67. एक के बाद एक अग्नि परीक्षा
अप्रैल 2009 की एक सुबह करीब 9 बजे मैं और बहन डिंग निंग एक सभा के बाद सड़क पर आए ही थे कि आठ लोगों ने तेजी से आकर हमें घेर लिया। बिना एक भी शब्द बोले उन्होंने तुरंत हमारे हाथ पीछे कर दिए और हमारे बैग और कलीसिया के पैसे के 40,000 से ज्यादा युआन जब्त कर लिए। मैं पूरी तरह से चौंक गई थी और इससे पहले कि मैं कोई प्रतिक्रिया देती, मुझे पहले ही उनके वाहन में बिठाया जा चुका था। कुछ ही देर में मैंने एक महिला को यह कहते हुए सुना, “संदिग्ध हमारी हिरासत में हैं।” केवल तब जाकर मुझे एहसास हुआ कि हमें पुलिस ने पकड़ा है। मैं इस बात पर आग बबूला थी कि इन्होंने हमारी कलीसिया की इतनी बड़ी रकम चुरा ली है और सोचने लगी, “इन अफसरों ने बस मनमाने ढंग से हमें गिरफ्तार कर लिया और दिनदहाड़े हमारा पैसा ले लिया—कानून का शासन कहाँ है?” मैं थोड़ा डरी हुई थी और मेरा दिल तेजी से धड़क रहा था, इसलिए मैं परमेश्वर से निरंतर प्रार्थना करती रही। मैंने परमेश्वर से कहा कि मेरे दिल की रक्षा करो ताकि चाहे अधिकारी मुझे जैसे भी प्रताड़ित करें और पूछताछ करें, मैं यहूदा की तरह परमेश्वर से विश्वासघात न करूँ और उसके लिए अपनी गवाही में अडिग रह सकूँ। प्रार्थना के बाद मुझे अपने भीतर शांति का बोध हुआ।
अफसर हमें एक सुनसान जगह ले गए और पूछताछ के लिए हमें अलग-थलग कर दिया। पूछताछ कक्ष में एक उदास और मनहूस माहौल बना हुआ था और अंदर मौजूद अफसर क्रूर और भयावह लग रहे थे। अधिकारियों में से एक ने पूछताछ शुरू करते हुए पूछा, “क्या तुम कलीसिया की अगुआ हो? डिंग निंग से तुम्हारा क्या रिश्ता है? तुम दोनों की मुलाकात कैसे हुई? क्या वह तुम्हारी उच्च अगुआ है?” मैंने जवाब में कहा, “मैं कोई अगुआ नहीं हूँ और मुझे नहीं पता कि यह ‘डिंग निंग’ कौन है, जिसके बारे में आप बात कर रहे हैं।” इससे आग बबूला होकर उसने मेरे गालों पर थप्पड़ मारे और दो बार लातें मारकर चीखा, “तो लगता है मुझे यह सख्ती करनी ही पड़ेगी, तभी तुम कबूलोगी।” यह कहकर वह मेरे चेहरे पर बार-बार मारने लगा। मुझे याद नहीं कि उसने मुझे कितनी बार मारा—मेरे होठों से खून बह रहा था, मेरा चेहरा सूजकर टेढ़ा हो गया था और मैं मारे दर्द के तड़प रही थी। लेकिन उसने तब भी नहीं छोड़ा और मेरे सिर पर घूँसे बरसाता रहा, जिससे मेरे माथे पर दर्दनाक गूमड़े उभर आए। मैंने मन ही मन सोचा, “ये कितनी बेरहमी से पीट रहे हैं। अगर इस बेरहम पिटाई से मुझे दिमागी चोट लग गई तो मैं क्या करूँगी? अगर इन्होंने मुझे इस कदर पीटा कि मुझे गंभीर दिमागी क्षति हो गई तो क्या होगा? तब मैं परमेश्वर में विश्वास कैसे कायम रखूँगी?” जितना मैंने इसके बारे में सोचा, उतना ही मैं भयभीत हो गई। मैंने चुपचाप परमेश्वर से प्रार्थना की, उससे मेरे दिल की रक्षा करने के लिए कहा। प्रार्थना के बाद मुझे परमेश्वर के वचनों का यह अंश याद आया : “संपूर्ण मानवजाति में कौन है जिसकी सर्वशक्तिमान की नज़रों में देखभाल नहीं की जाती? कौन सर्वशक्तिमान द्वारा तय प्रारब्ध के बीच नहीं रहता? क्या मनुष्य का जीवन और मृत्यु उसका अपना चुनाव है? क्या मनुष्य अपने भाग्य को खुद नियंत्रित करता है?” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 11)। परमेश्वर सृष्टिकर्ता है और वह सभी चीजों पर शासन करता है। मेरा जीवन उसके हाथों में था और शैतान का इस पर कोई वश नहीं था कि क्या मैं अपंग हो जाऊँगी या दिमागी क्षति की हद तक पिटूँगी। मैं अपना जीवन परमेश्वर के हाथों में सौंपने को तैयार थी। यह एहसास होने पर मुझे थोड़ी शांति महसूस हुई और मैंने सोचा, “ये दानव यह सोचना तो छोड़ ही दें कि वे मुझसे थोड़ी सी भी जानकारी हासिल कर पाएँगे। मैं कभी भी उनके आगे नहीं झुकूँगी!”
