50. परमेश्वर का प्रेम ही मेरी ताकत है

ली झी, चीन

वर्ष 2000 में मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के राज्य का सुसमाचार सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। परमेश्वर के वचन पढ़कर मुझे परमेश्वर के नामों और उसके देहधारणों का रहस्य तथा अन्य चीज़ों से जुड़े सत्य समझ में आए, जैसे कि परमेश्वर के कार्य के तीन चरण किस तरह मानव-जाति की रक्षा करते हैं, और किस तरह वे मनुष्य को पूरी तरह बदलते, शुद्ध करते और पूर्ण बनाते हैं। मैं निश्चित हो गई कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही लौटे हुए प्रभु यीशु हैं, और मैंने परमेश्वर के राज्य के सुसमाचार को ख़ुशी से स्वीकार कर लिया। इसके बाद मैं कलीसिया जीवन में सक्रिय रूप से शामिल होकर सुसमाचार प्रसारित करने लगी तथा परमेश्वर की गवाही देने लगी। 2002 में मैं स्थानीय क्षेत्र के आसपास सुसमाचार प्रचारित करने के लिए जानी जाने लगी और मुझ पर पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए जाने का खतरा लगातार बना रहने लगा। अपना कर्तव्य निभाते रहने के लिए मेरे पास अपने घर से भागने के अलावा कोई चारा नहीं रहा।

सीसीपी सरकार ने ईसाइयों की निगरानी और उन्हें गिरफ्तार करने के लिए हमेशा टेलीफोन का इस्तेमाल किया है, इसलिए अपना घर छोड़ने के बाद मैंने अपने परिवार को फोन करने की हिम्मत नहीं की। 2003 की शुरुआत तक मैं अपने परिवार से लगभग एक साल अलग रह रही थी, इसलिए मैं अपने पति से मिलने के लिए अपनी सास के घर चली गई, क्योंकि मुझे उनकी बहुत याद आती थी। जब मेरे देवर ने देखा कि मैं वापस चली गई हूँ, तो उसने मेरी माँ को फोन करके बता दिया कि मैं अपनी सास के घर पर हूँ। मुझे यह देखकर हैरानी हुई कि तीन घंटे बाद नगरपालिका के सार्वजनिक सुरक्षा ब्यूरो के चार पुलिसकर्मी एक पुलिस-कार में मेरी सास के घर आ गए। घर में प्रवेश करते ही उन्होंने मुझसे कठोरता से कहा, “हम नगरपालिका के सार्वजनिक सुरक्षा ब्यूरो से हैं। तुम ली झी हो, है ना? तुम लगभग एक साल से हमारी वांछित सूची में हो, और आख़िरकार हमने तुम्हें ढूँढ़ ही लिया। तुम हमारे साथ चल रही हो!” मैं हद से ज़्यादा डर गई थी; और मैंने अपने हृदय में परमेश्वर से लगातार प्रार्थना की : “हे सर्वशक्तिमान परमेश्वर! आपकी अनुमति से आज सीसीपी सरकार ने मुझे गिरफ्तार कर लिया है। पर मेरा आध्यात्मिक कद बहुत छोटा है, मैं कातर हूँ और मुझे डर लग रहा है। कृपया मेरा मार्गदर्शन करें और मेरी रक्षा करें, और मुझे विश्वास और शक्ति प्रदान करें। वे मेरे साथ कैसा भी व्यवहार क्यों न करें, मैं आप पर भरोसा करना चाहती हूँ और अपनी गवाही में दृढ़ रहना चाहती हूँ। यहूदा की तरह आपको दगा देने से अच्छा है कि मैं आजीवन जेल में बिताऊँ!” प्रार्थना करने के बाद, मैंने परमेश्वर के इन वचनों के बारे में सोचा : “उसका स्वभाव अधिकार का प्रतीक है, उस सबका प्रतीक है जो न्यायोचित है, उस सबका प्रतीक है जो सुंदर और अच्छा है। इसके अतिरिक्त, यह उस परमेश्वर का प्रतीक है, जिसे अंधकार और किसी शत्रु-बल द्वारा हराया या जीता नहीं जा सकता ...(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के स्वभाव को समझना बहुत महत्वपूर्ण है)। “यह सही है,” मैंने मन में सोचा। “परमेश्वर सभी चीज़ों पर प्रभुता रखता है और उन पर शासन करता है। पिछले कुछ वर्षों में, सीसीपी सरकार ने परमेश्वर के राज्य के सुसमाचार के प्रसार को नाकाम और बाधित करने के लिए वह सब किया है जो वह कर सकती थी, फिर भी हर संप्रदाय के लोग जो सत्य के लिए तरसे हैं और परमेश्वर की वाणी सुनी है, अंत के दिनों में उनका उद्धार स्वीकार करने के लिए उनके सिंहासन के सामने लौट आए हैं। इससे परमेश्वर की सर्वशक्तिमत्ता और संप्रभुता दिखती है और परमेश्वर जो करना चाहता है कोई भी उसके आड़े नहीं आ सकता। हालाँकि मैं अब पुलिस के हाथों में पड़ गई हूँ, पर वे खुद परमेश्वर के हाथों में हैं। चूँकि परमेश्वर मेरे साथ है, इसलिए डरने की क्या बात है?” परमेश्वर के वचनों ने मुझे विश्वास और शक्ति दी, और मैं धीरे-धीरे शांत होने लगी।

नगरपालिका के सार्वजनिक सुरक्षा ब्यूरो में आने के बाद मुझे पूछताछ कक्ष में ले जाया गया। पुलिस ने मेरी बेल्ट ले ली; मेरे कपड़े, जूते और मोजे निकाल दिए और फिर मेरी तलाशी ली। इसके बाद, पुलिसवालों में से एक चिल्लाया, “तुम जल्दी-जल्दी हमें वो सब-कुछ बता दो, जो तुम जानती हो! तुम कितने साल से विश्वासी हो? किसने तुम्हें सुसमाचार का उपदेश दिया? तुम्हारे कलीसियाई अगुआ कौन हैं? कितने लोगों में तुमने प्रचार किया है? तुम कलीसिया में क्या करती हो?” मैंने उसके सवालों का जवाब नहीं दिया, जिससे वह तुरंत शर्मिंदगी के कारण गुस्से से गरियाने लगा, “कमीनी। अगर तुम बोलना शुरू नहीं करोगी, तो हमारे पास तुम्हें बुलवाने के बहुत सारे तरीके हैं!” यह कहते हुए उसने उग्रतापूर्वक मुझे कुर्सी से नीचे फर्श पर घसीट लिया। दो अधिकारियों ने मेरी टाँगों को कुचल दिया, जबकि दो अन्य ने मेरी पीठ को ज़ोर से कुचल दिया। मेरा सिर लगभग फर्श से चिपक गया था और मुझे साँस लेने में मुश्किल हो रही थी। पुलिसवालों में से एक ने तब एक पेंसिल ली और उसे हल्के से मेरे पैरों के तलुओं की मेहराबों पर आगे-पीछे चलाने लगा, जिससे मुझे एक ही साथ कष्ट भी हुआ और गुदगुदी भी हुई। यह असहनीय था; साँस लेना इतना मुश्किल था कि मेरा दम घुटने लगा था और मुझे मौत का डर सताने लगा। उनमें से एक ने आगे बढ़कर मुझे धमकी दी : “तुम बोलने जा रही हो या नहीं? अगर नहीं, तो हम तुम्हें यातना देकर मार डालेंगे!” मैं इस पुलिसिया गिरोह की यातना और धमकी से वास्तव में डर गई; मुझे चिंता हुई कि वे यातना देकर मुझे मार डालेंगे। तो मैं परमेश्वर से प्रार्थना करती रही कि वह मुझे विश्वास और शक्ति प्रदान करे, और मेरी रक्षा करे, ताकि मैं अपनी गवाही में दृढ़ रह सकूँ और कभी यहूदा बनकर उसे दगा न दूँ। प्रार्थना करने के बाद, परमेश्वर के ये वचन मेरे दिमाग में आए : “आस्था एक ही लट्ठे से बने पुल की तरह है : जो लोग हर हाल में जीवन जीने की लालसा से चिपके रहते हैं उन्हें इसे पार करने में परेशानी होगी, परन्तु जो आत्म बलिदान करने को तैयार रहते हैं, वे बिना किसी फ़िक्र के, मज़बूती से कदम रखते हुए उसे पार कर सकते हैं। अगर मनुष्य कायरता और भय के विचार रखते हैं तो ऐसा इसलिए है कि शैतान ने उन्हें मूर्ख बनाया है, उसे डर है कि हम आस्था का पुल पार कर परमेश्वर में प्रवेश कर जाएँगे(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 6)। परमेश्वर के वचनों से प्रेरित होकर, मुझे तुरंत अपने भीतर ताकत बढ़ने का एहसास हुआ, और मैंने महसूस किया कि मेरी कातरता और मृत्यु का डर शैतान द्वारा मेरे साथ किए गए खिलवाड़ का परिणाम था। सीसीपी मुझसे यह उम्मीद कर रही थी कि चूँकि मैं मरने से डर रही थी, इसलिए वह मुझे कलीसिया को बेचने और परमेश्वर को दगा देने वाला यहूदा बनने के लिए मजबूर करने के लिए क्रूर यातना देकर अपनी निरंकुश सत्ता के सामने झुका लेगी। मैं शैतान के कपट से भरे षड्यंत्र को किसी भी तरह सफल नहीं होने दे सकती थी, इसलिए मैंने फैसला किया कि मैं अपना जीवन देकर भी परमेश्वर के लिए अपनी गवाही में दृढ़ रहूँगी। इस समय पुलिस मुझे वैसे ही प्रताड़ित करती रही, लेकिन मुझे अब उतना डर नहीं लगा। मैं जान गई कि यह परमेश्वर है, जो मुझे अपनी दया और सुरक्षा दिखा रहा है, और मैंने उसके प्रति बहुत आभार महसूस किया।

