63. मैंने आखिरकार परमेश्वर की वाणी सुनी

डेविड, वेनेजुएला

मैं वेनेजुएला में एक प्रदेश सरकार के लिए पेरोल सुपरवाइजर हुआ करता था। मुझे हर दिन वेतन के मसलों और बहुत-से लोगों की माँगों से निपटना पड़ता था। रोजाना मेरा ध्यान काम पर ही होता था, और बहुत व्यस्त होने पर भी, मेरा जीवन हमेशा बहुत शांतिपूर्ण रहता था। जब महामारी ने एकाएक धावा बोला, लोग दूसरों के साथ मिल-जुल नहीं सके और उनकी आमदनी उनके खाने-पीने के खर्चे की आधी जितनी भी नहीं रही। मेरा जीवन भी मुश्किल में आ गया। खाने-पीने की चीजों के लिए कतार में खड़े होना पड़ता था, गैस लेने के लिए 3 दिन तक लाइन लगती थी। तब, मैंने सुकून पाने के लिए प्रभु के वचनों पर गौर किया।

मेरा पड़ोसी भी एक विश्वासी था, जब भी हम एक-दूसरे से मिलते, तो हम अपनी आस्था के बारे में कुछ न कुछ बातें करते। हम दोनों को लगता था कि इन तमाम विपत्तियों की बाइबल में कैसे भविष्यवाणी हो चुकी थी, और मानवजाति की बुराई और भ्रष्टता ही इन सभी विपत्तियों की जड़ है। हम अंत के दिनों में हैं, और बाइबल में भविष्यवाणी की गई है कि इस वक्त प्रभु यीशु हमारा न्याय करने के लिए लौट आएगा, इसलिए हमें परमेश्वर की सुरक्षा और उद्धार पाने के लिए प्रभु का स्वागत करना था। हर दिन बुद्धि और मार्गदर्शन के लिए मैं परमेश्वर से प्रार्थना करता था। मैं परमेश्वर को जानना चाहता था, और मुझे उसे ढूँढने की जरूरत थी, क्योंकि परमेश्वर का वचन ही एकमात्र तरीका था जिससे मैं सुकून पा सकता था। इसलिए मैंने बाइबल खोलकर परमेश्वर से मुझे प्रबुद्ध करने की विनती की। मैंने भजन संहिता, नीतिवचन और प्रभु यीशु के पहाड़ी उपदेश पढ़े, लेकिन अब भी वह मार्ग नहीं मिला जिस पर मुझे चलना चाहिए। मैंने हारा हुआ महसूस किया, वित्तीय समस्याएँ और बद से बदतर होती जा रही थीं। मेरा जीवन संकट में डूबता जा रहा था, और मैं अपने परिवार को चीजें मुहैया नहीं कर पा रहा था। अपनी बेटी की जरूरतें पूरी नहीं कर पाया। मैं सचमुच दुखी था, और बस उसे यही कहकर आराम पहुँचा पा रहा था कि ये मुश्किलें कुछ वक्त की ही हैं, मगर मैं भी यह नहीं मान पा रहा था। उदासी ने मेरे दिल को घेर लिया। समझ नहीं आया कि क्या करूँ। मैं यह देश छोड़कर कहीं और बस जाना चाहता था, कोई और समाधान ढूँढना चाहता था, मगर महामारी के कारण मैं अपना पासपोर्ट और सारे जरूरी दस्तावेज नहीं जुटा पाया। मेरी जिंदगी अस्त-व्यस्त होती जा रही थी। तभी, मेरी पत्नी ने कहा कि वह अब मेरे साथ नहीं रहना चाहती। मेरे लिए यह सबसे आखिरी झटका था। मैं गिर पड़ा और एहसास हुआ कि अब जीवन का कोई अर्थ नहीं रहा। मैं अवसाद में घिर गया—बहुत पीड़ा में था। मैं खूब रोता रहता और कई रातों में सो नहीं पाया। परमेश्वर से प्रार्थना करके ही मुझे थोड़ी शांति मिल सकती थी।

फिर एक दिन, मुझे व्हाट्सऐप पर एक संदेश मिला। एक बहन ने मुझे परमेश्वर के वचन सुनने के लिए एक ईसाई क्लास में शामिल होने का न्योता दिया, और पूछा कि क्या मैं इसका अध्ययन करना चाहता हूँ। मैंने “हाँ” कहा, तो उसने मुझे एक स्टडी ग्रुप में शामिल कर लिया। जब मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन सुने, मुझे लगा कि यह मेरी प्रार्थनाओं पर परमेश्वर का अनुग्रह था। मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अधिकारपूर्ण वचनों की ओर खिंचा चला गया, इन वचनों ने मेरी बहुत-सी शंकाओं और धारणाओं को दूर कर दिया। मैंने जान लिया कि परमेश्वर लौट आया है और वह नया कार्य कर रहा है। इसका मुझ पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ा। अपने आश्चर्य, आनंद, और कौतूहल के बीच, मैंने मानवजाति को बचाने की परमेश्वर की 6,000-वर्षीय प्रबंधन योजना और उसके तीन चरणों के कार्य के बारे में जाना, यह भी जाना कि हर युग में वह एक अलग नाम धारण करता है (यहोवा, यीशु और सर्वशक्तिमान परमेश्वर), और प्रत्येक युग में उसके कार्य का अर्थ क्या है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन मुझे अच्छे लगे—मैं बहुत खुश था। मैं और भी सत्य समझना चाहता था, उनके बारे में दूसरों से साझा करना चाहता था, तो मैंने अपने पड़ोसियों के साथ खुशी-खुशी सुसमाचार साझा किया, उन्हें बताया कि प्रभु यीशु लौट आया है। मैंने सोचा कि परमेश्वर का अंत के दिनों का सुसमाचार सुनने वाला कोई भी विश्वासी खुशी से झूमकर सत्य खोजेगा, और खुशी-खुशी सुसमाचार को स्वीकार कर लेगा। लेकिन इसका उल्टा हुआ। उन्होंने मुझसे पूछा, “बाइबल में इनमें से कुछ भी दर्ज नहीं