उसके बाद अधिकारी मुझे एक होटल में ले गए और मुझसे पूछताछ करना जारी रखा। एक महिला अधिकारी ने मुझसे तीखी आवाज में पूछा, “तुम्हारा नाम क्या है? तुम कितने मेजबान परिवारों के साथ रही हो? तुम किसे जानती हो? तुम्हारी कलीसिया अपना पैसा कहाँ रखती है?” जब मैंने जवाब नहीं दिया तो वह भड़ककर मेरे सामने आ गई, मेरे गालों पर दो-दो बार थप्पड़ मारे और मुझे जूते उतारने को मजबूर किया फिर अपने चमड़े के जूतों से मेरे दोनों पंजे कुचल डाले। भयंकर दर्द तुरंत मेरे पूरे शरीर में फैल गया और मैं दर्द से चिल्लाए बिना नहीं रह पाई। उसने मेरे लहूलुहान पैर रौंदते हुए कहा, “अगर तुमसे दर्द बरदाश्त नहीं होता, तो हमें वह बता दो जो हम सुनना चाहते हैं!” दर्द वाकई असहनीय था और तब मैंने परमेश्वर को पुकारा, “हे परमेश्वर! अगर उन्हें वह नहीं मिला जो वे चाहते हैं, तो वे मुझे नहीं छोड़ेंगे। मुझे चिंता है कि मैं उनकी यातनाएँ नहीं झेल पाऊँगी। कृपया मेरा मार्गदर्शन करो।” प्रार्थना के बाद मुझे अचानक याद आया कि परमेश्वर मेरी ढाल है और जब परमेश्वर ही रास्ता दिखा रहा है, तो डरने की क्या बात है? चाहे पुलिस मुझे कितनी भी यातना दे, मैं परमेश्वर से विश्वासघात नहीं करूँगी या कलीसिया को धोखा नहीं दूँगी। यह देखकर कि मैं अब भी नहीं बोलने वाली, दूसरे अधिकारी ने मेरे हाथ पीठ पीछे करके उनमें हथकड़ी लगा दी और पूछताछ करते हुए मेरे हाथों को जबरन ऊपर की ओर खींच लिया। मुझे तुरंत अपने हाथ में दर्द महसूस हुआ जैसे वह उखड़ गया हो और कुछ ही देर में मेरे हाथों के पिछले हिस्से में गंभीर रूप से सूजन आने लगी। एक और अधिकारी ने मुझे धमकाया, “अगर तुमने बात करना शुरू नहीं किया तो हम तुम्हें नंगा कर देंगे, तुम्हारी गर्दन पर एक तख्ती लटका देंगे और फिर तुम्हें पुलिस की गाड़ी के ऊपर बैठाकर पूरे शहर में घुमाएँगे। फिर देखते हैं, तुम्हारी कोई इज्जत बचती है या नहीं!” यह सुनकर मैं बहुत परेशान हो गई और सोचने लगी, “ये शैतान वाकई बुरे हैं और लगता है ये किसी भी हद तक जा सकते हैं। अगर उन्होंने मुझे सचमुच नंगा करके पूरे शहर में घुमाया, तो मैं लोगों के सामने अपना चेहरा कैसे दिखा पाऊँगी और उसके बाद कैसे जी पाऊँगी?” ठीक जब मैं सबसे कमजोर और व्यथित महसूस कर रही थी, मुझे परमेश्वर के वचनों का भजन याद आया “परमेश्वर मनुष्य के उद्धार के लिए भयंकर कष्ट सहता है।” यह कहता है कि : “इस बार परमेश्वर ने उस कार्य को करने के लिए देहधारण किया है जो उसने अभी तक पूरा नहीं किया है। वह इस युग का न्याय और समापन करेगा, मनुष्य को कष्टों के अंबार से बचाएगा, मानवता को पूरी तरह से जीतेगा और लोगों के जीवन-स्वभाव को बदलेगा। मनुष्य को दुखों और रात की तरह काली अंधेरी दुष्ट ताकतों से मुक्त कराने और इंसान की खातिर कार्य करने के लिए परमेश्वर ने कितनी ही रातें करवटें बदलते हुए बिताई हैं। इस इंसानी नरक में रहने और इंसान के साथ समय बिताने के लिए वह उच्चतम स्थान से निम्नतम स्थान पर अवतरित हुआ है। परमेश्वर ने मनुष्यों में फैली मलिनता को लेकर कभी भी शिकायत नहीं की है, न ही उसने कभी इंसान से बहुत अधिक अपेक्षा की है; बल्कि अपना कार्य करते हुए परमेश्वर ने बेहद अपमान झेला है। परमेश्वर ने मनुष्य जाति के सुख-चैन के लिए धरती पर आकर भयंकर अपमान सहा है और अन्याय झेला है, और इंसान को बचाने के लिए खुद शेर की माँद में प्रवेश किया है” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, कार्य और प्रवेश)। परमेश्वर के वचनों पर विचार करते ही मैं गहराई से द्रवित हो गई। परमेश्वर पवित्र है—शैतान द्वारा गहराई से भ्रष्ट की जा चुकी मानवजाति को बचाने के लिए उसने दो बार देहधारण किया। वह पहली बार मानवजाति को छुटकारा दिलाने आया था और असहनीय पीड़ा देकर उसे सूली पर चढ़ा दिया