दो पुलिसवालों ने तब मुझे वापस कुर्सी पर बाँध दिया और सख्ती से मुझसे फिर वही सवाल किए। मुझे फिर भी कोई जवाब न देते देखकर उन्होंने यातना बढ़ा दी। उन्होंने मेरी बाँहों को सीधा खींचा और फिर जबरन मेरे पीछे खींचकर ऊपर कर दिया। तुरंत ऐसा लगा जैसे वे चटकने वाली हों और इससे होने वाले दर्द ने मेरे पूरे शरीर को पसीने से तरबतर कर दिया; मैं अपनी चीख निकलने से नहीं रोक पाई। फिर उन्होंने मेरे पैर तब तक खींचे जब तक कि वे मेरे सिर के ऊपर नहीं हो गए, और फिर मेरे पैरों को विपरीत दिशाओं में खींचा। उनके चीरे जाने की-सी पीड़ा ने मुझे लगभग बेहोश कर दिया। अपने दिल में मैं बस परमेश्वर से प्रार्थना करती रही : “हे सर्वशक्तिमान परमेश्वर! कृपया मुझे विश्वास और शक्ति प्रदान कर और इस दर्द को सहने का संकल्प दे। तू मेरी आत्मा को शक्ति प्रदान करने वाला मेरा सच्चा सहायक बन। शैतानों का यह गिरोह मुझे यातना देने के लिए चाहे कैसे भी हथकंडे अपनाए, मैं तुझ पर भरोसा रखूँगी और अपनी गवाही में दृढ़ रहूँगी।” प्रार्थना के बाद मेरे मन में परमेश्वर के वचनों का एक भजन प्रकट हुआ :

परीक्षण माँग करते हैं आस्था की

1  परीक्षणों से गुजरते समय लोगों का कमजोर होना, या उनके भीतर नकारात्मकता आना, या परमेश्वर के इरादों या अपने अभ्यास के मार्ग के बारे में स्पष्टता का अभाव होना सामान्य है। चाहे जो हो, तुम्हें परमेश्वर के कार्य पर आस्था होनी चाहिए, परमेश्वर को नकारना नहीं चाहिए, बिल्कुल अय्यूब की तरह। यद्यपि अय्यूब कमजोर था और अपने जन्म के दिन को धिक्कारता था, फिर भी उसने इस बात से इनकार नहीं किया कि मनुष्य के जीवन में सभी चीजें यहोवा द्वारा प्रदान की गई हैं, और यहोवा ही उन सबको वापस लेने वाला है। उसे चाहे जिन परीक्षणों से गुजारा गया, उसने यह विश्वास बनाए रखा।

2  ... इस तरह से कार्य करके जिस चीज को वह पूर्ण बनाता है, वह है लोगों का विश्वास, प्रेम और अभिलाषाएँ। परमेश्वर लोगों पर पूर्णता का कार्य करता है, और वे इसे देख नहीं सकते, महसूस नहीं कर सकते; इन परिस्थितियों में तुम्हारा विश्वास आवश्यक होता है। लोगों का विश्वास तब आवश्यक होता है, जब कोई चीज खुली आँखों से न देखी जा सकती हो, और तुम्हारा विश्वास तब आवश्यक होता है, जब तुम अपनी धारणाएँ नहीं छोड़ पाते। जब तुम परमेश्वर के कार्य के बारे में स्पष्ट नहीं होते, तो तुमसे यही अपेक्षा की जाती है कि तुम आस्था बनाए रखो, दृढ़ रुख अपनाए रखो और अपनी गवाही में मजबूती से खड़े रहो। जब अय्यूब इस मुकाम पर पहुँचा, तो परमेश्वर उसे दिखाई दिया और उससे बोला। अर्थात्, केवल अपनी आस्था के भीतर से ही तुम परमेश्वर को देखने में समर्थ हो पाओगे, और जब तुम्हारे पास आस्था होगी तो परमेश्वर तुम्हें पूर्ण बनाएगा।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जिन्हें पूर्ण बनाया जाना है उन्हें शोधन से गुजरना होगा

