74. क्या दूसरों के प्रति वफादार होना एक अच्छा इंसान होना है?

यू मिंग, चीन

2012 में जब मैं कलीसिया अगुआ था, झेंग शिन ने कुछ भाई-बहनों को अपने साथ मिलाकर गुमराह किया ताकि वह अगुआ के ओहदे के लिए प्रतिस्पर्धा कर सके और मुझे झूठा अगुआ बताकर हटाने की मांग की, जिसके कारण कलीसिया में अराजकता फैल गई। उस समय जो कुछ हो रहा था, वांग चेन ने तुरंत मुझे उसकी सूचना दी और हमने भाई-बहनों के साथ मिलकर झेंग शिन के कार्यों की प्रकृति को समझने और उसका विश्लेषण करने के लिए संगति की। भाई-बहनों ने झेंग शिन को पहचान लिया और कलीसिया में अराजकता आखिरकार शांत हो गई। तभी से मैं वांग चेन का आभारी हूँ। अराजकता खत्म करने में उसकी मदद के बिना मुझे वाकई दबाया और सताया जा सकता था, मुझे मेरी भूमिका से बेदखल किया जा सकता था और मेरा कर्तव्य खो सकता था। 2019 में पुलिस ने मेरा और मेरी पत्नी का पीछा किया और हम भाई-बहनों से बात नहीं कर पाए, कलीसिया से हमारा संपर्क टूट गया। 2021 में ही भाई-बहन मुझसे संपर्क कर पाए और मुझे दूसरी कलीसिया में स्थानांतरित कर दिया। उस समय हमें लेने आया कलीसिया अगुआ कोई और नहीं बल्कि वांग चेन था और उसने हमारे लिए सभाओं में भाग लेने और अपने कर्तव्य निभाने के लिए व्यवस्था की। उसके प्रति मेरी कृतज्ञता और भी बढ़ गई और मुझे लगा कि उसने मुझ पर एहसान किया है। मैंने उसे परिवार की तरह माना और सोचा “मुझे नहीं पता कि मैं उसका शुक्रिया अदा कैसे करूँ। मौका मिलने पर मुझे एहसान चुकाना चाहिए।”

बाद में मुझे एक कलीसिया अगुआ चुना गया और वांग चेन और चेन मो के साथ भागीदार बनाया गया। कुछ समय बाद मैंने देखा कि वांग चेन हमेशा लोगों और चीजों का अत्यधिक विश्लेषण करता है और परेशानी खड़ी करने का शौकीन है। वह चेन मो से टकराता था और कभी भी आत्म-चिंतन या खुद को जानने की कोशिश नहीं करता था, यहाँ तकि वह सभाओं के दौरान भी चेन मो के प्रति पूर्वाग्रह और असंतोष फैलाता था, जिससे भाई-बहन विवाद में फंस गए, उसका पक्ष लिया और चेन मो का न्याय किया। इसके अलावा उसने कभी भी सत्य का अभ्यास नहीं किया, हमेशा सांसारिक आचरण के फलसफे के आधार पर दूसरों के साथ बातचीत की। जब भाई-बहनों को अपने कर्तव्यों में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता तो वह उन्हें सुलझाने के लिए सत्य पर संगति न करता, बल्कि हमेशा उनकी देह पर विचार करता और उन्हें खुद पर बहुत अधिक कठोर न होने के लिए कहता, जिससे वे अपनी कमजोरियों में लिप्त रहते और उन्हें बनाए रखते। मैंने यह भी देखा कि वांग चेन ने शायद ही कभी काम के बारे में पूछा या जाँच की और जब कोई समस्या दिखी तो उसने समाधान नहीं किया। अगर नवागंतुक सभाओं में शामिल नहीं हो पाते थे तो वे उन पर ध्यान नहीं देता था। वह सुसमाचार फैलाने वालों को ठीक से व्यवस्थित नहीं करता था और उच्च-स्तरीय अगुआओं से निपटने के लिए चालबाजी का सहारा लेता और अपने वरिष्ठों से झूठ बोलता जबकि अपने से नीचे के लोगों से बातें छिपाता। जब भाई-बहन उसकी समस्याओं की ओर ध्यान दिलाते तो वह स्वीकारता नहीं, तरह-तरह के बहाने बनाता और खुद को सही ठहराने की कोशिश करता। वह भाई-बहनों के बीच नकारात्मकता भी फैलाता और कहता कि उसने वर्षों से अपने कर्तव्य में बहुत कष्ट सहे हैं लेकिन कुछ हासिल नहीं हुआ और बेहतर होगा कि वे परमेश्वर पर विश्वास करने के बजाय देह के सांसारिक जीवन का आनन्द लें। उस समय कुछ नए विश्वासी उसे पहचान नहीं पाए और गुमराह हो गए और अब वे अपने कर्तव्य नहीं निभाना चाहते थे। उस दौरान वांग चेन ने लगातार कलीसियाई जीवन को बाधित किया, जिससे सभी भाई-बहनों के कर्तव्यों पर असर पड़ा। तब उच्च-स्तरीय अगुआओं को एहसास हुआ कि वांग चेन झूठा अगुआ है जो वास्तविक काम नहीं करता, वे उसे बर्खास्त करने के