गया। अंत के दिनों में वह फिर से देहधारण कर चीन में आया है और उसने सीसीपी से उत्पीड़न और धरपकड़ सहने के साथ ही महजबी दुनिया से निंदा, बदनामी और तिरस्कार भी झेला है, ताकि मानवजाति को उसके पाप से पूरी तरह से बचा सके। परमेश्वर ने यह सब चुपचाप सहन किया है और हमें बचाने के लिए सत्य व्यक्त करना और कार्य करना जारी रखा है—हमारे लिए उसका प्रेम सचमुच बहुत महान है। मैं बहुत भाग्यशाली थी कि मुझे अंत के दिनों में परमेश्वर के कार्य को स्वीकार करने और परमेश्वर के वचनों की आपूर्ति का आनंद मिला, इसलिए मैं जान गई कि मुझे परमेश्वर के प्रेम का बदला चुकाना चाहिए। ये एहसास होने के बाद मैं जान गई कि सारा दर्द और अपमान सार्थक और मूल्यवान है—यह धार्मिकता की खातिर उत्पीड़न सहना है। मैंने मन ही मन परमेश्वर से प्रार्थना की, “हे परमेश्वर! अफसर मुझे चाहे जैसे अपमानित करें, मैं तुम्हें संतुष्ट करने के लिए अपनी गवाही में अडिग रहूँगी!” प्रार्थना के बाद मुझे उतना डर नहीं लगा। उसके बाद अफसरों ने मुझे चाहे जैसे भी धमकाया, मैंने एक भी शब्द नहीं कहा और उनके पास चले जाने के सिवाय कोई चारा नहीं था।
कई दिन बाद जब अफसरों ने यह निष्कर्ष निकाल लिया कि वे मुझसे कोई जानकारी नहीं निकाल पाएँगे, तो उन्होंने मुझे हिरासत केंद्र में भेज दिया। वहाँ पहुँचते ही एक महिला अफसर ने मुझे जान-बूझकर अपमानित करने के लिए हुक्म दिया कि मैं सारे कपड़े उतारकर गोल-गोल घूमूँ, साथ ही सिर के पीछे हाथ रखकर उकड़ूँ बैठ जाऊँ और मेंढक की तरह फुदकती रहूँ। बयालीस दिन बाद मुझ पर यह झूठा आरोप लगाया गया कि मैं “कानून के अनुपालन को धता बताने के लिए एक संप्रदाय का इस्तेमाल कर रही हूँ” और मुझे श्रम के जरिए फिर से शिक्षा की डेढ़ साल की सजा सुना दी गई। मैंने सोचा कि परमेश्वर के वचन पढ़े बिना, सभाएँ, संगति किए बिना और अपने कर्तव्य निभाए बिना एक साल से अधिक समय गुजारना अत्यंत कठिन होगा। मैंने मन ही मन परमेश्वर से प्रार्थना की, “हे परमेश्वर! मुझे नहीं पता कि आगे क्या मुसीबत आने वाली है और क्या मैं उसे झेल भी पाऊँगी। कृपया अपने इरादे को समझने में मेरा मार्गदर्शन करो, ताकि मैं इस माहौल में मजबूती से खड़ी रह पाऊँ।” प्रार्थना के बाद मुझे परमेश्वर के वचनों का यह अंश याद आया : “निराश न हो, कमज़ोर न बनो, मैं तुम्हारे लिए चीज़ें स्पष्ट कर दूँगा। राज्य की राह इतनी आसान नहीं है; कुछ भी इतना सरल नहीं है! तुम चाहते हो कि आशीष आसानी से मिल जाएँ, है न? आज हर किसी को कठोर परीक्षणों का सामना करना होगा। बिना इन परीक्षणों के मुझे प्यार करने वाला तुम लोगों का दिल और मजबूत नहीं होगा और तुम्हें मुझसे सच्चा प्यार नहीं होगा। यदि ये परीक्षण केवल मामूली परिस्थितियों से युक्त भी हों, तो भी सभी को इनसे गुज़रना होगा; अंतर केवल इतना है कि परीक्षणों की कठिनाई हर एक व्यक्ति के लिए अलग-अलग होगी। परीक्षण मेरे आशीष हैं, और तुममें से कितने मेरे सामने आकर घुटनों के बल गिड़गिड़ाकर मेरे आशीष माँगते हैं? बेवकूफ़ बच्चे! तुम्हें हमेशा लगता है कि कुछ मांगलिक वचन ही मेरा आशीष होते हैं, किंतु तुम्हें यह नहीं लगता कि कड़वाहट भी मेरे आशीषों में से एक है। जो लोग मेरी कड़वाहट में हिस्सा बँटाते हैं, वे निश्चित रूप से मेरी मिठास में भी हिस्सा बँटाएँगे। यह मेरा वादा है और तुम लोगों को मेरा आशीष है” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 41)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे यह एहसास दिलाया कि यह परिवेश मेरी आस्था को पूर्ण करने और पीड़ा सहने की मेरी इच्छा शक्ति को मजबूत करने में मदद करेगा। पीड़ा से गुजरने के बाद ही मैं परमेश्वर से और अधिक प्रार्थना कर उस पर और अधिक भरोसा रख पाऊँगी और उसके ज्यादा करीब आ जाऊँगी। इस