परमेश्वर के वचनों ने मुझे बहुत विश्वास और शक्ति दी। मैंने उन गहन परीक्षणों के बारे में सोचा, जिनसे अय्यूब गुजरा था, जब उसका पूरा शरीर दर्दनाक फोड़ों से भर गया था और उसने भयानक दर्द सहा था। लेकिन अपने दर्द के बावजूद भी वह परमेश्वर के इरादे का का अनुसरण करने में सक्षम था; उसने अपनी ज़बान से गुनाह नहीं किया या परमेश्वर को अस्वीकार नहीं किया, बल्कि उसने परमेश्वर के आगे समर्पण किया और उसके पवित्र नाम का गुणगान किया। अय्यूब में परमेश्वर के लिए सच्चा विश्वास और उसका भय था, और इसीलिए वह परमेश्वर के लिए दृढ़ता से गवाही देने और शैतान को पूरी तरह से लज्जित और पराजित करने में सक्षम था—अंततः, परमेश्वर प्रकट हुआ और उससे बात की। अब जो विपत्ति और मुसीबतें मुझ पर आ पड़ी हैं, उनकी भी अनुमति परमेश्वर ने दी थी। हालाँकि मैं परमेश्वर का इरादा पूरी तरह से समझ नहीं पाई थी और मेरी देह में अत्यधिक दर्द हो रहा था, फिर भी परमेश्वरका ही कथन मेरे जीने या मरने के बारे में अंतिम था, और उसकी अनुमति के बिना पुलिस कभी मेरी जान नहीं ले सकती थी, चाहे वे मुझे कितना भी प्रताड़ित क्यों न करें। ये पुलिसकर्मी बाहर से क्रूर दिखते थे, लेकिन परमेश्वर के सामने वे सिर्फ कागजी शेर थे, परमेश्वर के हाथों के साधन मात्र थे। परमेश्वर मेरे विश्वास को सुदृढ़ बनाने के लिए उनकी क्रूरता और उत्पीड़न का इस्तेमाल कर रहा था। मैं अपने आपको पूरी तरह से उसके हाथों में सौंपना और शैतान पर जीत पाना चाहती थी, और अब मुझे पुलिसकर्मियों का कोई डर नहीं था। पुलिस ने मुझे बार-बार प्रताड़ित किया। मुझे अभी भी न बोलते देखकर पुलिसकर्मियों में से एक ने लगभग 50 सेंटीमीटर लंबा सफेद स्टील का एक रूलर उठाया और उससे मेरे चेहरे पर क्रूरतापूर्वक प्रहार करना शुरू कर दिया। मुझे नहीं पता कि उसने मुझे कितनी बार मारा; मेरा चेहरा सूज गया और दर्द से जलने लगा। मुझे बस मेरी आँखों के आगे तैरते तारे दिख रहे थे और मेरा सिर भन्ना रहा था। फिर दो पुलिसवालों ने मेरी जाँघों को कुचलने लिए अपने चमड़े के जूतों की एड़ी का इस्तेमाल किया। प्रत्येक आघात ने मुझे कष्टदायी पीड़ा से सराबोर कर दिया। अपने दुख में मैंने ईमानदारी से परमेश्वर को पुकारा और मन ही मन उससे अपनी रक्षा करने के लिए कहा, ताकि मैं सीसीपी पुलिस द्वारा मुझे दी जा रही क्रूर यातना से पार पा सकूँ।

अगली सुबह 8 बजे क्रिमिनल पुलिस ब्रिगेड का प्रमुख पूछताछ कक्ष में दाखिल हुआ। यह जानकर कि पुलिस मुझसे कोई जानकारी हासिल नहीं कर सकी, उसने उग्रता से कहा, “तुम बोलने से मना कर रही हो, है ना? हम्म! तुम्हारा इंतज़ाम तो हम कर ही लेंगे!” और फिर वह चला गया। उस दोपहर एक मोटा अफसर हाथ में एक आईडी कार्ड लिए मेरे पास आया और बोला, “क्या तुम इस महिला को जानती हो?” मैंने देखते ही पहचान लिया कि वह मेरे ही गाँव की एक कलीसियाई बहन थी। मैंने मन में सोचा : “कुछ भी हो, मुझे अपनी बहन से दगा नहीं करना है।” इसलिए मैंने जवाब दिया, “नहीं, मैं इसे नहीं जानती।” उसकी आँखें सिकुड़ गईं और उसने मेज़ पर पड़ा बिजली के झटके देने वाला एक डंडा उठा लिया। उसे मेरे चेहरे के सामने लहराकर वह मुझे धमकी देते हुए बोला, “तुम बहुत अड़ियल हो। हम जानते हैं कि तुम कलीसियाई अगुआ हो, इसलिए सब उगल दो! तुम्हारे कलीसिया में कितने सदस्य हैं? कलीसिया का पैसा कहाँ है? अगर तुम मुझे नहीं बताओगी, तो मैं तुम्हें बिजली के इस डंडे का स्वाद चखाऊँगा!” उस पुलिसकर्मी का दुष्ट चेहरा देखकर मुझे बहुत डर लगा और जल्दी से मैंने परमेश्वर से एक मौन प्रार्थना की। तभी परमेश्वर के ये वचन मेरे ज़ेहन में आए : “डरो मत, सेनाओं का सर्वशक्तिमान परमेश्वर निश्चित रूप से तुम्हारे साथ होगा; वह तुम लोगों के पीछे खड़ा है और तुम्हारी ढाल है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 26)। परमेश्वर के अधिकारसंपन्न वचनों ने मुझे विश्वास और शक्ति दी और मुझे तुरंत लगा, जैसे मेरे पास कोई है, जिस पर मैं भरोसा कर सकती हूँ। मैंने मन में सोचा : “परमेश्वर सर्वशक्तिमान है, शैतान व दानव कितने भी क्रूर क्यों न हों, क्या वे भी परमेश्वर के हाथों में ही नहीं हैं? सर्वशक्तिमान परमेश्वर मेरा सच्चा सहायक है, इसलिए मुझे किसी से डरने की जरूरत नहीं!” इसलिए मैंने शांति से जवाब दिया, “मुझे कुछ नहीं पता।” मोटे पुलिसवाले ने दुर्भावना से कहा, “कुछ न जानने वाले को यह मिलता है!” और यह कहकर उसने बिजली का डंडा मेरी हथकड़ी से छुआ दिया, जिससे बिजली के जबरदस्त झटके की एक असहनीय दर्दनाक लहर मेरे पूरे शरीर में दौड़ गई—अवर्णनीय थी वह यातना। पुलिसवाला मुझे बिजली के डंडे से झटके देता रहा, और जब वह मेरी बरदाश्त से बाहर हो गया, तभी एक चमत्कार हुआ : उसकी बिजली चली गई! मैंने परमेश्वर की सर्वशक्तिमत्ता और संप्रभुता के दर्शन किए, और इससे भी बढ़कर, मैंने इस तथ्य का अनुभव किया कि परमेश्वर हमेशा मेरे साथ है, मुझ पर नज़र रखे हुए है, मेरी रक्षा कर रहा है, और मेरी कमज़ोरी का ध्यान रख रहा है। मेरा विश्वास बढ़ गया और परमेश्वर की गवाही देने का मेरा संकल्प दृढ़ हो गया।

पुलिस ने बाद में देखा कि मैं अभी भी बात नहीं कर रही, तो वह बारी-बारी से दो लोगों की पारी में मुझ पर नज़र रखने लगी। वे मुझे खाने, पीने, यहाँ तक कि सोने भी नहीं देते थे। जैसे ही मैं ऊँघने लगती, वे इस उम्मीद में मुझे पीटने और ठोकरें मारने लगते कि इससे मेरा संकल्प टूट जाएगा। किंतु परमेश्वर ने उनकी शातिर योजना समझने में मेरा मार्गदर्शन किया। मैंने चुपचाप परमेश्वर से प्रार्थना की, मन ही मन भजन गाया और परमेश्वर के वचनों का चिंतन किया, और कुछ ही क्षणों में मेरा उत्साह जाग उठा। दूसरी ओर वे पुलिसकर्मी लगातार कॉफी पी रहे थे और फिर भी इतने थके हुए थे कि जम्हाई लेते जा रहे थे। उनमें से एक ने हैरानी से कहा, “इसके पास अवश्य ही कोई जादुई शक्ति है, जो इसे टिकाए हुए है, वरना इसे इतनी ताकत कहाँ से मिलती?” पुलिसवाले को यह कहते सुनकर मैं बार-बार परमेश्वर की महान सामर्थ्य की प्रशंसा करने लगी, क्योंकि अपने दिल में मुझे अच्छी तरह से पता था कि यह सब परमेश्वर के वचनों के मार्गदर्शन की बदौलत था, और यह परमेश्वर की अपनी जीवन-शक्ति थी जो मुझे सँभाले हुए थी और मुझे विश्वास और शक्ति प्रदान कर रही थी। भले ही मुझे नहीं पता था कि पुलिस के पास मेरे लिए और किस तरह की क्रूर यातनाएँ मौजूद हैं, लेकिन मेरे पास भावी पूछताछ का सामना करने के लिए ईश्वर पर निर्भर रहने का विश्वास था, और मैंने संकल्प लिया : मैं कभी भी सीसीपी सरकार की निरंकुश सत्ता के सामने झुकूँगी नहीं करूँगी, बल्कि परमेश्वर की अपमी गवाही में दृढ़ रहूँगी!