लिए तैयार हो गए। लेकिन वांग चेन के साथ बातचीत करने से मुझे एहसास हुआ कि वह न केवल झूठा अगुआ है बल्कि एक छद्म-विश्वासी भी है। उसकी समस्याएँ गंभीर थीं और उसे जल्दी से बर्खास्त करके निकालने की जरूरत थी, वरना वह कलीसियाई जीवन को बाधित करता रहता। मैंने उसके छद्म-विश्वासी व्यवहारों की रिपोर्ट उच्च-स्तरीय अगुआओं को करने के बारे में सोचा, लेकिन फिर कलीसियाई अराजकता शांत करने और मेरा कर्तव्य ड्यूटी व्यवस्थित करने में वांग चेन की मदद करने की यादें मेरे दिमाग में घूमने लगीं, जिससे मैंने अपने दिल में झिझकते हुए सोचा, “अगर मैं उसकी समस्याओं की रिपोर्ट करता हूँ तो क्या वह मुझ में जमीर नहीं होने और कृतघ्न होने का आरोप लगाएगा?” यह सोचकर मेरा दिल बहुत देर तक शांत नहीं हो पाया। अगर उसे सच में निकाल दिया गया तो इसका मतलब होगा कि उसकी आस्था की यात्रा खत्म हो जाएगी और वह पक्का से मुझसे नाराज हो जाएगा! मैं वाकई उलझन में था और रिपोर्ट लिखने का मन नहीं बना सका। मैंने सोचा, “शायद मुझे फिर से उसकी मदद करनी चाहिए? अगर वह कुछ हद तक बदल जाए और व्यवधान और गड़बड़ी पैदा करना बंद कर दे तो शायद उसे निकालने की जरूरत नहीं पड़ेगी?” यह सब सोचते हुए मैंने वांग चेन की समस्याओं की रिपोर्ट नहीं की। जब मैं वांग चेन से मिला तो मैंने उसके साथ परमेश्वर के वचनों पर संगति की, उससे आग्रह किया कि जब उसे कोई परेशानी हो तो वह आत्म-चिंतन करे और खुद को और अधिक जानने का प्रयास करे। लेकिन मेरी तमाम संगति के बावजूद, उसने इसे गंभीरता से नहीं लिया और पहले की तरह कलीसिया में व्यवधान डालना, भाई-बहनों को सामान्य कलीसियाई जीवन जीने से रोकना और उनके जीवन प्रवेश को प्रभावित करना जारी रखा। मुझे बहुत बुरा लगा और मैंने खुद को दोषी मानते हुए सोचा, “मैं इतना भ्रमित कैसे हो सकता हूँ? मैं परमेश्वर के पक्ष में खड़ा होकर कलीसिया के काम की रक्षा क्यों नहीं कर सकता?” तब मैंने सत्य की खोज और आत्म-चिंतन करना शुरू किया।

एक दिन मुझे परमेश्वर के वचनों का एक अंश मिला : “किन लक्षणों से अनुभूतियों का पता चलता है? निश्चित रूप से वह कोई सकारात्मक चीज नहीं है। यह भौतिक संबंधों और देह की पसंद की संतुष्टि पर ध्यान केंद्रित करना है। पक्षपात करना, दूसरों की कमियों को ढंकना, अत्यधिक स्नेह करना, लाड़-दुलार करना और मनमानी करने देना आदि सब अनुभूतियों में शामिल हैं। कुछ लोग अनुभूतियों के बारे में बहुत ऊँचा सोचते हैं, वे अपने साथ होने वाली हर चीज के बारे में अपनी अनुभूतियों के आधार पर ही प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं; अपने दिलों में वे अच्छी तरह जानते हैं कि यह गलत है, फिर भी वे वस्तुनिष्ठ होने में असमर्थ रहते हैं, सिद्धांत के अनुसार कार्य करना तो दूर की बात है। जब लोग हमेशा अनुभूतियों के वश में रहते हैं, तो क्या वे सत्य का अभ्यास कर पाते हैं? यह अत्यंत कठिन है। सत्य का अभ्यास करने में बहुत-से लोगों की असमर्थता अनुभूतियों के कारण होती है; वे अनुभूतियों को विशेष रूप से महत्वपूर्ण मानते हैं, वे उन्हें सबसे आगे रखते हैं। क्या वे सत्य से प्रेम करने वाले लोग हैं? हरगिज नहीं। सार में, अनुभूतियां क्या होती हैं? वे एक तरह का भ्रष्ट स्वभाव हैं। अनुभूतियों की अभिव्यक्तियों को कई शब्दों का उपयोग करते हुए बताया जा सकता है : भेदभाव, सिद्धांतहीन तरीके से दूसरों की रक्षा करने की प्रवृत्ति, भौतिक संबंध बनाए रखना, और पक्षपात; ये ही अनुभूतियां हैं(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, सत्य वास्तविकता क्या है?)