64. एक झूठे अगुआ का जागना

यांग फ़ैन, चीन

2019 में, मैंने एक अगुआ के रूप में अपना काम शुरू किया, मैं जानती थी कि यह परमेश्वर का उत्कर्ष है, मैंने कसम खाई कि मैं अपना काम अच्छे से करूंगी। उसके बाद, मैं हर दिन सभाओं में व्यस्त रहकर, अपने भाई-बहनों के कामों में आने वाली परेशानियों को हल करने और कार्य की प्रगति देखने लगी, इससे मुझे काफी संतोष मिलता। कुछ समय बाद, कुछ प्रशासनिक कामों की वजह से, मेरी जिम्मेदारी और बढ़ गई, अब मैं हर दिन देर तक काम करते हुए बहुत अधिक व्यस्त रहने लगी। मैंने सोचा, "सभी कामों की फ़िक्र करना तो बहुत ज़्यादा थकाऊ है। मेरा मन हर दिन तनाव से भरा रहता है। यह एक व्यक्ति के कार्यभार जितना आसान नहीं है।" फिर, मैं एक समूह की सभा में गई जहां बहन झाओ भी थी। मैंने सोचा, "पहले, मैं बहन झाओ की सहभागी थी, वह अपने कामों में जिम्मेदार थी और अपनी मुश्किलों को हल करने के लिए सत्य की खोज करती थी। वह इस समूह के काम की निगरानी करती है, तो मुझे ज़्यादा फ़िक्र करने की ज़रूरत नहीं है।" उसके बाद, मैं उसके समूह से कभी-कभार ही मिलती थी। एक रात, कुछ भाई-बहनों ने मुझे इस बात पर ध्यान दिलाने के लिए लिखा कि बहन झाओ के समूह के काम में कुछ समस्याएं और परेशानियां हैं, उन्होंने फौरन मुझे समस्या का हल निकालने के लिए कहा। इसका मतलब था पहले से परमेश्वर के वचनों की खोज करके हल ढूंढना, मगर मुझे ऐसी बहुत सी समस्याओं से निबटना था जिन्हें मैं काफी समय से निबटा नहीं पाई थी। मैंने सोचा, "बहुत देर हो गई है, मैं काफी थक गई हूँ। मैं ये नहीं कर सकती। फिर, मैंने बहन झाओ को उसकी समस्याओं और कमियों के बारे में तो पत्र लिख ही दिया है, यह जिम्मेदारी उसकी है, तो वही सहभागिता करके समस्याओं को हल करेगी, मुझे काम करने की ज़रूरत नहीं है। अगर मैं ही सारा काम करूँगी, तो मेरा काम कैसे पूरा होगा? मैं बस इस बारे में उसके साथ सभा में सहभागिता कर लूंगी।" फिर, जब मैंने इस पर विचार किया, तब तक बहन झाओ ने इस बारे में पहले ही समूह के साथ सहभागिता कर ली थी, और हर कोई उन समस्याओं के हल के लिए अभ्यास के मार्ग सुझा रहा था, इससे मुझे लगा कि बहन झाओ के समूह की अगुआई को लेकर मुझे कोई फ़िक्र करने की ज़रूरत नहीं। उसके बाद, मैंने समूह के काम के बारे में कोई पूछताछ नहीं की।

कुछ समय बाद, मैं बहन झाओ के समूह के साथ एक सभा में गई, तो पता चला कि बहन झाओ की सहभागिता में कोई काम की बात नहीं होती, काफी देर बोलकर भी वह साफ-साफ कुछ नहीं कह पाती। मैंने सोचा, "क्या उसकी मानसिक स्थिति खराब है? वह कोई काम की बात क्यों नहीं कर पाती?" मगर फिर मैंने सोचा, "शायद वो मेरे यहां होने से घबरा रही है। सब ठीक करने लिए उसे बस थोड़ा समय चाहिए। मुझे तो अभी कुछ और काम भी निबटाने हैं।" इसलिए, मैं उसके साथ सहभागिता किए बिना ही वहां से निकल गई। बाद में, मुझे पता चला कि उस समूह का काम असरदार नहीं है। मैंने सोचा, "समूह में ही कोई समस्या तो नहीं?" मगर फिर मैंने विचार किया, "उन्होंने तो काम में आई समस्याओं और परेशानियों के बारे में सहभागिता की थी, हर कोई पूरी तरह बदलाव के लिए तैयार लगा, ऐसे में कम असरदार होना तो सामान्य सी बात है।" यह एहसास होने पर, मैंने इस बारे में और कुछ नहीं सोचा। बाद में, बहन वांग ने बताया कि बहन झाओ रुतबे के पीछे भागती है, दूसरों के साथ सहयोग नहीं करती, वह एक समूह अगुआ होने के काबिल नहीं है। मैंने सोचा, "बहन झाओ रुतबे पर कुछ ज़्यादा ही ध्यान देती है, मगर वो जिम्मेदार है। अगर वह दूसरों के साथ सहयोग नहीं कर पा रही, तो इसकी वजह यही होगी कि वो बुरी हालत में और अपने भ्रष्ट स्वभाव के काबू में है। उसे खुद को संभालने में बस थोड़ा वक्त चाहिए।" यह सोचकर, मैंने बहन वांग से कहा, "बहन झाओ अपने काम में जिम्मेदार है, वो अब भी एक काबिल समूह अगुआ है। उसने भ्रष्ट स्वभाव दिखाया है, तो हम उसकी मदद कर सकते हैं, समस्याओं के आधार पर उसकी कमियां उजागर कर सकते हैं। आज मैं बहुत व्यस्त हूँ, बाद में उसके साथ सहभागिता कर लूंगी।" यह सुनकर बहन वांग कुछ नहीं बोली। दूसरे कामों में व्यस्त होने के कारण, मैं बहन झाओ के साथ सहभागिता करना भूल गई। एक रात, अचानक मुझे याद आया : "मुझे बहन झाओ की हालत के बारे में नहीं पता। क्या उसे देखने जाना चाहिए?" मगर फिर मैंने सोचा, "उसमें काबिलियत है, पहले जब उसकी हालत