तीसरे दिन शाम को क्रिमिनल पुलिस ब्रिगेड के प्रमुख ने मुझे एक कप गर्म पानी पिलाया और चिंता का दिखावा करते हुए बोला, “अब बेवकूफ न बनो। कोई दूसरा तुम्हारे साथ पहले ही दगा कर चुका है, इसलिए दूसरे लोगों की खातिर यह सब झेलने में क्या रखा है? बस, तुम मुझे वह सब बता दो, जो तुम जानती हो, और मैं वादा करता हूँ कि तुम्हें जाने दूँगा। तुम्हारा बेटा अभी छोटा है और उसे माँ के प्यार की ज़रूरत है। तुम्हारा जीवन बेहतर हो सकता है, और तुम हो कि उसे किसी परमेश्वर पर विश्वास करके बर्बाद कर रही हो! परमेश्वर तुम्हें नहीं बचा सकता, जबकि हम बचा सकते हैं। हम तुम्हें किसी भी कठिनाई में मदद कर सकते हैं, और यहाँ से बाहर निकलने पर हम तुम्हें एक अच्छी नौकरी पाने में मदद कर सकते हैं...।” उसकी बात सुनकर मैं अपने नन्हे बेटे के बारे में सोचे बिना नहीं रह सकी कि मेरी गिरफ्तारी के बाद से वह किस हाल में होगा। क्या मेरे अविश्वासी मित्र और रिश्तेदार उसका मजाक उड़ा रहे होंगे? क्या स्कूल में उसके सहपाठी उसे धमकाते होंगे? जैसे ही मैं कमज़ोर पड़ने लगी, परमेश्वर ने मुझे अपने वचनों के एक अंश से प्रबोधन दिया : “तुम लोगों को जागते रहना चाहिए और हर समय प्रतीक्षा करनी चाहिए, और तुम लोगों को मेरे सामने अधिक बार प्रार्थना करनी चाहिए। तुम्हें शैतान की विभिन्न साजिशों और चालाक योजनाओं को पहचानना चाहिए, आत्माओं को पहचानना चाहिए, लोगों को जानना चाहिए और सभी प्रकार के लोगों, घटनाओं और चीजों को समझने में सक्षम होना चाहिए ...(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 17)। परमेश्वर के वचनों से प्रेरित होकर मुझे यह स्पष्ट एहसास हुआ कि शैतान मेरे परिवार के लिए मेरे स्नेह का उपयोग कर मुझे परमेश्वर के साथ विश्वासघात करने के लिए फुसला रहा है। शैतान जानता था कि मैं अपने बेटे से सबसे ज्यादा प्यार करती हूँ, और वह मुझ पर हमला करने और मुझे ललचाने के लिए, और मेरे बेटे के प्यार को कारण बनाकर मुझसे मेरे भाई-बहनों से दगा करवाने के लिए, पुलिस को अपने प्रवक्ता के रूप में इस्तेमाल कर रहा था। मैं तब परमेश्वर से विश्वासघात करने वाला यहूदा बन जाती, जिसे अंततः शापित होकर परमेश्वर द्वारा दंडित होना होगा—शैतान इतना कपटी और दुर्भावनापूर्ण है! मैंने इस बारे में सोचा कि मैं अपने बेटे की देखभाल करने के लिए उसके पास क्यों नहीं थी, क्या यह सब इसलिए नहीं था क्योंकि सीसीपी पागलों की तरह ईसाइयों को गिरफ्तार करती और सताती है? और फिर भी पुलिस कह रही थी कि ऐसा इसलिए है, क्योंकि मैं परमेश्वर में विश्वास करती हूँ। यह कहकर क्या वे सच्चाई का गला नहीं घोट नहीं रहे थे और तथ्यों को विकृत नहीं कर रहे थे? सीसीपी कितनी बेशर्म और दुष्ट है! और इसलिए, उस पुलिसकर्मी की बातों पर मैंने कोई ध्यान नहीं दिया। यह देखकर कि मैं न तो गाजर दिखाकर ललचाई जा सकती हूँ, न छड़ी दिखाकर डराई जा सकती हूँ, वह गुस्से से झुँझलाता हुआ चला गया। परमेश्वर के मार्गदर्शन और सुरक्षा के तहत मैं एक बार फिर शैतान के प्रलोभन से जीत गई।