है, आपको यह कहाँ से मिला?” मैंने उन्हें बताया, “मैंने इसे एक ऑनलाइन स्टडी ग्रुप से जाना है, और हाल ही में इसका अध्ययन शुरू किया है, इसलिए मेरा ज्ञान सीमित है, लेकिन सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों ने मुझे सचमुच अपनी तरफ खींच लिया है।” उन्होंने मुझे सतर्क रहने को कहा, और बताया कि अंत के दिनों में बहुत-से झूठे मसीह उठ खड़े होंगे। फिर उन्होंने मुझे बाइबल के कुछ पद भेजे : “उस समय यदि कोई तुम से कहे, ‘देखो, मसीह यहाँ है,’ या ‘देखो, वहाँ है,’ तो प्रतीति न करना; क्योंकि झूठे मसीह और झूठे पैगंबरों का उत्थान होगा, और वे संकेत और चमत्कार दिखाएँगे, अगर यह मुमकिन हुआ, तो परमेश्वर के चुने हुए लोग भी गुमराह हो जाएँगे। पर तुम चौकस रहो; देखो, मैं ने तुम्हें सब बातें पहले ही से बता दी हैं(मरकुस 13:21-23)। उन्होंने कहा कि मैं एक झूठे धर्म पर गौर कर रहा था, 21वीं सदी की इस उन्नत टेक्नोलॉजी वाली दुनिया में, अगर प्रभु यीशु लौट आया, तो वह यकीनन ऐसा बहुत बड़ा चमत्कार दिखाएगा, जो सारी दुनिया में हड़कंप मचा देगा, लेकिन अब तक ऐसा कुछ नहीं हुआ। साथ ही, हमने प्रभु यीशु द्वारा रोगियों को चंगा करना, मृतकों को जीवित करना या ऐसी चीजें होते हुए नहीं देखी थीं, यानी प्रभु अब तक लौटकर नहीं आया। उनकी बात सुनकर, मेरा दिल शंकाओं से भर गया। मुझे प्रभु यीशु को धोखा देने का डर लगा। मुझे धोखा खाने और झूठे मसीह के अनुसरण को लेकर फिक्र थी। शुरू से ही मुझे हमेशा यकीन था कि प्रभु यीशु बादलों पर सवार होकर वापस आएगा, और एक विशाल सफेद सिंहासन पर बैठकर हर इंसान का उसके किए के अनुसार न्याय करेगा, लेकिन सुसमाचार साझा करने वालों ने कहा कि परमेश्वर देहधारी होकर हमारे पापों का न्याय करने के लिए वचन बोल रहा है। इन सारी चीजों से मैं असमंजस में था, बहुत बेचैन हो गया था। मूल रूप से मैं सचमुच हमारे संध्या उपदेश की बाट जोह रहा था और मैं इसकी जाँच-पड़ताल जारी रखना चाहता था, लेकिन अपने पड़ोसियों की बातें मेरे दिल में गहरे बैठ गई थीं, इसलिए मैं सतर्क था। उपदेश शुरू होने पर, मैंने ग्रुप को छोड़ने का फैसला कर लिया। मैंने व्हाट्सऐप पर ग्रुप छोड़ देने का स्पष्टीकरण देते हुए एक संदेश लिखा, मैंने अपनी चिंताएँ भी बताईं और कहा कि मुझे किसी झूठे मसीह से धोखा खाने को लेकर फिक्र थी, मैंने अपने पड़ोसियों से मिले बाइबल के पद साथ में जोड़ दिए। जैसे ही मैं संदेश भेजकर ग्रुप छोड़ देने को था, मुझे अचानक एक सूचना मिली कि मेरे मोबाइल में पॉवर खत्म हो चुका था और वह बंद होने वाला था। मैं हैरान था, क्योंकि सभाओं से पहले मैं हमेशा अपना फोन पूरी तरह चार्ज कर लेता था, तो अचानक बैटरी क्यों खत्म हो गई? लेकिन अभी भी मेरा मन ग्रुप छोड़ने को लेकर अटका हुआ था। मैंने खुद से कहा : मसीह अगर लौट आया है तो बड़े चमत्कार कैसे नहीं हो रहे? मैंने फिर से प्लग लगाया और निर्णय लिया जब मेरा फोन चालू करने लायक न्यूनतम चार्ज हो जाएगा तो मैं फिर से संदेश टाइप करके भेज दूँगा। बैटरी के 5% होने पर, मैंने फोन चालू किया, तो देखा कि बाइबल के कुछ पद ग्रुप को भेजे गए थे। कौतूहल से मैंने उन्हें पढ़ा : “देख, मैं द्वार पर खड़ा हुआ खटखटाता हूँ; यदि कोई मेरा शब्द सुनकर द्वार खोलेगा, तो मैं उसके पास भीतर आकर उसके साथ भोजन करूँगा और वह मेरे साथ(प्रकाशितवाक्य 3:20)। “मेरी भेड़ें मेरा शब्द सुनती हैं; मैं उन्हें जानता हूँ, और वे मेरे पीछे पीछे चलती हैं(यूहन्ना 10:27)। भाई-बहनों ने संगति की, “परमेश्वर के वचन से हम समझ सकते हैं कि प्रभु वापस आने पर, दरवाजे पर दस्तक देगा, और अपनी भेड़ों को अपने वचनों से पुकारेगा। हम प्रभु का स्वागत कर सकते हैं या नहीं, यह मुख्यतः इस बात पर निर्भर करता है कि क्या हम उसकी वाणी सुनते हैं। हमें समर्थ होना होगा कि प्रभु की वाणी सुनें, दरवाजा खोलें, उसका स्वागत करें और उसके साथ दावत करें। तो अगर आप किसी को गवाही देते सुनें कि प्रभु लौट आया है, तो दरवाजा बंद न करें, धोखा खाने से न डरें, बल्कि एक बुद्धिमान कुँआरी बनें—प्रभु की वाणी को सुनने पर ध्यान देना अहम है।” फिर मैंने देखा कि एक बहन ने ग्रुप को सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों का एक अंश भेजा था, जो कहता है : “यदि वर्तमान समय में ऐसा कोई व्यक्ति उभरे, जो चिह्न और चमत्कार प्रदर्शित करने, दुष्टात्माओं को निकालने, बीमारों को चंगा करने और कई चमत्कार दिखाने में समर्थ हो, और यदि वह व्यक्ति दावा करे कि वह यीशु है