। परमेश्वर के वचन पढ़कर मुझे जागृति हुई। इस दौरान मैं अपनी भावनाओं में जी रहा था और सिद्धांतों के बिना काम कर रहा था। मुझे साफ एहसास हो गया था कि वांग चेन न केवल झूठा अगुआ है जो कोई वास्तविक काम नहीं करता, बल्कि एक छद्म-विश्वासी भी है। मुझे उसके व्यवहार को उच्च-स्तरीय अगुआओं के सामने उजागर करना चाहिए था। हालाँकि मैं उसके एहसानों और हमारी तथाकथित दोस्ती की परवाह करता रहा और इसीलिए मैंने उसके मुद्दों की रिपोर्ट नहीं की और उसे कलीसिया में बुराई और कलीसियाई जीवन को बाधित करने दिया। मैं भावनाओं के आधार पर काम कर रहा था और ढाल बनकर उसे बचा रहा था। कलीसिया में एक छद्म-विश्वासी को रखने की चाहत रखकर मैं शैतान के साथ मिलीभगत कर रहा था और उसका साथी बन रहा था। मैं वाकई बुराई कर रहा था! बड़ा लाल अजगर गिरफ्तार करता है, सताता है और कलीसिया का कार्य बाधित करता है और यहाँ मैं कलीसिया के भीतर एक छद्म-विश्वासी की ढाल बन रहा था, मैं वही कर रहा था जो बड़ा लाल अजगर चाह कर भी नहीं कर पाया था। क्या यह परमेश्वर के विरुद्ध विद्रोह करना और उसके खिलाफ जाना नहीं था? मैं शैतान की ढाल की तरह काम कर रहा था! जो तथ्य सामने आए उनसे मुझे आखिरकार समझ आया कि मैं किस तरह भावनाओं के आधार पर जी रहा था और सही-गलत या अच्छे-बुरे में भेद नहीं कर पा रहा था न्याय की किसी भी भावना से अछूता था और एक छद्म-विश्वासी को कलीसियाई जीवन बाधित करने दे रहा था। मैं परमेश्वर के प्रति बहुत विद्रोही हो गया था! मुझे याद आया कि परमेश्वर ने कहा था : “भावनाएँ उसकी दुश्मन हैं(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, “संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचनों” के रहस्यों की व्याख्या, अध्याय 28)। मुझे गहरा पश्चात्ताप और अपराध बोध हुआ और मैंने वांग चेन की समस्याओं के बारे में उच्च-स्तरीय अगुआओं को रिपोर्ट करने का फैसला किया।

कुछ दिनों बाद जब उच्च-स्तरीय अगुआ वांग चेन को बर्खास्त करने आए तो मैंने उसकी स्थिति की रिपोर्ट की। सत्यापन के बाद उन्होंने पाया कि वांग चेन वास्तव में छद्म-विश्वासी है और उन्होंने मुझे उसके व्यवहार लिखने के लिए कहा ताकि उसे निकालने के लिए सामग्री संकलित करने में मदद मिल सके। जब मैंने वांग चेन को निकाले जाने के बारे में सोचा तो मुझे वो तमाम घटनाएँ याद आईं जब उसने मेरी मदद की थी और मैंने सोचा, “उसने मेरे प्रति उदारता दिखाई और अब मैं उसे निकालने के लिए मूल्यांकन लिखने वाला हूँ। अगर वह यह सब सुनेगा तो क्या वह मुझ पर उदारता का बदला दुश्मनी से चुकाने और जमीर नहीं होने का आरोप लगाएगा? फिर मैं उसका सामना कैसे करूँगा?” लेकिन जब मैंने उसके छद्म-विश्वासी होने की अभिव्यक्तियों के बारे में सोचा तो मेरी अंतरात्मा की जागृति ने मुझे बताया कि मुझे सिद्धांतों पर टिके रहकर उसके व्यवहारों को लिखना चाहिए। लेकिन मैं इस आंतरिक बाधा को पार नहीं कर सका और मुझे लगा कि मैं दुविधा में हूँ। जितना मैंने इसके बारे में सोचा, मुझे उतना ही दर्द महसूस हुआ और मेरे अंदर अंधकार और निराशा छा गई। 10 दिनों तक टाल-मटोल करने के बाद भी मैं वांग चेन के व्यवहार के बारे में नहीं लिख पाया था। इस दौरान मुझे बहुत तेज दाँत दर्द होने लगा और कभी-कभी इतना दर्द बढ़ जाता कि मुझे पसीना आने लगता। मैं न खा पाता था और न ही सो पाता था। मुझे एहसास हुआ कि यह शायद परमेश्वर का अनुशासन है और मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की : “हे परमेश्वर, वांग चेन एक छद्म-विश्वासी है, मुझे उसके व्यवहारों को लिखना चाहिए और सिद्धांतों के अनुसार उसे निकाल देना चाहिए। लेकिन जब मैं मुझ पर किए गए उसके एहसानों के बारे में सोचता हूँ तो मैं लिखना नहीं चाहता। मेरा दिल बहुत हठी है, बहुत विद्रोही है! हे परमेश्वर, मैं तुम्हारे पास लौटना चाहता हूँ। मुझे प्रबुद्ध करो और मुझे खुद को जानने, सिद्धांतों पर टिके रहने और कलीसिया के हितों की रक्षा करने के लिए मार्गदर्शन करो।”