उस रात 8 बजे थे, वह मोटा पुलिसकर्मी हाथ में एक बड़ा बिजली का डंडा लिए लौटा। तीन मातहत उसके पीछे चले आ रहे थे। वे मुझे एक जिम में ले गए और मेरे कपड़े उतार दिए (सिर्फ अंडरवियर छोड़कर), फिर मुझे एक रस्सी से एक ट्रेडमिल के साथ बाँध दिया। उनके एक से बढ़कर एक दुष्ट चेहरे देखकर मैं बहुत ज्यादा भयभीत और असहाय महसूस करने लगी। मैं कुछ नहीं समझ पा रही थी कि वे आगे मुझे क्या क्रूर यातना देने वाले थे और कब तक देने वाले थे। मैं उस क्षण इतना कमज़ोर महसूस करने लगी कि मुझे मृत्यु के विचार आने लगे। लेकिन तुरंत ही मुझे एहसास हो गया कि ये विचार गलत हैं, और इसलिए मैंने जल्दी से प्रार्थना की और परमेश्वर से कहा : “हे सर्वशक्तिमान परमेश्वर! तुम मेरे दिल को जानते हो, मैं एक यहूदा नहीं बनना चाहती, जो तुम्हें धोखा देता है और इतिहास में एक गद्दार के रूप में याद किया जाता है। लेकिन मेरा आध्यात्मिक कद इतना छोटा है, और मैं इस यातना के सामने खुद को इतना दुखी और कमज़ोर महसूस कर रही हूँ—मुझे डर है कि मैं इसे बरदाश्त नहीं कर पाऊँगी और तुम्हारे साथ विश्वासघात कर बैठूँगी। हे परमेश्वर! कृपया मेरी रक्षा करो और मुझे विश्वास और शक्ति प्रदान करो। कृपया मेरे साथ रहो, मेरा मार्गदर्शन करो और मुझे राह दिखाओ, और मुझे इस क्रूर यातना के मध्य दृढ़ता से गवाही देने की क्षमता प्रदान करो।” प्रार्थना करने के बाद मैंने परमेश्वर के वचनों के बारे में सोचा, जिनमें कहा गया है : “इन अंत के दिनों में तुम लोगों को परमेश्वर की गवाही देनी चाहिए। चाहे तुम्हारे कष्ट कितने भी बड़े क्यों न हों, तुम्हें बिल्कुल अंत तक चलना चाहिए, यहाँ तक कि अपनी अंतिम साँस पर भी तुम्हें परमेश्वर के प्रति निष्ठावान और उसके आयोजनों के प्रति समर्पित होना चाहिए; केवल यही वास्तव में परमेश्वर से प्रेम करना है, और केवल यही सशक्त और जोरदार गवाही है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पीड़ादायक परीक्षणों के अनुभव से ही तुम परमेश्वर की मनोहरता को जान सकते हो)। परमेश्वर के वचनों से मुझे आराम और प्रोत्साहन मिला। उनसे मैं यह समझ सकी कि परमेश्वर मुझे यह क्रूर यातना दिए जाने की अनुमति इसलिए दे रहा था, ताकि मेरे भीतर सच्चा विश्वास और प्रेम उत्पन्न हो सके, जिससे मैं अपने दुखों के दौरान परमेश्वर के प्रति वफादार रह सकूँ, और परमेश्वर के आयोजनों और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पित हो सकूँ, और चाहे कितनी भी कड़ी आजमाइश और कितना भी भयंकर दर्द क्यों न हो, परमेश्वर के वचनों पर भरोसा कर अपनी दृढ़ गवाही दे सकूँ। परमेश्वर का इरादा समझते ही मेरे भीतर शैतान से कष्टों के अंत तक लड़ने का साहस और दृढ़ निश्चय पैदा हो गया, और मैंने यह संकल्प किया : चाहे मुझे अभी कितनी भी यातना से क्यों न गुजरना पड़े, मैं जीवित रहूँगी, और चाहे मेरा दुःख कितना भी बड़ा क्यों न हो जाये, मैं अपनी आखिरी साँस तक परमेश्वर का अनुसरण करूँगी! तभी मोटा पुलिसवाला, जो अपने मुँह में एक सिगरेट लटकाए हुए था, बोला, “तुम बोलोगी या नहीं?” मैंने दृढ़तापूर्वक उत्तर दिया, “तुम मुझे पीट-पीटकर चाहे मार ही क्यों न डालो, पर मुझे तब भी कुछ नहीं पता होगा।” आवेश में आकर उसने अपनी सिगरेट फर्श पर फेंक दी और गुस्से से आगबबूला होकर बिजली का डंडा बार-बार मेरी पीठ और जाँघों पर लगाने लगा। भयंकर दर्द से मेरा पूरा शरीर ठंडे पसीने से तरबतर हो गया, और मैं बस कातरता से बिलखती रही। बिजली का डंडा मेरे भीतर घुसाते हुए वह दहाड़ा, “न बोलने का यह फल मिलता है! मैं तुम्हें चीखने पर मजबूर कर दूँगा! हम देखंगे कि तुम कब तक टिकती हो!” कमरे में किनारे खड़े अफसर ठहाके मारकर हँस पड़े और बोले, “तुम्हारा परमेश्वर तुम्हें बचाने के लिए क्यों नहीं आया?” उन्होंने परमेश्वर की निंदा करने वाली और भी बहुत-सी बातें कहीं। उनके शैतानी चेहरे देखकर मैंने परमेश्वर से विश्वास और शक्ति प्रदान करने का आग्रह किया, ताकि मैं दर्द सहन कर सकूँ और शैतान के चेहरे से वह मुस्कान मिटा सकूँ। प्रार्थना करने के बाद मैंने अपना मुँह कसकर बंद कर लिया और उनके बहुत सताने पर भी कोई और आवाज़ न करने का निर्णय लिया। वे मुझे लगातार बिजली के झटके दे रहे थे। जब एक बिजली के डंडे की बिजली खत्म हो जाती, तो वे उसे बदलकर दूसरा डंडा ले लेते। वे मुझे तब तक यातना देते रहे, जब तक कि मेरा दिमाग नहीं चकराने लगा और मृत्यु जीवन से बेहतर नहीं लगने लगी। मैं ज़रा भी हिल-डुल नहीं सकती थी और उन्होंने सोचा कि मैं बेहोश हो गई हूँ। उन्होंने मुझे होश में लाने के लिए मेरे ऊपर ठंडा पानी फेंका और फिर मुझे बिजली के झटके देना जारी रखा। अपने दर्द में मैंने परमेश्वर के वचनों के बारे में सोचा, जिनमें कहा गया है : “यह सहअपराधियों का गिरोह! वे भोग में लिप्त होने के लिए मनुष्यों के देश में उतरते हैं और हंगामा करते हैं, और चीज़ों में इतनी हलचल पैदा कर देते हैं कि दुनिया एक चंचल और अस्थिर जगह बन जाती है और मनुष्य का दिल घबराहट और बेचैनी से भर जाता है ... वे धरती पर संप्रभु सत्ता ग्रहण करना चाहते हैं। वे परमेश्वर के कार्य को इतना बाधित करते हैं कि वह मुश्किल से बहुत धीरे आगे बढ़ पाता है, और वे मनुष्य को इतना कसकर बंद कर देते हैं, जैसे कि तांबे और इस्पात की दीवारें हों। इतने सारे गंभीर पाप करने और इतनी आपदाओं का कारण बनने के बाद भी क्या वे ताड़ना के अलावा किसी अन्य चीज की उम्मीद कर रहे हैं? राक्षस और बुरी आत्माएँ काफी समय से पृथ्वी पर अंधाधुंध विचरण कर रही हैं, और उन्होंने परमेश्वर के इरादों और कष्टसाध्य प्रयास दोनों को इतना कसकर बंद कर दिया है कि वे अभेद्य बन गए हैं। सचमुच, यह एक घातक पाप है! ऐसा कैसे हो सकता है कि परमेश्वर चिंतित महसूस न करे? परमेश्वर कैसे क्रोधित महसूस न करे? उन्होंने परमेश्वर के कार्य में गंभीर बाधा पहुँचाई है और उसका घोर विरोध किया है : कितने विद्रोही हैं वे! यहाँ तक कि वे छोटे-बड़े राक्षस भी शेर के पीछे चलते गीदड़ों जैसा व्यवहार करते हैं और बुराई की धारा में बहते हैं, और चलते हुए गड़बड़ी पैदा करते हैं। सत्य को जानने के बावजूद उसका जानबूझकर विरोध करते हैं, ये विद्रोह के बेटे!(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, कार्य और प्रवेश (7))। परमेश्वर के वचनों के प्रबोधन से मैं सीसीपी सरकार का असली चेहरा स्पष्टता से देख पाई। वह सत्य और परमेश्वर से पूरी तरह नफरत करती है और सर्वशक्तिमान परमेश्वर के चारों ओर फैलते वचनों से आतंकित है। वह परमेश्वर के राज्य के सुसमाचार को फैलने से रोकने के लिए वह सब-कुछ करती है, जो वह कर सकती है। परमेश्वर के चुने हुए बंदों को गिरफ्तार करने, यातना देने और उनके साथ नृशंसता बरतने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ती वह अंत के दिनों के परमेश्वर के कार्य को नष्ट कर देना चाहती है, वह लोगों को परमेश्वर पर विश्वास करने और उसका अनुसरण करने से रोकने तथा चीन को नास्तिक क्षेत्र में बदलने की कोशिश करती है, जिससे वह चीनी लोगों को हमेशा के लिए नियंत्रित करने का अपना पागलपन से भरा उद्देश्य हासिल कर सके। भले ही सीसीपी बाहरी दुनिया में यह ढिंढोरा पीटती है कि वहाँ “विश्वास की स्वतंत्रता” है और “चीन के नागरिकों को कानूनी अधिकार प्राप्त हैं,” वास्तव में ये सब लोगों को धोखा देने, ठगने और बहकाने के लिए बोले गए राक्षसी शब्द और उसके शैतानी तरीकों को छिपाने की चालें हैं! सीसीपी विकृत रूप से व्यवहार करती है और स्वर्ग के विपरीत कार्य करती है, और उसका सार वही है, जो परमेश्वर के दुश्मन शैतान का है! ठीक उसी क्षण मैंने एक संकल्प मन ही मन किया : मुझे अपने लिए परमेश्वर द्वारा चुकाया गया श्रमसाध्य मूल्य व्यर्थ नहीं जाने देना है; मुझमें दृढ़ संकल्प और विवेक होना चाहिए, और चाहे मुझे अभी और भी क्रूर यातना क्यों न सहनी पड़े, मैं हमेशा परमेश्वर की दृढ़ गवाही दूँगी। तभी मेरे भीतर न्याय और धार्मिकता की भावना जाग उठी, और मैंने महसूस किया कि परमेश्वर मेरे साथ है और मुझे शक्ति प्रदान कर रहा है। इसके बाद पुलिसकर्मियों द्वारा मुझे कितने भी बिजली के झटके दिये जाने पर भी मुझे कोई दर्द महसूस नहीं हुआ। मैंने एक बार फिर परमेश्वर के चमत्कारी कर्म देखे थे; मैं परमेश्वर की उपस्थिति से पूरी तरह अवगत हो गई, यह परमेश्वर था, जो मेरी रक्षा कर रहा था और मुझ पर नज़र रखे हुए था। पुलिसकर्मियों ने मुझे चार घंटे तक प्रताड़ित किया, लेकिन फिर भी मुझसे कोई जानकारी हासिल नहीं कर सके। अब उनके पास मुझे ट्रेडमिल से खोलने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। मेरे शरीर में रत्ती भर भी ताकत नहीं बची थी, मैं नीचे फर्श पर गिर गई। दो पुलिसकर्मी मुझे खींचकर वापस पूछताछ कक्ष में ले गए और मुझे एक कुर्सी पर डालकर, सेंट्रल हीटिंग पाइप से हथकड़ी लगाकर बांध दिया। उन्हें इतना निराश देखकर मैं स्वयं को परमेश्वर को धन्यवाद देने और उसकी प्रशंसा करने से नहीं रोक पाई : “हे सर्वशक्तिमान परमेश्वर! मैंने तुम्हारी सर्वशक्तिमत्ता और संप्रभुता अनुभव कर ली है, और मैं देखती हूँ कि तुम्हारे वचन अन्य सभी ताकतों को हरा सकते हैं। परमेश्वर का धन्यवाद!”