जो आ गया है, तो यह बुरी आत्माओं द्वारा उत्पन्न नकली व्यक्ति होगा, जो यीशु की नकल उतार रहा होगा। यह याद रखो! परमेश्वर वही कार्य नहीं दोहराता। कार्य का यीशु का चरण पहले ही पूरा हो चुका है, और परमेश्वर कार्य के उस चरण को पुनः कभी हाथ में नहीं लेगा। ... मनुष्य की धारणाओं के अनुसार, परमेश्वर को सदैव चिह्न और चमत्कार दिखाने चाहिए, सदैव बीमारों को चंगा करना और दुष्टात्माओं को निकालना चाहिए, और सदैव ठीक यीशु के समान होना चाहिए। परंतु इस बार परमेश्वर इसके समान बिल्कुल नहीं है। यदि अंत के दिनों के दौरान, परमेश्वर अब भी चिह्नों और चमत्कारों को प्रदर्शित करे, और अब भी दुष्टात्माओं को निकाले और बीमारों को चंगा करे—यदि वह बिल्कुल यीशु की तरह करे—तो परमेश्वर वही कार्य दोहरा रहा होगा, और यीशु के कार्य का कोई महत्व या मूल्य नहीं रह जाएगा। इसलिए परमेश्वर प्रत्येक युग में कार्य का एक चरण पूरा करता है। ज्यों ही उसके कार्य का प्रत्येक चरण पूरा होता है, बुरी आत्माएँ शीघ्र ही उसकी नकल करने लगती हैं, और जब शैतान परमेश्वर के बिल्कुल पीछे-पीछे चलने लगता है, तब परमेश्वर तरीक़ा बदलकर भिन्न तरीक़ा अपना लेता है। ज्यों ही परमेश्वर ने अपने कार्य का एक चरण पूरा किया, बुरी आत्माएँ उसकी नकल कर लेती हैं। तुम लोगों को इस बारे में स्पष्ट होना चाहिए(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आज परमेश्वर के कार्य को जानना)। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों और दूसरों की संगति ने मुझे ताज्जुब में डाल दिया। इसमें वो तमाम जवाब थे जो मैं चाहता था। मैंने खुद से कहा : यह बिल्कुल सही है! परमेश्वर हमेशा नया होता है, कभी पुराना नहीं होता, और वह हमेशा नया कार्य करता है। वह अपना पुराना कार्य नहीं दोहराता। प्रभु यीशु ने व्यवस्था के युग का कार्य नहीं दोहराया था, तो परमेश्वर लौटकर आने पर अनुग्रह के युग जैसा ही कार्य क्यों करेगा? अब सर्वशक्तिमान परमेश्वर आया है, उसने नया युग शुरू किया है, राज्य के युग का नया कार्य कर रहा है। यह कार्य पहले कभी नहीं किया गया। सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने हमें चेताया भी है : “यदि वर्तमान समय में ऐसा कोई व्यक्ति उभरे, जो चिह्न और चमत्कार प्रदर्शित करने, दुष्टात्माओं को निकालने, बीमारों को चंगा करने और कई चमत्कार दिखाने में समर्थ हो, और यदि वह व्यक्ति दावा करे कि वह यीशु है जो आ गया है, तो यह बुरी आत्माओं द्वारा उत्पन्न नकली व्यक्ति होगा, जो यीशु की नकल उतार रहा होगा।” हाँ, सिर्फ बुरी आत्माएँ ही परमेश्वर के पुराने कार्य की नकल करती हैं, और लोगों को गुमराह करने के लिए चमत्कार करके परमेश्वर होने का नाटक करती हैं। यह बात सचमुच प्रबुद्ध करने वाली थी। मैंने जान लिया कि झूठे मसीहों में से सच्चे वाले मसीह को कैसे जानें-समझें, और राज्य के युग में परमेश्वर द्वारा संकेत और चमत्कार न दिखाए जाने का असली कारण क्या है। अंत के दिनों में, परमेश्वर सत्य व्यक्त कर, न्याय, शुद्धिकरण, और मानवजाति को बचाने का कार्य करता है, इंसान को अपने राज्य की ओर ले जाता है। एक बार यह समझ लेने पर, मैंने सभाओं में जाना जारी रखा।

बाद में, मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों का एक और अंश पढ़ा : “जो भी यीशु पर विश्वास करता है वह दूसरों को शाप देने या निंदा करने के योग्य नहीं है। तुम सब लोगों को ऐसा व्यक्ति होना चाहिए, जो समझदार है और सत्य स्वीकार करता है। शायद, सत्य के मार्ग को सुनकर और जीवन के वचन को पढ़कर, तुम विश्वास करते हो कि इन 10,000 वचनों में से सिर्फ़ एक ही वचन है, जो तुम्हारे दृढ़ विश्वास और बाइबल के अनुसार है, और फिर तुम्हें इन 10,000 वचनों में खोज करते रहना चाहिए। मैं अब भी तुम्हें सुझाव देता हूँ कि विनम्र बनो, अति-आत्मविश्वासी न बनो और अपनी बहुत बड़ाई न करो। परमेश्वर का भय मानने वाले अपने थोड़े-से हृदय से तुम अधिक रोशनी प्राप्त करोगे। यदि तुम इन वचनों की सावधानी से जाँच करो और इन पर बार-बार मनन करो, तब तुम समझोगे कि वे सत्य हैं या नहीं, वे जीवन हैं या नहीं। शायद, केवल कुछ वाक्य पढ़कर, कुछ लोग इन वचनों की आँखें मूँदकर यह कहते हुए निंदा करेंगे, ‘यह पवित्र आत्मा की थोड़ी प्रबुद्धता से अधिक कुछ नहीं है,’ या ‘यह एक झूठा मसीह है जो लोगों को गुमराह करने आया है।’ जो लोग ऐसी बातें कहते हैं वे अज्ञानता से अंधे हो गए हैं! तुम परमेश्वर के कार्य और बुद्धि को बहुत कम समझते हो और मैं तुम्हें पुनः शुरू से आरंभ करने की सलाह देता हूँ! तुम लोगों को अंत के दिनों में झूठे मसीहों के प्रकट होने की वजह से आँख बंदकर परमेश्वर द्वारा अभिव्यक्त वचनों का तिरस्कार नहीं करना चाहिए और चूँकि तुम गुमराह होने से डरते हो, इसलिए तुम्हें पवित्र आत्मा के खिलाफ निंदा नहीं करनी चाहिए। क्या यह बड़ी दयनीय स्थिति नहीं होगी? यदि, बहुत जाँच के बाद, अब भी तुम्हें लगता है कि ये वचन सत्य नहीं हैं, मार्ग नहीं हैं और परमेश्वर की अभिव्यक्ति नहीं हैं, तो फिर अंततः तुम दंडित किए जाओगे और आशीष के बिना होगे। यदि तुम ऐसा सत्य, जो इतने सादे और स्पष्ट ढंग से कहा गया है, स्वीकार नहीं कर सकते, तो क्या तुम परमेश्वर के उद्धार के अयोग्य नहीं हो? क्या तुम ऐसे व्यक्ति नहीं हो, जो परमेश्वर के सिंहासन के सामने लौटने के लिए पर्याप्त सौभाग्यशाली नहीं है? इस बारे में सोचो! उतावले और अविवेकी न बनो और परमेश्वर में विश्वास के साथ खेल की तरह पेश न आओ। अपनी मंज़िल के लिए, अपनी संभावनाओं के वास्ते, अपने जीवन के लिए सोचो और स्वयं से खेल न करो। क्या तुम इन वचनों को स्वीकार कर सकते हो?(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जब तक तुम यीशु के आध्यात्मिक शरीर को देखोगे, परमेश्वर स्वर्ग और पृथ्वी को फिर से बना चुका होगा)। परमेश्वर के वचनों से मैंने समझा कि अंत के दिनों में परमेश्वर के वापसी को लेकर हमें मसीह के प्रकटन को उतावलेपन से नकारना नहीं चाहिए। झूठे मसीह अंत के दिनों में प्रकट होंगे, इसका यह अर्थ नहीं कि हम आँखें बंद कर परमेश्वर के नए कार्य और वचनों को ठुकरा दें और उनकी निंदा करें। हमें ठीक बुद्धिमान कुंवारियों के समान बनना चाहिए, हमें परमेश्वर की वाणी सुनना सीखना चाहिए, और विनम्र बनकर खोजी रवैए के साथ परमेश्वर के कार्य की जाँच-पड़ताल करनी चाहिए। परमेश्वर की वाणी सुनने और प्रभु का स्वागत करने का यही एकमात्र मार्ग है। वरना, हम परमेश्वर का उद्धार खो देंगे। जैसा कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है : “उतावले और अविवेकी न बनो और परमेश्वर में विश्वास के साथ खेल की तरह पेश न आओ। अपनी मंज़िल के लिए, अपनी संभावनाओं के वास्ते, अपने जीवन के लिए सोचो और स्वयं से खेल न करो। क्या तुम इन वचनों को स्वीकार कर सकते हो?” सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों ने मुझे दिखाया कि जब पड़ोसियों के भ्रामक विचारों ने मुझे उसके कार्य की जाँच-पड़ताल करने से रोक दिया, तो मैंने उसे मानने में उतावलापन दिखाया। मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया को ज्यादा गहराई से समझाने की कोशिश नहीं की, न ही सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के दूसरे लोगों के पास जाकर अपने सवालों के जवाब पूछे। मैंने आवेग से ग्रुप छोड़ देने और सच्चे मार्ग पर गौर करना बंद करने का फैसला ले लिया। अपने उतावलेपन में मैंने अंत के दिनों में परमेश्वर का उद्धार लगभग खो दिया था। फिर मैं जान गया कि असमंजस और शंकाओं का सामना होने पर मुझे आवेग में झुकना नहीं चाहिए, न ही उतावलेपन से आलोचना करनी चाहिए, मुझे सतर्क रहना चाहिए, हर समय परमेश्वर से प्रार्थना करनी चाहिए और सत्य खोजना चाहिए। मुझे परमेश्वर के वचनों के साथ सम्मान से पेश आना चाहिए, विनम्रता से सत्य खोजना चाहिए, ताकि उसके मार्गदर्शन से परमेश्वर की वाणी पहचान सकूँ और प्रभु के वापस आने का स्वागत कर सकूँ। इसके बाद हर दिन सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को खाकर और पीकर, मुझे बाइबल की गहरी समझ मिली और मुझे यकीन हो गया कि यह अंत के दिनों में परमेश्वर का प्रकटन और कार्य ही था, और मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर को बेझिझक स्वीकार लिया।

एक दिन, मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों के दो और अंश पढ़े : “ऐसी चीज़ की जाँच-पड़ताल करना कठिन नहीं है, परंतु इसके लिए हममें से प्रत्येक को इस सत्य को जानने की ज़रूरत है : जो देहधारी परमेश्वर है, उसके पास परमेश्वर का सार होगा और जो देहधारी परमेश्वर है, उसके पास परमेश्वर की अभिव्यक्ति होगी। चूँकि परमेश्वर ने देह धारण किया है, इसलिए वह उस कार्य को सामने लाएगा, जो वह करना चाहता है, और चूँकि परमेश्वर ने देह धारण किया है, इसलिए वह उसे अभिव्यक्त करेगा जो वह है और वह मनुष्य के लिए सत्य को लाने, उसे जीवन प्रदान करने और उसे मार्ग दिखाने में सक्षम होगा। जिस देह में परमेश्वर का सार नहीं है, वह