बुरी थी, तो उसने फौरन सत्य की खोज करके समस्या को खुद ही हल कर लिया था। इस बार भी वह खुद को संभाल लेगी। वह बहुत दूर रहती है, आने-जाने की परेशानी भूलकर, अगर मैं सीधे उसके पास जाऊँ भी, अगर वो घर पर न मिली, तो क्या मेरा जाना बेकार नहीं हो जाएगा? अभी छोड़ो, अगले महीने उससे बात कर लूंगी।" महीने के आखिर में जब मैंने उसके काम की जांच-पड़ताल की, तो मैं हैरान रह गई। बहन झाओ के काम में बहुत सी समस्याएं और कमियां थीं, उसका काम ज़रा भी असरदार नहीं था। उसने जिन भाई-बहनों की निगरानी की थी, वे सभी नकारात्मक हालत में थे, उनके काम पर बहुत बुरा असर पड़ा था। तब जाकर मुझे एहसास हुआ कि मामला गंभीर है। सहभागिता करके समस्याओं पर उसका ध्यान दिलाने के लिए मैं फौरन बहन झाओ के पास गई, मगर उसने इसे स्वीकार नहीं किया, बहाने बनाये और बहस करने लगी, उसे खुद की कोई समझ नहीं थी। साथियों से उसके बारे में चर्चा करने के बाद, हमने तय किया कि बहन झाओ अब समूह अगुआ नहीं रह सकती, आखिर उसे बर्खास्त कर दिया। उसके बाद, भाई-बहनों ने मुझे बताया कि बहन झाओ ईर्ष्यालु थी, अपने कामों को अनदेखा करके विवादों में रहती थी, जिसके कारण एक बहन उससे बेबस और निराश हो गई थी, वह अपना काम छोड़ देना चाहती थी। बहन वांग ने उसकी स्थिति के बारे में बताया, तो उसने उसे दबाकर ठुकरा दिया। दूसरी बहनें भी उससे बेबस महसूस करती थीं, उनके कामों पर भी बुरा असर पड़ा था, जिसके कारण कई महीनों तक काम रुका रहा। हटाए जाने के बाद, वो खुद तो क्या पश्चाताप करती, उलटे दूसरों से बदला लेने लगी। कमियों को उजागर करके विश्लेषण करने के बाद भी, उसे अपने बुरे कर्मों की समझ नहीं आई और न ही कोई पछतावा हुआ। चूँकि मैंने अपने कर्तव्य की अनदेखी कर व्यावहारिक काम नहीं किया, समय पर बहन झाओ को न हटाकर कलीसिया के काम को भारी नुकसान पहुंचाया, तो मुझे भी हटा दिया गया। उस समय, मुझे काफी बुरा लगा, तब जाकर मैंने सोचना शुरू किया, बहन झाओ इतने समय तक ईर्ष्या के कारण विवादों में उलझी रही और कलीसिया के काम में गंभीर रुकावट डालती रही, मगर मैं क्यों अंधी बनकर इसे पहचान नहीं पाई। मुझे सिर्फ इतना पता था कि मैंने व्यावहारिक काम नहीं किया और दूसरों को पहचान नहीं पाई, मगर मैंने खुद के भ्रष्ट स्वभाव को समझने और उसका विश्लेषण करने पर भी ध्यान नहीं दिया।

एक सभा में मैंने देखा, परमेश्वर के वचन यह खुलासा करते हैं कि झूठे अगुआ वास्तविक काम नहीं करते, तब जाकर मुझे समस्या की थोड़ी समझ आई। परमेश्वर के वचन कहते हैं, "नकली अगुआ कभी भी खुद को समूह-पर्यवेक्षकों की वास्तविक स्थिति के बारे में सूचित नहीं रखते, या उन पर नजर नहीं रखते, न ही वे जीवन-प्रवेश से संबंधित स्थिति का कोई हिसाब-किताब रखने या उसे समझने की कोशिश करते हैं, इसके साथ ही, वे महत्वपूर्ण कार्य के लिए जिम्मेदार समूह-पर्यवेक्षकों और कार्मिकों के अपने कार्य और कर्तव्य के प्रति और परमेश्वर और उसमें विश्वास को लेकर उनके विभिन्न दृष्टिकोणों से खुद को अवगत रखने, उन पर नजर रखने या उन्हें समझने का प्रयास करते हैं; नकली अगुआ उनके रूपांतरणों, उनकी प्रगति या उनके काम के दौरान उभरने वाले विभिन्न मुद्दों के बारे में भी खुद को अवगत नहीं रखते, खासकर जब बात कार्य के विभिन्न चरणों के दौरान होने वाली गलतियों और व्यतिक्रमों के कलीसिया के कार्य और परमेश्वर के चुने हुए लोगों पर प्रभाव की हो। यदि वे ऐसी स्थितियों को ठीक से समझने में असमर्थ रहते हैं, तो वे उन्हें तुरंत हल नहीं कर सकते—और यदि वे उन्हें तुरंत हल नहीं कर सकते, तो वे विभिन्न समूहों के पर्यवेक्षकों द्वारा काम पर छोड़े गए नकारात्मक प्रभाव को तुरंत दूर करने में और उनके द्वारा की गई क्षति की तुरंत पूर्ति करने में भी असमर्थ रहेंगे। इस प्रकार, इस संबंध में, नकली अगुआओं ने अपनी जिम्मेदारी पूरी नहीं की है। अपनी जिमेदारियाँ पूरी न करना कर्तव्य से चूकना है; वे दूसरों का पर्यवेक्षण करने, उनके बारे में अधिक जानने, उनकी स्थिति पूरी तरह से समझने और उनकी निगरानी करने की अपनी भूमिका नहीं निभा रहे हैं" ("अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन" में 'नकली अगुआओं की पहचान करना (3)')। "नकली अगुआ : क्या इस तरह का व्यक्ति बेवकूफ होता है? वे बेवकूफ और मूर्ख होते हैं। उन्हें क्या चीज बेवकूफ बनाती है? वे यह मानते हुए लोगों पर सहर्ष