इसके बाद मैंने लगातार चिंतन करते हुए सोचा, “वह कौन-सी चीज है जिसने मुझे सिद्धांतों पर टिके रहने और कलीसिया के हितों की रक्षा करने से रोक रखा है?” एक सभा के दौरान मुझे परमेश्वर के वचनों में जवाब मिला। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है : “लोगों के दिल की गहराइयों में अभी भी कई धारणाएँ और कल्पनाएँ, तमाम विचार, ख्याल, परंपरागत संस्कृति के जहर और परमेश्वर से बैर रखने वाली कई चीजें होती हैं। ये चीजें उनके अंदर छिपी होती हैं और इन्हें अभी खोजा जाना बाकी है। ये उनके भ्रष्ट स्वभावों के प्रकाशन का मूल होती हैं और ये अंदर से मनुष्य के प्रकृति सार से निकलती हैं। यही वजह है कि जब परमेश्वर कुछ ऐसा करता है जो तुम्हारी धारणाओं से मेल नहीं खाता तो तुम उसका प्रतिरोध और विरोध करोगे। तुम नहीं समझोगे कि परमेश्वर ने ऐसा क्यों किया है, और भले ही तुम जानते हो कि परमेश्वर जो कुछ भी करता है उसमें सत्य होता है और तुम समर्पण भी करना चाहते हो, लेकिन तुम ऐसा नहीं कर पाते। तुम समर्पण क्यों नहीं कर पाते? तुम किस वजह से विरोध और प्रतिरोध करते हो? इसका कारण यह है कि मनुष्य के विचारों और दृष्टिकोण में ऐसी कई चीजें हैं जो परमेश्वर के प्रति शत्रुतापूर्ण होती हैं, उन सिद्धांतों के प्रति शत्रुतापूर्ण होती हैं जिनके आधार पर परमेश्वर कार्य करता है और उसके सार के प्रति शत्रुतापूर्ण होती हैं। इन चीजों का ज्ञान पाना लोगों के लिए कठिन है(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, अपने पथभ्रष्‍ट विचारों को पहचानकर ही खुद को सचमुच बदला जा सकता है)। “यह सब मैं यह एहसास कराने के लिए कह रहा हूँ कि मनुष्य की विद्रोही प्रकृति का आधार और सार मुख्य रूप से लोगों के वे विचार और दृष्टिकोण होते हैं, जो परिवार और समाज के साथ ही परंपरागत संस्कृति से मिली शिक्षा से बनते हैं। जब ये चीजें परिवार की रीतियों या समाज के प्रभाव और अकादमिक शिक्षा के जरिए लोगों के मन में थोड़ा-थोड़ा करके बैठा दी जाती हैं तो उसके बाद लोग इनके मुताबिक जीने लगते हैं। वे अनजाने में ही यह विश्वास करने लगेंगे कि यह परंपरागत संस्कृति सही है, इसे बदला नहीं जा सकता और इसकी आलोचना नहीं की जा सकती, और परंपरागत संस्कृति की माँगों के अनुसार कार्य करके ही वे असली इंसान बन सकते हैं। अगर वे ऐसा नहीं करते तो उन्हें लगता है कि वे अंतरात्मा विहीन हैं, मानवता विरोधी और मानवता विहीन हैं, और वे इसे स्वीकार नहीं कर पाएँगे। क्या ये मानवीय विचार और दृष्टिकोण सत्य से कोसों दूर नहीं हैं? मनुष्य के विचारों और दृष्टिकोणों में मौजूद चीजों, और लोग जिन लक्ष्यों के पीछे दौड़ते हैं, उन सबका प्रयोजन संसार और शैतान की ओर होता है। मनुष्य से सत्य का अनुसरण कराने की परमेश्वर की अपेक्षा का प्रयोजन परमेश्वर है, रोशनी है। ये दो अलग-अलग दिशाएँ और लक्ष्य हैं। परमेश्वर द्वारा मनुष्य़ को दिए गए लक्ष्यों और मनुष्य से उसकी अपेक्षाओं के अनुसार कार्य करो और तुम्हारी मानवता और ज्यादा सामान्य हो जाएगी, तुम और अधिक मानव के समान होगे और तुम परमेश्वर के और करीब पहुँच जाओगे। अगर तुम परंपरागत संस्कृति के विचारों और दृष्टिकोण के अनुसार कार्य करोगे तो तुम अपनी अंतरात्मा और विवेक खोते जाओगे, और भी ज्यादा झूठे और नकली बन जाओगे, संसार की प्रवृत्तियों का और भी अधिक अनुसरण करोगे, और बुरी शक्तियों का अंश बन जाओगे। तब तुम शैतान की शक्ति के अधीन पूरी तरह अंधकार में जी रहे होगे। तुम पूरी तरह सत्य का उल्लंघन कर परमेश्वर से विश्वासघात कर चुके होगे(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, अपने पथभ्रष्‍ट विचारों को पहचानकर ही खुद को सचमुच बदला जा सकता है)। परमेश्वर के वचनों से मुझे स्पष्टता मिली। मुझे एहसास हुआ कि मैंने भावनाओं के आधार पर