66. अब मैं अपने साथी से घृणा नहीं करता
मैं कलीसिया की किताबों और चीजों का प्रबंधन करता हूँ। मेरा काम यह जाँचना है कि विभिन्न चीजें वर्गीकृत और सुव्यवस्थित हैं या नहीं, उन्हें सफाई से रखा गया है या नहीं, और आवक-जावक अभिलेख सही हैं या नहीं। मैं डरता हूँ कि अगर असावधान रहा, तो चीजें अस्त-व्यस्त हो जाएँगी। लेकिन मेरे साथ कार्यरत भाई कैमेरॉन थोड़ा लापरवाह था और साफ-सुथरेपन पर ध्यान नहीं देता था। कभी-कभी वह चीजें यहाँ-वहाँ फेंक देता था या उनका ढेर लगा देता था, इसलिए मुझे हमेशा उसके काम की जाँच करनी पड़ती थी। जब मैं भाई कैमेरॉन को चीजें गलत जगह रखते देखता, या यह देखता कि उसने जो सामान लिखा है उनके आवक-जावक अभिलेख स्पष्ट नहीं हैं, तो मैं बहुत अधीर और क्रोधित हो जाता कि आपा खो बैठता और उसकी मदद के लिए संगति न करता। पहले मैं उसकी भावनाओं का ख्याल रखता था, अपने लहजे और बोल को लेकर सतर्क रहता था, लेकिन समय के साथ मैंने इन चीजों का ध्यान रखना छोड़ दिया, और बार-बार उसे बताने लगा कि उसने यह किया या फलाँ-फलाँ चीज गलत है। कभी-कभी यह कहते हुए उसे गुस्से से डांट देता, “तुम चीजों को फिर से गलत जगह क्यों रख रहे हो? तुम एक चीज यहाँ रखते हो, दूसरी वहाँ। क्या तुम चीजें वहीं नहीं रख सकते, जहाँ से उठाते हो? चीजें व्यवस्थित रखने में पल भर का समय लगेगा, पर तुमको बस इसे अधूरा ही छोड़ना होता है, और बाद में कभी तुम उसे पूरा नहीं करते...।”
कैमेरॉन के प्रति मेरा रवैया लगातार बुरा होता गया। कभी-कभी मैं आज्ञा के लहजे में उसे यह बेतरतीबी ठीक करने को कहता। मुझे याद है, एक बार आवक-जावक अभिलेख की जाँच करते वक्त मैंने पाया कि उसने कुछ सुधार इतने बुरे ढंग से किए थे कि उन्हें पढ़ना मुश्किल था। मैं तुरंत बौखला गया, और सोचा, “मैं अंदाजा तक नहीं लगा सकता कि उसने यहाँ क्या लिखा है!” मैं सीधे कैमेरॉन के पास गया। छात्र को डाँटने वाले शिक्षक की तरह मैंने अभिलेख दिखाकर उससे हर प्रविष्टि के बारे में पूछा। मैंने कहा, “जानते हो, अभी मैं क्या करना चाहता हूँ? मैं ये अभिलेख ले जाकर अगुआ को दिखाना चाहता हूँ, ताकि उन्हें पता चले कि तुम अपना कर्तव्य कैसे निभाते हो, और तुम कितने लापरवाह हो!” कैमेरॉन के चेहरे पर अपराध-बोध था, बोला कि भविष्य में वह सावधान रहेगा। उसने कहा कि यह एक दुर्घटना थी और जब वह अभिलेख लिखते समय किसी ने उसे एक अहम मामला निपटाने के लिए बुला लिया था, इसलिए वह इसे भूल गया। लेकिन मैंने उसे बोलने नहीं दिया और गुस्से से कहा, “अगर ऐसा फिर से हुआ, तो मैं अभिलेख का पन्ना सीधे अगुआ को दे दूँगा, और फिर वे ही इसे देखेंगी!” जल्दी ही मुझे कैमेरॉन के एक अभिलेख-पन्ने पर फिर से अस्पष्ट लिखावट मिली। इस बार मुझे पहले से भी ज्यादा गुस्सा आया। मैंने जाकर कैमेरॉन से कहा, “मैंने तुमसे कहा था, कि गलती हो जाए तो उसी पर न लिखकर दूसरी जगह फिर से लिखो। अपना यह सुधार देखो। पता नहीं, तुमने क्या लिखा है? समझ न आए तो मुझे आकर तुमसे पूछना पड़ेगा। क्या इससे गुस्सा नहीं आएगा? तुम्हें न आए, मुझे तो आता है!” मुझे फिर से नाराज देख उसने अभिलेख का पन्ना उठाया और बोला, “मैं इसे दोबारा सुधार दूँगा।” मैं गुस्से से चिल्ला पड़ा, “रहने दो! इससे यह ठीक नहीं होगा!” यह कहकर मैं चला आया, वह अभिलेख का पन्ना हाथ में लिए परेशान बैठा रहा। तब, मुझे एहसास हुआ कि मैंने ज्यादती की है। पर मैंने इस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया, और बात आई-गई हो गई। कुछ दिनों बाद एक मामूली बात पर मैं कैमेरॉन से फिर गुस्सा हो गया। उसने भी मुझ पर गुस्सा दिखाया, और हम बहस में उलझ गए।