तथ्य के बावजूद कि मैं अगले डेढ़ साल तक परमेश्वर के वचनों को पढ़ने या भाई-बहनों के साथ इकट्ठा होकर संगति करने में सक्षम नहीं हो पाऊँगी, परमेश्वर तब भी मेरे साथ होगा और इसलिए मुझे शैतान को अपमानित करने के लिए परमेश्वर पर भरोसा रखना था और अपनी गवाही में अडिग रहना था। परमेश्वर का इरादा समझ लेने के बाद ऐसा लगा कि मुझमें आस्था की एक नई भावना और शक्ति का संचार हुआ है। श्रम शिविर में अपना समय बिताते हुए मैं अक्सर परमेश्वर से प्रार्थना करती और उसके वचनों पर विचार करती थी। परमेश्वर के वचनों के मार्गदर्शन के कारण ही मैं अपने कारावास का लंबा समय काट पाई।
रिहा होने के बाद मैंने फिर से अपना कर्तव्य निभाना शुरू कर दिया, लेकिन अक्टूबर 2013 में मुझे एक बार फिर से गिरफ्तार कर लिया गया। उस शाम करीब चार बजे मैं सुसमाचार का प्रचार कर लौटते हुए बस से उतर ही रही थी, जब एक साथ आए तीन लोगों ने मुझे पकड़कर हिलने नहीं दिया। उनमें से एक ने कहा, “अभी कुछ साल ही हुए हैं, क्या तुम मुझे पहचानती हो? तुम हमारे साथ थोड़ा सैर के लिए क्यों नहीं चलतीं?” मैं तुरंत घबरा गई, सोचने लगी कि, “अब मैं फँस गई हूँ। अब जब पुलिस ने मुझे पकड़ ही लिया है तो वह मुझे आसानी से नहीं छोड़ने वाली है।” उन्होंने मुझे जबरदस्ती अपनी गाड़ी में बिठा लिया और मेरे हाथ नीचे दबाकर मेरे दोनों तरफ बैठ गए ताकि मैं हिल न सकूँ। उसके बाद मुझे एक मत-परिवर्तन केंद्र में भेज दिया गया और हर समय दो “रक्षक” मेरे साथ रहते थे। उस जगह पर, सुबह 7:30 बजे से शाम 7:00 बजे तक मुझे परमेश्वर से विश्वासघात के लिए मजबूर करने को, मुझे परमेश्वर की निंदा करने और कलीसिया को बदनाम करने वाले वीडियो देखने के लिए मजबूर किया जाता था, साथ ही ऐसे वीडियो दिखाए जाते थे जो सीसीपी का गुणगान करते थे। रक्षक मुझ पर 24 घंटे नजर रखते थे और मुझे प्रार्थना करने या बाथरूम जाते समय दरवाजा बंद करने की भी अनुमति नहीं होती थी। मत-परिवर्तन और लगातार निगरानी के लंबे घंटों से मुझे दमित महसूस होने लगा—मैं हर दिन चिंतित और बेचैन महसूस करती थी, और डरती थी कि अगर मैं सावधान न रही, तो शैतान की साजिश में फँस जाऊँगी। मैं बस लगातार परमेश्वर से प्रार्थना करती रहती और उससे मेरे दिल की रक्षा करने की विनती करती थी।
एक दिन मत-परिवर्तन निरीक्षक चेन मेरे लिए “वचन देह में प्रकट होता है” की एक प्रति लाकर बोला, “यह तुम्हारी कलीसिया की पुस्तक है—क्या तुम्हें अभी भी लगता है कि यह परमेश्वर का वचन है? यह स्पष्ट रूप से एक मामूली व्यक्ति द्वारा लिखा गया है।” मैंने परमेश्वर के वचनों की पुस्तक ली और सोचा, “परमेश्वर का प्रत्येक वचन सत्य है; तुम दानव लोग परमेश्वर पर विश्वास नहीं करते, तो तुम उसके वचनों को कैसे समझ सकते हो?” मैंने पुस्तक खोली और निम्नलिखित अंश देखा : “कार्य के इस चरण में हमसे परम आस्था और प्रेम की अपेक्षा की जाती है। थोड़ी-सी लापरवाही से हम लड़खड़ा सकते हैं, क्योंकि कार्य का यह चरण पिछले सभी चरणों से अलग है : परमेश्वर लोगों की आस्था को पूर्ण कर रहा है—जो कि अदृश्य और अमूर्त दोनों है। परमेश्वर वचनों को आस्था में, प्रेम में और जीवन में परिवर्तित करता है” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, मार्ग ... (8))। इन वचनों को पढ़कर मुझे परमेश्वर का प्रोत्साहन और सांत्वना महसूस हुई। अंत के दिनों में परमेश्वर का कार्य वचनों का कार्य है। वह लोगों को अपने वचनों का अनुभव करने देने के लिए सभी प्रकार की परिस्थितियों की व्यवस्था करता है, उन वचनों को लोगों का हिस्सा बनने देता है, उनका जीवन बनने देता है। इस तरह परमेश्वर मानवजाति को बचाता है और उसे पूर्ण करता है। मैंने सोचा कि कैसे परमेश्वर के वचनों ने मुझे अपनी पहली गिरफ्तारी के समय यातना और