विश्वास कर लेते हैं कि चूँकि जब उन्होंने इस व्यक्ति को चुना था, तो इस व्यक्ति ने शपथ ली थी, प्रतिज्ञा की थी और आँसू बहाते हुए प्रार्थना की थी कि उनके साथ कुछ भी गलत नहीं हो सकता जो गंभीर हो और भविष्य में उनके साथ कभी कोई समस्या नहीं होगी। नकली अगुआओं को लोगों की प्रकृति की कोई समझ नहीं होती; वे नहीं समझते कि भ्रष्ट स्वभाव क्या होता है। वे कहते हैं, 'पर्यवेक्षक के रूप में चुने जाने के बाद कोई कैसे बदल सकता है? इतना गंभीर और विश्वसनीय प्रतीत होने वाला व्यक्ति कामचोरी कैसे कर सकता है? वह कामचोरी नहीं करेगा, है न? उसमें बहुत ईमानदारी होती है।' चूँकि नकली अगुआ में ऐसी कल्पनाएँ होती हैं, और वह अपने सहज-ज्ञान पर बहुत अधिक भरोसा करता है, यह अंततः उन्हें पर्यवेक्षक में उत्पन्न होने वाली कई समस्याओं पर नियंत्रण रखने, और उन्हें तुरंत बदलने और पुनः आवंटित कर सकने में असमर्थ बना देता है। यह नकली अगुआओं के साथ एक समस्या है, है न? (हाँ।) और यहाँ मुद्दा क्या है? क्या नकली अगुआओंके अपने काम के प्रति दृष्टिकोण का आलस्य से कोई संबंध है? एक बात तो यह है कि वे सोचते हैं कि यह उनके लिए उपयुक्त वातावरण नहीं है, उनके लिए वहाँ जाना सुविधाजनक नहीं है, इसलिए वे अपने स्थान पर किसी पर्यवेक्षक को भेज देते हैं और अपने आप से कहते हैं, 'समस्या दूर हो गई है, मुझे इस पर ओर ध्यान देने की आवश्यकता नहीं है। बड़े लाल अजगर का उत्पीड़न बढ़ता ही जा रहा है—मेरा वहाँ जाते रहना बहुत खतरनाक है। इतना ही नहीं, वहाँ पहुँचना बहुत कठिन है। परेशानी से बच सकूँ तो बेहतर है।' क्या यह आलस्य है? (हाँ।) यह आलस्य है; यह भौतिक सुखों का लोभ है। उनकी यह भी एक बड़ी विफलता होती है : वे अपनी कल्पनाओं के आधार पर लोगों पर जल्दी भरोसा कर लेते हैंहैं। और यह सत्य को न समझने के कारण होता है, है न? क्या परमेश्वर के वचन इसी प्रकार प्रत्येक व्यक्ति का मूल्यांकन करते हैं? जब परमेश्वर ही लोगों पर भरोसा नहीं करता, तो तुम क्यों करते हो? रूप-रंग से लोगों को आँकने के बजाय परमेश्वर उनके दिलों पर लगातार नजर रखता है—तो लोगों को दूसरों को आँकते और उन पर भरोसा करते समय इतना लापरवाह क्यों होना चाहिए? नकली अगुआ बहुत घमंडी होते हैं, है न? वे यह सोचते हैं, 'जब मैंने इस व्यक्ति को खोजा था, तो मैं गलत नहीं था। कोई गड़बड़ नहीं हो सकती; वह निश्चित रूप से ऐसा नहीं है, जो गड़बड़ करे, मस्ती करना पसंद करे और मेहनत से नफरत करे। वे पूरी तरह से भरोसेमंद और विश्वसनीय हैं। वे बदलेंगे नहीं; अगर वे बदले, तो इसका मतलब होगा कि मैं उनके बारे में गलत था, है न?' यह कैसा तर्क है? क्या तुम कोई के विशेषज्ञ हो? क्या यह तुम्हारा विशेष कौशल है? क्या तुम्हारे पास एक्सरे जैसी दृष्टि है? तुम उस व्यक्ति के साथ एक-दो साल तक रह सकते हो, लेकिन क्या तुम उसकी प्रकृति और सार को पूरी तरह से उजागर करने वाले किसी उपयुक्त वातावरण के बिना यह देख पाओगे कि वह वास्तव में कौन है? अगर परमेश्वर द्वारा उन्हें उजागर न किया जाए, तो तुम्हें तीन या पाँच वर्षों तक उनके साथ रहने के बाद भी यह जानने के लिए संघर्ष करना पड़ेगा कि उनकी प्रकृति और सार किस तरह का है। और जब तुम उनसे शायद ही कभी मिलते हो, शायद ही कभी उनके साथ होते हो, तो यह भी कितना सच होगा? तुम उनसे थोड़ी-बहुत देर मिलने या उनके साथ थोड़ी-बहुत बातचीत के आधार पर उन्हें आँकते हो, तुम जिस पर भरोसा करते हो, उसे लेकर बहुत असावधान होते हो। इसमें क्या तुम अत्यधिक अंधे और उतावले नहीं होते? और जब नकली अगुआ इस तरह से काम करते हैं, तो क्या वे बेहद गैर-जिम्मेदार नहीं होते?" ("अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन" में 'नकली अगुआओं की पहचान करना (3)')। परमेश्वर ने खुलासा किया है कि झूठे अगुआ आरामपसंद होते हैं, वे अपने कर्तव्य के प्रति ज़िम्मेदार नहीं होते। प्रभारी लोगों के चयन के बाद, विचारों और धारणाओं के आधार पर वे तुरंत उन पर भरोसा कर लेते हैं। वे काम की जांच या निगरानी नहीं करते, काम की जांच करने के लिए कीमत चुकाना नहीं चाहते। वे यथासंभव परेशानी से बचते हैं। जिसके चलते कलीसिया के काम को गंभीर नुकसान पहुंचता है। परमेश्वर व्यावहारिक काम न करने वाले झूठे अगुआओं के अलग-अलग चेहरों को बेनकाब करता है, यह देखकर लगा जैसे परमेश्वर मुझे अपने सामने उजागर कर रहा है। यह बहुत तकलीफदेह