अगुआ ने पाया कि हम मिल-जुलकर काम नहीं कर सकते, तो उन्होंने मेरे साथ संगति की, और परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़कर सुनाया : “मसीह-विरोधी चाहे कोई भी कर्तव्य कर रहा हो, चाहे उसकी किसी के भी साथ साझेदारी हो, हमेशा झगड़े और विवाद होंगे। कुछ लोग कह सकते हैं, ‘अगर वे सफाई कार्य के प्रभारी हैं, और वे हर दिन अंदर साफ-सफाई कर देते हैं, तो दूसरों के साथ उनके असहयोगी होने की बात कैसे हो सकती है?’ इसमें एक स्वभावगत समस्या है : वे जिसके साथ भी बातचीत कर रहे हों, या कोई काम कर रहे हों, वे उन्हें हमेशा डांटेंगे, हमेशा उन्हें खरी-खोटी सुनाना चाहेंगे, उनसे वही करवाना चाहेंगे जो वे कहेंगे। क्या तुम लोग कहोगे कि ऐसा व्यक्ति दूसरों के साथ सहयोगी हो सकता है? वह किसी के भी साथ सहयोगी नहीं हो सकता है; ऐसा इसलिए कि उसमें अत्यंत गंभीर भ्रष्ट स्वभाव होता है। न सिर्फ वह दूसरों के साथ सहयोग नहीं कर सकता है, वह ऊपर बैठ कर हमेशा दूसरों को खरी-खोटी सुना कर बेबस भी करता रहता है—वह हमेशा लोगों के कंधों पर बैठ कर उन्हें आज्ञा पालन के लिए मजबूर करने की कामना करता है। यह सिर्फ एक स्वभावगत समस्या नहीं है—यह उसकी मानवता के साथ भी एक गंभीर समस्या है। उसमें जरा भी जमीर या विवेक नहीं होता है। ... लोगों के एक दूसरे के साथ सामान्य रूप से मिल-जुल कर रहने के लिए कुछ खास शर्तों का पूरा होना जरूरी है : वे एक-दूसरे से सहयोग कर सकें, इससे पहले उनमें कम-से-कम जमीर और विवेक होना चाहिए, और उन्हें धैर्यवान और सहनशील होना चाहिए। कोई कर्तव्य निभाने में सहयोग कर पाने के लिए लोगों को एकमत होना चाहिए; उन्हें दूसरों की खूबियों का लाभ ले कर अपनी कमजोरियों की भरपाई करनी चाहिए, और उनके आचरण की एक आधाररेखा होनी चाहिए। इसी तरह से सामंजस्य में मिल-जुल कर रहने के लिए, भले ही समय-समय पर झगड़े और विवाद हों, सहयोग जारी रह सकता है, और कम से कम कोई शत्रुता पैदा नहीं होगी। यदि उनमें से एक के पास ऐसी आधाररेखा न हो, और वह कर्तव्यनिष्ठ या समझदार न हो, और वह लाभ-केंद्रित तरीके से काम करता हो, सिर्फ लाभ खोजता हो, हमेशा दूसरों की कीमत पर फायदा उठाना चाहता हो, तो सहयोग असंभव होगा। बुरे लोगों और दानव राजाओं के बीच ऐसा ही होता है, जो बिना किसी विराम के एक-दूसरे से युद्ध करते रहते हैं। आध्यात्मिक क्षेत्र की विभिन्न बुरी आत्माएँ एक-दूसरे से मिल-जुल कर नहीं रहतीं। हालाँकि दानव कभी-कभी संघ बना लेते हैं, मगर यह सब अपने लक्ष्य हासिल करने के लिए परस्पर शोषण करने को लेकर होता है। उनके संघ अस्थायी होते हैं, और जल्द ही वे खुद-ब-खुद बिखर जाते हैं। लोगों के बीच भी ऐसा ही होता है। मानवता विहीन लोग सड़े हुए सेब की तरह होते हैं जो पूरे गुच्छे को नष्ट कर देते हैं; सिर्फ सामान्य मानवता वाले लोगों को ही दूसरों से सहयोग करने, धैर्यवान और सहनशील होने में आसानी होती है, वे दूसरों की राय पर ध्यान दे पाते हैं, और अपने काम में अपने रुतबे को दूर रख पाते हैं, और इसे दूसरों के साथ विचार-विमर्श के बाद करते हैं। उनका भी स्वभाव भ्रष्ट होता है, और वे हमेशा चाहते हैं कि लोग उनकी बातों पर ध्यान दें—उनका भी यही इरादा होता है—लेकिन चूँकि उनके पास जमीर और विवेक होता है, वे सत्य को खोज सकते हैं, खुद को जानते हैं, उन्हें लगता है कि ऐसा करना अनुचित है जिसके लिए उनका दिल उन्हें धिक्कारता है, और वे खुद को रोक पाते हैं, इसलिए चीजें करने के उनके तौर-तरीके थोड़ा-थोड़ा करके बदल जाएँगे। और इस तरह वे दूसरों के साथ सहयोग करने में सक्षम हो पाएँगे। वे भ्रष्ट स्वभाव प्रकट करते हैं लेकिन वे बुरे लोग नहीं हैं, और उनमें मसीह-विरोधियों का सार नहीं है। उन्हें दूसरों के साथ सहयोग करने में कोई बड़ी समस्या