निश्चित रूप से देहधारी परमेश्वर नहीं है; इसमें कोई संदेह नहीं। अगर मनुष्य यह पता करना चाहता है कि क्या यह देहधारी परमेश्वर है, तो इसकी पुष्टि उसे उसके द्वारा अभिव्यक्त स्वभाव और उसके द्वारा बोले गए वचनों से करनी चाहिए। इसे ऐसे कहें, व्यक्ति को इस बात का निश्चय कि यह देहधारी परमेश्वर है या नहीं और कि यह सही मार्ग है या नहीं, तो उसे इसकी पहचान उसके सार के आधार पर करनी चाहिए। और इसलिए, यह निर्धारित करने की कुंजी कि यह देहधारी परमेश्वर की देह है या नहीं, उसके बाहरी स्वरूप के बजाय उसके सार (उसका कार्य, उसके कथन, उसका स्वभाव और कई अन्य पहलू) में निहित है। यदि मनुष्य केवल उसके बाहरी स्वरूप की ही जाँच करता है, और परिणामस्वरूप उसके सार की अनदेखी करता है, तो इससे उसके अज्ञ और अज्ञानी होने का पता चलता है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, प्रस्तावना)। “देहधारी हुए परमेश्वर को मसीह कहा जाता है, और इसलिए वह मसीह जो लोगों को सत्य दे सकता है, परमेश्वर कहलाता है। इसमें कुछ भी अतिशयोक्ति नहीं है, क्योंकि उसमें परमेश्वर का सार होता है, और उसमें परमेश्वर का स्वभाव और उसके कार्य में बुद्धि होती है, जो मनुष्य के लिए अप्राप्य हैं। जो अपने आप को मसीह कहते हैं, परंतु परमेश्वर का कार्य नहीं कर सकते, वे धोखेबाज हैं। मसीह पृथ्वी पर परमेश्वर की अभिव्यक्ति मात्र नहीं है, बल्कि वह विशेष देह भी है, जिसे धारण करके परमेश्वर मनुष्यों के बीच रहकर अपना कार्य पूरा करता है। कोई मनुष्य इस देह की जगह नहीं ले सकता, बल्कि यह वह देह है जो पृथ्वी पर परमेश्वर के कार्य का पर्याप्त रूप से बीड़ा उठा सकती है और परमेश्वर का स्वभाव व्यक्त कर सकती है, और परमेश्वर का अच्छी तरह प्रतिनिधित्व कर सकती है, और मनुष्य को जीवन प्रदान कर सकती है। मसीह का भेस धारण करने वाले लोगों का देर-सबेर पतन हो जाएगा, क्योंकि हालाँकि वे मसीह होने का दावा करते हैं, किंतु उनमें मसीह के सार का लेशमात्र भी नहीं है। और इसलिए मैं कहता हूँ कि मसीह की प्रामाणिकता मनुष्य द्वारा परिभाषित नहीं की जा सकती, बल्कि इसका उत्तर और निर्णय स्वयं परमेश्वर द्वारा ही दिया-लिया जाता है। इस तरह, यदि तुम जीवन का मार्ग सचमुच खोजना चाहते हो, तो पहले तुम्हें यह स्वीकार करना होगा कि पृथ्वी पर आकर ही परमेश्वर मनुष्य को जीवन का मार्ग प्रदान करने का कार्य करता है, और तुम्हें स्वीकार करना होगा कि अंत के दिनों के दौरान ही वह मनुष्य को जीवन का मार्ग प्रदान करने के लिए पृथ्वी पर आता है। यह अतीत नहीं है; यह आज हो रहा है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल अंत के दिनों का मसीह ही मनुष्य को अनंत जीवन का मार्ग दे सकता है)। परमेश्वर के वचनों से मैंने जाना कि सच्चे मसीह को झूठे मसीहों से हम रंग-रूप, कद-काठी देखकर भेद नहीं कर सकते, हमें उनके सार पर गौर करना चाहिए, यानी यह देखना चाहिए कि क्या वे परमेश्वर का कार्य कर सकते हैं, परमेश्वर के वचन और स्वभाव को व्यक्त कर सकते हैं। परमेश्वर देहधारण करके पृथ्वी पर आया है, वह सत्य व्यक्त कर अपना कार्य कर रहा है। परमेश्वर वही प्रकट करता है जो वह स्वयं है—यह पूरी तरह से परमेश्वर का स्वभाव और कार्य ही है, जो लोगों को बचा सकता है। ये सब ऐसी चीजें हैं जो किसी भी इंसान में नहीं होतीं, न ही वह इन्हें हासिल कर सकता है। इसलिए, कोई मसीह है या नहीं, यह तय करने का सबसे सही तरीका यह देखना ही है कि क्या वह परमेश्वर का कार्य कर सकता है, परमेश्वर के वचन और स्वभाव व्यक्त कर सकता है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य की जाँच-पड़ताल करने और उसके वचन पढ़ने के दौरान, इंसान के लिए उसके वचनों के जरिए प्रकट हुए उसके प्रेम के अलावा, मैंने परमेश्वर की धार्मिकता, आक्रोश और प्रताप को भी देखा। उसके वचन धारदार तलवार की तरह हैं, जो हमारे दिलों में गहरे पैठी भ्रष्टता को उजागर करते हैं, हमारी परमेश्वर-प्रतिरोधी शैतानी प्रकृति को उजागर कर देते हैं। हम अपनी अंदरूनी भ्रष्टता को सीधे देख सकते हैं, साथ ही उस मार्ग को भी, जिस पर हमें अपनी आस्था में चलना चाहिए। उसके वचनों पर अमल कर, हम धीरे-धीरे अपने भ्रष्ट स्वभाव को ठीक कर सकते हैं, और सामान्य मानवता के साथ जी सकते हैं। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन सत्य के बहुत-से रहस्यों को जाहिर करते हैं, और हमें मानवजाति को बचाने की उसकी 6,000-वर्षीय प्रबंधन योजना के बारे में जानने देते हैं। ये चीजें बाइबल या किसी धर्म में नहीं मिलतीं। ये सब सत्य के रहस्य हैं, जिन पर से परमेश्वर मानवजाति के लिए अंत के दिनों में परदा उठा रहा है, ये सब ऐसी बातें हैं जिन्हें लोगों ने पहले न कभी सुना और न ही देखा। कोई भी मशहूर या महान विभूति सत्य व्यक्त कर मानवता को नहीं बचा सकता। केवल देहधारी परमेश्वर ही सत्य व्यक्त कर सकता है और मनुष्य के न्याय और शुद्धिकरण का कार्य कर सकता है, और हमारे लिए मार्ग, सत्य और जीवन ला सकता है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों से मैंने पक्का कर लिया, कि वह अंत के दिनों का मसीह है, वही परमेश्वर है जिसने स्वर्ग, पृथ्वी और सारी चीजें बनाईं, वही परमेश्वर, जिसने पृथ्वी पर मनुष्य के जीवन को रास्ता दिखाने के लिए व्यवस्थाएँ जारी कीं, वही परमेश्वर जिसे पूरी मानवजाति के छुटकारे के लिए सूली पर चढ़ा दिया गया, और इससे भी ज्यादा, वह परमेश्वर जो अंत के दिनों में हमें हमारे पापों से बचाने लौट आया है। बेशक, परमेश्वर आदि और अंत है, सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही प्रभु यीशु का लौटकर आना है। ये झूठे मसीह बहुरूपिए हैं, जो देर-सवेर ढेर हो जाएँगे, क्योंकि वे सत्य व्यक्त नहीं कर सकते, वे परमेश्वर का नया कार्य करने में समर्थ नहीं हैं, और वे लोगों को अपनी भ्रष्टता त्याग कर बचाए जाने में मदद नहीं कर सकते। वे बस लोगों को गुमराह कर भ्रष्ट करने के लिए परमेश्वर के पुराने कार्य की नकल कर सकते हैं। अब, अंत के दिनों का मसीह, सर्वशक्तिमान परमेश्वर सत्य व्यक्त कर रहा है, परमेश्वर के घर से शुरू करके न्याय कार्य कर रहा है। वह लोगों की भ्रष्टता को शुद्ध कर उन्हें बदल रहा है, और मानवजाति को पाप से बचा रहा है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य और वचन पूरी तरह साबित करते हैं कि वही सच्चे परमेश्वर का प्रकटन है। इसमें कोई शक नहीं।

पहले मैं अपनी धारणाओं से चिपका हुआ था। सोचता था कि परमेश्वर अंत के दिनों में आकाश में एक विशाल सफेद सिंहासन पर बैठकर मनुष्य के पापों का न्याय करेगा, मगर सभाओं में जाने और परमेश्वर के वचन पढ़ने से मेरी यह धारणा बदल गई। ऐसा इसलिए क्योंकि मैंने जान लिया कि परमेश्वर अंत के दिनों में अपने न्याय कार्य से कैसे लोगों को शुद्ध करता है। मैंने देखा कि प्रभु यीशु ने कहा था : “मुझे तुम से और भी बहुत सी बातें कहनी हैं, परन्तु अभी तुम उन्हें सह नहीं सकते। परन्तु जब वह अर्थात् सत्य का आत्मा आएगा, तो तुम्हें सब सत्य का मार्ग बताएगा, क्योंकि वह अपनी ओर से न कहेगा परन्तु जो कुछ सुनेगा वही कहेगा, और आनेवाली बातें तुम्हें बताएगा(यूहन्ना 16:12-13)। “सत्य के द्वारा उन्हें पवित्र कर : तेरा वचन सत्य है(यूहन्ना 17:17)। “यदि कोई मेरी बातें सुनकर न माने, तो मैं उसे दोषी नहीं ठहराता; क्योंकि मैं जगत को दोषी ठहराने के लिये नहीं, परन्तु जगत का उद्धार करने के लिये आया हूँ। वो जो मुझे नकार देता है, और मेरे वचन नहीं स्वीकारता, उसका भी न्याय करने वाला कोई है : मैंने जो वचन बोले हैं वे ही अंत के दिन उसका न्याय करेंगे(यूहन्ना 12:47-48)। मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों के अन्य दो अंश पढ़े : “मनुष्य को छुटकारा दिए जाने से पहले शैतान के बहुत-से ज़हर उसमें पहले ही डाल दिए गए थे, और हजारों वर्षों तक शैतान द्वारा भ्रष्ट किए जाने के बाद मनुष्य के भीतर ऐसी प्रकृति है, जो परमेश्वर का विरोध करती है। इसलिए, जब मनुष्य को छुटकारा दिलाया गया है, तो यह छुटकारे के उस मामले से बढ़कर कुछ नहीं है, जिसमें मनुष्य को एक ऊँची कीमत पर खरीदा गया है, किंतु उसके भीतर की विषैली प्रकृति समाप्त नहीं की गई है। मनुष्य को, जो कि इतना अशुद्ध है, परमेश्वर की सेवा करने के योग्य होने से पहले एक परिवर्तन से होकर गुज़रना चाहिए। न्याय और ताड़ना के इस कार्य के माध्यम से मनुष्य अपने भीतर के गंदे और भ्रष्ट सार को पूरी तरह से जान जाएगा, और वह पूरी तरह से बदलने और शुद्ध होने में समर्थ हो जाएगा। केवल इसी तरीके से मनुष्य परमेश्वर के सिंहासन के सामने वापस लौटने के योग्य हो सकता है। आज किया जाने वाला समस्त कार्य इसलिए है, ताकि मनुष्य को शुद्ध और परिवर्तित किया जा सके; वचन के द्वारा न्याय और ताड़ना के माध्यम से, और साथ ही शोधन के माध्यम से भी, मनुष्य अपनी भ्रष्टता छोड़ सकता है और शुद्ध किया जा सकता है। इस चरण के कार्य को उद्धार का कार्य मानने के बजाय यह कहना कहीं अधिक उचित होगा कि यह शुद्धिकरण का कार्य