था, मुझे अपराध बोध भी हुआ। एक अगुआ के तौर पर, मैं बहुत गैर-ज़िम्मेदार थी। चिंता और शारीरिक तकलीफ से बचने के लिए, मैंने तरकीबें लड़ाईं और काम की जांच-पड़ताल नहीं की। मैंने बहन झाओ के बारे में अपनी क्षणिक सोच पर भरोसा किया, सोचा कि वह अपने काम के प्रति जिम्मेदार और एक काबिल समूह अगुआ है, तो मैंने उसके काम की निगरानी न करके, इन सबसे दूर ही रहने का मन बनाया। जब मैंने देखा कि उसके काम में समस्याएं हैं और उन्हें हल करने के लिए मुझे तकलीफ उठानी और कीमत चुकानी होगी, तो मैंने व्यावहारिक काम नहीं किया, सोचा कि हर कोई मेरे लिए बहाने बनाने में लगा है। जब लोगों ने बताया कि बहन झाओ में समस्याएं हैं, वह एक अच्छी समूह अगुआ नहीं है, फिर भी मैंने अपनी धारणाओं और कल्पनाओं के आधार पर यही माना कि यह बस कुछ समय की भ्रष्टता है, और इससे उसके काम पर बुरा असर नहीं पड़ेगा। मैंने बहन झाओ की समस्याओं को बार-बार ताक पर रखा, आखिर में समूह का काम पूरी तरह रुक गया, और भाई-बहनों के जीवन प्रवेश को बुरी तरह नुकसान पहुंचा। मैं बहुत मूर्ख और गैर-जिम्मेदार थी। मैं एक आरामपसंद झूठी अगुआ थी, मैंने कोई व्यावहारिक काम नहीं किया। सच तो यह है कि कलीसिया ने मेरे साथ-साथ जिन अगुआओं और कार्यकर्ताओं को चुना, उन्हें पूर्ण नहीं किया गया है, हमारे अंदर कई तरह का भ्रष्ट स्वभाव है, हम कभी भी अपने कामों में रुकावटें और गड़बड़ी पैदा कर सकते हैं। अगर हम कुछ अच्छा व्यवहार दिखाते भी हैं, तो इसका मतलब यह नहीं कि हम योग्य हैं। हम सत्य नहीं समझते, इसलिए सिर्फ लोगों के बाहरी स्वरूप को ही देख सकते हैं, हम लोगों के सार को साफ तौर पर नहीं देख पाते, जिम्मेदार बनने के लिए हमें बार-बार दूसरों के काम की जांच-पड़ताल और निगरानी करनी होगी। मैं सत्य नहीं समझती थी, आँखें मूंदकर भरोसा करती थी, जिसके चलते कलीसिया के काम को भारी नुकसान पहुंचा, मैंने परमेश्वर की मौजूदगी में एक अपराध किया था। इसका एहसास होने पर, मुझे बहुत पछतावा हुआ। जब बहन वांग ने मुझे याद दिलाया, तब अगर मैं इतनी दंभी, आलसी या आरामपसंद नहीं होती, समय पर जांच और छानबीन करके समस्या को हल कर लेती, बहन झाओ को बर्खास्त कर दिया होता, तो कलीसिया के काम में इतनी देरी नहीं हुई होती। मैं अपने कर्तव्य में कलीसिया के काम को फायदा नहीं पहुँचा सकी, मैंने शैतान की साथी के रूप में काम किया, झूठे अगुआओं और कार्यकर्ताओं के लिए ढाल बन गई। इस बारे में जितना सोचा उतना ही मुझे दुख हुआ। मैंने सोचा कि कैसे जब देहधारी परमेश्वर ने काम किया, तो वह हर कलीसिया में गया। उसने तकलीफ उठाई और कीमत चुकाई। हमारी सारी भ्रष्टता और कमियों के बदले में, परमेश्वर ने बिना थके सत्य पर सहभागिता की, हमारा समर्थन किया और मदद की, उसकी सारी मेहनत हमें शैतान की शक्तियों से बचाने के लिए थी। मगर मैं ऐसी सृजित प्राणी थी जिसने न सत्य समझा, न चीज़ों को साफ तौर देखा, फिर भी अपने कर्तव्य में तकलीफ उठाना या कीमत चुकाना नहीं चाहती थी, मैंने समस्याओं का पता चलने पर भी उन्हें हल नहीं किया, काम को बुरी तरह नुकसान पहुंचाया। इस तरह अपना कर्तव्य निभाने से परमेश्वर को नफ़रत है! इन चीज़ों का एहसास होने पर, मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, "परमेश्वर, मैं गलत थी। मैं आत्मचिंतन करके तुम्हारे सामने पश्चाताप करना चाहती हूँ। मुझ पर दया करो।"

तब, मैंने वचनों के दो अंश पढ़े जिनमें परमेश्वर झूठे अगुआओं को बेनकाब करता है। "बहुत सारे काम सिर्फ इसलिए रुक जाते हैं, क्योंकि नकली अगुआ चीजों की जाँच करने में विफल रहते हैं, उन्होंने उन पर नजर नहीं रखी होती, किसी भी समस्या का समाधान नहीं किया होता; सिर्फ इसलिए कि वे अपने कर्तव्यों में बहुत ज्यादा असावधान रहे होते हैं। बेशक, यह इसलिए भी होता है, क्योंकि ये नकली अगुआ अपनी जिम्मेदारियों को गंभीरता से नहीं लेते। वे हैसियत के लाभों में आनंद लेते हैं और वाक्यांशों की तोतारटंत में संतोष प्राप्त करते हैं, वे खुद को वास्तविक कार्य में संलग्न नहीं करना चाहते, जिससे अकसर विशिष्ट कार्यों में कई समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं, और परिणाम यह होता है कि उन समस्याओं को हल करने में लंबा समय लग जाता है; अकसर कार्य के व्यतिक्रमों के बारे में पूछने या उन्हें सुधारने का प्रयास करने के लिए कोई उनके उत्पन्न होने के लंबे