नहीं होगी। यदि वे बुरे लोग या मसीह-विरोधी होते, तो दूसरों के साथ सहयोग नहीं कर पाते। परमेश्वर के घर द्वारा निकाले गए सभी बुरे लोग और मसीह-विरोधी ऐसे ही होते हैं। वे किसी के भी साथ सहयोग नहीं कर पाते, और परिणामस्वरूप उन सभी का खुलासा हो जाता है और हटा दिए जाते हैं” (वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद आठ : वे दूसरों से केवल अपने प्रति समर्पण करवाएँगे, सत्य या परमेश्वर के प्रति नहीं (भाग एक))। परमेश्वर के वचन पढ़कर सुनाने के बाद अगुआ ने मुझे यह कहते हुए चेताया, “लोगों के साथ मिल-जुलकर रहने के लिए हमें उनका आदर करना होगा। आप कैमेरॉन पर इस तरह चिल्लाते हैं, उन्हें इस तरह फटकारते हैं, तो आपमें बुनियादी सम्मान भी नहीं है। क्या आप बेहद घमंडी नहीं हैं? आप हर काम पर उसे नीचा दिखाते हैं, गिद्ध की तरह उस पर नजर गड़ाए रहते हैं, और उसकी समस्याएँ खत्म नहीं होने देते। क्या यह सही है? कैमेरॉन काम में व्यस्त रहते हैं, उनकी याददाश्त कमजोर है। कुछ समस्याएँ अपरिहार्य होती हैं। क्या आपको अच्छा बरताव कर उनकी ज्यादा मदद नहीं करनी चाहिए? यही नहीं, उनमें निरंतर सुधार हो रहा है। पर आप निरंतर उस पर चिल्लाते रहे? यह एक भ्रष्ट स्वभाव है; यह मानवता की भी समस्या है। लोगों पर लगातार चिल्लाना एक भ्रष्ट स्वभाव है। आपको अपने भाई की आँख का तिनका दिखता है, अपनी आँख का लट्ठा नहीं सूझता?” फिर, अगुआ ने परमेश्वर के वचनों का एक और अंश पढ़कर सुनाया, जो कहता है : “तुम लोग बताओ, क्या लोगों के साथ सहयोग करना कठिन होता है? वास्तव में, यह कठिन नहीं होता। तुम यह भी कह सकते हो कि यह आसान होता है। लेकिन फिर भी लोगों को यह मुश्किल क्यों लगता है? क्योंकि उनका स्वभाव भ्रष्ट होता है। जिन लोगों में मानवता, अंतःकरण और विवेक होता है, उनके लिए दूसरों के साथ सहयोग करना अपेक्षाकृत आसान है और वे महसूस कर सकते हैं कि यह सुखदायक चीज है। इसका कारण यह है कि किसी भी व्यक्ति के लिए अपने दम पर कार्य पूरे करना इतना आसान नहीं होता और चाहे वह किसी भी क्षेत्र से जुड़ा हो या कोई भी काम कर रहा हो, अगर कोई बताने और सहायता करने वाला हो तो यह हमेशा अच्छा होता है—यह अपने बलबूते कार्य करने से कहीं ज्यादा आसान होता है। फिर, लोगों में कितनी काबिलियत है या वे स्वयं क्या अनुभव कर सकते हैं, इसकी भी सीमाएं होती हैं। कोई भी इंसान हरफनमौला नहीं हो सकता : किसी एक व्यक्ति के लिए हर चीज को जानना, हर चीज में सक्षम होना, हर चीज को पूरा करना असंभव होता है—यह असंभव है और सबमें यह विवेक होना चाहिए। इसलिए तुम चाहे जो भी काम करो, यह महत्वपूर्ण हो या न हो, तुम्हें अपनी मदद करने के लिए हमेशा किसी ऐसे व्यक्ति की जरूरत पड़ेगी जो तुम्हें सुझाव और सलाह दे सके या तुम्हारे साथ सहयोग करते हुए काम कर सके। काम को ज़्यादा सही ढंग से करने, कम गलतियाँ करने और कम भटकने का यही एकमात्र तरीका है—यह अच्छी बात है” (वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद आठ : वे दूसरों से केवल अपने प्रति समर्पण करवाएँगे, सत्य या परमेश्वर के प्रति नहीं (भाग एक))। परमेश्वर के वचन पढ़कर सुनाने के बाद, अगुआ ने थोड़ी और संगति की, और आखिरकार मुझसे पूछा, “अगर आपको इनका खुद प्रबंधन करना होता, तो क्या आप बिना कोई गलती किए कर पाते?” मैंने शर्मसार होकर कहा, “नहीं।” अगुआ बोलीं, “सही है। कोई भी सब-कुछ नहीं जानता, और सबको अपना कर्तव्य निभाने के लिए साथी की जरूरत होती है। सौहार्दपूर्वक सहयोग किए बिना आप कर्तव्य ठीक से कैसे कर सकते हैं? आपको इस पर मनन कर अपनी समस्याओं पर विचार करना चाहिए।”