काम किया था और वांग चेन के व्यवहार को दर्ज नहीं करना चाहता था क्योंकि मुझे डर था कि उसे निकाल दिया जाएगा क्योंकि मैं शैतान द्वारा मेरे अंदर डाले गए विचारों और दृष्टिकोणों से बंधा हुआ था, जैसे कि “हर किसी को वफादार होना चाहिए,” “किसी को कठोर और कृतघ्न नहीं होना चाहिए,” “दयालुता का बदला कृतज्ञतापूर्वक लौटाना चाहिए” इत्यादि। इन विचारों और नजरियों से नियंत्रित होकर मैंने हमेशा लोगों की दयालुता को सबसे पहले रखा, यहाँ तक कि इसे सत्य का अभ्यास करने और कलीसिया के हितों से भी अधिक महत्वपूर्ण माना। जब मैंने वांग चेन के छद्म-विश्वासी होने की अभिव्यक्तियों की रिपोर्ट करने पर विचार किया तो मैं मुझे याद आया कि कैसे उसने पहले मेरी मदद की थी, मैंने सोचा कि उसके व्यवहार की रिपोर्ट करना निर्दयता और कृतघ्नता होगी और इससे अन्य लोग मुझसे घृणा करेंगे। इन विचारों और दृष्टिकोणों से बेबस होकर मैं कभी भी सत्य का अभ्यास या सिद्धांतों पर टिक नहीं पाया। यहां तक कि जब अगुआओं ने मुझे वांग चेन के व्यवहारों को लिखने के लिए कहा तो मैं हिचकिचाया क्योंकि उसने मुझ पर एहसान किया था, मैंने उसे बुराई करने दी और कलीसिया में भाई-बहनों को परेशान करने दिया। कलीसिया भाई-बहनों के लिए अपने कर्तव्य निभाने और सत्य का अनुसरण करने का स्थान है। कलीसिया से छद्म-विश्वासियों को तुरंत बाहर निकालने से ही भाई-बहनों के कलीसियाई जीवन की रक्षा की जा सकती है। वांग चेन के छद्म-विश्वासी होने की अभिव्यक्तियों के बारे में लिखना सत्य का अभ्यास करना और सकारात्मक बात थी, लेकिन मैंने इसे विश्वासघात और जमीर न होने के रूप में देखा। मैं वाकई अच्छाई और बुराई में अंतर नहीं कर पाया और यह नहीं समझ सका कि किससे प्यार करना है और किससे नफरत करनी है, और मेरे पास कोई सिद्धांत या रुख नहीं था। अगर मैंने वांग चेन की समस्याओं की तुरंत रिपोर्ट की होती तो उसे कलीसिया से जल्दी ही निकाल दिया गया होता लेकिन क्योंकि मैंने सत्य का अभ्यास नहीं किया और उसे बचाया, इसलिए वह कलीसिया में बाधा और गड़बड़ी पैदा करता रहा, जिससे भाई-बहनों के जीवन प्रवेश को नुकसान हुआ और कलीसिया के काम में भी देरी हुई। एक अगुआ के रूप में न केवल मैं भाई-बहनों के जीवन पर विचार करने या कलीसिया के हितों की रक्षा करने में विफल रहा, बल्कि मैंने भावनाओं के आधार पर वांग चेन का भी बचाव किया, एक छद्म-विश्वासी के प्रति वफादारी और जमीर दिखाया। मैं जिस थाली में खा रहा था उसी में छेद कर रहा था और एक बाहरी व्यक्ति को मदद की पेशकश कर रहा था, शैतान के अनुचर की भूमिका निभा रहा था। पहले मैं उन विचारों और दृष्टिकोणों के अनुसार जी रहा था जो शैतान ने मुझमें डाले थे और सोच रहा था कि मैं सभ्य और वफादार हूँ। अब मुझे एहसास हुआ कि ये विचार और दृष्टिकोण परमेश्वर के विरोध में हैं। उन्होंने मुझे सत्य का अभ्यास करने से रोका, मेरी अंतरात्मा और विवेक की कीमत पर मेरी मानवता छीन ली। इन विचारों और दृष्टिकोणों के अनुसार जीने से मैं केवल बुराई कर सकता था, परमेश्वर का विरोध कर सकता था और परमेश्वर को मुझे ठुकरा कर निकालने के लिए मजबूर कर सकता था। अगर परमेश्वर ने मुझे बीमार करके समय पर अनुशासित नहीं किया होता तो मैंने आत्म-चिंतन करने के बारे में न सोचा होता। मैं अब और विद्रोह नहीं कर सकता था; मुझे जल्दी से परमेश्वर के पास लौटना था।