समय बाद भी नहीं आया होता; इसलिए भी काम में अकसर बड़ी चूकें होती हैं, ऐसी चूकें जिन्हें कोई मूर्ख भी देख सकता है, लेकिन जिनके प्रति नकली अगुआ आँखें मूँदे रहते हैं, और उन्हें समझ नहीं पाते; स्वाभाविक रूप से इन समस्याओं के हल होने का तो सवाल ही नहीं उठता। जब काम की समस्याएँ दूर नहीं की जातीं, जब व्यतिक्रम ठीक नहीं किए जाते और चूकें तुरंत सुधारी नहीं जातीं, तो कार्य-कुशलता गंभीर रूप से खतरे में पड़ जाती है। कार्य केवल किया जा रहा होता है—किंतु परमेश्वर की गवाही देने में उसका क्या प्रभाव पड़ता है? क्या जब लोग उसे देखते हैं, तो वह उनके लिए फायदेमंद होता है, क्या वह उन पर कोई प्रभाव छोड़ता है? क्या वह उन्हें सच्चे मार्ग की पड़ताल करने के लिए प्रेरित करता है? नहीं करता। उसका इनमें से कोई प्रभाव नहीं पड़ता, और ऐसा केवल नकली अगुआ के अपने कर्तव्यों में असावधान रहने और बहुत ज्यादा गलतियाँ करने के कारण होता है। इसलिए, काम की विभिन्न मदों को अंजाम देते हुए, वास्तव में कई समस्याएँ, व्यतिक्रम और चूकें होती हैं, जिन्हें नकली अगुआओं को हल करना चाहिए, सुधारना चाहिए और ठीक करना चाहिए—लेकिन चूँकि उनमें कोई दायित्व-बोध नहीं होता, चूँकि वे केवल एक सरकारी अधिकारी की भूमिका निभा सकते हैं और वास्तविक कार्य नहीं करते, जिसके परिणामस्वरूप वे एक विनाशकारी समस्या का कारण बन जाते हैं, ऐसी समस्या कि कुछ समूह अपनी एकता तक खो बैठते हैं, और समूह के सदस्य एक-दूसरे को नीचा दिखाने लगते हैं, एक-दूसरे के प्रति शंकालु और चौकन्ने हो जाते हैं, यहाँ तक कि वे परमेश्वर के घर के प्रति भी चौकन्ने हो जाते हैं। जब नकली अगुआओं के सामने यह स्थिति आती है, तो वे कोई विशिष्ट कदम नहीं उठाते" ("अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन" में 'नकली अगुआओं की पहचान करना (4)')। "देखने में तो ये नकली अगुआ मसीह-विरोधियों की तरह जानबूझकर बुराई नहीं करते, जानबूझकर अपनी जागीर स्थापित नहीं करते और अपनी मनमर्जी नहीं चलाते। लेकिन अपने कार्य के दायरे में नकली अगुआ पर्यवेक्षकों के कारण होने वाली विभिन्न समस्याओं का शीघ्रता से समाधान नहीं कर पाते, वे घटिया पर्यवेक्षकों का काम तुरंत किसी और को सौंपने और उन्हें बदलने में सक्षम नहीं होते, जिससे कलीसिया के काम को गंभीर रूप से हानि पहुँचती है, और यह सब नकली अगुआओं की लापरवाही के कारण होता है" ("अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन" में 'नकली अगुआओं की पहचान करना (3)')। मैंने देखा कि कैसे परमेश्वर झूठे अगुआओं की लापरवाही का खुलासा करता है, कैसे वे काम की जांच-पड़ताल या छानबीन नहीं करते हैं, कैसे वे प्रभारी लोगों की निगरानी और पूछताछ नहीं करते हैं, कैसे इसी वजह से काम की कई समस्याएं हल नहीं की जा सकीं, और परमेश्वर के घर के काम को गंभीर नुकसान पहुँचा। मैंने अपने क्रिया-कलापों पर विचार किया। मैं आरामपसंद थी, मैंने अपने काम को अनदेखा किया और गैर-जिम्मेदारी दिखाई, मैंने अपनी धारणाओं के आधार पर बहन झाओ पर भरोसा किया, उसके काम की जांच या निगरानी नहीं की। लोगों ने उसकी समस्याओं के बारे में बताया, तो मैंने अनदेखा किया, समय पर समस्याओं का हल नहीं निकाला या उसे बर्खास्त नहीं किया, जिसके चलते उसके मन में लंबे समय तक ईर्ष्या बनी रही, उसने समूह को परेशान किया, कोई सकारात्मक भूमिका नहीं निभाई, जिससे समूह का काम कई महीनों तक बेअसर रहा और प्रगति में बहुत देरी हो गई। जब भाई-बहनों ने उसे सलाह दी, तो उसने उनका दमन कर उन्हें अलग रखा, काफी समय तक उन्हें परेशान किया, जिससे समूह को अपने कामों में कोई प्रेरणा नहीं मिली, वे बेबस महसूस करने लगे, फिर भी मुझे इसकी कोई जानकारी नहीं थी, सोचा कि वह अच्छा कर रही है। परमेश्वर के घर ने मुझे अगुआ की जिम्मेदारी दी थी, मगर मैं यह जिम्मेदारी निभाने में नाकाम रही, जब कलीसिया के काम में बहुत सी समस्याएं आईं, तब भी मैं आँखें मूँदे रही, न उन्हें देख पाई और न ही समय पर हल कर पाई, जिससे कलीसिया के काम और भाई-बहनों के जीवन प्रवेश को भारी नुकसान हुआ। मैंने अपने कामों की भारी उपेक्षा की! भले ही मैंने जानबूझकर एक मसीह-विरोधी जैसा बुरा काम नहीं किया जिससे कि परमेश्वर के घर के काम को नुकसान पहुँचे, मगर अपने कर्तव्य की उपेक्षा करने से भी कलीसिया के काम को गंभीर नुकसान पहुंचा। ऐसी जाहिल, अंधी और गैर-जिम्मेदार होने पर मुझे खुद से घृणा हो गई, मैंने तो परमेश्वर की मौजूदगी में अपराध किया था। मुझे बहुत दुख और अपराध-बोध हुआ, लगा जैसे मुझ पर परमेश्वर और अपने भाई-बहनों का कर्ज है।