पीड़ा के दौरान शैतान के दुर्व्यवहार पर काबू पाने के लिए आस्था और शक्ति दी थी। अब इस मौजूदा गिरफ्तारी के दौरान, जब मैं लगातार निगरानी, पाखंड और भ्रांतियों से मत-परिवर्तन किए जाने के कारण पीड़ित, व्यथित और दमित महसूस कर रही थी, तो परमेश्वर ने अधिकारी से अपने वचनों की एक प्रति दिखाने की व्यवस्था कराई, जिसने मुझे आस्था और शक्ति से भर दिया। इस नारकीय जेल के अंदर अपने सिर पर खतरनाक परीक्षाएँ आने के बावजूद मैंने सचमुच अकेला महसूस नहीं किया, मुझे पता था कि परमेश्वर हमेशा मेरी रक्षा कर रहा है और मेरा मार्गदर्शन करने के लिए अपने वचनों का उपयोग कर रहा है। उसके बाद चाहे अफसरों ने शैतान के पाखंड और भ्रांतियों से मेरा मत-परिवर्तन करने की कितनी भी कोशिश की हो, मैं सचेत रूप से परमेश्वर के सामने अपने विचारों को शांत करती और उससे प्रार्थना करती और उन पर भरोसा करती थी ताकि मैं शैतान की साजिशों में न फँसूं। एक अधिकारी ने मुझे एक बहन की तस्वीर दिखाई और पूछा कि क्या मैं उसे पहचानती हूँ। जब मैंने जवाब नहीं दिया तो उसने यह कहकर मुझे डराने और अपने जाल में फँसाने की कोशिश की, “बाकी लोगों ने पहले ही तुम्हें धोखा दे दिया है। उन्होंने हमें बताया कि तुम अगुआ हो, लेकिन तुम अभी भी उन्हें बचाने की कोशिश कर रही हो। वे सभी पहले ही कबूल कर चुके हैं और उन्हें घर भेज दिया गया। तुम न बोलकर बेवकूफी कर रही हो और तुम काफी लंबे समय तक कैद की सजा काटोगी! जितना जल्दी तुम बोलना शुरू कर दोगी, उतनी ही जल्दी हम तुम्हें घर भेज सकते हैं।” जब मैंने यह सुना तो मैं चौंक गई और सोचा, “किसी ने मुझे धोखा दे दिया? तब तो अधिकारियों को मेरे बारे में सब पता होगा! अगर मैं बताना शुरू नहीं करती, तो मुझे बहुत लंबी सजा हो सकती है। शायद मैं उन्हें बस कुछ मामूली जानकारी दे सकती हूँ, ताकि अगर मुझे वास्तव में जेल जाना पड़ा, तो कम से कम मुझे कम सजा मिले और इतना कष्ट न सहना पड़े।” लेकिन फिर मैंने सोचा, “अगर मैं उन्हें विवरण दे देती हूँ, तो क्या मैं परमेश्वर से विश्वासघात कर अपने भाई-बहनों को धोखा नहीं दे रही होऊँगी? ऐसे नहीं चलेगा, मैं उन्हें कुछ नहीं बता सकती!” तभी मुझे परमेश्वर के ये वचन याद आए : “भविष्य में मैं हर व्यक्ति को उसके कार्यों के अनुसार प्रतिफल दूँगा। जो कहने की बात है, वह मैंने कह दी है, क्योंकि ठीक यही वह कार्य है, जो मैं करता हूँ” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, बुरे लोगों को निश्चित ही दंड दिया जाएगा)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे यह समझने में मदद की कि वह लोगों के क्रिया-कलापों के अनुसार उनसे कैसा व्यवहार करता है। अगर मैं अपने भाई-बहनों को धोखा देती हूँ, तो मैं एक शर्मनाक यहूदा की तरह पेश आ रही होऊँगी और परमेश्वर मुझे शाप और दंड देगा। अगर दूसरों ने मुझे धोखा दिया है तो यह उनका कुकर्म है, मगर मैं परमेश्वर से विश्वासघात नहीं कर सकती हूँ या दूसरे भाई-बहनों को धोखा नहीं दे सकती हूँ। मुझे याद आया कि कैसे एक बहन को गिरफ्तार कर क्रूर यातनाएँ और 9 साल की कैद की सजा दी गई थी, पर उसने कभी शैतान के आगे घुटने नहीं टेके और रिहा होने के बाद भी अपना कर्तव्य निभाना जारी रखा। कुछ कष्ट सहने के बावजूद वह अपनी गवाही में अडिग रही और उसे परमेश्वर ने स्वीकृति दी। पतरस भी था, जिसे अनुग्रह के युग में गिरफ्तार करने के बाद सूली पर उलटा लटका दिया गया था और उसने परमेश्वर के प्रति अपने प्रेम की गवाही दी थी। ये कहानियाँ याद आने से मेरा हौसला खूब बढ़ गया और मेरा दिल आस्था और शक्ति से भर गया। मैंने एक मौन संकल्प लिया : चाहे मुझे जितने लंबे समय तक जेल में रहना पड़े, मैं कभी भी परमेश्वर से विश्वासघात नहीं करूँगी या अपने भाई-बहनों को धोखा नहीं दूँगी!