मैंने परमेश्वर के वचनों का एक और अंश पढ़ा जिससे मुझे अपने भ्रामक विचारों को कुछ हद तक बदलने में मदद मिली। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है : “कई बार, परमेश्वर लोगों की मदद करने के लिए शैतान की सेवाओं का उपयोग करता है, लेकिन ऐसे मामलों में हमें परमेश्वर का धन्यवाद जरूर करना चाहिए और शैतान को दयालुता का बदला नहीं चुकाना चाहिए—यह सिद्धांत का प्रश्न है। जब प्रलोभन किसी बुरे आदमी की दयालुता के रूप में सामने आता है, तो तुम्हें यह साफ तौर पर पता होना चाहिए कि तुम्हारी मदद और सहायता कौन कर रहा है, तुम्हारे हालात क्या हैं, और क्या तुम कोई और रास्ता चुन सकते हो। तुम्हें ऐसे मामलों से लचीले ढंग से पेश आना चाहिए। अगर परमेश्वर तुम्हें बचाना चाहता है, तो चाहे वह ऐसा करने के लिए किसी की भी सेवाओं का उपयोग करे, तुम्हें पहले परमेश्वर को धन्यवाद देना चाहिए और इसे परमेश्वर से स्वीकारना चाहिए। तुम्हें अपनी कृतज्ञता सिर्फ लोगों के प्रति निर्देशित नहीं करनी चाहिए, कृतज्ञता में किसी को अपना जीवन अर्पित करने की तो बात ही छोड़ो। यह एक गंभीर भूल है। महत्वपूर्ण बात यह है कि तुम्हारा हृदय परमेश्वर का आभारी हो, और तुम इसे परमेश्वर की ओर से स्वीकारो(वचन, खंड 6, सत्य के अनुसरण के बारे में, सत्य का अनुसरण करने का क्या अर्थ है (7))। परमेश्वर के वचनों को पढ़ने के बाद मुझे आखिरकार समझ आया कि मैंने हमेशा वांग चेन की मदद को मानवीय दयालुता के रूप में देखा था। मैंने इसे परमेश्वर से नहीं स्वीकारा था, उसकी संप्रभुता को नहीं पहचाना था या परमेश्वर के प्रेम का बदला चुकाने के बारे में नहीं सोचा था। मैं वाकई बहुत उलझन में था! कलीसिया में अराजकता के दौरान वांग चेन ने मुझे शांत करने में मदद की और बाद में मेरे लिए एक उपयुक्त कर्तव्य की व्यवस्था की। यह उसका कर्तव्य और जिम्मेदारी थी जिसे उसे निभाना ही चाहिए था; यह दयालुता नहीं थी। इसके अलावा यह सब परमेश्वर द्वारा आयोजित और व्यवस्थित किया गया था। मुझे इसे परमेश्वर से स्वीकारना चाहिए था, उसका धन्यवाद करना चाहिए था और परमेश्वर के प्रेम का बदला चुकाना चाहिए था, लेकिन मैंने परमेश्वर के प्रेम और सुरक्षा को मानवीय दयालुता माना। मैं इतना अंधा था। इसका एहसास होने पर मुझे गहरा पश्चात्ताप हुआ, मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की और मैं पश्चात्ताप कर परमेश्वर को संतुष्ट करने के लिए सत्य का अभ्यास करने के लिए तैयार हो गया।

बाद में मुझे परमेश्वर के वचनों में अभ्यास के सिद्धांत मिले और समझ आया कि वास्तव में मानवता रखने वाले व्यक्ति का क्या अर्थ है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है : “अच्छी मानवता होने का कोई मानक अवश्य होना चाहिए। इसमें संयम का मार्ग अपनाना, सिद्धांतों से चिपके न रहना, किसी को भी नाराज नकरने का प्रयत्न करना, जहाँ भी जाओ वहीं चापलूसी करके कृपापात्र बनना, जिससे भी मिलो उससे चिकनी-चुपड़ी बातें करना और सभी से अपने बारे में अच्छी बातें करवाना शामिल नहीं है। यह मानक नहीं है। तो मानक क्या है? यह परमेश्वर और सत्य के प्रति समर्पित होने में सक्षम होना है। यह अपने कर्तव्य को और सभी तरह के लोगों, घटनाओं और चीजों को सिद्धांतों के साथ और जिम्मेदारी की भावना से लेना है। सब इसे स्पष्ट ढंग से देख सकते हैं; इसे लेकर सभी अपने हृदय में स्पष्ट हैं। इतना ही नहीं, परमेश्वर लोगों के हृदयों की जाँच-पड़ताल करता है और उनमें से हर एक की स्थिति जानता है; चाहे वे जो भी हों, परमेश्वर को कोई मूर्ख नहीं बना सकता। कुछ लोग हमेशा डींग हाँकते हैं कि वे अच्छी मानवता से युक्त हैं, कि वे कभी दूसरों के बारे में बुरा नहीं बोलते, कभी किसी और के हितों को नुकसान नहीं पहुँचाते, और वे यह दावा करते हैं कि उन्होंने कभी अन्य लोगों की संपत्ति की लालसा नहीं की। जब हितों को लेकर विवाद होता है, तब वे दूसरों का फायदा उठाने के बजाय नुकसान तक उठाना पसंद करते हैं, और बाकी सभी सोचते हैं कि वे अच्छे लोग हैं। परंतु, परमेश्वर के घर में अपने कर्तव्य निभाते समय, वे कुटिल और चालाक होते हैं, हमेशा स्वयं अपने हित में षड़यंत्र करते हैं। वे कभी भी परमेश्वर के घर के