जब मैं लौटकर आया, तो मुझे बहुत बुरा लगा। मैं इतनी बड़ी समस्या से कैसे अनजान था? मुझे लगता था कि मुझमें अच्छी मानवता है और मैं भाई-बहनों के साथ मिल-जुलकर रह सकता हूँ, लेकिन अपने कर्तव्य में कैमेरॉन से सहयोग करने के बाद से मैं अपने विचारों और कार्यों को सही मानकर हमेशा आत्म-तुष्ट रहता था। मैं उस पर अपनी इच्छा थोपकर उससे वही करवाता था, जो मैं चाहता था। मैं सत्य पर संगति कर उसकी मदद नहीं करता था, बस, गुस्सा होकर, उसे फटकारता रहता था। मुझमें मानवता और विवेक नहीं था! खुद को भाई से बेहतर समझकर मैं उसे नीचा दिखाता रहता था। मुझे वह नापसंद था और इसलिए मैं उसकी खूबियों और कमजोरियों पर ध्यान नहीं दे पाता था। मैं लगातार दिखावा कर उसे नीचा दिखाता था। मूल रूप से, कलीसिया की चीजों के प्रबंधन के लिए मैं और कैमेरॉन दोनों जिम्मेदार थे, पर मैं उससे किसी चीज पर चर्चा नहीं करता था। मैं हमेशा आत्म-केंद्रित रहता था, अपनी ही चलाता था, और कैमेरॉन को आदेश दिया करता था। मैं उसे अक्सर बच्चे की तरह डांटता और भाषण देता था। मेरा स्वभाव बहुत घमंडी था, और परमेश्वर को इससे घृणा थी! मैं जान गया कि मैं घमंडी हूँ, हमेशा दूसरों को अपनी बात सुनने पर मजबूर करता हूँ, पर यह नहीं जान पाया कि यह समस्या कैसे सुलझाऊँ। मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की और उसके वचनों के संगत अंश ढूँढ़े। मैंने परमेश्वर के ये वचन पढ़े : “मसीह-विरोधियों का हमेशा लोगों को नियंत्रित करने और जीतने की महत्वाकांक्षा और इच्छा रखने। यह समस्या उनके किसी के साथ सहयोग कर पाने में अक्षमता से ज्यादा गंभीर है। तुम लोगों के अनुसार वे किस प्रकार के लोग हैं जो दूसरों को नियंत्रित करना और जीतना पसंद करते हैं? किस प्रकार के व्यक्ति में दूसरों को नियंत्रित करने और जीतने की महत्वाकांक्षा और इच्छा होती है? मैं तुम्हें एक उदाहरण देता हूँ। क्या जो लोग खास तौर पर रुतबा पसंद करते हैं, वे दूसरों को नियंत्रित करने और जीतने में आनंद लेते हैं? क्या वे मसीह-विरोधियों की तरह नहीं हैं? वे दूसरे लोगों को गुमराह करते, नियंत्रित करते और दबाते हैं, जो फिर उनकी आराधना कर उनकी बातों पर ध्यान देते हैं। वे इस तरह से लोगों का सम्मान और आदर प्राप्त करते हैं और लोगों से अपनी आराधना और सम्मान करवाते हैं। तो फिर क्या लोगों के दिलों में उनके लिए जगह नहीं होती है? यदि लोगों को उनकी बातों पर विश्वास न हो और वे उन्हें स्वीकृति न दें, तो क्या वे उनकी आराधना करेंगे? बिल्कुल नहीं। तो रुतबा पाने के बाद भी इन लोगों को दूसरों को विश्वास दिलाना होता है, उन्हें पूरी तरह जीतना होता है, और उनसे अपनी सराहना करवानी होती है। सिर्फ तभी लोग उनकी आराधना करेंगे। यह एक प्रकार का व्यक्ति है। एक दूसरे प्रकार का व्यक्ति भी होता है—जो खासा अहंकारी होता है। वह लोगों से इसी तरह पेश आता है : वह लोगों को दबाने और सभी से अपनी आराधना और सराहना करवाने से शुरू करता है। तभी वह संतुष्ट होता है। अत्यंत क्रूर लोग भी दूसरों को नियंत्रित करना, अपनी बातों पर लोगों से ध्यान दिलवाना, अपने दायरे में रखना और अपने लिए चीजें करवाना पसंद करते हैं। जब बात अत्यंत अहंकारी और क्रूर स्वभाव के लोगों की आती है, तो एक बार सत्ता हथिया लेने पर वे मसीह-विरोधी बन जाते हैं। मसीह-विरोधियों में हमेशा दूसरों को नियंत्रित करने और जीतने की महत्वाकांक्षा और इच्छा होती है; लोगों से अपनी मुलाकातों में वे हमेशा यह पता लगाना चाहते हैं कि दूसरे उन्हें किस दृष्टि से देखते हैं, और क्या दूसरों के दिलों में उनके लिए जगह है, और क्या दूसरे उनकी सराहना और आराधना करते हैं। यदि उनकी मुलाकात किसी ऐसे व्यक्ति से हो जो तलवे चाटने, चापलूसी करने और खुशामद करने में अच्छा है, तो वे बहुत खुश होते हैं; फिर वे ऊँचे स्थान पर खड़े हो कर ऊंचे लगने वाले विचारों पर बकबक करते हैं, लोगों के मन में विनियम, तौर-तरीके, धर्म-सिद्धांत और धारणाएँ बिठाते हैं। वे लोगों से इन चीजों को सत्य के रूप में स्वीकार करवाते हैं, और उन्हें एक सुंदर रूप से सँवारते हैं : ‘यदि तुम ये चीजें स्वीकार कर सको, तो तुम ऐसे व्यक्ति हो जो सत्य से प्रेम करता है, उसका अनुसरण करता है।’ नासमझ लोग सोचेंगे कि वे जो कह रहे हैं वह उचित है, और हालाँकि यह उनके लिए स्पष्ट नहीं है, और वे यह नहीं जानते कि क्या यह सत्य के अनुरूप है, उन्हें सिर्फ यह लगता है कि वे जो कह रहे हैं उसमें कुछ गलत नहीं है, और इससे सत्य का उल्लंघन नहीं होता है। और इसलिए वे मसीह-विरोधी की आज्ञा का पालन करते हैं। यदि कोई व्यक्ति किसी मसीह-विरोधी को पहचान कर उसे उजागर कर दे, तो इससे मसीह-विरोधी को गुस्सा आ जाएगा, और वह उस पर अनाप-शनाप दोष थोपेगा, उसकी निंदा करेगा, और शक्ति प्रदर्शन कर उसे धमकाएगा। जिन लोगों में समझ नहीं होती, वे मसीह-विरोधी से पूरी तरह दब जाते हैं और अपने दिल की गहराई से उसकी सराहना करते हैं, जिससे उनके भीतर मसीह-विरोधी की आराधना, उस पर भरोसा और उससे डर भी पैदा हो जाता है। उनके मन में मसीह-विरोधी का गुलाम होने का भाव पैदा हो जाता है, मानो मसीह-विरोधी की अगुआई, शिक्षाएँ और भर्त्सनाएं गँवाने पर वे दिल में अशांत हो जाएँगे। ऐसा होता है जैसे इन चीजों के बिना उनमें सुरक्षा का कोई एहसास नहीं बचेगा, और फिर परमेश्वर उन्हें नहीं चाहेगा। तब कार्य करते समय हर कोई मसीह-विरोधी की अभिव्यक्ति देखना सीख लेता है, इस डर से कि मसीह-विरोधी नाखुश हो जाएगा। वे सब उसे खुश करने की कोशिश करते हैं; ऐसे लोग मसीह-विरोधी का अनुसरण करने में जी-जान से जुटे होते हैं। मसीह-विरोधी अपने काम में शब्दों और धर्म-सिद्धांतों का उपदेश देते हैं। वे लोगों को कुछ खास विनियमों का पालन करने की सीख देने में अच्छे होते हैं; वे लोगों को कभी नहीं बताते कि वे सत्य सिद्धांत कौन-से हैं, जिनका उन्हें पालन करना चाहिए, उन्हें इस तरह काम क्यों करना चाहिए, परमेश्वर के इरादे क्या हैं, और परमेश्वर के घर ने काम के लिए कौन-सी व्यवस्थाएँ की हैं, सबसे अनिवार्य और महत्वपूर्ण काम कौन-सा है, और वह कौन-सा प्राथमिक कार्य है जो किया जाना है। इन महत्वपूर्ण चीजों के बारे में मसीह-विरोधी कुछ भी नहीं कहते हैं। काम करते समय और उसकी व्यवस्था करते समय वे सत्य पर कभी संगति नहीं करते। वे स्वयं सत्य सिद्धांतों को नहीं समझते हैं, इसलिए वे बस इतना ही कर सकते हैं कि लोगों को कुछ विनियमों और धर्म-सिद्धांतों का पालन करना सिखा दें—और अगर लोग उनकी कहावतों और विनियमों के खिलाफ जाएँ तो उन्हें मसीह-विरोधियों की फटकार और डाँट का सामना करना पड़ेगा। मसीह-विरोधी अक्सर परमेश्वर के घर की ध्वजा के अधीन काम करते हैं, और ऊँची पदवी से दूसरों को डाँटते और फटकार लगाते हैं। कुछ लोग उनकी फटकार से इतने घबरा जाते हैं कि उन्हें लगता है कि मसीह-विरोधियों की अपेक्षाओं के अनुसार कार्य न करने से वे परमेश्वर के ऋणी हैं। क्या ऐसे लोग मसीह-विरोधियों के नियंत्रण में नहीं हैं? (बिल्कुल हैं।) मसीह-विरोधियों की ओर से यह किस प्रकार का व्यवहार है? यह दासता का व्यवहार है” (वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद आठ : वे दूसरों से केवल अपने प्रति समर्पण करवाएँगे, सत्य या परमेश्वर के प्रति नहीं (भाग एक))। परमेश्वर ने ठीक मेरी ही हालत का वर्णन किया था। कैमेरॉन के साथ काम करते समय मैंने उसे सहज पाया। काम में गड़बड़ी होने पर वह मेरी आलोचना स्वीकार कर लेता, उसके खंडन की कोशिश न करता। मुझे लगा, उसे