मैंने आत्मचिंतन किया। क्यों हमेशा अपने दैहिक सुख की ही सोचती रही, क्यों अपने कर्तव्य में तरकीब लड़ाती और धोखा देती रही? फिर, मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश देखा, जिनसे मुझे काफी मदद मिली। परमेश्वर के वचन कहते हैं, "शैतान का जहर क्या है—इसे कैसे व्यक्त किया जा सकता है? उदाहरण के लिए, यदि तुम पूछते हो, 'लोगों को कैसे जीना चाहिए? लोगों को किसके लिए जीना चाहिए?' तो लोग जवाब देंगे, 'हर व्यक्ति अपनी सोचे बाकियों को शैतान ले जाये।' यह अकेला वाक्यांश समस्या की जड़ को व्यक्त करता है। शैतान का फलसफा लोगों का जीवन बन गया है। लोग चाहे जिसका भी अनुसरण करें, वे उसे बस अपने लिए करते हैं, और इसलिए वे केवल अपने लिए जीते हैं। 'हर व्यक्ति अपनी सोचे बाकियों को शैतान ले जाये'—यही मनुष्य का जीवन और फ़लसफ़ा है, और इंसानी प्रकृति का भी प्रतिनिधित्व करता है। ये शब्द पहले ही भ्रष्ट इंसान की प्रकृति, भ्रष्ट इंसान की शैतानी प्रकृति की सच्ची तस्वीर बन गए हैं, और यह शैतानी प्रकृति पहले ही भ्रष्ट इंसान के अस्तित्व का आधार बन चुकी है; कई हजार सालों से वर्तमान दिन तक भ्रष्ट इंसान शैतान के इस जहर से जिया है। शैतान का हर काम अपनी भूख, महत्वाकांक्षाओं और उद्देश्यों के लिए होता है; वह परमेश्वर से आगे जाना चाहता है, परमेश्वर से मुक्त होना चाहता है, और परमेश्वर द्वारा रची गई सभी चीजों पर नियंत्रण पाना चाहता है। आज लोग शैतान द्वारा इस हद तक भ्रष्ट कर दिए गए हैं : उन सभी की प्रकृति शैतानी है, वे सभी परमेश्वर को नकारने और उसका विरोध करने की कोशिश करते हैं, वे अपने भाग्य पर अपना नियंत्रण चाहते हैं और परमेश्वर के आयोजनों और व्यवस्थाओं का विरोध करने की कोशिश करते हैं—उनकी महत्वाकांक्षाएँ और भूख बिल्कुल शैतान की महत्वाकांक्षाओं और भूख जैसी हैं। इसलिए, मनुष्यों की प्रकृति शैतान की प्रकृति है" ("अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन" में 'पतरस के मार्ग पर कैसे चलें')। परमेश्वर के वचनों पर विचार किया तो मुझे एहसास हुआ कि मैं अपने कर्तव्य में आलसी, गैर-जिम्मेदार और विवेकहीन थी, क्योंकि शैतान का यह नियम कि "हर व्यक्ति अपनी सोचे बाकियों को शैतान ले जाये" मेरे अंदर गहराई तक जड़ें जमाकर, मेरी प्रकृति बन गया था। मैं हमेशा इसी के अनुसार जीती रही, मैंने हर चीज में सिर्फ अपने दैहिक सुखों की सोची, अधिक से अधिक स्वार्थी और नीच बन गई। जहां मुझे किसी चीज को लेकर चिंता करने या तकलीफ उठाने और कीमत चुकाने की ज़रूरत थी, मैंने तरकीब लड़ाकर और धोखा देकर इससे बचने की कोशिश की, कम से कम तकलीफ उठाने का रास्ता चुना। जब मैंने देखा कि अगुआ के काम में अधिक चिंता करने और तकलीफ उठाने की ज़रूरत है, तो कोई एक ही काम करना चाहती थी। जब मेरा काम बढ़ा, तो मैं कम चिंता करना और कम कीमत चुकाना चाहती थी, मैं बहन झाओ के काम से दूर रहने और उसे अनदेखा करने का रवैया अपनाने लगी। फिर, जब मैंने उसे बुरी हालत में देखा, तो समस्या को हल नहीं करना चाहा। हालाँकि परमेश्वर ने बहन वांग के ज़रिए मुझे याद दिलाया कि वह अपने काम के लिए सही नहीं है, मगर मैंने इसकी छानबीन न करने के लिए काम में व्यस्त होने का बहाना बनाया, आखिर बहन झाओ की समस्या गंभीर हो गई और उसे बर्खास्त करना पड़ा। परमेश्वर ने कलीसिया अगुआ का कर्तव्य देकर मेरा उत्कर्ष किया और मुझे अभ्यास का मौका दिया, इस उम्मीद में कि मैं उसकी आज्ञा को स्वीकार करके यह जिम्मेदारी निभाऊंगी, अपने भाई-बहनों की निगरानी करूंगी, ताकि वे अपना कर्तव्य निभाकर परमेश्वर को संतुष्ट करें। मगर मैंने क्या किया? अपना कर्तव्य अच्छे से निभाने के बजाय, मैंने सिर्फ अपने आराम की परवाह की, मैंने अधिक चिंता करने और तकलीफ उठाने वाला काम नहीं किया। मैंने बरसों से परमेश्वर में विश्वास किया और परमेश्वर के वचनों के सिंचन का काफी लाभ उठाया, मगर समस्याओं से सामना होने पर, मैंने अपने आराम की सोची, अपना काम ठीक से नहीं किया। मैं स्वार्थी और नीच थी, मैंने परमेश्वर को नाराज़ किया! इंसानियत और समझ न होने और परमेश्वर के नेक इरादों से छल करने पर मुझे खुद से घृणा हो गई। मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, "परमेश्वर, मैंने अपने दैहिक सुख की परवाह करके व्यावहारिक कार्य को अनदेखा किया, जिससे कलीसिया के काम को भारी नुकसान पहुँचा, मगर तुमने मेरे अपराधों के अनुसार मुझसे बर्ताव नहीं किया। तुमने मुझे पश्चाताप और आत्मचिंतन करने का मौका दिया। मैं तुम्हारे सामने पश्चाताप करना चाहती हूँ। इसके बाद, मेरा कर्तव्य चाहे जो भी हो, मैं अपने दैहिक सुख और आराम की परवाह नहीं करूंगी। मैं जिम्मेदार बनकर पूरी विनम्रता के साथ अपना कर्तव्य निभाना चाहती हूँ।"