हितों के बारे में नहीं सोचते, वे कभी उन चीजों को अत्यावश्यक नहीं मानते हैं जिन्हें परमेश्वर अत्यावश्यक मानता है या उस तरह नहीं सोचते हैं जिस तरह परमेश्वर सोचता है, और वे कभी अपने हितों को एक तरफ़ नहीं रख सकते ताकि अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर सकें। वे कभी अपने हितों का परित्याग नहीं करते। यहाँ तक कि जब वे दुष्ट लोगों को बुरे कर्म करते हुए देखते हैं, वे उन्हें उजागर नहीं करते; उनके रत्ती भर भी कोई सिद्धांत नहीं हैं। यह किस प्रकार की मानवता है? यह अच्छी मानवता नहीं है। ऐसे व्यक्तियों की बातों पर बिल्कुल ध्यान न दो; तुम्हें देखना चाहिए कि वे किसके अनुसार जीते हैं, क्या प्रकट करते हैं, और अपने कर्तव्य निभाते समय उनका रवैया कैसा होता है, साथ ही उनकी अंदरूनी दशा कैसी है और उन्हें किससे प्रेम है। अगर अपनी शोहरत और फायदे के प्रति उनका प्रेम परमेश्वर के प्रति उनकी निष्ठा से बढ़कर है, अगर अपनी शोहरत और फायदे के प्रति उनका प्रेम परमेश्वर के घर के हितों से बढ़कर है, या अगर अपनी शोहरत और फायदे के प्रति उनका प्रेम उस विचारशीलता से बढ़कर है जो वे परमेश्वर के प्रति दर्शाते हैं, तो क्या ऐसे लोगों में मानवता है? वे मानवता वाले लोग नहीं हैं। उनका व्यवहार दूसरों के द्वारा और परमेश्वर द्वारा देखा जा सकता है। ऐसे लोगों के लिए सत्य को हासिल करना बहुत कठिन होता है(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, अपना हृदय परमेश्वर को देकर सत्य प्राप्त किया जा सकता है)। पहले मैं हमेशा सोचता था कि जो लोग दयालुता का बदला चुकाते हैं और वफादारी को महत्व देते हैं, वे अच्छे इंसान होते हैं। परमेश्वर के वचनों को पढ़ने के बाद ही मुझे एहसास हुआ कि चीजों के बारे में मेरा नजरिया काफी बेतुका था। वास्तव में मानवता रखने वाला व्यक्ति वह होता है जो परमेश्वर के विचारों और चिंताओं में हिस्सा लेता है, जिसका दिल ईमानदार है, वही ईमानदार व्यक्ति है, वह सकारात्मक चीजों से प्यार करता है, न्याय की भावना रखता है, सत्य सिद्धांतों को बनाए रख सकता है और समझ सकता है कि किससे प्यार करना है और किससे नफरत करनी है। जहाँ तक मेरी बात है, दूसरों की नजरों में वफादार व्यक्ति दिखने की अच्छी छवि बनाने की कोशिश में मैंने कलीसिया के हितों को नुकसान पहुँचाने में संकोच नहीं किया। मैंने वांग चेन को कलीसियाई जीवन में व्यवधान डालने और भाई-बहनों के कर्तव्य निर्वहन में बाधा डालते देखना पसंद किया बजाय इसके कि उसे हटा दिया जाए। मुझे मानवता रखने वाला व्यक्ति कैसे कहा जा सकता है? मैं बस बिना मानवता वाला इंसान था, एक स्वार्थी और नीच व्यक्ति। इसका एहसास होने पर फिर मुझे नहीं लगा कि मैं मानवता रखने वाला इंसान हूँ। फिर मुझे परमेश्वर के वचनों का एक और अंश मिला और मैंने अभ्यास करने के लिए कुछ मार्ग पाए। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है : “परमेश्वर के वचन किस सिद्धांत द्वारा लोगों से दूसरों के साथ व्यवहार किए जाने की अपेक्षा करते हैं? परमेश्वर जिससे प्रेम करता है उससे प्रेम करो, और जिससे वह घृणा करता है उससे घृणा करो : यही वह सिद्धांत है, जिसका पालन किया जाना चाहिए। परमेश्वर सत्य का अनुसरण करने और उसकी इच्छा का पालन कर सकने वालों से प्रेम करता है; हमें भी ऐसे लोगों से प्रेम करना चाहिए। जो लोग परमेश्वर की इच्छा का पालन नहीं कर सकते, जो परमेश्वर से नफरत और विद्रोह करते हैं—परमेश्वर ऐसे लोगों का तिरस्कार करता है, और हमें भी उनका तिरस्कार करना चाहिए। परमेश्वर इंसान से यही अपेक्षा करता है(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, अपने पथभ्रष्‍ट विचारों को पहचानकर ही खुद को सचमुच बदला जा सकता है)। परमेश्वर के वचनों को पढ़कर मुझे उसके इरादे के