आसानी से धमकाया जा सकता है, इसलिए मैं उस पर रोब झाड़ता और हर चीज में अपनी ही चलाता। कई बार, उससे चर्चा करते समय, मैं बस चर्चा करने का नाटक करता। अंत में, फैसला मेरा ही होता। साथ ही, चीजों के प्रबंधन की मेरी रची हुई कुछ सावधानियाँ, समस्याहीन और प्रबंधन में मददगार लगती थीं, लेकिन ये सावधानियाँ मैंने संगत सिद्धांतों के आधार पर तैयार नहीं की थीं। बल्कि मैंने उन्हें कैमेरॉन की समस्याएँ सुलझाने के लिए रचा था। कह सकते हैं कि वे उसी के लिए रची गई थीं। वह जब भी ये सावधानियों का पालन करने में नाकाम होता, मुझे उसे फटकारने का बहाना मिल जाता, और वह इसका विरोध न कर पाता। इस बार भी जब उसने मेरे निर्देशानुसार अभिलेख का पन्ना नहीं बनाया, तो मैंने उसे बेझिझक डांट पिलाई, और उसे अपने कहे अनुसार करने को मजबूर किया। मुझे उसकी उस दिन की बात याद आई, “आपको चीजें व्यवस्थित करते देख मैं आपसे बचने की कोशिश करता हूँ। मैं डरता हूँ कि आप फिर मेरी आलोचना करेंगे।” इस खयाल ने मुझे बेचैन कर दिया। मेरे शैतानी स्वभाव ने भाई के दिल पर अपना साया डालकर उसे लाचार कर दिया था। ठीक वैसे ही, जैसे परमेश्वर के वचन उजागर करते हैं : “अगर लोग उनकी कहावतों और विनियमों के खिलाफ जाएँ तो उन्हें मसीह-विरोधियों की फटकार और डाँट का सामना करना पड़ेगा। मसीह-विरोधी अक्सर परमेश्वर के घर की ध्वजा के अधीन काम करते हैं, और ऊँची पदवी से दूसरों को डाँटते और फटकार लगाते हैं। कुछ लोग उनकी फटकार से इतने घबरा जाते हैं कि उन्हें लगता है कि मसीह-विरोधियों की अपेक्षाओं के अनुसार कार्य न करने से वे परमेश्वर के ऋणी हैं। क्या ऐसे लोग मसीह-विरोधियों के नियंत्रण में नहीं हैं?” आखिरकार मुझे एहसास हुआ कि मेरी समस्या गंभीर है। कैमेरॉन के साथ काम करते हुए मेरा मसीह-विरोधी स्वभाव प्रकट हो गया था। तब मेरा कोई रुतबा नहीं था, अगर होता, तो लोगों को लाचार कर उन्हें काबू में करना और आसान नहीं होता। तब, क्या मैं मसीह-विरोधी नहीं हो गया होता? मैं प्रायः सत्य खोजने या आत्म-चिंतन करने पर ध्यान नहीं देता था। अनजाने ही मैं अक्सर अपना भ्रष्ट स्वभाव प्रदर्शित कर देता था। मैं बहुत सुन्न था। मुझे परमेश्वर के ये वचन याद आए : “अगर तुम परमेश्वर के घर के सदस्य होकर भी अपने कार्यों में हमेशा गरम-मिजाज रहते हो, हमेशा वह चीज प्रकट कर देते हो जो तुम में स्वाभाविक रूप से है, और हमेशा अपना भ्रष्ट स्वभाव प्रकट कर देते हो, मानवीय साधनों और भ्रष्ट, शैतानी स्वभाव के साथ चीजें करते हो, तो अंतिम परिणाम यह होगा कि तुम दुष्टता करते हुए परमेश्वर का विरोध करोगे—और अगर तुम कभी पश्चात्ताप नहीं करते और सत्य का अनुसरण करने के मार्ग पर नहीं चल पाते, तो तुम्हें बेनकाब करके बाहर निकालना होगा” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, भ्रष्ट स्वभाव केवल सत्य स्वीकार करके ही दूर किया जा सकता है)। मुझे कैमेरॉन से किया गया बरताव याद आ गया। क्षणिक आनंद के लिए अपना असंतोष जाहिर करने को मैं भाई की भावनाओं की पूरी अनदेखी करता था। अभिलेख का पन्ना पढ़ने लायक न होने से गुस्सा होने पर मैं कैमेरॉन को गलती करने वाला बच्चा मानकर भाषण देता था। वह बिना कुछ बोले चुपचाप बैठा रहता, और उसके गलती मान लेने पर भी मैं रूखेपन से उसे ठुकरा देता। वह छवि मेरे मन में जम गई, जिसे भुलाना नामुमकिन था। इस बारे में सोचकर मैं अपना अपराध-बोध और दर्द व्यक्त नहीं कर पाया। मैंने खुद से पूछा, “मैं अपने भाई से ऐसा बरताव कैसे कर सकता था? मैंने उसके साथ कभी संगति नहीं की, उसकी मदद नहीं की है तो फिर उसे डांटने का हक मुझे किसने दिया? मुझे उसे अपना भाई कहने की हिम्मत कैसे हुई?” हर सवाल ने मुझे अवाक कर दिया। पहले, मैं हमेशा मानता था कि कैमेरॉन ही दोषी है, उसी में ढेरों खामियाँ हैं, और उसी ने मेरे लिए समस्या खड़ी की है। अब मुझे एहसास हुआ कि असली समस्या मुझमें थी। यह मैं ही था जो कई अनुस्मारकों के बावजूद नहीं बदला था, यह मैं ही था जो बहुत घमंडी और जिसमें कोई मानवता नहीं थी। मुझे बहुत पछतावा हुआ, इसलिए मैंने चुपचाप परमेश्वर से प्रार्थना की और कहा कि मैं प्रायश्चित्त करना चाहती हूँ।