है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, देहधारण का रहस्य (4))। “अंत के दिनों का मसीह मनुष्य को सिखाने, उसके सार को उजागर करने और उसके वचनों और कर्मों को विश्लेषित करने के लिए विभिन्न प्रकार के सत्यों का उपयोग करता है। इन वचनों में विभिन्न सत्यों का समावेश है, जैसे कि मनुष्य का कर्तव्य, मनुष्य को परमेश्वर के प्रति समर्पण किस प्रकार करना चाहिए, मनुष्य को किस प्रकार परमेश्वर के प्रति निष्ठावान होना चाहिए, मनुष्य को किस प्रकार सामान्य मनुष्यता का जीवन जीना चाहिए, और साथ ही परमेश्वर की बुद्धिमत्ता और उसका स्वभाव, इत्यादि। ये सभी वचन मनुष्य के सार और उसके भ्रष्ट स्वभाव पर निर्देशित हैं। खास तौर पर वे वचन, जो यह उजागर करते हैं कि मनुष्य किस प्रकार परमेश्वर का तिरस्कार करता है, इस संबंध में बोले गए हैं कि किस प्रकार मनुष्य शैतान का मूर्त रूप और परमेश्वर के विरुद्ध शत्रु-बल है। अपने न्याय का कार्य करने में परमेश्वर केवल कुछ वचनों के माध्यम से मनुष्य की प्रकृति को स्पष्ट नहीं करता; बल्कि वह लंबे समय तक उसे उजागर करता है, और उसकी काट-छाँट करता है। उजागर करने, और काट-छाँट करने की इन तमाम विधियों को साधारण वचनों से नहीं, बल्कि उस सत्य से प्रतिस्थापित किया जा सकता है, जिसका मनुष्य में सर्वथा अभाव है। केवल इस तरह की विधियाँ ही न्याय कही जा सकती हैं; केवल इस तरह के न्याय द्वारा ही मनुष्य को वशीभूत और परमेश्वर के प्रति पूरी तरह से आश्वस्त किया जा सकता है, और इतना ही नहीं, बल्कि मनुष्य परमेश्वर का सच्चा ज्ञान भी प्राप्त कर सकता है। न्याय का कार्य मनुष्य में परमेश्वर के असली चेहरे की समझ पैदा करने और उसकी स्वयं की विद्रोहशीलता का सत्य उसके सामने लाने का काम करता है। न्याय का कार्य मनुष्य को परमेश्वर के इरादों, परमेश्वर के कार्य के उद्देश्य और उन रहस्यों की अधिक समझ प्राप्त कराता है, जो उसकी समझ से परे हैं। यह मनुष्य को अपने भ्रष्ट सार तथा अपनी भ्रष्टता की जड़ों को जानने-पहचानने और साथ ही अपनी कुरूपता को खोजने का अवसर देता है। ये सभी परिणाम न्याय के कार्य द्वारा लाए जाते हैं, क्योंकि इस कार्य का सार वास्तव में उन सभी के लिए परमेश्वर के सत्य, मार्ग और जीवन का मार्ग प्रशस्त करने का कार्य है, जिनका उस पर विश्वास है। यह कार्य परमेश्वर के द्वारा किया जाने वाला न्याय का कार्य है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, मसीह न्याय का कार्य सत्य के साथ करता है)। मैंने जाना कि परमेश्वर देहधारी होकर अंत के दिनों का न्याय कार्य कर रहा है, मानवजाति का न्याय करने और शुद्ध के लिए सत्य व्यक्त कर रहा है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने इंसान की शैतानी प्रकृति और भ्रष्ट स्वभावों का खुलासा किया है, जिसमें अहंकार, धोखेबाजी, और सत्य से विमुख होने जैसी चीजें शामिल हैं। उसने इंसान के स्वार्थ और लालच का भी खुलासा किया है। यह सब लोगों को उसके वचनों के न्याय के जरिए अपनी भ्रष्टता का सत्य देखने की अनुमति देता है, ताकि वे खुद से घृणा कर परमेश्वर के सामने प्रायश्चित्त करें और परमेश्वर का भय और समर्पण प्राप्त करें। मनुष्य के शैतानी स्वभावों को ठीक करने का एकमात्र मार्ग सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों का न्याय कार्य ही है। कोई इंसान यह नहीं कर सकता। मुझे एहसास हुआ कि अगर परमेश्वर आकाश में विशाल सफेद सिंहासन से हर इंसान का न्याय करे, तो शैतान द्वारा भ्रष्ट किए गए किसी भी इंसान को उद्धार का मौका नहीं मिल पाएगा। ऐसा इसलिए क्योंकि पूरी मानवजाति शैतान की भ्रष्टता से गहराई में डूबी हुई है। हालाँकि प्रभु यीशु की सूली के उद्धार से हम सभी छुटकारा पा चुके हैं और हमारे पापों को माफी मिल गई है, मगर हम अब भी पापी हैं। हम बार-बार पाप करने और उसे कबूल करने के कुचक्र से होकर गुजरते रहते हैं। अगर हम न्याय का अनुभव न करें, तो हमारी भ्रष्टता स्वच्छ नहीं की जा सकती, और आखिरकार, परमेश्वर हमें निंदित कर हटा देगा। सिर्फ परमेश्वर के वचनों से न्याय पाकर और उजागर होकर ही, हम खुद को सही मायनों में जान सकते हैं, सचमुच पश्चात्ताप कर सकते हैं और बदल सकते हैं और अपनी भ्रष्टता से स्वच्छ बन सकते हैं। जैसा कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है : “आज किया जाने वाला समस्त कार्य इसलिए है, ताकि मनुष्य को शुद्ध और परिवर्तित किया जा सके; वचन के द्वारा न्याय और ताड़ना के माध्यम से, और साथ ही शोधन के माध्यम से भी, मनुष्य अपनी भ्रष्टता छोड़ सकता है और शुद्ध किया जा सकता है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, देहधारण का रहस्य (4))