चौथे दिन पाँच पुलिसकर्मी पूछताछ कक्ष में आए। उनमें से एक ने एक बिजली का डंडा लिया हुआ था, जिसमें से बिजली से चट-चट की आवाज़ निकल रही थी। भयानक नीली रोशनी फेंकने वाले उस डंडे को देखने से बर्बर यातना के दिनों ने मुझे आतंक से भर दिया था। एक अफसर, जिसने मुझसे पहले पूछताछ नहीं की थी, आया और मेरे सामने खड़ा हो गया। उसने मुझ पर बिजली का डंडा गड़ाते हुए कहा, “सुना है, तुम बहुत सख़्त जान हो। आज मैं देखूँगा कि असल में तुममें कितना दम है। मैं नहीं मानता कि हम तुम्हें नहीं तोड़ सकते। तुम ज़बान खोलोगी या नहीं? अगर नहीं, तो आज ही तुम अपना अंत देखोगी!” मैंने उत्तर में कहा, “मुझे कुछ नहीं पता।” इससे वह गुस्से से भड़क गया, वह मुझे कुर्सी से घसीटकर फर्श पर ले आया और वहीं पकड़े रहा। एक अन्य पुलिसकर्मी ने मेरी कमीज़ में बिजली का डंडा घुसाया और पीठ पर बिजली का झटका देते हुए चिल्लाया, “तुम बोलोगी या नहीं? अगर नहीं, तो हम तुम्हें मार डालेंगे!” उनकी क्रूरता और घिनौने, कपटपूर्ण चेहरे देखकर मैं आतंक की स्थिति में फिसले बिना नहीं रह सकी, और जल्दी से मैंने परमेश्वर से कहा : “हे सर्वशक्तिमान परमेश्वर! कृपया मुझे सच्चा विश्वास और शक्ति प्रदान करो...।” पुलिस मुझे बिजली के झटके देती रही और मैं लगातार दर्द में चिल्लाती रही। ऐसा लगा, जैसे मेरे शरीर का सारा रक्त मेरे सिर की ओर दौड़ रहा है, और इससे मुझे इतनी तकलीफ़ हो रही थी कि मैं पसीने से भीग गई और लगभग बेहोश हो गई। यह देखकर कि मैं अभी भी बोल नहीं रही, पुलिस ने मुझे गुस्से से कोसना शुरू कर दिया। थोड़ी देर बाद जब मैं बेहोश होने के कगार पर थी, उन्होंने मुझे फिर से खींचकर कुर्सी पर बैठा दिया और हथकड़ी डाल दी, जिसके बाद उनमें से दो पुलिसवाले यह सुनिश्चित करने के लिए बारी-बारी से मुझ पर नज़र रखने लगे कि मैं सो न जाऊँ। उस समय तक मैंने चार दिनों और रातों से कुछ नहीं खाया था, पानी भी नहीं पीया था, न सो ही पाई थी। इसके साथ ही जो क्रूर यातना वे मुझे दे रहे थे, उसकी वजह से मेरा शरीर सबसे कमज़ोर स्थिति में पहुँच गया था। मैं ठंडी और भूखी थी, और भूखे रहने तथा ठंड से जमने, दोनों के दर्द मेरे घायल शरीर के तीव्र दर्द के साथ जुड़ गए—मुझे लगा, जैसे मेरे जीवन का अंत आ गया हो। अपनी अत्यंत कमज़ोर अवस्था में मेरे मन में परमेश्वर के वचनों की एक पंक्ति प्रकट हुई : “मनुष्य केवल रोटी ही से नहीं, परन्तु हर एक वचन से जो परमेश्वर के मुख से निकलता है, जीवित रहेगा(मत्ती 4:4)। इस बात पर विचार करते हुए मैं समझ गयी कि केवल परमेश्वर के वचन ही इस तरह की स्थिति में जीते रहने में मेरी सहायता कर सकते हैं, साथ ही मुझे यह भी महसूस हुआ कि परमेश्वर ठीक इसी स्थिति के जरिए सत्य के इस पहलू में मेरा मार्गदर्शन कर रहा है। जब मैंने इस पर बार-बार विचार किया, तो मैं अनजाने ही अपनी पीड़ा, भूख और ठंड के बारे में सब-कुछ भूल गई।