बाद में मैंने जानने का प्रयास किया कि सिद्धांतों के अनुसार भाई-बहनों से बरताव कैसे करना है। परमेश्वर के वचनों में मैंने यह अंश पढ़ा : “इसके जरूर सिद्धांत होंगे कि भाई और बहनें कैसे बातचीत करें। हमेशा दूसरों के दोषों पर ध्यान केंद्रित न करो, इसके बजाय निरंतर अपनी पड़ताल करो, फिर दूसरों के सामने सक्रियता से उसे स्वीकार करो जिन चीजों को करने से तुमने उन्हें बाधित किया हो या नुकसान पहुँचाया हो, और खुलकर अपने बारे में बोलना और संगति करना सीखो। इस तरह से, तुम आपसी समझ प्राप्त कर सकते हो। इससे भी ज्यादा, चाहे तुम्हारे साथ कोई भी बात हो जाए, तुम्हे चीजें परमेश्वर के वचनों के आधार पर देखनी चाहिए। अगर लोग सत्य सिद्धांत समझने और अभ्यास का मार्ग खोजने में सक्षम हों, तो वे एक हृदय और दिमाग के हो जाएँगे, और भाई-बहनों के बीच संबंध सामान्य हो जाएगा, वे अविश्वासियों जितने अलग, उदासीन और क्रूर नहीं होंगे, और वे एक-दूसरे के प्रति आपसी संदेह और सतर्कता की मानसिकता छोड़ देंगे। भाई-बहन एक-दूसरे के साथ ज्यादा घनिष्ठ हो जाएँगे; वे एक-दूसरे का सहारा बनने और प्रेम करने में सक्षम हो सकेंगे; उनके हृदयों में सद्भावना होगी, और वे एक-दूसरे के प्रति सहिष्णुता और करुणा रखने में सक्षम होंगे, और वे एक-दूसरे को अलग-थलग करने, एक-दूसरे से ईर्ष्या करने, एक-दूसरे से तुलना करने और गुप्त रूप से एक-दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा करने और एक दूसरे के प्रति विद्रोही होने के बजाय एक-दूसरे का समर्थन और सहायता करने में सक्षम होंगे। अगर लोग अविश्वासियों जैसे होंगे, तो वे अपने कर्तव्यों को अच्छी तरह कैसे निभा सकते हैं? यह न केवल उनके जीवन प्रवेश को प्रभावित करेगा, बल्कि दूसरों को भी नुकसान पहुँचाएगा और प्रभावित करेगा। ... जब लोग अपने भ्रष्ट स्वभाव के अनुसार जीते हैं, तो उनके लिए परमेश्वर के सामने शांति से रहना बहुत कठिन होता है, और उनके लिए सत्य का अभ्यास करना और परमेश्वर के वचनों के अनुसार जीना बहुत कठिन होता है। परमेश्वर के सामने जीने के लिए तुम्हें पहले आत्मचिंतन कर खुद को जानना और वास्तव में परमेश्वर से प्रार्थना करना सीखना चाहिए, और फिर तुम्हें सीखना चाहिए कि भाई-बहनों के साथ कैसे निभाना है। तुम्हें एक-दूसरे के प्रति सहिष्णु होना चाहिए, एक-दूसरे के साथ उदार होना चाहिए, और यह देखने में सक्षम होना चाहिए कि दूसरों के गुण और ताकतें क्या हैं—तुम्हें दूसरों की राय और सही चीजें स्वीकार करना सीखना होगा, खुद को लिप्त मत करो, महत्वाकांक्षाएँ इच्छाएँ मत रखो और हमेशा यह मत सोचो कि तुम अन्य लोगों से बेहतर हो, और फिर खुद को एक महान व्यक्ति समझकर अन्य लोगों को तुम्हारा कहा मानने, तुम्हारी आज्ञा मानने, तुम्हारा आदर और बड़ाई करने के लिए मजबूर मत करो—यह विचलन है। ... तो लोगों से परमेश्वर कैसा व्यवहार करता है? परमेश्वर इसकी परवाह नहीं करता कि लोग कैसे दिखते हैं, वे कद में लंबे हैं या छोटे। इसके बजाय, वह देखता है कि क्या उनके हृदय दयालु हैं, क्या वे सत्य से प्रेम करते हैं, और क्या वे उसे प्रेम करते हैं और उसके समक्ष समर्पण करते हैं। परमेश्वर का लोगों के प्रति व्यवहार इसी पर आधारित है। अगर लोग भी ऐसा ही