एक बार मैंने एक सभा में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा, जिससे मेरे दिल में हलचल मच गई। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है : “जो सत्य को नहीं समझते, वे हमेशा दूसरों का अनुसरण करते हैं : यदि लोग कहते हैं कि यह पवित्र आत्मा का कार्य है, तो तुम भी कहते हो कि यह पवित्र आत्मा का कार्य है; यदि लोग कहते हैं कि यह दुष्टात्मा का कार्य है, तो तुम्हें भी संदेह हो जाता है, या तुम भी कहते हो कि यह किसी दुष्टात्मा का कार्य है। तुम हमेशा दूसरों के शब्दों को तोते की तरह दोहराते हो, और स्वयं किसी भी चीज़ का अंतर करने में असमर्थ होते हो, न ही तुम स्वयं सोचने में सक्षम होते हो। ऐसे व्यक्ति का कोई दृष्टिकोण नहीं होता, वह अंतर करने में असमर्थ होता है—ऐसा व्यक्ति बेकार अभागा होता है! तुम हमेशा दूसरों के वचनों को दोहराते हो : आज ऐसा कहा जाता है कि यह पवित्र आत्मा का कार्य है, परंतु संभव है, कल कोई कहे कि यह पवित्र आत्मा का कार्य नहीं है, और कि यह असल में मनुष्य के कर्मों के अतिरिक्त कुछ नहीं है—फिर भी तुम इसे समझ नहीं पाते, और जब तुम इसे दूसरों के द्वारा कहा गया देखते हो, तो तुम भी वही बात कहते हो। यह वास्तव में पवित्र आत्मा का कार्य है, परंतु तुम कहते हो कि यह मनुष्य का कार्य है; क्या तुम पवित्र आत्मा के कार्य की ईशनिंदा करने वालों में से एक नहीं बन गए हो? इसमें, क्या तुमने परमेश्वर का इसलिए विरोध नहीं किया है, क्योंकि तुम अंतर नहीं कर सकते?(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जो परमेश्वर को और उसके कार्य को जानते हैं, केवल वे ही परमेश्वर को संतुष्ट कर सकते हैं)। परमेश्वर के वचनों ने सच्चे मार्ग की जाँच-पड़ताल करते समय दूसरों के मार्गदर्शन पर आँखें मूंदकर ध्यान देने, और इंसानी धारणाओं और कल्पनाओं के आधार पर परमेश्वर के कार्य का आकलन करने के खिलाफ चेताया है। ऐसा करने से हम संभवतः परमेश्वर का विरोध करेंगे और उसके स्वभाव को नाराज करेंगे, जिससे हम उद्धार का मौका खो सकते हैं। यह दुखभरी वास्तविकता हममें से किसी के भी साथ घट सकती है। अपने इतना मूर्ख और आवेगी होने पर मुझे शर्म आई। ऐसा कैसे था कि परमेश्वर की वाणी सुनने के बाद भी और यह महसूस करके भी कि इन वचनों में अधिकार और शक्ति है, मैं अपने पड़ोसियों के प्रभाव में आ गया और उनकी बातों से गुमराह हो गया? अपनी बेवकूफी और आवेग के कारण मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया लगभग छोड़ दी थी, प्रभु यीशु के वापस आने से चूक गया था और उद्धार का अपना मौका बरबाद कर चुका था। अपने अंधेपन और अज्ञानता के मुझे भयानक नतीजे मिलने वाले थे! मैं समझ गया कि मुझे हर समय बुद्धिमान कुँआरी बने रहना चाहिए। परमेश्वर की वाणी सुनने पर हमें उसे अविचल रूप में स्वीकार करना चाहिए क्योंकि हम सभी सृजित प्राणी हैं और हमें सभी समय परमेश्वर के वचनों का पालन करना चाहिए। ठीक वैसे ही जैसे पतरस ने प्रभु यीशु के वचन सुनकर प्रभु का अनुसरण किया था। अपनी पहले की मूर्खता और अज्ञानता के बारे में सोचकर मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर से प्रार्थना की, अपनी गलतियों के लिए उससे क्षमा माँगी। मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर को और परमेश्वर के न्याय और उद्धार स्वीकारने को तैयार था।

तब से, मैं हर दिन सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन पढ़ता हूँ। कमजोर होने पर परमेश्वर से आस्था और शक्ति देने की विनती करता हूँ, ताकि मैं लड़खड़ाकर गिर न पडूँ। परमेश्वर के मार्गदर्शन और मदद से, मेरी दशा अब बहुत बेहतर हो गई है। मैं एक नया काम भी करने लगा हूँ। मुझे लगता है कि यह सब परमेश्वर की अद्भुत व्यवस्थाओं से ही संभव हुआ है। धीरे-धीरे, मेरा जीवन काफी हद तक सुधर गया है। अहम बात यह है कि मैं हर दिन सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को खा-पी सकता हूँ, और दूसरों के साथ सभा कर संगति कर सकता हूँ। अब मैं सुसमाचार साझा करने और परमेश्वर के वचनों की गवाही देने लगा हूँ, सच्चे मार्ग के प्यासे और अधिक सच्चे विश्वासियों की परमेश्वर की वाणी सुनने, और अंत के दिनों के उसके उद्धार को स्वीकारने में मदद करने लगा हूँ।

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