फिर, मैंने परमेश्वर के वचनों के दो और अंश पढ़े। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "दिल रखने वाले लोग परमेश्वर की इच्छा के प्रति जागरूक रह पाते हैं; हृदयविहीन लोग खाली खोल होते हैं, मसखरे होते हैं, वे परमेश्वर की इच्छा के प्रति जागरूक होना नहीं जानते : 'मुझे परवाह नहीं कि यह परमेश्वर के लिए कितना जरूरी है, मैं तो वही करूँगा जो मैं चाहता हूँ—वैसे मैं आलस या निकम्मापन नहीं दिखा रहा।' ऐसे लोग परमेश्वर की इच्छा के प्रति सचेत नहीं होते, न ही वे यह समझते हैं कि परमेश्वर की इच्छा के प्रति सचेत कैसे रहें। इस स्थिति में, क्या उनमें सच्चा विश्वास होता है? नूह परमेश्वर की इच्छा के प्रति सचेत था, उसमें सच्चा विश्वास था। तो, अपना सर्वश्रेष्ठ करना ही पर्याप्त नहीं होता; तुम्हारे हृदय में सच्ची जागरूकता होनी चाहिए—जो कि मानवता में पाया जाने वाला विवेक है, यही लोगों में होना चाहिए और नूह में भी था। यदि नूह धीरे-धीरे काम करता, उसमें शीघ्रता का भाव न होता, कोई फिक्र न होती, कोई दक्षता न होती, तो तुम्हें क्या लगता है, उस समय ऐसा काम करने में, उसे नाव बनाने में कितने साल लग जाते? क्या 100 साल में यह काम खत्म हो पाता? (नहीं।) अगर वह लगातार बनाता तो भी कई पीढ़ियाँ लग जातीं। एक ओर, नाव जैसी ठोस चीज के निर्माण में वर्षों लग जाते; इसके अलावा, सभी जीवों को इकट्ठा करने और उनकी देखभाल करने में भी वर्षों लगते। क्या इन जीवों को इकट्ठा करना आसान था? नहीं। तो, परमेश्वर के निर्देशों को सुनने के बाद, और परमेश्वर की उत्कट इच्छा को समझने के बाद, नूह ने महसूस किया कि यह न तो आसान होगा और न ही सीधा-सरल। उसे लगा कि उसे पूरा करना है, परमेश्वर की इच्छा के अनुसार कार्य को पूरा करना है, ताकि परमेश्वर संतुष्ट और आश्वस्त हो, ताकि परमेश्वर के कार्य का अगला चरण सुचारू रूप से आगे बढ़ सके। ऐसा था नूह का हृदय। और यह किस तरह का हृदय था? यह एक ऐसा हृदय था जो परमेश्वर की इच्छा के प्रति जागरूक था" ("मसीह-विरोधियों को उजागर करना" में 'प्रकरण तीन : कैसे नूह और अब्राहम ने परमेश्वर के वचन सुने और उसकी आज्ञा का पालन किया (भाग दो)')। "कोई अगुआ या कर्मी चाहे जो भी महत्वपूर्ण कार्य करे, और उस कार्य की प्रकृति चाहे जो हो, उनकी पहली प्राथमिकता इस बात से पूर्णत: परिचित होना है कि काम कैसे हो रहा है। चीजों पर अनुवर्ती कार्रवाई करने और प्रश्न पूछने के लिए उन्हें व्यक्तिगत रूप से वहाँ होना चाहिए और उनकी सीधी जानकारी प्राप्त करनी चाहिए। उन्हें केवल सुनी-सुनाई बातों पर ध्यान नहीं देना चाहिए या अन्य लोगों की रिपोर्टें नहीं सुननी चाहिए; इसके बजाय, उन्हें अपनी आँखों से देखना चाहिए कि कर्मचारी कैसे काम कर रहे हैं, काम कैसे बढ़ रहा है, क्या कठिनाइयाँ हैं, कोई क्षेत्र ऊपर वाले की अपेक्षाओं के विपरीत तो नहीं, विशेषज्ञ-कार्यों में कहीं सिद्धांतों का उल्लंघन तो नहीं हुआ, कोई गड़बड़ी या व्यवधान तो नहीं है, आवश्यक उपकरण की या किसी कार्य-विशेष के लिए निर्देशात्मक सामग्री की कमी तो नहीं है—उन्हें इन सब पर नजर रखनी चाहिए। चाहे वे कितनी भी रिपोर्टें सुनें, या सुनी-सुनाई बातों से उन्हें कितना भी कुछ मिले, इनमें से कुछ भी व्यक्तिगत दौरे की बराबरी नहीं करता। चीजों को अपनी आँखों से देखना अधिक सटीक और विश्वसनीय होता है; जब वे स्थिति से परिचित हो जाते हैं, तो उन्हें इस बात का अच्छा अंदाजा हो जाता है कि क्या चल रहा है। इससे भी अधिक महत्वपूर्ण इस बात की स्पष्ट और सटीक समझ है कि कौन अच्छी क्षमता का और विकसित किए जाने योग्य है, यदि अगुआओं और कर्मियों को अपना काम ठीक से करना है तो यह महत्वपूर्ण है। जब अगुआओं और कर्मियों के पास भी अच्छी क्षमता वाले लोगों को पोषित और प्रशिक्षित करने का मार्ग