कर सकें तो वे दूसरों के साथ निष्पक्ष और सत्य सिद्धांतों के अनुरूप व्यवहार करने में सक्षम होंगे। सबसे पहले, हमें परमेश्वर के इरादे समझने होंगे, और जानना होगा कि परमेश्वर लोगों के प्रति कैसा व्यवहार करता है, फिर हमारे पास एक सिद्धांत और मार्ग होगा कि लोगों के प्रति कैसे व्यवहार करना है” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, भाग तीन)। हाँ। अपने कर्तव्य में एक-दूसरे से बातचीत करते समय हमें सामान्य मानवता के साथ जीना चाहिए, एक-दूसरे की सहायता, और सहिष्णुता और धैर्य से एक-दूसरे का ध्यान रखना चाहिए, जब वे सिद्धांतों के खिलाफ जाएँ तो लोगों के साथ सत्य पर संगति करनी चाहिए, गंभीर मामलों में हम उन्हें उजागर कर उनकी काट-छाँट कर सकते हैं। सिद्धांतों के अनुसार काम करने का यही एक मार्ग है। भाई-बहन अलग-अलग स्थानों से आते हैं, सबके जीवन के हालात, अनुभव, उम्र और क्षमता अलग-अलग होती है। उनमें जो भी कमियाँ या खामियाँ हों, हमें उनके साथ उचित बरताव कर ज्यादा अपेक्षा नहीं करनी चाहिए, और उनके प्रति विचारशील और सहिष्णु होना चाहिए। कैमेरॉन आम तौर पर रख-रखाव में व्यस्त रहता था। इसके अतिरिक्त वह चीजों के आवक-जावक अभिलेख का प्रबंधन करने में अच्छा नहीं था। मुझे और ज्यादा जिम्मेदारी उठानी चाहिए थी और ज्यादा उदार होना चाहिए था, और उसे मेरे ढंग से काम करने पर मजबूर नहीं करना चाहिए था। मैं बिल्कुल मानवता के बिना था। मेरा भाई रखरखाव में अच्छा था, मरम्मत के काम में कर्तव्यनिष्ठ था, और कष्ट उठाने से नहीं डरता था। इस मामले में वह मुझसे बहुत श्रेष्ठ था। पर मैंने उसकी खूबियाँ नहीं देखीं, मैंने उसकी कमियों पर ध्यान दिया, उस पर आरोप लगाए, उसे डांटा-डपटा। मैं बहुत घमंडी और बेवकूफ था।
बाद में, मैंने होशपूर्वक अपनी हालत बदली और सिद्धांतों के अनुसार अभ्यास किया। जब चीजें दोबारा घटीं, तो मैं बहुत शांत रहा, और कैमेरॉन के प्रति और उदार रहा। एक बार मैं किसी काम से बाहर गया और मुझे कुछ समय वहीं रहना पड़ा और चीजों का प्रबंधन कैमेरॉन को अकेले ही करना था। कुछ देर बाद, मैंने कैमेरॉन को फोन कर पूछा कि काम कैसा चल रहा है। उसने शांति और सतर्कता से कहा, “आपको क्या लगता है? वैसा ही चल रहा है, जैसा आप सोच रहे हैं।” यह सुनकर मुझे बहुत बुरा लगा। भाई ने ऐसी बात क्यों कही? इसीलिए न कि उसके साथ मेरा पिछला बरताव मेरे भ्रष्ट स्वभाव से निकला था, और मैंने उसे हमेशा महसूस कराया था कि वह निकम्मा है, कोई काम ढंग से नहीं कर सकता? इस बारे में मैंने जितना सोचा, उतना ही दुखी हुआ, लेकिन इसने सत्य का अभ्यास करने और खुद को बदलने के मेरे संकल्प को मजबूती दी। मैंने कैमेरॉन को सांत्वना देते हुए कहा, “बस देख लेना, कौन-सी चीजें छितरी पड़ी हैं, और समय निकालकर उन्हें सही जगह रख देना। तुम आम तौर पर दूसरी चीजों में व्यस्त रहते हो, तो थोड़ा बिखराव होना लाजमी है। अगर तुम्हें समय न मिले, तो कोई बात नहीं, मेरे लौटने के बाद हम मिलकर लेंगे।” फोन करने के बाद मुझे लगा, कैमेरॉन अपने-आप नहीं सँभाल पाएगा, इसलिए मैंने दूसरों से उसकी मदद करने के लिए कह दिया। पहले ऐसी चीजें होने पर मैं उसकी गलतियों के लिए हमेशा उसे डांटता-फटकारता था। अब जब वही चीजें फिर से होती हैं, तो मैं इसे सही तरीके से देख सकता हूँ और संगति कर उसकी मदद कर पाता हूँ। इससे मुझे सुकून और आराम मिलता है। हालाँकि यह एक छोटा-सा बदलाव है, मेरे भ्रष्ट स्वभाव में मूलभूत परिवर्तन नहीं है, फिर भी मैं खुश हूँ, क्योंकि यह एक अच्छी शुरुआत है। मुझे यकीन है, अगर मैं परमेश्वर के वचनों पर अमल कर प्रवेश करूँ, तो अपना भ्रष्ट स्वभाव त्याग पाऊँगा। सर्वशक्तिमान परमेश्वर का धन्यवाद!