उसके बाद उन्होंने मुझसे पूछताछ जारी रखी, पूछा, “तुम किसके संपर्क में हो? तुम्हारा उच्च अगुआ कौन है? वह कहाँ रहता है?” जब मैंने जवाब नहीं दिया, तो उन्होंने मुझे दीवार की ओर मुँह करके खड़ा कर दिया और दो घंटे की पारी बना दी, हर पारी में दो अधिकारी नियुक्त किए गए, ताकि यह तय किया जा सके कि मैं 24 घंटे के दौरान सो न जाऊँ। अगर वे मुझे झपकी लेते हुए देखते, तो वे चिल्लाने लगते, “अपनी आँखें बंद करने या अपने परमेश्वर से प्रार्थना करने की हिम्मत न करना!” पूरे दिन खड़े रहने के बाद मेरे पैर इतने सूज गए कि वे फूलकर चमकदार हो गए और अब जूतों में पैर न आने के कारण मुझे नंगे पैर चलना पड़ा। मेरी पीठ भी इतनी दुख रही थी कि मुझे लगा कि वहाँ कुछ टूट गया है। उन्होंने पूरे सात दिन और सात रात मुझे इसी तरह यातनाएँ दीं। मैं शरीर और दिमाग दोनों से पूरी तरह पस्त हो चुकी थी और मेरा शरीर गिरने के कगार पर पहुँच रहा था, इसलिए मैंने चुपचाप परमेश्वर से प्रार्थना की कि वह इन दानवों की बर्बरता से उबरने के लिए मुझे आस्था और शक्ति दे। प्रार्थना के बाद मुझे परमेश्वर के ये वचन याद आए : “इन अंत के दिनों में तुम लोगों को परमेश्वर की गवाही देनी चाहिए। चाहे तुम्हारे कष्ट कितने भी बड़े क्यों न हों, तुम्हें बिल्कुल अंत तक चलना चाहिए, यहाँ तक कि अपनी अंतिम साँस पर भी तुम्हें परमेश्वर के प्रति निष्ठावान और उसके आयोजनों के प्रति समर्पित होना चाहिए; केवल यही वास्तव में परमेश्वर से प्रेम करना है, और केवल यही सशक्त और जोरदार गवाही है” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पीड़ादायक परीक्षणों के अनुभव से ही तुम परमेश्वर की मनोहरता को जान सकते हो)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे आस्था से भर दिया। पुलिस चाहे जैसे मुझे यातनाएँ दे ले, वह मेरे दिल को अपने वश में नहीं कर सकती है। जब तक मैं जीवित हूँ और साँस ले रही हूँ, तब तक मैं शैतान को अपमानित करने के लिए अपनी गवाही में अडिग रहूँगी। बाद में एक अफसर परमेश्वर की निंदा करने वाला एक बयान लेकर आया और बोला कि मैं उस पर अपने हस्ताक्षर करूँ। जब मैंने हस्ताक्षर नहीं किए, तो उसने मेरे चेहरे पर कई बार थप्पड़ मारे और क्रूरता से बोला, “तुम कुंदे पर रखे मांस का टुकड़ा भर हो और हम जैसे चाहें वैसे तुम्हारी बोटी-बोटी काट सकते हैं। जिस दिन भी तुम अपने हस्ताक्षर नहीं करोगी और हमें वह नहीं बताओगी जो हम जानना चाहते हैं, वह तुम्हें मजा चखाने का एक और दिन होगा। तुम्हें ‘मजे’ कराने के लिए हमारे पास यहाँ यातनाएँ देने के अट्ठारह अलग-अलग तरीके हैं। हम तुम्हें जान से मार सकते हैं और किसी को कभी पता नहीं चलेगा!” यह कहने के बाद उन्होंने मुझे लात-घूँसों से पीटना शुरू कर दिया। उन्होंने मुझे 10 मिनट से ज्यादा पीटा—मैं बेहोश हो गई, मेरा चेहरा सूज गया, मेरा सिर फड़क रहा था, कान जोर-जोर से बज रहे थे और मुँह से खून बह रहा था। मेरा चेहरा इतना दर्द कर रहा था कि मानो किसी ने ताजा जले हुए घाव पर नमक छिड़क दिया हो। मुझे चिंता थी कि अगर वे मुझे इसी तरह पीटते रहे, तो मैं निश्चित रूप से मर जाऊँगी। ठीक तभी, मुझे परमेश्वर के वचनों का एक अंश याद आया : “जब लोग अपने जीवन का त्याग करने के लिए तैयार होते हैं, तो हर चीज तुच्छ हो जाती है, और कोई उन्हें हरा नहीं सकता। जीवन से अधिक महत्वपूर्ण क्या हो सकता है?” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, “संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचनों” के रहस्यों की व्याख्या, अध्याय 36)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे आस्था और शक्ति दी। मेरा जीवन-मरण परमेश्वर के हाथ में था और उसकी अनुमति के बिना शैतान मेरा जीवन नहीं छीन सकता था। अगर मुझे यातनाएँ देकर मौत के घाट भी उतार दिया जाता, तो यह परमेश्वर की अनुमति से होता। मैं इस बात के लिए तैयार थी कि परमेश्वर के आयोजनों और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण करूँ और उसे संतुष्ट करने के लिए अपनी गवाही में अडिग रहूँ, भले ही इसका मतलब मेरी मृत्यु ही क्यों न हो।