पाँचवें दिन पुलिस ने जब देखा कि मैं दृढ़ता के साथ खामोश बनी हुई हूँ, तो मुझे दुर्भावनापूर्ण तरीके से धमकाते हुए कहने लगी, “तुम बस तब तक इंतज़ार करो, जब तक अदालत तुम्हें सज़ा नहीं सुनाती। तुम्हें कम से कम सात साल की सज़ा तो मिलेगी ही, पर अभी भी एक मौका है उससे बचने का, बशर्ते तुम अभी बोलना शुरू कर दो!” मैंने तब चुपचाप परमेश्वर से प्रार्थना की : “सर्वशक्तिमान परमेश्वर! सीसीपी पुलिस का कहना है कि वे मुझे सात साल के लिए जेल भेज देंगे, लेकिन मुझे पता है कि उनका कहा अंतिम नहीं है, क्योंकि मेरा भाग्य तुम्हारे हाथों में है। परमेश्वर! मैं अपना बाकी पूरा जीवन कैद में बिता लूँगी और सच्चे रास्ते पर चलती रहूँगी, पर तुम्हें कभी धोखा नहीं दूँगी!” इसके बाद पुलिस ने मेरे अविश्वासी पति को सामने लाकर मुझे परमेश्वर को धोखा देने के लिए फुसलाने की कोशिश की। जब उन्होंने मुझे हथकड़ी पहने हुए देखा और मेरे पूरे शरीर पर घाव और नील पड़े देखे, तो दुखी होकर कहा, “मैंने अभी तक केवल टीवी पर ही हथकड़ी देखी थी। मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं उन्हें तुम्हारे हाथों पर देखूँगा।” उन्हें यह कहते सुनकर और उनके व्यथित भावों को देखकर मैंने जल्दी से परमेश्वर से प्रार्थना कर अपनी रक्षा करने के लिए कहा, ताकि मैं अपने परिवार के प्रति अपने मोह के कारण शैतान के फंदे में न फँस जाऊँ। प्रार्थना कर लेने के बाद मैंने शांतिपूर्वक अपने पति से कहा, “मैं परमेश्वर में विश्वास करती हूँ, मैं चोरी नहीं करती और न लोगों को लूटती हूँ। मैं सिर्फ सभाओं में जाती हूँ और परमेश्वर के वचन पढ़ती हूँ। मैंने कोई जुर्म नहीं किया, पर वे मुझे जेल भेजना चाहते हैं।” मेरे पति ने जवाब दिया, “मैं तुम्हारे लिए एक वकील ढूँढूँगा।” यह देखकर कि मेरे पति मुझसे कलीसिया और मेरे भाई-बहनों के बारे में जानकारी दिलवाने की कोशिश नहीं कर रहे, उलटे मेरे लिए वकील करने की पेशकश कर रहे हैं, पुलिसकर्मी उन्हें कमरे से बाहर खींच ले गए। मैं जानती थी कि परमेश्वर मेरी रक्षा कर रहा था, क्योंकि मेरे परिवार के लिए मेरा मोह बहुत गहरा था और अगर मेरे पति ने मेरी शारीरिक स्थिति के बारे में चिंता दर्शाने वाली कोई बात कही होती, तो पता नहीं, मैं मजबूत रह पाती या नहीं। यह परमेश्वर का मार्गदर्शन और संरक्षण था, जिसने मुझे शैतान के प्रलोभन पर विजय पाने में सक्षम बनाया। जब पुलिसवालों ने देखा कि मैं उनके फंदे में नहीं फँस रही हूँ, तो गुस्से से आगबबूला होते हुए बोले, “हम तुम्हें एक मिनट में एक इंजेक्शन देंगे, जो तुम्हें पागल कर देगा। फिर हम तुम्हें जाने देंगे। अगर तुम मरना भी चाहोगी तो मर नहीं पाओगी और ठीक से अपनी जिंदगी नहीं जी पाओगी!” इसने मुझे तुरंत घबराहट की स्थिति में डाल दिया, और आतंक ने मुझे एक बार फिर जकड़ लिया। मैंने सोचा कि सीसीपी सरकार कितनी क्रूर और दुष्ट है : अगर वे कलीसिया के प्रभारी किसी व्यक्ति को गिरफ्तार कर लेते हैं, और क्रूर पिटाई और यातना के बाद भी कलीसिया के बारे में उनसे कुछ नहीं हासिल कर पाते, तो वे उन्हें जबरन ड्रग्स का इंजेक्शन देते हैं जो उन्हें पागल कर देता है और उन्हें विखंडित मानसिकता का शिकार बना देता है—कुछ भाई-बहनों को सीसीपी द्वारा इस तरह से क्रूरतापूर्वक नुकसान पहुँचाया गया है। इस विचार से मेरा दिल मेरी छाती में ज़ोरों से धड़कने लगा, और मैंने सोचा : “क्या वाकई मुझे सीसीपी के इन चापलूसों द्वारा तब तक तड़पाया जाएगा, जब तक मेरा दिमाग खराब नहीं हो जाता, क्या मैं पागल की तरह यहाँ-वहाँ भटकती फिरूँगी?” जितना ज़्यादा मैंने इस बारे में सोचा, उतना ज़्यादा मैं डर गई, और मेरा शरीर ठंडे पसीने से भीग गया। मैंने जल्दी से प्रार्थना की और परमेश्वर को पुकारा : “सर्वशक्तिमान परमेश्वर! सीसीपी के नौकर मुझे पागल करने के लिए ड्रग्स का इंजेक्शन देना चाहते हैं, मुझे डर है कि मैं पागल हो जाऊँगी। परमेश्वर! मैं अभी बहुत भयभीत महसूस कर रही हूँ। परमेश्वर! कृपया मेरे हृदय की रक्षा करो, और मुझे सच्चा विश्वास प्रदान करो, ताकि मैं तुम्हारे आयोजनों और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पित हो सकूँ।” ठीक तभी प्रभु यीशु के वचन मेरे ख़्याल में आए : “जो शरीर को घात करते हैं, पर आत्मा को घात नहीं कर सकते, उनसे मत डरना; पर उसी से डरो, जो आत्मा और शरीर दोनों को नरक में नष्‍ट कर सकता है(मत्ती 10:28)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे विश्वास और शक्ति दी। मैंने सोचा, “हाँ, ये शैतान मेरी हत्या करने और मेरे शरीर को नष्ट-भ्रष्ट करने में सक्षम हो सकते हैं, पर ये मेरी आत्मा की हत्या और उसे नष्ट-भ्रष्ट नहीं कर सकते। परमेश्वर की अनुमति के बिना मैं पागल नहीं होऊँगी, भले ही वे मुझे ड्रग्स का इंजेक्शन ही क्यों न दे दें।” मैंने तब परमेश्वर के वचनों के बारे में सोचा, जिनमें कहा गया है : “जब लोग अपने जीवन का त्याग करने के लिए तैयार होते हैं, तो हर चीज तुच्छ हो जाती है, और कोई उन्हें हरा नहीं सकता। जीवन से अधिक महत्वपूर्ण क्या हो सकता है? इस प्रकार, शैतान लोगों में आगे कुछ करने में असमर्थ हो जाता है, वह मनुष्य के साथ कुछ भी नहीं कर सकता(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, “संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचनों” के रहस्यों की व्याख्या, अध्याय 36)। जैसे ही मैंने परमेश्वर के वचनों पर विचार किया, तो गहराई से महसूस हो रहा डर धीरे-धीरे गायब हो गया और मुझे अब वह आतंक महसूस नहीं हो रहा था। इसके बजाय, चाहे मैं जीवित रहूँ या मर जाऊँ, चाहे मैं पागल हो जाऊँ या सामान्य रहूँ, मैं अपने आप को परमेश्वर के हाथों में रखने और परमेश्वर की संप्रभुता के प्रति समर्पण करने के लिए तैयार थी। तभी एक पुलिसकर्मी एक सुई और ड्रग ले आया और मुझे धमकाते हुए बोला, “तुम बोलोगी या नहीं? अगर नहीं बोलोगी, तो मैं तुम्हें यह इंजेक्शन लगा दूँगा!” बिना किसी डर के, मैंने कहा, “तुम जो चाहो, सो करो। जो भी होगा, उसके ज़िम्मेदार तुम होगे।” मुझे भयभीत न देखकर उसने क्रूरता से कहा, “जाओ, एड्स के वायरस वाला इंजेक्शन ले आओ! हम इसे वही लगाएँगे।” चूँकि मैंने फिर भी कोई डर नहीं दिखाया, इसलिए वह गुस्से से दाँत पीसते हुए बोला, “कुतिया, तू बहुत ही सख़्त जान है!” फिर उसने सुई मेज पर फेंक दी। उसकी यह बात सुनकर मुझे बड़ी खुशी हुई। यह देखकर कि परमेश्वर के वचनों ने किस तरह एक बार फिर शैतान को नीचा दिखाने में मेरा मार्गदर्शन किया, मैं परमेश्वर के प्रति कृतज्ञता भरी प्रार्थना किए बिना नहीं रह पाई। अंत में पुलिस ने महसूस किया कि वे मुझसे जो जानकारी चाहते हैं, उसे प्राप्त नहीं कर पाएँगे, इसलिए वे उदास होकर चले गए।

