोगों का खास तिरस्कार करता है। परमेश्वर चापलूसों को पूर्ण नहीं बनाता—परमेश्वर ऐसे ईमानदार लोगों को पसंद करता है जिनमें अपनी पसंद-नापसंद को लेकर स्पष्ट दृढ़ विश्वास होता है, न्याय-बोध होता है और जो परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा करने में सक्षम होते हैं। केवल ऐसे लोग ही परमेश्वर के इरादों के अनुरूप अपना कर्तव्य निभाते हैं और उद्धार पा सकते हैं।

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