इसके बाद वे मुझे लगातार डराते-धमकाते रहे और परमेश्वर के प्रति निंदात्मक बयान पर हस्ताक्षर करने को मजबूर करते रहे। जब मैंने हस्ताक्षर नहीं किए तो उन्होंने मुझे उकड़ूँ होकर बैठने को मजबूर किया और वे पैरों और पीठ पर धातु की छड़ से पीटते रहे। एक बार एक अफसर ने मेरी पीठ पर इतनी जोर से मारा कि मुझे लगा कि जैसे कुछ टूट गया है और मैं अनायास चीख पड़ी। फिर उसने सिगरेट जलाई और मेरी आँखों में धुआँ उड़ाया और मुझे अपनी आँखें खुली रखने के लिए मजबूर किया। मेरी आँखों में दर्दनाक जलन हो रही थी और मेरी आँखों और नाक से आँसू और बलगम बह रहे थे। धुएँ की वजह से मेरी खाँसी नहीं रुक रही थी और मैंने अपना सिर हटाने की कोशिश की, लेकिन अधिकारी ने मेरे सिर को वहीं टिकाए रखने के लिए मेरे बाल पकड़ लिए और लगातार धुआँ उड़ाता रहा। वह पागलों की तरह हँसते हुए बोला, “कैसा लगा? अगर तुम्हें यह बरदाश्त नहीं होता, तो बस कागज पर हस्ताक्षर कर दो और जो जानती हो, वह बता दो। अगर तुम नहीं बोलोगी, तो इसके लिए तैयार रहो। कल मैं सिगरेट की एक और डिब्बी खरीदूँगा और तुम पर फिर से धुआँ उड़ाऊँगा।” जब तक वह सिगरेट जलकर पूरी हुई, तब तक मेरे कपड़े पसीने से पूरी तरह भीग चुके थे। अधिकारी ने मुझे फिर से उकड़ूँ बैठने के लिए मजबूर किया, लेकिन मैं पूरी तरह से थक चुकी थी, मेरा पूरा शरीर काँप रहा था और मैं इतनी कमजोर थी कि मुझे लगा कि मैं किसी भी पल ढह जाऊँगी। उन्होंने मुझे इसी तरह से दो घंटे तक प्रताड़ित करना जारी रखा। बाद में, उन्होंने मेरे चेहरे पर दो और सिगरेटों से धुआँ उड़ाया—मैं बहुत वेदना में थी, मेरे सीने और पेट में बहुत ज्यादा दर्द हो रहा था और मेरी उंगलियाँ सख्त होकर मुड़ गई थीं। उन्होंने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे दस्तावेज पर हस्ताक्षर करने के लिए जोर लगाने की कोशिश की, लेकिन मैंने चुपचाप परमेश्वर से प्रार्थना की और उन्हें अपना हाथ एक इंच भी नहीं हिलाने दिया। अंत में, मैंने उस दस्तावेज पर हस्ताक्षर नहीं किए जिसमें परमेश्वर की ईशनिंदा की गई थी, लेकिन अधिकारियों का मन नहीं भरा था—मुझसे जबरन हस्ताक्षर करवाने के लिए, अधिकारियों में से एक ने मेरे बाल पकड़े और मेरे सिर को दीवार पर मार दिया, जिससे मेरे सिर पर सूजकर एक बड़ी गाँठ बन गई। उसके बाद उसने मुझे चेहरे पर जोर से मारा, मेरे पैरों और पेट पर लात मारी, जिससे मुझे चक्कर आने लगे और मेरा पूरा शरीर सुन्न हो गया। जब अधिकारी मुझे पीटते-पीटते थक गया, तो उसने बिजली का एक डंडा उठा लिया और मेरे चेहरे, छाती और शरीर के दूसरे हिस्सों पर झटके देने लगा। मुझे ऐसा लगा जैसे मेरे पूरे शरीर में सुइयाँ चुभाई जा रही हों। मैं लगातार परमेश्वर से प्रार्थना कर कहती रही कि वह मुझे आस्था और शक्ति से भर दे ताकि मैं अडिग रहूँ। मुझे बिजली के डंडे से झटके देते हुए अधिकारी ने क्रूरतापूर्वक धमकी दी, “मैं तुम्हें तब तक प्रताड़ित करूँगा जब तक कि तुम्हें अंदरूनी चोट न पहुँचे। जब तुम यहाँ से निकलोगी, तो तुम बीमारियों से घिर