जब सभी पत्ते खेल कर भी कोई फ़ायदा नहीं हुआ तो पुलिस सिवाय मुझे नज़रबंदी गृह भेजने के कुछ नहीं कर पाई। मेरे वहाँ पहुँचते ही जेल के पहरेदारों ने अन्य कैदियों को उकसाते हुए कहा, “यह पूर्वी प्रकाश में विश्वास करती है। इसका ‘गर्मजोशी से स्वागत’ करो!” इससे पहले कि मुझे प्रतिक्रिया तक जाहिर करने का मौका मिल पाता, कई कैदी मेरी ओर बढ़े और मुझे खींचकर शौचालय में ले गए और फिर मेरे कपड़े उतारने के बाद मुझे चिलचिलाते ठंडे पानी से नहलाने लगे। उन्होंने मेरे ऊपर मटका भर-भरकर ठंडा पानी डाला, और मुझे इतनी ठंड लगी कि मैं बुरी तरह काँपने लगी। मैं अपना सिर हाथों में दबाकर फर्श पर बैठ गई, और अपने दिल में बार-बार परमेश्वर को पुकारने लगी। कुछ समय बाद एक महिला कैदी ने कहा, “ठीक है, ठीक है, इतना काफी है। इसे बीमार मत पड़ने देना।” मुझे यातना देने वाले कैदी तभी रुके, जब उन्होंने उस महिला कैदी को ऐसा कहते सुना। जब उस महिला को पता चला कि मैंने पाँच दिनों में कुछ भी नहीं खाया, तो रात के खाने के समय उसने मुझे भाप में पकी आधी रोटी दी। मैं अच्छी तरह से जानती थी कि मेरी कमजोरी के प्रति परमेश्वर की विचारशीलता ने उस महिला कैदी को मेरी मदद करने के लिए प्रेरित किया था। मैंने देखा कि परमेश्वर हमेशा मेरे साथ था, अपने दिल की गहराई से मैंने परमेश्वर को धन्यवाद दिया।

नज़रबंदी गृह के अंदर मैं सभी प्रकार के अन्य कैदियों के साथ रहती थी। हमारे तीन समय के भोजन में से हरेक में भाप में पकी रोटी का एक टुकड़ा और नमकीन शलजम की दो फाँकें शामिल थीं, या फिर गोभी के सूप का एक कटोरा, जिसमें कीड़े तैर रहे होते थे और गोभी बिलकुल नहीं होती थी। सप्ताह में एक बार हमें बढ़िया अनाज का एक भोजन दिया जाता था, वह भी भाप में पकी छोटी-सी रोटी थी—उससे मेरा पेट बिलकुल भी नहीं भरता था। जेल-नियमों को रटने और पढ़ने के अलावा उस जगह हमें हर दिन छोटे हस्तशिल्प बनाने के काम का ऐसा कोटा दिया जाता था, जिसे पूरा करना असंभव था। चूँकि मेरे हाथ तंग हथकड़ी से चोटिल हो गए थे और उनमें इस सीमा तक बिजली के झटके दिए गए थे कि मुझे कुछ भी महसूस होना बंद हो गया था, और तो और जो हस्तशिल्प हमें बनाने थे, वे बहुत छोटे थे, इसलिए मैं उन्हें पकड़ नहीं पाती थी, और अपना कार्यभार पूरा करने में असमर्थ थी। एक बार, चूँकि मैंने अपना काम पूरा नहीं किया था, इसलिए जेल के पहरेदारों ने अन्य कैदियों को पूरी रात मुझ पर नज़र रखने के लिए कहा, ताकि मैं सो न पाऊँ। अकसर मुझे संतरी की ड्यूटी पर खड़े होने की भी सजा दी जाती थी, और रात में केवल चार घंटे सोने दिया जाता था। इस दौरान पुलिस ने मुझसे अक्सर पूछताछ की। उन्होंने मेरे बेटे को भी मुझे एक पत्र लिखने के लिए मजबूर किया, जो मुझे परमेश्वर को धोखा देने के लिए प्रेरित करने की उनकी चाल थी। लेकिन परमेश्वर के संरक्षण और मार्गदर्शन के तहत मैं बार-बार शैतान की चालाक योजनाओं को समझने में कामयाब रही। इस के बावजूद कि वे कुछ भी ऐसा हासिल करने में कामयाब नहीं हुए, जो मुझे फँसा सकता था, उन्होंने मुझ पर “सार्वजनिक व्यवस्था में बाधा पहुँचाने” का आरोप लगाया और मुझे श्रम के माध्यम से तीन साल की पुनर्शिक्षा की सज़ा दे दी।

25 दिसंबर 2005 को मेरी सज़ा पूरी हो गई और मुझे रिहा कर दिया गया। इस गिरफ्तारी और यातना का अनुभव करके हालाँकि मैंने शरीर और दिमाग दोनों से कष्ट सहा था, लेकिन मैंने सीसीपी का परमेश्वर-विरोधी, शैतानी सार साफ़ देख लिया। मुझे परमेश्वर की सर्वशक्तिमत्ता, संप्रभुता, चामत्कारिकता और बुद्धिमत्ता के संबंध में कुछ वास्तविक समझ भी आ गई, और मैंने परमेश्वर के प्रेम और उद्धार का वास्तविक अनुभव कर लिया। जबकि वे शैतान मुझे यातना दे रहे थे और प्रताड़ित कर रहे थे, यह परमेश्वर के वचनों द्वारा समय पर मिला प्रबोधन और मार्गदर्शन था जो मेरा सच्चा सहायक बना, और जिसने मुझे शैतान के साथ कष्टों के अंत तक लड़ने का संकल्प और साहस दिया। जब शैतान मुझे परमेश्वर को धोखा देने के लिए ललचाने और लुभाने हेतु हर तरह की चालाक योजनाएँ आजमा कर रहा था, तो यह परमेश्वर ही था जिसने ऐन मौके पर अपने वचनों का इस्तेमाल करके मुझे चेताया और मेरी आध्यात्मिक आँखों से धूल साफ की थी, ताकि मैं शैतान की योजनाओं को समझ सकूँ; जब उन दानवों ने मुझे उस सीमा तक भयानक यातना दी कि मृत्यु बेहतर लगने लगी, मेरा जीवन अंत के करीब आ गया, तो परमेश्वर के वचन मेरे जीते रहने की नींव बन गए। उन्होंने मुझे जबरदस्त विश्वास और शक्ति दी, और मृत्यु की मुझपर जो बेड़ियाँ कसी थीं, उससे मुक्त होने में सक्षम बनाया। इन सभी चीज़ों ने मुझे वास्तव में परमेश्वर का सुंदर और दयालु सार देखने की अनुमति दी—केवल परमेश्वर ही मानव-जाति से सबसे अधिक प्यार करता है। दूसरी ओर, सीसीपी—शैतान, दानव—लोगों को केवल भ्रष्ट कर सकती है, उन्हें नुकसान पहुँचा सकती है और निगल सकती है! आज, सीसीपी सरकार द्वारा सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया पर बढ़ते बर्बर हमलों के सामने, मैं इस शैतान, सीसीपी के खिलाफ पूरी तरह से विद्रोह करने, परमेश्वर को अपना दिल देने और सत्य का अनुसरण करने का हरसंभव प्रयास करने के लिए पूरी तरह से संकल्पित हूँ। मैं परमेश्वर के राज्य के सुसमाचार का प्रसार करूँगी और उन सभी को वापस परमेश्वर के सामने लाऊँगी, जो ईमानदारी से परमेश्वर में विश्वास करते हैं, सत्य के लिए लालायित रहते हैं और इस तरह अपना कर्तव्य निभाऊँगी।

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