बारे में कुछ समझ मिली। परमेश्वर चाहता है कि लोग उससे प्यार करें जिससे वह प्रेम करता है और उससे नफरत करें जिससे वह नफरत करता है, जब कुछ घटित हो तो लोग उसका पक्ष लें और सत्य सिद्धांतों को बनाए रखें। ईमानदारी से परमेश्वर में विश्वास रखने और सत्य का अनुसरण करने वाले भाई-बहनों के साथ अपने कर्तव्यों में समस्याएँ आने पर संगति करनी चाहिए और प्रेम से उनका समर्थन करना चाहिए और जरूरत पड़ने पर काट-छाँट करनी चाहिए। जहाँ तक बुरे लोगों, छद्म-विश्वासियों और मसीह विरोधियों की बात है, हमें उन्हें उजागर करने और रिपोर्ट करने, उनसे दूर रहने और उन्हें अस्वीकारने का अभ्यास करना चाहिए। केवल ऐसे अभ्यास ही परमेश्वर के इरादे के अनुरूप होते हैं। अब जबकि वांग चेन को एक छद्म-विश्वासी और शैतान के गिरोह के व्यक्ति के रूप में बेनकाब किया गया था, उसे कलीसिया में रखने से केवल कलीसिया के काम में बाधा ही आती। मैं अब भावनाओं के आधार पर कार्य नहीं कर सकता था; मुझे उसके छद्म-विश्वासी व्यवहार को लिखित रूप में दर्ज करना था और उसे जल्द से जल्द कलीसिया से बाहर निकालना था। इसके बाद मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की : “हे परमेश्वर, तुमने मुझ पर इतनी दयालुता दिखाई है और मुझे अगुआ बनने का अवसर दिया है, फिर भी मैंने कलीसिया के हितों की जरा भी रक्षा नहीं की है। मैं तुम्हारे सामने पश्चात्ताप करने, सत्य का अभ्यास करने और कलीसिया के काम की रक्षा करने के लिए तैयार हूँ।” प्रार्थना करने के बाद मैंने वांग चेन के व्यवहारों को लिखित रूप में दर्ज किया। जांच करने पर उच्च-स्तरीय अगुआओं ने पाया कि वांग चेन वाकई एक छद्म-विश्वासी है और उसे कलीसिया से बाहर निकाल दिया। यह परिणाम देखकर मेरा दिल शांत और खुश था क्योंकि मैं आखिरकार सत्य का अभ्यास और परमेश्वर के इरादे पर विचार कर पाया था।

बाद में जब उच्च-स्तरीय अगुआओं ने हमारे खराब कार्य परिणामों के कारणों का विश्लेषण किया तो मुझे फिर से उस समय की याद आई जब मैंने कलीसिया के काम की रक्षा नहीं की थी। एक कलीसिया अगुआ के रूप में भावनाओं के आधार पर कार्य करना और एक छद्म-विश्वासी को कलीसिया में रहने देना, कलीसियाई जीवन में गड़बड़ी पैदा करना, परमेश्वर के सामने अपराध और कलंक है। एक कलीसिया अगुआ के रूप में मैं अपना कर्तव्य और जिम्मेदारी निभाने में भी विफल रहा था। यह सोचकर मुझे अपराध बोध हुआ और मैंने खुद को दोषी ठहराया और सोचा कि मैं एक कलीसिया अगुआ होने के योग्य नहीं था और इसलिए मैंने उच्च-स्तरीय अगुआओं से कहा कि मैं इस्तीफा देने जा रहा हूँ। यह सुनने के बाद उच्च-स्तरीय अगुआ ने मुझसे संगति करते हुए कहा, “परमेश्वर लोगों का न्याय करता है और उन्हें उजागर करता है ताकि उनके भीतर के शैतानी स्वभाव को शुद्ध किया जा सके जो परमेश्वर का विरोध करता है, ताकि उन्हें सच्चा पश्चात्ताप करने दिया जा सके। यह परमेश्वर का ईमानदार इरादा है; उसे गलत मत समझो।” मैंने परमेश्वर के प्रति वाकई कृतज्ञता महसूस की। जब मैं अड़ियल और विद्रोही था तो परमेश्वर ने मुझे बीमारी के माध्यम से अनुशासित किया था ताकि मैं आत्म-चिंतन कर सकूँ और अब जब मैंने पश्चात्ताप करने की कुछ इच्छा दिखाई तो परमेश्वर ने मुझ पर दया की, मुझे अपना कर्तव्य जारी रखने का मौका दिया। मैं इससे बहुत प्रभावित हुआ।

इस अनुभव के माध्यम से मैंने देखा है कि चीजों पर मेरे बहुत से विचार सत्य के अनुरूप नहीं हैं और मुझे परमेश्वर के न्याय और शुद्धिकरण की सख्त जरूरत है। अपने भविष्य के अनुभवों के दौरान मैं सत्य का अधिक अभ्यास करना चाहता हूँ, एक ऐसा व्यक्ति बनने का प्रयास करना चाहता हूँ जो परमेश्वर के प्रति समर्पित हो और अपना कर्तव्य अच्छी तरह से निभाए।

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