चुकी होगी और तिल-तिल कर मरोगी!” जितना अधिक ये अधिकारी बोलते, उतनी ही अधिक मुझे उनसे नफरत होती जाती थी। मैंने परमेश्वर के वचनों के बारे में सोचा, जो कहते हैं : “क्रोध के साथ भभकता यह शैतान कैसे परमेश्वर को पृथ्वी पर अपने शाही दरबार पर नियंत्रण करने दे सकता है? कैसे वह स्वेच्छा से परमेश्वर के श्रेष्ठतर सामर्थ्य के आगे झुक सकता है? इसके कुत्सित चेहरे की असलियत उजागर की जा चुकी है, इसलिए किसी को पता नहीं है कि वह हँसे या रोए, और यह बताना वास्तव में कठिन है। क्या यही इसका सार नहीं है? अपनी कुरूप आत्मा के बावजूद वह यह मानता है कि वह अविश्वसनीय रूप से सुंदर है। यह सहअपराधियों का गिरोह! वे भोग में लिप्त होने के लिए मनुष्यों के देश में उतरते हैं और हंगामा करते हैं, और चीज़ों में इतनी हलचल पैदा कर देते हैं कि दुनिया एक चंचल और अस्थिर जगह बन जाती है और मनुष्य का दिल घबराहट और बेचैनी से भर जाता है, और उन्होंने मनुष्य के साथ इतना खिलवाड़ किया है कि उसका रूप उस क्षेत्र के एक अमानवीय जानवर जैसा अत्यंत कुरूप हो गया है, जिससे मूल पवित्र मनुष्य का आखिरी निशान भी खो गया है। इतना ही नहीं, वे धरती पर संप्रभु सत्ता ग्रहण करना चाहते हैं। वे परमेश्वर के कार्य को इतना बाधित करते हैं कि वह मुश्किल से बहुत धीरे आगे बढ़ पाता है, और वे मनुष्य को इतना कसकर बंद कर देते हैं, जैसे कि तांबे और इस्पात की दीवारें हों। इतने सारे गंभीर पाप करने और इतनी आपदाओं का कारण बनने के बाद भी क्या वे ताड़ना के अलावा किसी अन्य चीज की उम्मीद कर रहे हैं?” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, कार्य और प्रवेश (7))। सीसीपी दानव है जो परमेश्वर से नफरत करती है और उसका विरोध करती है। उन्होंने मुझे जितना ज्यादा प्रताड़ित किया, उतना ही मैं साफ देख पाई कि वे सच में कितने बदसूरत और घिनौने थे। मैं उनसे पूरी तरह से नफरत करने लगी, उनके खिलाफ विद्रोह करने लगी और परमेश्वर का अनुसरण करने और उसे संतुष्ट करने के लिए और अधिक प्रेरित महसूस करने लगी। इसके बाद अधिकारी ने मुझे यह कहकर फिर से डराने की कोशिश की, “भले ही तुम कुछ न बोलो, फिर भी तुम्हें दोषी ठहराया जाएगा और दस साल से अधिक की कैद होगी!” मैं गुस्से से भर गई और सोचने लगी, “अगर मुझे जेल ही जाना है, तो यही सही। चाहे मुझे कितने भी साल की सजा क्यों न हो जाए, मैं कभी भी तुम दानवों के आगे नहीं झुकूँगी!” आखिरकार, वे मुझसे कोई भी जानकारी हासिल करने में असमर्थ रहे और जुलाई 2014 में, उन्होंने यह झूठा आरोप मढ़ा कि मैं “कानून के अनुपालन को धता बताने के लिए एक संप्रदाय का इस्तेमाल कर रही हूँ” और मुझे चार साल की कैद की सजा सुना दी।
अपनी दो बार की गिरफ्तारी और जेल में डाले जाने के बारे में सोचती हूँ, तो सीसीपी ने मुझसे परमेश्वर से विश्वासघात कराने के लिए कई तरह के तरीके अपनाए, जिसमें बर्बर ढंग से पिटाई, डराना-धमकाना, मत-परिवर्तन करना और अपमानित करना शामिल था। इन सभी परीक्षाओं के दौरान, अगर मुझे परमेश्वर की सुरक्षा न मिलती और परमेश्वर के वचनों के जरिए मुझमें आस्था और शक्ति न पैदा होती, तो मुझे बहुत पहले ही अधिकारियों द्वारा यातना देकर मार दिया गया होता। इन परीक्षाओं के दौरान मैंने पहली बार परमेश्वर के प्रेम को अनुभव किया और उसके वचनों के अधिकार और सामर्थ्य को देखा। ये परमेश्वर के वचन ही हैं जिन्होंने मुझे इन क्लेशों से बाहर निकाला। चाहे सीसीपी मुझे कैसे भी सता ले, मैं परमेश्वर के प्रेम का बदला चुकाने के लिए परमेश्वर का अनुसरण और अपना कर्तव्य निभाना जारी रखूँगी।