और काम के दौरान आने वाली विभिन्न प्रकार की समस्याओं और कठिनाइयों को हल करने की जानकारी होती है, अपने विचार और सुझाव होते हैं कि काम कैसे आगे बढ़ाना है और वह भविष्य में कैसा दिखेगा, और वे बहुत आसानी से, बिना किसी संदेह या आशंका के ऐसी चीजों के बारे में स्पष्टता से बोलने में सक्षम होते हैं, तो यह काम करना बहुत आसान हो जाता है। और ऐसा करके अगुआ अपने दायित्वों का निर्वाह कर रहे होंगे, है न? अगुआओं और कर्मियों को यह सब ध्यान में रखना चाहिए, उन्हें यह सब स्मरण रखना चाहिए, उन्हें लगातार इन बातों के बारे में अपने सोचते रहना चाहिए। कठिनाइयाँ आने पर उन्हें हर किसी के पास जाकर इन बातों पर संगति और चर्चा करनी चाहिए, ताकि समस्या का समाधान करने के लिए सत्य की खोज की जा सके। यदि उनका कार्य इस प्रकार वास्तविकता पर आधारित होगा, तो ऐसी कोई कठिनाइयाँ नहीं होगी जिसका समाधान न किया जा सके" ("अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन" में 'नकली अगुआओं की पहचान करना (4)')। परमेश्वर के वचनों ने मुझे अपना कर्तव्य निभाने का मार्ग दिखाया, जो परमेश्वर की इच्छा का ध्यान रखना, परमेश्वर की अपेक्षाओं के अनुसार चलना, अपना कर्तव्य अच्छे से निभाना और परमेश्वर के घर के हितों को नुकसान नहीं पहुंचाना है। बिल्कुल नूह की तरह, जिसने सचमुच परमेश्वर की इच्छा का ध्यान रखा। जब परमेश्वर ने उसे जहाज बनाने के लिए कहा, तो उसने खुद के फायदे या नुकसान की नहीं सोची, उसने सिर्फ यह सोचा कि परमेश्वर की अपेक्षाओं के अनुसार जल्दी से जहाज कैसे बनाया जाये। मैं नूह से तुलना तो नहीं कर सकती, मगर नूह का अनुकरण करना चाहती थी, परमेश्वर की इच्छा का ध्यान रखना सीखकर किसी भी तरह से उसकी अपेक्षाओं को पूरा करना चाहती थी। मैंने यह भी समझा कि अगुआ और कार्यकर्ता अच्छे से व्यावहारिक काम करें, इसके लिए हमें काम की हर खबर रखनी होगी, काम में अड़चनों या रुकावटों का पता चलने पर, हमें उनके साथ सहभागिता करके समस्या को हल करना होगा, ताकि काम सामान्य रूप से आगे बढ़े।

उसके बाद, मेरी अगुआ ने मुझे कई कलीसियाओं के लिए सुसमाचार और सिंचन कार्य की जिम्मेदारी सौंप दी, मैंने सोचा, "अब मैं पिछली बार की तरह नहीं कर सकती। दैहिक सुखों की परवाह करके अपने कर्तव्य की जिम्मेदारी से मुँह नहीं मोड़ सकती। मुझे विनम्र बनकर सारा ध्यान अपने काम पर लगाना होगा।" उसके बाद, मैंने दूरदर्शिता के सत्य को समझने पर पूरा ध्यान दिया। जब लोगों को सुसमाचार के प्रचार की ज़रूरत होती, तो मैं परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य की गवाही देती थी। शाम को, परमेश्वर के वचनों की खोज करके उनकी धार्मिक धारणाओं के अनुसार जवाब तैयार कर लेती। एक दिन, जब मैं कलीसिया के काम की जांच करने जा रही थी, मैंने सोचा, "इस कलीसिया के अगुआओं और सुसमाचार उपयाजकों ने बरसों से परमेश्वर में विश्वास किया है। उनमें काबिलियत है, वे सक्षम और जिम्मेदार हैं। वे अपना काम अच्छे से पूरा कर सकते हैं। फिर मुझे काम की जांच करने की क्या जरूरत, इससे मेरा समय भी बचेगा।" ये विचार मन में आते ही, मुझे एहसास हुआ कि काम की निगरानी या जांच न करने के बहाने ढूंढने के लिए मैं फिर से छल और धोखे का सहारा ले रही थी। अब, इस कलीसिया की जिम्मेदारी मुझ पर है, तो कलीसिया के काम को आगे बढ़ाने और उसकी निगरानी करने का काम और जिम्मेदारी मेरी है। मैं अपने दैहिक सुख के लिए बहाने बनाकर अपने कर्तव्य को ताक पर नहीं रख सकती। इस विचार के साथ, मैंने कलीसिया के काम की सावधानी से जांच की। नए सदस्यों की सभाओं में मुझे कई समस्याएं दिखीं, सिंचन कार्य में लगे कर्मी अपना काम अच्छे से नहीं कर रहे थे। अगले दिन, सत्य पर सहभागिता करके उनकी समस्याएं हल करने के लिए मैं उन कर्मियों से मिली। जल्दी ही मैंने सुना, नए सदस्यों की सभाएं सामान्य रूप से चल रही हैं, इससे मुझे काफी सुरक्षित महसूस हुआ। असल में परमेश्वर के घर में अगुआओं और कर्मियों को कीमत चुकाने की ज़रूरत है, उन्हें काम की जांच-पड़ताल और निगरानी करने की ज़रूरत है। यही समस्या को ढूंढकर समय पर उसे हल करने और अच्छे से कर्तव्य निभाने का एकमात्र तरीका है। परमेश्वर के उद्धार की वजह से ही आज मुझे यह समझ आई और मैंने खुद को बदला। सर्वशक्तिमान परमेश्वर का धन्यवाद!

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